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श्री लक्ष्मी चालीसा-Shri Laxmi Chalisa

संसार में सुख और ऐश्वर्य की प्राप्ति के लिए मनुष्य, देवता या दानव आदि जिनकी पूजा करते हैं, वे वास्तव में देवी भगवती महालक्ष्मीजी ही हैं, जो गरीबों के दुख दूर करती हैं और अपने माध्यम से भक्तों को धन और समृद्धि प्रदान करती हैं। अनुग्रह. आपको ऐश्वर्य और सद्गुणों से परिपूर्ण बनाता है। माता लक्ष्मीजी को धन की देवी कहा जाता है। इनकी पूजा करने से जीवन में सुख, शांति और समृद्धि आती है।

देवता हों या दानव, सभी महालक्ष्मीजी के सामने नतमस्तक होते हैं और उनसे आशीर्वाद की प्रार्थना करते हैं। गरीबों की दरिद्रता दूर करने वाली, भूखों को भोजन देने वाली और संसार को इन्द्रिय सुख देने वाली माता लक्ष्मी की महिमा अपरंपार है।

श्री लक्ष्मी चालीसा

दोहा

मातु लक्ष्मी करि कृपा करो हृदय में वास ।

मनो कामना सिद्ध कर पुरवहु मेरी आस ॥

सिंधु सुता विष्णुप्रिये नत शिर बारंबार ।

ऋद्धि सिद्धि मंगलप्रदे नत शिर बारंबार ॥ टेक ॥

सिन्धु सुता मैं सुमिरौं तोही । ज्ञान बुद्धि विद्या दो मोहि ॥

तुम समान नहिं कोई उपकारी । सब विधि पुरबहु आस हमारी ॥

जै जै जगत जननि जगदम्बा । सबके तुमही हो स्वलम्बा ॥

तुम ही हो घट घट के वासी । विनती यही हमारी खासी ॥

जग जननी जय सिन्धु कुमारी । दीनन की तुम हो हितकारी ॥

विनवौं नित्य तुमहिं महारानी । कृपा करौ जग जननि भवानी ॥

केहि विधि स्तुति करौं तिहारी । सुधि लीजै अपराध बिसारी ॥

कृपा दृष्टि चितवो मम ओरी । जगत जननि विनती सुन मोरी ॥

ज्ञान बुद्धि जय सुख की दाता । संकट हरो हमारी माता ॥

क्षीर सिंधु जब विष्णु मथायो । चौदह रत्न सिंधु में पायो ॥

चौदह रत्न में तुम सुखरासी । सेवा कियो प्रभुहिं बनि दासी ॥

जब जब जन्म जहां प्रभु लीन्हा । रूप बदल तहं सेवा कीन्हा ॥

स्वयं विष्णु जब नर तनु धारा । लीन्हेउ अवधपुरी अवतारा ॥

तब तुम प्रकट जनकपुर माहीं । सेवा कियो हृदय पुलकाहीं ॥

अपनायो तोहि अन्तर्यामी । विश्व विदित त्रिभुवन की स्वामी ॥

तुम सब प्रबल शक्ति नहिं आनी । कहँ तक महिमा कहौं बखानी ॥

मन क्रम वचन करै सेवकाई । मन-इच्छित वांछित फल पाई ॥

तजि छल कपट और चतुराई । पूजहिं विविध भाँति मन लाई ॥

और हाल मैं कहौं बुझाई । जो यह पाठ करे मन लाई ॥

ताको कोई कष्ट न होई । मन इच्छित फल पावै फल सोई ॥

त्राहि-त्राहि जय दुःख निवारिणी । त्रिविध ताप भव बंधन हारिणि ॥

जो यह चालीसा पढ़े और पढ़ावे । इसे ध्यान लगाकर सुने सुनावै ॥

ताको कोई न रोग सतावै । पुत्र आदि धन सम्पत्ति पावै ॥

पुत्र हीन और सम्पत्ति हीना । अन्धा बधिर कोढ़ी अति दीना ॥

विप्र बोलाय कै पाठ करावै । शंका दिल में कभी न लावै ॥

पाठ करावै दिन चालीसा । ता पर कृपा करैं गौरीसा ॥

सुख सम्पत्ति बहुत सी पावै । कमी नहीं काहू की आवै ॥

बारह मास करै जो पूजा । तेहि सम धन्य और नहिं दूजा ॥

प्रतिदिन पाठ करै मन माहीं । उन सम कोई जग में नाहिं ॥

बहु विधि क्या मैं करौं बड़ाई । लेय परीक्षा ध्यान लगाई ॥

करि विश्वास करैं व्रत नेमा । होय सिद्ध उपजै उर प्रेमा ॥

जय जय जय लक्ष्मी महारानी । सब में व्यापित जो गुण खानी ॥

तुम्हरो तेज प्रबल जग माहीं । तुम सम कोउ दयाल कहूँ नाहीं ॥

मोहि अनाथ की सुधि अब लीजै । संकट काटि भक्ति मोहि दीजे ॥

भूल चूक करी क्षमा हमारी । दर्शन दीजै दशा निहारी ॥

बिन दरशन व्याकुल अधिकारी । तुमहिं अक्षत दुःख सहते भारी ॥

नहिं मोहिं ज्ञान बुद्धि है तन में । सब जानत हो अपने मन में ॥

रूप चतुर्भुज करके धारण । कष्ट मोर अब करहु निवारण ॥

कहि प्रकार मैं करौं बड़ाई । ज्ञान बुद्धि मोहिं नहिं अधिकाई ॥

रामदास अब कहै पुकारी । करो दूर तुम विपति हमारी ॥

दोहा

त्राहि त्राहि दुःख हारिणी हरो बेगि सब त्रास ।

जयति जयति जय लक्ष्मी करो शत्रुन का नाश ॥

रामदास धरि ध्यान नित विनय करत कर जोर ।

मातु लक्ष्मी दास पर करहु दया की कोर ॥

                 ॥ श्री लक्ष्मीजी की आरती ॥

ॐ जय लक्ष्मी माता, मैया जय लक्ष्मी माता

तुम को निशदिन सेवत मैयाजी को निस दिन सेवत

हर विष्णु विधाता । ॐ जय लक्ष्मी माता ॥

उमा रमा ब्रह्माणी, तुम ही जग माता । ओ मैया तुम ही जग माता ।

सूर्य चन्द्र माँ ध्यावत नारद ऋषि गाता, ॐ जय लक्ष्मी माता ॥

दुर्गा रूप निरंजनि सुख सम्पति दाता, ओ मैया सुख सम्पति दाता ।

जो कोई तुम को ध्यावत ऋद्धि सिद्धि धन पाता, ॐ जय लक्ष्मी माता ॥

तुम पाताल निवासिनि तुम ही शुभ दाता, ओ मैया तुम ही शुभ दाता ।

कर्म प्रभाव प्रकाशिनि, भव निधि की दाता, ॐ जय लक्ष्मी माता ॥

जिस घर तुम रहती तहँ सब सद्गुण आता, ओ मैया सब सद्गुण आता ।

सब संभव हो जाता मन नहीं घबराता, ॐ जय लक्ष्मी माता ॥

तुम बिन यज्ञ न होते, वस्त्र न कोई पाता, ओ मैया वस्त्र न कोई पाता ।

खान पान का वैभव सब तुम से आता, ॐ जय लक्ष्मी माता ॥

शुभ गुण मंदिर सुंदर क्षीरोदधि जाता, ओ मैया क्षीरोदधि जाता ।

रत्न चतुर्दश तुम बिन कोई नहीं पाता , ॐ जय लक्ष्मी माता ॥

महा लक्ष्मीजी की आरती, जो कोई जन गाता, ओ मैया जो कोई जन गाता ।

उर आनंद समाता पाप उतर जाता , ॐ जय लक्ष्मी माता ॥

स्थिर चर जगत बचावे कर्म प्रेम ल्याता । ओ मैया जो कोई जन गाता ।

राम प्रताप मैय्या की शुभ दृष्टि चाहता, ॐ जय लक्ष्मी माता ॥

॥ इति॥

श्री लक्ष्मी चालीसा अर्थ सहित

॥दोहा॥

मातु लक्ष्मी करि कृपा, करो हृदय में वास।

मनोकामना सिद्ध करि, परुवहु मेरी आस॥

हे मां लक्ष्मी दया करके मेरे हृद्य में वास करो हे मां मेरी मनोकामनाओं को सिद्ध कर मेरी आशाओं को पूर्ण करो।

॥सोरठा॥

यही मोर अरदास, हाथ जोड़ विनती करुं।

सब विधि करौ सुवास, जय जननि जगदम्बिका॥

हे मां मेरी यही अरदास है, मैं हाथ जोड़ कर बस यही प्रार्थना कर रहा हूं हर प्रकार से आप मेरे यहां निवास करें। हे जननी, हे मां जगदम्बिका आपकी जय हो।

॥चौपाई॥

सिन्धु सुता मैं सुमिरौ तोही। ज्ञान, बुद्धि, विद्या दो मोही॥

तुम समान नहिं कोई उपकारी। सब विधि पुरवहु आस हमारी॥

जय जय जगत जननि जगदम्बा। सबकी तुम ही हो अवलम्बा॥

तुम ही हो सब घट घट वासी। विनती यही हमारी खासी॥

जगजननी जय सिन्धु कुमारी। दीनन की तुम हो हितकारी॥

हे सागर पुत्री मैं आपका ही स्मरण करता/करती हूं, मुझे ज्ञान, बुद्धि और विद्या का दान दो। आपके समान उपकारी दूसरा कोई नहीं है। हर विधि से हमारी आस पूरी हों, हे जगत जननी जगदम्बा आपकी जय हो, आप ही सबको सहारा देने वाली हो, सबकी सहायक हो। आप ही घट-घट में वास करती हैं, ये हमारी आपसे खास विनती है। हे संसार को जन्म देने वाली सागर पुत्री आप गरीबों का कल्याण करती हैं।

विनवौं नित्य तुमहिं महारानी। कृपा करौ जग जननि भवानी॥

केहि विधि स्तुति करौं तिहारी। सुधि लीजै अपराध बिसारी॥

कृपा दृष्टि चितववो मम ओरी। जगजननी विनती सुन मोरी॥

ज्ञान बुद्धि जय सुख की दाता। संकट हरो हमारी माता॥

हे मां महारानी हम हर रोज आपकी विनती करते हैं, हे जगत जननी भवानी, सब पर अपनी कृपा करो। आपकी स्तुति हम किस प्रकार करें। हे मां हमारे अपराधों को भुलाकर हमारी सुध लें। मुझ पर अपनी कृपा दृष्टि रखते हुए हे जग जननी, मेरी विनती सुन लीजिये। आप ज्ञान, बुद्धि व सुख प्रदान करने वाली हैं, आपकी जय हो, हे मां हमारे संकटों का हरण करो।

क्षीरसिन्धु जब विष्णु मथायो। चौदह रत्न सिन्धु में पायो॥

चौदह रत्न में तुम सुखरासी। सेवा कियो प्रभु बनि दासी॥

जब जब जन्म जहां प्रभु लीन्हा। रुप बदल तहं सेवा कीन्हा॥

स्वयं विष्णु जब नर तनु धारा। लीन्हेउ अवधपुरी अवतारा॥

तब तुम प्रगट जनकपुर माहीं। सेवा कियो हृदय पुलकाहीं॥

अपनाया तोहि अन्तर्यामी। विश्व विदित त्रिभुवन की स्वामी॥

जब भगवान विष्णु ने दुध के सागर में मंथन करवाया तो उसमें से चौदह रत्न प्राप्त हुए। हे सुखरासी, उन्हीं चौदह रत्नों में से एक आप भी थी जिन्होंने भगवान विष्णु की दासी बन उनकी सेवा की। जब भी भगवान विष्णु ने जहां भी जन्म लिया अर्थात जब भी भगवान विष्णु ने अवतार लिया आपने भी रुप बदलकर उनकी सेवा की। स्वयं भगवान विष्णु ने मानव रुप में जब अयोध्या में जन्म लिया तब आप भी जनकपुरी में प्रगट हुई और सेवा कर उनके दिल के करीब रही, अंतर्यामी भगवान विष्णु ने आपको अपनाया, पूरा विश्व जानता है कि आप ही तीनों लोकों की स्वामी हैं।

तुम सम प्रबल शक्ति नहीं आनी। कहं लौ महिमा कहौं बखानी॥

मन क्रम वचन करै सेवकाई। मन इच्छित वाञ्छित फल पाई॥

तजि छल कपट और चतुराई। पूजहिं विविध भांति मनलाई॥

और हाल मैं कहौं बुझाई। जो यह पाठ करै मन लाई॥

ताको कोई कष्ट नोई। मन इच्छित पावै फल सोई॥

आपके समान और कोई दूसरी शक्ति नहीं आ सकती। आपकी महिमा का कितना ही बखान करें लेकिन वह कहने में नहीं आ सकता अर्थात आपकी महिमा अकथ है। जो भी मन, वचन और कर्म से आपका सेवक है, उसके मन की हर इच्छा पूरी होती है। छल, कपट और चतुराई को तज कर विविध प्रकार से मन लगाकर आपकी पूजा करनी चाहिए। इसके अलावा मैं और क्या कहूं, जो भी इस पाठ को मन लगाकर करता है, उसे कोई कष्ट नहीं मिलता व मनवांछित फल प्राप्त होता है।

त्राहि त्राहि जय दुःख निवारिणि। त्रिविध ताप भव बन्धन हारिणी॥

जो चालीसा पढ़ै पढ़ावै। ध्यान लगाकर सुनै सुनावै॥

ताकौ कोई न रोग सतावै। पुत्र आदि धन सम्पत्ति पावै॥

पुत्रहीन अरु सम्पति हीना। अन्ध बधिर कोढ़ी अति दीना॥

विप्र बोलाय कै पाठ करावै। शंका दिल में कभी न लावै॥

पाठ करावै दिन चालीसा। ता पर कृपा करैं गौरीसा॥

हे दुखों का निवारण करने वाली मां आपकी जय हो, तीनों प्रकार के तापों सहित सारी भव बाधाओं से मुक्ति दिलाती हो अर्थात आप तमाम बंधनों से मुक्त कर मोक्ष प्रदान करती हो। जो भी चालीसा को पढ़ता है, पढ़ाता है या फिर ध्यान लगाकर सुनता और सुनाता है, उसे किसी तरह का रोग नहीं सताता, उसे पुत्र आदि धन संपत्ति भी प्राप्त होती है। पुत्र एवं संपत्ति हीन हों अथवा अंधा, बहरा, कोढि या फिर बहुत ही गरीब ही क्यों न हो यदि वह ब्राह्मण को बुलाकर आपका पाठ करवाता है और दिल में किसी भी प्रकार की शंका नहीं रखता अर्थात पूरे विश्वास के साथ पाठ करवाता है। चालीस दिनों तक पाठ करवाए तो हे मां लक्ष्मी आप उस पर अपनी दया बरसाती हैं।

सुख सम्पत्ति बहुत सी पावै। कमी नहीं काहू की आवै॥

बारह मास करै जो पूजा। तेहि सम धन्य और नहिं दूजा॥

प्रतिदिन पाठ करै मन माही। उन सम कोइ जग में कहुं नाहीं॥

बहुविधि क्या मैं करौं बड़ाई। लेय परीक्षा ध्यान लगाई॥

चालीस दिनों तक आपका पाठ करवाने वाला सुख-समृद्धि व बहुत सी संपत्ती प्राप्त करता है। उसे किसी चीज की कमी महसूस नहीं होती। जो बारह मास आपकी पूजा करता है, उसके समान धन्य और दूसरा कोई भी नहीं है। जो मन ही मन हर रोज आपका पाठ करता है, उसके समान भी संसार में कोई नहीं है। हे मां मैं आपकी क्या बड़ाई करुं, आप अपने भक्तों की परीक्षा भी अच्छे से लेती हैं।

करि विश्वास करै व्रत नेमा। होय सिद्ध उपजै उर प्रेमा॥

जय जय जय लक्ष्मी भवानी। सब में व्यापित हो गुण खानी॥

तुम्हरो तेज प्रबल जग माहीं। तुम सम कोउ दयालु कहुं नाहिं॥

मोहि अनाथ की सुधि अब लीजै। संकट काटि भक्ति मोहि दीजै॥

जो भी पूर्ण विश्वास कर नियम से आपके व्रत का पालन करता है, उसके हृद्य में प्रेम उपजता है व उसके सारे कार्य सफल होते हैं। हे मां लक्ष्मी, हे मां भवानी, आपकी जय हो। आप गुणों की खान हैं और सबमें निवास करती हैं। आपका तेज इस संसार में बहुत शक्तिशाली है, आपके समान दयालु और कोई नहीं है। हे मां, मुझ अनाथ की भी अब सुध ले लीजिये। मेरे संकट को काट कर मुझे आपकी भक्ति का वरदान दें।

भूल चूक करि क्षमा हमारी। दर्शन दजै दशा निहारी॥

बिन दर्शन व्याकुल अधिकारी। तुमहि अछत दुःख सहते भारी॥

नहिं मोहिं ज्ञान बुद्धि है तन में। सब जानत हो अपने मन में॥

रुप चतुर्भुज करके धारण। कष्ट मोर अब करहु निवारण॥

केहि प्रकार मैं करौं बड़ाई। ज्ञान बुद्धि मोहि नहिं अधिकाई॥

हे मां अगर कोई भूल चूक हमसे हुई हो तो हमें क्षमा कर दें, अपने दर्शन देकर भक्तों को भी एक बार निहार लो मां। आपके भक्त आपके दर्शनों के बिना बेचैन हैं। आपके रहते हुए भारी कष्ट सह रहे हैं। हे मां आप तो सब जानती हैं कि मुझे ज्ञान नहीं हैं, मेरे पास बुद्धि नहीं अर्थात मैं अज्ञानी हूं आप सर्वज्ञ हैं। अब अपना चतुर्भुज रुप धारण कर मेरे कष्ट का निवारण करो मां। मैं और किस प्रकार से आपकी प्रशंसा करुं इसका ज्ञान व बुद्धि मेरे अधिकार में नहीं है अर्थात आपकी प्रशंसा करना वश की बात नहीं है।

॥दोहा॥

त्राहि त्राहि दुःख हारिणी, हरो वेगि सब त्रास।

जयति जयति जय लक्ष्मी, करो शत्रु को नाश॥

रामदास धरि ध्यान नित, विनय करत कर जोर।

मातु लक्ष्मी दास पर, करहु दया की कोर॥

हे दुखों का हरण करने वाली मां दुख ही दुख हैं, आप सब पापों हरण करो, हे शत्रुओं का नाश करने वाली मां लक्ष्मी आपकी जय हो, जय हो। रामदास प्रतिदिन हाथ जोड़कर आपका ध्यान धरते हुए आपसे प्रार्थना करता है। हे मां लक्ष्मी अपने दास पर दया की नजर रखो।

राम चालीसा (Ram Chalisa)

चालीसा: श्री राम जी – Shri Ram Chalisa 

॥ दोहा ॥
आदौ राम तपोवनादि गमनं हत्वाह् मृगा काञ्चनं
वैदेही हरणं जटायु मरणं सुग्रीव संभाषणं

बाली निर्दलं समुद्र तरणं लङ्कापुरी दाहनम्
पश्चद्रावनं कुम्भकर्णं हननं एतद्धि रामायणं

॥ चौपाई ॥
श्री रघुबीर भक्त हितकारी ।
सुनि लीजै प्रभु अरज हमारी ॥

निशि दिन ध्यान धरै जो कोई ।
ता सम भक्त और नहिं होई ॥

ध्यान धरे शिवजी मन माहीं ।
ब्रह्मा इन्द्र पार नहिं पाहीं ॥

जय जय जय रघुनाथ कृपाला ।
सदा करो सन्तन प्रतिपाला ॥

दूत तुम्हार वीर हनुमाना ।
जासु प्रभाव तिहूँ पुर जाना ॥

तुव भुजदण्ड प्रचण्ड कृपाला ।
रावण मारि सुरन प्रतिपाला ॥

तुम अनाथ के नाथ गोसाईं ।
दीनन के हो सदा सहाई ॥

ब्रह्मादिक तव पार न पावैं ।
सदा ईश तुम्हरो यश गावैं ॥

चारिउ वेद भरत हैं साखी ।
तुम भक्तन की लज्जा राखी ॥

गुण गावत शारद मन माहीं ।
सुरपति ताको पार न पाहीं ॥ 10 ॥

नाम तुम्हार लेत जो कोई ।
ता सम धन्य और नहिं होई ॥

राम नाम है अपरम्पारा ।
चारिहु वेदन जाहि पुकारा ॥

गणपति नाम तुम्हारो लीन्हों ।
तिनको प्रथम पूज्य तुम कीन्हों ॥

शेष रटत नित नाम तुम्हारा ।
महि को भार शीश पर धारा ॥

फूल समान रहत सो भारा ।
पावत कोउ न तुम्हरो पारा ॥

भरत नाम तुम्हरो उर धारो ।
तासों कबहुँ न रण में हारो ॥

नाम शत्रुहन हृदय प्रकाशा ।
सुमिरत होत शत्रु कर नाशा ॥

लषन तुम्हारे आज्ञाकारी ।
सदा करत सन्तन रखवारी ॥

ताते रण जीते नहिं कोई ।
युद्ध जुरे यमहूँ किन होई ॥

महा लक्ष्मी धर अवतारा ।
सब विधि करत पाप को छारा ॥ 20 ॥

सीता राम पुनीता गायो ।
भुवनेश्वरी प्रभाव दिखायो ॥

घट सों प्रकट भई सो आई ।
जाको देखत चन्द्र लजाई ॥

सो तुमरे नित पांव पलोटत ।
नवो निद्धि चरणन में लोटत ॥

सिद्धि अठारह मंगल कारी ।
सो तुम पर जावै बलिहारी ॥

औरहु जो अनेक प्रभुताई ।
सो सीतापति तुमहिं बनाई ॥

इच्छा ते कोटिन संसारा ।
रचत न लागत पल की बारा ॥

जो तुम्हरे चरनन चित लावै ।
ताको मुक्ति अवसि हो जावै ॥

सुनहु राम तुम तात हमारे ।
तुमहिं भरत कुल- पूज्य प्रचारे ॥

तुमहिं देव कुल देव हमारे ।
तुम गुरु देव प्राण के प्यारे ॥

जो कुछ हो सो तुमहीं राजा ।
जय जय जय प्रभु राखो लाजा ॥ 30 ॥

रामा आत्मा पोषण हारे ।
जय जय जय दशरथ के प्यारे ॥

जय जय जय प्रभु ज्योति स्वरूपा ।
निगुण ब्रह्म अखण्ड अनूपा ॥

सत्य सत्य जय सत्य- ब्रत स्वामी ।
सत्य सनातन अन्तर्यामी ॥

सत्य भजन तुम्हरो जो गावै ।
सो निश्चय चारों फल पावै ॥

सत्य शपथ गौरीपति कीन्हीं ।
तुमने भक्तहिं सब सिद्धि दीन्हीं ॥

ज्ञान हृदय दो ज्ञान स्वरूपा ।
नमो नमो जय जापति भूपा ॥

धन्य धन्य तुम धन्य प्रतापा ।
नाम तुम्हार हरत संतापा ॥

सत्य शुद्ध देवन मुख गाया ।
बजी दुन्दुभी शंख बजाया ॥

सत्य सत्य तुम सत्य सनातन ।
तुमहीं हो हमरे तन मन धन ॥

याको पाठ करे जो कोई ।
ज्ञान प्रकट ताके उर होई ॥ 40 ॥

आवागमन मिटै तिहि केरा ।
सत्य वचन माने शिव मेरा ॥

और आस मन में जो ल्यावै ।
तुलसी दल अरु फूल चढ़ावै ॥

साग पत्र सो भोग लगावै ।
सो नर सकल सिद्धता पावै ॥

अन्त समय रघुबर पुर जाई ।
जहाँ जन्म हरि भक्त कहाई ॥

श्री हरि दास कहै अरु गावै ।
सो वैकुण्ठ धाम को पावै ॥

॥ दोहा ॥
सात दिवस जो नेम कर पाठ करे चित लाय ।
हरिदास हरिकृपा से अवसि भक्ति को पाय ॥

राम चालीसा जो पढ़े रामचरण चित लाय ।
जो इच्छा मन में करै सकल सिद्ध हो जाय ॥

Shri Ram Chalisa Lyrics in English

||CHOPAI||

Shri Raghubir bhagat hitkari, suni lije prabhu araj hamari,

Nisidin dhyan dhare jo koi, ta sam bhakt aur nahi hoi,

Dhyan dhare shivji man mahi, brahma indra par nahi pahi,

Jai jai jai raghunath kripala, sada karo santan pratipala.

Hindi Katha Bhajan Youtube

Hindi Katha Bhajan Youtube

Doot tumhar veer hanumana, jasu prabhav tihu pur jana,

Tuv bhujdand prachand kripala, ravan mari suarn pratipala,

Tum anath ke nath gosai, deenan ke ho sada sahai,

Bramhadik tav par na paven, sada eesh tumharo yash gave.

Chariu ved bharat hai sakhi, tum bhaktan ki lajja rakhi,

Gun gavat sharad man mahi, surpati tako par na pahi,

Nam tumhare let jo koi, ta sam dhanya aur nahi hoi,

Ram naam hai aparampara, charin ved jahi pukara.

Ganpati naam tumharo linho, tinko pratham pujya tum kinho,

Shesh ratat nit naam tumhara, mahi ko bhar shish par dhara,

Phool saman rahat so bhara, pavat kou na tumharo para,

Bharat naam tumharo ur dharo, taso kabahu na ran mein haro.

Naam shatrugna hridaya prakasha, sumirat hot shatru kar nasha,

Lakhan tumhare agyakari, sada karat santan rakhwari,

Tate ran jeete nahi koi, yuddh jure yamahu kin hoi,

Mahalakshmi dhar avtara, sab vidhi karat paap ko chhara.

Seeta ram puneeta gayo, bhuvaneshwari prabhav dikhayo,

Ghat sp prakat bhai so aai, jako dehkat chand lajai,

So tumhare nit paon palotat, navo nidhi charanan mein lotat,

Siddhi atharah mangalkari, so tum par jave balihari.

Aurahu jo anek prabhutai, so seetapati tumahi banai,

Ichchha te kotin sansara, rachat na lagat pal ki bhara,

Jo tumhare charanan chit lave, taki mukti avasi ho jave,

Sunahu ram tum tat hamare, tumahi bharat kul poojya prachare.

Tumahi dev kul dev hamare, tum gurudev pran ke pyare,

Jo kuch ho so tumhahi raja, jai jai jai prabhu rakho laja,

Ram atma poshan hare, jai jai jai dasrath ke pyare,

Jai jai jai prabhu jyoti swarupa, nirgun brahma akhand anoopa.

Satya satya jai satyavrat swami, satya sanatan antaryami,

Satya bhajan tumharo jo gave, So nischay charon phal pave,

Satya sapath gauripati kinhi, tumne bhaktahi sab siddhi dinhi,

Gyan hridaya do gyanswarupa, namo namo jai jagpati bhoopa.

Dhanya dhanya tum dhanya pratapa, naam tumhar harat sntapa,

Satya shudh deva mukh gaya, baji dundubhi shankh bajaya,

Satya satya tum satya sanatan, tumahi ho hamare tan man dhan,

Yako path kare jo koi, gyan prakat take ur hoi.

Avagaman mitai tihi kera, satya vachan mane shiv mera,

Aur aas man mein jo hoi, manvanchit phal pave soi,

Teenahu kal dhyan jo lave, tulsidas anu phool chadhave,

Saag patra so bhog lagave, so nar sakal siddhata pave.

Aant samay raghubarpur jai, jaha janma haribhakta kai,

Shri haridas kahai aru gave, so vaikunth dham ko pave.

||DOHA||

Saat divas jo nem kar, path kare chit laye,

Haridas harikripa se, avasi bhakti ko pave.

Ram chalisa jo padhe, ram sharan chit laye,

Jo ichchha man mein kare, sakal siddh ho jaye.

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॥चौपाई॥

श्री रघुबीर भक्त हितकारी। सुनि लीजै प्रभु अरज हमारी॥

निशि दिन ध्यान धरै जो कोई। ता सम भक्त और नहीं होई॥

ध्यान धरें शिवजी मन मांही। ब्रह्मा, इन्द्र पार नहीं पाहीं॥

दूत तुम्हार वीर हनुमाना। जासु प्रभाव तिहुं पुर जाना॥

जय, जय, जय रघुनाथ कृपाला। सदा करो संतन प्रतिपाला॥

हे रघुबीर, भक्तों का कल्याण करने वाले हे भगवान श्री राम हमारी प्रार्थना सुन लिजिये। हे प्रभु जो दिन रात केवल आपका ध्यान धरता है अर्थात हर समय आपका स्मरण करता है, उसके समान दूसरा भक्त कोई नहीं है। भगवान शिव भी मन ही मन आपका ध्यान करते हैं, ब्रह्मा, इंद्र आदि भी आपकी लीला को पूरी तरह नहीं जान सके। आपके दूत वीर हनुमान हैं तीनों लोकों में जिनके प्रभाव को सब जानते हैं। हे कृपालु रघुनाथ सदा संतो का प्रतिपालक श्री राम आपकी जय हो, जय हो, जय हो।

तुव भुजदण्ड प्रचण्ड कृपाला। रावण मारि सुरन प्रतिपाला॥

तुम अनाथ के नाथ गोसाईं। दीनन के हो सदा सहाई॥

ब्रह्मादिक तव पार न पावैं। सदा ईश तुम्हरो यश गावैं॥

चारिउ बेद भरत हैं साखी। तुम भक्तन की लज्जा राखी॥

गुण गावत शारद मन माहीं। सुरपति ताको पार न पाहिं॥

नाम तुम्हार लेत जो कोई। ता सम धन्य और नहीं होई॥

राम नाम है अपरम्पारा। चारिहु वेदन जाहि पुकारा॥

हे प्रभु आपकी भुजाओं में अपार शक्ति है लेकिन इनसे हमेशा कल्याण हुआ है, अर्थात आपने हमेशा अपनी कृपा बरसाई है। हे देवताओं के प्रतिपालक भगवान श्री राम आपने ही रावण जैसे दुष्ट को मारा।

हे प्रभु हे स्वामी जिसका कोई नहीं हैं उसका दामन आप ही थामते हैं, अर्थात आप ही उसके स्वामी हैं, आपने हमेशा दीन-दुखियों का कल्याण किया है। ब्रह्मा आदि भी आपका पार नहीं पा सके, स्वयं ईश्वर भी आपकी कीर्ति का गुणगान करते हैं। आपने हमेशा अपने भक्तों का मान रखा है प्रभु, चारों वेद भी इसके साक्षी हैं। हे प्रभु शारदे मां भी मन ही मन आपका स्मरण करती हैं। देवराज इंद्र भी आपकी महिमा का पार न पा सके। जो भी आपका नाम लेता है, उसके समान धन्य और कोई भी नहीं है। हे श्री राम आपका नाम अपरम्पार है, चारों वेदों ने पुकार-पुकार कर इसका ही बखान किया है। अर्थात चारों वेद आपकी महिमा को अपम्पार मानते हैं।

गणपति नाम तुम्हारो लीन्हो। तिनको प्रथम पूज्य तुम कीन्हो॥

शेष रटत नित नाम तुम्हारा। महि को भार शीश पर धारा॥

फूल समान रहत सो भारा। पावत कोऊ न तुम्हरो पारा॥

भरत नाम तुम्हरो उर धारो। तासों कबहूं न रण में हारो॥

नाम शत्रुहन हृदय प्रकाशा। सुमिरत होत शत्रु कर नाशा॥

लखन तुम्हारे आज्ञाकारी। सदा करत सन्तन रखवारी॥

ताते रण जीते नहिं कोई। युद्ध जुरे यमहूं किन होई॥

भगवान श्री गणेश ने भी आपके नाम का स्मरण किया, सबसे पहले उन्हें पूजनीय आपने ही बनाया। शेषनाग भी हमेशा आपके नाम का जाप करते हैं जिससे वे पृथ्वी के भार को अपने सिर पर धारण करने में सक्षम हुए हैं। आपके स्मरण से बड़े से बड़ा भार भी फूल के समान लगता है। हे प्रभु आपका पार कोई नहीं पा सकता अर्थात आपकी महिमा को कोई नहीं जान सकता। भरत ने आपका नाम अपने हृद्य में धारण किया इसलिए उसे युद्ध में कोई हरा नहीं सका। शत्रुहन के हृद्य में भी आपके नाम का प्रकाश था इसलिए तो आपका स्मरण करते ही वे शत्रुओं का नाश कर देते थे। लक्ष्मण आपके आज्ञाकारी थे जिन्होंनें हमेशा संतों की रखवाली की सुरक्षा की। उनसे भी कोई युद्ध नहीं जीत सकता था चाहे युद्ध में स्वयं यमराज क्यों न लड़ रहे हों।

महालक्ष्मी धर अवतारा। सब विधि करत पाप को छारा॥

सीता राम पुनीता गायो। भुवनेश्वरी प्रभाव दिखायो॥

घट सों प्रकट भई सो आई। जाको देखत चन्द्र लजाई॥

जो तुम्हरे नित पांव पलोटत। नवो निद्धि चरणन में लोटत॥

सिद्धि अठारह मंगलकारी। सो तुम पर जावै बलिहारी॥

आपके साथ-साथ मां महालक्ष्मी ने भी अवतार रुप लेकर हर विधि से पाप का नाश किया। इसीलिए सीता राम का पवित्र नाम गाया जाता है। मां भुवनेश्वरी अपना प्रभाव दिखाती हैं। माता सीता ने जब अवतार लिया तो वे घट यानि घड़े से प्रकट हुई इनका रुप इतना सुंदर था कि जिन्हें देखकर चंद्रमा भी शरमा जाए। हे प्रभु जो नित्य आपके चरणों को धोता है नौ निधियां उसके चरणों में लौट लगाती हैं। उसके लिए अठारह सिद्धियां ( मार्कंडेय पुराण के अनुसार सिद्धियां आठ होती हैं जबकि ब्रह्मवैवर्त पुराण में अठारह बताई गई हैं) मंगलकारी होती हैं जो आप पर न्यौछावर हैं।

औरहु जो अनेक प्रभुताई। सो सीतापति तुमहिं बनाई॥

इच्छा ते कोटिन संसारा। रचत न लागत पल की बारा॥

जो तुम्हरे चरणन चित लावै। ताकी मुक्ति अवसि हो जावै॥

सुनहु राम तुम तात हमारे। तुमहिं भरत कुल पूज्य प्रचारे॥

तुमहिं देव कुल देव हमारे। तुम गुरु देव प्राण के प्यारे॥

हे सीता पति भगवान श्री राम, अन्य जितने देवी-देवता हैं, सब आपने ही बनाए हैं। आपकी इच्छा हो तो आपको करोड़ों संसारों की रचना करने में भी पल भर की देरी न लगे। जो आपके चरणों में ध्यान लगाता है उसकी मुक्ति अवश्य हो जाती है। हे श्री राम सुन लिजिये आप ही हमारे पिता हैं, आप ही भारतवर्ष में पूज्य हैं। हे देव आप ही हमारे कुलदेव हैं, हे गुरु देव आप हमें प्राणों से प्यारे हैं।

जो कुछ हो सो तुमहिं राजा। जय जय जय प्रभु राखो लाजा॥

राम आत्मा पोषण हारे। जय जय जय दशरथ के प्यारे॥

जय जय जय प्रभु ज्योति स्वरुपा। नर्गुण ब्रहृ अखण्ड अनूपा॥

सत्य सत्य जय सत्यव्रत स्वामी। सत्य सनातन अन्तर्यामी॥

सत्य भजन तुम्हरो जो गावै। सो निश्चय चारों फल पावै॥

सत्य शपथ गौरीपति कीन्हीं। तुमने भक्तिहिं सब सिधि दीन्हीं॥

हे प्रभु श्री राम हमारे जो कुछ भी हैं, सब आप ही हैं, हमारी लाज रखिये, आपकी जय हो प्रभु। हे हमारी आत्मा का पोषण करने वाले दशरथ प्यारे भगवान श्री राम, आपकी जय हो। हे ज्योति स्वरुप प्रभु, आपकी जय हो। आप ही निर्गुण ईश्वर हैं, जो अद्वितीय है, अखंडित है। हे सत्य रुप, सत्य के पालक आप ही सत्य हैं, आपकी जय हो। अनादिकाल से ही आप सत्य हैं, अंतर्यामी हैं। सच्चे हृद्य से जो आपका भजन करता है, उसे चारों फल प्राप्त होते हैं। इसी सत्य की शपथ भगवान शंकर ने की जिससे आपने उन्हें भक्ति के साथ-साथ सब सिद्धियां भी दी।

ज्ञान हृदय दो ज्ञान स्वरुपा। नमो नमो जय जगपति भूपा॥

धन्य धन्य तुम धन्य प्रतापा। नाम तुम्हार हरत संतापा॥

सत्य शुद्ध देवन मुख गाया। बजी दुन्दुभी शंख बजाया॥

सत्य सत्य तुम सत्य सनातन। तुम ही हो हमरे तन-मन धन॥

हे ज्ञान स्वरुप, हमारे हृद्य को भी ज्ञान दो, हे जगपति, हे ब्रह्माण्ड के राजा, आपकी जय हो, हम आपको नमन करते हैं। आपका प्रताप धन्य है, आप भी धन्य हैं, प्रभु आपका नाम सारे संतापों अर्थात सारे कष्टों का हरण कर लेता है। आप ही शुद्ध सत्य हैं, जिसे देवताओं ने अपने मुख से गाया था, जिसके बाद शंख की दुंदुभी बजी थी। अनादिकाल से आप ही सत्य हैं, हे प्रभु आप ही हमारा तन-मन-धन हैं।

याको पाठ करे जो कोई। ज्ञान प्रकट ताके उर होई॥

आवागमन मिटै तिहि केरा। सत्य वचन माने शिव मेरा॥

और आस मन में जो होई। मनवांछित फल पावे सोई॥

तीनहुं काल ध्यान जो ल्यावै। तुलसी दल अरु फूल चढ़ावै॥

साग पत्र सो भोग लगावै। सो नर सकल सिद्धता पावै॥

अन्त समय रघुबर पुर जाई। जहां जन्म हरि भक्त कहाई॥

श्री हरिदास कहै अरु गावै। सो बैकुण्ठ धाम को पावै॥

जो कोई भी इसका पाठ करता है, उसके हृद्य में ज्ञान का प्रकाश होता है, अर्थात उसे सत्य का ज्ञान होता है। उसका आवागमन मिट जाता है, भगवान शिव भी मेरे इस वचन को सत्य मानते हैं। यदि और कोई इच्छा उसके मन में होती हैं तो इच्छानुसार फल प्राप्त होते हैं। जो कोई भी तीनों काल प्रभु का ध्यान लगाता है। प्रभु को तुलसी दल व फूल अर्पण करता है। साग पत्र से भोग लगाता है, उसे सारी सिद्धियां प्राप्त होती हैं। अंतिम समय में वह रघुबर पुर अर्थात स्वर्गलोक में गमन करता हैं, जहां पर जन्म लेने से ही जीव हरिभक्त कहलाता है। श्री हरिदास भी गाते हुए कहते हैं वह बैकुण्ठ धाम को प्राप्त करता है।

॥दोहा॥

सात दिवस जो नेम कर, पाठ करे चित लाय।

हरिदास हरि कृपा से, अवसि भक्ति को पाय॥

राम चालीसा जो पढ़े, राम चरण चित लाय।

जो इच्छा मन में करै, सकल सिद्ध हो जाय॥

यदि कोई भी सात दिनों तक नियम पूर्वक ध्यान लगाकर पाठ करता है, तो हरिदास जी कहते हैं कि भगवान विष्णु की कृपा से वह अवश्य ही भक्ति को पा लेता है। राम के चरणों में ध्यान लगाकर जो कोई भी, इस राम चालीसा को पढ़ता है, वह जो भी मन में इच्छा करता है, वह पूरी होती है।

krishna chalisa

Krishna chalisa lyrics in hindi

कृष्ण जन्माष्टमी के दिन कृष्ण चालीसा का पाठ  करना चाहिए। मान्यता है कि कृष्ण जन्माष्टमी के दिन श्री कृष्ण की चालीसा पाठ करने से भगवान श्री कृष्ण की विशेष कृपा रहती है।कृष्ण चालीसा को शांत मन के साथ, अपने आप को प्रभु के चरणों में समर्पित करते हुए पढ़ने से निश्चित ही धन धान्य, कीर्ति में बढ़ोतरी होती है

॥ दोहा ॥

वंशी शोभित कर मधुर,

नील जलद तन श्याम।

अरुण अधर जनु बिम्ब फल,

नयन कमल अभिराम॥

पूर्ण इन्द्र अरविन्द मुख,

पीताम्बर शुभ साज।

जय मनमोहन मदन छवि,

कृष्ण चन्द्र महाराज॥

॥ चौपाई॥

जय यदुनन्दन जय जगवन्दन,

जय वसुदेव देवकी नन्दन।

जय यशोदा सुत नन्द दुलारे,

जय प्रभु भक्तन के दृग तारे।

जय नटनागर नाग नथइया,

कृष्ण कन्हैया धेनु चरइया।

पुनि नख पर प्रभु गिरिवर धारो,

आओ दीनन कष्ट निवारो।

वंशी मधुर अधर धरि टेरी,

होवे पूर्ण विनय यह मेरी।

आओ हरि पुनि माखन चाखो,

आज लाज भारत की राखो।

गोल कपोल चिबुक अरुणारे,

मृदु मुस्कान मोहिनी डारे।

रंजित राजिव नयन विशाला,

मोर मुकुट बैजन्ती माला।

कुण्डल श्रवण पीतपट आछे,

कटि किंकणी काछन काछे।

नील जलज सुन्दर तनु सोहै,

छवि लखि सुर नर मुनि मन मोहै।

मस्तक तिलक अलक घुँघराले,

आओ कृष्ण बांसुरी वाले।

करि पय पान, पूतनहिं तारयो,

अका बका कागा सुर मारयो।

मधुवन जलत अगिन जब ज्वाला,

भये शीतल, लखितहिं नन्दलाला।

सुरपति जब ब्रज चढ़यो रिसाई,

मूसर धार वारि वर्षाई।

लगत-लगत ब्रज चहन बहायो,

गोवर्धन नखधारि बचायो।

लखि यसुदा मन भ्रम अधिकाई,

मुख.मँह चौदह भुवन दिखाई।

दुष्ट कंस अति उधम मचायो,

कोटि कमल जब फूल मँगायो।

नाथि कालियहिं तब तुम लीन्हें,

चरणचिन्ह दे निर्भय कीन्हैं।

करि गोपिन संग रास विलासा,

सबकी पूरण करि अभिलाषा।

केतिक महा असुर संहारियो,

कंसहि केस पकड़ि दै मारयो।

मात-पिता की बन्दि छुड़ाई,

उग्रसेन कहँ राज दिलाई।

महि से मृतक छहों सुत लायो,

मातु देवकी शोक मिटायो।

भौमासुर मुर दैत्य संहारी,

लाये षट दस सहस कुमारी।

दें भीमहि तृणचीर संहारा,

जरासिंधु राक्षस कहँ मारा।

असुर बकासुर आदिक मारयो,

भक्तन के तब कष्ट निवारियो।

दीन सुदामा के दुःख टारयो,

तंदुल तीन मूठि मुख डारयो।

प्रेम के साग विदुर घर माँगे,

दुर्योधन के मेवा त्यागे।

लखी प्रेमकी महिमा भारी,

ऐसे श्याम दीन हितकारी।

मारथ के पारथ रथ हांके,

लिए चक्र कर नहिं बल थांके।

निज गीता के ज्ञान सुनाये,

भक्तन हृदय सुधा वर्षाये।

मीरा थी ऐसी मतवाली,

विष पी गई बजा कर ताली।

राणा भेजा साँप पिटारी,

शालिग्राम बने बनवारी।

निज माया तुम विधिहिं दिखायो,

उरते संशय सकल मिटायो।

तव शत निन्दा करि तत्काला,

जीवन मुक्त भयो शिशुपाला।

जबहिं द्रोपदी टेर लगाई,

दीनानाथ लाज अब जाई।

तुरतहि वसन बने नन्दलाला,

बढ़े चीर भये अरि मुँह काला।

अस अनाथ के नाथ कन्हैया,

डूबत भँवर बचावत नइया।

सुन्दरदास आस उर धारी,

दयादृष्टि कीजै बनवारी।

नाथ सकल मम कुमति निवारो,

क्षमहुबेगि अपराध हमारो।

खोलो पट अब दर्शन दीजै,

बोलो कृष्ण कन्हैया की जय।

॥ दोहा॥

यह चालीसा कृष्ण का,

पाठ करे उर धारि।

अष्ट सिद्धि नवनिद्धि फल,

लहै पदारथ चारि॥

krishna chalisa in English

॥dohā॥
vaṃśī śobhita kara madhura,
nīla jalada tana śyāma।
aruṇa adhara janu bimba phala,
nayana kamala abhirāma॥

pūrṇa indra aravinda mukha,
pītāmbara śubha sāja।
jaya manamohana madana chavi,
kṛṣṇa candra mahārāja॥

॥caupāī॥
jaya yadunandana jaya jagavandana,
jaya vasudeva devakī nandana।

jaya yaśodā suta nanda dulāre,
jaya prabhu bhaktana ke dṛga tāre।

jaya naṭanāgara nāga nathaiyā,
kṛṣṇa kanhaiyā dhenu caraiyā।

puni nakha para prabhu girivara dhāro,
āo dīnana kaṣṭa nivāro।

vaṃśī madhura adhara dhari ṭerī,
hove pūrṇa vinaya yaha merī।

āo hari puni mākhana cākho,
āja lāja bhārata kī rākho।

gola kapola cibuka aruṇāre,
mṛdu muskāna mohinī ḍāre।

raṃjita rājiva nayana viśālā,
mora mukuṭa baijantī mālā।

kuṇḍala śravaṇa pītapaṭa āche,
kaṭi kiṃkaṇī kāchana kāche।

nīla jalaja sundara tanu sohai,
chavi lakhi sura nara muni mana mohai।

mastaka tilaka alaka ghu~gharāle,
āo kṛṣṇa bāṃsurī vāle।

kari paya pāna, pūtanahiṃ tārayo,
akā bakā kāgā sura mārayo।

madhuvana jalata agina jaba jvālā,
bhaye śītala, lakhitahiṃ nandalālā।

surapati jaba braja caḍha़yo risāī,
mūsara dhāra vāri varṣāī।

lagata-lagata braja cahana bahāyo,
govardhana nakhadhāri bacāyo।

lakhi yasudā mana bhrama adhikāī,
mukha.ma~ha caudaha bhuvana dikhāī।

duṣṭa kaṃsa ati udhama macāyo,
koṭi kamala jaba phūla ma~gāyo।

nāthi kāliyahiṃ taba tuma līnheṃ,
caraṇacinha de nirbhaya kīnhaiṃ।

kari gopina saṃga rāsa vilāsā,
sabakī pūraṇa kari abhilāṣā।

ketika mahā asura saṃhāriyo,
kaṃsahi kesa pakaḍa़i dai mārayo।

māta-pitā kī bandi chuḍa़āī,
ugrasena kaha~ rāja dilāī।

mahi se mṛtaka chahoṃ suta lāyo,
mātu devakī śoka miṭāyo।

bhaumāsura mura daitya saṃhārī,
lāye ṣaṭa dasa sahasa kumārī।

deṃ bhīmahi tṛṇacīra saṃhārā,
jarāsiṃdhu rākṣasa kaha~ mārā।

asura bakāsura ādika mārayo,
bhaktana ke taba kaṣṭa nivāriyo।

dīna sudāmā ke duḥkha ṭārayo,
taṃdula tīna mūṭhi mukha ḍārayo।

prema ke sāga vidura ghara mā~ge,
duryodhana ke mevā tyāge।

lakhī premakī mahimā bhārī,
aise śyāma dīna hitakārī।

māratha ke pāratha ratha hāṃke,
lie cakra kara nahiṃ bala thāṃke।

nija gītā ke jñāna sunāye,
bhaktana hṛdaya sudhā varṣāye।

mīrā thī aisī matavālī,
viṣa pī gaī bajā kara tālī।

rāṇā bhejā sā~pa piṭārī,
śāligrāma bane banavārī।

nija māyā tuma vidhihiṃ dikhāyo,
urate saṃśaya sakala miṭāyo।

tava śata nindā kari tatkālā,
jīvana mukta bhayo śiśupālā।

jabahiṃ dropadī ṭera lagāī,
dīnānātha lāja aba jāī।

turatahi vasana bane nandalālā,
baḍha़e cīra bhaye ari mu~ha kālā।

asa anātha ke nātha kanhaiyā,
ḍūbata bha~vara bacāvata naiyā।

sundaradāsa āsa ura dhārī,
dayādṛṣṭi kījai banavārī।

nātha sakala mama kumati nivāro,
kṣamahubegi aparādha hamāro।

kholo paṭa aba darśana dījai,
bolo kṛṣṇa kanhaiyā kī jaya।

॥ dohā॥
yaha cālīsā kṛṣṇa kā,
pāṭha kare ura dhāri।
aṣṭa siddhi navaniddhi phala,
lahai padāratha cāri॥

ब्रह्मवैवर्त पुराण अनुसार कृष्ण नाम की महिमा और कृष्ण का अर्थ

https://www.vedicaim.com/2018/08/krishna-naam-mahima.html

कृषिरुत्कृष्टवचनो णश्च सद्भक्तिवाचकः।
अश्चापि दातृवचनः कृष्णं तेन विदुर्बुधाः॥३२॥
कृषिश्च परमानन्दे णश्च तद्दास्यकर्मणि।
तयोर्दाता च यो देवस्तेन कृष्णः प्रकीर्तितः॥३३॥
- ब्रह्मवैवर्त पुराण श्रीकृष्ण जन्म खण्ड अध्याय १११ . ३२-३३

संक्षिप्त भावार्थ:- (श्रीराधा जी द्वारा ‘कृष्ण’ नाम की व्याख्या। श्रीराधा जी कहती है -) ‘कृषि’ उत्कृष्टवाची, ‘ण’ सद्भक्तिवाचक और ‘अ’ दातृवाचक है; इसी से विद्वानलोग उन्हें ‘कृष्ण’ कहते हैं। परमानन्द के अर्थ में ‘कृषि’ और उनके दास्य कर्म में ‘ण’ का प्रयोग होता है। उन दोनों के दाता जो देवता हैं, उन्हें ‘कृष्ण’ कहा जाता है।

कोटिजन्मार्जिते पापे कृषिःक्लेशे च वर्तते।
भक्तानां णश्च निर्वाणे तेन कृष्णः प्रकीर्तितः॥३४ ॥
सहस्रनाम्ना: दिव्यानां त्रिरावृत्त्या चयत्फलम्।
एकावृत्त्या तु कृष्णस्य तत्फलं लभते नरः॥३५॥
कृष्णनाम्नः परं नाम न भूतं न भविष्यति।
सर्वेभ्यश्च परं नाम कृष्णेति वैदिका विदुः॥३६॥
कृष्ण कृष्णोति हे गोपि यस्तं स्मरति नित्यशः।
जलं भित्त्वा यथा पद्मं नरकादुद्धरेच्च सः॥३७॥
- ब्रह्मवैवर्त पुराण श्रीकृष्ण जन्म खण्ड अध्याय १११ . ३४-३७

संक्षिप्तभावार्थ:- (श्रीराधा जी कहती है -) भक्तों के कोटिजन्मार्जित पापों और क्लेशों में ‘कृषि’ का तथा उनके नाश में ‘ण’ का व्यवहार होता है; इसी कारण वे ‘कृष्ण’ कहे जाते हैं। सहस्र दिव्य नामों की तीन आवृत्ति करने से जो फल प्राप्त होता है; वह फल ‘कृष्ण’ नाम की एक आवृत्ति से ही मनुष्य को सुलभ हो जाता है। वैदिकों का कथन है कि ‘कृष्ण’ नाम से बढ़कर दूसरा नाम न हुआ है, न होगा। ‘कृष्ण’ नाम से सभी नामों से परे है। हे गोपी! जो मनुष्य ‘कृष्ण-कृष्ण’ यों कहते हुए नित्य उनका स्मरण करता है; उसका उसी प्रकार नरक से उद्धार हो जाता है, जैसे कमल जल का भेदन करके ऊपर निकल आता है।

कृष्णेति मङ्गलं नाम यस्य वाचि प्रवर्तते।
भस्मीभवन्ति सद्यस्तु महापातककोटयः॥३८॥
अश्वमेधसहस्रेभ्यः फलं कृष्णजपस्य च।
वरं तेभ्यः पुनर्जन्म नातो भक्तपुनर्भवः॥३९॥
सर्वेषामपि यज्ञानां लक्षाणि च व्रतानि।
तीर्थस्नानानि सर्वाणि तपांस्यनशनानि च॥४०॥
वेदपाठसहस्राणि प्रादक्षिण्यं भुवः शतम्।
कृष्णनामजपस्यास्य कलां नार्हन्ति षोडशीम्॥४१॥
- ब्रह्मवैवर्त पुराण श्रीकृष्ण जन्म खण्ड अध्याय १११ . ३८-४१

संक्षिप्तभावार्थ:- (श्रीराधा जी कहती है -) ‘कृष्ण’ ऐसा मंगल नाम जिसकी वाणी में वर्तमान रहता है, उसके करोड़ों महापातक तुरंत ही भस्म हो जाते हैं। ‘कृष्ण’ नाम-जप का फल सहस्रों अश्वमेध-यज्ञों के फल से भी श्रेष्ठ है; क्योंकि उनसे पुनर्जन्म की प्राप्ति होती है; परंतु नाम-जप से भक्त आवागमन से मुक्त हो जाता है। समस्त यज्ञ, लाखों व्रत तीर्थस्नान, सभी प्रकार के तप, उपवास, सहस्रों वेदपाठ, सैकड़ों बार पृथ्वी की प्रदक्षिणा- ये सभी इस ‘कृष्णनाम’- जप की सोलहवीं कला की समानता नहीं कर सकते।
पद्म और भागवत पुराण अनुसार कृष्ण नाम की महिमा

तीर्थानां च परं तीर्थं कृष्णनाम महर्षयः।
तीर्थीकुर्वंति जगतीं गृहीतं कृष्णनाम यैः॥१७॥
-पद्म पुराण खण्ड ३ (स्वर्गखण्ड) अध्यायः ५०

संक्षिप्त भावार्थ:- (सूतजी कहते है -) जिन्होंने श्रीकृष्ण-नाम को अपनाया है, वे पृथ्वी को तीर्थ बना देते हैं। इसलिए श्रेष्ठ मुनिजन इससे बढ़कर पावन वस्तु और कुछ नहीं मानते।

अर्थात् जिन्होंने कृष्ण नाम को अपना लिया मीरा इत्यादि जैसे। वे इस पृथ्वी को तीर्थ बना देते है। जो श्रेष्ठ ज्ञानी है वे हरि भक्ति मांगते है। क्योंकि हरि भक्ति से बढ़कर कोई और वस्तु नहीं है। एक बार राम जी ने काकभुसुंडि से कहा –

काकभसुंडि मागु बर अति प्रसन्न मोहि जानि।
अनिमादिक सिधि अपर रिधि मोच्छ सकल सुख खानि॥
ग्यान बिबेक बिरति बिग्याना। मुनि दुर्लभ गुन जे जग नाना॥
आजु देउँ सब संसय नाहीं। मागु जो तोहि भाव मन माहीं॥
- श्रीरामचरितमानस उत्तरकाण्ड

भावार्थ:- (श्रीरामजी ने काकभुसुंडिजी से कहा -) हे काकभुशुण्डि! तू मुझे अत्यंत प्रसन्न जानकर वर माँग। अणिमा आदि अष्ट सिद्धियाँ, दूसरी ऋद्धियाँ तथा संपूर्ण सुखों की खान मोक्ष, ज्ञान, विवेक, वैराग्य, विज्ञान, (तत्त्वज्ञान) और वे अनेकों गुण जो जगत्‌ में मुनियों के लिए भी दुर्लभ हैं, ये सब मैं आज तुझे दूँगा, इसमें संदेह नहीं। जो तेरे मन भावे, सो माँग ले।

परन्तु काकभुसुंडि इनमे से एक भी चीज नहीं मांगी। वे सोचने लगे कि प्रभु ने सब सुखों के देने की बात कही, यह तो सत्य है, पर अपनी भक्ति देने की बात नहीं कही। भक्ति से रहित सब गुण और सब सुख वैसे ही (फीके) हैं जैसे नमक के बिना बहुत प्रकार के भोजन के पदार्थ। भजन से रहित सुख किस काम के? तब काकभुसुंडि जी ने कहा –

अबिरल भगति बिसुद्ध तव श्रुति पुरान जो गाव।
जेहि खोजत जोगीस मुनि प्रभु प्रसाद कोउ पाव॥
भगत कल्पतरू प्रनत हित कृपा सिंधु सुखधाम।
सोइ निज भगति मोहि प्रभु देहु दया करि राम॥
- श्रीरामचरितमानस उत्तरकाण्ड

भावार्थ:- (काकभुसुंडिजी ने श्रीरामजी से कहा -) आपकी जिस अविरल (प्रगाढ़) एवं विशुद्ध (अनन्य निष्काम) भक्ति को श्रुति और पुराण गाते हैं, जिसे योगीश्वर मुनि खोजते हैं और प्रभु की कृपा से कोई विरला ही जिसे पाता है। हे भक्तों के (मन इच्छित फल देने वाले) कल्पवृक्ष! हे शरणागत के हितकारी! हे कृपासागर! हे सुखधान श्री रामजी! दया करके मुझे अपनी वही भक्ति दीजिए।

अतएव भगवान की भक्ति ही सबसे श्रेष्ठ है।

प्रायश्चित्तानि सर्वाणि तपः कर्मात्मकनि वै।
यानि तेषामशेषाणा कृष्णानुस्मरणं परम्॥१३॥
- पद्म पुराण खण्ड ६ उत्तरखण्ड अध्यायः ७२ 

भावार्थ:- ब्रह्माजी बोले – (नारद!) तपस्या के रूप में किया जाने वाला जो सम्पूर्ण प्रायश्चित है, उन सबकी अपेक्षा श्रीकृष्ण का निरंतर स्मरण श्रेष्ठ है।

कलेर्दोषनिधे राजन्नस्ति ह्येको महान्गुणः।
कीर्तनादेव कृष्णस्य मुक्तसङ्गः परं व्रजेत्॥
- भागवत १२.३.५१

भावार्थ:- परीक्षित! यो तो कलियुग दोषों का खजाना है परन्तु इसमें एक बहुत बड़ा गुण है वह गुण यही है कि कलियुग में केवल भगवान श्रीकृष्ण का संकीर्तन करने मात्र से ही सारी आसक्तियाँ छूट जाती है, और परमात्मा की प्राप्ति हो जाती है।
स्कन्द और ब्रह्माण्ड पुराण अनुसार कृष्ण नाम की महिमा और कृष्ण का अर्थ

गोविंदमाधवमुकुंद हरेमुरारे शंभो शिवेश शशिशेखर शूलपाणे।
दामोदराच्युत जनार्दन वासुदेव त्याज्या भटाय इति संततमामनंति॥९९॥
- स्कन्द पुराण खण्ड ४ (काशीखण्ड) अध्याय ८ 

भावार्थ:- (यमराज नाममहिमाके विषय में कहते हैं-) जो गोविन्द, माधव, मुकुन्द, हरे, मुरारे, शम्भो, शिव, ईशान, चन्द्रशेखर, शूलपाणि, दामोदर, अच्युत, जनार्दन, वासुदेव – इस प्रकार सदा उच्चारण करते हैं, उनको मेरे प्रिय दूतो! तुम दूर से ही त्याग देना।

महस्रनाम्नां पुण्यानां त्रिरावृत्त्या तु यत्फलम्।
एकावृत्त्या तु कृष्णस्य नामैकं तत्प्रयच्छति॥९॥
- ब्रह्माण्ड पुराण मध्यभाग अध्यायः ३६ 

भावार्थ:- विष्णु के तीन हजार पवित्र नाम (विष्णुसहस्त्रनाम) जप के द्वारा प्राप्त परिणाम (पुण्य), केवल एक बार कृष्ण के पवित्र नाम जप के द्वारा प्राप्त किया जा सकता है।

॥श्री शिव चालीसा ॥ Shri Shiv Chalisa ॥

शिव चालीसा

दोहा ॥

जय गणेश गिरिजा सुवन,

मंगल मूल सुजान ।

कहत अयोध्यादास तुम,

देहु अभय वरदान ॥

चौपाई ॥
 जय गिरिजा पति दीन दयाला ।
 सदा करत सन्तन प्रतिपाला ॥

भाल चन्द्रमा सोहत नीके ।
 कानन कुण्डल नागफनी के ॥

अंग गौर शिर गंग बहाये ।
 मुण्डमाल तन क्षार लगाए ॥

वस्त्र खाल बाघम्बर सोहे ।
 छवि को देखि नाग मन मोहे ॥ 4

मैना मातु की हवे दुलारी ।
 बाम अंग सोहत छवि न्यारी ॥

कर त्रिशूल सोहत छवि भारी ।
 करत सदा शत्रुन क्षयकारी ॥

नन्दि गणेश सोहै तहँ कैसे ।
 सागर मध्य कमल हैं जैसे ॥

कार्तिक श्याम और गणराऊ ।
 या छवि को कहि जात न काऊ ॥ 8

देवन जबहीं जाय पुकारा ।
 तब ही दुख प्रभु आप निवारा ॥

किया उपद्रव तारक भारी ।
 देवन सब मिलि तुमहिं जुहारी ॥

तुरत षडानन आप पठायउ ।
 लवनिमेष महँ मारि गिरायउ ॥

आप जलंधर असुर संहारा ।
 सुयश तुम्हार विदित संसारा ॥ 12

त्रिपुरासुर सन युद्ध मचाई ।
 सबहिं कृपा कर लीन बचाई ॥

किया तपहिं भागीरथ भारी ।
 पुरब प्रतिज्ञा तासु पुरारी ॥

दानिन महँ तुम सम कोउ नाहीं ।
 सेवक स्तुति करत सदाहीं ॥

वेद नाम महिमा तव गाई।
 अकथ अनादि भेद नहिं पाई ॥ 16

प्रकटी उदधि मंथन में ज्वाला ।
 जरत सुरासुर भए विहाला ॥

कीन्ही दया तहं करी सहाई ।
 नीलकण्ठ तब नाम कहाई ॥

पूजन रामचन्द्र जब कीन्हा ।
 जीत के लंक विभीषण दीन्हा ॥

सहस कमल में हो रहे धारी ।
 कीन्ह परीक्षा तबहिं पुरारी ॥ 20

एक कमल प्रभु राखेउ जोई ।
 कमल नयन पूजन चहं सोई ॥

कठिन भक्ति देखी प्रभु शंकर ।
 भए प्रसन्न दिए इच्छित वर ॥

जय जय जय अनन्त अविनाशी ।
 करत कृपा सब के घटवासी ॥

दुष्ट सकल नित मोहि सतावै ।
 भ्रमत रहौं मोहि चैन न आवै ॥ 24

त्राहि त्राहि मैं नाथ पुकारो ।
 येहि अवसर मोहि आन उबारो ॥

लै त्रिशूल शत्रुन को मारो ।
 संकट से मोहि आन उबारो ॥

मात-पिता भ्राता सब होई ।
 संकट में पूछत नहिं कोई ॥

स्वामी एक है आस तुम्हारी ।
 आय हरहु मम संकट भारी ॥ 28

धन निर्धन को देत सदा हीं ।
 जो कोई जांचे सो फल पाहीं ॥

अस्तुति केहि विधि करैं तुम्हारी ।
 क्षमहु नाथ अब चूक हमारी ॥

शंकर हो संकट के नाशन ।
 मंगल कारण विघ्न विनाशन ॥

योगी यति मुनि ध्यान लगावैं ।
 शारद नारद शीश नवावैं ॥ 32

नमो नमो जय नमः शिवाय ।
 सुर ब्रह्मादिक पार न पाय ॥

जो यह पाठ करे मन लाई ।
 ता पर होत है शम्भु सहाई ॥

ॠनियां जो कोई हो अधिकारी ।
 पाठ करे सो पावन हारी ॥

पुत्र हीन कर इच्छा जोई ।
 निश्चय शिव प्रसाद तेहि होई ॥ 36

पण्डित त्रयोदशी को लावे ।
 ध्यान पूर्वक होम करावे ॥

त्रयोदशी व्रत करै हमेशा ।
 ताके तन नहीं रहै कलेशा ॥

धूप दीप नैवेद्य चढ़ावे ।
 शंकर सम्मुख पाठ सुनावे ॥

जन्म जन्म के पाप नसावे ।
 अन्त धाम शिवपुर में पावे ॥ 40

कहैं अयोध्यादास आस तुम्हारी ।
 जानि सकल दुःख हरहु हमारी ॥

दोहा ॥
 नित्त नेम कर प्रातः ही,
 पाठ करौं चालीसा ।
 तुम मेरी मनोकामना,
 पूर्ण करो जगदीश ॥

मगसर छठि हेमन्त ॠतु,
 संवत चौसठ जान ।
 अस्तुति चालीसा शिवहि,
 पूर्ण कीन कल्याण ॥

भगवान शिव की भक्ति करने के लिए आप निम्नलिखित बातों का पालन कर सकते हैं:

1. शिव पूजा करें: नियमित रूप से शिव पूजा करना शिव की भक्ति में महत्वपूर्ण है। आप पूजा के दौरान शिवलिंग को जल, दूप, धूप, फूल आदि से अर्चना कर सकते हैं।

2. मन्त्र जप करें: शिव के मंत्रों का जाप करना उनकी भक्ति में आपको संयमित और स्थिर रखता है। “ॐ नमः शिवाय” और “ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्” जैसे मंत्रों का जप करें।

3. शिवरात्रि व्रत रखें: शिवरात्रि व्रत रखना शिव की भक्ति में एक महत्वपूर्ण त्योहार है। इस दिन नियमित रूप से पूजा, ध्यान, जागरण आदि करें।

4. शिव कथाओं का सुनना: शिव कथाओं को सुनना और पढ़ना भी शिव की भक्ति में आपको आनंद और आध्यात्मिकता का अनुभव कराता है।

5. भक्ति संगीत सुनें: शिव के भक्ति संगीत को सुनना आपके मन को शांति, प्रेम और आद्यात्मिक उन्नति की ओर ले जाता है। आप शिव भजन और शिव चालीसा को सुन सकते हैं।

6. सेवा करें: शिव की सेवा करना भी उनकी भक्ति में महत्वपूर्ण है। आप शिव मंदिर में जाकर प्रार्थना करने के साथ ही दूसरे भक्तों की सेवा कर सकते हैं।

शिव की भक्ति में विश्वास रखें और उन्हें अपने मन, वचन और कर्म से समर्पित करें। उनकी कृपा, आशीर्वाद और प्रेम को अनुभव करने के लिए नियमित रूप से उनकी भक्ति में लगे रहें। शिव चालीसा का पाठ हमेशा सुबह जल्दी उठकर स्नान करने के बाद करना चाहिए। भक्त प्रायः सोमवार, शिवरात्रि, प्रदोष व्रत, त्रयोदशी व्रत एवं सावन के पवित्र महीने के दौरान शिव चालीस का पाठ खूब करते हैं।

॥ शिव चालीसा ॥

॥ शिव चालीसा ॥

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