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 Durga Chalisa

दुर्गा चालीसा पाठ | Durga Chalisa lyrics| Durga Chalisa In Hindi

दुर्गा चालीसा एक भक्तिपूर्ण स्तोत्र है जो हिंदू धर्म में माता दुर्गा को समर्पित है। इसमें 40 छंदों (चालीसा) के द्वारा माता दुर्गा se आशीर्वाद की मंगलकामना की जाती है।दुर्गा चालीसा देवी दुर्गा देवी की चालीस छंदों की प्रार्थना है। यह अपने आरंभिक छंद “नमो नमो दुर्गे” से भी बहुत लोकप्रिय है। इस प्रार्थना में देवी दुर्गा के अनेक कार्यों और गुणों की स्तुति की जाती है। कई लोग प्रतिदिन दुर्गा चालीसा का जप करते हैं, और कई अन्य नवरात्रि के दौरान 9 दिनों तक अत्यधिक भक्ति के साथ दुर्गा चालीसा का पाठ करते हैं। कहा जाता है कि भक्ति भाव से दुर्गा चालीसा का पाठ करने से मन को शांति, साहस, शत्रुओं पर विजय और आर्थिक संकट से मुक्ति मिलती है।

श्री दुर्गा चालीसा

नमो नमो दुर्गे सुख करनी। नमो नमो दुर्गे दुःख हरनी॥ ( 1 )

निरंकार है ज्योति तुम्हारी। तिहूँ लोक फैली उजियारी॥ ( 2 )

शशि ललाट मुख महाविशाला। नेत्र लाल भृकुटि विकराला॥ ( 3 )

रूप मातु को अधिक सुहावे। दरश करत जन अति सुख पावे॥ ( 4 )

तुम संसार शक्ति लै कीना। पालन हेतु अन्न धन दीना॥ ( 5 )

अन्नपूर्णा हुई जग पाला। तुम ही आदि सुन्दरी बाला॥ ( 6 )

प्रलयकाल सब नाशन हारी। तुम गौरी शिवशंकर प्यारी॥ ( 7 )

शिव योगी तुम्हरे गुण गावें। ब्रह्मा विष्णु तुम्हें नित ध्यावें॥  ( 8 )

रूप सरस्वती को तुम धारा। दे सुबुद्धि ऋषि मुनिन उबारा॥ ( 9 )

धरयो रूप नरसिंह को अम्बा। परगट भई फाड़कर खम्बा॥ ( 10 )

रक्षा करि प्रह्लाद बचायो। हिरण्याक्ष को स्वर्ग पठायो॥ ( 11 )

लक्ष्मी रूप धरो जग माहीं। श्री नारायण अंग समाहीं॥ ( 12 )

क्षीरसिन्धु में करत विलासा। दयासिन्धु दीजै मन आसा॥ ( 13 )

हिंगलाज में तुम्हीं भवानी। महिमा अमित न जात बखानी॥ ( 14 )

मातंगी अरु धूमावति माता। भुवनेश्वरी बगला सुख दाता॥ ( 15 )

श्री भैरव तारा जग तारिणी। छिन्न भाल भव दुःख निवारिणी॥ ( 16 )

केहरि वाहन सोह भवानी। लांगुर वीर चलत अगवानी॥ ( 17 )

कर में खप्पर खड्ग विराजै ।जाको देख काल डर भाजै॥ ( 18 )

सोहै अस्त्र और त्रिशूला। जाते उठत शत्रु हिय शूला॥ ( 19 )

नगरकोट में तुम्हीं विराजत। तिहुँलोक में डंका बाजत॥ ( 20 )

शुम्भ निशुम्भ दानव तुम मारे। रक्तबीज शंखन संहारे॥ ( 21 )

महिषासुर नृप अति अभिमानी। जेहि अघ भार मही अकुलानी॥ ( 22 )

रूप कराल कालिका धारा। सेन सहित तुम तिहि संहारा॥ ( 23 )

परी गाढ़ सन्तन र जब जब। भई सहाय मातु तुम तब तब॥ (24 )

अमरपुरी अरु बासव लोका। तब महिमा सब रहें अशोका॥ (25 )

ज्वाला में है ज्योति तुम्हारी। तुम्हें सदा पूजें नरनारी॥ (26 )

प्रेम भक्ति से जो यश गावें। दुःख दारिद्र निकट नहिं आवें॥ ( 27 )

ध्यावे तुम्हें जो नर मन लाई। जन्ममरण ताकौ छुटि जाई॥ ( 28 )

जोगी सुर मुनि कहत पुकारी।योग न हो बिन शक्ति तुम्हारी॥ ( 29 )

शंकर आचारज तप कीनो। काम अरु क्रोध जीति सब लीनो॥ ( 30 )

निशिदिन ध्यान धरो शंकर को। काहु काल नहिं सुमिरो तुमको॥ ( 31 )

शक्ति रूप का मरम न पायो। शक्ति गई तब मन पछितायो॥ ( 32 )

शरणागत हुई कीर्ति बखानी। जय जय जय जगदम्ब भवानी॥ ( 33 )

भई प्रसन्न आदि जगदम्बा। दई शक्ति नहिं कीन विलम्बा॥ ( 34 )

मोको मातु कष्ट अति घेरो। तुम बिन कौन हरै दुःख मेरो॥ ( 35 )

आशा तृष्णा निपट सतावें। मोह मदादिक सब बिनशावें॥ ( 36 )

शत्रु नाश कीजै महारानी। सुमिरौं इकचित तुम्हें भवानी॥ ( 37 )

करो कृपा हे मातु दयाला। ऋद्धिसिद्धि दै करहु निहाला॥ ( 38 )

जब लगि जिऊँ दया फल पाऊँ । तुम्हरो यश मैं सदा सुनाऊँ ॥ ( 39 )

श्री दुर्गा चालीसा जो कोई गावै। सब सुख भोग परमपद पावै॥ ( 40 )

देवीदास शरण निज जानी। कहु कृपा जगदम्ब भवानी॥

” नवरात्र के नौ दिनों तक माँ दुर्गा की सभी मनोरथ को पूरी करने वाली श्रीदुर्गा चालीसा का पाठ करने से शत्रुओं से मुक्ति, इच्छा पूर्ति सहित अनेक कामनाएं पूरी हो जाती है। “

टी-सीरीज़ में अनुराधा पौडवाल जी की आवाज़ में स्तुति। Durga Chalisa.

दुर्गा चालीसा, दुर्गा चालीसा हिंदी अर्थ सहित : 

॥ चौपाई॥

नमो नमो दुर्गे सुख करनी।

नमो नमो अम्बे दुख हरनी॥

सुख प्रदान करने वाली मां दुर्गा को मेरा नमस्कार है। दुख हरने वाली मां श्री अम्बा को मेरा नमस्कार है।

निराकार है ज्योति तुम्हारी।

तिहूं लोक फैली उजियारी॥

हिंदी में अर्थ – आपकी ज्योति का प्रकाश असीम है, जिसका तीनों लोको (पृथ्वी, आकाश, पाताल) में प्रकाश फैल रहा है।

शशि ललाट मुख महाविशाला।

नेत्र लाल भृकुटी विकराला॥

हिंदी में अर्थ – आपका मस्तक चन्द्रमा के समान और मुख अति विशाल है। नेत्र रक्तिम एवं भृकुटियां विकराल रूप वाली हैं।

रूप मातु को अधिक सुहावे।

दरश करत जन अति सुख पावे॥

हिंदी में अर्थ – मां दुर्गा का यह रूप अत्यधिक सुहावना है। इसका दर्शन करने से भक्तजनों को परम सुख मिलता है।

तुम संसार शक्ति लय कीना।

पालन हेतु अन्न धन दीना॥

हिंदी में अर्थ – संसार के सभी शक्तियों को आपने अपने में समेटा हुआ है। जगत के पालन हेतु अन्न और धन प्रदान किया है।

अन्नपूर्णा हुई जग पाला।

तुम ही आदि सुन्दरी बाला॥

हिंदी में अर्थ – अन्नपूर्णा का रूप धारण कर आप ही जगत पालन करती हैं और आदि सुन्दरी बाला के रूप में भी आप ही हैं।

प्रलयकाल सब नाशन हारी।

तुम गौरी शिवशंकर प्यारी॥

हिंदी में अर्थ – प्रलयकाल में आप ही विश्व का नाश करती हैं। भगवान शंकर की प्रिया गौरी-पार्वती भी आप ही हैं।

शिव योगी तुम्हरे गुण गावें।

ब्रह्मा विष्णु तुम्हें नित ध्यावें॥

हिंदी में अर्थ – शिव व सभी योगी आपका गुणगान करते हैं। ब्रह्मा-विष्णु सहित सभी देवता नित्य आपका ध्यान करते हैं।

रूप सरस्वती को तुम धारा।

दे सुबुद्धि ऋषि मुनिन उबारा॥

हिंदी में अर्थ – आपने ही मां सरस्वती का रूप धारण कर ऋषि-मुनियों को सद्बुद्धि प्रदान की और उनका उद्धार किया।

धरा रूप नरसिंह को अम्बा।

प्रकट हुई फाड़कर खम्बा॥

हिंदी में अर्थ – हे अम्बे माता! आप ही ने श्री नरसिंह का रूप धारण किया था और खम्बे को चीरकर प्रकट हुई थीं।

रक्षा करि प्रहलाद बचायो।

हिरणाकुश को स्वर्ग पठायो॥

हिंदी में अर्थ – आपने भक्त प्रहलाद की रक्षा करके हिरण्यकश्यप को स्वर्ग प्रदान किया, क्योकिं वह आपके हाथों मारा गया।

लक्ष्मी रूप धरो जग माहीं।

श्री नारायण अंग समाहीं॥

हिंदी में अर्थ – लक्ष्मीजी का रूप धारण कर आप ही क्षीरसागर में श्री नारायण के साथ शेषशय्या पर विराजमान हैं।

क्षीरसिन्धु में करत विलासा।

दयासिन्धु दीजै मन आसा॥

हिंदी में अर्थ – क्षीरसागर में भगवान विष्णु के साथ विराजमान हे दयासिन्धु देवी! आप मेरे मन की आशाओं को पूर्ण करें।

हिंगलाज में तुम्हीं भवानी।

महिमा अमित न जात बखानी॥

हिंदी में अर्थ – हिंगलाज की देवी भवानी के रूप में आप ही प्रसिद्ध हैं। आपकी महिमा का बखान नहीं किया जा सकता है।

मातंगी धूमावति माता।

भुवनेश्वरि बगला सुखदाता॥

हिंदी में अर्थ – मातंगी देवी और धूमावाती भी आप ही हैं भुवनेश्वरी और बगलामुखी देवी के रूप में भी सुख की दाता आप ही हैं।

श्री भैरव तारा जग तारिणि।

छिन्न भाल भव दुख निवारिणि॥

हिंदी में अर्थ – श्री भैरवी और तारादेवी के रूप में आप जगत उद्धारक हैं। छिन्नमस्ता के रूप में आप भवसागर के कष्ट दूर करती हैं।

केहरि वाहन सोह भवानी।

लांगुर वीर चलत अगवानी॥

हिंदी में अर्थ – वाहन के रूप में सिंह पर सवार हे भवानी! लांगुर (हनुमान जी) जैसे वीर आपकी अगवानी करते हैं।

कर में खप्पर खड्ग विराजे।

जाको देख काल डर भाजे॥

हिंदी में अर्थ – आपके हाथों में जब कालरूपी खप्पर व खड्ग होता है तो उसे देखकर काल भी भयग्रस्त हो जाता है।

सोहे अस्त्र और त्रिशूला।

जाते उठत शत्रु हिय शूला॥

हिंदी में अर्थ – हाथों में महाशक्तिशाली अस्त्र-शस्त्र और त्रिशूल उठाए हुए आपके रूप को देख शत्रु के हृदय में शूल उठने लगते है।

नगरकोट में तुम्हीं विराजत।

तिहूं लोक में डंका बाजत॥

हिंदी में अर्थ – नगरकोट वाली देवी के रूप में आप ही विराजमान हैं। तीनों लोकों में आपके नाम का डंका बजता है।

शुम्भ निशुम्भ दानव तुम मारे।

रक्तबीज शंखन संहारे॥

हिंदी में अर्थ – हे मां! आपने शुम्भ और निशुम्भ जैसे राक्षसों का संहार किया व रक्तबीज (शुम्भ-निशुम्भ की सेना का एक राक्षस जिसे यह वरदान प्राप्त था की उसके रक्त की एक बूंद जमीन पर गिरने से सैंकड़ों राक्षस पैदा हो जाएंगे) तथा शंख राक्षस का भी वध किया।

महिषासुर नृप अति अभिमानी।

जेहि अघ भार मही अकुलानी॥

हिंदी में अर्थ – अति अभिमानी दैत्यराज महिषासुर के पापों के भार से जब धरती व्याकुल हो उठी।

रूप कराल कालिका धारा।

सेन सहित तुम तिहि संहारा॥

हिंदी में अर्थ – तब काली का विकराल रूप धारण कर आपने उस पापी का सेना सहित सर्वनाश कर दिया।

परी गाढ़ सन्तन पर जब जब।

भई सहाय मातु तुम तब तब॥

हिंदी में अर्थ – हे माता! संतजनों पर जब-जब विपदाएं आईं तब-तब आपने अपने भक्तों की सहायता की है।

अमरपुरी अरु बासव लोका।

तव महिमा सब रहें अशोका॥

हिंदी में अर्थ – हे माता! जब तक ये अमरपुरी और सब लोक विधमान हैं तब आपकी महिमा से सब शोकरहित रहेंगे।

ज्वाला में है ज्योति तुम्हारी।

तुम्हें सदा पूजें नर नारी॥

हिंदी में अर्थ – हे मां! श्री ज्वालाजी में भी आप ही की ज्योति जल रही है। नर-नारी सदा आपकी पुजा करते हैं।

प्रेम भक्ति से जो यश गावे।

दुख दारिद्र निकट नहिं आवे॥

हिंदी में अर्थ – प्रेम, श्रद्धा व भक्ति सेजों व्यक्ति आपका गुणगान करता है, दुख व दरिद्रता उसके नजदीक नहीं आते।

ध्यावे तुम्हें जो नर मन लाई।

जन्म-मरण ताको छूटि जाई॥

हिंदी में अर्थ – जो प्राणी निष्ठापूर्वक आपका ध्यान करता है वह जन्म-मरण के बन्धन से निश्चित ही मुक्त हो जाता है।

जोगी सुर मुनि क़हत पुकारी।

योग न हो बिन शक्ति तुम्हारी॥

हिंदी में अर्थ – योगी, साधु, देवता और मुनिजन पुकार-पुकारकर कहते हैं की आपकी शक्ति के बिना योग भी संभव नहीं है।

शंकर आचारज तप कीनो।

काम अरु क्रोध जीति सब लीनो॥

हिंदी में अर्थ – शंकराचार्यजी ने आचारज नामक तप करके काम, क्रोध, मद, लोभ आदि सबको जीत लिया।

निशिदिन ध्यान धरो शंकर को।

काहु काल नहिं सुमिरो तुमको॥

हिंदी में अर्थ – उन्होने नित्य ही शंकर भगवान का ध्यान किया, लेकिन आपका स्मरण कभी नहीं किया।

शक्ति रूप को मरम न पायो।

शक्ति गई तब मन पछतायो॥

हिंदी में अर्थ – आपकी शक्ति का मर्म (भेद) वे नहीं जान पाए। जब उनकी शक्ति छिन गई, तब वे मन-ही-मन पछताने लगे।

शरणागत हुई कीर्ति बखानी।

जय जय जय जगदम्ब भवानी॥

हिंदी में अर्थ – आपकी शरण आकार उनहोंने आपकी कीर्ति का गुणगान करके जय जय जय जगदम्बा भवानी का उच्चारण किया।

भई प्रसन्न आदि जगदम्बा।

दई शक्ति नहिं कीन विलम्बा॥

हिंदी में अर्थ – हे आदि जगदम्बा जी! तब आपने प्रसन्न होकर उनकी शक्ति उन्हें लौटाने में विलम्ब नहीं किया।

मोको मातु कष्ट अति घेरो।

तुम बिन कौन हरै दुख मेरो॥

हिंदी में अर्थ – हे माता! मुझे चारों ओर से अनेक कष्टों ने घेर रखा है। आपके अतिरिक्त इन दुखों को कौन हर सकेगा?

आशा तृष्णा निपट सतावें।

मोह मदादिक सब विनशावें॥

हिंदी में अर्थ – हे माता! आशा और तृष्णा मुझे निरन्तर सताती रहती हैं। मोह, अहंकार, काम, क्रोध, ईर्ष्या भी दुखी करते हैं।

शत्रु नाश कीजै महारानी।

सुमिरौं इकचित तुम्हें भवानी॥

हिंदी में अर्थ – हे भवानी! मैं एकचित होकर आपका स्मरण करता हूँ। आप मेरे शत्रुओं का नाश कीजिए।

करो कृपा हे मातु दयाला।

ऋद्धि सिद्धि दे करहु निहाला॥

हिंदी में अर्थ – हे दया बरसाने वाली अम्बे मां! मुझ पर कृपा दृष्टि कीजिए और ऋद्धि-सिद्धि आदि प्रदान कर मुझे निहाल कीजिए।

जब लगि जिऊँ दया फल पाऊँ।

तुम्हरो यश मैं सदा सुनाऊँ॥

हिंदी में अर्थ – हे माता! जब तक मैं जीवित रहूँ सदा आपकी दया दृष्टि बनी रहे और आपकी यशगाथा (महिमा वर्णन) मैं सबको सुनाता रहूँ।

दुर्गा चालीसा जो नित गावै।

सब सुख भोग परम पद पावै॥

हिंदी में अर्थ – जो भी भक्त प्रेम व श्रद्धा से दुर्गा चालीसा का पाठ करेगा, सब सुखों को भोगता हुआ परमपद को प्राप्त होगा।

देविदास शरण निज जानी।

करहु कृपा जगदम्ब भवानी॥

हिंदी में अर्थ – हे जगदमबा! हे भवानी! ‘देविदास’ को अपनी शरण में जानकर उस पर कृपा कीजिए।

FAQ

FAQs for Durga Chalisa in Hindi:

1. दुर्गा चालीसा क्या है?

दुर्गा चालीसा माता दुर्गा को समर्पित एक भक्तिपूर्ण स्तोत्र है जिसमें 40 छंदों के द्वारा माता दुर्गा se आशीर्वाद की मंगलकामना की जाती है।

2. दुर्गा चालीसा का महत्व क्या है?

दुर्गा चालीसा को पढ़ने या सुनने से माता दुर्गा की कृपा प्राप्त होती है और उनकी आशीर्वाद से भक्त को सुख, समृद्धि और संकटों से मुक्ति मिलती है। यह स्तोत्र दुर्गा माता की पूजा-अर्चना का महत्वपूर्ण अंग है।

3. क्या दुर्गा चालीसा को कब और कैसे पढ़ना चाहिए?

दुर्गा चालीसा को विशेष अवसरों पर या दुर्गा पूजा के दौरान पढ़ा जाता है। आप इसे रोज़ाना पढ़ सकते हैं या माता दुर्गा की विशेष व्रतों के दिनों में पढ़ सकते हैं। पूजा के समय दुर्गा चालीसा को ध्यान देकर पढ़ना चाहिए, अगर संभव हो तो इसे गाकर पढ़ने से भी अधिक लाभ होता है।

4. क्या दुर्गा चालीसा का हिंदी अनुवाद मौजूद है?

हाँ, दुर्गा चालीसा का हिंदी में अनुवाद उपलब्ध है। आप उपरोक्त प्रश्नावली के तहत दुर्गा चालीसा का हिंदी अनुवाद पढ़ सकते हैं।

5. क्या दुर्गा चालीसा को सुनने के लिए ऑडियो उपलब्ध हैं?

हाँ, दुर्गा चालीसा के ऑडियो रूप में विभिन्न स्रोतों पर उपलब्ध हैं। आप इंटरनेट पर खोज कर या म्यूजिक स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म पर दुर्गा चालीसा की ऑडियो श्रवण कर सकते हैं।

Here are a few sources where you can find audio recordings of Durga Chalisa:

  1. YouTube: You can search for “Durga Chalisa audio” on YouTube to find various versions of Durga Chalisa sung by different artists. Here is an example link: Durga Chalisa Audio on YouTube
  2. Gaana.com: Gaana is a popular music streaming platform that offers a wide range of devotional songs, including Durga Chalisa. You can visit their website and search for “Durga Chalisa” to find multiple audio versions. Here is the link: Durga Chalisa on Gaana
  3. Wynk Music: Wynk Music is another music streaming service that provides a collection of devotional songs, including Durga Chalisa. You can visit their website or use their mobile app to search for “Durga Chalisa” and listen to the audio. Here is the link: Durga Chalisa on Wynk Music

Please note that the availability of specific audio versions may vary, and it’s recommended to explore these platforms and search for “Durga Chalisa audio” to find the most suitable version for you.

श्री लक्ष्मी चालीसा-Shri Laxmi Chalisa

संसार में सुख और ऐश्वर्य की प्राप्ति के लिए मनुष्य, देवता या दानव आदि जिनकी पूजा करते हैं, वे वास्तव में देवी भगवती महालक्ष्मीजी ही हैं, जो गरीबों के दुख दूर करती हैं और अपने माध्यम से भक्तों को धन और समृद्धि प्रदान करती हैं। अनुग्रह. आपको ऐश्वर्य और सद्गुणों से परिपूर्ण बनाता है। माता लक्ष्मीजी को धन की देवी कहा जाता है। इनकी पूजा करने से जीवन में सुख, शांति और समृद्धि आती है।

देवता हों या दानव, सभी महालक्ष्मीजी के सामने नतमस्तक होते हैं और उनसे आशीर्वाद की प्रार्थना करते हैं। गरीबों की दरिद्रता दूर करने वाली, भूखों को भोजन देने वाली और संसार को इन्द्रिय सुख देने वाली माता लक्ष्मी की महिमा अपरंपार है।

श्री लक्ष्मी चालीसा

दोहा

मातु लक्ष्मी करि कृपा करो हृदय में वास ।

मनो कामना सिद्ध कर पुरवहु मेरी आस ॥

सिंधु सुता विष्णुप्रिये नत शिर बारंबार ।

ऋद्धि सिद्धि मंगलप्रदे नत शिर बारंबार ॥ टेक ॥

सिन्धु सुता मैं सुमिरौं तोही । ज्ञान बुद्धि विद्या दो मोहि ॥

तुम समान नहिं कोई उपकारी । सब विधि पुरबहु आस हमारी ॥

जै जै जगत जननि जगदम्बा । सबके तुमही हो स्वलम्बा ॥

तुम ही हो घट घट के वासी । विनती यही हमारी खासी ॥

जग जननी जय सिन्धु कुमारी । दीनन की तुम हो हितकारी ॥

विनवौं नित्य तुमहिं महारानी । कृपा करौ जग जननि भवानी ॥

केहि विधि स्तुति करौं तिहारी । सुधि लीजै अपराध बिसारी ॥

कृपा दृष्टि चितवो मम ओरी । जगत जननि विनती सुन मोरी ॥

ज्ञान बुद्धि जय सुख की दाता । संकट हरो हमारी माता ॥

क्षीर सिंधु जब विष्णु मथायो । चौदह रत्न सिंधु में पायो ॥

चौदह रत्न में तुम सुखरासी । सेवा कियो प्रभुहिं बनि दासी ॥

जब जब जन्म जहां प्रभु लीन्हा । रूप बदल तहं सेवा कीन्हा ॥

स्वयं विष्णु जब नर तनु धारा । लीन्हेउ अवधपुरी अवतारा ॥

तब तुम प्रकट जनकपुर माहीं । सेवा कियो हृदय पुलकाहीं ॥

अपनायो तोहि अन्तर्यामी । विश्व विदित त्रिभुवन की स्वामी ॥

तुम सब प्रबल शक्ति नहिं आनी । कहँ तक महिमा कहौं बखानी ॥

मन क्रम वचन करै सेवकाई । मन-इच्छित वांछित फल पाई ॥

तजि छल कपट और चतुराई । पूजहिं विविध भाँति मन लाई ॥

और हाल मैं कहौं बुझाई । जो यह पाठ करे मन लाई ॥

ताको कोई कष्ट न होई । मन इच्छित फल पावै फल सोई ॥

त्राहि-त्राहि जय दुःख निवारिणी । त्रिविध ताप भव बंधन हारिणि ॥

जो यह चालीसा पढ़े और पढ़ावे । इसे ध्यान लगाकर सुने सुनावै ॥

ताको कोई न रोग सतावै । पुत्र आदि धन सम्पत्ति पावै ॥

पुत्र हीन और सम्पत्ति हीना । अन्धा बधिर कोढ़ी अति दीना ॥

विप्र बोलाय कै पाठ करावै । शंका दिल में कभी न लावै ॥

पाठ करावै दिन चालीसा । ता पर कृपा करैं गौरीसा ॥

सुख सम्पत्ति बहुत सी पावै । कमी नहीं काहू की आवै ॥

बारह मास करै जो पूजा । तेहि सम धन्य और नहिं दूजा ॥

प्रतिदिन पाठ करै मन माहीं । उन सम कोई जग में नाहिं ॥

बहु विधि क्या मैं करौं बड़ाई । लेय परीक्षा ध्यान लगाई ॥

करि विश्वास करैं व्रत नेमा । होय सिद्ध उपजै उर प्रेमा ॥

जय जय जय लक्ष्मी महारानी । सब में व्यापित जो गुण खानी ॥

तुम्हरो तेज प्रबल जग माहीं । तुम सम कोउ दयाल कहूँ नाहीं ॥

मोहि अनाथ की सुधि अब लीजै । संकट काटि भक्ति मोहि दीजे ॥

भूल चूक करी क्षमा हमारी । दर्शन दीजै दशा निहारी ॥

बिन दरशन व्याकुल अधिकारी । तुमहिं अक्षत दुःख सहते भारी ॥

नहिं मोहिं ज्ञान बुद्धि है तन में । सब जानत हो अपने मन में ॥

रूप चतुर्भुज करके धारण । कष्ट मोर अब करहु निवारण ॥

कहि प्रकार मैं करौं बड़ाई । ज्ञान बुद्धि मोहिं नहिं अधिकाई ॥

रामदास अब कहै पुकारी । करो दूर तुम विपति हमारी ॥

दोहा

त्राहि त्राहि दुःख हारिणी हरो बेगि सब त्रास ।

जयति जयति जय लक्ष्मी करो शत्रुन का नाश ॥

रामदास धरि ध्यान नित विनय करत कर जोर ।

मातु लक्ष्मी दास पर करहु दया की कोर ॥

                 ॥ श्री लक्ष्मीजी की आरती ॥

ॐ जय लक्ष्मी माता, मैया जय लक्ष्मी माता

तुम को निशदिन सेवत मैयाजी को निस दिन सेवत

हर विष्णु विधाता । ॐ जय लक्ष्मी माता ॥

उमा रमा ब्रह्माणी, तुम ही जग माता । ओ मैया तुम ही जग माता ।

सूर्य चन्द्र माँ ध्यावत नारद ऋषि गाता, ॐ जय लक्ष्मी माता ॥

दुर्गा रूप निरंजनि सुख सम्पति दाता, ओ मैया सुख सम्पति दाता ।

जो कोई तुम को ध्यावत ऋद्धि सिद्धि धन पाता, ॐ जय लक्ष्मी माता ॥

तुम पाताल निवासिनि तुम ही शुभ दाता, ओ मैया तुम ही शुभ दाता ।

कर्म प्रभाव प्रकाशिनि, भव निधि की दाता, ॐ जय लक्ष्मी माता ॥

जिस घर तुम रहती तहँ सब सद्गुण आता, ओ मैया सब सद्गुण आता ।

सब संभव हो जाता मन नहीं घबराता, ॐ जय लक्ष्मी माता ॥

तुम बिन यज्ञ न होते, वस्त्र न कोई पाता, ओ मैया वस्त्र न कोई पाता ।

खान पान का वैभव सब तुम से आता, ॐ जय लक्ष्मी माता ॥

शुभ गुण मंदिर सुंदर क्षीरोदधि जाता, ओ मैया क्षीरोदधि जाता ।

रत्न चतुर्दश तुम बिन कोई नहीं पाता , ॐ जय लक्ष्मी माता ॥

महा लक्ष्मीजी की आरती, जो कोई जन गाता, ओ मैया जो कोई जन गाता ।

उर आनंद समाता पाप उतर जाता , ॐ जय लक्ष्मी माता ॥

स्थिर चर जगत बचावे कर्म प्रेम ल्याता । ओ मैया जो कोई जन गाता ।

राम प्रताप मैय्या की शुभ दृष्टि चाहता, ॐ जय लक्ष्मी माता ॥

॥ इति॥

श्री लक्ष्मी चालीसा अर्थ सहित

॥दोहा॥

मातु लक्ष्मी करि कृपा, करो हृदय में वास।

मनोकामना सिद्ध करि, परुवहु मेरी आस॥

हे मां लक्ष्मी दया करके मेरे हृद्य में वास करो हे मां मेरी मनोकामनाओं को सिद्ध कर मेरी आशाओं को पूर्ण करो।

॥सोरठा॥

यही मोर अरदास, हाथ जोड़ विनती करुं।

सब विधि करौ सुवास, जय जननि जगदम्बिका॥

हे मां मेरी यही अरदास है, मैं हाथ जोड़ कर बस यही प्रार्थना कर रहा हूं हर प्रकार से आप मेरे यहां निवास करें। हे जननी, हे मां जगदम्बिका आपकी जय हो।

॥चौपाई॥

सिन्धु सुता मैं सुमिरौ तोही। ज्ञान, बुद्धि, विद्या दो मोही॥

तुम समान नहिं कोई उपकारी। सब विधि पुरवहु आस हमारी॥

जय जय जगत जननि जगदम्बा। सबकी तुम ही हो अवलम्बा॥

तुम ही हो सब घट घट वासी। विनती यही हमारी खासी॥

जगजननी जय सिन्धु कुमारी। दीनन की तुम हो हितकारी॥

हे सागर पुत्री मैं आपका ही स्मरण करता/करती हूं, मुझे ज्ञान, बुद्धि और विद्या का दान दो। आपके समान उपकारी दूसरा कोई नहीं है। हर विधि से हमारी आस पूरी हों, हे जगत जननी जगदम्बा आपकी जय हो, आप ही सबको सहारा देने वाली हो, सबकी सहायक हो। आप ही घट-घट में वास करती हैं, ये हमारी आपसे खास विनती है। हे संसार को जन्म देने वाली सागर पुत्री आप गरीबों का कल्याण करती हैं।

विनवौं नित्य तुमहिं महारानी। कृपा करौ जग जननि भवानी॥

केहि विधि स्तुति करौं तिहारी। सुधि लीजै अपराध बिसारी॥

कृपा दृष्टि चितववो मम ओरी। जगजननी विनती सुन मोरी॥

ज्ञान बुद्धि जय सुख की दाता। संकट हरो हमारी माता॥

हे मां महारानी हम हर रोज आपकी विनती करते हैं, हे जगत जननी भवानी, सब पर अपनी कृपा करो। आपकी स्तुति हम किस प्रकार करें। हे मां हमारे अपराधों को भुलाकर हमारी सुध लें। मुझ पर अपनी कृपा दृष्टि रखते हुए हे जग जननी, मेरी विनती सुन लीजिये। आप ज्ञान, बुद्धि व सुख प्रदान करने वाली हैं, आपकी जय हो, हे मां हमारे संकटों का हरण करो।

क्षीरसिन्धु जब विष्णु मथायो। चौदह रत्न सिन्धु में पायो॥

चौदह रत्न में तुम सुखरासी। सेवा कियो प्रभु बनि दासी॥

जब जब जन्म जहां प्रभु लीन्हा। रुप बदल तहं सेवा कीन्हा॥

स्वयं विष्णु जब नर तनु धारा। लीन्हेउ अवधपुरी अवतारा॥

तब तुम प्रगट जनकपुर माहीं। सेवा कियो हृदय पुलकाहीं॥

अपनाया तोहि अन्तर्यामी। विश्व विदित त्रिभुवन की स्वामी॥

जब भगवान विष्णु ने दुध के सागर में मंथन करवाया तो उसमें से चौदह रत्न प्राप्त हुए। हे सुखरासी, उन्हीं चौदह रत्नों में से एक आप भी थी जिन्होंने भगवान विष्णु की दासी बन उनकी सेवा की। जब भी भगवान विष्णु ने जहां भी जन्म लिया अर्थात जब भी भगवान विष्णु ने अवतार लिया आपने भी रुप बदलकर उनकी सेवा की। स्वयं भगवान विष्णु ने मानव रुप में जब अयोध्या में जन्म लिया तब आप भी जनकपुरी में प्रगट हुई और सेवा कर उनके दिल के करीब रही, अंतर्यामी भगवान विष्णु ने आपको अपनाया, पूरा विश्व जानता है कि आप ही तीनों लोकों की स्वामी हैं।

तुम सम प्रबल शक्ति नहीं आनी। कहं लौ महिमा कहौं बखानी॥

मन क्रम वचन करै सेवकाई। मन इच्छित वाञ्छित फल पाई॥

तजि छल कपट और चतुराई। पूजहिं विविध भांति मनलाई॥

और हाल मैं कहौं बुझाई। जो यह पाठ करै मन लाई॥

ताको कोई कष्ट नोई। मन इच्छित पावै फल सोई॥

आपके समान और कोई दूसरी शक्ति नहीं आ सकती। आपकी महिमा का कितना ही बखान करें लेकिन वह कहने में नहीं आ सकता अर्थात आपकी महिमा अकथ है। जो भी मन, वचन और कर्म से आपका सेवक है, उसके मन की हर इच्छा पूरी होती है। छल, कपट और चतुराई को तज कर विविध प्रकार से मन लगाकर आपकी पूजा करनी चाहिए। इसके अलावा मैं और क्या कहूं, जो भी इस पाठ को मन लगाकर करता है, उसे कोई कष्ट नहीं मिलता व मनवांछित फल प्राप्त होता है।

त्राहि त्राहि जय दुःख निवारिणि। त्रिविध ताप भव बन्धन हारिणी॥

जो चालीसा पढ़ै पढ़ावै। ध्यान लगाकर सुनै सुनावै॥

ताकौ कोई न रोग सतावै। पुत्र आदि धन सम्पत्ति पावै॥

पुत्रहीन अरु सम्पति हीना। अन्ध बधिर कोढ़ी अति दीना॥

विप्र बोलाय कै पाठ करावै। शंका दिल में कभी न लावै॥

पाठ करावै दिन चालीसा। ता पर कृपा करैं गौरीसा॥

हे दुखों का निवारण करने वाली मां आपकी जय हो, तीनों प्रकार के तापों सहित सारी भव बाधाओं से मुक्ति दिलाती हो अर्थात आप तमाम बंधनों से मुक्त कर मोक्ष प्रदान करती हो। जो भी चालीसा को पढ़ता है, पढ़ाता है या फिर ध्यान लगाकर सुनता और सुनाता है, उसे किसी तरह का रोग नहीं सताता, उसे पुत्र आदि धन संपत्ति भी प्राप्त होती है। पुत्र एवं संपत्ति हीन हों अथवा अंधा, बहरा, कोढि या फिर बहुत ही गरीब ही क्यों न हो यदि वह ब्राह्मण को बुलाकर आपका पाठ करवाता है और दिल में किसी भी प्रकार की शंका नहीं रखता अर्थात पूरे विश्वास के साथ पाठ करवाता है। चालीस दिनों तक पाठ करवाए तो हे मां लक्ष्मी आप उस पर अपनी दया बरसाती हैं।

सुख सम्पत्ति बहुत सी पावै। कमी नहीं काहू की आवै॥

बारह मास करै जो पूजा। तेहि सम धन्य और नहिं दूजा॥

प्रतिदिन पाठ करै मन माही। उन सम कोइ जग में कहुं नाहीं॥

बहुविधि क्या मैं करौं बड़ाई। लेय परीक्षा ध्यान लगाई॥

चालीस दिनों तक आपका पाठ करवाने वाला सुख-समृद्धि व बहुत सी संपत्ती प्राप्त करता है। उसे किसी चीज की कमी महसूस नहीं होती। जो बारह मास आपकी पूजा करता है, उसके समान धन्य और दूसरा कोई भी नहीं है। जो मन ही मन हर रोज आपका पाठ करता है, उसके समान भी संसार में कोई नहीं है। हे मां मैं आपकी क्या बड़ाई करुं, आप अपने भक्तों की परीक्षा भी अच्छे से लेती हैं।

करि विश्वास करै व्रत नेमा। होय सिद्ध उपजै उर प्रेमा॥

जय जय जय लक्ष्मी भवानी। सब में व्यापित हो गुण खानी॥

तुम्हरो तेज प्रबल जग माहीं। तुम सम कोउ दयालु कहुं नाहिं॥

मोहि अनाथ की सुधि अब लीजै। संकट काटि भक्ति मोहि दीजै॥

जो भी पूर्ण विश्वास कर नियम से आपके व्रत का पालन करता है, उसके हृद्य में प्रेम उपजता है व उसके सारे कार्य सफल होते हैं। हे मां लक्ष्मी, हे मां भवानी, आपकी जय हो। आप गुणों की खान हैं और सबमें निवास करती हैं। आपका तेज इस संसार में बहुत शक्तिशाली है, आपके समान दयालु और कोई नहीं है। हे मां, मुझ अनाथ की भी अब सुध ले लीजिये। मेरे संकट को काट कर मुझे आपकी भक्ति का वरदान दें।

भूल चूक करि क्षमा हमारी। दर्शन दजै दशा निहारी॥

बिन दर्शन व्याकुल अधिकारी। तुमहि अछत दुःख सहते भारी॥

नहिं मोहिं ज्ञान बुद्धि है तन में। सब जानत हो अपने मन में॥

रुप चतुर्भुज करके धारण। कष्ट मोर अब करहु निवारण॥

केहि प्रकार मैं करौं बड़ाई। ज्ञान बुद्धि मोहि नहिं अधिकाई॥

हे मां अगर कोई भूल चूक हमसे हुई हो तो हमें क्षमा कर दें, अपने दर्शन देकर भक्तों को भी एक बार निहार लो मां। आपके भक्त आपके दर्शनों के बिना बेचैन हैं। आपके रहते हुए भारी कष्ट सह रहे हैं। हे मां आप तो सब जानती हैं कि मुझे ज्ञान नहीं हैं, मेरे पास बुद्धि नहीं अर्थात मैं अज्ञानी हूं आप सर्वज्ञ हैं। अब अपना चतुर्भुज रुप धारण कर मेरे कष्ट का निवारण करो मां। मैं और किस प्रकार से आपकी प्रशंसा करुं इसका ज्ञान व बुद्धि मेरे अधिकार में नहीं है अर्थात आपकी प्रशंसा करना वश की बात नहीं है।

॥दोहा॥

त्राहि त्राहि दुःख हारिणी, हरो वेगि सब त्रास।

जयति जयति जय लक्ष्मी, करो शत्रु को नाश॥

रामदास धरि ध्यान नित, विनय करत कर जोर।

मातु लक्ष्मी दास पर, करहु दया की कोर॥

हे दुखों का हरण करने वाली मां दुख ही दुख हैं, आप सब पापों हरण करो, हे शत्रुओं का नाश करने वाली मां लक्ष्मी आपकी जय हो, जय हो। रामदास प्रतिदिन हाथ जोड़कर आपका ध्यान धरते हुए आपसे प्रार्थना करता है। हे मां लक्ष्मी अपने दास पर दया की नजर रखो।

राम चालीसा (Ram Chalisa)

चालीसा: श्री राम जी – Shri Ram Chalisa 

॥ दोहा ॥
आदौ राम तपोवनादि गमनं हत्वाह् मृगा काञ्चनं
वैदेही हरणं जटायु मरणं सुग्रीव संभाषणं

बाली निर्दलं समुद्र तरणं लङ्कापुरी दाहनम्
पश्चद्रावनं कुम्भकर्णं हननं एतद्धि रामायणं

॥ चौपाई ॥
श्री रघुबीर भक्त हितकारी ।
सुनि लीजै प्रभु अरज हमारी ॥

निशि दिन ध्यान धरै जो कोई ।
ता सम भक्त और नहिं होई ॥

ध्यान धरे शिवजी मन माहीं ।
ब्रह्मा इन्द्र पार नहिं पाहीं ॥

जय जय जय रघुनाथ कृपाला ।
सदा करो सन्तन प्रतिपाला ॥

दूत तुम्हार वीर हनुमाना ।
जासु प्रभाव तिहूँ पुर जाना ॥

तुव भुजदण्ड प्रचण्ड कृपाला ।
रावण मारि सुरन प्रतिपाला ॥

तुम अनाथ के नाथ गोसाईं ।
दीनन के हो सदा सहाई ॥

ब्रह्मादिक तव पार न पावैं ।
सदा ईश तुम्हरो यश गावैं ॥

चारिउ वेद भरत हैं साखी ।
तुम भक्तन की लज्जा राखी ॥

गुण गावत शारद मन माहीं ।
सुरपति ताको पार न पाहीं ॥ 10 ॥

नाम तुम्हार लेत जो कोई ।
ता सम धन्य और नहिं होई ॥

राम नाम है अपरम्पारा ।
चारिहु वेदन जाहि पुकारा ॥

गणपति नाम तुम्हारो लीन्हों ।
तिनको प्रथम पूज्य तुम कीन्हों ॥

शेष रटत नित नाम तुम्हारा ।
महि को भार शीश पर धारा ॥

फूल समान रहत सो भारा ।
पावत कोउ न तुम्हरो पारा ॥

भरत नाम तुम्हरो उर धारो ।
तासों कबहुँ न रण में हारो ॥

नाम शत्रुहन हृदय प्रकाशा ।
सुमिरत होत शत्रु कर नाशा ॥

लषन तुम्हारे आज्ञाकारी ।
सदा करत सन्तन रखवारी ॥

ताते रण जीते नहिं कोई ।
युद्ध जुरे यमहूँ किन होई ॥

महा लक्ष्मी धर अवतारा ।
सब विधि करत पाप को छारा ॥ 20 ॥

सीता राम पुनीता गायो ।
भुवनेश्वरी प्रभाव दिखायो ॥

घट सों प्रकट भई सो आई ।
जाको देखत चन्द्र लजाई ॥

सो तुमरे नित पांव पलोटत ।
नवो निद्धि चरणन में लोटत ॥

सिद्धि अठारह मंगल कारी ।
सो तुम पर जावै बलिहारी ॥

औरहु जो अनेक प्रभुताई ।
सो सीतापति तुमहिं बनाई ॥

इच्छा ते कोटिन संसारा ।
रचत न लागत पल की बारा ॥

जो तुम्हरे चरनन चित लावै ।
ताको मुक्ति अवसि हो जावै ॥

सुनहु राम तुम तात हमारे ।
तुमहिं भरत कुल- पूज्य प्रचारे ॥

तुमहिं देव कुल देव हमारे ।
तुम गुरु देव प्राण के प्यारे ॥

जो कुछ हो सो तुमहीं राजा ।
जय जय जय प्रभु राखो लाजा ॥ 30 ॥

रामा आत्मा पोषण हारे ।
जय जय जय दशरथ के प्यारे ॥

जय जय जय प्रभु ज्योति स्वरूपा ।
निगुण ब्रह्म अखण्ड अनूपा ॥

सत्य सत्य जय सत्य- ब्रत स्वामी ।
सत्य सनातन अन्तर्यामी ॥

सत्य भजन तुम्हरो जो गावै ।
सो निश्चय चारों फल पावै ॥

सत्य शपथ गौरीपति कीन्हीं ।
तुमने भक्तहिं सब सिद्धि दीन्हीं ॥

ज्ञान हृदय दो ज्ञान स्वरूपा ।
नमो नमो जय जापति भूपा ॥

धन्य धन्य तुम धन्य प्रतापा ।
नाम तुम्हार हरत संतापा ॥

सत्य शुद्ध देवन मुख गाया ।
बजी दुन्दुभी शंख बजाया ॥

सत्य सत्य तुम सत्य सनातन ।
तुमहीं हो हमरे तन मन धन ॥

याको पाठ करे जो कोई ।
ज्ञान प्रकट ताके उर होई ॥ 40 ॥

आवागमन मिटै तिहि केरा ।
सत्य वचन माने शिव मेरा ॥

और आस मन में जो ल्यावै ।
तुलसी दल अरु फूल चढ़ावै ॥

साग पत्र सो भोग लगावै ।
सो नर सकल सिद्धता पावै ॥

अन्त समय रघुबर पुर जाई ।
जहाँ जन्म हरि भक्त कहाई ॥

श्री हरि दास कहै अरु गावै ।
सो वैकुण्ठ धाम को पावै ॥

॥ दोहा ॥
सात दिवस जो नेम कर पाठ करे चित लाय ।
हरिदास हरिकृपा से अवसि भक्ति को पाय ॥

राम चालीसा जो पढ़े रामचरण चित लाय ।
जो इच्छा मन में करै सकल सिद्ध हो जाय ॥

Shri Ram Chalisa Lyrics in English

||CHOPAI||

Shri Raghubir bhagat hitkari, suni lije prabhu araj hamari,

Nisidin dhyan dhare jo koi, ta sam bhakt aur nahi hoi,

Dhyan dhare shivji man mahi, brahma indra par nahi pahi,

Jai jai jai raghunath kripala, sada karo santan pratipala.

Hindi Katha Bhajan Youtube

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Doot tumhar veer hanumana, jasu prabhav tihu pur jana,

Tuv bhujdand prachand kripala, ravan mari suarn pratipala,

Tum anath ke nath gosai, deenan ke ho sada sahai,

Bramhadik tav par na paven, sada eesh tumharo yash gave.

Chariu ved bharat hai sakhi, tum bhaktan ki lajja rakhi,

Gun gavat sharad man mahi, surpati tako par na pahi,

Nam tumhare let jo koi, ta sam dhanya aur nahi hoi,

Ram naam hai aparampara, charin ved jahi pukara.

Ganpati naam tumharo linho, tinko pratham pujya tum kinho,

Shesh ratat nit naam tumhara, mahi ko bhar shish par dhara,

Phool saman rahat so bhara, pavat kou na tumharo para,

Bharat naam tumharo ur dharo, taso kabahu na ran mein haro.

Naam shatrugna hridaya prakasha, sumirat hot shatru kar nasha,

Lakhan tumhare agyakari, sada karat santan rakhwari,

Tate ran jeete nahi koi, yuddh jure yamahu kin hoi,

Mahalakshmi dhar avtara, sab vidhi karat paap ko chhara.

Seeta ram puneeta gayo, bhuvaneshwari prabhav dikhayo,

Ghat sp prakat bhai so aai, jako dehkat chand lajai,

So tumhare nit paon palotat, navo nidhi charanan mein lotat,

Siddhi atharah mangalkari, so tum par jave balihari.

Aurahu jo anek prabhutai, so seetapati tumahi banai,

Ichchha te kotin sansara, rachat na lagat pal ki bhara,

Jo tumhare charanan chit lave, taki mukti avasi ho jave,

Sunahu ram tum tat hamare, tumahi bharat kul poojya prachare.

Tumahi dev kul dev hamare, tum gurudev pran ke pyare,

Jo kuch ho so tumhahi raja, jai jai jai prabhu rakho laja,

Ram atma poshan hare, jai jai jai dasrath ke pyare,

Jai jai jai prabhu jyoti swarupa, nirgun brahma akhand anoopa.

Satya satya jai satyavrat swami, satya sanatan antaryami,

Satya bhajan tumharo jo gave, So nischay charon phal pave,

Satya sapath gauripati kinhi, tumne bhaktahi sab siddhi dinhi,

Gyan hridaya do gyanswarupa, namo namo jai jagpati bhoopa.

Dhanya dhanya tum dhanya pratapa, naam tumhar harat sntapa,

Satya shudh deva mukh gaya, baji dundubhi shankh bajaya,

Satya satya tum satya sanatan, tumahi ho hamare tan man dhan,

Yako path kare jo koi, gyan prakat take ur hoi.

Avagaman mitai tihi kera, satya vachan mane shiv mera,

Aur aas man mein jo hoi, manvanchit phal pave soi,

Teenahu kal dhyan jo lave, tulsidas anu phool chadhave,

Saag patra so bhog lagave, so nar sakal siddhata pave.

Aant samay raghubarpur jai, jaha janma haribhakta kai,

Shri haridas kahai aru gave, so vaikunth dham ko pave.

||DOHA||

Saat divas jo nem kar, path kare chit laye,

Haridas harikripa se, avasi bhakti ko pave.

Ram chalisa jo padhe, ram sharan chit laye,

Jo ichchha man mein kare, sakal siddh ho jaye.

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॥चौपाई॥

श्री रघुबीर भक्त हितकारी। सुनि लीजै प्रभु अरज हमारी॥

निशि दिन ध्यान धरै जो कोई। ता सम भक्त और नहीं होई॥

ध्यान धरें शिवजी मन मांही। ब्रह्मा, इन्द्र पार नहीं पाहीं॥

दूत तुम्हार वीर हनुमाना। जासु प्रभाव तिहुं पुर जाना॥

जय, जय, जय रघुनाथ कृपाला। सदा करो संतन प्रतिपाला॥

हे रघुबीर, भक्तों का कल्याण करने वाले हे भगवान श्री राम हमारी प्रार्थना सुन लिजिये। हे प्रभु जो दिन रात केवल आपका ध्यान धरता है अर्थात हर समय आपका स्मरण करता है, उसके समान दूसरा भक्त कोई नहीं है। भगवान शिव भी मन ही मन आपका ध्यान करते हैं, ब्रह्मा, इंद्र आदि भी आपकी लीला को पूरी तरह नहीं जान सके। आपके दूत वीर हनुमान हैं तीनों लोकों में जिनके प्रभाव को सब जानते हैं। हे कृपालु रघुनाथ सदा संतो का प्रतिपालक श्री राम आपकी जय हो, जय हो, जय हो।

तुव भुजदण्ड प्रचण्ड कृपाला। रावण मारि सुरन प्रतिपाला॥

तुम अनाथ के नाथ गोसाईं। दीनन के हो सदा सहाई॥

ब्रह्मादिक तव पार न पावैं। सदा ईश तुम्हरो यश गावैं॥

चारिउ बेद भरत हैं साखी। तुम भक्तन की लज्जा राखी॥

गुण गावत शारद मन माहीं। सुरपति ताको पार न पाहिं॥

नाम तुम्हार लेत जो कोई। ता सम धन्य और नहीं होई॥

राम नाम है अपरम्पारा। चारिहु वेदन जाहि पुकारा॥

हे प्रभु आपकी भुजाओं में अपार शक्ति है लेकिन इनसे हमेशा कल्याण हुआ है, अर्थात आपने हमेशा अपनी कृपा बरसाई है। हे देवताओं के प्रतिपालक भगवान श्री राम आपने ही रावण जैसे दुष्ट को मारा।

हे प्रभु हे स्वामी जिसका कोई नहीं हैं उसका दामन आप ही थामते हैं, अर्थात आप ही उसके स्वामी हैं, आपने हमेशा दीन-दुखियों का कल्याण किया है। ब्रह्मा आदि भी आपका पार नहीं पा सके, स्वयं ईश्वर भी आपकी कीर्ति का गुणगान करते हैं। आपने हमेशा अपने भक्तों का मान रखा है प्रभु, चारों वेद भी इसके साक्षी हैं। हे प्रभु शारदे मां भी मन ही मन आपका स्मरण करती हैं। देवराज इंद्र भी आपकी महिमा का पार न पा सके। जो भी आपका नाम लेता है, उसके समान धन्य और कोई भी नहीं है। हे श्री राम आपका नाम अपरम्पार है, चारों वेदों ने पुकार-पुकार कर इसका ही बखान किया है। अर्थात चारों वेद आपकी महिमा को अपम्पार मानते हैं।

गणपति नाम तुम्हारो लीन्हो। तिनको प्रथम पूज्य तुम कीन्हो॥

शेष रटत नित नाम तुम्हारा। महि को भार शीश पर धारा॥

फूल समान रहत सो भारा। पावत कोऊ न तुम्हरो पारा॥

भरत नाम तुम्हरो उर धारो। तासों कबहूं न रण में हारो॥

नाम शत्रुहन हृदय प्रकाशा। सुमिरत होत शत्रु कर नाशा॥

लखन तुम्हारे आज्ञाकारी। सदा करत सन्तन रखवारी॥

ताते रण जीते नहिं कोई। युद्ध जुरे यमहूं किन होई॥

भगवान श्री गणेश ने भी आपके नाम का स्मरण किया, सबसे पहले उन्हें पूजनीय आपने ही बनाया। शेषनाग भी हमेशा आपके नाम का जाप करते हैं जिससे वे पृथ्वी के भार को अपने सिर पर धारण करने में सक्षम हुए हैं। आपके स्मरण से बड़े से बड़ा भार भी फूल के समान लगता है। हे प्रभु आपका पार कोई नहीं पा सकता अर्थात आपकी महिमा को कोई नहीं जान सकता। भरत ने आपका नाम अपने हृद्य में धारण किया इसलिए उसे युद्ध में कोई हरा नहीं सका। शत्रुहन के हृद्य में भी आपके नाम का प्रकाश था इसलिए तो आपका स्मरण करते ही वे शत्रुओं का नाश कर देते थे। लक्ष्मण आपके आज्ञाकारी थे जिन्होंनें हमेशा संतों की रखवाली की सुरक्षा की। उनसे भी कोई युद्ध नहीं जीत सकता था चाहे युद्ध में स्वयं यमराज क्यों न लड़ रहे हों।

महालक्ष्मी धर अवतारा। सब विधि करत पाप को छारा॥

सीता राम पुनीता गायो। भुवनेश्वरी प्रभाव दिखायो॥

घट सों प्रकट भई सो आई। जाको देखत चन्द्र लजाई॥

जो तुम्हरे नित पांव पलोटत। नवो निद्धि चरणन में लोटत॥

सिद्धि अठारह मंगलकारी। सो तुम पर जावै बलिहारी॥

आपके साथ-साथ मां महालक्ष्मी ने भी अवतार रुप लेकर हर विधि से पाप का नाश किया। इसीलिए सीता राम का पवित्र नाम गाया जाता है। मां भुवनेश्वरी अपना प्रभाव दिखाती हैं। माता सीता ने जब अवतार लिया तो वे घट यानि घड़े से प्रकट हुई इनका रुप इतना सुंदर था कि जिन्हें देखकर चंद्रमा भी शरमा जाए। हे प्रभु जो नित्य आपके चरणों को धोता है नौ निधियां उसके चरणों में लौट लगाती हैं। उसके लिए अठारह सिद्धियां ( मार्कंडेय पुराण के अनुसार सिद्धियां आठ होती हैं जबकि ब्रह्मवैवर्त पुराण में अठारह बताई गई हैं) मंगलकारी होती हैं जो आप पर न्यौछावर हैं।

औरहु जो अनेक प्रभुताई। सो सीतापति तुमहिं बनाई॥

इच्छा ते कोटिन संसारा। रचत न लागत पल की बारा॥

जो तुम्हरे चरणन चित लावै। ताकी मुक्ति अवसि हो जावै॥

सुनहु राम तुम तात हमारे। तुमहिं भरत कुल पूज्य प्रचारे॥

तुमहिं देव कुल देव हमारे। तुम गुरु देव प्राण के प्यारे॥

हे सीता पति भगवान श्री राम, अन्य जितने देवी-देवता हैं, सब आपने ही बनाए हैं। आपकी इच्छा हो तो आपको करोड़ों संसारों की रचना करने में भी पल भर की देरी न लगे। जो आपके चरणों में ध्यान लगाता है उसकी मुक्ति अवश्य हो जाती है। हे श्री राम सुन लिजिये आप ही हमारे पिता हैं, आप ही भारतवर्ष में पूज्य हैं। हे देव आप ही हमारे कुलदेव हैं, हे गुरु देव आप हमें प्राणों से प्यारे हैं।

जो कुछ हो सो तुमहिं राजा। जय जय जय प्रभु राखो लाजा॥

राम आत्मा पोषण हारे। जय जय जय दशरथ के प्यारे॥

जय जय जय प्रभु ज्योति स्वरुपा। नर्गुण ब्रहृ अखण्ड अनूपा॥

सत्य सत्य जय सत्यव्रत स्वामी। सत्य सनातन अन्तर्यामी॥

सत्य भजन तुम्हरो जो गावै। सो निश्चय चारों फल पावै॥

सत्य शपथ गौरीपति कीन्हीं। तुमने भक्तिहिं सब सिधि दीन्हीं॥

हे प्रभु श्री राम हमारे जो कुछ भी हैं, सब आप ही हैं, हमारी लाज रखिये, आपकी जय हो प्रभु। हे हमारी आत्मा का पोषण करने वाले दशरथ प्यारे भगवान श्री राम, आपकी जय हो। हे ज्योति स्वरुप प्रभु, आपकी जय हो। आप ही निर्गुण ईश्वर हैं, जो अद्वितीय है, अखंडित है। हे सत्य रुप, सत्य के पालक आप ही सत्य हैं, आपकी जय हो। अनादिकाल से ही आप सत्य हैं, अंतर्यामी हैं। सच्चे हृद्य से जो आपका भजन करता है, उसे चारों फल प्राप्त होते हैं। इसी सत्य की शपथ भगवान शंकर ने की जिससे आपने उन्हें भक्ति के साथ-साथ सब सिद्धियां भी दी।

ज्ञान हृदय दो ज्ञान स्वरुपा। नमो नमो जय जगपति भूपा॥

धन्य धन्य तुम धन्य प्रतापा। नाम तुम्हार हरत संतापा॥

सत्य शुद्ध देवन मुख गाया। बजी दुन्दुभी शंख बजाया॥

सत्य सत्य तुम सत्य सनातन। तुम ही हो हमरे तन-मन धन॥

हे ज्ञान स्वरुप, हमारे हृद्य को भी ज्ञान दो, हे जगपति, हे ब्रह्माण्ड के राजा, आपकी जय हो, हम आपको नमन करते हैं। आपका प्रताप धन्य है, आप भी धन्य हैं, प्रभु आपका नाम सारे संतापों अर्थात सारे कष्टों का हरण कर लेता है। आप ही शुद्ध सत्य हैं, जिसे देवताओं ने अपने मुख से गाया था, जिसके बाद शंख की दुंदुभी बजी थी। अनादिकाल से आप ही सत्य हैं, हे प्रभु आप ही हमारा तन-मन-धन हैं।

याको पाठ करे जो कोई। ज्ञान प्रकट ताके उर होई॥

आवागमन मिटै तिहि केरा। सत्य वचन माने शिव मेरा॥

और आस मन में जो होई। मनवांछित फल पावे सोई॥

तीनहुं काल ध्यान जो ल्यावै। तुलसी दल अरु फूल चढ़ावै॥

साग पत्र सो भोग लगावै। सो नर सकल सिद्धता पावै॥

अन्त समय रघुबर पुर जाई। जहां जन्म हरि भक्त कहाई॥

श्री हरिदास कहै अरु गावै। सो बैकुण्ठ धाम को पावै॥

जो कोई भी इसका पाठ करता है, उसके हृद्य में ज्ञान का प्रकाश होता है, अर्थात उसे सत्य का ज्ञान होता है। उसका आवागमन मिट जाता है, भगवान शिव भी मेरे इस वचन को सत्य मानते हैं। यदि और कोई इच्छा उसके मन में होती हैं तो इच्छानुसार फल प्राप्त होते हैं। जो कोई भी तीनों काल प्रभु का ध्यान लगाता है। प्रभु को तुलसी दल व फूल अर्पण करता है। साग पत्र से भोग लगाता है, उसे सारी सिद्धियां प्राप्त होती हैं। अंतिम समय में वह रघुबर पुर अर्थात स्वर्गलोक में गमन करता हैं, जहां पर जन्म लेने से ही जीव हरिभक्त कहलाता है। श्री हरिदास भी गाते हुए कहते हैं वह बैकुण्ठ धाम को प्राप्त करता है।

॥दोहा॥

सात दिवस जो नेम कर, पाठ करे चित लाय।

हरिदास हरि कृपा से, अवसि भक्ति को पाय॥

राम चालीसा जो पढ़े, राम चरण चित लाय।

जो इच्छा मन में करै, सकल सिद्ध हो जाय॥

यदि कोई भी सात दिनों तक नियम पूर्वक ध्यान लगाकर पाठ करता है, तो हरिदास जी कहते हैं कि भगवान विष्णु की कृपा से वह अवश्य ही भक्ति को पा लेता है। राम के चरणों में ध्यान लगाकर जो कोई भी, इस राम चालीसा को पढ़ता है, वह जो भी मन में इच्छा करता है, वह पूरी होती है।

krishna chalisa

Krishna chalisa lyrics in hindi

कृष्ण जन्माष्टमी के दिन कृष्ण चालीसा का पाठ  करना चाहिए। मान्यता है कि कृष्ण जन्माष्टमी के दिन श्री कृष्ण की चालीसा पाठ करने से भगवान श्री कृष्ण की विशेष कृपा रहती है।कृष्ण चालीसा को शांत मन के साथ, अपने आप को प्रभु के चरणों में समर्पित करते हुए पढ़ने से निश्चित ही धन धान्य, कीर्ति में बढ़ोतरी होती है

॥ दोहा ॥

वंशी शोभित कर मधुर,

नील जलद तन श्याम।

अरुण अधर जनु बिम्ब फल,

नयन कमल अभिराम॥

पूर्ण इन्द्र अरविन्द मुख,

पीताम्बर शुभ साज।

जय मनमोहन मदन छवि,

कृष्ण चन्द्र महाराज॥

॥ चौपाई॥

जय यदुनन्दन जय जगवन्दन,

जय वसुदेव देवकी नन्दन।

जय यशोदा सुत नन्द दुलारे,

जय प्रभु भक्तन के दृग तारे।

जय नटनागर नाग नथइया,

कृष्ण कन्हैया धेनु चरइया।

पुनि नख पर प्रभु गिरिवर धारो,

आओ दीनन कष्ट निवारो।

वंशी मधुर अधर धरि टेरी,

होवे पूर्ण विनय यह मेरी।

आओ हरि पुनि माखन चाखो,

आज लाज भारत की राखो।

गोल कपोल चिबुक अरुणारे,

मृदु मुस्कान मोहिनी डारे।

रंजित राजिव नयन विशाला,

मोर मुकुट बैजन्ती माला।

कुण्डल श्रवण पीतपट आछे,

कटि किंकणी काछन काछे।

नील जलज सुन्दर तनु सोहै,

छवि लखि सुर नर मुनि मन मोहै।

मस्तक तिलक अलक घुँघराले,

आओ कृष्ण बांसुरी वाले।

करि पय पान, पूतनहिं तारयो,

अका बका कागा सुर मारयो।

मधुवन जलत अगिन जब ज्वाला,

भये शीतल, लखितहिं नन्दलाला।

सुरपति जब ब्रज चढ़यो रिसाई,

मूसर धार वारि वर्षाई।

लगत-लगत ब्रज चहन बहायो,

गोवर्धन नखधारि बचायो।

लखि यसुदा मन भ्रम अधिकाई,

मुख.मँह चौदह भुवन दिखाई।

दुष्ट कंस अति उधम मचायो,

कोटि कमल जब फूल मँगायो।

नाथि कालियहिं तब तुम लीन्हें,

चरणचिन्ह दे निर्भय कीन्हैं।

करि गोपिन संग रास विलासा,

सबकी पूरण करि अभिलाषा।

केतिक महा असुर संहारियो,

कंसहि केस पकड़ि दै मारयो।

मात-पिता की बन्दि छुड़ाई,

उग्रसेन कहँ राज दिलाई।

महि से मृतक छहों सुत लायो,

मातु देवकी शोक मिटायो।

भौमासुर मुर दैत्य संहारी,

लाये षट दस सहस कुमारी।

दें भीमहि तृणचीर संहारा,

जरासिंधु राक्षस कहँ मारा।

असुर बकासुर आदिक मारयो,

भक्तन के तब कष्ट निवारियो।

दीन सुदामा के दुःख टारयो,

तंदुल तीन मूठि मुख डारयो।

प्रेम के साग विदुर घर माँगे,

दुर्योधन के मेवा त्यागे।

लखी प्रेमकी महिमा भारी,

ऐसे श्याम दीन हितकारी।

मारथ के पारथ रथ हांके,

लिए चक्र कर नहिं बल थांके।

निज गीता के ज्ञान सुनाये,

भक्तन हृदय सुधा वर्षाये।

मीरा थी ऐसी मतवाली,

विष पी गई बजा कर ताली।

राणा भेजा साँप पिटारी,

शालिग्राम बने बनवारी।

निज माया तुम विधिहिं दिखायो,

उरते संशय सकल मिटायो।

तव शत निन्दा करि तत्काला,

जीवन मुक्त भयो शिशुपाला।

जबहिं द्रोपदी टेर लगाई,

दीनानाथ लाज अब जाई।

तुरतहि वसन बने नन्दलाला,

बढ़े चीर भये अरि मुँह काला।

अस अनाथ के नाथ कन्हैया,

डूबत भँवर बचावत नइया।

सुन्दरदास आस उर धारी,

दयादृष्टि कीजै बनवारी।

नाथ सकल मम कुमति निवारो,

क्षमहुबेगि अपराध हमारो।

खोलो पट अब दर्शन दीजै,

बोलो कृष्ण कन्हैया की जय।

॥ दोहा॥

यह चालीसा कृष्ण का,

पाठ करे उर धारि।

अष्ट सिद्धि नवनिद्धि फल,

लहै पदारथ चारि॥

krishna chalisa in English

॥dohā॥
vaṃśī śobhita kara madhura,
nīla jalada tana śyāma।
aruṇa adhara janu bimba phala,
nayana kamala abhirāma॥

pūrṇa indra aravinda mukha,
pītāmbara śubha sāja।
jaya manamohana madana chavi,
kṛṣṇa candra mahārāja॥

॥caupāī॥
jaya yadunandana jaya jagavandana,
jaya vasudeva devakī nandana।

jaya yaśodā suta nanda dulāre,
jaya prabhu bhaktana ke dṛga tāre।

jaya naṭanāgara nāga nathaiyā,
kṛṣṇa kanhaiyā dhenu caraiyā।

puni nakha para prabhu girivara dhāro,
āo dīnana kaṣṭa nivāro।

vaṃśī madhura adhara dhari ṭerī,
hove pūrṇa vinaya yaha merī।

āo hari puni mākhana cākho,
āja lāja bhārata kī rākho।

gola kapola cibuka aruṇāre,
mṛdu muskāna mohinī ḍāre।

raṃjita rājiva nayana viśālā,
mora mukuṭa baijantī mālā।

kuṇḍala śravaṇa pītapaṭa āche,
kaṭi kiṃkaṇī kāchana kāche।

nīla jalaja sundara tanu sohai,
chavi lakhi sura nara muni mana mohai।

mastaka tilaka alaka ghu~gharāle,
āo kṛṣṇa bāṃsurī vāle।

kari paya pāna, pūtanahiṃ tārayo,
akā bakā kāgā sura mārayo।

madhuvana jalata agina jaba jvālā,
bhaye śītala, lakhitahiṃ nandalālā।

surapati jaba braja caḍha़yo risāī,
mūsara dhāra vāri varṣāī।

lagata-lagata braja cahana bahāyo,
govardhana nakhadhāri bacāyo।

lakhi yasudā mana bhrama adhikāī,
mukha.ma~ha caudaha bhuvana dikhāī।

duṣṭa kaṃsa ati udhama macāyo,
koṭi kamala jaba phūla ma~gāyo।

nāthi kāliyahiṃ taba tuma līnheṃ,
caraṇacinha de nirbhaya kīnhaiṃ।

kari gopina saṃga rāsa vilāsā,
sabakī pūraṇa kari abhilāṣā।

ketika mahā asura saṃhāriyo,
kaṃsahi kesa pakaḍa़i dai mārayo।

māta-pitā kī bandi chuḍa़āī,
ugrasena kaha~ rāja dilāī।

mahi se mṛtaka chahoṃ suta lāyo,
mātu devakī śoka miṭāyo।

bhaumāsura mura daitya saṃhārī,
lāye ṣaṭa dasa sahasa kumārī।

deṃ bhīmahi tṛṇacīra saṃhārā,
jarāsiṃdhu rākṣasa kaha~ mārā।

asura bakāsura ādika mārayo,
bhaktana ke taba kaṣṭa nivāriyo।

dīna sudāmā ke duḥkha ṭārayo,
taṃdula tīna mūṭhi mukha ḍārayo।

prema ke sāga vidura ghara mā~ge,
duryodhana ke mevā tyāge।

lakhī premakī mahimā bhārī,
aise śyāma dīna hitakārī।

māratha ke pāratha ratha hāṃke,
lie cakra kara nahiṃ bala thāṃke।

nija gītā ke jñāna sunāye,
bhaktana hṛdaya sudhā varṣāye।

mīrā thī aisī matavālī,
viṣa pī gaī bajā kara tālī।

rāṇā bhejā sā~pa piṭārī,
śāligrāma bane banavārī।

nija māyā tuma vidhihiṃ dikhāyo,
urate saṃśaya sakala miṭāyo।

tava śata nindā kari tatkālā,
jīvana mukta bhayo śiśupālā।

jabahiṃ dropadī ṭera lagāī,
dīnānātha lāja aba jāī।

turatahi vasana bane nandalālā,
baḍha़e cīra bhaye ari mu~ha kālā।

asa anātha ke nātha kanhaiyā,
ḍūbata bha~vara bacāvata naiyā।

sundaradāsa āsa ura dhārī,
dayādṛṣṭi kījai banavārī।

nātha sakala mama kumati nivāro,
kṣamahubegi aparādha hamāro।

kholo paṭa aba darśana dījai,
bolo kṛṣṇa kanhaiyā kī jaya।

॥ dohā॥
yaha cālīsā kṛṣṇa kā,
pāṭha kare ura dhāri।
aṣṭa siddhi navaniddhi phala,
lahai padāratha cāri॥

ब्रह्मवैवर्त पुराण अनुसार कृष्ण नाम की महिमा और कृष्ण का अर्थ

https://www.vedicaim.com/2018/08/krishna-naam-mahima.html

कृषिरुत्कृष्टवचनो णश्च सद्भक्तिवाचकः।
अश्चापि दातृवचनः कृष्णं तेन विदुर्बुधाः॥३२॥
कृषिश्च परमानन्दे णश्च तद्दास्यकर्मणि।
तयोर्दाता च यो देवस्तेन कृष्णः प्रकीर्तितः॥३३॥
- ब्रह्मवैवर्त पुराण श्रीकृष्ण जन्म खण्ड अध्याय १११ . ३२-३३

संक्षिप्त भावार्थ:- (श्रीराधा जी द्वारा ‘कृष्ण’ नाम की व्याख्या। श्रीराधा जी कहती है -) ‘कृषि’ उत्कृष्टवाची, ‘ण’ सद्भक्तिवाचक और ‘अ’ दातृवाचक है; इसी से विद्वानलोग उन्हें ‘कृष्ण’ कहते हैं। परमानन्द के अर्थ में ‘कृषि’ और उनके दास्य कर्म में ‘ण’ का प्रयोग होता है। उन दोनों के दाता जो देवता हैं, उन्हें ‘कृष्ण’ कहा जाता है।

कोटिजन्मार्जिते पापे कृषिःक्लेशे च वर्तते।
भक्तानां णश्च निर्वाणे तेन कृष्णः प्रकीर्तितः॥३४ ॥
सहस्रनाम्ना: दिव्यानां त्रिरावृत्त्या चयत्फलम्।
एकावृत्त्या तु कृष्णस्य तत्फलं लभते नरः॥३५॥
कृष्णनाम्नः परं नाम न भूतं न भविष्यति।
सर्वेभ्यश्च परं नाम कृष्णेति वैदिका विदुः॥३६॥
कृष्ण कृष्णोति हे गोपि यस्तं स्मरति नित्यशः।
जलं भित्त्वा यथा पद्मं नरकादुद्धरेच्च सः॥३७॥
- ब्रह्मवैवर्त पुराण श्रीकृष्ण जन्म खण्ड अध्याय १११ . ३४-३७

संक्षिप्तभावार्थ:- (श्रीराधा जी कहती है -) भक्तों के कोटिजन्मार्जित पापों और क्लेशों में ‘कृषि’ का तथा उनके नाश में ‘ण’ का व्यवहार होता है; इसी कारण वे ‘कृष्ण’ कहे जाते हैं। सहस्र दिव्य नामों की तीन आवृत्ति करने से जो फल प्राप्त होता है; वह फल ‘कृष्ण’ नाम की एक आवृत्ति से ही मनुष्य को सुलभ हो जाता है। वैदिकों का कथन है कि ‘कृष्ण’ नाम से बढ़कर दूसरा नाम न हुआ है, न होगा। ‘कृष्ण’ नाम से सभी नामों से परे है। हे गोपी! जो मनुष्य ‘कृष्ण-कृष्ण’ यों कहते हुए नित्य उनका स्मरण करता है; उसका उसी प्रकार नरक से उद्धार हो जाता है, जैसे कमल जल का भेदन करके ऊपर निकल आता है।

कृष्णेति मङ्गलं नाम यस्य वाचि प्रवर्तते।
भस्मीभवन्ति सद्यस्तु महापातककोटयः॥३८॥
अश्वमेधसहस्रेभ्यः फलं कृष्णजपस्य च।
वरं तेभ्यः पुनर्जन्म नातो भक्तपुनर्भवः॥३९॥
सर्वेषामपि यज्ञानां लक्षाणि च व्रतानि।
तीर्थस्नानानि सर्वाणि तपांस्यनशनानि च॥४०॥
वेदपाठसहस्राणि प्रादक्षिण्यं भुवः शतम्।
कृष्णनामजपस्यास्य कलां नार्हन्ति षोडशीम्॥४१॥
- ब्रह्मवैवर्त पुराण श्रीकृष्ण जन्म खण्ड अध्याय १११ . ३८-४१

संक्षिप्तभावार्थ:- (श्रीराधा जी कहती है -) ‘कृष्ण’ ऐसा मंगल नाम जिसकी वाणी में वर्तमान रहता है, उसके करोड़ों महापातक तुरंत ही भस्म हो जाते हैं। ‘कृष्ण’ नाम-जप का फल सहस्रों अश्वमेध-यज्ञों के फल से भी श्रेष्ठ है; क्योंकि उनसे पुनर्जन्म की प्राप्ति होती है; परंतु नाम-जप से भक्त आवागमन से मुक्त हो जाता है। समस्त यज्ञ, लाखों व्रत तीर्थस्नान, सभी प्रकार के तप, उपवास, सहस्रों वेदपाठ, सैकड़ों बार पृथ्वी की प्रदक्षिणा- ये सभी इस ‘कृष्णनाम’- जप की सोलहवीं कला की समानता नहीं कर सकते।
पद्म और भागवत पुराण अनुसार कृष्ण नाम की महिमा

तीर्थानां च परं तीर्थं कृष्णनाम महर्षयः।
तीर्थीकुर्वंति जगतीं गृहीतं कृष्णनाम यैः॥१७॥
-पद्म पुराण खण्ड ३ (स्वर्गखण्ड) अध्यायः ५०

संक्षिप्त भावार्थ:- (सूतजी कहते है -) जिन्होंने श्रीकृष्ण-नाम को अपनाया है, वे पृथ्वी को तीर्थ बना देते हैं। इसलिए श्रेष्ठ मुनिजन इससे बढ़कर पावन वस्तु और कुछ नहीं मानते।

अर्थात् जिन्होंने कृष्ण नाम को अपना लिया मीरा इत्यादि जैसे। वे इस पृथ्वी को तीर्थ बना देते है। जो श्रेष्ठ ज्ञानी है वे हरि भक्ति मांगते है। क्योंकि हरि भक्ति से बढ़कर कोई और वस्तु नहीं है। एक बार राम जी ने काकभुसुंडि से कहा –

काकभसुंडि मागु बर अति प्रसन्न मोहि जानि।
अनिमादिक सिधि अपर रिधि मोच्छ सकल सुख खानि॥
ग्यान बिबेक बिरति बिग्याना। मुनि दुर्लभ गुन जे जग नाना॥
आजु देउँ सब संसय नाहीं। मागु जो तोहि भाव मन माहीं॥
- श्रीरामचरितमानस उत्तरकाण्ड

भावार्थ:- (श्रीरामजी ने काकभुसुंडिजी से कहा -) हे काकभुशुण्डि! तू मुझे अत्यंत प्रसन्न जानकर वर माँग। अणिमा आदि अष्ट सिद्धियाँ, दूसरी ऋद्धियाँ तथा संपूर्ण सुखों की खान मोक्ष, ज्ञान, विवेक, वैराग्य, विज्ञान, (तत्त्वज्ञान) और वे अनेकों गुण जो जगत्‌ में मुनियों के लिए भी दुर्लभ हैं, ये सब मैं आज तुझे दूँगा, इसमें संदेह नहीं। जो तेरे मन भावे, सो माँग ले।

परन्तु काकभुसुंडि इनमे से एक भी चीज नहीं मांगी। वे सोचने लगे कि प्रभु ने सब सुखों के देने की बात कही, यह तो सत्य है, पर अपनी भक्ति देने की बात नहीं कही। भक्ति से रहित सब गुण और सब सुख वैसे ही (फीके) हैं जैसे नमक के बिना बहुत प्रकार के भोजन के पदार्थ। भजन से रहित सुख किस काम के? तब काकभुसुंडि जी ने कहा –

अबिरल भगति बिसुद्ध तव श्रुति पुरान जो गाव।
जेहि खोजत जोगीस मुनि प्रभु प्रसाद कोउ पाव॥
भगत कल्पतरू प्रनत हित कृपा सिंधु सुखधाम।
सोइ निज भगति मोहि प्रभु देहु दया करि राम॥
- श्रीरामचरितमानस उत्तरकाण्ड

भावार्थ:- (काकभुसुंडिजी ने श्रीरामजी से कहा -) आपकी जिस अविरल (प्रगाढ़) एवं विशुद्ध (अनन्य निष्काम) भक्ति को श्रुति और पुराण गाते हैं, जिसे योगीश्वर मुनि खोजते हैं और प्रभु की कृपा से कोई विरला ही जिसे पाता है। हे भक्तों के (मन इच्छित फल देने वाले) कल्पवृक्ष! हे शरणागत के हितकारी! हे कृपासागर! हे सुखधान श्री रामजी! दया करके मुझे अपनी वही भक्ति दीजिए।

अतएव भगवान की भक्ति ही सबसे श्रेष्ठ है।

प्रायश्चित्तानि सर्वाणि तपः कर्मात्मकनि वै।
यानि तेषामशेषाणा कृष्णानुस्मरणं परम्॥१३॥
- पद्म पुराण खण्ड ६ उत्तरखण्ड अध्यायः ७२ 

भावार्थ:- ब्रह्माजी बोले – (नारद!) तपस्या के रूप में किया जाने वाला जो सम्पूर्ण प्रायश्चित है, उन सबकी अपेक्षा श्रीकृष्ण का निरंतर स्मरण श्रेष्ठ है।

कलेर्दोषनिधे राजन्नस्ति ह्येको महान्गुणः।
कीर्तनादेव कृष्णस्य मुक्तसङ्गः परं व्रजेत्॥
- भागवत १२.३.५१

भावार्थ:- परीक्षित! यो तो कलियुग दोषों का खजाना है परन्तु इसमें एक बहुत बड़ा गुण है वह गुण यही है कि कलियुग में केवल भगवान श्रीकृष्ण का संकीर्तन करने मात्र से ही सारी आसक्तियाँ छूट जाती है, और परमात्मा की प्राप्ति हो जाती है।
स्कन्द और ब्रह्माण्ड पुराण अनुसार कृष्ण नाम की महिमा और कृष्ण का अर्थ

गोविंदमाधवमुकुंद हरेमुरारे शंभो शिवेश शशिशेखर शूलपाणे।
दामोदराच्युत जनार्दन वासुदेव त्याज्या भटाय इति संततमामनंति॥९९॥
- स्कन्द पुराण खण्ड ४ (काशीखण्ड) अध्याय ८ 

भावार्थ:- (यमराज नाममहिमाके विषय में कहते हैं-) जो गोविन्द, माधव, मुकुन्द, हरे, मुरारे, शम्भो, शिव, ईशान, चन्द्रशेखर, शूलपाणि, दामोदर, अच्युत, जनार्दन, वासुदेव – इस प्रकार सदा उच्चारण करते हैं, उनको मेरे प्रिय दूतो! तुम दूर से ही त्याग देना।

महस्रनाम्नां पुण्यानां त्रिरावृत्त्या तु यत्फलम्।
एकावृत्त्या तु कृष्णस्य नामैकं तत्प्रयच्छति॥९॥
- ब्रह्माण्ड पुराण मध्यभाग अध्यायः ३६ 

भावार्थ:- विष्णु के तीन हजार पवित्र नाम (विष्णुसहस्त्रनाम) जप के द्वारा प्राप्त परिणाम (पुण्य), केवल एक बार कृष्ण के पवित्र नाम जप के द्वारा प्राप्त किया जा सकता है।

bhairav chalisa aur Aarti

श्री भैरव चालीसा लिरिक्स Shri Bhairav Chalisa Lyrics

।।दोहा।।

श्री गणपति, गुरु गौरि पद, प्रेम सहित धरि माथ ।

चालीसा वन्दन करौं, श्री शिव भैरवनाथ ।।

श्री भैरव संकट हरण, मंगल करण कृपाल ।

श्याम वरण विकराल वपु, लोचन लाल विशाल ।।

।।चौपाई।।

जय जय श्री काली के लाला । जयति जयति काशी-कुतवाला ।।

जयति “बटुक भैरव” भय हारी । जयति “काल भैरव” बलकारी ।।

जयति “नाथ भैरव” विख्याता । जयति “सर्व भैरव” सुखदाता ।।

भैरव रूप कियो शिव धारण । भव के भार उतारण कारण ।।

भैरव रव सुनि ह्वै भय दूरी । सब विधि होय कामना पूरी ।।

शेष महेश आदि गुण गायो । काशी-कोतवाल कहलायो ।।

जटाजूट शिर चन्द्र विराजत । बाला, मुकुट, बिजायठ साजत ।।

कटि करधनी घुंघरु बाजत । दर्शन करत सकल भय भाजत ।।

जीवन दान दास को दीन्हो । कीन्हो कृपा नाथ तब चीन्हो ।।

वसि रसना बनि सारद-काली । दीन्यो वर राख्यो मम लाली ।।

धन्य धन्य भैरव भय भंजन । जय मनरंजन खल दल भंजन ।।

कर त्रिशूल डमरू शुचि कोड़ा । कृपा कटाक्ष सुयश नहिं थोड़ा ।।

जो भैरव निर्भय गुण गावत । अष्टसिद्धि नवनिधि फल पावत ।।

रूप विशाल कठिन दुख मोचन । क्रोध कराल लाल दुहुं लोचन ।।

अगणित भूत प्रेत संग डोलत । बं बं बं शिव बं बं बोलत ।।

रुद्रकाय काली के लाला । महा कालहुं के हो काला ।।

बटुक नाथ हो काल गंभीरा । श्वेत, रक्त अरु श्याम शरीरा ।।

करत तीनहुं रूप प्रकाशा । भरत सुभक्तन कहं शुभ आशा ।।

रत्न जड़ित कंचन सिंहासन । व्याघ्र चर्म शुचि नर्म सुआनन ।।

तुमहि जाई काशिहिं जन ध्यावहिं । विश्वनाथ कहं दर्शन पावहिं ।।

जय प्रभु संहारक सुनन्द जय । जय उन्नत हर उमानन्द जय ।।

भीम त्रिलोचन स्वान साथ जय । बैजनाथ श्री जगतनाथ जय ।।

महाभीम भीषण शरीर जय । रुद्र त्र्यम्बक धीर वीर जय ।।

अश्वनाथ जय प्रेतनाथ जय । श्वानारूढ़ सयचन्द्र नाथ जय ।।

निमिष दिगम्बर चक्रनाथ जय । गहत अनाथन नाथ हाथ जय ।।

त्रेशलेश भूतेश चन्द्र जय । क्रोध वत्स अमरेश नद जय ।।

श्री वामन नकुलेश चण्ड जय । कृत्याऊ कीरति प्रचण्ड जय ।।

रुद्र बटुक क्रोधेश काल धर । चक्र तुण्ड दश पाणिव्याल धर ।।

करि मद पान शम्भु गुण गावत । चौंसठ योगिन संग नचावत ।।

करत कृपा जन पर बहु ढंगा । काशी कोतवाल अड़बंगा ।।

देयं काल भैरव जब सोटा । नसै पाप मोटे से मोटा ।।

जाकर निर्मल होय शरीरा । मिटे सकल संकट भव पीरा ।।

श्री भैरव भूतों के राजा । बाधा हरत करत शुभ काजा ।।

ऎलादी के दु:ख निवारयो । सदा कृपा करि काज सम्हारयो ।।

सुन्दरदास सहित अनुरागा । श्री दुर्वासा निकट प्रयागा ।।

श्री भैरवजी की जय” लेख्यो । सकल कामना पूरण देख्यो ।।

।।दोहा।।

जय जय जय भैरव बटुक, स्वामी संकट टार ।

कृपा दास पर कीजिए, शंकर के अवतार ।।

जो यह चालीसा पढ़े, प्रेम सहित शत बार ।

उस घर सर्वानन्द हों, वैभव बढ़े अपार ।।

भैरव जी की आरती

जय भैरव देवा, प्रभु जय भैरव देवा ।

जय काली और गौरा देवी कृत सेवा ।।जय…..

तुम्हीं पाप उद्धारक दु:ख सिन्धु तारक ।

भक्तों के सुख कारक भीषण वपु धारक ।।जय…..

वाहन श्वान विराजत कर त्रिशूल धारी ।

महिमा अमित तुम्हारी जय जय भयहारी ।।जय…..

तुम बिन देवा सेवा सफल नहीं होवे ।

चौमुख दीपक दर्शन दु:ख खोवे ।।जय……

तेल चटकि दशि मिश्रित भाषावलि तेरी ।

कृपा करिए भैरव, करिए नहीं देरी ।।जय…..

पांव घुंघरु बाजत अरु डमरू डमकावत ।

बटुकनाथ बन बालकजन मन हरषावत ।।जय…..

बटुकनाथ की आरति जो कोई नर गावे ।

कहे धरणीधर नर मनवांछित फल पावे ।।जय

Shri Bhairav Chalisa Lyrics in English

ll DOHA ll

Shri ganapati, guru, gauri pada,

prema sahita dhari maatha.

Chalisa vandana karaun,

shri shiva bhairavanaatha.

Shri bhairava sankata harana,

mangala karana kripaala.

Shyaama varana vikaraala vapu,

lochana laala vishaala.

Bhairav Chalisa In English

Jaya jaya shri kaali ke laalaa,

jayati jayati kaashii- kutavaalaa.

Jayati ‘batuka- bhairava’ bhaya haarii,

jayati ‘kaala- bhairava’ balakaarii.

Jayati ‘naatha- bhairava’ vikhyaataa,

jayati ‘sarva- bhairava’ sukhadaataa.

Bhairava ruupa kiyo shiva dhaarana,

bhava ke bhaara utaarana kaarana.

Bhairava rava suni hvai bhaya duurii,

saba vidhi hoya kaamanaa puurii.

Shesha mahesha aadi guna gaayo,

kaashii- kotavaala kahalaayo.

Jataa juuta shira chandra viraajata,

baalaa, mukuta, bijaayatha saajata.

Kati karadhanii ghuungharuu baajata,

darshana karata sakala bhaya bhaajata.

Jiivana daana daasa ko diinhyo,

kiinhyo kripaa naatha taba chiinhyo.

Vasi rasanaa bani saarada- kaalii,

diinhyo vara raakhyo mama laalii.

Dhanya dhanya bhairava bhaya bhanjana,

jana manaranjana khala dala bhanjana.

Kara trishula damaruu shuchi kodaa,

kripaa kataaksha suyasha nahin thodaa.

Jo bhairava nirbhaya guna gaavata,

ashtasiddhi nava nidhi phala paavata.

Ruupa vishaala kathina dukha mochana,

krodha karaala laala duhun lochana.

Aginat bhuta preta sanga dolat,

bam bam bam shiva bam bam bolat.

Rudrakaaya kaalii ke laalaa,

mahaa kaalahuu ke ho kaalaa.

Batuka naatha ho kaala ganbhiiraa,

shveta, rakta aru shyaama shariiraa.

Karata tinhun rupa prakaashaa,

bharata subhaktana kahan shubha aashaa.

Ratna jadita kanchana sinhaasana,

vyaaghra charma shuchi narma suaanana.

Tumahi jaai kaashihin jana dhyaavahin,

ishvanaatha kahan darshana paavahin.

Jaya prabhu sanhaaraka sunanda jaya,

jaya unnata hara umaa nanda jaya.

Bhiima trilochana svaana saatha jaya,

vaijanaatha shri jagatanaatha jaya.

Mahaa bhiima bhiishana shariira jaya,

rudra trayambaka dhiira viira jaya.

Ashvanaatha jaya pretanaatha jaya,

svaanaarudha sayachandra maatha jaya

Nimisha digambara chakranaatha jaya,

gahata anaathana naatha haatha jaya.

Treshalesha bhuutesha chandra jaya,

krodha vatsa amaresha nanda jaya.

Shri vaamana nakulesha chanda jaya,

krityaau kiirati prachanda jaya.

Rudra batuka krodhesha kaaladhara,

chakra tunda dasha paanivyaala dhara .

Kari mada paana shambhu gunagaavata,

chaunsatha yogina sanga nachaavata.

Karata kripaa jana para bahu dhangaa,

kaashii kotavaala adabangaa.

Deyan kaala bhairava jaba sotaa,

nasai paapa motaa se motaa.

Janakara nirmala hoya shariiraa,

mitai sakala sankata bhava piiraa.

Shri bhairava bhuutonke raajaa,

baadhaa harata karata shubha kaajaa.

Ailaadii ke duhkha nivaarayo,

sadaa kripaakari kaaja samhaarayo .

Sundara daasa sahita anuraagaa,

shri durvaasaa nikata prayaagaa.

“Shri bhairava jii kii jaya” lekhyo,

sakala kaamanaa puurana dekhyo.

ll DOHA ll

Jai Jai Jai Bhairav Batuka Swami Sankat Taar,

Kripa Daas par kijiye Shankar ke Avataar,

Jo yeh Chalisa Pare prem sahit shat baar,

us ghar sarvanand ho,vaibhav baare apaar.

Jai sri Bhairavaye Namah!

Ganesh Chalisa Lyrics  Hindi 

गणेश चालीसा (Shree Ganesh Chalisa) 

॥ दोहा ॥

जय गणपति सदगुण सदन,
कविवर बदन कृपाल।
विघ्न हरण मंगल करण,
जय जय गिरिजालाल॥


॥ चौपाई ॥


जय जय जय गणपति गणराजू।
मंगल भरण करण शुभः काजू॥


जै गजबदन सदन सुखदाता।
विश्व विनायका बुद्धि विधाता॥


वक्र तुण्ड शुची शुण्ड सुहावना।
तिलक त्रिपुण्ड भाल मन भावन॥


राजत मणि मुक्तन उर माला।
स्वर्ण मुकुट शिर नयन विशाला॥


पुस्तक पाणि कुठार त्रिशूलं।
मोदक भोग सुगन्धित फूलं॥


सुन्दर पीताम्बर तन साजित।
चरण पादुका मुनि मन राजित॥


धनि शिव सुवन षडानन भ्राता।
गौरी लालन विश्व-विख्याता॥


ऋद्धि-सिद्धि तव चंवर सुधारे।
मुषक वाहन सोहत द्वारे॥


कहौ जन्म शुभ कथा तुम्हारी।
अति शुची पावन मंगलकारी॥


एक समय गिरिराज कुमारी।
पुत्र हेतु तप कीन्हा भारी॥


भयो यज्ञ जब पूर्ण अनूपा।
तब पहुंच्यो तुम धरी द्विज रूपा॥


अतिथि जानी के गौरी सुखारी।
बहुविधि सेवा करी तुम्हारी॥


अति प्रसन्न हवै तुम वर दीन्हा।
मातु पुत्र हित जो तप कीन्हा॥


मिलहि पुत्र तुहि, बुद्धि विशाला।
बिना गर्भ धारण यहि काला॥


गणनायक गुण ज्ञान निधाना।
पूजित प्रथम रूप भगवाना॥


अस कही अन्तर्धान रूप हवै।
पालना पर बालक स्वरूप हवै॥


बनि शिशु रुदन जबहिं तुम ठाना।
लखि मुख सुख नहिं गौरी समाना॥


सकल मगन, सुखमंगल गावहिं।
नाभ ते सुरन, सुमन वर्षावहिं॥


शम्भु, उमा, बहुदान लुटावहिं।
सुर मुनिजन, सुत देखन आवहिं॥


लखि अति आनन्द मंगल साजा।
देखन भी आये शनि राजा॥


निज अवगुण गुनि शनि मन माहीं।
बालक, देखन चाहत नाहीं॥


गिरिजा कछु मन भेद बढायो।
उत्सव मोर, न शनि तुही भायो॥


कहत लगे शनि, मन सकुचाई।
का करिहौ, शिशु मोहि दिखाई॥


नहिं विश्वास, उमा उर भयऊ।
शनि सों बालक देखन कहयऊ॥


पदतहिं शनि दृग कोण प्रकाशा।
बालक सिर उड़ि गयो अकाशा॥


गिरिजा गिरी विकल हवै धरणी।
सो दुःख दशा गयो नहीं वरणी॥


हाहाकार मच्यौ कैलाशा।
शनि कीन्हों लखि सुत को नाशा॥


तुरत गरुड़ चढ़ि विष्णु सिधायो।
काटी चक्र सो गज सिर लाये॥


बालक के धड़ ऊपर धारयो।
प्राण मन्त्र पढ़ि शंकर डारयो॥


नाम गणेश शम्भु तब कीन्हे।
प्रथम पूज्य बुद्धि निधि, वर दीन्हे॥


बुद्धि परीक्षा जब शिव कीन्हा।
पृथ्वी कर प्रदक्षिणा लीन्हा॥


चले षडानन, भरमि भुलाई।
रचे बैठ तुम बुद्धि उपाई॥


चरण मातु-पितु के धर लीन्हें।
तिनके सात प्रदक्षिण कीन्हें॥


धनि गणेश कही शिव हिये हरषे।
नभ ते सुरन सुमन बहु बरसे॥


तुम्हरी महिमा बुद्धि बड़ाई।
शेष सहसमुख सके न गाई॥


मैं मतिहीन मलीन दुखारी।
करहूं कौन विधि विनय तुम्हारी॥


भजत रामसुन्दर प्रभुदासा।
जग प्रयाग, ककरा, दुर्वासा॥


अब प्रभु दया दीना पर कीजै।
अपनी शक्ति भक्ति कुछ दीजै॥


॥ दोहा ॥


श्री गणेश यह चालीसा,
पाठ करै कर ध्यान।
नित नव मंगल गृह बसै,
लहे जगत सन्मान॥
सम्बन्ध अपने सहस्त्र दश,
ऋषि पंचमी दिनेश।
पूरण चालीसा भयो,
मंगल मूर्ती गणेश ॥

Shree Ganesh Chalisa Lyrics in English (गणेश चालीसा)

॥ Doha ॥


Jai Ganpati Sadgun Sadan,
Kavivar Badan Kripal ॥
Vighn Haran Mangal Karan,
Jai Jai Girijalal ॥
॥ Chaupai ॥
Jai Jai Jai Ganpati Ganraju ।
Mangal Bharan Karan Shubhah Kaju ॥
Jai Gajabadan Sadan Sukhdata ।
Vishwa Vinayaka Buddhi Vidhata ॥
Vakra Tunda Shuchi Shund Suhawana ।
Tilak Tripund Bhal Man Bhavan ॥
Rajat Mani Muktan Ur Mala ।
Svarn Mukut Shir Nayan Vishala ॥
Pustak Pani Kuthar Trishoolan ।
Modak Bhog Sugandhit Phoolan ॥
Sundar Pitambar Tan Sajit ।
Charan Paduka Muni Man Rajit ॥
Dhani Shiv Suvan Shadanan Bhrata ।
Gauri Lalan Vishv-vikhyata ॥
Rddhi-siddhi Tav Chanvar Sudhare ।
Mushak Vahan Sohat Dvare ॥
Kahau Janm Shubh Katha Tumhari ।
Ati Shuchi Pavan Mangalakari ॥
Ek Samay Giriraj Kumari ।
Putr Hetu Tap Kinha Bhari ॥ 10 ॥
Bhayo Yagy Jab Poorn Anoopa ।
Tab Pahunchyo Tum Dhari Dwij Roopa ॥
Atithi Jani Ke Gauri Sukhari ।
Bahuvidhi Seva Kari Tumhari ॥
Ati Prasann Havai Tum Var Dinha ।
Matu Putr Hit Jo Tap Kinha ॥
Milahi Putr Tuhi, Buddhi Vishala ।
Bina Garbh Dharan Yahi Kala ॥
Gananayak Gun Gyan Nidhana ।
Poojit Pratham Roop Bhagwan ॥
As Kahi Antardhan Roop Havai ।
Palana Par Balak Svaroop Havai ॥
Bani Shishu Rudan Jabahin Tum Thana ।
Lakhi Mukh Sukh Nahin Gauri Samana ॥
Sakal Magan, Sukhamangal Gavahin ।
Nabh Te Suran, Suman Varshwahin ॥
Shambhu, Uma, Bahudan Lutavahin ।
Sur Munijan, Sut Dekhan Awahin ॥
Lakhi Ati Anand Mangal Saja ।
Dekhan Bhi Aye Shani Raja ॥ 20 ॥
Nij Avgun Guni Shani Man Mahin ।
Balak, Dekhan Chahat Nahin ॥
Girija Kachhu Man Bhed Badhayo ।
Utsav Mor, Na Shani Tuhi Bhayo ॥
Kahat Lage Shani, Man Sakuchai ।
Ka Karihau, Shishu Mohi Dikhai ॥
Nahin Vishwas, Uma Ur Bhayoo ।
Shani Son Balak Dekhan Kahayoo ॥
Padtahin Shani Drg Kon Prakasha ।
Balak Sir Udi Gayo Akasha ॥
Girija Giri Vikal Havai Dharani ।
So Duhkh Dasha Gayo Nahin Varani ॥
Hahakar Machyau Kailash ।
Shani Kinhon Lakhi Sut Ko Nasha ॥
Turat Garud Chadhi Vishnu Sidhayo ।
Kati Chakr So Gaj Sir Laye ॥
Balak Ke Dhad Oopar Dharayo ।
Pran Mantr Padhi Shankar Darayo ॥
Nam Ganesh Shambhu Tab Kinhe ।
Pratham Poojy Buddhi Nidhi, Var Dinhe ॥ 30 ॥
Buddhi Pariksha Jab Shiv Kinha ।
Prthvi Kar Pradakshina Linha ॥
Chale Shadanan, Bharami Bhulai ।
Rache Baith Tum Buddhi Upai ॥
Charan Matu-pitu Ke Dhar Linhen ।
Tinake Sat Pradakshin Kinhen ॥
Dhani Ganesh Kahi Shiv Hiye Harashe ।
Nabh Te Suran Suman Bahu Barase ॥
Tumhari Mahima Buddhi Badai ।
Shesh Sahasamukh Sake Na Gai ॥
Main Matihin Malin Dukhari ।
Karahoon Kaun Vidhi Vinay Tumhari ॥
Bhajat Ramasundar Prabhudasa ।
Jag Prayag, Kakara, Durvasa ॥
Ab Prabhu Daya Dina Par Kijai ।
Apani Shakti Bhakti Kuchh Dijai ॥ 40 ॥

॥ Doha ॥


Shri Ganesh Yah Chalisa,
Path Karai Kar Dhyan ।
Nit Nav Mangal Grh Basai,
Lahe Jagat Sanman ॥
Sambandh Apane Sahastr Dash,
Rishi Panchami Dinesh ।
Pooran Chalisa Bhayo,
Mangal Murti Ganesh ॥

श्री शनि चालीसा

shani chalisa lyrics in hindi

दोहा

जय गणेश गिरिजा सुवन, मंगल करण कृपाल ।
दीनन के दुख दूर करि, कीजै नाथ निहाल
जय जय श्री शनिदेव प्रभु, सुनहु विनय महाराज ।
करहु कृपा हे रवि तनय, राखहु जन की लाज

चौपाई

जयति जयति शनिदेव दयाला ।
करत सदा भक्तन प्रतिपाला ॥1॥

चारि भुजा, तनु श्याम विराजै ।
माथे रतन मुकुट छबि छाजै ॥2॥

परम विशाल मनोहर भाला ।
टेढ़ी दृष्टि भृकुटि विकराला ॥3॥

कुण्डल श्रवण चमाचम चमके ।
हिय माल मुक्तन मणि दमके ॥4॥

कर में गदा त्रिशूल कुठारा ।
पल बिच करैं अरिहिं संहारा ॥5॥

पिंगल, कृष्णो, छाया नन्दन ।
यम, कोणस्थ, रौद्र, दुखभंजन ॥6॥

सौरी, मन्द, शनी, दश नामा ।
भानु पुत्र पूजहिं सब कामा ॥7॥

जा पर प्रभु प्रसन्न ह्वैं जाहीं ।
रंकहुँ राव करैं क्षण माहीं ॥8॥

पर्वतहू तृण होई निहारत ।
तृणहू को पर्वत करि डारत ॥9॥

राज मिलत बन रामहिं दीन्हयो ।
कैकेइहुँ की मति हरि लीन्हयो ॥10॥

बनहूँ में मृग कपट दिखाई ।
मातु जानकी गई चुराई ॥11॥

लखनहिं शक्ति विकल करिडारा ।
मचिगा दल में हाहाकारा ॥12॥

रावण की गति-मति बौराई ।
रामचन्द्र सों बैर बढ़ाई ॥13॥

दियो कीट करि कंचन लंका ।
बजि बजरंग बीर की डंका ॥14॥

नृप विक्रम पर तुहि पगु धारा ।
चित्र मयूर निगलि गै हारा ॥15॥

हार नौलखा लाग्यो चोरी ।
हाथ पैर डरवायो तोरी ॥16॥

भारी दशा निकृष्ट दिखायो ।
तेलिहिं घर कोल्हू चलवायो ॥17॥

विनय राग दीपक महं कीन्हयों ।
तब प्रसन्न प्रभु ह्वै सुख दीन्हयों ॥18॥

हरिश्चन्द्र नृप नारि बिकानी ।
आपहुं भरे डोम घर पानी ॥19॥

तैसे नल पर दशा सिरानी ।
भूंजी-मीन कूद गई पानी ॥20॥

श्री शंकरहिं गह्यो जब जाई ।
पारवती को सती कराई ॥21॥

तनिक विलोकत ही करि रीसा ।
नभ उड़ि गयो गौरिसुत सीसा ॥22॥

पाण्डव पर भै दशा तुम्हारी ।
बची द्रौपदी होति उघारी ॥23॥

कौरव के भी गति मति मारयो ।
युद्ध महाभारत करि डारयो ॥24॥

रवि कहँ मुख महँ धरि तत्काला ।
लेकर कूदि परयो पाताला ॥25॥

शेष देव-लखि विनती लाई ।
रवि को मुख ते दियो छुड़ाई ॥26॥

वाहन प्रभु के सात सुजाना ।
जग दिग्गज गर्दभ मृग स्वाना ॥27॥

जम्बुक सिंह आदि नख धारी ।
सो फल ज्योतिष कहत पुकारी ॥28॥

गज वाहन लक्ष्मी गृह आवैं ।
हय ते सुख सम्पति उपजावैं ॥29॥

गर्दभ हानि करै बहु काजा ।
सिंह सिद्धकर राज समाजा ॥30॥

जम्बुक बुद्धि नष्ट कर डारै ।
मृग दे कष्ट प्राण संहारै ॥31॥

जब आवहिं प्रभु स्वान सवारी ।
चोरी आदि होय डर भारी ॥32॥

तैसहि चारि चरण यह नामा ।
स्वर्ण लौह चाँदी अरु तामा ॥33॥

लौह चरण पर जब प्रभु आवैं ।
धन जन सम्पत्ति नष्ट करावैं ॥34॥

समता ताम्र रजत शुभकारी ।
स्वर्ण सर्व सर्व सुख मंगल भारी ॥35॥

जो यह शनि चरित्र नित गावै ।
कबहुं न दशा निकृष्ट सतावै ॥36॥

अद्भुत नाथ दिखावैं लीला ।
करैं शत्रु के नशि बलि ढीला ॥37॥

जो पण्डित सुयोग्य बुलवाई ।
विधिवत शनि ग्रह शांति कराई ॥38॥

पीपल जल शनि दिवस चढ़ावत ।
दीप दान दै बहु सुख पावत ॥39॥

कहत राम सुन्दर प्रभु दासा ।
शनि सुमिरत सुख होत प्रकाशा ॥40॥

दोहा

पाठ शनिश्चर देव को, की हों ‘भक्त’ तैयार ।
करत पाठ चालीस दिन, हो भवसागर पार

Iti Shri Shani chalisa sampoorn | इति श्री शनि चालीसा सम्पूर्ण

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Shani Chalisa Lyrics in English

Shri Shani Chalisa Lyrics | श्री शनि चालीसा लिरिक्स

Doha

Jai Ganesh Girija suvan, mangal karan kripaal ।
Deenan ke dukh door kari, keejey nath nihaal
Jai Jai Shri Shanidev prabhu, sunhu vinay maharaj ।
Karhu kripa he ravi tanay, rakhu jan ki laaj

Chaupai

Jayti jayti Shanidev dayala ।
Karat sada bhaktan pratipala ॥1॥

Chari bhuja, tanu shyam virajay ।
Mathe ratan mukut chavi chaaje ॥2॥

Param vishal manohar bhala ।
Tedi drishti brikuti vikrala ॥3॥

Kundal shravan chamacham chamke ।
Hiye maal muktan mani damke ॥4॥

Kar me gada trishul kuthra ।
Pal bich kare arihin sanhara ॥5॥

Pingal, krishno, chaya nandan ।
Yum, konasth, rodra, dukh bhanjan ॥6॥

Sauri, mand, Shani, dush nama ।
Bhannu putra poojhin sab kama ॥7॥

Ja par prabhu prasan have jaahin ।
Rankahun raav kare shan mahi ॥8॥

Parvathu trin hoyi niharat ।
Trinhu ko parvat kari darat ॥9॥

Raaj milat ban ramhin dinhyo ।
Kaikeihun ki mati hari linhyo ॥10॥

Banhu mein mrig kapat dikhayi ।
Matu Janki gayi churayi ॥11॥

Lakhanhin shakti vikal karidara ।
Machiga dal mein hahakara ॥12॥

Ravan ki gati-mati borayi ।
Ramchandra son baer badayi ॥13॥

Diyo keet kari kanchan lanka ।
Baji Bajrang beer ki danka ॥14॥

Nrip vikram par tuhi pagu dhara ।
Chitra mayur nigli geyi hara ॥15॥

Haar nolakha lagyo chori ।
Haath pair darwayo tori ॥16॥

Bhari dasha nikrisht dikhayo ।
Telihin ghar kolhu chalwayo ॥17॥

Vinay raag dipak maha kinhayon ।
Tab prasan prabhu have sukh dinhyon ॥18॥

Harishchandra nrip nari bikani ।
Aaphun bhare dom ghar pani ॥19॥

Tese nal par  dasha sirani ।
Bhunji-meen kood gayi pani ॥20॥

Shri Shankarhin gahyo jab jayi ।
Parvati ko sati karayi ॥21॥

Tanik vilokat hi kari reesa ।
Nabh udd gayo Gaurisut seesa ॥22॥

Pandav par bhay dasha tumhari ।
Bachi Draupadi hoti ughadi ॥23॥

Kaurav ke bhi gati mati maryo ।
Yudh mahabharat kari daryo ॥24॥

Ravi kha mukh mha dhari tatkala ।
Lekar kudi paryo patala ॥25॥

Sesh dev-lakhi vinti layi ।
Ravi ko mukh te diyo chudayi ॥26॥

Vahan prabhu ke saat sujana ।
Jag diggaj gardhab mrig swana ॥27॥

Jambuk sinh aadi nakh dhari ।
So phal jyotish kahat pukari ॥28॥

Gaj vahan laxmi grah aaven ।
Haye tee sukh sampati upjave ॥29॥

Gardabh hani kare bahu kaaja ।
Sinh sidhkar raaj samaja ॥30॥

Jambuk buddhi nasht kar dare ।
Mrig de kasht pran sanhare ॥31॥

Jab aavhin prabhu swaan sawari ।
Chori aadi hoy dar bhari ॥32॥

Teshi chari charan yeh nama ।
Swarn loh chandi aru tama ॥33॥

Loh charan par jab prabhu aaven ।
Dhan jan sampatti nasht karaven ॥34॥

Samta tamra rajat shubhkari ।
Swarn sarv sarv sukh mangal bhari ॥35॥

Jo yeh Shani charitra nitt gave ।
Kabahun na dasha nikrisht satave ॥36॥

Adbhut nath dikhawen leela ।
Karen shatru ke nashi bali dhila ॥37॥

Jo pandit suyogya bulwayi ।
Vidhivat Shani grah shanti karayi ॥38॥

Peepal jal Shani divas chadawat ।
Deep daan deyi bahu sukh pavat ॥39॥

Kahat Ram sunder prabhu dasa ।
Shani su,irat sukh hot prakasha ॥40॥

Doha

Paath Shanishchar dev ko, ki hon ‘bhakt’ taiyar ।
Karat paath chalis din, ho bhavsagar paar

Iti Shri Shani chalisa sampoorn [English] | इति श्री शनि चालीसा सम्पूर्ण

Gayak: Mahendra Kapoor

श्री शनि चालीसा अर्थ सहित

॥दोहा॥

जय गणेश गिरिजा सुवन, मंगल करण कृपाल।

दीनन के दुःख दूर करि, कीजै नाथ निहाल॥

जय जय श्री शनिदेव प्रभु, सुनहु विनय महाराज।

करहु कृपा हे रवि तनय, राखहु जन की लाज॥

हे माता पार्वती के पुत्र भगवान श्री गणेश, आपकी जय हो। आप कल्याणकारी है, सब पर कृपा करने वाले हैं, दीन लोगों के दुख दुर कर उन्हें खुशहाल करें भगवन। हे भगवान श्री शनिदेव जी आपकी जय हो, हे प्रभु, हमारी प्रार्थना सुनें, हे रविपुत्र हम पर कृपा करें व भक्तजनों की लाज रखें।

॥चौपाई॥

जयति जयति शनिदेव दयाला। करत सदा भक्तन प्रतिपाला॥

चारि भुजा, तनु श्याम विराजै। माथे रतन मुकुट छवि छाजै॥

परम विशाल मनोहर भाला। टेढ़ी दृष्टि भृकुटि विकराला॥

कुण्डल श्रवण चमाचम चमके। हिये माल मुक्तन मणि दमके॥

कर में गदा त्रिशूल कुठारा। पल बिच करैं अरिहिं संहारा॥

हे दयालु शनिदेव महाराज आपकी जय हो, आप सदा भक्तों के रक्षक हैं उनके पालनहार हैं। आप श्याम वर्णीय हैं व आपकी चार भुजाएं हैं। आपके मस्तक पर रतन जड़ित मुकुट आपकी शोभा को बढा रहा है। आपका बड़ा मस्तक आकर्षक है, आपकी दृष्टि टेढी रहती है ( शनिदेव को यह वरदान प्राप्त हुआ था कि जिस पर भी उनकी दृष्टि पड़ेगी उसका अनिष्ट होगा इसलिए आप हमेशा टेढी दृष्टि से देखते हैं ताकि आपकी सीधी दृष्टि से किसी का अहित न हो)। आपकी भृकुटी भी विकराल दिखाई देती है। आपके कानों में सोने के कुंडल चमचमा रहे हैं। आपकी छाती पर मोतियों व मणियों का हार आपकी आभा को और भी बढ़ा रहा है। आपके हाथों में गदा, त्रिशूल व कुठार हैं, जिनसे आप पल भर में शत्रुओं का संहार करते हैं।

पिंगल, कृष्णों, छाया, नन्दन। यम, कोणस्थ, रौद्र, दुःख भंजन॥

सौरी, मन्द, शनि, दशनामा। भानु पुत्र पूजहिं सब कामा॥

जा पर प्रभु प्रसन्न है जाहीं। रंकहुं राव करैं क्षण माहीं॥

पर्वतहू तृण होई निहारत। तृणहू को पर्वत करि डारत॥

पिंगल, कृष्ण, छाया नंदन, यम, कोणस्थ, रौद्र, दु:ख भंजन, सौरी, मंद, शनि ये आपके दस नाम हैं। हे सूर्यपुत्र आपको सब कार्यों की सफलता के लिए पूजा जाता है। क्योंकि जिस पर भी आप प्रसन्न होते हैं, कृपालु होते हैं वह क्षण भर में ही रंक से राजा बन जाता है। पहाड़ जैसी समस्या भी उसे घास के तिनके सी लगती है लेकिन जिस पर आप नाराज हो जांए तो छोटी सी समस्या भी पहाड़ बन जाती है।

राज मिलत वन रामहिं दीन्हो। कैकेइहुं की मति हरि लीन्हो॥

बनहूं में मृग कपट दिखाई। मातु जानकी गई चतुराई॥

लखनहिं शक्ति विकल करिडारा। मचिगा दल में हाहाकारा॥

रावण की गति मति बौराई। रामचन्द्र सों बैर बढ़ाई॥

दियो कीट करि कंचन लंका। बजि बजरंग बीर की डंका॥

नृप विक्रम पर तुहि पगु धारा। चित्र मयूर निगलि गै हारा॥

हार नौलाखा लाग्यो चोरी। हाथ पैर डरवायो तोरी॥

भारी दशा निकृष्ट दिखायो। तेलिहिं घर कोल्हू चलवायो॥

विनय राग दीपक महँ कीन्हों। तब प्रसन्न प्रभु हवै सुख दीन्हों॥

हे प्रभु आपकी दशा के चलते ही तो राज के बदले भगवान श्री राम को भी वनवास मिला था। आपके प्रभाव से ही केकैयी ने ऐसा बुद्धि हीन निर्णय लिया। आपकी दशा के चलते ही वन में मायावी मृग के कपट को माता सीता पहचान न सकी और उनका हरण हुआ। उनकी सूझबूझ भी काम नहीं आयी। आपकी दशा से ही लक्ष्मण के प्राणों पर संकट आन खड़ा हुआ जिससे पूरे दल में हाहाकार मच गया था। आपके प्रभाव से ही रावण ने भी ऐसा बुद्धिहीन कृत्य किया व प्रभु श्री राम से शत्रुता बढाई। आपकी दृष्टि के कारण बजरंग बलि हनुमान का डंका पूरे विश्व में बजा व लंका तहस-नहस हुई। आपकी नाराजगी के कारण राजा विक्रमादित्य को जंगलों में भटकना पड़ा। उनके सामने हार को मोर के चित्र ने निगल लिया व उन पर हार चुराने के आरोप लगे। इसी नौलखे हार की चोरी के आरोप में उनके हाथ पैर तुड़वा दिये गये। आपकी दशा के चलते ही विक्रमादित्य को तेली के घर कोल्हू चलाना पड़ा। लेकिन जब दीपक राग में उन्होंनें प्रार्थना की तो आप प्रसन्न हुए व फिर से उन्हें सुख समृद्धि से संपन्न कर दिया।

हरिश्चन्द्र नृप नारि बिकानी। आपहुं भरे डोम घर पानी॥

तैसे नल पर दशा सिरानी। भूंजी-मीन कूद गई पानी॥

श्री शंकरहि गहयो जब जाई। पार्वती को सती कराई॥

तनिक विलोकत ही करि रीसा। नभ उड़ि गयो गौरिसुत सीसा॥

पाण्डव पर भै दशा तुम्हारी। बची द्रोपदी होति उधारी॥

कौरव के भी गति मति मारयो। युद्ध महाभारत करि डारयो॥

रवि कहं मुख महं धरि तत्काला। लेकर कूदि परयो पाताला॥

शेष देव-लखि विनती लाई। रवि को मुख ते दियो छुड़ई॥

आपकी दशा पड़ने पर राजा हरिश्चंद्र की स्त्री तक बिक गई, स्वयं को भी डोम के घर पर पानी भरना पड़ा। उसी प्रकार राजा नल व रानी दयमंती को भी कष्ट उठाने पड़े, आपकी दशा के चलते भूनी हुई मछली तक वापस जल में कूद गई और राजा नल को भूखों मरना पड़ा। भगवान शंकर पर आपकी दशा पड़ी तो माता पार्वती को हवन कुंड में कूदकर अपनी जान देनी पड़ी। आपके कोप के कारण ही भगवान गणेश का सिर धड़ से अलग होकर आकाश में उड़ गया। पांडवों पर जब आपकी दशा पड़ी तो द्रौपदी वस्त्रहीन होते होते बची। आपकी दशा से कौरवों की मति भी मारी गयी जिसके परिणाम में महाभारत का युद्ध हुआ। आपकी कुदृष्टि ने तो स्वयं अपने पिता सूर्यदेव को नहीं बख्शा व उन्हें अपने मुख में लेकर आप पाताल लोक में कूद गए। देवताओं की लाख विनती के बाद आपने सूर्यदेव को अपने मुख से आजाद किया।

वाहन प्रभु के सात सुजाना। दिग्ज हय गर्दभ मृग स्वाना॥

जम्बुक सिंह आदि नख धारी। सो फल ज्योतिष कहत पुकारी॥

गज वाहन लक्ष्मी गृह आवैं। हय ते सुख सम्पत्ति उपजावै॥

गर्दभ हानि करै बहु काजा। सिंह सिद्धकर राज समाजा॥

जम्बुक बुद्धि नष्ट कर डारै। मृग दे कष्ट प्राण संहारै॥

जब आवहिं प्रभु स्वान सवारी। चोरी आदि होय डर भारी॥

तैसहि चारि चरण यह नामा। स्वर्ण लौह चाँजी अरु तामा॥

लौह चरण पर जब प्रभु आवैं। धन जन सम्पत्ति नष्ट करावै॥

समता ताम्र रजत शुभकारी। स्वर्ण सर्वसुख मंगल कारी॥

हे प्रभु आपके सात वाहन हैं। हाथी, घोड़ा, गधा, हिरण, कुत्ता, सियार और शेर जिस वाहन पर बैठकर आप आते हैं उसी प्रकार ज्योतिष आपके फल की गणना करता है। यदि आप हाथी पर सवार होकर आते हैं घर में लक्ष्मी आती है। यदि घोड़े पर बैठकर आते हैं तो सुख संपत्ति मिलती है। यदि गधा आपकी सवारी हो तो कई प्रकार के कार्यों में अड़चन आती है, वहीं जिसके यहां आप शेर पर सवार होकर आते हैं तो आप समाज में उसका रुतबा बढाते हैं, उसे प्रसिद्धि दिलाते हैं। वहीं सियार आपकी सवारी हो तो आपकी दशा से बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है व यदि हिरण पर आप आते हैं तो शारीरिक व्याधियां लेकर आते हैं जो जानलेवा होती हैं। हे प्रभु जब भी कुत्ते की सवारी करते हुए आते हैं तो यह किसी बड़ी चोरी की और ईशारा करती है। इसी प्रकार आपके चरण भी सोना, चांदी, तांबा व लोहा आदि चार प्रकार की धातुओं के हैं। यदि आप लौहे के चरण पर आते हैं तो यह धन, जन या संपत्ति की हानि का संकेतक है। वहीं चांदी व तांबे के चरण पर आते हैं तो यह सामान्यत शुभ होता है, लेकिन जिनके यहां भी आप सोने के चरणों में पधारते हैं, उनके लिये हर लिहाज से सुखदायक व कल्याणकारी होते है।

जो यह शनि चरित्र नित गावै। कबहुं न दशा निकृष्ट सतावै॥

अदभुत नाथ दिखावैं लीला। करैं शत्रु के नशि बलि ढीला॥

जो पण्डित सुयोग्य बुलवाई। विधिवत शनि ग्रह शांति कराई॥

पीपल जल शनि दिवस चढ़ावत। दीप दान दै बहु सुख पावत॥

कहत राम सुन्दर प्रभु दासा। शनि सुमिरत सुख होत प्रकाशा॥

जो भी इस शनि चरित्र को हर रोज गाएगा उसे आपके कोप का सामना नहीं करना पड़ेगा, आपकी दशा उसे नहीं सताएगी। उस पर भगवान शनिदेव महाराज अपनी अद्भुत लीला दिखाते हैं व उसके शत्रुओं को कमजोर कर देते हैं। जो कोई भी अच्छे सुयोग्य पंडित को बुलाकार विधि व नियम अनुसार शनि ग्रह को शांत करवाता है। शनिवार के दिन पीपल के वृक्ष को जल देता है व दिया जलाता है उसे बहुत सुख मिलता है। प्रभु शनिदेव का दास रामसुंदर भी कहता है कि भगवान शनि के सुमिरन सुख की प्राप्ति होती है व अज्ञानता का अंधेरा मिटकर ज्ञान का प्रकाश होने लगता है।

॥दोहा॥

पाठ शनिश्चर देव को, की हों विमल तैयार।

करत पाठ चालीस दिन, हो भवसागर पार॥

भगवान शनिदेव के इस पाठ को ‘विमल’ ने तैयार किया है जो भी इस चालीसा का चालीस दिन तक पाठ करता है शनिदेव की कृपा से वह भवसागर से पार हो जाता है।

कुछ महत्वपूर्ण बातें

शनि देव का मंत्र क्या है? (Shani Mantra)

  • ॐ प्रां प्रीं प्रौं सः शनैश्चराय नमः। (बीज मंत्र)
  • ॐ शं शनैश्चराय नमः।
  • ॐ निलान्जन समाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम। छायामार्तंड संभूतं तं नमामि शनैश्चरम॥

इन मंत्रों का नियमित जाप करने से इंसान को मानसिक शांति मिलती है।

शनि दोष हटाने के लिए क्या करें?

मंगलवार और शनिवार के दिन शनि चालीसा या सुंदरकांड का पाठ करना चाहिए।

शनि मंत्र का जाप कैसे किया जाता है?

शाम के वक्त शनिदेव का ध्यान करना चाहिए और काली तुलसी की माला लेकर शनि मंत्रों का जाप करना चाहिए।

कौन सा शनि मंत्र शक्तिशाली है?

‘प्रां प्रीं प्रौं सह शनैइशराय नमः’ इस मंत्र को बेहद शक्तिशाली माना गया है। इसे ही बीज मंत्र कहते हैं। इसका जाप दिन में दो बार करना चाहिए।

शनिवार को क्यों होती है हनुमान जी की पूजा?

माना जाता है कि शनिदेव को हनुमान जी ने रावण की कैद से मुक्त कराया था इसलिए शनिदेव रूद्र अवतार बजरंग बली को बहुत मानते हैं इसलिए शनिवार के दिन शनिदेव का साथ हनुमान जी की भी पूजा होती है।

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Saraswati Chalisa

Saraswati Chalisa Lyrics in Hindi

सरस्वती पूजन

श्री कृष्ण ने भारतवर्ष में सर्वप्रथम सरस्वती की पूजा का प्रसार किया।

माघ मास की शुक्ल पंचमी पर तुम्हारा पूजन चिरंतन काल तक होता रहेगा तथा वह विद्यारम्भ का दिवस माना जायेगा। वाल्मीकि, बृहस्पति, भृगु इत्यादि को क्रमश: नारायण, मरीचि तथा ब्रह्मा आदि ने सरस्वती-पूजन का बीजमन्त्र दिया था।

हिन्दूधर्म में ज्ञान की देवी हैं- माँ सरस्वती

सरस्वती विद्या की देवी हैं। यह देवी मनुष्य समाज को महानतम सम्पत्ति-ज्ञानसम्पदा प्रदान करती है। वेदों में सरस्वती का वर्णन श्वेत वस्त्रा (जो श्वेत परिधान से आवरित है) के रूप में किया गया है। श्वेत पुष्प व मोती इनके आभूषण हैं, तथा श्वेत कमल गुच्छ पर ये विराजमान हैं। इनके हाथ में वीणा (सितार से मिलता-जुलता तारयुक्त वाद्य) शोभित है। वेद इन्हें जलदेवी के रूप में महत्ता देते हैं, एक नदी का नाम भी सरस्वती है। सरस्वती का पौराणिक इतिहास इन्हें उन धार्मिक कृत्यों से जोड़ता है, जो इन्हीं के नाम वाग्देवी के रूप में की जाती है तथा इनका संबंध बोलने व लिखने, शब्द की उत्पत्ति, दिव्यश्लोक विन्यास तथा संगीत से भी है।

सरस्वती
अन्य नामवाणी, वाग्देवी, भारती, शारदा, वागेश्वरी
जन्म विवरणसरस्वती का जन्म ब्रह्मा के मुँह से हुआ था।
वाहनहंस
रंग-रूपश्वेत पुष्प व मोती इनके आभूषण हैं, तथा श्वेत कमल गुच्छ पर ये विराजमान हैं।
वाद्यवीणा
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विशेषसरस्वती का पौराणिक इतिहास इन्हें उन धार्मिक कृत्यों से जोड़ता है, जो इन्हीं के नाम वाग्देवी के रूप में की जाती है तथा इनका संबंध बोलने व लिखने, शब्द की उत्पत्ति, दिव्यश्लोक विन्यास तथा संगीत से भी है।
अन्य जानकारीसरस्वती विद्या की देवी हैं। यह देवी मनुष्य समाज को महानतम सम्पत्ति-ज्ञानसम्पदा प्रदान करती है।
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Maa Saraswati

Saraswati Chalisa Lyrics in Hindi

मातु सरस्वती

॥ दोहा ॥

जनक जननि पद कमल रज,निज मस्तक पर धारि।

बन्दौं मातु सरस्वती, बुद्धि बल दे दातारि॥

पूर्ण जगत में व्याप्त तव, महिमा अमित अनंतु।

रामसागर के पाप को, मातु तुही अब हन्तु॥

॥ चौपाई ॥

जय श्री सकल बुद्धि बलरासी।

जय सर्वज्ञ अमर अविनासी॥

जय जय जय वीणाकर धारी।

करती सदा सुहंस सवारी॥

रूप चतुर्भुजधारी माता।

सकल विश्व अन्दर विख्याता॥

जग में पाप बुद्धि जब होती।

जबहि धर्म की फीकी ज्योती॥

तबहि मातु ले निज अवतारा।

पाप हीन करती महि तारा॥

बाल्मीकि जी थे बहम ज्ञानी।

तव प्रसाद जानै संसारा॥

रामायण जो रचे बनाई।

आदि कवी की पदवी पाई॥

कालिदास जो भये विख्याता।

तेरी कृपा दृष्टि से माता॥

तुलसी सूर आदि विद्धाना।

भये और जो ज्ञानी नाना॥

तिन्हहिं न और रहेउ अवलम्बा।

केवल कृपा आपकी अम्बा॥

करहु कृपा सोइ मातु भवानी।

दुखित दीन निज दासहि जानी॥

पुत्र करै अपराध बहूता।

तेहि न धरइ चित सुन्दर माता॥

राखु लाज जननी अब मेरी।

विनय करूं बहु भांति घनेरी॥

मैं अनाथ तेरी अवलंबा।

कृपा करउ जय जय जगदंबा॥

मधु कैटभ जो अति बलवाना।

बाहुयुद्ध विष्णू ते ठाना॥

समर हजार पांच में घोरा।

फिर भी मुख उनसे नहिं मोरा॥

मातु सहाय भई तेहि काला।

बुद्धि विपरीत करी खलहाला॥

तेहि ते मृत्यु भई खल केरी।

पुरवहु मातु मनोरथ मेरी॥

चंड मुण्ड जो थे विख्याता।

छण महुं संहारेउ तेहि माता॥

रक्तबीज से समरथ पापी।

सुर-मुनि हृदय धरा सब कांपी॥

काटेउ सिर जिम कदली खम्बा।

बार बार बिनवउं जगदंबा॥

जग प्रसिद्ध जो शुंभ निशुंभा।

छिन में बधे ताहि तू अम्बा॥

भरत-मातु बुधि फेरेउ जाई।

रामचन्द्र बनवास कराई॥

एहि विधि रावन वध तुम कीन्हा।

सुर नर मुनि सब कहुं सुख दीन्हा॥

को समरथ तव यश गुन गाना।

निगम अनादि अनंत बखाना॥

विष्णु रूद्र अज सकहिं न मारी।

जिनकी हो तुम रक्षाकारी॥

रक्त दन्तिका और शताक्षी।

नाम अपार है दानव भक्षी॥

दुर्गम काज धरा पर कीन्हा।

दुर्गा नाम सकल जग लीन्हा॥

दुर्ग आदि हरनी तू माता।

कृपा करहु जब जब सुखदाता॥

नृप कोपित जो मारन चाहै।

कानन में घेरे मृग नाहै॥

सागर मध्य पोत के भंगे।

अति तूफान नहिं कोऊ संगे॥

भूत प्रेत बाधा या दुःख में।

हो दरिद्र अथवा संकट में॥

नाम जपे मंगल सब होई।

संशय इसमें करइ न कोई॥

पुत्रहीन जो आतुर भाई।

सबै छांड़ि पूजें एहि माई॥

करै पाठ नित यह चालीसा।

होय पुत्र सुन्दर गुण ईसा॥

धूपादिक नैवेद्य चढावै।

संकट रहित अवश्य हो जावै॥

भक्ति मातु की करै हमेशा।

निकट न आवै ताहि कलेशा॥

बंदी पाठ करें शत बारा।

बंदी पाश दूर हो सारा॥

करहु कृपा भवमुक्ति भवानी।

मो कहं दास सदा निज जानी॥

॥ दोहा ॥

माता सूरज कान्ति तव,अंधकार मम रूप।

डूबन ते रक्षा करहु,परूं न मैं भव-कूप॥

बल बुद्धि विद्या देहुं मोहि,सुनहु सरस्वति मातु।

अधम रामसागरहिं तुम,आश्रय देउ पुनातु॥

Maa Saraswati Chalisa Lyrics in English

॥ Doha ॥

Janak Janani Padmaraj, Nij Mastak Par Dhari ।

Bandaun Matu Saraswati, Buddhi Bal De Datari ॥

Poorn Jagat Mein Vyapt Tav, Mahima Amit Anantu ।

Dushjanon Ke Pap Ko, Matu Tu Hi Ab Hantu ॥

॥ Chalisa ॥

Jai Shri Sakal Buddhi Balarasi ।

Jai Sarvagy Amar Avinashi ॥

Jai Jai Jai Vinakar Dhari ।

Karati Sada Suhans Savari ॥

Roop Chaturbhuj Dhari Mata ।

Sakal Vishv Andar Vikhyata ॥

Jag Mein Pap Buddhi Jab Hoti ।

Tab Hi Dharm Ki Phiki Jyoti ॥

Tab Hi Matu Ka Nij Avatari ।

Pap Hin Karati Mahatari ॥

Valmikiji the Hatyara ।

Tav Prasad Janai Sansara ॥

Ramacharit Jo Rache Banai ।

Adi Kavi Ki Padavi Pai ॥

Kalidas Jo Bhaye Vikhyata ।

Teri Krpa Drshti Se Mata ॥

Tulasi Soor Adi Vidvana ।

Bhaye Aur Jo Gyani Nana ॥

Tinh Na Aur Raheu Avalamba ।

Kev Krpa Apaki Amba ॥

Karahu Krpa Soi Matu Bhavani ।

Dukhit Deen Nij Dasahi Jani ॥

Putr Karahin Aparadh Bahoota ।

Tehi Na Dhari Chit Mata ॥

Rakhu Laj Janani Ab Meri ।

Vinay Karun Bhanti Bahu Teri ॥

Main Anath Teri Avalamba ।

Krpa Karu Jai Jai Jagadamba ॥

Madhukaitabh Jo Ati Balavana ।

Bahuyuddh Vishnu Se Thana ॥

Samar Hajar Panch Mein Ghora ।

Phir Bhi Mukh Unase Nahin Mora ॥

Matu Sahay Kinh Tehi Kala ।

Buddhi Viparit Bhi Khalahala ॥

Tehi Te Mrtyu Bhi Khal Keri ।

Puravahu Matu Manorath Meri ॥

Chand Mund Jo the Vikhyata ।

Kshan Mahu Sanhare Un Mata ॥

Rakt Bij Se Samarath Papi ।

Suramuni Haday Dhara Sab Kanpi ॥

Kateu Sir Jimi Kadali Khamba ।

Barabar Bin Vaun Jagadamba ॥

Jagaprasiddh Jo Shumbhanishumbha ।

Kshan Mein Bandhe Tahi Too Amba ॥

Bharatamatu Buddhi Phereoo Jai ।

Ramachandr Banavas Karai ॥

Ehividhi Ravan Vadh Too Kinha ।

Sur Naramuni Sabako Sukh Dinha ॥

Ko Samarath Tav Yash Gun Gana ।

Nigam Anadi Anant Bakhana ॥

Vishnu Rudr Jas Kahin Mari ।

Jinaki Ho Tum Rakshakari ॥

Rakt Dantika Aur Shatakshi ।

Nam Apar Hai Danav Bhakshi ॥

Durgam Kaj Dhara Par Kinha ।

Durga Nam Sakal Jag Linha ॥

Durg Adi Harani Too Mata ।

Krpa Karahu Jab Jab Sukhadata ॥

Nrp Kopit Ko Maran Chahe ।

Kanan Mein Ghere Mrg Nahe ॥

Sagar Madhy Pot Ke Bhanje ।

Ati Toophan Nahin Kooo Sange ॥

Bhoot Pret Badha Ya Duhkh Mein ।

Ho Daridr Athava Sankat Mein ॥

Nam Jape Mangal Sab Hoi ।

Sanshay Isamen Kari Na Koi ॥

Putrahin Jo Atur Bhai ।

Sabai Chhandi Poojen Ehi Bhai ॥

Karai Path Nit Yah Chalisa ।

Hoy Putr Sundar Gun Isha ॥

Dhoopadik Naivedya Chadhavai ।

Sankat Rahit Avashy Ho Javai ॥

Bhakti Matu Ki Karain Hamesha ।

Nikat Na Avai Tahi Kalesha ॥

Bandi Path Karen Sat Bara ।

Bandi Pash Door Ho Sara ॥

Ramasagar Bandhi Hetu Bhavani ।

Kijai Krpa Das Nij Jani ।

॥ Doha ॥

Matu Soory Kanti Tav, Andhakar Mam Roop ।

Dooban Se Raksha Karahu Paroon Na Main Bhav Koop ॥

Balabuddhi Vidya Dehu Mohi, Sunahu Sarasvati Matu ।

Ram Sagar Adham Ko Ashray Too Hi Dedatu ॥

विद्या की देवी माँ सरस्वती | mata saraswati

-पूज्य पांडुरंग शास्त्री आठवले

‘या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभवस्त्रावृता

या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना

या ब्रह्माच्युतशंकरप्रभृतिभिदैवै सदा वन्दिता

सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा॥’

‘जो कुन्द पुष्प, चँद्र, तुषार और मुक्ताहार जैसी धवल है, जो शुभ्र वस्त्रों से आवृत्त है, जिसके हाथ वीणारूपी वरदंड से शोभित हैं, जो श्वेत पद्म के आसन पर विरजित है, जिसे ब्रह्मा, विष्णु और महेश जैसे मुख्य देव वंदन करते हैं, ऐसी निःशेष जड़ता को दूर करने वाली भगवती सरस्वती! मेरा रक्षण करे।’

सरस्वती के स्वरूप वर्णन में ही सच्चे सारस्वत के लिए मार्गदर्शन है। सरस्वती कुन्द, इन्दु, तुषार और मुक्तहार जैसी धवल हैं, सच्चा सारस्वत भी वैसा ही होना चाहिए। कुन्द पुष्प सौरभ फैलाता है, चँद्र शीतलता देता है, तुषारबिन्दु, सृष्टिका सौंदर्य बढ़ाता है और मुक्ताहार व्यवस्था का वैभव प्रकट करता है। सच्चे सारस्वत का जीवन सौरभयुक्त होना चाहिए।

पुष्प की सुगंध जिस तरह सहज फैलती है, उसी तरह उसके ज्ञान की सुगंध शांति प्रदान करती है उसी तरह सरस्वती का सच्चा उपासक अनेक लोगों के संतप्त जीवन में शांति का स्त्रोत बहाता है। वृक्ष के पत्ते पर पड़ा हुआ ओसबिन्दु मोती की शोभा धारण करके वृक्ष के सौंदर्य को बढ़ाता है, उसी तरह सरस्वती के सच्चे उपासक के अस्तित्व से संसार वृक्ष की शोभा बढ़ती है।

ऐसे मानव के लिए कहना पड़ता है कि ‘जयति तेऽधिकं जन्मना जगत्‌।’ हार याने कुक्ताहार। अकेले मोती से मोतियों का हार ज्यादा सुंदर लगता है। सरस्वती के उपासकों को भी इस तरह एक साथ, एक सूत्र में बँधकर काम करने की तैयारी रखनी चाहिए। विद्वानों की शक्ति का ऐसा योग किसी भी महान कार्य को सुसाध्य बनाता है।

माँ सरस्वती ने धवल वस्त्र धारण किए हैं। सरस्वती का उपासक भी मन, वाणी और कर्म से शुभ्र होना चाहिए। सरस्वती के हाथ वीणा के वरदंड से शोभित हैं। वीणा संगीत का प्रतीक है। संगीत एक कला है। इस दृष्टि से देखने पर सरस्वती का उपासक संगीत का प्रेमी और जीवन का कलाकार होना चाहिए। संगीत यानी सम्यक्‌ गीत।

वाणी के सुर जिस तरह सुसंवादित होते हैं, उसी तरह हमारे कार्य भी यदि सुसंवादित हों तभी हमारे जीवन में संगीत प्रकटेगा। वीणा को वरदण्ड यानी श्रेष्ण दण्ड कहा है। दंड यदि सजा का प्रतीक हो तो उससे श्रेष्ठ सजा दूसरी क्या हो सकती है? जिसकी सजा में भी संगीत है ऐसा सरस्वत ही दूसरे मानव का हृदय परिवर्तन कर सकता है। मानव को बदलने वाला दंड निश्चित ही श्रेष्ठ है, उसका दर्शन माँ सरस्वती हमें वीणा का वरदण्ड हाथ में रखकर कराती है।

सरस्वती श्वेत पद्म के आसन पर विराजमान है। सरस्वती उपासक श्वेत अर्थात्‌ विशुद्ध चरित्र का होना चाहिए। उसका आसन पद्म का होना चाहिए, यह बात बहुत ही सूचक है। पद्म आसपास के वातावरण से अलिप्त रहता है। कीचड़ में रहकर भी वह भ्रष्ट नहीं होता। सरस्वती के उपासकों को भी अपने आसपास के समाज में प्रवर्तमान भ्रष्टाचार से इसी तरह मुक्त रहना है।

ब्रह्मा, विष्णु और महेश जैसे मुख्य देव माँ शारदा को वंदन करते हैं, उसमें भी रहस्य है। माँ सरस्वती ज्ञान और भाव का प्रतीक है, यह बात उनके हाथ में की पुस्तक और माला से समझ में आती है। पुस्तक ज्ञान का प्रतीक है और माला भक्ति प्रतीक है। ब्रह्मा, विष्णु और महेश अनुक्रम में सर्जन, पालन और संहार के देव हैं। इन तीनों को ज्ञान और भाव की जरूरत है।

बिना भाव का सृजन, बिना ज्ञान का पालन और बुद्धिहीन संहार अनर्थ करता है। इसलिए किसी भी कार्य के सृजन में, उस कार्य को टिकाने में और उस कार्य में घुसी हुई बुराई को दूर करने के लिए ज्ञान और भाव दोनों जरूरी है और इसीलिए किसी भी महान कार्य करने वाले महापुरुष को सरस्वती वंदना करनी ही चाहिए।

माँ सरस्वती हमारे जीवन की जड़ता को दूर करती है, सिर्फ हमें उसकी योग्य अर्थ में उपासना करनी चाहिए। सरस्वती का उपासक भोगों का गुलाम नहीं होना चाहिए। दूसरों की संपत्ति देखकर मन में अस्वस्थता निर्माण नहीं होना चाहिए। उसे निष्ठापूर्वक अपनी ज्ञानसाधना अखंड करते रहना चाहिए।

विद्वान मानव को धन का अभाव कभी भी नहीं सालना चाहिए। धनिक मानव केवल भोग में ही आनंद को खोजने में भटकता रहता है, जब कि विद्वान को वह आनंद निसर्ग-दर्शन से, जीवन के भाव प्रसंगों और साहित्य के सृजन या आस्वादन से सहज प्राप्त होता है।

सरस्वती का वाहन मयूर है। मोर कला का प्रतीक है। सरस्वती काल की भी देवी है। चौदह विद्या और चौसठ कला ये सभी सरस्वती की उपासना में आती है। कला जीविका प्रदान करती है और विद्या जीवन देती है। इस तरह सरस्वती हमारे समग्र अस्तित्व को आवृत्त करती है। सरस्वती के उपासक की प्रतिष्ठा समाज करे या न करें, परन्तु ज्ञान के वाहक के रूप में सम्मान करके भगवान अवश्य उसे अपने मस्तिष्क पर चढ़ाएँगे।

इस बात की प्रतीति भगवान कृष्ण ने मोरपंख को अपने माथे पर चढ़ाकर दी है। श्रीमद् आद्य शंकराचार्य गोपालकृष्ण को ‘सुपिच्छगुच्छ मस्तकम्‌’ कहकर उसकी विरुदावली गाते हैं। समाज में मेरा योग्य सम्मान नहीं होता ऐसा जिस विद्वान को लगता हो उसे इस संदर्भ में मोर और मोरपंख के बीच हुए संवाद स्वरूप नीचे का श्लोक हमेशा याद रखना चाहिए-

‘अस्मान्विचित्रवपुषस्तव पृष्ठलग्नात्‌

कस्माद्विमुञ्चसि भवान यदि वा विमुञ्च।

रे नीलकण्ठ गुरुहानिरियं ततैव

गोपालसू नु मुकुटे भवति स्थितिर्नः॥’

मोरपंख मोर से कहता है कि, ‘दीर्घकाल तक तेरी पीठ पर रहकर मैंने तेरी शोभा बढ़ाई है। मुझे तू अब क्यों झटक देता है? अथवा तू मुझे भले ही छोड़ दें, परन्तु उसमें तेरा ही नुकसान होने वाला है, तेरी शोभा नष्ट होने वाली है, मेरा स्थान तो भगवान गोपालकृष्ण मुकुट में है।’

अपना तिरस्कार करने वाले समाज को कोई भी सच्चा विद्वान उपरोक्त बात कह सकता है। समाज योग्य विद्वानों का सम्मान नहीं करेगा तो उसमें नुकसान समाज का ही है। विद्वानों को तो भगवान अपने सर पर चढ़ाने के लिए तैयार ही हैं।

इस बात को ध्यान में रखकर सच्चे विद्वान को बड़प्पन प्राप्त करने के लिए कभी भी किसी की भी खुशामत नहीं करनी चाहिए। लाचार या निस्तेज मानव को शारदा के मंदिर में प्रवेश नहीं मिलता।

जीवन में तेजस्विता लाने के लिए सरस्वती की उपासना करनी चाहिए। सच्चे सारस्वत को माँ शारदा के मंदिर का पावित्र्य टिकाना चाहिए।

शारदा के मंदिर में कला होनी चाहिए, परन्तु कला के स्वागत में विलासिता ने प्रवेश नहीं करना चाहिए। शारदा के मंदिर में विद्या होनी चाहिए, परन्तु विद्या के नाम पर अविद्या नहीं बेचनी चाहिए। शारदा के मंदिर में प्रेम होना चाहिए, परन्तु प्रेम के नाम पर मोह नहीं उत्पन्न होना चाहिए। शारदा के मंदिर में दिव्यता होनी चाहिए, परन्तु उन्मत्तता देखने को नहीं मिलनी चाहिए।

शारदा के मंदिर में नम्रता होनी चाहिए, परन्तु नम्रता का स्वांग धारण करके लाचारी नहीं घुसनी चाहिए। शारदा के मंदिर में प्राणों का प्रस्फुरण होना चाहिए, लेकिन निराशा के निश्वास नहीं निकलने चाहिए।

शारदा नित्य यौवन, स्तन्यदायिनी माता के समान है। वह अपने उपासक को जीवन देती है, उसके जीवन में कवन (काव्य) सर्जती है और उसे अपनी शक्तियों का सच्चा अनुभव समझाती है।

माँ शारदा को लाख-लाख वंदन!

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॥श्री शिव चालीसा ॥ Shri Shiv Chalisa ॥

शिव चालीसा

दोहा ॥

जय गणेश गिरिजा सुवन,

मंगल मूल सुजान ।

कहत अयोध्यादास तुम,

देहु अभय वरदान ॥

चौपाई ॥
 जय गिरिजा पति दीन दयाला ।
 सदा करत सन्तन प्रतिपाला ॥

भाल चन्द्रमा सोहत नीके ।
 कानन कुण्डल नागफनी के ॥

अंग गौर शिर गंग बहाये ।
 मुण्डमाल तन क्षार लगाए ॥

वस्त्र खाल बाघम्बर सोहे ।
 छवि को देखि नाग मन मोहे ॥ 4

मैना मातु की हवे दुलारी ।
 बाम अंग सोहत छवि न्यारी ॥

कर त्रिशूल सोहत छवि भारी ।
 करत सदा शत्रुन क्षयकारी ॥

नन्दि गणेश सोहै तहँ कैसे ।
 सागर मध्य कमल हैं जैसे ॥

कार्तिक श्याम और गणराऊ ।
 या छवि को कहि जात न काऊ ॥ 8

देवन जबहीं जाय पुकारा ।
 तब ही दुख प्रभु आप निवारा ॥

किया उपद्रव तारक भारी ।
 देवन सब मिलि तुमहिं जुहारी ॥

तुरत षडानन आप पठायउ ।
 लवनिमेष महँ मारि गिरायउ ॥

आप जलंधर असुर संहारा ।
 सुयश तुम्हार विदित संसारा ॥ 12

त्रिपुरासुर सन युद्ध मचाई ।
 सबहिं कृपा कर लीन बचाई ॥

किया तपहिं भागीरथ भारी ।
 पुरब प्रतिज्ञा तासु पुरारी ॥

दानिन महँ तुम सम कोउ नाहीं ।
 सेवक स्तुति करत सदाहीं ॥

वेद नाम महिमा तव गाई।
 अकथ अनादि भेद नहिं पाई ॥ 16

प्रकटी उदधि मंथन में ज्वाला ।
 जरत सुरासुर भए विहाला ॥

कीन्ही दया तहं करी सहाई ।
 नीलकण्ठ तब नाम कहाई ॥

पूजन रामचन्द्र जब कीन्हा ।
 जीत के लंक विभीषण दीन्हा ॥

सहस कमल में हो रहे धारी ।
 कीन्ह परीक्षा तबहिं पुरारी ॥ 20

एक कमल प्रभु राखेउ जोई ।
 कमल नयन पूजन चहं सोई ॥

कठिन भक्ति देखी प्रभु शंकर ।
 भए प्रसन्न दिए इच्छित वर ॥

जय जय जय अनन्त अविनाशी ।
 करत कृपा सब के घटवासी ॥

दुष्ट सकल नित मोहि सतावै ।
 भ्रमत रहौं मोहि चैन न आवै ॥ 24

त्राहि त्राहि मैं नाथ पुकारो ।
 येहि अवसर मोहि आन उबारो ॥

लै त्रिशूल शत्रुन को मारो ।
 संकट से मोहि आन उबारो ॥

मात-पिता भ्राता सब होई ।
 संकट में पूछत नहिं कोई ॥

स्वामी एक है आस तुम्हारी ।
 आय हरहु मम संकट भारी ॥ 28

धन निर्धन को देत सदा हीं ।
 जो कोई जांचे सो फल पाहीं ॥

अस्तुति केहि विधि करैं तुम्हारी ।
 क्षमहु नाथ अब चूक हमारी ॥

शंकर हो संकट के नाशन ।
 मंगल कारण विघ्न विनाशन ॥

योगी यति मुनि ध्यान लगावैं ।
 शारद नारद शीश नवावैं ॥ 32

नमो नमो जय नमः शिवाय ।
 सुर ब्रह्मादिक पार न पाय ॥

जो यह पाठ करे मन लाई ।
 ता पर होत है शम्भु सहाई ॥

ॠनियां जो कोई हो अधिकारी ।
 पाठ करे सो पावन हारी ॥

पुत्र हीन कर इच्छा जोई ।
 निश्चय शिव प्रसाद तेहि होई ॥ 36

पण्डित त्रयोदशी को लावे ।
 ध्यान पूर्वक होम करावे ॥

त्रयोदशी व्रत करै हमेशा ।
 ताके तन नहीं रहै कलेशा ॥

धूप दीप नैवेद्य चढ़ावे ।
 शंकर सम्मुख पाठ सुनावे ॥

जन्म जन्म के पाप नसावे ।
 अन्त धाम शिवपुर में पावे ॥ 40

कहैं अयोध्यादास आस तुम्हारी ।
 जानि सकल दुःख हरहु हमारी ॥

दोहा ॥
 नित्त नेम कर प्रातः ही,
 पाठ करौं चालीसा ।
 तुम मेरी मनोकामना,
 पूर्ण करो जगदीश ॥

मगसर छठि हेमन्त ॠतु,
 संवत चौसठ जान ।
 अस्तुति चालीसा शिवहि,
 पूर्ण कीन कल्याण ॥

भगवान शिव की भक्ति करने के लिए आप निम्नलिखित बातों का पालन कर सकते हैं:

1. शिव पूजा करें: नियमित रूप से शिव पूजा करना शिव की भक्ति में महत्वपूर्ण है। आप पूजा के दौरान शिवलिंग को जल, दूप, धूप, फूल आदि से अर्चना कर सकते हैं।

2. मन्त्र जप करें: शिव के मंत्रों का जाप करना उनकी भक्ति में आपको संयमित और स्थिर रखता है। “ॐ नमः शिवाय” और “ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्” जैसे मंत्रों का जप करें।

3. शिवरात्रि व्रत रखें: शिवरात्रि व्रत रखना शिव की भक्ति में एक महत्वपूर्ण त्योहार है। इस दिन नियमित रूप से पूजा, ध्यान, जागरण आदि करें।

4. शिव कथाओं का सुनना: शिव कथाओं को सुनना और पढ़ना भी शिव की भक्ति में आपको आनंद और आध्यात्मिकता का अनुभव कराता है।

5. भक्ति संगीत सुनें: शिव के भक्ति संगीत को सुनना आपके मन को शांति, प्रेम और आद्यात्मिक उन्नति की ओर ले जाता है। आप शिव भजन और शिव चालीसा को सुन सकते हैं।

6. सेवा करें: शिव की सेवा करना भी उनकी भक्ति में महत्वपूर्ण है। आप शिव मंदिर में जाकर प्रार्थना करने के साथ ही दूसरे भक्तों की सेवा कर सकते हैं।

शिव की भक्ति में विश्वास रखें और उन्हें अपने मन, वचन और कर्म से समर्पित करें। उनकी कृपा, आशीर्वाद और प्रेम को अनुभव करने के लिए नियमित रूप से उनकी भक्ति में लगे रहें। शिव चालीसा का पाठ हमेशा सुबह जल्दी उठकर स्नान करने के बाद करना चाहिए। भक्त प्रायः सोमवार, शिवरात्रि, प्रदोष व्रत, त्रयोदशी व्रत एवं सावन के पवित्र महीने के दौरान शिव चालीस का पाठ खूब करते हैं।

॥ शिव चालीसा ॥

॥ शिव चालीसा ॥

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  • Saja Do Ghar Ko Gulshan Sa Avadh Me Ram Aaye Hain Lyrics
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Hanuman Chalisa -हनुमान चालीसा – Hanuman Chalisa Lyrics

||हनुमान चालीसा||

॥ दोहा ॥
श्रीगुरु चरन सरोज रज निज मनु मुकुरु सुधारि ।
बरनउँ रघुबर बिमल जसु जो दायकु फल चारि ॥

बुद्धिहीन तनु जानिके सुमिरौं पवन-कुमार ।
बल बुधि बिद्या देहु मोहिं हरहु कलेस बिकार ॥
॥ चौपाई ॥
जय हनुमान ज्ञान गुन सागर ।
जय कपीस तिहुँ लोक उजागर ॥०१॥

राम दूत अतुलित बल धामा ।
अंजनी-पुत्र पवनसुत नामा ॥०२॥

महाबीर बिक्रम बजरंगी ।
कुमति निवार सुमति के संगी ॥०३॥

कंचन बरन बिराज सुबेसा ।
कानन कुण्डल कुंचित केसा ॥०४॥

हाथ बज्र और ध्वजा बिराजै ।
काँधे मूँज जनेऊ साजै ॥०५॥

संकर सुवन केसरी नंदन ।
तेज प्रताप महा जग बन्दन ॥०६॥

बिद्यावान गुनी अति चातुर ।
राम काज करिबे को आतुर ॥०७॥

प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया ।
राम लखन सीता मन बसिया ॥०८॥

सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा ।
बिकट रूप धरि लंक जरावा ॥०९॥

भीम रूप धरि असुर सँहारे ।
रामचन्द्र के काज सँवारे ॥१०॥

लाय संजीवन लखन जियाये ।
श्रीरघुबीर हरषि उर लाये ॥११॥

रघुपति किन्ही बहुत बड़ाई ।
तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई ॥१२॥

सहस बदन तुम्हरो जस गावैं ।
अस कहि श्रीपति कंठ लगावैं ॥१३॥

सनकादिक ब्रम्हादि मुनीसा ।
नारद सारद सहित अहीसा ॥१४॥

जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते ।
कबि कोबिद कहि सके कहाँ ते ॥१५॥

तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा ।
राम मिलाय राज पद दीन्हा ॥१६॥

तुम्हरो मंत्र बिभीषन माना ।
लंकेस्वर भए सब जग जाना ॥१७॥

जुग सहस्त्र जोजन पर भानु ।
लील्यो ताहि मधुर फल जानू ॥१८॥

प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं ।
जलधि लाँघि गये अचरज नाहीं ॥१९॥

दुर्गम काज जगत के जेते ।
सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते ॥२०॥

राम दुआरे तुम रखवारे ।
होत न आज्ञा बिनु पैसारे ॥२१॥

सब सुख लहै तुम्हारी सरना ।
तुम रच्छक काहू को डर ना ॥२२॥

आपन तेज सम्हारो आपै ।
तीनों लोक हाँक तें काँपै ॥२३॥

भूत पिसाच निकट नहिं आवै ।
महाबीर जब नाम सुनावै ॥२४॥

नासै रोग हरै सब पीरा ।
जपत निरन्तर हनुमत बीरा ॥२५॥

संकट तें हनुमान छुडावे ।
मन क्रम बचन ध्यान जो लावै ॥२६॥

सब पर राम तपस्वी राजा ।
तिन के काज सकल तुम साजा ॥२७॥

और मनोरथ जो कोई लावै ।
सोहि अमित जीवन फल पावै ॥२८॥

चारो जुग परताप तुम्हारा ।
है परसिद्ध जगत उजियारा ॥२९॥

साधु सन्त के तुम रखवारे ।
असुर निकन्दन राम दुलारे ॥३०॥

अष्टसिद्धि नौ निधि के दाता ।
अस बर दीन जानकी माता ॥३१॥

राम रसायन तुम्हरे पासा ।
सदा रहो रघुपति के दासा ॥३२॥

तुम्हरे भजन राम को पावै ।
जनम जनम के दुख बिसरावै ॥३३॥

अन्त काल रघुबर पुर जाई ।
जहाँ जन्म हरिभक्त कहाई ॥३४॥

और देवता चित्त न धरई ।
हनुमत सेही सर्ब सुख करई ॥३५॥

संकट कटै मिटै सब पीरा ।
जो सुमिरे हनुमत बलबीरा ॥३६॥

जय जय जय हनुमान गोसाईं ।
कृपा करहु गुरुदेव की नाईं ॥३७॥

जो सत बार पाठ कर कोई ।
छूटहि बन्दि महा सुख होई ॥३८॥

जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा ।
होय सिद्धि साखी गौरीसा ॥३९॥

तुलसीदास सदा हरि चेरा ।
कीजै नाथ हृदय मह डेरा ॥४०॥
॥ दोहा ॥
पवनतनय संकट हरन मंगल मूरति रूप ।
राम लखन सीता सहित हृदय बसहु सुर भूप ॥
॥ जय-घोष ॥
बोल बजरंगबली की जय ।
पवन पुत्र हनुमान की जय ॥

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