Ishq woh balaa hai Ishq woh balaa hai Jisko chhua jisne woh jalaa hai
Dil se hota hai shuru Dil se hota hai shuru Par kambakht sar pe chadha hai
Kabhi khud se, kabhi khuda se Kabhi zamaane se ladaa hai Itna hua badnaam phir bhi Har zubaan pe adaa hai
Ishq ki saazishein Ishq ki baaziyaan Haara main khel ke Do dilon ka juaa
Kyun tune meri fursat ki Kyun dil mein itni harkat ki Ishaq mein itni barqat ki Ye tune kya kiya
Phiroon ab maara maara main Chaand se bichhda taara main Dil se itna kyun haara main Yeh tune kya kiya
Saari duniya se jeet ke main aaya hoon idhar Tere aage hi main haara kiya tune kya asar
Main dil ka raaz kehta hoon Ke jab jab saansein leta hoon Tera hi naam leta hoon Yeh tune kya kiya
Meri baahon ko teri saanson ki jo Aadatein lagi hain waisi Jee leta hoon ab main thoda aur Mere dil ki rait pe aankhon ki jo Pade parchhai teri Pee leta hoon tab main thoda aur
Jaane kaun hai tu meri Main na jaanu yeh magar Jahaan jaaoon main karoon main wahaan Tera hi zikar
Mujhe tu raazi lagti hai Jeeti hui baazi lagti hai Tabeeyat taazi lagti hai Ye tune kya kiya
Main dil ka raaz kehta hoon Ke jab jab saansein leta hoon Tera hi naam leta hoon Yeh tune kya kiya
Dil karta hai teri baatein sunu Saude main adhoore chunu Muft ka hua yeh faayda Kyun khud ko main barbaad karoon Fanaa hoke tunhse miloon Ishq ka ajab hai kaayda
Teri raahon se jo guzri hain meri dagar Main aage badh gaya hoon hoke thoda befikar
Kaho to kis se marzi loon Kaho to kis ko arzi doon Hansta ab thoda farzi hoon Yeh tune kya kiya
Main dil ka raaz kehta hoon Ke jab jab saansein leta hoon
Ishq ki saazishein Ishq ki baaziyaan Haara main khel ke Do dilon ka juaa
joke in hindi -जोक (Joke) का मतलब है हंसी-मजाक, चुटकुला या विनोदपूर्ण बात। यह एक ऐसी कहानी या वाक्य होता है जिसे सुनकर लोग हंसते हैं। जोक्स का इस्तेमाल मनोरंजन के लिए किया जाता है और हंसी-खुशी का माहौल बनाने में मदद करते हैं।
भज गोविन्दं भज गोविन्दं, गोविन्दं भज मूढ़मते । संप्राप्ते सन्निहिते काले, न हि न हि रक्षति डुकृञ् करणे ॥1॥ हे मोह से ग्रसित बुद्धि वाले मित्र, गोविंद को भजो, गोविन्द का नाम लो, गोविन्द से प्रेम करो क्योंकि मृत्यु के समय व्याकरण के नियम याद रखने से आपकी रक्षा नहीं हो सकती है । (1)
मूढ़ जहीहि धनागमतृष्णाम्, कुरु सद्बुद्धिमं मनसि वितृष्णाम् । यल्लभसे निजकर्मोपात्तम्, वित्तं तेन विनोदय चित्तं ॥2॥ हे मोहित बुद्धि ! धन एकत्र करने के लोभ को त्यागो । अपने मन से इन समस्त कामनाओं का त्याग करो । सत्यता के पथ का अनुसरण करो, अपने परिश्रम से जो धन प्राप्त हो उससे ही अपने मन को प्रसन्न रखो । (2)
नारीस्तनभरनाभीदेशम्, दृष्ट्वा मागा मोहावेशम् । एतन्मान्सवसादिविकारम्, मनसि विचिन्तय वारं वारम् ॥3॥ स्त्री शरीर पर मोहित होकर आसक्त मत हो । अपने मन में निरंतर स्मरण करो कि ये मांस-वसा आदि के विकार के अतिरिक्त कुछ और नहीं है । (3)
यावद्वित्तोपार्जनसक्त:, तावन्निजपरिवारो रक्तः। पश्चाज्जीवति जर्जरदेहे, वार्तां कोऽपि न पृच्छति गेहे ॥5॥ जब तक व्यक्ति धनोपार्जन में समर्थ है, तब तक परिवार में सभी उसके प्रति स्नेह प्रदर्शित करते हैं परन्तु अशक्त हो जाने पर उसे सामान्य बातचीत में भी नहीं पूछा जाता है । (5)
बालस्तावत् क्रीडासक्तः, तरुणस्तावत् तरुणीसक्तः । वृद्धस्तावच्चिन्तासक्तः, परे ब्रह्मणि कोऽपि न सक्तः ॥7॥ बचपन में खेल में रूचि होती है , युवावस्था में युवा स्त्री के प्रति आकर्षण होता है, वृद्धावस्था में चिंताओं से घिरे रहते हैं पर प्रभु से कोई प्रेम नहीं करता है । (7)
सत्संगत्वे निस्संगत्वं, निस्संगत्वे निर्मोहत्वं । निर्मोहत्वे निश्चलतत्त्वं निश्चलतत्त्वे जीवन्मुक्तिः ॥9॥ सत्संग से वैराग्य, वैराग्य से विवेक, विवेक से स्थिर तत्त्वज्ञान और तत्त्वज्ञान से मोक्ष की प्राप्ति होती है । (9)
वयसि गते कः कामविकारः, शुष्के नीरे कः कासारः । क्षीणे वित्ते कः परिवारः, ज्ञाते तत्त्वे कः संसारः ॥10॥ आयु बीत जाने के बाद काम भाव नहीं रहता, पानी सूख जाने पर तालाब नहीं रहता, धन चले जाने पर परिवार नहीं रहता और तत्वज्ञान होने के बाद संसार नहीं रहता । (10)
मा कुरु धनजनयौवनगर्वं, हरति निमेषात्कालः सर्वं । मायामयमिदमखिलम् हित्वा, ब्रह्मपदम् त्वं प्रविश विदित्वा ॥11॥ धन, शक्ति और यौवन पर गर्व मत करो, समय क्षण भर में इनको नष्ट कर देता है | इस विश्व को माया से घिरा हुआ जान कर तुम ब्रह्म पद में प्रवेश करो । (11)
पुनरपि जननं पुनरपि मरणं, पुनरपि जननी जठरे शयनम् । इह संसारे बहुदुस्तारे, कृपयाऽपारे पाहि मुरारे ॥21॥ बार-बार जन्म, बार-बार मृत्यु, बार-बार माँ के गर्भ में शयन, इस संसार से पार जा पाना बहुत कठिन है, हे कृष्ण कृपा करके मेरी इससे रक्षा करें । (21)
कस्त्वं कोऽहं कुत आयातः, का मे जननी को मे तातः । इति परिभावय सर्वमसारम्, विश्वं त्यक्त्वा स्वप्न विचारम् ॥23॥ तुम कौन हो, मैं कौन हूँ, कहाँ से आया हूँ, मेरी माँ कौन है, मेरा पिता कौन है ? सब प्रकार से इस विश्व को असार समझ कर इसको एक स्वप्न के समान त्याग दो । (23)
शत्रौ मित्रे पुत्रे बन्धौ, मा कुरु यत्नं विग्रहसन्धौ । सर्वस्मिन्नपि पश्यात्मानं, सर्वत्रोत्सृज भेदाज्ञानम् ॥25॥ शत्रु, मित्र, पुत्र, बन्धु-बांधवों से प्रेम और द्वेष मत करो, सबमें अपने आप को ही देखो, इस प्रकार सर्वत्र ही भेद रूपी अज्ञान को त्याग दो । (25)
सुखतः क्रियते रामाभोगः, पश्चाद्धन्त शरीरे रोगः । यद्यपि लोके मरणं शरणं, तदपि न मुञ्चति पापाचरणम् ॥28॥ सुख के लिए लोग आनंद-भोग करते हैं जिसके बाद इस शरीर में रोग हो जाते हैं । यद्यपि इस पृथ्वी पर सबका मरण सुनिश्चित है फिर भी लोग पापमय आचरण को नहीं छोड़ते हैं । (28)
गुरुचरणाम्बुज निर्भर भक्तः, संसारादचिराद्भव मुक्तः । सेन्द्रियमानस नियमादेवं, द्रक्ष्यसि निज हृदयस्थं देवम् ॥31॥ गुरु के चरण कमलों का ही आश्रय मानने वाले भक्त बनकर सदैव के लिए इस संसार में आवागमन से मुक्त हो जाओ, इस प्रकार मन एवं इन्द्रियों का निग्रह कर अपने हृदय में विराजमान प्रभु के दर्शन करो । (31)
SANSKRIT WITH HINDI AND ENGLISH TRANSLATION
भज गोविन्दं भज गोविन्दं, गोविन्दं भज मूढ़मते। संप्राप्ते सन्निहिते काले, न हि न हि रक्षति डुकृञ् करणे॥1॥ हे मोह से ग्रसित बुद्धि (-सोचने समझने, राह निकलने में असमर्थ व्यक्ति) वाले मनुष्य ! गोविंद को भजो, गोविन्द का नाम लो, गोविन्द से प्रेम करो; क्योंकि मृत्यु के समय व्याकरण के नियम याद रखने से आपकी रक्षा नहीं हो सकती है। O deluded-confused-unable to find a way out, chant the names of Almighty-Govind, worship Govind, love Govind, since memorising the rules of grammar (-daily chores-routine) cannot save one at the time of death. One who is not thoughtful, insensitive, irresponsible should pray to the God. मूढ़ जहीहि धनागमतृष्णाम्, कुरु सद्बुद्धिमं मनसि वितृष्णाम्। यल्लभसे निजकर्मोपात्तम्,वित्तं तेन विनोदय चित्तं॥2॥ हे मोहित बुद्धि! धन एकत्र करने के लोभ को त्यागो। अपने मन से इन समस्त कामनाओं का त्याग करो। सत्य के पथ का अनुसरण करो, अपने परिश्रम से जो धन प्राप्त हो, उससे ही अपने मन को प्रसन्न रखो। O deluded-illusioned! Give up the lust to amass wealth. Reject all desires such desires from the mind and take up the path of virtuousness-piousity-righteousness. One should be content-satisfied happy with the money earned through honest means. One should earn money through righteous means without fraud, cheating, deceiving, forgery etc. नारीस्तनभरनाभीदेशम्, दृष्ट्वा मागा मोहावेशम्। एतन्मान्सवसादिविकारम्, मनसि विचिन्तय वारं वारम्॥3॥ स्त्री शरीर पर मोहित होकर आसक्त मत हो। अपने मन में निरंतर स्मरण करो कि वह मांस-वसा आदि के विकार के अतिरिक्त कुछ और नहीं हैं। One should not be governed by lust, sexuality, sensuality, passions towards women since they are nothing except a means to corrupt the mind. The woman’s anatomy is nothing more than flesh. Under the influence of delusion, one is not able to isolate himself from vulgarity, wretchedness.One should deliberate-meditate over this again and again mentally. नलिनीदलगतजलमतितरलम्, तद्वज्जीवितमतिशयचपलम्। विद्धि व्याध्यभिमानग्रस्तं, लोक शोकहतं च समस्तम्॥4॥ जीवन कमल-पत्र पर पड़ी हुई पानी की बूंदों के समान अनिश्चित एवं अल्प (-क्षणभंगुर) है। यह समझ लो कि समस्त विश्व रोग, अहंकार और दु:ख में डूबा हुआ है। Life is as ephemeral as water drops on a lotus leaf. Be aware that the whole world is troubled by disease, ego and grief. One did not exist before and he will not exist thereafter, as well. यावद्वित्तोपार्जनसक्त:, तावन्निजपरिवारो रक्तः। पश्चाज्जीवति जर्जरदेहे, वार्तां कोऽपि न पृच्छति गेहे॥5॥ जब तक व्यक्ति धनोपार्जन में समर्थ है, तब तक परिवार में सभी उसके प्रति स्नेह प्रदर्शित करते हैं, परन्तु अशक्त हो जाने पर उसे सामान्य बातचीत में भी नहीं पूछा जाता है। As long as one is fit and capable to earn money, everyone in the family show affection- respect towards him. But afterwards, when his body becomes weak-he turns old, no one cares-inquiries about him. No one feels the need to consult him. Even the servants ignore him. यावत्पवनो निवसति देहे, तावत् पृच्छति कुशलं गेहे। गतवति वायौ देहापाये, भार्या बिभ्यति तस्मिन्काये॥6॥ जब तक शरीर में प्राण रहते हैं तब तक ही लोग कुशल पूछते हैं। शरीर से प्राण वायु के निकलते ही पत्नी भी उस शरीर से डरती है। People are concerned about one till he alive. As soon as the soul-vital air -Pran Vayu, escape the body, near and dear too wish to remain away-aloof from it. On the other hand they are afraid of it. Even the wife prefer to remain away from the corpse-dead body-remains, out of fear (-ghost). बालस्तावत् क्रीडासक्तः, तरुणस्तावत् तरुणीसक्तः। वृद्धस्तावच्चिन्तासक्तः, परे ब्रह्मणि कोऽपि न सक्तः॥7॥ बचपन में खेल में रूचि होती है, युवावस्था में युवा स्त्री के प्रति आकर्षण होता है, वृद्धावस्था में चिंताओं से घिरे रहते हैं, पर प्रभु से कोई प्रेम नहीं करता है। One idles away-waste childhood in sports-play, during youth, he is attached to woman, in old age he keeps worrying about future, but it seldom that he prefers to be engrossed with Govind-the Par Brahmn Parmeshwar at any stage. In fact, he does not know, understand the significance-importance of it. का ते कांता कस्ते पुत्रः, संसारोऽयमतीव विचित्रः। कस्य त्वं वा कुत अयातः, तत्त्वं चिन्तय तदिह भ्रातः॥8॥ कौन तुम्हारी पत्नी है, कौन तुम्हारा पुत्र है, ये संसार अत्यंत विचित्र है, तुम कौन हो, कहाँ से आये हो, बन्धु ! इस बात पर तो पहले विचार कर लो। Who is your wife ? Who is your son? Indeed, strange is this world. O dear, think again and again who are you and from where have you come. One does not know his origin, earlier incarnations-previous births. सत्संगत्वे निस्संगत्वं, निस्संगत्वे निर्मोहत्वं। निर्मोहत्वे निश्चलतत्त्वं निश्चलतत्त्वे जीवन्मुक्तिः॥9॥ सत्संग से वैराग्य, वैराग्य से विवेक, विवेक से स्थिर तत्त्वज्ञान और तत्त्वज्ञान से मोक्ष की प्राप्ति होती है। Interaction with saints brings detachment, detachment leads to gist-nectar-elixir pertaining to the Almighty and this leads to Salvation-Liberation-Assimilation in the Ultimate-Almighty. वयसि गते कः कामविकारः, शुष्के नीरे कः कासारः। क्षीणे वित्ते कः परिवारः, ज्ञाते तत्त्वे कः संसारः॥10॥ आयु बीत जाने के बाद काम भाव नहीं रहता, पानी सूख जाने पर तालाब नहीं रहता, धन चले जाने पर परिवार नहीं रहता और तत्त्व ज्ञान होने के बाद संसार नहीं रहता। As soon as one grows old he looses potency-vigour-strength, after drying ponds-lakes loose their status as reservoirs, loss of wealth-poverty drives away the relatives and with the awakening of gist of the understanding of the Almighty; one looses charm of this world. मा कुरु धनजनयौवनगर्वं, हरति निमेषात्कालः सर्वं। मायामयमिदमखिलम् हित्वा, ब्रह्मपदम् त्वं प्रविश विदित्वा॥11॥ धन, शक्ति और यौवन पर गर्व मत करो, समय क्षण भर में इनको नष्ट कर देता है| इस विश्व को माया से घिरा हुआ जान कर तुम ब्रह्म पद में प्रवेश करो। One should not boast of wealth, strength-power-might and youth-vigor-vitality. The time-Kal will perish all these in a fraction of moment. He should consider this world to be illusion-perishable-destructible and make efforts to attain-achieve the Par Brahmn Parmeshwar. दिनयामिन्यौ सायं प्रातः, शिशिरवसन्तौ पुनरायातः। कालः क्रीडति गच्छत्यायुस्तदपि न मुन्च्त्याशावायुः॥12॥ दिन और रात, शाम और सुबह, सर्दी और बसंत बार-बार आते-जाते रहते हैं। काल की इस क्रीडा के साथ जीवन नष्ट होता रहता है; परन्तु इच्छाओ का अंत कभी नहीं होता है। Desires never vanish-diminish-satisfied from the mind of one with the expiry of time. He has to control-rein them. This can be achieved by diverting oneself towards the Almighty, through prayers-devotion. Day and night, dusk and dawn, winter and spring come and go, cyclically. In this sport of Time entire life goes away, but the storm of desire never departs or diminishes. द्वादशमंजरिकाभिरशेषः कथितो वैयाकरणस्यैषः। उपदेशोऽभूद्विद्यानिपुणैः, श्रीमच्छंकरभगवच्चरणैः॥12-1॥ बारह गीतों का ये उपदेश (-पुष्पहार, bouquet, garland), सर्वज्ञ प्रभुपाद श्री शंकराचार्य द्वारा एक वैयाकरण को प्रदान किया गया। This bouquet of twelve verses-Shlok-rhymes was imparted to a grammarian by the all-knowing, god-like Shri Shankrachary. This is apiece of preaching. काते कान्ता धन गतचिन्ता, वातुल किं तव नास्ति नियन्ता। त्रिजगति सज्जनसं गतिरैका, भवति भवार्णवतरणे नौका॥13॥ तुम्हें पत्नी और धन की इतनी चिंता क्यों है, क्या उनका कोई नियंत्रक नहीं है। तीनों लोकों में केवल सज्जनों का साथ ही इस भवसागर से पार जाने की नौका है। One should not worry about his wealth, family all the time. He should have faith in God who controls every thing. The virtuous company of the diligent-righteous-pious helps one in sailing through this vast reservoir of deeds-actions-mistakes-vices. Oh deluded! Why do you worry about your wealth and wife? Is there no one to take care of them? Only the company of saints can act as a boat in three worlds to take you out from this ocean-cycle of births and rebirths. जटिलो मुण्डी लुञ्छितकेशः, काषायाम्बरबहुकृतवेषः। पश्यन्नपि च न पश्यति मूढः, उदरनिमित्तं बहुकृतवेषः॥14॥ बड़ी जटाएं, केश रहित सिर, बिखरे बाल, काषाय (-भगवा) वस्त्र और भांति भांति के वेश; ये सब अपना पेट भरने के लिए ही धारण किये जाते हैं, अरे मोहित मनुष्य तुम इसको देख कर भी क्यों नहीं देख पाते हो! Matted and untidy hair, shaven heads, orange-saffron coloured cloths are all a way to earn livelihood by those who do not wish to earn their bread through righteous-honest means-hard work. O deluded man why don’t you understand it, even after seeing. अङ्गं गलितं पलितं मुण्डं, दशनविहीनं जतं तुण्डम्। वृद्धो याति गृहीत्वा दण्डं, तदपि न मुञ्चत्याशापिण्डम्॥15॥ क्षीण अंगों, पके हुए बालों, दांतों से रहित मुख और हाथ में दंड लेकर चलने वाला वृद्ध भी आशा-पाश से बंधा रहता है। Even an old man with weak limbs, hairless head, toothless mouth, walking with the help of a stick, still has high hopes-unfulfilled desires. Desires are unending. Fulfilment of one desire leads to yet another new one. अग्रे वह्निः पृष्ठेभानुः, रात्रौ चुबुकसमर्पितजानुः। करतलभिक्षस्तरुतलवासः, तदपि न मुञ्चत्याशापाशः॥16॥ सूर्यास्त के बाद, रात्रि में आग जला कर और घुटनों में सर छिपाकर सर्दी बचाने वाला, हाथ में भिक्षा का अन्न खाने वाला, पेड़ के नीचे रहने वाला भी अपनी इच्छाओं के बंधन को छोड़ नहीं पाता है। One who warms his body by fire after sunset living in the open under the sky-homeless, curls his body to his knees to avoid cold; eats the begged food and sleeps beneath the tree, he is also bound by desires, even in these difficult situations. Desires never die. कुरुते गङ्गासागरगमनं, व्रतपरिपालनमथवा दानम्। ज्ञानविहिनः सर्वमतेन, मुक्तिं न भजति जन्मशतेन॥17॥ किसी भी धर्म के अनुसार ज्ञान रहित रह कर गंगासागर जाने से, व्रत रखने से और दान देने से सौ जन्मों में भी मुक्ति नहीं प्राप्त हो सकती है। Its not possible to attain Salvation by visiting religious places of worship-pilgrimages, fasting, donations-charity, without understanding the gist of the religiosity, even in hundred births, by following any of the religion-Varnashram Dharm. सुर मंदिर तरु मूल निवासः, शय्या भूतल मजिनं वासः। सर्व परिग्रह भोग त्यागः, कस्य सुखं न करोति विरागः॥18॥ देव मंदिर या पेड़ के नीचे निवास, पृथ्वी जैसी शय्या, अकेले ही रहने वाले, सभी संग्रहों और सुखों का त्याग करने वाले वैराग्य से किसको आनंद की प्राप्ति नहीं होगी। Renunciation-detachment-relinquishment leads to bliss-Parmanand-Ultimate pleasure-Salvation. Reside in a temple or below a tree, sleep on mother earth as your bed, stay alone, leave all the belongings and comforts, such renunciation can give all the pleasures to anybody. योगरतो वाभोगरतोवा, सङ्गरतो वा सङ्गवीहिनः। यस्य ब्रह्मणि रमते चित्तं, नन्दति नन्दति नन्दत्येव॥19॥ कोई योग में लगा हो या भोग में, संग में आसक्त हो या निसंग हो, पर जिसका मन ब्रह्म में लगा है; वो ही आनंद करता है, आनन्द ही आनंद करता है। One may like meditative practice or worldly pleasures, may be attached or detached. But only one who fixing-trains his mind on God lovingly enjoys bliss, enjoys bliss, enjoys bliss. भगवद् गीता किञ्चिदधीता, गङ्गा जललव कणिकापीता। सकृदपि येन मुरारि समर्चा, क्रियते तस्य यमेन न चर्चा॥20॥ जिन्होंने भगवद् गीता का थोडा सा भी अध्ययन किया है, भक्ति रूपी गंगा जल का कण भर भी पिया है, भगवान कृष्ण की एक बार भी समुचित प्रकार से पूजा की है, यम के द्वारा उनकी चर्चा नहीं की जाती है। Those who have studied-understood-learnt Geeta, worship Bhagwan Shri Krashn with love & affection even for a while-once-a little-fraction of second, drink just a drop of water from the holy Ganga, Yam Raj-the deity of death has no control over them. पुनरपि जननं पुनरपि मरणं, पुनरपि जननी जठरे शयनम्। इह संसारे बहुदुस्तारे, कृपयाऽपारे पाहि मुरारे॥21॥ बार-बार जन्म, बार-बार मृत्यु, बार-बार माँ के गर्भ में शयन, इस संसार से पार जा पाना बहुत कठिन है। हे कृष्ण! कृपा करके मेरी इससे रक्षा करें। Repeated births and death, stay in the mother’s womb, makes it extremely difficult to go beyond this universe. Hey Murari! Please help me pass through all this by extending your grace-mercy. रथ्या चर्पट विरचित कन्थः, पुण्यापुण्य विवर्जित पन्थः। योगी योगनियोजित चित्तो, रमते बालोन्मत्तवदेव॥22॥ रथ के नीचे आने से फटे हुए कपडे पहनने वाले, पुण्य और पाप से रहित पथ पर चलने वाले, योग में अपने चित्त को लगाने वाले योगी, बालक के समान आनंद में रहते हैं। One who wears rags-teared cloths by coming under the chariot, travel-move on the path free from virtues and sins- a state of equanimity, trains their minds in the devotion to the Almighty through Yog-meditation, enjoys like a carefree exuberant child. कस्त्वं कोऽहं कुत आयातः, का मे जननी को मे तातः। इति परिभावय सर्वमसारम्, विश्वं त्यक्त्वा स्वप्न विचारम्॥23॥ तुम कौन हो, मैं कौन हूँ, कहाँ से आया हूँ, मेरी माँ कौन है, मेरा पिता कौन है? सब प्रकार से इस विश्व को असार समझ कर इसको एक स्वप्न के समान त्याग दो। Who are you ? Who am I ? From where have I come ? Who is my mother, who is my father ? Ponder over these and after understanding-realizing this world to be meaningless like a dream, relinquish it. त्वयि मयि चान्यत्रैको विष्णुः, व्यर्थं कुप्यसि मय्यसहिष्णुः। भव समचित्तः सर्वत्र त्वं, वाञ्छस्यचिराद्यदि विष्णुत्वम्॥24॥ तुममें, मुझमें और अन्यत्र भी सर्वव्यापक विष्णु ही हैं, तुम व्यर्थ ही क्रोध करते हो, यदि तुम शाश्वत विष्णु पद को प्राप्त करना चाहते हो तो सर्वत्र समान चित्त वाले हो जाओ। Bhagwan Vishnu resides in me, you and everything-every one else. So, your anger is meaningless-useless. If you wish to attain the eternal status of Vishnu, practice equanimity all the time, in all the things. शत्रौ मित्रे पुत्रे बन्धौ, मा कुरु यत्नं विग्रहसन्धौ। सर्वस्मिन्नपि पश्यात्मानं, सर्वत्रोत्सृज भेदाज्ञानम्॥25॥ शत्रु, मित्र, पुत्र, बन्धु-बांधवों से प्रेम और द्वेष मत करो, सबमें अपने आप को ही देखो, इस प्रकार सर्वत्र ही भेद रूपी अज्ञान को त्याग दो। Bhagwan Vishnu is present in each and every one of us, in the form of soul. Its only the body which discriminate between the two. Try not to win the love of your friends, brothers, relatives and son(s) or to fight with your enemies. See yourself in each and everyone and give up ignorance of duality everywhere. Practice equanimity. [One must be ready to protect his kith and kin and him self, in stead of surrendering to situations, till he is a household undergoing Grahasthashram (-गृहस्थाश्रम) Varnashram Dharm. कामं क्रोधं लोभं मोहं, त्यक्त्वाऽत्मानं भावय कोऽहम्। आत्मज्ञान विहीना मूढाः, ते पच्यन्ते नरकनिगूढाः॥26॥ काम, क्रोध, लोभ, मोह को छोड़ कर, स्वयं में स्थित होकर विचार करो कि मैं कौन हूँ ? जो आत्म-ज्ञान से रहित मोहित व्यक्ति हैं; वो बार-बार छिपे हुए इस संसार रूपी नरक में पड़ते हैं। Give up desires, anger, greed and delusion. Ponder over your real self-nature. Those devoid of the knowledge of self, come in this world-a hidden hell, endlessly. गेयं गीता नाम सहस्रं, ध्येयं श्रीपति रूपमजस्रम्। नेयं सज्जन सङ्गे चित्तं, देयं दीनजनाय च वित्तम्॥27॥ भगवान विष्णु के सहस्त्र नामों को गाते हुए उनके सुन्दर रूप का अनवरत ध्यान करो, सज्जनों के संग में अपने मन को लगाओ और गरीबों की अपने धन से सेवा करो। Sing thousand glories of Bhagwan Vishnu, constantly remembering his various forms in your heart. Enjoy the company of virtuous-righteous-pious-noble people and do acts of charity for the poor, down trodden and the needy. सुखतः क्रियते रामाभोगः,पश्चाद्धन्त शरीरे रोगः। यद्यपि लोके मरणं शरणं, तदपि न मुञ्चति पापाचरणम्॥28॥ सुख के लिए लोग आनंद-भोग करते हैं, जिसके बाद इस शरीर में रोग हो जाते हैं। यद्यपि इस पृथ्वी पर सबका मरण सुनिश्चित है, फिर भी लोग पापमय आचरण को नहीं छोड़ते। People use this body for pleasure-enjoyment-passions-sexuality-sensuality-lust, which gets diseased in the end. Though in this world everything ends in death, man does not give up the sinful conduct. Greed, unfulfilled desires always keep him pushing to wretchedness-vices-sins-misconduct. अर्थंमनर्थम् भावय नित्यं, नास्ति ततः सुखलेशः सत्यम्। पुत्रादपि धनभजाम् भीतिः, सर्वत्रैषा विहिता रीतिः॥29॥ धन अकल्याणकारी है और इससे जरा सा भी सुख नहीं मिल सकता है, ऐसा विचार प्रतिदिन करना चाहिए। धनवान व्यक्ति तो अपने पुत्रों से भी डरते हैं; ऐसा सबको पता ही है। Keep on thinking that money is root cause of all troubles. It cannot give even a bit of happiness-pleasure. A rich man fears even his own sons, who are willing to kill him for the sake of wealth, luxuries. This is the law nature pertaining to riches and applicable to every one-everywhere. प्राणायामं प्रत्याहारं, नित्यानित्य विवेकविचारम्। जाप्यसमेत समाधिविधानं, कुर्ववधानं महदवधानम्॥30॥ प्राणायाम, उचित आहार, नित्य इस संसार की अनित्यता का विवेक पूर्वक विचार करो, प्रेम से प्रभु-नाम का जाप करते हुए समाधि में ध्यान दो, बहुत ध्यान दो। Perform-conduct-practice Pranayam, the regulation of life forces, take proper food, constantly distinguish the permanent from the fleeting. Chant the holy names of God with love and meditate, with utmost attention. One must utilize his prudence-intelligence to abandon vices-sins-wretchedness. गुरुचरणाम्बुज निर्भर भक्तः, संसारादचिराद्भव मुक्तः। सेन्द्रियमानस नियमादेवं, द्रक्ष्यसि निज हृदयस्थं देवम्॥31॥ गुरु के चरण कमलों का ही आश्रय मानने वाले भक्त बनकर सदैव के लिए इस संसार में आवागमन से मुक्त हो जाओ, इस प्रकार मन एवं इन्द्रियों का निग्रह कर अपने हृदय में विराजमान प्रभु के दर्शन करो। One must take shelter-asylum-protection under the auspiciousness of his Guru-guide like a devotee and set him self free from the clutches of this perishable world. This will help him in acquiring control over sensuality-vulgarity-useless thoughts-dirty ideas-irrational thoughts. One should become free from repeated cycles of death and births. This will lead to self control over mind, ideas and retain the Almighty in the heart. मूढः कश्चन वैयाकरणो, डुकृञ्करणाध्ययन धुरिणः। श्रीमच्छम्कर भगवच्छिष्यै, बोधित आसिच्छोधितकरणः॥32॥ इस प्रकार व्याकरण के नियमों को कंठस्थ करते हुए किसी मोहित वैयाकरण के माध्यम से बुद्धिमान श्री भगवान शंकर के शिष्य बोध प्राप्त करने के लिए प्रेरित किये गए। Thus through a deluded grammarian lost in memorising rules of the grammar, the all knowing Shri Shankar motivated his disciples for enlightenment. भजगोविन्दं भजगोविन्दं, गोविन्दं भजमूढमते। नामस्मरणादन्यमुपायं, नहि पश्यामो भवतरणे॥33॥ गोविंद को भजो, गोविन्द का नाम लो, गोविन्द से प्रेम करो क्योंकि भगवान के नाम जप के अतिरिक्त इस भव-सागर से पार जाने का अन्य कोई मार्ग नहीं है। O the deluded minded, chant Govind, worship Govind, love Govind; as there is no other way to cross the life’s ocean except lovingly remembering the holy names of God.
दो नैनों के पेचीदा सौ गलियारे इनमें खो कर तू मिलता है कहाँ तुझको अम्बर से पिंजरे ज्यादा प्यारे
उड़ जा कहने से सुनता भी तू है कहाँ गल सुन ले आ
गल सुन ले आ वे कमलेया मेरे नादान दिल
वे कमलेया वे कमलेया वे कमलेया मेरे नादान दिल नादान दिल
जा करना है तो प्यार कर ज़िद पूरी फिर इक बार कर कमलेया वे कमलेया
मनमर्ज़ी कर के देख ले बदले में सब कुछ हार कर कमलेया वे कमलेया
तुझपे खुद से ज्यादा यार की चलती है इश्क़ है ये तेरा या तेरी गलती है
अगर सवाब है तो क्यूँ सज़ा मिलती है
दिल्लगी इक तेरी आज कल परसों की नींद ले जाती है लूट के बरसों की
मान ले कभी तो बात खुदगर्ज़ों की
जिनपे चल के मंजिल मिलनी आसान हो वैसे रस्ते तू चुनता है कहां हो हो..
कसती है दुनिया कस ले फ़िक्रे ताने उंगली पे आखिर गिनता भी तू है कहाँ
मर्ज़ी तेरी जी भर ले आ वे कमलेया मेरे नादान दिल वे कमलेया वे कमलेया वे कमलेया मेरे नादान दिल
जा करना है तो प्यार कर ज़िद पूरी फिर इक बार कर कमलेया वे कमलेया
मनमर्ज़ी कर के देख ले बदले में सब कुछ हार कर कमलेया वे कमलेया
जा करना है तो प्यार कर ज़िद पूरी फिर इक बार कर कमलेया वे कमलेया
मनमर्ज़ी कर के देख ले बदले में सब कुछ हार कर कमलेया वे कमलेया
Ve Kamleya Lyrics In English
Ve Kamleya Ve Kamleya Ve Kamleya Mere Nadaan Dil Ve Kamleya Ve Kamleya Ve Kamleya Mere Nadaan Dil Do Nainon Ke Pechida Sau Galiyare Inmein Kho Kar Tu Milta Hai Kahan Tujhko Ambar Se Pinjre Zyada Pyare Udd Ja Kehne Se Sunta Bhi Tu Hai Kahan Gall Sunn Le Aa Gall Sunn Le Aa Ve Kamleya Mere Nadaan Dil Ve Kamleya Ve Kamleya Ve Kamleya Mere Nadaan Dil Nadaan Dil Ja Karna Hai Toh Pyar Kar Zid Poori Phir Ik Baar Kar Kamleya Ve Kamleya Manmarzi Karke Dekh Le Badle Mein Sab Kuchh Haar Kar Kamleya Ve Kamleya Tujhpe Khud Se Zyada Yaar Ki Chalti Hai Ishq Hai Yeh Tera Ya Teri Ghalti Hai Agar Sawaab Hai Toh Kyun Saza Milti Hai Dillagi Ik Teri Aaj Kal Parson Ki Neend Le Jaati Hai Loot Ke Barson Ki Maan Le Kabhi Toh Baat Khudgarzon Ki Jinpe Chal Ke Manzil Milni Aasaan Ho Vaise Raste Tu Chunta Hai Kahan Ho Ho Kasti Hai Duniya Kass Le Fikre Taane Ungli Pe Aakhir Ginta Bhi Tu Hai Kahan Marzi Teri Jee Bhar Le Aa Ve Kamleya Mere Nadaan Dil Ve Kamleya Ve Kamleya Ve Kamleya Mere Nadaan Dil Ja Karna Hai Toh Pyaar Kar Zid Poori Phir Ik Baar Kar Kamleya Ve Kamleya Manmarzi Karke Dekh Le Badle Mein Sab Kuchh Haar Kar Kamleya Ve Kamleya Ja Karna Hai Toh Pyaar Kar Zid Poori Phir Ik Baar Kar Kamleya Ve Kamleya Manmarzi Karke Dekh Le Badle Mein Sab Kuchh Haar Kar Kamleya Ve Kamleya Written by: Amitabh Bhattacharya
Ve Kamleya Meaning in hindi
वे कमलेया — कमलेया का अर्थ वे कमलेया रॉकी और रानी की प्रेम कहानी फिल्म के एक गाने का शीर्षक है। ‘कमलेया’ शब्द कमला से आया है, जिसका अर्थ है एक पागल व्यक्ति, और यह शब्द का सम्बोधनात्मक रूप है, यानी, जब आप किसी को पुकारते हैं तो इसका उपयोग किया जाता है। इसलिए जब आप ‘वे कमलेया’ कहते हैं, तो इसका अर्थ है ‘ओ पागल’, और इस प्रकार, ‘वे कमलेया मेरे नादान दिल’ पंक्ति का अर्थ है ‘ओ मेरे पागल, भोले दिल।’
Ye Tune Kya Kiya Lyrics Ishq woh balaa haiIshq woh balaa haiJisko chhua jisne woh jalaa hai Dil se hota hai shuruDil se hota hai shuruPar kambakht sar pe chadha hai Kabhi khud se, kabhi khuda seKabhi zamaane se ladaa haiItna hua badnaam phir bhiHar zubaan pe adaa hai Ishq ki saazisheinIshq ki baaziyaanHaara main… Read more: Ye Tune Kya Kiya Lyrics
Song by Anuv Jain ‧ 2024 JO TUM MERE HO Lyrics हैरान हूँ कि कुछ भी न मांगूं कभी मैं जो तुम मेरे हो ऐसा हो क्यों? कि लगता है हासिल सभी है जो तुम मेरे हो जो तुम मेरे हो तो मैं कुछ नहीं मांगूं दुनिया से और तुम हो ही नहीं तो मैं… Read more: Jo Tum Mere Ho
हिंदी दिवस पर कविता(hindi Diwas Par Kavita) 14 सितंबर को ‘हिन्दी दिवस’ मनाया जाता है। संवैधानिक रूप से हिंदी को राजभाषा का दर्जा प्राप्त है किंतु सरकारों ने उसे उसका प्रथम स्थान न देकर अन्यत्र धकेल दिया यह दुखदाई है। हिंदी को राजभाषा के रूप में देखना और हिंदी दिवस के रूप में उसका सम्मान… Read more: हिंदी दिवस पर कविता(hindi Diwas Par Kavita)
पं.माखनलाल चतुर्वेदी कैदी और कोकिला 1क्या गाती हो?क्यों रह-रह जाती हो? कोकिल बोलो तो ! क्या लाती हो? सन्देशा किसका है? कोकिल बोलो तो ! 2ऊँची काली दीवारों के घेरे में, डाकू, चोरों, बटमारों के डेरे में, जीने को देते नहीं पेट भर खाना, मरने भी देते नहीं, तड़प रह जाना ! जीवन पर अब दिन-रात कड़ा पहरा है, शासन है, या तम का… Read more: कैदी और कोकिला/
पुष्प की अभिलाषा पुष्प की अभिलाषा /पं.माखनलाल चतुर्वेदी चाह नहीं, मैं सुरबाला के गहनों में गूँथा जाऊँ।चाह नहीं, प्रेमी-माला में बिंध प्यारी को ललचाऊँ॥चाह नहीं, सम्राटों के शव पर, हे हरि, डाला जाऊँ।चाह नहीं, देवों के सिर पर चढूँ, भाग्य पर इठलाऊँ॥मुझे तोड़ लेना वनमाली!उस पथ में देना तुम फेंक॥मातृ-भूमि पर शीश चढ़ाने।जिस पथ जावें… Read more: Pushp Ki Abhilasha
सजा दो घर का गुलशन सा, अवध में राम आए हैं (Saja Do Ghar Ko Gulshan Sa Avadh Me Ram Aaye Hain Lyrics)
सजा दो घर का गुलशन सा, अवध में राम आए हैं, सजा दो घर को गुलशन सा, अवध में राम आए हैं, अवध मे राम आए है, मेरे सरकार आए हैं, लगे कुटिया भी दुल्हन सी, अवध मे राम आए हैं, सजा दो घर को गुलशन सा, अवध मे राम आएं हैं ।
पखारों इनके चरणों को, बहा कर प्रेम की गंगा, बिछा दो अपनी पलकों को, अवध मे राम आए हैं, सजा दो घर को गुलशन सा, अवध मे राम आए हैं ।
तेरी आहट से है वाकिफ़, नहीं चेहरे की है दरकार, बिना देखेँ ही कह देंगे, लो आ गए है मेरे सरकार, लो आ गए है मेरे सरकार, दुआओं का हुआ है असर, दुआओं का हुआ है असर, अवध मे राम आए हैं, सजा दो घर को गुलशन सा, अवध मे राम आए हैं ।
सजा दो घर को गुलशन सा, अवध में राम आए हैं, अवध मे राम आए है, मेरे सरकार आए हैं, लगे कुटिया भी दुल्हन सी, अवध मे राम आए हैं, सजा दो घर को गुलशन सा, अवध मे राम आएं हैं।
Ye Tune Kya Kiya Lyrics Ishq woh balaa haiIshq woh balaa haiJisko chhua jisne woh jalaa hai Dil se hota hai shuruDil se hota hai shuruPar kambakht sar pe chadha hai Kabhi khud se, kabhi khuda seKabhi zamaane se ladaa haiItna hua badnaam phir bhiHar zubaan pe adaa hai Ishq ki saazisheinIshq ki baaziyaanHaara main… Read more: Ye Tune Kya Kiya Lyrics
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हिंदी दिवस पर कविता(hindi Diwas Par Kavita) 14 सितंबर को ‘हिन्दी दिवस’ मनाया जाता है। संवैधानिक रूप से हिंदी को राजभाषा का दर्जा प्राप्त है किंतु सरकारों ने उसे उसका प्रथम स्थान न देकर अन्यत्र धकेल दिया यह दुखदाई है। हिंदी को राजभाषा के रूप में देखना और हिंदी दिवस के रूप में उसका सम्मान… Read more: हिंदी दिवस पर कविता(hindi Diwas Par Kavita)
पं.माखनलाल चतुर्वेदी कैदी और कोकिला 1क्या गाती हो?क्यों रह-रह जाती हो? कोकिल बोलो तो ! क्या लाती हो? सन्देशा किसका है? कोकिल बोलो तो ! 2ऊँची काली दीवारों के घेरे में, डाकू, चोरों, बटमारों के डेरे में, जीने को देते नहीं पेट भर खाना, मरने भी देते नहीं, तड़प रह जाना ! जीवन पर अब दिन-रात कड़ा पहरा है, शासन है, या तम का… Read more: कैदी और कोकिला/
पुष्प की अभिलाषा पुष्प की अभिलाषा /पं.माखनलाल चतुर्वेदी चाह नहीं, मैं सुरबाला के गहनों में गूँथा जाऊँ।चाह नहीं, प्रेमी-माला में बिंध प्यारी को ललचाऊँ॥चाह नहीं, सम्राटों के शव पर, हे हरि, डाला जाऊँ।चाह नहीं, देवों के सिर पर चढूँ, भाग्य पर इठलाऊँ॥मुझे तोड़ लेना वनमाली!उस पथ में देना तुम फेंक॥मातृ-भूमि पर शीश चढ़ाने।जिस पथ जावें… Read more: Pushp Ki Abhilasha
भए प्रगट कृपाला दीनदयाला, कौसल्या हितकारी । हरषित महतारी, मुनि मन हारी, अद्भुत रूप बिचारी ॥ लोचन अभिरामा, तनु घनस्यामा, निज आयुध भुजचारी । भूषन बनमाला, नयन बिसाला, सोभासिंधु खरारी ॥ कह दुइ कर जोरी, अस्तुति तोरी, केहि बिधि करूं अनंता । माया गुन ग्यानातीत अमाना, वेद पुरान भनंता ॥ करुना सुख सागर, सब गुन आगर, जेहि गावहिं श्रुति संता । सो मम हित लागी, जन अनुरागी, भयउ प्रगट श्रीकंता ॥ ब्रह्मांड निकाया, निर्मित माया, रोम रोम प्रति बेद कहै । मम उर सो बासी, यह उपहासी, सुनत धीर मति थिर न रहै ॥ उपजा जब ग्याना, प्रभु मुसुकाना, चरित बहुत बिधि कीन्ह चहै । कहि कथा सुहाई, मातु बुझाई, जेहि प्रकार सुत प्रेम लहै ॥ माता पुनि बोली, सो मति डोली, तजहु तात यह रूपा । कीजै सिसुलीला, अति प्रियसीला, यह सुख परम अनूपा ॥ सुनि बचन सुजाना, रोदन ठाना, होइ बालक सुरभूपा । यह चरित जे गावहिं, हरिपद पावहिं, ते न परहिं भवकूपा ॥ भए प्रगट कृपाला, दीनदयाला, कौसल्या हितकारी । हरषित महतारी, मुनि मन हारी, अद्भुत रूप बिचारी ॥
राम नवमी
ramnavami
रामनवमी का त्यौहार चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी को मनाया जाता है जो अप्रैल-मई में आता है। हिंदू धर्मशास्त्रों के अनुसार इस दिन मर्यादा-पुरूषोत्तम भगवान श्री राम जी का जन्म हुआ था।
गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस बालकाण्ड में स्वयं लिखा है कि उन्होंने रामचरित मानस की रचना का आरम्भ अयोध्यापुरी में विक्रम सम्वत् १६३१ (१५७४ ईस्वी) के रामनवमी (मंगलवार) को किया था। गोस्वामी जी ने रामचरितमानस में श्रीराम के जन्म का वर्णन कुछ इस प्रकार किया है-
हिन्दु धर्म शास्त्रों के अनुसार त्रेतायुग में रावण के अत्याचारों को समाप्त करने तथा धर्म की पुनः स्थापना के लिये भगवान विष्णु ने मृत्यु लोक में श्री राम के रूप में अवतार लिया था। श्रीराम चन्द्र जी का जन्म चैत्र शुक्ल की नवमी के दिन पुनर्वसु नक्षत्र तथा कर्क लग्न में रानी कौशल्या की कोख से, राजा दशरथ के घर में हुआ था।
सम्पूर्ण भारत में रामनवमी मनायी जाती है। तेलंगण का भद्राचलम मन्दिर उन स्थानों में हैं जहाँ रामनवमी बड़े धूमधाम से मनायी जाती है।
श्रीरामनवमी का त्यौहार पिछले कई हजार सालों से मनाया जा रहा है।
रामायण के अनुसार अयोध्या के राजा दशरथ की तीन पत्नियाँ थीं लेकिन बहुत समय तक कोई भी राजा दशरथ को सन्तान का सुख नहीं दे पायी थीं जिससे राजा दशरथ बहुत परेशान रहते थे। पुत्र प्राप्ति के लिए राजा दशरथ को ऋषि वशिष्ठ ने पुत्रकामेष्टि यज्ञ कराने को विचार दिया। इसके पश्चात् राजा दशरथ ने अपने जमाई, महर्षि ऋष्यश्रृंग से यज्ञ कराया। तत्पश्चात यज्ञकुण्ड से अग्निदेव अपने हाथों में खीर की कटोरी लेकर बाहर निकले।
यज्ञ समाप्ति के बाद महर्षि ऋष्यश्रृंग ने दशरथ की तीनों पत्नियों को एक-एक कटोरी खीर खाने को दी। खीर खाने के कुछ महीनों बाद ही तीनों रानियाँ गर्भवती हो गयीं। ठीक 9 महीनों बाद राजा दशरथ की सबसे बड़ी रानी कौशल्या ने श्रीराम को जो भगवान विष्णु के सातवें अवतार थे, कैकयी ने श्रीभरत को और सुमित्रा ने जुड़वा बच्चों श्रीलक्ष्मण और श्रीशत्रुघ्न को जन्म दिया। भगवान श्रीराम का जन्म धरती पर दुष्ट प्राणियों को संघार करने के लिए हुआ था।
आदि श्रीराम
कबीर साहेब जी आदि श्रीराम की परिभाषा बताते है की आदि श्रीराम वह अविनाशी परमात्मा है जो सब का सृजनहार व पालनहार है। जिसके एक इशारे पर धरती और आकाश काम करते हैं जिसकी स्तुति में तैंतीस कोटि देवी-देवता नतमस्तक रहते हैं। जो पूर्ण मोक्षदायक व स्वयंभू है।[6]
“एक श्रीराम दशरथ का बेटा, एक श्रीराम घट घट में बैठा, एक श्रीराम का सकल उजियारा, एक श्रीराम जगत से न्यारा”।।
रामनवमी पूजन
राम, सीता, लक्ष्मण एवं हनुमान राम नवमी पूजन में एक घर में रामनवमी के त्यौहार का महत्व हिंदु धर्म सभ्यता में महत्वपूर्ण रहा है। इस पर्व के साथ ही माँ दुर्गा के नवरात्रों का समापन भी होता है। हिन्दू धर्म में रामनवमी के दिन पूजा अर्चना की जाती है। रामनवमी की पूजा में पहले देवताओं पर जल, रोली और लेपन चढ़ाया जाता है, इसके बाद मूर्तियों पर मुट्ठी भरके चावल चढ़ाये जाते हैं। पूजा के बाद आरती की जाती है। कुछ लोग इस दिन व्रत भी रखते है।
रामनवमी का महत्व
यह पर्व भारत में श्रद्धा और आस्था के साथ मनाया जाता है। रामनवमी के दिन ही चैत्र नवरात्र की समाप्ति भी हो जाती है। हिंदु धर्म शास्त्रों के अनुसार इस दिन भगवान श्री राम जी का जन्म हुआ था अत: इस शुभ तिथि को भक्त लोग रामनवमी के रूप में मनाते हैं एवं पवित्र नदियों में स्नान करके पुण्य के भागीदार होते है।
Ye Tune Kya Kiya Lyrics Ishq woh balaa haiIshq woh balaa haiJisko chhua jisne woh jalaa hai Dil se hota hai shuruDil se hota hai shuruPar kambakht sar pe chadha hai Kabhi khud se, kabhi khuda seKabhi zamaane se ladaa haiItna hua badnaam phir bhiHar zubaan pe adaa hai Ishq ki saazisheinIshq ki baaziyaanHaara main… Read more: Ye Tune Kya Kiya Lyrics
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पुष्प की अभिलाषा पुष्प की अभिलाषा /पं.माखनलाल चतुर्वेदी चाह नहीं, मैं सुरबाला के गहनों में गूँथा जाऊँ।चाह नहीं, प्रेमी-माला में बिंध प्यारी को ललचाऊँ॥चाह नहीं, सम्राटों के शव पर, हे हरि, डाला जाऊँ।चाह नहीं, देवों के सिर पर चढूँ, भाग्य पर इठलाऊँ॥मुझे तोड़ लेना वनमाली!उस पथ में देना तुम फेंक॥मातृ-भूमि पर शीश चढ़ाने।जिस पथ जावें… Read more: Pushp Ki Abhilasha
Ram aayenge to angana sajaungi lyrics / (राम आएँगे तो अंगना सजाऊँगी)
मेरी झोपड़ी के भाग,आज जाग जाएँगे, राम आएँगे, राम आएँगे आएँगे,राम आएँगे, मेरी झोपडी के भाग,आज जाग जाएँगे, राम आएँगे ॥
राम आएँगे तो,अंगना सजाऊँगी, दीप जलाके,दिवाली मनाऊँगी, मेरे जन्मो के सारे,पाप मिट जाएँगे, राम आएँगे, मेरी झोपडी के भाग,आज जाग जाएँगे, राम आएँगे ॥
राम झूलेंगे तो,पालना झुलाऊँगी, मीठे मीठे मैं,भजन सुनाऊँगी, मेरी जिंदगी के,सारे दुःख मिट जाएँगे, राम आएँगे, मेरी झोपडी के भाग,आज जाग जाएँगे, राम आएँगे ॥मेरा जनम सफल,हो जाएगा, तन झूमेगा और,मन गीत गाएगा, राम सुन्दर मेरी,किस्मत चमकाएंगे, राम आएँगे, मेरी झोपडी के भाग,आज जाग जाएँगे, राम आएँगे ॥
Ram aayenge to angana sajaungi lyrics In English
[Intro] Meri jhopdi ke bhaag aaj khul jayenge, Ram ayenge Meri jhopdi ke bhaag aaj khul jayenge, Ram ayenge Ram ayenge-ayenge, Ram ayenge Ram ayenge-ayenge, Ram ayenge
[Chorus] Meri jhopdi ke bhaag aaj khul jayenge, Ram ayenge Meri jhopdi ke bhaag aaj khul jayenge, Ram ayenge [Instrumental-break] [Verse 1] Ram aayenge toh angana sajaungi Deep jala ke Diwali main manaungi Ram aayenge toh angana sajaungi Deep jala ke Diwali main manaungi [Chorus] Mеre janmon ke saare paap mitt jayеnge, Ram ayenge Meri jhopdi ke bhaag aaj khul jayenge, Ram ayenge [Verse 2] Ram jhulenge toh paalna jhulaungi Meethe-meethe main Bhajan sunaungi Ram jhulenge toh paalna jhulaungi Meethe-meethe main Bhajan sunaungi [Chorus] Meri zindagi ke saare dukh mitt jayenge, Ram ayenge Meri jhopdi ke bhaag aaj khul jayenge, Ram ayenge [Verse 3] Main toh ruchi-ruchi Bhog lagaungi Maakhan-mishri main Ram ko khilaungi Main toh ruchi-ruchi Bhog lagaungi Maakhan-mishri main Ram ko khilaungi [Chorus] Pyari-Pyari Radhe, Pyare shyam sang aayenge, Ram ayenge Ram ayenge-ayenge, Ram ayenge Ram ayenge-ayenge, Ram ayenge [Outro] Meri jhopdi ke bhaag aaj khul jayenge, Ram ayenge Meri jhopdi ke bhaag aaj khul jayenge, Ram ayenge
माता शबरी की कथा(शबरी कौन हैं ?)
बात उस वक्त की हैं जब भगवान् श्री राम का जन्म भी नहीं हुआ था. भील जाति के एक कबीले जिसके राजा(मुखिया) अज थे. अज के घर में एक कन्या का जन्म हुआ जिसका नाम श्रमणा था. श्रमणा, शबरी का ही दूसरा नाम हैं. शबरी की माता का नाम – इन्दुमति था. शबरी की जाति – शबर थी, जो कि भील से सम्बंधित थी|शबरी बचपन में पक्षियों से अलौकिक बातें किया करती थी, जो सभी के लिए आश्चर्य का विषय था|धीरे शबरी बड़ी हुई, लेकिन उसकी कुछ हरकते अज और इंदुमति की समझ से परे थे|
समय रहते शबरी के बारे में उसके माता पिता ने किसी ब्राह्मण से पुछा की वह वैराग्य की बातें करती हैं. ब्राह्मण ने सलाह दी की इसका विवाह करवा दो|राजा अज और भीलरानी इन्दुमति ने शबरी के विवाह के लिए एक बाड़े में पशु पक्षियों को जमा कर दिए, फिर जब इन्दुमति शबरी के बाल बना रही थी तो शबरी ने पुछा कि – माँ हमारे बाड़े में इतने पशु पक्षी क्यों हैं? तब इंदुमती बताती हैं, ये तुम्हारे विवाह की दावत के लिए हैं, तुम्हारे विवाह के दिन इन पशु पक्षियों का विशाल भोज तैयार किया जायेगा|
शबरी (श्रमणा) को यह बात कुछ ठीक नहीं लगी, मेरे विवाह के लिए इतने जीवो का बलिदान नहीं देने दूंगी. अगर विवाह के लिए इतने जीवों की बलि दी जाएगी तो मैं विवाह ही नहीं करुँगी. श्रमणा ने रात्रि में सभी पशु पक्षियों को आज़ाद कर दिया, जब श्रमणा(शबरी) बाड़े के किवाड़ को खोल रही थी तो, उसको किसी ने देख लिया. इस बात से शबरी डर गयी. शबरी वहां से भाग निकली. शबरी भागते भागते ऋषिमुख पर्वत पर पहुँच गयी, जहाँ पर 10,000 ऋषि रहते थे.
इसके बावजूद शबरी छुपते हुए कुछ दिनों तक, जब तक वह पकड़ी नहीं गयी, रोज सवेरे ऋषियों के आश्रम में आने वाले पत्तों को साफ कर देती थी, और हवन के लिए सुखी लकड़ियों का बंदोबस्त भी कर देती, बड़े ही भाव से शबरी सविंधाओ से लकड़ियों को ऋषियों के हवन कुण्ड के पास रख देती थी. कुछ दिनों तक ऋषि समझ नही पाए, कि कौन हैं जो, उनके सारे नित्य के काम निपटा रहे हैं? कही कोई माया तो नहीं हैं. फिर जब ऋषियों ने अगले दिन सवेरे जल्दी शबरी को देखा तो उन्होंने शबरी को पकड लिया.
ऋषियों ने शबरी से उसका परिचय पुछा तो शबरी ने बताया की वह एक भीलनी हैं, एक ऋषि, ऋषि मतंग ने शबरी को अपनी बेटी कहकर उसको एक कुटिया में शरण दी, और सेवा करने को कहा. समय बीतता गया, मतंग ऋषि बूढ़े हो गए. मतंग ऋषि ने घोषणा की – अब मैं अपनी देह छोड़ना चाहता हूँ. तब शबरी ने कहा कि एक पिता को मैं वहां पर छोड़कर आयी, और आज आप भी मुझे छोड़कर जा रहे हैं, अब मेरा कौन ख्याल रखेगा?
मतंग ऋषि ने कहा – बेटी तुम्हारा ख्याल अब राम रखेंगे. शबरी सरलता से कहती हैं – राम कौन हैं? और मैं उन्हें कहाँ ढूढून्गी. बेटी तुम्हे उनको खोजने की जरुरत नहीं हैं. वो स्वयं तुम्हारी कुटिया पर चलकर आयेंगे. शबरी ने मतंग ऋषि के इस वचन को पकड़ लिया कि राम आयेंगे. शबरी रोज भगवान् के लिए फूल बिछा कर रखती, उनके लिए फल तोड़कर लाती, और पूरे दिन भगवान् श्री राम का इंतजार करती. इंतजार करते करते शबरी बूढी हो गई, लेकिन अब तक राम नहीं आये. फिर एक दिन आ ही गया – जब शबरी के वर्षों का इंतज़ार खत्म होने वाला था. शबरी ने फूल बिछा कर रखे थे.