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 चाणक्यनीतिदर्पण – 15.2

चाणक्य नीति दर्पण मूलत: संस्कृत (Sanskrit) में संस्कृत सुभाषितों के रूप में, काव्यात्मक एवं श्लोकों  के रूप में लिखा हुआ ग्रंथ है। इसके रचनाकार आचार्य चाणक्य हैं। उनके ये संस्कृत श्लोक चाणक्य नीति के नाम से संसार भर में प्रसिद्ध हैं। यहां पर यह श्लोक देवनागरी लिपि एवं  रोमन लिपि में भी दिए गए हैं एवं उनके अर्थ हिंदी देवनागरी एवं अंग्रेजी में रोमन लिपि में भी दिये गये हैं। जिससे विदेशों में रहने वाले भारतीय जो देवनागरी से परिचित नहीं हैं सनातन ग्रंथों के ज्ञान से लाभान्वित हो सकें।

अथ पंचदशोऽध्यायः ॥ 15 ॥

atha paṁcadaśō’dhyāyaḥ ॥ 15 ॥

ग्रन्थ का नाम : चाणक्यनीतिदर्पण,  रचनाकार – आचार्य चाणक्य,   अध्याय – 15   श्लोक-  11-15

दुरागतंपथिश्रांतंवृयाच गृहमागतम् ॥ 
अनर्चयित्वा यो घुँक्ते सवैचांडालउच्यते ॥११॥

दूर से आये को, पथ से थके को और निरर्थक (अयआचक वृत्ति से) गृह पर आये को बिना पूछे जो खाता है वह चांडाल ही गिना जाता है ॥ ११ ॥

durāgataṁpathiśrāṁtaṁvr̥yāca gr̥hamāgatam ॥ 
anarcayitvā yō ghum̐ktē savaicāṁḍālucyatē ॥11॥

The one who comes from a distance, tired from the journey and the one who comes to his home with no intention of eating, eats without asking, is considered a Chandal. ।। 11 ॥

पठंतिचतुरो वेदानधर्मशास्त्राण्यनेकशः ॥ 
आत्मानंनैवजानंतिदर्वीपाकरसंयथा ॥ १२॥

अर्थ - चतुर लोग चारों वेद और अनेक धर्मशात्र पढ़ते हैं परन्तु आत्मा को नहीं जानते, जैसे करछी पाक के रस को नहीं जानती ॥ ५२ ॥
paṭhaṁticaturō vēdānadharmaśāstrāṇyanēkaśaḥ ॥ 
ātmānaṁnaivajānaṁtidarvīpākarasaṁyathā ॥ 12॥
Meaning - Clever people read the four Vedas and many dharmaśātra   but do not know the soul, just as a ladle does not know the essence of cooking. 52 ॥


धन्याद्विजमयीनांकाविपरीताभवार्णवे ॥
तरंत्वधोगताः सर्वेउपरिस्थाःपतंत्यधः ॥१३॥ 
अर्थ - यह ब्राह्मणरूप नाव धन्य है संसार रूप संमुद्र में इसकी उल्टी ही रीति है; उसके नीचे रहने वाले सब तरते हैं और ऊपर रहने वाले नीचे गिरते हैं. अर्थात् ब्राह्मण से जो नम्र रहता है. वह तर जाता है और जो नम्र नहीं रहता है वह नरक में गिरता है।१३।

dhanyādvijamayīnāṁkāviparītābhavārṇavē ॥
taraṁtvadhōgatāḥ sarvēuparisthāḥpataṁtyadhaḥ ॥13॥ 

Meaning - This boat in the form of Brahmin is blessed; in the ocean of the world it is the opposite; All those living below it float and those living above them fall. That is, one who remains humble compared to a Brahmin. He gets wet and the one who does not remain humble falls into hell. ।।13.।।

अयममृतनिधानं नायकोऽप्यौषधीनाम् अमृतमयशरीरः कांतियुक्तोऽपिचन्द्रः ॥ 
भवति विगतरश्मिर्मंडलंप्राप्यभानोः परसदननिविष्टः कोलघुत्वंनयाति ॥ १४ ॥
अर्थ - अमृतका घर औषधियों का अधिपति जिसका शरीर अमृतमय और शोभा से युक्त भी चंद्रमा सूर्य के मंडल में जाकर निस्तेज हो जाता है, दूसरे के घर में बैठकर कौन लघुता नहीं पाता ॥ १४ ॥
ayamamr̥tanidhānaṁ nāyakō ’pyauṣadhīnām amr̥ta mayaśarīraḥ kāṁtiyuktō’picandraḥ ॥ 
bhavati vigataraśmirmaṁḍalaṁprāpyabhānōḥ parasadananiviṣṭaḥ kōlaghutvaṁnayāti ॥ 14 ॥

Meaning - The house of nectar, the lord of medicines, whose body is full of nectar and beauty, even when the moon goes into the circle of the sun, it becomes dull, who does not feel inferior by sitting in someone else's house? 14 ॥

अलिरयंनलिनीदलमध्यगः कमलिनी मकरंदम दालसः॥
विधिवशात्परदेशमुपागता कुटजपुष्प रसंबहुमन्यते ॥ १५ ॥

अर्थ -  यह भौंरा जब कमलिनी के पत्तों के मध्य था तब कमलिनी के फूल के रस से आलसी बना रहता था। अब दैववश से पर देश में आकर तोरैया के फूल को बहुत समझता है ॥ १५ ॥

alirayaṁnalinīdalamadhyagaḥ kamalinī makaraṁdama dālasaḥ॥
vidhivaśātparadēśamupāgatā kuṭajapuṣpa rasaṁbahumanyatē ॥ 15 ॥

Meaning - When this bumblebee was among the leaves of Kamalini, he remained lazy with the juice of Kamalini flower. Now, by God's will, after coming to the country, he understands the ridge gourd flower very well. ।। 15.।।

चाणक्य की प्रसिद्धि : 

ये संस्कृत श्लोक आचार्य चाणक्य के द्वारा रचित हैं। उनका नाम कौटिल्य एवं विष्णुगुप्त के नाम से भी प्रसिद्ध है। उनकी रचनाएँ Chanakya सूत्र, chanakya niti, chanakya ni pothi, chanakya quotes, chanakya niti in hindi, chanakya quotes in hindi, चाणक्य, चाणक्य नीति,  चाणक्य नीति की 10 बातें,  चाणक्य नीति की बातें, चाणक्य के कड़वे वचन, चाणक्य नीति स्त्री, चाणक्य नीति की 100 बातें,  चाणक्य विचार इन हिंदी, चाणक्य नीति सुविचार, चाणक्य नीति जीवन जीने की, सुविचार चाणक्य के कड़वे वचन, sanskrit shlok, shlok,sanskrit, sanskrit shlok,sanskrit quotes,shlok in sanskrit, sanskrit thought, sanskrit slokas,संस्कृत श्लोक,श्लोक,छोटे संस्कृत श्लोक, आदि के रूप में चर्चित एवं प्रसिद्ध है । 

चाणक्य का कालातीत प्रभाव  :

हजारों वर्षों के उपरांत भी उनमें वही ताजगी और उपयोगिता है। अतः वे आज भी उतने ही प्रासंगिक बने हुए हैं जितने वे तब थे जब वे लिखे गये थे। संस्कृत में रचित होने के कारण उनमें कालांतर के प्रभाव को स्पष्टतः नहीं देखा जाता है क्योंकि संस्कृत भाषा का सर्वश्रेष्ठ व्याकरण उसके अस्तित्व एवं गुणवत्ता के साथ ही उसके प्रभाव कि भी सुरक्षा करता है। ये अत्यंत ज्ञानवर्धक, पठनीय एवं माननीय हैं। ये जीवन‌ के अनेक चौराहों पर हमारा मार्गदर्शन करते हैं जब सब ओर अंधकार छा जाने की प्रतीति होती है।

About Chanakya (चाणक्य के बारे में) :

 चाणक्य का प्रभाव प्राचीन भारत से परे तक फैला हुआ है, क्योंकि शासन कला और शासन पर उनके विचारों का दुनिया भर के विद्वानों और नीति निर्माताओं द्वारा अध्ययन और सम्मान किया जाता है।  राजनीति के प्रति उनका व्यावहारिक दृष्टिकोण और राज्य और उसके नागरिकों के कल्याण पर उनका जोर उन्हें एक कालातीत व्यक्ति बनाता है जिनकी बुद्धि समय और स्थान की सीमाओं से परे है।

 चाणक्यनीतिदर्पण – 15.1

चाणक्य नीति दर्पण मूलत: संस्कृत (Sanskrit) में संस्कृत सुभाषितों के रूप में, काव्यात्मक एवं श्लोकों  के रूप में लिखा हुआ ग्रंथ है। इसके रचनाकार आचार्य चाणक्य हैं। उनके ये संस्कृत श्लोक चाणक्य नीति के नाम से संसार भर में प्रसिद्ध हैं। यहां पर यह श्लोक देवनागरी लिपि एवं  रोमन लिपि में भी दिए गए हैं एवं उनके अर्थ हिंदी देवनागरी एवं अंग्रेजी में रोमन लिपि में भी दिये गये हैं। जिससे विदेशों में रहने वाले भारतीय जो देवनागरी से परिचित नहीं हैं सनातन ग्रंथों के ज्ञान से लाभान्वित हो सकें।

अथ पंचदशोऽध्यायः ॥ 15 ॥

atha paṁcadaśō’dhyāyaḥ ॥ 15 ॥

ग्रन्थ का नाम : चाणक्यनीतिदर्पण,  रचनाकार – आचार्य चाणक्य,   अध्याय – 15   श्लोक-  1-10
यस्यचित्तंद्रवीभूतंकृपया सर्वजन्तुषु ॥ 
तस्यज्ञानेनमोक्षणकिं जटाभस्मलेपनः ॥१॥

अर्थ - जिसका चित्त सभी प्राणियों पर दया से द्रवित हो जाता है उसको ज्ञान से, मोक्ष से, जटा से और विभूति के लेपन से क्या है ॥ १ ॥
yasyacittaṁdravībhūtaṁkr̥payā sarvajantuṣu ॥ 
tasyajñānēnamōkṣaṇakiṁ jaṭābhasmalēpanaḥ ॥1॥
Meaning - One whose mind is filled with compassion for all living beings, what does he have to do with knowledge, salvation, hair and the coating of Vibhuti. 1॥

एकमेवाक्षरंयस्तुगुरुः शिष्यं प्रबोधयेत् ॥ 
पृथिव्यानास्तितव्यं यद्दत्त्वा चान्नृणोभवेत् ॥२॥

अर्थ - जो गुरु शिष्य को एकभी अक्षर का उपदेश करता है। पृथ्वी में ऐसा द्रव्य नहीं है जिसको देकर शिष्य उससे उऋण हो जाय ॥ २ ॥

ēkamēvākṣaraṁyastuguruḥ śiṣyaṁ prabōdhayēt ॥ 
pr̥thivyānāstitavyaṁ yaddattvā cānnr̥ṇōbhavēt ॥2॥
Meaning - The teacher who teaches a single letter to the disciple. There is no substance on earth which can be given to a disciple by giving it. 2॥

खलानां कण्टकानांच द्विविधैवप्रतिक्रिया ॥ 
उपानन्मुखभंगोबा दूरतोवा विसर्जनम् ॥ ३ ॥

अर्थ - खल और कांटा इनके दो ही प्रकार के उपाय हैं जूते से मुख का तोड़ना या दूर से उन्हें त्याग देना ॥ ३ ॥

khalānāṁ kaṇṭakānāṁca dvividhaivapratikriyā ॥ 
upānanmukhabhaṁgōbā dūratōvā visarjanam ॥ 3 ॥
Meaning - There are only two types of solutions - a mortar and a thorn, breaking the mouth with a shoe or throwing it away from a distance. 3॥

कुचैलिनं दन्तमलोपसृष्टं बहुवाशिनं निष्ठुरभाषिणं च
सूर्योदये चास्तमिते शयानं विमुञ्चति श्रीर्यदि चक्रपाणिः
OR
कुचैलिनंदन्तम लोपधारिणंबह्वा शिनंनिष्टुरभाषिणंच ।। 
सूर्योदयेचास्तमितेशयानंविमुंचति श्रीर्यद्धिचक्रपाणिः ॥ ४ ॥

अर्थ - मलिन(मैले) वस्त्र वाले को, जो दांतों के मल को दूर नहीं करता उसको, बहुत भोजन करने वाले को, कटु भाषी को, सूर्य के उदय और अस्त के समय में सोने वाले को लक्ष्मी छोड़ देती है चाहे वह विष्णु भी हो॥४॥

kucailinaṁdantama lōpadhāriṇaṁbahvā śinaṁniṣṭurabhā ṣiāṁca ॥ 
sūryōdayēcāstamitēśayānaṁvimuṁcati śrīryaddhicakrapāṇiḥ ॥ 4 ॥

Meaning - Lakshmi leaves the one who wears dirty clothes, the one who does not remove the stool from his teeth, the one who eats a lot, the one who speaks harshly, the one who sleeps during the rising and setting of the sun, even if it is Vishnu. ॥4॥

त्यजंतिमित्राणिधनैविहीनंदाराश्वभृत्याश्च सुहज्जनाश्च ॥ 
तचार्थवंतंपुनराश्रयँतेह्यथोहिलोके पुरुषस्यबंधुः ॥ ५ ॥

मित्र, स्त्री, सेवक, और बन्धु ये धनहीन पुरुष को छोड़ देते हैं और वही पुरुष अर्थवान(धनवान) हो जाता है तो फिर उसी का आश्रय करते हैं अर्थात् धन ही लोक में बन्धु है ॥.५.॥
tyajaṁtimitrāṇidhanaivihīnaṁdārāśvabhr̥tyāśca suhajjanāśca ॥ 
tacārthavaṁtaṁpunarāśrayam̐tēhyathōhilōkē puruṣasyabaṁdhuḥ ॥ 5 ॥

Friends, women, servants, and friends leave a man without money and when the same man becomes wealthy, they take refuge in him, that is, money is their friend in this world. ॥.5.॥

अन्यायोपार्जितंद्रव्यंदशवर्षाणितिष्ठंति ॥ 
प्राप्तएकादशेवर्षेसमूलंचविनश्यति ॥ ६ ॥

अर्थ - अनीति या अन्याय से अर्जित धन दस वर्ष पर्यंत ठहरता है। ग्यारहवें वर्ष के प्राप्त होने पर मूलसहित नष्ट हो जाता है ॥ ६ ॥

anyāyōpārjitaṁdravyaṁdaśavarṣāṇitiṣṭhaṁti ॥ 
prāptēkādaśēvarṣēsamūlaṁcavinaśyati ॥ 6 ॥

Meaning - Money earned through injustice or injustice remains for ten years. On attaining the eleventh year, it is destroyed along with its roots. 6॥

अयुक्तस्वामिनोयुक्तंयुक्तंनी चस्यदूषणम् ।। 
अमृतंराहवेमृत्युर्विषंशंकर भूषणम्॥७॥

अर्थ - अयोग्य वस्तु भी सर्मथ को योग्य होती है और योग्य भी दुर्जन को दूषण, अमृत ने राहु को मृत्यु दिया, विष भी शंकर को विभूषण हो गया॥७॥

ayuktasvāminōyuktaṁyuktaṁnī casyadūṣaṇam ॥ 
amr̥taṁrāhavēmr̥tyurviṣaṁśaṁkara bhūṣaṇam॥7॥

Meaning - Even an unworthy thing becomes worthy of the capable and the worthy also becomes a poison for the wicked, nectar gave death to Rahu, poison also became a decoration for Shankar.॥7॥

तद्भोजनंयद्दिजभुक्तशेषं तत्सौहृदंयतुं क्रियतेप रस्मिन् ॥ 
सामाज्ञता पान करोतिपापं दंर्भविना यःक्रियतेसधर्मः ॥ ८ ॥

अर्थ - वही भोजन है जो ब्राह्मण के भोजन से बचा है। वही मित्रता है जो दूसरे में की जाती है। वही बुद्धिमानी है जो पाप नहीं कराती और जो बिना दंभ के किया जाता है वही धर्म है ॥८॥

tadbhōjanaṁyaddijabhuktaśēṣaṁ tatsauhr̥daṁyatuṁ kriyatēpa rasmin ॥ 
sāmājñatā pāna karōtipāpaṁ daṁrbhavinā yaḥkriyatēsadharmaḥ ॥ 8 ॥

Meaning - It is the food which is left over from the Brahmin's meal. That is friendship which is done in others. That wisdom is that which does not cause sin and that which is done without pride(dambha) is religion.

मणिर्तुठतिपादायेकाचः शिरसिधार्यते ॥ 
क्रयविक्रयवेलाया काचःकाचोमणिर्मणिः॥९॥

अर्थ - माणि पांव के आगे लोटती हो, और कांच सिर पर भी रखा हो परन्तु क्रय विक्रय के समय में कांच कांच ही रहता है और मणि मणि ही रहती है ॥ 9 ॥

maṇirtuṭhatipādāyēkācaḥ śirasidhāryatē ॥ 
krayavikrayavēlāyā kācaḥkācōmaṇirmaṇiḥ॥9॥

Meaning - A gem rolls in front of your feet, and a glass is also placed on your head, but at the time of buying and selling, glass remains glass and a gem remains a gem. 9॥

अनंतशास्त्रंबहुलाश्वविद्या अल्पश्वकालोबहु विघ्नताच ॥ 
यत्सारभूतंतदुपासनीयेंहंसोयथा क्षीरमिवांबुमष्यात् ॥ १० ॥

अर्थ - शास्त्र अनंत हैं और विद्या बहुत हैं, काल थोडा है, और विघ्न बहुत हैं. इस कारण जो सार है उसको ले लेना उचित है, जैसे हंस जल के मध्य से दूध को ले लेता है ॥ 10 ॥

anaṁtaśāstraṁbahulāśvavidyā alpaśvakālōbahu vighnatāca ॥ 
yatsārabhūtaṁtadupāsanīyēṁhaṁsōyathā kṣīramivāṁbumaṣyāt ॥ 10 ॥

Meaning: The scriptures are infinite and the knowledge is numerous, time limited, and the obstacles are many. For this reason, it is appropriate to take the essence, just as a swan takes milk from the middle of water. 10 ॥

चाणक्य की प्रसिद्धि : 

ये संस्कृत श्लोक आचार्य चाणक्य के द्वारा रचित हैं। उनका नाम कौटिल्य एवं विष्णुगुप्त के नाम से भी प्रसिद्ध है। उनकी रचनाएँ Chanakya सूत्र, chanakya niti, chanakya ni pothi, chanakya quotes, chanakya niti in hindi, chanakya quotes in hindi, चाणक्य, चाणक्य नीति,  चाणक्य नीति की 10 बातें,  चाणक्य नीति की बातें, चाणक्य के कड़वे वचन, चाणक्य नीति स्त्री, चाणक्य नीति की 100 बातें,  चाणक्य विचार इन हिंदी, चाणक्य नीति सुविचार, चाणक्य नीति जीवन जीने की, सुविचार चाणक्य के कड़वे वचन, sanskrit shlok, shlok,sanskrit, sanskrit shlok,sanskrit quotes,shlok in sanskrit, sanskrit thought, sanskrit slokas,संस्कृत श्लोक,श्लोक,छोटे संस्कृत श्लोक, आदि के रूप में चर्चित एवं प्रसिद्ध है । 

चाणक्य का कालातीत प्रभाव  :

हजारों वर्षों के उपरांत भी उनमें वही ताजगी और उपयोगिता है। अतः वे आज भी उतने ही प्रासंगिक बने हुए हैं जितने वे तब थे जब वे लिखे गये थे। संस्कृत में रचित होने के कारण उनमें कालांतर के प्रभाव को स्पष्टतः नहीं देखा जाता है क्योंकि संस्कृत भाषा का सर्वश्रेष्ठ व्याकरण उसके अस्तित्व एवं गुणवत्ता के साथ ही उसके प्रभाव कि भी सुरक्षा करता है। ये अत्यंत ज्ञानवर्धक, पठनीय एवं माननीय हैं। ये जीवन‌ के अनेक चौराहों पर हमारा मार्गदर्शन करते हैं जब सब ओर अंधकार छा जाने की प्रतीति होती है।

About Chanakya (चाणक्य के बारे में) :

 चाणक्य का प्रभाव प्राचीन भारत से परे तक फैला हुआ है, क्योंकि शासन कला और शासन पर उनके विचारों का दुनिया भर के विद्वानों और नीति निर्माताओं द्वारा अध्ययन और सम्मान किया जाता है।  राजनीति के प्रति उनका व्यावहारिक दृष्टिकोण और राज्य और उसके नागरिकों के कल्याण पर उनका जोर उन्हें एक कालातीत व्यक्ति बनाता है जिनकी बुद्धि समय और स्थान की सीमाओं से परे है।


 चाणक्यनीतिदर्पण – 14.4

चाणक्य नीति दर्पण मूलत: संस्कृत (Sanskrit) में संस्कृत सुभाषितों के रूप में, काव्यात्मक एवं श्लोकों  के रूप में लिखा हुआ ग्रंथ है। इसके रचनाकार आचार्य चाणक्य हैं। उनके ये संस्कृत श्लोक चाणक्य नीति के नाम से संसार भर में प्रसिद्ध हैं। यहां पर यह श्लोक देवनागरी लिपि एवं  रोमन लिपि में भी दिए गए हैं एवं उनके अर्थ हिंदी देवनागरी एवं अंग्रेजी में रोमन लिपि में भी दिये गये हैं। जिससे विदेशों में रहने वाले भारतीय जो देवनागरी से परिचित नहीं हैं सनातन ग्रंथों के ज्ञान से लाभान्वित हो सकें।

अथ चतुर्दशोऽध्यायः ॥ 14 ॥

atha caturdaśō’dhyāyaḥ ॥ 14 ॥

ग्रन्थ का नाम : चाणक्यनीतिदर्पण,  रचनाकार – आचार्य चाणक्य,   अध्याय – 14   श्लोक-  16-20

एकएवपदार्थस्तुत्रिधाभवतिदीक्षितः ॥ 
कुंणपं. कामिनीमांसंयोगिभिः कामिभिः श्वभिः ॥ १६ ॥

अर्थ - एक ही देहरूप वस्तु तीन प्रकार की दिखाई पडती है योगी लोग उसको अधिनिन्दित मृतक रूपस, कामी पुरुष कांता रूप से और कुत्ते मांस रूप से देखते हैं ॥ १६ ॥

ēkēvapadārthastutridhābhavatidīkṣitaḥ ॥ 
kuṁṇapaṁ. kāminīmāṁsaṁyōgibhiḥ kāmibhiḥ śvabhiḥ ॥ 16 ॥

Meaning - The same physical object appears in three types; Yogis see it in the form of a condemned dead, lustful men see it in the form of a thorn and dogs in the form of flesh. 16 ॥

सुसिद्ध मौषधंधर्मगृहाच्छिद्रं चमैथुनम् ॥ 
कुसुक्तकुश्रुतंचैवमतिमान्नप्रकाशयेत् ॥१७॥

अर्थ - सिद्ध औषध, धर्म, अपने घर का दोष, मैथुन, कुअन्नका भोजन और निंदित वचन इन सभी का  प्रकाश करना बुद्धिमान को उचित नहीं है  अर्थात् इन सभी बातों की गोपनीयता की  रक्षा करनी चाहिए॥ १७ ॥ 

susiddha mauṣadhaṁdharmagr̥hācchidraṁ camaithunm ॥ 
kusuktakuśrutaṁcaivamatimānnaprakāśayēt ॥17॥

Meaning - It is not appropriate for a wise person to make public about proven medicines, religion, faults in one's home, sex, eating well and condemning words, that is, the secrecy of all these things should be protected. ।। 17 ॥

तावन्मानेननीयन्तेकोकिलैश्चैववासराः ॥ 
यावत्सर्वजनानन्ददायिनी वाक्प्रवर्तते ॥१८॥
अर्थ - तब तक  कोकिल (कोयल) मौन साधन से दिन बिताती है जब तक वह सब जनों को आनन्द देने वाली वाणी का प्रारंभ न कर दे ॥ १८ ॥

tāvanmānēnanīyantēkōkilaiścaivavāsarāḥ ॥ 
yāvatsarvajanānandadāyinī vākpravartatē ॥18॥

Meaning - The cuckoo spends its days in silence until it starts speaking, giving joy to all. 18 ॥

धर्मधनंचधान्यंचगुरोर्वचनमौषधम् 
सुगृहीतं चर्कर्तव्यमन्यथातुनजीवति ।।१९ ॥
अर्थ - धर्म, धन, धान्य, गुरू का वचन और औषध यदि ये सुगृहीत हों तो इनको भली भांति से करना चाहिये। जो ऐसा नहीं करता वह नहीं जीता ॥१९॥

dharmadhanaṁcadhānyaṁcagurōrvacanamauṣadham 
sugr̥hītaṁ carkartavyamanyathātunajīvati ॥19 ॥

Meaning - If religion, wealth, grain, Guru's word and medicine are well-established then they should be used properly. He who does not do this does not win.

त्यजदुर्जनसंसर्गभजसाधुसमागमम् ॥ 
कुरुपुण्यमहोरात्रंस्मरनित्यमनित्यतः ॥ २० ॥

अर्थ - खल का संग छोड, साधु की संगति का स्वीकार कर, दिनरात पुण्य क्रिया कर और ईश्वरका नित्यस्मरण कर क्योंकि यह संसार अनित्य है ।। 20 ।।

tyajadurjanasaṁsargabhajasādhusamāgamam ॥ 
kurupuṇyamahōrātraṁsmaranityamanityataḥ ॥ 20 ॥

Meaning - Leave the company of evil people, accept the company of a sage, do virtuous activities day and night and remember God daily because this world is impermanent. ।। 20 ।।


इति चतुर्दशोऽध्याय: ॥ 14 ॥
iti caturdaśō’dhyāya: ॥ 14 ॥

चाणक्य की प्रसिद्धि : 

ये संस्कृत श्लोक आचार्य चाणक्य के द्वारा रचित हैं। उनका नाम कौटिल्य एवं विष्णुगुप्त के नाम से भी प्रसिद्ध है। उनकी रचनाएँ Chanakya सूत्र, chanakya niti, chanakya ni pothi, chanakya quotes, chanakya niti in hindi, chanakya quotes in hindi, चाणक्य, चाणक्य नीति,  चाणक्य नीति की 10 बातें,  चाणक्य नीति की बातें, चाणक्य के कड़वे वचन, चाणक्य नीति स्त्री, चाणक्य नीति की 100 बातें,  चाणक्य विचार इन हिंदी, चाणक्य नीति सुविचार, चाणक्य नीति जीवन जीने की, सुविचार चाणक्य के कड़वे वचन, sanskrit shlok, shlok,sanskrit, sanskrit shlok,sanskrit quotes,shlok in sanskrit, sanskrit thought, sanskrit slokas,संस्कृत श्लोक,श्लोक,छोटे संस्कृत श्लोक, आदि के रूप में चर्चित एवं प्रसिद्ध है । 

चाणक्य का कालातीत प्रभाव  :

हजारों वर्षों के उपरांत भी उनमें वही ताजगी और उपयोगिता है। अतः वे आज भी उतने ही प्रासंगिक बने हुए हैं जितने वे तब थे जब वे लिखे गये थे। संस्कृत में रचित होने के कारण उनमें कालांतर के प्रभाव को स्पष्टतः नहीं देखा जाता है क्योंकि संस्कृत भाषा का सर्वश्रेष्ठ व्याकरण उसके अस्तित्व एवं गुणवत्ता के साथ ही उसके प्रभाव कि भी सुरक्षा करता है। ये अत्यंत ज्ञानवर्धक, पठनीय एवं माननीय हैं। ये जीवन‌ के अनेक चौराहों पर हमारा मार्गदर्शन करते हैं जब सब ओर अंधकार छा जाने की प्रतीति होती है।

About Chanakya (चाणक्य के बारे में) :

 चाणक्य का प्रभाव प्राचीन भारत से परे तक फैला हुआ है, क्योंकि शासन कला और शासन पर उनके विचारों का दुनिया भर के विद्वानों और नीति निर्माताओं द्वारा अध्ययन और सम्मान किया जाता है।  राजनीति के प्रति उनका व्यावहारिक दृष्टिकोण और राज्य और उसके नागरिकों के कल्याण पर उनका जोर उन्हें एक कालातीत व्यक्ति बनाता है जिनकी बुद्धि समय और स्थान की सीमाओं से परे है।


 चाणक्यनीतिदर्पण – 14.3

चाणक्य नीति दर्पण मूलत: संस्कृत (Sanskrit) में संस्कृत सुभाषितों के रूप में, काव्यात्मक एवं श्लोकों  के रूप में लिखा हुआ ग्रंथ है। इसके रचनाकार आचार्य चाणक्य हैं। उनके ये संस्कृत श्लोक चाणक्य नीति के नाम से संसार भर में प्रसिद्ध हैं। यहां पर यह श्लोक देवनागरी लिपि एवं  रोमन लिपि में भी दिए गए हैं एवं उनके अर्थ हिंदी देवनागरी एवं अंग्रेजी में रोमन लिपि में भी दिये गये हैं। जिससे विदेशों में रहने वाले भारतीय जो देवनागरी से परिचित नहीं हैं सनातन ग्रंथों के ज्ञान से लाभान्वित हो सकें।

अथ चतुर्दशोऽध्यायः ॥ 14 ॥

atha caturdaśō’dhyāyaḥ ॥ 14 ॥

ग्रन्थ का नाम : चाणक्यनीतिदर्पण,  रचनाकार – आचार्य चाणक्य,   अध्याय – 14   श्लोक-  11-15

अत्यासन्नाविनाशायदूरस्थानफलप्रदाः ॥ 
सेव्यतामध्यभागेनराजा वह्निर्गुरुः स्त्रियः॥११।
अर्थ - अत्यंत निकट रहने पर विनाश के हेतु होते हैं, दूर रहने से फल नहीं देते, इस हेतु राजा, अग्नि, गुरु और स्त्री इनको मध्यम अवस्था से सेवना चाहिये ॥ ११ ॥

atyāsannāvināśāyadūrasthānaphalapradāḥ ॥ 
sēvyatāmadhyabhāgēnarājā vahnirguruḥ striyaḥ॥11।।

Meaning - If kept very close, they lead to destruction, if kept far away do not give results, hence king, fire, guru and woman should consume them in the middle stage. ।। 11 ॥

अग्निरापःस्त्रियोमूर्खःसर्पोराजकुलानिच । ॥ 
नित्यंयत्नेनसेव्यानिसद्यःप्राणहराणिषट्।१२।

अर्थ - आग, जल, स्त्री, मूर्ख, सर्प और राजा के कुल ये सदा सावधानी से सेवन करने योग्य हैं ये छः शीघ्र ही प्राण हरनेवाले कहे गये हैं ॥ १२ ॥

agnirāpaḥstriyōmūrkhaḥsarpōrājakulānica ॥ 
nityaṁyatnēnasēvyānisadyaḥprāṇaharāṇiṣaṭ ।।12।।

Meaning - Fire, water, woman, fool, snake and king's family should always be consumed(behavior with care) with caution. These six are said to lead to quick loss of life. ।। 12 ॥

सजीवतिगुणायस्ययम्यधर्मः सजीवति ॥ 
गुणधर्मविहीनस्यजीवितंनिष्प्रयोजनम् ॥१३॥

अर्थ - वही जीता है जिसके गुण हैं, और वही जीता है जिसका धर्म है, गुण और धर्म से हीन पुरुष का जीना व्यर्थ है ॥ १३ ॥

sajīvatiguṇāyasyayamyadharmaḥ sajīvati ॥ 
guṇadharmavihīnasyajīvitaṁniṣprayōjanam ॥13॥

Meaning - Only he who has qualities lives, and only he lives who has religion, the life of a person who is inferior to qualities and religion is meaningless. 13 ॥

यदीच्छसिवशी कर्तुं जगदे के नकर्मणा ॥ 
पुरापंचदशास्येभ्योगांचरंतींनिवारय ॥ १४ ॥

अर्थ - जो एक ही कर्म से जगत को वश में करना चाहते हो तो  पहले पन्द्रहों के मुख से मन को निवारण करो, तात्पर्य यह है कि, आंख, कान, नाक, जिह्वा, त्वचा ये पांचों ज्ञानेन्द्रिय हैं, मुख, हाथ, पैर, लिंग, गुदा, ये पांच कर्मेन्द्रिय हैं, रूप शब्द रस गन्ध स्पर्श ये पांच ज्ञानेन्द्रियों के विषय हैं इन पन्द्रहों से मन को निवारण करना उचित है ॥ १४ ॥

yadīcchasivaśī kartuṁ jagadē kē nakarmaṇā ॥ 
purāpaṁcadaśāsyēbhyōgāṁcaraṁtīṁnivāraya ॥ 14 ॥

Meaning - If you want to control the world with just one action, then first control the mind through the fifteen mouths, the meaning is that, eye, ear, nose, tongue, skin, these are the five sense organs, mouth, hands, feet, Penis, anus, these are the five organs of action, form, word, taste, smell and touch are the subjects of the five sense organs. It is appropriate to free the mind from these fifteen. 14 ॥

प्रस्तावसदृशं वाक्यंप्रभावसदृशंप्रियम् ॥ 
आत्मशक्तिसमको पंयोजाना तिसपण्डितः॥१५॥ 

अर्थ - प्रसंग के योग्य वाक्य, प्रकृति के सदृश प्रिय और अपनी शक्ति के अनुसार कोप को जो जानता है वही बुद्धिमान् है ॥ १५ ॥

prastāvasadr̥śaṁ vākyaṁprabhāvasadr̥śaṁpriyam ॥ 
ātmaśaktisamakō paṁyōjānā tisapaṇḍitaḥ॥15॥ 

Meaning - A sentence suitable to the context, one who knows love according to nature and anger according to his power, he is wise. ।।15.।।

चाणक्य की प्रसिद्धि : 

ये संस्कृत श्लोक आचार्य चाणक्य के द्वारा रचित हैं। उनका नाम कौटिल्य एवं विष्णुगुप्त के नाम से भी प्रसिद्ध है। उनकी रचनाएँ Chanakya सूत्र, chanakya niti, chanakya ni pothi, chanakya quotes, chanakya niti in hindi, chanakya quotes in hindi, चाणक्य, चाणक्य नीति,  चाणक्य नीति की 10 बातें,  चाणक्य नीति की बातें, चाणक्य के कड़वे वचन, चाणक्य नीति स्त्री, चाणक्य नीति की 100 बातें,  चाणक्य विचार इन हिंदी, चाणक्य नीति सुविचार, चाणक्य नीति जीवन जीने की, सुविचार चाणक्य के कड़वे वचन, sanskrit shlok, shlok,sanskrit, sanskrit shlok,sanskrit quotes,shlok in sanskrit, sanskrit thought, sanskrit slokas,संस्कृत श्लोक,श्लोक,छोटे संस्कृत श्लोक, आदि के रूप में चर्चित एवं प्रसिद्ध है । 

चाणक्य का कालातीत प्रभाव  :

हजारों वर्षों के उपरांत भी उनमें वही ताजगी और उपयोगिता है। अतः वे आज भी उतने ही प्रासंगिक बने हुए हैं जितने वे तब थे जब वे लिखे गये थे। संस्कृत में रचित होने के कारण उनमें कालांतर के प्रभाव को स्पष्टतः नहीं देखा जाता है क्योंकि संस्कृत भाषा का सर्वश्रेष्ठ व्याकरण उसके अस्तित्व एवं गुणवत्ता के साथ ही उसके प्रभाव कि भी सुरक्षा करता है। ये अत्यंत ज्ञानवर्धक, पठनीय एवं माननीय हैं। ये जीवन‌ के अनेक चौराहों पर हमारा मार्गदर्शन करते हैं जब सब ओर अंधकार छा जाने की प्रतीति होती है।

About Chanakya (चाणक्य के बारे में) :

 चाणक्य का प्रभाव प्राचीन भारत से परे तक फैला हुआ है, क्योंकि शासन कला और शासन पर उनके विचारों का दुनिया भर के विद्वानों और नीति निर्माताओं द्वारा अध्ययन और सम्मान किया जाता है।  राजनीति के प्रति उनका व्यावहारिक दृष्टिकोण और राज्य और उसके नागरिकों के कल्याण पर उनका जोर उन्हें एक कालातीत व्यक्ति बनाता है जिनकी बुद्धि समय और स्थान की सीमाओं से परे है।

 चाणक्यनीतिदर्पण – 14.2

चाणक्य नीति दर्पण मूलत: संस्कृत (Sanskrit) में संस्कृत सुभाषितों के रूप में, काव्यात्मक एवं श्लोकों  के रूप में लिखा हुआ ग्रंथ है। इसके रचनाकार आचार्य चाणक्य हैं। उनके ये संस्कृत श्लोक चाणक्य नीति के नाम से संसार भर में प्रसिद्ध हैं। यहां पर यह श्लोक देवनागरी लिपि एवं  रोमन लिपि में भी दिए गए हैं एवं उनके अर्थ हिंदी देवनागरी एवं अंग्रेजी में रोमन लिपि में भी दिये गये हैं। जिससे विदेशों में रहने वाले भारतीय जो देवनागरी से परिचित नहीं हैं सनातन ग्रंथों के ज्ञान से लाभान्वित हो सकें।

अथ चतुर्दशोऽध्यायः ॥ 14 ॥

atha caturdaśō’dhyāyaḥ ॥ 14 ॥

ग्रन्थ का नाम : चाणक्यनीतिदर्पण,  रचनाकार – आचार्य चाणक्य,   अध्याय – 14   श्लोक-  6-10

धर्माख्यानेश्मशानेचरोगिणायामतिर्भवेत् ॥ 
सासर्वदैव तिष्ठेच्चेत्कोनमुच्येतबंधनात् ॥ ६ ॥

अर्थ - धर्म विषयक कथा के, श्मशान यात्रा के समय पर और रोगियों को जो बुद्धि उत्पन्न होती है वह यदि सदा रहती तो कौन बन्धन से मुक्त न होता ॥ ६ ॥

dharmākhyānēśmaśānēcarōgiṇāyāmatirbhavēt ॥ 
sāsarvadaiva tiṣṭhēccētkōnamucyētabaṁdhanāt ॥ 6 ॥

Meaning - If the intelligence that arises from stories related to religion, at the time of a visit to the cremation ground and to the sick, remained there forever, then who would not be free from bondage? 6॥

उत्पन्न पश्चात्तापस्य बुद्धिर्भवतियादृशी ॥ 
तादृशी यदिपूर्वस्यात्कस्यनस्यान्महोदयः॥७॥
अर्थ - निंदित कर्म करने के पश्चात् पछताने वाले पुरुष को जैसी बुद्धि उत्पन्न होती है वैसी बुद्धि यदि पहले होती तो किसको बड़ी समृद्धि न होती ॥ ७॥

utpanna paścāttāpasya buddhirbhavatiyādr̥śī ॥ 
tādr̥śī yadipūrvasyātkasyanasyānmahōdayaḥ॥7॥

Meaning - If one had had the kind of intelligence that a man who repents after committing a condemnable act develops, then who would not have achieved great prosperity? 7॥

दाने तपसिशौर्येवा विज्ञानेविनयेनये ॥ 
विस्मयोनहिकर्तव्यो बहुरत्नावसुंधरा ॥ ८ ॥

अर्थ - दान में, तप में शूरता में, विज्ञता में, सुशीलता में, और नीति में विस्मय नहीं करना चाहिये। इस कारण कि पृथ्वी में, बहुत रत्न हैं ॥ ८ ॥

dānē tapasiśauryēvā vijñānēvinayēnayē ॥ 
vismayōnahikartavyō bahuratnāvasuṁdharā ॥ 8 ॥

Meaning - One should not be surprised at charity, penance, bravery, knowledge, politeness and policy. This is because there are many gems in the earth. 8॥

दूरस्थोऽपिनदूरस्थोयोयस्यमनसिस्थितः ॥ 
पौयस्यहृदयेनोस्तिसमीपस्थोऽपिदूरतः ॥ ९॥

अर्थ - जो जिसके हृदय में रहता है वह दूर भी हो तो भी वह दूर नहीं, जो जिसके मन में नहीं है वह समीप भी हो तो भी वह दूर है ॥9॥

dūrasthō’pinadūrasthōyōyasyamanasisthitaḥ ॥ 
pauyasyahr̥dayēnōstisamīpasthō’pidūrataḥ ॥ 9॥

Meaning - Even if the one who lives in his heart is far away, he is not far away, even if the one who is not in his mind is close, he is still far away.

यस्माच्चाप्रियमिच्छेत्तुतस्यनुयात्सदाप्रियम् ॥ 
व्याधोमृगवर्धगंर्तुगीतंगायतिसुस्वरम् ॥१०॥

अर्थ - जिससे प्रिय की वाञ्छा हो उससे सदा प्रिय बोलना उचित है, व्याध मृग के वध के निमित्त मधुर स्वर से गीत गाता है ॥ १० ॥

yasmāccāpriyamicchēttutasyanuyātsadāpriyam ॥ 
vyādhōmr̥gavardhagaṁrtugītaṁgāyatisusvaram ॥10॥

Meaning - It is appropriate to always speak 'Dear' to the person to whom one desires the beloved, the hunter sings a song in a sweet voice for the purpose of killing the deer. 10 ॥

चाणक्य की प्रसिद्धि : 

ये संस्कृत श्लोक आचार्य चाणक्य के द्वारा रचित हैं। उनका नाम कौटिल्य एवं विष्णुगुप्त के नाम से भी प्रसिद्ध है। उनकी रचनाएँ Chanakya सूत्र, chanakya niti, chanakya ni pothi, chanakya quotes, chanakya niti in hindi, chanakya quotes in hindi, चाणक्य, चाणक्य नीति,  चाणक्य नीति की 10 बातें,  चाणक्य नीति की बातें, चाणक्य के कड़वे वचन, चाणक्य नीति स्त्री, चाणक्य नीति की 100 बातें,  चाणक्य विचार इन हिंदी, चाणक्य नीति सुविचार, चाणक्य नीति जीवन जीने की, सुविचार चाणक्य के कड़वे वचन, sanskrit shlok, shlok,sanskrit, sanskrit shlok,sanskrit quotes,shlok in sanskrit, sanskrit thought, sanskrit slokas,संस्कृत श्लोक,श्लोक,छोटे संस्कृत श्लोक, आदि के रूप में चर्चित एवं प्रसिद्ध है । 

चाणक्य का कालातीत प्रभाव  :

हजारों वर्षों के उपरांत भी उनमें वही ताजगी और उपयोगिता है। अतः वे आज भी उतने ही प्रासंगिक बने हुए हैं जितने वे तब थे जब वे लिखे गये थे। संस्कृत में रचित होने के कारण उनमें कालांतर के प्रभाव को स्पष्टतः नहीं देखा जाता है क्योंकि संस्कृत भाषा का सर्वश्रेष्ठ व्याकरण उसके अस्तित्व एवं गुणवत्ता के साथ ही उसके प्रभाव कि भी सुरक्षा करता है। ये अत्यंत ज्ञानवर्धक, पठनीय एवं माननीय हैं। ये जीवन‌ के अनेक चौराहों पर हमारा मार्गदर्शन करते हैं जब सब ओर अंधकार छा जाने की प्रतीति होती है।

About Chanakya (चाणक्य के बारे में) :

 चाणक्य का प्रभाव प्राचीन भारत से परे तक फैला हुआ है, क्योंकि शासन कला और शासन पर उनके विचारों का दुनिया भर के विद्वानों और नीति निर्माताओं द्वारा अध्ययन और सम्मान किया जाता है।  राजनीति के प्रति उनका व्यावहारिक दृष्टिकोण और राज्य और उसके नागरिकों के कल्याण पर उनका जोर उन्हें एक कालातीत व्यक्ति बनाता है जिनकी बुद्धि समय और स्थान की सीमाओं से परे है।

 चाणक्यनीतिदर्पण – 14.1

चाणक्य नीति दर्पण मूलत: संस्कृत (Sanskrit) में संस्कृत सुभाषितों के रूप में, काव्यात्मक एवं श्लोकों  के रूप में लिखा हुआ ग्रंथ है। इसके रचनाकार आचार्य चाणक्य हैं। उनके ये संस्कृत श्लोक चाणक्य नीति के नाम से संसार भर में प्रसिद्ध हैं। यहां पर यह श्लोक देवनागरी लिपि एवं  रोमन लिपि में भी दिए गए हैं एवं उनके अर्थ हिंदी देवनागरी एवं अंग्रेजी में रोमन लिपि में भी दिये गये हैं। जिससे विदेशों में रहने वाले भारतीय जो देवनागरी से परिचित नहीं हैं सनातन ग्रंथों के ज्ञान से लाभान्वित हो सकें।

अथ चतुर्दशोऽध्यायः ॥ 14 ॥

atha caturdaśō’dhyāyaḥ ॥ 14 ॥

ग्रन्थ का नाम : चाणक्यनीतिदर्पण,  रचनाकार – आचार्य चाणक्य,   अध्याय – 14   श्लोक-  1-5


पृथिव्यात्रीणिरत्नानिजलमन्नंसुभाषितम् ॥ 
मूढ़ै:पाषाणखंडेषुरत्नसंज्ञाभिधीयते ॥ १ ॥

अर्थ - पृथ्वी में जल, अन्न और प्रिय वचन ये तीन ही रत्न हैं। मूढ़ों ने पाषाण के टुकड़ों को  में रत्न की गिनती की है ॥ १ ॥

pr̥thivyātrīṇiratnānijalamannaṁsubhāṣitam ॥ 
mūḍaiḥpāṣāṇakhaṁḍēpuratnasaṁkhyāvidhīyatē ॥ 1 ॥

Meaning - Water, food and loving words are the only three gems on earth. Fools have counted pieces of stone as gems. ।। 1 ।।

आत्मापराधवृक्षस्यफलान्येतानिदेहिनाम् ॥ 
दारिद्र्यरोगदुःखानिबंधनव्यसनानिच ॥ २ ॥

अर्थ - जीवों को अपने अपराध रूप वृक्ष लगाने के दरिद्रता, रोग, दुःख, बंधन और विपत्ति ये फल प्राप्त होते हैं ॥2॥ 

ātmāparādhavr̥kṣasyaphalānyētānidēhinām ॥ 
dāridryarōgaduḥkhānibaṁdhanavyasanānica ॥ 2 ॥

Meaning - The living beings get the fruits of poverty, disease, sorrow, bondage and calamity due to their sins by planting trees. ॥2॥

पुनर्वित्तंपुनर्मित्रंपुनर्भार्यापुनर्मही ॥ 
एतत्सर्वपुनर्लभ्यंनशरीरंपुनः पुनः ॥ ३ ॥
अर्थ - धन, मित्र, स्त्री और पृथ्वी ये फिर मिलते हैं, परन्तु मनुष्य शरीर फिर फिर नहीं मिलता ॥ ३ ॥
punarvittaṁpunarmitraṁpunarbhāryāpunarmahī ॥ 
ētatsarvapunarlabhyaṁnaśarīraṁpunaḥ punaḥ ॥ 3 ॥

Meaning - Wealth, friends, women and earth are found again, but the human body is not found again. ।।3॥

बहूनाचैवसत्त्वानासमवायोरिपुंजयः ॥ 
वर्षांधाराधरोमेघस्तृणैरपिनिवार्यते ॥ ४ ॥

अर्थ - निश्चय है कि बहुत जनों का समुदाय शत्रु को जीत लेता है। तृण समूह भी वृष्टि की धारा के धरने वाले मेघ का निवारण करता है ॥ ४ ॥

bahūnācaivasattvānāsamavāyōripuṁjayaḥ ॥ 
varṣāṁdhārādharōmēghastr̥ṇairapinivāryatē ॥ 4 ॥

Meaning - It is certain that a community of many people conquers the enemy. The grass group also prevents clouds that hold back the rain stream. ।।4॥

जलेतैलंखलेगुह्यंपात्रेदानंमनागपि ॥ 
प्राज्ञेशास्त्रंस्वयंयातिविस्तारं बस्तुशक्तितः॥५॥

अर्थ - जल में तेल, दुर्जन में गुप्तवार्ता, सुपात्र में दान और बुद्धिमान में शास्त्र ये थोडे भी हों तो भी वस्तु की शक्ति से अपने अपने आपसे, विस्तार को प्राप्त हो जाते है ॥ ५ ॥

jalētailaṁkhalēguhyaṁpātrēdānaṁmanāgapi ॥ 
prājñēśāstraṁsvayaṁyātivistāraṁ bastuśaktitaḥ॥5॥

Meaning: Oil in water, secret talk in a wicked person, charity in a worthy person and scriptures in a wise person, even if they are few in number, they get expanded on their own by the power of things. ।।5॥

चाणक्य की प्रसिद्धि : 

ये संस्कृत श्लोक आचार्य चाणक्य के द्वारा रचित हैं। उनका नाम कौटिल्य एवं विष्णुगुप्त के नाम से भी प्रसिद्ध है। उनकी रचनाएँ Chanakya सूत्र, chanakya niti, chanakya ni pothi, chanakya quotes, chanakya niti in hindi, chanakya quotes in hindi, चाणक्य, चाणक्य नीति,  चाणक्य नीति की 10 बातें,  चाणक्य नीति की बातें, चाणक्य के कड़वे वचन, चाणक्य नीति स्त्री, चाणक्य नीति की 100 बातें,  चाणक्य विचार इन हिंदी, चाणक्य नीति सुविचार, चाणक्य नीति जीवन जीने की, सुविचार चाणक्य के कड़वे वचन, sanskrit shlok, shlok,sanskrit, sanskrit shlok,sanskrit quotes,shlok in sanskrit, sanskrit thought, sanskrit slokas,संस्कृत श्लोक,श्लोक,छोटे संस्कृत श्लोक, आदि के रूप में चर्चित एवं प्रसिद्ध है । 

चाणक्य का कालातीत प्रभाव  :

हजारों वर्षों के उपरांत भी उनमें वही ताजगी और उपयोगिता है। अतः वे आज भी उतने ही प्रासंगिक बने हुए हैं जितने वे तब थे जब वे लिखे गये थे। संस्कृत में रचित होने के कारण उनमें कालांतर के प्रभाव को स्पष्टतः नहीं देखा जाता है क्योंकि संस्कृत भाषा का सर्वश्रेष्ठ व्याकरण उसके अस्तित्व एवं गुणवत्ता के साथ ही उसके प्रभाव कि भी सुरक्षा करता है। ये अत्यंत ज्ञानवर्धक, पठनीय एवं माननीय हैं। ये जीवन‌ के अनेक चौराहों पर हमारा मार्गदर्शन करते हैं जब सब ओर अंधकार छा जाने की प्रतीति होती है।

About Chanakya (चाणक्य के बारे में) :

 चाणक्य का प्रभाव प्राचीन भारत से परे तक फैला हुआ है, क्योंकि शासन कला और शासन पर उनके विचारों का दुनिया भर के विद्वानों और नीति निर्माताओं द्वारा अध्ययन और सम्मान किया जाता है।  राजनीति के प्रति उनका व्यावहारिक दृष्टिकोण और राज्य और उसके नागरिकों के कल्याण पर उनका जोर उन्हें एक कालातीत व्यक्ति बनाता है जिनकी बुद्धि समय और स्थान की सीमाओं से परे है।

 चाणक्यनीतिदर्पण – 13.4

चाणक्य नीति दर्पण मूलत: संस्कृत (Sanskrit) में संस्कृत सुभाषितों के रूप में, काव्यात्मक एवं श्लोकों  के रूप में लिखा हुआ ग्रंथ है। इसके रचनाकार आचार्य चाणक्य हैं। उनके ये संस्कृत श्लोक चाणक्य नीति के नाम से संसार भर में प्रसिद्ध हैं। यहां पर यह श्लोक देवनागरी लिपि एवं  रोमन लिपि में भी दिए गए हैं एवं उनके अर्थ हिंदी देवनागरी एवं अंग्रेजी में रोमन लिपि में भी दिये गये हैं। जिससे विदेशों में रहने वाले भारतीय जो देवनागरी से परिचित नहीं हैं सनातन ग्रंथों के ज्ञान से लाभान्वित हो सकें।

अथ त्रयोदशोऽध्यायः ॥ 13 ॥

atha trayōdaśō’dhyāyaḥ ॥ 13 ॥

ग्रन्थ का नाम : चाणक्यनीतिदर्पण,  रचनाकार – आचार्य चाणक्य,   अध्याय – 13   श्लोक-  16-20

अनवस्थितकार्यस्यनजनेनवनेसुखम् ॥ 
जनोदहतिसंसर्गाद्वनं सङ्ग विवर्जनात् ॥ १६ ॥

अर्थ - जिसके कार्य की स्थिरता नहीं रहती वह न जन में और न वन में सुख पाता है। जन उसको संसर्ग से जलाता है और वन संग के त्याग से जलाता है॥ १६ ॥

anavasthitakāryasyanajanēnavanēsukham ॥ 
janōdahatisaṁsargādvanaṁ saṅga vivarjanāt ॥ 16 ॥

Meaning - One who does not have stability in his work finds happiness neither in the world nor in the forest. People burn it with contact and the forest burns with renunciation of company. ।। 16 ॥

यथाखात्वाखनित्रेणभूतलेर्वारिविन्दति ॥ 
तथागुरुगतांविद्यांशुश्रूषुरधिगच्छति ॥ १७ ॥

अर्थ - जैसे खनने के कारण  खनिक उसे खनके  पाताल के जल को पाता है। वैसे ही गुरु गत विद्या को सेवक शिष्य पाता है ॥ १७ ॥

yathākhātvākhanitrēṇabhūtalērvārivindati ॥ 
tathāgurugatāṁvidyāṁśuśrūṣuradhigacchati ॥ 17 ॥

Meaning - As a result of mining, the miner finds the water of the underworld by digging. Similarly, the servant receives the knowledge given by the Guru as his disciple. 17 ॥

कर्मा यत्तफलंपुंसांबुद्धिःकर्मानुसारिणी ॥ 
तथापिसुधिपश्चार्याःसुविचार्यैवकुर्वते ॥१८॥

अर्थ - यद्यपि फल पुरुष के कर्मके आधीन रहता है और बुद्धि भी कर्म के अनुसार ही चलती है तथापि विवेकी महात्मा लोग विचार करके ही अपने काम करते हैं ॥१८॥

karmā yattaphalaṁpuṁsāṁbuddhiḥkarmānusāriṇī ॥ 
tathāpisudhipaścāryāḥsuvicāryaivakurvatē ॥18॥

Meaning - Although the result is dependent on the actions of the man and the intellect also works according to the actions, yet the wise Mahatmas do their work only after thinking. ।।18॥

सन्तोषस्त्रिषुकर्तव्यः स्वदारेभोजनेधने ॥ 
त्रिषुचैवन कर्तव्यो ऽध्ययनेजपदानयोः ॥१९॥

अर्थ - स्त्री, भोजन और धन इन तीन में सन्तोष करना उचित है।  पढना, तप और दान इन तीन में संतोष कभी नहीं करना चाहिये ॥ 19 ॥

santōṣastriṣukartavyaḥ svadārēbhōjanēdhanē ॥ 
triṣucaivana kartavyō ’dhyayanējapadānayōḥ ॥19॥

Meaning: It is appropriate to be satisfied with these three things: woman, food and money. One should never be satisfied with these three - reading, penance and charity. 19 ॥

एकाक्षरप्रदातारंयोगुरुंनाभिवंदते ॥ 
श्वानयोनिशतंभुक्त्वाचाण्डालेष्वभिजायते ॥ 20 ॥

अर्थ - जो एक अक्षर भी देनेवाले गुरु की वन्दना नहीं करता, वह कुत्ते की सौ योनि को भोगकर चांडालों में जन्म लेता है ॥ २० ॥
ēkākṣarapradātāraṁyōguruṁnābhivaṁdatē ॥ 
śvānayōniśataṁbhuktvācāṇḍālēṣvabhijāyatē ॥ 20 ॥
Meaning - One who does not worship the Guru who gives even a single letter, is born among the Chandalas after suffering through the hundred births of a dog. 20 ॥

युगांतेप्रचलेन्मेरुःकल्पांतेसप्तसागराः ॥ 
साधवःप्रतिपन्नार्थान्नचलंतिकदाचन ॥२१॥

अर्थ - युग के अन्त में सुमेरु चलायमान होता है और कल्प के अंत में सातों सागर, परन्तु संतजन स्वीकृत अर्थ से कभी भी विचलित नहीं होते॥ २१ ॥ 

yugāṁtēpracalēnmēruḥkalpāṁtēsaptasāgarāḥ ॥ 
sādhavaḥpratipannārthānnacalaṁtikadācana ॥21॥

Meaning - At the end of the Yuga, Sumeru moves and at the end of the Kalpa, the seven oceans, but the saints never deviate from the accepted meaning. 21 ॥
॥ इति श्रीवृद्धचाणक्ये त्रयोदशोऽध्यायः ॥ १३ ॥
॥ iti śrīvr̥ddhacāṇakyē trayōdaśō’dhyāyaḥ ॥ 13 ॥

चाणक्य की प्रसिद्धि : 

ये संस्कृत श्लोक आचार्य चाणक्य के द्वारा रचित हैं। उनका नाम कौटिल्य एवं विष्णुगुप्त के नाम से भी प्रसिद्ध है। उनकी रचनाएँ Chanakya सूत्र, chanakya niti, chanakya ni pothi, chanakya quotes, chanakya niti in hindi, chanakya quotes in hindi, चाणक्य, चाणक्य नीति,  चाणक्य नीति की 10 बातें,  चाणक्य नीति की बातें, चाणक्य के कड़वे वचन, चाणक्य नीति स्त्री, चाणक्य नीति की 100 बातें,  चाणक्य विचार इन हिंदी, चाणक्य नीति सुविचार, चाणक्य नीति जीवन जीने की, सुविचार चाणक्य के कड़वे वचन, sanskrit shlok, shlok,sanskrit, sanskrit shlok,sanskrit quotes,shlok in sanskrit, sanskrit thought, sanskrit slokas,संस्कृत श्लोक,श्लोक,छोटे संस्कृत श्लोक, आदि के रूप में चर्चित एवं प्रसिद्ध है । 

चाणक्य का कालातीत प्रभाव  :

हजारों वर्षों के उपरांत भी उनमें वही ताजगी और उपयोगिता है। अतः वे आज भी उतने ही प्रासंगिक बने हुए हैं जितने वे तब थे जब वे लिखे गये थे। संस्कृत में रचित होने के कारण उनमें कालांतर के प्रभाव को स्पष्टतः नहीं देखा जाता है क्योंकि संस्कृत भाषा का सर्वश्रेष्ठ व्याकरण उसके अस्तित्व एवं गुणवत्ता के साथ ही उसके प्रभाव कि भी सुरक्षा करता है। ये अत्यंत ज्ञानवर्धक, पठनीय एवं माननीय हैं। ये जीवन‌ के अनेक चौराहों पर हमारा मार्गदर्शन करते हैं जब सब ओर अंधकार छा जाने की प्रतीति होती है।

About Chanakya (चाणक्य के बारे में) :

 चाणक्य का प्रभाव प्राचीन भारत से परे तक फैला हुआ है, क्योंकि शासन कला और शासन पर उनके विचारों का दुनिया भर के विद्वानों और नीति निर्माताओं द्वारा अध्ययन और सम्मान किया जाता है।  राजनीति के प्रति उनका व्यावहारिक दृष्टिकोण और राज्य और उसके नागरिकों के कल्याण पर उनका जोर उन्हें एक कालातीत व्यक्ति बनाता है जिनकी बुद्धि समय और स्थान की सीमाओं से परे है।


 चाणक्यनीतिदर्पण – 13.3

चाणक्य नीति दर्पण मूलत: संस्कृत (Sanskrit) में संस्कृत सुभाषितों के रूप में, काव्यात्मक एवं श्लोकों  के रूप में लिखा हुआ ग्रंथ है। इसके रचनाकार आचार्य चाणक्य हैं। उनके ये संस्कृत श्लोक चाणक्य नीति के नाम से संसार भर में प्रसिद्ध हैं। यहां पर यह श्लोक देवनागरी लिपि एवं  रोमन लिपि में भी दिए गए हैं एवं उनके अर्थ हिंदी देवनागरी एवं अंग्रेजी में रोमन लिपि में भी दिये गये हैं। जिससे विदेशों में रहने वाले भारतीय जो देवनागरी से परिचित नहीं हैं सनातन ग्रंथों के ज्ञान से लाभान्वित हो सकें।

अथ त्रयोदशोऽध्यायः ॥ 13 ॥

atha trayōdaśō’dhyāyaḥ ॥ 13 ॥

ग्रन्थ का नाम : चाणक्यनीतिदर्पण,  रचनाकार – आचार्य चाणक्य,   अध्याय – 13   श्लोक-  11-15

दह्यमानः सुतीवेणनीचाः परयशोऽग्निना । 
आशक्तास्तत्पदं गन्तुंततो निंदांमकुर्वते ॥ ११॥

अर्थ - दुर्जन दूसरे की कीर्ति रूप दुःसह अग्नि से जल-कर उसके पद को नहीं पाते इसलिये उसकी निन्दा करने लगते हैं ॥ ११ ॥

dahyamānaḥ sutīvēṇanīcāḥ parayaśō’gninā | 
āśaktāstatpadaṁ gantuṁtatō niṁdāṁmakurvatē ॥ 11॥
Meaning - The wicked burn the fame of another person with the fire of misery and hence they do not get his position, hence they start criticizing him. 11 ॥

बन्धायविषयासंगोभुक्त्यै निर्विषयंमनः ॥ 
मनएवमनुष्याणां कारणंबन्धमोक्षयोः ॥१२॥

अर्थ - विषय में आसक्त मन बन्ध का हेतु है। विषय से रहित मुक्ति का, मनुष्यों के बन्ध और मोक्ष का कारण मन ही है ॥ १२ ॥
bandhāyaviṣayāsaṁgōbhuktyai nirviṣayaṁmanaḥ ॥ 
manēvamanuṣyāṇāṁ kāraṇaṁbandhamōkṣayōḥ ॥12॥

Meaning: The mind attached to the object is the cause of bondage. The mind is the cause of liberation without objects, the bondage and salvation of human beings. ।। 12 ॥

देहाभिमानेगलितेज्ञानेनपरमात्मनः 
यत्रयत्रमनोयातितत्रतत्रसमाधयः ॥ १३ ॥
अर्थ - परमात्मा के ज्ञान से देह के अभिमान के नाश हो जाने पर जहाँ  जहाँ  मन जाता है वहाँ वहाँ समाधि ही है ॥ १३ ॥

dēhābhimānēgalitējñānēnaparamātmanaḥ 
yatrayatramanōyātitatratatrasamādhayaḥ ॥ 13 ॥

Meaning - When the pride of the body is destroyed by the knowledge of God, wherever the mind goes there is only samadhi. ।। 13 ॥

ईप्सितंमनसः सर्वकस्यसंपद्यतेसुखम् ॥ 
दैवायत्तंयतःसर्वंतस्मात्सन्तोषमाश्रयेत्॥१४॥

अर्थ - मन का अभिलाषित सब सुख किसको मिलता है, जिस कारण सब दैवके वश है इससे संतोष पर भरोसा करना उचित है ॥ १४ ॥

īpsitaṁmanasaḥ sarvakasyasaṁpadyatēsukham ॥ 
daivāyattaṁyataḥsarvaṁtasmātsantōṣamāśrayēt॥14॥

Meaning - Who gets all the happiness desired by the mind, because everything is under the control of God, it is appropriate to rely on satisfaction from it. ।। 14 ॥

यथाधेनुसहस्त्रेषुवत्तो गच्छतिमातरम् ॥ 
तथायच्चकृतं कर्मकर्तारमनुगच्छति ॥ १५ ॥

अर्थ - जैसे सहस्रों धेनु के रहते बछरा माता ही के निकट जाता है; वैसे ही जो कुछ कर्म किया जाता सो कर्ता ही को मिलता है ॥ १५ ॥

yathādhēnusahastrēṣuvattō gacchatimātaram ॥ 
tathāyaccakr̥taṁ karmakartāramanugacchati ॥ 15 ॥

Meaning - Just as a calf goes near its mother in the presence of thousands of cows; Similarly, whatever work is done, only the doer gets it. 15.

चाणक्य की प्रसिद्धि : 

ये संस्कृत श्लोक आचार्य चाणक्य के द्वारा रचित हैं। उनका नाम कौटिल्य एवं विष्णुगुप्त के नाम से भी प्रसिद्ध है। उनकी रचनाएँ Chanakya सूत्र, chanakya niti, chanakya ni pothi, chanakya quotes, chanakya niti in hindi, chanakya quotes in hindi, चाणक्य, चाणक्य नीति,  चाणक्य नीति की 10 बातें,  चाणक्य नीति की बातें, चाणक्य के कड़वे वचन, चाणक्य नीति स्त्री, चाणक्य नीति की 100 बातें,  चाणक्य विचार इन हिंदी, चाणक्य नीति सुविचार, चाणक्य नीति जीवन जीने की, सुविचार चाणक्य के कड़वे वचन, sanskrit shlok, shlok,sanskrit, sanskrit shlok,sanskrit quotes,shlok in sanskrit, sanskrit thought, sanskrit slokas,संस्कृत श्लोक,श्लोक,छोटे संस्कृत श्लोक, आदि के रूप में चर्चित एवं प्रसिद्ध है । 

चाणक्य का कालातीत प्रभाव  :

हजारों वर्षों के उपरांत भी उनमें वही ताजगी और उपयोगिता है। अतः वे आज भी उतने ही प्रासंगिक बने हुए हैं जितने वे तब थे जब वे लिखे गये थे। संस्कृत में रचित होने के कारण उनमें कालांतर के प्रभाव को स्पष्टतः नहीं देखा जाता है क्योंकि संस्कृत भाषा का सर्वश्रेष्ठ व्याकरण उसके अस्तित्व एवं गुणवत्ता के साथ ही उसके प्रभाव कि भी सुरक्षा करता है। ये अत्यंत ज्ञानवर्धक, पठनीय एवं माननीय हैं। ये जीवन‌ के अनेक चौराहों पर हमारा मार्गदर्शन करते हैं जब सब ओर अंधकार छा जाने की प्रतीति होती है।

About Chanakya (चाणक्य के बारे में) :

 चाणक्य का प्रभाव प्राचीन भारत से परे तक फैला हुआ है, क्योंकि शासन कला और शासन पर उनके विचारों का दुनिया भर के विद्वानों और नीति निर्माताओं द्वारा अध्ययन और सम्मान किया जाता है।  राजनीति के प्रति उनका व्यावहारिक दृष्टिकोण और राज्य और उसके नागरिकों के कल्याण पर उनका जोर उन्हें एक कालातीत व्यक्ति बनाता है जिनकी बुद्धि समय और स्थान की सीमाओं से परे है।

 चाणक्यनीतिदर्पण – 13.2

चाणक्य नीति दर्पण मूलत: संस्कृत (Sanskrit) में संस्कृत सुभाषितों के रूप में, काव्यात्मक एवं श्लोकों  के रूप में लिखा हुआ ग्रंथ है। इसके रचनाकार आचार्य चाणक्य हैं। उनके ये संस्कृत श्लोक चाणक्य नीति के नाम से संसार भर में प्रसिद्ध हैं। यहां पर यह श्लोक देवनागरी लिपि एवं  रोमन लिपि में भी दिए गए हैं एवं उनके अर्थ हिंदी देवनागरी एवं अंग्रेजी में रोमन लिपि में भी दिये गये हैं। जिससे विदेशों में रहने वाले भारतीय जो देवनागरी से परिचित नहीं हैं सनातन ग्रंथों के ज्ञान से लाभान्वित हो सकें।

अथ त्रयोदशोऽध्यायः ॥ 13 ॥

atha trayōdaśō’dhyāyaḥ ॥ 13 ॥

ग्रन्थ का नाम : चाणक्यनीतिदर्पण,  रचनाकार – आचार्य चाणक्य,   अध्याय – 13   श्लोक-  6-10
यस्यस्नेहो भयंतस्यस्नेहोदुःखस्यभाजनं ॥ 
स्नेहमूलानिदुखानितानित्यक्त्वावसेत्सुखम्॥ 6 ॥

अर्थ - जिसको किसी में प्रीति रहती है उसी को भय होता है। स्नेह ही दुःख का भाजन है, और सब दुःख का कारण स्नेह (आसक्ति) ही है। इस कारण उसे छोड़कर सुखी होना उचित है ॥ ६ ॥

yasyasnēhō bhayaṁtasyasnēhōduḥkhasyabhājanaṁ ॥ 
snēhamūlānidukhānitānityaktvāvasētsukham॥ 6 ॥

Meaning - The one who has love for someone has fear. Affection is the food of sorrow, and the cause of all sorrow is affection (attachment). For this reason it is better to leave him and be happy. ।। 6॥

अनागतविधाताचप्रत्युत्पन्नमतिस्तथा ॥ 
द्वावेतौसुखमेधेतेयद्भविष्योविनश्यति ॥ ७ ॥
अर्थ - आने वाले दुःख के पहले से उपाय करने वाला और जिसकी बुद्धि में विपत्ति आ जाने पर शीघ्र ही उपाय भी आ जाता है, ये दोनों सुख से बढ़ते हैं। और जो सोचता है कि, भाग्यवश से जो होने-वाला है सो अवश्य होगा, तो वह निश्चय ही विनाश को प्राप्त हो जाता है ॥७॥

anāgatavidhātācapratyutpannamatistathā ॥ 
dvāvētausukhamēdhētēyadbhaviṣyōvinaśyati ॥ 7 ॥

Meaning - The one who foresees the coming sorrow and the one who quickly comes to the solution when a calamity comes to his mind, both of them grow in happiness. And one who thinks that whatever is going to happen due to luck will definitely happen, then he definitely gets destroyed. ।।7॥

राज्ञिधर्मिणिधर्मिष्टाःपापेपापाःसमेसमाः ॥ 
राजानमनुवर्तन्तेयथाराजातथाप्रजाः ॥ ८ ॥
अर्थ - यदि धर्मात्मा राजा हो तो प्रजा भी धर्मनिष्ठ होती है। यदि पापी हो तो पापी होती है। सब प्रजा राजा के अनुसार चलती है। जैसा राजा वैसी प्रजा भी होती है ॥ ८ ॥

rājñidharmiṇidharmiṣṭāḥpāpēpāpāḥsamēsamāḥ ॥ 
rājānamanuvartantēyathārājātathāprajāḥ ॥ 8 ॥
Meaning - If there is a righteous king then the people or citizens also become religious. If she is a sinner, she is a sinner. All the citizens obey the king. Like the king, so are the citizens. 8॥

जीवन्तंमृतन्मन्येदेहिनंधर्मबाजतम् ॥ 
मृतेोधर्मैणसंयुक्तोदीर्घजीवीन संशयः ॥ ९ ॥
अर्थ - धर्म रहित जीते को मृतक के समान समझता हूंँ। निश्चय है कि, धर्मयुक्त मरा भी पुरुष चिरंजीवी ही है।9। 

jīvantaṁmr̥tanmanyēdēhinaṁdharmabājatam ॥ 
mr̥tēōdharmaiṇasaṁyuktōdīrghajīvīna saṁśayaḥ ॥ 9 ॥
Meaning - I consider the living without religion as the dead. It is certain that even a righteous man who dies is still alive.  ।। 9.।।

धर्मार्थकाममोक्षाणांयस्यकोऽपिनविद्यते ॥
अजागलस्तन स्पेवतस्यजन्मनिरर्थकम् ॥ १० ॥
अर्थ - धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष इनमें से जिसको एक भी नहीं रहता, बकरी के गल के स्तन के समान उसका जन्म निरर्थक है ॥ १० ॥

dharmārthakāmamōkṣāṇāṁyasyakō’pinavidyatē ॥
ajāgalastana spēvatasyajanmanirarthakam ॥ 10 ॥

Meaning - The one who does not have any one of these, Dharma, Artha, Kama, Moksha, his birth is as meaningless as the breast of a goat's neck. 10 ॥

चाणक्य की प्रसिद्धि : 

ये संस्कृत श्लोक आचार्य चाणक्य के द्वारा रचित हैं। उनका नाम कौटिल्य एवं विष्णुगुप्त के नाम से भी प्रसिद्ध है। उनकी रचनाएँ Chanakya सूत्र, chanakya niti, chanakya ni pothi, chanakya quotes, chanakya niti in hindi, chanakya quotes in hindi, चाणक्य, चाणक्य नीति,  चाणक्य नीति की 10 बातें,  चाणक्य नीति की बातें, चाणक्य के कड़वे वचन, चाणक्य नीति स्त्री, चाणक्य नीति की 100 बातें,  चाणक्य विचार इन हिंदी, चाणक्य नीति सुविचार, चाणक्य नीति जीवन जीने की, सुविचार चाणक्य के कड़वे वचन, sanskrit shlok, shlok,sanskrit, sanskrit shlok,sanskrit quotes,shlok in sanskrit, sanskrit thought, sanskrit slokas,संस्कृत श्लोक,श्लोक,छोटे संस्कृत श्लोक, आदि के रूप में चर्चित एवं प्रसिद्ध है । 

चाणक्य का कालातीत प्रभाव  :

हजारों वर्षों के उपरांत भी उनमें वही ताजगी और उपयोगिता है। अतः वे आज भी उतने ही प्रासंगिक बने हुए हैं जितने वे तब थे जब वे लिखे गये थे। संस्कृत में रचित होने के कारण उनमें कालांतर के प्रभाव को स्पष्टतः नहीं देखा जाता है क्योंकि संस्कृत भाषा का सर्वश्रेष्ठ व्याकरण उसके अस्तित्व एवं गुणवत्ता के साथ ही उसके प्रभाव कि भी सुरक्षा करता है। ये अत्यंत ज्ञानवर्धक, पठनीय एवं माननीय हैं। ये जीवन‌ के अनेक चौराहों पर हमारा मार्गदर्शन करते हैं जब सब ओर अंधकार छा जाने की प्रतीति होती है।

About Chanakya (चाणक्य के बारे में) :

 चाणक्य का प्रभाव प्राचीन भारत से परे तक फैला हुआ है, क्योंकि शासन कला और शासन पर उनके विचारों का दुनिया भर के विद्वानों और नीति निर्माताओं द्वारा अध्ययन और सम्मान किया जाता है।  राजनीति के प्रति उनका व्यावहारिक दृष्टिकोण और राज्य और उसके नागरिकों के कल्याण पर उनका जोर उन्हें एक कालातीत व्यक्ति बनाता है जिनकी बुद्धि समय और स्थान की सीमाओं से परे है।

 चाणक्यनीतिदर्पण – 13.1

चाणक्य नीति दर्पण मूलत: संस्कृत (Sanskrit) में संस्कृत सुभाषितों के रूप में, काव्यात्मक एवं श्लोकों  के रूप में लिखा हुआ ग्रंथ है। इसके रचनाकार आचार्य चाणक्य हैं। उनके ये संस्कृत श्लोक चाणक्य नीति के नाम से संसार भर में प्रसिद्ध हैं। यहां पर यह श्लोक देवनागरी लिपि एवं  रोमन लिपि में भी दिए गए हैं एवं उनके अर्थ हिंदी देवनागरी एवं अंग्रेजी में रोमन लिपि में भी दिये गये हैं। जिससे विदेशों में रहने वाले भारतीय जो देवनागरी से परिचित नहीं हैं सनातन ग्रंथों के ज्ञान से लाभान्वित हो सकें।

अथ त्रयोदशोऽध्यायः ॥ 13 ॥

atha trayōdaśō’dhyāyaḥ ॥ 13 ॥

ग्रन्थ का नाम : चाणक्यनीतिदर्पण,  रचनाकार – आचार्य चाणक्य,   अध्याय – 13   श्लोक-  1-5

मुहूर्तमपिजीवच्चनरःशुक्लेनकर्मणा ॥ 
'नकल्पमपिकष्टेन लोकद्वयविरोधिना ॥ १ ॥

अर्थ - उत्तम कर्म से मनुष्यों को मुहर्त भर का जीना भी श्रेष्ठ है दोनों लोकों के विरोधी दुष्टकर्म से कल्प भर का भी जीना उत्तम नहीं है ॥ १ ॥

muhūrtamapijīvaccanaraḥśuklēnakarmaṇā ॥ 
'nakalpamapikaṣṭēna lōkadvayavirōdhinā ॥ 1 ॥

Meaning - It is better for humans to live even for a moment by doing good deeds; it is not better to live even for a Kalpa by doing bad deeds opposing the two worlds.  1॥

गतेशोकोनकर्तव्योभविष्यंनैवचिंतयेत् ॥ 
वर्तमानेनकालेनप्रवर्तन्तेविचक्षणाः ॥ २ ॥

अर्थ -  गई वस्तु का शोक और भावी की चिंता नहीं करनी चाहिये, कुशल लोग वर्तमान काल के अनुरोध से प्रवृत होते हैं ॥ २ ॥

gatēśōkōnakartavyōbhaviṣyaṁnaivaciṁtayēt ॥ 
vartamānēnakālēnapravartantēvicakṣaṇāḥ ॥ 2 ॥

Meaning - One should not mourn for the past and worry about the future, skilled people are inclined towards the demands of the present.  2॥

स्वभावेनहितुष्यंतिदेवाःसत्पुरुषाः पिता ॥ 
ज्ञातयःस्नान पानाभ्यांवाक्यदानेनपंडिताः॥३॥

अर्थ - निश्चय यह है कि, देवता, सत्पुरुष और पिता ये प्रकृति से संतुष्ट होते हैं पर बन्धु, स्नान और पान से और पण्डित प्रिय वचन से संतुष्ट होते हैं ॥ ३ ॥

svabhāvēnahituṣyaṁtidēvāḥsatpuruṣāḥ pitā ॥ 
jñātayaḥsnāna pānābhyāṁvākyadānēnapaṁḍitāḥ॥3॥

Meaning - It is certain that gods( The habitats of the heaven or swarga called devta), good men and fathers are satisfied with nature, but brothers are satisfied with bathing and drinking water and scholars are satisfied with their beloved words.  3॥

आयुःकर्मचवित्तंचाविद्यानिधनमेवच ॥ 
पंचेतानिचसृज्यंते गर्भस्थस्यैवदेहिनः ॥ ४ ॥

अर्थ - आयुर्दाय, कर्म, विद्या धन और मरण ये पांच जब जीव गर्भ में रहता है उसी समय सिरजे जाते हैं ॥ ४ ॥

āyuḥkarmacavittaṁcāvidyānidhanamēvaca ॥ 
paṁcētānicasr̥jyaṁtē garbhasthasyaivadēhinaḥ ॥ 4 ॥

Meaning - Aayu, Karma, Knowledge, Wealth and Death, these five are created when the living being is in the womb. ।। 4॥

अहोवतविचित्राणिचरितानिमहात्मनाम् ।। 
लक्ष्मीतृणायमन्यन्तेतद्गारेणन मंत्तिच ॥ ५ ॥ 
अर्थ - आश्चर्य है, कि, महात्माओं के विचित्र चरित्र हैं।  लक्ष्मी को तृण समान मानते हैं। यदि मिल जाती है तो उसके भार से नम्र हो जाते हैं ॥ 5 ॥

ahōvatavicitrāṇicaritānimahātmanām ॥ 
lakṣmītr̥ṇāyamanyantētadgārēṇana maṁttica ॥ 5 ॥

Meaning - It is surprising that the Mahatmas have strange characters. Lakshmi is considered equal to grass. If we get it, we become humbled by its weight. 5॥

चाणक्य की प्रसिद्धि : 

ये संस्कृत श्लोक आचार्य चाणक्य के द्वारा रचित हैं। उनका नाम कौटिल्य एवं विष्णुगुप्त के नाम से भी प्रसिद्ध है। उनकी रचनाएँ Chanakya सूत्र, chanakya niti, chanakya ni pothi, chanakya quotes, chanakya niti in hindi, chanakya quotes in hindi, चाणक्य, चाणक्य नीति,  चाणक्य नीति की 10 बातें,  चाणक्य नीति की बातें, चाणक्य के कड़वे वचन, चाणक्य नीति स्त्री, चाणक्य नीति की 100 बातें,  चाणक्य विचार इन हिंदी, चाणक्य नीति सुविचार, चाणक्य नीति जीवन जीने की, सुविचार चाणक्य के कड़वे वचन, sanskrit shlok, shlok,sanskrit, sanskrit shlok,sanskrit quotes,shlok in sanskrit, sanskrit thought, sanskrit slokas,संस्कृत श्लोक,श्लोक,छोटे संस्कृत श्लोक, आदि के रूप में चर्चित एवं प्रसिद्ध है । 

चाणक्य का कालातीत प्रभाव  :

हजारों वर्षों के उपरांत भी उनमें वही ताजगी और उपयोगिता है। अतः वे आज भी उतने ही प्रासंगिक बने हुए हैं जितने वे तब थे जब वे लिखे गये थे। संस्कृत में रचित होने के कारण उनमें कालांतर के प्रभाव को स्पष्टतः नहीं देखा जाता है क्योंकि संस्कृत भाषा का सर्वश्रेष्ठ व्याकरण उसके अस्तित्व एवं गुणवत्ता के साथ ही उसके प्रभाव कि भी सुरक्षा करता है। ये अत्यंत ज्ञानवर्धक, पठनीय एवं माननीय हैं। ये जीवन‌ के अनेक चौराहों पर हमारा मार्गदर्शन करते हैं जब सब ओर अंधकार छा जाने की प्रतीति होती है।

About Chanakya (चाणक्य के बारे में) :

 चाणक्य का प्रभाव प्राचीन भारत से परे तक फैला हुआ है, क्योंकि शासन कला और शासन पर उनके विचारों का दुनिया भर के विद्वानों और नीति निर्माताओं द्वारा अध्ययन और सम्मान किया जाता है।  राजनीति के प्रति उनका व्यावहारिक दृष्टिकोण और राज्य और उसके नागरिकों के कल्याण पर उनका जोर उन्हें एक कालातीत व्यक्ति बनाता है जिनकी बुद्धि समय और स्थान की सीमाओं से परे है।

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