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 चाणक्यनीतिदर्पण – 8.3

चाणक्य नीति दर्पण मूलत: संस्कृत (Sanskrit) में संस्कृत सुभाषितों के रूप में, काव्यात्मक एवं श्लोकों  के रूप में लिखा हुआ ग्रंथ है। इसके रचनाकार आचार्य चाणक्य हैं। उनके ये संस्कृत श्लोक चाणक्य नीति के नाम से संसार भर में प्रसिद्ध हैं। यहां पर यह श्लोक देवनागरी लिपि एवं  रोमन लिपि में भी दिए गए हैं एवं उनके अर्थ हिंदी देवनागरी एवं अंग्रेजी में रोमन लिपि में भी दिये गये हैं। जिससे विदेशों में रहने वाले भारतीय जो देवनागरी से परिचित नहीं हैं सनातन ग्रंथों के ज्ञान से लाभान्वित हो सकें।

अथ अष्टमोऽध्यायः ॥ 8 ॥

atha aṣṭamō’dhyāyaḥ ॥ 8 ॥

काष्ठपाषाण्धातूनां कृत्वाभावेनसेवनम्॥
श्रद्धयाचतथासिद्धिस्तस्यविष्णोःप्रसादतः ॥११॥

अर्थ - धातु काष्ठ पाषाण भावसहित सेवन करना चाहिए। श्रद्धा से तो भगवत् कृपा से जैसा भाव है तैसा ही सिद्ध होता है ॥ ११ ॥

kāṣṭhapāṣāṇdhātūnāṁ kr̥tvābhāvēnasēvanam॥
śraddhayācatathā siddhistasyaviṣṇōḥprasādataḥ ॥11॥

Meaning : Metal, wood and stone should be consumed with feeling. By faith, by the grace of the Lord, the same feeling is attained. 11 ॥

नदेवोविद्यते काष्ठेनपाषाणेनमृन्मये. ॥ 
भावेद्दिविद्यतेदेवस्तस्माद्भावो हि कारणम्॥१२॥

अर्थ - देवता काठ में नहीं है, न पाषाण में है न मृतिका की मूर्ति में है निश्चय है कि देवता भाव में विद्यमान है, इस हेतु भाव ही सबका कारण है ॥१२॥

nadēvōvidyatē kāṣṭhēnapāṣāṇēnamr̥nmayē. ॥ 
bhāvēddividyatēdēvastasmādbhāvō hi kāraṇam॥12॥
Meaning - The deity is neither in wood, nor in stone, nor in the idol of the dead; it is certain that the deity exists in the emotions, hence emotions are the reason for everything. ॥12॥


शांतितुल्यंतपोनास्तिनसंतोषात्परंसुखम् ॥
नतृष्णायाःपरोव्याधिर्नचधर्मोदयापरः ॥१३॥

अर्थ - शांती के समान दूसरा तप नहीं, न संतोष से परे सुख, न तृष्णा से दूसरी व्याधी है, न दया के समान धर्म ॥ १३ ॥

śāṁtitulyaṁtapōnāstinasaṁtōṣātparaṁsukham ॥
natr̥ṣṇāyāḥparōvyādhirnacadharmōdayāparaḥ ॥13॥
Meaning - There is no penance like peace, no happiness beyond satisfaction, no disease other than thirst, no religion like kindness. 13 ॥


क्रोधोवैवस्वतो राजा तृष्णाबैतरणीनदी ॥ 
विद्याकामदुघाधेनुः संतोषोनन्दनंवनम् ॥ १४ ॥

अर्थ - क्रोध यमराज है और तृष्णा वैतरणीनदी है, विद्या कामधेनु गाय है और सन्तोष इन्द्रकी वाटिका है ॥ १४ ॥

krōdhōvaivasvatō rājā tr̥ṣṇābaitaraṇīnadī ॥ 
vidyākāmadughādhēnuḥ saṁtōṣōnandanaṁvanam ॥ 14 ॥
Meaning - Anger is Yamraj and thirst is river Vaitarna, Vidya is Kamadhenu cow and satisfaction is Indra's garden. 14 ॥

गुणो भूषयते रूपं शीलं भूषयते कुलम् ।कुलम्
सिधिर्भूषयते विद्यां भोगो भूषयेते धनम् ॥धनम् ०८-१५

अर्थ - गुण रूप को भूषित करता है, शीलं कुलको अलंकृत करता है, सिद्धि विद्या को भूषित करती है और भोग धन को भूषित करता है ॥ १५ ॥ 

guṇō bhūṣayatē rūpaṁ śīlaṁ bhūṣayatē kulam |kulam
sidhirbhūṣayatē vidyāṁ bhōgō bhūṣayētē dhanam ॥dhanam 08-15

Meaning - Quality adorns the form, modesty adorns the clan, accomplishment adorns knowledge and enjoyment adorns wealth. 15.
ग्रन्थ का नाम : चाणक्यनीतिदर्पण,  रचनाकार – आचार्य चाणक्य,   अध्याय – 7   श्लोक-  11-15

चाणक्य की प्रसिद्धि : 

ये संस्कृत श्लोक आचार्य चाणक्य के द्वारा रचित हैं। उनका नाम कौटिल्य एवं विष्णुगुप्त के नाम से भी प्रसिद्ध है। उनकी रचनाएँ Chanakya सूत्र, chanakya niti, chanakya ni pothi, chanakya quotes, chanakya niti in hindi, chanakya quotes in hindi, चाणक्य, चाणक्य नीति,  चाणक्य नीति की 10 बातें,  चाणक्य नीति की बातें, चाणक्य के कड़वे वचन, चाणक्य नीति स्त्री, चाणक्य नीति की 100 बातें,  चाणक्य विचार इन हिंदी, चाणक्य नीति सुविचार, चाणक्य नीति जीवन जीने की, सुविचार चाणक्य के कड़वे वचन, sanskrit shlok, shlok,sanskrit, sanskrit shlok,sanskrit quotes,shlok in sanskrit, sanskrit thought, sanskrit slokas,संस्कृत श्लोक,श्लोक,छोटे संस्कृत श्लोक, आदि के रूप में चर्चित एवं प्रसिद्ध है । 

चाणक्य का कालातीत प्रभाव  :

हजारों वर्षों के उपरांत भी उनमें वही ताजगी और उपयोगिता है। अतः वे आज भी उतने ही प्रासंगिक बने हुए हैं जितने वे तब थे जब वे लिखे गये थे। संस्कृत में रचित होने के कारण उनमें कालांतर के प्रभाव को स्पष्टतः नहीं देखा जाता है क्योंकि संस्कृत भाषा का सर्वश्रेष्ठ व्याकरण उसके अस्तित्व एवं गुणवत्ता के साथ ही उसके प्रभाव कि भी सुरक्षा करता है। ये अत्यंत ज्ञानवर्धक, पठनीय एवं माननीय हैं। ये जीवन‌ के अनेक चौराहों पर हमारा मार्गदर्शन करते हैं जब सब ओर अंधकार छा जाने की प्रतीति होती है।

About Chanakya (चाणक्य के बारे में) :

 चाणक्य का प्रभाव प्राचीन भारत से परे तक फैला हुआ है, क्योंकि शासन कला और शासन पर उनके विचारों का दुनिया भर के विद्वानों और नीति निर्माताओं द्वारा अध्ययन और सम्मान किया जाता है।  राजनीति के प्रति उनका व्यावहारिक दृष्टिकोण और राज्य और उसके नागरिकों के कल्याण पर उनका जोर उन्हें एक कालातीत व्यक्ति बनाता है जिनकी बुद्धि समय और स्थान की सीमाओं से परे है।

 चाणक्यनीतिदर्पण – 8.2

चाणक्य नीति दर्पण मूलत: संस्कृत (Sanskrit) में संस्कृत सुभाषितों के रूप में, काव्यात्मक एवं श्लोकों  के रूप में लिखा हुआ ग्रंथ है। इसके रचनाकार आचार्य चाणक्य हैं। उनके ये संस्कृत श्लोक चाणक्य नीति के नाम से संसार भर में प्रसिद्ध हैं। यहां पर यह श्लोक देवनागरी लिपि एवं  रोमन लिपि में भी दिए गए हैं एवं उनके अर्थ हिंदी देवनागरी एवं अंग्रेजी में रोमन लिपि में भी दिये गये हैं। जिससे विदेशों में रहने वाले भारतीय जो देवनागरी से परिचित नहीं हैं सनातन ग्रंथों के ज्ञान से लाभान्वित हो सकें।

अथ अष्टमोऽध्यायः ॥ 8 ॥

atha aṣṭamō’dhyāyaḥ ॥ 8 ॥

तैलाभ्यंगेचिताधूमेमैथुनेक्षौरकर्मणि ॥ 
तावद्भवतिचांडालोयावत्स्नानंसमाचरेत् ॥ ६ ॥

अर्थ - तेल लगाने पर, चित्ता के धूम लगने पर, स्त्री प्रसंग करने पर, बाल बनाने पर, तब तक चाण्डाल ही बना रहता है जब तक स्नान नहीं करता है ॥ ६ ॥

tailābhyaṁgēcitādhūmēmaithunēkṣaurakarmaṇi ॥ 
tāvadbhavaticāṁḍālōyāvatsnānaṁsamācarēt ॥ 6 ॥

Meaning - On applying oil(Maalish), on the fume touching the us after burning of the deadbody, on having sexual intercourse with women, on combing hair(Cutting Hair), he remains a Chandal until he takes bath. 6॥

अजीर्णेमेषजंवारिजीर्णेवारिबलप्रदम् ॥ 
भोजनेचामृतंवारिभोजनांतेविषप्रदम् ॥ ७ ॥

अर्थ - अपच होनेपर जल औषध है, पच जाने पर जल बल को देता है, भोजन के समय पानी अमृत के समान है, और भोजनके अन्त में विष का फल देता है ॥ ७ ॥
ajīrṇēmēṣajaṁvārijīrṇēvāribalapradam ॥ 
bhōjanēcāmr̥taṁvāribhōjanāṁtēviṣapradam ॥ 7 ॥

Meaning - In case of indigestion, water is a medicine, when digested, water gives strength, at the time of meal, water is like nectar, and at the end of the meal, it gives the result of poison. 7 ॥

हतंज्ञानंक्रियाहीनंहतश्चाज्ञानतोनरः ॥ 
हतं निर्णायकं सैन्यं स्त्रियो नष्टा ह्यभर्तृकाः ॥ ०८-०८

अर्थ - क्रिया के बिना ज्ञान व्यर्थ है, अज्ञान से नर मारा जाता है सेनापति के बिना सेना मारी जाती है और स्वामी हीन स्त्री नष्ट होजाती है॥ ८ ॥

hataṁjñānaṁkriyāhīnaṁhataścājñānatōnaraḥ ॥ 
hataṁ nirṇāyakaṁ sainyaṁ striyō naṣṭā hyabhartr̥kāḥ ॥ 08-08

Meaning - Knowledge without action is useless, a man is killed by ignorance, an army is killed without a commander and a woman without a master is destroyed. 8॥

वृद्धकाले मृताभार्याबंधुहस्तगतंधनम् ॥ 
भोजनं चपराधीनंतिस्रःपुंसांविडम्बनाः ॥९॥

अर्थ - बुढापे में मरी स्त्री, बन्धु के हाथ में गया धन और दूसरे के आधीन भोजन ये तीन पुरुषों की विडम्बना है अर्थात् दुखःदायक होते हैं ॥ ६ ॥

vr̥ddhakālē mr̥tābhāryābaṁdhuhastagataṁdhanam ॥ 
bhōjanaṁ caparādhīnaṁtisraḥpuṁsāṁviḍambanāḥ ॥9॥

Meaning - The woman dying in old age, the money in the hands of one brother and the food in the hands of another are the irony of these three men, that is, they are painful. 6॥

अग्निहोत्रं विनावेदानचदानंविनाक्रिया ॥ 
नभावेनविनासिद्धिस्तस्माद्भावोहि कारणम्। ॥10॥

अर्थ -  अग्निहोत्र के बिना वेद का पढना व्यर्थ होता है दानके बिना यज्ञा दिक क्रिया नहीं बनती, भाव के बिना कोई सिद्धि नहीं होती इस हेतु प्रेम ही सबका कारण है ॥ 10 ॥

agnihōtraṁ vināvēdānacadānaṁvinākriyā || 
nabhāvēnavināsiddhistasmādbhāvōhi kāraṇam| ||10||

Meaning - Reading the Vedas without Agnihotra is useless, without donation the Yagya cannot be performed, without feeling there is no accomplishment, hence love is the reason for everything. 10 ॥
ग्रन्थ का नाम : चाणक्यनीतिदर्पण,  रचनाकार – आचार्य चाणक्य,   अध्याय – 7   श्लोक-  6-10

चाणक्य की प्रसिद्धि : 

ये संस्कृत श्लोक आचार्य चाणक्य के द्वारा रचित हैं। उनका नाम कौटिल्य एवं विष्णुगुप्त के नाम से भी प्रसिद्ध है। उनकी रचनाएँ Chanakya सूत्र, chanakya niti, chanakya ni pothi, chanakya quotes, chanakya niti in hindi, chanakya quotes in hindi, चाणक्य, चाणक्य नीति,  चाणक्य नीति की 10 बातें,  चाणक्य नीति की बातें, चाणक्य के कड़वे वचन, चाणक्य नीति स्त्री, चाणक्य नीति की 100 बातें,  चाणक्य विचार इन हिंदी, चाणक्य नीति सुविचार, चाणक्य नीति जीवन जीने की, सुविचार चाणक्य के कड़वे वचन, sanskrit shlok, shlok,sanskrit, sanskrit shlok,sanskrit quotes,shlok in sanskrit, sanskrit thought, sanskrit slokas,संस्कृत श्लोक,श्लोक,छोटे संस्कृत श्लोक, आदि के रूप में चर्चित एवं प्रसिद्ध है । 

चाणक्य का कालातीत प्रभाव  :

हजारों वर्षों के उपरांत भी उनमें वही ताजगी और उपयोगिता है। अतः वे आज भी उतने ही प्रासंगिक बने हुए हैं जितने वे तब थे जब वे लिखे गये थे। संस्कृत में रचित होने के कारण उनमें कालांतर के प्रभाव को स्पष्टतः नहीं देखा जाता है क्योंकि संस्कृत भाषा का सर्वश्रेष्ठ व्याकरण उसके अस्तित्व एवं गुणवत्ता के साथ ही उसके प्रभाव कि भी सुरक्षा करता है। ये अत्यंत ज्ञानवर्धक, पठनीय एवं माननीय हैं। ये जीवन‌ के अनेक चौराहों पर हमारा मार्गदर्शन करते हैं जब सब ओर अंधकार छा जाने की प्रतीति होती है।

About Chanakya (चाणक्य के बारे में) :

 चाणक्य का प्रभाव प्राचीन भारत से परे तक फैला हुआ है, क्योंकि शासन कला और शासन पर उनके विचारों का दुनिया भर के विद्वानों और नीति निर्माताओं द्वारा अध्ययन और सम्मान किया जाता है।  राजनीति के प्रति उनका व्यावहारिक दृष्टिकोण और राज्य और उसके नागरिकों के कल्याण पर उनका जोर उन्हें एक कालातीत व्यक्ति बनाता है जिनकी बुद्धि समय और स्थान की सीमाओं से परे है।

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 चाणक्यनीतिदर्पण – 8.1

चाणक्य नीति दर्पण मूलत: संस्कृत (Sanskrit) में संस्कृत सुभाषितों के रूप में, काव्यात्मक एवं श्लोकों  के रूप में लिखा हुआ ग्रंथ है। इसके रचनाकार आचार्य चाणक्य हैं। उनके ये संस्कृत श्लोक चाणक्य नीति के नाम से संसार भर में प्रसिद्ध हैं। यहां पर यह श्लोक देवनागरी लिपि एवं  रोमन लिपि में भी दिए गए हैं एवं उनके अर्थ हिंदी देवनागरी एवं अंग्रेजी में रोमन लिपि में भी दिये गये हैं। जिससे विदेशों में रहने वाले भारतीय जो देवनागरी से परिचित नहीं हैं सनातन ग्रंथों के ज्ञान से लाभान्वित हो सकें।

अथ अष्टमोऽध्यायः ॥ 8 ॥

atha aṣṭamō’dhyāyaḥ ॥ 8 ॥

अधमाधनमिच्छन्तिधनंमानंचमध्यमाः ॥ 
उत्तमामानमिच्छन्तिमानोहिमहतां धनम्॥१॥

अर्थ - अधम धन ही चाहते हैं, मध्यम धन और मान, उत्तम मान ही चाहते हैं इस कारण कि महात्माओं का धन मान ही है ॥ १ ॥

adhamādhanamicchantidhanaṁmānaṁcamadhyamāḥ ॥ 
uttamāmānamicchantimānōhimahatāṁ dhanam॥1॥
Meaning - They want only mediocre wealth, medium wealth and respect, they want only good respect because the wealth of Mahatmas is respect. 1॥

इक्षुरापः पयोमूळंताम्बूलंफलमौषधम् ॥ 
भक्षयित्वापिकर्तव्याः स्नानदानादिकाः क्रियाः ॥ 2 ॥

अर्थ - ऊष, जल, दूध, मूल, पान, फल, और औषध इन वस्तुओं के भोजन करने पर ही स्नान दान आदि क्रिया करनी चाहिये ॥ २ ॥ 

ikṣurāpaḥ payōmūḻaṁtāmbūlaṁphalamauṣadham ॥ 
bhakṣayitvāpikartavyāḥ snānadānādikāḥ kriyāḥ ॥ 2 ॥
Meaning - Bathing, donating etc. should be done only after eating these things like water, milk, roots, betel leaves, fruits and medicines. ॥ 2॥

दीपोभक्षयतेध्वांतंकज्जलंचप्रसूपते ॥ 
यदन्नं भक्ष्यतेनित्यंजायतेतादृशीप्रजा ॥ ३ ॥

अर्थ - दीप अन्धकार को खाय जाता है और काजल को जन्माता है, जैसा अन्न सदा खाता है वैसी ही उसकी सन्तती होती है ॥ ३ ॥

dīpōbhakṣayatēdhvāṁtaṁkajjalaṁcaprasūpatē ॥ 
yadannaṁ bhakṣyatēnityaṁjāyatētādr̥śīprajā ॥ 3 ॥
Meaning - The lamp eats the darkness and gives birth to the soot, the food it always eats, the same is its progeny. ॥ 3॥


वित्तं देद्दिगुणान्वितेषुमतिमन्नान्यत्रदेहिक्वचित् 
माप्तंवारिनिधेर्जलंघनमुखेमाधुर्ययुक्तं सदाः ॥ 
जीवानुम्थावरजंगमांश्च सकलान् संजीव्यभूमं डलं। 
भूयः पश्यतिदेवकोटिगुणितं गच्छेतमम्भो निधम् ॥ ४ ॥
 
अर्थ - हे मतिमन् गुणियों को धन दो औरौं को कभी मत दो, समुद्र से मेघके मुख में प्राप्त होकर जल सदा मधुर हो जाता है. पृथ्वीपर चर अचर सब जीवोंको जिलाकर फिर देखो, वही जल कोटिगुणा होकर उत्सी समुद्रमें चला जाता है ॥ ४ ॥

vittaṁ dēddiguṇānvitēṣumatimannānyatradēhikvacit 
māptaṁvārinidhērjalaṁghanamukhēmādhuryayuktaṁ sadāḥ ॥ 
jīvānumthāvarajaṁgamāṁśca sakalān saṁjīvyabhūmaṁ ḍalaṁ| 
bhūyaḥ paśyatidēvakōṭiguṇitaṁ gacchētamambhō nidham ॥ 4 ॥
 
Meaning - O Matiman, give wealth to the virtuous, never give it to others, water always becomes sweet after receiving it from the sea in the mouth of the clouds. After giving life to all living beings on the earth, the same water multiplies millions of times and goes into the ocean. 4॥

चाण्डालानां सहस्रैश्च सूरिभिस्तत्त्वदर्शिभिः ।
एको हि यवनः प्रोक्तो न नीचो यवनात्परः ॥ ०८-०५ ॥

अर्थ - तत्वदर्शियों ने कहा है कि, सहस्रचांडालों के तुल्य एक यवन होता है और यवन से नीच दूसरा कोई नहीं है । ५ ॥

cāṇḍālānāṁ sahasraiśca sūribhistattvadarśibhiḥ |
ēkō hi yavanaḥ prōktō na nīcō yavanātparaḥ ॥ 08-05 ॥

Meaning - Tatvadarshis have said that there is one Yavana equal to Sahasrachandalas and there is no one inferior to Yavana. 5॥
ग्रन्थ का नाम : चाणक्यनीतिदर्पण,  रचनाकार – आचार्य चाणक्य,   अध्याय – 8   श्लोक-  1-5

चाणक्य की प्रसिद्धि : 

ये संस्कृत श्लोक आचार्य चाणक्य के द्वारा रचित हैं। उनका नाम कौटिल्य एवं विष्णुगुप्त के नाम से भी प्रसिद्ध है। उनकी रचनाएँ Chanakya सूत्र, chanakya niti, chanakya ni pothi, chanakya quotes, chanakya niti in hindi, chanakya quotes in hindi, चाणक्य, चाणक्य नीति,  चाणक्य नीति की 10 बातें,  चाणक्य नीति की बातें, चाणक्य के कड़वे वचन, चाणक्य नीति स्त्री, चाणक्य नीति की 100 बातें,  चाणक्य विचार इन हिंदी, चाणक्य नीति सुविचार, चाणक्य नीति जीवन जीने की, सुविचार चाणक्य के कड़वे वचन, sanskrit shlok, shlok,sanskrit, sanskrit shlok,sanskrit quotes,shlok in sanskrit, sanskrit thought, sanskrit slokas,संस्कृत श्लोक,श्लोक,छोटे संस्कृत श्लोक, आदि के रूप में चर्चित एवं प्रसिद्ध है । 

चाणक्य का कालातीत प्रभाव  :

हजारों वर्षों के उपरांत भी उनमें वही ताजगी और उपयोगिता है। अतः वे आज भी उतने ही प्रासंगिक बने हुए हैं जितने वे तब थे जब वे लिखे गये थे। संस्कृत में रचित होने के कारण उनमें कालांतर के प्रभाव को स्पष्टतः नहीं देखा जाता है क्योंकि संस्कृत भाषा का सर्वश्रेष्ठ व्याकरण उसके अस्तित्व एवं गुणवत्ता के साथ ही उसके प्रभाव कि भी सुरक्षा करता है। ये अत्यंत ज्ञानवर्धक, पठनीय एवं माननीय हैं। ये जीवन‌ के अनेक चौराहों पर हमारा मार्गदर्शन करते हैं जब सब ओर अंधकार छा जाने की प्रतीति होती है।

About Chanakya (चाणक्य के बारे में) :

 चाणक्य का प्रभाव प्राचीन भारत से परे तक फैला हुआ है, क्योंकि शासन कला और शासन पर उनके विचारों का दुनिया भर के विद्वानों और नीति निर्माताओं द्वारा अध्ययन और सम्मान किया जाता है।  राजनीति के प्रति उनका व्यावहारिक दृष्टिकोण और राज्य और उसके नागरिकों के कल्याण पर उनका जोर उन्हें एक कालातीत व्यक्ति बनाता है जिनकी बुद्धि समय और स्थान की सीमाओं से परे है।

 चाणक्यनीतिदर्पण – 7.4

चाणक्य नीति दर्पण मूलत: संस्कृत (Sanskrit) में संस्कृत सुभाषितों के रूप में, काव्यात्मक एवं श्लोकों  के रूप में लिखा हुआ ग्रंथ है। इसके रचनाकार आचार्य चाणक्य हैं। उनके ये संस्कृत श्लोक चाणक्य नीति के नाम से संसार भर में प्रसिद्ध हैं। यहां पर यह श्लोक देवनागरी लिपि एवं  रोमन लिपि में भी दिए गए हैं एवं उनके अर्थ हिंदी देवनागरी एवं अंग्रेजी में रोमन लिपि में भी दिये गये हैं। जिससे विदेशों में रहने वाले भारतीय जो देवनागरी से परिचित नहीं हैं सनातन ग्रंथों के ज्ञान से लाभान्वित हो सकें।

अथ सप्तमोऽध्यायः ॥ 7 ॥

atha saptamō’dhyāyaḥ ॥ 7 ॥

ग्रन्थ का नाम : चाणक्यनीतिदर्पण,  रचनाकार – आचार्य चाणक्य,   अध्याय – 7   श्लोक-  16-21
स्वर्गस्थितानामिहजीवलोके चत्वारिचिह्नानिव- संतिदेये ॥ दानप्रसंगोमधुराचवाणीदेवार्चनंब्रा-ह्मणतर्पणंचः ॥ १६ ॥

अर्थ - संसार में आनेपर स्वर्गवासियों के शरीर में चार चिन्ह रहते हैं। दानका स्वभाव, मीठा बचन, देवता की पूजा और ब्राह्मण को तृप्त करना अर्थात् जिन लोगों में दान आदि लक्षण रहें उनको जानना चाहिये कि वे अपने पुण्य के प्रभाव से स्वर्गवासी मर्त्यलोक में अवतार लिये हैं ॥ १६ ॥

svargasthitānāmihajīvalōkē catvāricihnāniva- saṁtidēyē ॥ dānaprasaṁgōmadhurācavāṇīdēvārcanaṁbrā-hmaṇatarpaṇaṁcaḥ ॥ 16 ॥

Meaning - When the heavenly beings come into this world, there are four signs in their bodies. The nature of charity, sweet words, worship of God and satisfying Brahmins, that is, those who have the characteristics of charity etc., should know that due to the influence of their good deeds, they have incarnated in the heavenly world in the mortal world. 16 ॥

अत्यन्तकोपःकटुकाचवाणी दरिद्रताचस्वजने- घुवैरं ॥ 
नीचप्रसंगः कुलद्दीन सेवाचिह्नानिदेहेन- रकस्थितानाम् ॥ १७ ॥

अर्थ - अत्यंत क्रोध, कटु बचन, दरिद्रता, अपने जनों में बैर, नीच का संग कुलहीन की सेवा ये चिन्ह नरकवासियों के देहो में रहते हैं ॥ १७ ॥

atyantakōpaḥkaṭukācavāṇī daridratācasvajanē- ghuvairaṁ ॥ 
nīcaprasaṁgaḥ kuladdīna sēvācihnānidēhēna- rakasthitānām ॥ 17 ॥

Meaning - Extreme anger, bitter words, poverty, hatred among one's own people, association with lowly people, service to the familyless (Persons withlower moral values or no moral values should be considered as kulahina), these signs remain in the bodies of the residents of hell. 17 ॥


गम्यतेयदिमृगेन्द्रमदिरंलक्ष्यते करिकपोलमौ-क्तिकम् ॥ 
जंबुकालयगतेचप्राप्यते वत्सुपुच्छ-खरचर्मखण्डनम् ॥ १८ ॥

अर्थ - यदि, कोई सिंह के गुहा में जा पडे तो उस को हाथी के कपोल के मोती मिलते है। और सियार के स्थान में जाने पर बछवे की पूंछ और गदहे के चमडे का टुकडा मिलता है ॥ १८ ॥ 

gamyatēyadimr̥gēndramadiraṁlakṣyatē karikapōlamau-ktikam ॥ 
jaṁbukālayagatēcaprāpyatē vatsupuccha-kharacarmakhaṇḍanam ॥ 18 ॥

Meaning - If someone goes into a lion's cave, he finds pearls from an elephant's skull. And on going to the jackal's place, one finds a calf's tail and a piece of donkey's skin. 18 ॥

शुनःपुच्छमिवव्यर्थं जीवितंविद्ययाविना ॥ 
नगुह्यगोपनेशक्तंनचदंशनिवारणे ॥ १९॥

कुत्ती की पूंछ के समान विद्या विना जीना व्यर्थ है। कुत्ती की पूंछ गोप्यइन्द्रियको ढांप नहीं सकती है न मच्छर आदि जीवों को उडा सकती है ॥ १६ ॥

śunaḥpucchamivavyarthaṁ jīvitaṁvidyayāvinā ॥ 
naguhyagōpanēśaktaṁnacadaṁśanivāraṇē ॥ 19॥

Like a (female dog) dog's tail, living without knowledge is meaningless. A dog's tail cannot cover the senses nor can it drive away mosquitoes etc. 16 ॥

वाचांशौचंचमनसःशौचमिन्द्रियनिग्रहः ॥ 
सर्वभूतदयाशौचमेतच्छो चंपरार्थिनाम् ॥२०॥

अर्थ - वचन की शुद्धि, मन की शुद्धि, इन्द्रियों का संयम, सब जीवों पर दया और पवित्रता ये परार्थियों में होता है॥ २० ॥

vācāṁśaucaṁcamanasaḥśaucamindriyanigrahaḥ ॥ 
sarvabhūtadayāśaucamētacchō caṁparārthinām ॥20॥

Meaning - Purity of speech, purity of mind, control of senses, kindness to all living beings and purity are found in the philanthropists. 20 ॥

पुष्पेगंधंतिलेतैलंकाष्ठेग्निपयोसघृतम् ॥ 
इक्षौगुडंतथादेहेपश्यात्मानं विवेकताः॥२१॥

अर्थ - फूल में गन्ध, तिल में तेल, काष्ठ में आग दूध में घी, ऊष में गुड जैसे, वैसे ही देह में आत्मा को विचार से देखो ॥२१॥

puṣpēgaṁdhaṁtilētailaṁkāṣṭhēgnipayōsaghr̥tam ॥ 
ikṣauguḍaṁtathādēhēpaśyātmānaṁ vivēkatāḥ॥21॥

Meaning - Just as fragrance is in flowers, oil is in sesame seeds, fire is in wood, ghee is in milk, jaggery is in joy, similarly look at the soul in the body with your thoughts. ॥21॥
इत्ति सप्तमोऽध्याय ॥ ७ ॥
itti saptamō’dhyāya ॥ 7 ॥

चाणक्य की प्रसिद्धि : 

ये संस्कृत श्लोक आचार्य चाणक्य के द्वारा रचित हैं। उनका नाम कौटिल्य एवं विष्णुगुप्त के नाम से भी प्रसिद्ध है। उनकी रचनाएँ Chanakya सूत्र, chanakya niti, chanakya ni pothi, chanakya quotes, chanakya niti in hindi, chanakya quotes in hindi, चाणक्य, चाणक्य नीति,  चाणक्य नीति की 10 बातें,  चाणक्य नीति की बातें, चाणक्य के कड़वे वचन, चाणक्य नीति स्त्री, चाणक्य नीति की 100 बातें,  चाणक्य विचार इन हिंदी, चाणक्य नीति सुविचार, चाणक्य नीति जीवन जीने की, सुविचार चाणक्य के कड़वे वचन, sanskrit shlok, shlok,sanskrit, sanskrit shlok,sanskrit quotes,shlok in sanskrit, sanskrit thought, sanskrit slokas,संस्कृत श्लोक,श्लोक,छोटे संस्कृत श्लोक, आदि के रूप में चर्चित एवं प्रसिद्ध है । 

चाणक्य का कालातीत प्रभाव  :

हजारों वर्षों के उपरांत भी उनमें वही ताजगी और उपयोगिता है। अतः वे आज भी उतने ही प्रासंगिक बने हुए हैं जितने वे तब थे जब वे लिखे गये थे। संस्कृत में रचित होने के कारण उनमें कालांतर के प्रभाव को स्पष्टतः नहीं देखा जाता है क्योंकि संस्कृत भाषा का सर्वश्रेष्ठ व्याकरण उसके अस्तित्व एवं गुणवत्ता के साथ ही उसके प्रभाव कि भी सुरक्षा करता है। ये अत्यंत ज्ञानवर्धक, पठनीय एवं माननीय हैं। ये जीवन‌ के अनेक चौराहों पर हमारा मार्गदर्शन करते हैं जब सब ओर अंधकार छा जाने की प्रतीति होती है।

About Chanakya (चाणक्य के बारे में) :

 चाणक्य का प्रभाव प्राचीन भारत से परे तक फैला हुआ है, क्योंकि शासन कला और शासन पर उनके विचारों का दुनिया भर के विद्वानों और नीति निर्माताओं द्वारा अध्ययन और सम्मान किया जाता है।  राजनीति के प्रति उनका व्यावहारिक दृष्टिकोण और राज्य और उसके नागरिकों के कल्याण पर उनका जोर उन्हें एक कालातीत व्यक्ति बनाता है जिनकी बुद्धि समय और स्थान की सीमाओं से परे है।

 चाणक्यनीतिदर्पण –  7.3

चाणक्य नीति दर्पण मूलत: संस्कृत (Sanskrit) में संस्कृत सुभाषितों के रूप में, काव्यात्मक एवं श्लोकों  के रूप में लिखा हुआ ग्रंथ है। इसके रचनाकार आचार्य चाणक्य हैं। उनके ये संस्कृत श्लोक चाणक्य नीति के नाम से संसार भर में प्रसिद्ध हैं। यहां पर यह श्लोक देवनागरी लिपि एवं  रोमन लिपि में भी दिए गए हैं एवं उनके अर्थ हिंदी देवनागरी एवं अंग्रेजी में रोमन लिपि में भी दिये गये हैं। जिससे विदेशों में रहने वाले भारतीय जो देवनागरी से परिचित नहीं हैं सनातन ग्रंथों के ज्ञान से लाभान्वित हो सकें।

अथ सप्तमोऽध्यायः ॥ 7 ॥

atha saptamō’dhyāyaḥ ॥ 7 ॥

बाहुवीर्यवलंराज्ञोब्राह्मणोब्रह्मविद्वली ॥ 
रूपयोवनमाधुर्वंस्त्रीणावलमनुत्तमम् ॥ ११॥

अर्थ - राजा को बाहुवीर्य बल है और ब्राह्मण ब्रह्मज्ञानी व वेदपाठी वली होता है और स्त्रियों को सुन्दरता, तरुणता और मधुरता अति उत्तम बल है ।। ११ ।।

bāhuvīryavalaṁrājñōbrāhmaṇōbrahmavidvalī ॥ 
rūpayōvanamādhurvaṁstrīṇāvalamanuttamam ॥ 11॥

Meaning - A king has great strength, a Brahmin is a Brahmagyani or a scholar of Vedas and a woman has the best strength like beauty, youth and sweetness. 11. 

नात्यन्तंसरलैर्भाव्यंगत्वापश्यवनस्थलीम् ॥ 
छियंतेसरलास्तत्रकुब्जास्तिष्ठंतिपादपाः।१२।

अर्थ - अत्यन्त सीधे स्वभाव से नहीं रहना चाहिये। इस कारण कि वन में जाकर देखो, सीधे वृक्ष काटे जाते हैं और टेढे खड़े रहते हैं ॥ १२ ॥

nātyantaṁsaralairbhāvyaṁgatvāpaśyavanasthalīm ॥ 
chiyaṁtēsaralāstatrakubjāstiṣṭhaṁtipādapāḥ|12|
Meaning - One should not live with a very straight nature because if you go to the forest and see, straight trees are cut and crooked ones remain standing. 12 ॥

यत्रोदकं तत्रवसंतिहंसास्तथैवशुष्कं परिवर्जयंति 
नहंसतुल्येननरेणभाव्यंपुनस्त्यजंतः पुनराश्च- यन्तेः ॥१३ ॥

अर्थ - जहाँ जल रहता है वहाँ ही हंस बसते हैं, वैसे ही सूखे सरोवर को छोड देते हैं। नर को हंस के समान नहीं रहना चाहिये कि, वे बार-बार छोड़ देते हैं और बार-बार आश्रय लेते हैं ॥ १३ ॥

yatrōdakaṁ tatravasaṁtihaṁsāstathaivaśuṣkaṁ parivarjayaṁti 
nahaṁsatulyēnanarēṇabhāvyaṁpunastyajaṁtaḥ punarāśca- yantēḥ ॥13 ॥

Meaning - Swans settle only where there is water, they leave the dry trees in the same way. Hell should not remain like swans, that they leave again and again and take shelter again and again. 13 ॥

उपार्जितानांवित्तानांत्यागएवहिरक्षणम् ॥ 
तडागोदर संस्थानांपरिस्रवइवांभसाम् ॥१४॥

अर्थ - अर्जित धन का व्यय करना ही रक्षा है। जैसे तड़ाग के भीतर के जल का निकालना ॥ १४ ॥ 

upārjitānāṁvittānāṁtyāgēvahirakṣaṇam ॥ 
taḍāgōdara saṁsthānāṁparisravivāṁbhasām ॥14॥

Meaning : Spending the money earned is protection. Like taking out the water inside the pond. 14 ॥

यस्यार्थस्तस्य मित्राणियस्यार्थस्तस्यबांधवः ॥ 
यस्यार्थः सपुमांल्लोकेयस्यार्थसचजीवति ।१५।

अर्थ - जिसको धन रहता है उसीके मित्र होते हैं, जिसके पास अर्थ रहता है उसी के बन्धु होते है, जिसके धन रहता है वही पुरुष गिना जाता है और जिसके अर्थ है वही जीता है ॥ १५ ॥

yasyārthastasya mitrāṇiyasyārthastasyabāṁdhavaḥ ॥ 
yasyārthaḥ sapumāṁllōkēyasyārthasacajīvati |15|

Meaning - The one who has money has friends, the one who has money has friends, the one who has money is counted as a man and the one who has money is the one who lives. 15.
ग्रन्थ का नाम : चाणक्यनीतिदर्पण,  रचनाकार – आचार्य चाणक्य,   अध्याय – 7   श्लोक-  11-15

चाणक्य की प्रसिद्धि : 

ये संस्कृत श्लोक आचार्य चाणक्य के द्वारा रचित हैं। उनका नाम कौटिल्य एवं विष्णुगुप्त के नाम से भी प्रसिद्ध है। उनकी रचनाएँ Chanakya सूत्र, chanakya niti, chanakya ni pothi, chanakya quotes, chanakya niti in hindi, chanakya quotes in hindi, चाणक्य, चाणक्य नीति,  चाणक्य नीति की 10 बातें,  चाणक्य नीति की बातें, चाणक्य के कड़वे वचन, चाणक्य नीति स्त्री, चाणक्य नीति की 100 बातें,  चाणक्य विचार इन हिंदी, चाणक्य नीति सुविचार, चाणक्य नीति जीवन जीने की, सुविचार चाणक्य के कड़वे वचन, sanskrit shlok, shlok,sanskrit, sanskrit shlok,sanskrit quotes,shlok in sanskrit, sanskrit thought, sanskrit slokas,संस्कृत श्लोक,श्लोक,छोटे संस्कृत श्लोक, आदि के रूप में चर्चित एवं प्रसिद्ध है । 

चाणक्य का कालातीत प्रभाव  :

हजारों वर्षों के उपरांत भी उनमें वही ताजगी और उपयोगिता है। अतः वे आज भी उतने ही प्रासंगिक बने हुए हैं जितने वे तब थे जब वे लिखे गये थे। संस्कृत में रचित होने के कारण उनमें कालांतर के प्रभाव को स्पष्टतः नहीं देखा जाता है क्योंकि संस्कृत भाषा का सर्वश्रेष्ठ व्याकरण उसके अस्तित्व एवं गुणवत्ता के साथ ही उसके प्रभाव कि भी सुरक्षा करता है। ये अत्यंत ज्ञानवर्धक, पठनीय एवं माननीय हैं। ये जीवन‌ के अनेक चौराहों पर हमारा मार्गदर्शन करते हैं जब सब ओर अंधकार छा जाने की प्रतीति होती है।

About Chanakya (चाणक्य के बारे में) :

 चाणक्य का प्रभाव प्राचीन भारत से परे तक फैला हुआ है, क्योंकि शासन कला और शासन पर उनके विचारों का दुनिया भर के विद्वानों और नीति निर्माताओं द्वारा अध्ययन और सम्मान किया जाता है।  राजनीति के प्रति उनका व्यावहारिक दृष्टिकोण और राज्य और उसके नागरिकों के कल्याण पर उनका जोर उन्हें एक कालातीत व्यक्ति बनाता है जिनकी बुद्धि समय और स्थान की सीमाओं से परे है।

 चाणक्यनीतिदर्पण – 7.2

चाणक्य नीति दर्पण मूलत: संस्कृत (Sanskrit) में संस्कृत सुभाषितों के रूप में, काव्यात्मक एवं श्लोकों  के रूप में लिखा हुआ ग्रंथ है। इसके रचनाकार आचार्य चाणक्य हैं। उनके ये संस्कृत श्लोक चाणक्य नीति के नाम से संसार भर में प्रसिद्ध हैं। यहां पर यह श्लोक देवनागरी लिपि एवं  रोमन लिपि में भी दिए गए हैं एवं उनके अर्थ हिंदी देवनागरी एवं अंग्रेजी में रोमन लिपि में भी दिये गये हैं। जिससे विदेशों में रहने वाले भारतीय जो देवनागरी से परिचित नहीं हैं सनातन ग्रंथों के ज्ञान से लाभान्वित हो सकें।

अथ सप्तमोऽध्यायः ॥ 7 ॥

atha saptamō’dhyāyaḥ ॥ 7 ॥

पादाभ्यांनस्पृशेदभिंगुरुंब्राह्मणमेवच ॥ 
नैवगांनकुमारींचन वृद्धंन शिशुंतथा ॥ ६ ॥

अर्थ - अग्नि, गुरु और ब्राह्मण, इनको पैर से कभी नहीं छूना चाहिये। वैसे ही गौ को कुमारिकाओं को, वृद्ध को और बालकों को, पैर से नहीं छूना चाहिये ॥ ६॥

pādābhyāṁnaspr̥śēdabhiṁguruṁbrāhmaṇamēvaca ॥ 
naivagāṁnakumārīṁcana vr̥ddhaṁna śiśuṁtathā ॥ 6 ॥
Meaning - Fire, Guru and Brahmin should never be touched with feet, similarly cows, virgins, old people and children should not be touched with feet.  ।।6॥

शकटंपचहस्तेनदशहस्तेनवाजिनम् ॥ 
इस्तिहस्तसहस्त्रेणदेशत्यागेनदुर्जनम्ः ॥ ७॥

अर्थ -  गाडी को पांच हाथ पर, घोड़े को दस हाथ पर, हाथी को हजार हाथ पर, दुर्जन को देश त्याग करके छोडना चाहिये ॥ ७ ॥

śakaṭaṁpacahastēnadaśahastēnavājinam ॥ 
istihastasahastrēṇadēśatyāgēnadurjanamḥ ॥ 7॥

Meaning - A cart should be kept at five cubits, a horse should be kept at ten cubits, an elephant should be kept at a thousand cubits, the wicked should leave the country. ।। 7 ॥

हस्तीयंकुशमात्रेणवाजी हस्तेनताड्यते ॥ 
श्रृंगालगुडहस्तेन खड्गहस्तेनदुर्जनः ॥ ८ ॥

अर्थ - हाथी केवल अंकुश से, घोड़ा हाथ से, सींग वाले जन्तु लाठी से और दुर्जन  खड्ग संयुक्त हाथ से दंड पाते हैं ॥ ८ ॥

hastīyaṁkuśamātrēṇavājī hastēnatāḍyatē ॥ 
śrr̥ṁgālaguḍahastēna khaḍgahastēnadurjanaḥ ॥ 8 ॥

Meaning - Elephants are punished only with the goad, horses with the hand, horned animals with the stick and the wicked with the combined hand of the sword. ।। 8॥

तुष्यन्तिभोजनेविप्रामयुराघनगर्जिते ॥
साधवःपरसम्पत्तौखलाः परविपत्तिषु ॥ ९ ॥

अर्थ - भोजन के समय ब्राह्मण और मेघ के गर्जने पर मयूर, दूसरे को सम्पत्ति प्राप्त होने पर साधु और दूसरे को विपत्ति आने पर दुर्जन सन्तुष्ट होते हैं॥९॥

tuṣyantibhōjanēviprāmayurāghanagarjitē ॥
sādhavaḥparasampattaukhalāḥ paravipattiṣu ॥ 9 ॥

Meaning: The Brahmin is satisfied at the time of eating and the peacock when the cloud roars, the saint when another gets wealth and the wicked when another gets calamity.।।9।।

अनुलोमेन बलिनंप्रतिलोमेनदुर्बलम् ॥ 
आत्मतुल्यबलंशत्रुविनयेनबलेनवा ॥ १० ॥

अर्थ - बली वैरी को उसके अनुकूल व्यवहार करने से, यदि वह दुर्बल हो तो उसे प्रतिकूलता से वश करें, बल में अपने समान शत्रु को विनय से अथवा बल से जीतें ॥ १० ॥

anulōmēna balinaṁpratilōmēnadurbalam ॥ 
ātmatulyabalaṁśatruvinayēnabalēnavā ॥ 10 ॥

Meaning - By behaving in a favorable manner to a powerful enemy, if he is weak then subdue him from adversity, conquer an enemy who is equal to you in strength through discipline or force. 10 ॥
ग्रन्थ का नाम : चाणक्यनीतिदर्पण,  रचनाकार – आचार्य चाणक्य,   अध्याय – 7   श्लोक-  6-10

चाणक्य की प्रसिद्धि : 

ये संस्कृत श्लोक आचार्य चाणक्य के द्वारा रचित हैं। उनका नाम कौटिल्य एवं विष्णुगुप्त के नाम से भी प्रसिद्ध है। उनकी रचनाएँ Chanakya सूत्र, chanakya niti, chanakya ni pothi, chanakya quotes, chanakya niti in hindi, chanakya quotes in hindi, चाणक्य, चाणक्य नीति,  चाणक्य नीति की 10 बातें,  चाणक्य नीति की बातें, चाणक्य के कड़वे वचन, चाणक्य नीति स्त्री, चाणक्य नीति की 100 बातें,  चाणक्य विचार इन हिंदी, चाणक्य नीति सुविचार, चाणक्य नीति जीवन जीने की, सुविचार चाणक्य के कड़वे वचन, sanskrit shlok, shlok,sanskrit, sanskrit shlok,sanskrit quotes,shlok in sanskrit, sanskrit thought, sanskrit slokas,संस्कृत श्लोक,श्लोक,छोटे संस्कृत श्लोक, आदि के रूप में चर्चित एवं प्रसिद्ध है । 

चाणक्य का कालातीत प्रभाव  :

हजारों वर्षों के उपरांत भी उनमें वही ताजगी और उपयोगिता है। अतः वे आज भी उतने ही प्रासंगिक बने हुए हैं जितने वे तब थे जब वे लिखे गये थे। संस्कृत में रचित होने के कारण उनमें कालांतर के प्रभाव को स्पष्टतः नहीं देखा जाता है क्योंकि संस्कृत भाषा का सर्वश्रेष्ठ व्याकरण उसके अस्तित्व एवं गुणवत्ता के साथ ही उसके प्रभाव कि भी सुरक्षा करता है। ये अत्यंत ज्ञानवर्धक, पठनीय एवं माननीय हैं। ये जीवन‌ के अनेक चौराहों पर हमारा मार्गदर्शन करते हैं जब सब ओर अंधकार छा जाने की प्रतीति होती है।

About Chanakya (चाणक्य के बारे में) :

 चाणक्य का प्रभाव प्राचीन भारत से परे तक फैला हुआ है, क्योंकि शासन कला और शासन पर उनके विचारों का दुनिया भर के विद्वानों और नीति निर्माताओं द्वारा अध्ययन और सम्मान किया जाता है।  राजनीति के प्रति उनका व्यावहारिक दृष्टिकोण और राज्य और उसके नागरिकों के कल्याण पर उनका जोर उन्हें एक कालातीत व्यक्ति बनाता है जिनकी बुद्धि समय और स्थान की सीमाओं से परे है।

 चाणक्यनीतिदर्पण – 7.1

चाणक्य नीति दर्पण मूलत: संस्कृत (Sanskrit) में संस्कृत सुभाषितों के रूप में, काव्यात्मक एवं श्लोकों  के रूप में लिखा हुआ ग्रंथ है। इसके रचनाकार आचार्य चाणक्य हैं। उनके ये संस्कृत श्लोक चाणक्य नीति के नाम से संसार भर में प्रसिद्ध हैं। यहां पर यह श्लोक देवनागरी लिपि एवं  रोमन लिपि में भी दिए गए हैं एवं उनके अर्थ हिंदी देवनागरी एवं अंग्रेजी में रोमन लिपि में भी दिये गये हैं। जिससे विदेशों में रहने वाले भारतीय जो देवनागरी से परिचित नहीं हैं सनातन ग्रंथों के ज्ञान से लाभान्वित हो सकें।

अथ सप्तमोऽध्यायः ॥ 7 ॥

atha saptamō’dhyāyaḥ ॥ 7 ॥

अंर्थनाशंमनस्तापंगृहिणीचरितानिच ॥ 
नीचवाक्यंचापमानंमतिमान्नप्रकाशयेत् ॥१॥

अर्थ - धन का नाश, मन का ताप, गृहणी का चरित्र, नीच का वचन और अपमान इनको बुद्धिमान् प्रकाश न करें । 

aṁrthanāśaṁmanastāpaṁgr̥hiṇīcaritānica ॥ 
nīcavākyaṁcāpamānaṁmatimānnaprakāśayēt ॥1॥

Meaning - Loss of wealth, remorse, low character of the housewife and insults should not enlighten the wise.

धनधान्यप्रयोगेषुविद्यासंग्रहणेषुच ॥ 
आहारेव्यवहारेचत्यक्तलज्जःसुखीभवेत् ॥ २ ॥
अर्थ - अन्न और धनके व्यापार में, विद्या के संग्रह करने में, आहार और व्यवहार में जो पुरुष लज्जा को दूर रखेगा वह सुखी होगा ॥ २ ॥ 

dhanadhānyaprayōgēṣuvidyāsaṁgrahaṇēṣuca ॥ 
āhārēvyavahārēcatyaktalajjaḥsukhībhavēt ॥ 2 ॥

Meaning - The man who keeps away shame in the trade of food and money, in the accumulation of knowledge, in diet and behavior will be happy.  ।।2॥

संतोष:मृततृप्तानांयत्सुखंशातिरेवंच ।। 
नचतद्धनलुब्धानामितश्चेतश्चधांवताम् ॥ ३ ॥

अर्थ - संतोषरूपी अमृत से जो लोग तृप्त होते हैं उनको जो शांतिसुख होता है वह घन के लोभ से जो इधर उधर दौडा करते हैं उनको नहीं होता ॥ ३ ॥

saṁtōṣa:mr̥tatr̥ptānāṁyatsukhaṁśātirēvaṁca ॥ 
nacataddhanalubdhānāmitaścētaścadhāṁvatām ॥ 3 ॥

Meaning - Those who are satisfied with the nectar of satisfaction, the peace and happiness that they get, is not found in those who run here and there due to greed for money.  ‌।। 3॥
संतोषस्त्रिषु कर्तव्यः स्वदारेभोजनेधने ॥ 
त्रिषुचैवनकर्तव्यो ऽध्ययने जपदानयोः ॥ ४ ॥

अर्थ - अपनी स्त्री, भोजन और धन इन तीनों में सन्तोष करना चाहिये, पढ़ना जप और दान इन तीन में सन्तोष कभी नहीं करना चाहिये ॥४॥

saṁtōṣastriṣu kartavyaḥ svadārēbhōjanēdhanē ॥ 
triṣucaivanakartavyō ’dhyayanē japadānayōḥ ॥ 4 ॥
Meaning - You should be satisfied with your wife, food and money, you should never be satisfied with reading, chanting and charity. ॥4॥

विप्रयोर्विप्रवह्लयोश्वदंपत्योःस्वामिभृत्ययोः 
अन्तरेणनगंतव्यंद्दलस्यवृषभस्यच ॥ ५ ॥

अर्थ - दो ब्राह्मण, ब्राह्मण और भग्न, स्त्री पुरुष, स्वामी भृत्य, हल और बैल इनके मध्य होकर नहीं जाना चाहिये ॥ ५ ॥

viprayōrvipravahlayōśvadaṁpatyōḥsvāmibhr̥tyayōḥ 
antarēṇanagaṁtavyaṁddalasyavr̥ṣabhasyaca ॥ 5 ॥

Meaning - One should not pass between two Brahmins, Brahmins and Bhagna, man and woman, master and servant, plow and bull.  ।‌। 5॥
ग्रन्थ का नाम : चाणक्यनीतिदर्पण,  रचनाकार – आचार्य चाणक्य,   अध्याय – 7   श्लोक-  1-5

चाणक्य की प्रसिद्धि : 

ये संस्कृत श्लोक आचार्य चाणक्य के द्वारा रचित हैं। उनका नाम कौटिल्य एवं विष्णुगुप्त के नाम से भी प्रसिद्ध है। उनकी रचनाएँ Chanakya सूत्र, chanakya niti, chanakya ni pothi, chanakya quotes, chanakya niti in hindi, chanakya quotes in hindi, चाणक्य, चाणक्य नीति,  चाणक्य नीति की 10 बातें,  चाणक्य नीति की बातें, चाणक्य के कड़वे वचन, चाणक्य नीति स्त्री, चाणक्य नीति की 100 बातें,  चाणक्य विचार इन हिंदी, चाणक्य नीति सुविचार, चाणक्य नीति जीवन जीने की, सुविचार चाणक्य के कड़वे वचन, sanskrit shlok, shlok,sanskrit, sanskrit shlok,sanskrit quotes,shlok in sanskrit, sanskrit thought, sanskrit slokas,संस्कृत श्लोक,श्लोक,छोटे संस्कृत श्लोक, आदि के रूप में चर्चित एवं प्रसिद्ध है । 

चाणक्य का कालातीत प्रभाव  :

हजारों वर्षों के उपरांत भी उनमें वही ताजगी और उपयोगिता है। अतः वे आज भी उतने ही प्रासंगिक बने हुए हैं जितने वे तब थे जब वे लिखे गये थे। संस्कृत में रचित होने के कारण उनमें कालांतर के प्रभाव को स्पष्टतः नहीं देखा जाता है क्योंकि संस्कृत भाषा का सर्वश्रेष्ठ व्याकरण उसके अस्तित्व एवं गुणवत्ता के साथ ही उसके प्रभाव कि भी सुरक्षा करता है। ये अत्यंत ज्ञानवर्धक, पठनीय एवं माननीय हैं। ये जीवन‌ के अनेक चौराहों पर हमारा मार्गदर्शन करते हैं जब सब ओर अंधकार छा जाने की प्रतीति होती है।

About Chanakya (चाणक्य के बारे में) :

 चाणक्य का प्रभाव प्राचीन भारत से परे तक फैला हुआ है, क्योंकि शासन कला और शासन पर उनके विचारों का दुनिया भर के विद्वानों और नीति निर्माताओं द्वारा अध्ययन और सम्मान किया जाता है।  राजनीति के प्रति उनका व्यावहारिक दृष्टिकोण और राज्य और उसके नागरिकों के कल्याण पर उनका जोर उन्हें एक कालातीत व्यक्ति बनाता है जिनकी बुद्धि समय और स्थान की सीमाओं से परे है।

 चाणक्यनीतिदर्पण – 6.4

चाणक्य नीति दर्पण मूलत: संस्कृत (Sanskrit) में संस्कृत सुभाषितों के रूप में, काव्यात्मक एवं श्लोकों  के रूप में लिखा हुआ ग्रंथ है। इसके रचनाकार आचार्य चाणक्य हैं। उनके ये संस्कृत श्लोक चाणक्य नीति के नाम से संसार भर में प्रसिद्ध हैं। यहां पर यह श्लोक देवनागरी लिपि एवं  रोमन लिपि में भी दिए गए हैं एवं उनके अर्थ हिंदी देवनागरी एवं अंग्रेजी में रोमन लिपि में भी दिये गये हैं। जिससे विदेशों में रहने वाले भारतीय जो देवनागरी से परिचित नहीं हैं सनातन ग्रंथों के ज्ञान से लाभान्वित हो सकें।

अथ षष्ठमोऽध्यायः ॥ 6 ॥

atha ṣaṣṭhamō’dhyāyaḥ ॥ 6 ॥

प्रभूतं कार्य मल्पंवातन्नरः कर्तुमिच्छति ॥ 
सौरंभणतत्कार्यसिंहादेकं प्रचक्षते ॥ १६ ॥

अर्थ - कार्य छोटा हो या बड़ा, जो करणीय हो उसको सब प्रकारके प्रयत्नसे करना उचित है, इस एकको सिंह से सीखना कहते हैं ॥ १६ ॥

prabhūtaṁ kārya malpaṁvātannaraḥ kartumicchati ॥ 
sauraṁbhaṇatatkāryasiṁhādēkaṁ pracakṣatē ॥ 16 ॥

Meaning - Whether the work is small or big, it is appropriate to do it with all possible efforts, this is called learning from the lion.  ।। 16 ॥

इंद्रियाणिचसंयम्यवकवत्पंण्डितोनरः 
देशकालबलंज्ञात्वासर्वकार्याणिसाधयेत् ।१७।

अर्थ - विद्वान् पुरुषको चाहिये कि, इन्द्रियों का संयम करके देश काल और बलको समझकर बकुलाके समान सब कार्यको साधे ॥ १७ ॥

iṁdriyāṇicasaṁyamyavakavatpaṁṇḍitōnaraḥ 
dēśakālabalaṁjñātvāsarvakāryāṇisādhayēt |17|
Meaning - A learned man should control his senses and understand the time, space and force and perform all the tasks like Bakula.  ।। 17 ॥


प्रत्युत्थानं चयुद्धंचसंविभागंचबन्धुषु ॥ 
स्वयमाक्रम्यभोगंच शिक्षेच्चत्वारिकुक्कुटात ॥ १८ ॥

अर्थ - उचितसमय में जागना, रणमें उद्यत रहना और बन्धुओंको उनका भाग देना और आप आकर जो सहज में प्राप्त हो उसका भोग करें, इनचार बातों को कुक्कुटसे सीखना चाहिये ॥ १८ ॥

pratyutthānaṁ cayuddhaṁcasaṁvibhāgaṁcabandhuṣu ॥ 
svayamākramyabhōgaṁca śikṣēccatvārikukkuṭāta ॥ 18 ॥

Meaning: Waking up at the right time, being alert in battle, giving your brothers their share and enjoying what you get easily after coming, these four things should be learned from the chicken.  ।। 18 ॥

गूढमैथुनंचारित्वम्कालेचालयसंग्रहम् ॥ 
अप्रमादमविश्वासंपंचाशक्षेच्चवायसात् ॥१९॥

अर्थ - छिपकर मैथुन करना धैर्य करना समयमें घर संग्रह करना, सावधान रहना और किसी पर विश्वास न करना इन पांचोंको कौवेसे सीखना उचित है ॥१९॥

gūḍhamaithunaṁcāritvamkālēcālayasaṁgraham ॥ 
apramādamaviśvāsaṁpaṁcāśakṣēccavāyasāt ॥19॥

Meaning - It is appropriate to learn these five things from crows - to have sex secretly, to be patient, to collect household goods in time, to be careful and not to trust anyone. ।।१९।।

बह्वाशो स्वल्पसंतुष्टःसुनिद्रोलघुचेतनः ॥ 
स्वामिभक्तश्चशूर श्वषडेतेश्वांनतोगुणाः ॥२०॥

अर्थ - बहुत खानेकी शक्ति रहते भी थोडे ही से संतुष्ट होना, गाढ निद्रा रहतेभी झटपट जागना, स्वामीकी भक्ति और शूरता इन छः गुणोंको कुत्ते से सीखना चाहिये ॥ २० ॥

bahvāśō svalpasaṁtuṣṭaḥsunidrōlaghucētanaḥ ॥ 
svāmibhaktaścaśūra śvaṣaḍētēśvāṁnatōguṇāḥ ॥20॥

Meaning: Being satisfied with a little while still having the power to eat a lot, waking up quickly even while in deep sleep, devotion to the master and bravery, these six qualities should be learned from a dog.  ।। 20 ॥

सुश्रांतोऽपिवहेद्भारं शीतोष्णंनचपश्यति ॥ 
संतुष्टश्वस्तेनित्यंत्रीणिशिक्षेच्चगर्दभात् ॥२१॥

अर्थ - अत्यंत थकजानेपरभी बोझको ढोते जाना, शीत और उष्णपर दृष्टि न देना, सदा सन्तुष्ट होकर विचरना, इन तीन बातोंको गदहेसे सीखना चाहिये।।२१।।

suśrāṁtō’pivahēdbhāraṁ śītōṣṇaṁnacapaśyati ॥ 
saṁtuṣṭaśvastēnityaṁtrīṇiśikṣēccagardabhāt ॥21॥

Meaning - To carry the burden even when extremely tired, not to pay attention to cold and heat, to always wander around contentedly, these three things should be learned from the donkey. ।।21.।।

यएतान् विंशतिगुणानाचरिष्यतिमानवः ॥ 
कार्यावस्थासुसर्वासुअजेयःसभविष्यति॥२२॥

अर्थ - जो नर इन बीस गुणोंको धारण करेगा वह सदा सब कार्योंमें विजयी होगा ॥ २२ ॥

yētān viṁśatiguṇānācariṣyatimānavaḥ ॥ 
kāryāvasthāsusarvāsuajēyaḥsabhaviṣyati॥22॥

Meaning - The man who possesses these twenty qualities will always be victorious in all tasks. ।। 22 ॥
इति षष्ठमोऽध्यायः ॥ 6 ॥
iti ṣaṣṭhamō’dhyāyaḥ ॥ 6 ॥
ग्रन्थ का नाम : चाणक्यनीतिदर्पण,  रचनाकार – आचार्य चाणक्य,   अध्याय – 6   श्लोक-  16-22

चाणक्य की प्रसिद्धि : 

ये संस्कृत श्लोक आचार्य चाणक्य के द्वारा रचित हैं। उनका नाम कौटिल्य एवं विष्णुगुप्त के नाम से भी प्रसिद्ध है। उनकी रचनाएँ Chanakya सूत्र, chanakya niti, chanakya ni pothi, chanakya quotes, chanakya niti in hindi, chanakya quotes in hindi, चाणक्य, चाणक्य नीति,  चाणक्य नीति की 10 बातें,  चाणक्य नीति की बातें, चाणक्य के कड़वे वचन, चाणक्य नीति स्त्री, चाणक्य नीति की 100 बातें,  चाणक्य विचार इन हिंदी, चाणक्य नीति सुविचार, चाणक्य नीति जीवन जीने की, सुविचार चाणक्य के कड़वे वचन, sanskrit shlok, shlok,sanskrit, sanskrit shlok,sanskrit quotes,shlok in sanskrit, sanskrit thought, sanskrit slokas,संस्कृत श्लोक,श्लोक,छोटे संस्कृत श्लोक, आदि के रूप में चर्चित एवं प्रसिद्ध है । 

चाणक्य का कालातीत प्रभाव  :

हजारों वर्षों के उपरांत भी उनमें वही ताजगी और उपयोगिता है। अतः वे आज भी उतने ही प्रासंगिक बने हुए हैं जितने वे तब थे जब वे लिखे गये थे। संस्कृत में रचित होने के कारण उनमें कालांतर के प्रभाव को स्पष्टतः नहीं देखा जाता है क्योंकि संस्कृत भाषा का सर्वश्रेष्ठ व्याकरण उसके अस्तित्व एवं गुणवत्ता के साथ ही उसके प्रभाव कि भी सुरक्षा करता है। ये अत्यंत ज्ञानवर्धक, पठनीय एवं माननीय हैं। ये जीवन‌ के अनेक चौराहों पर हमारा मार्गदर्शन करते हैं जब सब ओर अंधकार छा जाने की प्रतीति होती है।

About Chanakya (चाणक्य के बारे में) :

 चाणक्य का प्रभाव प्राचीन भारत से परे तक फैला हुआ है, क्योंकि शासन कला और शासन पर उनके विचारों का दुनिया भर के विद्वानों और नीति निर्माताओं द्वारा अध्ययन और सम्मान किया जाता है।  राजनीति के प्रति उनका व्यावहारिक दृष्टिकोण और राज्य और उसके नागरिकों के कल्याण पर उनका जोर उन्हें एक कालातीत व्यक्ति बनाता है जिनकी बुद्धि समय और स्थान की सीमाओं से परे है।

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 चाणक्यनीतिदर्पण – 6.3

चाणक्य नीति दर्पण मूलत: संस्कृत (Sanskrit) में संस्कृत सुभाषितों के रूप में, काव्यात्मक एवं श्लोकों  के रूप में लिखा हुआ ग्रंथ है। इसके रचनाकार आचार्य चाणक्य हैं। उनके ये संस्कृत श्लोक चाणक्य नीति के नाम से संसार भर में प्रसिद्ध हैं। यहां पर यह श्लोक देवनागरी लिपि एवं  रोमन लिपि में भी दिए गए हैं एवं उनके अर्थ हिंदी देवनागरी एवं अंग्रेजी में रोमन लिपि में भी दिये गये हैं। जिससे विदेशों में रहने वाले भारतीय जो देवनागरी से परिचित नहीं हैं सनातन ग्रंथों के ज्ञान से लाभान्वित हो सकें।

अथ षष्ठमोऽध्यायः ॥ 6 ॥

atha ṣaṣṭhamō’dhyāyaḥ ॥ 6 ॥

ऋणकर्तापिताशत्रुर्माता चव्यभिचारिणी ॥ 
भार्यारूपवतीशत्रुः पुत्रशत्रूरपण्डितः ॥ ११ ॥

अर्थ - ऋण करनेवाला पिता शत्रु है, व्यभिचारिणी माता और सुन्दरी स्त्री शत्रु है, और मूर्ख पुत्र वैरी है ॥ ११ ॥

r̥ṇakartāpitāśatrurmātā cavyabhicāriṇī ॥ 
bhāryārūpavatīśatruḥ putraśatrūrapaṇḍitaḥ ॥ 11 ॥
Meaning: A father who borrows is an enemy, an adulterous mother and a beautiful woman are enemies, and a foolish son is an enemy. ।। 11 ॥

लुब्धमर्थेनगृह्णीयात्स्तब्धमंज क्लिकर्मणा॥ 
मूर्खछंदानुर्टत्त्याचयथार्थत्वेनपण्डितम् ॥१२॥


अर्थ - लोभीको घनसे, अहंकारीको हाथ जोड़नेसे, मूर्खको उसके अनुसार वर्तनेसे और पंडित को सच्चाईसे, वश करना चाहिये। १२॥

lubdhamarthēnagr̥hṇīyātstabdhamaṁja klikarmaṇā॥ 
mūrkhachaṁdānurṭattyācayathārthatvēnapaṇḍitam ॥12॥

Meaning: The greedy person should be controlled with his fist, the arrogant person should be controlled with folded hands, the fool should be controlled by speaking accordingly and the wise person should be controlled with truth.  ।।12॥

वरंनराज्यं नकुराजराज्यं वरंनमित्रनकुमित्र मित्रं । 
वरंनर्शिष्योनकुशिष्याशिष्योवरंनद्वारा नकुद्रार दाराः ॥ १३ ॥

अर्थ - राज्य न रहना यह अच्छा, परन्तु कुराजा का राज्य होना यह अच्छा नहीं। मित्रका न होना यह अच्छा, परंतु कुमित्रको मित्र करना अच्छा नहीं, शिष्य नहो यह अच्छा परंतु निंदित शिष्य कहलावे यह अच्छा नहीं, भार्या न रहे यह अच्छा पर कुभार्या का भार्या होना अच्छा नहीं ॥ १३ ॥

varaṁnarājyaṁ nakurājarājyaṁ varaṁnamitranakumitra mitraṁ | 
varaṁnarśiṣyōnakuśiṣyāśiṣyōvaraṁnadvārā nakudrāra dārāḥ ॥ 13 ॥

Meaning - It is good not to have a kingdom, but it is not good to have a kingdom of Kuraja.  It is good not to have a friend, but it is not good to have a bad friend as a friend, it is good not to have a disciple, but it is not good to be called a condemned disciple, it is good not to have a wife, but it is not good to be the wife of a bad wife.  ।। 13 ॥

कुराजंराज्येनकुतःप्रजासुखं कुमित्र मित्रेणकुतोऽभिनिर्वृतिः ॥ 
कुदार दारैश्वकुतो गृहेरतिः कुशिष्यमाध्यापयतः कुतोयशः ॥१४॥

दुष्ट राजा के राज्य में प्रजाको सुख, और कुमित्र मित्रसे आनन्द, कैसे हो सकता है, दुष्ट स्त्रीसे गृह मैं प्रीति और कुशिष्यको पढ़ानेवाले की कीर्ति, कैसे होगी ॥ १४ ॥

kurājaṁrājyēnakutaḥprajāsukhaṁ kumitra mitrēṇakutō’bhinirvr̥tiḥ ॥ 
kudāra dāraiśvakutō gr̥hēratiḥ kuśiṣyamādhyāpayataḥ kutōyaśaḥ ॥14॥

How can the people be happy in the kingdom of an evil king, how can there be joy from a wicked friend, how can there be love in the house for an evil woman and how can there be fame for the one who teaches the unruly disciple?  ।। 14 ॥

सिंहादेकंब कादेकंशिक्षेच्चत्वारि कुक्कुटात्।। 
वायसात्पंचारीक्षेच्चषट्शुनस्त्रीणिगर्दभात्।। १५।।

अर्थ - सिंहसे एक, बकुलेसे एक, कक्कुटसे चार, कोवेसे पांच, कुत्तेसे छः और गदहेसे तीन गुण सीखना उचित है ॥ १५ ॥ 

siṁhādēkaṁba kādēkaṁśikṣēccatvāri kukkuṭāt॥ 
vāyasātpaṁcārīkṣēccaṣaṭśunastrīṇigardabhāt| 15|

Meaning - It is appropriate to learn one quality from a lion, one from a crow, four from a cockerel, five from a crow, six from a dog and three from a donkey. ।। 15.।।
ग्रन्थ का नाम : चाणक्यनीतिदर्पण,  रचनाकार – आचार्य चाणक्य,   अध्याय – 6   श्लोक-  11-15

चाणक्य की प्रसिद्धि : 

ये संस्कृत श्लोक आचार्य चाणक्य के द्वारा रचित हैं। उनका नाम कौटिल्य एवं विष्णुगुप्त के नाम से भी प्रसिद्ध है। उनकी रचनाएँ Chanakya सूत्र, chanakya niti, chanakya ni pothi, chanakya quotes, chanakya niti in hindi, chanakya quotes in hindi, चाणक्य, चाणक्य नीति,  चाणक्य नीति की 10 बातें,  चाणक्य नीति की बातें, चाणक्य के कड़वे वचन, चाणक्य नीति स्त्री, चाणक्य नीति की 100 बातें,  चाणक्य विचार इन हिंदी, चाणक्य नीति सुविचार, चाणक्य नीति जीवन जीने की, सुविचार चाणक्य के कड़वे वचन, sanskrit shlok, shlok,sanskrit, sanskrit shlok,sanskrit quotes,shlok in sanskrit, sanskrit thought, sanskrit slokas,संस्कृत श्लोक,श्लोक,छोटे संस्कृत श्लोक, आदि के रूप में चर्चित एवं प्रसिद्ध है । 

चाणक्य का कालातीत प्रभाव  :

हजारों वर्षों के उपरांत भी उनमें वही ताजगी और उपयोगिता है। अतः वे आज भी उतने ही प्रासंगिक बने हुए हैं जितने वे तब थे जब वे लिखे गये थे। संस्कृत में रचित होने के कारण उनमें कालांतर के प्रभाव को स्पष्टतः नहीं देखा जाता है क्योंकि संस्कृत भाषा का सर्वश्रेष्ठ व्याकरण उसके अस्तित्व एवं गुणवत्ता के साथ ही उसके प्रभाव कि भी सुरक्षा करता है। ये अत्यंत ज्ञानवर्धक, पठनीय एवं माननीय हैं। ये जीवन‌ के अनेक चौराहों पर हमारा मार्गदर्शन करते हैं जब सब ओर अंधकार छा जाने की प्रतीति होती है।

About Chanakya (चाणक्य के बारे में) :

 चाणक्य का प्रभाव प्राचीन भारत से परे तक फैला हुआ है, क्योंकि शासन कला और शासन पर उनके विचारों का दुनिया भर के विद्वानों और नीति निर्माताओं द्वारा अध्ययन और सम्मान किया जाता है।  राजनीति के प्रति उनका व्यावहारिक दृष्टिकोण और राज्य और उसके नागरिकों के कल्याण पर उनका जोर उन्हें एक कालातीत व्यक्ति बनाता है जिनकी बुद्धि समय और स्थान की सीमाओं से परे है।

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 चाणक्यनीतिदर्पण – 6.2

चाणक्य नीति दर्पण मूलत: संस्कृत (Sanskrit) में संस्कृत सुभाषितों के रूप में, काव्यात्मक एवं श्लोकों  के रूप में लिखा हुआ ग्रंथ है। इसके रचनाकार आचार्य चाणक्य हैं। उनके ये संस्कृत श्लोक चाणक्य नीति के नाम से संसार भर में प्रसिद्ध हैं। यहां पर यह श्लोक देवनागरी लिपि एवं  रोमन लिपि में भी दिए गए हैं एवं उनके अर्थ हिंदी देवनागरी एवं अंग्रेजी में रोमन लिपि में भी दिये गये हैं। जिससे विदेशों में रहने वाले भारतीय जो देवनागरी से परिचित नहीं हैं सनातन ग्रंथों के ज्ञान से लाभान्वित हो सकें।

अथ षष्ठमोऽध्यायः ॥ 6 ॥

atha ṣaṣṭhamō’dhyāyaḥ ॥ 6 ॥

तादृशीजायतेबुद्धिर्व्यवसायोपितादृशः ॥ 
सह: यास्तादृशाएवयादृशीभवितव्यता ॥६॥

अर्थ - वैसे ही बुद्धि और वैसा ही उपाय होता है और वैसे ही सहायक मिलते हैं जैसा होनहार है ॥ ६ ॥

tādr̥śījāyatēbuddhirvyavasāyōpitādr̥śaḥ ॥ 
saha: yāstādr̥śāēvayādr̥śībhavitavyatā ॥6॥

Meaning - One has the same intelligence and the same solution and one gets the helper as per the promise. ।। 6॥

कालः पचतिभूतानिकालःसंहरतेप्रजाः ॥ 
कालः सुप्तेषुजागर्तिका लोहिदुरातिक्रमः ॥७॥

अर्थ - काल सब प्राणियों को खा जाता है और काल ही सब प्रजा का नाश करता है सब पदार्थ के लय हो जाने पर काल जागता रहता है काल को कोई नहीं टाल सकता ॥ ७ ॥

kālaḥ pacatibhūtānikālaḥsaṁharatēprajāḥ ॥ 
kālaḥ suptēṣujāgartikā lōhidurātikramaḥ ॥7॥

Meaning - Time eats up all living beings and time itself destroys all people. When all things are in harmony, time remains awake. No one can avoid time.  ।। 7 ॥

नपश्यतिचजन्मान्धःकामान्धोनैवपश्यति ॥ 
मदोन्मत्तानपश्यंति अर्थीदोषंनपश्यति ॥ ८॥

अर्थ - जन्म का अन्धा नहीं देखता, काम से जो अन्धा हो रहा है उसको सूझता नहीं, मदोन्मत्त किसी को देखता नहीं और अर्थी दोषको नहीं देखता। ॥८।।

napaśyaticajanmāndhaḥkāmāndhōnaivapaśyati ॥ 
madōnmattānapaśyaṁti arthīdōṣaṁnapaśyati ॥ 8॥

Meaning - A person blind by birth does not see, one who is blinded by lust does not understand, an intoxicated person does not see anyone and a sick person does not see the fault.  ॥8।।

स्वयंकर्मकरोत्यात्मा स्वर्यतत्फलमश्नुते ॥ 
स्वयंश्त्रमतिसंसारेस्वयंतस्माद्विमुच्यते ॥ ९ ॥

अर्थ - जीव आपही कर्म करता है और उसका फलभी 'आपही भोगता है, आपही संसार में भ्रमता है और आपही उससे मुक्त भी होता है ॥ ९ ॥

svayaṁkarmakarōtyātmā svaryatatphalamaśnutē ॥ 
svayaṁśtramatisaṁsārēsvayaṁtasmādvimucyatē ॥ 9 ॥
Meaning - The living being does his own work and suffers its consequences on his own, gets lost in the world on his own and is freed from it on his own.  ।।9॥

राजा राष्ट्रष्कृतंपापराज्ञःपापं पुरोहितः ॥ 
भंर्ताच स्वीकृतं पापंशिष्यपापंगुरुस्तथा ॥१०॥

अर्थ - अपने राज्यमें किये हुवे पापको राजा, और राजा के पापको पुरोहित भोगता है, स्त्रीक्कृतपापको स्वामी भोगता है, वैसेही शिष्यके पापको गुरु ॥ १० ॥
rājā rāṣṭraṣkr̥taṁpāparājñaḥpāpaṁ purōhitaḥ ॥ 
bhaṁrtāca svīkr̥taṁ pāpaṁśiṣyapāpaṁgurustathā ॥10॥

Meaning - The king suffers for the sins committed in his kingdom and the priest for the king's sins, the master suffers for the sins committed by the woman, similarly the teacher suffers for the sins of the disciple.  ।। 10 ॥
ग्रन्थ का नाम : चाणक्यनीतिदर्पण,  रचनाकार – आचार्य चाणक्य,   अध्याय – 6   श्लोक-  1-5

चाणक्य की प्रसिद्धि : 

ये संस्कृत श्लोक आचार्य चाणक्य के द्वारा रचित हैं। उनका नाम कौटिल्य एवं विष्णुगुप्त के नाम से भी प्रसिद्ध है। उनकी रचनाएँ Chanakya सूत्र, chanakya niti, chanakya ni pothi, chanakya quotes, chanakya niti in hindi, chanakya quotes in hindi, चाणक्य, चाणक्य नीति,  चाणक्य नीति की 10 बातें,  चाणक्य नीति की बातें, चाणक्य के कड़वे वचन, चाणक्य नीति स्त्री, चाणक्य नीति की 100 बातें,  चाणक्य विचार इन हिंदी, चाणक्य नीति सुविचार, चाणक्य नीति जीवन जीने की, सुविचार चाणक्य के कड़वे वचन, sanskrit shlok, shlok,sanskrit, sanskrit shlok,sanskrit quotes,shlok in sanskrit, sanskrit thought, sanskrit slokas,संस्कृत श्लोक,श्लोक,छोटे संस्कृत श्लोक, आदि के रूप में चर्चित एवं प्रसिद्ध है । 

चाणक्य का कालातीत प्रभाव  :

हजारों वर्षों के उपरांत भी उनमें वही ताजगी और उपयोगिता है। अतः वे आज भी उतने ही प्रासंगिक बने हुए हैं जितने वे तब थे जब वे लिखे गये थे। संस्कृत में रचित होने के कारण उनमें कालांतर के प्रभाव को स्पष्टतः नहीं देखा जाता है क्योंकि संस्कृत भाषा का सर्वश्रेष्ठ व्याकरण उसके अस्तित्व एवं गुणवत्ता के साथ ही उसके प्रभाव कि भी सुरक्षा करता है। ये अत्यंत ज्ञानवर्धक, पठनीय एवं माननीय हैं। ये जीवन‌ के अनेक चौराहों पर हमारा मार्गदर्शन करते हैं जब सब ओर अंधकार छा जाने की प्रतीति होती है।

About Chanakya (चाणक्य के बारे में) :

 चाणक्य का प्रभाव प्राचीन भारत से परे तक फैला हुआ है, क्योंकि शासन कला और शासन पर उनके विचारों का दुनिया भर के विद्वानों और नीति निर्माताओं द्वारा अध्ययन और सम्मान किया जाता है।  राजनीति के प्रति उनका व्यावहारिक दृष्टिकोण और राज्य और उसके नागरिकों के कल्याण पर उनका जोर उन्हें एक कालातीत व्यक्ति बनाता है जिनकी बुद्धि समय और स्थान की सीमाओं से परे है।

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