Saraswati Chalisa Lyrics in Hindi

सरस्वती पूजन

श्री कृष्ण ने भारतवर्ष में सर्वप्रथम सरस्वती की पूजा का प्रसार किया।

माघ मास की शुक्ल पंचमी पर तुम्हारा पूजन चिरंतन काल तक होता रहेगा तथा वह विद्यारम्भ का दिवस माना जायेगा। वाल्मीकि, बृहस्पति, भृगु इत्यादि को क्रमश: नारायण, मरीचि तथा ब्रह्मा आदि ने सरस्वती-पूजन का बीजमन्त्र दिया था।

हिन्दूधर्म में ज्ञान की देवी हैं- माँ सरस्वती

सरस्वती विद्या की देवी हैं। यह देवी मनुष्य समाज को महानतम सम्पत्ति-ज्ञानसम्पदा प्रदान करती है। वेदों में सरस्वती का वर्णन श्वेत वस्त्रा (जो श्वेत परिधान से आवरित है) के रूप में किया गया है। श्वेत पुष्प व मोती इनके आभूषण हैं, तथा श्वेत कमल गुच्छ पर ये विराजमान हैं। इनके हाथ में वीणा (सितार से मिलता-जुलता तारयुक्त वाद्य) शोभित है। वेद इन्हें जलदेवी के रूप में महत्ता देते हैं, एक नदी का नाम भी सरस्वती है। सरस्वती का पौराणिक इतिहास इन्हें उन धार्मिक कृत्यों से जोड़ता है, जो इन्हीं के नाम वाग्देवी के रूप में की जाती है तथा इनका संबंध बोलने व लिखने, शब्द की उत्पत्ति, दिव्यश्लोक विन्यास तथा संगीत से भी है।

सरस्वती
अन्य नामवाणी, वाग्देवी, भारती, शारदा, वागेश्वरी
जन्म विवरणसरस्वती का जन्म ब्रह्मा के मुँह से हुआ था।
वाहनहंस
रंग-रूपश्वेत पुष्प व मोती इनके आभूषण हैं, तथा श्वेत कमल गुच्छ पर ये विराजमान हैं।
वाद्यवीणा
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विशेषसरस्वती का पौराणिक इतिहास इन्हें उन धार्मिक कृत्यों से जोड़ता है, जो इन्हीं के नाम वाग्देवी के रूप में की जाती है तथा इनका संबंध बोलने व लिखने, शब्द की उत्पत्ति, दिव्यश्लोक विन्यास तथा संगीत से भी है।
अन्य जानकारीसरस्वती विद्या की देवी हैं। यह देवी मनुष्य समाज को महानतम सम्पत्ति-ज्ञानसम्पदा प्रदान करती है।
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Maa Saraswati

Saraswati Chalisa Lyrics in Hindi

मातु सरस्वती

॥ दोहा ॥

जनक जननि पद कमल रज,निज मस्तक पर धारि।

बन्दौं मातु सरस्वती, बुद्धि बल दे दातारि॥

पूर्ण जगत में व्याप्त तव, महिमा अमित अनंतु।

रामसागर के पाप को, मातु तुही अब हन्तु॥

॥ चौपाई ॥

जय श्री सकल बुद्धि बलरासी।

जय सर्वज्ञ अमर अविनासी॥

जय जय जय वीणाकर धारी।

करती सदा सुहंस सवारी॥

रूप चतुर्भुजधारी माता।

सकल विश्व अन्दर विख्याता॥

जग में पाप बुद्धि जब होती।

जबहि धर्म की फीकी ज्योती॥

तबहि मातु ले निज अवतारा।

पाप हीन करती महि तारा॥

बाल्मीकि जी थे बहम ज्ञानी।

तव प्रसाद जानै संसारा॥

रामायण जो रचे बनाई।

आदि कवी की पदवी पाई॥

कालिदास जो भये विख्याता।

तेरी कृपा दृष्टि से माता॥

तुलसी सूर आदि विद्धाना।

भये और जो ज्ञानी नाना॥

तिन्हहिं न और रहेउ अवलम्बा।

केवल कृपा आपकी अम्बा॥

करहु कृपा सोइ मातु भवानी।

दुखित दीन निज दासहि जानी॥

पुत्र करै अपराध बहूता।

तेहि न धरइ चित सुन्दर माता॥

राखु लाज जननी अब मेरी।

विनय करूं बहु भांति घनेरी॥

मैं अनाथ तेरी अवलंबा।

कृपा करउ जय जय जगदंबा॥

मधु कैटभ जो अति बलवाना।

बाहुयुद्ध विष्णू ते ठाना॥

समर हजार पांच में घोरा।

फिर भी मुख उनसे नहिं मोरा॥

मातु सहाय भई तेहि काला।

बुद्धि विपरीत करी खलहाला॥

तेहि ते मृत्यु भई खल केरी।

पुरवहु मातु मनोरथ मेरी॥

चंड मुण्ड जो थे विख्याता।

छण महुं संहारेउ तेहि माता॥

रक्तबीज से समरथ पापी।

सुर-मुनि हृदय धरा सब कांपी॥

काटेउ सिर जिम कदली खम्बा।

बार बार बिनवउं जगदंबा॥

जग प्रसिद्ध जो शुंभ निशुंभा।

छिन में बधे ताहि तू अम्बा॥

भरत-मातु बुधि फेरेउ जाई।

रामचन्द्र बनवास कराई॥

एहि विधि रावन वध तुम कीन्हा।

सुर नर मुनि सब कहुं सुख दीन्हा॥

को समरथ तव यश गुन गाना।

निगम अनादि अनंत बखाना॥

विष्णु रूद्र अज सकहिं न मारी।

जिनकी हो तुम रक्षाकारी॥

रक्त दन्तिका और शताक्षी।

नाम अपार है दानव भक्षी॥

दुर्गम काज धरा पर कीन्हा।

दुर्गा नाम सकल जग लीन्हा॥

दुर्ग आदि हरनी तू माता।

कृपा करहु जब जब सुखदाता॥

नृप कोपित जो मारन चाहै।

कानन में घेरे मृग नाहै॥

सागर मध्य पोत के भंगे।

अति तूफान नहिं कोऊ संगे॥

भूत प्रेत बाधा या दुःख में।

हो दरिद्र अथवा संकट में॥

नाम जपे मंगल सब होई।

संशय इसमें करइ न कोई॥

पुत्रहीन जो आतुर भाई।

सबै छांड़ि पूजें एहि माई॥

करै पाठ नित यह चालीसा।

होय पुत्र सुन्दर गुण ईसा॥

धूपादिक नैवेद्य चढावै।

संकट रहित अवश्य हो जावै॥

भक्ति मातु की करै हमेशा।

निकट न आवै ताहि कलेशा॥

बंदी पाठ करें शत बारा।

बंदी पाश दूर हो सारा॥

करहु कृपा भवमुक्ति भवानी।

मो कहं दास सदा निज जानी॥

॥ दोहा ॥

माता सूरज कान्ति तव,अंधकार मम रूप।

डूबन ते रक्षा करहु,परूं न मैं भव-कूप॥

बल बुद्धि विद्या देहुं मोहि,सुनहु सरस्वति मातु।

अधम रामसागरहिं तुम,आश्रय देउ पुनातु॥

Maa Saraswati Chalisa Lyrics in English

॥ Doha ॥

Janak Janani Padmaraj, Nij Mastak Par Dhari ।

Bandaun Matu Saraswati, Buddhi Bal De Datari ॥

Poorn Jagat Mein Vyapt Tav, Mahima Amit Anantu ।

Dushjanon Ke Pap Ko, Matu Tu Hi Ab Hantu ॥

॥ Chalisa ॥

Jai Shri Sakal Buddhi Balarasi ।

Jai Sarvagy Amar Avinashi ॥

Jai Jai Jai Vinakar Dhari ।

Karati Sada Suhans Savari ॥

Roop Chaturbhuj Dhari Mata ।

Sakal Vishv Andar Vikhyata ॥

Jag Mein Pap Buddhi Jab Hoti ।

Tab Hi Dharm Ki Phiki Jyoti ॥

Tab Hi Matu Ka Nij Avatari ।

Pap Hin Karati Mahatari ॥

Valmikiji the Hatyara ।

Tav Prasad Janai Sansara ॥

Ramacharit Jo Rache Banai ।

Adi Kavi Ki Padavi Pai ॥

Kalidas Jo Bhaye Vikhyata ।

Teri Krpa Drshti Se Mata ॥

Tulasi Soor Adi Vidvana ।

Bhaye Aur Jo Gyani Nana ॥

Tinh Na Aur Raheu Avalamba ।

Kev Krpa Apaki Amba ॥

Karahu Krpa Soi Matu Bhavani ।

Dukhit Deen Nij Dasahi Jani ॥

Putr Karahin Aparadh Bahoota ।

Tehi Na Dhari Chit Mata ॥

Rakhu Laj Janani Ab Meri ।

Vinay Karun Bhanti Bahu Teri ॥

Main Anath Teri Avalamba ।

Krpa Karu Jai Jai Jagadamba ॥

Madhukaitabh Jo Ati Balavana ।

Bahuyuddh Vishnu Se Thana ॥

Samar Hajar Panch Mein Ghora ।

Phir Bhi Mukh Unase Nahin Mora ॥

Matu Sahay Kinh Tehi Kala ।

Buddhi Viparit Bhi Khalahala ॥

Tehi Te Mrtyu Bhi Khal Keri ।

Puravahu Matu Manorath Meri ॥

Chand Mund Jo the Vikhyata ।

Kshan Mahu Sanhare Un Mata ॥

Rakt Bij Se Samarath Papi ।

Suramuni Haday Dhara Sab Kanpi ॥

Kateu Sir Jimi Kadali Khamba ।

Barabar Bin Vaun Jagadamba ॥

Jagaprasiddh Jo Shumbhanishumbha ।

Kshan Mein Bandhe Tahi Too Amba ॥

Bharatamatu Buddhi Phereoo Jai ।

Ramachandr Banavas Karai ॥

Ehividhi Ravan Vadh Too Kinha ।

Sur Naramuni Sabako Sukh Dinha ॥

Ko Samarath Tav Yash Gun Gana ।

Nigam Anadi Anant Bakhana ॥

Vishnu Rudr Jas Kahin Mari ।

Jinaki Ho Tum Rakshakari ॥

Rakt Dantika Aur Shatakshi ।

Nam Apar Hai Danav Bhakshi ॥

Durgam Kaj Dhara Par Kinha ।

Durga Nam Sakal Jag Linha ॥

Durg Adi Harani Too Mata ।

Krpa Karahu Jab Jab Sukhadata ॥

Nrp Kopit Ko Maran Chahe ।

Kanan Mein Ghere Mrg Nahe ॥

Sagar Madhy Pot Ke Bhanje ।

Ati Toophan Nahin Kooo Sange ॥

Bhoot Pret Badha Ya Duhkh Mein ।

Ho Daridr Athava Sankat Mein ॥

Nam Jape Mangal Sab Hoi ।

Sanshay Isamen Kari Na Koi ॥

Putrahin Jo Atur Bhai ।

Sabai Chhandi Poojen Ehi Bhai ॥

Karai Path Nit Yah Chalisa ।

Hoy Putr Sundar Gun Isha ॥

Dhoopadik Naivedya Chadhavai ।

Sankat Rahit Avashy Ho Javai ॥

Bhakti Matu Ki Karain Hamesha ।

Nikat Na Avai Tahi Kalesha ॥

Bandi Path Karen Sat Bara ।

Bandi Pash Door Ho Sara ॥

Ramasagar Bandhi Hetu Bhavani ।

Kijai Krpa Das Nij Jani ।

॥ Doha ॥

Matu Soory Kanti Tav, Andhakar Mam Roop ।

Dooban Se Raksha Karahu Paroon Na Main Bhav Koop ॥

Balabuddhi Vidya Dehu Mohi, Sunahu Sarasvati Matu ।

Ram Sagar Adham Ko Ashray Too Hi Dedatu ॥

विद्या की देवी माँ सरस्वती | mata saraswati

-पूज्य पांडुरंग शास्त्री आठवले

‘या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभवस्त्रावृता

या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना

या ब्रह्माच्युतशंकरप्रभृतिभिदैवै सदा वन्दिता

सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा॥’

‘जो कुन्द पुष्प, चँद्र, तुषार और मुक्ताहार जैसी धवल है, जो शुभ्र वस्त्रों से आवृत्त है, जिसके हाथ वीणारूपी वरदंड से शोभित हैं, जो श्वेत पद्म के आसन पर विरजित है, जिसे ब्रह्मा, विष्णु और महेश जैसे मुख्य देव वंदन करते हैं, ऐसी निःशेष जड़ता को दूर करने वाली भगवती सरस्वती! मेरा रक्षण करे।’

सरस्वती के स्वरूप वर्णन में ही सच्चे सारस्वत के लिए मार्गदर्शन है। सरस्वती कुन्द, इन्दु, तुषार और मुक्तहार जैसी धवल हैं, सच्चा सारस्वत भी वैसा ही होना चाहिए। कुन्द पुष्प सौरभ फैलाता है, चँद्र शीतलता देता है, तुषारबिन्दु, सृष्टिका सौंदर्य बढ़ाता है और मुक्ताहार व्यवस्था का वैभव प्रकट करता है। सच्चे सारस्वत का जीवन सौरभयुक्त होना चाहिए।

पुष्प की सुगंध जिस तरह सहज फैलती है, उसी तरह उसके ज्ञान की सुगंध शांति प्रदान करती है उसी तरह सरस्वती का सच्चा उपासक अनेक लोगों के संतप्त जीवन में शांति का स्त्रोत बहाता है। वृक्ष के पत्ते पर पड़ा हुआ ओसबिन्दु मोती की शोभा धारण करके वृक्ष के सौंदर्य को बढ़ाता है, उसी तरह सरस्वती के सच्चे उपासक के अस्तित्व से संसार वृक्ष की शोभा बढ़ती है।

ऐसे मानव के लिए कहना पड़ता है कि ‘जयति तेऽधिकं जन्मना जगत्‌।’ हार याने कुक्ताहार। अकेले मोती से मोतियों का हार ज्यादा सुंदर लगता है। सरस्वती के उपासकों को भी इस तरह एक साथ, एक सूत्र में बँधकर काम करने की तैयारी रखनी चाहिए। विद्वानों की शक्ति का ऐसा योग किसी भी महान कार्य को सुसाध्य बनाता है।

माँ सरस्वती ने धवल वस्त्र धारण किए हैं। सरस्वती का उपासक भी मन, वाणी और कर्म से शुभ्र होना चाहिए। सरस्वती के हाथ वीणा के वरदंड से शोभित हैं। वीणा संगीत का प्रतीक है। संगीत एक कला है। इस दृष्टि से देखने पर सरस्वती का उपासक संगीत का प्रेमी और जीवन का कलाकार होना चाहिए। संगीत यानी सम्यक्‌ गीत।

वाणी के सुर जिस तरह सुसंवादित होते हैं, उसी तरह हमारे कार्य भी यदि सुसंवादित हों तभी हमारे जीवन में संगीत प्रकटेगा। वीणा को वरदण्ड यानी श्रेष्ण दण्ड कहा है। दंड यदि सजा का प्रतीक हो तो उससे श्रेष्ठ सजा दूसरी क्या हो सकती है? जिसकी सजा में भी संगीत है ऐसा सरस्वत ही दूसरे मानव का हृदय परिवर्तन कर सकता है। मानव को बदलने वाला दंड निश्चित ही श्रेष्ठ है, उसका दर्शन माँ सरस्वती हमें वीणा का वरदण्ड हाथ में रखकर कराती है।

सरस्वती श्वेत पद्म के आसन पर विराजमान है। सरस्वती उपासक श्वेत अर्थात्‌ विशुद्ध चरित्र का होना चाहिए। उसका आसन पद्म का होना चाहिए, यह बात बहुत ही सूचक है। पद्म आसपास के वातावरण से अलिप्त रहता है। कीचड़ में रहकर भी वह भ्रष्ट नहीं होता। सरस्वती के उपासकों को भी अपने आसपास के समाज में प्रवर्तमान भ्रष्टाचार से इसी तरह मुक्त रहना है।

ब्रह्मा, विष्णु और महेश जैसे मुख्य देव माँ शारदा को वंदन करते हैं, उसमें भी रहस्य है। माँ सरस्वती ज्ञान और भाव का प्रतीक है, यह बात उनके हाथ में की पुस्तक और माला से समझ में आती है। पुस्तक ज्ञान का प्रतीक है और माला भक्ति प्रतीक है। ब्रह्मा, विष्णु और महेश अनुक्रम में सर्जन, पालन और संहार के देव हैं। इन तीनों को ज्ञान और भाव की जरूरत है।

बिना भाव का सृजन, बिना ज्ञान का पालन और बुद्धिहीन संहार अनर्थ करता है। इसलिए किसी भी कार्य के सृजन में, उस कार्य को टिकाने में और उस कार्य में घुसी हुई बुराई को दूर करने के लिए ज्ञान और भाव दोनों जरूरी है और इसीलिए किसी भी महान कार्य करने वाले महापुरुष को सरस्वती वंदना करनी ही चाहिए।

माँ सरस्वती हमारे जीवन की जड़ता को दूर करती है, सिर्फ हमें उसकी योग्य अर्थ में उपासना करनी चाहिए। सरस्वती का उपासक भोगों का गुलाम नहीं होना चाहिए। दूसरों की संपत्ति देखकर मन में अस्वस्थता निर्माण नहीं होना चाहिए। उसे निष्ठापूर्वक अपनी ज्ञानसाधना अखंड करते रहना चाहिए।

विद्वान मानव को धन का अभाव कभी भी नहीं सालना चाहिए। धनिक मानव केवल भोग में ही आनंद को खोजने में भटकता रहता है, जब कि विद्वान को वह आनंद निसर्ग-दर्शन से, जीवन के भाव प्रसंगों और साहित्य के सृजन या आस्वादन से सहज प्राप्त होता है।

सरस्वती का वाहन मयूर है। मोर कला का प्रतीक है। सरस्वती काल की भी देवी है। चौदह विद्या और चौसठ कला ये सभी सरस्वती की उपासना में आती है। कला जीविका प्रदान करती है और विद्या जीवन देती है। इस तरह सरस्वती हमारे समग्र अस्तित्व को आवृत्त करती है। सरस्वती के उपासक की प्रतिष्ठा समाज करे या न करें, परन्तु ज्ञान के वाहक के रूप में सम्मान करके भगवान अवश्य उसे अपने मस्तिष्क पर चढ़ाएँगे।

इस बात की प्रतीति भगवान कृष्ण ने मोरपंख को अपने माथे पर चढ़ाकर दी है। श्रीमद् आद्य शंकराचार्य गोपालकृष्ण को ‘सुपिच्छगुच्छ मस्तकम्‌’ कहकर उसकी विरुदावली गाते हैं। समाज में मेरा योग्य सम्मान नहीं होता ऐसा जिस विद्वान को लगता हो उसे इस संदर्भ में मोर और मोरपंख के बीच हुए संवाद स्वरूप नीचे का श्लोक हमेशा याद रखना चाहिए-

‘अस्मान्विचित्रवपुषस्तव पृष्ठलग्नात्‌

कस्माद्विमुञ्चसि भवान यदि वा विमुञ्च।

रे नीलकण्ठ गुरुहानिरियं ततैव

गोपालसू नु मुकुटे भवति स्थितिर्नः॥’

मोरपंख मोर से कहता है कि, ‘दीर्घकाल तक तेरी पीठ पर रहकर मैंने तेरी शोभा बढ़ाई है। मुझे तू अब क्यों झटक देता है? अथवा तू मुझे भले ही छोड़ दें, परन्तु उसमें तेरा ही नुकसान होने वाला है, तेरी शोभा नष्ट होने वाली है, मेरा स्थान तो भगवान गोपालकृष्ण मुकुट में है।’

अपना तिरस्कार करने वाले समाज को कोई भी सच्चा विद्वान उपरोक्त बात कह सकता है। समाज योग्य विद्वानों का सम्मान नहीं करेगा तो उसमें नुकसान समाज का ही है। विद्वानों को तो भगवान अपने सर पर चढ़ाने के लिए तैयार ही हैं।

इस बात को ध्यान में रखकर सच्चे विद्वान को बड़प्पन प्राप्त करने के लिए कभी भी किसी की भी खुशामत नहीं करनी चाहिए। लाचार या निस्तेज मानव को शारदा के मंदिर में प्रवेश नहीं मिलता।

जीवन में तेजस्विता लाने के लिए सरस्वती की उपासना करनी चाहिए। सच्चे सारस्वत को माँ शारदा के मंदिर का पावित्र्य टिकाना चाहिए।

शारदा के मंदिर में कला होनी चाहिए, परन्तु कला के स्वागत में विलासिता ने प्रवेश नहीं करना चाहिए। शारदा के मंदिर में विद्या होनी चाहिए, परन्तु विद्या के नाम पर अविद्या नहीं बेचनी चाहिए। शारदा के मंदिर में प्रेम होना चाहिए, परन्तु प्रेम के नाम पर मोह नहीं उत्पन्न होना चाहिए। शारदा के मंदिर में दिव्यता होनी चाहिए, परन्तु उन्मत्तता देखने को नहीं मिलनी चाहिए।

शारदा के मंदिर में नम्रता होनी चाहिए, परन्तु नम्रता का स्वांग धारण करके लाचारी नहीं घुसनी चाहिए। शारदा के मंदिर में प्राणों का प्रस्फुरण होना चाहिए, लेकिन निराशा के निश्वास नहीं निकलने चाहिए।

शारदा नित्य यौवन, स्तन्यदायिनी माता के समान है। वह अपने उपासक को जीवन देती है, उसके जीवन में कवन (काव्य) सर्जती है और उसे अपनी शक्तियों का सच्चा अनुभव समझाती है।

माँ शारदा को लाख-लाख वंदन!

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