Category: Ashtakam

Kalabhairava Ashtakam

कालभैरवाष्टकम्

Kalabhairava Ashtakam कालभैरवाष्टकम्

Kalabhairava Ashtakam in Sanskrit – कालभैरवाष्टकम्

देवराजसेव्यमानपावनाङ्घ्रिपङ्कजं
व्यालयज्ञसूत्रमिन्दुशेखरं कृपाकरम् ।
नारदादियोगिबृन्दवन्दितं दिगम्बरं
काशिकापुराधिनाथ कालभैरवं भजे ॥ १ ॥

भानुकोटिभास्वरं भवाब्धितारकं परं
नीलकण्ठमीप्सितार्थदायकं त्रिलोचनम् ।
कालकालमम्बुजाक्षमक्षशूलमक्षरं
काशिकापुराधिनाथ कालभैरवं भजे ॥ २ ॥

शूलटङ्कपाशदण्डपाणिमादिकारणं
श्यामकायमादिदेवमक्षरं निरामयम् ।
भीमविक्रमं प्रभुं विचित्रताण्डवप्रियं
काशिकापुराधिनाथ कालभैरवं भजे ॥ ३ ॥

भुक्तिमुक्तिदायकं प्रशस्तचारुविग्रहं
भक्तवत्सलं स्थिरं समस्तलोकविग्रहम् ।
निक्वणन्मनोज्ञहेमकिङ्किणीलसत्कटिं
काशिकापुराधिनाथ कालभैरवं भजे ॥ ४ ॥

धर्मसेतुपालकं त्वधर्ममार्गनाशकं
कर्मपाशमोचकं सुशर्मदायकं विभुम् ।
स्वर्णवर्णकेशपाशशोभिताङ्गनिर्मलं
काशिकापुराधिनाथ कालभैरवं भजे ॥ ५ ॥

रत्नपादुकाप्रभाभिरामपादयुग्मकं
नित्यमद्वितीयमिष्टदैवतं निरञ्जनम् ।
मृत्युदर्पनाशनं करालदंष्ट्रभूषणं
काशिकापुराधिनाथ कालभैरवं भजे ॥ ६ ॥

अट्‍टहासभिन्नपद्मजाण्डकोशसन्ततिं
दृष्टिपातनष्टपापजालमुग्रशासनम् ।
अष्टसिद्धिदायकं कपालमालिकाधरं
काशिकापुराधिनाथ कालभैरवं भजे ॥ ७ ॥

भूतसङ्घनायकं विशालकीर्तिदायकं
काशिवासिलोकपुण्यपापशोधकं विभुम् ।
नीतिमार्गकोविदं पुरातनं जगत्पतिं
काशिकापुराधिनाथ कालभैरवं भजे ॥ ८ ॥

कालभैरवाष्टकं पठन्ति ये मनोहरं
ज्ञानमुक्तिसाधकं विचित्रपुण्यवर्धनम् ।
शोकमोहदैन्यलोभकोपतापनाशनं
ते प्रयान्ति कालभैरवाङ्घ्रिसन्निधिं ध्रुवम् ॥ ९ ॥

इति श्रीमच्छङ्कराचार्य विरचितं कालभैरवाष्टकं सम्पूर्णम् ।

Kalabhairava Ashtakam in English – kālabhairavāṣṭakam

dēvarājasēvyamānapāvanāṅghripaṅkajaṁ
vyālayajñasūtraminduśēkharaṁ kr̥pākaram |
nāradādiyōgibr̥ndavanditaṁ digambaraṁ
kāśikāpurādhinātha kālabhairavaṁ bhajē || 1 ||

bhānukōṭibhāsvaraṁ bhavābdhitārakaṁ paraṁ
nīlakaṇṭhamīpsitārthadāyakaṁ trilōcanam |
kālakālamambujākṣamakṣaśūlamakṣaraṁ
kāśikāpurādhinātha kālabhairavaṁ bhajē || 2 ||

śūlaṭaṅkapāśadaṇḍapāṇimādikāraṇaṁ
śyāmakāyamādidēvamakṣaraṁ nirāmayam |
bhīmavikramaṁ prabhuṁ vicitratāṇḍavapriyaṁ
kāśikāpurādhinātha kālabhairavaṁ bhajē || 3 ||

bhuktimuktidāyakaṁ praśastacāruvigrahaṁ
bhaktavatsalaṁ sthiraṁ samastalōkavigraham |
nikvaṇanmanōjñahēmakiṅkiṇīlasatkaṭiṁ
kāśikāpurādhinātha kālabhairavaṁ bhajē || 4 ||

dharmasētupālakaṁ tvadharmamārganāśakaṁ
karmapāśamōcakaṁ suśarmadāyakaṁ vibhum |
svarṇavarṇakēśapāśaśōbhitāṅganirmalaṁ
kāśikāpurādhinātha kālabhairavaṁ bhajē || 5 ||

ratnapādukāprabhābhirāmapādayugmakaṁ
nityamadvitīyamiṣṭadaivataṁ nirañjanam |
mr̥tyudarpanāśanaṁ karāladaṁṣṭrabhūṣaṇaṁ
kāśikāpurādhinātha kālabhairavaṁ bhajē || 6 ||

aṭ-ṭahāsabhinnapadmajāṇḍakōśasantatiṁ
dr̥ṣṭipātanaṣṭapāpajālamugraśāsanam |
aṣṭasiddhidāyakaṁ kapālamālikādharaṁ
kāśikāpurādhinātha kālabhairavaṁ bhajē || 7 ||

bhūtasaṅghanāyakaṁ viśālakīrtidāyakaṁ
kāśivāsilōkapuṇyapāpaśōdhakaṁ vibhum |
nītimārgakōvidaṁ purātanaṁ jagatpatiṁ
kāśikāpurādhinātha kālabhairavaṁ bhajē || 8 ||

kālabhairavāṣṭakaṁ paṭhanti yē manōharaṁ
jñānamuktisādhakaṁ vicitrapuṇyavardhanam |
śōkamōhadainyalōbhakōpatāpanāśanaṁ
tē prayānti kālabhairavāṅghrisannidhiṁ dhruvam || 9 ||

iti śrīmacchaṅkarācārya viracitaṁ kālabhairavāṣṭakaṁ sampūrṇam |

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कालभैरव कौन हैं?

योगिक विद्या में कहा जाता है कि शिव के 108 अलग-अलग नाम हैं, जिनमें से प्रत्येक का एक अनोखा रूप है। शिव का प्रत्येक रूप एक अलग आयाम का प्रतिनिधित्व करता है। शिव के सबसे भयानक रूपों में से एक कालभैरव है – खोपड़ियों की माला से सुशोभित एक भयंकर योद्धा। कालभैरव का शाब्दिक अर्थ है जो इतना भयानक है कि समय भी उससे डरता है। इस रूप में, शिव समय के विनाशक हैं, एक प्रतीकवाद जो आध्यात्मिक पथ पर चलने वाले व्यक्ति के लिए अत्यधिक प्रासंगिक है।

कालभैरव अष्टकम

श्रद्धेय आदि शंकराचार्य की एक उत्कृष्ट रचना, कालभैरव अष्टकम में आठ श्लोक हैं, जो अक्सर संस्कृत श्लोकों को प्रस्तुत करने का एक सामान्य प्रारूप है। यह कालभैरव के गुणों का बखान करता है, प्रत्येक श्लोक में उन्हें भारत के एक प्रमुख पवित्र शहर काशी में रहने वाले गौरवशाली व्यक्ति के रूप में संदर्भित करता है। कालभैरव को सर्वोच्च व्यक्ति के रूप में वर्णित किया गया है जिनकी शक्ति और कृपा किसी व्यक्ति को जीवन और मृत्यु दोनों की सीमाओं को पार करने में मदद कर सकती है। भले ही कोई भाषा नहीं समझता हो, अष्टकम की ध्वनि सुनने में सुखदायक और उत्साहवर्धक होती है।

कालभैरव अष्टकम किसने लिखा?

यह प्रतिष्ठित अष्टकम आदि शंकराचार्य द्वारा लिखा गया था, जिन्होंने भारतीय उपमहाद्वीप में अद्वैत वेदांत के प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। उन्होंने पूरे देश में बड़े पैमाने पर यात्रा की, जहां भी वे गए, उन्होंने वाद-विवाद किया और प्रवचन दिए। उस समय की संस्कृति पर उनकी प्रसिद्धि और प्रभाव ऐसा था कि वह इस भूमि के आध्यात्मिक लोकाचार में एक अमिट प्रतीक बन गए हैं। आदि शंकराचार्य को दशनामी मठ व्यवस्था को संगठित करने का श्रेय भी दिया जाता है, जो अभी भी दस अखाड़ों या अद्वितीय आध्यात्मिक संप्रदायों के रूप में मौजूद है। ऐसा कहा जाता है कि उन्होंने आध्यात्मिकता पर 250 से अधिक विभिन्न ग्रंथ लिखे।

श्री रुद्राष्टकम्

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श्री रुद्राष्टकम् स्तोत्र तुलसीदास द्वारा भगवान् शिव की स्तुति हेतु रचित एवं प्रथम गायित है। इसका उल्लेख श्री रामचरितमानस के उत्तर कांड में आता है। तुलसीदास कलियुग के कष्टों का वर्णन करते हैं और उससे मुक्ति के लिये इस स्तोत्र का पाठ करने का सुझाव देते हैं। यह भुजङ्प्र्यात् छंद में लिखा गया है |

श्री रुद्राष्टकम् स्तोत्र  संस्कृत 

नमामीशमीशान निर्वाणरूपं
विभुं व्यापकं ब्रह्मवेदस्वरूपम्
निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं
चिदाकाशमाकाशवासं भजेहम्

निराकारमोङ्करमूलं तुरीयं
गिराज्ञानगोतीतमीशं गिरीशम् ।
करालं महाकालकालं कृपालं
गुणागारसंसारपारं नतोहम्

तुषाराद्रिसंकाशगौरं गभिरं
मनोभूतकोटिप्रभाश्री शरीरम् ।
स्फुरन्मौलिकल्लोलिनी चारुगङ्गा
लसद्भालबालेन्दु कण्ठे भुजङ्गा

चलत्कुण्डलं भ्रूसुनेत्रं विशालं
प्रसन्नाननं नीलकण्ठं दयालम् ।
मृगाधीशचर्माम्बरं मुण्डमालं
प्रियं शङ्करं सर्वनाथं भजामि

प्रचण्डं प्रकृष्टं प्रगल्भं परेशं
अखण्डं अजं भानुकोटिप्रकाशं ।
त्र्यःशूलनिर्मूलनं शूलपाणिं
भजेहं भवानीपतिं भावगम्यम्

कलातीतकल्याण कल्पान्तकारी
सदा सज्जनानन्ददाता पुरारी ।
चिदानन्दसंदोह मोहापहारी
प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी

न यावद् उमानाथपादारविन्दं
भजन्तीह लोके परे वा नराणाम् ।
न तावत्सुखं शान्ति सन्तापनाशं
प्रसीद प्रभो सर्वभूताधिवासं

न जानामि योगं जपं नैव पूजां
नतोहं सदा सर्वदा शम्भुतुभ्यम् ।
जराजन्मदुःखौघ तातप्यमानं
प्रभो पाहि आपन्नमामीश शंभो

हिंदी में अर्थ सहित ॥ श्री रुद्राष्टकम ॥  

॥ श्री रुद्राष्टकम ॥  

नमामीशमीशान निर्वाणरूपं
विभुं व्यापकं ब्रह्म वेदस्वरूपं ।
निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं
चिदाकाशमाकाशवासं भजेऽहं ॥1॥

अर्थ – हे ईशान ! मैं मुक्तिस्वरूप, समर्थ, सर्वव्यापक, ब्रह्म, वेदस्वरूप, निज स्वरूप में स्थित, निर्गुण, निर्विकल्प, निरीह, अनन्त ज्ञानमय और आकाश के समान सर्वत्र व्याप्त प्रभु को प्रणाम करता हूँ ॥1॥

निराकारमोंकारमूलं तुरीयं
गिरा ग्यान गोतीतमीशं गिरीशं ।
करालं महाकाल कालं कृपालं
गुणागार संसारपारं नतोऽहं ॥2॥

अर्थ – जो निराकार हैं, ओंकाररूप आदिकारण हैं, तुरीय हैं, वाणी, बुद्धि और इन्द्रियों के पथ से परे हैं, कैलासनाथ हैं, विकराल और महाकाल के भी काल, कृपाल, गुणों के आगार और संसार से तारने वाले हैं, उन भगवान को मैं नमस्कार करता हूँ ॥2॥

तुषाराद्रि सङ्काश गौरं गभीरं
मनोभूत कोटि प्रभा श्रीशरीरं ।
स्फुरन्मौलि कल्लोलिनी चारु गंगा
लसद्भालबालेन्दु कंठे भुजंगा ॥3॥

अर्थ – जो हिमालय के समान श्वेतवर्ण, गम्भीर और करोड़ों कामदेवों के समान कान्तिमान शरीर वाले हैं, जिनके मस्तक पर मनोहर गंगाजी लहरा रही हैं, भाल पर बाल-चन्द्रमा सुशोभित होते हैं और गले में सर्पों की माला शोभा देती है ॥3॥

चलत्कुंडलं भ्रू सुनेत्रं विशालं
प्रसन्नाननं नीलकंठं दयालं ।
मृगाधीशचर्माम्बरं मुंडमालं
प्रियं शंकरं सर्वनाथं भजामि ॥4॥

अर्थ – जिनके कानों में कुण्डल हिल रहे हैं, जिनके नेत्र एवं भृकुटि सुन्दर और विशाल हैं, जिनका मुख प्रसन्न और कण्ठ नीला है, जो बड़े ही दयालु हैं, जो बाघ के चर्म का वस्त्र और मुण्डों की माला पहनते हैं, उन सर्वाधीश्वर प्रियतम शिव का मैं भजन करता हूँ ॥4॥

प्रचंडं प्रकृष्टं प्रगल्भं परेशं
अखंडं अजं भानुकोटिप्रकाशं ।
त्रयः शूल निर्मूलनं शूलपाणिं
भजेऽहं भवानीपतिं भावगम्यं ॥5॥

अर्थ – जो प्रचण्ड, सर्वश्रेष्ठ, प्रगल्भ, परमेश्वर, पूर्ण, अजन्मा, कोटि सूर्य के समान प्रकाशमान, त्रिभुवन के शूलनाशक और हाथ में त्रिशूल धारण करने वाले हैं, उन भावगम्य भवानीपति का मैं भजन करता हूँ ॥5॥

कलातीत कल्याण कल्पान्तकारी
सदा सज्जनानन्ददाता पुरारी ।
चिदानंद संदोह मोहापहारी
प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी ॥6॥

अर्थ – हे प्रभो ! आप कलारहित, कल्याणकारी और कल्प का अंत करने वाले हैं। आप सर्वदा सत्पुरुषों को आनन्द देते हैं, आपने त्रिपुरासुर का नाश किया था, आप मोहनाशक और ज्ञानानन्दघन परमेश्वर हैं, कामदेव के शत्रु हैं, आप मुझ पर प्रसन्न हों, प्रसन्न हों ॥6॥

न यावद् उमानाथ पादारविन्दं
भजंतीह लोके परे वा नराणां ।
न तावत्सुखं शान्ति सन्तापनाशं
प्रसीद प्रभो सर्वभूताधिवासं ॥7॥

अर्थ – मनुष्य जब तक उमाकान्त महादेव जी के चरणारविन्दों का भजन नहीं करते, उन्हें इहलोक या परलोक में कभी सुख तथा शान्ति की प्राप्ति नहीं होती और न उनका सन्ताप ही दूर होता है। हे समस्त भूतों के निवास स्थान भगवान शिव ! आप मुझ पर प्रसन्न हों ॥7॥

न जानामि योगं जपं नैव पूजां
नतोऽहं सदा सर्वदा शंभु तुभ्यं ।
जरा जन्म दुःखौघ तातप्यमानं
प्रभो पाहि आपन्नमामीश शंभो ॥8॥

अर्थ – हे प्रभो ! हे शम्भो ! हे ईश ! मैं योग, जप और पूजा कुछ भी नहीं जानता, हे शम्भो ! मैं सदा-सर्वदा आपको नमस्कार करता हूँ। जरा, जन्म और दुःख समूह से सन्तप्त होते हुए मुझ दुःखी की दुःख से रक्षा कीजिये ॥8॥

रुद्राष्टकमिदं प्रोक्तं विप्रेण हरतोषये ।
ये पठन्ति नरा भक्त्या तेषां शम्भुः प्रसीदति ॥9॥

अर्थ – जो मनुष्य भगवान शंकर की तुष्टि के लिये ब्राह्मण द्वारा कहे हुए इस रुद्राष्टक का भक्तिपूर्वक पाठ करते हैं, उन पर शंकर जी प्रसन्न होते हैं ॥9॥

॥ इस प्रकार गोस्वामी तुलसीदास रचित श्री रुद्राष्टकम सम्पूर्ण हुआ ॥

Rudrashtakam Lyrics in English

Nama misha mishana-nirvana rupam
vibhum vyapakam brahma-veda-svaroopam
nijam nirgunam nirvikalpam niriham
chidakasha makasha-vasam bhaje ham

nirakara monkara-moolam turiyam
gira gnana gotita misham girisham
karalam maha-kala-kalam krpalam
gunagara samsara param nato ham

tusha radri-sankasha-gauram gabhiram
manobhuta-koti prabha sri sariram
sphuran mauli-kallolini-charu-ganga
lasad-bhala-balendu kanthe bhujanga

chalatkundalam bhru sunetram visalam
prasanna-nanam nila-kantham dayalam
mrgadhisa charmambaram mundamalam
priyam sankaram sarvanatham bhajami

pracandam prakrstam pragalbham paresham
akhandam ajam bhanukoti-prakasam
trayah-shula-nirmulanam shula-panim
bhaje ham bhavani-patim bhava-gamyam

kalatitata-kalyana-kalpanta-kari
sada sajjana-nanda-data purarih
chidananda-sandoha-mohapahari
prasida praslda prabho manmatharih

na yavad umanatha-padaravindam
bhajantiha loke pareva naranam
na tavat-sukham shanti-santapa-nasham
praslda prabho sarva bhuta-dhivasam

na janami yogam japam naiva pujam
nato ham sada sarvada sambhu tubhyam
jara janma-duhkhaugha tatapya manam
prabho pahi apan-namamisha shambho

Rudrashtakam Meaning in English

Vibhu moksha personified, Veda incarnate, all-pervading Lord,
Lord, master of all, I pay obeisance to you, and am ever-worshipful,
Away from maya and the cycles of nature, of conscious desire,
I chant to you Lord Digambara, who wears the sky as a garment.

Who is formless, Aumkar’s origin, beyond the three gunas,
Beyond speech, knowledge, senses, giver of grace,
Perfect One who brings awe and reverence within, Lord of Time,
Lord of Kailash, beyond this world, my obeisance to you.

Fair-skinned like Himanchal, serene, unmoved,
Of beauty and grace greater than a million Kamadevas, ever glowing,
Upon whose head resides the sacred Goddess Ganga,
Upon whose head is the crescent moon, whose neck is adorned by a snake.

In his ears are kundalas, whose eyes and eyebrows are beautiful,
Cheerful, blue necked, kind, compassionate, understanding,
Wrapped in animal skin, wearing a garland of skulls,
Dearest to all, Lord of all, I chant his name – Shankara.

Rudrarup, best, perfect, eternal, unborn, the opulent one,
With the effulgence of a million suns, with a trident in hand,
Who uproots the three kinds of griefs, who by love can be gained,
I chant Bhavani’s husband’s name – Shankar – to you I pray.

Beyond time, timeless, welfare incarnate, the creation’s end,
Enemy of Tripura, who gives pleasure and happiness to the worthy,
Giver of eternal bliss, who removes worldly entanglements,
Kamadeva’s destroyer, bless me, you churn my heart.

Husband of Parvati, till we worship your lotus feet,
We can never attain peace and joy in this world or in heaven,
Or mitigate or lessen our suffering,
Lord who resides in the heart of all, be pleased with me and my offering.

Oh Shambho, I know not yoga, or penance or worship or prayer,
But I always honor you, Oh my Lord, always be my savior,
Suffering the cycle of death, birth and old age, I burn,
Lord, protect this pained one from grief, I offer you my devotion.

Rudrashtakam VIDEO by Agam Agrawal

Bilvashtakam  – बिल्वाष्टकम्

त्रिदलं त्रिगुणाकारं त्रिनेत्रं च त्रियायुधम् ।
त्रिजन्मपापसंहारं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥ १ ॥

त्रिशाखैर्बिल्वपत्रैश्च ह्यच्छिद्रैः कोमलैः शुभैः ।
शिवपूजां करिष्यामि एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥ २ ॥

अखण्डबिल्वपत्रेण पूजिते नन्दिकेश्वरे ।
शुद्ध्यन्ति सर्वपापेभ्यः एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥ ३ ॥

सालग्रामशिलामेकां जातु विप्राय योऽर्पयेत् ।
सोमयज्ञमहापुण्यं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥ ४ ॥

दन्तिकोटिसहस्राणि वाजपेयशतानि च ।
कोटिकन्यामहादानां एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥ ५ ॥

पार्वत्याः स्वेदसञ्जातं महादेवस्य च प्रियम् ।
बिल्ववृक्षं नमस्यामि एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥ ६ ॥

दर्शनं बिल्ववृक्षस्य स्पर्शनं पापनाशनम् ।
अघोरपापसंहारं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥ ७ ॥

मूलतो ब्रह्मरूपाय मध्यतो विष्णुरूपिणे ।
अग्रतः शिवरूपाय एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥ ८ ॥

बिल्वाष्टकमिदं पुण्यं यः पठेच्छिवसन्निधौ ।
सर्वपापविनिर्मुक्तः शिवलोकमवाप्नुयात् ॥ ९ ॥

इति बिल्वाष्टकम् ॥

bilvashtakam

Sounds Of Isha – Bilvashtakam | Trigun | Shiva | Mantra

Bilvashtakam Lyrics in english – Eka bilvam shivarpanam

Bilvashtakam Lyrics in English – Eka Bilvam Shivarpanam 

tridalam trigunakaram trinetram cha triyāyudhaṁ |
trijanmapāpasaṁhāraṁ eka bilvam shivarpanam || 1 ||

triśākhairbilvapatraiścha hyacchidraiḥ kōmalaiśśubhaiḥ |
śivapūjāṁ kariṣyāmi eka bilvam shivarpanam || 2 ||

akhaṇḍabilvapatrēṇa pūjitē nandikēśvarē |
śuddhyanti sarvapāpēbhyaḥ eka bilvam shivarpanam || 3 ||

sālagrāmaśilāmēkāṁ jātu viprāya yō:’rpayēt |
sōmayajñamahāpuṇyaṁ eka bilvam shivarpanam || 4 ||

dantikōṭisahasrāṇi vājapēyaśatāni cha |
kōṭikanyāmahādānāṁ eka bilvam shivarpanam || 5 ||

pārvatyāssvēdatōtpannaṁ mahādēvasya cha priyaṁ |
bilvavr̥kṣaṁ namasyāmi eka bilvam shivarpanam || 6 ||

darśanaṁ bilvavr̥kṣasya sparśanaṁ pāpanāśanaṁ |
aghōrapāpasaṁhāraṁ eka bilvam shivarpanam || 7 ||

mūlatō brahmarūpāya madhyatō viṣṇurūpiṇē |
agrataśśivarūpāya eka bilvam shivarpanam || 8 ||

bilvāṣṭaka midaṁ puṇyaṁ yaḥ paṭhēcchivasannidhau |
sarvapāpa vinirmuktaḥ śivalōka mavāpnuyāt || 9 ||

Ithi Shri Bilvashtakam Sampurnam ||

Shri Shiva Bilvashtakam ( श्री शिव बिल्वाष्टकम )

श्री शिव बिल्वाष्टकम् की रचना जगद्गुरु श्री आदि शंकराचार्य ने की थी। श्री शिव बिल्वाष्टकम एक शक्तिशाली मंत्र है जो भगवान शिव को बिल्व पत्र चढ़ाने की शक्ति और महिमा के बारे में बताता है। उन्हें तीन पत्तियों के समूह में पेश किया जाता है और कहा जाता है कि उनमें ऐसी विशेषताएं हैं जो उन्हें स्वयं भगवान शिव से पहचानती हैं। बिल्व पत्र का भगवान शिव से बहुत ही खास रिश्ता है। शिव को बेलपत्र या बिल्व पत्र बहुत प्रिय हैं। यदि कोई व्यक्ति सच्चे मन से शिव की प्रार्थना करता है और शिवलिंग पर बेलपत्र चढ़ाता है, तो भगवान उन्हें वह आशीर्वाद देते हैं जो वे चाहते हैं। इसलिए, बेलपत्र सबसे महत्वपूर्ण सामग्रियों में से एक है जिसका उपयोग भगवान शिव की पूजा के लिए किया जाता है। बिल्व की पत्तियाँ वुड एप्पल पेड़ से प्राप्त होती हैं। यह पत्ता त्रिपर्णीय है जो पवित्र त्रिमूर्ति: ब्रह्मा, विष्णु और महेश का प्रतीक है। यह शिव की तीन आंखों का भी प्रतीक है। शिव पुराण के अनुसार बिल्व भगवान शिव का प्रतीक है। यह देवताओं द्वारा भी पूजनीय है। इसकी महानता को समझना कठिन है. जो बिल्व अर्पित करते हैं वे धन्य हैं। शिव पुराण के अनुसार एक बिल्व एक हजार कमल के बराबर है। स्कंद पुराण के अनुसार बेल का वृक्ष पार्वती के पसीने की बूंदों से उत्पन्न हुआ जो मंदराचल पर्वत पर गिरी थीं। वहीं से बेल का वृक्ष निकला। इसलिए, यह माना जाता है कि देवी अपने सभी रूपों में इस पेड़ में निवास करती हैं। वह वृक्ष की जड़ों में गिरिजा के रूप में, तने में माहेश्वरी के रूप में, शाखाओं में दाक्षायनी के रूप में, पत्तों में पार्वती के रूप में, फल में कात्यायनी के रूप में और फूलों में गौरी के रूप में निवास करती हैं। इसलिए चूँकि पार्वती इस वृक्ष में अपने विभिन्न रूपों में निवास करती हैं, इसलिए शिव को इसके पत्ते अत्यंत प्रिय हैं। लाखों हाथी दान में देना, सैकड़ों वाजपेय यज्ञ करना, या लाखों बेटियों का विवाह करना शिव को एक बिल्व पत्र चढ़ाने के बराबर है। जो लोग शिव के समीप इस पवित्र बिल्वाष्टकम का पाठ करते हैं वे सभी पापों से मुक्त हो जाएंगे और शिव के निवास को प्राप्त करेंगे।

Bilvashtakam Shloka with Meaning in hindi and english

Sanskrit Shloka

त्रिदलं त्रिगुणाकारं त्रिनॆत्रं च त्रियायुधं ।
त्रिजन्म पापसंहारम् ऎकबिल्वं शिवार्पणं ॥१॥

Transliteration

tridalaṁ triguṇākāraṁ trintraṁ ca triyāyudhaṁ ।
trijanma pāpasaṁhāram ऎkabilvaṁ śivārpaṇaṁ ॥1॥

Hindi Translation

मैं शिव को बिल्व पत्र अर्पित करता हूं। यह पत्ता सत्व, रज और तम तीन गुणों का प्रतीक है।
इस पत्ते की तीन आँखे सूर्य, चंद्रमा और अग्नि के समान है। यह तीन शस्त्रों की तरह है।
वह पिछले तीन जन्मों के पापों का नाश करने वाला है। मैं बिल्व पत्र से शिव की पूजा करता हूं।

English Translation

I offer Bilva leaves to Shiva. This leaf symbolizes the three gunas Sattva, Raja and Tama.
This leaf is like three eyes: sun, moon and fire. It’s like three guns.
It is the destroyer of the sins of the last three births. I worship Shiva with Bilva leaves.

bilvashtakam shloka lyrics

Sanskrit Shloka

अखण्ड बिल्वपत्रेण पूजिते नन्दिकेश्वरे ।
शुद्ध्यन्ति सर्वपापेभ्यो ह्येकबिल्वं शिवार्पणम् ॥२॥

Transliteration

akhaṇḍa bilvapatreṇa pūjite nandikeśvare ।
śuddhyanti sarvapāpebhyo hyekabilvaṁ śivārpaṇam ॥2॥

Hindi Translation

मैं शिव को बिल्व पत्र अर्पित करता हूं।
मैंने नंदिकेश्वर के लिए बिल्व पत्र के साथ पूजा पूरी की,
और इस प्रकार पाप से मुक्त हो जाऊंगा।

English Translation

I offer Bilva leaves to Shiva.
I completed the puja for Nandikeshwar with Bilva Patra,
and thus be free from sin.

Sanskrit Shloka

शालिग्राम शिलामेकां विप्राणां जातु चार्पयेत् ।
सोमयज्ञ महापुण्यं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥ ३॥

Transliteration

śāligrāma śilāmekāṁ viprāṇāṁ jātu cārpayet ।
somayajña mahāpuṇyaṁ ekabilvaṁ śivārpaṇam ॥ 3॥

Hindi Translation

मैं शिव को बिल्व पत्र अर्पित करता हूं। इसकी पत्तियां कोमल और निर्दोष है।
यह अपने आप में पूर्ण है। यह तीन शाखाओं की तरह है। मैं बिल्व पत्र से शिव की पूजा करता हूं।

English Translation

I offer Bilva leaves to Shiva. this leaf is smooth and flawless.
It is complete in itself. It is like three branches. I worship Shiva with Bilva leaves.

Sanskrit Shloka

दन्तिकोटि सहस्राणी वाजपेय शतानि च ।
कोटिकन्या महादानं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥ ४॥

Transliteration

dantikoṭi sahasrāṇī vājapeya śatāni ca ।
koṭikanyā mahādānaṁ ekabilvaṁ śivārpaṇam ॥ 4॥

Hindi Translation

शिव को एक बिल्व पत्र अर्पण करना यज्ञ और तपस्या से अधिक फल देने वाला है।

English Translation

The offering of Bilva is greater in power than yagnas and sacrifices.

Bilvashtakam Lyrics and Shloka

Sanskrit Shloka

लक्ष्म्यास्तनुत उत्पन्नं महादेवस्य च प्रियम् ।
बिल्ववृक्षं प्रयच्छामि ह्येकबिल्वं शिवार्पणम् ॥ ५॥

Transliteration

lakṣmyāstanuta utpannaṁ mahādevasya ca priyam ।
bilvavr̥kṣaṁ prayacchāmi hyekabilvaṁ śivārpaṇam ॥ 5॥

Hindi Translation

बिल्व पत्र माता लक्ष्मी द्वारा उत्पन्न किया गया है एवं,
देवाधिदेव महादेव का अत्यंत प्रिय है,
अतः मैं बिल्व पत्र से शिव की पूजा करता हूं।

English Translation

The Bilva tree was made by Goddess Lakshmi.
Lord Shiva is very attached to the Bilva tree.
I worship Shiva with Bilva leaves.

Sanskrit Shloka

दर्शनं बिल्ववृक्षस्य स्पर्शनं पापनाशनम् ।
अघोरपापसंहारं एकबिल्वं शिवर्पणम् ॥ ६॥

Transliteration

darśanaṁ bilvavr̥kṣasya sparśanaṁ pāpanāśanam ।
aghorapāpasaṁhāraṁ ekabilvaṁ śivarpaṇam ॥ 6॥

Hindi Translation

बिल्व पत्र के वृक्ष के दर्शन एवं स्पर्श मात्र से पापों का नाश हो जाता है,
ऐसे पापनाशक बिल्व पत्र से मैं शिव जी की पूजा करता हूँ।

English Translation

The mere sight and touch of the tree of Bilva leaves destroys the sins.
I worship Lord Shiva with such sin-destroying bilva leaves.

Sanskrit Shloka

काशीक्षेत्रनिवासं च कालभैरवदर्शनम् ।
प्रयाघमाधवं दृष्ट्वा ह्येकबिल्वं शिवार्पणम् ॥ ७॥

Transliteration

kāśīkṣetranivāsaṁ ca kālabhairavadarśanam ।
prayāghamādhavaṁ dr̥ṣṭvā hyekabilvaṁ śivārpaṇam ॥ 7॥

Hindi Translation

काशी नगरी में रहने, काल भैरव और माधव के मंदिर के दर्शन करने के बाद
मैं शिव को बिल्व का एक पत्र चढ़ाता हूं।

English Translation

I offer one leaf of the bilva to Shiva, after being in the city of Kashi,
beholding Kala Bhairava, and visiting the temple of Madhava.

Sanskrit Shloka

मूलतो ब्रह्मरूपाय मध्यतो विष्णुरूपिणे ।
अग्रतः शिवरूपाय ह्येकबिल्वं शिवार्पणम् ॥ ८॥

Transliteration

mūlato brahmarūpāya madhyato viṣṇurūpiṇe ।
agrataḥ śivarūpāya hyekabilvaṁ śivārpaṇam ॥ 8॥

Hindi Translation

बिल्व पत्र के मूल अर्थात जड़ में ब्रह्मा का वास है,
मध्य भाग में विष्णु विराजमान है
एवं अग्रभाग में स्वयं शिव जी विराजित है
ऐसे बिलपत्र से मैं शिव जी की पूजा करता हूँ।

English Translation

Brahma resides in the root of Bilva Patra.
Vishnu is seated in the central part
And Shiva himself is seated in the foreground.
I worship Lord Shiva with Bilva Patra.

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Gurvashtakam (Guru Ashtakam) – गुर्वष्टकम्

।।श्रीमद् आद्य शंकराचार्य विरचितम्।।

शरीरं सुरूपं तथा वा कलत्रं ।

यशश्चारु चित्रं धनं मेरुतुल्यम् ।

मनश्चेन्न लग्नं गुरोरङ्घ्रिपद्मे ।

ततः किं ततः किं ततः किं ततः किम् ॥ १ ॥

कलत्रं धनं पुत्रपौत्रादि सर्वं ।

गृहं बान्धवाः सर्वमेतद्धि जातम् ।

मनश्चेन्न लग्नं गुरोरङ्घ्रिपद्मे ।

ततः किं ततः किं ततः किं ततः किम् ॥ २ ॥

षडङ्गादिवेदो मुखे शास्त्रविद्या ।

कवित्वादि गद्यं सुपद्यं करोति ।

मनश्चेन्न लग्नं गुरोरङ्घ्रिपद्मे ।

ततः किं ततः किं ततः किं ततः किम् ॥ ३ ॥

विदेशेषु मान्यः स्वदेशेषु धन्यः ।

सदाचारवृत्तेषु मत्तो न चान्यः ।

मनश्चेन्न लग्नं गुरोरङ्घ्रिपद्मे ।

ततः किं ततः किं ततः किं ततः किम् ॥ ४ ॥

क्षमामण्डले भूपभूपालबृन्दैः ।

सदा सेवितं यस्य पादारविन्दम् ।

मनश्चेन्न लग्नं गुरोरङ्घ्रिपद्मे ।

ततः किं ततः किं ततः किं ततः किम् ॥ ५ ॥

यशो मे गतं दिक्षु दानप्रतापा-

ज्जगद्वस्तु सर्वं करे यत्प्रसादात् ।

मनश्चेन्न लग्नं गुरोरङ्घ्रिपद्मे ।

ततः किं ततः किं ततः किं ततः किम् ॥ ६ ॥

न भोगे न योगे न वा वाजिराजौ ।

न कान्तामुखे नैव वित्तेषु चित्तम् ।

मनश्चेन्न लग्नं गुरोरङ्घ्रिपद्मे ।

ततः किं ततः किं ततः किं ततः किम् ॥ ७ ॥

अरण्ये न वा स्वस्य गेहे न कार्ये ।

न देहे मनो वर्तते मे त्वनर्घ्ये ।

मनश्चेन्न लग्नं गुरोरङ्घ्रिपद्मे ।

ततः किं ततः किं ततः किं ततः किम् ॥ ८ ॥

गुरोरष्टकं यः पठेत्पुण्यदेही ।

यतिर्भूपतिर्ब्रह्मचारी च गेही ।

लभेद्वाञ्छितार्थं पदं ब्रह्मसञ्ज्ञं ।

गुरोरुक्तवाक्ये मनो यस्य लग्नम् ॥

Gurvashtakam lyrics in English (Roman Script)

śarīraṁ surūpaṁ tathā vā kalatraṁ |
yaśaścāru citraṁ dhanaṁ mērutulyam |
manaścēnna lagnaṁ gurōraṅghripadmē |
tataḥ kiṁ tataḥ kiṁ tataḥ kiṁ tataḥ kim || 1 ||

kalatraṁ dhanaṁ putrapautrādi sarvaṁ |
gr̥haṁ bāndhavāḥ sarvamētaddhi jātam |
manaścēnna lagnaṁ gurōraṅghripadmē |
tataḥ kiṁ tataḥ kiṁ tataḥ kiṁ tataḥ kim || 2 ||

ṣaḍaṅgādivēdō mukhē śāstravidyā |
kavitvādi gadyaṁ supadyaṁ karōti |
manaścēnna lagnaṁ gurōraṅghripadmē |
tataḥ kiṁ tataḥ kiṁ tataḥ kiṁ tataḥ kim || 3 ||

vidēśēṣu mānyaḥ svadēśēṣu dhanyaḥ |
sadācāravr̥ttēṣu mattō na cānyaḥ |
manaścēnna lagnaṁ gurōraṅghripadmē |
tataḥ kiṁ tataḥ kiṁ tataḥ kiṁ tataḥ kim || 4 ||

kṣamāmaṇḍalē bhūpabhūpālabr̥ndaiḥ |
sadā sēvitaṁ yasya pādāravindam |
manaścēnna lagnaṁ gurōraṅghripadmē |
tataḥ kiṁ tataḥ kiṁ tataḥ kiṁ tataḥ kim || 5 ||

yaśō mē gataṁ dikṣu dānapratāpā-
jjagadvastu sarvaṁ karē yatprasādāt |
manaścēnna lagnaṁ gurōraṅghripadmē |
tataḥ kiṁ tataḥ kiṁ tataḥ kiṁ tataḥ kim || 6 ||

na bhōgē na yōgē na vā vājirājau |
na kāntāmukhē naiva vittēṣu cittam |
manaścēnna lagnaṁ gurōraṅghripadmē |
tataḥ kiṁ tataḥ kiṁ tataḥ kiṁ tataḥ kim || 7 ||

araṇyē na vā svasya gēhē na kāryē |
na dēhē manō vartatē mē tvanarghyē |
manaścēnna lagnaṁ gurōraṅghripadmē |
tataḥ kiṁ tataḥ kiṁ tataḥ kiṁ tataḥ kim || 8 ||

gurōraṣṭakaṁ yaḥ paṭhētpuṇyadēhī |
yatirbhūpatirbrahmacārī ca gēhī |
labhēdvāñchitārthaṁ padaṁ brahmasañjñaṁ |
gurōruktavākyē manō yasya lagnam ||

जगद्गुरु शंकराचार्य: ज्ञान और आध्यात्मिकता की दिव्य ज्योति

Jagadguru Shankaracharya: The Divine Light of Knowledge and Spirituality

जगद्गुरु शंकराचार्य भारत के आध्यात्मिक और दार्शनिक परिदृश्य में अत्यंत पूजनीय विभूति  हैं। उनकी शिक्षाओं और गहन ज्ञान ने असंख्य लोगों के जीवन पर परिवर्तनकारी प्रभाव डाला है, और साधकों का आत्म-साक्षात्कार और आत्मज्ञान के मार्ग पर मार्गदर्शन किया है। आठवीं शताब्दी में केरल के कलादि में जन्मे शंकराचार्य ज्ञान के प्रतीक, अद्वैत वेदांत दर्शन के पथप्रदर्शक और प्राचीन वैदिक ज्ञान के संरक्षक के रूप में उभरे।

कम उम्र से ही शंकराचार्य ने असाधारण बौद्धिक कौशल और आध्यात्मिक झुकाव प्रदर्शित किया। उन्होंने वेदों, उपनिषदों और विभिन्न धर्मग्रंथों का अध्ययन किया और प्राचीन ऋषियों की गहन शिक्षाओं में महारत हासिल की। शास्त्रों की उनकी सहज समझ ने, उनके गहन ध्यान संबंधी अनुभवों के साथ मिलकर, अद्वैत वेदांत – गैर-द्वैतवाद के दर्शन – के उनके दृष्टिकोण को प्रदर्शित दिया।

जगद्गुरु शंकराचार्य को सनातन धर्म (सनातन धार्मिकता) के पुनरुद्धार और पुनर्स्थापना में उनके अद्वितीय योगदान के लिए व्यापक रूप से सम्मान प्राप्त है। उन्होंने भारतीय उपमहाद्वीप में व्यापक यात्राएँ कीं, दार्शनिक बहसों में शामिल हुए, भ्रांतियों को दूर किया और हिंदू धर्म के आध्यात्मिक सार को पुनर्जीवित किया। ब्रह्म सूत्र, भगवद गीता और उपनिषद जैसे पवित्र ग्रंथों पर उनके प्रवचन और टीकायें सत्य के जिज्ञासुओं के लिए बहुमूल्य ज्ञान कोष बने हुए हैं।

शंकराचार्य की उल्लेखनीय उपलब्धियों में से एक भारत के विभिन्न भागों में चार मठों की स्थापना थी – दक्षिण में श्रृंगेरी, पश्चिम में द्वारका, पूर्व में पुरी और उत्तर में जोशीमठ। ये मठ आध्यात्मिक शिक्षा और मार्गदर्शन के केंद्र के रूप में कार्य करते हैं, जो शंकराचार्य जी  कि आध्यात्मिक वंशावली की निरंतरता और वैदिक ज्ञान के प्रसार को सुनिश्चित करते हैं। इन मठों के शंकराचार्य उनके महान मिशन को आगे बढ़ाते हैं, आध्यात्मिक मार्गदर्शन प्रदान करते हैं और सनातन धर्म की शुद्धता को संरक्षित करते हैं।

शंकराचार्य के दर्शन ने ब्रह्म की अंतिम वास्तविकता, सर्वोच्च चेतना पर जोर दिया, जो सभी द्वंद्वों और रूपों से परे है। उन्होंने भौतिक संसार की भ्रामक प्रकृति पर जोर दिया और आत्म-साक्षात्कार प्राप्त करने के साधन के रूप में आत्म-जांच (आत्म विचार) और ध्यान के मार्ग का सुझाव दिया । उनकी शिक्षाओं ने सभी के अस्तित्व की एकता पर जोर दिया, इस बात पर जोर दिया कि नाम, रूप और सामाजिक भेदों की सीमाओं से परे, प्रत्येक व्यक्ति अनिवार्य रूप से दिव्य है।

जगद्गुरु शंकराचार्य की विरासत सत्य और ज्ञान के साधकों को प्रेरित और मार्गदर्शित करती रहती है। उनकी शिक्षाएँ हमें हमारे भीतर मौजूद शाश्वत सत्य क का स्मरण कराती  हैं और हमें आध्यात्मिक परिवर्तन के मार्ग पर चलने के लिए प्रोत्साहित करती हैं। उनके दर्शन की गहराई इसकी सार्वभौमिकता में निहित है, जो एक ऐसा मार्ग प्रदान करता है जो साम्प्रदायिक मतवाद एवं उपासना पद्धति की सीमाओं से पार करता है और साधकों को उनके वास्तविक स्वरूप की प्राप्ति की ओर ले जाता है।

संघर्षों और विभाजनों से भरी दुनिया में, शंकराचार्य का एकता, करुणा और आत्म-बोध का संदेश अत्यधिक प्रासंगिक है। उनकी शिक्षाएं विभिन्न धर्मों के बीच सद्भाव का मार्ग प्रशस्त करती हैं, इस समझ को बढ़ावा देती हैं कि सभी धर्मों का सार एक ही है- अपने भीतर परमात्मा की प्राप्ति। धार्मिकता, आत्म-अनुशासन और आत्म-जांच के मार्ग पर चलकर, व्यक्ति अस्तित्व की एकता का अनुभव कर सकता है और जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्ति प्राप्त कर सकता है।

जगद्गुरु शंकराचार्य का जीवन प्राचीन ऋषियों के कालातीत ज्ञान और मानवता के लिए उनके गहन योगदान का उदाहरण है। उनकी शिक्षाएँ सत्य की खोज करने वालों के लिए मार्ग को रोशन करती रहती हैं, हमें हमारी अंतर्निहित दिव्यता और हम में से प्रत्येक के भीतर असीमित क्षमता की याद दिलाती हैं। जैसे-जैसे हम उनकी शिक्षाओं में गहराई से उतरते हैं और उनके सिद्धांतों को आत्मसात करते हैं, हम जगद्गुरु शंकराचार्य की शाश्वत विरासत को अपनाते हैं । हम, अपने जीवन और अपने आस-पास की दुनिया में प्रकाश, प्रेम और ज्ञान लाने का प्रयास करते हैं।

शंकराचार्य द्वारा रचित ग्रन्थः

जगद्गुरु शंकराचार्य, एक प्रख्यात आध्यात्मिक गुरु और दार्शनिक हुए उन्होंने  एक समृद्ध विरासत छोड़ी है। जो आज भी ज्ञान की और आत्मसाक्षात्कार के मार्ग में खोज करने वाले लोगों को प्रेरित और प्रबुद्ध करती है। यहां शंकराचार्य जी द्वारा रचे गये कुछ प्रमुख ग्रंथों का उल्लेख किया गया है:

1. उपनिषद भाष्य: शंकराचार्य के उपनिषद भाष्य, जिन्हें उपनिषद वाणी की व्याख्या के रूप में जाना जाता है, उनके सबसे महत्वपूर्ण कार्यों में से एक हैं। ये टिप्पणियां गहरी आध्यात्मिक शिक्षाओं और वेदान्त के दार्शनिक सिद्धांतों का विवेचन करती हैं, जो वेदान्त के मूल सिद्धान्त हैं।

2. ब्रह्मसूत्रभाष्य: शंकराचार्य की ब्रह्मसूत्र पर टीका एक महत्वपूर्ण कार्य है जो वेदान्त दर्शन के सार को प्रस्तुत करती है। ब्रह्मसूत्र, जिसे वेदांत सूत्रों के रूप में भी जाना जाता है, उपनिषदों की शिक्षाओं का संक्षिप्त

 रूप हैं। शंकराचार्य की टिप्पणी, जिसे ब्रह्मसूत्रभाष्य कहा जाता है, सूत्रों में प्रस्तुत दार्शनिक सिद्धांतों और तार्किक वाद-विवादों का विवरण प्रदान करती है।

3. भगवद्गीता भाष्य: शंकराचार्य की भगवद्गीता पर टिप्पणी, जिसे भगवद्गीता भाष्य कहा जाता है, अत्यंत प्रशंसनीय व सम्माननीय  है जो भगवान कृष्ण द्वारा प्रदान की गई आध्यात्मिक शिक्षाओं के गहरे दार्शनिक अर्थों को स्पष्ट करती है। इस टिप्पणी में, शंकराचार्य जी वेदांत दर्शन के व्यावहारिक उपयोग को प्रस्तुत करते हैं, जिसमें जीवन की चुनौतियों, कर्तव्य और आत्मसाक्षात्कार के मार्ग का महत्व है।

4. विवेकचूड़ामणि: विवेकचूड़ामणि एक महत्वपूर्ण पाठ है जो शंकराचार्य जी के अत्यंत गहरे आध्यात्मिक सिद्धांतों, जीवन के उद्देश्य और मुक्ति के मार्ग का  मार्गदर्शन करने में सहायता करती है । विवेकचूड़ामणि साधकों के लिए एक मार्गदर्शक के रूप में काम करती है, जो अनन्तता और क्षणिकता के बीच विवेक की महत्व पर प्रकाश डालती  है।

5. आत्मबोध: आत्मबोध शंकराचार्य का एक अन्य महत्वपूर्ण ग्रंथ है, जिसका अर्थ है “स्वयंज्ञान” या “आत्मज्ञान”। यह एक संक्षेप्त पाठ है जो आत्मा (आत्मन) की प्रकृति और आत्मसाक्षात्कार को प्राप्त करने के साधनों की जानकारी प्रदान करता है। आत्मबोध में आत्म-पृच्छा और विचारणा का मार्ग प्रस्तुत किया जाता है, जो अहंकार की सीमाओं को पार करके वास्तविक स्वरूप का अनुभव करने के लिए आवश्यक है।

ये केवल कुछ उदाहरण हैं शंकराचार्य द्वारा लिखी गई गहरी रचनाओं के। उनकी पुस्तकें विभिन्न दार्शनिक और आध्यात्मिक विषयों को सम्मिलित करती हैं, जो आध्यात्मिक ज्ञान के मार्ग पर खोज करने वाले लोगों के लिए प्रेरणा स्रोत  हैं। इन पुस्तकों में दिए गए उपदेश अनंत सत्य और अद्वैत ब्रह्मतत्त्व की प्रतीक्षा करने वाले लोगों के मन को जागृत करती हैं, मुक्ति और अनन्त आनंद के मार्ग को प्रकाशित करती हैं।

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|| संकट मोचन हनुमान अष्टक ||

Sankat Mochan Hanuman Ashtak 

hanuman ashtak,
बाल समय रवि भक्षी लियो तब,
तीनहुं लोक भयो अंधियारों।
ताहि सों त्रास भयो जग को,
यह संकट काहु सों जात न टारो।
देवन आनि करी बिनती तब,
छाड़ी दियो रवि कष्ट निवारो।
को नहीं जानत है जग में कपि,
संकटमोचन नाम तिहारो ॥
बालि की त्रास कपीस बसैं गिरि,
जात महाप्रभु पंथ निहारो।
चौंकि महामुनि साप दियो तब,
चाहिए कौन बिचार बिचारो।
कैद्विज रूप लिवाय महाप्रभु,
सो तुम दास के सोक निवारो ॥
को नहीं जानत है जग में कपि,
संकटमोचन नाम तिहारो ॥
अंगद के संग लेन गए सिय,
खोज कपीस यह बैन उचारो।
जीवत ना बचिहौ हम सो जु,
बिना सुधि लाये इहाँ पगु धारो।
हेरी थके तट सिन्धु सबे तब,
लाए सिया-सुधि प्राण उबारो ॥
को नहीं जानत है जग में कपि,
संकटमोचन नाम तिहारो ॥
रावण त्रास दई सिय को सब,
राक्षसी सों कही सोक निवारो।
ताहि समय हनुमान महाप्रभु,
जाए महा रजनीचर मारो।
चाहत सीय असोक सों आगि सु,
दै प्रभुमुद्रिका सोक निवारो ॥
को नहीं जानत है जग में कपि,
संकटमोचन नाम तिहारो ॥
बान लाग्यो उर लछिमन के तब,
प्राण तजे सूत रावन मारो।
लै गृह बैद्य सुषेन समेत,
तबै गिरि द्रोण सु बीर उपारो।
आनि सजीवन हाथ दिए तब,
लछिमन के तुम प्रान उबारो ॥
को नहीं जानत है जग में कपि,
संकटमोचन नाम तिहारो ॥
रावन जुध अजान कियो तब,
नाग कि फाँस सबै सिर डारो।
श्रीरघुनाथ समेत सबै दल,
मोह भयो यह संकट भारो ।
आनि खगेस तबै हनुमान जु,
बंधन काटि सुत्रास निवारो ॥
को नहीं जानत है जग में कपि,
संकटमोचन नाम तिहारो ॥
बंधू समेत जबै अहिरावन,
लै रघुनाथ पताल सिधारो।
देबिन्हीं पूजि भलि विधि सों बलि,
देउ सबै मिलि मन्त्र विचारो।
जाये सहाए भयो तब ही,
अहिरावन सैन्य समेत संहारो ॥
को नहीं जानत है जग में कपि,
संकटमोचन नाम तिहारो ॥
काज किये बड़ देवन के तुम,
बीर महाप्रभु देखि बिचारो।
कौन सो संकट मोर गरीब को,
जो तुमसे नहिं जात है टारो।
बेगि हरो हनुमान महाप्रभु,
जो कछु संकट होए हमारो ॥
को नहीं जानत है जग में कपि,
संकटमोचन नाम तिहारो ॥
॥ दोहा ॥
लाल देह लाली लसे,
अरु धरि लाल लंगूर।
वज्र देह दानव दलन,
जय जय जय कपि सूर ॥
|| सिया वर राम चन्द्र की जय, पवन सूत हनुमान की जय ||

Sankatmochan Hanuman Ashtak (From “Shree Hanuman Chalisa (Hanuman Ashtak)”) – Song Download from Top Devotional Songs @ JioSaavn

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English (Roman)Lyrics:

Sankatmochan Hanuman Ashtak (From “Shree Hanuman Chalisa (Hanuman Ashtak)”) Lyrics

baal samaya ravi bhakshi liyo tab
tinhu lok bhayo andhiyaaron
taahi son traas bhayo jag ko
yah sankat kahu son jaat na taaro
devan aani karee binati tab
chaadi diyo ravi ksht niwaro
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sankatmochan naam tihaaro sankatmochan naam tihaaro

baali kee traas kapis basain giri
jaat mahaprabhu panth nihaaro
chaunki mahamuni saap diyo tab
chaahiye kaun bichaar bichaaro
kaidvij rup livaay mahaprabhu
so tum daas ke soke niwaro
ko nahin jaanat hai jag main copi
sankatmochan naam tihaaro sankatmochan naam tihaaro

angad ke sang len gaye siy
khoj kapis yah bain ucharo
jeevat na bachihau hum so ju
binaa sudhi laaye ihaan pagu dhaaro
heri thake tat sindhu sabe tab
laae siya-sudhi praan ubaaro
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sankatmochan naam tihaaro sankatmochan naam tihaaro

ravan traas dai siy ko sab
rakshasi son kahi soke niwaro
taahi samay hanuman mahaprabhu
jae maha rajneechar maaro
chaahat sita asok son aagi su
dai prabhumudrika soke niwaro
ko nahin jaanat hai jag main copi
sankatmochan naam tihaaro sankatmochan naam tihaaro

baan lagyo ur lachhiman ke tab
praan taje sut ravan maaro
lai grih baidh sushen samet
tabai giri dron subir upaaro
aani sajivan haath dai tab
lachhiman ke tum praan ubaaro
ko nahin jaanat hai jag main copi
sankatmochan naam tihaaro sankatmochan naam tihaaro

raawan yuddh ajaan kiyo tab
naag ki fans sabai sir daaro
shri raghunatha samet sabai dal
moh bhayo yah sankat bhaaro
aani khages tabai hanuman ju
bandhan kaati sutraas niwaro
ko nahin jaanat hai jag main copi
sankatmochan naam tihaaro sankatmochan naam tihaaro

bandhu samet jabai ahiraavan
lai raghunatha pataal sidhaaro
debinhin pooji bhalee vidhi son bali
deu sabai mili mantra vichaaro
jaye sahaae bhayo tab hi
ahiraavan sainya samet sanhaaro
ko nahin jaanat hai jag main copi
sankatmochan naam tihaaro sankatmochan naam tihaaro

kaaj kiye bad devan ke tum
bir mahaprabhu deki bichaaro
koun so sankat mor garib ko
jo tumso nahin jaat hai taaro
begi haro hanuman mahaprabhu
jo kachu sankat hoe hamaaro
ko nahin jaanat hai jag main copi
sankatmochan naam tihaaro sankatmochan naam tihaaro
sankatmochan naam tihaaro sankatmochan naam tihaaro

तुलसीदास जी

तुलसीदास जी को हनुमान जी अष्टक की रचना करने का श्रेय जाता है। तुलसीदास जी, जो स्वयं एक महान कवि थे, ने अपनी रचनाओं में हनुमान जी जी के प्रति अत्यंत श्रद्धा और भक्ति का अभिप्रेत किया। उन्होंने “रामचरितमानस” के माध्यम से भगवान राम और हनुमान जी के चरित्र, कथाओं, और गुणों का विस्तारपूर्वक वर्णन किया।

हनुमान अष्टक तुलसीदास जी की एक मधुर और भक्तिपूर्ण रचना है, जिसमें हनुमान जी की महिमा, शक्ति, और सेवा का वर्णन है। यह अष्टक हनुमान जी के प्रति भक्ति और श्रद्धा को बढ़ाने का एक माध्यम है। इसके पठन से मन और ह्रदय में शान्ति और आनंद का अनुभव होता है और हनुमान जी के आशीर्वाद से सभी संकटों का नाश होता है। तुलसीदास जी ने अपनी रचनाओं के माध्यम से हमें हनुमान जी के भक्ति में आस्था और दृढ़ता बढ़ाने का संदेश दिया है।

शक्तिशाली देवता, हनुमान जी केवल प्राचीन ग्रंथों का एक पात्र नहीं हैं, बल्कि अटूट भक्ति, अदम्य साहस और असीम प्रेम का प्रतीक हैं। वायु देवता वायु और दिव्य अप्सरा अंजना से जन्मे हनुमान जी एक दिव्य उद्देश्य के साथ इस धरती पर अवतरित हुए।

हनुमान (संस्कृत: हनुमान्, आंजनेय और मारुति भी) परमेश्वर की भक्ति (हिन्दू धर्म में भगवान की भक्ति) की सबसे लोकप्रिय अवधारणाओं और भारतीय महाकाव्य रामायण में सबसे महत्वपूर्ण पात्रों में प्रधान हैं। वह भगवान शिवजी के सभी अवतारों में सबसे बलवान और बुद्धिमान माने जाते हैं। रामायण के अनुसार वे जानकी के अत्यधिक प्रिय हैं। इस धरा पर जिन सात मनीषियों को अमरत्व का वरदान प्राप्त है, उनमें बजरंगबली भी हैं। हनुमान जी का अवतार भगवान राम की सहायता के लिये हुआ। हनुमान जी के पराक्रम की असंख्य गाथाएँ प्रचलित हैं। इन्होंने जिस तरह से राम के साथ सुग्रीव की मैत्री कराई और फिर वानरों की मदद से असुरों का मर्दन किया, वह अत्यन्त प्रसिद्ध है।

ज्योतिषीयों के सटीक गणना के अनुसार हनुमान जी का जन्म 58 हजार 112 वर्ष पहले त्रेतायुग के अन्तिम चरण में चैत्र पूर्णिमा को मंगलवार के दिन चित्रा नक्षत्र व मेष लग्न के योग में सुबह 6.03 बजे भारत देश में आज के झारखण्ड राज्य के गुमला जिले के आंजन नाम के छोटे से पहाड़ी गाँव के एक गुफा में हुआ था।

इन्हें बजरंगबली के रूप में जाना जाता है क्योंकि इनका शरीर एक वज्र की तरह है। वे पवन-पुत्र के रूप में जाने जाते हैं। वायु अथवा पवन  ने हनुमान को पालने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।

 हिन्दू पौराणिक कथाओं के अनुसार हनुमान  “मारुत-नन्दन” हैं।

उनका जीवन, असाधारण उपलब्धियों और निस्वार्थ कार्यों का एक चित्रपट, अनगिनत आत्माओं के लिए प्रेरणा है। छोटी उम्र से ही हनुमान जी ने अपनी असाधारण शक्ति और बुद्धि का प्रदर्शन किया। भगवान राम के प्रति उनकी भक्ति अद्वितीय थी। उन्होंने अपनी हर सांस और हर क्रिया अपने प्रिय प्रभु की सेवा में समर्पित कर दी।

हनुमान जी के निश्छल प्रेम और निष्ठा की कोई सीमा नहीं थी। उनका अटूट विश्वास और अटूट भक्ति उनके मार्गदर्शक सिद्धांत थे। जब भगवान राम की पत्नी सीता का राक्षस राजा रावण द्वारा अपहरण कर लिया गया था, तो वह हनुमान जी ही थे जिन्होंने उन्हें वापस लाने के लिए महासागरों को पार किया, पहाड़ों को छलांग लगाई और निडरता से प्रतिकूलताओं का सामना किया।

उनकी निस्वार्थता और विनम्रता हर पल झलकती थी। अथाह शक्ति होने के बावजूद, हनुमान जी ने कभी घमंड नहीं किया और न ही पहचान की मांग की। उन्होंने सादगी को अपनाया और विनम्रता का सार अपनाया। उनका हृदय करुणा से भर गया, और उनकी उपस्थिति मात्र से व्यथित लोगों को सांत्वना मिली।

भगवान राम के प्रति हनुमान जी की भक्ति उनके दिव्य उद्देश्य का प्रतिबिंब थी। उन्होंने समर्पण का सही अर्थ समझाया, क्योंकि उन्होंने स्वयं को अपने प्रभु के एक विनम्र सेवक के रूप में देखा। उनका प्रत्येक कार्य, उनकी हर छलांग, उनके प्रेम और समर्पण की अभिव्यक्ति थी।

आज भी हनुमान जी आशा, शक्ति और भक्ति के प्रतीक बने हुए हैं। उनकी कहानी उन लोगों से मेल खाती है जो अपने जीवन में मार्गदर्शन और प्रेरणा चाहते हैं। हनुमान जी हमें बाधाओं को दूर करना, अपने डर पर विजय पाना और अपने अहंकार को परमात्मा के चरणों में समर्पित करना सिखाते हैं।

आइए हम अपने दिल की गहराई में हनुमान जी की उपस्थिति का आह्वान करें और उनकी भक्ति, साहस और विनम्रता के गुणों का अनुकरण करें। हमें उनके अटूट समर्थन का आशीर्वाद मिले और उनके दिव्य आलिंगन में सांत्वना मिले। भक्ति के प्रतीक हनुमान जी हमेशा हमारे दिलों में अंकित रहेंगे और हमें धार्मिकता और शाश्वत प्रेम के मार्ग पर मार्गदर्शन करेंगे।

जैसे-जैसे हम हनुमान जी के जीवन में गहराई से उतरते हैं, हम उनके दिव्य अस्तित्व से जुड़ी गहन भावनाओं को उजागर करते हैं। उनके नाम का उल्लेख मात्र से ही श्रद्धा और भक्ति की अपार भावना जागृत हो जाती है।

भगवान राम के प्रति हनुमान जी की अटूट निष्ठा हमारी आत्मा की गहराइयों को छू जाती है। अपने प्रभु के प्रति उसका प्रेम सामान्य स्नेह के दायरे से परे, कोई सीमा नहीं जानता। यह एक भावना इतनी शुद्ध, इतनी तीव्र है कि यह हमारे दिलों के भीतर जुनून की ज्वाला प्रज्वलित कर देती है।

हनुमान जी द्वारा प्रदर्शित निस्वार्थता हमें अंदर तक ले जाती है। उनका हर कार्य सेवा, सुरक्षा और उत्थान की गहरी इच्छा से प्रेरित था। चाहे समुद्र को पार करना हो या लंका को आग के हवाले करना हो, उनकी अटूट प्रतिबद्धता की कोई सीमा नहीं थी। अपने दिव्य कर्तव्यों को पूरा करने का उनका दृढ़ संकल्प हमारे साथ प्रतिध्वनित होता है, हमारे जीवन में उद्देश्य की भावना जगाता है।

लेकिन यह हनुमान जी की असुरक्षा के क्षणों में है कि हमारे दिल वास्तव में उनके सार से जुड़ते हैं। सीता का पता लगाने की अपनी खोज में, उन्हें अनगिनत चुनौतियों, शंकाओं और भय का सामना करना पड़ा। फिर भी, वह कभी डगमगाया नहीं। वह कठिन से कठिन समय में भी डटा रहा, एक अडिग विश्वास से प्रेरित होकर जिसने उसे प्रकाश की ओर निर्देशित किया।

अपने प्यारे भगवान के लिए बहाए गए उनके आंसू हमारी आत्मा को छू जाते हैं। अत्यधिक भावुकता के उन क्षणों में, हम उनके प्रेम, भक्ति और लालसा की गहराई को देखते हैं। उनके आँसू हमारे आँसू बन जाते हैं, क्योंकि वे परमात्मा के साथ पुनर्मिलन की सार्वभौमिक लालसा का प्रतिनिधित्व करते हैं।

हनुमान जी की कहानी हमारे भीतर भौतिक संसार से परे संबंध की गहरी चाहत पैदा करती है। यह भक्ति की लौ प्रज्वलित करता है, हमें उस दिव्य चिंगारी की याद दिलाता है जो हम में से प्रत्येक के भीतर रहती है। उनकी कहानी हमें सिखाती है कि हम भी, सर्वोच्च के प्रति अपनी भक्ति में सांत्वना और उद्देश्य की तलाश में आध्यात्मिक यात्रा शुरू कर सकते हैं।

आइए हम उन असाधारण भावनाओं में डूब जाएं जो हनुमान जी उत्पन्न करते हैं। आइए हम उनके असीम प्रेम, अटूट विश्वास और असीम भक्ति के प्रति समर्पण करें। क्योंकि उनके जीवन की टेपेस्ट्री में, हम अपनी आकांक्षाओं का प्रतिबिंब पाते हैं, एक अनुस्मारक कि भक्ति का मार्ग हमें एक ऐसे स्थान पर ले जाता है जहां हमारे दिल हमेशा के लिए परमात्मा के साथ जुड़े हुए हैं।

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