Category: सुभाषित-SuBhaShita (Page 3 of 8)

 चाणक्यनीतिदर्पण – 12.5

चाणक्य नीति दर्पण मूलत: संस्कृत (Sanskrit) में संस्कृत सुभाषितों के रूप में, काव्यात्मक एवं श्लोकों  के रूप में लिखा हुआ ग्रंथ है। इसके रचनाकार आचार्य चाणक्य हैं। उनके ये संस्कृत श्लोक चाणक्य नीति के नाम से संसार भर में प्रसिद्ध हैं। यहां पर यह श्लोक देवनागरी लिपि एवं  रोमन लिपि में भी दिए गए हैं एवं उनके अर्थ हिंदी देवनागरी एवं अंग्रेजी में रोमन लिपि में भी दिये गये हैं। जिससे विदेशों में रहने वाले भारतीय जो देवनागरी से परिचित नहीं हैं सनातन ग्रंथों के ज्ञान से लाभान्वित हो सकें।

अथ द्वादशोऽध्यायः ॥ 12 ॥

atha dvādaśō’dhyāyaḥ ॥ 12 ॥

ग्रन्थ का नाम : चाणक्यनीतिदर्पण,  रचनाकार – आचार्य चाणक्य,   अध्याय – 12   श्लोक-  21-23
 


धनधान्यप्रयोगेषुविद्या संग्रहणेतथा ॥ 
आहारेव्यवहारेचत्यक्तलज्जःसुखीभवेत्॥२१॥
( अध्यायः १३ । ६९)

अर्थ - धन धान्य के व्यवहार करने में, वैसे ही विद्या के पढने-पढाने में, आहार में और राजा की सभा में किसी के साथ विवाद करने में जो लज्जा को छोडे रहेगा वह सुखी होगा ॥ २१ ॥

dhanadhānyaprayōgēṣuvidyā saṁgrahaṇētathā ॥ 
āhārēvyavahārēcatyaktalajjaḥsukhībhavēt॥21॥
( adhyāyaḥ 13 | 69)

Meaning - One who leaves aside shyness in dealing with wealth, in teaching and learning, in eating and in disputing with anyone in the king's court will be happy. 21 ॥

जलबिंदु निपातेनक्रमशःपूर्यतेघटः ॥ 
महेतुःसर्वविद्यानां धर्मस्यचधनस्यच ॥ २२ ॥

अर्थ - क्रम-क्रम से जल के एक एक बूंद के गिरने से घड़ा भर जाता है। यही सभी विद्याओं, धर्म और धन का भी कारण है ॥ 22 ॥

jalabiṁdu nipātēnakramaśaḥpūryatēghaṭaḥ ॥ 
mahētuḥsarvavidyānāṁ dharmasyacadhanasyaca ॥ 22 ॥

Meaning - The pitcher gets filled with each drop of water falling sequentially. This is the reason for all knowledge, religion and wealth. 22॥
वयसः परिणामेऽपि यः खलः खल एव सः ।
सम्पक्वमपि माधुर्यं नोपयातीन्द्रवारुणम् ॥ 23 ॥

अर्थ - वय के परिणाम पर भी  जो खल रहता है सो खल ही बना रहता है अत्यन्त पकी भी कड़वी लौकी मीठी नहीं होती ॥ २३ ॥

vayasaḥ pariṇāmē’pi yaḥ khalaḥ khala ēva saḥ |
sampakvamapi mādhuryaṁ nōpayātīndravāruṇam ॥ 23 ॥
Meaning - Even after aging, the sour gourd remains sour, even the very ripe bitter gourd is not sweet. 23॥
इतिवृद्धचाणक्ये द्वादशोऽध्यायः  ॥12॥
itivr̥ddhacāṇakyē dvādaśō’dhyāyaḥ  ॥12॥

चाणक्य की प्रसिद्धि : 

ये संस्कृत श्लोक आचार्य चाणक्य के द्वारा रचित हैं। उनका नाम कौटिल्य एवं विष्णुगुप्त के नाम से भी प्रसिद्ध है। उनकी रचनाएँ Chanakya सूत्र, chanakya niti, chanakya ni pothi, chanakya quotes, chanakya niti in hindi, chanakya quotes in hindi, चाणक्य, चाणक्य नीति,  चाणक्य नीति की 10 बातें,  चाणक्य नीति की बातें, चाणक्य के कड़वे वचन, चाणक्य नीति स्त्री, चाणक्य नीति की 100 बातें,  चाणक्य विचार इन हिंदी, चाणक्य नीति सुविचार, चाणक्य नीति जीवन जीने की, सुविचार चाणक्य के कड़वे वचन, sanskrit shlok, shlok,sanskrit, sanskrit shlok,sanskrit quotes,shlok in sanskrit, sanskrit thought, sanskrit slokas,संस्कृत श्लोक,श्लोक,छोटे संस्कृत श्लोक, आदि के रूप में चर्चित एवं प्रसिद्ध है । 

चाणक्य का कालातीत प्रभाव  :

हजारों वर्षों के उपरांत भी उनमें वही ताजगी और उपयोगिता है। अतः वे आज भी उतने ही प्रासंगिक बने हुए हैं जितने वे तब थे जब वे लिखे गये थे। संस्कृत में रचित होने के कारण उनमें कालांतर के प्रभाव को स्पष्टतः नहीं देखा जाता है क्योंकि संस्कृत भाषा का सर्वश्रेष्ठ व्याकरण उसके अस्तित्व एवं गुणवत्ता के साथ ही उसके प्रभाव कि भी सुरक्षा करता है। ये अत्यंत ज्ञानवर्धक, पठनीय एवं माननीय हैं। ये जीवन‌ के अनेक चौराहों पर हमारा मार्गदर्शन करते हैं जब सब ओर अंधकार छा जाने की प्रतीति होती है।

About Chanakya (चाणक्य के बारे में) :

 चाणक्य का प्रभाव प्राचीन भारत से परे तक फैला हुआ है, क्योंकि शासन कला और शासन पर उनके विचारों का दुनिया भर के विद्वानों और नीति निर्माताओं द्वारा अध्ययन और सम्मान किया जाता है।  राजनीति के प्रति उनका व्यावहारिक दृष्टिकोण और राज्य और उसके नागरिकों के कल्याण पर उनका जोर उन्हें एक कालातीत व्यक्ति बनाता है जिनकी बुद्धि समय और स्थान की सीमाओं से परे है।

 चाणक्यनीतिदर्पण – 12.4

चाणक्य नीति दर्पण मूलत: संस्कृत (Sanskrit) में संस्कृत सुभाषितों के रूप में, काव्यात्मक एवं श्लोकों  के रूप में लिखा हुआ ग्रंथ है। इसके रचनाकार आचार्य चाणक्य हैं। उनके ये संस्कृत श्लोक चाणक्य नीति के नाम से संसार भर में प्रसिद्ध हैं। यहां पर यह श्लोक देवनागरी लिपि एवं  रोमन लिपि में भी दिए गए हैं एवं उनके अर्थ हिंदी देवनागरी एवं अंग्रेजी में रोमन लिपि में भी दिये गये हैं। जिससे विदेशों में रहने वाले भारतीय जो देवनागरी से परिचित नहीं हैं सनातन ग्रंथों के ज्ञान से लाभान्वित हो सकें।

अथ द्वादशोऽध्यायः ॥ 12 ॥

atha dvādaśō’dhyāyaḥ ॥ 12 ॥

ग्रन्थ का नाम : चाणक्यनीतिदर्पण,  रचनाकार – आचार्य चाणक्य,   अध्याय – 11   श्लोक-  16-20

काष्ठंकल्पतरुःसुमेरुरचलश्चिंतामणिः प्रस्थरः सूर्यस्तीव्रकरः शशीक्षयकरःक्षारोहिवारांनि- धिः कामोनष्टतनुर्बलिर्दितिसुतोनित्यंपशुः कामगौः नैतांस्तेतुलयामिभोरघुपतेकस्योपमा दीयते ॥ १६ ॥

अर्थ - कल्पवृक्ष काठ है, सुमेरु अचल है, चिंतामणि पत्थर है, सूर्य की किरण अत्यंत ऊष्ण है चन्द्रमा की किरण क्षीण हो जाती है। समुद्र समुद्र खारा है काम का शरीर नहीं है बल्कि अर्थात्  दैत्य है कामधेनु सदा पशु ही है इस कारण आप के साथ इनकी तुलना नहीं दे सकते हे रघुपति ? फिर आपको किस की उपमा दी जाय ॥१६॥

kāṣṭhaṁkalpataruḥsumēruracalaściṁtāmaṇiḥ prastharaḥ sūryastīvrakaraḥ śaśīkṣayakaraḥkṣārōhivārāṁni- dhiḥ kāmōnaṣṭatanurbalirditisutōnityaṁpaśuḥ kāmagauḥ naitāṁstētulayāmibhōraghupatēkasyōpamā dīyatē ॥ 16 ॥
Meaning - Kalpavriksha is wood, Sumeru is immovable, Chintamani is stone, the sun's ray is extremely hot, the moon's ray becomes weak. The ocean is salty, it is not a body of lust, but it is a demon, Kamadhenu is always an animal, that is why we cannot compare them with you, O Raghupati? Then whose likeness should you be given?16॥

विद्यामित्रंप्रवासेचभार्यामित्रंगृहेषुच ॥ 
व्याधिस्थस्यौषधैमित्रंधर्मोमित्रंमृतस्यच। १७॥ 

अर्थ - प्रवास, में विद्या हित करती है, घर में स्त्री मित्र है, रोगग्रस्त पुरुष का हित औषधि होती है, और धर्म मरे का उपकार करता है ॥ १७ ॥

vidyāmitraṁpravāsēcabhāryāmitraṁgr̥hēṣuca ॥ 
vyādhisthasyauṣadhaimitraṁdharmōmitraṁmr̥tasyaca| 17॥ 
Meaning - Knowledge is beneficial in a journey, a woman is a friend in the home, medicine is beneficial to a sick man, and religion helps the dead. ।। 17 ॥

विनयं राजपुत्रेभ्यःपंडितेभ्यःसुभाषितंम् अनृतंद्यूतकारेभ्यःस्त्रीभ्यःशिक्षेतकैतवम्।१८।

अर्थ - सुशीलता राजा के लडकों से, प्रिय वचन पंडितों से असत्य जुआरियों से और छल स्त्रियों से सीखना चाहिये ॥ १८ ॥
 
vinayaṁ rājaputrēbhyaḥpaṁḍitēbhyaḥsubhāṣitaṁm anr̥taṁdyūtakārēbhyaḥstrībhyaḥśikṣētakaitavam|18|
Meaning - Goodness should be learned from the king's sons, loving words from wise men, falsehood from gamblers and deceitful women. ।। 18 ॥

अनालोक्यव्ययंकर्ताअनाथःकलहप्रियः ॥ 
आतुरःसर्वक्षेत्रेषुनरःशीघ्रंविनश्यति ।। १९ ॥

अर्थ - बिना बिचारे व्यय करने वाला, सहायक के न रहने पर भी कलह में प्रीति रखनेवाला और सब जाति की स्त्रियों में भोग के लिये व्याकुल होने वाला पुरुष शीघ्र ही नाश को प्राप्त होता है ॥ १६ ॥

anālōkyavyayaṁkartāanāthaḥkalahapriyaḥ ॥ 
āturaḥsarvakṣētrēṣunaraḥśīghraṁvinaśyati ॥ 19 ॥

Meaning - A man who spends without waste, who is fond of discord even when there is no helper, and who is desperate for pleasure from women of all castes, soon comes to destruction. 19 ॥

नाहारंचिंतयेत्प्राज्ञोधर्ममेकंहिचिंतयेत् ॥ 
आहारोहिमनुष्याणांजन्मनासहजायते ॥२०॥

अर्थ - पंडित को आहार की चिंता नहीं करनी चाहिये। एक धर्म को निश्चय से सोचना चाहिये, इस हेतु कि, आहार मनुष्यों को जन्म के साथ ही उत्पन्न होता है॥२०।।

nāhāraṁciṁtayētprājñōdharmamēkaṁhiciṁtayēt ॥ 
āhārōhimanuṣyāṇāṁjanmanāsahajāyatē ॥20॥

Meaning – A Pandit should not worry about diet. A religion should be thought of with determination, because food is given to humans at birth. ।।20.।।

चाणक्य की प्रसिद्धि : 

ये संस्कृत श्लोक आचार्य चाणक्य के द्वारा रचित हैं। उनका नाम कौटिल्य एवं विष्णुगुप्त के नाम से भी प्रसिद्ध है। उनकी रचनाएँ Chanakya सूत्र, chanakya niti, chanakya ni pothi, chanakya quotes, chanakya niti in hindi, chanakya quotes in hindi, चाणक्य, चाणक्य नीति,  चाणक्य नीति की 10 बातें,  चाणक्य नीति की बातें, चाणक्य के कड़वे वचन, चाणक्य नीति स्त्री, चाणक्य नीति की 100 बातें,  चाणक्य विचार इन हिंदी, चाणक्य नीति सुविचार, चाणक्य नीति जीवन जीने की, सुविचार चाणक्य के कड़वे वचन, sanskrit shlok, shlok,sanskrit, sanskrit shlok,sanskrit quotes,shlok in sanskrit, sanskrit thought, sanskrit slokas,संस्कृत श्लोक,श्लोक,छोटे संस्कृत श्लोक, आदि के रूप में चर्चित एवं प्रसिद्ध है । 

चाणक्य का कालातीत प्रभाव  :

हजारों वर्षों के उपरांत भी उनमें वही ताजगी और उपयोगिता है। अतः वे आज भी उतने ही प्रासंगिक बने हुए हैं जितने वे तब थे जब वे लिखे गये थे। संस्कृत में रचित होने के कारण उनमें कालांतर के प्रभाव को स्पष्टतः नहीं देखा जाता है क्योंकि संस्कृत भाषा का सर्वश्रेष्ठ व्याकरण उसके अस्तित्व एवं गुणवत्ता के साथ ही उसके प्रभाव कि भी सुरक्षा करता है। ये अत्यंत ज्ञानवर्धक, पठनीय एवं माननीय हैं। ये जीवन‌ के अनेक चौराहों पर हमारा मार्गदर्शन करते हैं जब सब ओर अंधकार छा जाने की प्रतीति होती है।

About Chanakya (चाणक्य के बारे में) :

 चाणक्य का प्रभाव प्राचीन भारत से परे तक फैला हुआ है, क्योंकि शासन कला और शासन पर उनके विचारों का दुनिया भर के विद्वानों और नीति निर्माताओं द्वारा अध्ययन और सम्मान किया जाता है।  राजनीति के प्रति उनका व्यावहारिक दृष्टिकोण और राज्य और उसके नागरिकों के कल्याण पर उनका जोर उन्हें एक कालातीत व्यक्ति बनाता है जिनकी बुद्धि समय और स्थान की सीमाओं से परे है।

 चाणक्यनीतिदर्पण – 12.3


चाणक्य नीति दर्पण मूलत: संस्कृत (Sanskrit) में संस्कृत सुभाषितों के रूप में, काव्यात्मक एवं श्लोकों  के रूप में लिखा हुआ ग्रंथ है। इसके रचनाकार आचार्य चाणक्य हैं। उनके ये संस्कृत श्लोक चाणक्य नीति के नाम से संसार भर में प्रसिद्ध हैं। यहां पर यह श्लोक देवनागरी लिपि एवं  रोमन लिपि में भी दिए गए हैं एवं उनके अर्थ हिंदी देवनागरी एवं अंग्रेजी में रोमन लिपि में भी दिये गये हैं। जिससे विदेशों में रहने वाले भारतीय जो देवनागरी से परिचित नहीं हैं सनातन ग्रंथों के ज्ञान से लाभान्वित हो सकें।

अथ द्वादशोऽध्यायः ॥ 12 ॥

atha dvādaśō’dhyāyaḥ ॥ 12 ॥

ग्रन्थ का नाम : चाणक्यनीतिदर्पण,  रचनाकार – आचार्य चाणक्य,   अध्याय – 12   श्लोक-  11-15
सत्यंमातापिताज्ञानं धर्मोनातादय़ासखा ॥ 
शांतिः पत्नीक्षमापुत्रः षडेतेममबांधवाः ॥११॥ 

अर्थ - सत्य मेरी माता है, और ज्ञान पिता, धर्म मेरा भाई है, और, दया मित्र, शांति मेरी स्त्री है, और क्षमा पुत्र, ये ही छः मेरे बन्धु हैं ॥ किसी संसारी पुरुष ने ज्ञानी को देखकर चकित हो पूछा कि, संसार में माता, पिता, भाई, मित्र, स्त्री, पुत्र, ये जितना ही अच्छे से अच्छे हों उतना ही संसार से आनंद होता है तुझको परम आनंद में "पूर्ण देखता हूंँ तो तुझको भी कहीं न कहीं कोई न कोई उनमें से होगा; ज्ञानी ने समझा कि, जिस दशाको देखकर यह चकित है वह दशा क्या सांसारिक कुटुम्बों से हो सकती है। इस कारण जिनसे मुझे परम आनंद होता है उन्हीं को इससे कहूंँ कदाचित् यह भी इनको स्वीकार करे ॥ ११ ॥

satyaṁmātāpitājñānaṁ dharmōnātādaya़āsakhā ॥ 
śāṁtiḥ patnīkṣamāputraḥ ṣaḍētēmamabāṁdhavāḥ ॥11॥ 
Meaning - Truth is my mother, knowledge is my father, religion is my brother, kindness is my friend, peace is my wife, and forgiveness is my son, these six are my friends. A worldly man was astonished to see the wise man and asked, "The better your mother, father, brother, friend, wife, son are in the world, the more happiness you experience in the world. When I see you complete, I feel complete." Somewhere too, there must be some one among them; the wise man thought that the condition which he is surprised to see, can he be in this condition of the worldly family. Therefore, let me tell this only to those who give me immense pleasure, perhaps they too will accept them. ॥ 11 ॥

अनित्यानिशरीराणिविभवोनैवशाश्वतः ॥ 
नित्यंसन्निहितो मृत्युः कर्तव्योधर्मसंग्रहः॥१२॥

अर्थ - शरीर अनित्य है, विभव भी सदा नहीं रहता, मृत्यु सदा निकट ही रहती है; इस कारण धर्म का संग्रह करना चाहिये ॥ १२ ॥
anityāniśarīrāṇivibhavōnaivaśāśvataḥ ॥ 
nityaṁsannihitō mr̥tyuḥ kartavyōdharmasaṁgrahaḥ॥12॥
Meaning - The body is impermanent, the power also does not last forever, death is always near; For this reason, religion should be collected. 12 ॥

निमंत्रणोत्सवाविमा गावोनवतृणोत्सवाः ॥ 
पत्युत्साहयुताभार्याअहंकृष्णरणोत्सवः॥१३॥

अर्थ - निमंत्रण ब्राह्मणों का उत्सव है, और नवीन घास गायों का उत्सव है, पति के उत्साह से स्त्रियों को उत्साह होता है, किन्तु हे कृष्ण! मेरा उत्सव है युद्ध॥१३॥

nimaṁtraṇōtsavāvimā gāvōnavatr̥ṇōtsavāḥ ॥ 
patyutsāhayutābhāryāahaṁkr̥ṣṇaraṇōtsavaḥ॥13॥

Meaning - Invitation is a festival of Brahmins, and new grass is a festival of cows, women get excited by the enthusiasm of their husbands, but O Krishna! My celebration is war॥13॥

मातृवत्परदारांश्वपरद्रव्याणिलोष्टवत् ॥ 
आत्मवत्सर्वभूतानियःपश्यतिसपश्यति ॥१४॥
or
मातृवत्परदारेषु परद्रव्याणि लोष्ठवत् ।
आत्मवत्सर्वभूतानि यः पश्यति स पंडितः ।।१४।।
अर्थ — जो मनुष्य परायी स्त्री को माता के समान समझता है, पराया धन मिट्टी के ढेले के समान मानता है और अपनी ही तरह सब प्राणियों के सुख-दुःख का अनुभव करता है, वही पण्डित है।
mātr̥vatparadārāṁśvaparadravyāṇilōṣṭavat ॥ 
ātmavatsarvabhūtāniyaḥpaśyatisapaśyati ॥14॥
or
mātr̥vatparadārēṣu paradravyāṇi lōṣṭhavat |
ātmavatsarvabhūtāni yaḥ paśyati sa paṁḍitaḥ ॥14॥
Meaning – The person who considers another's woman like a mother, considers someone else's wealth like a lump of clay and experiences the happiness and sorrow of all living beings like his own, is a wise man.

धर्मे तत्परता मुखे मधुरता दाने समुत्साहता
मित्रेऽवंचकता गुरौ विनयता चित्तेऽतिगम्भीरता ।
आचारे शुचिता गुणे रसिकता शास्त्रेषु विज्ञातृता
रूपे सुन्दरता शिवे भजनता त्वय्यस्तिभी राघवः ।।१५।।
अर्थ - धर्म में तत्परता, मुख में मधुरता, दान में उत्साहता मित्र के विषय में निशच्छलता, गुरू से नम्रता, अंतःकरण में गंभीरता, आचार में पवितत्रा गुणों में रसिकता, शास्त्रों में विशेष ज्ञान, रूप में सुन्दरता और शिवकी भक्ति, (गुरु वसिष्ठ जी रामजी से कहते हैं) हे राघव! ये सभी गुण तुम्ही मे हैं ॥ १५ ॥

dharmē tatparatā mukhē madhuratā dānē samutsāhatā
mitrē’vaṁcakatā gurau vinayatā cittē’tigambhīratā |
ācārē śucitā guṇē rasikatā śāstrēṣu vijñātr̥tā
rūpē sundaratā śivē bhajanatā tvayyastibhī rāghavaḥ ॥15॥

Meaning - Willingness in religion, sweetness of mouth, enthusiasm in charity, sincerity towards friends, humility towards Guru, seriousness in heart, interest in sacred qualities in conduct, special knowledge in scriptures, beauty in form and devotion to Shiva, (Guru Vashishtha Ji) Says to Ramji) Hey Raghav! All these qualities are in you. 15.

चाणक्य की प्रसिद्धि : 

ये संस्कृत श्लोक आचार्य चाणक्य के द्वारा रचित हैं। उनका नाम कौटिल्य एवं विष्णुगुप्त के नाम से भी प्रसिद्ध है। उनकी रचनाएँ Chanakya सूत्र, chanakya niti, chanakya ni pothi, chanakya quotes, chanakya niti in hindi, chanakya quotes in hindi, चाणक्य, चाणक्य नीति,  चाणक्य नीति की 10 बातें,  चाणक्य नीति की बातें, चाणक्य के कड़वे वचन, चाणक्य नीति स्त्री, चाणक्य नीति की 100 बातें,  चाणक्य विचार इन हिंदी, चाणक्य नीति सुविचार, चाणक्य नीति जीवन जीने की, सुविचार चाणक्य के कड़वे वचन, sanskrit shlok, shlok,sanskrit, sanskrit shlok,sanskrit quotes,shlok in sanskrit, sanskrit thought, sanskrit slokas,संस्कृत श्लोक,श्लोक,छोटे संस्कृत श्लोक, आदि के रूप में चर्चित एवं प्रसिद्ध है । 

चाणक्य का कालातीत प्रभाव  :

हजारों वर्षों के उपरांत भी उनमें वही ताजगी और उपयोगिता है। अतः वे आज भी उतने ही प्रासंगिक बने हुए हैं जितने वे तब थे जब वे लिखे गये थे। संस्कृत में रचित होने के कारण उनमें कालांतर के प्रभाव को स्पष्टतः नहीं देखा जाता है क्योंकि संस्कृत भाषा का सर्वश्रेष्ठ व्याकरण उसके अस्तित्व एवं गुणवत्ता के साथ ही उसके प्रभाव कि भी सुरक्षा करता है। ये अत्यंत ज्ञानवर्धक, पठनीय एवं माननीय हैं। ये जीवन‌ के अनेक चौराहों पर हमारा मार्गदर्शन करते हैं जब सब ओर अंधकार छा जाने की प्रतीति होती है।

About Chanakya (चाणक्य के बारे में) :

 चाणक्य का प्रभाव प्राचीन भारत से परे तक फैला हुआ है, क्योंकि शासन कला और शासन पर उनके विचारों का दुनिया भर के विद्वानों और नीति निर्माताओं द्वारा अध्ययन और सम्मान किया जाता है।  राजनीति के प्रति उनका व्यावहारिक दृष्टिकोण और राज्य और उसके नागरिकों के कल्याण पर उनका जोर उन्हें एक कालातीत व्यक्ति बनाता है जिनकी बुद्धि समय और स्थान की सीमाओं से परे है।

 चाणक्यनीतिदर्पण – 12.2

चाणक्य नीति दर्पण मूलत: संस्कृत (Sanskrit) में संस्कृत सुभाषितों के रूप में, काव्यात्मक एवं श्लोकों  के रूप में लिखा हुआ ग्रंथ है। इसके रचनाकार आचार्य चाणक्य हैं। उनके ये संस्कृत श्लोक चाणक्य नीति के नाम से संसार भर में प्रसिद्ध हैं। यहां पर यह श्लोक देवनागरी लिपि एवं  रोमन लिपि में भी दिए गए हैं एवं उनके अर्थ हिंदी देवनागरी एवं अंग्रेजी में रोमन लिपि में भी दिये गये हैं। जिससे विदेशों में रहने वाले भारतीय जो देवनागरी से परिचित नहीं हैं सनातन ग्रंथों के ज्ञान से लाभान्वित हो सकें।

अथ द्वादशोऽध्यायः ॥ 12 ॥

atha dvādaśō’dhyāyaḥ ॥ 12 ॥

ग्रन्थ का नाम : चाणक्यनीतिदर्पण,  रचनाकार – आचार्य चाणक्य,   अध्याय – 11   श्लोक-  6-10
पत्रनैवयदा करीर विटपेदोषोवसंतस्याकंनोलू 
कोप्यवलोकतेयदिदिवा सूर्यस्यकिं दूषणं ॥ 
वर्षानैवपत्तंत्तुचातकमुखेमेघस्य किं दूषणं, 
यत्पूर्वं विधिनाललाटलिखितंतन्मार्जितुं कःक्षमः ।६।

अर्थ - यदि करील के वृक्ष में पत्ते नहीं होते तो बसंत का क्या दोष है? यदि उलूक दिन में नहीं देखता तो सूर्य का क्या दोष है? वर्षा चातक के मुख में नहीं पडती इसमें मेघ का क्या अपराध है? पहले ही ब्रह्मा ने जो कुछ ललाट में लिख रखा है उसे मिटाने को कौन समर्थ है? ॥ ६ ॥

patranaivayadā karīra viṭapēdōṣōvasaṁtasyākaṁnōlū 
kōpyavalōkatēyadidivā sūryasyakiṁ dūṣaṇaṁ ॥ 
varṣānaivapattaṁttucātakamukhēmēghasya kiṁ dūṣaṇaṁ, 
yatpūrvaṁ vidhinālalāṭalikhitaṁtanmārjituṁ kaḥkṣamaḥ |6|
Meaning - If the Karil tree does not have leaves then what is the fault of spring? If the owl does not see during the day then what is the fault of the sun? What is the fault of the cloud in that the rain does not fall on Chatak's face? Who is capable of erasing whatever Brahma has already written on his forehead? ॥ 6॥


सत्संगाद्भवतिहिसाधुताखलानां साधूनांनहि- खलसंगतःखलात्वम्॥
आमोदंकुसुमभवंमृदेव धत्तेमृनंधनहिकुसुमानिधारयन्ति ॥ ७ ॥

अर्थ - निश्चय है कि, अच्छे के संग से दुर्जनों में साधुता आ जाती है परन्तु साधुओं में दुष्टों कि संगति से असाधुता नहीं आती। फूलों की सुगंध को मिट्टी ले लेती है पर मिट्टी की गंधको फूल कभी धारण नहीं करते॥७॥

satsaṁgādbhavatihisādhutākhalānāṁ sādhūnāṁnahi- khalasaṁgataḥkhalātvam॥
āmōdaṁkusumabhavaṁmr̥dēva dhattēmr̥naṁdhanahikusumānidhārayanti ॥ 7 ॥

Meaning - It is certain that the company of the good brings saintliness among the wicked, but the company of the wicked does not bring saintliness among the saints. Soil absorbs the fragrance of flowers but flowers never retain the smell of soil.7॥

साधूनांदर्शनं पुण्यंतीर्थभूताहिसाधवः ॥ 
कालेनफलतेतीर्थसद्यः साधुसमागमः ॥ ८॥

अर्थ - साधुओं का दर्शन ही पुण्य है इस कारण कि, साधु तीर्थरूप है। समय से तीर्थ फल देता है, साधुओं का संग शीघ्र ही काम कर देता है (तुरंत फलदाई है)॥ ८ ॥

sādhūnāṁdarśanaṁ puṇyaṁtīrthabhūtāhisādhavaḥ || 
kālēnaphalatētīrthasadyaḥ sādhusamāgamaḥ || 8||

Meaning - Seeing the sages is a virtue because the sage is a form of pilgrimage. Pilgrimage gives results in time, company of sages gives results soon (it is fruitful immediately). 8॥

विप्रास्मिन्नगरे महान्कथयकस्तालब्रुमाणां गणः । कोदातारजकोददातिवसनंप्रातर्ग्रही- 'त्वानिशि ॥ 
कोदक्षःपरवित्तंदारहरणेसर्वोपि 
दक्षोजनःकस्माज्जीवसिहेसखेविषकृमिन्याये नजीवाम्यहम् ॥ ९ ॥
अर्थ - हे विप्र! इस नगर में कौन बडा है ? ताड़ के पेड़ों का समुदाय, दाता कौन है ? धोबी प्रातःकाल वस्त्र लेता है रात्रि में दे देता है, चतुर कौन है? दूसरे के धन और स्त्री के हरण में सब ही कुशल हैं, तो ऐसे नगर में आप कैसे जीते हो? हे मित्र! विष का कीडा विष ही में जीता है वैसे ही मैं भी जीता हूं ॥ ९ ॥

viprāsminnagarē mahānkathayakastālabrumāṇāṁ gaṇaḥ | 
kōdātārajakōdadātivasanaṁprātargrahī- 'tvāniśi ॥ 
kōdakṣaḥparavittaṁdāraharaṇēsarvōpi 
dakṣōjanaḥkasmājjīvasihēsakhēviṣakr̥minyāyē najīvāmyaham ॥ 9 ॥

Meaning: O Vipra! Who is bigger in this city? Community of palm trees, who is the donor? The washerman takes the clothes in the morning and gives them away at night, who is the clever one? Everyone is skilled in kidnapping other people's wealth and women, so how do you survive in such a city? Hey friend! The poison worm lives in poison, in the same way I also live. ।।9॥

नविप्रपादोदककर्दमानिनवेदशास्त्रध्वनिगर्जि तानि ॥ 
स्वाहास्वधाकारविवर्जितानिश्मशान तुल्यानिगृहाणितानि ॥ १० ॥

अर्थ - जिन घरों में ब्राह्मण के पावों के जल से कीचड़ न भया हो (अर्थात जहाँ  विद्वानों का सम्मान न होता हो) और न वेदशास्त्र के शब्दों की गर्जना होती हो, और जो गृह स्वाहा स्वधा से रहित हो उनको स्मशान के समान समझना चाहिये ॥ १० ॥

naviprapādōdakakardamāninavēdaśāstradhvanigarji tāni ॥ 
svāhāsvadhākāravivarjitāniśmaśāna tulyānigr̥hāṇitāni ॥ 10 ॥
Meaning - The houses where there is no fear of mud from the feet of a Brahmin (i.e. where scholars are not respected) nor where the words of the Vedas are resounding, and which are devoid of Swaha Swadha, should be considered like a cremation ground. 10 ॥

चाणक्य की प्रसिद्धि : 

ये संस्कृत श्लोक आचार्य चाणक्य के द्वारा रचित हैं। उनका नाम कौटिल्य एवं विष्णुगुप्त के नाम से भी प्रसिद्ध है। उनकी रचनाएँ Chanakya सूत्र, chanakya niti, chanakya ni pothi, chanakya quotes, chanakya niti in hindi, chanakya quotes in hindi, चाणक्य, चाणक्य नीति,  चाणक्य नीति की 10 बातें,  चाणक्य नीति की बातें, चाणक्य के कड़वे वचन, चाणक्य नीति स्त्री, चाणक्य नीति की 100 बातें,  चाणक्य विचार इन हिंदी, चाणक्य नीति सुविचार, चाणक्य नीति जीवन जीने की, सुविचार चाणक्य के कड़वे वचन, sanskrit shlok, shlok,sanskrit, sanskrit shlok,sanskrit quotes,shlok in sanskrit, sanskrit thought, sanskrit slokas,संस्कृत श्लोक,श्लोक,छोटे संस्कृत श्लोक, आदि के रूप में चर्चित एवं प्रसिद्ध है । 

चाणक्य का कालातीत प्रभाव  :

हजारों वर्षों के उपरांत भी उनमें वही ताजगी और उपयोगिता है। अतः वे आज भी उतने ही प्रासंगिक बने हुए हैं जितने वे तब थे जब वे लिखे गये थे। संस्कृत में रचित होने के कारण उनमें कालांतर के प्रभाव को स्पष्टतः नहीं देखा जाता है क्योंकि संस्कृत भाषा का सर्वश्रेष्ठ व्याकरण उसके अस्तित्व एवं गुणवत्ता के साथ ही उसके प्रभाव कि भी सुरक्षा करता है। ये अत्यंत ज्ञानवर्धक, पठनीय एवं माननीय हैं। ये जीवन‌ के अनेक चौराहों पर हमारा मार्गदर्शन करते हैं जब सब ओर अंधकार छा जाने की प्रतीति होती है।

About Chanakya (चाणक्य के बारे में) :

 चाणक्य का प्रभाव प्राचीन भारत से परे तक फैला हुआ है, क्योंकि शासन कला और शासन पर उनके विचारों का दुनिया भर के विद्वानों और नीति निर्माताओं द्वारा अध्ययन और सम्मान किया जाता है।  राजनीति के प्रति उनका व्यावहारिक दृष्टिकोण और राज्य और उसके नागरिकों के कल्याण पर उनका जोर उन्हें एक कालातीत व्यक्ति बनाता है जिनकी बुद्धि समय और स्थान की सीमाओं से परे है।

 चाणक्यनीतिदर्पण – 12.1

चाणक्य नीति दर्पण मूलत: संस्कृत (Sanskrit) में संस्कृत सुभाषितों के रूप में, काव्यात्मक एवं श्लोकों  के रूप में लिखा हुआ ग्रंथ है। इसके रचनाकार आचार्य चाणक्य हैं। उनके ये संस्कृत श्लोक चाणक्य नीति के नाम से संसार भर में प्रसिद्ध हैं। यहां पर यह श्लोक देवनागरी लिपि एवं  रोमन लिपि में भी दिए गए हैं एवं उनके अर्थ हिंदी देवनागरी एवं अंग्रेजी में रोमन लिपि में भी दिये गये हैं। जिससे विदेशों में रहने वाले भारतीय जो देवनागरी से परिचित नहीं हैं सनातन ग्रंथों के ज्ञान से लाभान्वित हो सकें।

अथ द्वादशोऽध्यायः ॥ 12 ॥

atha dvādaśō’dhyāyaḥ ॥ 12 ॥

ग्रन्थ का नाम : चाणक्यनीतिदर्पण,  रचनाकार – आचार्य चाणक्य,   अध्याय – 12   श्लोक-  1-5
सानंदंसदनं सुतास्तुसुधियःकांताप्रियालापि- नी । इच्छापूर्तिधनंस्वयोषितिरतिःस्वाज्ञापराः सेवकाः ॥ 
आतिथ्यँशिवपूजनंप्रतिदिनं मिष्ठान्न पानंगृहे । 
साधोः संगमुपासतेचसततंधन्यो गृहस्थाश्रमः ॥ १ ॥

अर्थ - यदि आनंदयुक्त घर मिलने और लडके पंडित (अर्थात जो कुछ जानने योग्य है वह सब सामान्य और उपयोगी ज्ञान से जो युक्त हों ) हों, स्त्री मधुरभाषिणी हो, इच्छा के अनुसार धन हो अपनी ही स्त्री में रति हो, आज्ञापालक सेवक मिले, अतिथिकी सेवा और शिवकी पूजा हो प्रतिदिन गृह में मीठा अन्न और जल मिले सर्वदा साधूके सँग की उपासना, यह गृहस्थाश्रमही धन्य है ॥ १ ॥

sānaṁdaṁsadanaṁ sutāstusudhiyaḥkāṁtāpriyālāpi- nī | 
icchāpūrtidhanaṁsvayōṣitiratiḥsvājñāparāḥ sēvakāḥ ॥ 
ātithyam̐śivapūjanaṁpratidinaṁ miṣṭhānna pānaṁgr̥hē | 
sādhōḥ saṁgamupāsatēcasatataṁdhanyō gr̥hasthāśramaḥ ॥ 1 ॥
Meaning - If one gets a happy home and the boys are Pandits (i.e. those who have general and useful knowledge of all that is worth knowing), the woman is soft-spoken, one gets wealth as per one's wish, one is married to one's own wife, one gets obedient servants, the hospitality is good. There should be service and worship of Lord Shiva, there should be sweet food and water in the house every day, there should always be worship in the company of a saint, this home is blessed. 1॥

भार्तेषुविप्रेषुदयान्वितश्वयच्छ्रइयास्वल्पमुपैतिदानम् ॥ 
अनंतपारंसमुपैतिराजन्यद्दीयतेतन्न लभेद्विजेभ्यः ॥ २ ॥

अर्थ - जो दयावान् पुरुष आर्त ब्राह्मणों को श्रद्धा से थोड़ा भी दान देता है उस पुरुष को अनन्त होकर वह मिलता है, जो दिया जाता है केवल उतना ही ब्राह्मणों से नहीं मिलता है ॥ २ ॥

bhārtēṣuviprēṣudayānvitaśvayacchriyāsvalpamupaitidānam ॥ 
anaṁtapāraṁsamupaitirājanyaddīyatētanna labhēdvijēbhyaḥ ॥ 2 ॥

Meaning - The kind man who gives even a little donation to the Brahmins with devotion, gets what he gets infinitely, what is given is not the same amount that is received from the Brahmins. 2॥

दाक्षिण्यंस्वजनेदयापरजने शाठ्यं सदादुर्जने, 
प्रीतिः साधुजने नयोनृपजनेविद्वजने चार्ज- वम् ॥ 
सौर्यशत्रुजने क्षमागुरुजनेनारीजने धूर्तता, 
इत्थंयेपुरुषाः कलासुक्कुशलास्तेष्वेव लोकस्थितिः ॥ ३ ॥

अर्थ - अपने जनों में दाक्षिण्य (अपनेपन से सहायता का भाव), दूसरे जन में दया, दुर्जन में सदा दुष्टता (कठोर आचरण), साधुजन में प्रीति, राजाओं के प्रति नीति का आचरण, विद्वानों से सरलता, शत्रुजन में शूरता, बड़े लोगों के विषय से क्षमा, स्त्री से काम पडने पर धूर्तता, इस प्रकार से जो लोग कला में कुशल होते हैं उन्हीं में लोक की मर्यादा रहती है ॥ ३ ॥

dākṣiṇyaṁsvajanēdayāparajanē śāṭhyaṁ sadādurjanē, 
prītiḥ sādhujanē nayōnr̥pajanēvidvajanē cārja- vam ॥ 
sauryaśatrujanē kṣamāgurujanēnārījanē dhūrtatā, 
itthaṁyēpuruṣāḥ kalāsukkuśalāstēṣvēva lōkasthitiḥ ॥ 3 ॥

Meaning - Dakshinya (feeling of helping oneself through one's belonging) among one's own people, kindness towards others, always wickedness (harsh conduct) among the wicked, love among the saints, ethical behavior towards the kings, simplicity towards the scholars, bravery towards the enemies, respect for the big people. Forgiveness in matters, cunningness in dealing with women, only those who are skilled in this art maintain the dignity of the people. ।।3॥

हस्तौदानविवर्जितौ श्रुतिपुटौसारस्वतद्रोहिणौ नेत्रेसाधुविलोकनेनरहितेपादौनतीर्थंगतौ ॥ 
अन्यायार्जितवित्तपूर्ण मुदरंवर्गेण तुगंशिगे 
रेरे जम्बुकमुंच मुंचसइसानीचंसुनिंयंवपुः ॥४॥
अर्थ - हाथ दान रहित है, कान वेदशात्र के विरोधी हैं, नेत्रों ने साधु का दर्शन नहीं किया, पांव ने तीर्थगमन नहीं किया, अन्याय से अर्जित धन से उदर भरा है और गर्वसे शिर ऊंचा हो रहा है। रे रे सियार ऐसे नीच निंद्य शरीर को शीघ्र छोड ॥ ४ ॥

hastaudānavivarjitau śrutipuṭausārasvatadrōhiṇau nētrēsādhuvilōkanēnarahitēpādaunatīrthaṁgatau ॥ 
anyāyārjitavittapūrṇa mudaraṁvargēṇa tugaṁśigē 
rērē jambukamuṁca muṁcasisānīcaṁsuniṁyaṁvapuḥ ॥4॥

Meaning - The hands are devoid of charity, the ears are against the Vedas, the eyes have not seen the sage, the feet have not gone on pilgrimage, the stomach is filled with wealth acquired unjustly and the head is held high with pride. Hey jackal, leave such a despicable body quickly. 4॥

येशांश्रीमद्यशोदासुतपदकमले नास्तिभक्ति र्नराणां, येषांमाभीरक़न्याप्रियगुणकथनेनानु रक्तारसंज्ञा ॥ 
येशांश्रीकृष्णलीलाललितरस कथासादरौनैवकर्णी, 
धिक्तान् धिकृतान् धिगेतान्कथयति सततं कीर्तनस्थो मृदंगः॥५॥

अर्थ - श्री यशोदा सुत के पदकमल में जिन लोगों की भक्ति नहीं रहती, जिन लोगों की जीभ अहीर की कन्याओं के  प्रिय के अर्थात् श्रीकृष्ण के गुणगान में प्रीति नहीं रखती, और श्री कृष्णजी की लीला की ललित - कथा का आदर जिनके कान नहीं करते उन लोगों को धिक् है ऐसा कीर्तन का मृदंग सदा कहता है ॥ ५ ॥

yēśāṁśrīmadyaśōdāsutapadakamalē nāstibhakti rnarāṇāṁ, 
yēṣāṁmābhīraक़nyāpriyaguṇakathanēnānu raktārasaṁjñā ॥ 
yēśāṁśrīkr̥ṣṇalīlālalitarasa kathāsādaraunaivakarṇī,
dhiktān dhikr̥tān dhigētānkathayati satataṁ kīrtanasthō mr̥daṁgaḥ॥5॥

Meaning - Those people who do not have devotion in the Padkamal of Shri Yashoda Sut, those people whose tongue does not love the praises of the beloved of Ahir's daughters i.e. Shri Krishna, and whose ears do not respect the beautiful story of Shri Krishnaji's Leela. Woe to the people, the Mridang of Kirtan always says this. 5॥

चाणक्य की प्रसिद्धि : 

ये संस्कृत श्लोक आचार्य चाणक्य के द्वारा रचित हैं। उनका नाम कौटिल्य एवं विष्णुगुप्त के नाम से भी प्रसिद्ध है। उनकी रचनाएँ Chanakya सूत्र, chanakya niti, chanakya ni pothi, chanakya quotes, chanakya niti in hindi, chanakya quotes in hindi, चाणक्य, चाणक्य नीति,  चाणक्य नीति की 10 बातें,  चाणक्य नीति की बातें, चाणक्य के कड़वे वचन, चाणक्य नीति स्त्री, चाणक्य नीति की 100 बातें,  चाणक्य विचार इन हिंदी, चाणक्य नीति सुविचार, चाणक्य नीति जीवन जीने की, सुविचार चाणक्य के कड़वे वचन, sanskrit shlok, shlok,sanskrit, sanskrit shlok,sanskrit quotes,shlok in sanskrit, sanskrit thought, sanskrit slokas,संस्कृत श्लोक,श्लोक,छोटे संस्कृत श्लोक, आदि के रूप में चर्चित एवं प्रसिद्ध है । 

चाणक्य का कालातीत प्रभाव  :

हजारों वर्षों के उपरांत भी उनमें वही ताजगी और उपयोगिता है। अतः वे आज भी उतने ही प्रासंगिक बने हुए हैं जितने वे तब थे जब वे लिखे गये थे। संस्कृत में रचित होने के कारण उनमें कालांतर के प्रभाव को स्पष्टतः नहीं देखा जाता है क्योंकि संस्कृत भाषा का सर्वश्रेष्ठ व्याकरण उसके अस्तित्व एवं गुणवत्ता के साथ ही उसके प्रभाव कि भी सुरक्षा करता है। ये अत्यंत ज्ञानवर्धक, पठनीय एवं माननीय हैं। ये जीवन‌ के अनेक चौराहों पर हमारा मार्गदर्शन करते हैं जब सब ओर अंधकार छा जाने की प्रतीति होती है।

About Chanakya (चाणक्य के बारे में) :

 चाणक्य का प्रभाव प्राचीन भारत से परे तक फैला हुआ है, क्योंकि शासन कला और शासन पर उनके विचारों का दुनिया भर के विद्वानों और नीति निर्माताओं द्वारा अध्ययन और सम्मान किया जाता है।  राजनीति के प्रति उनका व्यावहारिक दृष्टिकोण और राज्य और उसके नागरिकों के कल्याण पर उनका जोर उन्हें एक कालातीत व्यक्ति बनाता है जिनकी बुद्धि समय और स्थान की सीमाओं से परे है।

 चाणक्यनीतिदर्पण – 11.4

चाणक्य नीति दर्पण मूलत: संस्कृत (Sanskrit) में संस्कृत सुभाषितों के रूप में, काव्यात्मक एवं श्लोकों  के रूप में लिखा हुआ ग्रंथ है। इसके रचनाकार आचार्य चाणक्य हैं। उनके ये संस्कृत श्लोक चाणक्य नीति के नाम से संसार भर में प्रसिद्ध हैं। यहां पर यह श्लोक देवनागरी लिपि एवं  रोमन लिपि में भी दिए गए हैं एवं उनके अर्थ हिंदी देवनागरी एवं अंग्रेजी में रोमन लिपि में भी दिये गये हैं। जिससे विदेशों में रहने वाले भारतीय जो देवनागरी से परिचित नहीं हैं सनातन ग्रंथों के ज्ञान से लाभान्वित हो सकें।

अथैकादशोऽध्यायः ॥ 11 ॥

athaikādaśō’dhyāyaḥ ॥ 11 ॥

ग्रन्थ का नाम : चाणक्यनीतिदर्पण,  रचनाकार – आचार्य चाणक्य,   अध्याय – 11   श्लोक-  16-18

वापीकूपतडागानामारामसुरवेश्मनाम् ॥ 
उच्छेदनेनिराशंक:सविप्रोम्लेच्छउच्यते ।१६।

अर्थ - बावड़ी, कुंआ, तालाब, वाटिका, देवालय, इसके उच्छेद करने में जो निडर हो वह ब्राह्मण म्लेच्छ कहा जाता है ॥ १६ ॥

vāpīkūpataḍāgānāmārāmasuravēśmanām ॥ 
ucchēdanēnirāśaṁka:saviprōmlēcchucyatē |16|
Meaning - One who is fearless in cleaning a stepwell, well, pond, garden, temple, etc. is called a Brahmin Mlechchha(too much sinner). 16 ॥

देवद्रव्यंगुरुद्रव्यंपरदाराभिमर्शनम् ॥ 
निर्वाहः सर्वभूतेषुविप्रश्चांडालउच्यते ॥ १७॥

अर्थ - देवता का द्रव्य और गुरू का द्रव्य जो हरता है और परस्त्री से संग करता है और सब प्राणियों में निर्वाह कर लेता है वह विप्र चांडाल कहलाता है।॥१७॥ 

dēvadravyaṁgurudravyaṁparadārābhimarśanam ॥ 
nirvāhaḥ sarvabhūtēṣuvipraścāṁḍālucyatē ॥ 17॥
Meaning - The substance of the deity and the substance of the Guru who loses and has intercourse with another woman and subsists in all living beings is called Vipra Chandal.॥17॥

देयंभोज्यधनंधनं सुकृतिभिनोसंचयस्तस्यवै । श्रीकर्णस्बवलेश्वविक्चमपतेरद्यापिकीर्तिःस्थि ता ॥ 
अस्माकं मधुदानभोगरहितंनष्टंचिरात्सं चितं । निर्वाणादितिनैजपादयुगलंघर्षंत्यहोम क्षिकाः ॥ १८ ॥

अर्थ - सुकृतियों (सत्कर्म में रत) को चाहिये कि, भोगयोग्य धन को और द्रव्य को देवें कभी न संचें।  कर्ण, बलि, विक्रमादित्य इन राजाओं की कीर्ति इस समय पर्यन्त वर्तमान है, दान भोग से रहित बहुत दिन से संचित हमारे लोगों का मधु नष्ट हो गया।  निश्चय है कि, मधु मखियाँ मधु के नाश होने के कारण दोनों पैरों को घिसा करती हैं ॥ १८ ॥
dēyaṁbhōjyadhanaṁdhanaṁ sukr̥tibhinōsaṁcayastasyavai | śrīkarṇasbavalēśvavikcamapatēradyāpikīrtiḥsthi tā ॥ 
asmākaṁ madhudānabhōgarahitaṁnaṣṭaṁcirātsaṁ citaṁ | nirvāṇāditinaijapādayugalaṁgharṣaṁtyahōma kṣikāḥ ॥ 18 ॥
Meaning - Those doing good deeds (engaged in good deeds) should give away the money that can be enjoyed and never hoard it. The fame of these kings Karna, Bali, Vikramaditya is still present, the honey of our people accumulated for many days without charity and enjoyment has been destroyed. It is certain that honey bees wear out both their legs due to loss of honey. 18 ॥
॥ इति वृद्धचाणक्ये एकादशोऽध्याय ॥11॥
॥ iti vr̥ddhacāṇakyē ēkādaśō’dhyāya ॥11॥

चाणक्य की प्रसिद्धि : 

ये संस्कृत श्लोक आचार्य चाणक्य के द्वारा रचित हैं। उनका नाम कौटिल्य एवं विष्णुगुप्त के नाम से भी प्रसिद्ध है। उनकी रचनाएँ Chanakya सूत्र, chanakya niti, chanakya ni pothi, chanakya quotes, chanakya niti in hindi, chanakya quotes in hindi, चाणक्य, चाणक्य नीति,  चाणक्य नीति की 10 बातें,  चाणक्य नीति की बातें, चाणक्य के कड़वे वचन, चाणक्य नीति स्त्री, चाणक्य नीति की 100 बातें,  चाणक्य विचार इन हिंदी, चाणक्य नीति सुविचार, चाणक्य नीति जीवन जीने की, सुविचार चाणक्य के कड़वे वचन, sanskrit shlok, shlok,sanskrit, sanskrit shlok,sanskrit quotes,shlok in sanskrit, sanskrit thought, sanskrit slokas,संस्कृत श्लोक,श्लोक,छोटे संस्कृत श्लोक, आदि के रूप में चर्चित एवं प्रसिद्ध है । 

चाणक्य का कालातीत प्रभाव  :

हजारों वर्षों के उपरांत भी उनमें वही ताजगी और उपयोगिता है। अतः वे आज भी उतने ही प्रासंगिक बने हुए हैं जितने वे तब थे जब वे लिखे गये थे। संस्कृत में रचित होने के कारण उनमें कालांतर के प्रभाव को स्पष्टतः नहीं देखा जाता है क्योंकि संस्कृत भाषा का सर्वश्रेष्ठ व्याकरण उसके अस्तित्व एवं गुणवत्ता के साथ ही उसके प्रभाव कि भी सुरक्षा करता है। ये अत्यंत ज्ञानवर्धक, पठनीय एवं माननीय हैं। ये जीवन‌ के अनेक चौराहों पर हमारा मार्गदर्शन करते हैं जब सब ओर अंधकार छा जाने की प्रतीति होती है।

About Chanakya (चाणक्य के बारे में) :

 चाणक्य का प्रभाव प्राचीन भारत से परे तक फैला हुआ है, क्योंकि शासन कला और शासन पर उनके विचारों का दुनिया भर के विद्वानों और नीति निर्माताओं द्वारा अध्ययन और सम्मान किया जाता है।  राजनीति के प्रति उनका व्यावहारिक दृष्टिकोण और राज्य और उसके नागरिकों के कल्याण पर उनका जोर उन्हें एक कालातीत व्यक्ति बनाता है जिनकी बुद्धि समय और स्थान की सीमाओं से परे है।

 चाणक्यनीतिदर्पण – 11.2

चाणक्य नीति दर्पण मूलत: संस्कृत (Sanskrit) में संस्कृत सुभाषितों के रूप में, काव्यात्मक एवं श्लोकों  के रूप में लिखा हुआ ग्रंथ है। इसके रचनाकार आचार्य चाणक्य हैं। उनके ये संस्कृत श्लोक चाणक्य नीति के नाम से संसार भर में प्रसिद्ध हैं। यहां पर यह श्लोक देवनागरी लिपि एवं  रोमन लिपि में भी दिए गए हैं एवं उनके अर्थ हिंदी देवनागरी एवं अंग्रेजी में रोमन लिपि में भी दिये गये हैं। जिससे विदेशों में रहने वाले भारतीय जो देवनागरी से परिचित नहीं हैं सनातन ग्रंथों के ज्ञान से लाभान्वित हो सकें।

अथैकादशोऽध्यायः ॥ 11 ॥

athaikādaśō’dhyāyaḥ ॥ 11 ॥

ग्रन्थ का नाम : चाणक्यनीतिदर्पण,  रचनाकार – आचार्य चाणक्य,   अध्याय – 11   श्लोक-  6-10
नदुर्जनः साधुदशामुपैतिबहुप्रकारैरपिशिक्ष्य माणः।। 
आमूलसिक्तःपयसा घृतेनननिंबवृक्षा मधुरत्वमेति ॥ ६ ॥

अर्थ - निश्चय है कि, दुर्जन अनेक प्रकार से सिखलाया भी जाय, पर उसमें साधुता नहीं आती। जिस प्रकार दूध और घी से पल्लव पर्यंत नीम का वृक्ष सींचा जाय पर उसमें मधुरता नहीं आती ॥ ६ ॥

nadurjanaḥ sādhudaśāmupaitibahuprakārairapiśikṣya māṇaḥ॥ 
āmūlasiktaḥpayasā ghr̥tēnananiṁbavr̥kṣā madhuratvamēti ॥ 6 ॥
Meaning - It is true that even if a wicked person is taught in many ways, he does not attain sainthood. Just as a Neem tree 🌴 is watered with milk and ghee till the end of its leaf 🌿, it does not yield sweetness. 6॥


अन्तर्गतमलोदुष्टस्तीर्थस्नानशतैरपि ॥ 
नशुद्ध्यतितथा भांडंसुरायादा हितंचयत् ॥ ७ ॥

अर्थ - जिसके हृदय में पाप है वही दुष्ट है; वह तीर्थ में सौ बार स्नान से भी शुद्ध नहीं होता, जैसे मदिरा का पात्र जल से धोया जाय तो भी (उससे शराब की गंध नहीं जाती अर्थात् वह अशुद्ध ही रहता है) शुद्ध नहीं होता ॥ ७ ॥ i

antargatamalōduṣṭastīrthasnānaśatairapi ॥ 
naśuddhyatitathā bhāṁḍaṁsurāyādā hitaṁcayat ॥ 7 ॥

Meaning - The one who has sin in his heart is evil; It does not become pure even by bathing a hundred times in a pilgrimage, just as even if a wine vessel is washed with water (the smell of wine does not go away from it, that is, it remains impure), it does not become pure. 7 ॥ 

नवेत्तियोयस्यगुणप्रकर्षंसतंसद निन्दतिनात्र चित्रम् ॥ 
यथाकिरातीकरिकुंभलव्धांमुक्तांपरि त्यज्यविभर्तिगुंजाम् ॥ ८ ॥

अर्थ - जो जिसके गुण की प्रकर्षता नहीं जानता वह निरंतर उसकी निंदा करता है, जैसे सिल्लिनी हाथी के मस्तक के मोती को छोड़ घुंघुची को पहनती है ॥ ८ ॥

navēttiyōyasyaguṇaprakarṣaṁsataṁsada nindatinātra citram ॥ 
yathākirātīkarikuṁbhalavdhāṁmuktāṁpari tyajyavibhartiguṁjām ॥ 8 ॥

Meaning - One who does not know the excellence of his qualities, he constantly criticizes him, just as Sillini leaves the pearl on the elephant's head and wears the anklets. 8॥

येतुसंवत्सरं पूर्णनित्यंमौनेनझुंजते ॥ 
युगकोटिसहसँतै पूज्यंते स्वर्गविष्टपे ॥ ९ ॥

अर्थ - जो वर्ष भर नित्य चुपचाप भोजन करता है वह सहस्रकोटि युगलों स्वर्गलोक में पूजा जाता है॥६॥ 

yētusaṁvatsaraṁ pūrṇanityaṁmaunēnajhuṁjatē ॥ 
yugakōṭisahasam̐tai pūjyaṁtē svargaviṣṭapē ॥ 9 ॥
Meaning: He who eats quietly daily throughout the year is worshiped in the heavenly world by thousands of crores of pairs.


कामक्रोधौतथा लोभंस्वादुशृंगारकौतुके ॥ 
अतिनिद्रातिसेवेचविद्यार्थीह्यष्टवर्जयेत् ॥१०॥

अर्थ - काम, क्रोध, लोभ, मीठी वस्तु, शृंगार, खेल, अति निद्रा और अतिसेवा इन आठों को विद्यार्थी (जिसे विद्या का अर्जन करना हो वे अपना मुख्य ध्येय विद्या का अर्जन करें) छोड़ देवें ॥ १० ॥

kāmakrōdhautathā lōbhaṁsvāduśr̥ṁgārakautukē ॥ 
atinidrātisēvēcavidyārthīhyaṣṭavarjayēt ॥10॥
Meaning - The student should give up these eight things (lust, anger, greed, sweet things, make-up, play, excessive sleep and excessive service) (those who want to acquire knowledge should make the acquisition of knowledge their main aim). 10 ॥

चाणक्य की प्रसिद्धि : 

ये संस्कृत श्लोक आचार्य चाणक्य के द्वारा रचित हैं। उनका नाम कौटिल्य एवं विष्णुगुप्त के नाम से भी प्रसिद्ध है। उनकी रचनाएँ Chanakya सूत्र, chanakya niti, chanakya ni pothi, chanakya quotes, chanakya niti in hindi, chanakya quotes in hindi, चाणक्य, चाणक्य नीति,  चाणक्य नीति की 10 बातें,  चाणक्य नीति की बातें, चाणक्य के कड़वे वचन, चाणक्य नीति स्त्री, चाणक्य नीति की 100 बातें,  चाणक्य विचार इन हिंदी, चाणक्य नीति सुविचार, चाणक्य नीति जीवन जीने की, सुविचार चाणक्य के कड़वे वचन, sanskrit shlok, shlok,sanskrit, sanskrit shlok,sanskrit quotes,shlok in sanskrit, sanskrit thought, sanskrit slokas,संस्कृत श्लोक,श्लोक,छोटे संस्कृत श्लोक, आदि के रूप में चर्चित एवं प्रसिद्ध है । 

चाणक्य का कालातीत प्रभाव  :

हजारों वर्षों के उपरांत भी उनमें वही ताजगी और उपयोगिता है। अतः वे आज भी उतने ही प्रासंगिक बने हुए हैं जितने वे तब थे जब वे लिखे गये थे। संस्कृत में रचित होने के कारण उनमें कालांतर के प्रभाव को स्पष्टतः नहीं देखा जाता है क्योंकि संस्कृत भाषा का सर्वश्रेष्ठ व्याकरण उसके अस्तित्व एवं गुणवत्ता के साथ ही उसके प्रभाव कि भी सुरक्षा करता है। ये अत्यंत ज्ञानवर्धक, पठनीय एवं माननीय हैं। ये जीवन‌ के अनेक चौराहों पर हमारा मार्गदर्शन करते हैं जब सब ओर अंधकार छा जाने की प्रतीति होती है।

About Chanakya (चाणक्य के बारे में) :

 चाणक्य का प्रभाव प्राचीन भारत से परे तक फैला हुआ है, क्योंकि शासन कला और शासन पर उनके विचारों का दुनिया भर के विद्वानों और नीति निर्माताओं द्वारा अध्ययन और सम्मान किया जाता है।  राजनीति के प्रति उनका व्यावहारिक दृष्टिकोण और राज्य और उसके नागरिकों के कल्याण पर उनका जोर उन्हें एक कालातीत व्यक्ति बनाता है जिनकी बुद्धि समय और स्थान की सीमाओं से परे है।

 चाणक्यनीतिदर्पण – 11.1

चाणक्य नीति दर्पण मूलत: संस्कृत (Sanskrit) में संस्कृत सुभाषितों के रूप में, काव्यात्मक एवं श्लोकों  के रूप में लिखा हुआ ग्रंथ है। इसके रचनाकार आचार्य चाणक्य हैं। उनके ये संस्कृत श्लोक चाणक्य नीति के नाम से संसार भर में प्रसिद्ध हैं। यहां पर यह श्लोक देवनागरी लिपि एवं  रोमन लिपि में भी दिए गए हैं एवं उनके अर्थ हिंदी देवनागरी एवं अंग्रेजी में रोमन लिपि में भी दिये गये हैं। जिससे विदेशों में रहने वाले भारतीय जो देवनागरी से परिचित नहीं हैं सनातन ग्रंथों के ज्ञान से लाभान्वित हो सकें।

अथैकादशोऽध्यायः ॥ 11 ॥

athaikādaśō’dhyāyaḥ ॥ 11 ॥



दात्तृत्वंप्रियवक्तृत्वंधीरत्वमुचितज्ञता ॥ 
अभ्यासेननलभ्यन्तेचत्वारःसहजागुणाः।१।

अर्थ - उदारता, प्रिय बोलना, धीरता और उचित का ज्ञान ये अभ्यास से नहीं मिलते, ये चारों स्वभाविक गुण हैं ॥ १ ॥

dāttr̥tvaṁpriyavaktr̥tvaṁdhīratvamucitajñatā ॥ 
abhyāsēnanalabhyantēcatvāraḥsahajāguṇāḥ|1|
Meaning - Generosity, loving speech, patience and knowledge of what is right are not acquired by practice, these four are natural qualities. 1॥

आत्मवर्गपरित्यज्यपरवर्गसमाश्रयेत् ॥ 
स्वयमेवलयंयातियथाराज्यजन्यधर्मतः ॥२॥

अर्थ - जो अपनी मण्डली को छोड परके वर्ग का आश्रय लेता है वह आप ही लय को प्राप्त हो जाता  है जैसे राजाके राज्य अधर्म से ॥ २ ॥

ātmavargaparityajyaparavargasamāśrayēt ॥ 
svayamēvalayaṁyātiyathārājyajanyadharmataḥ ॥2॥
Meaning - One who leaves his own group and takes shelter in a foreign society, automatically attains Laya(Dilution in it), just as a king's kingdom is freed from unrighteousness. 2॥

हस्ती स्थूलतनुः सचांकुशवशःकिंइस्तिमात्रौंऽ कुशोदीपप्रज्वलितेप्रणश्यतितमः किंदीपमात्रं तमः ॥ 
वत्रेणापिहताःपतन्तिगिरयः किंवज्ज मात्रन्नगाः तेजोयस्यविराजते सवलवानूस्थू लेषुकःप्रत्ययः ॥ ३ ॥

अर्थ - हाथी का स्थूल शरीर है वह भी अंकुश के वश रहता है, तो क्या हस्ती के समान अंकुश है? दीप के जलने पर अंधकार आप ही नष्ट हो जाता है, तो क्या अप (प्रकाश) के तुल्य तम है? विजली के मारे पर्वत गिर जाते हैं तो क्या बिजली पर्वत के समान है? जिसमें तेज विराजमान रहता है वह बलवान् गिना जाता है मोटे का कौन विश्वास है ॥ ३ ॥

hastī sthūlatanuḥ sacāṁkuśavaśaḥkiṁistimātrauṁ’ kuśōdīpaprajvalitēpraṇaśyatitamaḥ kiṁdīpamātraṁ tamaḥ ॥ 
vatrēṇāpihatāḥpatantigirayaḥ kiṁvajja mātrannagāḥ tējōyasyavirājatē savalavānūsthū lēṣukaḥpratyayaḥ ॥ 3 ॥

Meaning - An elephant has a thick body and remains under the control of the reins, so does it have the same reins as an elephant? When the lamp is lit, darkness itself gets destroyed, so is Tama equal to Ap (light)? If mountains fall due to lightning, then is lightning like a mountain? The one in whom glory resides is considered strong. What is the faith of the fat man? 3॥

कलौदशसहस्राणिहरिस्त्यजतिमेदिनीम् ॥ 
तदईं जाह्नवीतोयंतदर्द्धंग्रामदेवताः ॥ ४ ॥

अर्थ - कलियुग में दशसहस्त्रवर्ष के बीतने पर विष्णु पृथ्वी को छोड़ देते हैं उसके आधे पर गंगाजी जल को, तिसके आधेके बीतने पर ग्राम देवता ग्रामको ॥ ४ ॥

kalaudaśasahasrāṇiharistyajatimēdinīm ॥ 
tadīṁ jāhnavītōyaṁtadarddhaṁgrāmadēvatāḥ ॥ 4 ॥

Meaning - After the passage of ten thousand years in Kaliyuga, Vishnu leaves the earth, half of it to the water of Ganga, and after the passage of half of the same, the village deity leaves the village. 4॥

गृहासक्तस्यनेोविद्या नोदयामांसभोजनः ! 
द्रव्यलुब्धस्यनोसत्यं स्त्रैणस्यनपवित्रता ॥५॥

अर्थ - गृह में आसक्त पुरुषों को विद्या, मांस के आहारी को दया, द्रव्य लोभी को सत्यता, और व्यभिचारी को पवित्रता, नहीं होती है ॥ ५ ॥

gr̥hāsaktasyanēōvidyā nōdayāmāṁsabhōjanaḥ ! 
dravyalubdhasyanōsatyaṁ straiṇasyanapavitratā ॥5॥

Meaning - Those who are attached to the house do not have knowledge, those who eat meat do not have mercy, those who are greedy for money do not have truthfulness and those who are adulterers do not have purity. ॥ 5 ॥
ग्रन्थ का नाम : चाणक्यनीतिदर्पण,  रचनाकार – आचार्य चाणक्य,   अध्याय – 11   श्लोक-  1-5

चाणक्य की प्रसिद्धि : 

ये संस्कृत श्लोक आचार्य चाणक्य के द्वारा रचित हैं। उनका नाम कौटिल्य एवं विष्णुगुप्त के नाम से भी प्रसिद्ध है। उनकी रचनाएँ Chanakya सूत्र, chanakya niti, chanakya ni pothi, chanakya quotes, chanakya niti in hindi, chanakya quotes in hindi, चाणक्य, चाणक्य नीति,  चाणक्य नीति की 10 बातें,  चाणक्य नीति की बातें, चाणक्य के कड़वे वचन, चाणक्य नीति स्त्री, चाणक्य नीति की 100 बातें,  चाणक्य विचार इन हिंदी, चाणक्य नीति सुविचार, चाणक्य नीति जीवन जीने की, सुविचार चाणक्य के कड़वे वचन, sanskrit shlok, shlok,sanskrit, sanskrit shlok,sanskrit quotes,shlok in sanskrit, sanskrit thought, sanskrit slokas,संस्कृत श्लोक,श्लोक,छोटे संस्कृत श्लोक, आदि के रूप में चर्चित एवं प्रसिद्ध है । 

चाणक्य का कालातीत प्रभाव  :

हजारों वर्षों के उपरांत भी उनमें वही ताजगी और उपयोगिता है। अतः वे आज भी उतने ही प्रासंगिक बने हुए हैं जितने वे तब थे जब वे लिखे गये थे। संस्कृत में रचित होने के कारण उनमें कालांतर के प्रभाव को स्पष्टतः नहीं देखा जाता है क्योंकि संस्कृत भाषा का सर्वश्रेष्ठ व्याकरण उसके अस्तित्व एवं गुणवत्ता के साथ ही उसके प्रभाव कि भी सुरक्षा करता है। ये अत्यंत ज्ञानवर्धक, पठनीय एवं माननीय हैं। ये जीवन‌ के अनेक चौराहों पर हमारा मार्गदर्शन करते हैं जब सब ओर अंधकार छा जाने की प्रतीति होती है।

About Chanakya (चाणक्य के बारे में) :

 चाणक्य का प्रभाव प्राचीन भारत से परे तक फैला हुआ है, क्योंकि शासन कला और शासन पर उनके विचारों का दुनिया भर के विद्वानों और नीति निर्माताओं द्वारा अध्ययन और सम्मान किया जाता है।  राजनीति के प्रति उनका व्यावहारिक दृष्टिकोण और राज्य और उसके नागरिकों के कल्याण पर उनका जोर उन्हें एक कालातीत व्यक्ति बनाता है जिनकी बुद्धि समय और स्थान की सीमाओं से परे है।


 चाणक्यनीतिदर्पण – 10.4

चाणक्य नीति दर्पण मूलत: संस्कृत (Sanskrit) में संस्कृत सुभाषितों के रूप में, काव्यात्मक एवं श्लोकों  के रूप में लिखा हुआ ग्रंथ है। इसके रचनाकार आचार्य चाणक्य हैं। उनके ये संस्कृत श्लोक चाणक्य नीति के नाम से संसार भर में प्रसिद्ध हैं। यहां पर यह श्लोक देवनागरी लिपि एवं  रोमन लिपि में भी दिए गए हैं एवं उनके अर्थ हिंदी देवनागरी एवं अंग्रेजी में रोमन लिपि में भी दिये गये हैं। जिससे विदेशों में रहने वाले भारतीय जो देवनागरी से परिचित नहीं हैं सनातन ग्रंथों के ज्ञान से लाभान्वित हो सकें।

अथ दशमोऽध्यायः ॥ 10 ॥

atha daśamō’dhyāyaḥ ॥ 10 ॥

ग्रन्थ का नाम : चाणक्यनीतिदर्पण,  रचनाकार – आचार्य चाणक्य,   अध्याय – 10   श्लोक-  16-20

चाणक्य की प्रसिद्धि : 

ये संस्कृत श्लोक आचार्य चाणक्य के द्वारा रचित हैं। उनका नाम कौटिल्य एवं विष्णुगुप्त के नाम से भी प्रसिद्ध है। उनकी रचनाएँ Chanakya सूत्र, chanakya niti, chanakya ni pothi, chanakya quotes, chanakya niti in hindi, chanakya quotes in hindi, चाणक्य, चाणक्य नीति,  चाणक्य नीति की 10 बातें,  चाणक्य नीति की बातें, चाणक्य के कड़वे वचन, चाणक्य नीति स्त्री, चाणक्य नीति की 100 बातें,  चाणक्य विचार इन हिंदी, चाणक्य नीति सुविचार, चाणक्य नीति जीवन जीने की, सुविचार चाणक्य के कड़वे वचन, sanskrit shlok, shlok,sanskrit, sanskrit shlok,sanskrit quotes,shlok in sanskrit, sanskrit thought, sanskrit slokas,संस्कृत श्लोक,श्लोक,छोटे संस्कृत श्लोक, आदि के रूप में चर्चित एवं प्रसिद्ध है । 

चाणक्य का कालातीत प्रभाव  :

हजारों वर्षों के उपरांत भी उनमें वही ताजगी और उपयोगिता है। अतः वे आज भी उतने ही प्रासंगिक बने हुए हैं जितने वे तब थे जब वे लिखे गये थे। संस्कृत में रचित होने के कारण उनमें कालांतर के प्रभाव को स्पष्टतः नहीं देखा जाता है क्योंकि संस्कृत भाषा का सर्वश्रेष्ठ व्याकरण उसके अस्तित्व एवं गुणवत्ता के साथ ही उसके प्रभाव कि भी सुरक्षा करता है। ये अत्यंत ज्ञानवर्धक, पठनीय एवं माननीय हैं। ये जीवन‌ के अनेक चौराहों पर हमारा मार्गदर्शन करते हैं जब सब ओर अंधकार छा जाने की प्रतीति होती है।

About Chanakya (चाणक्य के बारे में) :

 चाणक्य का प्रभाव प्राचीन भारत से परे तक फैला हुआ है, क्योंकि शासन कला और शासन पर उनके विचारों का दुनिया भर के विद्वानों और नीति निर्माताओं द्वारा अध्ययन और सम्मान किया जाता है।  राजनीति के प्रति उनका व्यावहारिक दृष्टिकोण और राज्य और उसके नागरिकों के कल्याण पर उनका जोर उन्हें एक कालातीत व्यक्ति बनाता है जिनकी बुद्धि समय और स्थान की सीमाओं से परे है।

 चाणक्यनीतिदर्पण – 10.3

चाणक्य नीति दर्पण मूलत: संस्कृत (Sanskrit) में संस्कृत सुभाषितों के रूप में, काव्यात्मक एवं श्लोकों  के रूप में लिखा हुआ ग्रंथ है। इसके रचनाकार आचार्य चाणक्य हैं। उनके ये संस्कृत श्लोक चाणक्य नीति के नाम से संसार भर में प्रसिद्ध हैं। यहां पर यह श्लोक देवनागरी लिपि एवं  रोमन लिपि में भी दिए गए हैं एवं उनके अर्थ हिंदी देवनागरी एवं अंग्रेजी में रोमन लिपि में भी दिये गये हैं। जिससे विदेशों में रहने वाले भारतीय जो देवनागरी से परिचित नहीं हैं सनातन ग्रंथों के ज्ञान से लाभान्वित हो सकें।

अथ दशमोऽध्यायः ॥ 10 ॥

atha daśamō’dhyāyaḥ ॥ 10 ॥


आप्तद्वेषाद्भवेनमृत्युःपरद्वेषा जनक्षयः ॥ 
राजद्वेषाद्भवेन्नाशोब्रह्मद्वेषात्कुलक्षयः ॥११॥

अर्थ -  बड़ों के द्वेष से मृत्यु होती है शत्रु से विरोध करने से धन का क्षय है, राजा के द्वेष से नाश और ब्राह्मण के द्वेष से कुल का क्षय होता है ॥ ११ ॥

āptadvēṣādbhavēnamr̥tyuḥparadvēṣā janakṣayaḥ ॥ 
rājadvēṣādbhavēnnāśōbrahmadvēṣātkulakṣayaḥ ॥11॥

Meaning - Hatred of elders leads to death, opposition to the enemy leads to loss of wealth, hatred of the king leads to destruction and hatred of a Brahmin leads to loss of the family. 11 ॥

वरंवनेव्याघ्रगजेंद्रसेवितेदुमालयेपत्रफलाबुसे- वनम् ॥ 
तृणेषुशय्याशतजीर्णवल्कलंनबंधु मध्येधनहीनजीवनम् ॥ १२ ॥

अर्थ - वन में बाघ और बड़े-२ हाथियों से सेवित वृक्ष के नीचे उनके पत्ते फल खाना, व जल का पीना, घास पर सोना, सौ टुकड़े किए बकलों को पहिनना ये श्रेष्ठ है; पर बंधुओं के मध्य में धनहीन का जीना श्रेष्ठ नहीं है ॥ १२ ॥

varaṁvanēvyāghragajēṁdrasēvitēdumālayēpatraphalābusē- vanam ॥ 
tr̥ṇēṣuśayyāśatajīrṇavalkalaṁnabaṁdhu madhyēdhanahīnajīvanam ॥ 12 ॥
Meaning - It is best to be under the trees in the forest, served by tigers and big elephants, eat their leaves, fruits, drink water, sleep on the grass, wear buckles cut into a hundred pieces; But it is not best for a moneyless person to live among his brothers. 12 ॥

विप्रोवृक्षस्तस्यमूलंचसंध्यावेदाः शाखाधर्मक र्माणिपत्रम् ॥ 
तस्मान्मूलंयत्नतोरक्षणीयंछिन्ने मूलेनैवशाखानपत्रम् ॥ १३ ॥

अर्थ - ब्राह्मण वृक्ष है, उसकी जड़ संध्या है, वेद शाखा है, और धर्म के कर्म पत्ते हैं, इस कारण प्रयत्न कर के जड़ की रक्षा करनी चाहिये, जड़ कट जाने पर न शाखा रहेगी और न पत्ते ॥ १३ ॥

viprōvr̥kṣastasyamūlaṁcasaṁdhyāvēdāḥ śākhādharmaka rmāṇipatram ॥ 
tasmānmūlaṁyatnatōrakṣaṇīyaṁchinnē mūlēnaivaśākhānapatram ॥ 13 ॥

Meaning - Brahmin is a tree, its root is Sandhya, Veda is the branch, and the deeds of religion are the leaves, hence one should try and protect the root, if the root is cut, neither the branch nor the leaves will remain. 13 ॥

माताचकमलादेवीपितादेवोजनार्दनः ॥ 
बांधवा विष्णुभक्ताश्वस्वदेशोभुवनत्रयम् ।१४।

अर्थ - जिसकी लक्ष्मी माता है और विष्णु भगवान् पिता हैं और विष्णु के भक्त बांधव हैं उसको तीनों लोक स्वदेश ही हैं ॥ १४ ॥

mātācakamalādēvīpitādēvōjanārdanaḥ ॥ 
bāṁdhavā viṣṇubhaktāśvasvadēśōbhuvanatrayam |14|

Meaning - One who has Lakshmi as his mother and Lord Vishnu as his father and has devotees of Vishnu as his relatives, all the three worlds are his homeland. 14 ॥

एकवृक्षसमारूढानानावर्णाविहंगमाः ॥ 
प्रभातेदिक्षुदशसुयांतिका परिवेदना ॥ १५ ॥

अर्थ - नाना प्रकार के पखेरू एक वृक्ष पर बैठते हैं प्रभात समय दशों दिशाओं में चले जाते हैं उसमें क्या वेदना या दुख है ॥ १५ ॥

ēkavr̥kṣasamārūḍhānānāvarṇāvihaṁgamāḥ ॥ 
prabhātēdikṣudaśasuyāṁtikā parivēdanā ॥ 15 ॥
Meaning - Different types of birds sit on a tree in the morning and go in ten directions. What pain or sorrow is there in that? 15.
ग्रन्थ का नाम : चाणक्यनीतिदर्पण,  रचनाकार – आचार्य चाणक्य,   अध्याय – 9   श्लोक-  11-15

चाणक्य की प्रसिद्धि : 

ये संस्कृत श्लोक आचार्य चाणक्य के द्वारा रचित हैं। उनका नाम कौटिल्य एवं विष्णुगुप्त के नाम से भी प्रसिद्ध है। उनकी रचनाएँ Chanakya सूत्र, chanakya niti, chanakya ni pothi, chanakya quotes, chanakya niti in hindi, chanakya quotes in hindi, चाणक्य, चाणक्य नीति,  चाणक्य नीति की 10 बातें,  चाणक्य नीति की बातें, चाणक्य के कड़वे वचन, चाणक्य नीति स्त्री, चाणक्य नीति की 100 बातें,  चाणक्य विचार इन हिंदी, चाणक्य नीति सुविचार, चाणक्य नीति जीवन जीने की, सुविचार चाणक्य के कड़वे वचन, sanskrit shlok, shlok,sanskrit, sanskrit shlok,sanskrit quotes,shlok in sanskrit, sanskrit thought, sanskrit slokas,संस्कृत श्लोक,श्लोक,छोटे संस्कृत श्लोक, आदि के रूप में चर्चित एवं प्रसिद्ध है । 

चाणक्य का कालातीत प्रभाव  :

हजारों वर्षों के उपरांत भी उनमें वही ताजगी और उपयोगिता है। अतः वे आज भी उतने ही प्रासंगिक बने हुए हैं जितने वे तब थे जब वे लिखे गये थे। संस्कृत में रचित होने के कारण उनमें कालांतर के प्रभाव को स्पष्टतः नहीं देखा जाता है क्योंकि संस्कृत भाषा का सर्वश्रेष्ठ व्याकरण उसके अस्तित्व एवं गुणवत्ता के साथ ही उसके प्रभाव कि भी सुरक्षा करता है। ये अत्यंत ज्ञानवर्धक, पठनीय एवं माननीय हैं। ये जीवन‌ के अनेक चौराहों पर हमारा मार्गदर्शन करते हैं जब सब ओर अंधकार छा जाने की प्रतीति होती है।

About Chanakya (चाणक्य के बारे में) :

 चाणक्य का प्रभाव प्राचीन भारत से परे तक फैला हुआ है, क्योंकि शासन कला और शासन पर उनके विचारों का दुनिया भर के विद्वानों और नीति निर्माताओं द्वारा अध्ययन और सम्मान किया जाता है।  राजनीति के प्रति उनका व्यावहारिक दृष्टिकोण और राज्य और उसके नागरिकों के कल्याण पर उनका जोर उन्हें एक कालातीत व्यक्ति बनाता है जिनकी बुद्धि समय और स्थान की सीमाओं से परे है।

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