चाणक्य नीति दर्पण मूलत: संस्कृत (Sanskrit) में संस्कृत सुभाषितों के रूप में, काव्यात्मक एवं श्लोकों के रूप में लिखा हुआ ग्रंथ है। इसके रचनाकार आचार्य चाणक्य हैं। उनके ये संस्कृत श्लोक चाणक्य नीति के नाम से संसार भर में प्रसिद्ध हैं। यहां पर यह श्लोक देवनागरी लिपि एवं रोमन लिपि में भी दिए गए हैं एवं उनके अर्थ हिंदी देवनागरी एवं अंग्रेजी में रोमन लिपि में भी दिये गये हैं। जिससे विदेशों में रहने वाले भारतीय जो देवनागरी से परिचित नहीं हैं सनातन ग्रंथों के ज्ञान से लाभान्वित हो सकें।
अथ सप्तदशोऽध्याय प्रारंभः ॥ 17 ॥
atha saptadaśō’dhyāya prāraṁbhaḥ ॥ 17 ॥
ग्रन्थ का नाम : चाणक्यनीतिदर्पण, रचनाकार – आचार्य चाणक्य, अध्याय – 17 श्लोक- 16-21
परोपकारांयेषाजा गतिहृदयेसताम् ॥ नश्यंतिविपद्रस्तेषासंपदः स्युःपदेपदे ॥ १६ ॥ अर्थ - जिन सज्जनों के हृदय में परोपकार जाग्रत है उनकी विपत्ति नष्ट हो जाती है और पद पद में संपत्ति प्राप्त होती है ॥ १६ ॥ parōpakārāṁyēṣājā gatihr̥dayēsatām ॥ naśyaṁtivipadrastēṣāsaṁpadaḥ syuḥpadēpadē ॥ 16 ॥ Meaning - Those gentlemen who have charity in their hearts, their troubles are destroyed and they get wealth at every step. ॥ 16 ॥ आहारनिद्राभयमैथुनानि समानिचैतानिनृणा पशूनाम् ॥ ज्ञानंनराणामधिकोविशेषोज्ञानेन हीनाः पशुभिःसमानाः ॥ १७ ॥ अर्थ - भोजन, निद्रा, भय मैथुन ये मनुष्य और पशुओं के समान ही हैं मनुष्यों को केवल ज्ञान अधिक विशेष है ज्ञान से रहित नर पशु के समान है ।॥१७॥ āhāranidrābhayamaithunāni samānicaitāninr̥ṇā paśūnām ॥ jñānaṁnarāṇāmadhikōviśēṣōjñānēna hīnāḥ paśubhiḥsamānāḥ ॥ 17 ॥ Meaning - Food, sleep, fear, sex, these are the same as humans and animals, only knowledge is more special for humans, a man without knowledge is like an animal.॥17॥ दानार्थिनोमधुकरायदिकर्णतालै दूरीकृताःक-रिवरेणमदान्धबुड्या ॥ तस्यैव गण्डयुगमण्डनहानिरेषाश्रृंगाःपुनर्विकचपद्मवनेवसंति ॥१८॥ अर्थ - यदि मदान्ध गजराज ने गजमद के अर्थी भौंरों को मदांधता से कर्ण के तालों से दूर किया तो यह उसी के दोनों गण्डस्थलकी शोभा कि हानि भई, भौंरे फिर विकसित कमल बन में बसते हैं ॥। ८॥ तात्पर्य यह है कि, यदि किसी निर्गुण मदांध राजा व धनी के निकट कोई गुणी जा पडे उस समय सदान्धों को गुणी का आदर न करना मानों अपनी लक्ष्मी की शोभा की हानि करनी है काल निरवधि है और पृथ्वी अनंत है गुणीका आदर कहीं न कहीं किसी समय होगा ही।। dānārthinōmadhukarāyadikarṇatālai dūrīkr̥tāḥka-rivarēṇamadāndhabuḍyā ॥ tasyaiva gaṇḍayugamaṇḍanahānirēṣāśrr̥ṁgāḥpunarvikacapadmavanēvasaṁti ॥18॥ Meaning - If the inebriated Gajraj removed the gajmad's meaning bumblebees from Karna's locks out of his inebriation, then it would be a loss of beauty of both his Gandsthals, the bumblebees would then settle in the blossoming lotus. ।।8॥ The meaning is that, if a virtuous person comes near a virtuous king or a rich man, at that time the virtuous people should not respect the virtuous person, it would be like harming the beauty of his Goddess Lakshmi. Time is infinite and the earth is infinite. Respect for the virtuous person is somewhere or the other at some time. It will definitely happen. वेश्यायमश्चाग्निस्तस्करोबालयाचकौ ॥ परदुःखंनजानंतिअष्टमोग्रामकंटकः ॥ १९॥ अर्थ - राजा, वेश्या, यम, अग्नि, चोर, बालक, याचक और आठवां ग्रामकंटक अर्थात् ग्रामनिवासियों को पीडा देकर अपना निर्वाह करनेवाला ये दूसरों के दुःख को नहीं जानते हैं ॥ 19 ॥ vēśyāyamaścāgnistaskarōbālayācakau ॥ paraduḥkhaṁnajānaṁtiaṣṭamōgrāmakaṁṭakaḥ ॥ 19॥ Meaning - The king, the prostitute, Yama, Agni, the thief, the child, the beggar and the eighth village Kantak i.e. the one who earns his living by giving pain to the villagers, they do not know the sorrow of others. ।। 19 ॥ अधःपश्यसि किंवाले पतितंतवकिंसुवि ॥ रेरेमूर्खनजानासि गतंतारुण्यमौक्तिकम्॥२०॥ अर्थ - हे बाला ! तू नीचे क्यों देखती है पृथ्वी पर तेरा क्या गिर पडा है तब स्त्रीने कहा अरे मूर्ख तू नहीं जानता कि, मेरा तरुणता रूप मोती चला गया॥२०॥ adhaḥpaśyasi kiṁvālē patitaṁtavakiṁsuvi ॥ rērēmūrkhanajānāsi gataṁtāruṇyamauktikam॥20॥ Meaning- Hey girl! Why do you look down, what has fallen on the earth? Then the woman said, O fool, don't you know that the pearl of my youth is gone? व्यालाश्रया पिविफला पिसकंटकापिवक्रा पिपं किलभवापिदुरासदापि ॥ गन्धेनबन्धुरसिकेत- क्किसर्वजंतोःएकोगुणःखटुनिहंतिसमस्तदोषान् ॥ 17.21 ॥ अर्थ - हे केतकी ! यद्यपि तू सांँपों का घर है, विफल है, तुझमें कांटे भी हैं टेढी है कीचड में तेरी उत्याच है और तू दुःख से मिलती-जुलती है तथापि एक गंध गुण से सब प्राणियों की बन्धु हो रही है। निश्चय है कि, एक भी गुण दोषों का नाश कर देता है ॥ २१ ॥ vyālāśrayā piviphalā pisakaṁṭakāpivakrā pipaṁ kilabhavāpidurāsadāpi ॥ gandhēnabandhurasikēta- kkisarvajaṁtōḥēkōguṇaḥkhaṭunihaṁtisamastadōṣān Meaning - Hey Ketaki! Although you are the house of snakes, you are unsuccessful, you also have thorns, you are crooked, you are in the mud and you resemble sorrow, yet by one smell quality you are binding all the living beings, it is certain that by destroying even a single quality, gives . ।। 17.21 ॥ इतिश्रीवृद्धचाणक्यनीतिदर्पण सप्तदशोऽध्यायः ॥ १७ ॥ itiśrīvr̥ddhacāṇakyanītidarpaṇa saptadaśō’dhyāyaḥ ॥ 17 ॥ इति श्री चाणक्यनीतिदपर्णःभाषाअर्थ - सहितो समाप्ता ॥ iti śrī cāṇakyanītidaparṇaḥbhāṣāartha - sahitō samāptā ॥
चाणक्य की प्रसिद्धि :
ये संस्कृत श्लोक आचार्य चाणक्य के द्वारा रचित हैं। उनका नाम कौटिल्य एवं विष्णुगुप्त के नाम से भी प्रसिद्ध है। उनकी रचनाएँ Chanakya सूत्र, chanakya niti, chanakya ni pothi, chanakya quotes, chanakya niti in hindi, chanakya quotes in hindi, चाणक्य, चाणक्य नीति, चाणक्य नीति की 10 बातें, चाणक्य नीति की बातें, चाणक्य के कड़वे वचन, चाणक्य नीति स्त्री, चाणक्य नीति की 100 बातें, चाणक्य विचार इन हिंदी, चाणक्य नीति सुविचार, चाणक्य नीति जीवन जीने की, सुविचार चाणक्य के कड़वे वचन, sanskrit shlok, shlok,sanskrit, sanskrit shlok,sanskrit quotes,shlok in sanskrit, sanskrit thought, sanskrit slokas,संस्कृत श्लोक,श्लोक,छोटे संस्कृत श्लोक, आदि के रूप में चर्चित एवं प्रसिद्ध है ।
चाणक्य का कालातीत प्रभाव :
हजारों वर्षों के उपरांत भी उनमें वही ताजगी और उपयोगिता है। अतः वे आज भी उतने ही प्रासंगिक बने हुए हैं जितने वे तब थे जब वे लिखे गये थे। संस्कृत में रचित होने के कारण उनमें कालांतर के प्रभाव को स्पष्टतः नहीं देखा जाता है क्योंकि संस्कृत भाषा का सर्वश्रेष्ठ व्याकरण उसके अस्तित्व एवं गुणवत्ता के साथ ही उसके प्रभाव कि भी सुरक्षा करता है। ये अत्यंत ज्ञानवर्धक, पठनीय एवं माननीय हैं। ये जीवन के अनेक चौराहों पर हमारा मार्गदर्शन करते हैं जब सब ओर अंधकार छा जाने की प्रतीति होती है।
About Chanakya (चाणक्य के बारे में) :
चाणक्य का प्रभाव प्राचीन भारत से परे तक फैला हुआ है, क्योंकि शासन कला और शासन पर उनके विचारों का दुनिया भर के विद्वानों और नीति निर्माताओं द्वारा अध्ययन और सम्मान किया जाता है। राजनीति के प्रति उनका व्यावहारिक दृष्टिकोण और राज्य और उसके नागरिकों के कल्याण पर उनका जोर उन्हें एक कालातीत व्यक्ति बनाता है जिनकी बुद्धि समय और स्थान की सीमाओं से परे है।