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हिंदी दिवस पर कविता(hindi Diwas Par Kavita)


हिंदी दिवस पर कविता(hindi Diwas Par Kavita)


14 सितंबर को ‘हिन्दी दिवस’ मनाया जाता है। संवैधानिक रूप से हिंदी को राजभाषा का दर्जा प्राप्त है किंतु सरकारों ने उसे उसका प्रथम स्थान न देकर अन्यत्र धकेल दिया यह दुखदाई है। हिंदी को राजभाषा के रूप में देखना और हिंदी दिवस के रूप में उसका सम्मान करना भारत की सभी भाषाओं का सम्मान है जो हिंदी की सगी बहनों के समान है। क्योंकि भारत की सभी भाषाएं संस्कृत से उत्पन्न हुई हैं। और उन सब में संस्कृत की घनीभूत शब्दावली विद्यमान है। जो यह प्रमाणित करती है कि ये सभी भाषाएं संस्कृत से मौलिक रुप से संबंधित हैं। इन सभी भाषाओं में मूलभूत वर्ण संस्कृत से ही आए हैं। एक दो वर्ण जो जबरन इनमें डाले गए हैं वे ही अन्य भाषाओं से लिए गए हैं और वे भी हमारी पराधीनता की स्वीकार्यता के प्रभाव से। अन्यथा तो संस्कृत में न केवल वर्ण अक्षर बल्कि उसका व्याकरण आज भी इतना समृद्ध है कि संसार की कोई भी भाषा उसके बराबरी नहीं कर सकती। उसमें जो लकार(काल), उसमें जो धातुएं दी गई हैं, जिसके आधार पर यह एकमात्र भाषा है जो अपने उत्पन्न शब्दों को अर्थ प्रदान करती है और हजारों वर्षों तक उसे आप अपरिवर्तित रखने में दक्ष हैं ।धन्य है संस्कृत और उनकी पुत्रियांँ भारत की सभी भाषाएंँ।

यदि हिंदी का सम्मान होता है तो हिंदी भारत की सभी भाषाओं के साथ मिलजुल कर रहने के लिए स्वाभाविक और प्राकृतिक रूप से स्वीकार्य है। आप देखेंगे कि हिंदी की फिल्में पूरे भारत में उतने ही प्रेम से देखी जाती हैं। कविताएं और गीत उतने ही आनंद से गाए जाते हैं जितने दक्षिण के गीत और फिल्में भारत के अन्यत्र भागों में गाये, देखे और सुने जाते हैं। 

हम इस दिन से संबंधित कुछ कविताओं का यहां पठन करते हैं –

01

निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल

    

निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल

    बिन निज भाषा-ज्ञान के, मिटत न हिय को सूल।

    अंग्रेजी पढ़ि के जदपि, सब गुन होत प्रवीन

    पै निज भाषा-ज्ञान बिन, रहत हीन के हीन।

    उन्नति पूरी है तबहिं जब घर उन्नति होय

    निज शरीर उन्नति किये, रहत मूढ़ सब कोय।

    निज भाषा उन्नति बिना, कबहुं न ह्यैहैं सोय

    लाख उपाय अनेक यों भले करे किन कोय।

    इक भाषा इक जीव इक मति सब घर के लोग

    तबै बनत है सबन सों, मिटत मूढ़ता सोग।

    और एक अति लाभ यह, या में प्रगट लखात

    निज भाषा में कीजिए, जो विद्या की बात।

    तेहि सुनि पावै लाभ सब, बात सुनै जो कोय

    यह गुन भाषा और महं, कबहूं नाहीं होय।

    विविध कला शिक्षा अमित, ज्ञान अनेक प्रकार

    सब देसन से लै करहू, भाषा माहि प्रचार।

    भारत में सब भिन्न अति, ताहीं सों उत्पात

    विविध देस मतहू विविध, भाषा विविध लखात।

    सब मिल तासों छांड़ि कै, दूजे और उपाय

    उन्नति भाषा की करहु, अहो भ्रातगन आय।

(रचनाकार-    -भारतेंदु हरिश्चंद्र)

02

 अभिनंदन अपनी भाषा का

करते हैं तन-मन से वंदन, जन-गण-मन की अभिलाषा का

अभिनंदन अपनी संस्कृति का, आराधन अपनी भाषा का। 

यह अपनी शक्ति सर्जना के माथे की है चंदन रोली 

माँ के आँचल की छाया में हमने जो सीखी है बोली 

यह अपनी बँधी हुई अंजुरी ये अपने गंधित शब्द सुमन 

यह पूजन अपनी संस्कृति का यह अर्चन अपनी भाषा का। 

अपने रत्नाकर के रहते किसकी धारा के बीच बहें 

हम इतने निर्धन नहीं कि वाणी से औरों के ऋणी रहें 

इसमें प्रतिबिंबित है अतीत आकार ले रहा वर्तमान 

यह दर्शन अपनी संस्कृति का यह दर्पण अपनी भाषा का। 

यह ऊँचाई है तुलसी की यह सूर-सिंधु की गहराई 

टंकार चंद वरदाई की यह विद्यापति की पुरवाई 

जयशंकर की जयकार निराला का यह अपराजेय ओज 

यह गर्जन अपनी संस्कृति का यह गुंजन अपनी भाषा का।

(रचनाकार-  सोम ठाकुर)

03

हिंदी हमारी आन बान शान

हिंदी हमारी आन है, हिंदी हमारी शान है, 

हिंदी हमारी चेतना वाणी का शुभ वरदान है,  

हिंदी हमारी वर्तनी, हिंदी हमारा व्याकरण,  

हिंदी हमारी संस्कृति, हिंदी हमारा आचरण,  

हिंदी हमारी वेदना, हिंदी हमारा गान है,  

हिंदी हमारी आत्मा है, भावना का साज़ है,  

हिंदी हमारे देश की हर तोतली आवाज़ है,  

हिंदी हमारी अस्मिता, हिंदी हमारा मान है,  

हिंदी निराला, प्रेमचंद की लेखनी का गान है,  

हिंदी में बच्चन, पंत, दिनकर का मधुर संगीत है,  

हिंदी में तुलसी, सूर, मीरा जायसी की तान है,  

जब तक गगन में चांद, सूरज की लगी बिंदी रहे,  

तब तक वतन की राष्ट्र भाषा ये अमर हिंदी रहे,  

हिंदी हमारा शब्द, स्वर व्यंजन अमिट पहचान है,  

हिंदी हमारी चेतना वाणी का शुभ वरदान है।

(रचनाकार-    अंकित शुक्ला)

04

नूतन वर्षाभिनंदन

    नूतन का अभिनंदन हो

    प्रेम-पुलकमय जन-जन हो!

    नव-स्फूर्ति भर दे नव-चेतन

    टूट पड़ें जड़ता के बंधन;

    शुद्ध, स्वतंत्र वायुमंडल में

    निर्मल तन, निर्भय मन हो!

    प्रेम-पुलकमय जन-जन हो,

    नूतन का अभिनंदन हो!

    प्रति अंतर हो पुलकित-हुलसित

    प्रेम-दिए जल उठें सुवासित

    जीवन का क्षण-क्षण हो ज्योतित,

    शिवता का आराधन हो!

    प्रेम-पुलकमय प्रति जन हो,

    नूतन का अभिनंदन हो!

(रचनाकार-    -फणीश्वरनाथ रेणु)

05

कलम, आज उनकी जय बोल

    जला अस्थियां बारी-बारी

    चिटकाई जिनमें चिंगारी,

    जो चढ़ गये पुण्यवेदी पर

    लिए बिना गर्दन का मोल

    कलम, आज उनकी जय बोल।

    जो अगणित लघु दीप हमारे

    तूफानों में एक किनारे,

    जल-जलाकर बुझ गए किसी दिन

    मांगा नहीं स्नेह मुंह खोल

    कलम, आज उनकी जय बोल।

    पीकर जिनकी लाल शिखाएं

    उगल रही सौ लपट दिशाएं,

    जिनके सिंहनाद से सहमी

    धरती रही अभी तक डोल

    कलम, आज उनकी जय बोल।

    अंधा चकाचौंध का मारा

    क्या जाने इतिहास बेचारा,

    साखी हैं उनकी महिमा के

    सूर्य चन्द्र भूगोल खगोल

    कलम, आज उनकी जय बोल।

(रचनाकार-    -रामधारी सिंह ‘दिनकर’)

06

हिन्दी दिवस पर अटल बिहारी वाजपेयी की कविता

बनने चली विश्व भाषा जो

    बनने चली विश्व भाषा जो,

    अपने घर में दासी,

    सिंहासन पर अंग्रेजी है,

    लखकर दुनिया हांसी,

    लखकर दुनिया हांसी,

    हिन्दी दां बनते चपरासी,

    अफसर सारे अंग्रेजी मय,

    अवधी या मद्रासी,

    गूंजी हिन्दी विश्व में

    गूंजी हिन्दी विश्व में,

    स्वप्न हुआ साकार;

    राष्ट्र संघ के मंच से,

    हिन्दी का जयकार;

    हिन्दी का जयकार,

    हिन्दी हिन्दी में बोला;

    देख स्वभाषा-प्रेम,

    विश्व अचरज से डोला;

    कह कैदी कविराय,

    मेम की माया टूटी;

    भारत माता धन्य,

    स्नेह की सरिता फूटी!

(रचनाकार- अटल बिहारी वाजपेयी)

07

हिन्दी दिवस पर गिरिजा कुमार माथुर की कविता

         वह हिंदी है

    एक डोर में सबको जो है बाँधती

    वह हिंदी है,

    हर भाषा को सगी बहन जो मानती

    वह हिंदी है।

    भरी-पूरी हों सभी बोलियां

    यही कामना हिंदी है,

    गहरी हो पहचान आपसी

    यही साधना हिंदी है,

    सौत विदेशी रहे न रानी

    यही भावना हिंदी है।

    तत्सम, तद्भव, देश विदेशी

    सब रंगों को अपनाती,

    जैसे आप बोलना चाहें

    वही मधुर, वह मन भाती,

    नए अर्थ के रूप धारती

    हर प्रदेश की माटी पर,

    ‘खाली-पीली-बोम-मारती’

    बंबई की चौपाटी पर,

    चौरंगी से चली नवेली

    प्रीति-पियासी हिंदी है,

    बहुत-बहुत तुम हमको लगती

    ‘भालो-बाशी’, हिंदी है।

    उच्च वर्ग की प्रिय अंग्रेज़ी

    हिंदी जन की बोली है,

    वर्ग-भेद को ख़त्म करेगी

    हिंदी वह हमजोली है,

    सागर में मिलती धाराएँ

    हिंदी सबकी संगम है,

    शब्द, नाद, लिपि से भी आगे

    एक भरोसा अनुपम है,

    गंगा कावेरी की धारा

    साथ मिलाती हिंदी है,

    पूरब-पश्चिम/ कमल-पंखुरी

    सेतु बनाती हिंदी है।

    – गिरिजा कुमार माथुर

08

हिन्दी दिवस पर मैथिली शरण गुप्त की कविता है;

करो अपनी भाषा पर प्यार

    करो अपनी भाषा पर प्यार ।

    जिसके बिना मूक रहते तुम, रुकते सब व्यवहार ।।

    जिसमें पुत्र पिता कहता है, पतनी प्राणाधार,

    और प्रकट करते हो जिसमें तुम निज निखिल विचार ।

    बढ़ायो बस उसका विस्तार ।

    करो अपनी भाषा पर प्यार ।।

    भाषा विना व्यर्थ ही जाता ईश्वरीय भी ज्ञान,

    सब दानों से बहुत बड़ा है ईश्वर का यह दान ।

    असंख्यक हैं इसके उपकार ।

    करो अपनी भाषा पर प्यार ।।

    यही पूर्वजों का देती है तुमको ज्ञान-प्रसाद,

    और तुमहारा भी भविष्य को देगी शुभ संवाद ।

    बनाओ इसे गले का हार ।

    करो अपनी भाषा पर प्यार ।।

(रचनाकार-    -मैथिली शरण गुप्त)

09

हिन्दी दिवस पर देवमणि पांडेय की कविता-

हिंदी इस देश का गौरव है।

    हिंदी इस देश का गौरव है,

    हिंदी भविष्य की आशा है।

    हिंदी हर दिल की धड़कन है, हिंदी जनता की भाषा है।

    इसको कबीर ने अपनाया

    मीराबाई ने मान दिया।

    आज़ादी के दीवानों ने

    इस हिंदी को सम्मान दिया।

    जन जन ने अपनी वाणी से हिंदी का रूप तराशा है।

    हिंदी हर क्षेत्र में आगे है

    इसको अपनाकर नाम करें।

    हम देशभक्त कहलाएंगे

    जब हिंदी में सब काम करें।

    हिंदी चरित्र है भारत का, नैतिकता की परिभाषा है।

    हिंदी हम सब की ख़ुशहाली

    हिंदी विकास की रेखा है।

    हिंदी में ही इस धरती ने

    हर ख़्वाब सुनहरा देखा है।

    हिंदी हम सबका स्वाभिमान, यह जनता की अभिलाषा है।

(रचनाकार-    -देवमणि पांडेय)

10

विश्व हिंदी दिवस पर कविता 

“जय हिंदी” 

संस्कृत से जन्मी है हिन्दी,

शुद्धता का प्रतीक है हिन्दी ।

लेखन और वाणी दोनो को,

गौरान्वित करवाती हिन्दी ।

उच्च संस्कार, वियिता है हिन्दी,

सतमार्ग पर ले जाती हिन्दी ।

ज्ञान और व्याकरण की नदियाँ,

मिलकर सागर सोत्र बनाती हिन्दी ।

हमारी संस्कृति की पहचान है हिन्दी,

आदर और मान है हिन्दी ।

हमारे देश की गौरव भाषा,

एक उत्कृष्ट अहसास है हिन्दी ।।

रचनाकार–प्रतिभा गर्ग

11

कविता का उद्देश्य विश्व के समक्ष हिंदी भाषा का मजबूत पक्ष रखना है।

भाल का शृंगार

माँ भारती के भाल का शृंगार है हिंदी

हिंदोस्ताँ के बाग़ की बहार है हिंदी

घुट्टी के साथ घोल के माँ ने पिलाई थी

स्वर फूट पड़ रहा, वही मल्हार है हिंदी

तुलसी, कबीर, सूर औ’ रसखान के लिए

ब्रह्मा के कमंडल से बही धार है हिंदी

सिद्धांतों की बात से न होयगा भला

अपनाएँगे न रोज़ के व्यवहार में हिंदी

कश्ती फँसेगी जब कभी तूफ़ानी भँवर में

उस दिन करेगी पार, वो पतवार है हिंदी

माना कि रख दिया है संविधान में मगर

पन्नों के बीच आज तार-तार है हिंदी

सुन कर के तेरी आह ‘व्योम’ थरथरा रहा

वक्त आने पर बन जाएगी तलवार ये हिंदी

-डॉ जगदीश व्योम

12

“पुष्प की अभिलाषा” 

चाह नहीं, मैं सुरबाला के

गहनों में गूंथा जाऊं,

चाह नहीं प्रेमी-माला में बिंध

प्यारी को ललचाऊं,

चाह नहीं सम्राटों के शव पर

हे हरि डाला जाऊं,

चाह नहीं देवों के सिर पर

चढूं भाग्य पर इठलाऊं,

मुझे तोड़ लेना बनमाली,

उस पथ पर देना तुम फेंक

मातृ-भूमि पर शीश- चढ़ाने,

जिस पथ पर जावें वीर अनेक

-माखनलाल चतुर्वेदी

हिन्दी: भारतीय संविधान और राजभाषा की यात्रा”

राज-काज चलाने के लिए किसी-न-किसी भाषा की आवश्यकता पड़न है। वह भाषा राजभाषा कहलाती है। अपने समय में संस्कृत, पाली, महाराष्ट्रा, प्राकृ अथवा अपभ्रंश राजभाषा रही हैं। प्रमाणों से विदित होता है कि 11वीं से 15 शताब्दी ईसवी के दौरान राजस्थान में हिन्दी मिश्रित संस्कृत का प्रयोग होता था मुसलमान बादशाहों के शासन काल में मुहम्मद गौरी से लेकर अकबर के सम तक हिन्दी शासन-कार्य का माध्यम थी। अकबर के गृहमंत्री राजा टोडरमल से सरकारी कागजात फ़ारसी में लिखे जाने लगे। एक फारसीदान मुंशी क ने तीन सौ वर्ष तक फ़ारसी को शासन-कार्य का माध्यम बनाये रखा। मॅकाल आकर अंग्रेजी को प्रतिष्ठित किया। तब से उच्च स्तर पर अंग्रेजी और निम पर देशी भाषाएँ प्रयुक्त होती रहीं । हिन्दी प्रदेश में उर्दू प्रतिष्ठित रही, यद्यपि राजस्थान और मध्यप्रदेश के देशी राज्यों में हिन्दी माध्यम से सारा कामकाज होता रहा। राष्ट्र चेतना के विकास के साथ राजभाषा को राजपद दिलाने की माँग उठी । भारतेंदु हरिशचन्द्र,महर्षि दयानन्द सरस्वती, केशवचन्द्र सेन, लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक महामना मदन मोहन मालवीय, महात्मा गांधी, राजर्षि पुरुषोत्तम दास टंडन और से अन्य नेताओं और जनसाधारण ने अनुभव किया कि हमारे देश का राज-का हमारी ही भाषा में होना चाहिए और वह भाषा हिन्दी ही हो सकती है। हिन्दू सभी की सहोदरी है, यह सबसे बड़े क्षेत्र के लोगों की (42 प्रतिश से ऊपर जनता की) मातृभाषा है, हिन्दी प्रदेश के बाहर भी यह अधिकतर लोग की दूसरी या तीसरी भाषा है, हिन्दी संस्कृत की उत्तराधिकारी है और सभी भारती भाषाओं की अपेक्षा सरल है। इन विशेषताओं के कारण स्वतंत्रता प्राप्ति से पह ही हिन्दी को भारत की संपर्क भाषा के रूप में स्वीकार किया गया।

स्वतंत्रता के बाद राज्यसत्ता जनता के हाथ में आई । लोकतांत्रिक व्यवस्था में यह आवश्यक हो गया कि देश का राज-काज, लोक की भाषा में हो, अतः राजभाषा के रूप में हिन्दी को एकमत से स्वीकार किया गया। 14 सितम्बर, 1949 ई. को भारत के संविधान में हिन्दी को मान्यता प्रदान की गई। तब से राजकार्यों में इसके प्रयोग का विकासक्रम आरंभ होता है। संविधान के अनुच्छेद 343 के अनुसार संघ की राजभाषा हिन्दी और लिपि देवनागरी है। राजभाषा

‘राजभाषा’ से तात्पर्य है ‘सरकारी कामकाज के लिये प्रयुक्त भाषा’ राजभाषा शब्द अंग्रेजी के ऑफिशियल लैंग्वेज का पर्याय है। विधिक रूप में इस शब्द का प्रयोग स्वतंत्र भारत के संविधान में सर्वप्रथम किया गया। ‘राजभाषा’ की शब्दावली पारिभाषिक होने के साथ-साथ शासन से जुड़ी होती है। इसकी शब्दावली एकार्थक, निश्चित अर्थ में प्रयुक्त होने वाली और औपचारित होती है। यह आवश्यक नहीं है कि राजभाषा संबंधित राज्य की राष्ट्रभाषा भी हो। भारत के संविधान के अध्याय 17. अनुच्छेद 343 के द्वारा हिन्दी को ‘राजभाषा’ के रूप में स्वीकृत किया गया और इसी के साथ उसके विकास के लिए भी संविधान के अनुच्छेद 351 के अनुसार निर्देश दिये गए।

14 सितम्बर, 1949 को भारतीय संघ की राजभाषा के रूप में हिन्दी को स्वीकृत किये जाने का निर्णय संविधान सभा द्वारा लिया गया। संविधान सभा ने राजभाषा के संबंध में तीन मुख्य व्यवस्थायें की-

1. संघ की राजभाषा हिन्दी और लिपि देवनागरी होगी।

2. संविधान के प्रारंभ से पन्द्रह वर्षों की अवधि के लिए अंग्रेजी राजभाषा के रूप में चलती रहेगी।

3. हिन्दी के विकास के कारण अन्य भारतीय भाषाओं की उपेक्षा न हो।

संवैधानिक प्रावधान | राजभाषा विभाग | गृह मंत्रालय | भारत सरकार

राजभाषा की संवैधानिक स्थिति

i.अनुच्छेद 343 में ‘संघ की राजभाषा’ का उल्लेख है। 

ii.अनुच्छेद 344 में ‘राजभाषा के लिए आयोग और संसद की समिति’ का उल्लेख है।

iii. अनुच्छेद 345, 346, 347 में ‘प्रादेशिक भाषाएँ अर्थात् राज्य की राजभाषाएँ’ का उल्लेख है।

iv. अनुच्छेद 348 में ‘उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों में तथा विधायकों आदि की भाषा’ का उल्लेख है।

(HC+SC+LEGISLATURE=148)

v. अनुच्छेद 349 में ‘भाषा संबंधी कुछ विधियों को अधिनियमित करने के लिए। विशेष प्रक्रिया का उल्लेख है। 

vi.अनुच्छेद 350 में ‘व्यथा के निवारण के लिए प्रयुक्त भाषा प्राथमिकता पर मातृभाषा में शिक्षा की सुविधाएँ तथा भाषाई अल्पसंख्यक के लिए विशेष अधिकार।

vii. अनुच्छेद 351 में ‘हिन्दी के विकास के लिये निदेश’ आदि का उल्लेख है।

संविधान में राजभाषा के प्रावधान

1. संविधान के अनुच्छेद 120- इसके अनुसार संसद में हिन्दी अथवा अंग्रेजी भाषा में कार्य किया जा सकेगा। यदि कोई संसद सदस्य हिन्दी अथवा अंग्रेजी में अपने विचार व्यक्त नहीं कर सकता तो लोकसभा अध्यक्ष या राज्यसभा के सभापति की अनुमति से अपनी मातृभाषा में अपने विचार व्यक्त कर सकता है।

2. अनुच्छेद 210 – विभिन्न राज्यों के विधानमंडल हिन्दी अथवा अंग्रेजी में कार्य करेंगे। यथास्थिति लोकसभा अध्यक्ष या राज्यसभा के सभापति सदस्य को उसकी मातृभाषा में विचार व्यक्त करने की अनुमति दे सकता है।

3. अनुच्छेद 343- संघ की राजभाषा हिन्दी, लिपि देवनागरी तथा अंक भारतीय अंकों के अंतर्राष्ट्रीय रूप वाले होंगे। सरकारी कामकाज में अंग्रेजी का प्रयोग 15 वर्षों की अवधि तक किया जाता रहेगा, परंतु राष्ट्रपति इस अवधि के दौरान शासकीय प्रयोजनों में अंग्रेजो के साथ हिन्दी भाषा का प्रयोग अधिकृत कर सकेगा। 15 वर्षों की अवधि के पश्चात् विधि द्वारा अंग्रेजी भाषा अंकों के देवनागरी रूप में प्रयोग को उपबंधित कर सकती है।

4. अनुच्छेद 344- इसके अनुसार संविधान लागू होने के पाँच एवं दस वर्ष की समाप्ति पर राष्ट्रपति आदेश द्वारा राजभाषा आयोग का गठन करेंगे। यह आयोग हिन्दी के उत्तरोत्तर प्रयोग आदि की सिफारिश करेगा। संसदीय राजभाषा समिति का गठन किया जायेगा। इस समिति में लोकसभा बीस सदस्य और राज्यसभा के दस सदस्य होंगे। यह समिति राजभाषा आयोग की सिफारिशों के बारे में राष्ट्रपति को अपनी रिपोर्ट देगी।

5. अनुच्छेद 345- किसी राज्य का विधान मंडल विधि द्वारा उस राज्य की किसी एक अथवा अन्य भाषाओं को अपनी राजभाषा के रूप में स्वीकार कर सकता है।

6. अनुच्छेद 346- किसी एक या दूसरे राज्य और संघ के बीच में संचार की भाषा राजभाषा होगी।

7. अनुच्छेद 347- किसी राज्य की जनसंख्या का पर्याप्त भाग यह चाहता है कि उनके द्वारा बोली जाने को शासकीय मान्यता दी जाये तो राष्ट्रपति वैसा करने के लिए संबंधित राज्य को आदेश दे सकते हैं।

8. अनुच्छेद 348- जब तक संसद विधि द्वारा उपबंध न करे तब तक उच्चतम न्यायालय तथा उच्च न्यायालय की सभी कार्यवाहियाँ अंग्रेजी भाषा में होंगी। संसद एवं राज्यों के विधान-मंडलों में पारित विधेयक राष्ट्रपति एवं राज्यपालों द्वारा जारी सभी अध्यादेश, आदेश विनिमय, नियम आदि सबके प्राधिकृत पाठ भी अंग्रेजी भाषा में ही माना जायेगा।

9. अनुच्छेद 349- संविधान लागू होने के 15 वर्षों की अवधि तक अंग्रेजी के अलावा किसी भी दूसरी भाषा का प्राधिकृत पाठ नहीं माना जायेगा। किसी अन्य भाषा के प्राधिकृत पाठ हेतु भाषा आयोग तथा सिफारिशों की गठित रिपोर्ट पर विचार करने के पश्चात् राष्ट्रपति अपनी स्वीकृति प्रदान कर सकता है।

10. अनुच्छेद 350- शिकायत निवारण के लिये कोई भी व्यक्ति किसी भी अधिकारी या प्राधिकारी को संघ अथवा राज्य में प्रयुक्त किसी भी भाषा में अपना अभिवेदन दे सकता 1

11. अनुच्छेद 351- इसके अंतर्गत हिन्दी भाषा की प्रसार वृद्धि तथा विकास करना भारत की सामासिक संस्कृति को विकसित करना, हिन्दी को भारतीय तथा अन्य से जोड़कर उसका दायरा विस्तृत करना संघ का उद्देश्य होगा ।

राजभाषा नियम 1976 की विशिष्टताएँ

1. राजभाषा नियम 1976 के अंतर्गत कुल बारह नियम बनाये गये। तमिलनाडु राज्य को छोड़कर देश के अन्य सभी राज्यों पर समान रूप से ये नियम लागू होते हैं।

2. हिन्दी के प्रगामी प्रयोग को प्रभावी ढंग से लागू करने के उद्देश्य से पूरे भारत को तीन क्षेत्रों में बाँटा गया है-

क्षेत्र क-

समस्त हिन्दी भाषी राज्य एवं संघ राज्यक्षेत्र (बिहार, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, मध्यप्रदेश, राजस्थान, उत्तरप्रदेश, दिल्ली अंडमान निकोबार द्वीप समूह ) एव

क्षेत्र ख-

गुजरात, महाराष्ट्र तथा पंजाब, चंडीगढ़ इसके अंतर्गत वे राज्य तथा संघ राज्यक्षेत्र आते हैं जो से ‘क’ और ‘ख’ के अंतर्गत नहीं आते।

क्षेत्र ग-

3. राजभाषा नियम 1976 में हिन्दी पत्राचार के संबंध में स्पष्ट दिशा-निर्देश दिये गये हैं ।

4. राजभाषा नियम 1976 के नियम 5 के अंतर्गत प्रावधान है कि व्यक्तिगत अथवा राज्य द्वारा हिन्दी में भेजे गये पत्रों का जवाब हिन्दी में ही अनिवार्य रूप से देना होगा।

5. कोई भी कर्मचारी हिन्दी या अंग्रेजी में अभ्यावेदन कर सकता है।

6. नियम 5 के अंतर्गत यह प्रावधान किया गया है कि सरकारी कार्यालय में जारी होने वाले परिपत्र, प्रशासनिक रिपोर्ट, कार्यालय आदेश, अधिसूचना, करार, संधियों, विज्ञापन तथा निविदा सूचना आदि अनिवार्य रूप से हिन्दी- अंग्रेजी द्विभाषी रूप से जारी किये जायेंगे ।

7. केन्द्रीय सरकार के अधिकारी या कर्मचारी फाइलों में टिप्पणी केवल हिन्दी या अंग्रेजी में लिख सकते हैं। किसी अन्य भाषा में वे उसका अनुवाद प्रस्तुत नहीं कर सकते।

8. राजभाषा नियम 1976 के नियम 12 के अनुसार केन्द्रीय सरकार के कार्यालय के प्रशासनिक प्रधान का यह उत्तरदायित्व होगा कि वह सुनिश्चित करें दि राजभाषा अधिनियम एवं राजभाषा नियमों के उपबंधों का समुचित पालन किया जा रहा है और इसके सुनिश्चित पालन के लिए प्रभावकारी जाँच बिर निर्धारित करे ।

9. संक्षेप में कहा जा सकता है कि राजभाषा नियम 1976 से राजभाषा हिन्दी प्रगामी प्रयोग में काफी मात्रा में गति आई तथा केन्द्रीय सरकार के कर्मचारिय को भी हिन्दी में कामकाज करने में निश्चित रूप से प्रोत्साहन मिला।


Google Questions & Answers

प्रश्न -हिंदी दिवस कब मनाया जाता है ?

उत्तर -हिंदी दिवस 14 सितंबर को मनाया जाता है।

प्रश्न -हिंदी दिवस पर 10 लाइन ,

उत्तर – हमें अपनी भाषा से प्रेम करना चाहिए क्योंकि हम जब अपनी भाषा बोलते हैं तो हम बहुत सहज रहकर सरलता से अपनी बात दूसरों तक पहुंचा सकते हैं। उसके बिना हम किसी मूक प्राणी की तरह हो जाते हैं और हमारे सारे व्यवहार रुक जाते हैं। हम अपनी मातृभाषा में ही अपने मूलभूत विचारों को अच्छी तरह से प्रकट कर सकते हैं। हम अपनी कोई भी बात अपनी मातृभाषा में ही ठीक तरह से बोल सकते हैं। हमारी मातृभाषा में हमारी संस्कृति और सभ्यता समाहित होती है अतः हम हमारी संस्कृति की भी उसे रक्षा कर लेते हैं। हम अपनी भाषा के द्वारा हमारी नई पीढ़ी को भी हमारी सांस्कृतिक विरासत पहुंचा देते हैं। 

  प्रश्न -हिंदी दिवस पर कविता 10 लाइन ,

उत्तर –   हिन्दी दिवस पर मैथिली शरण गुप्त की कविता है;

करो अपनी भाषा पर प्यार ।

करो अपनी भाषा पर प्यार ।

    जिसके बिना मूक रहते तुम, रुकते सब व्यवहार ।।

    जिसमें पुत्र पिता कहता है, पतनी प्राणाधार,

    और प्रकट करते हो जिसमें तुम निज निखिल विचार ।

    बढ़ायो बस उसका विस्तार ।

    करो अपनी भाषा पर प्यार ।।

    भाषा विना व्यर्थ ही जाता ईश्वरीय भी ज्ञान,

    सब दानों से बहुत बड़ा है ईश्वर का यह दान ।

    असंख्यक हैं इसके उपकार ।

    करो अपनी भाषा पर प्यार ।।

प्रश्न -हिंदी दिवस क्यों मनाया जाता है ,

उत्तर – हिंदी हमारी राजभाषा, राष्ट्रभाषा, संपर्क भाषा और आपसी व्यवहार की भी भाषा है।  वह हमारी साहित्यिक और सांस्कृतिक  के साथ-साथ तकनीकी भाषा भी बन रही है। अतः उसके सम्मान में हिंदी दिवस 14 सितंबर को मनाया जाता है। क्योंकि भाषा के बिना हम कोई भी व्यवहार नहीं कर सकते। 14 सितंबर 1949 को भारतीय संविधान सभा ने हिंदी को देवनागरी लिपि में भारत की राजभाषा के रूप में स्वीकार किया। अतः 1953 से हर वर्ष 14 सितंबर को हिंदी दिवस के रूप में मनाया जाता है।

प्रश्न -विश्व हिंदी दिवस कब मनाया जाता है ,

उत्तर – विश्व हिंदी दिवस 10 जनवरी को मनाया जाता है। प्रथम विश्व हिंदी दिवस का आयोजन 10 जनवरी 1974 को नागपुर, महाराष्ट्र में किया गया था। इसके मनाने का मुख्य उद्देश्य हिंदी के प्रति सम्मान व्यक्त करते हुए इसे विश्व प्रसिद्ध एक सम्मानित भाषा के रूप में दर्जा दिलाने के लिए इसे मनाया जाता है । संकल्प लिया जाता है। भारत के दूतावास जो दुनिया भर में फैले हुए हैं सभी देशों में उनमें विभिन्न प्रकार के कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं और वहां पर हिंदी का प्रचार प्रसार किया जाता है। 

हिंदी दिवस कोट्स  :  Hindi Diwas Quotes 

क्वोट (Hindi Diwas Quote) -01 

हिंदी है भारत की आशा 

हिंदी है भारत की भाषा 

हिंदी दिवस पर आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएं। 

क्वोट (Hindi Diwas Quote) – 02 

भारत मां के भाल पर सजी स्वर्णिम बिंदी हूं, 

मैं भारत की बेटी आपकी अपनी हिंदी हूं। 

क्वोट (Hindi Diwas Quote) – 03 

अपने वतन की सबसे प्यारी भाषा 

हिंदी जगत की सबसे न्यारी भाषा 

क्वोट (Hindi Diwas Quote) – 04 

भारत देश की आशा है, हिंदी अपनी भाषा है, 

जात-पात के बंधन को तोड़े, हिंदी सारे देश को जोड़े। 

क्वोट (Hindi Diwas Quote) – 05 

अभिव्यक्ति की खान है, भारत का अभिमान है, 

हिंदी दिवस हिंदी भाषा के लिए एक अभियान है! 

क्वोट (Hindi Diwas Quote) – 06 

विविधताओं से भरे इस देश में लगी भाषाओं की फुलवारी है, 

इनमें हमको सबसे प्यारी हिंदी मातृभाषा हमारी है। 

क्वोट (Hindi Diwas Quote) – 07 

हिंदी दिवस पर हमने ठाना है 

लोगों में हिंदी का स्वाभिमान जगाना है, 

हम सब का अभिमान है हिंदी 

भारत देश की शान है हिंदी। 

क्वोट (Hindi Diwas Quote) – 08 

हिंदी को आगे बढ़ाना है, 

उन्नति की राह पर ले जाना है, 

केवल एक दिन ही नहीं, 

हमें नित हिंदी दिवस मनाना है, 

हिंदी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं! 

क्वोट (Hindi Diwas Quote) – 09 

ज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल: भारतेंदु हरिश्चंद्र

क्वोट (Hindi Diwas Quote) – 10 

हिंदी हमारे देश और भाषा की प्रभावशाली विरासत है: माखनलाल चतुर्वेदी

क्वोट (Hindi Diwas Quote) – 11 

हिंदी पढ़ना और पढ़ाना हमारा कर्तव्य है। उसे हम सबको अपनाना है: लाल बहादुर शास्त्री

क्वोट (Hindi Diwas Quote)  – 12 

हिंदी भाषा वह नदी है जो साहित्य, संस्कृति और समाज को एक साथ बहा ले जाती है: रामधारी सिंह दिनकर

क्वोट (Hindi Diwas Quote) – 13 

जिस देश को अपनी भाषा और साहित्य के गर्व का अनुभव नहीं है, वह उन्नत नहीं हो सकता: डॉ राजेंद्र प्रसाद

क्वोट (Hindi Diwas Quote) – 14

हम सब का अभिमान हैं हिन्‍दी 

भारत देश की शान हैं हिन्‍दी 

क्वोट (Hindi Diwas Quote) – 15 

हिंदी को जीवन की भाषा बनाओ। यह केवल बोलचाल की भाषा नहीं, बल्कि विचारों की अभिव्यक्ति की भाषा है: मुंशी प्रेमचंद

क्वोट (Hindi Diwas Quote) – 16 

मैं दुनिया की सभी भाषाओं की इज्जत करता हूं, पर मेरे देश में हिंदी की इज्जत न हो, ये मैं सह नहीं सकता: आचार्य विनोबा भावे

क्वोट (Hindi Diwas Quote) – 17 

राष्ट्रभाषा के बिना राष्ट्र गूंगा हो जाता है। हिंदी ही एक ऐसी भाषा है जो पूरे देश को एक सूत्र में बांधने की क्षमता रखती है: महात्मा गांधी

क्वोट (Hindi Diwas Quote) – 18 

हिंदी उन सभी गुणों से अलंकृत है, जिनके बल पर वह विश्व की साहित्यिक भाषा की अगली श्रेणी में समासीन हो सकती है: मैथिलीशरण गुप्त

क्वोट (Hindi Diwas Quote) – 19 

हिंदी केवल एक भाषा नहीं, बल्कि हमारी संस्कृति और संस्कारों की पहचान है। यह भारत की आत्मा को प्रतिबिम्बित करती है और हैं एक सूत्र में पिरोती है: पीएम नरेंद्र मोदी

हिंदी दिवस पर शायरी: Hindi Diwas Shayari 

 शायरी – 1 

प्यार मोहब्बत भरा है जिसमें 

जिससे जुड़ी हर आशा है 

मिश्री से भी मीठी है 

वो हमारी हिंदी भाषा है। 

शायरी – 2 

हिंदी को आगे बढ़ाना है, 

उन्नति की राह पर ले जाना है 

केवल एक दिन ही नहीं, 

हमें नित हिंदी दिवस मनाना है ! 

कैदी और कोकिला/

पं.माखनलाल चतुर्वेदी 


कैदी और कोकिला

16

क्या? घुस जायेगा रुदन तुम्हारा निःश्वासों के द्वारा, कोकिल बोलो तो ! और सवेरे हो जायेगा उलट-पुलट जग सारा, कोकिल बोलो तो !

प्रसंग और संदर्भ-

प्रस्तुत कविता ‘कैदी और कोकिला’ प्रसिद्ध राष्ट्रवादी कवि माखन लाल चतुर्वेदी के कविता-संग्रह ‘हिमकिरीटिनी’ से ली गयी है। कवि ने इस कविता की रचना उस समय की थी जब देश पराधीनता की बेड़ियों में जकड़ा हुआ था। कवि को स्वयं भी आजादी के आंदोलनों में जेल जाना पड़ा था। इसलिए कहा जा सकता है कि यह कविता कवि ने स्वयं के जेल अनुभव से प्रेरित होकर लिखी है। जेल में प्रताड़ना और दुर्व्यवहार का चित्रण करके जनता के सामने प्रस्तुत करना और कोयल के माध्यम से लोगों में आजादी की चेतना पैदा करना इस कविता का उद्देश्य प्रतीत होता है।

कविता का वाचक स्वतंत्रता सेनानी है। गोरी हुकूमत ने उसे कैद कर दिया है। रात का समय है, चारों तरफ अंधेरा है और खामोशी छायी हुई है। ऐसे में कोयल का बोलना सुन कर कैदी अर्थात स्वतंत्रता सेनानी के मन में प्रश्न उठता है कि आखिर इतनी रात में कोयल के बोलने का क्या कारण हो सकता है? क्या वह कोई शुभ या अशुभ सूचना लाई है? इस प्रश्न का उत्तर पाने के लिए वह कोयल से इतनी रात में गाने का कारण पूछने लगता है। कविता अपने आप में, कोयल से पूछी गयी, एक प्रश्न माला है। वास्तव में कोयल काव्य-प्रतीक है, जिसे माध्यम बनाकर कवि नें देशवासियों के मन में राष्ट्रीयता की भावना को जगाने का सार्थक प्रयास किया है।

विशेष-

यह कविता राष्ट्रप्रेम की भावना से प्रेरित हो कर लिखी गयी है। कोयल का इस कविता में बड़े ही सुंदर ढंग से मानवीकरण हुआ है। रूपक और उपमा अलंकार के प्रयोग से काव्य सौंदर्य बहुत आकर्षक बन गया है। इस कविता से हमें आजादी के आंदोलन के समय देश के युवाओं में प्रवाहित देश प्रेम और त्याग बलिदान की भावना का अनुमान होता है।

कठिन शब्द

कोकिल-कोयल, रह-रह जाना-कुछ कहने की इच्छा के साथ रूक जाना, बटमार-लुटेरे, प्रभाव असर, तम-अंधेरा, हिमकर-चंद्रमा, कालिमा मई-काली अंधेरी, आली-सखी, वेदना कष्ट, दर्द, हूक-दर्द भरी टीस, मृदुल कोमल, मीठा, वैभव-समृद्धि, ऐश्वर्य, बावली-पगली, दावानल जंगल की आग, ज्वालायें-लपटें, दीखीं-दिखाई दीं, चर्रक चर्रक चर्र चर्र की आवाज, तान-मधुर आवाज, गान-गीत, अकड़ ऐंठ, सख्ती, मोट-कुएं से पानी खींचने का चरसा, गजबढ़ाना-उपद्रव या आतंक, करूणा-दया, बेधना-काटना, छेद करना, विद्रोह-बीज-विरोध की शुरूआत, रजनी-रात, करनी-क्रिया कलाप, व्यवहार, कल्पना-विचार, शैली, भावना, सोच, कालकोठरी-जेल की कोठरी जिसमें गम्भीर अपराधी बंदी बनाये जाते हैं, कमली कम्बल, लौह श्रृंखला-लोहे की जंजीर, हुंकृति हुंकार, व्याली-सांपिन, संकट-सागर-संकटों या दुखों का समुद्र, कभी न खत्म होने वाला दुख, मदमाती- मस्ती से भरी हुई, नशे में चूर, तैराती यादों में लाती, नसीब-भाग्य, तकदीर, गुनाह-पाप, विषमता – अंतर, भेद, रणभेरी-युद्ध के समय बजाया जानेवाला नगाड़ा, कृति-रचना, व्रत-संकल्प, आसव-मदिरा, नभ-भर-पूरा आकाश, वाह कहावें-प्रशंसा पावें

व्याख्या-

1. कविता के पहले बंद में कैदी के माध्यम से कवि कोयल से पूछता है-हे कोयल ! तुम क्या गा रही हो? गाते-गाते कभी चुप हो जाती हो! आखिर बात क्या है? क्या कोई संदेश लेकर आई हो? कुछ बोलती क्यों नहीं! अगर कोई संदेश लेकर आई हो तो बताओ ! बोलते-बोलते चुप क्यों हो जाती हो? और यह भी तो बताओ कि यह संदेश तुम्हें कहां से मिला है? कुछ तो बोलो!

2. दूसरे बंद में कवि जेल की यातनाओं के वर्णन के बहाने अंग्रेजों के अत्याचार को सबके सामने प्रस्तुत किया गया है। कवि अर्थात बंदी कहता है कि जेल की दीवारें काली और ऊंची हैं। इसके घेरे में तरह तरह के चोर बटमार, लुटेरे, डाकू रहते हैं। यहां पेट भर भोजन के लिए तरस जाना पडता है। हालत यह है कि न जीने दिया जाता है न मरने। तड़प कर रह जाना पडता है। यहाँ आजादी नाम की चीज ही नहीं है। हर समय कड़े पहरे में जीवन बिताना पडता है। पता नहीं यह कैसा शासन है कि सब तरफ उत्पीड़न का अंधकार ही अंधकार है। चंद्रमा भी कहीं चला गया है। धरती से आसमान तक सब जगह निराशा का अंधकार छाया हुआ है। उम्मीद की कहीं कोई रोशनी नहीं है और रात भी भयानक रूप से काली है। कैदी के माध्यम से कवि पूछता है कि हे कोयल ! इस कालिमाम रात में तू क्यों जाग रही हो? तुम्हारे जागने का प्रयोजन क्या है?

3. कविता के तीसरे बंद में कोयल के स्वर में बहुत गहरी वेदना है। इस वेदना में पराधीन भारत की वेदना की तरफ संकेत किया गया है। जेल में बंद स्वतंत्रता सेनानी को लगता है कि कोयल ने अंग्रेज सरकार द्वारा किये जाने वाले अत्याचार को देख लिया है। इसीलिए उसके कंठ से वेदना का स्वर सुनाई पड़ रहा है। कोयल की कुहुक दर्दीली हूक में बदल गयी है। कैदी को लगता है कि कोयल अपनी वेदना सुनाना चाहती है। इसलिए पूछता है, तुम्हें किस बात की चिंता है? किस वेदना के बोझ से कराह रही हो? कुछ बोल क्यों नहीं रही हो? कैदी सोचता है कि कोयल शायद उसके दर्द को समझ रही है, इसलिए उसके मुख से वेदना का स्वर फूट रहा है। वह कोयल से पूछना चाहता है कि मेरी आजादी की तरह क्या तुम्हारा भी कुछ लुट गया है? तुम्हारी मीठी आवाज, जिसके वैभव की तुम स्वामिनी हो, लगता है किसी दुख के कारण कहीं गुम हो गयी है। तुम्हारी बोली में मिठास नहीं है। ऐसा कौन सा दुःख का पहाड़ तुम पर टूट पड़ा है? मुझे भी तो बताओ !

4. इस बंद में जेल के भीतर रात के वातावरण का वर्णन किया गया है। बंदी कोयल से कहता है, इस रात में यहां तुम क्या सुनने आई हो? ये जो तुम्हें घर्र-धर्र की आवाजें सुनाई दे रही हैं, सो रहे बंदियों की स्वांसो की आवाजें हैं। रात में यहां तुम्हें तरह-तरह की आवाजें सुनाई देंगी यातनाओं के दर्द से रो रहे कैदियों की सिसकियों की आवाजें, जेल के भारी भरकम लोहे के फाटक के खुलने बंद होने की आवाजें, सिपाहियों के बूटों की आवाजें, संत्रियों की आवाजें, कैदियों की गिनती के समय एक दो तीन चार की आवाजें। हे कोयल ! जेल की भयावनी रात में, जब हमारे दोनों नेत्रों की प्याली आंसुओं से भरी हुई है, तुम असमय अपना मधुर गाना सुनाने क्यों चली आई हो। दुख की इस मानसिकता में तुम्हारा यह मधुर गान बिल्कुल बेसुरा लग रहा है।

5. पांचवे बंद में सेनानी कैदी को इतनी रात में कोयल का चीखना बड़ा अजीब लग रहा है, इसलिए वह कोयल से पूछता है कि क्या तुम बावली हो गयी हो जो आधी रात को इस तरह चीख रही हो? आखिर तुम्हें हुआ क्या है? आधी रात के सन्नाटे में क्यों चीख रही हो? तुम्हारा इस तरह आधी रात में चीखना मुझे आशंकित कर रहा है। कहीं तुमने जंगल में लगी आग तो नहीं देख लिया है? हे कोयल ! कुछ तो बोलो!! यहां कवि ने जंगल की आग के बहाने कहना चाहा है कि कोयल ने अंग्रेजी हुकूमत के अत्याचारों से जनता में मची चीख पुकार देख लिया है।

6. कैदी कोयल से पूछता है कि हे कोयल ! कहीं ऐसा तो नहीं कि कारागार की भयावहता से क्लांत सेनानी कैदियों के घायल हृदय की पीड़ा को अपने मधुर गीत के अमृत से शांत करने आई हो? या अपने गीत से पेड़ों और हवाओं और जेल की ऊंची दीवारों, की बाधाओं को चीर कर तुम अपनी ताकत आजमाना चाहती हो? यहां कवि संकेतों में कोयल के माध्यम से कहना चाहता है कि जेल की दीवारें भी साहसी सेनानियों के लिए अभेद्य नहीं हैं। गुलामी जितनी भी कड़ी हो, जैसे कोयल अपने हठ से जेल की अलंघ्य दीवारों और पेड़ों की बाधाओं को पार कर अपनी आवाज से जेल को गुंजायमान कर सकती है, वैसे ही गुलामी की कठोर बेड़ियां भी तोड़ी जा सकती हैं। आगे कैदी पूछता है कि कहीं ऐसा तो नहीं कि हमारी आंखों में भरे आंसू अर्थात हमारी पीड़ाओं का शमन करने के लिए, तुमने जेल के ऊंचे टावरों पर जलते हुए गुलामी के दीपों को बुझाने का प्रण कर लिया है? कोयल ! ये दीप तो अंधकार को नष्ट करने के लिए लगाये गये हैं ताकि जेल (अंग्रेज सरकार) की रखवाली किया जा सके ! तुम्हें क्या नभ के इन जलते हुए दीपों (अंग्रेजी सरकार के बने रहने) की शोभा अच्छी नहीं लगती है? अर्थात क्या तुम अंग्रेजो का राज मिटाना चाहती हो?

7. यहाँ कैदी कोयल से कहता है कि हे कोयल ! तुम्हें लोग इसलिए प्यार करते हैं कि तुम रोज प्रातःकाल सूरज की किरणों के साथ ही अपनी मीठी धुन से सारे संसार को जगाती हो। लेकिन आज इस काली अंधेरी रात में क्यों जगा रही हो? क्या तुम सचमुच ही मतवाली हो गयी हो? बोलो! बताओ !

8. इस बंद का काव्य सौंदर्य बड़ा ही मोहक है। इसमें छायावादी बिम्बों और उपमाओं का सघन प्रयोग दिखता है। कवि इस बंद में प्रकाश की किरणों पर कोयल के गीतों को चमकते हुए देखता है। कहता है-हे कोयल ! मैंने, पृथ्वी पर उगी हरी-हरी दूबों पर पड़ी ओस की बूंदों को सुखाती, विन्ध्या के झरनों पर मोती बिखेरती, गगन ऊँचे-ऊँचे पेड़ों वाले वनों और पूरे ब्रहमाण्ड को झकझोर देने वाली हवाओं पर अठखेलियां करती प्रातः कालीन किरणों पर तुम्हारे गीतों को थिरकते हुए देखा है।

9. कैदी के माध्यम से कवि कहता है कि हे कोयल ! मीठे गान सुना कर संसार का मन प्रसन्न करना तुम्हारा स्वभाव है। मुश्किल समयों में भी तुम अपना स्वभाव नहीं छोड़ती। फिर ऐसा क्यों है कि तुम इस काली रात में, जेल की दीवारों के भीतर जल रहे दीप को बुझाना चाहती हो? इसका सर्वनाश करना चाहती हो? अंधकार के पत्तों पर अपनी चमकीली तानें लिखने की तुम्हारी विवशता का क्या कारण है? अर्थात गुलामी के अंधकार को क्यों मिटाना चाहती हो?

10. कैदी कोयल से पूछता है- क्या हमें इन जंजीरों में जकड़े देखना तुम्हें सह नहीं लग रहा? फिर स्वयं ही कोयल को समझाते हुए कहता है कि अरे! ये हथकड़ियां नहीं हैं, ये तो हम सेनानियों को ब्रिटिश राज का दिया आभूषण है। हम सेनानियों को गुलाम देश में यही शोभा देता है। और कोल्हूं का यह चर्रक चूं? यह तो अब हमारे जीवन की लय बन चुका है-प्रेरणा का संगीत। यातनाओं के कोल्हूं में पिसते रहना ही हम सेनानियों के जीवन का यथार्थ है। पत्थर तोड़ते-तोड़ते हमारी उंगलियां उन्हीं पत्थरों पर भारत माता की आजादी का गाना लिखने लगती है। हम पेट पर ‘मोट’ का जुआं बांध कर ब्रिटिश राज की अकड़ के कुंए को खाली कर रहे हैं। अर्थात इतनी यातनायें सहकर हम ब्रिटिश राज की अकड़ ढीली कर रहे हैं। हमारे अंदर यातनाओं को सहने का गजब का धैर्य है। हम नहीं चाहते कि हमारी यातना देख लोगों के भीतर करूणा का संचार हो, लोगों की आंख में आंसू आये। परन्तु इतनी रात में तुम्हारी वेदना भरी चीख से मेरा मन विदीर्ण हो रहा है।

11. इन पंक्तियों में कवि कोयल को संबोधित करते हुए कहता है कि वातावरण में सन्नाटा पसरा है, चारों ओर अंधकार फैला हुआ है। तुम्हारी रूलाई इस अंधकार को बेध रही है। मगर यह तो बताओ कि तुम रो क्यों रही हो? ब्रिटिश शासन के विरुद्ध विद्रोह का मधुर-बीज क्यों बो रही हों? क्या तुम भी स्वतंत्रता सेनानियों की तरह देशभक्ति का व्रिदोह-बीज बोना चाहती हो?

12. इस बंद में जेल में सेनानियों के साथ हो रहे उत्पीड़न का वर्णन है। कवि कोयल से कह रहा है कि देखो! तू भी काली है और ये दुखों की रात भी काली है। हम जिस कोठरी में रहते हैं, वह भी काली है और आस-पास चलने वाली हवा के साथ-साथ यहाँ से मुक्ति पाने की हमारी कल्पना काली है। अंग्रेजी सरकार की करतूतें काली है। जेल की दीवारें काली हैं। इन दीवारों के भीतर की हवा काली है, मेरी ये टोपी काली है और जो कम्बल मैं ओढ़ता हूँ वह भी काला है। जिन जंजीरों में मुझे बांधा गया है, वह भी काली है। दिन-रात कठोर यातनायें सहने के अलावा पहरेदारों की गाली भी सुनना पड़ता है। यह डांट और गाली किसी काले सांप की तरह हमें डंसने को दौड़ती हैं।

13. यहां कवि कोयल को संबोधित करते हुए कहता हैं ऐसा क्यों है कि यहां अपार संकट सामने खड़ा है और तुम मरने को उद्यत दिखाई देती हो ! तुम तो स्वतंत्र हो, फिर आधी रात में जेल रूपी संकट के सागर पर आशा और उत्साह से भरपूर अपने चमकीले गीतों को क्यों तैरा रही हो? अर्थात जेल के इस उदास सन्नाटे में स्वतंत्रता की भावना जागृत करने वाले मदमस्त करने वाले गीत क्यूँ गाए जा रही हो? कारागार के समीप घूम-फिरकर ओज-तेज का संचार क्यों कर रही हो? हे कोयल ! कुछ तो बोलो।

14. कवि कहता है कि हे कोयल ! तू मैना जैसी बंदिनी नहीं है, तुम्हारा पालन किसी सोने के पिंजरे में नहीं हुआ है, कोई तुझे कुछ खिलाता भी नहीं है, तूम न तो तोता हो न तूती, तुम हर तरह से आजाद हो, एक सेनानी की तरह तुम्हारा जीवन भी युद्ध भूमि के समान है- सब तरफ संघर्षो से घिरा हुआ। तुम्हारी बोली किसी शंखनाद से कम नहीं है। कोकिला और सेनानी की तुलना करके कवि ने दोनों को समतुल्य बना दिया है।

15. इस बंद में कैदी कोयल से पूछता है कि तुम कहां से आवाज दे रही हो! जेल की दीवारों के उस पार से या भीतर से? अपना हृदय टटोल कर बताओं कि वास्तव में तुम हो कहां (अर्थात तुम किसे जाग्रत करना चाहती हो, सेनानियों को या अंग्रेजों को)। तुमकाली जरूर हो लेकिन तुम्हारा त्याग बहुत धवल है। काली होने के बावजूद आर्यों के इस देश में तुम पूजनीय हो। हे कोयल ! कुछ बोलती क्यों नहीं ?

16. इस पद में हर तरह से आजाद कोयल एवं बेड़ियों में जकड़े कैदी की मनःस्थिति की तुलना बड़े ही मार्मिक ढंग से की गयी है। कोयल को संबोधित करते हुए कवि कहता कि हे कोयल ! तुम पूरी तरह आजाद हो, तुम्हें हरी भरी डालियों पर बसेरा बनाने की छूट है, पूरा आसमान तुम्हारा है, जहां, जब चाहो जा सकती हो। तुम्हारे गीतों पर लोग खुश होकर तालियां बजाते हैं। वाह-वाह ! करते हैं। इधर हम कैदियों का रोना कराहना सुनने के लिए कोई तैयार ही नहीं है। तुम कहीं पर भी विचरण कर सकती हो और मनचाहे गीत गा सकती हो। लेकिन हमें, हमेशा अंधकार से भरी, 10 फुट की छोटी सी कोठरी में रहना पड़ता है। अपनी इच्छानुसार कुछ भी नहीं कर सकना यहां असंभव है। हमारे और तुम्हारे जीवन में जमीन आसमान का फर्क है, तुम्हें आजादी ही आजादी है, जब कि मेरे भाग्य में अंधकार से भरी रात है। समझ में नहीं आता कि युद्ध का यह राग क्यों गाये जा रही हो? इस रहस्यमय ढंग से तुम्हारे गाने का आशय क्या है? मुझे बताओ कोयल !

17. कवि कोयल की पुकार पर कुछ भी करने को तैयार है। कोयल से कहता है, हे कोयल ! बताओ अपनी कृति से और क्या कर दूं। मोहन यहां मोहनदास करमचंद गांधी के लिए प्रयोग किया गया है। मोहन के व्रत पर प्राणों का आसव से कवि का अभिप्राय यह है कि कोयल यदि कहे तो वह गांधी जी के संकल्पों को पूरा करने के लिए अपने प्राणों को न्यौछावर भी कर सकता हूं। देशवासियों के दिलों में गुलामी के खिलाफ लड़ने का मंत्र फूँक सकता हूं।

18. कोयल को लगातार गाते देख कैदी पूछता है, हे कोयल ! तुम्हारा यह गाना बंद भी होगा या हर समय गाती ही रहोगी? क्या तुमने अपनी आवाज की मधुरता को गुलामी के अंधकार में दफन कर देने की ठान ली है? अर्थात क्या तुम अंग्रेजों की गुलामी के सामने झुकने को तैयार नहीं हो? क्या तुम्हें पता नहीं कि यह अत्याचारी आकाश कमजोरों को निगल जाता है? आखिर क्यों अपने आप को उसका निवाला बनाने पर आमादा हो? अर्थात आजादी की लड़ाई का जोखिम क्यों उठाना चाहती हो? जेल के जिन बंदियों में तुम करूणा जगाना चाहती हो, वे अभी जेल की कठोर बंदिशों के बीच अपनी स्मृतियों के साथ सो रहे हैं। क्या तुम नींद में अचेत पड़े लोगों को आजादी का संदेश दे पाओगी?

19. अंतिम बंद में कैदी कोयल से पूछता है कि क्या तुम्हें यकीन है कि इन सोये हुए कैदियों की सांसों के रास्ते तुम्हारा रूदन इनकी आत्मा तक पहुंच जायेगा? बताओ कोयल ! और यह भी बताओ कि क्या सुबह जब कैदी नींद से जागेंगे तो सब कुछ उलट-पुलट हो जायेगा? क्या गुलामी का राज उखाड़ कर नष्ट हो जायेगा? बोलो कोयल !

काव्य सौष्ठव-

कविता की संबोधन वाचक और प्रश्न वाचक शैली आत्मीयता की भावना जगाती है। 

कोयल को माध्यम बनाकर लिखी गई इस कविता में अन्योक्ति अलंकार का बड़ा सुंदर प्रयोग किया गया है। इससे कविता का सौंदर्य बहुत बढ़ गया है। 

लय और छंद की झंकार अलग से अपना ध्यान आकर्षित करती है। संस्कृतनिष्ठ और तत्सम शब्दों का प्रयोग खूब हुआ है किन्तु भाषा में लालित्य का प्रवाह तनिक भी कम नहीं हुआ है। 

काव्य-भाषा सांकेतिक है। कहीं-कहीं काव्यालंकारों का बड़ा मनोहारी प्रयोग हुआ है। 

कवि ने भावानुकूल तत्सम शब्दों वाली खड़ी बोली का प्रयोग किया है। 

पुष्प का मानवीकरण बहुत सुंदर ढंग से किया गया है। 

विशेष- 

देश प्रेम और स्वाधीनता की चेतना जगाना इस कविता का प्रमुख उद्देश्य है। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए कवि ने काव्य सौंदर्य को कहीं हल्का नहीं होने दिया है। यह कविता अपनी सघन प्रतीकात्मकता, सांकेतिकता, आलंकारिकता और शब्द योजना की दृष्टि से भी बहुत महत्वपूर्ण है। इसका उदात्त भाव इसे अलग से श्रेष्ठ बनाता है। 

Kaisi aur kokila question answers

बोध प्रश्न-1 

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर संक्षेप में दें। 

1. ‘पुष्प की अभिलाषा’ में कवि क्या संदेश देना चाहता है? 

2. ‘पुष्प की अभिलाषा’ में पुष्प माली से क्या कहता है? 

3. ‘कैदी और कोकिला’ का सारांश लिखिये। 

4. ‘कैदी और कोकिला’ कविता के आधार पर पराधीन भारत की जेलों में स्वतंत्रता संग्राम के सेनानियों को दी जाने वाली यातनाओं का वर्णन कीजिए। 

5. ‘कैदी और कोकिला’ में हथकड़ियों को गहना क्यों कहा गया है? 

बोध प्रश्न-2 

वस्तुनिष्ठ प्रश्न 

i. ‘पुष्प की अभिलाषा’ शीर्षक कविता, किस पुस्तक से ली गयी है? 

क) हिम किरीटिनी 

ख) हिम तरंगिनी 

ii. पुष्प किस पथ पर बिखेरा जाना चाहता है? 

ग) समर्पण 

घ) वेणु ले गूंजे धरा 

क) राज पथ पर 

ख) बाजार के पथ पर 

ग) शहीद पथ पर 

घ) जिस पथ से मातृभूमि पर शीश चढ़ाने के लिए वीर सैनिक जाते हैं। 

iii. पुष्प अपनी अभिलाषा किसके सामने प्रकट कर रहा है? 

क) कवि के सामने 

ख) सुर बाला के सामने 

ग) सैनिक के सामने 

घ) माली के सामने 

iv. ‘पुष्प की अभिलाषा’ कविता की मूल भावना क्या है? 

क) भगवद् भक्ति की भावना 

ग) अंग्रेजों पर शासन की भावना 

ख) देश भक्ति की भावना 

घ) युद्ध की भावना 

v. पुष्प की अभिलाषा कविता के माध्यम से किसकी अभिलाषा व्यक्त हुई है? 

क) कवि की अभिलाषा 

घ) देश प्रेमी की अभिलाषा 

ख) सम्राट की अभिलाषा 

ग) सुंदरी की अभिलाषा 

vi. ‘कैदी और कोकिला किस संग्रह में संकलित है? 

क) ‘हिमकिरीटिनी’ 

घ) समय के पांव 

ख) बिजुरी काजल आंज रही 

vii. ‘कैदी और कोकिला’ में जंजीरों को क्या कहा गया है? 

क) उत्पीड़न का औजार 

ख) गहना 

ग) गुलामी का प्रतीक 

घ) कुछ नहीं 

viii. कैदी और कोयल में क्या समानता है? 

क) दोनों गायक हैं 

ख) दोनों कैदी हैं 

ग) दोनो स्वतंत्रता से प्रेरित हैं 

घ) दोनों घायल हैं 

ix. कवि ने किस शासन की तुलना तम के प्रभाव से की है? 

क) मुगल शासन की 

ख) रूसी शासन की 

ग) भारतीय शासन की 

घ) ब्रिटिश शासन की 

पराधीन भारत में कैदियों के साथ कैसा व्यवहार किया जाता था? X 

क) अमानवीय 

ख) सामान्य 

ग) राजसी 

घ) सम्माननीय 

xi. कैदी ने देश की आजादी के लिए किसके विरूद्ध संघर्ष किया? 

क) अंग्रेजी शासन 

ख) कांग्रेस शासन 

ग) मुगल शासन 

घ) स्थानीय शासन xii. हथकड़ियों को कविता में क्या कहा गया है? 

क) गहना 

ख) बेड़ी 

ग) बंधन 

घ) पराधीनता 

xiii. कोयल किस समय चीख रही थी? 

क) दोपहर में 

ख) आधी रात में 

ग) कभी नहीं 

घ) सूरज निकलने पर 

xiv. कैदी की कोठरी कितने फुट की थी? 

क) 10 फुट 

ख) 5 फुट 

ग) 3 मीटर 

घ) 10 गज 

xv. ‘कैदी और कोयल’ में कवि ने अंग्रेजी शासन की तुलना किस रंग से की है? 

क) काला 

ख) नीला 

ग) सफेद 

घ) हरा 

16.3 उपयोगी पुस्तकें 

माखन लाल चतुर्वेदीः एक अध्ययन, लेखक श्री नर्मदा प्रसाद खरे। 

16.4 बोध प्रश्नों के उत्तर

बोध प्रश्न – 1

1. ‘पुष्प की अभिलाषा’ कविता ब्रिटिश शासन की गुलामी से आजादी के लिए देश के नौजवानों में देश प्रेम की भावना जगाने के लिए लिखी गयी थी। इस कविता में कवि ने देश के प्रति समर्पित होने का संदेश दिया है। पुष्प के माध्यम से कवि ने प्रेरणा दी है कि हमें अपने देश के लिए त्याग बलिदान करने में पीछे नहीं रहना चाहिए।

2. भारत देश के स्वतंत्रता सेनानी अंग्रेजों से आजादी के लिए लड़ाई कर रहे थे। यह कविता जनता में देशप्रेम की भावना पैदा करने के लिए लिखी गयी थी। इस कविता में माली से फूल कहता है, हे माली! सुनो! मैं नहीं चाहता कि मुझे किसी सुंदर स्त्री के आभूषण में गूंथा जाय जिससे कि युवती का आकर्षण बढ़ जाय। मुझे किसी सुंदरी के गले का आभूषण बनने की इच्छा बिल्कुल ही नहीं है। मैं किसी युवती के श्रृंगार का उपकरण नहीं बनना चाहता। किसी प्रेमी की माला में गुंथ कर उसकी प्रेमिका को ललचाने की भी मुझे कोई इच्छा नहीं है। हे माली! तुम मुझे किसी सम्राट के शव पर डाले जाने से बचाना। हमें इस तरह का सम्मान पाने की भूख बिल्कुल नहीं है। किसी देवता के सिर पर चढ़ने का सौभाग्य प्राप्त करने की भी मुझे कोई चाह नहीं है। देशप्रेम के सामने ये सब बहुत तुच्छ इच्छायें हैं। हमारी अभिलाषा तो मातृभूमि को आजाद कराने के लिए शीश कटाने को तैयार वीरों के चरण चूमना चाहते हैं। अतः तुम हमें उस रास्ते पर बिखेर देना जिस रास्ते से देशप्रेमी सैनिक मातृभूमि की रक्षा के लिए शीश कटाने जा रहे होते हैं।

3. कैदी और कोकिला कविता में कवि ने अंग्रेजी शासन द्वारा किये गये अत्याचारों व जेल में कैदियों को दी जाने वाली यातनाओं तथा अपने दुख और असंतोष का वर्णन किया है। कविता का सारांश यह है कि कवि आजादी के आंदोलन में जेल चला गया है। जेल में उसपर बहुत अत्याचार किया जाता है। उसे उम्मीद नहीं है कि ब्रिटिश शासन कभी खत्म होगा। रात में नींद नहीं आ रही है। आधी रात किसी कोयल के कूकने की आवाज सुनकर वह चौंक जाता है। उसे कोयल का इतनी रात में कूकना बड़ा रहस्यमय लगता है। कविता में वह कोयल को संबोधित करके पूछता है, कि तू इतनी रात को क्या कहना चाह रही है? मैं जेल में हूं तू स्वतंत्र है, मुझे रोना भी गुनाह है, तू इस अंधेरी रात में चीख-चीख कर क्यों बावली हो रही है? ऐसा लगता है तू मेरे दुख से दुखी होकर इतनी रात में करूणा भरे स्वर में बोल रही हो और अंग्रेजों के अत्याचार का मुकाबला करने के लिए प्रेरित कना चाह रही हो। कवि ने स्वतंत्रता सेनानियों व भारतीय जनता के देश पर न्यौछावर हो जाने की प्रेरणा देने के लिए इस कविता की रचना की है।

4. पराधीन भारत में स्वतंत्रता सेनानियों को जेलों में तरह तरह से अमानवीय यातनायें दी जाती थीं। कविता में इस यातना का वर्णन करते हुए कवि ने कहा है कि ब्रिटिश राज में राजनैतिक कैदियों के साथ चोर डाकुओं जैसा व्यवहार किया जाता था। हथकड़ियों में जकड़ कर उन्हें चोरों डाकुओं के साथ अंधेरी काल कोठरी में रखा जाता था। पेट भर भोजन नहीं दिया जाता था। कोल्हू में उन्हें जोत कर पानी निकलवाया जाता था। जेलर सिपाहियों की निगरानी में रखा जाता था और तरह-तरह से अपमानित किया जाता था।

5. गहना आभूषण को कहते हैं। गहना का हमारे जीवन में महत्व इसलिए है क्योंकि वह धारण करने वाले व्यक्ति के सौंदर्य को बढ़ा देता है। अंग्रेजों से लोहा लेने वाले वीरों को जब जेल भेजा जाता था तो समाज में उनकी प्रतिष्ठा बढ जाती थी। बेडी और हथकड़ी में जकड़ा हुआ सेनानी गर्व का अनुभव करता था क्योंकि उसके अंदर मातृभूमि के लिए हर कष्ट सहन करने का जज्बा होता था। जेल क्रांतिकारियों का प्रिय आवास होता था तथा पावों में बेडियां और हथकडियां पहन कर गहना पहने होने जैसा संतोष होता था। इसलिए कैदी ने कोकिला से कहा कि बेड़ियां और हथकड़ियां तो क्रांतिकारियों का गहना है।

बोध प्रश्न-2

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

i ख

. घ 

iii. घ 

iv. ख 

v. घ 

vi. क 

vii. ख 

viii. ग 

ix. घ 

x. क 

xi. क 

xii. क 

xiii. ख 

xiv. क 

XV. क


Pushp Ki Abhilasha

पुष्प की अभिलाषा

पुष्प की अभिलाषा /पं.माखनलाल चतुर्वेदी 

abhilasha meaning in hindi,

  • मन का यह भाव कि अमुक काम इस तरह से हो जाये या यह  बात इस रूप में हो जाय अथवा यह  वस्तु हमें प्राप्त हो जाय। आकांक्षा। इच्छा। कामना।  ये सभी अभिलाषा शब्द के अर्थ हैं।

कवि का परिचय – 

माखनलाल चतुर्वेदी का जन्म 4 अप्रैल सन् 1889 को मध्यप्रदेश के होशंगाबाद जिले के बाबई नामक स्थान पर हुआ था। इनके पिता जी का नाम नन्दलाल चतुर्वेदी तथा माता जी का नाम सुंदरी बाई था। इनका विवाह ग्यारसी बाई से हुआ था। सन् 1905 में जबलपुर से प्राइमरी टीचर्स ट्रेनिंग, नार्मल शिक्षा उत्तीर्ण करने के बाद ये अध्यापक हो गये। इन्हें हिन्दी के अतिरिक्त संस्कृत, बंगला, गुजराती, अंग्रेजी, भाषा पर भी समान अधिकार प्राप्त था। हिन्दी के प्रतिष्ठित कवि, कुशल वक्ता, पत्रकार, सम्पादक तथा लेखक होने के साथ-साथ माखनलाल चतुर्वेदी जी स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी भी थे। असहयोग आन्दोलन के दौरान उन्हें लगभग दस माह तक कारावास की सजा हुई। वे बिलासपुर की जेल में बंद रहे। ‘पुष्प की अभिलाषा’ नामक कालजयी कविता की रचना उन्होंने जेल में रहते हुए ही लिखी। बाद में शिक्षक पद से त्याग पत्र देकर, पत्रकारिता के क्षेत्र में आ गये। प्रसिद्ध राष्ट्रवादी पत्रकार गणेश शंकर विद्यार्थी से वे बहुत प्रभावित थे।

माखनलाल चतुर्वेदी की पहचान एक राष्ट्रवादी कवि के रूप में रही है। राष्ट्रवाद इनकी रचनाओं में भी प्रमुखता से मौजूद रहा है। इनके काव्य का मूल स्वर राष्ट्रीयतावादी है। भारतीय राष्ट्रीय स्वाधीनता की अनुगूंजें इनकी कविताओं में देखने को मिलती हैं। इन्होंने कुछ आध्यात्मिक और रहस्यवादी भावबोध की कवितायें भी लिखी हैं। मगर मुख्यतः वे राष्ट्रवादी विचारों के एक अच्छे कवि थे और इसी कारण से इन्हें साहित्य जगत में ‘भारतीय आत्मा’ कहा जाता है।

रचनाएं-

चतुर्वेदी जी ने गद्य और पद्य दोनों विधाओं में लिखा है। इनकी प्रमुख कृतियों के नाम हैं-

काव्य संग्रह-

हिम किरीटिनी (सन 1943), हिम तरंगिणी (सन 1949), माता (सन 1951), युग चरण (सन 1956), समर्पण (सन 1956), वेणु ले गूंजे धरा (सन 1960), बिजुरी काजल आंज रही (सन 1954 से 64 के बीच की रचनाओं का संकलन, सन 1980 में प्रकाशित)

कहानी संग्रह – 

कला का अनुवाद

गद्य काव्य – 

साहित्य देवता (निबंध संग्रह)

नाटक –

 कृष्णार्जुन-युद्ध, सिरजन और मंचन

संपादन – 

कर्मवीर, प्रताप, प्रभा (पत्रिका एवं समाचार पत्र)

निबंध –

 समय के पांव (1962, संस्मरणात्मक)

निबंध संग्रह – 

अमीर इरादे गरीब इरादे (1960), रंगों की होली (सन 1944 तक के निबंधों का संकलन, 1980 में प्रकाशित)

भाषण संग्रह-

 चिंतन की लाचारी (1965) 

सम्मान – 

सागर विश्वविद्यालय से डी. लिट. की उपाधि, सन 1969 में। पद्म भूषण सम्मान (सन 1963)

पुरस्कार –

 साहित्य अकादमी पुरस्कार, देव पुरस्कार

संदर्भ और प्रसंग-

प्रस्तुत कविता ‘पुष्प की अभिलाषा’ ‘हिम तरंगिनी’ काव्य संग्रह में संग्रहीत है। यह माखनलाल चतुर्वेदी जी की सबसे प्रसिद्ध कविता मानी जाती है। यह कविता उन्होंने भारत की आजादी के लिए हो रहे आंदोलनों के दौर में देश प्रेम की भावना जगाने के लिए रची थी।

इस कविता में पुष्प के माध्यम से देश के नागरिकों को देश प्रेम का संदेश देने का प्रयास किया गया है।

कठिन शब्द

चाह-इच्छा, सुरबाला सुंदर युवती, प्रेमी-माला-प्रेमिका के लिए प्रेमी द्वारा तैयार की गयी माला, गहना-आभूषण, बिंध-माला में गुंथ जाना। ललचाऊं-आकर्षित करूं। सम्राट-राजा, भाव मृत शरीर, हरि- ईश्वर, इठलाऊं- घमंण्ड करूं। वनमाली-फूलों के बगीचे का देख भाल करने वाला, शीश-सिर, मस्तक, पथ-रास्ता

व्याख्या-

कविता का संदर्भ यह है कि माली बगीचे में फूल तोड़ रहा है। फूल सोच रहा है कि माली फूलों को गूंथ कर माला बनायेगा। माला किसी युवती के आभूषण की शोभा बढ़ाने के काम आयेगी या प्रेमिका के गले में डाल दी जायेगी। यह भी हो सकता है कि कोई देवी देवता या किसी मृत राजा के शव पर चढ़ा दे। मगर फूल की इच्छा न युवती के गले का आभूषण बनने की है न देवता के सिर या सम्राट के शव पर चढ़ाये जाने की। उसकी इच्छा देश के लिए मर मिटने वाले वीरों के कदमों के नीचे बिछ जाने की है। इसलिए वह माली से अपनी इच्छा का इजहार करते हुए कहता है कि हे माली! सुनो! मैं नहीं चाहता कि मुझे किसी सुंदर स्त्री के आभूषण में गूंथा जाय। किसी सुंदरी के गले का आभूषण बनने की इच्छा बिल्कुल ही नहीं है। किसी प्रेमी की प्रेमिका को ललचाने की भी मुझे कोई इच्छा नहीं है।

फूल ईश्वर से प्रार्थना के भाव में कहता है कि हे प्रभो! मुझे किसी सम्राट के शव पर डाले जाने से बचाना। हमें तो किसी देवता के सिर पर चढ़ने का सौभाग्य प्राप्त करने की भी इच्छा नहीं है।

कविता के तीसरे बंद में फूल कहता है- हे माली! मेरी एक मात्र अभिलाषा यह है कि मुझे उस रास्ते पर बिखेर दिया जाय, जिस रास्ते से होकर, देश की आजादी के लिए बलिदान होने की उच्च भावना के साथ, मातृभूमि के सपूत जाते हैं। मैं उनके पांवों को छू कर धन्य होना चाहता हूँ। भावार्थ यह है कि पुष्प किसी सम्राट, देवता, या सुंदरी के माथे की शोभा बन कर गौरव महसूस करने की जगह वीर सैनिकों के पावों तले कुचले जाने में अपने को धन्य समझता है। वह खुद देश की रक्षा के काम नहीं आ सकता, जो देश के लिए जीवन की बाजी लगाने के लिए तैयार हैं, उनके रास्ते में बिछ कर उनके प्रति अपनी कृतज्ञता व्यक्त करना चाहता है।

काव्य सौष्ठव-

यह एक प्रतीकात्मक कविता है। इसमें फूल को स्वतंत्रता प्रेमी भारतवासी का प्रतीक बनाया गया है। फूल का मानवीकरण करने से इस कविता का प्रभाव बहुत बढ़ गया है।

कविता की भाषा सरल और प्रांजल है।

राष्ट्रप्रेम जैसी गम्भीर भावना को सरल शब्दों में बड़े ही कलात्म्क ढंग से अभिव्यक्त किया गया है।

इस गीत में केवल दो बंद हैं। पहले बंद में 30 मात्राओं की चार पंक्तियां हैं, जबकि दूसरा बंद 17 और 15 मात्राओं वाली दो युगल पंक्तियों से मिल कर बना है।

इस कविता को धुन में गाया जा सकता है। इसकी गेयता बहुत आकर्षक और मधुर है।

विशेष-

माखनलाल चतुर्वेदी के काव्य में राष्ट्रीय चेतना का उदात्त स्वर देखने को मिलता है। उनकी कविताओं में भारतीय आत्मा को वाणी दी गयी होती है। ‘पुष्प की अभिलाषा’ एक महान गीत होने की योग्यता रखता है। राष्ट्रगान (जनगणमन अधिनायक), राष्ट्रगीत (वंदे मातरम) और ‘सारे जहां से अच्छा’ के बाद यह चौथा गीत है जो सारे देश में गाया जाता है। कवि ने पुष्प की अभिलाषा के माध्यम से राष्ट्रप्रेम प्रदर्शित करने की जैसी शुभ कामना व्यक्त की है, वह अप्रतिम है।


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