Tag: चाणक्यनीतिदर्पण

 चाणक्यनीतिदर्पण – 15.3

चाणक्य नीति दर्पण मूलत: संस्कृत (Sanskrit) में संस्कृत सुभाषितों के रूप में, काव्यात्मक एवं श्लोकों  के रूप में लिखा हुआ ग्रंथ है। इसके रचनाकार आचार्य चाणक्य हैं। उनके ये संस्कृत श्लोक चाणक्य नीति के नाम से संसार भर में प्रसिद्ध हैं। यहां पर यह श्लोक देवनागरी लिपि एवं  रोमन लिपि में भी दिए गए हैं एवं उनके अर्थ हिंदी देवनागरी एवं अंग्रेजी में रोमन लिपि में भी दिये गये हैं। जिससे विदेशों में रहने वाले भारतीय जो देवनागरी से परिचित नहीं हैं सनातन ग्रंथों के ज्ञान से लाभान्वित हो सकें।

कौशल्यप्रकाश: This title combines the Sanskrit words “कौशल्य” (skill) and “प्रकाश” (light) to create a title that suggests that the Chanakya Nitidarpana is a light that illuminates the path to mastery of skills.

नीतिमार्गदर्शक: This title combines the Sanskrit words “नीति” (ethics) and “मार्गदर्शक” (guide) to create a title that suggests that the Chanakya Nitidarpana is a guide to ethical conduct.

अथ पंचदशोऽध्यायः ॥ 15 ॥

atha paṁcadaśō’dhyāyaḥ ॥ 15 ॥

ग्रन्थ का नाम : चाणक्यनीतिदर्पण,  रचनाकार – आचार्य चाणक्य,   अध्याय – 15   श्लोक-  16-20
पीतः क्रुद्धेनतातश्वरणत्तलद्दतोवल्लभोपेनरोषा दावाल्याद्विमवय्यैः स्वबदनविवरेधार्यतंबौरः णीमे॥ गेहंमेछेदयन्तिप्रतिदिवसमुमाकांत पूजानिमित्तं तस्मात्खिन्ना सदा इंद्विजकुलनि लयंनाथयुक्तं त्यज़ामिः ॥ १६ ॥

अर्थ -  जिसने रुष्ट होकर मेरे पिता को पीडाला और जिसने क्रोध करके  पांव से मेरे कन्त (पति) को मारा, जो श्रेष्ठ ब्राह्मण बैठे सदा लड़कपन से लेकर मुखविवर में मेरी वैरिणी को रखते हैं और प्रतिदिन पार्वती के पतिकी पूजा के निमित्त मेरे गृह को काटते हैं हे नाथ ! इससे  खेद पाकर ब्राह्मणों के घर को सदा छोड़े रहती हूंँ। ॥ 16 ॥

pītaḥ kruddhēnatātaśvaraṇattaladdatōvallabhōpēnarōṣā dāvālyādvimavayyaiḥ svabadanavivarēdhāryataṁbauraḥ ṇīmē॥ gēhaṁmēchēdayantipratidivasamumākāṁta pūjānimittaṁ tasmātkhinnā sadā iṁdvijakulani layaṁnāthayuktaṁ tyaja़āmiḥ ॥ 16 ॥

Meaning - The one who tormented my father in anger and the one who in anger hit my Kant (husband) with his foot, the best Brahmin who always keeps my wife in his mouth since childhood and cuts my house every day for the purpose of worshiping Parvati's husband. Hey Nath! Feeling regretful about this, I always leave the houses of Brahmins.॥ 16 ॥

बंधनानिखलुसंतिबहूनिप्रेमरज्जुकृतबन्धन मन्यत् दारुभेदनिपुणोऽपिषडब्रिर्निष्क्रियो भवति पंकजकोशे॥ १७ ॥

अर्थ - बंधन तो बहुत हैं; परंतु प्रीति की रस्सी का बन्धन और ही है। काठ के छेदने में कुशल भी भौंरा कमल के कोश में निर्व्यापार हो जाता है ॥ १७ ॥ 

baṁdhanānikhalusaṁtibahūniprēmarajjukr̥tabandhana manyat dārubhēdanipuṇō’piṣaḍabrirniṣkriyō bhavati paṁkajakōśē॥ 17 ॥

Meaning: There are many bonds; But the rope of love has a different bond. Even a bumblebee skilled in piercing wood becomes useless in the shell of a lotus. 17 ॥

छिन्नोपिचंदनतरुर्नजहातिगंधं वृद्धोऽपिवारणपायाचे नौविदसंखेः ।
पतिर्न जहातिलीलाम् ॥ 
पंत्रार्पितो मधुरतांन जहातिचेक्षुः क्षीणों पिनत्यजितशीलगुणान्कु लीनः ॥ १८ ॥

अर्थ - काटा चन्दन का वृक्ष गन्धको त्याग नहीं देता। बूढ़ा भी गजपति विलास को नहीं छोड़ता, कोल्हू में पेरी  ऊंस(गन्ना) भी मधुरता नहीं छोड़ती।  कुलीन यदि दरिद्र हो तो भी सुशीलता आदि गुणों का त्याग नहीं करता १८॥

chinnōpicaṁdanatarurnajahātigaṁdhaṁ vr̥ddhō’pivāraṇapāyācē nauvidasaṁkhēḥ |
patirna jahātilīlām ॥ 
paṁtrārpitō madhuratāṁna jahāticēkṣuḥ kṣīṇōṁ pinatyajitaśīlaguṇānku līnaḥ ॥ 18 ॥

Meaning: A cut sandalwood tree does not give up its smell. Even an old Gajapati does not give up his luxury, even an ounce of sugarcane crushed in a crusher does not give up its sweetness. Even if a noble person is poor, he does not sacrifice the virtues like politeness etc. ॥ 18 ॥


उर्ज्याकोऽपिमहीधरोलघुतरोदोभ्यां धृतोलीलया। 
तेनत्वंदिविभूतलेच विदितो गोवर्द्धनोद्धारकः ॥ 
त्वांत्रैलोक्यधरं वहामिकुंचपोरग्रेन तद्रण्यतेकिंवा 
केशव भाषणेन बहु नापुण्यैर्यशोलक्ष्यते ॥ 19 ॥

अर्थ - पृथ्वी पर किसी अत्यंत हल्के पर्वतों को अनायास से बाहुओं के ऊपर धारण करने से आप स्वर्ग और पृथ्वी तल में सर्वदा गोवर्द्धन धारी कहलाते हैं तीनों लोकों को धारण करने वाले आपको केवल अपने  अग्रभाग में धारण करती हूँ। यह कुछ भी नहीं गिना जाता है। हे केशव ! बहुत कहने से क्या पुण्यों से यश मिलता है ॥ 19 ॥

urjyākō’pimahīdharōlaghutarōdōbhyāṁ dhr̥tōlīlayā| 
tēnatvaṁdivibhūtalēca viditō gōvarddhanōddhārakaḥ ॥ 
tvāṁtrailōkyadharaṁ vahāmikuṁcapōragrēna tadraṇyatēkiṁvā 
kēśava bhāṣaṇēna bahu nāpuṇyairyaśōlakṣyatē ॥ 19 ॥

Meaning - By spontaneously holding any of the very light mountains on the earth on your arms, you are always called the bearer of Govardhan in heaven and on the earth. I hold you, the bearer of all the three worlds, only on my forearm. It doesn't count as anything. Hey Keshav! By saying a lot of good deeds one gets fame. 19 ॥
इतिं पंचदशोऽध्यायः ॥ 15 ॥
itiṁ paṁcadaśō’dhyāyaḥ ॥ 15 ॥

चाणक्य की प्रसिद्धि : 

ये संस्कृत श्लोक आचार्य चाणक्य के द्वारा रचित हैं। उनका नाम कौटिल्य एवं विष्णुगुप्त के नाम से भी प्रसिद्ध है। उनकी रचनाएँ Chanakya सूत्र, chanakya niti, chanakya ni pothi, chanakya quotes, chanakya niti in hindi, chanakya quotes in hindi, चाणक्य, चाणक्य नीति,  चाणक्य नीति की 10 बातें,  चाणक्य नीति की बातें, चाणक्य के कड़वे वचन, चाणक्य नीति स्त्री, चाणक्य नीति की 100 बातें,  चाणक्य विचार इन हिंदी, चाणक्य नीति सुविचार, चाणक्य नीति जीवन जीने की, सुविचार चाणक्य के कड़वे वचन, sanskrit shlok, shlok,sanskrit, sanskrit shlok,sanskrit quotes,shlok in sanskrit, sanskrit thought, sanskrit slokas,संस्कृत श्लोक,श्लोक,छोटे संस्कृत श्लोक, आदि के रूप में चर्चित एवं प्रसिद्ध है । 

चाणक्य का कालातीत प्रभाव  :

हजारों वर्षों के उपरांत भी उनमें वही ताजगी और उपयोगिता है। अतः वे आज भी उतने ही प्रासंगिक बने हुए हैं जितने वे तब थे जब वे लिखे गये थे। संस्कृत में रचित होने के कारण उनमें कालांतर के प्रभाव को स्पष्टतः नहीं देखा जाता है क्योंकि संस्कृत भाषा का सर्वश्रेष्ठ व्याकरण उसके अस्तित्व एवं गुणवत्ता के साथ ही उसके प्रभाव कि भी सुरक्षा करता है। ये अत्यंत ज्ञानवर्धक, पठनीय एवं माननीय हैं। ये जीवन‌ के अनेक चौराहों पर हमारा मार्गदर्शन करते हैं जब सब ओर अंधकार छा जाने की प्रतीति होती है।

About Chanakya (चाणक्य के बारे में) :

 चाणक्य का प्रभाव प्राचीन भारत से परे तक फैला हुआ है, क्योंकि शासन कला और शासन पर उनके विचारों का दुनिया भर के विद्वानों और नीति निर्माताओं द्वारा अध्ययन और सम्मान किया जाता है।  राजनीति के प्रति उनका व्यावहारिक दृष्टिकोण और राज्य और उसके नागरिकों के कल्याण पर उनका जोर उन्हें एक कालातीत व्यक्ति बनाता है जिनकी बुद्धि समय और स्थान की सीमाओं से परे है।

 चाणक्यनीतिदर्पण – 8.5

चाणक्य नीति दर्पण मूलत: संस्कृत (Sanskrit) में संस्कृत सुभाषितों के रूप में, काव्यात्मक एवं श्लोकों  के रूप में लिखा हुआ ग्रंथ है। इसके रचनाकार आचार्य चाणक्य हैं। उनके ये संस्कृत श्लोक चाणक्य नीति के नाम से संसार भर में प्रसिद्ध हैं। यहां पर यह श्लोक देवनागरी लिपि एवं  रोमन लिपि में भी दिए गए हैं एवं उनके अर्थ हिंदी देवनागरी एवं अंग्रेजी में रोमन लिपि में भी दिये गये हैं। जिससे विदेशों में रहने वाले भारतीय जो देवनागरी से परिचित नहीं हैं सनातन ग्रंथों के ज्ञान से लाभान्वित हो सकें।

अथ अष्टमोऽध्यायः ॥ 8 ॥

atha aṣṭamō’dhyāyaḥ ॥ 8 ॥

रूपयौवन संपन्ना विशालकुलसंभवाः ॥ 
विद्याहीनानशोभंतेनिर्गंधाइव किंशुकाः ॥२१॥

अर्थ - सुंदर, तरुणतायुत और बडे कुलमें उत्पन्न भी विद्याहीन पुरुष ऐसे नहीं शोभते, जैसे बिना गंध पलाश के फूल ॥ २१ ॥

rūpayauvana saṁpannā viśālakulasaṁbhavāḥ ॥ 
vidyāhīnānaśōbhaṁtēnirgaṁdhāiva kiṁśukāḥ ॥21॥

Meaning - Beautiful, young and born in a big family, even those without education do not look as good as the flowers of Palash without fragrance. 21 ॥

मासभक्ष्याः सुरापानामुर्खाश्वाक्षर वर्जिताः ॥ 
पशुभिःपुरुषाकारेर्भाराक्रांतास्तिमेदिनी ॥२२॥

अर्थ - मांस के भक्षण और मदिरापान करनेवाले, निरक्षर,और मूर्ख इन पुरुषाकार पशुवोंके भारसे पृथिवी पीडित रहती है ॥ २२ ॥

māsabhakṣyāḥ surāpānāmurkhāśvākṣara varjitāḥ ॥ 
paśubhiḥpuruṣākārērbhārākrāṁtāstimēdinī ॥22॥
Meaning - The earth suffers due to the weight of these male-like animals who eat meat, drink alcohol, are illiterate and foolish.  22 ॥


अन्नहीनोदहेद्राष्ट्रमंत्रहीनश्चऋत्विजः ॥ 
यजमानंदानहार्नानास्तियज्ञसमोरिपुः॥२३॥

अर्थ - यज्ञ यदि अन्नहीन हो तो, राज्यको मंत्रहीन हो तो ऋत्विजों का दानहीन हो तो यजमानको जलाता है, इस कारण यज्ञके समान कोईभी शत्रु नहीं है ॥ २३ ॥

annahīnōdahēdrāṣṭramaṁtrahīnaścr̥tvijaḥ ॥ 
yajamānaṁdānahārnānāstiyajñasamōripuḥ॥23॥

Meaning: If a sacrifice is without food, if the kingdom is without mantras, if the priests are without charity, it burns the sacrificer, and therefore there is no enemy like sacrifice.  23 ॥
इतिवृद्धचाणक्ये अष्टमोऽध्यायः ॥ ८ ॥'
itivr̥ddhacāṇakyē aṣṭamō’dhyāyaḥ ॥ 8 ॥'
ग्रन्थ का नाम : चाणक्यनीतिदर्पण,  रचनाकार – आचार्य चाणक्य,   अध्याय – 7   श्लोक-  21-23

चाणक्य की प्रसिद्धि : 

ये संस्कृत श्लोक आचार्य चाणक्य के द्वारा रचित हैं। उनका नाम कौटिल्य एवं विष्णुगुप्त के नाम से भी प्रसिद्ध है। उनकी रचनाएँ Chanakya सूत्र, chanakya niti, chanakya ni pothi, chanakya quotes, chanakya niti in hindi, chanakya quotes in hindi, चाणक्य, चाणक्य नीति,  चाणक्य नीति की 10 बातें,  चाणक्य नीति की बातें, चाणक्य के कड़वे वचन, चाणक्य नीति स्त्री, चाणक्य नीति की 100 बातें,  चाणक्य विचार इन हिंदी, चाणक्य नीति सुविचार, चाणक्य नीति जीवन जीने की, सुविचार चाणक्य के कड़वे वचन, sanskrit shlok, shlok,sanskrit, sanskrit shlok,sanskrit quotes,shlok in sanskrit, sanskrit thought, sanskrit slokas,संस्कृत श्लोक,श्लोक,छोटे संस्कृत श्लोक, आदि के रूप में चर्चित एवं प्रसिद्ध है । 

चाणक्य का कालातीत प्रभाव  :

हजारों वर्षों के उपरांत भी उनमें वही ताजगी और उपयोगिता है। अतः वे आज भी उतने ही प्रासंगिक बने हुए हैं जितने वे तब थे जब वे लिखे गये थे। संस्कृत में रचित होने के कारण उनमें कालांतर के प्रभाव को स्पष्टतः नहीं देखा जाता है क्योंकि संस्कृत भाषा का सर्वश्रेष्ठ व्याकरण उसके अस्तित्व एवं गुणवत्ता के साथ ही उसके प्रभाव कि भी सुरक्षा करता है। ये अत्यंत ज्ञानवर्धक, पठनीय एवं माननीय हैं। ये जीवन‌ के अनेक चौराहों पर हमारा मार्गदर्शन करते हैं जब सब ओर अंधकार छा जाने की प्रतीति होती है।

About Chanakya (चाणक्य के बारे में) :

 चाणक्य का प्रभाव प्राचीन भारत से परे तक फैला हुआ है, क्योंकि शासन कला और शासन पर उनके विचारों का दुनिया भर के विद्वानों और नीति निर्माताओं द्वारा अध्ययन और सम्मान किया जाता है।  राजनीति के प्रति उनका व्यावहारिक दृष्टिकोण और राज्य और उसके नागरिकों के कल्याण पर उनका जोर उन्हें एक कालातीत व्यक्ति बनाता है जिनकी बुद्धि समय और स्थान की सीमाओं से परे है।

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 चाणक्यनीतिदर्पण

चाणक्य नीति दर्पण मूलत: संस्कृत (Sanskrit) में संस्कृत सुभाषितों के रूप में, काव्यात्मक एवं श्लोकों  के रूप में लिखा हुआ ग्रंथ है। इसके रचनाकार आचार्य चाणक्य हैं। उनके ये संस्कृत श्लोक चाणक्य नीति के नाम से संसार भर में प्रसिद्ध हैं। यहां पर यह श्लोक देवनागरी लिपि एवं  रोमन लिपि में भी दिए गए हैं एवं उनके अर्थ हिंदी देवनागरी एवं अंग्रेजी में रोमन लिपि में भी दिये गये हैं। जिससे विदेशों में रहने वाले भारतीय जो देवनागरी से परिचित नहीं हैं सनातन ग्रंथों के ज्ञान से लाभान्वित हो सकें।

अथ तृतीयोऽध्यायः ॥ 3 ॥

atha tr̥tīyō’dhyāyaḥ ॥ 3 ॥

कस्यदोषः कुलेनास्तिव्याधिनाकेनपीडिताः॥ 
व्यसनंकेनन प्राप्तं कस्य सौख्यंनिरन्तरम् ॥१॥

अर्थ - किस के कुल में दोष नहीं है, व्याधि ने किसे पीडित नहीं किया, किसको दुःख नहीं मिला, किसको सदा सुख ही प्राप्त हुआ है (अर्थात् कोई भी न तो सदा सुखी रहा है और न ही किसी का भी कुल निर्दोष है।)॥ 1 ॥ 

kasyadōṣaḥ kulēnāstivyādhinākēnapīḍitāḥ॥ 
vyasanaṁkēnana prāptaṁ kasya saukhyaṁnirantaram ॥1॥


आचार: कुलमाख्यातिदेशमाख्यातिभाषणम्॥ 
संभ्रमःस्नेहमाख्यातिवपुराख्यातिभोजनम्॥२॥

अर्थ - आचार कुल को बतलाता है, बोली देश को जताती है, आदर प्रीति का प्रकाश करता है, शरीर भोजन को जताता है ॥ २ ॥

ācāra: kulamākhyātidēśamākhyātibhāṣaṇam॥ 
saṁbhramaḥsnēhamākhyātivapurākhyātibhōjanam॥2॥

Meaning - Conduct reflects the clan, speech reflects the country, respect reflects love, body reflects food. ॥ 2॥

सुकुलेयोजयेत्कन्यापुत्रं विद्या सुयोजयेत् ॥ 
व्यसनेयोजयेच्छत्रु मिष्टंधर्मेण योजयेत् ॥ ३ ॥

अर्थ - कन्या को श्रेष्ठ कुल वाले को देना चाहिये, पुत्र को विद्या में लगाना चाहिये। शत्रु को दुःख पहुँचाना उचित है, और मित्र को धर्म का उपदेश करना चाहिये ॥ ३ ॥

sukulēyōjayētkanyāputraṁ vidyā suyōjayēt ॥ 
vyasanēyōjayēcchatru miṣṭaṁdharmēṇa yōjayēt ॥ 3 ॥
Meaning - The daughter should be given to someone from a good family, the son should be engaged in education, it is appropriate to hurt the enemy and one should preach religion to the friend. 3॥

दुर्जनस्यचसर्पस्यवरं सर्पोनदुर्जनः ॥ 
सर्वोदंशतिकालेतुदुर्जनस्तुपदेपदे ॥ ४ ॥

अर्थ - दुर्जन और सर्प में से सर्प अच्छा है दुर्जन नहीं। क्योंकि सर्प काल आने पर ही काटता है दुर्जन तो पग पग पर कष्ट देता है॥ ४ ॥

durjanasyacasarpasyavaraṁ sarpōnadurjanaḥ ॥ 
sarvōdaṁśatikālētudurjanastupadēpadē ॥ 4 ॥

Meaning - Between the wicked and the snake, the snake is better, not the wicked, because the snake bites when the time comes and the wicked hurts at every step. ॥ 4 ॥

एतदर्थंकुलीनानांनृपाः कुर्वतिसंग्रहम् ॥ 
आदिमध्यावसानेषुनत्यजन्तिचतेनृपम् ॥५॥

अर्थ - राजा लोग कुलीनों का संग्रह इस निमित्त करते हैं कि, वे आदि अर्थात् उन्नति, मध्य अर्थात् साधारण और अंत अर्थात् विपत्ति में राजाको नहीं छोड़ते ॥ ५ ॥

ētadarthaṁkulīnānāṁnr̥pāḥ kurvatisaṁgraham ॥ 
ādimadhyāvasānēṣunatyajanticatēnr̥pam ॥5॥

Meaning - Kings collect noble people so that they do not leave the king in the beginning i.e. progress, middle i.e. ordinary and at the end i.e. calamity. 5॥
ग्रन्थ का नाम : चाणक्यनीतिदर्पण,  रचनाकार – आचार्य चाणक्य,   द्वितीय अध्याय – श्लोक- 

चाणक्य की प्रसिद्धि : 

ये संस्कृत श्लोक आचार्य चाणक्य के द्वारा रचित हैं। उनका नाम कौटिल्य एवं विष्णुगुप्त के नाम से भी प्रसिद्ध है। उनकी रचनाएँ Chanakya सूत्र, chanakya niti, chanakya ni pothi, chanakya quotes, chanakya niti in hindi, chanakya quotes in hindi, चाणक्य, चाणक्य नीति,  चाणक्य नीति की 10 बातें,  चाणक्य नीति की बातें, चाणक्य के कड़वे वचन, चाणक्य नीति स्त्री, चाणक्य नीति की 100 बातें,  चाणक्य विचार इन हिंदी, चाणक्य नीति सुविचार, चाणक्य नीति जीवन जीने की, सुविचार चाणक्य के कड़वे वचन, sanskrit shlok, shlok,sanskrit, sanskrit shlok,sanskrit quotes,shlok in sanskrit, sanskrit thought, sanskrit slokas,संस्कृत श्लोक,श्लोक,छोटे संस्कृत श्लोक, आदि के रूप में चर्चित एवं प्रसिद्ध है । 

चाणक्य का कालातीत प्रभाव  :

हजारों वर्षों के उपरांत भी उनमें वही ताजगी और उपयोगिता है। अतः वे आज भी उतने ही प्रासंगिक बने हुए हैं जितने वे तब थे जब वे लिखे गये थे। संस्कृत में रचित होने के कारण उनमें कालांतर के प्रभाव को स्पष्टतः नहीं देखा जाता है क्योंकि संस्कृत भाषा का सर्वश्रेष्ठ व्याकरण उसके अस्तित्व एवं गुणवत्ता के साथ ही उसके प्रभाव कि भी सुरक्षा करता है। ये अत्यंत ज्ञानवर्धक, पठनीय एवं माननीय हैं। ये जीवन‌ के अनेक चौराहों पर हमारा मार्गदर्शन करते हैं जब सब ओर अंधकार छा जाने की प्रतीति होती है।

About Chanakya (चाणक्य के बारे में) :

 चाणक्य का प्रभाव प्राचीन भारत से परे तक फैला हुआ है, क्योंकि शासन कला और शासन पर उनके विचारों का दुनिया भर के विद्वानों और नीति निर्माताओं द्वारा अध्ययन और सम्मान किया जाता है।  राजनीति के प्रति उनका व्यावहारिक दृष्टिकोण और राज्य और उसके नागरिकों के कल्याण पर उनका जोर उन्हें एक कालातीत व्यक्ति बनाता है जिनकी बुद्धि समय और स्थान की सीमाओं से परे है।

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