Aditya Hridaya Stotram In Hindi

वाल्मीकि रामायण के अनुसार “आदित्य हृदय स्तोत्र” अगस्त्य ऋषि द्वारा भगवान् श्री राम को युद्ध में रावण पर विजय प्राप्ति हेतु दिया गया था. आदित्य हृदय स्तोत्र का नित्य पाठ जीवन के अनेक कष्टों का एकमात्र निवारण है. इसके नियमित पाठ से मानसिक कष्ट, हृदय रोग, तनाव, शत्रु कष्ट और असफलताओं पर विजय प्राप्त की जा सकती है. इस स्तोत्र में सूर्य देव की निष्ठापूर्वक उपासना करते हुए उनसे विजयी मार्ग पर ले जाने का अनुरोध है. आदित्य हृदय स्तोत्र सभी प्रकार के पापों , कष्टों और शत्रुओं से मुक्ति कराने वाला, सर्व कल्याणकारी, आयु, उर्जा और प्रतिष्ठा बढाने वाला अति मंगलकारी विजय स्तोत्र है.

 विनियोग

ॐ अस्य आदित्यह्रदय स्तोत्रस्य अगस्त्यऋषि: अनुष्टुप्छन्दः आदित्यह्रदयभूतो

भगवान् ब्रह्मा देवता निरस्ताशेषविघ्नतया ब्रह्माविद्यासिद्धौ सर्वत्र जयसिद्धौ च विनियोगः

पूर्व पिठिता

ततो युद्धपरिश्रान्तं समरे चिन्तया स्थितम्‌ । रावणं चाग्रतो दृष्ट्वा युद्धाय समुपस्थितम्‌ ॥1॥

दैवतैश्च समागम्य द्रष्टुमभ्यागतो रणम्‌ । उपगम्याब्रवीद् राममगस्त्यो भगवांस्तदा ॥2॥

राम राम महाबाहो श्रृणु गुह्मं सनातनम्‌ । येन सर्वानरीन्‌ वत्स समरे विजयिष्यसे ॥3॥

आदित्यहृदयं पुण्यं सर्वशत्रुविनाशनम्‌ । जयावहं जपं नित्यमक्षयं परमं शिवम्‌ ॥4॥

सर्वमंगलमागल्यं सर्वपापप्रणाशनम्‌ । चिन्ताशोकप्रशमनमायुर्वर्धनमुत्तमम्‌ ॥5॥

। श्रीआदित्यहृदयस्तोत्रम् ।

ततो युद्धपरिश्रान्तं समरे चिन्तया स्थितम् ।
रावणं चाग्रतो दृष्ट्वा युद्धाय समुपस्थितम् ॥१॥

दैवतैश्च समागम्य द्रष्टुमभ्यागतो रणम् ।
उपगम्याब्रवीद्राममगस्त्यो भगवांस्तदा ॥२॥

राम राम महाबाहो शृणु गुह्यं सनातनम् ।
येन सर्वानरीन् वत्स समरे विजयिष्यसे ॥३॥

आदित्यहृदयं पुण्यं सर्वशत्रुविनाशनम् ।
जयावहं जपं नित्यमक्षयं परमं शिवम् ॥४॥

सर्वमङ्गलमाङ्गल्यं सर्वपापप्रणाशनम् ।
चिन्ताशोकप्रशमनमायुर्वर्धनमुत्तमम् ॥५॥

रश्मिमन्तं समुद्यन्तं देवासुरनमस्कृतम् ।
पूजयस्व विवस्वन्तं भास्करं भुवनेश्वरम् ॥६॥

सर्वदेवात्मको ह्येष तेजस्वी रश्मिभावनः ।
एष देवासुरगणाँल्लोकान् पाति गभस्तिभिः ॥७॥

एष ब्रह्मा च विष्णुश्च शिवः स्कन्दः प्रजापतिः ।
महेन्द्रो धनदः कालो यमः सोमो ह्यपाम्पतिः ॥८॥

पितरो वसवः साध्या अश्विनौ मरुतो मनुः ।
वायुर्वह्निः प्रजाः प्राण ऋतुकर्ता प्रभाकरः ॥९॥

आदित्यः सविता सूर्यः खगः पूषा गभस्तिमान् ।
सुवर्णसदृशो भानुर्हिरण्यरेता दिवाकरः ॥१०॥

हरिदश्वः सहस्रार्चिः सप्तसप्तिर्मरीचिमान् ।
तिमिरोन्मथनः शम्भुस्त्वष्टा मार्तण्डकोंऽशुमान् ॥११॥

हिरण्यगर्भः शिशिरस्तपनो ऽहस्करो रविः ।
अग्निगर्भोऽदितेः पुत्रः शङ्खः शिशिरनाशनः ॥१२॥

व्योमनाथस्तमोभेदी ऋग्यजुः सामपारगः ।
घनवृष्टिरपां मित्रो विन्ध्यवीथीप्लवङ्गमः ॥१३॥

आतपी मण्डली मृत्युः पिङ्गलः सर्वतापनः ।
कविर्विश्वो महातेजा रक्तः सर्वभवोद्भवः ॥१४॥

नक्षत्रग्रहताराणामधिपो विश्वभावनः ।
तेजसामपि तेजस्वी द्वादशात्मन् नमोऽस्तुते ॥१५॥

नमः पूर्वाय गिरये पश्चिमायाद्रये नमः ।
ज्योतिर्गणानां पतये दिनाधिपतये नमः ॥१६॥

जयाय जयभद्राय हर्यश्वाय नमो नमः ।
नमो नमः सहस्रांशो आदित्याय नमो नमः ॥१७॥

नम उग्राय वीराय सारङ्गाय नमो नमः ।
नमः पद्मप्रबोधाय प्रचण्डाय नमोऽस्तुते ॥१८॥

ब्रह्मेशानाच्युतेशाय सूरायादित्यवर्चसे ।
भास्वते सर्वभक्षाय रौद्राय वपुषे नमः ॥१९॥

तमोघ्नाय हिमघ्नाय शत्रुघ्नायामितात्मने ।
कृतघ्नघ्नाय देवाय ज्योतिषां पतये नमः ॥२०॥

तप्तचामीकराभाय हरये विश्वकर्मणे ।
नमस्तमोऽभिनिघ्नाय रुचये लोकसाक्षिणे ॥२१॥

नाशयत्येष वै भूतं तमेष सृजति प्रभुः ।
पायत्येष तपत्येष वर्षत्येष गभस्तिभिः ॥२२॥

एष सुप्तेषु जागर्ति भूतेषु परिनिष्ठितः ।
एष चैवाग्निहोत्रं च फलं चैवाग्निहोत्रिणाम् ॥२३॥

देवाश्च क्रतवश्चैव क्रतूनां फलमेव च।
यानि कृत्यानि लोकेषु सर्वेषु परमप्रभुः ॥२४॥

एनमापत्सु कृच्छ्रेषु कान्तारेषु भयेषु च ।
कीर्तयन् पुरुषः कश्चिन्नावसीदति राघव ॥२५॥

पूजयस्वैनमेकाग्रो देवदेवं जगत्पतिम् ।
एतत्त्रिगुणितं जप्त्वा युद्धेषु विजयिष्यसि ॥२६॥

अस्मिन् क्षणे महाबाहो रावणं त्वं जहिष्यसि ।
एवमुक्त्वा ततोऽगस्त्यो जगाम स यथागतम् ॥२७॥

एतच्छ्रुत्वा महातेजा नष्टशोकोऽभवत् तदा ।
धारयामास सुप्रीतो राघवः प्रयतात्मवान् ॥२८॥

आदित्यं प्रेक्ष्य जप्त्वेदं परं हर्षमवाप्तवान् ।
त्रिराचम्य शुचिर्भूत्वा धनुरादाय वीर्यवान् ॥२९॥

रावणं प्रेक्ष्य हृष्टात्मा जयार्थं समुपागमत् ।
सर्वयत्नेन महता वृतस्तस्य वधेऽभवत् ॥३०॥

अथ रविरवदन्निरीक्ष्य रामं मुदितमनाः परमं प्रहृष्यमाणः ।
निशिचरपतिसंक्षयं विदित्वा सुरगणमध्यगतो वचस्त्वरेति ॥३१॥

॥ श्रीवाल्मीकीये रामायणे युद्धकाण्डे, अगस्त्य-प्रोक्तमादित्यहृदय-स्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥ Aditya Hrudayam Stotram Sampoornam ॥

आदित्यहृदय स्तोत्र हिंदी अर्थ सहित

Aditya Hridaya Stotra

aditya hridaya stotra in hindi

 ततो युद्धपरिश्रान्तं समरे चिन्तया स्थितम्।

रावणं चाग्रतो दृष्टवा युद्धाय समुपस्थितम्।।1।।

दैवतैश्च समागम्य द्रष्टुमभ्यागतो रणम्।

उपगम्याब्रवीद् राममगरत्यो भगवांस्तदा।।2।।

भावार्थ — श्री रामचन्द्रजी युद्ध से थककर चिन्ता करते हुए रणभूमि में खड़े थे। इतने में रावण भी युद्ध के लिए उनके सामने उपस्थित हो गया। यह देख भगवान अगस्त्य मुनि, जो देवताओं के साथ युद्ध देखने के लिए आये थे, श्रीराम के पास जाकर बोले।

 राम राम महाबाहो श्रृणु गुह्यं सनातनम्।

येन सर्वानरीन् वत्स समरे विजयिष्यसे।।3।।

भावार्थ — सबके हृदय में रमण करने वाले महाबाहो राम ! यह सनातन गोपनीय स्तोत्र सुनो। वत्स ! इसके जप से तुम युद्ध में अपने समस्त शत्रुओं पर विजय पा जाओगे।’

 आदित्यहृदयं पुण्यं सर्वशत्रुविनाशनम्।

जयावहं जपं नित्यमक्षयं परमं शिवम्।।4।।

सर्वमंगलमांगल्यं सर्वपापप्रणाशनम्।

चिन्ताशोकप्रशमनमायुर्वधैनमुत्तमम्।।5।।

भावार्थ — इस गोपनीय स्तोत्र का नाम है “ आदित्यहृदय स्तोत्र ” Aditya Hridaya Stotra। यह परम पवित्र और सम्पूर्ण शत्रुओं का नाश करने वाला है। इसके जप से सदा विजय की प्राप्ति होती है। यह नित्य अक्ष्य और परम कल्याणमय स्तोत्र है। सम्पूर्ण मंगलों का भी मंगल है। इससे सब पापों का नाश हो जाता है। यह चिन्ता और शोक को मिटाने तथा आयु को बढ़ाने वाला उत्तम साधन है।

 रश्मिमन्तं समुद्यन्तं देवासुरनमस्कृतम्।

पूजयस्व विवस्वन्तं भास्करं भुवनेश्वरम्।।6।।

भावार्थ — भगवान सूर्य अपनी अनन्त किरणों से सुशोभित (रश्मिमान्) हैं। ये नित्य उदय होने वाले (समुद्यन्), देवता और असुरों से नमस्कृत, विवस्वान् नाम से प्रसिद्ध, प्रभा का विस्तार करने वाले (भास्कर) और संसार के स्वामी (भुवनेश्वर) हैं। तुम इनका (रश्मिमते नमः, समुद्यते नमः, देवासुरनमस्कताय नमः, विवस्वते नमः, भास्कराय नमः, भुवनेश्वराय नमः इन नाम मंत्रों के द्वारा) पूजन करो।

 सर्वदेवतामको ह्येष तेजस्वी रश्मिभावनः।

एष देवासुरगणाँल्लोकान् पाति गभस्तिभिः।।7।।

भावार्थ — सम्पूर्ण देवता इन्हीं के स्वरूप हैं। ये तेज की राशि तथा अपनी किरणों से जगत को सत्ता एवं स्फूर्ति प्रदान करने वाले हैं। ये ही अपनी रश्मियों का प्रसार करके देवता और असुरों सहित सम्पूर्ण लोकों का पालन करते हैं।

 एष ब्रह्मा च विष्णुश्च शिवः स्कन्दः प्रजापतिः।

महेन्द्रो धनदः कालो यमः सोमो ह्यपां पतिः।।8।।

पितरो वसवः साध्या अश्विनौ मरुतो मनुः।

वायुर्वन्हिः प्रजाः प्राण ऋतुकर्ता प्रभाकरः।।9।।

भावार्थ — ये ही ब्रह्मा, विष्णु, शिव, स्कन्द, प्रजापति, इन्द्र, कुबेर, काल, यम, चन्द्रमा, वरूण, पितर, वसु, साध्य, अश्विनीकुमार, मरुदगण, मनु, वायु, अग्नि, प्रजा, प्राण, ऋतुओं को प्रकट करने वाले तथा प्रभा के पुंज हैं।

 आदित्यः सविता सूर्यः खगः पूषा गर्भास्तिमान्।

सुवर्णसदृशो भानुहिरण्यरेता दिवाकरः।।10।।

हरिदश्वः सहस्रार्चिः सप्तसप्तिर्मरीचिमान्।

तिमिरोन्मथनः शम्भूस्त्ष्टा मार्तण्डकोंऽशुमान्।।11।।

हिरण्यगर्भः शिशिरस्तपनोऽहरकरो रविः।

अग्निगर्भोऽदितेः पुत्रः शंखः शिशिरनाशनः।।12।।

व्योमनाथस्तमोभेदी ऋम्यजुःसामपारगः।

घनवृष्टिरपां मित्रो विन्ध्यवीथीप्लवंगमः।।13।।

आतपी मण्डली मृत्युः पिंगलः सर्वतापनः।

कविर्विश्वो महातेजा रक्तः सर्वभवोदभवः।।14।।

नक्षत्रग्रहताराणामधिपो विश्वभावनः।

तेजसामपि तेजस्वी द्वादशात्मन् नमोऽस्तु ते।।15।।

भावार्थ — इन्हीं के नाम आदित्य (अदितिपुत्र), सविता (जगत को उत्पन्न करने वाले), सूर्य (सर्वव्यापक), खग (आकाश में विचरने वाले), पूषा (पोषण करने वाले), गभस्तिमान् (प्रकाशमान), सुर्वणसदृश, भानु (प्रकाशक), हिरण्यरेता (ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति के बीज), दिवाकर (रात्रि का अन्धकार दूर करके दिन का प्रकाश फैलाने वाले), हरिदश्व (दिशाओं में व्यापक अथवा हरे रंग के घोड़े वाले),

सहस्रार्चि (हजारों किरणों से सुशोभित), तिमिरोन्मथन (अन्धकार का नाश करने वाले), शम्भू (कल्याण के उदगमस्थान), त्वष्टा (भक्तों का दुःख दूर करने अथवा जगत का संहार करने वाले), अंशुमान (किरण धारण करने वाले), हिरण्यगर्भ (ब्रह्मा), शिशिर (स्वभाव से ही सुख देने वाले), तपन (गर्मी पैदा करने वाले), अहरकर (दिनकर), रवि (सबकी स्तुति के पात्र),

अग्निगर्भ (अग्नि को गर्भ में धारण करने वाले), अदितिपुत्र, शंख (आनन्दस्वरूप एवं व्यापक), शिशिरनाशन (शीत का नाश करने वाले), व्योमनाथ (आकाश के स्वामी), तमोभेदी (अन्धकार को नष्ट करने वाले), ऋग, यजुः और सामवेद के पारगामी, घनवृष्टि (घनी वृष्टि के कारण), अपां मित्र (जल को उत्पन्न करने वाले),

विन्ध्यीथीप्लवंगम (आकाश में तीव्रवेग से चलने वाले), आतपी (घाम उत्पन्न करने वाले), मण्डली (किरणसमूह को धारण करने वाले), मृत्यु (मौत के कारण), पिंगल (भूरे रंग वाले), सर्वतापन (सबको ताप देने वाले), कवि (त्रिकालदर्शी), विश्व (सर्वस्वरूप), महातेजस्वी, रक्त (लाल रंगवाले),

सर्वभवोदभव (सबकी उत्पत्ति के कारण), नक्षत्र, नवग्रह और तारों के स्वामी, विश्वभावन (जगत की रक्षा करने वाले), तेजस्वियों में भी अति तेजस्वी तथा द्वादशात्मा (बारह स्वरूपों में अभिव्यक्त) हैं। इन सभी नामों से प्रसिद्ध हे सूर्यदेव ! आपको नमस्कार है।

 नमः पूर्वाय गिरये पश्चिमायाद्रये नमः।

ज्योतिर्गणानां पतये दिनाधिपतये नमः।।16।।

भावार्थ — पूर्वगिरी उदयाचल तथा पश्चिमगिरि अस्ताचल के रूप में आपको नमस्कार है। ज्योतिर्गणों (ग्रहों और तारों) के स्वामी तथा दिन के अधिपति आपको प्रणाम है।

 जयाय जयभद्राय हर्यश्वाय नमो नमः।

नमो नमः सहस्रांशो आदित्याय नमो नमः।।17।।

भावार्थ — आप जय स्वरूप तथा विजय और कल्याण के दाता है। आपके रथ में हरे रंग के घोड़े जुते रहते हैं। आपको बारंबार नमस्कार है। सहस्रों किरणों से सुशोभित भगवान सूर्य ! आपको बारंबार प्रणाम है। आप अदिति के पुत्र होने के कारण आदित्य नाम से प्रसिद्ध है, आपको नमस्कार है।

 नम: उग्राय वीराय सारंगाय नमो नमः।

नमः पद्मप्रबोधाय प्रचण्डाय नमोऽस्तु ते।।18।।

भावार्थ — (परात्पर रूप में) आप ब्रह्मा, शिव और विष्णु के भी स्वामी हैं। सूर आपकी संज्ञा हैं, यह सूर्यमण्डल आपका ही तेज है, आप प्रकाश से परिपूर्ण हैं, सबको स्वाहा कर देने वाला अग्नि आपका ही स्वरूप है, आप रौद्ररूप धारण करने वाले हैं, आपको नमस्कार है।

ब्रह्मेशानाच्युतेशाय सुरायादित्यवर्चसे ।

भास्वते सर्वभक्षाय रौद्राय वपुषे नम: ॥19॥

भावार्थ — आप ब्रह्मा, शिव और विष्णु के भी स्वामी हैं। सूर आपकी संज्ञा हैं, यह सूर्यमण्डल आपका ही तेज है, आप प्रकाश से परिपूर्ण हैं, सबको स्वाहा कर देने वाला अग्नि आपका ही स्वरूप है, आप रौद्ररूप धारण करने वाले हैं, आपको नमस्कार है।

तमोघ्नाय हिमघ्नाय शत्रुघ्नायामितात्मने।

कृतघ्नघ्नाय देवाय ज्योतिषां पतये नमः।।20।।

भावार्थ — आप अज्ञान और अन्धकार के नाशक, जड़ता एवं शीत के निवारक तथा शत्रु का नाश करने वाले हैं, आपका स्वरूप अप्रमेय है। आप कृतघ्नों का नाश करने वाले, सम्पूर्ण ज्योतियों के स्वामी और देवस्वरूप हैं, आपको नमस्कार है।

तप्तचामीकराभाय हस्ये विश्वकर्मणे।

नमस्तमोऽभिनिघ्नाय रुचये लोकसाक्षिणे।।21।।

भावार्थ — आपकी प्रभा तपाये हुए सुवर्ण के समान है, आप हरि (अज्ञान का हरण करने वाले) और विश्वकर्मा (संसार की सृष्टि करने वाले) हैं, तम के नाशक, प्रकाशस्वरूप और जगत के साक्षी हैं, आपको नमस्कार है।

 नाशयत्येष वै भूतं तमेव सृजति प्रभुः।

पायत्येष तपत्येष वर्षत्येष गभस्तिभिः।।22।।

भावार्थ — रघुनन्दन ! ये भगवान सूर्य ही सम्पूर्ण भूतों का संहार, सृष्टि और पालन करते हैं। ये ही अपनी किरणों से गर्मी पहुँचाते और वर्षा करते हैं।

 एष सुप्तेषु जागर्ति भूतेषु परिनिष्ठितः।

एष चैवाग्निहोत्रं च फलं चैवाग्निहोत्रिणाम्।।23।।

भावार्थ — ये सब भूतों में अन्तर्यामीरूप से स्थित होकर उनके सो जाने पर भी जागते रहते हैं। ये ही अग्निहोत्र तथा अग्निहोत्री पुरुषों को मिलने वाले फल हैं।

 देवाश्च क्रतवश्चैव क्रतूनां फलमेव च।

यानि कृत्यानि लोकेषु सर्वेषु परमप्रभुः।।24।।

भावार्थ — (यज्ञ में भाग ग्रहण करने वाले) देवता, यज्ञ और यज्ञों के फल भी ये ही हैं। सम्पूर्ण लोकों में जितनी क्रियाएँ होती हैं, उन सबका फल देने में ये ही पूर्ण समर्थ हैं।

 एनमापत्सु कृच्छ्रेषु कान्तारेषु भयेषु च।

कीर्तयन् पुरुषः कश्चिन्नावसीदति राघव।।25।।

भावार्थ — राघव ! विपत्ति में, कष्ट में, दुर्गम मार्ग में तथा और किसी भय के अवसर पर जो कोई पुरुष इन सूर्यदेव का कीर्तन करता है, उसे दुःख नहीं भोगना पड़ता।

पूजयस्वैनमेकाग्रो देवदेवं जगत्पतिम्।

एतत् त्रिगुणितं जप्तवा युद्धेषु विजयिष्ति।।26।।

भावार्थ — इसलिए तुम एकाग्रचित होकर इन देवाधिदेव जगदीश्वर की पूजा करो। इस आदित्य हृदय का तीन बार जप करने से तुम युद्ध में विजय पाओगे।

अस्मिन् क्षणे महाबाहो रावणं त्वं जहिष्यसि।

एवमुक्त्वा ततोऽगस्त्यो जगाम स यथागतम्।।27।।

भावार्थ — हे महाबाहो ! तुम इसी क्षण रावण का वध कर सकोगे।’ यह कहकर अगस्त्य जी जैसे आये थे, उसी प्रकार चले गये।

 एतच्छ्रुत्वा महातेजा, नष्टशोकोऽभवत् तदा।

धारयामास सुप्रीतो राघवः प्रयतात्मवान्।।28।।

आदित्यं प्रेक्ष्य जप्त्वेदं परं हर्षमवाप्तवान्।

त्रिराचम्य शुचिर्भूत्वा धनुरादाय वीर्यवान्।।29।।

रावणं प्रेक्ष्य हृष्टात्मा जयार्थे समुपागमत्।

सर्वयत्नेन महता वृतस्तस्य वधेऽभवत्।।30।।

भावार्थ — उनका उपदेश सुनकर महातेजस्वी श्रीरामचन्द्रजी का शोक दूर हो गया। उन्होंने प्रसन्न होकर शुद्धचित्त से आदित्यहृदय को धारण किया और तीन बार आचमन करके शुद्ध हो भगवान सूर्य की ओर देखते हुए इसका तीन बार जप किया।

इससे उन्हें बड़ा हर्ष हुआ। फिर परम पराक्रमी रघुनाथजी ने धनुष उठाकर रावण की ओर देखा और उत्साहपूर्वक विजय पाने के लिए वे आगे बढ़े। उन्होंने पूरा प्रयत्न करके रावण के वध का निश्चय किया।

अथ रविरवदन्निरीक्ष्य रामं मुदितनाः परमं प्रहृष्यमाणः।

निशिचरपतिसंक्षयं विदित्वा सुरगणमध्यगतो वचस्त्वरेति।।31।।

भावार्थ — उस समय देवताओं के मध्य में खड़े हुए भगवान सूर्य ने प्रसन्न होकर श्रीरामचन्द्रजी की ओर देखा और निशाचराज रावण के विनाश का समय निकट जानकर हर्षपूर्वक कहा ‘रघुनन्दन ! अब जल्दी करो’।

इत्यार्षे श्रीमद्रामायणे वाल्मीकीये आदिकाव्ये युद्धकाण्डे पंचाधिकशततमः सर्गः।

आदित्य हृदय स्तोत्र से संबंधित प्रश्न तथा उनके उत्तर

प्र0–आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ कैसे करें ?

उ0– आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ रविवार (Sunday) के दिन प्रात:काल के समय करना उत्तम माना जाता है। सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नानादि से निवृत्त हो जाएं।  साफ वस्त्र धारण करके तांबे के कलश में जल, रोली अथवा चंदन तथा लाल पुष्प डालकर सूर्य देव को अर्घ्य दें तत्पश्चात श्री आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ करें।

प्र0– क्या हम सूर्य ग्रहण के दौरान आदित्य हृदयम पढ़ सकते हैं?

उ0–  मन्त्र साधना में ग्रहण काल ​​में किये जाने वाले रहस्य पुरश्चरण का वर्णन है। ऐसा माना जाता है कि ग्रहण की इस अवधि के दौरान की गई कोई भी मंत्र साधना गिनती की संख्या सहित विस्तृत अनुष्ठानों में जाने की आवश्यकता के बिना फलित होती है। अत: इस अवधि में भी स्तोत्र पाठ किया जा सकता है।

॥इति॥

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Aditya Hrudayam Lyrics in English

Aditya Hrudayam Stotram is a hymn addressed to the Sun God, Lord Surya Deva or Aditya. Lord Surya deva is also called Aditya, which literally means “Son of Aditi”. Aditya Hridaya stotra is about Lord Surya being the Primal force in the Universe. It is about Lord Surya or Aditya being the primal force in the entire universe, and it is also a lesson on how to defeat an enemy by worshipping Surya deva. When Lord Rama got tired in the battle, Sage Agastya came to the battlefield and preached Aditya Hrudayam to Lord Rama. After this teaching, Lord Rama kills Ravanasura. Aditya Hrudayam is found in the Yuddha kanda in the Valmiki Ramayana. 

Tato yuddhapariśrāntaṃ samare chintayā sthitam

rāvaṇaṃ jāgrato dṛṣṭvā yuddhāya samupasthitam || 1

Meaning: Beholding Sri Rama, Rama being exhausted in the battle was absorbed in the deep thought in the battlefield by seeing Ravana in-front of Him, having appeared to fight, fully prepared for the war.

Daivataiśca samāgamya draṣṭumabhyāgato raṇam

upāgamyābravīdrāmamagastyo bhagavān ṛṣiḥ || 2

Meaning: The great and glorious Rishi, Sage Agastya, who had come in the company of Devas (Gods) to witness the encounter now spoke to Rama as follows:

Rāma rāma mahābāho śṛṇu guhyaṃ sanātanam

yena sarvānarīn vatsa samare vijayiṣyasi || 3

Meaning: O Rama, O Rama, O with mighty Arms; Listen carefully to this eternal secret by which, ‘O my child, you will be victorious against all enemies in the battle,

Adityahṛdayaṃ puṇyaṃ sarvaśatruvināśanam

jayāvahaṃ japennityam akṣayyaṃ paramaṃ śivam || 4

Meaning: Aditya Hridayam (Hymns of the Sun God), which is Sacred and Destroyer of all Enemies brings Victory if recited daily, you will be victorious and gain undecaying auspiciousness of the highest kind.

Sarvamaṅgalamāṅgalyaṃ sarvapāpapraṇāśanam

cintāśokapraśamanam āyurvardhanamuttamam || 5

Meaning: He is the bestower of all-round Welfare (Sarva Mangala Mangalyam), and the remover of all Sins (Sarva Papa Pranashanam), He heals the worries and griefs (Chinta Shoka Prashamanam) and increases the Life Span (Ayur Vardhanam Uttamam)

Raśmimaṃtaṃ samudyantaṃ devāsuranamaskṛtam

pūjayasva vivasvantaṃ bhāskaraṃ bhuvaneśvaram || 6

Meaning: The Sun is filled with Rays (Rashmimanta) and rises equally for all, spreading His illumination (Samudyanta); He is reverentially saluted by both the Devas and the Asuras (Deva Asura Namaskritam), The Sun is to be worshipped who shines forth (Vivasvanta) creating His own Light (Bhaskara), and who is the Lord of the Universe (Bhuvaneshwaram),

Sarvadevātmako hyeṣa tejasvī raśmibhāvanaḥ

eṣa devāsuragaṇām̐llokān pāti gabhastibhiḥ || 7

Meaning: He carries the essence of splendor of all the Devas (Sarva Deva Atmaka), and is filled with Fiery Energy (Tejasvi) which He manifests in His Rays (Rashmi Bhavana), He protects the Lokas of the Devas and Asuras by His Rays (filled with Tejas)

Eṣa brahmā ca viṣṇuśca śivaḥ skandaḥ prajāpatiḥ

mahendro dhanadaḥ kālo yamaḥ somo hyapāṃ patiḥ || 8

Meaning: He is Brahma, and He is Vishnu; He is Shiva and He is Skanda; He is Prajapati,

He is Mahendra (Indra Deva), He is Dhanada (God of Wealth), He is Kala (God of Time), He is Yama (God of Death), He is Soma (Moon God) and he indeed is the Lord of Water (Varuna Deva),

Pitaro vasavaḥ sādhyā hyaśvinau maruto manuḥ

vāyurvahniḥ prajāprāṇa ṛtukartā prabhākaraḥ || 9

Meaning: He indeed is the ancestor of all, including Vasus, Sadhyas, Ashwins, Maruts and Manu, He is the Wind (Vayu) and the Fire (Vahni) outside, and resides as the Prana of his offsprings inside; He is the creator of different Seasons (Ritus) and fills everything with Splendour,

ādityaḥ savitā sūryaḥ khagaḥ pūṣā gabhastimān

suvarṇasadṛśo bhānurhiraṇyaretā divākaraḥ ||10

Meaning: He is the son of Aditi, Savitha (bright), Soorya (supreme light), Khaga (bird, travels on the sky,), feeds the world by rain, gabhastiman (possessed of rays) Golden colored (beautiful, wise), always shining, he is the creator, the day starts with him).

Haridaśvaḥ sahasrārciḥ saptasaptirmarīcimān

timironmathanaḥ śambhustvaṣṭā mārtāṇḍa aṃśumān || 11

Meaning: Thousands of Light Rays come out of Him like Reddish-Yellow Horses; His Seven Horses (Seven Colours of Light) producing the Light. He removes the Darkness and makes us Joyful; He floats in the Sky like a huge Bird (Martanda), the Bird of Light, the Bird which emits Light

Hiraṇyagarbhaḥ śiśirastapano bhāskaro raviḥ

agnigarbho’diteḥ putraḥ śaṅkhaḥ śiśiranāśanaḥ || 12

Meaning: His Golden Womb (Hiranya Garbha) burns the Dew and making Light (Bhaskara) shines in the sky as the Sun (Ravi). The Womb of Fire (Agni Garbha) of the Son of Aditi sounds His Conch, which awakens us and destroys our Frigidity (Inertness).

Vyomanāthastamobhedī ṛgyajuḥsāmapāragaḥ

ghanavṛṣṭirapāṃ mitro vindhyavīthīplavaṅgamaḥ || 13

Meaning: He is the lord of the space and ruler of the sky, dispeller of darkness, the knower of Rig, Yajur, and Sama (Vedas). He is the cause of Heavy Rains and is the friend of the Water; He crosses the Vindhya mountains by jumps (i.e. moves speedily across the Sky)

Atapī maṇḍalī mṛtyuḥ piṅgalaḥ sarvatāpanaḥ

kavirviśvo mahātejāḥ raktaḥ sarvabhavodbhavaḥ || 14

Meaning: He is a producer of heat, his form is circular, he is like an incarnation of Death (Mrityu), having Reddish Brown color and burning everything within it. He is a Poet who creates the World by supplying energy for activities; His great Fiery Energy, Red in color, gives rise to this entire Worldly Existence

Nakṣatragrahatārāṇāmadhipo viśvabhāvanaḥ

tejasāmapi tejasvī dvādaśātman namo’stu te || 15

Meaning: He is the presiding Deity of Constellations (Nakshatras), Planets (Graha) and Stars (Tara), and conceives the whole Universe in his mind. He has more Energy of Splendour (Tejas) than even the most Energetic; Salutations to You who has twelve Atmans (12 Adityas).

Namaḥ pūrvāya giraye paścimāyādraye namaḥ

jyotirgaṇānāṃ pataye dinādhipataye namaḥ || 16

Meaning: Salutations to him in the Eastern Mountains; Salutations to him in the Western Mountains. Salutations to the Lord of the group of Luminaries (Jyotirgana) and the Lord of the Day.

Jayāya jayabhadrāya haryaśvāya namo namaḥ

namo namaḥ sahasrāṃśo ādityāya namo namaḥ || 17

Meaning: Pray him who has green horses and the bestower of victory, auspiciousness and prosperity. He has thousand rays and who has power to attract all towards him).

Nama ugrāya vīrāya sāraṅgāya namo namaḥ

namaḥ padmaprabodhāya mārtāṇḍāya namo namaḥ || 18

Meaning: Salutations to him who is terrible and fierce one to the sinners, to him who is the hero (controlled senses); one who travels fast, Salutations to the one whose appearance makes the lotus blossom. Salutations to the son of Mrukanda Maharshi).

Brahmeśānācyuteśāya sūryāyādityavarcase

bhāsvate sarvabhakṣāya raudrāya vapuṣe namaḥ || 19

Meaning: Salutations to the Lord of Brahma, Shiva, and Vishnu, Salutations to Surya the sun god, who (by his power and effulgence) is both the illuminator and devourer of all and is of a form that is fierce like Rudra.

Tamoghnāya himaghnāya śatrughnāyāmitātmane

kṛtaghnaghnāya devāya jyotiṣāṃ pataye namaḥ || 20

Meaning: Salutations to the dispeller of darkness, the destroyer of cold, fog and snow, the exterminator of foes; the one whose extent is immeasurable. Salutations also to the annihilator of the ungrateful and to the Lord of all the stellar bodies, who is the first amongst all the lights of the Universe.

Taptacāmīkarābhāya vahnaye viśvakarmaṇe

namastamo’bhinighnāya rucaye lokasākṣiṇe || 21

Meaning: He who has the splendor of Molten Gold, Who is the Fire giving Energy for all the Activities of the World. Salutations to Him Who subdues the Darkness, Who has a Beautiful Splendour, and Who is the witness of the World.

Nāśayatyeṣa vai bhūtaṃ tadeva sṛjati prabhuḥ

pāyatyeṣa tapatyeṣa varṣatyeṣa gabhastibhiḥ || 22

Meaning: He indeed is the Lord Destroying the Beings, and He indeed is the Lord Creating the Beings. He drinks the waters with his rays, heats them up, and sends them down as rain again.

Eṣa supteṣu jāgarti bhūteṣu pariniṣṭhitaḥ

eṣa evāgnihotraṃ ca phalaṃ caivāgnihotriṇām || 23

Meaning: He who abides in the heart of all beings keeping awake when they are asleep. Verily he is the fruit of the Agnihotra which is sought after by the Agnihotrins (Performers of the Agnihotra).

Vedāśca kratavaścaiva kratūnāṃ phalameva ca

yāni kṛtyāni lokeṣu sarva eṣa raviḥ prabhuḥ || 24

Meaning: He indeed is the Vedic Sacrifice, and He indeed is the Fruit of those Sacrifices. Whatever works are to be performed in the World, He, the Ravi (Sun God) is the Lord of all those (Being the Power behind).

Enamāpatsu kṛcchreṣu kāntāreṣu bhayeṣu ca

kīrtayan puruṣaḥ kaścinnāvasīdati rāghava || 25

Meaning: Listen Oh Oh Raghava, scion of the Raghu dynasty, any person, singing the glories of Surya in great difficulties, during affliction, while lost in the wilderness, and when beset with fear, will not come to grief (or loose heart).

Pūjayasvainamekāgro devadevaṃ jagatpatim

etat triguṇitaṃ japtvā yuddheṣu vijayiṣyasi || 26

Meaning: By worshipping Him with one-pointed Devotion, by worshipping that Lord of the Devas Who is the Master of the Universe, by repeating Aditya Hridayam three times, You will be victorious in this Battle (O Rama),

Asmin kṣaṇe mahābāho rāvaṇaṃ tvaṃ vadhiṣyasi

evamuktvā tadāgastyo jagāma ca yathāgatam || 27

Meaning: O mighty-armed one, you shall triumph over Ravana this very moment. Having said thus, sage Agastya then went back in the manner he came

Etacchrutvā mahātejā naṣṭaśoko’bhavattadā

dhārayāmāsa suprīto rāghavaḥ prayatātmavān || 28

Meaning: Hearing Aditya Hridayam, the great warrior Sri Rama became free from all worries. Raghava, of Pious heart, then assumed a delightful appearance.

Adityaṃ prekṣya japtvā tu paraṃ harṣamavāptavān

trirācamya śucirbhūtvā dhanurādāya vīryavān || 29

Meaning: Looking at the Sun with devotion, and reciting Aditya Hridayam, Lord Rama became very Happy. Sipping Water three times and becoming purified, the valiant one, took up his Bow.

Rāvaṇaṃ prekṣya hṛṣṭātmā yuddhāya samupāgamat

sarvayatnena mahatā vadhe tasya dhṛto’bhavat || 30

Meaning: Lord Rama thus cheered, seeing Ravana coming to fight, put forth all his effort with a determination to defeat him.

Atha raviravadannirīkṣya rāmaṃ

muditamanāḥ paramaṃ prahṛṣyamāṇaḥ

niśicarapatisaṃkṣayaṃ viditvā

suragaṇamadhyagato vacastvareti || 31

Meaning: (Then Aditya surrounded with all Gods appears and blesses Rama with great mental and physical strength and ordered to kill Ravana).

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