हिंदी दिवस पर कविता(hindi Diwas Par Kavita)
14 सितंबर को ‘हिन्दी दिवस’ मनाया जाता है। संवैधानिक रूप से हिंदी को राजभाषा का दर्जा प्राप्त है किंतु सरकारों ने उसे उसका प्रथम स्थान न देकर अन्यत्र धकेल दिया यह दुखदाई है। हिंदी को राजभाषा के रूप में देखना और हिंदी दिवस के रूप में उसका सम्मान करना भारत की सभी भाषाओं का सम्मान है जो हिंदी की सगी बहनों के समान है। क्योंकि भारत की सभी भाषाएं संस्कृत से उत्पन्न हुई हैं। और उन सब में संस्कृत की घनीभूत शब्दावली विद्यमान है। जो यह प्रमाणित करती है कि ये सभी भाषाएं संस्कृत से मौलिक रुप से संबंधित हैं। इन सभी भाषाओं में मूलभूत वर्ण संस्कृत से ही आए हैं। एक दो वर्ण जो जबरन इनमें डाले गए हैं वे ही अन्य भाषाओं से लिए गए हैं और वे भी हमारी पराधीनता की स्वीकार्यता के प्रभाव से। अन्यथा तो संस्कृत में न केवल वर्ण अक्षर बल्कि उसका व्याकरण आज भी इतना समृद्ध है कि संसार की कोई भी भाषा उसके बराबरी नहीं कर सकती। उसमें जो लकार(काल), उसमें जो धातुएं दी गई हैं, जिसके आधार पर यह एकमात्र भाषा है जो अपने उत्पन्न शब्दों को अर्थ प्रदान करती है और हजारों वर्षों तक उसे आप अपरिवर्तित रखने में दक्ष हैं ।धन्य है संस्कृत और उनकी पुत्रियांँ भारत की सभी भाषाएंँ।
यदि हिंदी का सम्मान होता है तो हिंदी भारत की सभी भाषाओं के साथ मिलजुल कर रहने के लिए स्वाभाविक और प्राकृतिक रूप से स्वीकार्य है। आप देखेंगे कि हिंदी की फिल्में पूरे भारत में उतने ही प्रेम से देखी जाती हैं। कविताएं और गीत उतने ही आनंद से गाए जाते हैं जितने दक्षिण के गीत और फिल्में भारत के अन्यत्र भागों में गाये, देखे और सुने जाते हैं।
हम इस दिन से संबंधित कुछ कविताओं का यहां पठन करते हैं –
01
निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल
निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल
बिन निज भाषा-ज्ञान के, मिटत न हिय को सूल।
अंग्रेजी पढ़ि के जदपि, सब गुन होत प्रवीन
पै निज भाषा-ज्ञान बिन, रहत हीन के हीन।
उन्नति पूरी है तबहिं जब घर उन्नति होय
निज शरीर उन्नति किये, रहत मूढ़ सब कोय।
निज भाषा उन्नति बिना, कबहुं न ह्यैहैं सोय
लाख उपाय अनेक यों भले करे किन कोय।
इक भाषा इक जीव इक मति सब घर के लोग
तबै बनत है सबन सों, मिटत मूढ़ता सोग।
और एक अति लाभ यह, या में प्रगट लखात
निज भाषा में कीजिए, जो विद्या की बात।
तेहि सुनि पावै लाभ सब, बात सुनै जो कोय
यह गुन भाषा और महं, कबहूं नाहीं होय।
विविध कला शिक्षा अमित, ज्ञान अनेक प्रकार
सब देसन से लै करहू, भाषा माहि प्रचार।
भारत में सब भिन्न अति, ताहीं सों उत्पात
विविध देस मतहू विविध, भाषा विविध लखात।
सब मिल तासों छांड़ि कै, दूजे और उपाय
उन्नति भाषा की करहु, अहो भ्रातगन आय।
(रचनाकार- -भारतेंदु हरिश्चंद्र)
निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल
बिन निज भाषा-ज्ञान के, मिटत न हिय को सूल।
अंग्रेजी पढ़ि के जदपि, सब गुन होत प्रवीन
पै निज भाषा-ज्ञान बिन, रहत हीन के हीन।
उन्नति पूरी है तबहिं जब घर उन्नति होय
निज शरीर उन्नति किये, रहत मूढ़ सब कोय।
निज भाषा उन्नति बिना, कबहुं न ह्यैहैं सोय
लाख उपाय अनेक यों भले करे किन कोय।
इक भाषा इक जीव इक मति सब घर के लोग
तबै बनत है सबन सों, मिटत मूढ़ता सोग।
और एक अति लाभ यह, या में प्रगट लखात
निज भाषा में कीजिए, जो विद्या की बात।
तेहि सुनि पावै लाभ सब, बात सुनै जो कोय
यह गुन भाषा और महं, कबहूं नाहीं होय।
विविध कला शिक्षा अमित, ज्ञान अनेक प्रकार
सब देसन से लै करहू, भाषा माहि प्रचार।
भारत में सब भिन्न अति, ताहीं सों उत्पात
विविध देस मतहू विविध, भाषा विविध लखात।
सब मिल तासों छांड़ि कै, दूजे और उपाय
उन्नति भाषा की करहु, अहो भ्रातगन आय।
(रचनाकार- -भारतेंदु हरिश्चंद्र)
02
अभिनंदन अपनी भाषा का
करते हैं तन-मन से वंदन, जन-गण-मन की अभिलाषा का
अभिनंदन अपनी संस्कृति का, आराधन अपनी भाषा का।
यह अपनी शक्ति सर्जना के माथे की है चंदन रोली
माँ के आँचल की छाया में हमने जो सीखी है बोली
यह अपनी बँधी हुई अंजुरी ये अपने गंधित शब्द सुमन
यह पूजन अपनी संस्कृति का यह अर्चन अपनी भाषा का।
अपने रत्नाकर के रहते किसकी धारा के बीच बहें
हम इतने निर्धन नहीं कि वाणी से औरों के ऋणी रहें
इसमें प्रतिबिंबित है अतीत आकार ले रहा वर्तमान
यह दर्शन अपनी संस्कृति का यह दर्पण अपनी भाषा का।
यह ऊँचाई है तुलसी की यह सूर-सिंधु की गहराई
टंकार चंद वरदाई की यह विद्यापति की पुरवाई
जयशंकर की जयकार निराला का यह अपराजेय ओज
यह गर्जन अपनी संस्कृति का यह गुंजन अपनी भाषा का।
(रचनाकार- सोम ठाकुर)
करते हैं तन-मन से वंदन, जन-गण-मन की अभिलाषा का
अभिनंदन अपनी संस्कृति का, आराधन अपनी भाषा का।
यह अपनी शक्ति सर्जना के माथे की है चंदन रोली
माँ के आँचल की छाया में हमने जो सीखी है बोली
यह अपनी बँधी हुई अंजुरी ये अपने गंधित शब्द सुमन
यह पूजन अपनी संस्कृति का यह अर्चन अपनी भाषा का।
अपने रत्नाकर के रहते किसकी धारा के बीच बहें
हम इतने निर्धन नहीं कि वाणी से औरों के ऋणी रहें
इसमें प्रतिबिंबित है अतीत आकार ले रहा वर्तमान
यह दर्शन अपनी संस्कृति का यह दर्पण अपनी भाषा का।
यह ऊँचाई है तुलसी की यह सूर-सिंधु की गहराई
टंकार चंद वरदाई की यह विद्यापति की पुरवाई
जयशंकर की जयकार निराला का यह अपराजेय ओज
यह गर्जन अपनी संस्कृति का यह गुंजन अपनी भाषा का।
(रचनाकार- सोम ठाकुर)
03
हिंदी हमारी आन बान शान
हिंदी हमारी आन है, हिंदी हमारी शान है,
हिंदी हमारी चेतना वाणी का शुभ वरदान है,
हिंदी हमारी वर्तनी, हिंदी हमारा व्याकरण,
हिंदी हमारी संस्कृति, हिंदी हमारा आचरण,
हिंदी हमारी वेदना, हिंदी हमारा गान है,
हिंदी हमारी आत्मा है, भावना का साज़ है,
हिंदी हमारे देश की हर तोतली आवाज़ है,
हिंदी हमारी अस्मिता, हिंदी हमारा मान है,
हिंदी निराला, प्रेमचंद की लेखनी का गान है,
हिंदी में बच्चन, पंत, दिनकर का मधुर संगीत है,
हिंदी में तुलसी, सूर, मीरा जायसी की तान है,
जब तक गगन में चांद, सूरज की लगी बिंदी रहे,
तब तक वतन की राष्ट्र भाषा ये अमर हिंदी रहे,
हिंदी हमारा शब्द, स्वर व्यंजन अमिट पहचान है,
हिंदी हमारी चेतना वाणी का शुभ वरदान है।
(रचनाकार- अंकित शुक्ला)
हिंदी हमारी आन है, हिंदी हमारी शान है,
हिंदी हमारी चेतना वाणी का शुभ वरदान है,
हिंदी हमारी वर्तनी, हिंदी हमारा व्याकरण,
हिंदी हमारी संस्कृति, हिंदी हमारा आचरण,
हिंदी हमारी वेदना, हिंदी हमारा गान है,
हिंदी हमारी आत्मा है, भावना का साज़ है,
हिंदी हमारे देश की हर तोतली आवाज़ है,
हिंदी हमारी अस्मिता, हिंदी हमारा मान है,
हिंदी निराला, प्रेमचंद की लेखनी का गान है,
हिंदी में बच्चन, पंत, दिनकर का मधुर संगीत है,
हिंदी में तुलसी, सूर, मीरा जायसी की तान है,
जब तक गगन में चांद, सूरज की लगी बिंदी रहे,
तब तक वतन की राष्ट्र भाषा ये अमर हिंदी रहे,
हिंदी हमारा शब्द, स्वर व्यंजन अमिट पहचान है,
हिंदी हमारी चेतना वाणी का शुभ वरदान है।
(रचनाकार- अंकित शुक्ला)
04
नूतन वर्षाभिनंदन
नूतन का अभिनंदन हो
प्रेम-पुलकमय जन-जन हो!
नव-स्फूर्ति भर दे नव-चेतन
टूट पड़ें जड़ता के बंधन;
शुद्ध, स्वतंत्र वायुमंडल में
निर्मल तन, निर्भय मन हो!
प्रेम-पुलकमय जन-जन हो,
नूतन का अभिनंदन हो!
प्रति अंतर हो पुलकित-हुलसित
प्रेम-दिए जल उठें सुवासित
जीवन का क्षण-क्षण हो ज्योतित,
शिवता का आराधन हो!
प्रेम-पुलकमय प्रति जन हो,
नूतन का अभिनंदन हो!
(रचनाकार- -फणीश्वरनाथ रेणु)
05
कलम, आज उनकी जय बोल
जला अस्थियां बारी-बारी
चिटकाई जिनमें चिंगारी,
जो चढ़ गये पुण्यवेदी पर
लिए बिना गर्दन का मोल
कलम, आज उनकी जय बोल।
जो अगणित लघु दीप हमारे
तूफानों में एक किनारे,
जल-जलाकर बुझ गए किसी दिन
मांगा नहीं स्नेह मुंह खोल
कलम, आज उनकी जय बोल।
पीकर जिनकी लाल शिखाएं
उगल रही सौ लपट दिशाएं,
जिनके सिंहनाद से सहमी
धरती रही अभी तक डोल
कलम, आज उनकी जय बोल।
अंधा चकाचौंध का मारा
क्या जाने इतिहास बेचारा,
साखी हैं उनकी महिमा के
सूर्य चन्द्र भूगोल खगोल
कलम, आज उनकी जय बोल।
(रचनाकार- -रामधारी सिंह ‘दिनकर’)
06
हिन्दी दिवस पर अटल बिहारी वाजपेयी की कविता
बनने चली विश्व भाषा जो
बनने चली विश्व भाषा जो,
अपने घर में दासी,
सिंहासन पर अंग्रेजी है,
लखकर दुनिया हांसी,
लखकर दुनिया हांसी,
हिन्दी दां बनते चपरासी,
अफसर सारे अंग्रेजी मय,
अवधी या मद्रासी,
गूंजी हिन्दी विश्व में
गूंजी हिन्दी विश्व में,
स्वप्न हुआ साकार;
राष्ट्र संघ के मंच से,
हिन्दी का जयकार;
हिन्दी का जयकार,
हिन्दी हिन्दी में बोला;
देख स्वभाषा-प्रेम,
विश्व अचरज से डोला;
कह कैदी कविराय,
मेम की माया टूटी;
भारत माता धन्य,
स्नेह की सरिता फूटी!
(रचनाकार- अटल बिहारी वाजपेयी)
बनने चली विश्व भाषा जो,
अपने घर में दासी,
सिंहासन पर अंग्रेजी है,
लखकर दुनिया हांसी,
लखकर दुनिया हांसी,
हिन्दी दां बनते चपरासी,
अफसर सारे अंग्रेजी मय,
अवधी या मद्रासी,
गूंजी हिन्दी विश्व में
गूंजी हिन्दी विश्व में,
स्वप्न हुआ साकार;
राष्ट्र संघ के मंच से,
हिन्दी का जयकार;
हिन्दी का जयकार,
हिन्दी हिन्दी में बोला;
देख स्वभाषा-प्रेम,
विश्व अचरज से डोला;
कह कैदी कविराय,
मेम की माया टूटी;
भारत माता धन्य,
स्नेह की सरिता फूटी!
(रचनाकार- अटल बिहारी वाजपेयी)
07
हिन्दी दिवस पर गिरिजा कुमार माथुर की कविता
वह हिंदी है
एक डोर में सबको जो है बाँधती
वह हिंदी है,
हर भाषा को सगी बहन जो मानती
वह हिंदी है।
भरी-पूरी हों सभी बोलियां
यही कामना हिंदी है,
गहरी हो पहचान आपसी
यही साधना हिंदी है,
सौत विदेशी रहे न रानी
यही भावना हिंदी है।
तत्सम, तद्भव, देश विदेशी
सब रंगों को अपनाती,
जैसे आप बोलना चाहें
वही मधुर, वह मन भाती,
नए अर्थ के रूप धारती
हर प्रदेश की माटी पर,
‘खाली-पीली-बोम-मारती’
बंबई की चौपाटी पर,
चौरंगी से चली नवेली
प्रीति-पियासी हिंदी है,
बहुत-बहुत तुम हमको लगती
‘भालो-बाशी’, हिंदी है।
उच्च वर्ग की प्रिय अंग्रेज़ी
हिंदी जन की बोली है,
वर्ग-भेद को ख़त्म करेगी
हिंदी वह हमजोली है,
सागर में मिलती धाराएँ
हिंदी सबकी संगम है,
शब्द, नाद, लिपि से भी आगे
एक भरोसा अनुपम है,
गंगा कावेरी की धारा
साथ मिलाती हिंदी है,
पूरब-पश्चिम/ कमल-पंखुरी
सेतु बनाती हिंदी है।
– गिरिजा कुमार माथुर
एक डोर में सबको जो है बाँधती
वह हिंदी है,
हर भाषा को सगी बहन जो मानती
वह हिंदी है।
भरी-पूरी हों सभी बोलियां
यही कामना हिंदी है,
गहरी हो पहचान आपसी
यही साधना हिंदी है,
सौत विदेशी रहे न रानी
यही भावना हिंदी है।
तत्सम, तद्भव, देश विदेशी
सब रंगों को अपनाती,
जैसे आप बोलना चाहें
वही मधुर, वह मन भाती,
नए अर्थ के रूप धारती
हर प्रदेश की माटी पर,
‘खाली-पीली-बोम-मारती’
बंबई की चौपाटी पर,
चौरंगी से चली नवेली
प्रीति-पियासी हिंदी है,
बहुत-बहुत तुम हमको लगती
‘भालो-बाशी’, हिंदी है।
उच्च वर्ग की प्रिय अंग्रेज़ी
हिंदी जन की बोली है,
वर्ग-भेद को ख़त्म करेगी
हिंदी वह हमजोली है,
सागर में मिलती धाराएँ
हिंदी सबकी संगम है,
शब्द, नाद, लिपि से भी आगे
एक भरोसा अनुपम है,
गंगा कावेरी की धारा
साथ मिलाती हिंदी है,
पूरब-पश्चिम/ कमल-पंखुरी
सेतु बनाती हिंदी है।
– गिरिजा कुमार माथुर
08
हिन्दी दिवस पर मैथिली शरण गुप्त की कविता है;
करो अपनी भाषा पर प्यार
करो अपनी भाषा पर प्यार ।
जिसके बिना मूक रहते तुम, रुकते सब व्यवहार ।।
जिसमें पुत्र पिता कहता है, पतनी प्राणाधार,
और प्रकट करते हो जिसमें तुम निज निखिल विचार ।
बढ़ायो बस उसका विस्तार ।
करो अपनी भाषा पर प्यार ।।
भाषा विना व्यर्थ ही जाता ईश्वरीय भी ज्ञान,
सब दानों से बहुत बड़ा है ईश्वर का यह दान ।
असंख्यक हैं इसके उपकार ।
करो अपनी भाषा पर प्यार ।।
यही पूर्वजों का देती है तुमको ज्ञान-प्रसाद,
और तुमहारा भी भविष्य को देगी शुभ संवाद ।
बनाओ इसे गले का हार ।
करो अपनी भाषा पर प्यार ।।
(रचनाकार- -मैथिली शरण गुप्त)
09
हिन्दी दिवस पर देवमणि पांडेय की कविता-
हिंदी इस देश का गौरव है।
हिंदी इस देश का गौरव है,
हिंदी भविष्य की आशा है।
हिंदी हर दिल की धड़कन है, हिंदी जनता की भाषा है।
इसको कबीर ने अपनाया
मीराबाई ने मान दिया।
आज़ादी के दीवानों ने
इस हिंदी को सम्मान दिया।
जन जन ने अपनी वाणी से हिंदी का रूप तराशा है।
हिंदी हर क्षेत्र में आगे है
इसको अपनाकर नाम करें।
हम देशभक्त कहलाएंगे
जब हिंदी में सब काम करें।
हिंदी चरित्र है भारत का, नैतिकता की परिभाषा है।
हिंदी हम सब की ख़ुशहाली
हिंदी विकास की रेखा है।
हिंदी में ही इस धरती ने
हर ख़्वाब सुनहरा देखा है।
हिंदी हम सबका स्वाभिमान, यह जनता की अभिलाषा है।
(रचनाकार- -देवमणि पांडेय)
10
विश्व हिंदी दिवस पर कविता
“जय हिंदी”
“जय हिंदी”
संस्कृत से जन्मी है हिन्दी,
शुद्धता का प्रतीक है हिन्दी ।
लेखन और वाणी दोनो को,
गौरान्वित करवाती हिन्दी ।
उच्च संस्कार, वियिता है हिन्दी,
सतमार्ग पर ले जाती हिन्दी ।
ज्ञान और व्याकरण की नदियाँ,
मिलकर सागर सोत्र बनाती हिन्दी ।
हमारी संस्कृति की पहचान है हिन्दी,
आदर और मान है हिन्दी ।
हमारे देश की गौरव भाषा,
एक उत्कृष्ट अहसास है हिन्दी ।।
रचनाकार--प्रतिभा गर्ग
संस्कृत से जन्मी है हिन्दी,
शुद्धता का प्रतीक है हिन्दी ।
लेखन और वाणी दोनो को,
गौरान्वित करवाती हिन्दी ।
उच्च संस्कार, वियिता है हिन्दी,
सतमार्ग पर ले जाती हिन्दी ।
ज्ञान और व्याकरण की नदियाँ,
मिलकर सागर सोत्र बनाती हिन्दी ।
हमारी संस्कृति की पहचान है हिन्दी,
आदर और मान है हिन्दी ।
हमारे देश की गौरव भाषा,
एक उत्कृष्ट अहसास है हिन्दी ।।
रचनाकार–प्रतिभा गर्ग
11
कविता का उद्देश्य विश्व के समक्ष हिंदी भाषा का मजबूत पक्ष रखना है।
भाल का शृंगार
माँ भारती के भाल का शृंगार है हिंदी
हिंदोस्ताँ के बाग़ की बहार है हिंदी
घुट्टी के साथ घोल के माँ ने पिलाई थी
स्वर फूट पड़ रहा, वही मल्हार है हिंदी
तुलसी, कबीर, सूर औ’ रसखान के लिए
ब्रह्मा के कमंडल से बही धार है हिंदी
सिद्धांतों की बात से न होयगा भला
अपनाएँगे न रोज़ के व्यवहार में हिंदी
कश्ती फँसेगी जब कभी तूफ़ानी भँवर में
उस दिन करेगी पार, वो पतवार है हिंदी
माना कि रख दिया है संविधान में मगर
पन्नों के बीच आज तार-तार है हिंदी
सुन कर के तेरी आह ‘व्योम’ थरथरा रहा
वक्त आने पर बन जाएगी तलवार ये हिंदी
-डॉ जगदीश व्योम
12
“पुष्प की अभिलाषा”
चाह नहीं, मैं सुरबाला के
गहनों में गूंथा जाऊं,
चाह नहीं प्रेमी-माला में बिंध
प्यारी को ललचाऊं,
चाह नहीं सम्राटों के शव पर
हे हरि डाला जाऊं,
चाह नहीं देवों के सिर पर
चढूं भाग्य पर इठलाऊं,
मुझे तोड़ लेना बनमाली,
उस पथ पर देना तुम फेंक
मातृ-भूमि पर शीश- चढ़ाने,
जिस पथ पर जावें वीर अनेक
-माखनलाल चतुर्वेदी
हिन्दी: भारतीय संविधान और राजभाषा की यात्रा”
राज-काज चलाने के लिए किसी-न-किसी भाषा की आवश्यकता पड़न है। वह भाषा राजभाषा कहलाती है। अपने समय में संस्कृत, पाली, महाराष्ट्रा, प्राकृ अथवा अपभ्रंश राजभाषा रही हैं। प्रमाणों से विदित होता है कि 11वीं से 15 शताब्दी ईसवी के दौरान राजस्थान में हिन्दी मिश्रित संस्कृत का प्रयोग होता था मुसलमान बादशाहों के शासन काल में मुहम्मद गौरी से लेकर अकबर के सम तक हिन्दी शासन-कार्य का माध्यम थी। अकबर के गृहमंत्री राजा टोडरमल से सरकारी कागजात फ़ारसी में लिखे जाने लगे। एक फारसीदान मुंशी क ने तीन सौ वर्ष तक फ़ारसी को शासन-कार्य का माध्यम बनाये रखा। मॅकाल आकर अंग्रेजी को प्रतिष्ठित किया। तब से उच्च स्तर पर अंग्रेजी और निम पर देशी भाषाएँ प्रयुक्त होती रहीं । हिन्दी प्रदेश में उर्दू प्रतिष्ठित रही, यद्यपि राजस्थान और मध्यप्रदेश के देशी राज्यों में हिन्दी माध्यम से सारा कामकाज होता रहा। राष्ट्र चेतना के विकास के साथ राजभाषा को राजपद दिलाने की माँग उठी । भारतेंदु हरिशचन्द्र,महर्षि दयानन्द सरस्वती, केशवचन्द्र सेन, लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक महामना मदन मोहन मालवीय, महात्मा गांधी, राजर्षि पुरुषोत्तम दास टंडन और से अन्य नेताओं और जनसाधारण ने अनुभव किया कि हमारे देश का राज-का हमारी ही भाषा में होना चाहिए और वह भाषा हिन्दी ही हो सकती है। हिन्दू सभी की सहोदरी है, यह सबसे बड़े क्षेत्र के लोगों की (42 प्रतिश से ऊपर जनता की) मातृभाषा है, हिन्दी प्रदेश के बाहर भी यह अधिकतर लोग की दूसरी या तीसरी भाषा है, हिन्दी संस्कृत की उत्तराधिकारी है और सभी भारती भाषाओं की अपेक्षा सरल है। इन विशेषताओं के कारण स्वतंत्रता प्राप्ति से पह ही हिन्दी को भारत की संपर्क भाषा के रूप में स्वीकार किया गया।
स्वतंत्रता के बाद राज्यसत्ता जनता के हाथ में आई । लोकतांत्रिक व्यवस्था में यह आवश्यक हो गया कि देश का राज-काज, लोक की भाषा में हो, अतः राजभाषा के रूप में हिन्दी को एकमत से स्वीकार किया गया। 14 सितम्बर, 1949 ई. को भारत के संविधान में हिन्दी को मान्यता प्रदान की गई। तब से राजकार्यों में इसके प्रयोग का विकासक्रम आरंभ होता है। संविधान के अनुच्छेद 343 के अनुसार संघ की राजभाषा हिन्दी और लिपि देवनागरी है। राजभाषा
‘राजभाषा’ से तात्पर्य है ‘सरकारी कामकाज के लिये प्रयुक्त भाषा’ राजभाषा शब्द अंग्रेजी के ऑफिशियल लैंग्वेज का पर्याय है। विधिक रूप में इस शब्द का प्रयोग स्वतंत्र भारत के संविधान में सर्वप्रथम किया गया। ‘राजभाषा’ की शब्दावली पारिभाषिक होने के साथ-साथ शासन से जुड़ी होती है। इसकी शब्दावली एकार्थक, निश्चित अर्थ में प्रयुक्त होने वाली और औपचारित होती है। यह आवश्यक नहीं है कि राजभाषा संबंधित राज्य की राष्ट्रभाषा भी हो। भारत के संविधान के अध्याय 17. अनुच्छेद 343 के द्वारा हिन्दी को ‘राजभाषा’ के रूप में स्वीकृत किया गया और इसी के साथ उसके विकास के लिए भी संविधान के अनुच्छेद 351 के अनुसार निर्देश दिये गए।
14 सितम्बर, 1949 को भारतीय संघ की राजभाषा के रूप में हिन्दी को स्वीकृत किये जाने का निर्णय संविधान सभा द्वारा लिया गया। संविधान सभा ने राजभाषा के संबंध में तीन मुख्य व्यवस्थायें की-
1. संघ की राजभाषा हिन्दी और लिपि देवनागरी होगी।
2. संविधान के प्रारंभ से पन्द्रह वर्षों की अवधि के लिए अंग्रेजी राजभाषा के रूप में चलती रहेगी।
3. हिन्दी के विकास के कारण अन्य भारतीय भाषाओं की उपेक्षा न हो।
संवैधानिक प्रावधान | राजभाषा विभाग | गृह मंत्रालय | भारत सरकार
राजभाषा की संवैधानिक स्थिति
i.अनुच्छेद 343 में ‘संघ की राजभाषा’ का उल्लेख है।
ii.अनुच्छेद 344 में ‘राजभाषा के लिए आयोग और संसद की समिति’ का उल्लेख है।
iii. अनुच्छेद 345, 346, 347 में ‘प्रादेशिक भाषाएँ अर्थात् राज्य की राजभाषाएँ’ का उल्लेख है।
iv. अनुच्छेद 348 में ‘उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों में तथा विधायकों आदि की भाषा’ का उल्लेख है।
(HC+SC+LEGISLATURE=148)
v. अनुच्छेद 349 में ‘भाषा संबंधी कुछ विधियों को अधिनियमित करने के लिए। विशेष प्रक्रिया का उल्लेख है।
vi.अनुच्छेद 350 में ‘व्यथा के निवारण के लिए प्रयुक्त भाषा प्राथमिकता पर मातृभाषा में शिक्षा की सुविधाएँ तथा भाषाई अल्पसंख्यक के लिए विशेष अधिकार।
vii. अनुच्छेद 351 में ‘हिन्दी के विकास के लिये निदेश’ आदि का उल्लेख है।
संविधान में राजभाषा के प्रावधान
1. संविधान के अनुच्छेद 120- इसके अनुसार संसद में हिन्दी अथवा अंग्रेजी भाषा में कार्य किया जा सकेगा। यदि कोई संसद सदस्य हिन्दी अथवा अंग्रेजी में अपने विचार व्यक्त नहीं कर सकता तो लोकसभा अध्यक्ष या राज्यसभा के सभापति की अनुमति से अपनी मातृभाषा में अपने विचार व्यक्त कर सकता है।
2. अनुच्छेद 210 – विभिन्न राज्यों के विधानमंडल हिन्दी अथवा अंग्रेजी में कार्य करेंगे। यथास्थिति लोकसभा अध्यक्ष या राज्यसभा के सभापति सदस्य को उसकी मातृभाषा में विचार व्यक्त करने की अनुमति दे सकता है।
3. अनुच्छेद 343- संघ की राजभाषा हिन्दी, लिपि देवनागरी तथा अंक भारतीय अंकों के अंतर्राष्ट्रीय रूप वाले होंगे। सरकारी कामकाज में अंग्रेजी का प्रयोग 15 वर्षों की अवधि तक किया जाता रहेगा, परंतु राष्ट्रपति इस अवधि के दौरान शासकीय प्रयोजनों में अंग्रेजो के साथ हिन्दी भाषा का प्रयोग अधिकृत कर सकेगा। 15 वर्षों की अवधि के पश्चात् विधि द्वारा अंग्रेजी भाषा अंकों के देवनागरी रूप में प्रयोग को उपबंधित कर सकती है।
4. अनुच्छेद 344- इसके अनुसार संविधान लागू होने के पाँच एवं दस वर्ष की समाप्ति पर राष्ट्रपति आदेश द्वारा राजभाषा आयोग का गठन करेंगे। यह आयोग हिन्दी के उत्तरोत्तर प्रयोग आदि की सिफारिश करेगा। संसदीय राजभाषा समिति का गठन किया जायेगा। इस समिति में लोकसभा बीस सदस्य और राज्यसभा के दस सदस्य होंगे। यह समिति राजभाषा आयोग की सिफारिशों के बारे में राष्ट्रपति को अपनी रिपोर्ट देगी।
5. अनुच्छेद 345- किसी राज्य का विधान मंडल विधि द्वारा उस राज्य की किसी एक अथवा अन्य भाषाओं को अपनी राजभाषा के रूप में स्वीकार कर सकता है।
6. अनुच्छेद 346- किसी एक या दूसरे राज्य और संघ के बीच में संचार की भाषा राजभाषा होगी।
7. अनुच्छेद 347- किसी राज्य की जनसंख्या का पर्याप्त भाग यह चाहता है कि उनके द्वारा बोली जाने को शासकीय मान्यता दी जाये तो राष्ट्रपति वैसा करने के लिए संबंधित राज्य को आदेश दे सकते हैं।
8. अनुच्छेद 348- जब तक संसद विधि द्वारा उपबंध न करे तब तक उच्चतम न्यायालय तथा उच्च न्यायालय की सभी कार्यवाहियाँ अंग्रेजी भाषा में होंगी। संसद एवं राज्यों के विधान-मंडलों में पारित विधेयक राष्ट्रपति एवं राज्यपालों द्वारा जारी सभी अध्यादेश, आदेश विनिमय, नियम आदि सबके प्राधिकृत पाठ भी अंग्रेजी भाषा में ही माना जायेगा।
9. अनुच्छेद 349- संविधान लागू होने के 15 वर्षों की अवधि तक अंग्रेजी के अलावा किसी भी दूसरी भाषा का प्राधिकृत पाठ नहीं माना जायेगा। किसी अन्य भाषा के प्राधिकृत पाठ हेतु भाषा आयोग तथा सिफारिशों की गठित रिपोर्ट पर विचार करने के पश्चात् राष्ट्रपति अपनी स्वीकृति प्रदान कर सकता है।
10. अनुच्छेद 350- शिकायत निवारण के लिये कोई भी व्यक्ति किसी भी अधिकारी या प्राधिकारी को संघ अथवा राज्य में प्रयुक्त किसी भी भाषा में अपना अभिवेदन दे सकता 1
11. अनुच्छेद 351- इसके अंतर्गत हिन्दी भाषा की प्रसार वृद्धि तथा विकास करना भारत की सामासिक संस्कृति को विकसित करना, हिन्दी को भारतीय तथा अन्य से जोड़कर उसका दायरा विस्तृत करना संघ का उद्देश्य होगा ।
राजभाषा नियम 1976 की विशिष्टताएँ
1. राजभाषा नियम 1976 के अंतर्गत कुल बारह नियम बनाये गये। तमिलनाडु राज्य को छोड़कर देश के अन्य सभी राज्यों पर समान रूप से ये नियम लागू होते हैं।
2. हिन्दी के प्रगामी प्रयोग को प्रभावी ढंग से लागू करने के उद्देश्य से पूरे भारत को तीन क्षेत्रों में बाँटा गया है-
क्षेत्र क-
समस्त हिन्दी भाषी राज्य एवं संघ राज्यक्षेत्र (बिहार, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, मध्यप्रदेश, राजस्थान, उत्तरप्रदेश, दिल्ली अंडमान निकोबार द्वीप समूह ) एव
क्षेत्र ख-
गुजरात, महाराष्ट्र तथा पंजाब, चंडीगढ़ इसके अंतर्गत वे राज्य तथा संघ राज्यक्षेत्र आते हैं जो से ‘क’ और ‘ख’ के अंतर्गत नहीं आते।
क्षेत्र ग-
3. राजभाषा नियम 1976 में हिन्दी पत्राचार के संबंध में स्पष्ट दिशा-निर्देश दिये गये हैं ।
4. राजभाषा नियम 1976 के नियम 5 के अंतर्गत प्रावधान है कि व्यक्तिगत अथवा राज्य द्वारा हिन्दी में भेजे गये पत्रों का जवाब हिन्दी में ही अनिवार्य रूप से देना होगा।
5. कोई भी कर्मचारी हिन्दी या अंग्रेजी में अभ्यावेदन कर सकता है।
6. नियम 5 के अंतर्गत यह प्रावधान किया गया है कि सरकारी कार्यालय में जारी होने वाले परिपत्र, प्रशासनिक रिपोर्ट, कार्यालय आदेश, अधिसूचना, करार, संधियों, विज्ञापन तथा निविदा सूचना आदि अनिवार्य रूप से हिन्दी- अंग्रेजी द्विभाषी रूप से जारी किये जायेंगे ।
7. केन्द्रीय सरकार के अधिकारी या कर्मचारी फाइलों में टिप्पणी केवल हिन्दी या अंग्रेजी में लिख सकते हैं। किसी अन्य भाषा में वे उसका अनुवाद प्रस्तुत नहीं कर सकते।
8. राजभाषा नियम 1976 के नियम 12 के अनुसार केन्द्रीय सरकार के कार्यालय के प्रशासनिक प्रधान का यह उत्तरदायित्व होगा कि वह सुनिश्चित करें दि राजभाषा अधिनियम एवं राजभाषा नियमों के उपबंधों का समुचित पालन किया जा रहा है और इसके सुनिश्चित पालन के लिए प्रभावकारी जाँच बिर निर्धारित करे ।
9. संक्षेप में कहा जा सकता है कि राजभाषा नियम 1976 से राजभाषा हिन्दी प्रगामी प्रयोग में काफी मात्रा में गति आई तथा केन्द्रीय सरकार के कर्मचारिय को भी हिन्दी में कामकाज करने में निश्चित रूप से प्रोत्साहन मिला।
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प्रश्न -हिंदी दिवस कब मनाया जाता है ?
उत्तर -हिंदी दिवस 14 सितंबर को मनाया जाता है।
प्रश्न -हिंदी दिवस पर 10 लाइन ,
उत्तर – हमें अपनी भाषा से प्रेम करना चाहिए क्योंकि हम जब अपनी भाषा बोलते हैं तो हम बहुत सहज रहकर सरलता से अपनी बात दूसरों तक पहुंचा सकते हैं। उसके बिना हम किसी मूक प्राणी की तरह हो जाते हैं और हमारे सारे व्यवहार रुक जाते हैं। हम अपनी मातृभाषा में ही अपने मूलभूत विचारों को अच्छी तरह से प्रकट कर सकते हैं। हम अपनी कोई भी बात अपनी मातृभाषा में ही ठीक तरह से बोल सकते हैं। हमारी मातृभाषा में हमारी संस्कृति और सभ्यता समाहित होती है अतः हम हमारी संस्कृति की भी उसे रक्षा कर लेते हैं। हम अपनी भाषा के द्वारा हमारी नई पीढ़ी को भी हमारी सांस्कृतिक विरासत पहुंचा देते हैं।
प्रश्न -हिंदी दिवस पर कविता 10 लाइन ,
उत्तर – हिन्दी दिवस पर मैथिली शरण गुप्त की कविता है;
करो अपनी भाषा पर प्यार ।
करो अपनी भाषा पर प्यार ।
जिसके बिना मूक रहते तुम, रुकते सब व्यवहार ।।
जिसमें पुत्र पिता कहता है, पतनी प्राणाधार,
और प्रकट करते हो जिसमें तुम निज निखिल विचार ।
बढ़ायो बस उसका विस्तार ।
करो अपनी भाषा पर प्यार ।।
भाषा विना व्यर्थ ही जाता ईश्वरीय भी ज्ञान,
सब दानों से बहुत बड़ा है ईश्वर का यह दान ।
असंख्यक हैं इसके उपकार ।
करो अपनी भाषा पर प्यार ।।
प्रश्न -हिंदी दिवस क्यों मनाया जाता है ,
उत्तर – हिंदी हमारी राजभाषा, राष्ट्रभाषा, संपर्क भाषा और आपसी व्यवहार की भी भाषा है। वह हमारी साहित्यिक और सांस्कृतिक के साथ-साथ तकनीकी भाषा भी बन रही है। अतः उसके सम्मान में हिंदी दिवस 14 सितंबर को मनाया जाता है। क्योंकि भाषा के बिना हम कोई भी व्यवहार नहीं कर सकते। 14 सितंबर 1949 को भारतीय संविधान सभा ने हिंदी को देवनागरी लिपि में भारत की राजभाषा के रूप में स्वीकार किया। अतः 1953 से हर वर्ष 14 सितंबर को हिंदी दिवस के रूप में मनाया जाता है।
प्रश्न -विश्व हिंदी दिवस कब मनाया जाता है ,
उत्तर – विश्व हिंदी दिवस 10 जनवरी को मनाया जाता है। प्रथम विश्व हिंदी दिवस का आयोजन 10 जनवरी 1974 को नागपुर, महाराष्ट्र में किया गया था। इसके मनाने का मुख्य उद्देश्य हिंदी के प्रति सम्मान व्यक्त करते हुए इसे विश्व प्रसिद्ध एक सम्मानित भाषा के रूप में दर्जा दिलाने के लिए इसे मनाया जाता है । संकल्प लिया जाता है। भारत के दूतावास जो दुनिया भर में फैले हुए हैं सभी देशों में उनमें विभिन्न प्रकार के कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं और वहां पर हिंदी का प्रचार प्रसार किया जाता है।
हिंदी दिवस कोट्स : Hindi Diwas Quotes
क्वोट (Hindi Diwas Quote) -01
हिंदी है भारत की आशा
हिंदी है भारत की भाषा
हिंदी दिवस पर आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएं।
क्वोट (Hindi Diwas Quote) – 02
भारत मां के भाल पर सजी स्वर्णिम बिंदी हूं,
मैं भारत की बेटी आपकी अपनी हिंदी हूं।
क्वोट (Hindi Diwas Quote) – 03
अपने वतन की सबसे प्यारी भाषा
हिंदी जगत की सबसे न्यारी भाषा
क्वोट (Hindi Diwas Quote) – 04
भारत देश की आशा है, हिंदी अपनी भाषा है,
जात-पात के बंधन को तोड़े, हिंदी सारे देश को जोड़े।
क्वोट (Hindi Diwas Quote) – 05
अभिव्यक्ति की खान है, भारत का अभिमान है,
हिंदी दिवस हिंदी भाषा के लिए एक अभियान है!
क्वोट (Hindi Diwas Quote) – 06
विविधताओं से भरे इस देश में लगी भाषाओं की फुलवारी है,
इनमें हमको सबसे प्यारी हिंदी मातृभाषा हमारी है।
क्वोट (Hindi Diwas Quote) – 07
हिंदी दिवस पर हमने ठाना है
लोगों में हिंदी का स्वाभिमान जगाना है,
हम सब का अभिमान है हिंदी
भारत देश की शान है हिंदी।
क्वोट (Hindi Diwas Quote) – 08
हिंदी को आगे बढ़ाना है,
उन्नति की राह पर ले जाना है,
केवल एक दिन ही नहीं,
हमें नित हिंदी दिवस मनाना है,
हिंदी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं!
क्वोट (Hindi Diwas Quote) – 09
ज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल: भारतेंदु हरिश्चंद्र
क्वोट (Hindi Diwas Quote) – 10
हिंदी हमारे देश और भाषा की प्रभावशाली विरासत है: माखनलाल चतुर्वेदी
क्वोट (Hindi Diwas Quote) – 11
हिंदी पढ़ना और पढ़ाना हमारा कर्तव्य है। उसे हम सबको अपनाना है: लाल बहादुर शास्त्री
क्वोट (Hindi Diwas Quote) – 12
हिंदी भाषा वह नदी है जो साहित्य, संस्कृति और समाज को एक साथ बहा ले जाती है: रामधारी सिंह दिनकर
क्वोट (Hindi Diwas Quote) – 13
जिस देश को अपनी भाषा और साहित्य के गर्व का अनुभव नहीं है, वह उन्नत नहीं हो सकता: डॉ राजेंद्र प्रसाद
क्वोट (Hindi Diwas Quote) – 14
हम सब का अभिमान हैं हिन्दी
भारत देश की शान हैं हिन्दी
क्वोट (Hindi Diwas Quote) – 15
हिंदी को जीवन की भाषा बनाओ। यह केवल बोलचाल की भाषा नहीं, बल्कि विचारों की अभिव्यक्ति की भाषा है: मुंशी प्रेमचंद
क्वोट (Hindi Diwas Quote) – 16
मैं दुनिया की सभी भाषाओं की इज्जत करता हूं, पर मेरे देश में हिंदी की इज्जत न हो, ये मैं सह नहीं सकता: आचार्य विनोबा भावे
क्वोट (Hindi Diwas Quote) – 17
राष्ट्रभाषा के बिना राष्ट्र गूंगा हो जाता है। हिंदी ही एक ऐसी भाषा है जो पूरे देश को एक सूत्र में बांधने की क्षमता रखती है: महात्मा गांधी
क्वोट (Hindi Diwas Quote) – 18
हिंदी उन सभी गुणों से अलंकृत है, जिनके बल पर वह विश्व की साहित्यिक भाषा की अगली श्रेणी में समासीन हो सकती है: मैथिलीशरण गुप्त
क्वोट (Hindi Diwas Quote) – 19
हिंदी केवल एक भाषा नहीं, बल्कि हमारी संस्कृति और संस्कारों की पहचान है। यह भारत की आत्मा को प्रतिबिम्बित करती है और हैं एक सूत्र में पिरोती है: पीएम नरेंद्र मोदी
हिंदी दिवस पर शायरी: Hindi Diwas Shayari
शायरी – 1
प्यार मोहब्बत भरा है जिसमें
जिससे जुड़ी हर आशा है
मिश्री से भी मीठी है
वो हमारी हिंदी भाषा है।
शायरी – 2
हिंदी को आगे बढ़ाना है,
उन्नति की राह पर ले जाना है
केवल एक दिन ही नहीं,
हमें नित हिंदी दिवस मनाना है !