Category: चाणक्‍य नीति दर्पण -Chanakya Niti Darpana (Page 1 of 7)

 चाणक्यनीतिदर्पण – 17.4

चाणक्य नीति दर्पण मूलत: संस्कृत (Sanskrit) में संस्कृत सुभाषितों के रूप में, काव्यात्मक एवं श्लोकों  के रूप में लिखा हुआ ग्रंथ है। इसके रचनाकार आचार्य चाणक्य हैं। उनके ये संस्कृत श्लोक चाणक्य नीति के नाम से संसार भर में प्रसिद्ध हैं। यहां पर यह श्लोक देवनागरी लिपि एवं  रोमन लिपि में भी दिए गए हैं एवं उनके अर्थ हिंदी देवनागरी एवं अंग्रेजी में रोमन लिपि में भी दिये गये हैं। जिससे विदेशों में रहने वाले भारतीय जो देवनागरी से परिचित नहीं हैं सनातन ग्रंथों के ज्ञान से लाभान्वित हो सकें।

अथ सप्तदशोऽध्याय प्रारंभः ॥ 17 ॥

atha saptadaśō’dhyāya prāraṁbhaḥ ॥ 17 ॥

ग्रन्थ का नाम : चाणक्यनीतिदर्पण,  रचनाकार – आचार्य चाणक्य,   अध्याय – 17   श्लोक-  16-21
परोपकारांयेषाजा गतिहृदयेसताम् ॥ 
नश्यंतिविपद्रस्तेषासंपदः स्युःपदेपदे ॥ १६ ॥

अर्थ - जिन सज्जनों के हृदय में परोपकार जाग्रत है उनकी विपत्ति नष्ट हो जाती है और पद पद में संपत्ति प्राप्त होती है ॥ १६ ॥

parōpakārāṁyēṣājā gatihr̥dayēsatām ॥ 
naśyaṁtivipadrastēṣāsaṁpadaḥ syuḥpadēpadē ॥ 16 ॥
Meaning - Those gentlemen who have charity in their hearts, their troubles are destroyed and they get wealth at every step. ॥ 16 ॥

आहारनिद्राभयमैथुनानि समानिचैतानिनृणा पशूनाम् ॥ 
ज्ञानंनराणामधिकोविशेषोज्ञानेन हीनाः पशुभिःसमानाः ॥ १७ ॥

अर्थ - भोजन, निद्रा, भय मैथुन ये मनुष्य और पशुओं के समान ही हैं मनुष्यों को केवल ज्ञान अधिक विशेष है ज्ञान से रहित नर पशु के समान है ।॥१७॥

āhāranidrābhayamaithunāni samānicaitāninr̥ṇā paśūnām ॥ 
jñānaṁnarāṇāmadhikōviśēṣōjñānēna hīnāḥ paśubhiḥsamānāḥ ॥ 17 ॥

Meaning - Food, sleep, fear, sex, these are the same as humans and animals, only knowledge is more special for humans, a man without knowledge is like an animal.॥17॥

दानार्थिनोमधुकरायदिकर्णतालै दूरीकृताःक-रिवरेणमदान्धबुड्या ॥ 
तस्यैव गण्डयुगमण्डनहानिरेषाश्रृंगाःपुनर्विकचपद्मवनेवसंति ॥१८॥

अर्थ - यदि मदान्ध गजराज ने गजमद के अर्थी भौंरों को मदांधता से कर्ण के तालों से दूर किया तो यह उसी के दोनों गण्डस्थलकी शोभा कि हानि भई, भौंरे फिर विकसित कमल बन में बसते हैं ॥। ८॥ 
तात्पर्य यह है कि, यदि किसी निर्गुण मदांध राजा व धनी के निकट कोई गुणी जा पडे उस समय सदान्धों को गुणी का आदर न करना मानों अपनी लक्ष्मी की शोभा की हानि करनी है काल निरवधि है और पृथ्वी अनंत है गुणीका आदर कहीं न कहीं किसी समय होगा ही।।
 
dānārthinōmadhukarāyadikarṇatālai dūrīkr̥tāḥka-rivarēṇamadāndhabuḍyā ॥ 
tasyaiva gaṇḍayugamaṇḍanahānirēṣāśrr̥ṁgāḥpunarvikacapadmavanēvasaṁti ॥18॥

Meaning - If the inebriated Gajraj removed the gajmad's meaning bumblebees from Karna's locks out of his inebriation, then it would be a loss of beauty of both his Gandsthals, the bumblebees would then settle in the blossoming lotus. ।।8॥
The meaning is that, if a virtuous person comes near a virtuous king or a rich man, at that time the virtuous people should not respect the virtuous person, it would be like harming the beauty of his Goddess Lakshmi. Time is infinite and the earth is infinite. Respect for the virtuous person is somewhere or the other at some time. It will definitely happen.

वेश्यायमश्चाग्निस्तस्करोबालयाचकौ ॥ 
परदुःखंनजानंतिअष्टमोग्रामकंटकः ॥ १९॥ 
अर्थ - राजा, वेश्या, यम, अग्नि, चोर, बालक, याचक और आठवां ग्रामकंटक अर्थात् ग्रामनिवासियों को पीडा देकर अपना निर्वाह करनेवाला ये दूसरों के दुःख को नहीं जानते हैं ॥ 19 ॥

vēśyāyamaścāgnistaskarōbālayācakau ॥ 
paraduḥkhaṁnajānaṁtiaṣṭamōgrāmakaṁṭakaḥ ॥ 19॥ 

Meaning - The king, the prostitute, Yama, Agni, the thief, the child, the beggar and the eighth village Kantak i.e. the one who earns his living by giving pain to the villagers, they do not know the sorrow of others. ।। 19 ॥

अधःपश्यसि किंवाले पतितंतवकिंसुवि ॥ 
रेरेमूर्खनजानासि गतंतारुण्यमौक्तिकम्॥२०॥

अर्थ - हे बाला ! तू नीचे क्यों देखती है पृथ्वी पर तेरा क्या गिर पडा है तब स्त्रीने कहा अरे मूर्ख तू नहीं जानता कि, मेरा तरुणता रूप मोती चला गया॥२०॥

adhaḥpaśyasi kiṁvālē patitaṁtavakiṁsuvi ॥ 
rērēmūrkhanajānāsi gataṁtāruṇyamauktikam॥20॥

Meaning- Hey girl! Why do you look down, what has fallen on the earth? Then the woman said, O fool, don't you know that the pearl of my youth is gone?

व्यालाश्रया पिविफला पिसकंटकापिवक्रा पिपं किलभवापिदुरासदापि ॥ गन्धेनबन्धुरसिकेत- क्किसर्वजंतोःएकोगुणःखटुनिहंतिसमस्तदोषान् ॥ 17.21 ॥

अर्थ - हे केतकी ! यद्यपि तू सांँपों का घर है, विफल है, तुझमें कांटे भी हैं टेढी है कीचड में तेरी उत्याच है और तू दुःख से मिलती-जुलती है तथापि एक गंध गुण से सब प्राणियों की बन्धु हो रही है। निश्चय है कि, एक भी गुण दोषों का नाश कर देता है ॥ २१ ॥

vyālāśrayā piviphalā pisakaṁṭakāpivakrā pipaṁ kilabhavāpidurāsadāpi ॥ gandhēnabandhurasikēta- kkisarvajaṁtōḥēkōguṇaḥkhaṭunihaṁtisamastadōṣān

Meaning - Hey Ketaki! Although you are the house of snakes, you are unsuccessful, you also have thorns, you are crooked, you are in the mud and you resemble sorrow, yet by one smell quality you are binding all the living beings, it is certain that by destroying even a single quality, gives . ।। 17.21 ॥


इतिश्रीवृद्धचाणक्यनीतिदर्पण सप्तदशोऽध्यायः ॥ १७ ॥
itiśrīvr̥ddhacāṇakyanītidarpaṇa saptadaśō’dhyāyaḥ ॥ 17 ॥

इति श्री चाणक्यनीतिदपर्णःभाषाअर्थ -  सहितो समाप्ता ॥
iti śrī cāṇakyanītidaparṇaḥbhāṣāartha -  sahitō samāptā ॥

चाणक्य की प्रसिद्धि : 

ये संस्कृत श्लोक आचार्य चाणक्य के द्वारा रचित हैं। उनका नाम कौटिल्य एवं विष्णुगुप्त के नाम से भी प्रसिद्ध है। उनकी रचनाएँ Chanakya सूत्र, chanakya niti, chanakya ni pothi, chanakya quotes, chanakya niti in hindi, chanakya quotes in hindi, चाणक्य, चाणक्य नीति,  चाणक्य नीति की 10 बातें,  चाणक्य नीति की बातें, चाणक्य के कड़वे वचन, चाणक्य नीति स्त्री, चाणक्य नीति की 100 बातें,  चाणक्य विचार इन हिंदी, चाणक्य नीति सुविचार, चाणक्य नीति जीवन जीने की, सुविचार चाणक्य के कड़वे वचन, sanskrit shlok, shlok,sanskrit, sanskrit shlok,sanskrit quotes,shlok in sanskrit, sanskrit thought, sanskrit slokas,संस्कृत श्लोक,श्लोक,छोटे संस्कृत श्लोक, आदि के रूप में चर्चित एवं प्रसिद्ध है । 

चाणक्य का कालातीत प्रभाव  :

हजारों वर्षों के उपरांत भी उनमें वही ताजगी और उपयोगिता है। अतः वे आज भी उतने ही प्रासंगिक बने हुए हैं जितने वे तब थे जब वे लिखे गये थे। संस्कृत में रचित होने के कारण उनमें कालांतर के प्रभाव को स्पष्टतः नहीं देखा जाता है क्योंकि संस्कृत भाषा का सर्वश्रेष्ठ व्याकरण उसके अस्तित्व एवं गुणवत्ता के साथ ही उसके प्रभाव कि भी सुरक्षा करता है। ये अत्यंत ज्ञानवर्धक, पठनीय एवं माननीय हैं। ये जीवन‌ के अनेक चौराहों पर हमारा मार्गदर्शन करते हैं जब सब ओर अंधकार छा जाने की प्रतीति होती है।

About Chanakya (चाणक्य के बारे में) :

 चाणक्य का प्रभाव प्राचीन भारत से परे तक फैला हुआ है, क्योंकि शासन कला और शासन पर उनके विचारों का दुनिया भर के विद्वानों और नीति निर्माताओं द्वारा अध्ययन और सम्मान किया जाता है।  राजनीति के प्रति उनका व्यावहारिक दृष्टिकोण और राज्य और उसके नागरिकों के कल्याण पर उनका जोर उन्हें एक कालातीत व्यक्ति बनाता है जिनकी बुद्धि समय और स्थान की सीमाओं से परे है।

 चाणक्यनीतिदर्पण – 17.3

चाणक्य नीति दर्पण मूलत: संस्कृत (Sanskrit) में संस्कृत सुभाषितों के रूप में, काव्यात्मक एवं श्लोकों  के रूप में लिखा हुआ ग्रंथ है। इसके रचनाकार आचार्य चाणक्य हैं। उनके ये संस्कृत श्लोक चाणक्य नीति के नाम से संसार भर में प्रसिद्ध हैं। यहां पर यह श्लोक देवनागरी लिपि एवं  रोमन लिपि में भी दिए गए हैं एवं उनके अर्थ हिंदी देवनागरी एवं अंग्रेजी में रोमन लिपि में भी दिये गये हैं। जिससे विदेशों में रहने वाले भारतीय जो देवनागरी से परिचित नहीं हैं सनातन ग्रंथों के ज्ञान से लाभान्वित हो सकें।

अथ सप्तदशोऽध्याय प्रारंभः ॥ 17 ॥

atha saptadaśō’dhyāya prāraṁbhaḥ ॥ 17 ॥

ग्रन्थ का नाम : चाणक्यनीतिदर्पण,  रचनाकार – आचार्य चाणक्य,   अध्याय – 17   श्लोक-  11-15

पादशेषंपीतशेषं संध्याशेषंतथैवच ॥ 
श्वानमूत्रसमंतोयं पीत्वाचांद्रायणंचरेत् ॥११॥

अर्थ - पांव धोने से जो जल बचता है, और पीने से जो जल बचता है और सन्ध्या करने पर जो अवशिष्ट जल है वह कुत्ते के मूत्र के समान है उसको पी लेने पर चांद्रायण व्रत करना चाहिये ॥11॥

pādaśēṣaṁpītaśēṣaṁ saṁdhyāśēṣaṁtathaivaca ॥ 
śvānamūtrasamaṁtōyaṁ pītvācāṁdrāyaṇaṁcarēt ॥11॥

Meaning - The water that is left after washing the feet, and the water that is left after drinking and the residual water in the evening is like dog's urine, after drinking it one should observe Chandrayaan fast.11॥

दानेन पाणिर्नतुकंकणेनस्नानेनशुद्धिर्नतुचंदनेन ॥ 
मानेनतृप्तिर्नतुभोजनेनज्ञानेन मुक्तिर्न तुमंडनेन ॥ १२ ॥

अर्थ - दान से हाथ शोभता है कंकंण से नहीं, स्नान से शरीर शुद्ध होता है चन्दन से नहीं, सम्मान से तृप्ति होती है भोजन से नहीं, ज्ञान से मुक्ति होती है, छापर तिलकादि भूषण से नहीं ॥ १२ ॥

dānēna pāṇirnatukaṁkaṇēnasnānēnaśuddhirnatucaṁdanēna ॥ 
mānēnatr̥ptirnatubhōjanēnajñānēna muktirna tumaṁḍanēna ॥ 12 ॥

Meaning - Hands are beautified by charity, not by bangles, body is purified by bathing, not by sandalwood, satisfaction is achieved by honour, not by food, liberation is achieved by knowledge, not by printing, tilak, etc. ।। 12 ॥

नापितस्यगृहेक्षौरं पाषाणेगंधलेपनम् ॥ 
आत्मरूपंजलेपश्यन्शक्रस्यापिश्रियंहरेत् ॥ १३ ॥

अर्थ - नाईं के घर पर बाल बनवाने वाले, पत्थर पर से लेकर चन्दन लेपन करने वाला, अपने रूप को पानी में देखने वाला इन्द्रभी हो तो उसकी लक्ष्मी को हर लेते हैं ॥ 13 ॥

nāpitasyagr̥hēkṣauraṁ pāṣāṇēgaṁdhalēpanam ॥ 
ātmarūpaṁjalēpaśyanśakrasyāpiśriyaṁharēt ॥ 13 ॥

Meaning - Even if Indra is the one who gets hair done at the barber's house, who applies sandalwood paste on stones, who sees his form in water, then we take away his Lakshmi. ॥13॥

सद्यःप्रज्ञाहरातुंडी सद्यःप्रज्ञांकरीवचा ॥ 
सद्यःशक्तिहरानारी सद्यःशक्तिकरं पयः॥१४॥

अर्थ - कुंदरू शीघ्र ही बुद्धि हर लेता है और बच (वचा एक वनस्पति औषधि है) झटपट बुद्धि देती है। स्त्री तुरंत ही शक्ति हर लेती है दूध शीघ्र ही बली कर देता है ॥ १४ ॥

sadyaḥprajñāharātuṁḍī sadyaḥprajñāṁkarīvacā ॥ 
sadyaḥśaktiharānārī sadyaḥśaktikaraṁ payaḥ॥14॥

Meaning - Kundru quickly takes away intelligence and Bach (Vacha is a vegetable medicine) gives quick intelligence. The woman immediately takes away her strength and the milk soon sacrifices her. ।। 14 ॥

यदिरामायदिरमा यदितनयोविनंथगुणोपेतः ॥ 
तनयेतनयोत्पत्तिःसुरवर नगरेकिमाधिक्यसं ॥ 15॥ 

अर्थ - यदि कांता है, यदि लक्ष्मी वर्तमान है, यदि पुत्र सुशीलता गुण से युक्त है, और पुत्र के पुत्र की उत्पचि हुई हो, फिर देवलोक में इससे अधिक क्या है ? ॥ १५ ॥

yadirāmāyadiramā yaditanayōvinaṁthaguṇōpētaḥ ॥ 
tanayētanayōtpattiḥsuravara nagarēkimādhikyasaṁ ॥ 15॥ 

Meaning - If there is Kanta, if Lakshmi is present, if the son is blessed with good qualities, and if the son's son has originated, then what is more than this in the world of gods ( The habitats of the heaven or swarga called devta) ? , ।।15.।।

चाणक्य की प्रसिद्धि : 

ये संस्कृत श्लोक आचार्य चाणक्य के द्वारा रचित हैं। उनका नाम कौटिल्य एवं विष्णुगुप्त के नाम से भी प्रसिद्ध है। उनकी रचनाएँ Chanakya सूत्र, chanakya niti, chanakya ni pothi, chanakya quotes, chanakya niti in hindi, chanakya quotes in hindi, चाणक्य, चाणक्य नीति,  चाणक्य नीति की 10 बातें,  चाणक्य नीति की बातें, चाणक्य के कड़वे वचन, चाणक्य नीति स्त्री, चाणक्य नीति की 100 बातें,  चाणक्य विचार इन हिंदी, चाणक्य नीति सुविचार, चाणक्य नीति जीवन जीने की, सुविचार चाणक्य के कड़वे वचन, sanskrit shlok, shlok,sanskrit, sanskrit shlok,sanskrit quotes,shlok in sanskrit, sanskrit thought, sanskrit slokas,संस्कृत श्लोक,श्लोक,छोटे संस्कृत श्लोक, आदि के रूप में चर्चित एवं प्रसिद्ध है । 

चाणक्य का कालातीत प्रभाव  :

हजारों वर्षों के उपरांत भी उनमें वही ताजगी और उपयोगिता है। अतः वे आज भी उतने ही प्रासंगिक बने हुए हैं जितने वे तब थे जब वे लिखे गये थे। संस्कृत में रचित होने के कारण उनमें कालांतर के प्रभाव को स्पष्टतः नहीं देखा जाता है क्योंकि संस्कृत भाषा का सर्वश्रेष्ठ व्याकरण उसके अस्तित्व एवं गुणवत्ता के साथ ही उसके प्रभाव कि भी सुरक्षा करता है। ये अत्यंत ज्ञानवर्धक, पठनीय एवं माननीय हैं। ये जीवन‌ के अनेक चौराहों पर हमारा मार्गदर्शन करते हैं जब सब ओर अंधकार छा जाने की प्रतीति होती है।

About Chanakya (चाणक्य के बारे में) :

 चाणक्य का प्रभाव प्राचीन भारत से परे तक फैला हुआ है, क्योंकि शासन कला और शासन पर उनके विचारों का दुनिया भर के विद्वानों और नीति निर्माताओं द्वारा अध्ययन और सम्मान किया जाता है।  राजनीति के प्रति उनका व्यावहारिक दृष्टिकोण और राज्य और उसके नागरिकों के कल्याण पर उनका जोर उन्हें एक कालातीत व्यक्ति बनाता है जिनकी बुद्धि समय और स्थान की सीमाओं से परे है।

 चाणक्यनीतिदर्पण – 17.2

चाणक्य नीति दर्पण मूलत: संस्कृत (Sanskrit) में संस्कृत सुभाषितों के रूप में, काव्यात्मक एवं श्लोकों  के रूप में लिखा हुआ ग्रंथ है। इसके रचनाकार आचार्य चाणक्य हैं। उनके ये संस्कृत श्लोक चाणक्य नीति के नाम से संसार भर में प्रसिद्ध हैं। यहां पर यह श्लोक देवनागरी लिपि एवं  रोमन लिपि में भी दिए गए हैं एवं उनके अर्थ हिंदी देवनागरी एवं अंग्रेजी में रोमन लिपि में भी दिये गये हैं। जिससे विदेशों में रहने वाले भारतीय जो देवनागरी से परिचित नहीं हैं सनातन ग्रंथों के ज्ञान से लाभान्वित हो सकें।

अथ सप्तदशोऽध्याय प्रारंभः ॥ 17 ॥

atha saptadaśō’dhyāya prāraṁbhaḥ ॥ 17 ॥

ग्रन्थ का नाम : चाणक्यनीतिदर्पण,  रचनाकार – आचार्य चाणक्य,   अध्याय – 17   श्लोक-  6-10
अशक्ततस्तु भवेत्साधुर्ब्रह्मचारीचनिर्धनः ॥ 
व्याधिष्टोदेवभक्तश्ववृद्धानारीपतिव्रता ॥ ६ ॥

अर्थ - शक्तिहीन साधु होता है, निर्धन ब्रह्मचारी, रोगग्रस्त देवता का भक्त होता है और वृद्ध स्त्री पतिव्रता होती है ॥ ६ ॥

aśaktatastu bhavētsādhurbrahmacārīcanirdhanaḥ ॥ 
vyādhiṣṭōdēvabhaktaśvavr̥ddhānārīpativratā ॥ 6 ॥

Meaning: A powerless person is a saint, a poor person is a celibate, a sick person is a devotee of a deity, and an old woman is a chaste woman. ।। 6 ॥

नान्नोदकसमंदानं नतिथिर्द्वादशीसमा ॥ 
नगायत्र्याःपरोमंत्रो नमातुर्दैवतंपरम् ॥ ७ ॥

अर्थ - अन्न जल के समान कोई दान नहीं है, न द्वादशी के समान तिथि, गायत्री से बढ़कर कोई मंत्र नहीं है न माता से बढ़कर कोई देवता है ॥ ७ ॥

nānnōdakasamaṁdānaṁ natithirdvādaśīsamā ॥ 
nagāyatryāḥparōmaṁtrō namāturdaivataṁparam ॥ 7 ॥

Meaning - There is no charity like food and water, no date like Dwadashi, no mantra greater than Gayatri, nor any god greater than Mother. ।। 7 ॥

तक्षकस्यविषंदंते मक्षिकायाविषंशिरेः ॥ 
वृश्चिकस्यविषंपुच्छे सर्वांगे दुर्जनोविषम् ॥८॥

अर्थ - सांप के दांत में विष रहता है, मक्खी के सिर में विष है, बिच्छू की पूंछ में विष है किंतु दुर्जन के सब अंगों में विष ही व्याप्त रहता है ॥ ८ ॥

takṣakasyaviṣaṁdaṁtē makṣikāyāviṣaṁśirēḥ ॥ 
vr̥ścikasyaviṣaṁpucchē sarvāṁgē durjanōviṣam ॥8॥

Meaning - There is poison in the teeth of a snake, there is poison in the head of a fly, there is poison in the tail of a scorpion, but poison is present in all the parts of the wicked. ।।8॥

पत्युराज्ञांविनानारी उपोस्यव्रताचारिणी ॥ 
आयुष्यांहरतेभर्तुःसानारीनरकंव्रजेत् ॥ 9 ॥
अर्थ - पति की आज्ञा बिना उपवास व्रत करने वाली स्त्री स्वामी की आयु को हरती है और वह स्त्री आप नरक में जाती है ॥ 9 ॥

patyurājñāṁvinānārī upōsyavratācāriṇī ॥ 
āyuṣyāṁharatēbhartuḥsānārīnarakaṁvrajēt ॥ 9 ॥

Meaning - A woman who fasts without her husband's permission loses her master's life and that woman herself goes to hell. 9॥.

नदानःशुज्यतेनारी नोपवासशतैरपि ॥ 
नतीर्थसेवयातद्वद्भर्तुः पादोदकैर्यथा ॥ १० ॥

अर्थ - न दान से, न सैंकडों उपवासों से, न तीर्थ के सेवन से स्त्री वैसी शुद्ध होती है, जैसी स्वामी के चरणोदक से ॥ १० ॥
nadānaḥśujyatēnārī nōpavāsaśatairapi ॥ 
natīrthasēvayātadvadbhartuḥ pādōdakairyathā ॥ 10 ॥

Meaning - Neither by charity, nor by hundreds of fasts, nor by going on pilgrimage, a woman becomes as pure as by worshiping the Lord's feet. 10 ॥

चाणक्य की प्रसिद्धि : 

ये संस्कृत श्लोक आचार्य चाणक्य के द्वारा रचित हैं। उनका नाम कौटिल्य एवं विष्णुगुप्त के नाम से भी प्रसिद्ध है। उनकी रचनाएँ Chanakya सूत्र, chanakya niti, chanakya ni pothi, chanakya quotes, chanakya niti in hindi, chanakya quotes in hindi, चाणक्य, चाणक्य नीति,  चाणक्य नीति की 10 बातें,  चाणक्य नीति की बातें, चाणक्य के कड़वे वचन, चाणक्य नीति स्त्री, चाणक्य नीति की 100 बातें,  चाणक्य विचार इन हिंदी, चाणक्य नीति सुविचार, चाणक्य नीति जीवन जीने की, सुविचार चाणक्य के कड़वे वचन, sanskrit shlok, shlok,sanskrit, sanskrit shlok,sanskrit quotes,shlok in sanskrit, sanskrit thought, sanskrit slokas,संस्कृत श्लोक,श्लोक,छोटे संस्कृत श्लोक, आदि के रूप में चर्चित एवं प्रसिद्ध है । 

चाणक्य का कालातीत प्रभाव  :

हजारों वर्षों के उपरांत भी उनमें वही ताजगी और उपयोगिता है। अतः वे आज भी उतने ही प्रासंगिक बने हुए हैं जितने वे तब थे जब वे लिखे गये थे। संस्कृत में रचित होने के कारण उनमें कालांतर के प्रभाव को स्पष्टतः नहीं देखा जाता है क्योंकि संस्कृत भाषा का सर्वश्रेष्ठ व्याकरण उसके अस्तित्व एवं गुणवत्ता के साथ ही उसके प्रभाव कि भी सुरक्षा करता है। ये अत्यंत ज्ञानवर्धक, पठनीय एवं माननीय हैं। ये जीवन‌ के अनेक चौराहों पर हमारा मार्गदर्शन करते हैं जब सब ओर अंधकार छा जाने की प्रतीति होती है।

About Chanakya (चाणक्य के बारे में) :

 चाणक्य का प्रभाव प्राचीन भारत से परे तक फैला हुआ है, क्योंकि शासन कला और शासन पर उनके विचारों का दुनिया भर के विद्वानों और नीति निर्माताओं द्वारा अध्ययन और सम्मान किया जाता है।  राजनीति के प्रति उनका व्यावहारिक दृष्टिकोण और राज्य और उसके नागरिकों के कल्याण पर उनका जोर उन्हें एक कालातीत व्यक्ति बनाता है जिनकी बुद्धि समय और स्थान की सीमाओं से परे है।

चाणक्यनीतिदर्पण – 17.1-नीतिमार्गदर्शक


चाणक्य नीति दर्पण मूलत: संस्कृत (Sanskrit) में संस्कृत सुभाषितों के रूप में, काव्यात्मक एवं श्लोकों  के रूप में लिखा हुआ ग्रंथ है। इसके रचनाकार आचार्य चाणक्य हैं। उनके ये संस्कृत श्लोक चाणक्य नीति के नाम से संसार भर में प्रसिद्ध हैं। यहां पर यह श्लोक देवनागरी लिपि एवं  रोमन लिपि में भी दिए गए हैं एवं उनके अर्थ हिंदी देवनागरी एवं अंग्रेजी में रोमन लिपि में भी दिये गये हैं। जिससे विदेशों में रहने वाले भारतीय जो देवनागरी से परिचित नहीं हैं सनातन ग्रंथों के ज्ञान से लाभान्वित हो सकें।

अथ सप्तदशोऽध्याय प्रारंभः ॥ 17 ॥

atha saptadaśō’dhyāya prāraṁbhaḥ ॥ 17 ॥

ग्रन्थ का नाम : चाणक्यनीतिदर्पण,  रचनाकार – आचार्य चाणक्य,   अध्याय – 17   श्लोक-  1-5
पुस्तकप्रत्ययाधीतं नाधीतंगुरुसन्निधौ ॥ 
सभामध्येनशोभंते जारगर्भाइवस्त्रियः ॥ १ ॥

अर्थ - जिन्होंने  केवल पुस्तक के प्रतित से पढ़ा गुरू के निकट न पढ़ा वे सभा के बीच व्यभिचार से गर्भवाली स्त्रियों के समान नहीं शोभते ॥ १ ॥

pustakapratyayādhītaṁ nādhītaṁgurusannidhau ॥ 
sabhāmadhyēnaśōbhaṁtē jāragarbhāivastriyaḥ ॥ 1 ॥
Meaning - Those who read only from the copy of the book and did not study near the Guru, they do not look as good as women who are pregnant due to adultery in the gathering. 1॥

कृते प्रतिकृतिंकुर्याद्धिंसने प्रतिहिंसनम् ॥ 
तत्रदोषोनपततिदुष्टेदुष्टंसमाचरेत् ॥ २ ॥

अर्थ - उपकार करने पर प्रत्युपकार करना चाहिये और मारने पर मारना चाहिए। इसमें कोई अपराध नहीं होता। क्योंकि, दुष्टता करने पर दुष्टता का आचरण करना ही उचित होता है ॥ २ ॥

kr̥tē pratikr̥tiṁkuryāddhiṁsanē pratihiṁsanam ॥ 
tatradōṣōnapatatiduṣṭēduṣṭaṁsamācarēt ॥ 2 ॥

Meaning - When you do a favor, you should reciprocate and when you kill, you should kill. There is no crime in this. Because, when evil is done, it is appropriate to behave evilly. ।। 2॥
।। चाणक्यनीतिदर्पण।। 
।।17.2।।

यदूरं यद्दूराराध्यं यच्चदूरे व्यवस्थितम् ॥ 
तत्सर्वंतपसा साध्यंतपो हि दुरतिक्रमम् ॥ ३ ॥

अर्थ - जो दूर है जिसकी आराधना नहीं हो सकती और जो दूर वर्तमान है वे सब तप से सिद्ध हो सकते हैं इस कारण सबसे प्रबल तप है ॥ ३ ॥

yadūraṁ yaddūrārādhyaṁ yaccadūrē vyavasthitam ॥ 
tatsarvaṁtapasā sādhyaṁtapō hi duratikramam ॥ 3 ॥

Meaning - Whatever is far away which cannot be worshiped and whatever is present far away can be accomplished through penance, hence penance is the most powerful. ।।3॥

लोभश्वेदगुणेनकिंपिशुनतायद्यस्तिकिंपातकैः
सत्यंचेत्तपसा चकिंशुचिमनोयद्यस्तितीर्थेनकिम् 
सौजन्यंयदिकिंगुणैः सुमहिमायद्यस्तिकिं मंडनैः सद्भिद्यायदिकिंधनैरपयशोयद्यस्तिकिं मृत्युना ॥ ४ ॥

अर्थ - यदि लोभ है तो दूसरे दोष से क्या यदि चुगली है तो और पापों से क्या, यदि मन में सत्यता है तो तपसे क्या । यदि मन स्वच्छ है तो तीर्थ से क्या, यदि सज्जनता है तो दूसरे गुण से क्या, यदि महिमा है तो भूषणों से क्या, यदि अच्छी विद्या है तो धन से क्या, और यदि अपयश है तो मृत्यु से क्या ॥ ४ ॥

lōbhaśvēdaguṇēnakiṁpiśunatāyadyastikiṁpātakaiḥ
satyaṁcēttapasā cakiṁśucimanōyadyastitīrthēnakim 
saujanyaṁyadikiṁguṇaiḥ sumahimāyadyastikiṁ maṁḍanaiḥ sadbhidyāyadikiṁdhanairapayaśōyadyastikiṁ mr̥tyunā ॥ 4 ॥

Meaning - If there is greed then what about other vices, if there is backbiting then what about other sins, if there is truth in the mind then what about penance. If the mind is clean then what about pilgrimage, if there is nobility then what about other qualities, if there is glory then what about jewellery, if there is good knowledge then what about wealth, and if there is infamy then what about death. 4॥

पितारत्नाकरोयस्यलक्ष्मीर्यस्यसहोदरी ॥ 
संखोभिक्षाटनं कुर्यान्नदत्तमुपतिष्ठते ॥ ५ ॥

अर्थ - जिसका पिता रत्नों की खान समुद्र है, लक्ष्मी जिसकी बहिन, ऐसा शंख भीख मांगता है सच है बिना दिये कुछ नहीं मिलता ॥ ५ ॥

pitāratnākarōyasyalakṣmīryasyasahōdarī ॥ 
saṁkhōbhikṣāṭanaṁ kuryānnadattamupatiṣṭhatē ॥ 5 ॥

Meaning - Whose father is the ocean, the mine of gems, whose sister is Lakshmi, such a conch begs, it is true that one does not get anything without giving. ।।5॥

चाणक्य की प्रसिद्धि : 

ये संस्कृत श्लोक आचार्य चाणक्य के द्वारा रचित हैं। उनका नाम कौटिल्य एवं विष्णुगुप्त के नाम से भी प्रसिद्ध है। उनकी रचनाएँ Chanakya सूत्र, chanakya niti, chanakya ni pothi, chanakya quotes, chanakya niti in hindi, chanakya quotes in hindi, चाणक्य, चाणक्य नीति,  चाणक्य नीति की 10 बातें,  चाणक्य नीति की बातें, चाणक्य के कड़वे वचन, चाणक्य नीति स्त्री, चाणक्य नीति की 100 बातें,  चाणक्य विचार इन हिंदी, चाणक्य नीति सुविचार, चाणक्य नीति जीवन जीने की, सुविचार चाणक्य के कड़वे वचन, sanskrit shlok, shlok,sanskrit, sanskrit shlok,sanskrit quotes,shlok in sanskrit, sanskrit thought, sanskrit slokas,संस्कृत श्लोक,श्लोक,छोटे संस्कृत श्लोक, आदि के रूप में चर्चित एवं प्रसिद्ध है । 

चाणक्य का कालातीत प्रभाव  :

हजारों वर्षों के उपरांत भी उनमें वही ताजगी और उपयोगिता है। अतः वे आज भी उतने ही प्रासंगिक बने हुए हैं जितने वे तब थे जब वे लिखे गये थे। संस्कृत में रचित होने के कारण उनमें कालांतर के प्रभाव को स्पष्टतः नहीं देखा जाता है क्योंकि संस्कृत भाषा का सर्वश्रेष्ठ व्याकरण उसके अस्तित्व एवं गुणवत्ता के साथ ही उसके प्रभाव कि भी सुरक्षा करता है। ये अत्यंत ज्ञानवर्धक, पठनीय एवं माननीय हैं। ये जीवन‌ के अनेक चौराहों पर हमारा मार्गदर्शन करते हैं जब सब ओर अंधकार छा जाने की प्रतीति होती है।

About Chanakya (चाणक्य के बारे में) :

 चाणक्य का प्रभाव प्राचीन भारत से परे तक फैला हुआ है, क्योंकि शासन कला और शासन पर उनके विचारों का दुनिया भर के विद्वानों और नीति निर्माताओं द्वारा अध्ययन और सम्मान किया जाता है।  राजनीति के प्रति उनका व्यावहारिक दृष्टिकोण और राज्य और उसके नागरिकों के कल्याण पर उनका जोर उन्हें एक कालातीत व्यक्ति बनाता है जिनकी बुद्धि समय और स्थान की सीमाओं से परे है।

 चाणक्यनीतिदर्पण – 16.4

चाणक्यनीतिदर्पण –चाणक्य नीति दर्पण मूलत: संस्कृत (Sanskrit) में संस्कृत सुभाषितों के रूप में, काव्यात्मक एवं श्लोकों  के रूप में लिखा हुआ ग्रंथ है। इसके रचनाकार आचार्य चाणक्य हैं। उनके ये संस्कृत श्लोक चाणक्य नीति के नाम से संसार भर में प्रसिद्ध हैं। यहां पर यह श्लोक देवनागरी लिपि एवं  रोमन लिपि में भी दिए गए हैं एवं उनके अर्थ हिंदी देवनागरी एवं अंग्रेजी में रोमन लिपि में भी दिये गये हैं। जिससे विदेशों में रहने वाले भारतीय जो देवनागरी से परिचित नहीं हैं सनातन ग्रंथों के ज्ञान से लाभान्वित हो सकें।
चाणक्यनीतिदर्पण –नीतिशास्त्रसूत्र: This title combines the Sanskrit words “नीतिशास्त्र” (ethics) and “सूत्र” (aphorism) to create a title that suggests that the Chanakya Nitidarpana is a collection of aphorisms on ethical conduct.

अथ षोड़शोऽध्यायः ॥ 16 ॥

atha ṣōḍa़śō’dhyāyaḥ ॥ 16 ॥

ग्रन्थ का नाम : चाणक्यनीतिदर्पण,  रचनाकार – आचार्य चाणक्य,   अध्याय – 16   श्लोक-  16-20
वरंप्राणपरित्यागो मानभंगेनजीवनात् ॥ 
प्राणत्यागेक्षणंदुःखं मानभंगेदिनेदिने ॥१६॥

अर्थ - मान भंग पूर्वक जीने से प्राण का त्याग श्रेष्ठ है। प्राण त्याग के समय क्षण भर दुःख होता है मान के नाश होने पर दिन दिन ॥ १६ ॥

varaṁprāṇaparityāgō mānabhaṁgēnajīvanāt ॥ 
prāṇatyāgēkṣaṇaṁduḥkhaṁ mānabhaṁgēdinēdinē ॥16॥

Meaning: Sacrifice of life is better than living a life of dishonor. At the time of sacrificing one's life, one feels sad for a moment and day after day when one's honor is destroyed. 16 ॥

प्रियवाक्यप्रदानेन सर्वेतुष्यंतिजन्तवः ॥ 
तस्मात्तदेववक्तव्यं वचने का दरिद्रता ॥ १७ ॥

अर्थ - मधुर वचन के बोलने से सब जीव संतुष्ट होते हैं, इस कारण उसी का बोलना योग्य है, वचन में दरिद्रता क्या ॥ १७ ॥

priyavākyapradānēna sarvētuṣyaṁtijantavaḥ ॥ 
tasmāttadēvavaktavyaṁ vacanē kā daridratā ॥ 17 ॥

Meaning - All living beings are satisfied by speaking sweet words, that is why it is worth speaking, there is no poverty in words.  ।। 17 ॥

संसारकूटवृक्षस्य द्वेफलेअमृतोपमे ॥ 
सुभाषितंचसुस्वादुसंगतिः सुजनेजने ॥ १८ ॥

अर्थ - संसार रूप कूट वृक्ष के दो ही फल हैं,  रसयुक्त प्रियवचन और सज्जन के साथ संगति ॥ १८॥

saṁsārakūṭavr̥kṣasya dvēphalēamr̥tōpamē ॥ 
subhāṣitaṁcasusvādusaṁgatiḥ sujanējanē ॥ 18 ॥

Meaning - The worldly form of Koota tree has only two fruits, sweet words and company with good people. ।।18॥

बहुजन्मसुचाभ्यस्तंदानमध्ययनंतपः ॥ 
तेनैवाभ्यासयोगेनदेहमीचा क्ष्यस्यतेपुनः॥१९

अर्थ - जो जन्म जन्म दान, पढना, तप, इनका अभ्यास किया जाता है, उस अभ्यास के योग से देह का अभ्यास फिर फिर करता है ॥ १९ ॥

bahujanmasucābhyastaṁdānamadhyayanaṁtapaḥ ॥ 
tēnaivābhyāsayōgēnadēhamīcā kṣyasyatēpunaḥ॥19 ॥

Meaning - The body is practiced again and again due to the practice of charity, study, penance etc. in every birth. 19 ॥

पुस्तकेषुचयाविद्या परहस्तेषुयद्धनम् ॥ 
उत्पन्नेषुचकार्येषु नसा विद्यांनतद्धनम् ॥२०॥
अर्थ - जो विद्या पुस्तकों में रहती है और दूसरों के हाथों में जो धन रहता है, काम पड़ जाने पर न विद्या है न वह धन काम आता  है ॥

pustakēṣucayāvidyā parahastēṣuyaddhanam ॥ 
utpannēṣucakāryēṣu nasā vidyāṁnataddhanam ॥20॥

Meaning - The knowledge that remains in books and the money that remains in the hands of others, when needed, is neither knowledge nor that money is of any use.
इतिवृद्धचाणक्ये पोडशोऽध्यायः ॥ १६ ॥
itivr̥ddhacāṇakyē pōḍaśō’dhyāyaḥ ॥ 16 ॥

चाणक्य की प्रसिद्धि : 

ये संस्कृत श्लोक आचार्य चाणक्य के द्वारा रचित हैं। उनका नाम कौटिल्य एवं विष्णुगुप्त के नाम से भी प्रसिद्ध है। उनकी रचनाएँ Chanakya सूत्र, chanakya niti, chanakya ni pothi, chanakya quotes, chanakya niti in hindi, chanakya quotes in hindi, चाणक्य, चाणक्य नीति,  चाणक्य नीति की 10 बातें,  चाणक्य नीति की बातें, चाणक्य के कड़वे वचन, चाणक्य नीति स्त्री, चाणक्य नीति की 100 बातें,  चाणक्य विचार इन हिंदी, चाणक्य नीति सुविचार, चाणक्य नीति जीवन जीने की, सुविचार चाणक्य के कड़वे वचन, sanskrit shlok, shlok,sanskrit, sanskrit shlok,sanskrit quotes,shlok in sanskrit, sanskrit thought, sanskrit slokas,संस्कृत श्लोक,श्लोक,छोटे संस्कृत श्लोक, आदि के रूप में चर्चित एवं प्रसिद्ध है । 

चाणक्य का कालातीत प्रभाव  :

हजारों वर्षों के उपरांत भी उनमें वही ताजगी और उपयोगिता है। अतः वे आज भी उतने ही प्रासंगिक बने हुए हैं जितने वे तब थे जब वे लिखे गये थे। संस्कृत में रचित होने के कारण उनमें कालांतर के प्रभाव को स्पष्टतः नहीं देखा जाता है क्योंकि संस्कृत भाषा का सर्वश्रेष्ठ व्याकरण उसके अस्तित्व एवं गुणवत्ता के साथ ही उसके प्रभाव कि भी सुरक्षा करता है। ये अत्यंत ज्ञानवर्धक, पठनीय एवं माननीय हैं। ये जीवन‌ के अनेक चौराहों पर हमारा मार्गदर्शन करते हैं जब सब ओर अंधकार छा जाने की प्रतीति होती है।

About Chanakya (चाणक्य के बारे में) :

 चाणक्य का प्रभाव प्राचीन भारत से परे तक फैला हुआ है, क्योंकि शासन कला और शासन पर उनके विचारों का दुनिया भर के विद्वानों और नीति निर्माताओं द्वारा अध्ययन और सम्मान किया जाता है।  राजनीति के प्रति उनका व्यावहारिक दृष्टिकोण और राज्य और उसके नागरिकों के कल्याण पर उनका जोर उन्हें एक कालातीत व्यक्ति बनाता है जिनकी बुद्धि समय और स्थान की सीमाओं से परे है।

 चाणक्यनीतिदर्पण – 16.3

चाणक्यनीतिदर्पण –चाणक्य नीति दर्पण मूलत: संस्कृत (Sanskrit) में संस्कृत सुभाषितों के रूप में, काव्यात्मक एवं श्लोकों  के रूप में लिखा हुआ ग्रंथ है। इसके रचनाकार आचार्य चाणक्य हैं। उनके ये संस्कृत श्लोक चाणक्य नीति के नाम से संसार भर में प्रसिद्ध हैं। यहां पर यह श्लोक देवनागरी लिपि एवं  रोमन लिपि में भी दिए गए हैं एवं उनके अर्थ हिंदी देवनागरी एवं अंग्रेजी में रोमन लिपि में भी दिये गये हैं। जिससे विदेशों में रहने वाले भारतीय जो देवनागरी से परिचित नहीं हैं सनातन ग्रंथों के ज्ञान से लाभान्वित हो सकें।
चाणक्यनीतिदर्पण –नीतिशास्त्रदीप: This title combines the Sanskrit words “नीतिशास्त्र” (ethics) and “दीप” (lamp) to create a title that suggests that the Chanakya Nitidarpana is a lamp that illuminates the path of ethical conduct.

अथ षोड़शोऽध्यायः ॥ 16 ॥

atha ṣōḍa़śō’dhyāyaḥ ॥ 16 ॥

ग्रन्थ का नाम : चाणक्यनीतिदर्पण,  रचनाकार – आचार्य चाणक्य,   अध्याय – 16   श्लोक-  16-20
अतिक्लेशेनयेअर्था धर्मस्यातिक्रमेणतु ॥ 
शत्रूणांप्रणिपातनयेअर्थामाभवंतुमे ॥ ११ ॥
अर्थ - अत्यंत पीडा से, धर्म के त्याग से और वैरियों की प्रणति से जो धन प्राप्ति होती है सो मुझको न हो ॥११॥

atiklēśēnayēarthā dharmasyātikramēṇatu ॥ 
śatrūṇāṁpraṇipātanayēarthāmābhavaṁtumē ॥ 11 ॥

Meaning - I should not get the wealth that comes through extreme pain, sacrifice of religion and the influence of enemies. ॥11॥

किंतयाक्रियतेलक्ष्म्या यावधरिवकेवला ॥ 
यातुवेश्येवसामान्या पथिकैरपिभुज्यते ॥१२॥

अर्थ - उस संपत्ति से लोग क्या कर सकते हैं जो वधू के समान असाधारण है। जो वेश्या के समान सर्व साधारण हो वह पथिकों के भी उपयोग में आ सकती है॥१२॥

kiṁtayākriyatēlakṣmyā yāvadharivakēvalā ॥ 
yātuvēśyēvasāmānyā pathikairapibhujyatē ॥12॥

Meaning – What can people do with the wealth that is as extraordinary as the bride. The one who is as ordinary as a prostitute can be enjoyed even by the pilgrims. ॥12॥

धनेषुजीवितव्येषु स्त्रीषुचाहारकर्मसु ॥ 
अतृप्ताःप्राणिनः सर्वे यातायास्यंतियांतिच। १३।

अर्थ - धन में, जीवन में, स्त्रियों में और भोजन में अतृप्त होकर सब प्राणि गये और जायेंगे ॥ १३ ॥

dhanēṣujīvitavyēṣu strīṣucāhārakarmasu ॥ 
atr̥ptāḥprāṇinaḥ sarvē yātāyāsyaṁtiyāṁtica| 13|

Meaning: All beings have gone and will go, being unsatisfied with money, life, women and food. 13 ॥

क्षीयंतेसर्वदानानि-यज्ञहोमबलिक्रियाः 
नक्षीयतेपात्रदानमभयंसर्वदेहिनाम् ॥ १४ ॥ ॥

अर्थ - सब दान, यज्ञ, होम, बलि ये सब नष्ट हो जाते हैं, सत्पात्र को दान और सब जीवों को अभय दान ये क्षीण नहीं होते ॥ १४ ॥

kṣīyaṁtēsarvadānāni-yajñahōmabalikriyāḥ 
nakṣīyatēpātradānamabhayaṁsarvadēhinām ॥ 14 ॥

Meaning - All donations, Yagya, Homa, Sacrifice, all these get destroyed, donation to the deserving person and donation of fearlessness to all living beings do not diminish. ।। 14 ॥

तृणंलघुतृणात्तूलं तूलादपिचयाचकः ॥ 
वायुनार्किननीतोऽसौ मामयंयाचयिष्यति।१५।

अर्थ - तृण सबसे लघु होता है। तृण से रुई हल्की होती है। रुई से भी याचक, तो उसे वायु क्यों नहीं उडा ले जाती? वह समझती है कि यह मुझसे भी मांँगेगा ॥ १५ ॥

tr̥ṇaṁlaghutr̥ṇāttūlaṁ tūlādapicayācakaḥ ॥ 
vāyunārkinanītō’sau māmayaṁyācayiṣyati. ।।15।।

Meaning: The grass is the smallest. Cotton is lighter than straw. Even if it is better than cotton, why doesn't the wind blow it away? She thinks that he will ask for this from me too. ।।15.।।

चाणक्य की प्रसिद्धि : 

ये संस्कृत श्लोक आचार्य चाणक्य के द्वारा रचित हैं। उनका नाम कौटिल्य एवं विष्णुगुप्त के नाम से भी प्रसिद्ध है। उनकी रचनाएँ Chanakya सूत्र, chanakya niti, chanakya ni pothi, chanakya quotes, chanakya niti in hindi, chanakya quotes in hindi, चाणक्य, चाणक्य नीति,  चाणक्य नीति की 10 बातें,  चाणक्य नीति की बातें, चाणक्य के कड़वे वचन, चाणक्य नीति स्त्री, चाणक्य नीति की 100 बातें,  चाणक्य विचार इन हिंदी, चाणक्य नीति सुविचार, चाणक्य नीति जीवन जीने की, सुविचार चाणक्य के कड़वे वचन, sanskrit shlok, shlok,sanskrit, sanskrit shlok,sanskrit quotes,shlok in sanskrit, sanskrit thought, sanskrit slokas,संस्कृत श्लोक,श्लोक,छोटे संस्कृत श्लोक, आदि के रूप में चर्चित एवं प्रसिद्ध है । 

चाणक्य का कालातीत प्रभाव  :

हजारों वर्षों के उपरांत भी उनमें वही ताजगी और उपयोगिता है। अतः वे आज भी उतने ही प्रासंगिक बने हुए हैं जितने वे तब थे जब वे लिखे गये थे। संस्कृत में रचित होने के कारण उनमें कालांतर के प्रभाव को स्पष्टतः नहीं देखा जाता है क्योंकि संस्कृत भाषा का सर्वश्रेष्ठ व्याकरण उसके अस्तित्व एवं गुणवत्ता के साथ ही उसके प्रभाव कि भी सुरक्षा करता है। ये अत्यंत ज्ञानवर्धक, पठनीय एवं माननीय हैं। ये जीवन‌ के अनेक चौराहों पर हमारा मार्गदर्शन करते हैं जब सब ओर अंधकार छा जाने की प्रतीति होती है।

About Chanakya (चाणक्य के बारे में) :

 चाणक्य का प्रभाव प्राचीन भारत से परे तक फैला हुआ है, क्योंकि शासन कला और शासन पर उनके विचारों का दुनिया भर के विद्वानों और नीति निर्माताओं द्वारा अध्ययन और सम्मान किया जाता है।  राजनीति के प्रति उनका व्यावहारिक दृष्टिकोण और राज्य और उसके नागरिकों के कल्याण पर उनका जोर उन्हें एक कालातीत व्यक्ति बनाता है जिनकी बुद्धि समय और स्थान की सीमाओं से परे है।

 चाणक्यनीतिदर्पण – 16.2

चाणक्यनीतिदर्पण –चाणक्य नीति दर्पण मूलत: संस्कृत (Sanskrit) में संस्कृत सुभाषितों के रूप में, काव्यात्मक एवं श्लोकों  के रूप में लिखा हुआ ग्रंथ है। इसके रचनाकार आचार्य चाणक्य हैं। उनके ये संस्कृत श्लोक चाणक्य नीति के नाम से संसार भर में प्रसिद्ध हैं। यहां पर यह श्लोक देवनागरी लिपि एवं  रोमन लिपि में भी दिए गए हैं एवं उनके अर्थ हिंदी देवनागरी एवं अंग्रेजी में रोमन लिपि में भी दिये गये हैं। जिससे विदेशों में रहने वाले भारतीय जो देवनागरी से परिचित नहीं हैं सनातन ग्रंथों के ज्ञान से लाभान्वित हो सकें।
चाणक्यनीतिदर्पण –नीतिमार्गदर्शक: This title combines the Sanskrit words “नीति” (ethics) and “मार्गदर्शक” (guide) to create a title that suggests that the Chanakya Nitidarpana is a guide to ethical conduct.

अथ षोड़शोऽध्यायः ॥ 16 ॥

atha ṣōḍa़śō’dhyāyaḥ ॥ 16 ॥

ग्रन्थ का नाम : चाणक्यनीतिदर्पण,  रचनाकार – आचार्य चाणक्य,   अध्याय – 16   श्लोक-  6-10
गुणैरुत्तमतां यांतिनोच्चैरासनस
ंस्थिताः ॥ 
प्रसादशिखरस्थोऽपिकाकः किंगरुडायते ॥

प्राणी गुणों से उत्तमत्ता पाता है ऊंचे आसन पर बैठकर नहीं, कोठों के ऊपर के भाग में बैठा कौआ क्या गरुड़ हो जाता है ॥ ६ ॥

guṇairuttamatāṁ yāṁtinōccairāsanasa
ṁsthitāḥ ॥ 
prasādaśikharasthō’pikākaḥ kiṁgaruḍāyatē ॥

A living being does not achieve excellence by virtue of his qualities, but by sitting on a high seat, does a crow sitting on the upper part of a house become an eagle? 6॥

गुणाः सर्वत्रपूज्यंतेन महत्योऽपिसंपदः ॥ 
पूर्णेन्दुःकिंतथावंद्योनिष्कलंकोयथाक्कृशः॥७॥

अर्थ - सब स्थानों में गुण पूजे जाते हैं बड़ी संपति नहीं, पूर्णिमा का पूर्ण भी चंद्रमा क्या वैसा बंदित होता है जैसा बिना कलंक के द्वितीया का दुर्बल भी ॥७॥

guṇāḥ sarvatrapūjyaṁtēna mahatyō’pisaṁpadaḥ ॥ 
pūrṇēnduḥkiṁtathāvaṁdyōniṣkalaṁkōyathākkr̥śaḥ॥7॥
Meaning - Virtues are worshiped everywhere, there is no great wealth, is even the full moon of the full moon as closed as the weak of the second day without any blemish? ॥7॥

परस्तुतगुणोयस्तुनिर्गुणोपिगुणीभवेत् ॥ 
इंद्रो ऽपिलघुतांया तिस्वयंप्रख्यापितैर्गुणैः ॥८॥

अर्थ - जिसके गुणों को दूसरे लोग वर्णन करते हैं वह निर्गुण हो तो भी गुणवान् कहा जाता है, इन्द्र भी यदि अपने गुणों की आप प्रशंसा करे तो उससे लघुता पाता है ॥ ८ ॥
parastutaguṇōyastunirguṇōpiguṇībhavēt ॥ 
iṁdrō ’pilaghutāṁyā tisvayaṁprakhyāpitairguṇaiḥ ॥8॥

Meaning - A person whose qualities are described by others is said to be virtuous even if he has no qualities. Even Indra, if you praise his qualities, is considered inferior to him. 8॥

विवेकिनमनुप्राप्ता गुणाषांतिमनोज्ञताम् ॥ 
सुतरांरत्नमाभातिचामीकरनियोजितम् ॥९॥

अर्थ - विवेकी को पाकर गुण सुंदरता पाते हैं जब रत्न सोने में जड़ा जाता है तब अत्यंत सुंदर दीख पड़ता है॥९॥

vivēkinamanuprāptā guṇāṣāṁtimanōjñatām ॥ 
sutarāṁratnamābhāticāmīkaraniyōjitam ॥9॥

Meaning - By having a wise person, qualities get beauty. When a gem is set in gold then it looks very beautiful.॥9॥

गुणैः सर्वज्ञतुल्योऽपि स्रीदत्येकोनिराश्रयः ॥ 
अनर्घ्यमपिमाणिक्यं हेमाश्रयमपेक्षते ॥१०॥

अर्थ - गुणों से ईश्वर के सदृश भी निरालंब अकेला पुरुष दुख पाता है। अमोल भी माणिक्य सोना के आलंब की अर्थात् उसमें जडे जाने की अपेक्षा करता है ॥ १० ॥

guṇaiḥ sarvajñatulyō’pi srīdatyēkōnirāśrayaḥ ॥ 
anarghyamapimāṇikyaṁ hēmāśrayamapēkṣatē ॥10॥
Meaning: A lonely man, even though he is like God in qualities, suffers sorrow. Amol also expects the support of ruby and gold i.e. to be embedded in it. 10 ॥

चाणक्य की प्रसिद्धि : 

ये संस्कृत श्लोक आचार्य चाणक्य के द्वारा रचित हैं। उनका नाम कौटिल्य एवं विष्णुगुप्त के नाम से भी प्रसिद्ध है। उनकी रचनाएँ Chanakya सूत्र, chanakya niti, chanakya ni pothi, chanakya quotes, chanakya niti in hindi, chanakya quotes in hindi, चाणक्य, चाणक्य नीति,  चाणक्य नीति की 10 बातें,  चाणक्य नीति की बातें, चाणक्य के कड़वे वचन, चाणक्य नीति स्त्री, चाणक्य नीति की 100 बातें,  चाणक्य विचार इन हिंदी, चाणक्य नीति सुविचार, चाणक्य नीति जीवन जीने की, सुविचार चाणक्य के कड़वे वचन, sanskrit shlok, shlok,sanskrit, sanskrit shlok,sanskrit quotes,shlok in sanskrit, sanskrit thought, sanskrit slokas,संस्कृत श्लोक,श्लोक,छोटे संस्कृत श्लोक, आदि के रूप में चर्चित एवं प्रसिद्ध है । 

चाणक्य का कालातीत प्रभाव  :

हजारों वर्षों के उपरांत भी उनमें वही ताजगी और उपयोगिता है। अतः वे आज भी उतने ही प्रासंगिक बने हुए हैं जितने वे तब थे जब वे लिखे गये थे। संस्कृत में रचित होने के कारण उनमें कालांतर के प्रभाव को स्पष्टतः नहीं देखा जाता है क्योंकि संस्कृत भाषा का सर्वश्रेष्ठ व्याकरण उसके अस्तित्व एवं गुणवत्ता के साथ ही उसके प्रभाव कि भी सुरक्षा करता है। ये अत्यंत ज्ञानवर्धक, पठनीय एवं माननीय हैं। ये जीवन‌ के अनेक चौराहों पर हमारा मार्गदर्शन करते हैं जब सब ओर अंधकार छा जाने की प्रतीति होती है।

About Chanakya (चाणक्य के बारे में) :

 चाणक्य का प्रभाव प्राचीन भारत से परे तक फैला हुआ है, क्योंकि शासन कला और शासन पर उनके विचारों का दुनिया भर के विद्वानों और नीति निर्माताओं द्वारा अध्ययन और सम्मान किया जाता है।  राजनीति के प्रति उनका व्यावहारिक दृष्टिकोण और राज्य और उसके नागरिकों के कल्याण पर उनका जोर उन्हें एक कालातीत व्यक्ति बनाता है जिनकी बुद्धि समय और स्थान की सीमाओं से परे है।


 चाणक्यनीतिदर्पण – 16.1

चाणक्यनीतिदर्पण –चाणक्य नीति दर्पण मूलत: संस्कृत (Sanskrit) में संस्कृत सुभाषितों के रूप में, काव्यात्मक एवं श्लोकों  के रूप में लिखा हुआ ग्रंथ है। इसके रचनाकार आचार्य चाणक्य हैं। उनके ये संस्कृत श्लोक चाणक्य नीति के नाम से संसार भर में प्रसिद्ध हैं। यहां पर यह श्लोक देवनागरी लिपि एवं  रोमन लिपि में भी दिए गए हैं एवं उनके अर्थ हिंदी देवनागरी एवं अंग्रेजी में रोमन लिपि में भी दिये गये हैं। जिससे विदेशों में रहने वाले भारतीय जो देवनागरी से परिचित नहीं हैं सनातन ग्रंथों के ज्ञान से लाभान्वित हो सकें।
चाणक्यनीतिदर्पण –कौशल्यप्रकाश: This title combines the Sanskrit words “कौशल्य” (skill) and “प्रकाश” (light) to create a title that suggests that the Chanakya Nitidarpana is a light that illuminates the path to mastery of skills.

अथ षोड़शोऽध्यायः ॥ 16 ॥

atha ṣōḍa़śō’dhyāyaḥ ॥ 16 ॥

ग्रन्थ का नाम : चाणक्यनीतिदर्पण,  रचनाकार – आचार्य चाणक्य,   अध्याय – 16   श्लोक-  1-5
१
'नध्यातंपदमीश्वरस्यविधिवत्संसारविच्छित्तये स्वर्गद्वारकपाटपाटनपटुर्धर्मोऽपिनोपार्जितः॥
नारीपीनपयोधरोरुयुगुलं स्वमेपिनालिंगितं मातुः केवलमेवयौवनवनच्छेदेकुठारावयम् 

अर्थ - संसार से मुक्त होने के लिये विधिवत ईश्वर के 'पद का ध्यान’ 'मुझसे न हुआ’ स्वर्ग द्वार के कपाट के तोडने में समर्थ ‘धर्म' का भी अर्जन 'न' किया। और स्त्री के 'दोनों’ पीन स्तन और जंघाओं को ऑलिंगन स्वप्न में 'भी न किया' मैं माता के युवापन रूपी वृक्ष के केवल काटने ‘मैं’  तुम्हारी उत्पन्न हुआ।॥ १ ॥

1
'nadhyātaṁpadamīśvarasyavidhivatsaṁsāravicchittayē svargadvārakapāṭapāṭanapaṭurdharmō’pinōpārjitaḥ॥
nārīpīnapayōdharōruyugulaṁ svamēpināliṁgitaṁ mātuḥ kēvalamēvayauvanavanacchēdēkuṭhārāvayam.

Meaning - In order to be free from the world, I did not 'meditate' on the word of God properly and did not even acquire 'religion' capable of breaking the doors of heaven. And I didn't even embrace both the breasts and thighs of a woman in my dreams. I was born as a mere cutting of the tree of mother's youth. ।। 1 ।।

जल्पतिसार्द्धमन्येन पश्येत्यन्यंसविश्नमाः ॥ 
'इदये चिंतयंत्यन्यंन स्त्रीणामेकत्तोरतिः ॥ २ ॥

अर्थ - भाषण दूसरे के साथ करती हैं, दूसरे को विलास से देखती है और हृदय में दूसरे ही की चिन्ता करती हैं स्त्रियों की प्रीति एक में नहीं रहती ॥2॥ 

jalpatisārddhamanyēna paśyētyanyaṁsaviśnamāḥ ॥ 
'idayē ciṁtayaṁtyanyaṁna strīṇāmēkattōratiḥ ॥ 2 ॥

Meaning - She talks with others, looks at others with luxury and cares for others only in her heart. Women's love does not remain limited to one person. ॥2॥

योमोहान्मन्यते मूढोर क्तेयंमयिकामिनी ॥ 
सतस्यावशगोमूत्वा नृत्प्रेत्क्रीडाशकुंतवत् ॥३॥
अर्थ - जो मूर्ख अविवेक से समझता है कि, यह कामिनी मेरे ऊपर प्रेम करती है वह उसके वश होकर खेल के पक्षी के समान नाचा करता है ॥३॥

yōmōhānmanyatē mūḍhōra ktēyaṁmayikāminī ॥ 
satasyāvaśagōmūtvā nr̥tprētkrīḍāśakuṁtavat ॥3॥

Meaning - The fool who unwisely thinks that this woman is in love with him, falls under her influence and dances like a bird at play.॥3॥

कोऽर्थान्प्राप्यनगर्वितो विषयिणः कस्यापदो ऽस्तंगताः 
स्त्रीभिः कस्यनखंडितंभु विमनः को नामराजप्रियः ॥ 
कःकालस्पनगोचरत्वमग मत्को ऽर्थीग तो गौरवं 
कोवा दुर्जनदुर्गुणेषुपतितः क्षामेणयातः पथि ॥४॥

अर्थ - धन पाकर गर्वी कौन न हुआ, किस विषयी की विपत्ती नष्ट हुई, पृथ्वी में किस के मन को स्त्रियों ने खण्डित न किया, राजा को प्रिय कौन हुआ, काल के वश कौन नहीं हुआ, किस याचक ने गुरुता पाई, दुष्ट की दुष्टता में पड़कर संसार के पंथ में करालता से कौन गया ॥ ४ ॥

kō’rthānprāpyanagarvitō viṣayiṇaḥ kasyāpadō ’staṁgatāḥ 
strībhiḥ kasyanakhaṁḍitaṁbhu vimanaḥ kō nāmarājapriyaḥ ॥ 
kaḥkālaspanagōcaratvamaga matkō ’rthīga tō gauravaṁ 
kōvā durjanadurguṇēṣupatitaḥ kṣāmēṇayātaḥ pathi ॥4॥

Meaning - Who did not become proud after getting wealth, which subject's calamity was destroyed, whose mind on earth was not broken by women, who was loved by the king, who did not fall under the influence of time, which beggar attained mastery, the wickedness of the wicked. Who has fallen into the world's religion out of greed? 4॥

ननिर्मिता केन नदृष्टपूर्वा नश्रूयते हेममयी कुरंगी ॥ 
तथा पितृष्णा रघुनंदनस्य विनाश काले विपरीतबुद्धिः ॥ ५॥

अर्थ - सोने की मृगी न पहले किसी ने रची, न देखी और न किसी को सुन पड़ती है तैसी रघुनंदन की तृष्णा उस पर हुई। विनाश के समय बुद्धि विपरीत हो जाती है ॥५॥

nanirmitā kēna nadr̥ṣṭapūrvā naśrūyatē hēmamayī kuraṁgī ॥ 
tathā pitr̥ṣṇā raghunaṁdanasya vināśa kālē viparītabuddhiḥ ॥ 5॥

Meaning - A golden deer has never been created before by anyone, nor has it been seen by anyone and no one has even heard of it. Raghunandan's desire was aroused for it. At the time of destruction the intellect becomes opposite.

चाणक्य की प्रसिद्धि : 

ये संस्कृत श्लोक आचार्य चाणक्य के द्वारा रचित हैं। उनका नाम कौटिल्य एवं विष्णुगुप्त के नाम से भी प्रसिद्ध है। उनकी रचनाएँ Chanakya सूत्र, chanakya niti, chanakya ni pothi, chanakya quotes, chanakya niti in hindi, chanakya quotes in hindi, चाणक्य, चाणक्य नीति,  चाणक्य नीति की 10 बातें,  चाणक्य नीति की बातें, चाणक्य के कड़वे वचन, चाणक्य नीति स्त्री, चाणक्य नीति की 100 बातें,  चाणक्य विचार इन हिंदी, चाणक्य नीति सुविचार, चाणक्य नीति जीवन जीने की, सुविचार चाणक्य के कड़वे वचन, sanskrit shlok, shlok,sanskrit, sanskrit shlok,sanskrit quotes,shlok in sanskrit, sanskrit thought, sanskrit slokas,संस्कृत श्लोक,श्लोक,छोटे संस्कृत श्लोक, आदि के रूप में चर्चित एवं प्रसिद्ध है । 

चाणक्य का कालातीत प्रभाव  :

हजारों वर्षों के उपरांत भी उनमें वही ताजगी और उपयोगिता है। अतः वे आज भी उतने ही प्रासंगिक बने हुए हैं जितने वे तब थे जब वे लिखे गये थे। संस्कृत में रचित होने के कारण उनमें कालांतर के प्रभाव को स्पष्टतः नहीं देखा जाता है क्योंकि संस्कृत भाषा का सर्वश्रेष्ठ व्याकरण उसके अस्तित्व एवं गुणवत्ता के साथ ही उसके प्रभाव कि भी सुरक्षा करता है। ये अत्यंत ज्ञानवर्धक, पठनीय एवं माननीय हैं। ये जीवन‌ के अनेक चौराहों पर हमारा मार्गदर्शन करते हैं जब सब ओर अंधकार छा जाने की प्रतीति होती है।

About Chanakya (चाणक्य के बारे में) :

 चाणक्य का प्रभाव प्राचीन भारत से परे तक फैला हुआ है, क्योंकि शासन कला और शासन पर उनके विचारों का दुनिया भर के विद्वानों और नीति निर्माताओं द्वारा अध्ययन और सम्मान किया जाता है।  राजनीति के प्रति उनका व्यावहारिक दृष्टिकोण और राज्य और उसके नागरिकों के कल्याण पर उनका जोर उन्हें एक कालातीत व्यक्ति बनाता है जिनकी बुद्धि समय और स्थान की सीमाओं से परे है।

 चाणक्यनीतिदर्पण – 15.3

चाणक्य नीति दर्पण मूलत: संस्कृत (Sanskrit) में संस्कृत सुभाषितों के रूप में, काव्यात्मक एवं श्लोकों  के रूप में लिखा हुआ ग्रंथ है। इसके रचनाकार आचार्य चाणक्य हैं। उनके ये संस्कृत श्लोक चाणक्य नीति के नाम से संसार भर में प्रसिद्ध हैं। यहां पर यह श्लोक देवनागरी लिपि एवं  रोमन लिपि में भी दिए गए हैं एवं उनके अर्थ हिंदी देवनागरी एवं अंग्रेजी में रोमन लिपि में भी दिये गये हैं। जिससे विदेशों में रहने वाले भारतीय जो देवनागरी से परिचित नहीं हैं सनातन ग्रंथों के ज्ञान से लाभान्वित हो सकें।

कौशल्यप्रकाश: This title combines the Sanskrit words “कौशल्य” (skill) and “प्रकाश” (light) to create a title that suggests that the Chanakya Nitidarpana is a light that illuminates the path to mastery of skills.

नीतिमार्गदर्शक: This title combines the Sanskrit words “नीति” (ethics) and “मार्गदर्शक” (guide) to create a title that suggests that the Chanakya Nitidarpana is a guide to ethical conduct.

अथ पंचदशोऽध्यायः ॥ 15 ॥

atha paṁcadaśō’dhyāyaḥ ॥ 15 ॥

ग्रन्थ का नाम : चाणक्यनीतिदर्पण,  रचनाकार – आचार्य चाणक्य,   अध्याय – 15   श्लोक-  16-20
पीतः क्रुद्धेनतातश्वरणत्तलद्दतोवल्लभोपेनरोषा दावाल्याद्विमवय्यैः स्वबदनविवरेधार्यतंबौरः णीमे॥ गेहंमेछेदयन्तिप्रतिदिवसमुमाकांत पूजानिमित्तं तस्मात्खिन्ना सदा इंद्विजकुलनि लयंनाथयुक्तं त्यज़ामिः ॥ १६ ॥

अर्थ -  जिसने रुष्ट होकर मेरे पिता को पीडाला और जिसने क्रोध करके  पांव से मेरे कन्त (पति) को मारा, जो श्रेष्ठ ब्राह्मण बैठे सदा लड़कपन से लेकर मुखविवर में मेरी वैरिणी को रखते हैं और प्रतिदिन पार्वती के पतिकी पूजा के निमित्त मेरे गृह को काटते हैं हे नाथ ! इससे  खेद पाकर ब्राह्मणों के घर को सदा छोड़े रहती हूंँ। ॥ 16 ॥

pītaḥ kruddhēnatātaśvaraṇattaladdatōvallabhōpēnarōṣā dāvālyādvimavayyaiḥ svabadanavivarēdhāryataṁbauraḥ ṇīmē॥ gēhaṁmēchēdayantipratidivasamumākāṁta pūjānimittaṁ tasmātkhinnā sadā iṁdvijakulani layaṁnāthayuktaṁ tyaja़āmiḥ ॥ 16 ॥

Meaning - The one who tormented my father in anger and the one who in anger hit my Kant (husband) with his foot, the best Brahmin who always keeps my wife in his mouth since childhood and cuts my house every day for the purpose of worshiping Parvati's husband. Hey Nath! Feeling regretful about this, I always leave the houses of Brahmins.॥ 16 ॥

बंधनानिखलुसंतिबहूनिप्रेमरज्जुकृतबन्धन मन्यत् दारुभेदनिपुणोऽपिषडब्रिर्निष्क्रियो भवति पंकजकोशे॥ १७ ॥

अर्थ - बंधन तो बहुत हैं; परंतु प्रीति की रस्सी का बन्धन और ही है। काठ के छेदने में कुशल भी भौंरा कमल के कोश में निर्व्यापार हो जाता है ॥ १७ ॥ 

baṁdhanānikhalusaṁtibahūniprēmarajjukr̥tabandhana manyat dārubhēdanipuṇō’piṣaḍabrirniṣkriyō bhavati paṁkajakōśē॥ 17 ॥

Meaning: There are many bonds; But the rope of love has a different bond. Even a bumblebee skilled in piercing wood becomes useless in the shell of a lotus. 17 ॥

छिन्नोपिचंदनतरुर्नजहातिगंधं वृद्धोऽपिवारणपायाचे नौविदसंखेः ।
पतिर्न जहातिलीलाम् ॥ 
पंत्रार्पितो मधुरतांन जहातिचेक्षुः क्षीणों पिनत्यजितशीलगुणान्कु लीनः ॥ १८ ॥

अर्थ - काटा चन्दन का वृक्ष गन्धको त्याग नहीं देता। बूढ़ा भी गजपति विलास को नहीं छोड़ता, कोल्हू में पेरी  ऊंस(गन्ना) भी मधुरता नहीं छोड़ती।  कुलीन यदि दरिद्र हो तो भी सुशीलता आदि गुणों का त्याग नहीं करता १८॥

chinnōpicaṁdanatarurnajahātigaṁdhaṁ vr̥ddhō’pivāraṇapāyācē nauvidasaṁkhēḥ |
patirna jahātilīlām ॥ 
paṁtrārpitō madhuratāṁna jahāticēkṣuḥ kṣīṇōṁ pinatyajitaśīlaguṇānku līnaḥ ॥ 18 ॥

Meaning: A cut sandalwood tree does not give up its smell. Even an old Gajapati does not give up his luxury, even an ounce of sugarcane crushed in a crusher does not give up its sweetness. Even if a noble person is poor, he does not sacrifice the virtues like politeness etc. ॥ 18 ॥


उर्ज्याकोऽपिमहीधरोलघुतरोदोभ्यां धृतोलीलया। 
तेनत्वंदिविभूतलेच विदितो गोवर्द्धनोद्धारकः ॥ 
त्वांत्रैलोक्यधरं वहामिकुंचपोरग्रेन तद्रण्यतेकिंवा 
केशव भाषणेन बहु नापुण्यैर्यशोलक्ष्यते ॥ 19 ॥

अर्थ - पृथ्वी पर किसी अत्यंत हल्के पर्वतों को अनायास से बाहुओं के ऊपर धारण करने से आप स्वर्ग और पृथ्वी तल में सर्वदा गोवर्द्धन धारी कहलाते हैं तीनों लोकों को धारण करने वाले आपको केवल अपने  अग्रभाग में धारण करती हूँ। यह कुछ भी नहीं गिना जाता है। हे केशव ! बहुत कहने से क्या पुण्यों से यश मिलता है ॥ 19 ॥

urjyākō’pimahīdharōlaghutarōdōbhyāṁ dhr̥tōlīlayā| 
tēnatvaṁdivibhūtalēca viditō gōvarddhanōddhārakaḥ ॥ 
tvāṁtrailōkyadharaṁ vahāmikuṁcapōragrēna tadraṇyatēkiṁvā 
kēśava bhāṣaṇēna bahu nāpuṇyairyaśōlakṣyatē ॥ 19 ॥

Meaning - By spontaneously holding any of the very light mountains on the earth on your arms, you are always called the bearer of Govardhan in heaven and on the earth. I hold you, the bearer of all the three worlds, only on my forearm. It doesn't count as anything. Hey Keshav! By saying a lot of good deeds one gets fame. 19 ॥
इतिं पंचदशोऽध्यायः ॥ 15 ॥
itiṁ paṁcadaśō’dhyāyaḥ ॥ 15 ॥

चाणक्य की प्रसिद्धि : 

ये संस्कृत श्लोक आचार्य चाणक्य के द्वारा रचित हैं। उनका नाम कौटिल्य एवं विष्णुगुप्त के नाम से भी प्रसिद्ध है। उनकी रचनाएँ Chanakya सूत्र, chanakya niti, chanakya ni pothi, chanakya quotes, chanakya niti in hindi, chanakya quotes in hindi, चाणक्य, चाणक्य नीति,  चाणक्य नीति की 10 बातें,  चाणक्य नीति की बातें, चाणक्य के कड़वे वचन, चाणक्य नीति स्त्री, चाणक्य नीति की 100 बातें,  चाणक्य विचार इन हिंदी, चाणक्य नीति सुविचार, चाणक्य नीति जीवन जीने की, सुविचार चाणक्य के कड़वे वचन, sanskrit shlok, shlok,sanskrit, sanskrit shlok,sanskrit quotes,shlok in sanskrit, sanskrit thought, sanskrit slokas,संस्कृत श्लोक,श्लोक,छोटे संस्कृत श्लोक, आदि के रूप में चर्चित एवं प्रसिद्ध है । 

चाणक्य का कालातीत प्रभाव  :

हजारों वर्षों के उपरांत भी उनमें वही ताजगी और उपयोगिता है। अतः वे आज भी उतने ही प्रासंगिक बने हुए हैं जितने वे तब थे जब वे लिखे गये थे। संस्कृत में रचित होने के कारण उनमें कालांतर के प्रभाव को स्पष्टतः नहीं देखा जाता है क्योंकि संस्कृत भाषा का सर्वश्रेष्ठ व्याकरण उसके अस्तित्व एवं गुणवत्ता के साथ ही उसके प्रभाव कि भी सुरक्षा करता है। ये अत्यंत ज्ञानवर्धक, पठनीय एवं माननीय हैं। ये जीवन‌ के अनेक चौराहों पर हमारा मार्गदर्शन करते हैं जब सब ओर अंधकार छा जाने की प्रतीति होती है।

About Chanakya (चाणक्य के बारे में) :

 चाणक्य का प्रभाव प्राचीन भारत से परे तक फैला हुआ है, क्योंकि शासन कला और शासन पर उनके विचारों का दुनिया भर के विद्वानों और नीति निर्माताओं द्वारा अध्ययन और सम्मान किया जाता है।  राजनीति के प्रति उनका व्यावहारिक दृष्टिकोण और राज्य और उसके नागरिकों के कल्याण पर उनका जोर उन्हें एक कालातीत व्यक्ति बनाता है जिनकी बुद्धि समय और स्थान की सीमाओं से परे है।

 चाणक्यनीतिदर्पण – 15.2

चाणक्य नीति दर्पण मूलत: संस्कृत (Sanskrit) में संस्कृत सुभाषितों के रूप में, काव्यात्मक एवं श्लोकों  के रूप में लिखा हुआ ग्रंथ है। इसके रचनाकार आचार्य चाणक्य हैं। उनके ये संस्कृत श्लोक चाणक्य नीति के नाम से संसार भर में प्रसिद्ध हैं। यहां पर यह श्लोक देवनागरी लिपि एवं  रोमन लिपि में भी दिए गए हैं एवं उनके अर्थ हिंदी देवनागरी एवं अंग्रेजी में रोमन लिपि में भी दिये गये हैं। जिससे विदेशों में रहने वाले भारतीय जो देवनागरी से परिचित नहीं हैं सनातन ग्रंथों के ज्ञान से लाभान्वित हो सकें।

अथ पंचदशोऽध्यायः ॥ 15 ॥

atha paṁcadaśō’dhyāyaḥ ॥ 15 ॥

ग्रन्थ का नाम : चाणक्यनीतिदर्पण,  रचनाकार – आचार्य चाणक्य,   अध्याय – 15   श्लोक-  11-15

दुरागतंपथिश्रांतंवृयाच गृहमागतम् ॥ 
अनर्चयित्वा यो घुँक्ते सवैचांडालउच्यते ॥११॥

दूर से आये को, पथ से थके को और निरर्थक (अयआचक वृत्ति से) गृह पर आये को बिना पूछे जो खाता है वह चांडाल ही गिना जाता है ॥ ११ ॥

durāgataṁpathiśrāṁtaṁvr̥yāca gr̥hamāgatam ॥ 
anarcayitvā yō ghum̐ktē savaicāṁḍālucyatē ॥11॥

The one who comes from a distance, tired from the journey and the one who comes to his home with no intention of eating, eats without asking, is considered a Chandal. ।। 11 ॥

पठंतिचतुरो वेदानधर्मशास्त्राण्यनेकशः ॥ 
आत्मानंनैवजानंतिदर्वीपाकरसंयथा ॥ १२॥

अर्थ - चतुर लोग चारों वेद और अनेक धर्मशात्र पढ़ते हैं परन्तु आत्मा को नहीं जानते, जैसे करछी पाक के रस को नहीं जानती ॥ ५२ ॥
paṭhaṁticaturō vēdānadharmaśāstrāṇyanēkaśaḥ ॥ 
ātmānaṁnaivajānaṁtidarvīpākarasaṁyathā ॥ 12॥
Meaning - Clever people read the four Vedas and many dharmaśātra   but do not know the soul, just as a ladle does not know the essence of cooking. 52 ॥


धन्याद्विजमयीनांकाविपरीताभवार्णवे ॥
तरंत्वधोगताः सर्वेउपरिस्थाःपतंत्यधः ॥१३॥ 
अर्थ - यह ब्राह्मणरूप नाव धन्य है संसार रूप संमुद्र में इसकी उल्टी ही रीति है; उसके नीचे रहने वाले सब तरते हैं और ऊपर रहने वाले नीचे गिरते हैं. अर्थात् ब्राह्मण से जो नम्र रहता है. वह तर जाता है और जो नम्र नहीं रहता है वह नरक में गिरता है।१३।

dhanyādvijamayīnāṁkāviparītābhavārṇavē ॥
taraṁtvadhōgatāḥ sarvēuparisthāḥpataṁtyadhaḥ ॥13॥ 

Meaning - This boat in the form of Brahmin is blessed; in the ocean of the world it is the opposite; All those living below it float and those living above them fall. That is, one who remains humble compared to a Brahmin. He gets wet and the one who does not remain humble falls into hell. ।।13.।।

अयममृतनिधानं नायकोऽप्यौषधीनाम् अमृतमयशरीरः कांतियुक्तोऽपिचन्द्रः ॥ 
भवति विगतरश्मिर्मंडलंप्राप्यभानोः परसदननिविष्टः कोलघुत्वंनयाति ॥ १४ ॥
अर्थ - अमृतका घर औषधियों का अधिपति जिसका शरीर अमृतमय और शोभा से युक्त भी चंद्रमा सूर्य के मंडल में जाकर निस्तेज हो जाता है, दूसरे के घर में बैठकर कौन लघुता नहीं पाता ॥ १४ ॥
ayamamr̥tanidhānaṁ nāyakō ’pyauṣadhīnām amr̥ta mayaśarīraḥ kāṁtiyuktō’picandraḥ ॥ 
bhavati vigataraśmirmaṁḍalaṁprāpyabhānōḥ parasadananiviṣṭaḥ kōlaghutvaṁnayāti ॥ 14 ॥

Meaning - The house of nectar, the lord of medicines, whose body is full of nectar and beauty, even when the moon goes into the circle of the sun, it becomes dull, who does not feel inferior by sitting in someone else's house? 14 ॥

अलिरयंनलिनीदलमध्यगः कमलिनी मकरंदम दालसः॥
विधिवशात्परदेशमुपागता कुटजपुष्प रसंबहुमन्यते ॥ १५ ॥

अर्थ -  यह भौंरा जब कमलिनी के पत्तों के मध्य था तब कमलिनी के फूल के रस से आलसी बना रहता था। अब दैववश से पर देश में आकर तोरैया के फूल को बहुत समझता है ॥ १५ ॥

alirayaṁnalinīdalamadhyagaḥ kamalinī makaraṁdama dālasaḥ॥
vidhivaśātparadēśamupāgatā kuṭajapuṣpa rasaṁbahumanyatē ॥ 15 ॥

Meaning - When this bumblebee was among the leaves of Kamalini, he remained lazy with the juice of Kamalini flower. Now, by God's will, after coming to the country, he understands the ridge gourd flower very well. ।। 15.।।

चाणक्य की प्रसिद्धि : 

ये संस्कृत श्लोक आचार्य चाणक्य के द्वारा रचित हैं। उनका नाम कौटिल्य एवं विष्णुगुप्त के नाम से भी प्रसिद्ध है। उनकी रचनाएँ Chanakya सूत्र, chanakya niti, chanakya ni pothi, chanakya quotes, chanakya niti in hindi, chanakya quotes in hindi, चाणक्य, चाणक्य नीति,  चाणक्य नीति की 10 बातें,  चाणक्य नीति की बातें, चाणक्य के कड़वे वचन, चाणक्य नीति स्त्री, चाणक्य नीति की 100 बातें,  चाणक्य विचार इन हिंदी, चाणक्य नीति सुविचार, चाणक्य नीति जीवन जीने की, सुविचार चाणक्य के कड़वे वचन, sanskrit shlok, shlok,sanskrit, sanskrit shlok,sanskrit quotes,shlok in sanskrit, sanskrit thought, sanskrit slokas,संस्कृत श्लोक,श्लोक,छोटे संस्कृत श्लोक, आदि के रूप में चर्चित एवं प्रसिद्ध है । 

चाणक्य का कालातीत प्रभाव  :

हजारों वर्षों के उपरांत भी उनमें वही ताजगी और उपयोगिता है। अतः वे आज भी उतने ही प्रासंगिक बने हुए हैं जितने वे तब थे जब वे लिखे गये थे। संस्कृत में रचित होने के कारण उनमें कालांतर के प्रभाव को स्पष्टतः नहीं देखा जाता है क्योंकि संस्कृत भाषा का सर्वश्रेष्ठ व्याकरण उसके अस्तित्व एवं गुणवत्ता के साथ ही उसके प्रभाव कि भी सुरक्षा करता है। ये अत्यंत ज्ञानवर्धक, पठनीय एवं माननीय हैं। ये जीवन‌ के अनेक चौराहों पर हमारा मार्गदर्शन करते हैं जब सब ओर अंधकार छा जाने की प्रतीति होती है।

About Chanakya (चाणक्य के बारे में) :

 चाणक्य का प्रभाव प्राचीन भारत से परे तक फैला हुआ है, क्योंकि शासन कला और शासन पर उनके विचारों का दुनिया भर के विद्वानों और नीति निर्माताओं द्वारा अध्ययन और सम्मान किया जाता है।  राजनीति के प्रति उनका व्यावहारिक दृष्टिकोण और राज्य और उसके नागरिकों के कल्याण पर उनका जोर उन्हें एक कालातीत व्यक्ति बनाता है जिनकी बुद्धि समय और स्थान की सीमाओं से परे है।

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