पुष्प की अभिलाषा

पुष्प की अभिलाषा /पं.माखनलाल चतुर्वेदी 

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  • मन का यह भाव कि अमुक काम इस तरह से हो जाये या यह  बात इस रूप में हो जाय अथवा यह  वस्तु हमें प्राप्त हो जाय। आकांक्षा। इच्छा। कामना।  ये सभी अभिलाषा शब्द के अर्थ हैं।

कवि का परिचय – 

माखनलाल चतुर्वेदी का जन्म 4 अप्रैल सन् 1889 को मध्यप्रदेश के होशंगाबाद जिले के बाबई नामक स्थान पर हुआ था। इनके पिता जी का नाम नन्दलाल चतुर्वेदी तथा माता जी का नाम सुंदरी बाई था। इनका विवाह ग्यारसी बाई से हुआ था। सन् 1905 में जबलपुर से प्राइमरी टीचर्स ट्रेनिंग, नार्मल शिक्षा उत्तीर्ण करने के बाद ये अध्यापक हो गये। इन्हें हिन्दी के अतिरिक्त संस्कृत, बंगला, गुजराती, अंग्रेजी, भाषा पर भी समान अधिकार प्राप्त था। हिन्दी के प्रतिष्ठित कवि, कुशल वक्ता, पत्रकार, सम्पादक तथा लेखक होने के साथ-साथ माखनलाल चतुर्वेदी जी स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी भी थे। असहयोग आन्दोलन के दौरान उन्हें लगभग दस माह तक कारावास की सजा हुई। वे बिलासपुर की जेल में बंद रहे। ‘पुष्प की अभिलाषा’ नामक कालजयी कविता की रचना उन्होंने जेल में रहते हुए ही लिखी। बाद में शिक्षक पद से त्याग पत्र देकर, पत्रकारिता के क्षेत्र में आ गये। प्रसिद्ध राष्ट्रवादी पत्रकार गणेश शंकर विद्यार्थी से वे बहुत प्रभावित थे।

माखनलाल चतुर्वेदी की पहचान एक राष्ट्रवादी कवि के रूप में रही है। राष्ट्रवाद इनकी रचनाओं में भी प्रमुखता से मौजूद रहा है। इनके काव्य का मूल स्वर राष्ट्रीयतावादी है। भारतीय राष्ट्रीय स्वाधीनता की अनुगूंजें इनकी कविताओं में देखने को मिलती हैं। इन्होंने कुछ आध्यात्मिक और रहस्यवादी भावबोध की कवितायें भी लिखी हैं। मगर मुख्यतः वे राष्ट्रवादी विचारों के एक अच्छे कवि थे और इसी कारण से इन्हें साहित्य जगत में ‘भारतीय आत्मा’ कहा जाता है।

रचनाएं-

चतुर्वेदी जी ने गद्य और पद्य दोनों विधाओं में लिखा है। इनकी प्रमुख कृतियों के नाम हैं-

काव्य संग्रह-

हिम किरीटिनी (सन 1943), हिम तरंगिणी (सन 1949), माता (सन 1951), युग चरण (सन 1956), समर्पण (सन 1956), वेणु ले गूंजे धरा (सन 1960), बिजुरी काजल आंज रही (सन 1954 से 64 के बीच की रचनाओं का संकलन, सन 1980 में प्रकाशित)

कहानी संग्रह – 

कला का अनुवाद

गद्य काव्य – 

साहित्य देवता (निबंध संग्रह)

नाटक –

 कृष्णार्जुन-युद्ध, सिरजन और मंचन

संपादन – 

कर्मवीर, प्रताप, प्रभा (पत्रिका एवं समाचार पत्र)

निबंध –

 समय के पांव (1962, संस्मरणात्मक)

निबंध संग्रह – 

अमीर इरादे गरीब इरादे (1960), रंगों की होली (सन 1944 तक के निबंधों का संकलन, 1980 में प्रकाशित)

भाषण संग्रह-

 चिंतन की लाचारी (1965) 

सम्मान – 

सागर विश्वविद्यालय से डी. लिट. की उपाधि, सन 1969 में। पद्म भूषण सम्मान (सन 1963)

पुरस्कार –

 साहित्य अकादमी पुरस्कार, देव पुरस्कार

संदर्भ और प्रसंग-

प्रस्तुत कविता ‘पुष्प की अभिलाषा’ ‘हिम तरंगिनी’ काव्य संग्रह में संग्रहीत है। यह माखनलाल चतुर्वेदी जी की सबसे प्रसिद्ध कविता मानी जाती है। यह कविता उन्होंने भारत की आजादी के लिए हो रहे आंदोलनों के दौर में देश प्रेम की भावना जगाने के लिए रची थी।

इस कविता में पुष्प के माध्यम से देश के नागरिकों को देश प्रेम का संदेश देने का प्रयास किया गया है।

कठिन शब्द

चाह-इच्छा, सुरबाला सुंदर युवती, प्रेमी-माला-प्रेमिका के लिए प्रेमी द्वारा तैयार की गयी माला, गहना-आभूषण, बिंध-माला में गुंथ जाना। ललचाऊं-आकर्षित करूं। सम्राट-राजा, भाव मृत शरीर, हरि- ईश्वर, इठलाऊं- घमंण्ड करूं। वनमाली-फूलों के बगीचे का देख भाल करने वाला, शीश-सिर, मस्तक, पथ-रास्ता

व्याख्या-

कविता का संदर्भ यह है कि माली बगीचे में फूल तोड़ रहा है। फूल सोच रहा है कि माली फूलों को गूंथ कर माला बनायेगा। माला किसी युवती के आभूषण की शोभा बढ़ाने के काम आयेगी या प्रेमिका के गले में डाल दी जायेगी। यह भी हो सकता है कि कोई देवी देवता या किसी मृत राजा के शव पर चढ़ा दे। मगर फूल की इच्छा न युवती के गले का आभूषण बनने की है न देवता के सिर या सम्राट के शव पर चढ़ाये जाने की। उसकी इच्छा देश के लिए मर मिटने वाले वीरों के कदमों के नीचे बिछ जाने की है। इसलिए वह माली से अपनी इच्छा का इजहार करते हुए कहता है कि हे माली! सुनो! मैं नहीं चाहता कि मुझे किसी सुंदर स्त्री के आभूषण में गूंथा जाय। किसी सुंदरी के गले का आभूषण बनने की इच्छा बिल्कुल ही नहीं है। किसी प्रेमी की प्रेमिका को ललचाने की भी मुझे कोई इच्छा नहीं है।

फूल ईश्वर से प्रार्थना के भाव में कहता है कि हे प्रभो! मुझे किसी सम्राट के शव पर डाले जाने से बचाना। हमें तो किसी देवता के सिर पर चढ़ने का सौभाग्य प्राप्त करने की भी इच्छा नहीं है।

कविता के तीसरे बंद में फूल कहता है- हे माली! मेरी एक मात्र अभिलाषा यह है कि मुझे उस रास्ते पर बिखेर दिया जाय, जिस रास्ते से होकर, देश की आजादी के लिए बलिदान होने की उच्च भावना के साथ, मातृभूमि के सपूत जाते हैं। मैं उनके पांवों को छू कर धन्य होना चाहता हूँ। भावार्थ यह है कि पुष्प किसी सम्राट, देवता, या सुंदरी के माथे की शोभा बन कर गौरव महसूस करने की जगह वीर सैनिकों के पावों तले कुचले जाने में अपने को धन्य समझता है। वह खुद देश की रक्षा के काम नहीं आ सकता, जो देश के लिए जीवन की बाजी लगाने के लिए तैयार हैं, उनके रास्ते में बिछ कर उनके प्रति अपनी कृतज्ञता व्यक्त करना चाहता है।

काव्य सौष्ठव-

यह एक प्रतीकात्मक कविता है। इसमें फूल को स्वतंत्रता प्रेमी भारतवासी का प्रतीक बनाया गया है। फूल का मानवीकरण करने से इस कविता का प्रभाव बहुत बढ़ गया है।

कविता की भाषा सरल और प्रांजल है।

राष्ट्रप्रेम जैसी गम्भीर भावना को सरल शब्दों में बड़े ही कलात्म्क ढंग से अभिव्यक्त किया गया है।

इस गीत में केवल दो बंद हैं। पहले बंद में 30 मात्राओं की चार पंक्तियां हैं, जबकि दूसरा बंद 17 और 15 मात्राओं वाली दो युगल पंक्तियों से मिल कर बना है।

इस कविता को धुन में गाया जा सकता है। इसकी गेयता बहुत आकर्षक और मधुर है।

विशेष-

माखनलाल चतुर्वेदी के काव्य में राष्ट्रीय चेतना का उदात्त स्वर देखने को मिलता है। उनकी कविताओं में भारतीय आत्मा को वाणी दी गयी होती है। ‘पुष्प की अभिलाषा’ एक महान गीत होने की योग्यता रखता है। राष्ट्रगान (जनगणमन अधिनायक), राष्ट्रगीत (वंदे मातरम) और ‘सारे जहां से अच्छा’ के बाद यह चौथा गीत है जो सारे देश में गाया जाता है। कवि ने पुष्प की अभिलाषा के माध्यम से राष्ट्रप्रेम प्रदर्शित करने की जैसी शुभ कामना व्यक्त की है, वह अप्रतिम है।


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