Category: सुभाषित-SuBhaShita (Page 4 of 8)

 चाणक्यनीतिदर्पण – 10.2

चाणक्य नीति दर्पण मूलत: संस्कृत (Sanskrit) में संस्कृत सुभाषितों के रूप में, काव्यात्मक एवं श्लोकों  के रूप में लिखा हुआ ग्रंथ है। इसके रचनाकार आचार्य चाणक्य हैं। उनके ये संस्कृत श्लोक चाणक्य नीति के नाम से संसार भर में प्रसिद्ध हैं। यहां पर यह श्लोक देवनागरी लिपि एवं  रोमन लिपि में भी दिए गए हैं एवं उनके अर्थ हिंदी देवनागरी एवं अंग्रेजी में रोमन लिपि में भी दिये गये हैं। जिससे विदेशों में रहने वाले भारतीय जो देवनागरी से परिचित नहीं हैं सनातन ग्रंथों के ज्ञान से लाभान्वित हो सकें।

अथ दशमोऽध्यायः ॥ 10 ॥

atha daśamō’dhyāyaḥ ॥ 10 ॥


लुब्धानायाचकःशत्रुर्मूर्खाणाबोधकोरिपुः ॥ 
जारस्त्रीणांपतिःशत्रुश्चौर राणां चंद्रमारिषुः॥६॥
अर्थ - लोभियों को याचक और मूर्ख को समझाने वाला और पुंश्चलीस्त्रियों को पति और चोरों को चन्द्रमा शत्रु है ॥ ६ ॥

lubdhānāyācakaḥśatrurmūrkhāṇābōdhakōripuḥ ॥ 
jārastrīṇāṁpatiḥśatruścaura rāṇāṁ caṁdramāriṣuḥ॥6॥
Meaning - The moon is the enemy of the greedy, the beggar of the foolish, the husband of the unruly women and the enemy of the thieves. 6॥

येषांनविद्यानतपो नदानंनचापिशीलनगुणोंन धर्मः ॥ 
ते मृत्युलोके सुविभार भूत मनष्य रूपेण मृगाश्चरन्ति ॥ ७ ॥

अर्थ - जिन लोगों में न विद्या है, न तप है, न दान  है न शील है न गुण है और न धर्म है वे संसार में पृथ्वी पर भार रूप होकर मनुष्य रूप से मृगवत फिर रहे हैं ॥ ७ ॥

yēṣāṁnavidyānatapō nadānaṁnacāpiśīlanaguṇōṁna dharmaḥ ॥ 
tē mr̥tyulōkē suvibhāra bhūta manaṣya rūpēṇa mr̥gāścaranti ॥ 7 ॥
Meaning - Those people who have neither knowledge, nor penance, nor charity, nor modesty, nor virtues, nor religion, they are wandering in the world like a burden on the earth, dying in human form. 7 ॥

अंतःसारविहीनानामुपदेशोनजायते ॥ 
मलयाचल संसर्गान्नवेणुश्चंदनायते ॥ ८ ॥

अर्थ - गंभीरता विहीन पुरुषों को शिक्षा देना सार्थक नहीं होता, मलयाचलके संग में बांस चन्दन नहीं हो जाता ॥ ८ ॥

aṁtaḥsāravihīnānāmupadēśōnajāyatē ॥ 
malayācala saṁsargānnavēṇuścaṁdanāyatē ॥ 8 ॥
Meaning - It is not meaningful to give education to people without seriousness, bamboo does not become sandalwood in the company of Malayalam. 8॥

यस्यनास्तिस्वयंप्रज्ञाशास्त्रंतस्यकरोतिकिं ॥ 
लोचनाभ्यांविहीनस्यदर्पणंकिंकरिष्यति॥9॥

अर्थ - जिसकी स्वाभाविक बुद्धि नहीं है उसको शास्त्र क्या कर सकता है आंखों से हीन को दर्पण क्या करेगा ॥ 9 ॥

yasyanāstisvayaṁprajñāśāstraṁtasyakarōtikiṁ || 
lōcanābhyāṁvihīnasyadarpaṇaṁkiṁkariṣyati||9||

Meaning - What can the scriptures do to someone who does not have natural intelligence? What can a mirror do to someone who is blind? 9॥

दुर्जनंसज्जनं कर्तुमुपायोन हि भूतले ॥ 
अपानंशतधाधौतं न श्रेष्ठमिन्द्रियंभवेत् ॥१०॥

अर्थ - दुर्जन को सज्जन करने के लिये पृथ्वी तल में कोई उपाय नहीं है मल का त्याग करने वाली इन्द्रिय सौ बार भी धोई जाय तो भी वह श्रेष्ठ इन्द्रिय न होगी ॥ १०॥

durjanaṁsajjanaṁ kartumupāyōna hi bhūtalē ॥ 
apānaṁśatadhādhautaṁ na śrēṣṭhamindriyaṁbhavēt ॥10॥

Meaning - There is no way on earth to make the durjan means persons with evils or bad things within him, to  a noble person. Even if the organ of excretion is washed a hundred times, it will not be the best organ. 10॥
ग्रन्थ का नाम : चाणक्यनीतिदर्पण,  रचनाकार – आचार्य चाणक्य,   अध्याय – 10   श्लोक-  16-20

चाणक्य की प्रसिद्धि : 

ये संस्कृत श्लोक आचार्य चाणक्य के द्वारा रचित हैं। उनका नाम कौटिल्य एवं विष्णुगुप्त के नाम से भी प्रसिद्ध है। उनकी रचनाएँ Chanakya सूत्र, chanakya niti, chanakya ni pothi, chanakya quotes, chanakya niti in hindi, chanakya quotes in hindi, चाणक्य, चाणक्य नीति,  चाणक्य नीति की 10 बातें,  चाणक्य नीति की बातें, चाणक्य के कड़वे वचन, चाणक्य नीति स्त्री, चाणक्य नीति की 100 बातें,  चाणक्य विचार इन हिंदी, चाणक्य नीति सुविचार, चाणक्य नीति जीवन जीने की, सुविचार चाणक्य के कड़वे वचन, sanskrit shlok, shlok,sanskrit, sanskrit shlok,sanskrit quotes,shlok in sanskrit, sanskrit thought, sanskrit slokas,संस्कृत श्लोक,श्लोक,छोटे संस्कृत श्लोक, आदि के रूप में चर्चित एवं प्रसिद्ध है । 

चाणक्य का कालातीत प्रभाव  :

हजारों वर्षों के उपरांत भी उनमें वही ताजगी और उपयोगिता है। अतः वे आज भी उतने ही प्रासंगिक बने हुए हैं जितने वे तब थे जब वे लिखे गये थे। संस्कृत में रचित होने के कारण उनमें कालांतर के प्रभाव को स्पष्टतः नहीं देखा जाता है क्योंकि संस्कृत भाषा का सर्वश्रेष्ठ व्याकरण उसके अस्तित्व एवं गुणवत्ता के साथ ही उसके प्रभाव कि भी सुरक्षा करता है। ये अत्यंत ज्ञानवर्धक, पठनीय एवं माननीय हैं। ये जीवन‌ के अनेक चौराहों पर हमारा मार्गदर्शन करते हैं जब सब ओर अंधकार छा जाने की प्रतीति होती है।

About Chanakya (चाणक्य के बारे में) :

 चाणक्य का प्रभाव प्राचीन भारत से परे तक फैला हुआ है, क्योंकि शासन कला और शासन पर उनके विचारों का दुनिया भर के विद्वानों और नीति निर्माताओं द्वारा अध्ययन और सम्मान किया जाता है।  राजनीति के प्रति उनका व्यावहारिक दृष्टिकोण और राज्य और उसके नागरिकों के कल्याण पर उनका जोर उन्हें एक कालातीत व्यक्ति बनाता है जिनकी बुद्धि समय और स्थान की सीमाओं से परे है।

 चाणक्यनीतिदर्पण – 10.1

चाणक्य नीति दर्पण मूलत: संस्कृत (Sanskrit) में संस्कृत सुभाषितों के रूप में, काव्यात्मक एवं श्लोकों  के रूप में लिखा हुआ ग्रंथ है। इसके रचनाकार आचार्य चाणक्य हैं। उनके ये संस्कृत श्लोक चाणक्य नीति के नाम से संसार भर में प्रसिद्ध हैं। यहां पर यह श्लोक देवनागरी लिपि एवं  रोमन लिपि में भी दिए गए हैं एवं उनके अर्थ हिंदी देवनागरी एवं अंग्रेजी में रोमन लिपि में भी दिये गये हैं। जिससे विदेशों में रहने वाले भारतीय जो देवनागरी से परिचित नहीं हैं सनातन ग्रंथों के ज्ञान से लाभान्वित हो सकें।

नवमोऽध्यायः ॥ 9 ॥

navamō’dhyāyaḥ ॥ 9 ॥

अथ दशमोऽध्यायः ॥ 10 ॥
atha daśamō’dhyāyaḥ ॥ 10 ॥


धनहीनोनहीनश्चधनिकःससुनिश्चयः ॥ 
विद्यारत्नेनहीनोयःसहीनःसर्ववस्तुषु ॥ १ ॥

धनहीन हीन नहीं गिना जाता, निश्चय है कि, वह धनी ही है विद्यारतन से जो हीन है वह सब वस्तुओं में हीन है ॥ १ ॥

dhanahīnōnahīnaścadhanikaḥsasuniścayaḥ ॥ 
vidyāratnēnahīnōyaḥsahīnaḥsarvavastuṣu ॥ 1 ॥

A person without money is not considered inferior, it is certain that he is rich and the one who is inferior to Vidyaratan is inferior in all things. 1॥

दृष्टिपूतंन्यसेत्पादंवस्त्रपूतंपिवेज्जलम् ॥ 
शास्त्रपूतंवदेद्वाक्यंमनःपूतंसमाचरेत् ॥ २ ॥

अर्थ - दृष्टि से शोधकर पांव रखना उचित है, वस्त्र से शुद्ध कर जल पीवे, शास्त्र से शुद्धकर वाक्य बोले और मन से सोच कर कार्य करना चाहिये ॥ २ ॥

dr̥ṣṭipūtaṁnyasētpādaṁvastrapūtaṁpivējjalam ॥ 
śāstrapūtaṁvadēdvākyaṁmanaḥpūtaṁsamācarēt ॥ 2 ॥

Meaning - It is appropriate to set foot after purifying one's vision, one should drink water after purifying one's clothes, one should speak words after purifying oneself from scriptures and one should act after thinking with one's mind. 2॥

सुखार्थीचेत्त्यजेद्विद्यांविद्यार्थीचेत्त्यजेत्सुखं ॥ 
सुखार्थिनःकुतोविद्यासुखंविद्यार्थिनः कुतः।३। 
अर्थ - यदि सुख चाहे तो विद्याको छोड़।  दे, यदि विद्या चाहे तो सुख का त्याग करे सुखार्थीको विद्या कैसे होगी और विद्यार्थीको सुख कैसे होगा।
sukhārthīcēttyajēdvidyāṁvidyārthīcēttyajētsukhaṁ ॥ 
sukhārthinaḥkutōvidyāsukhaṁvidyārthinaḥ kutaḥ|3| 

Meaning: If you want happiness then leave education. If he wants knowledge then he should sacrifice happiness. How will the seeker of happiness get knowledge and how will the student get happiness?

कवयः किंनपश्यंतिकिंन कुर्वैतियोषितः ॥ 
मद्यपाः किंन जल्पंतिकिंनखादंतिवायसाः॥४॥
अर्थ - कवि क्या नहीं देखते, स्त्री क्या नहीं कर सक्ती, मद्यपी क्या नहीं बकते और कौवे क्या नहीं खाते ॥ ४ ॥

kavayaḥ kiṁnapaśyaṁtikiṁna kurvaitiyōṣitaḥ ॥ 
madyapāḥ kiṁna jalpaṁtikiṁnakhādaṁtivāyasāḥ॥4॥
Meaning - What poets do not see, what women cannot do, what drunkards do not speak and what crows do not eat. ॥ 4 ॥

रंकंकरोतिराजानं राजानंरंकमेवच ॥ 
धनिनंनिर्धनंचैवनिर्धनंधनिनंविधिः ॥ ५ ॥
अर्थ - निश्चय है कि विधि रंक को राजा, राजा को रंक घनी को निर्धन और निर्धन को धनी कर देता है ॥ ५ ॥

raṁkaṁkarōtirājānaṁ rājānaṁraṁkamēvaca ॥ 
dhaninaṁnirdhanaṁcaivanirdhanaṁdhaninaṁvidhiḥ ॥ 5 ॥
Meaning - It is certain that law turns a pauper into a king, a king from a pauper into a rich man and a poor man into a rich man. ॥5॥
ग्रन्थ का नाम : चाणक्यनीतिदर्पण,  रचनाकार – आचार्य चाणक्य,   अध्याय – 10   श्लोक-  1-5

चाणक्य की प्रसिद्धि : 

ये संस्कृत श्लोक आचार्य चाणक्य के द्वारा रचित हैं। उनका नाम कौटिल्य एवं विष्णुगुप्त के नाम से भी प्रसिद्ध है। उनकी रचनाएँ Chanakya सूत्र, chanakya niti, chanakya ni pothi, chanakya quotes, chanakya niti in hindi, chanakya quotes in hindi, चाणक्य, चाणक्य नीति,  चाणक्य नीति की 10 बातें,  चाणक्य नीति की बातें, चाणक्य के कड़वे वचन, चाणक्य नीति स्त्री, चाणक्य नीति की 100 बातें,  चाणक्य विचार इन हिंदी, चाणक्य नीति सुविचार, चाणक्य नीति जीवन जीने की, सुविचार चाणक्य के कड़वे वचन, sanskrit shlok, shlok,sanskrit, sanskrit shlok,sanskrit quotes,shlok in sanskrit, sanskrit thought, sanskrit slokas,संस्कृत श्लोक,श्लोक,छोटे संस्कृत श्लोक, आदि के रूप में चर्चित एवं प्रसिद्ध है । 

चाणक्य का कालातीत प्रभाव  :

हजारों वर्षों के उपरांत भी उनमें वही ताजगी और उपयोगिता है। अतः वे आज भी उतने ही प्रासंगिक बने हुए हैं जितने वे तब थे जब वे लिखे गये थे। संस्कृत में रचित होने के कारण उनमें कालांतर के प्रभाव को स्पष्टतः नहीं देखा जाता है क्योंकि संस्कृत भाषा का सर्वश्रेष्ठ व्याकरण उसके अस्तित्व एवं गुणवत्ता के साथ ही उसके प्रभाव कि भी सुरक्षा करता है। ये अत्यंत ज्ञानवर्धक, पठनीय एवं माननीय हैं। ये जीवन‌ के अनेक चौराहों पर हमारा मार्गदर्शन करते हैं जब सब ओर अंधकार छा जाने की प्रतीति होती है।

About Chanakya (चाणक्य के बारे में) :

 चाणक्य का प्रभाव प्राचीन भारत से परे तक फैला हुआ है, क्योंकि शासन कला और शासन पर उनके विचारों का दुनिया भर के विद्वानों और नीति निर्माताओं द्वारा अध्ययन और सम्मान किया जाता है।  राजनीति के प्रति उनका व्यावहारिक दृष्टिकोण और राज्य और उसके नागरिकों के कल्याण पर उनका जोर उन्हें एक कालातीत व्यक्ति बनाता है जिनकी बुद्धि समय और स्थान की सीमाओं से परे है।

 चाणक्यनीतिदर्पण – 9.3

चाणक्य नीति दर्पण मूलत: संस्कृत (Sanskrit) में संस्कृत सुभाषितों के रूप में, काव्यात्मक एवं श्लोकों  के रूप में लिखा हुआ ग्रंथ है। इसके रचनाकार आचार्य चाणक्य हैं। उनके ये संस्कृत श्लोक चाणक्य नीति के नाम से संसार भर में प्रसिद्ध हैं। यहां पर यह श्लोक देवनागरी लिपि एवं  रोमन लिपि में भी दिए गए हैं एवं उनके अर्थ हिंदी देवनागरी एवं अंग्रेजी में रोमन लिपि में भी दिये गये हैं। जिससे विदेशों में रहने वाले भारतीय जो देवनागरी से परिचित नहीं हैं सनातन ग्रंथों के ज्ञान से लाभान्वित हो सकें।

नवमोऽध्यायः ॥ 9 ॥

navamō’dhyāyaḥ ॥ 9 ॥

प्रातर्युतप्रसंगेनमध्याह्नेस्त्रीप्रसंगतः ॥ 
रातौचौरप्रसंगेनकालोगच्छति धीमताम्।११।
अर्थ - प्रात:कालमें जुआड़ियों की कथासे अर्थात् महाभारत में मध्यान्ह में स्त्रीके प्रसंगसे अर्थात् रामायण से, रात्रीमें चोर की वार्ता से अर्थात् भागवतसे, बुद्धिमानों का समय बीतता है ॥ तात्पर्य यह कि, महाभारतके सुनने से यह निश्चय हो जाता है कि, जुआ, कलह और छल का घर है। इस लोक और परलोक में उपकार करने वाले कामों को महाभारत में लिखी हुई रीतियों से करने पर उन कामोंका पूरा फल होता है; इस कारण बुद्धिमान् लोग प्रातःकाल ही में माहाभारतको सुनते हैं, जिससे दिनभर उसी रीती से काम करते जांय, रामायण सुनने से स्पष्ट उदाहरण मिलता है कि, स्त्रीके वश होनेसे अत्यन्त दुःख होता है और परस्त्रीपर दृष्टि देने से पुत्र कलत्र जड़ मूल के साथ पुरुष का नाश हो जाता है; इस हेतु, मध्यान्ह में अच्छे लोग रामायण को सुनते हैं प्रायःरात्रि में लोग इंन्द्रियों के वश हो जाते हैं और इन्द्रियोंका यह स्वभाव है कि, मन को अपने अपने विषयों में लगाकर जीव को विषयों में लगा देती हैं; इसी हेतु से इन्द्रियों को आत्माप्रहारी भी कहते हैं और जो लोग रात को भागवत सुनते हैं वे कृष्ण के चरित्रको स्मरण करके इन्द्रियों के वश नहीं होते। क्योंकि सोलह हजार से अधिक स्त्रियों के रहते भी श्रीकृष्णचन्द्र इन्द्रियों के वश न हुए और इन्द्रियों के संयमकी रीति भी जान जाते हैं।११।

prātaryutaprasaṁgēnamadhyāhnēstrīprasaṁgataḥ ॥ 
rātaucauraprasaṁgēnakālōgacchati dhīmatām|11|

Meaning - In the morning, the wise people spend their time in the story of gamblers, i.e. in the Mahabharata, in the afternoon, in the story of the woman, i.e., in the Ramayana, in the night, in the conversation of the thief, i.e., in the Bhagwat. The meaning is that, after listening to Mahabharata, it becomes clear that gambling is the home of discord and deceit. If the works that are beneficial in this world and the next world are done as per the rituals written in Mahabharata, then those works get full results; For this reason, intelligent people listen to Mahabharata in the morning itself, so that they can work in the same way throughout the day. Listening to Ramayana gives a clear example that being under the influence of a woman causes immense sorrow and looking at another woman leads to the destruction of a man along with his son's evil roots. It happens; For this reason, good people listen to Ramayana in the afternoon. Most of the time in the night people become under the influence of senses and the nature of the senses is that by engaging the mind in their respective subjects, they engage the soul in the subjects; For this reason, the senses are also called soul destroyers and those who listen to Bhagwat at night do not come under the control of the senses by remembering the character of Krishna. Because even in the presence of more than sixteen thousand women, Shri Krishna Chandra did not come under the control of senses and also knows the method of controlling the senses.11.

स्वहस्तग्रथितामालास्वहस्तघृष्टचन्दनम् ॥ 
कुवहस्तलिखितं स्तोत्रंशक्रस्यापिश्रियंहरेत् ।१२।

अर्थ - अपने हाथ से गुथी माला, अपने हाथ से घिसा चंदन, अपने हाथ से लिखा स्तोत्र ये इन्द्रकी लक्ष्मीको भी हर लेते हैं॥ १२ ॥

svahastagrathitāmālāsvahastaghr̥ṣṭacandanam ॥ 
kuvahastalikhitaṁ stōtraṁśakrasyāpiśriyaṁharēt |12|
Meaning - The garland woven with one's own hand, the sandalwood rubbed with one's own hand, the hymn written with one's own hand, these take away even Lakshmi of Indra. 12 ॥

इक्षुदंडास्तिलाःशूद्राःकांताहेमचमेदिनी ॥ 
चंदनंदधितांबूलंमर्दनंगुणवर्धनम् ॥ १३ ॥

अर्थ - ऊष, तिल, शूद्र, कांता, सोना, पृथ्वी, चन्दन, दही और पान इनका मर्दन गुणवर्द्धक है ॥१३॥

ikṣudaṁḍāstilāḥśūdrāḥkāṁtāhēmacamēdinī ॥ 
caṁdanaṁdadhitāṁbūlaṁmardanaṁguṇavardhanam ॥ 13 ॥

Meaning - Ush, sesame, shudra, thorn, gold, earth, sandalwood, curd and betel leaf enhance the qualities of man.13॥

दरिद्रताधीर तयाविराजतेकुवत्रताशुभ्रतयावि राजते। 
कंदन्नताचोष्णतयाविराजते कुरूपता शीलतयाविराजते ॥ १४ ॥

अर्थ - दरिद्रता भी धीरता से शोभती है स्वच्छता से "कुवत्र सुंदर जान पड़ता है। कुअन्न भी उष्णता से मीठा लगता है कुरूपता भी सुशीलता हो तो शोभा देती है॥१४ ॥ 

daridratādhīra tayāvirājatēkuvatratāśubhratayāvi rājatē| 
kaṁdannatācōṣṇatayāvirājatē kurūpatā śīlatayāvirājatē ॥ 14 ॥

Meaning - Poverty also becomes beautiful due to patience. Cleanliness makes the wicked look beautiful. Even good food looks sweet due to warmth. Even ugliness becomes beautiful if there is politeness. ॥14 ॥

इति नवमोऽध्यायः ॥ ९॥
iti navamō’dhyāyaḥ ॥ 9॥

अथ वृद्धचाणक्यस्योत्तरार्द्धम् । 
atha vr̥ddhacāṇakyasyōttarārddham | 
ग्रन्थ का नाम : चाणक्यनीतिदर्पण,  रचनाकार – आचार्य चाणक्य,   अध्याय – 9   श्लोक-  11-14

चाणक्य की प्रसिद्धि : 

ये संस्कृत श्लोक आचार्य चाणक्य के द्वारा रचित हैं। उनका नाम कौटिल्य एवं विष्णुगुप्त के नाम से भी प्रसिद्ध है। उनकी रचनाएँ Chanakya सूत्र, chanakya niti, chanakya ni pothi, chanakya quotes, chanakya niti in hindi, chanakya quotes in hindi, चाणक्य, चाणक्य नीति,  चाणक्य नीति की 10 बातें,  चाणक्य नीति की बातें, चाणक्य के कड़वे वचन, चाणक्य नीति स्त्री, चाणक्य नीति की 100 बातें,  चाणक्य विचार इन हिंदी, चाणक्य नीति सुविचार, चाणक्य नीति जीवन जीने की, सुविचार चाणक्य के कड़वे वचन, sanskrit shlok, shlok,sanskrit, sanskrit shlok,sanskrit quotes,shlok in sanskrit, sanskrit thought, sanskrit slokas,संस्कृत श्लोक,श्लोक,छोटे संस्कृत श्लोक, आदि के रूप में चर्चित एवं प्रसिद्ध है । 

चाणक्य का कालातीत प्रभाव  :

हजारों वर्षों के उपरांत भी उनमें वही ताजगी और उपयोगिता है। अतः वे आज भी उतने ही प्रासंगिक बने हुए हैं जितने वे तब थे जब वे लिखे गये थे। संस्कृत में रचित होने के कारण उनमें कालांतर के प्रभाव को स्पष्टतः नहीं देखा जाता है क्योंकि संस्कृत भाषा का सर्वश्रेष्ठ व्याकरण उसके अस्तित्व एवं गुणवत्ता के साथ ही उसके प्रभाव कि भी सुरक्षा करता है। ये अत्यंत ज्ञानवर्धक, पठनीय एवं माननीय हैं। ये जीवन‌ के अनेक चौराहों पर हमारा मार्गदर्शन करते हैं जब सब ओर अंधकार छा जाने की प्रतीति होती है।

About Chanakya (चाणक्य के बारे में) :

 चाणक्य का प्रभाव प्राचीन भारत से परे तक फैला हुआ है, क्योंकि शासन कला और शासन पर उनके विचारों का दुनिया भर के विद्वानों और नीति निर्माताओं द्वारा अध्ययन और सम्मान किया जाता है।  राजनीति के प्रति उनका व्यावहारिक दृष्टिकोण और राज्य और उसके नागरिकों के कल्याण पर उनका जोर उन्हें एक कालातीत व्यक्ति बनाता है जिनकी बुद्धि समय और स्थान की सीमाओं से परे है।

 चाणक्यनीतिदर्पण – 9.2

चाणक्य नीति दर्पण मूलत: संस्कृत (Sanskrit) में संस्कृत सुभाषितों के रूप में, काव्यात्मक एवं श्लोकों  के रूप में लिखा हुआ ग्रंथ है। इसके रचनाकार आचार्य चाणक्य हैं। उनके ये संस्कृत श्लोक चाणक्य नीति के नाम से संसार भर में प्रसिद्ध हैं। यहां पर यह श्लोक देवनागरी लिपि एवं  रोमन लिपि में भी दिए गए हैं एवं उनके अर्थ हिंदी देवनागरी एवं अंग्रेजी में रोमन लिपि में भी दिये गये हैं। जिससे विदेशों में रहने वाले भारतीय जो देवनागरी से परिचित नहीं हैं सनातन ग्रंथों के ज्ञान से लाभान्वित हो सकें।

नवमोऽध्यायः ॥ 9 ॥

navamō’dhyāyaḥ ॥ 9 ॥

विद्यार्थीसेवकःपान्थःक्षुधार्तोभयकातरः ॥ 
भाण्डारीप्रतिहारीचसप्तसुप्तान्प्रबोधयेत् ॥ ६ ॥

अर्थ - विद्यार्थी, सेवक, पथिक, भूख से पीडित, भय से कातर, भांडारी और द्वारपाल ये सात यदि सोते हों तो जगा देना चाहिये ॥ ६ ॥

vidyārthīsēvakaḥpānthaḥkṣudhārtōbhayakātaraḥ ॥ 
bhāṇḍārīpratihārīcasaptasuptānprabōdhayēt ॥ 6 ॥
Meaning: If a student, a servant, a traveler, someone suffering from hunger, one fearful of fear, a steward and a gatekeeper, these seven are sleeping, they should be woken up. 6॥

अहिंनृपंचशार्दूलंचवृद्धंचबालकंतथा ॥ 
परश्वानंचमूर्खचसप्तसुप्तान्नबोधयेत् ॥ ७ ॥

अर्थ - सांप, राजा, व्याघ्र, बररै, वैसे ही बालक, दूसरे का कुत्ता और मूर्ख ये सात सोते हों तो नहीं जगाना चाहिये ॥ ७ ॥

ahiṁnr̥paṁcaśārdūlaṁcavr̥ddhaṁcabālakaṁtathā ॥ 
paraśvānaṁcamūrkhacasaptasuptānnabōdhayēt ॥ 7 ॥
Meaning: If a snake, a king, a tiger, a crow, a similar child, someone else's dog and a fool, these seven are asleep, then one should not wake them up. 7 ॥

अर्थाधीताश्वयैर्वेदास्तशूद्रान्नभोजिनः ॥ 
तेद्विजाः किं करिष्यति निर्विष इवपन्नगाः॥८॥

अर्थ - जिन्होंने धनके अर्थ वेदको पढा, वैसे ही जो शूद्र का अन्न भोजन करते हैं वे ब्राह्मण विषहीन सर्प के समान क्या कर सक्ते हैं ॥ ८ ॥.

arthādhītāśvayairvēdāstaśūdrānnabhōjinaḥ ॥ 
tēdvijāḥ kiṁ kariṣyati nirviṣa ivapannagāḥ॥8॥

Meaning - Those who have studied the Vedas on the meaning of wealth, similarly, those who eat the food of a Shudra, what can a Brahmin do like a non-venomous snake? 8 ll.

यस्मिन्रुष्टेभयं नास्तितुष्टेनैवर्धनागमः ॥ 
नियद्दोऽनुग्रहोनास्तिसरुष्टः किं करिष्यति । ९॥ 
अर्थ - जिसके क्रुद्ध होने पर न भय है, प्रसन्न होने पर न धन का लाभ, न दंड वा अनुग्रह हो सका है वह रुष्ट होकर क्या करेगा ॥ 9 ॥ 

yasminruṣṭēbhayaṁ nāstituṣṭēnaivardhanāgamaḥ ॥ 
niyaddō’nugrahōnāstisaruṣṭaḥ kiṁ kariṣyati | 9॥ 

Meaning - What will he do when he gets angry, who has no fear when he is angry, who has neither financial gain, nor punishment or grace when he is happy? 9॥

निर्विषेणापिसर्पणकर्तव्यामद्दतीफणा 
विषमस्तुनचाप्यस्तुघटाटोपोभयंकरः ॥१०॥
अर्थ - विषहीन भी सांप को अपनी फण बढाना चाहिये. इस कारण कि, विष हो वा न हो आडंबर भयजनक होता है ॥ १० ॥ 

nirviṣēṇāpisarpaṇakartavyāmaddatīphaṇā 
viṣamastunacāpyastughaṭāṭōpōbhayaṁkaraḥ ॥10॥
Meaning: Even a non-venomous snake should increase its hood. This is because, whether there is poison or not, ostentation is terrifying. 10 ॥
ग्रन्थ का नाम : चाणक्यनीतिदर्पण,  रचनाकार – आचार्य चाणक्य,   अध्याय – 9   श्लोक-  6-10

चाणक्य की प्रसिद्धि : 

ये संस्कृत श्लोक आचार्य चाणक्य के द्वारा रचित हैं। उनका नाम कौटिल्य एवं विष्णुगुप्त के नाम से भी प्रसिद्ध है। उनकी रचनाएँ Chanakya सूत्र, chanakya niti, chanakya ni pothi, chanakya quotes, chanakya niti in hindi, chanakya quotes in hindi, चाणक्य, चाणक्य नीति,  चाणक्य नीति की 10 बातें,  चाणक्य नीति की बातें, चाणक्य के कड़वे वचन, चाणक्य नीति स्त्री, चाणक्य नीति की 100 बातें,  चाणक्य विचार इन हिंदी, चाणक्य नीति सुविचार, चाणक्य नीति जीवन जीने की, सुविचार चाणक्य के कड़वे वचन, sanskrit shlok, shlok,sanskrit, sanskrit shlok,sanskrit quotes,shlok in sanskrit, sanskrit thought, sanskrit slokas,संस्कृत श्लोक,श्लोक,छोटे संस्कृत श्लोक, आदि के रूप में चर्चित एवं प्रसिद्ध है । 

चाणक्य का कालातीत प्रभाव  :

हजारों वर्षों के उपरांत भी उनमें वही ताजगी और उपयोगिता है। अतः वे आज भी उतने ही प्रासंगिक बने हुए हैं जितने वे तब थे जब वे लिखे गये थे। संस्कृत में रचित होने के कारण उनमें कालांतर के प्रभाव को स्पष्टतः नहीं देखा जाता है क्योंकि संस्कृत भाषा का सर्वश्रेष्ठ व्याकरण उसके अस्तित्व एवं गुणवत्ता के साथ ही उसके प्रभाव कि भी सुरक्षा करता है। ये अत्यंत ज्ञानवर्धक, पठनीय एवं माननीय हैं। ये जीवन‌ के अनेक चौराहों पर हमारा मार्गदर्शन करते हैं जब सब ओर अंधकार छा जाने की प्रतीति होती है।

About Chanakya (चाणक्य के बारे में) :

 चाणक्य का प्रभाव प्राचीन भारत से परे तक फैला हुआ है, क्योंकि शासन कला और शासन पर उनके विचारों का दुनिया भर के विद्वानों और नीति निर्माताओं द्वारा अध्ययन और सम्मान किया जाता है।  राजनीति के प्रति उनका व्यावहारिक दृष्टिकोण और राज्य और उसके नागरिकों के कल्याण पर उनका जोर उन्हें एक कालातीत व्यक्ति बनाता है जिनकी बुद्धि समय और स्थान की सीमाओं से परे है।

 चाणक्यनीतिदर्पण – 9.1

चाणक्य नीति दर्पण मूलत: संस्कृत (Sanskrit) में संस्कृत सुभाषितों के रूप में, काव्यात्मक एवं श्लोकों  के रूप में लिखा हुआ ग्रंथ है। इसके रचनाकार आचार्य चाणक्य हैं। उनके ये संस्कृत श्लोक चाणक्य नीति के नाम से संसार भर में प्रसिद्ध हैं। यहां पर यह श्लोक देवनागरी लिपि एवं  रोमन लिपि में भी दिए गए हैं एवं उनके अर्थ हिंदी देवनागरी एवं अंग्रेजी में रोमन लिपि में भी दिये गये हैं। जिससे विदेशों में रहने वाले भारतीय जो देवनागरी से परिचित नहीं हैं सनातन ग्रंथों के ज्ञान से लाभान्वित हो सकें।

नवमोऽध्यायः ॥ 9 ॥

navamō’dhyāyaḥ ॥ 9 ॥

मुक्तिमिच्छसिचेत्ता तविषयान्विषवत्त्यज ॥ 
क्षमार्जवदयाशौचंसत्यंपीयूषवत्पिव ॥ १ ॥

अर्थ - हे भाई! यदि मुक्ति चाहते हो तो विषयों को विष के समान छोड दो। सहनशीलता, सरलता, दया पवित्रता और सच्चाई को अमृत की तरह  पियो ॥१॥

muktimicchasicēttā taviṣayānviṣavattyaja ॥ 
kṣamārjavadayāśaucaṁsatyaṁpīyūṣavatpiva ॥ 1 ॥

Meaning- Hey brother! If you want freedom then leave things like poison. Drink tolerance, simplicity, kindness, purity and truth like nectar. 1

परस्परस्यमर्माणियेभाषंतेनराधमाः । 
तएव विलयंयांतिबल्मीकोदग्सर्पवत् ॥ २ ॥

अर्थ - जो नराधम परस्पर अंतरात्मा के दुःखदायक वचन को भाषण करते हैं वे निश्वय करके नष्ट हो जाते हैं जैसे विमोट (बिल) में पड़कर सांप ॥ २ ॥

parasparasyamarmāṇiyēbhāṣaṁtēnarādhamāḥ | 
tēva vilayaṁyāṁtibalmīkōdagsarpavat ॥ 2 ॥

Meaning - Those unrighteous people who speak painful words of conscience to each other get destroyed like a snake falling into a hole. 2॥

गंध:सुवर्णेफलमिक्षुदंडेनाकारिपुष्पखलुचंदनस्य ॥ 
विद्वान्धनीभूपतिर्दीर्घजीवीधातुः पुरा कोऽपिनबुद्धिदोऽभूत् ॥ ३ ॥

अर्थ - सुवर्ण में गन्ध, ऊष में फल, चंदनमें फूल, विद्वान् धनी और राजा चिरंजीवी न किया। इससे निश्चय है कि, विधाता के पहिले कोई बुद्धिदाता न था ॥ ३ ॥

gaṁdha:suvarṇēphalamikṣudaṁḍēnākāripuṣpakhalucaṁdanasya ॥ 
vidvāndhanībhūpatirdīrghajīvīdhātuḥ purā kō’pinabuddhidō’bhūt ॥ 3 ॥

Meaning: Fragrance in gold, fruit in sugar, flowers in sandalwood, the learned rich and the king did not live long. This certainly shows that there was no giver of wisdom before the Creator. 3 ॥

सर्वोषधीनाममृताप्रधानासर्वेषुसौख्येष्वशनंप्रधानम् ॥ 
सर्वंद्रियाणांनयनंप्रधानं सर्वेषुगात्रेषु शिरःप्रधानम् ॥ ४ ॥

अर्थ - सत्र औषधियों में गुरच गिलोह प्रधान है, सब सुखोंमें भोजन श्रेष्ठ है; सब इन्द्रियोंमें आंख उत्तम है; सब अंगोंमें शिर श्रेष्ठ है ॥ ४ ॥

sarvōṣadhīnāmamr̥tāpradhānāsarvēṣusaukhyēṣvaśanaṁpradhānam ॥ 
sarvaṁdriyāṇāṁnayanaṁpradhānaṁ sarvēṣugātrēṣu śiraḥpradhānam ॥ 4 ॥

Meaning - Gurach Giloh is prominent among session medicines, food is the best among all pleasures; Of all the senses the eye is the best; The head is the best among all the organs. 4॥

दूतोनसंचरतिखेन चलेच्चवार्ता पूर्वन जल्पितमि दंनचसंगमोस्ति ॥ 
व्योम्निस्थितं रविशशिग्रहणंप्रशस्तं जानातियो द्विजवरःसकथंनविद्वान्। ५।

अर्थ - आकाश में दूत नहीं जा सक्ता, न वार्ताकी चर्चा चल सक्ती न पहिले ही से किसीने कह रक्खा है और न किसीसे संगम होसक्ता; ऐसी दशामें आकाशमें स्थित सूर्यचन्द्रके ग्रहण को जो द्विजवर स्पष्ट जानता है वह कैसे विद्वान् नहीं है ॥ ५ ॥

dūtōnasaṁcaratikhēna calēccavārtā pūrvana jalpitami daṁnacasaṁgamōsti ॥ 
vyōmnisthitaṁ raviśaśigrahaṇaṁpraśastaṁ jānātiyō dvijavaraḥsakathaṁnavidvān| 5|

Meaning - An angel cannot go in the sky, nor can a conversation be discussed, nor has anyone told in advance, nor can one have contact with anyone; In such a situation, how can the person who clearly knows the eclipse of the Sun and Moon in the sky not be a scholar? 5॥
ग्रन्थ का नाम : चाणक्यनीतिदर्पण,  रचनाकार – आचार्य चाणक्य,   अध्याय – 9   श्लोक-  1-5

चाणक्य की प्रसिद्धि : 

ये संस्कृत श्लोक आचार्य चाणक्य के द्वारा रचित हैं। उनका नाम कौटिल्य एवं विष्णुगुप्त के नाम से भी प्रसिद्ध है। उनकी रचनाएँ Chanakya सूत्र, chanakya niti, chanakya ni pothi, chanakya quotes, chanakya niti in hindi, chanakya quotes in hindi, चाणक्य, चाणक्य नीति,  चाणक्य नीति की 10 बातें,  चाणक्य नीति की बातें, चाणक्य के कड़वे वचन, चाणक्य नीति स्त्री, चाणक्य नीति की 100 बातें,  चाणक्य विचार इन हिंदी, चाणक्य नीति सुविचार, चाणक्य नीति जीवन जीने की, सुविचार चाणक्य के कड़वे वचन, sanskrit shlok, shlok,sanskrit, sanskrit shlok,sanskrit quotes,shlok in sanskrit, sanskrit thought, sanskrit slokas,संस्कृत श्लोक,श्लोक,छोटे संस्कृत श्लोक, आदि के रूप में चर्चित एवं प्रसिद्ध है । 

चाणक्य का कालातीत प्रभाव  :

हजारों वर्षों के उपरांत भी उनमें वही ताजगी और उपयोगिता है। अतः वे आज भी उतने ही प्रासंगिक बने हुए हैं जितने वे तब थे जब वे लिखे गये थे। संस्कृत में रचित होने के कारण उनमें कालांतर के प्रभाव को स्पष्टतः नहीं देखा जाता है क्योंकि संस्कृत भाषा का सर्वश्रेष्ठ व्याकरण उसके अस्तित्व एवं गुणवत्ता के साथ ही उसके प्रभाव कि भी सुरक्षा करता है। ये अत्यंत ज्ञानवर्धक, पठनीय एवं माननीय हैं। ये जीवन‌ के अनेक चौराहों पर हमारा मार्गदर्शन करते हैं जब सब ओर अंधकार छा जाने की प्रतीति होती है।

About Chanakya (चाणक्य के बारे में) :

 चाणक्य का प्रभाव प्राचीन भारत से परे तक फैला हुआ है, क्योंकि शासन कला और शासन पर उनके विचारों का दुनिया भर के विद्वानों और नीति निर्माताओं द्वारा अध्ययन और सम्मान किया जाता है।  राजनीति के प्रति उनका व्यावहारिक दृष्टिकोण और राज्य और उसके नागरिकों के कल्याण पर उनका जोर उन्हें एक कालातीत व्यक्ति बनाता है जिनकी बुद्धि समय और स्थान की सीमाओं से परे है।

 चाणक्यनीतिदर्पण – 8.5

चाणक्य नीति दर्पण मूलत: संस्कृत (Sanskrit) में संस्कृत सुभाषितों के रूप में, काव्यात्मक एवं श्लोकों  के रूप में लिखा हुआ ग्रंथ है। इसके रचनाकार आचार्य चाणक्य हैं। उनके ये संस्कृत श्लोक चाणक्य नीति के नाम से संसार भर में प्रसिद्ध हैं। यहां पर यह श्लोक देवनागरी लिपि एवं  रोमन लिपि में भी दिए गए हैं एवं उनके अर्थ हिंदी देवनागरी एवं अंग्रेजी में रोमन लिपि में भी दिये गये हैं। जिससे विदेशों में रहने वाले भारतीय जो देवनागरी से परिचित नहीं हैं सनातन ग्रंथों के ज्ञान से लाभान्वित हो सकें।

अथ अष्टमोऽध्यायः ॥ 8 ॥

atha aṣṭamō’dhyāyaḥ ॥ 8 ॥

रूपयौवन संपन्ना विशालकुलसंभवाः ॥ 
विद्याहीनानशोभंतेनिर्गंधाइव किंशुकाः ॥२१॥

अर्थ - सुंदर, तरुणतायुत और बडे कुलमें उत्पन्न भी विद्याहीन पुरुष ऐसे नहीं शोभते, जैसे बिना गंध पलाश के फूल ॥ २१ ॥

rūpayauvana saṁpannā viśālakulasaṁbhavāḥ ॥ 
vidyāhīnānaśōbhaṁtēnirgaṁdhāiva kiṁśukāḥ ॥21॥

Meaning - Beautiful, young and born in a big family, even those without education do not look as good as the flowers of Palash without fragrance. 21 ॥

मासभक्ष्याः सुरापानामुर्खाश्वाक्षर वर्जिताः ॥ 
पशुभिःपुरुषाकारेर्भाराक्रांतास्तिमेदिनी ॥२२॥

अर्थ - मांस के भक्षण और मदिरापान करनेवाले, निरक्षर,और मूर्ख इन पुरुषाकार पशुवोंके भारसे पृथिवी पीडित रहती है ॥ २२ ॥

māsabhakṣyāḥ surāpānāmurkhāśvākṣara varjitāḥ ॥ 
paśubhiḥpuruṣākārērbhārākrāṁtāstimēdinī ॥22॥
Meaning - The earth suffers due to the weight of these male-like animals who eat meat, drink alcohol, are illiterate and foolish.  22 ॥


अन्नहीनोदहेद्राष्ट्रमंत्रहीनश्चऋत्विजः ॥ 
यजमानंदानहार्नानास्तियज्ञसमोरिपुः॥२३॥

अर्थ - यज्ञ यदि अन्नहीन हो तो, राज्यको मंत्रहीन हो तो ऋत्विजों का दानहीन हो तो यजमानको जलाता है, इस कारण यज्ञके समान कोईभी शत्रु नहीं है ॥ २३ ॥

annahīnōdahēdrāṣṭramaṁtrahīnaścr̥tvijaḥ ॥ 
yajamānaṁdānahārnānāstiyajñasamōripuḥ॥23॥

Meaning: If a sacrifice is without food, if the kingdom is without mantras, if the priests are without charity, it burns the sacrificer, and therefore there is no enemy like sacrifice.  23 ॥
इतिवृद्धचाणक्ये अष्टमोऽध्यायः ॥ ८ ॥'
itivr̥ddhacāṇakyē aṣṭamō’dhyāyaḥ ॥ 8 ॥'
ग्रन्थ का नाम : चाणक्यनीतिदर्पण,  रचनाकार – आचार्य चाणक्य,   अध्याय – 7   श्लोक-  21-23

चाणक्य की प्रसिद्धि : 

ये संस्कृत श्लोक आचार्य चाणक्य के द्वारा रचित हैं। उनका नाम कौटिल्य एवं विष्णुगुप्त के नाम से भी प्रसिद्ध है। उनकी रचनाएँ Chanakya सूत्र, chanakya niti, chanakya ni pothi, chanakya quotes, chanakya niti in hindi, chanakya quotes in hindi, चाणक्य, चाणक्य नीति,  चाणक्य नीति की 10 बातें,  चाणक्य नीति की बातें, चाणक्य के कड़वे वचन, चाणक्य नीति स्त्री, चाणक्य नीति की 100 बातें,  चाणक्य विचार इन हिंदी, चाणक्य नीति सुविचार, चाणक्य नीति जीवन जीने की, सुविचार चाणक्य के कड़वे वचन, sanskrit shlok, shlok,sanskrit, sanskrit shlok,sanskrit quotes,shlok in sanskrit, sanskrit thought, sanskrit slokas,संस्कृत श्लोक,श्लोक,छोटे संस्कृत श्लोक, आदि के रूप में चर्चित एवं प्रसिद्ध है । 

चाणक्य का कालातीत प्रभाव  :

हजारों वर्षों के उपरांत भी उनमें वही ताजगी और उपयोगिता है। अतः वे आज भी उतने ही प्रासंगिक बने हुए हैं जितने वे तब थे जब वे लिखे गये थे। संस्कृत में रचित होने के कारण उनमें कालांतर के प्रभाव को स्पष्टतः नहीं देखा जाता है क्योंकि संस्कृत भाषा का सर्वश्रेष्ठ व्याकरण उसके अस्तित्व एवं गुणवत्ता के साथ ही उसके प्रभाव कि भी सुरक्षा करता है। ये अत्यंत ज्ञानवर्धक, पठनीय एवं माननीय हैं। ये जीवन‌ के अनेक चौराहों पर हमारा मार्गदर्शन करते हैं जब सब ओर अंधकार छा जाने की प्रतीति होती है।

About Chanakya (चाणक्य के बारे में) :

 चाणक्य का प्रभाव प्राचीन भारत से परे तक फैला हुआ है, क्योंकि शासन कला और शासन पर उनके विचारों का दुनिया भर के विद्वानों और नीति निर्माताओं द्वारा अध्ययन और सम्मान किया जाता है।  राजनीति के प्रति उनका व्यावहारिक दृष्टिकोण और राज्य और उसके नागरिकों के कल्याण पर उनका जोर उन्हें एक कालातीत व्यक्ति बनाता है जिनकी बुद्धि समय और स्थान की सीमाओं से परे है।

 चाणक्यनीतिदर्पण – 8.4

चाणक्य नीति दर्पण मूलत: संस्कृत (Sanskrit) में संस्कृत सुभाषितों के रूप में, काव्यात्मक एवं श्लोकों  के रूप में लिखा हुआ ग्रंथ है। इसके रचनाकार आचार्य चाणक्य हैं। उनके ये संस्कृत श्लोक चाणक्य नीति के नाम से संसार भर में प्रसिद्ध हैं। यहां पर यह श्लोक देवनागरी लिपि एवं  रोमन लिपि में भी दिए गए हैं एवं उनके अर्थ हिंदी देवनागरी एवं अंग्रेजी में रोमन लिपि में भी दिये गये हैं। जिससे विदेशों में रहने वाले भारतीय जो देवनागरी से परिचित नहीं हैं सनातन ग्रंथों के ज्ञान से लाभान्वित हो सकें।

अथ अष्टमोऽध्यायः ॥ 8 ॥

atha aṣṭamō’dhyāyaḥ ॥ 8 ॥

निर्गुणस्यहतंरूपंदुःशीलस्यद्दतंकुलम् ॥ 
असिद्धस्यताविद्या अभोगेनहतंधनम् ॥ १६ ॥

अर्थ - गुणहीन की सुंदरता व्यर्थ है, शीलहीन का कुल निंदित होता है, सिद्धि के विना विद्या व्यर्थ है भोग के विना धन व्यर्थ है ॥ १६ ॥ 

nirguṇasyahataṁrūpaṁduḥśīlasyaddataṁkulam ॥ 
asiddhasyatāvidyā abhōgēnahataṁdhanam ॥ 16 ॥

Meaning - The beauty of one without virtue is useless, the family of one without modesty is condemned, knowledge without accomplishment is useless, wealth without enjoyment is useless. 16 ॥ 

शुद्धभूमिगतंतोयंशुद्धानारीपतिव्रता ॥ 
शुचिःक्षेमकरोराजासंतुष्टोब्राह्मणःशुचिः॥१७॥

अर्थ - भूमिगत जल पवित्र होता है, पतिव्रतां स्त्री पवित्र होती है कल्याण करने वाला राजा पवित्र गिना जाता है, ब्राह्मण संतोषी शुद्ध होता है ॥ १७ ॥

śuddhabhūmigataṁtōyaṁśuddhānārīpativratā ॥ 
śuciḥkṣēmakarōrājāsaṁtuṣṭōbrāhmaṇaḥśuciḥ॥17॥


असन्तुष्टाद्विजानष्टाः संतुष्टाश्चमहीपतिः ॥ 
सलज्जागणिकानष्टानिलज्जाश्चकुलांगनाः १८॥ 

अर्थ - असंतोषा ब्राह्मण निंदित गिने जाते हैं और संतोषी राजा, सलज्जा वेश्या और लज्जाहीन कुल स्त्री निंदित गिनि जाती है ॥ १८ ॥

asantuṣṭādvijānaṣṭāḥ saṁtuṣṭāścamahīpatiḥ ॥ 
salajjāgaṇikānaṣṭānilajjāścakulāṁganāḥ 18॥ 

Meaning - A dissatisfied Brahmin is considered condemned and a contented king, a shameless prostitute and a shameless clan woman are considered condemned. 18 ॥

किंकुलेनविशालेन विद्याहीननेनदोहनाम् ॥ 
दुष्कुलंचा पिविदुषे। देवैरपिसुपूज्यते ॥१९॥

अर्थ - विद्या हीन बडे कुल मे मनुष्योंको क्या लाभ है? विद्वान् का नीच कुल भी देवों से पूजा जाता है॥१९॥

kiṁkulēnaviśālēna vidyāhīnanēnadōhanām ॥ 
duṣkulaṁcā pividuṣē| dēvairapisupūjyatē ॥19॥

Meaning - What benefit do people have in a large family without education? Even the lowly family of a scholar is worshiped by the gods( The habitats of the heaven or swarga called devta).॥19॥

विद्वान्प्रशस्यतेलोकेविद्वान्सर्वत्रगोरवम् 
विद्ययालभतेसर्वविद्या सर्वत्रपूज्यते ॥ 20 ॥

अर्थ - संसार में विद्वान्ही प्रशंसित होता है विद्वान् ही सब स्थानों में आदर पाता है विद्या ही से सब मिलता है विद्या ही सब स्थान में पूजित होती है ॥ २० ॥

vidvānpraśasyatēlōkēvidvānsarvatragōravam vidyayālabhatēsarvavidyā sarvatrapūjyatē ॥ 20 ॥

Meaning - Only a scholar is praised in the world, only a scholar gets respect everywhere, everything is achieved through knowledge, only knowledge is worshiped everywhere. 20 ॥
ग्रन्थ का नाम : चाणक्यनीतिदर्पण,  रचनाकार – आचार्य चाणक्य,   अध्याय – 7   श्लोक-  16-20

चाणक्य की प्रसिद्धि : 

ये संस्कृत श्लोक आचार्य चाणक्य के द्वारा रचित हैं। उनका नाम कौटिल्य एवं विष्णुगुप्त के नाम से भी प्रसिद्ध है। उनकी रचनाएँ Chanakya सूत्र, chanakya niti, chanakya ni pothi, chanakya quotes, chanakya niti in hindi, chanakya quotes in hindi, चाणक्य, चाणक्य नीति,  चाणक्य नीति की 10 बातें,  चाणक्य नीति की बातें, चाणक्य के कड़वे वचन, चाणक्य नीति स्त्री, चाणक्य नीति की 100 बातें,  चाणक्य विचार इन हिंदी, चाणक्य नीति सुविचार, चाणक्य नीति जीवन जीने की, सुविचार चाणक्य के कड़वे वचन, sanskrit shlok, shlok,sanskrit, sanskrit shlok,sanskrit quotes,shlok in sanskrit, sanskrit thought, sanskrit slokas,संस्कृत श्लोक,श्लोक,छोटे संस्कृत श्लोक, आदि के रूप में चर्चित एवं प्रसिद्ध है । 

चाणक्य का कालातीत प्रभाव  :

हजारों वर्षों के उपरांत भी उनमें वही ताजगी और उपयोगिता है। अतः वे आज भी उतने ही प्रासंगिक बने हुए हैं जितने वे तब थे जब वे लिखे गये थे। संस्कृत में रचित होने के कारण उनमें कालांतर के प्रभाव को स्पष्टतः नहीं देखा जाता है क्योंकि संस्कृत भाषा का सर्वश्रेष्ठ व्याकरण उसके अस्तित्व एवं गुणवत्ता के साथ ही उसके प्रभाव कि भी सुरक्षा करता है। ये अत्यंत ज्ञानवर्धक, पठनीय एवं माननीय हैं। ये जीवन‌ के अनेक चौराहों पर हमारा मार्गदर्शन करते हैं जब सब ओर अंधकार छा जाने की प्रतीति होती है।

About Chanakya (चाणक्य के बारे में) :

 चाणक्य का प्रभाव प्राचीन भारत से परे तक फैला हुआ है, क्योंकि शासन कला और शासन पर उनके विचारों का दुनिया भर के विद्वानों और नीति निर्माताओं द्वारा अध्ययन और सम्मान किया जाता है।  राजनीति के प्रति उनका व्यावहारिक दृष्टिकोण और राज्य और उसके नागरिकों के कल्याण पर उनका जोर उन्हें एक कालातीत व्यक्ति बनाता है जिनकी बुद्धि समय और स्थान की सीमाओं से परे है।

 चाणक्यनीतिदर्पण – 8.3

चाणक्य नीति दर्पण मूलत: संस्कृत (Sanskrit) में संस्कृत सुभाषितों के रूप में, काव्यात्मक एवं श्लोकों  के रूप में लिखा हुआ ग्रंथ है। इसके रचनाकार आचार्य चाणक्य हैं। उनके ये संस्कृत श्लोक चाणक्य नीति के नाम से संसार भर में प्रसिद्ध हैं। यहां पर यह श्लोक देवनागरी लिपि एवं  रोमन लिपि में भी दिए गए हैं एवं उनके अर्थ हिंदी देवनागरी एवं अंग्रेजी में रोमन लिपि में भी दिये गये हैं। जिससे विदेशों में रहने वाले भारतीय जो देवनागरी से परिचित नहीं हैं सनातन ग्रंथों के ज्ञान से लाभान्वित हो सकें।

अथ अष्टमोऽध्यायः ॥ 8 ॥

atha aṣṭamō’dhyāyaḥ ॥ 8 ॥

काष्ठपाषाण्धातूनां कृत्वाभावेनसेवनम्॥
श्रद्धयाचतथासिद्धिस्तस्यविष्णोःप्रसादतः ॥११॥

अर्थ - धातु काष्ठ पाषाण भावसहित सेवन करना चाहिए। श्रद्धा से तो भगवत् कृपा से जैसा भाव है तैसा ही सिद्ध होता है ॥ ११ ॥

kāṣṭhapāṣāṇdhātūnāṁ kr̥tvābhāvēnasēvanam॥
śraddhayācatathā siddhistasyaviṣṇōḥprasādataḥ ॥11॥

Meaning : Metal, wood and stone should be consumed with feeling. By faith, by the grace of the Lord, the same feeling is attained. 11 ॥

नदेवोविद्यते काष्ठेनपाषाणेनमृन्मये. ॥ 
भावेद्दिविद्यतेदेवस्तस्माद्भावो हि कारणम्॥१२॥

अर्थ - देवता काठ में नहीं है, न पाषाण में है न मृतिका की मूर्ति में है निश्चय है कि देवता भाव में विद्यमान है, इस हेतु भाव ही सबका कारण है ॥१२॥

nadēvōvidyatē kāṣṭhēnapāṣāṇēnamr̥nmayē. ॥ 
bhāvēddividyatēdēvastasmādbhāvō hi kāraṇam॥12॥
Meaning - The deity is neither in wood, nor in stone, nor in the idol of the dead; it is certain that the deity exists in the emotions, hence emotions are the reason for everything. ॥12॥


शांतितुल्यंतपोनास्तिनसंतोषात्परंसुखम् ॥
नतृष्णायाःपरोव्याधिर्नचधर्मोदयापरः ॥१३॥

अर्थ - शांती के समान दूसरा तप नहीं, न संतोष से परे सुख, न तृष्णा से दूसरी व्याधी है, न दया के समान धर्म ॥ १३ ॥

śāṁtitulyaṁtapōnāstinasaṁtōṣātparaṁsukham ॥
natr̥ṣṇāyāḥparōvyādhirnacadharmōdayāparaḥ ॥13॥
Meaning - There is no penance like peace, no happiness beyond satisfaction, no disease other than thirst, no religion like kindness. 13 ॥


क्रोधोवैवस्वतो राजा तृष्णाबैतरणीनदी ॥ 
विद्याकामदुघाधेनुः संतोषोनन्दनंवनम् ॥ १४ ॥

अर्थ - क्रोध यमराज है और तृष्णा वैतरणीनदी है, विद्या कामधेनु गाय है और सन्तोष इन्द्रकी वाटिका है ॥ १४ ॥

krōdhōvaivasvatō rājā tr̥ṣṇābaitaraṇīnadī ॥ 
vidyākāmadughādhēnuḥ saṁtōṣōnandanaṁvanam ॥ 14 ॥
Meaning - Anger is Yamraj and thirst is river Vaitarna, Vidya is Kamadhenu cow and satisfaction is Indra's garden. 14 ॥

गुणो भूषयते रूपं शीलं भूषयते कुलम् ।कुलम्
सिधिर्भूषयते विद्यां भोगो भूषयेते धनम् ॥धनम् ०८-१५

अर्थ - गुण रूप को भूषित करता है, शीलं कुलको अलंकृत करता है, सिद्धि विद्या को भूषित करती है और भोग धन को भूषित करता है ॥ १५ ॥ 

guṇō bhūṣayatē rūpaṁ śīlaṁ bhūṣayatē kulam |kulam
sidhirbhūṣayatē vidyāṁ bhōgō bhūṣayētē dhanam ॥dhanam 08-15

Meaning - Quality adorns the form, modesty adorns the clan, accomplishment adorns knowledge and enjoyment adorns wealth. 15.
ग्रन्थ का नाम : चाणक्यनीतिदर्पण,  रचनाकार – आचार्य चाणक्य,   अध्याय – 7   श्लोक-  11-15

चाणक्य की प्रसिद्धि : 

ये संस्कृत श्लोक आचार्य चाणक्य के द्वारा रचित हैं। उनका नाम कौटिल्य एवं विष्णुगुप्त के नाम से भी प्रसिद्ध है। उनकी रचनाएँ Chanakya सूत्र, chanakya niti, chanakya ni pothi, chanakya quotes, chanakya niti in hindi, chanakya quotes in hindi, चाणक्य, चाणक्य नीति,  चाणक्य नीति की 10 बातें,  चाणक्य नीति की बातें, चाणक्य के कड़वे वचन, चाणक्य नीति स्त्री, चाणक्य नीति की 100 बातें,  चाणक्य विचार इन हिंदी, चाणक्य नीति सुविचार, चाणक्य नीति जीवन जीने की, सुविचार चाणक्य के कड़वे वचन, sanskrit shlok, shlok,sanskrit, sanskrit shlok,sanskrit quotes,shlok in sanskrit, sanskrit thought, sanskrit slokas,संस्कृत श्लोक,श्लोक,छोटे संस्कृत श्लोक, आदि के रूप में चर्चित एवं प्रसिद्ध है । 

चाणक्य का कालातीत प्रभाव  :

हजारों वर्षों के उपरांत भी उनमें वही ताजगी और उपयोगिता है। अतः वे आज भी उतने ही प्रासंगिक बने हुए हैं जितने वे तब थे जब वे लिखे गये थे। संस्कृत में रचित होने के कारण उनमें कालांतर के प्रभाव को स्पष्टतः नहीं देखा जाता है क्योंकि संस्कृत भाषा का सर्वश्रेष्ठ व्याकरण उसके अस्तित्व एवं गुणवत्ता के साथ ही उसके प्रभाव कि भी सुरक्षा करता है। ये अत्यंत ज्ञानवर्धक, पठनीय एवं माननीय हैं। ये जीवन‌ के अनेक चौराहों पर हमारा मार्गदर्शन करते हैं जब सब ओर अंधकार छा जाने की प्रतीति होती है।

About Chanakya (चाणक्य के बारे में) :

 चाणक्य का प्रभाव प्राचीन भारत से परे तक फैला हुआ है, क्योंकि शासन कला और शासन पर उनके विचारों का दुनिया भर के विद्वानों और नीति निर्माताओं द्वारा अध्ययन और सम्मान किया जाता है।  राजनीति के प्रति उनका व्यावहारिक दृष्टिकोण और राज्य और उसके नागरिकों के कल्याण पर उनका जोर उन्हें एक कालातीत व्यक्ति बनाता है जिनकी बुद्धि समय और स्थान की सीमाओं से परे है।

 चाणक्यनीतिदर्पण – 8.2

चाणक्य नीति दर्पण मूलत: संस्कृत (Sanskrit) में संस्कृत सुभाषितों के रूप में, काव्यात्मक एवं श्लोकों  के रूप में लिखा हुआ ग्रंथ है। इसके रचनाकार आचार्य चाणक्य हैं। उनके ये संस्कृत श्लोक चाणक्य नीति के नाम से संसार भर में प्रसिद्ध हैं। यहां पर यह श्लोक देवनागरी लिपि एवं  रोमन लिपि में भी दिए गए हैं एवं उनके अर्थ हिंदी देवनागरी एवं अंग्रेजी में रोमन लिपि में भी दिये गये हैं। जिससे विदेशों में रहने वाले भारतीय जो देवनागरी से परिचित नहीं हैं सनातन ग्रंथों के ज्ञान से लाभान्वित हो सकें।

अथ अष्टमोऽध्यायः ॥ 8 ॥

atha aṣṭamō’dhyāyaḥ ॥ 8 ॥

तैलाभ्यंगेचिताधूमेमैथुनेक्षौरकर्मणि ॥ 
तावद्भवतिचांडालोयावत्स्नानंसमाचरेत् ॥ ६ ॥

अर्थ - तेल लगाने पर, चित्ता के धूम लगने पर, स्त्री प्रसंग करने पर, बाल बनाने पर, तब तक चाण्डाल ही बना रहता है जब तक स्नान नहीं करता है ॥ ६ ॥

tailābhyaṁgēcitādhūmēmaithunēkṣaurakarmaṇi ॥ 
tāvadbhavaticāṁḍālōyāvatsnānaṁsamācarēt ॥ 6 ॥

Meaning - On applying oil(Maalish), on the fume touching the us after burning of the deadbody, on having sexual intercourse with women, on combing hair(Cutting Hair), he remains a Chandal until he takes bath. 6॥

अजीर्णेमेषजंवारिजीर्णेवारिबलप्रदम् ॥ 
भोजनेचामृतंवारिभोजनांतेविषप्रदम् ॥ ७ ॥

अर्थ - अपच होनेपर जल औषध है, पच जाने पर जल बल को देता है, भोजन के समय पानी अमृत के समान है, और भोजनके अन्त में विष का फल देता है ॥ ७ ॥
ajīrṇēmēṣajaṁvārijīrṇēvāribalapradam ॥ 
bhōjanēcāmr̥taṁvāribhōjanāṁtēviṣapradam ॥ 7 ॥

Meaning - In case of indigestion, water is a medicine, when digested, water gives strength, at the time of meal, water is like nectar, and at the end of the meal, it gives the result of poison. 7 ॥

हतंज्ञानंक्रियाहीनंहतश्चाज्ञानतोनरः ॥ 
हतं निर्णायकं सैन्यं स्त्रियो नष्टा ह्यभर्तृकाः ॥ ०८-०८

अर्थ - क्रिया के बिना ज्ञान व्यर्थ है, अज्ञान से नर मारा जाता है सेनापति के बिना सेना मारी जाती है और स्वामी हीन स्त्री नष्ट होजाती है॥ ८ ॥

hataṁjñānaṁkriyāhīnaṁhataścājñānatōnaraḥ ॥ 
hataṁ nirṇāyakaṁ sainyaṁ striyō naṣṭā hyabhartr̥kāḥ ॥ 08-08

Meaning - Knowledge without action is useless, a man is killed by ignorance, an army is killed without a commander and a woman without a master is destroyed. 8॥

वृद्धकाले मृताभार्याबंधुहस्तगतंधनम् ॥ 
भोजनं चपराधीनंतिस्रःपुंसांविडम्बनाः ॥९॥

अर्थ - बुढापे में मरी स्त्री, बन्धु के हाथ में गया धन और दूसरे के आधीन भोजन ये तीन पुरुषों की विडम्बना है अर्थात् दुखःदायक होते हैं ॥ ६ ॥

vr̥ddhakālē mr̥tābhāryābaṁdhuhastagataṁdhanam ॥ 
bhōjanaṁ caparādhīnaṁtisraḥpuṁsāṁviḍambanāḥ ॥9॥

Meaning - The woman dying in old age, the money in the hands of one brother and the food in the hands of another are the irony of these three men, that is, they are painful. 6॥

अग्निहोत्रं विनावेदानचदानंविनाक्रिया ॥ 
नभावेनविनासिद्धिस्तस्माद्भावोहि कारणम्। ॥10॥

अर्थ -  अग्निहोत्र के बिना वेद का पढना व्यर्थ होता है दानके बिना यज्ञा दिक क्रिया नहीं बनती, भाव के बिना कोई सिद्धि नहीं होती इस हेतु प्रेम ही सबका कारण है ॥ 10 ॥

agnihōtraṁ vināvēdānacadānaṁvinākriyā || 
nabhāvēnavināsiddhistasmādbhāvōhi kāraṇam| ||10||

Meaning - Reading the Vedas without Agnihotra is useless, without donation the Yagya cannot be performed, without feeling there is no accomplishment, hence love is the reason for everything. 10 ॥
ग्रन्थ का नाम : चाणक्यनीतिदर्पण,  रचनाकार – आचार्य चाणक्य,   अध्याय – 7   श्लोक-  6-10

चाणक्य की प्रसिद्धि : 

ये संस्कृत श्लोक आचार्य चाणक्य के द्वारा रचित हैं। उनका नाम कौटिल्य एवं विष्णुगुप्त के नाम से भी प्रसिद्ध है। उनकी रचनाएँ Chanakya सूत्र, chanakya niti, chanakya ni pothi, chanakya quotes, chanakya niti in hindi, chanakya quotes in hindi, चाणक्य, चाणक्य नीति,  चाणक्य नीति की 10 बातें,  चाणक्य नीति की बातें, चाणक्य के कड़वे वचन, चाणक्य नीति स्त्री, चाणक्य नीति की 100 बातें,  चाणक्य विचार इन हिंदी, चाणक्य नीति सुविचार, चाणक्य नीति जीवन जीने की, सुविचार चाणक्य के कड़वे वचन, sanskrit shlok, shlok,sanskrit, sanskrit shlok,sanskrit quotes,shlok in sanskrit, sanskrit thought, sanskrit slokas,संस्कृत श्लोक,श्लोक,छोटे संस्कृत श्लोक, आदि के रूप में चर्चित एवं प्रसिद्ध है । 

चाणक्य का कालातीत प्रभाव  :

हजारों वर्षों के उपरांत भी उनमें वही ताजगी और उपयोगिता है। अतः वे आज भी उतने ही प्रासंगिक बने हुए हैं जितने वे तब थे जब वे लिखे गये थे। संस्कृत में रचित होने के कारण उनमें कालांतर के प्रभाव को स्पष्टतः नहीं देखा जाता है क्योंकि संस्कृत भाषा का सर्वश्रेष्ठ व्याकरण उसके अस्तित्व एवं गुणवत्ता के साथ ही उसके प्रभाव कि भी सुरक्षा करता है। ये अत्यंत ज्ञानवर्धक, पठनीय एवं माननीय हैं। ये जीवन‌ के अनेक चौराहों पर हमारा मार्गदर्शन करते हैं जब सब ओर अंधकार छा जाने की प्रतीति होती है।

About Chanakya (चाणक्य के बारे में) :

 चाणक्य का प्रभाव प्राचीन भारत से परे तक फैला हुआ है, क्योंकि शासन कला और शासन पर उनके विचारों का दुनिया भर के विद्वानों और नीति निर्माताओं द्वारा अध्ययन और सम्मान किया जाता है।  राजनीति के प्रति उनका व्यावहारिक दृष्टिकोण और राज्य और उसके नागरिकों के कल्याण पर उनका जोर उन्हें एक कालातीत व्यक्ति बनाता है जिनकी बुद्धि समय और स्थान की सीमाओं से परे है।

 चाणक्यनीतिदर्पण – 7.4

चाणक्य नीति दर्पण मूलत: संस्कृत (Sanskrit) में संस्कृत सुभाषितों के रूप में, काव्यात्मक एवं श्लोकों  के रूप में लिखा हुआ ग्रंथ है। इसके रचनाकार आचार्य चाणक्य हैं। उनके ये संस्कृत श्लोक चाणक्य नीति के नाम से संसार भर में प्रसिद्ध हैं। यहां पर यह श्लोक देवनागरी लिपि एवं  रोमन लिपि में भी दिए गए हैं एवं उनके अर्थ हिंदी देवनागरी एवं अंग्रेजी में रोमन लिपि में भी दिये गये हैं। जिससे विदेशों में रहने वाले भारतीय जो देवनागरी से परिचित नहीं हैं सनातन ग्रंथों के ज्ञान से लाभान्वित हो सकें।

अथ सप्तमोऽध्यायः ॥ 7 ॥

atha saptamō’dhyāyaḥ ॥ 7 ॥

ग्रन्थ का नाम : चाणक्यनीतिदर्पण,  रचनाकार – आचार्य चाणक्य,   अध्याय – 7   श्लोक-  16-21
स्वर्गस्थितानामिहजीवलोके चत्वारिचिह्नानिव- संतिदेये ॥ दानप्रसंगोमधुराचवाणीदेवार्चनंब्रा-ह्मणतर्पणंचः ॥ १६ ॥

अर्थ - संसार में आनेपर स्वर्गवासियों के शरीर में चार चिन्ह रहते हैं। दानका स्वभाव, मीठा बचन, देवता की पूजा और ब्राह्मण को तृप्त करना अर्थात् जिन लोगों में दान आदि लक्षण रहें उनको जानना चाहिये कि वे अपने पुण्य के प्रभाव से स्वर्गवासी मर्त्यलोक में अवतार लिये हैं ॥ १६ ॥

svargasthitānāmihajīvalōkē catvāricihnāniva- saṁtidēyē ॥ dānaprasaṁgōmadhurācavāṇīdēvārcanaṁbrā-hmaṇatarpaṇaṁcaḥ ॥ 16 ॥

Meaning - When the heavenly beings come into this world, there are four signs in their bodies. The nature of charity, sweet words, worship of God and satisfying Brahmins, that is, those who have the characteristics of charity etc., should know that due to the influence of their good deeds, they have incarnated in the heavenly world in the mortal world. 16 ॥

अत्यन्तकोपःकटुकाचवाणी दरिद्रताचस्वजने- घुवैरं ॥ 
नीचप्रसंगः कुलद्दीन सेवाचिह्नानिदेहेन- रकस्थितानाम् ॥ १७ ॥

अर्थ - अत्यंत क्रोध, कटु बचन, दरिद्रता, अपने जनों में बैर, नीच का संग कुलहीन की सेवा ये चिन्ह नरकवासियों के देहो में रहते हैं ॥ १७ ॥

atyantakōpaḥkaṭukācavāṇī daridratācasvajanē- ghuvairaṁ ॥ 
nīcaprasaṁgaḥ kuladdīna sēvācihnānidēhēna- rakasthitānām ॥ 17 ॥

Meaning - Extreme anger, bitter words, poverty, hatred among one's own people, association with lowly people, service to the familyless (Persons withlower moral values or no moral values should be considered as kulahina), these signs remain in the bodies of the residents of hell. 17 ॥


गम्यतेयदिमृगेन्द्रमदिरंलक्ष्यते करिकपोलमौ-क्तिकम् ॥ 
जंबुकालयगतेचप्राप्यते वत्सुपुच्छ-खरचर्मखण्डनम् ॥ १८ ॥

अर्थ - यदि, कोई सिंह के गुहा में जा पडे तो उस को हाथी के कपोल के मोती मिलते है। और सियार के स्थान में जाने पर बछवे की पूंछ और गदहे के चमडे का टुकडा मिलता है ॥ १८ ॥ 

gamyatēyadimr̥gēndramadiraṁlakṣyatē karikapōlamau-ktikam ॥ 
jaṁbukālayagatēcaprāpyatē vatsupuccha-kharacarmakhaṇḍanam ॥ 18 ॥

Meaning - If someone goes into a lion's cave, he finds pearls from an elephant's skull. And on going to the jackal's place, one finds a calf's tail and a piece of donkey's skin. 18 ॥

शुनःपुच्छमिवव्यर्थं जीवितंविद्ययाविना ॥ 
नगुह्यगोपनेशक्तंनचदंशनिवारणे ॥ १९॥

कुत्ती की पूंछ के समान विद्या विना जीना व्यर्थ है। कुत्ती की पूंछ गोप्यइन्द्रियको ढांप नहीं सकती है न मच्छर आदि जीवों को उडा सकती है ॥ १६ ॥

śunaḥpucchamivavyarthaṁ jīvitaṁvidyayāvinā ॥ 
naguhyagōpanēśaktaṁnacadaṁśanivāraṇē ॥ 19॥

Like a (female dog) dog's tail, living without knowledge is meaningless. A dog's tail cannot cover the senses nor can it drive away mosquitoes etc. 16 ॥

वाचांशौचंचमनसःशौचमिन्द्रियनिग्रहः ॥ 
सर्वभूतदयाशौचमेतच्छो चंपरार्थिनाम् ॥२०॥

अर्थ - वचन की शुद्धि, मन की शुद्धि, इन्द्रियों का संयम, सब जीवों पर दया और पवित्रता ये परार्थियों में होता है॥ २० ॥

vācāṁśaucaṁcamanasaḥśaucamindriyanigrahaḥ ॥ 
sarvabhūtadayāśaucamētacchō caṁparārthinām ॥20॥

Meaning - Purity of speech, purity of mind, control of senses, kindness to all living beings and purity are found in the philanthropists. 20 ॥

पुष्पेगंधंतिलेतैलंकाष्ठेग्निपयोसघृतम् ॥ 
इक्षौगुडंतथादेहेपश्यात्मानं विवेकताः॥२१॥

अर्थ - फूल में गन्ध, तिल में तेल, काष्ठ में आग दूध में घी, ऊष में गुड जैसे, वैसे ही देह में आत्मा को विचार से देखो ॥२१॥

puṣpēgaṁdhaṁtilētailaṁkāṣṭhēgnipayōsaghr̥tam ॥ 
ikṣauguḍaṁtathādēhēpaśyātmānaṁ vivēkatāḥ॥21॥

Meaning - Just as fragrance is in flowers, oil is in sesame seeds, fire is in wood, ghee is in milk, jaggery is in joy, similarly look at the soul in the body with your thoughts. ॥21॥
इत्ति सप्तमोऽध्याय ॥ ७ ॥
itti saptamō’dhyāya ॥ 7 ॥

चाणक्य की प्रसिद्धि : 

ये संस्कृत श्लोक आचार्य चाणक्य के द्वारा रचित हैं। उनका नाम कौटिल्य एवं विष्णुगुप्त के नाम से भी प्रसिद्ध है। उनकी रचनाएँ Chanakya सूत्र, chanakya niti, chanakya ni pothi, chanakya quotes, chanakya niti in hindi, chanakya quotes in hindi, चाणक्य, चाणक्य नीति,  चाणक्य नीति की 10 बातें,  चाणक्य नीति की बातें, चाणक्य के कड़वे वचन, चाणक्य नीति स्त्री, चाणक्य नीति की 100 बातें,  चाणक्य विचार इन हिंदी, चाणक्य नीति सुविचार, चाणक्य नीति जीवन जीने की, सुविचार चाणक्य के कड़वे वचन, sanskrit shlok, shlok,sanskrit, sanskrit shlok,sanskrit quotes,shlok in sanskrit, sanskrit thought, sanskrit slokas,संस्कृत श्लोक,श्लोक,छोटे संस्कृत श्लोक, आदि के रूप में चर्चित एवं प्रसिद्ध है । 

चाणक्य का कालातीत प्रभाव  :

हजारों वर्षों के उपरांत भी उनमें वही ताजगी और उपयोगिता है। अतः वे आज भी उतने ही प्रासंगिक बने हुए हैं जितने वे तब थे जब वे लिखे गये थे। संस्कृत में रचित होने के कारण उनमें कालांतर के प्रभाव को स्पष्टतः नहीं देखा जाता है क्योंकि संस्कृत भाषा का सर्वश्रेष्ठ व्याकरण उसके अस्तित्व एवं गुणवत्ता के साथ ही उसके प्रभाव कि भी सुरक्षा करता है। ये अत्यंत ज्ञानवर्धक, पठनीय एवं माननीय हैं। ये जीवन‌ के अनेक चौराहों पर हमारा मार्गदर्शन करते हैं जब सब ओर अंधकार छा जाने की प्रतीति होती है।

About Chanakya (चाणक्य के बारे में) :

 चाणक्य का प्रभाव प्राचीन भारत से परे तक फैला हुआ है, क्योंकि शासन कला और शासन पर उनके विचारों का दुनिया भर के विद्वानों और नीति निर्माताओं द्वारा अध्ययन और सम्मान किया जाता है।  राजनीति के प्रति उनका व्यावहारिक दृष्टिकोण और राज्य और उसके नागरिकों के कल्याण पर उनका जोर उन्हें एक कालातीत व्यक्ति बनाता है जिनकी बुद्धि समय और स्थान की सीमाओं से परे है।

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