हिंदी दिवस पर कविता(hindi Diwas Par Kavita)


हिंदी दिवस पर कविता(hindi Diwas Par Kavita)


14 सितंबर को ‘हिन्दी दिवस’ मनाया जाता है। संवैधानिक रूप से हिंदी को राजभाषा का दर्जा प्राप्त है किंतु सरकारों ने उसे उसका प्रथम स्थान न देकर अन्यत्र धकेल दिया यह दुखदाई है। हिंदी को राजभाषा के रूप में देखना और हिंदी दिवस के रूप में उसका सम्मान करना भारत की सभी भाषाओं का सम्मान है जो हिंदी की सगी बहनों के समान है। क्योंकि भारत की सभी भाषाएं संस्कृत से उत्पन्न हुई हैं। और उन सब में संस्कृत की घनीभूत शब्दावली विद्यमान है। जो यह प्रमाणित करती है कि ये सभी भाषाएं संस्कृत से मौलिक रुप से संबंधित हैं। इन सभी भाषाओं में मूलभूत वर्ण संस्कृत से ही आए हैं। एक दो वर्ण जो जबरन इनमें डाले गए हैं वे ही अन्य भाषाओं से लिए गए हैं और वे भी हमारी पराधीनता की स्वीकार्यता के प्रभाव से। अन्यथा तो संस्कृत में न केवल वर्ण अक्षर बल्कि उसका व्याकरण आज भी इतना समृद्ध है कि संसार की कोई भी भाषा उसके बराबरी नहीं कर सकती। उसमें जो लकार(काल), उसमें जो धातुएं दी गई हैं, जिसके आधार पर यह एकमात्र भाषा है जो अपने उत्पन्न शब्दों को अर्थ प्रदान करती है और हजारों वर्षों तक उसे आप अपरिवर्तित रखने में दक्ष हैं ।धन्य है संस्कृत और उनकी पुत्रियांँ भारत की सभी भाषाएंँ।

यदि हिंदी का सम्मान होता है तो हिंदी भारत की सभी भाषाओं के साथ मिलजुल कर रहने के लिए स्वाभाविक और प्राकृतिक रूप से स्वीकार्य है। आप देखेंगे कि हिंदी की फिल्में पूरे भारत में उतने ही प्रेम से देखी जाती हैं। कविताएं और गीत उतने ही आनंद से गाए जाते हैं जितने दक्षिण के गीत और फिल्में भारत के अन्यत्र भागों में गाये, देखे और सुने जाते हैं। 

हम इस दिन से संबंधित कुछ कविताओं का यहां पठन करते हैं –

01

निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल

    

निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल

    बिन निज भाषा-ज्ञान के, मिटत न हिय को सूल।

    अंग्रेजी पढ़ि के जदपि, सब गुन होत प्रवीन

    पै निज भाषा-ज्ञान बिन, रहत हीन के हीन।

    उन्नति पूरी है तबहिं जब घर उन्नति होय

    निज शरीर उन्नति किये, रहत मूढ़ सब कोय।

    निज भाषा उन्नति बिना, कबहुं न ह्यैहैं सोय

    लाख उपाय अनेक यों भले करे किन कोय।

    इक भाषा इक जीव इक मति सब घर के लोग

    तबै बनत है सबन सों, मिटत मूढ़ता सोग।

    और एक अति लाभ यह, या में प्रगट लखात

    निज भाषा में कीजिए, जो विद्या की बात।

    तेहि सुनि पावै लाभ सब, बात सुनै जो कोय

    यह गुन भाषा और महं, कबहूं नाहीं होय।

    विविध कला शिक्षा अमित, ज्ञान अनेक प्रकार

    सब देसन से लै करहू, भाषा माहि प्रचार।

    भारत में सब भिन्न अति, ताहीं सों उत्पात

    विविध देस मतहू विविध, भाषा विविध लखात।

    सब मिल तासों छांड़ि कै, दूजे और उपाय

    उन्नति भाषा की करहु, अहो भ्रातगन आय।

(रचनाकार-    -भारतेंदु हरिश्चंद्र)

02

 अभिनंदन अपनी भाषा का

करते हैं तन-मन से वंदन, जन-गण-मन की अभिलाषा का

अभिनंदन अपनी संस्कृति का, आराधन अपनी भाषा का। 

यह अपनी शक्ति सर्जना के माथे की है चंदन रोली 

माँ के आँचल की छाया में हमने जो सीखी है बोली 

यह अपनी बँधी हुई अंजुरी ये अपने गंधित शब्द सुमन 

यह पूजन अपनी संस्कृति का यह अर्चन अपनी भाषा का। 

अपने रत्नाकर के रहते किसकी धारा के बीच बहें 

हम इतने निर्धन नहीं कि वाणी से औरों के ऋणी रहें 

इसमें प्रतिबिंबित है अतीत आकार ले रहा वर्तमान 

यह दर्शन अपनी संस्कृति का यह दर्पण अपनी भाषा का। 

यह ऊँचाई है तुलसी की यह सूर-सिंधु की गहराई 

टंकार चंद वरदाई की यह विद्यापति की पुरवाई 

जयशंकर की जयकार निराला का यह अपराजेय ओज 

यह गर्जन अपनी संस्कृति का यह गुंजन अपनी भाषा का।

(रचनाकार-  सोम ठाकुर)

03

हिंदी हमारी आन बान शान

हिंदी हमारी आन है, हिंदी हमारी शान है, 

हिंदी हमारी चेतना वाणी का शुभ वरदान है,  

हिंदी हमारी वर्तनी, हिंदी हमारा व्याकरण,  

हिंदी हमारी संस्कृति, हिंदी हमारा आचरण,  

हिंदी हमारी वेदना, हिंदी हमारा गान है,  

हिंदी हमारी आत्मा है, भावना का साज़ है,  

हिंदी हमारे देश की हर तोतली आवाज़ है,  

हिंदी हमारी अस्मिता, हिंदी हमारा मान है,  

हिंदी निराला, प्रेमचंद की लेखनी का गान है,  

हिंदी में बच्चन, पंत, दिनकर का मधुर संगीत है,  

हिंदी में तुलसी, सूर, मीरा जायसी की तान है,  

जब तक गगन में चांद, सूरज की लगी बिंदी रहे,  

तब तक वतन की राष्ट्र भाषा ये अमर हिंदी रहे,  

हिंदी हमारा शब्द, स्वर व्यंजन अमिट पहचान है,  

हिंदी हमारी चेतना वाणी का शुभ वरदान है।

(रचनाकार-    अंकित शुक्ला)

04

नूतन वर्षाभिनंदन

    नूतन का अभिनंदन हो

    प्रेम-पुलकमय जन-जन हो!

    नव-स्फूर्ति भर दे नव-चेतन

    टूट पड़ें जड़ता के बंधन;

    शुद्ध, स्वतंत्र वायुमंडल में

    निर्मल तन, निर्भय मन हो!

    प्रेम-पुलकमय जन-जन हो,

    नूतन का अभिनंदन हो!

    प्रति अंतर हो पुलकित-हुलसित

    प्रेम-दिए जल उठें सुवासित

    जीवन का क्षण-क्षण हो ज्योतित,

    शिवता का आराधन हो!

    प्रेम-पुलकमय प्रति जन हो,

    नूतन का अभिनंदन हो!

(रचनाकार-    -फणीश्वरनाथ रेणु)

05

कलम, आज उनकी जय बोल

    जला अस्थियां बारी-बारी

    चिटकाई जिनमें चिंगारी,

    जो चढ़ गये पुण्यवेदी पर

    लिए बिना गर्दन का मोल

    कलम, आज उनकी जय बोल।

    जो अगणित लघु दीप हमारे

    तूफानों में एक किनारे,

    जल-जलाकर बुझ गए किसी दिन

    मांगा नहीं स्नेह मुंह खोल

    कलम, आज उनकी जय बोल।

    पीकर जिनकी लाल शिखाएं

    उगल रही सौ लपट दिशाएं,

    जिनके सिंहनाद से सहमी

    धरती रही अभी तक डोल

    कलम, आज उनकी जय बोल।

    अंधा चकाचौंध का मारा

    क्या जाने इतिहास बेचारा,

    साखी हैं उनकी महिमा के

    सूर्य चन्द्र भूगोल खगोल

    कलम, आज उनकी जय बोल।

(रचनाकार-    -रामधारी सिंह ‘दिनकर’)

06

हिन्दी दिवस पर अटल बिहारी वाजपेयी की कविता

बनने चली विश्व भाषा जो

    बनने चली विश्व भाषा जो,

    अपने घर में दासी,

    सिंहासन पर अंग्रेजी है,

    लखकर दुनिया हांसी,

    लखकर दुनिया हांसी,

    हिन्दी दां बनते चपरासी,

    अफसर सारे अंग्रेजी मय,

    अवधी या मद्रासी,

    गूंजी हिन्दी विश्व में

    गूंजी हिन्दी विश्व में,

    स्वप्न हुआ साकार;

    राष्ट्र संघ के मंच से,

    हिन्दी का जयकार;

    हिन्दी का जयकार,

    हिन्दी हिन्दी में बोला;

    देख स्वभाषा-प्रेम,

    विश्व अचरज से डोला;

    कह कैदी कविराय,

    मेम की माया टूटी;

    भारत माता धन्य,

    स्नेह की सरिता फूटी!

(रचनाकार- अटल बिहारी वाजपेयी)

07

हिन्दी दिवस पर गिरिजा कुमार माथुर की कविता

         वह हिंदी है

    एक डोर में सबको जो है बाँधती

    वह हिंदी है,

    हर भाषा को सगी बहन जो मानती

    वह हिंदी है।

    भरी-पूरी हों सभी बोलियां

    यही कामना हिंदी है,

    गहरी हो पहचान आपसी

    यही साधना हिंदी है,

    सौत विदेशी रहे न रानी

    यही भावना हिंदी है।

    तत्सम, तद्भव, देश विदेशी

    सब रंगों को अपनाती,

    जैसे आप बोलना चाहें

    वही मधुर, वह मन भाती,

    नए अर्थ के रूप धारती

    हर प्रदेश की माटी पर,

    ‘खाली-पीली-बोम-मारती’

    बंबई की चौपाटी पर,

    चौरंगी से चली नवेली

    प्रीति-पियासी हिंदी है,

    बहुत-बहुत तुम हमको लगती

    ‘भालो-बाशी’, हिंदी है।

    उच्च वर्ग की प्रिय अंग्रेज़ी

    हिंदी जन की बोली है,

    वर्ग-भेद को ख़त्म करेगी

    हिंदी वह हमजोली है,

    सागर में मिलती धाराएँ

    हिंदी सबकी संगम है,

    शब्द, नाद, लिपि से भी आगे

    एक भरोसा अनुपम है,

    गंगा कावेरी की धारा

    साथ मिलाती हिंदी है,

    पूरब-पश्चिम/ कमल-पंखुरी

    सेतु बनाती हिंदी है।

    – गिरिजा कुमार माथुर

08

हिन्दी दिवस पर मैथिली शरण गुप्त की कविता है;

करो अपनी भाषा पर प्यार

    करो अपनी भाषा पर प्यार ।

    जिसके बिना मूक रहते तुम, रुकते सब व्यवहार ।।

    जिसमें पुत्र पिता कहता है, पतनी प्राणाधार,

    और प्रकट करते हो जिसमें तुम निज निखिल विचार ।

    बढ़ायो बस उसका विस्तार ।

    करो अपनी भाषा पर प्यार ।।

    भाषा विना व्यर्थ ही जाता ईश्वरीय भी ज्ञान,

    सब दानों से बहुत बड़ा है ईश्वर का यह दान ।

    असंख्यक हैं इसके उपकार ।

    करो अपनी भाषा पर प्यार ।।

    यही पूर्वजों का देती है तुमको ज्ञान-प्रसाद,

    और तुमहारा भी भविष्य को देगी शुभ संवाद ।

    बनाओ इसे गले का हार ।

    करो अपनी भाषा पर प्यार ।।

(रचनाकार-    -मैथिली शरण गुप्त)

09

हिन्दी दिवस पर देवमणि पांडेय की कविता-

हिंदी इस देश का गौरव है।

    हिंदी इस देश का गौरव है,

    हिंदी भविष्य की आशा है।

    हिंदी हर दिल की धड़कन है, हिंदी जनता की भाषा है।

    इसको कबीर ने अपनाया

    मीराबाई ने मान दिया।

    आज़ादी के दीवानों ने

    इस हिंदी को सम्मान दिया।

    जन जन ने अपनी वाणी से हिंदी का रूप तराशा है।

    हिंदी हर क्षेत्र में आगे है

    इसको अपनाकर नाम करें।

    हम देशभक्त कहलाएंगे

    जब हिंदी में सब काम करें।

    हिंदी चरित्र है भारत का, नैतिकता की परिभाषा है।

    हिंदी हम सब की ख़ुशहाली

    हिंदी विकास की रेखा है।

    हिंदी में ही इस धरती ने

    हर ख़्वाब सुनहरा देखा है।

    हिंदी हम सबका स्वाभिमान, यह जनता की अभिलाषा है।

(रचनाकार-    -देवमणि पांडेय)

10

विश्व हिंदी दिवस पर कविता 

“जय हिंदी” 

संस्कृत से जन्मी है हिन्दी,

शुद्धता का प्रतीक है हिन्दी ।

लेखन और वाणी दोनो को,

गौरान्वित करवाती हिन्दी ।

उच्च संस्कार, वियिता है हिन्दी,

सतमार्ग पर ले जाती हिन्दी ।

ज्ञान और व्याकरण की नदियाँ,

मिलकर सागर सोत्र बनाती हिन्दी ।

हमारी संस्कृति की पहचान है हिन्दी,

आदर और मान है हिन्दी ।

हमारे देश की गौरव भाषा,

एक उत्कृष्ट अहसास है हिन्दी ।।

रचनाकार–प्रतिभा गर्ग

11

कविता का उद्देश्य विश्व के समक्ष हिंदी भाषा का मजबूत पक्ष रखना है।

भाल का शृंगार

माँ भारती के भाल का शृंगार है हिंदी

हिंदोस्ताँ के बाग़ की बहार है हिंदी

घुट्टी के साथ घोल के माँ ने पिलाई थी

स्वर फूट पड़ रहा, वही मल्हार है हिंदी

तुलसी, कबीर, सूर औ’ रसखान के लिए

ब्रह्मा के कमंडल से बही धार है हिंदी

सिद्धांतों की बात से न होयगा भला

अपनाएँगे न रोज़ के व्यवहार में हिंदी

कश्ती फँसेगी जब कभी तूफ़ानी भँवर में

उस दिन करेगी पार, वो पतवार है हिंदी

माना कि रख दिया है संविधान में मगर

पन्नों के बीच आज तार-तार है हिंदी

सुन कर के तेरी आह ‘व्योम’ थरथरा रहा

वक्त आने पर बन जाएगी तलवार ये हिंदी

-डॉ जगदीश व्योम

12

“पुष्प की अभिलाषा” 

चाह नहीं, मैं सुरबाला के

गहनों में गूंथा जाऊं,

चाह नहीं प्रेमी-माला में बिंध

प्यारी को ललचाऊं,

चाह नहीं सम्राटों के शव पर

हे हरि डाला जाऊं,

चाह नहीं देवों के सिर पर

चढूं भाग्य पर इठलाऊं,

मुझे तोड़ लेना बनमाली,

उस पथ पर देना तुम फेंक

मातृ-भूमि पर शीश- चढ़ाने,

जिस पथ पर जावें वीर अनेक

-माखनलाल चतुर्वेदी

हिन्दी: भारतीय संविधान और राजभाषा की यात्रा”

राज-काज चलाने के लिए किसी-न-किसी भाषा की आवश्यकता पड़न है। वह भाषा राजभाषा कहलाती है। अपने समय में संस्कृत, पाली, महाराष्ट्रा, प्राकृ अथवा अपभ्रंश राजभाषा रही हैं। प्रमाणों से विदित होता है कि 11वीं से 15 शताब्दी ईसवी के दौरान राजस्थान में हिन्दी मिश्रित संस्कृत का प्रयोग होता था मुसलमान बादशाहों के शासन काल में मुहम्मद गौरी से लेकर अकबर के सम तक हिन्दी शासन-कार्य का माध्यम थी। अकबर के गृहमंत्री राजा टोडरमल से सरकारी कागजात फ़ारसी में लिखे जाने लगे। एक फारसीदान मुंशी क ने तीन सौ वर्ष तक फ़ारसी को शासन-कार्य का माध्यम बनाये रखा। मॅकाल आकर अंग्रेजी को प्रतिष्ठित किया। तब से उच्च स्तर पर अंग्रेजी और निम पर देशी भाषाएँ प्रयुक्त होती रहीं । हिन्दी प्रदेश में उर्दू प्रतिष्ठित रही, यद्यपि राजस्थान और मध्यप्रदेश के देशी राज्यों में हिन्दी माध्यम से सारा कामकाज होता रहा। राष्ट्र चेतना के विकास के साथ राजभाषा को राजपद दिलाने की माँग उठी । भारतेंदु हरिशचन्द्र,महर्षि दयानन्द सरस्वती, केशवचन्द्र सेन, लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक महामना मदन मोहन मालवीय, महात्मा गांधी, राजर्षि पुरुषोत्तम दास टंडन और से अन्य नेताओं और जनसाधारण ने अनुभव किया कि हमारे देश का राज-का हमारी ही भाषा में होना चाहिए और वह भाषा हिन्दी ही हो सकती है। हिन्दू सभी की सहोदरी है, यह सबसे बड़े क्षेत्र के लोगों की (42 प्रतिश से ऊपर जनता की) मातृभाषा है, हिन्दी प्रदेश के बाहर भी यह अधिकतर लोग की दूसरी या तीसरी भाषा है, हिन्दी संस्कृत की उत्तराधिकारी है और सभी भारती भाषाओं की अपेक्षा सरल है। इन विशेषताओं के कारण स्वतंत्रता प्राप्ति से पह ही हिन्दी को भारत की संपर्क भाषा के रूप में स्वीकार किया गया।

स्वतंत्रता के बाद राज्यसत्ता जनता के हाथ में आई । लोकतांत्रिक व्यवस्था में यह आवश्यक हो गया कि देश का राज-काज, लोक की भाषा में हो, अतः राजभाषा के रूप में हिन्दी को एकमत से स्वीकार किया गया। 14 सितम्बर, 1949 ई. को भारत के संविधान में हिन्दी को मान्यता प्रदान की गई। तब से राजकार्यों में इसके प्रयोग का विकासक्रम आरंभ होता है। संविधान के अनुच्छेद 343 के अनुसार संघ की राजभाषा हिन्दी और लिपि देवनागरी है। राजभाषा

‘राजभाषा’ से तात्पर्य है ‘सरकारी कामकाज के लिये प्रयुक्त भाषा’ राजभाषा शब्द अंग्रेजी के ऑफिशियल लैंग्वेज का पर्याय है। विधिक रूप में इस शब्द का प्रयोग स्वतंत्र भारत के संविधान में सर्वप्रथम किया गया। ‘राजभाषा’ की शब्दावली पारिभाषिक होने के साथ-साथ शासन से जुड़ी होती है। इसकी शब्दावली एकार्थक, निश्चित अर्थ में प्रयुक्त होने वाली और औपचारित होती है। यह आवश्यक नहीं है कि राजभाषा संबंधित राज्य की राष्ट्रभाषा भी हो। भारत के संविधान के अध्याय 17. अनुच्छेद 343 के द्वारा हिन्दी को ‘राजभाषा’ के रूप में स्वीकृत किया गया और इसी के साथ उसके विकास के लिए भी संविधान के अनुच्छेद 351 के अनुसार निर्देश दिये गए।

14 सितम्बर, 1949 को भारतीय संघ की राजभाषा के रूप में हिन्दी को स्वीकृत किये जाने का निर्णय संविधान सभा द्वारा लिया गया। संविधान सभा ने राजभाषा के संबंध में तीन मुख्य व्यवस्थायें की-

1. संघ की राजभाषा हिन्दी और लिपि देवनागरी होगी।

2. संविधान के प्रारंभ से पन्द्रह वर्षों की अवधि के लिए अंग्रेजी राजभाषा के रूप में चलती रहेगी।

3. हिन्दी के विकास के कारण अन्य भारतीय भाषाओं की उपेक्षा न हो।

संवैधानिक प्रावधान | राजभाषा विभाग | गृह मंत्रालय | भारत सरकार

राजभाषा की संवैधानिक स्थिति

i.अनुच्छेद 343 में ‘संघ की राजभाषा’ का उल्लेख है। 

ii.अनुच्छेद 344 में ‘राजभाषा के लिए आयोग और संसद की समिति’ का उल्लेख है।

iii. अनुच्छेद 345, 346, 347 में ‘प्रादेशिक भाषाएँ अर्थात् राज्य की राजभाषाएँ’ का उल्लेख है।

iv. अनुच्छेद 348 में ‘उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों में तथा विधायकों आदि की भाषा’ का उल्लेख है।

(HC+SC+LEGISLATURE=148)

v. अनुच्छेद 349 में ‘भाषा संबंधी कुछ विधियों को अधिनियमित करने के लिए। विशेष प्रक्रिया का उल्लेख है। 

vi.अनुच्छेद 350 में ‘व्यथा के निवारण के लिए प्रयुक्त भाषा प्राथमिकता पर मातृभाषा में शिक्षा की सुविधाएँ तथा भाषाई अल्पसंख्यक के लिए विशेष अधिकार।

vii. अनुच्छेद 351 में ‘हिन्दी के विकास के लिये निदेश’ आदि का उल्लेख है।

संविधान में राजभाषा के प्रावधान

1. संविधान के अनुच्छेद 120- इसके अनुसार संसद में हिन्दी अथवा अंग्रेजी भाषा में कार्य किया जा सकेगा। यदि कोई संसद सदस्य हिन्दी अथवा अंग्रेजी में अपने विचार व्यक्त नहीं कर सकता तो लोकसभा अध्यक्ष या राज्यसभा के सभापति की अनुमति से अपनी मातृभाषा में अपने विचार व्यक्त कर सकता है।

2. अनुच्छेद 210 – विभिन्न राज्यों के विधानमंडल हिन्दी अथवा अंग्रेजी में कार्य करेंगे। यथास्थिति लोकसभा अध्यक्ष या राज्यसभा के सभापति सदस्य को उसकी मातृभाषा में विचार व्यक्त करने की अनुमति दे सकता है।

3. अनुच्छेद 343- संघ की राजभाषा हिन्दी, लिपि देवनागरी तथा अंक भारतीय अंकों के अंतर्राष्ट्रीय रूप वाले होंगे। सरकारी कामकाज में अंग्रेजी का प्रयोग 15 वर्षों की अवधि तक किया जाता रहेगा, परंतु राष्ट्रपति इस अवधि के दौरान शासकीय प्रयोजनों में अंग्रेजो के साथ हिन्दी भाषा का प्रयोग अधिकृत कर सकेगा। 15 वर्षों की अवधि के पश्चात् विधि द्वारा अंग्रेजी भाषा अंकों के देवनागरी रूप में प्रयोग को उपबंधित कर सकती है।

4. अनुच्छेद 344- इसके अनुसार संविधान लागू होने के पाँच एवं दस वर्ष की समाप्ति पर राष्ट्रपति आदेश द्वारा राजभाषा आयोग का गठन करेंगे। यह आयोग हिन्दी के उत्तरोत्तर प्रयोग आदि की सिफारिश करेगा। संसदीय राजभाषा समिति का गठन किया जायेगा। इस समिति में लोकसभा बीस सदस्य और राज्यसभा के दस सदस्य होंगे। यह समिति राजभाषा आयोग की सिफारिशों के बारे में राष्ट्रपति को अपनी रिपोर्ट देगी।

5. अनुच्छेद 345- किसी राज्य का विधान मंडल विधि द्वारा उस राज्य की किसी एक अथवा अन्य भाषाओं को अपनी राजभाषा के रूप में स्वीकार कर सकता है।

6. अनुच्छेद 346- किसी एक या दूसरे राज्य और संघ के बीच में संचार की भाषा राजभाषा होगी।

7. अनुच्छेद 347- किसी राज्य की जनसंख्या का पर्याप्त भाग यह चाहता है कि उनके द्वारा बोली जाने को शासकीय मान्यता दी जाये तो राष्ट्रपति वैसा करने के लिए संबंधित राज्य को आदेश दे सकते हैं।

8. अनुच्छेद 348- जब तक संसद विधि द्वारा उपबंध न करे तब तक उच्चतम न्यायालय तथा उच्च न्यायालय की सभी कार्यवाहियाँ अंग्रेजी भाषा में होंगी। संसद एवं राज्यों के विधान-मंडलों में पारित विधेयक राष्ट्रपति एवं राज्यपालों द्वारा जारी सभी अध्यादेश, आदेश विनिमय, नियम आदि सबके प्राधिकृत पाठ भी अंग्रेजी भाषा में ही माना जायेगा।

9. अनुच्छेद 349- संविधान लागू होने के 15 वर्षों की अवधि तक अंग्रेजी के अलावा किसी भी दूसरी भाषा का प्राधिकृत पाठ नहीं माना जायेगा। किसी अन्य भाषा के प्राधिकृत पाठ हेतु भाषा आयोग तथा सिफारिशों की गठित रिपोर्ट पर विचार करने के पश्चात् राष्ट्रपति अपनी स्वीकृति प्रदान कर सकता है।

10. अनुच्छेद 350- शिकायत निवारण के लिये कोई भी व्यक्ति किसी भी अधिकारी या प्राधिकारी को संघ अथवा राज्य में प्रयुक्त किसी भी भाषा में अपना अभिवेदन दे सकता 1

11. अनुच्छेद 351- इसके अंतर्गत हिन्दी भाषा की प्रसार वृद्धि तथा विकास करना भारत की सामासिक संस्कृति को विकसित करना, हिन्दी को भारतीय तथा अन्य से जोड़कर उसका दायरा विस्तृत करना संघ का उद्देश्य होगा ।

राजभाषा नियम 1976 की विशिष्टताएँ

1. राजभाषा नियम 1976 के अंतर्गत कुल बारह नियम बनाये गये। तमिलनाडु राज्य को छोड़कर देश के अन्य सभी राज्यों पर समान रूप से ये नियम लागू होते हैं।

2. हिन्दी के प्रगामी प्रयोग को प्रभावी ढंग से लागू करने के उद्देश्य से पूरे भारत को तीन क्षेत्रों में बाँटा गया है-

क्षेत्र क-

समस्त हिन्दी भाषी राज्य एवं संघ राज्यक्षेत्र (बिहार, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, मध्यप्रदेश, राजस्थान, उत्तरप्रदेश, दिल्ली अंडमान निकोबार द्वीप समूह ) एव

क्षेत्र ख-

गुजरात, महाराष्ट्र तथा पंजाब, चंडीगढ़ इसके अंतर्गत वे राज्य तथा संघ राज्यक्षेत्र आते हैं जो से ‘क’ और ‘ख’ के अंतर्गत नहीं आते।

क्षेत्र ग-

3. राजभाषा नियम 1976 में हिन्दी पत्राचार के संबंध में स्पष्ट दिशा-निर्देश दिये गये हैं ।

4. राजभाषा नियम 1976 के नियम 5 के अंतर्गत प्रावधान है कि व्यक्तिगत अथवा राज्य द्वारा हिन्दी में भेजे गये पत्रों का जवाब हिन्दी में ही अनिवार्य रूप से देना होगा।

5. कोई भी कर्मचारी हिन्दी या अंग्रेजी में अभ्यावेदन कर सकता है।

6. नियम 5 के अंतर्गत यह प्रावधान किया गया है कि सरकारी कार्यालय में जारी होने वाले परिपत्र, प्रशासनिक रिपोर्ट, कार्यालय आदेश, अधिसूचना, करार, संधियों, विज्ञापन तथा निविदा सूचना आदि अनिवार्य रूप से हिन्दी- अंग्रेजी द्विभाषी रूप से जारी किये जायेंगे ।

7. केन्द्रीय सरकार के अधिकारी या कर्मचारी फाइलों में टिप्पणी केवल हिन्दी या अंग्रेजी में लिख सकते हैं। किसी अन्य भाषा में वे उसका अनुवाद प्रस्तुत नहीं कर सकते।

8. राजभाषा नियम 1976 के नियम 12 के अनुसार केन्द्रीय सरकार के कार्यालय के प्रशासनिक प्रधान का यह उत्तरदायित्व होगा कि वह सुनिश्चित करें दि राजभाषा अधिनियम एवं राजभाषा नियमों के उपबंधों का समुचित पालन किया जा रहा है और इसके सुनिश्चित पालन के लिए प्रभावकारी जाँच बिर निर्धारित करे ।

9. संक्षेप में कहा जा सकता है कि राजभाषा नियम 1976 से राजभाषा हिन्दी प्रगामी प्रयोग में काफी मात्रा में गति आई तथा केन्द्रीय सरकार के कर्मचारिय को भी हिन्दी में कामकाज करने में निश्चित रूप से प्रोत्साहन मिला।


Google Questions & Answers

प्रश्न -हिंदी दिवस कब मनाया जाता है ?

उत्तर -हिंदी दिवस 14 सितंबर को मनाया जाता है।

प्रश्न -हिंदी दिवस पर 10 लाइन ,

उत्तर – हमें अपनी भाषा से प्रेम करना चाहिए क्योंकि हम जब अपनी भाषा बोलते हैं तो हम बहुत सहज रहकर सरलता से अपनी बात दूसरों तक पहुंचा सकते हैं। उसके बिना हम किसी मूक प्राणी की तरह हो जाते हैं और हमारे सारे व्यवहार रुक जाते हैं। हम अपनी मातृभाषा में ही अपने मूलभूत विचारों को अच्छी तरह से प्रकट कर सकते हैं। हम अपनी कोई भी बात अपनी मातृभाषा में ही ठीक तरह से बोल सकते हैं। हमारी मातृभाषा में हमारी संस्कृति और सभ्यता समाहित होती है अतः हम हमारी संस्कृति की भी उसे रक्षा कर लेते हैं। हम अपनी भाषा के द्वारा हमारी नई पीढ़ी को भी हमारी सांस्कृतिक विरासत पहुंचा देते हैं। 

  प्रश्न -हिंदी दिवस पर कविता 10 लाइन ,

उत्तर –   हिन्दी दिवस पर मैथिली शरण गुप्त की कविता है;

करो अपनी भाषा पर प्यार ।

करो अपनी भाषा पर प्यार ।

    जिसके बिना मूक रहते तुम, रुकते सब व्यवहार ।।

    जिसमें पुत्र पिता कहता है, पतनी प्राणाधार,

    और प्रकट करते हो जिसमें तुम निज निखिल विचार ।

    बढ़ायो बस उसका विस्तार ।

    करो अपनी भाषा पर प्यार ।।

    भाषा विना व्यर्थ ही जाता ईश्वरीय भी ज्ञान,

    सब दानों से बहुत बड़ा है ईश्वर का यह दान ।

    असंख्यक हैं इसके उपकार ।

    करो अपनी भाषा पर प्यार ।।

प्रश्न -हिंदी दिवस क्यों मनाया जाता है ,

उत्तर – हिंदी हमारी राजभाषा, राष्ट्रभाषा, संपर्क भाषा और आपसी व्यवहार की भी भाषा है।  वह हमारी साहित्यिक और सांस्कृतिक  के साथ-साथ तकनीकी भाषा भी बन रही है। अतः उसके सम्मान में हिंदी दिवस 14 सितंबर को मनाया जाता है। क्योंकि भाषा के बिना हम कोई भी व्यवहार नहीं कर सकते। 14 सितंबर 1949 को भारतीय संविधान सभा ने हिंदी को देवनागरी लिपि में भारत की राजभाषा के रूप में स्वीकार किया। अतः 1953 से हर वर्ष 14 सितंबर को हिंदी दिवस के रूप में मनाया जाता है।

प्रश्न -विश्व हिंदी दिवस कब मनाया जाता है ,

उत्तर – विश्व हिंदी दिवस 10 जनवरी को मनाया जाता है। प्रथम विश्व हिंदी दिवस का आयोजन 10 जनवरी 1974 को नागपुर, महाराष्ट्र में किया गया था। इसके मनाने का मुख्य उद्देश्य हिंदी के प्रति सम्मान व्यक्त करते हुए इसे विश्व प्रसिद्ध एक सम्मानित भाषा के रूप में दर्जा दिलाने के लिए इसे मनाया जाता है । संकल्प लिया जाता है। भारत के दूतावास जो दुनिया भर में फैले हुए हैं सभी देशों में उनमें विभिन्न प्रकार के कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं और वहां पर हिंदी का प्रचार प्रसार किया जाता है। 

हिंदी दिवस कोट्स  :  Hindi Diwas Quotes 

क्वोट (Hindi Diwas Quote) -01 

हिंदी है भारत की आशा 

हिंदी है भारत की भाषा 

हिंदी दिवस पर आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएं। 

क्वोट (Hindi Diwas Quote) – 02 

भारत मां के भाल पर सजी स्वर्णिम बिंदी हूं, 

मैं भारत की बेटी आपकी अपनी हिंदी हूं। 

क्वोट (Hindi Diwas Quote) – 03 

अपने वतन की सबसे प्यारी भाषा 

हिंदी जगत की सबसे न्यारी भाषा 

क्वोट (Hindi Diwas Quote) – 04 

भारत देश की आशा है, हिंदी अपनी भाषा है, 

जात-पात के बंधन को तोड़े, हिंदी सारे देश को जोड़े। 

क्वोट (Hindi Diwas Quote) – 05 

अभिव्यक्ति की खान है, भारत का अभिमान है, 

हिंदी दिवस हिंदी भाषा के लिए एक अभियान है! 

क्वोट (Hindi Diwas Quote) – 06 

विविधताओं से भरे इस देश में लगी भाषाओं की फुलवारी है, 

इनमें हमको सबसे प्यारी हिंदी मातृभाषा हमारी है। 

क्वोट (Hindi Diwas Quote) – 07 

हिंदी दिवस पर हमने ठाना है 

लोगों में हिंदी का स्वाभिमान जगाना है, 

हम सब का अभिमान है हिंदी 

भारत देश की शान है हिंदी। 

क्वोट (Hindi Diwas Quote) – 08 

हिंदी को आगे बढ़ाना है, 

उन्नति की राह पर ले जाना है, 

केवल एक दिन ही नहीं, 

हमें नित हिंदी दिवस मनाना है, 

हिंदी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं! 

क्वोट (Hindi Diwas Quote) – 09 

ज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल: भारतेंदु हरिश्चंद्र

क्वोट (Hindi Diwas Quote) – 10 

हिंदी हमारे देश और भाषा की प्रभावशाली विरासत है: माखनलाल चतुर्वेदी

क्वोट (Hindi Diwas Quote) – 11 

हिंदी पढ़ना और पढ़ाना हमारा कर्तव्य है। उसे हम सबको अपनाना है: लाल बहादुर शास्त्री

क्वोट (Hindi Diwas Quote)  – 12 

हिंदी भाषा वह नदी है जो साहित्य, संस्कृति और समाज को एक साथ बहा ले जाती है: रामधारी सिंह दिनकर

क्वोट (Hindi Diwas Quote) – 13 

जिस देश को अपनी भाषा और साहित्य के गर्व का अनुभव नहीं है, वह उन्नत नहीं हो सकता: डॉ राजेंद्र प्रसाद

क्वोट (Hindi Diwas Quote) – 14

हम सब का अभिमान हैं हिन्‍दी 

भारत देश की शान हैं हिन्‍दी 

क्वोट (Hindi Diwas Quote) – 15 

हिंदी को जीवन की भाषा बनाओ। यह केवल बोलचाल की भाषा नहीं, बल्कि विचारों की अभिव्यक्ति की भाषा है: मुंशी प्रेमचंद

क्वोट (Hindi Diwas Quote) – 16 

मैं दुनिया की सभी भाषाओं की इज्जत करता हूं, पर मेरे देश में हिंदी की इज्जत न हो, ये मैं सह नहीं सकता: आचार्य विनोबा भावे

क्वोट (Hindi Diwas Quote) – 17 

राष्ट्रभाषा के बिना राष्ट्र गूंगा हो जाता है। हिंदी ही एक ऐसी भाषा है जो पूरे देश को एक सूत्र में बांधने की क्षमता रखती है: महात्मा गांधी

क्वोट (Hindi Diwas Quote) – 18 

हिंदी उन सभी गुणों से अलंकृत है, जिनके बल पर वह विश्व की साहित्यिक भाषा की अगली श्रेणी में समासीन हो सकती है: मैथिलीशरण गुप्त

क्वोट (Hindi Diwas Quote) – 19 

हिंदी केवल एक भाषा नहीं, बल्कि हमारी संस्कृति और संस्कारों की पहचान है। यह भारत की आत्मा को प्रतिबिम्बित करती है और हैं एक सूत्र में पिरोती है: पीएम नरेंद्र मोदी

हिंदी दिवस पर शायरी: Hindi Diwas Shayari 

 शायरी – 1 

प्यार मोहब्बत भरा है जिसमें 

जिससे जुड़ी हर आशा है 

मिश्री से भी मीठी है 

वो हमारी हिंदी भाषा है। 

शायरी – 2 

हिंदी को आगे बढ़ाना है, 

उन्नति की राह पर ले जाना है 

केवल एक दिन ही नहीं, 

हमें नित हिंदी दिवस मनाना है ! 

कैदी और कोकिला/

पं.माखनलाल चतुर्वेदी 


कैदी और कोकिला

16

क्या? घुस जायेगा रुदन तुम्हारा निःश्वासों के द्वारा, कोकिल बोलो तो ! और सवेरे हो जायेगा उलट-पुलट जग सारा, कोकिल बोलो तो !

प्रसंग और संदर्भ-

प्रस्तुत कविता ‘कैदी और कोकिला’ प्रसिद्ध राष्ट्रवादी कवि माखन लाल चतुर्वेदी के कविता-संग्रह ‘हिमकिरीटिनी’ से ली गयी है। कवि ने इस कविता की रचना उस समय की थी जब देश पराधीनता की बेड़ियों में जकड़ा हुआ था। कवि को स्वयं भी आजादी के आंदोलनों में जेल जाना पड़ा था। इसलिए कहा जा सकता है कि यह कविता कवि ने स्वयं के जेल अनुभव से प्रेरित होकर लिखी है। जेल में प्रताड़ना और दुर्व्यवहार का चित्रण करके जनता के सामने प्रस्तुत करना और कोयल के माध्यम से लोगों में आजादी की चेतना पैदा करना इस कविता का उद्देश्य प्रतीत होता है।

कविता का वाचक स्वतंत्रता सेनानी है। गोरी हुकूमत ने उसे कैद कर दिया है। रात का समय है, चारों तरफ अंधेरा है और खामोशी छायी हुई है। ऐसे में कोयल का बोलना सुन कर कैदी अर्थात स्वतंत्रता सेनानी के मन में प्रश्न उठता है कि आखिर इतनी रात में कोयल के बोलने का क्या कारण हो सकता है? क्या वह कोई शुभ या अशुभ सूचना लाई है? इस प्रश्न का उत्तर पाने के लिए वह कोयल से इतनी रात में गाने का कारण पूछने लगता है। कविता अपने आप में, कोयल से पूछी गयी, एक प्रश्न माला है। वास्तव में कोयल काव्य-प्रतीक है, जिसे माध्यम बनाकर कवि नें देशवासियों के मन में राष्ट्रीयता की भावना को जगाने का सार्थक प्रयास किया है।

विशेष-

यह कविता राष्ट्रप्रेम की भावना से प्रेरित हो कर लिखी गयी है। कोयल का इस कविता में बड़े ही सुंदर ढंग से मानवीकरण हुआ है। रूपक और उपमा अलंकार के प्रयोग से काव्य सौंदर्य बहुत आकर्षक बन गया है। इस कविता से हमें आजादी के आंदोलन के समय देश के युवाओं में प्रवाहित देश प्रेम और त्याग बलिदान की भावना का अनुमान होता है।

कठिन शब्द

कोकिल-कोयल, रह-रह जाना-कुछ कहने की इच्छा के साथ रूक जाना, बटमार-लुटेरे, प्रभाव असर, तम-अंधेरा, हिमकर-चंद्रमा, कालिमा मई-काली अंधेरी, आली-सखी, वेदना कष्ट, दर्द, हूक-दर्द भरी टीस, मृदुल कोमल, मीठा, वैभव-समृद्धि, ऐश्वर्य, बावली-पगली, दावानल जंगल की आग, ज्वालायें-लपटें, दीखीं-दिखाई दीं, चर्रक चर्रक चर्र चर्र की आवाज, तान-मधुर आवाज, गान-गीत, अकड़ ऐंठ, सख्ती, मोट-कुएं से पानी खींचने का चरसा, गजबढ़ाना-उपद्रव या आतंक, करूणा-दया, बेधना-काटना, छेद करना, विद्रोह-बीज-विरोध की शुरूआत, रजनी-रात, करनी-क्रिया कलाप, व्यवहार, कल्पना-विचार, शैली, भावना, सोच, कालकोठरी-जेल की कोठरी जिसमें गम्भीर अपराधी बंदी बनाये जाते हैं, कमली कम्बल, लौह श्रृंखला-लोहे की जंजीर, हुंकृति हुंकार, व्याली-सांपिन, संकट-सागर-संकटों या दुखों का समुद्र, कभी न खत्म होने वाला दुख, मदमाती- मस्ती से भरी हुई, नशे में चूर, तैराती यादों में लाती, नसीब-भाग्य, तकदीर, गुनाह-पाप, विषमता – अंतर, भेद, रणभेरी-युद्ध के समय बजाया जानेवाला नगाड़ा, कृति-रचना, व्रत-संकल्प, आसव-मदिरा, नभ-भर-पूरा आकाश, वाह कहावें-प्रशंसा पावें

व्याख्या-

1. कविता के पहले बंद में कैदी के माध्यम से कवि कोयल से पूछता है-हे कोयल ! तुम क्या गा रही हो? गाते-गाते कभी चुप हो जाती हो! आखिर बात क्या है? क्या कोई संदेश लेकर आई हो? कुछ बोलती क्यों नहीं! अगर कोई संदेश लेकर आई हो तो बताओ ! बोलते-बोलते चुप क्यों हो जाती हो? और यह भी तो बताओ कि यह संदेश तुम्हें कहां से मिला है? कुछ तो बोलो!

2. दूसरे बंद में कवि जेल की यातनाओं के वर्णन के बहाने अंग्रेजों के अत्याचार को सबके सामने प्रस्तुत किया गया है। कवि अर्थात बंदी कहता है कि जेल की दीवारें काली और ऊंची हैं। इसके घेरे में तरह तरह के चोर बटमार, लुटेरे, डाकू रहते हैं। यहां पेट भर भोजन के लिए तरस जाना पडता है। हालत यह है कि न जीने दिया जाता है न मरने। तड़प कर रह जाना पडता है। यहाँ आजादी नाम की चीज ही नहीं है। हर समय कड़े पहरे में जीवन बिताना पडता है। पता नहीं यह कैसा शासन है कि सब तरफ उत्पीड़न का अंधकार ही अंधकार है। चंद्रमा भी कहीं चला गया है। धरती से आसमान तक सब जगह निराशा का अंधकार छाया हुआ है। उम्मीद की कहीं कोई रोशनी नहीं है और रात भी भयानक रूप से काली है। कैदी के माध्यम से कवि पूछता है कि हे कोयल ! इस कालिमाम रात में तू क्यों जाग रही हो? तुम्हारे जागने का प्रयोजन क्या है?

3. कविता के तीसरे बंद में कोयल के स्वर में बहुत गहरी वेदना है। इस वेदना में पराधीन भारत की वेदना की तरफ संकेत किया गया है। जेल में बंद स्वतंत्रता सेनानी को लगता है कि कोयल ने अंग्रेज सरकार द्वारा किये जाने वाले अत्याचार को देख लिया है। इसीलिए उसके कंठ से वेदना का स्वर सुनाई पड़ रहा है। कोयल की कुहुक दर्दीली हूक में बदल गयी है। कैदी को लगता है कि कोयल अपनी वेदना सुनाना चाहती है। इसलिए पूछता है, तुम्हें किस बात की चिंता है? किस वेदना के बोझ से कराह रही हो? कुछ बोल क्यों नहीं रही हो? कैदी सोचता है कि कोयल शायद उसके दर्द को समझ रही है, इसलिए उसके मुख से वेदना का स्वर फूट रहा है। वह कोयल से पूछना चाहता है कि मेरी आजादी की तरह क्या तुम्हारा भी कुछ लुट गया है? तुम्हारी मीठी आवाज, जिसके वैभव की तुम स्वामिनी हो, लगता है किसी दुख के कारण कहीं गुम हो गयी है। तुम्हारी बोली में मिठास नहीं है। ऐसा कौन सा दुःख का पहाड़ तुम पर टूट पड़ा है? मुझे भी तो बताओ !

4. इस बंद में जेल के भीतर रात के वातावरण का वर्णन किया गया है। बंदी कोयल से कहता है, इस रात में यहां तुम क्या सुनने आई हो? ये जो तुम्हें घर्र-धर्र की आवाजें सुनाई दे रही हैं, सो रहे बंदियों की स्वांसो की आवाजें हैं। रात में यहां तुम्हें तरह-तरह की आवाजें सुनाई देंगी यातनाओं के दर्द से रो रहे कैदियों की सिसकियों की आवाजें, जेल के भारी भरकम लोहे के फाटक के खुलने बंद होने की आवाजें, सिपाहियों के बूटों की आवाजें, संत्रियों की आवाजें, कैदियों की गिनती के समय एक दो तीन चार की आवाजें। हे कोयल ! जेल की भयावनी रात में, जब हमारे दोनों नेत्रों की प्याली आंसुओं से भरी हुई है, तुम असमय अपना मधुर गाना सुनाने क्यों चली आई हो। दुख की इस मानसिकता में तुम्हारा यह मधुर गान बिल्कुल बेसुरा लग रहा है।

5. पांचवे बंद में सेनानी कैदी को इतनी रात में कोयल का चीखना बड़ा अजीब लग रहा है, इसलिए वह कोयल से पूछता है कि क्या तुम बावली हो गयी हो जो आधी रात को इस तरह चीख रही हो? आखिर तुम्हें हुआ क्या है? आधी रात के सन्नाटे में क्यों चीख रही हो? तुम्हारा इस तरह आधी रात में चीखना मुझे आशंकित कर रहा है। कहीं तुमने जंगल में लगी आग तो नहीं देख लिया है? हे कोयल ! कुछ तो बोलो!! यहां कवि ने जंगल की आग के बहाने कहना चाहा है कि कोयल ने अंग्रेजी हुकूमत के अत्याचारों से जनता में मची चीख पुकार देख लिया है।

6. कैदी कोयल से पूछता है कि हे कोयल ! कहीं ऐसा तो नहीं कि कारागार की भयावहता से क्लांत सेनानी कैदियों के घायल हृदय की पीड़ा को अपने मधुर गीत के अमृत से शांत करने आई हो? या अपने गीत से पेड़ों और हवाओं और जेल की ऊंची दीवारों, की बाधाओं को चीर कर तुम अपनी ताकत आजमाना चाहती हो? यहां कवि संकेतों में कोयल के माध्यम से कहना चाहता है कि जेल की दीवारें भी साहसी सेनानियों के लिए अभेद्य नहीं हैं। गुलामी जितनी भी कड़ी हो, जैसे कोयल अपने हठ से जेल की अलंघ्य दीवारों और पेड़ों की बाधाओं को पार कर अपनी आवाज से जेल को गुंजायमान कर सकती है, वैसे ही गुलामी की कठोर बेड़ियां भी तोड़ी जा सकती हैं। आगे कैदी पूछता है कि कहीं ऐसा तो नहीं कि हमारी आंखों में भरे आंसू अर्थात हमारी पीड़ाओं का शमन करने के लिए, तुमने जेल के ऊंचे टावरों पर जलते हुए गुलामी के दीपों को बुझाने का प्रण कर लिया है? कोयल ! ये दीप तो अंधकार को नष्ट करने के लिए लगाये गये हैं ताकि जेल (अंग्रेज सरकार) की रखवाली किया जा सके ! तुम्हें क्या नभ के इन जलते हुए दीपों (अंग्रेजी सरकार के बने रहने) की शोभा अच्छी नहीं लगती है? अर्थात क्या तुम अंग्रेजो का राज मिटाना चाहती हो?

7. यहाँ कैदी कोयल से कहता है कि हे कोयल ! तुम्हें लोग इसलिए प्यार करते हैं कि तुम रोज प्रातःकाल सूरज की किरणों के साथ ही अपनी मीठी धुन से सारे संसार को जगाती हो। लेकिन आज इस काली अंधेरी रात में क्यों जगा रही हो? क्या तुम सचमुच ही मतवाली हो गयी हो? बोलो! बताओ !

8. इस बंद का काव्य सौंदर्य बड़ा ही मोहक है। इसमें छायावादी बिम्बों और उपमाओं का सघन प्रयोग दिखता है। कवि इस बंद में प्रकाश की किरणों पर कोयल के गीतों को चमकते हुए देखता है। कहता है-हे कोयल ! मैंने, पृथ्वी पर उगी हरी-हरी दूबों पर पड़ी ओस की बूंदों को सुखाती, विन्ध्या के झरनों पर मोती बिखेरती, गगन ऊँचे-ऊँचे पेड़ों वाले वनों और पूरे ब्रहमाण्ड को झकझोर देने वाली हवाओं पर अठखेलियां करती प्रातः कालीन किरणों पर तुम्हारे गीतों को थिरकते हुए देखा है।

9. कैदी के माध्यम से कवि कहता है कि हे कोयल ! मीठे गान सुना कर संसार का मन प्रसन्न करना तुम्हारा स्वभाव है। मुश्किल समयों में भी तुम अपना स्वभाव नहीं छोड़ती। फिर ऐसा क्यों है कि तुम इस काली रात में, जेल की दीवारों के भीतर जल रहे दीप को बुझाना चाहती हो? इसका सर्वनाश करना चाहती हो? अंधकार के पत्तों पर अपनी चमकीली तानें लिखने की तुम्हारी विवशता का क्या कारण है? अर्थात गुलामी के अंधकार को क्यों मिटाना चाहती हो?

10. कैदी कोयल से पूछता है- क्या हमें इन जंजीरों में जकड़े देखना तुम्हें सह नहीं लग रहा? फिर स्वयं ही कोयल को समझाते हुए कहता है कि अरे! ये हथकड़ियां नहीं हैं, ये तो हम सेनानियों को ब्रिटिश राज का दिया आभूषण है। हम सेनानियों को गुलाम देश में यही शोभा देता है। और कोल्हूं का यह चर्रक चूं? यह तो अब हमारे जीवन की लय बन चुका है-प्रेरणा का संगीत। यातनाओं के कोल्हूं में पिसते रहना ही हम सेनानियों के जीवन का यथार्थ है। पत्थर तोड़ते-तोड़ते हमारी उंगलियां उन्हीं पत्थरों पर भारत माता की आजादी का गाना लिखने लगती है। हम पेट पर ‘मोट’ का जुआं बांध कर ब्रिटिश राज की अकड़ के कुंए को खाली कर रहे हैं। अर्थात इतनी यातनायें सहकर हम ब्रिटिश राज की अकड़ ढीली कर रहे हैं। हमारे अंदर यातनाओं को सहने का गजब का धैर्य है। हम नहीं चाहते कि हमारी यातना देख लोगों के भीतर करूणा का संचार हो, लोगों की आंख में आंसू आये। परन्तु इतनी रात में तुम्हारी वेदना भरी चीख से मेरा मन विदीर्ण हो रहा है।

11. इन पंक्तियों में कवि कोयल को संबोधित करते हुए कहता है कि वातावरण में सन्नाटा पसरा है, चारों ओर अंधकार फैला हुआ है। तुम्हारी रूलाई इस अंधकार को बेध रही है। मगर यह तो बताओ कि तुम रो क्यों रही हो? ब्रिटिश शासन के विरुद्ध विद्रोह का मधुर-बीज क्यों बो रही हों? क्या तुम भी स्वतंत्रता सेनानियों की तरह देशभक्ति का व्रिदोह-बीज बोना चाहती हो?

12. इस बंद में जेल में सेनानियों के साथ हो रहे उत्पीड़न का वर्णन है। कवि कोयल से कह रहा है कि देखो! तू भी काली है और ये दुखों की रात भी काली है। हम जिस कोठरी में रहते हैं, वह भी काली है और आस-पास चलने वाली हवा के साथ-साथ यहाँ से मुक्ति पाने की हमारी कल्पना काली है। अंग्रेजी सरकार की करतूतें काली है। जेल की दीवारें काली हैं। इन दीवारों के भीतर की हवा काली है, मेरी ये टोपी काली है और जो कम्बल मैं ओढ़ता हूँ वह भी काला है। जिन जंजीरों में मुझे बांधा गया है, वह भी काली है। दिन-रात कठोर यातनायें सहने के अलावा पहरेदारों की गाली भी सुनना पड़ता है। यह डांट और गाली किसी काले सांप की तरह हमें डंसने को दौड़ती हैं।

13. यहां कवि कोयल को संबोधित करते हुए कहता हैं ऐसा क्यों है कि यहां अपार संकट सामने खड़ा है और तुम मरने को उद्यत दिखाई देती हो ! तुम तो स्वतंत्र हो, फिर आधी रात में जेल रूपी संकट के सागर पर आशा और उत्साह से भरपूर अपने चमकीले गीतों को क्यों तैरा रही हो? अर्थात जेल के इस उदास सन्नाटे में स्वतंत्रता की भावना जागृत करने वाले मदमस्त करने वाले गीत क्यूँ गाए जा रही हो? कारागार के समीप घूम-फिरकर ओज-तेज का संचार क्यों कर रही हो? हे कोयल ! कुछ तो बोलो।

14. कवि कहता है कि हे कोयल ! तू मैना जैसी बंदिनी नहीं है, तुम्हारा पालन किसी सोने के पिंजरे में नहीं हुआ है, कोई तुझे कुछ खिलाता भी नहीं है, तूम न तो तोता हो न तूती, तुम हर तरह से आजाद हो, एक सेनानी की तरह तुम्हारा जीवन भी युद्ध भूमि के समान है- सब तरफ संघर्षो से घिरा हुआ। तुम्हारी बोली किसी शंखनाद से कम नहीं है। कोकिला और सेनानी की तुलना करके कवि ने दोनों को समतुल्य बना दिया है।

15. इस बंद में कैदी कोयल से पूछता है कि तुम कहां से आवाज दे रही हो! जेल की दीवारों के उस पार से या भीतर से? अपना हृदय टटोल कर बताओं कि वास्तव में तुम हो कहां (अर्थात तुम किसे जाग्रत करना चाहती हो, सेनानियों को या अंग्रेजों को)। तुमकाली जरूर हो लेकिन तुम्हारा त्याग बहुत धवल है। काली होने के बावजूद आर्यों के इस देश में तुम पूजनीय हो। हे कोयल ! कुछ बोलती क्यों नहीं ?

16. इस पद में हर तरह से आजाद कोयल एवं बेड़ियों में जकड़े कैदी की मनःस्थिति की तुलना बड़े ही मार्मिक ढंग से की गयी है। कोयल को संबोधित करते हुए कवि कहता कि हे कोयल ! तुम पूरी तरह आजाद हो, तुम्हें हरी भरी डालियों पर बसेरा बनाने की छूट है, पूरा आसमान तुम्हारा है, जहां, जब चाहो जा सकती हो। तुम्हारे गीतों पर लोग खुश होकर तालियां बजाते हैं। वाह-वाह ! करते हैं। इधर हम कैदियों का रोना कराहना सुनने के लिए कोई तैयार ही नहीं है। तुम कहीं पर भी विचरण कर सकती हो और मनचाहे गीत गा सकती हो। लेकिन हमें, हमेशा अंधकार से भरी, 10 फुट की छोटी सी कोठरी में रहना पड़ता है। अपनी इच्छानुसार कुछ भी नहीं कर सकना यहां असंभव है। हमारे और तुम्हारे जीवन में जमीन आसमान का फर्क है, तुम्हें आजादी ही आजादी है, जब कि मेरे भाग्य में अंधकार से भरी रात है। समझ में नहीं आता कि युद्ध का यह राग क्यों गाये जा रही हो? इस रहस्यमय ढंग से तुम्हारे गाने का आशय क्या है? मुझे बताओ कोयल !

17. कवि कोयल की पुकार पर कुछ भी करने को तैयार है। कोयल से कहता है, हे कोयल ! बताओ अपनी कृति से और क्या कर दूं। मोहन यहां मोहनदास करमचंद गांधी के लिए प्रयोग किया गया है। मोहन के व्रत पर प्राणों का आसव से कवि का अभिप्राय यह है कि कोयल यदि कहे तो वह गांधी जी के संकल्पों को पूरा करने के लिए अपने प्राणों को न्यौछावर भी कर सकता हूं। देशवासियों के दिलों में गुलामी के खिलाफ लड़ने का मंत्र फूँक सकता हूं।

18. कोयल को लगातार गाते देख कैदी पूछता है, हे कोयल ! तुम्हारा यह गाना बंद भी होगा या हर समय गाती ही रहोगी? क्या तुमने अपनी आवाज की मधुरता को गुलामी के अंधकार में दफन कर देने की ठान ली है? अर्थात क्या तुम अंग्रेजों की गुलामी के सामने झुकने को तैयार नहीं हो? क्या तुम्हें पता नहीं कि यह अत्याचारी आकाश कमजोरों को निगल जाता है? आखिर क्यों अपने आप को उसका निवाला बनाने पर आमादा हो? अर्थात आजादी की लड़ाई का जोखिम क्यों उठाना चाहती हो? जेल के जिन बंदियों में तुम करूणा जगाना चाहती हो, वे अभी जेल की कठोर बंदिशों के बीच अपनी स्मृतियों के साथ सो रहे हैं। क्या तुम नींद में अचेत पड़े लोगों को आजादी का संदेश दे पाओगी?

19. अंतिम बंद में कैदी कोयल से पूछता है कि क्या तुम्हें यकीन है कि इन सोये हुए कैदियों की सांसों के रास्ते तुम्हारा रूदन इनकी आत्मा तक पहुंच जायेगा? बताओ कोयल ! और यह भी बताओ कि क्या सुबह जब कैदी नींद से जागेंगे तो सब कुछ उलट-पुलट हो जायेगा? क्या गुलामी का राज उखाड़ कर नष्ट हो जायेगा? बोलो कोयल !

काव्य सौष्ठव-

कविता की संबोधन वाचक और प्रश्न वाचक शैली आत्मीयता की भावना जगाती है। 

कोयल को माध्यम बनाकर लिखी गई इस कविता में अन्योक्ति अलंकार का बड़ा सुंदर प्रयोग किया गया है। इससे कविता का सौंदर्य बहुत बढ़ गया है। 

लय और छंद की झंकार अलग से अपना ध्यान आकर्षित करती है। संस्कृतनिष्ठ और तत्सम शब्दों का प्रयोग खूब हुआ है किन्तु भाषा में लालित्य का प्रवाह तनिक भी कम नहीं हुआ है। 

काव्य-भाषा सांकेतिक है। कहीं-कहीं काव्यालंकारों का बड़ा मनोहारी प्रयोग हुआ है। 

कवि ने भावानुकूल तत्सम शब्दों वाली खड़ी बोली का प्रयोग किया है। 

पुष्प का मानवीकरण बहुत सुंदर ढंग से किया गया है। 

विशेष- 

देश प्रेम और स्वाधीनता की चेतना जगाना इस कविता का प्रमुख उद्देश्य है। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए कवि ने काव्य सौंदर्य को कहीं हल्का नहीं होने दिया है। यह कविता अपनी सघन प्रतीकात्मकता, सांकेतिकता, आलंकारिकता और शब्द योजना की दृष्टि से भी बहुत महत्वपूर्ण है। इसका उदात्त भाव इसे अलग से श्रेष्ठ बनाता है। 

Kaisi aur kokila question answers

बोध प्रश्न-1 

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर संक्षेप में दें। 

1. ‘पुष्प की अभिलाषा’ में कवि क्या संदेश देना चाहता है? 

2. ‘पुष्प की अभिलाषा’ में पुष्प माली से क्या कहता है? 

3. ‘कैदी और कोकिला’ का सारांश लिखिये। 

4. ‘कैदी और कोकिला’ कविता के आधार पर पराधीन भारत की जेलों में स्वतंत्रता संग्राम के सेनानियों को दी जाने वाली यातनाओं का वर्णन कीजिए। 

5. ‘कैदी और कोकिला’ में हथकड़ियों को गहना क्यों कहा गया है? 

बोध प्रश्न-2 

वस्तुनिष्ठ प्रश्न 

i. ‘पुष्प की अभिलाषा’ शीर्षक कविता, किस पुस्तक से ली गयी है? 

क) हिम किरीटिनी 

ख) हिम तरंगिनी 

ii. पुष्प किस पथ पर बिखेरा जाना चाहता है? 

ग) समर्पण 

घ) वेणु ले गूंजे धरा 

क) राज पथ पर 

ख) बाजार के पथ पर 

ग) शहीद पथ पर 

घ) जिस पथ से मातृभूमि पर शीश चढ़ाने के लिए वीर सैनिक जाते हैं। 

iii. पुष्प अपनी अभिलाषा किसके सामने प्रकट कर रहा है? 

क) कवि के सामने 

ख) सुर बाला के सामने 

ग) सैनिक के सामने 

घ) माली के सामने 

iv. ‘पुष्प की अभिलाषा’ कविता की मूल भावना क्या है? 

क) भगवद् भक्ति की भावना 

ग) अंग्रेजों पर शासन की भावना 

ख) देश भक्ति की भावना 

घ) युद्ध की भावना 

v. पुष्प की अभिलाषा कविता के माध्यम से किसकी अभिलाषा व्यक्त हुई है? 

क) कवि की अभिलाषा 

घ) देश प्रेमी की अभिलाषा 

ख) सम्राट की अभिलाषा 

ग) सुंदरी की अभिलाषा 

vi. ‘कैदी और कोकिला किस संग्रह में संकलित है? 

क) ‘हिमकिरीटिनी’ 

घ) समय के पांव 

ख) बिजुरी काजल आंज रही 

vii. ‘कैदी और कोकिला’ में जंजीरों को क्या कहा गया है? 

क) उत्पीड़न का औजार 

ख) गहना 

ग) गुलामी का प्रतीक 

घ) कुछ नहीं 

viii. कैदी और कोयल में क्या समानता है? 

क) दोनों गायक हैं 

ख) दोनों कैदी हैं 

ग) दोनो स्वतंत्रता से प्रेरित हैं 

घ) दोनों घायल हैं 

ix. कवि ने किस शासन की तुलना तम के प्रभाव से की है? 

क) मुगल शासन की 

ख) रूसी शासन की 

ग) भारतीय शासन की 

घ) ब्रिटिश शासन की 

पराधीन भारत में कैदियों के साथ कैसा व्यवहार किया जाता था? X 

क) अमानवीय 

ख) सामान्य 

ग) राजसी 

घ) सम्माननीय 

xi. कैदी ने देश की आजादी के लिए किसके विरूद्ध संघर्ष किया? 

क) अंग्रेजी शासन 

ख) कांग्रेस शासन 

ग) मुगल शासन 

घ) स्थानीय शासन xii. हथकड़ियों को कविता में क्या कहा गया है? 

क) गहना 

ख) बेड़ी 

ग) बंधन 

घ) पराधीनता 

xiii. कोयल किस समय चीख रही थी? 

क) दोपहर में 

ख) आधी रात में 

ग) कभी नहीं 

घ) सूरज निकलने पर 

xiv. कैदी की कोठरी कितने फुट की थी? 

क) 10 फुट 

ख) 5 फुट 

ग) 3 मीटर 

घ) 10 गज 

xv. ‘कैदी और कोयल’ में कवि ने अंग्रेजी शासन की तुलना किस रंग से की है? 

क) काला 

ख) नीला 

ग) सफेद 

घ) हरा 

16.3 उपयोगी पुस्तकें 

माखन लाल चतुर्वेदीः एक अध्ययन, लेखक श्री नर्मदा प्रसाद खरे। 

16.4 बोध प्रश्नों के उत्तर

बोध प्रश्न – 1

1. ‘पुष्प की अभिलाषा’ कविता ब्रिटिश शासन की गुलामी से आजादी के लिए देश के नौजवानों में देश प्रेम की भावना जगाने के लिए लिखी गयी थी। इस कविता में कवि ने देश के प्रति समर्पित होने का संदेश दिया है। पुष्प के माध्यम से कवि ने प्रेरणा दी है कि हमें अपने देश के लिए त्याग बलिदान करने में पीछे नहीं रहना चाहिए।

2. भारत देश के स्वतंत्रता सेनानी अंग्रेजों से आजादी के लिए लड़ाई कर रहे थे। यह कविता जनता में देशप्रेम की भावना पैदा करने के लिए लिखी गयी थी। इस कविता में माली से फूल कहता है, हे माली! सुनो! मैं नहीं चाहता कि मुझे किसी सुंदर स्त्री के आभूषण में गूंथा जाय जिससे कि युवती का आकर्षण बढ़ जाय। मुझे किसी सुंदरी के गले का आभूषण बनने की इच्छा बिल्कुल ही नहीं है। मैं किसी युवती के श्रृंगार का उपकरण नहीं बनना चाहता। किसी प्रेमी की माला में गुंथ कर उसकी प्रेमिका को ललचाने की भी मुझे कोई इच्छा नहीं है। हे माली! तुम मुझे किसी सम्राट के शव पर डाले जाने से बचाना। हमें इस तरह का सम्मान पाने की भूख बिल्कुल नहीं है। किसी देवता के सिर पर चढ़ने का सौभाग्य प्राप्त करने की भी मुझे कोई चाह नहीं है। देशप्रेम के सामने ये सब बहुत तुच्छ इच्छायें हैं। हमारी अभिलाषा तो मातृभूमि को आजाद कराने के लिए शीश कटाने को तैयार वीरों के चरण चूमना चाहते हैं। अतः तुम हमें उस रास्ते पर बिखेर देना जिस रास्ते से देशप्रेमी सैनिक मातृभूमि की रक्षा के लिए शीश कटाने जा रहे होते हैं।

3. कैदी और कोकिला कविता में कवि ने अंग्रेजी शासन द्वारा किये गये अत्याचारों व जेल में कैदियों को दी जाने वाली यातनाओं तथा अपने दुख और असंतोष का वर्णन किया है। कविता का सारांश यह है कि कवि आजादी के आंदोलन में जेल चला गया है। जेल में उसपर बहुत अत्याचार किया जाता है। उसे उम्मीद नहीं है कि ब्रिटिश शासन कभी खत्म होगा। रात में नींद नहीं आ रही है। आधी रात किसी कोयल के कूकने की आवाज सुनकर वह चौंक जाता है। उसे कोयल का इतनी रात में कूकना बड़ा रहस्यमय लगता है। कविता में वह कोयल को संबोधित करके पूछता है, कि तू इतनी रात को क्या कहना चाह रही है? मैं जेल में हूं तू स्वतंत्र है, मुझे रोना भी गुनाह है, तू इस अंधेरी रात में चीख-चीख कर क्यों बावली हो रही है? ऐसा लगता है तू मेरे दुख से दुखी होकर इतनी रात में करूणा भरे स्वर में बोल रही हो और अंग्रेजों के अत्याचार का मुकाबला करने के लिए प्रेरित कना चाह रही हो। कवि ने स्वतंत्रता सेनानियों व भारतीय जनता के देश पर न्यौछावर हो जाने की प्रेरणा देने के लिए इस कविता की रचना की है।

4. पराधीन भारत में स्वतंत्रता सेनानियों को जेलों में तरह तरह से अमानवीय यातनायें दी जाती थीं। कविता में इस यातना का वर्णन करते हुए कवि ने कहा है कि ब्रिटिश राज में राजनैतिक कैदियों के साथ चोर डाकुओं जैसा व्यवहार किया जाता था। हथकड़ियों में जकड़ कर उन्हें चोरों डाकुओं के साथ अंधेरी काल कोठरी में रखा जाता था। पेट भर भोजन नहीं दिया जाता था। कोल्हू में उन्हें जोत कर पानी निकलवाया जाता था। जेलर सिपाहियों की निगरानी में रखा जाता था और तरह-तरह से अपमानित किया जाता था।

5. गहना आभूषण को कहते हैं। गहना का हमारे जीवन में महत्व इसलिए है क्योंकि वह धारण करने वाले व्यक्ति के सौंदर्य को बढ़ा देता है। अंग्रेजों से लोहा लेने वाले वीरों को जब जेल भेजा जाता था तो समाज में उनकी प्रतिष्ठा बढ जाती थी। बेडी और हथकड़ी में जकड़ा हुआ सेनानी गर्व का अनुभव करता था क्योंकि उसके अंदर मातृभूमि के लिए हर कष्ट सहन करने का जज्बा होता था। जेल क्रांतिकारियों का प्रिय आवास होता था तथा पावों में बेडियां और हथकडियां पहन कर गहना पहने होने जैसा संतोष होता था। इसलिए कैदी ने कोकिला से कहा कि बेड़ियां और हथकड़ियां तो क्रांतिकारियों का गहना है।

बोध प्रश्न-2

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

i ख

. घ 

iii. घ 

iv. ख 

v. घ 

vi. क 

vii. ख 

viii. ग 

ix. घ 

x. क 

xi. क 

xii. क 

xiii. ख 

xiv. क 

XV. क


Pushp Ki Abhilasha

पुष्प की अभिलाषा

पुष्प की अभिलाषा /पं.माखनलाल चतुर्वेदी 

abhilasha meaning in hindi,

  • मन का यह भाव कि अमुक काम इस तरह से हो जाये या यह  बात इस रूप में हो जाय अथवा यह  वस्तु हमें प्राप्त हो जाय। आकांक्षा। इच्छा। कामना।  ये सभी अभिलाषा शब्द के अर्थ हैं।

कवि का परिचय – 

माखनलाल चतुर्वेदी का जन्म 4 अप्रैल सन् 1889 को मध्यप्रदेश के होशंगाबाद जिले के बाबई नामक स्थान पर हुआ था। इनके पिता जी का नाम नन्दलाल चतुर्वेदी तथा माता जी का नाम सुंदरी बाई था। इनका विवाह ग्यारसी बाई से हुआ था। सन् 1905 में जबलपुर से प्राइमरी टीचर्स ट्रेनिंग, नार्मल शिक्षा उत्तीर्ण करने के बाद ये अध्यापक हो गये। इन्हें हिन्दी के अतिरिक्त संस्कृत, बंगला, गुजराती, अंग्रेजी, भाषा पर भी समान अधिकार प्राप्त था। हिन्दी के प्रतिष्ठित कवि, कुशल वक्ता, पत्रकार, सम्पादक तथा लेखक होने के साथ-साथ माखनलाल चतुर्वेदी जी स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी भी थे। असहयोग आन्दोलन के दौरान उन्हें लगभग दस माह तक कारावास की सजा हुई। वे बिलासपुर की जेल में बंद रहे। ‘पुष्प की अभिलाषा’ नामक कालजयी कविता की रचना उन्होंने जेल में रहते हुए ही लिखी। बाद में शिक्षक पद से त्याग पत्र देकर, पत्रकारिता के क्षेत्र में आ गये। प्रसिद्ध राष्ट्रवादी पत्रकार गणेश शंकर विद्यार्थी से वे बहुत प्रभावित थे।

माखनलाल चतुर्वेदी की पहचान एक राष्ट्रवादी कवि के रूप में रही है। राष्ट्रवाद इनकी रचनाओं में भी प्रमुखता से मौजूद रहा है। इनके काव्य का मूल स्वर राष्ट्रीयतावादी है। भारतीय राष्ट्रीय स्वाधीनता की अनुगूंजें इनकी कविताओं में देखने को मिलती हैं। इन्होंने कुछ आध्यात्मिक और रहस्यवादी भावबोध की कवितायें भी लिखी हैं। मगर मुख्यतः वे राष्ट्रवादी विचारों के एक अच्छे कवि थे और इसी कारण से इन्हें साहित्य जगत में ‘भारतीय आत्मा’ कहा जाता है।

रचनाएं-

चतुर्वेदी जी ने गद्य और पद्य दोनों विधाओं में लिखा है। इनकी प्रमुख कृतियों के नाम हैं-

काव्य संग्रह-

हिम किरीटिनी (सन 1943), हिम तरंगिणी (सन 1949), माता (सन 1951), युग चरण (सन 1956), समर्पण (सन 1956), वेणु ले गूंजे धरा (सन 1960), बिजुरी काजल आंज रही (सन 1954 से 64 के बीच की रचनाओं का संकलन, सन 1980 में प्रकाशित)

कहानी संग्रह – 

कला का अनुवाद

गद्य काव्य – 

साहित्य देवता (निबंध संग्रह)

नाटक –

 कृष्णार्जुन-युद्ध, सिरजन और मंचन

संपादन – 

कर्मवीर, प्रताप, प्रभा (पत्रिका एवं समाचार पत्र)

निबंध –

 समय के पांव (1962, संस्मरणात्मक)

निबंध संग्रह – 

अमीर इरादे गरीब इरादे (1960), रंगों की होली (सन 1944 तक के निबंधों का संकलन, 1980 में प्रकाशित)

भाषण संग्रह-

 चिंतन की लाचारी (1965) 

सम्मान – 

सागर विश्वविद्यालय से डी. लिट. की उपाधि, सन 1969 में। पद्म भूषण सम्मान (सन 1963)

पुरस्कार –

 साहित्य अकादमी पुरस्कार, देव पुरस्कार

संदर्भ और प्रसंग-

प्रस्तुत कविता ‘पुष्प की अभिलाषा’ ‘हिम तरंगिनी’ काव्य संग्रह में संग्रहीत है। यह माखनलाल चतुर्वेदी जी की सबसे प्रसिद्ध कविता मानी जाती है। यह कविता उन्होंने भारत की आजादी के लिए हो रहे आंदोलनों के दौर में देश प्रेम की भावना जगाने के लिए रची थी।

इस कविता में पुष्प के माध्यम से देश के नागरिकों को देश प्रेम का संदेश देने का प्रयास किया गया है।

कठिन शब्द

चाह-इच्छा, सुरबाला सुंदर युवती, प्रेमी-माला-प्रेमिका के लिए प्रेमी द्वारा तैयार की गयी माला, गहना-आभूषण, बिंध-माला में गुंथ जाना। ललचाऊं-आकर्षित करूं। सम्राट-राजा, भाव मृत शरीर, हरि- ईश्वर, इठलाऊं- घमंण्ड करूं। वनमाली-फूलों के बगीचे का देख भाल करने वाला, शीश-सिर, मस्तक, पथ-रास्ता

व्याख्या-

कविता का संदर्भ यह है कि माली बगीचे में फूल तोड़ रहा है। फूल सोच रहा है कि माली फूलों को गूंथ कर माला बनायेगा। माला किसी युवती के आभूषण की शोभा बढ़ाने के काम आयेगी या प्रेमिका के गले में डाल दी जायेगी। यह भी हो सकता है कि कोई देवी देवता या किसी मृत राजा के शव पर चढ़ा दे। मगर फूल की इच्छा न युवती के गले का आभूषण बनने की है न देवता के सिर या सम्राट के शव पर चढ़ाये जाने की। उसकी इच्छा देश के लिए मर मिटने वाले वीरों के कदमों के नीचे बिछ जाने की है। इसलिए वह माली से अपनी इच्छा का इजहार करते हुए कहता है कि हे माली! सुनो! मैं नहीं चाहता कि मुझे किसी सुंदर स्त्री के आभूषण में गूंथा जाय। किसी सुंदरी के गले का आभूषण बनने की इच्छा बिल्कुल ही नहीं है। किसी प्रेमी की प्रेमिका को ललचाने की भी मुझे कोई इच्छा नहीं है।

फूल ईश्वर से प्रार्थना के भाव में कहता है कि हे प्रभो! मुझे किसी सम्राट के शव पर डाले जाने से बचाना। हमें तो किसी देवता के सिर पर चढ़ने का सौभाग्य प्राप्त करने की भी इच्छा नहीं है।

कविता के तीसरे बंद में फूल कहता है- हे माली! मेरी एक मात्र अभिलाषा यह है कि मुझे उस रास्ते पर बिखेर दिया जाय, जिस रास्ते से होकर, देश की आजादी के लिए बलिदान होने की उच्च भावना के साथ, मातृभूमि के सपूत जाते हैं। मैं उनके पांवों को छू कर धन्य होना चाहता हूँ। भावार्थ यह है कि पुष्प किसी सम्राट, देवता, या सुंदरी के माथे की शोभा बन कर गौरव महसूस करने की जगह वीर सैनिकों के पावों तले कुचले जाने में अपने को धन्य समझता है। वह खुद देश की रक्षा के काम नहीं आ सकता, जो देश के लिए जीवन की बाजी लगाने के लिए तैयार हैं, उनके रास्ते में बिछ कर उनके प्रति अपनी कृतज्ञता व्यक्त करना चाहता है।

काव्य सौष्ठव-

यह एक प्रतीकात्मक कविता है। इसमें फूल को स्वतंत्रता प्रेमी भारतवासी का प्रतीक बनाया गया है। फूल का मानवीकरण करने से इस कविता का प्रभाव बहुत बढ़ गया है।

कविता की भाषा सरल और प्रांजल है।

राष्ट्रप्रेम जैसी गम्भीर भावना को सरल शब्दों में बड़े ही कलात्म्क ढंग से अभिव्यक्त किया गया है।

इस गीत में केवल दो बंद हैं। पहले बंद में 30 मात्राओं की चार पंक्तियां हैं, जबकि दूसरा बंद 17 और 15 मात्राओं वाली दो युगल पंक्तियों से मिल कर बना है।

इस कविता को धुन में गाया जा सकता है। इसकी गेयता बहुत आकर्षक और मधुर है।

विशेष-

माखनलाल चतुर्वेदी के काव्य में राष्ट्रीय चेतना का उदात्त स्वर देखने को मिलता है। उनकी कविताओं में भारतीय आत्मा को वाणी दी गयी होती है। ‘पुष्प की अभिलाषा’ एक महान गीत होने की योग्यता रखता है। राष्ट्रगान (जनगणमन अधिनायक), राष्ट्रगीत (वंदे मातरम) और ‘सारे जहां से अच्छा’ के बाद यह चौथा गीत है जो सारे देश में गाया जाता है। कवि ने पुष्प की अभिलाषा के माध्यम से राष्ट्रप्रेम प्रदर्शित करने की जैसी शुभ कामना व्यक्त की है, वह अप्रतिम है।


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पुष्प की अभिलाषा,

पुष्प की अभिलाषा हिंदी कविता,

Joke in hindi

joke in hindi -जोक (Joke) का मतलब है हंसी-मजाक, चुटकुला या विनोदपूर्ण बात। यह एक ऐसी कहानी या वाक्य होता है जिसे सुनकर लोग हंसते हैं। जोक्स का इस्तेमाल मनोरंजन के लिए किया जाता है और हंसी-खुशी का माहौल बनाने में मदद करते हैं।

भज गोविन्दं  (BHAJ GOVINDAM)

आदि गुरु श्री शंकराचार्य विरचित 

Adi Shankara’s Bhaja Govindam

Bhaj Govindam In Sanskrit Verse Only

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Bhaj Govindam | भज गोविन्दम् | चर्पटपञ्जरिका स्तोत्र | Mohamudgara Stotram | Madhvi Madhukar Jha


भज गोविन्दम्  (हिंदी भावानुवाद)

SANSKRIT WITH HINDI AND ENGLISH TRANSLATION

भज गोविन्दं भज गोविन्दं, गोविन्दं भज मूढ़मते। 
संप्राप्ते सन्निहिते काले, न हि न हि रक्षति डुकृञ् करणे॥1॥
हे मोह से ग्रसित बुद्धि (-सोचने समझने, राह निकलने में असमर्थ व्यक्ति) वाले मनुष्य ! गोविंद को भजो, गोविन्द का नाम लो, गोविन्द से प्रेम करो; क्योंकि मृत्यु के समय व्याकरण के नियम याद रखने से आपकी रक्षा नहीं हो सकती है।
O deluded-confused-unable to find a way out, chant the names of Almighty-Govind, worship Govind, love Govind, since memorising the rules of grammar (-daily chores-routine) cannot save one at the time of death. One who is not thoughtful, insensitive, irresponsible should pray to the God.
मूढ़ जहीहि धनागमतृष्णाम्, कुरु सद्बुद्धिमं मनसि वितृष्णाम्।
यल्लभसे निजकर्मोपात्तम्,वित्तं तेन विनोदय चित्तं॥2॥
हे मोहित बुद्धि! धन एकत्र करने के लोभ को त्यागो। अपने मन से इन समस्त कामनाओं का त्याग करो। सत्य के पथ का अनुसरण करो, अपने परिश्रम से जो धन प्राप्त हो, उससे ही अपने मन को प्रसन्न रखो।
O deluded-illusioned! Give up the lust to amass wealth. Reject all desires such desires from the mind and take up the path of virtuousness-piousity-righteousness. One should be content-satisfied happy with the money earned through honest means. One should earn money through righteous means without fraud, cheating, deceiving, forgery etc.
नारीस्तनभरनाभीदेशम्, दृष्ट्वा मागा मोहावेशम्।
एतन्मान्सवसादिविकारम्, मनसि विचिन्तय वारं वारम्॥3॥
स्त्री शरीर पर मोहित होकर आसक्त मत हो। अपने मन में निरंतर स्मरण करो कि वह मांस-वसा आदि के विकार के अतिरिक्त कुछ और नहीं हैं।
One should not be governed by lust, sexuality, sensuality, passions towards women since they are nothing except a means to corrupt the mind.
The woman’s anatomy is nothing more than flesh. Under the influence of delusion, one is not able to isolate himself from vulgarity, wretchedness.One should deliberate-meditate over this again and again mentally.
नलिनीदलगतजलमतितरलम्, तद्वज्जीवितमतिशयचपलम्।
विद्धि व्याध्यभिमानग्रस्तं, लोक शोकहतं च समस्तम्॥4॥
जीवन कमल-पत्र पर पड़ी हुई पानी की बूंदों के समान अनिश्चित एवं अल्प (-क्षणभंगुर) है। यह समझ लो कि समस्त विश्व रोग, अहंकार और दु:ख में डूबा हुआ है।
Life is as ephemeral as water drops on a lotus leaf. Be aware that the whole world is troubled by disease, ego and grief. One did not exist before and he will not exist thereafter, as well.
यावद्वित्तोपार्जनसक्त:, तावन्निजपरिवारो रक्तः। पश्चाज्जीवति जर्जरदेहे, वार्तां कोऽपि न पृच्छति गेहे॥5॥
जब तक व्यक्ति धनोपार्जन में समर्थ है, तब तक परिवार में सभी उसके प्रति स्नेह प्रदर्शित करते हैं, परन्तु अशक्त हो जाने पर उसे सामान्य बातचीत में भी नहीं पूछा जाता है।
As long as one is fit and capable to earn money, everyone in the family show affection- respect towards him. But afterwards, when his body becomes weak-he turns old, no one cares-inquiries about him. No one feels the need to consult him. Even the servants ignore him.
यावत्पवनो निवसति देहे, तावत् पृच्छति कुशलं गेहे।
गतवति वायौ देहापाये, भार्या बिभ्यति तस्मिन्काये॥6॥
जब तक शरीर में प्राण रहते हैं तब तक ही लोग कुशल पूछते हैं। शरीर से प्राण वायु के निकलते ही पत्नी भी उस शरीर से डरती है।
People are concerned about one till he alive. As soon as the soul-vital air -Pran Vayu, escape the body, near and dear too wish to remain away-aloof from it. On the other hand they are afraid of it. Even the wife prefer to remain away from the corpse-dead body-remains, out of fear (-ghost).
बालस्तावत् क्रीडासक्तः, तरुणस्तावत् तरुणीसक्तः।
वृद्धस्तावच्चिन्तासक्तः, परे ब्रह्मणि कोऽपि न सक्तः॥7॥
बचपन में खेल में रूचि होती है, युवावस्था में युवा स्त्री के प्रति आकर्षण होता है, वृद्धावस्था में चिंताओं से घिरे रहते हैं, पर प्रभु से कोई प्रेम नहीं करता है।
One idles away-waste childhood in sports-play, during youth, he is attached to woman, in old age he keeps worrying about future, but it seldom that he prefers to be engrossed with Govind-the Par Brahmn Parmeshwar at any stage. In fact, he does not know, understand the significance-importance of it.
का ते कांता कस्ते पुत्रः, संसारोऽयमतीव विचित्रः।
कस्य त्वं वा कुत अयातः, तत्त्वं चिन्तय तदिह भ्रातः॥8॥
कौन तुम्हारी पत्नी है, कौन तुम्हारा पुत्र है, ये संसार अत्यंत विचित्र है, तुम कौन हो, कहाँ से आये हो, बन्धु ! इस बात पर तो पहले विचार कर लो।
Who is your wife ? Who is your son? Indeed, strange is this world. O dear, think again and again who are you and from where have you come. One does not know his origin, earlier incarnations-previous births.
सत्संगत्वे निस्संगत्वं, निस्संगत्वे निर्मोहत्वं। निर्मोहत्वे निश्चलतत्त्वं निश्चलतत्त्वे जीवन्मुक्तिः॥9॥
सत्संग से वैराग्य, वैराग्य से विवेक, विवेक से स्थिर तत्त्वज्ञान और तत्त्वज्ञान से मोक्ष की प्राप्ति होती है।
Interaction with saints brings detachment, detachment leads to gist-nectar-elixir pertaining to the Almighty and this leads to Salvation-Liberation-Assimilation in the Ultimate-Almighty.
वयसि गते कः कामविकारः, शुष्के नीरे कः कासारः। क्षीणे वित्ते कः परिवारः, ज्ञाते तत्त्वे कः संसारः॥10॥
आयु बीत जाने के बाद काम भाव नहीं रहता, पानी सूख जाने पर तालाब नहीं रहता, धन चले जाने पर परिवार नहीं रहता और तत्त्व ज्ञान होने के बाद संसार नहीं रहता।
As soon as one grows old he looses potency-vigour-strength, after drying ponds-lakes loose their status as reservoirs, loss of wealth-poverty drives away the relatives and with the awakening of gist of the understanding of the Almighty; one looses charm of this world.
मा कुरु धनजनयौवनगर्वं, हरति निमेषात्कालः सर्वं।
मायामयमिदमखिलम् हित्वा, ब्रह्मपदम् त्वं प्रविश विदित्वा॥11॥
धन, शक्ति और यौवन पर गर्व मत करो, समय क्षण भर में इनको नष्ट कर देता है| इस विश्व को माया से घिरा हुआ जान कर तुम ब्रह्म पद में प्रवेश करो।
One should not boast of wealth, strength-power-might and youth-vigor-vitality. The time-Kal will perish all these in a fraction of moment. He should consider this world to be illusion-perishable-destructible and make efforts to attain-achieve the Par Brahmn Parmeshwar.
दिनयामिन्यौ सायं प्रातः, शिशिरवसन्तौ पुनरायातः।
कालः क्रीडति गच्छत्यायुस्तदपि न मुन्च्त्याशावायुः॥12॥
दिन और रात, शाम और सुबह, सर्दी और बसंत बार-बार आते-जाते रहते हैं। काल की इस क्रीडा के साथ जीवन नष्ट होता रहता है; परन्तु इच्छाओ का अंत कभी नहीं होता है।
Desires never vanish-diminish-satisfied from the mind of one with the expiry of time. He has to control-rein them. This can be achieved by diverting oneself towards the Almighty, through prayers-devotion. Day and night, dusk and dawn, winter and spring come and go, cyclically. In this sport of Time entire life goes away, but the storm of desire never departs or diminishes.
द्वादशमंजरिकाभिरशेषः कथितो वैयाकरणस्यैषः।
उपदेशोऽभूद्विद्यानिपुणैः, श्रीमच्छंकरभगवच्चरणैः॥12-1॥
बारह गीतों का ये उपदेश (-पुष्पहार, bouquet, garland), सर्वज्ञ प्रभुपाद श्री शंकराचार्य द्वारा एक वैयाकरण को प्रदान किया गया।
This bouquet of twelve verses-Shlok-rhymes was imparted to a grammarian by the all-knowing, god-like Shri Shankrachary. This is apiece of preaching.
काते कान्ता धन गतचिन्ता, वातुल किं तव नास्ति नियन्ता।
त्रिजगति सज्जनसं गतिरैका, भवति भवार्णवतरणे नौका॥13॥
तुम्हें पत्नी और धन की इतनी चिंता क्यों है, क्या उनका कोई नियंत्रक नहीं है। तीनों लोकों में केवल सज्जनों का साथ ही इस भवसागर से पार जाने की नौका है।
One should not worry about his wealth, family all the time. He should have faith in God who controls every thing. The virtuous company of the diligent-righteous-pious helps one in sailing through this vast reservoir of deeds-actions-mistakes-vices. Oh deluded! Why do you worry about your wealth and wife? Is there no one to take care of them? Only the company of saints can act as a boat in three worlds to take you out from this ocean-cycle of births and rebirths.
जटिलो मुण्डी लुञ्छितकेशः, काषायाम्बरबहुकृतवेषः।
पश्यन्नपि च न पश्यति मूढः, उदरनिमित्तं बहुकृतवेषः॥14॥
बड़ी जटाएं, केश रहित सिर, बिखरे बाल, काषाय (-भगवा) वस्त्र और भांति भांति के वेश; ये सब अपना पेट भरने के लिए ही धारण किये जाते हैं, अरे मोहित मनुष्य तुम इसको देख कर भी क्यों नहीं देख पाते हो!
Matted and untidy hair, shaven heads, orange-saffron coloured cloths are all a way to earn livelihood by those who do not wish to earn their bread through righteous-honest means-hard work. O deluded man why don’t you understand it, even after seeing.
अङ्गं गलितं पलितं मुण्डं, दशनविहीनं जतं तुण्डम्।
वृद्धो याति गृहीत्वा दण्डं, तदपि न मुञ्चत्याशापिण्डम्॥15॥
क्षीण अंगों, पके हुए बालों, दांतों से रहित मुख और हाथ में दंड लेकर चलने वाला वृद्ध भी आशा-पाश से बंधा रहता है।
Even an old man with weak limbs, hairless head, toothless mouth, walking with the help of a stick, still has high hopes-unfulfilled desires. Desires are unending. Fulfilment of one desire leads to yet another new one.
अग्रे वह्निः पृष्ठेभानुः, रात्रौ चुबुकसमर्पितजानुः।
करतलभिक्षस्तरुतलवासः, तदपि न मुञ्चत्याशापाशः॥16॥
सूर्यास्त के बाद, रात्रि में आग जला कर और घुटनों में सर छिपाकर सर्दी बचाने वाला, हाथ में भिक्षा का अन्न खाने वाला, पेड़ के नीचे रहने वाला भी अपनी इच्छाओं के बंधन को छोड़ नहीं पाता है।
One who warms his body by fire after sunset living in the open under the sky-homeless, curls his body to his knees to avoid cold; eats the begged food and sleeps beneath the tree, he is also bound by desires, even in these difficult situations. Desires never die.
कुरुते गङ्गासागरगमनं, व्रतपरिपालनमथवा दानम्।
ज्ञानविहिनः सर्वमतेन, मुक्तिं न भजति जन्मशतेन॥17॥
किसी भी धर्म के अनुसार ज्ञान रहित रह कर गंगासागर जाने से, व्रत रखने से और दान देने से सौ जन्मों में भी मुक्ति नहीं प्राप्त हो सकती है।
Its not possible to attain Salvation by visiting religious places of worship-pilgrimages, fasting, donations-charity, without understanding the gist of the religiosity, even in hundred births, by following any of the religion-Varnashram Dharm.
सुर मंदिर तरु मूल निवासः, शय्या भूतल मजिनं वासः।
सर्व परिग्रह भोग त्यागः, कस्य सुखं न करोति विरागः॥18॥
देव मंदिर या पेड़ के नीचे निवास, पृथ्वी जैसी शय्या, अकेले ही रहने वाले, सभी संग्रहों और सुखों का त्याग करने वाले वैराग्य से किसको आनंद की प्राप्ति नहीं होगी।
Renunciation-detachment-relinquishment leads to bliss-Parmanand-Ultimate pleasure-Salvation. Reside in a temple or below a tree, sleep on mother earth as your bed, stay alone, leave all the belongings and comforts, such renunciation can give all the pleasures to anybody.
योगरतो वाभोगरतोवा, सङ्गरतो वा सङ्गवीहिनः।
यस्य ब्रह्मणि रमते चित्तं, नन्दति नन्दति नन्दत्येव॥19॥
कोई योग में लगा हो या भोग में, संग में आसक्त हो या निसंग हो, पर जिसका मन ब्रह्म में लगा है; वो ही आनंद करता है, आनन्द ही आनंद करता है।
One may like meditative practice or worldly pleasures, may be attached or detached. But only one who fixing-trains his mind on God lovingly enjoys bliss, enjoys bliss, enjoys bliss.
भगवद् गीता किञ्चिदधीता, गङ्गा जललव कणिकापीता।
सकृदपि येन मुरारि समर्चा, क्रियते तस्य यमेन न चर्चा॥20॥
जिन्होंने भगवद् गीता का थोडा सा भी अध्ययन किया है, भक्ति रूपी गंगा जल का कण भर भी पिया है, भगवान कृष्ण की एक बार भी समुचित प्रकार से पूजा की है, यम के द्वारा उनकी चर्चा नहीं की जाती है।
Those who have studied-understood-learnt Geeta, worship Bhagwan Shri Krashn with love & affection even for a while-once-a little-fraction of second, drink just a drop of water from the holy Ganga, Yam Raj-the deity of death has no control over them.
पुनरपि जननं पुनरपि मरणं, पुनरपि जननी जठरे शयनम्।
इह संसारे बहुदुस्तारे, कृपयाऽपारे पाहि मुरारे॥21॥
बार-बार जन्म, बार-बार मृत्यु, बार-बार माँ के गर्भ में शयन, इस संसार से पार जा पाना बहुत कठिन है। हे कृष्ण! कृपा करके मेरी इससे रक्षा करें।
Repeated births and death, stay in the mother’s womb, makes it extremely difficult to go beyond this universe. Hey Murari! Please help me pass through all this by extending your grace-mercy.
रथ्या चर्पट विरचित कन्थः, पुण्यापुण्य विवर्जित पन्थः।
योगी योगनियोजित चित्तो, रमते बालोन्मत्तवदेव॥22॥
रथ के नीचे आने से फटे हुए कपडे पहनने वाले, पुण्य और पाप से रहित पथ पर चलने वाले, योग में अपने चित्त को लगाने वाले योगी, बालक के समान आनंद में रहते हैं।
One who wears rags-teared cloths by coming under the chariot, travel-move on the path free from virtues and sins- a state of equanimity, trains their minds in the devotion to the Almighty through Yog-meditation, enjoys like a carefree exuberant child.
कस्त्वं कोऽहं कुत आयातः, का मे जननी को मे तातः।
इति परिभावय सर्वमसारम्, विश्वं त्यक्त्वा स्वप्न विचारम्॥23॥
तुम कौन हो, मैं कौन हूँ, कहाँ से आया हूँ, मेरी माँ कौन है, मेरा पिता कौन है? सब प्रकार से इस विश्व को असार समझ कर इसको एक स्वप्न के समान त्याग दो।
Who are you ? Who am I ? From where have I come ? Who is my mother, who is my father ? Ponder over these and after understanding-realizing this world to be meaningless like a dream, relinquish it.
त्वयि मयि चान्यत्रैको विष्णुः, व्यर्थं कुप्यसि मय्यसहिष्णुः।
भव समचित्तः सर्वत्र त्वं, वाञ्छस्यचिराद्यदि विष्णुत्वम्॥24॥
तुममें, मुझमें और अन्यत्र भी सर्वव्यापक विष्णु ही हैं, तुम व्यर्थ ही क्रोध करते हो, यदि तुम शाश्वत विष्णु पद को प्राप्त करना चाहते हो तो सर्वत्र समान चित्त वाले हो जाओ।
Bhagwan Vishnu resides in me, you and everything-every one else. So, your anger is meaningless-useless. If you wish to attain the eternal status of Vishnu, practice equanimity all the time, in all the things.
शत्रौ मित्रे पुत्रे बन्धौ, मा कुरु यत्नं विग्रहसन्धौ।
सर्वस्मिन्नपि पश्यात्मानं, सर्वत्रोत्सृज भेदाज्ञानम्॥25॥
शत्रु, मित्र, पुत्र, बन्धु-बांधवों से प्रेम और द्वेष मत करो, सबमें अपने आप को ही देखो, इस प्रकार सर्वत्र ही भेद रूपी अज्ञान को त्याग दो।
Bhagwan Vishnu is present in each and every one of us, in the form of soul. Its only the body which discriminate between the two. Try not to win the love of your friends, brothers, relatives and son(s) or to fight with your enemies. See yourself in each and everyone and give up ignorance of duality everywhere. Practice equanimity. [One must be ready to protect his kith and kin and him self, in stead of surrendering to situations, till he is a household undergoing Grahasthashram (-गृहस्थाश्रम) Varnashram Dharm.
कामं क्रोधं लोभं मोहं, त्यक्त्वाऽत्मानं भावय कोऽहम्।
आत्मज्ञान विहीना मूढाः, ते पच्यन्ते नरकनिगूढाः॥26॥
काम, क्रोध, लोभ, मोह को छोड़ कर, स्वयं में स्थित होकर विचार करो कि मैं कौन हूँ ? जो आत्म-ज्ञान से रहित मोहित व्यक्ति हैं; वो बार-बार छिपे हुए इस संसार रूपी नरक में पड़ते हैं।
Give up desires, anger, greed and delusion. Ponder over your real self-nature. Those devoid of the knowledge of self, come in this world-a hidden hell, endlessly.
गेयं गीता नाम सहस्रं, ध्येयं श्रीपति रूपमजस्रम्।
नेयं सज्जन सङ्गे चित्तं, देयं दीनजनाय च वित्तम्॥27॥
भगवान विष्णु के सहस्त्र नामों को गाते हुए उनके सुन्दर रूप का अनवरत ध्यान करो, सज्जनों के संग में अपने मन को लगाओ और गरीबों की अपने धन से सेवा करो।
Sing thousand glories of Bhagwan Vishnu, constantly remembering his various forms in your heart. Enjoy the company of virtuous-righteous-pious-noble people and do acts of charity for the poor, down trodden and the needy.
सुखतः क्रियते रामाभोगः,पश्चाद्धन्त शरीरे रोगः।
यद्यपि लोके मरणं शरणं, तदपि न मुञ्चति पापाचरणम्॥28॥
सुख के लिए लोग आनंद-भोग करते हैं, जिसके बाद इस शरीर में रोग हो जाते हैं। यद्यपि इस पृथ्वी पर सबका मरण सुनिश्चित है, फिर भी लोग पापमय आचरण को नहीं छोड़ते।
People use this body for pleasure-enjoyment-passions-sexuality-sensuality-lust, which gets diseased in the end. Though in this world everything ends in death, man does not give up the sinful conduct. Greed, unfulfilled desires always keep him pushing to wretchedness-vices-sins-misconduct.
अर्थंमनर्थम् भावय नित्यं, नास्ति ततः सुखलेशः सत्यम्।
पुत्रादपि धनभजाम् भीतिः, सर्वत्रैषा विहिता रीतिः॥29॥
धन अकल्याणकारी है और इससे जरा सा भी सुख नहीं मिल सकता है, ऐसा विचार प्रतिदिन करना चाहिए। धनवान व्यक्ति तो अपने पुत्रों से भी डरते हैं; ऐसा सबको पता ही है।
Keep on thinking that money is root cause of all troubles. It cannot give even a bit of happiness-pleasure. A rich man fears even his own sons, who are willing to kill him for the sake of wealth, luxuries. This is the law nature pertaining to riches and applicable to every one-everywhere.
प्राणायामं प्रत्याहारं, नित्यानित्य विवेकविचारम्।
जाप्यसमेत समाधिविधानं, कुर्ववधानं महदवधानम्॥30॥
प्राणायाम, उचित आहार, नित्य इस संसार की अनित्यता का विवेक पूर्वक विचार करो, प्रेम से प्रभु-नाम का जाप करते हुए समाधि में ध्यान दो, बहुत ध्यान दो।
Perform-conduct-practice Pranayam, the regulation of life forces, take proper food, constantly distinguish the permanent from the fleeting. Chant the holy names of God with love and meditate, with utmost attention. One must utilize his prudence-intelligence to abandon vices-sins-wretchedness.
गुरुचरणाम्बुज निर्भर भक्तः, संसारादचिराद्भव मुक्तः।
सेन्द्रियमानस नियमादेवं, द्रक्ष्यसि निज हृदयस्थं देवम्॥31॥
गुरु के चरण कमलों का ही आश्रय मानने वाले भक्त बनकर सदैव के लिए इस संसार में आवागमन से मुक्त हो जाओ, इस प्रकार मन एवं इन्द्रियों का निग्रह कर अपने हृदय में विराजमान प्रभु के दर्शन करो।
One must take shelter-asylum-protection under the auspiciousness of his Guru-guide like a devotee and set him self free from the clutches of this perishable world. This will help him in acquiring control over sensuality-vulgarity-useless thoughts-dirty ideas-irrational thoughts. One should become free from repeated cycles of death and births. This will lead to self control over mind, ideas and retain the Almighty in the heart.
मूढः कश्चन वैयाकरणो, डुकृञ्करणाध्ययन धुरिणः।
श्रीमच्छम्कर भगवच्छिष्यै, बोधित आसिच्छोधितकरणः॥32॥
इस प्रकार व्याकरण के नियमों को कंठस्थ करते हुए किसी मोहित वैयाकरण के माध्यम से बुद्धिमान श्री भगवान शंकर के शिष्य बोध प्राप्त करने के लिए प्रेरित किये गए।
Thus through a deluded grammarian lost in memorising rules of the grammar, the all knowing Shri Shankar motivated his disciples for enlightenment.
भजगोविन्दं भजगोविन्दं, गोविन्दं भजमूढमते।
नामस्मरणादन्यमुपायं, नहि पश्यामो भवतरणे॥33॥
गोविंद को भजो, गोविन्द का नाम लो, गोविन्द से प्रेम करो क्योंकि भगवान के नाम जप के अतिरिक्त इस भव-सागर से पार जाने का अन्य कोई मार्ग नहीं है।
O the deluded minded, chant Govind, worship Govind, love Govind; as there is no other way to cross the life’s ocean except lovingly remembering the holy names of God.

tum prem ho tum preet ho lyrics

tum prem ho tum preet ho lyrics in hindi

तुम प्रेम हो, तुम प्रीत हो।

मेरी बांसुरी का गीत हो.

तुम प्रेम हो, तुम प्रीत हो।

मनमीत हो, राधे, मेरी मनमीत हो.

तुम प्रेम हो, तुम प्रीत हो।

मनमीत हो, राधे, मेरी मनमीत हो.

तुम प्रेम हो, तुम प्रीत हो।

मेरी बांसुरी का गीत हो.

तुम ही हृदय में, प्राण में, कान्हा।

तुम ही हृदय में, प्राण में।

निस-दिन तुम्हीं हो ध्यान में।

तुम ही हृदय में, प्राण में।

निस-दिन तुम्हीं हो ध्यान में।

हर रोम में तुम हो आधारित।

हर रोम में तुम हो आधारित।

तुम श्वास के आह्वान में।

हर रोम में तुम हो आधारित।

हर रोम में तुम हो आधारित।

हर रोम में तुम हो आधारित।

तुम श्वास के आह्वान में।

तुम प्रीत हो, तुम गीत हो।

मनमीत हो, कान्हा, मेरे मनमीत हो।

तुम प्रेम हो, तुम प्रीत हो।

मनमीत हो, राधे, मेरी मनमीत हो.

तुम प्रेम हो, तुम प्रीत हो।

मेरी बांसुरी का गीत हो.

हूं मैं जहां, तुम हो वहां, राधा।

हूं मैं जहां, तुम हो वहां.

तुम बिन नहीं है कुछ यहाँ।

हूं मैं जहां, तुम हो वहां.

तुम बिन नहीं है कुछ यहाँ।

मुझ में धड़कती हो तुम।

मुझ में धड़कती हो तुम।

तुम दूर मुझ से हो कहाँ।

तुम श्वास के आह्वान में।

तुम प्रीत हो, तुम गीत हो।

मनमीत हो, कान्हा, मेरे मनमीत।

तुम प्रेम हो, तुम प्रीत हो।

मनमीत हो, राधे, मेरी मनमीत.

तुम प्रेम हो, तुम प्रीत हो।

मेरी बांसुरी का गीत हो.

हूं मैं जहां, तुम हो वहां, राधा।

हूं मैं जहां, तुम हो वहां.

तुम बिन नहीं है कुछ यहाँ।

हूं मैं जहां, तुम हो वहां.

तुम बिन नहीं है कुछ यहाँ।

मुझ में धड़कती हो तुम।

मुझ में धड़कती हो तुम।

तुम दूर मुझ से हो कहाँ।

तुम प्रेम हो, तुम प्रीत हो।

मनमीत हो, राधे, मेरी मनमीत हो.

तुम प्रेम हो, तुम प्रीत हो।

मनमीत हो, राधे, मेरी मनमीत हो.

तुम प्रेम हो, तुम प्रीत हो।

पावन प्रणय की रीत हो।

राधा-कृष्ण, कृष्ण-राधा.

राधा-कृष्ण (कृष्ण), कृष्ण-राधा (कृष्ण)।

tum prem ho tum preet ho lyrics in english

tum prema ho, tum preet ho

meri baansuri ka geet ho

tum prema ho, tum preet ho

manameet ho, raadhe, meri manameet ho

tum prema ho, tum preet ho

manameet ho, raadhe, meri manameet ho

tum prema ho, tum preet ho

meri baansuri ka geet ho

tum hee hriday mein, praan mein, kanha

tum hee hriday mein, praan mein

nis-din tumheen ho dhyaan mein

tum hee hriday mein, praan mein

nis-din tumheen ho dhyaan mein

har rome mein tum ho based

har rome mein tum ho based

tum shwaas ke aahvaan mein

har rome mein tum ho based

har rome mein tum ho based

har rome mein tum ho based

tum shwaas ke aahvaan mein

tum preet ho, tum geet ho

manameet ho, kanha, mere manameet ho

tum prema ho, tum preet ho

manameet ho, raadhe, meri manameet ho

tum prema ho, tum preet ho

meri baansuri ka geet ho

hoon main jahaan, tum ho vahaan, raadha

hoon main jahaan, tum ho vahaan

tum bin nahin hai kuch yahaan

hoon main jahaan, tum ho vahaan

tum bin nahin hai kuch yahaan

mujh mein dhadkati ho tumheen

mujh mein dhadkati ho tumheen

tum door mujh se ho kahaan

tum shwaas ke aahvaan mein

tum preet ho, tum geet ho

manameet ho, kanha, mere manameet

tum prema ho, tum preet ho

manameet ho, raadhe, meri manameet

tum prema ho, tum preet ho

meri baansuri ka geet ho

hoon main jahaan, tum ho vahaan, raad

hoon main jahaan, tum ho vahaan

tum bin nahin hai kuch yahaan

hoon main jahaan, tum ho vahaan

tum bin nahin hai kuch yahaan

mujh mein dhadkati ho tumheen

mujh mein dhadkati ho tumheen

tum door mujh se ho kahaan

tum prema ho, tum preet ho

manameet ho, raadhe, meri manameet ho

tum prema ho, tum preet ho

manameet ho, raadhe, meri manameet ho

tum prema ho, tum preet ho

paavan pranay kee reet ho

raadha-krshn, krshn-raadha

raadha-krshn (krshn), krshn-raadha (krshn)

Ve Kamleya Lyrics

Ve Kamleya Lyrics In Hindi

वे कमलेया वे कमलेया
वे कमलेया मेरे नादान दिल

वे कमलेया वे कमलेया
वे कमलेया मेरे नादान दिल

दो नैनों के पेचीदा सौ गलियारे
इनमें खो कर तू मिलता है कहाँ
तुझको अम्बर से पिंजरे ज्यादा प्यारे

उड़ जा कहने से
सुनता भी तू है कहाँ
गल सुन ले आ

गल सुन ले आ
वे कमलेया मेरे नादान दिल

वे कमलेया वे कमलेया
वे कमलेया मेरे नादान दिल
नादान दिल

जा करना है तो प्यार कर
ज़िद पूरी फिर इक बार कर
कमलेया वे कमलेया

मनमर्ज़ी कर के देख ले
बदले में सब कुछ हार कर
कमलेया वे कमलेया

तुझपे खुद से ज्यादा
यार की चलती है
इश्क़ है ये तेरा
या तेरी गलती है

अगर सवाब है तो
क्यूँ सज़ा मिलती है

दिल्लगी इक तेरी
आज कल परसों की
नींद ले जाती है
लूट के बरसों की

मान ले कभी तो
बात खुदगर्ज़ों की

जिनपे चल के
मंजिल मिलनी आसान हो
वैसे रस्ते
तू चुनता है कहां हो हो..

कसती है दुनिया
कस ले फ़िक्रे ताने
उंगली पे आखिर गिनता भी
तू है कहाँ

मर्ज़ी तेरी जी भर ले आ
वे कमलेया मेरे नादान दिल
वे कमलेया वे कमलेया
वे कमलेया मेरे नादान दिल

जा करना है तो प्यार कर
ज़िद पूरी फिर इक बार कर
कमलेया वे कमलेया

मनमर्ज़ी कर के देख ले
बदले में सब कुछ हार कर
कमलेया वे कमलेया

जा करना है तो प्यार कर
ज़िद पूरी फिर इक बार कर
कमलेया वे कमलेया

मनमर्ज़ी कर के देख ले
बदले में सब कुछ हार कर
कमलेया वे कमलेया

Ve Kamleya Lyrics In English

Ve Kamleya Ve Kamleya
Ve Kamleya Mere Nadaan Dil
Ve Kamleya Ve Kamleya
Ve Kamleya Mere Nadaan Dil
Do Nainon Ke Pechida Sau Galiyare
Inmein Kho Kar Tu Milta Hai Kahan
Tujhko Ambar Se Pinjre Zyada Pyare
Udd Ja Kehne Se
Sunta Bhi Tu Hai Kahan
Gall Sunn Le Aa
Gall Sunn Le Aa
Ve Kamleya Mere Nadaan Dil
Ve Kamleya Ve Kamleya
Ve Kamleya Mere Nadaan Dil
Nadaan Dil
Ja Karna Hai Toh Pyar Kar
Zid Poori Phir Ik Baar Kar
Kamleya Ve Kamleya
Manmarzi Karke Dekh Le
Badle Mein Sab Kuchh Haar Kar
Kamleya Ve Kamleya
Tujhpe Khud Se Zyada
Yaar Ki Chalti Hai
Ishq Hai Yeh Tera
Ya Teri Ghalti Hai
Agar Sawaab Hai Toh
Kyun Saza Milti Hai
Dillagi Ik Teri
Aaj Kal Parson Ki
Neend Le Jaati Hai
Loot Ke Barson Ki
Maan Le Kabhi Toh
Baat Khudgarzon Ki
Jinpe Chal Ke
Manzil Milni Aasaan Ho
Vaise Raste
Tu Chunta Hai Kahan Ho Ho
Kasti Hai Duniya
Kass Le Fikre Taane
Ungli Pe Aakhir Ginta Bhi
Tu Hai Kahan
Marzi Teri Jee Bhar Le Aa
Ve Kamleya Mere Nadaan Dil
Ve Kamleya Ve Kamleya
Ve Kamleya Mere Nadaan Dil
Ja Karna Hai Toh Pyaar Kar
Zid Poori Phir Ik Baar Kar
Kamleya Ve Kamleya
Manmarzi Karke Dekh Le
Badle Mein Sab Kuchh Haar Kar
Kamleya Ve Kamleya
Ja Karna Hai Toh Pyaar Kar
Zid Poori Phir Ik Baar Kar
Kamleya Ve Kamleya
Manmarzi Karke Dekh Le
Badle Mein Sab Kuchh Haar Kar
Kamleya Ve Kamleya
Written by: Amitabh Bhattacharya

Ve Kamleya Meaning in hindi

वे कमलेया — कमलेया का अर्थ
वे कमलेया रॉकी और रानी की प्रेम कहानी फिल्म के एक गाने का शीर्षक है। ‘कमलेया’ शब्द कमला से आया है, जिसका अर्थ है एक पागल व्यक्ति, और यह शब्द का सम्बोधनात्मक रूप है, यानी, जब आप किसी को पुकारते हैं तो इसका उपयोग किया जाता है। इसलिए जब आप ‘वे कमलेया’ कहते हैं, तो इसका अर्थ है ‘ओ पागल’, और इस प्रकार, ‘वे कमलेया मेरे नादान दिल’ पंक्ति का अर्थ है ‘ओ मेरे पागल, भोले दिल।’


Raghupati Raghav Raja Ram Lyrics

रघुपति राघव राजाराम, पतित पावन सीताराम(Raghupati Raghav Raja Ram)

रघुपति राघव राजाराम, पतित पावन सीताराम(Raghupati Raghav Raja Ram)
रघुपति राघव राजाराम
पतित पावन सीताराम ॥
सुंदर विग्रह मेघश्याम
गंगा तुलसी शालग्राम ॥
रघुपति राघव राजाराम
पतित पावन सीताराम ॥
भद्रगिरीश्वर सीताराम
भगत-जनप्रिय सीताराम ॥
रघुपति राघव राजाराम
पतित पावन सीताराम ॥
जानकीरमणा सीताराम
जयजय राघव सीताराम ॥
रघुपति राघव राजाराम
पतित पावन सीताराम ॥
रघुपति राघव राजाराम
पतित पावन सीताराम ॥

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    आदि गुरु श्री शंकराचार्य विरचित  Adi Shankara’s Bhaja Govindam Bhaj Govindam In Sanskrit Verse Only भज गोविन्दं भज गोविन्दं भजमूढमते । संप्राप्ते सन्निहिते काले नहि नहि रक्षति डुकृञ्करणे ॥ १ ॥ मूढ जहीहि धनागमतृष्णां कुरु सद्बुद्धिं मनसि वितृष्णाम् । यल्लभसे निजकर्मोपात्तं वित्तं तेन विनोदय चित्तम् ॥ २ ॥ नारीस्तनभर नाभीदेशं दृष्ट्वा मागामोहावेशम् । एतन्मांसावसादि विकारं… Read more: भज गोविन्दं  (BHAJ GOVINDAM)

Saja Do Ghar Ko Gulshan Sa Avadh Me Ram Aaye Hain Lyrics

सजा दो घर का गुलशन सा, अवध में राम आए हैं (Saja Do Ghar Ko Gulshan Sa Avadh Me Ram Aaye Hain Lyrics)



  • हिंदी दिवस पर कविता(hindi Diwas Par Kavita)
    हिंदी दिवस पर कविता(hindi Diwas Par Kavita) 14 सितंबर को ‘हिन्दी दिवस’ मनाया जाता है। संवैधानिक रूप से हिंदी को राजभाषा का दर्जा प्राप्त है किंतु सरकारों ने उसे उसका प्रथम स्थान न देकर अन्यत्र धकेल दिया यह दुखदाई है। हिंदी को राजभाषा के रूप में देखना और हिंदी दिवस के रूप में उसका सम्मान… Read more: हिंदी दिवस पर कविता(hindi Diwas Par Kavita)
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भए प्रगट कृपाला दीन दयाला-bhaye pragat kripala deendayala

भए प्रगट  कृपाला दीन दयाला

भए प्रगट कृपाला दीनदयाला,
कौसल्या हितकारी ।
हरषित महतारी, मुनि मन हारी,
अद्भुत रूप बिचारी ॥
लोचन अभिरामा, तनु घनस्यामा,
निज आयुध भुजचारी ।
भूषन बनमाला, नयन बिसाला,
सोभासिंधु खरारी ॥
कह दुइ कर जोरी, अस्तुति तोरी,
केहि बिधि करूं अनंता ।
माया गुन ग्यानातीत अमाना,
वेद पुरान भनंता ॥
करुना सुख सागर, सब गुन आगर,
जेहि गावहिं श्रुति संता ।
सो मम हित लागी, जन अनुरागी,
भयउ प्रगट श्रीकंता ॥
ब्रह्मांड निकाया, निर्मित माया,
रोम रोम प्रति बेद कहै ।
मम उर सो बासी, यह उपहासी,
सुनत धीर मति थिर न रहै ॥
उपजा जब ग्याना, प्रभु मुसुकाना,
चरित बहुत बिधि कीन्ह चहै ।
कहि कथा सुहाई, मातु बुझाई,
जेहि प्रकार सुत प्रेम लहै ॥
माता पुनि बोली, सो मति डोली,
तजहु तात यह रूपा ।
कीजै सिसुलीला, अति प्रियसीला,
यह सुख परम अनूपा ॥
सुनि बचन सुजाना, रोदन ठाना,
होइ बालक सुरभूपा ।
यह चरित जे गावहिं, हरिपद पावहिं,
ते न परहिं भवकूपा ॥
भए प्रगट कृपाला, दीनदयाला,
कौसल्या हितकारी ।
हरषित महतारी, मुनि मन हारी,
अद्भुत रूप बिचारी ॥

राम नवमी

ramnavami

रामनवमी का त्यौहार चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी को मनाया जाता है जो अप्रैल-मई में आता है। हिंदू धर्मशास्त्रों के अनुसार इस दिन मर्यादा-पुरूषोत्तम भगवान श्री राम जी का जन्म हुआ था। 

चैत्रे नवम्यां प्राक् पक्षे दिवा पुण्ये पुनर्वसौ ।

उदये गुरुगौरांश्चोः स्वोच्चस्थे ग्रहपञ्चके ॥

मेषं पूषणि सम्प्राप्ते लग्ने कर्कटकाह्वये ।

आविरसीत्सकलया कौसल्यायां परः पुमान् ॥ (निर्णयसिन्धु)

गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस बालकाण्ड में स्वयं लिखा है कि उन्होंने रामचरित मानस की रचना का आरम्भ अयोध्यापुरी में विक्रम सम्वत् १६३१ (१५७४ ईस्वी) के रामनवमी (मंगलवार) को किया था। गोस्वामी जी ने रामचरितमानस में श्रीराम के जन्म का वर्णन कुछ इस प्रकार किया है-

भये प्रगट कृपाला दीनदयाला कौसल्या हितकारी।

हरषित महतारी मुनि मन हारी अद्भुत रूप बिचारी॥

लोचन अभिरामा तनु घनस्यामा निज आयुध भुज चारी।

भूषन वनमाला नयन बिसाला सोभासिन्धु खरारी॥

कह दुइ कर जोरी अस्तुति तोरी केहि बिधि करौं अनंता।

माया गुन ग्यानातीत अमाना वेद पुरान भनंता॥

करुना सुख सागर सब गुन आगर जेहि गावहिं श्रुति संता।

सो मम हित लागी जन अनुरागी भयउ प्रकट श्रीकंता॥

श्रीराम जन्म कथा

हिन्दु धर्म शास्त्रों के अनुसार त्रेतायुग में रावण के अत्याचारों को समाप्त करने तथा धर्म की पुनः स्थापना के लिये भगवान विष्णु ने मृत्यु लोक में श्री राम के रूप में अवतार लिया था। श्रीराम चन्द्र जी का जन्म चैत्र शुक्ल की नवमी  के दिन पुनर्वसु नक्षत्र तथा कर्क लग्न में रानी कौशल्या की कोख से, राजा दशरथ के घर में हुआ था।

सम्पूर्ण भारत में रामनवमी मनायी जाती है। तेलंगण का भद्राचलम मन्दिर उन स्थानों में हैं जहाँ रामनवमी बड़े धूमधाम से मनायी जाती है।

श्रीरामनवमी का त्यौहार पिछले कई हजार सालों से मनाया जा रहा है।

रामायण के अनुसार अयोध्या के राजा दशरथ की तीन पत्नियाँ थीं लेकिन बहुत समय तक कोई भी राजा दशरथ को सन्तान का सुख नहीं दे पायी थीं जिससे राजा दशरथ बहुत परेशान रहते थे। पुत्र प्राप्ति के लिए राजा दशरथ को ऋषि वशिष्ठ ने पुत्रकामेष्टि यज्ञ कराने को विचार दिया। इसके पश्चात् राजा दशरथ ने अपने जमाई, महर्षि ऋष्यश्रृंग से यज्ञ कराया। तत्पश्चात यज्ञकुण्ड से अग्निदेव अपने हाथों में खीर की कटोरी लेकर बाहर निकले। 

यज्ञ समाप्ति के बाद महर्षि ऋष्यश्रृंग ने दशरथ की तीनों पत्नियों को एक-एक कटोरी खीर खाने को दी। खीर खाने के कुछ महीनों बाद ही तीनों रानियाँ गर्भवती हो गयीं। ठीक 9 महीनों बाद राजा दशरथ की सबसे बड़ी रानी कौशल्या ने श्रीराम को जो भगवान विष्णु के सातवें अवतार थे, कैकयी ने श्रीभरत को और सुमित्रा ने जुड़वा बच्चों श्रीलक्ष्मण और श्रीशत्रुघ्न को जन्म दिया। भगवान श्रीराम का जन्म धरती पर दुष्ट प्राणियों को संघार करने के लिए हुआ था।

आदि श्रीराम

कबीर साहेब जी आदि श्रीराम की परिभाषा बताते है की आदि श्रीराम वह अविनाशी परमात्मा है जो सब का सृजनहार व पालनहार है। जिसके एक इशारे पर‌ धरती और आकाश काम करते हैं जिसकी स्तुति में तैंतीस कोटि देवी-देवता नतमस्तक रहते हैं। जो पूर्ण मोक्षदायक व स्वयंभू है।[6]

“एक श्रीराम दशरथ का बेटा, एक श्रीराम घट घट में बैठा, एक श्रीराम का सकल उजियारा, एक श्रीराम जगत से न्यारा”।।

रामनवमी पूजन

राम, सीता, लक्ष्मण एवं हनुमान राम नवमी पूजन में एक घर में रामनवमी के त्यौहार का महत्व हिंदु धर्म सभ्यता में महत्वपूर्ण रहा है। इस पर्व के साथ ही माँ दुर्गा के नवरात्रों का समापन भी होता है। हिन्दू धर्म में रामनवमी के दिन पूजा अर्चना की जाती है। रामनवमी की पूजा में पहले देवताओं पर जल, रोली और लेपन चढ़ाया जाता है, इसके बाद मूर्तियों पर मुट्ठी भरके चावल चढ़ाये जाते हैं। पूजा के बाद आ‍रती की जाती है। कुछ लोग इस दिन व्रत भी रखते है।

रामनवमी का महत्व

यह पर्व भारत में श्रद्धा और आस्था के साथ मनाया जाता है। रामनवमी के दिन ही चैत्र नवरात्र की समाप्ति भी हो जाती है। हिंदु धर्म शास्त्रों के अनुसार इस दिन भगवान श्री राम जी का जन्म हुआ था अत: इस शुभ तिथि को भक्त लोग रामनवमी के रूप में मनाते हैं एवं पवित्र नदियों में स्नान करके पुण्य के भागीदार होते है।

Credit for this Article – (विकिपीडिया)


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