Author: kavita.org.in (Page 6 of 36)

 चाणक्यनीतिदर्पण – 12.1

चाणक्य नीति दर्पण मूलत: संस्कृत (Sanskrit) में संस्कृत सुभाषितों के रूप में, काव्यात्मक एवं श्लोकों  के रूप में लिखा हुआ ग्रंथ है। इसके रचनाकार आचार्य चाणक्य हैं। उनके ये संस्कृत श्लोक चाणक्य नीति के नाम से संसार भर में प्रसिद्ध हैं। यहां पर यह श्लोक देवनागरी लिपि एवं  रोमन लिपि में भी दिए गए हैं एवं उनके अर्थ हिंदी देवनागरी एवं अंग्रेजी में रोमन लिपि में भी दिये गये हैं। जिससे विदेशों में रहने वाले भारतीय जो देवनागरी से परिचित नहीं हैं सनातन ग्रंथों के ज्ञान से लाभान्वित हो सकें।

अथ द्वादशोऽध्यायः ॥ 12 ॥

atha dvādaśō’dhyāyaḥ ॥ 12 ॥

ग्रन्थ का नाम : चाणक्यनीतिदर्पण,  रचनाकार – आचार्य चाणक्य,   अध्याय – 12   श्लोक-  1-5
सानंदंसदनं सुतास्तुसुधियःकांताप्रियालापि- नी । इच्छापूर्तिधनंस्वयोषितिरतिःस्वाज्ञापराः सेवकाः ॥ 
आतिथ्यँशिवपूजनंप्रतिदिनं मिष्ठान्न पानंगृहे । 
साधोः संगमुपासतेचसततंधन्यो गृहस्थाश्रमः ॥ १ ॥

अर्थ - यदि आनंदयुक्त घर मिलने और लडके पंडित (अर्थात जो कुछ जानने योग्य है वह सब सामान्य और उपयोगी ज्ञान से जो युक्त हों ) हों, स्त्री मधुरभाषिणी हो, इच्छा के अनुसार धन हो अपनी ही स्त्री में रति हो, आज्ञापालक सेवक मिले, अतिथिकी सेवा और शिवकी पूजा हो प्रतिदिन गृह में मीठा अन्न और जल मिले सर्वदा साधूके सँग की उपासना, यह गृहस्थाश्रमही धन्य है ॥ १ ॥

sānaṁdaṁsadanaṁ sutāstusudhiyaḥkāṁtāpriyālāpi- nī | 
icchāpūrtidhanaṁsvayōṣitiratiḥsvājñāparāḥ sēvakāḥ ॥ 
ātithyam̐śivapūjanaṁpratidinaṁ miṣṭhānna pānaṁgr̥hē | 
sādhōḥ saṁgamupāsatēcasatataṁdhanyō gr̥hasthāśramaḥ ॥ 1 ॥
Meaning - If one gets a happy home and the boys are Pandits (i.e. those who have general and useful knowledge of all that is worth knowing), the woman is soft-spoken, one gets wealth as per one's wish, one is married to one's own wife, one gets obedient servants, the hospitality is good. There should be service and worship of Lord Shiva, there should be sweet food and water in the house every day, there should always be worship in the company of a saint, this home is blessed. 1॥

भार्तेषुविप्रेषुदयान्वितश्वयच्छ्रइयास्वल्पमुपैतिदानम् ॥ 
अनंतपारंसमुपैतिराजन्यद्दीयतेतन्न लभेद्विजेभ्यः ॥ २ ॥

अर्थ - जो दयावान् पुरुष आर्त ब्राह्मणों को श्रद्धा से थोड़ा भी दान देता है उस पुरुष को अनन्त होकर वह मिलता है, जो दिया जाता है केवल उतना ही ब्राह्मणों से नहीं मिलता है ॥ २ ॥

bhārtēṣuviprēṣudayānvitaśvayacchriyāsvalpamupaitidānam ॥ 
anaṁtapāraṁsamupaitirājanyaddīyatētanna labhēdvijēbhyaḥ ॥ 2 ॥

Meaning - The kind man who gives even a little donation to the Brahmins with devotion, gets what he gets infinitely, what is given is not the same amount that is received from the Brahmins. 2॥

दाक्षिण्यंस्वजनेदयापरजने शाठ्यं सदादुर्जने, 
प्रीतिः साधुजने नयोनृपजनेविद्वजने चार्ज- वम् ॥ 
सौर्यशत्रुजने क्षमागुरुजनेनारीजने धूर्तता, 
इत्थंयेपुरुषाः कलासुक्कुशलास्तेष्वेव लोकस्थितिः ॥ ३ ॥

अर्थ - अपने जनों में दाक्षिण्य (अपनेपन से सहायता का भाव), दूसरे जन में दया, दुर्जन में सदा दुष्टता (कठोर आचरण), साधुजन में प्रीति, राजाओं के प्रति नीति का आचरण, विद्वानों से सरलता, शत्रुजन में शूरता, बड़े लोगों के विषय से क्षमा, स्त्री से काम पडने पर धूर्तता, इस प्रकार से जो लोग कला में कुशल होते हैं उन्हीं में लोक की मर्यादा रहती है ॥ ३ ॥

dākṣiṇyaṁsvajanēdayāparajanē śāṭhyaṁ sadādurjanē, 
prītiḥ sādhujanē nayōnr̥pajanēvidvajanē cārja- vam ॥ 
sauryaśatrujanē kṣamāgurujanēnārījanē dhūrtatā, 
itthaṁyēpuruṣāḥ kalāsukkuśalāstēṣvēva lōkasthitiḥ ॥ 3 ॥

Meaning - Dakshinya (feeling of helping oneself through one's belonging) among one's own people, kindness towards others, always wickedness (harsh conduct) among the wicked, love among the saints, ethical behavior towards the kings, simplicity towards the scholars, bravery towards the enemies, respect for the big people. Forgiveness in matters, cunningness in dealing with women, only those who are skilled in this art maintain the dignity of the people. ।।3॥

हस्तौदानविवर्जितौ श्रुतिपुटौसारस्वतद्रोहिणौ नेत्रेसाधुविलोकनेनरहितेपादौनतीर्थंगतौ ॥ 
अन्यायार्जितवित्तपूर्ण मुदरंवर्गेण तुगंशिगे 
रेरे जम्बुकमुंच मुंचसइसानीचंसुनिंयंवपुः ॥४॥
अर्थ - हाथ दान रहित है, कान वेदशात्र के विरोधी हैं, नेत्रों ने साधु का दर्शन नहीं किया, पांव ने तीर्थगमन नहीं किया, अन्याय से अर्जित धन से उदर भरा है और गर्वसे शिर ऊंचा हो रहा है। रे रे सियार ऐसे नीच निंद्य शरीर को शीघ्र छोड ॥ ४ ॥

hastaudānavivarjitau śrutipuṭausārasvatadrōhiṇau nētrēsādhuvilōkanēnarahitēpādaunatīrthaṁgatau ॥ 
anyāyārjitavittapūrṇa mudaraṁvargēṇa tugaṁśigē 
rērē jambukamuṁca muṁcasisānīcaṁsuniṁyaṁvapuḥ ॥4॥

Meaning - The hands are devoid of charity, the ears are against the Vedas, the eyes have not seen the sage, the feet have not gone on pilgrimage, the stomach is filled with wealth acquired unjustly and the head is held high with pride. Hey jackal, leave such a despicable body quickly. 4॥

येशांश्रीमद्यशोदासुतपदकमले नास्तिभक्ति र्नराणां, येषांमाभीरक़न्याप्रियगुणकथनेनानु रक्तारसंज्ञा ॥ 
येशांश्रीकृष्णलीलाललितरस कथासादरौनैवकर्णी, 
धिक्तान् धिकृतान् धिगेतान्कथयति सततं कीर्तनस्थो मृदंगः॥५॥

अर्थ - श्री यशोदा सुत के पदकमल में जिन लोगों की भक्ति नहीं रहती, जिन लोगों की जीभ अहीर की कन्याओं के  प्रिय के अर्थात् श्रीकृष्ण के गुणगान में प्रीति नहीं रखती, और श्री कृष्णजी की लीला की ललित - कथा का आदर जिनके कान नहीं करते उन लोगों को धिक् है ऐसा कीर्तन का मृदंग सदा कहता है ॥ ५ ॥

yēśāṁśrīmadyaśōdāsutapadakamalē nāstibhakti rnarāṇāṁ, 
yēṣāṁmābhīraक़nyāpriyaguṇakathanēnānu raktārasaṁjñā ॥ 
yēśāṁśrīkr̥ṣṇalīlālalitarasa kathāsādaraunaivakarṇī,
dhiktān dhikr̥tān dhigētānkathayati satataṁ kīrtanasthō mr̥daṁgaḥ॥5॥

Meaning - Those people who do not have devotion in the Padkamal of Shri Yashoda Sut, those people whose tongue does not love the praises of the beloved of Ahir's daughters i.e. Shri Krishna, and whose ears do not respect the beautiful story of Shri Krishnaji's Leela. Woe to the people, the Mridang of Kirtan always says this. 5॥

चाणक्य की प्रसिद्धि : 

ये संस्कृत श्लोक आचार्य चाणक्य के द्वारा रचित हैं। उनका नाम कौटिल्य एवं विष्णुगुप्त के नाम से भी प्रसिद्ध है। उनकी रचनाएँ Chanakya सूत्र, chanakya niti, chanakya ni pothi, chanakya quotes, chanakya niti in hindi, chanakya quotes in hindi, चाणक्य, चाणक्य नीति,  चाणक्य नीति की 10 बातें,  चाणक्य नीति की बातें, चाणक्य के कड़वे वचन, चाणक्य नीति स्त्री, चाणक्य नीति की 100 बातें,  चाणक्य विचार इन हिंदी, चाणक्य नीति सुविचार, चाणक्य नीति जीवन जीने की, सुविचार चाणक्य के कड़वे वचन, sanskrit shlok, shlok,sanskrit, sanskrit shlok,sanskrit quotes,shlok in sanskrit, sanskrit thought, sanskrit slokas,संस्कृत श्लोक,श्लोक,छोटे संस्कृत श्लोक, आदि के रूप में चर्चित एवं प्रसिद्ध है । 

चाणक्य का कालातीत प्रभाव  :

हजारों वर्षों के उपरांत भी उनमें वही ताजगी और उपयोगिता है। अतः वे आज भी उतने ही प्रासंगिक बने हुए हैं जितने वे तब थे जब वे लिखे गये थे। संस्कृत में रचित होने के कारण उनमें कालांतर के प्रभाव को स्पष्टतः नहीं देखा जाता है क्योंकि संस्कृत भाषा का सर्वश्रेष्ठ व्याकरण उसके अस्तित्व एवं गुणवत्ता के साथ ही उसके प्रभाव कि भी सुरक्षा करता है। ये अत्यंत ज्ञानवर्धक, पठनीय एवं माननीय हैं। ये जीवन‌ के अनेक चौराहों पर हमारा मार्गदर्शन करते हैं जब सब ओर अंधकार छा जाने की प्रतीति होती है।

About Chanakya (चाणक्य के बारे में) :

 चाणक्य का प्रभाव प्राचीन भारत से परे तक फैला हुआ है, क्योंकि शासन कला और शासन पर उनके विचारों का दुनिया भर के विद्वानों और नीति निर्माताओं द्वारा अध्ययन और सम्मान किया जाता है।  राजनीति के प्रति उनका व्यावहारिक दृष्टिकोण और राज्य और उसके नागरिकों के कल्याण पर उनका जोर उन्हें एक कालातीत व्यक्ति बनाता है जिनकी बुद्धि समय और स्थान की सीमाओं से परे है।

 चाणक्यनीतिदर्पण – 11.4

चाणक्य नीति दर्पण मूलत: संस्कृत (Sanskrit) में संस्कृत सुभाषितों के रूप में, काव्यात्मक एवं श्लोकों  के रूप में लिखा हुआ ग्रंथ है। इसके रचनाकार आचार्य चाणक्य हैं। उनके ये संस्कृत श्लोक चाणक्य नीति के नाम से संसार भर में प्रसिद्ध हैं। यहां पर यह श्लोक देवनागरी लिपि एवं  रोमन लिपि में भी दिए गए हैं एवं उनके अर्थ हिंदी देवनागरी एवं अंग्रेजी में रोमन लिपि में भी दिये गये हैं। जिससे विदेशों में रहने वाले भारतीय जो देवनागरी से परिचित नहीं हैं सनातन ग्रंथों के ज्ञान से लाभान्वित हो सकें।

अथैकादशोऽध्यायः ॥ 11 ॥

athaikādaśō’dhyāyaḥ ॥ 11 ॥

ग्रन्थ का नाम : चाणक्यनीतिदर्पण,  रचनाकार – आचार्य चाणक्य,   अध्याय – 11   श्लोक-  16-18

वापीकूपतडागानामारामसुरवेश्मनाम् ॥ 
उच्छेदनेनिराशंक:सविप्रोम्लेच्छउच्यते ।१६।

अर्थ - बावड़ी, कुंआ, तालाब, वाटिका, देवालय, इसके उच्छेद करने में जो निडर हो वह ब्राह्मण म्लेच्छ कहा जाता है ॥ १६ ॥

vāpīkūpataḍāgānāmārāmasuravēśmanām ॥ 
ucchēdanēnirāśaṁka:saviprōmlēcchucyatē |16|
Meaning - One who is fearless in cleaning a stepwell, well, pond, garden, temple, etc. is called a Brahmin Mlechchha(too much sinner). 16 ॥

देवद्रव्यंगुरुद्रव्यंपरदाराभिमर्शनम् ॥ 
निर्वाहः सर्वभूतेषुविप्रश्चांडालउच्यते ॥ १७॥

अर्थ - देवता का द्रव्य और गुरू का द्रव्य जो हरता है और परस्त्री से संग करता है और सब प्राणियों में निर्वाह कर लेता है वह विप्र चांडाल कहलाता है।॥१७॥ 

dēvadravyaṁgurudravyaṁparadārābhimarśanam ॥ 
nirvāhaḥ sarvabhūtēṣuvipraścāṁḍālucyatē ॥ 17॥
Meaning - The substance of the deity and the substance of the Guru who loses and has intercourse with another woman and subsists in all living beings is called Vipra Chandal.॥17॥

देयंभोज्यधनंधनं सुकृतिभिनोसंचयस्तस्यवै । श्रीकर्णस्बवलेश्वविक्चमपतेरद्यापिकीर्तिःस्थि ता ॥ 
अस्माकं मधुदानभोगरहितंनष्टंचिरात्सं चितं । निर्वाणादितिनैजपादयुगलंघर्षंत्यहोम क्षिकाः ॥ १८ ॥

अर्थ - सुकृतियों (सत्कर्म में रत) को चाहिये कि, भोगयोग्य धन को और द्रव्य को देवें कभी न संचें।  कर्ण, बलि, विक्रमादित्य इन राजाओं की कीर्ति इस समय पर्यन्त वर्तमान है, दान भोग से रहित बहुत दिन से संचित हमारे लोगों का मधु नष्ट हो गया।  निश्चय है कि, मधु मखियाँ मधु के नाश होने के कारण दोनों पैरों को घिसा करती हैं ॥ १८ ॥
dēyaṁbhōjyadhanaṁdhanaṁ sukr̥tibhinōsaṁcayastasyavai | śrīkarṇasbavalēśvavikcamapatēradyāpikīrtiḥsthi tā ॥ 
asmākaṁ madhudānabhōgarahitaṁnaṣṭaṁcirātsaṁ citaṁ | nirvāṇāditinaijapādayugalaṁgharṣaṁtyahōma kṣikāḥ ॥ 18 ॥
Meaning - Those doing good deeds (engaged in good deeds) should give away the money that can be enjoyed and never hoard it. The fame of these kings Karna, Bali, Vikramaditya is still present, the honey of our people accumulated for many days without charity and enjoyment has been destroyed. It is certain that honey bees wear out both their legs due to loss of honey. 18 ॥
॥ इति वृद्धचाणक्ये एकादशोऽध्याय ॥11॥
॥ iti vr̥ddhacāṇakyē ēkādaśō’dhyāya ॥11॥

चाणक्य की प्रसिद्धि : 

ये संस्कृत श्लोक आचार्य चाणक्य के द्वारा रचित हैं। उनका नाम कौटिल्य एवं विष्णुगुप्त के नाम से भी प्रसिद्ध है। उनकी रचनाएँ Chanakya सूत्र, chanakya niti, chanakya ni pothi, chanakya quotes, chanakya niti in hindi, chanakya quotes in hindi, चाणक्य, चाणक्य नीति,  चाणक्य नीति की 10 बातें,  चाणक्य नीति की बातें, चाणक्य के कड़वे वचन, चाणक्य नीति स्त्री, चाणक्य नीति की 100 बातें,  चाणक्य विचार इन हिंदी, चाणक्य नीति सुविचार, चाणक्य नीति जीवन जीने की, सुविचार चाणक्य के कड़वे वचन, sanskrit shlok, shlok,sanskrit, sanskrit shlok,sanskrit quotes,shlok in sanskrit, sanskrit thought, sanskrit slokas,संस्कृत श्लोक,श्लोक,छोटे संस्कृत श्लोक, आदि के रूप में चर्चित एवं प्रसिद्ध है । 

चाणक्य का कालातीत प्रभाव  :

हजारों वर्षों के उपरांत भी उनमें वही ताजगी और उपयोगिता है। अतः वे आज भी उतने ही प्रासंगिक बने हुए हैं जितने वे तब थे जब वे लिखे गये थे। संस्कृत में रचित होने के कारण उनमें कालांतर के प्रभाव को स्पष्टतः नहीं देखा जाता है क्योंकि संस्कृत भाषा का सर्वश्रेष्ठ व्याकरण उसके अस्तित्व एवं गुणवत्ता के साथ ही उसके प्रभाव कि भी सुरक्षा करता है। ये अत्यंत ज्ञानवर्धक, पठनीय एवं माननीय हैं। ये जीवन‌ के अनेक चौराहों पर हमारा मार्गदर्शन करते हैं जब सब ओर अंधकार छा जाने की प्रतीति होती है।

About Chanakya (चाणक्य के बारे में) :

 चाणक्य का प्रभाव प्राचीन भारत से परे तक फैला हुआ है, क्योंकि शासन कला और शासन पर उनके विचारों का दुनिया भर के विद्वानों और नीति निर्माताओं द्वारा अध्ययन और सम्मान किया जाता है।  राजनीति के प्रति उनका व्यावहारिक दृष्टिकोण और राज्य और उसके नागरिकों के कल्याण पर उनका जोर उन्हें एक कालातीत व्यक्ति बनाता है जिनकी बुद्धि समय और स्थान की सीमाओं से परे है।

 चाणक्यनीतिदर्पण – 11.3

चाणक्य नीति दर्पण मूलत: संस्कृत (Sanskrit) में संस्कृत सुभाषितों के रूप में, काव्यात्मक एवं श्लोकों  के रूप में लिखा हुआ ग्रंथ है। इसके रचनाकार आचार्य चाणक्य हैं। उनके ये संस्कृत श्लोक चाणक्य नीति के नाम से संसार भर में प्रसिद्ध हैं। यहां पर यह श्लोक देवनागरी लिपि एवं  रोमन लिपि में भी दिए गए हैं एवं उनके अर्थ हिंदी देवनागरी एवं अंग्रेजी में रोमन लिपि में भी दिये गये हैं। जिससे विदेशों में रहने वाले भारतीय जो देवनागरी से परिचित नहीं हैं सनातन ग्रंथों के ज्ञान से लाभान्वित हो सकें।

अथैकादशोऽध्यायः ॥ 11 ॥

athaikādaśō’dhyāyaḥ ॥ 11 ॥

ग्रन्थ का नाम : चाणक्यनीतिदर्पण,  रचनाकार – आचार्य चाणक्य,   अध्याय – 11   श्लोक-  11-15

अकृष्टफलमूलानिवनवासरतिः सदा ॥ 
कुरुतेऽहरहः श्राद्धसृषिर्विप्रःसउच्यते ॥११॥

अर्थ - बिना जोती भूमि से उत्पन्न फल व मूलको खाकर सदा वनवास करता हो और प्रतिदिन श्राद्ध करे ऐसा ब्राह्मण ऋषि कहलाता है ॥ ११ ॥

akr̥ṣṭaphalamūlānivanavāsaratiḥ sadā ॥ 
kurutē’harahaḥ śrāddhasr̥ṣirvipraḥsucyatē ॥11॥
Meaning - A Brahmin who eats the fruits and roots grown from uncultivated land and remains in exile forever and performs Shraddha daily is called a Rishi. 11 ॥

एका हारेणसंतुष्टः षट्कर्मनिरतःसदा ॥ 
ऋतुकालाभिगामीचसविप्रोद्विजउच्यते ।१२।

अर्थ - एक समय के भोजन से संतुष्ट रहकर पढना, पढाना, यज्ञ करना कराना, दान देना और लेना इन छः कर्मों में सदा रत हो और ऋतुकाल में स्त्री का संग करे तो ऐसे ब्राह्मण को द्विज कहते हैं ॥ १२ ॥

ēkā hārēṇasaṁtuṣṭaḥ ṣaṭkarmanirataḥsadā ॥ 
r̥tukālābhigāmīcasaviprōdvijucyatē |12|

Meaning - Being satisfied with one meal at a time, if he is always engaged in these six activities of reading, teaching, performing yagya, giving and taking donations and keeps company with a woman during the season, then such a Brahmin is called Dwij. 12 ॥

कर्मणिरतःपश्नांपारपालकः ॥ 
वाणिज्यकृषिकीयः सविप्रो वैश्यउच्यते॥      १३ लौकिके

अर्थ - संसारिक कर्म में रत हो और पशुओं का पालन, बनियाई (व्यापार ) और खेती करने वाला हो वह विप्र वैश्य कहलाता है ॥ १३ ॥

karmaṇirataḥpaśnāṁpārapālakaḥ ॥ 
vāṇijyakr̥ṣikīyaḥ saviprō vaiśyucyatē॥      13 laukikē
Meaning - One who is engaged in worldly activities and is engaged in animal husbandry, trade and farming is called Vipra Vaishya. 13 ॥

लाक्षादितैलनीलीनाकौसुंभमधुसर्पिषा ॥ 
विक्रेतामद्यमांसानां सविप्रःशूदउच्यते ॥१४॥

अर्थ - लाख आदि पदार्थ, तेल नीली कुसुम, मधु, घी, मद्य, और मांस जो इनका बेचनेवाला हो,  वह ब्राह्मण शूद्र कहा जाता है ॥ १४ ॥

lākṣāditailanīlīnākausuṁbhamadhusarpiṣā ॥ 
vikrētāmadyamāṁsānāṁ savipraḥśūducyatē ॥14॥
Meaning - The one who sells things like lac, oil, blue safflower, honey, ghee, liquor and meat is called a Brahmin Shudra. 14 ॥

परकार्यविहंताचदाभिकःस्वार्थसाधकः ।। 
छलीद्वेषी मृदुःक्रूरोविमोमार्जारउच्यते ॥१५॥

अर्थ - दूसरे के काम को बिगाडनेवाला, दम्भी, अपने ही अर्थ का साधनेवाला, छली, द्वेषी, उपर मृदु और अन्तःकरण में क्रूर हो, तो वह ब्राह्मण बिलार कहा- जाता है ॥ १५ ॥

parakāryavihaṁtācadābhikaḥsvārthasādhakaḥ ॥ 
chalīdvēṣī mr̥duḥkrūrōvimōmārjārucyatē ॥15॥

Meaning - If someone spoils the work of others, is arrogant, pursues his own interests, is deceitful, is spiteful, soft on the surface and cruel in the heart, then he is called a Brahmin-Bilar. 15.

चाणक्य की प्रसिद्धि : 

ये संस्कृत श्लोक आचार्य चाणक्य के द्वारा रचित हैं। उनका नाम कौटिल्य एवं विष्णुगुप्त के नाम से भी प्रसिद्ध है। उनकी रचनाएँ Chanakya सूत्र, chanakya niti, chanakya ni pothi, chanakya quotes, chanakya niti in hindi, chanakya quotes in hindi, चाणक्य, चाणक्य नीति,  चाणक्य नीति की 10 बातें,  चाणक्य नीति की बातें, चाणक्य के कड़वे वचन, चाणक्य नीति स्त्री, चाणक्य नीति की 100 बातें,  चाणक्य विचार इन हिंदी, चाणक्य नीति सुविचार, चाणक्य नीति जीवन जीने की, सुविचार चाणक्य के कड़वे वचन, sanskrit shlok, shlok,sanskrit, sanskrit shlok,sanskrit quotes,shlok in sanskrit, sanskrit thought, sanskrit slokas,संस्कृत श्लोक,श्लोक,छोटे संस्कृत श्लोक, आदि के रूप में चर्चित एवं प्रसिद्ध है । 

चाणक्य का कालातीत प्रभाव  :

हजारों वर्षों के उपरांत भी उनमें वही ताजगी और उपयोगिता है। अतः वे आज भी उतने ही प्रासंगिक बने हुए हैं जितने वे तब थे जब वे लिखे गये थे। संस्कृत में रचित होने के कारण उनमें कालांतर के प्रभाव को स्पष्टतः नहीं देखा जाता है क्योंकि संस्कृत भाषा का सर्वश्रेष्ठ व्याकरण उसके अस्तित्व एवं गुणवत्ता के साथ ही उसके प्रभाव कि भी सुरक्षा करता है। ये अत्यंत ज्ञानवर्धक, पठनीय एवं माननीय हैं। ये जीवन‌ के अनेक चौराहों पर हमारा मार्गदर्शन करते हैं जब सब ओर अंधकार छा जाने की प्रतीति होती है।

About Chanakya (चाणक्य के बारे में) :

 चाणक्य का प्रभाव प्राचीन भारत से परे तक फैला हुआ है, क्योंकि शासन कला और शासन पर उनके विचारों का दुनिया भर के विद्वानों और नीति निर्माताओं द्वारा अध्ययन और सम्मान किया जाता है।  राजनीति के प्रति उनका व्यावहारिक दृष्टिकोण और राज्य और उसके नागरिकों के कल्याण पर उनका जोर उन्हें एक कालातीत व्यक्ति बनाता है जिनकी बुद्धि समय और स्थान की सीमाओं से परे है।

 चाणक्यनीतिदर्पण – 11.2

चाणक्य नीति दर्पण मूलत: संस्कृत (Sanskrit) में संस्कृत सुभाषितों के रूप में, काव्यात्मक एवं श्लोकों  के रूप में लिखा हुआ ग्रंथ है। इसके रचनाकार आचार्य चाणक्य हैं। उनके ये संस्कृत श्लोक चाणक्य नीति के नाम से संसार भर में प्रसिद्ध हैं। यहां पर यह श्लोक देवनागरी लिपि एवं  रोमन लिपि में भी दिए गए हैं एवं उनके अर्थ हिंदी देवनागरी एवं अंग्रेजी में रोमन लिपि में भी दिये गये हैं। जिससे विदेशों में रहने वाले भारतीय जो देवनागरी से परिचित नहीं हैं सनातन ग्रंथों के ज्ञान से लाभान्वित हो सकें।

अथैकादशोऽध्यायः ॥ 11 ॥

athaikādaśō’dhyāyaḥ ॥ 11 ॥

ग्रन्थ का नाम : चाणक्यनीतिदर्पण,  रचनाकार – आचार्य चाणक्य,   अध्याय – 11   श्लोक-  6-10
नदुर्जनः साधुदशामुपैतिबहुप्रकारैरपिशिक्ष्य माणः।। 
आमूलसिक्तःपयसा घृतेनननिंबवृक्षा मधुरत्वमेति ॥ ६ ॥

अर्थ - निश्चय है कि, दुर्जन अनेक प्रकार से सिखलाया भी जाय, पर उसमें साधुता नहीं आती। जिस प्रकार दूध और घी से पल्लव पर्यंत नीम का वृक्ष सींचा जाय पर उसमें मधुरता नहीं आती ॥ ६ ॥

nadurjanaḥ sādhudaśāmupaitibahuprakārairapiśikṣya māṇaḥ॥ 
āmūlasiktaḥpayasā ghr̥tēnananiṁbavr̥kṣā madhuratvamēti ॥ 6 ॥
Meaning - It is true that even if a wicked person is taught in many ways, he does not attain sainthood. Just as a Neem tree 🌴 is watered with milk and ghee till the end of its leaf 🌿, it does not yield sweetness. 6॥


अन्तर्गतमलोदुष्टस्तीर्थस्नानशतैरपि ॥ 
नशुद्ध्यतितथा भांडंसुरायादा हितंचयत् ॥ ७ ॥

अर्थ - जिसके हृदय में पाप है वही दुष्ट है; वह तीर्थ में सौ बार स्नान से भी शुद्ध नहीं होता, जैसे मदिरा का पात्र जल से धोया जाय तो भी (उससे शराब की गंध नहीं जाती अर्थात् वह अशुद्ध ही रहता है) शुद्ध नहीं होता ॥ ७ ॥ i

antargatamalōduṣṭastīrthasnānaśatairapi ॥ 
naśuddhyatitathā bhāṁḍaṁsurāyādā hitaṁcayat ॥ 7 ॥

Meaning - The one who has sin in his heart is evil; It does not become pure even by bathing a hundred times in a pilgrimage, just as even if a wine vessel is washed with water (the smell of wine does not go away from it, that is, it remains impure), it does not become pure. 7 ॥ 

नवेत्तियोयस्यगुणप्रकर्षंसतंसद निन्दतिनात्र चित्रम् ॥ 
यथाकिरातीकरिकुंभलव्धांमुक्तांपरि त्यज्यविभर्तिगुंजाम् ॥ ८ ॥

अर्थ - जो जिसके गुण की प्रकर्षता नहीं जानता वह निरंतर उसकी निंदा करता है, जैसे सिल्लिनी हाथी के मस्तक के मोती को छोड़ घुंघुची को पहनती है ॥ ८ ॥

navēttiyōyasyaguṇaprakarṣaṁsataṁsada nindatinātra citram ॥ 
yathākirātīkarikuṁbhalavdhāṁmuktāṁpari tyajyavibhartiguṁjām ॥ 8 ॥

Meaning - One who does not know the excellence of his qualities, he constantly criticizes him, just as Sillini leaves the pearl on the elephant's head and wears the anklets. 8॥

येतुसंवत्सरं पूर्णनित्यंमौनेनझुंजते ॥ 
युगकोटिसहसँतै पूज्यंते स्वर्गविष्टपे ॥ ९ ॥

अर्थ - जो वर्ष भर नित्य चुपचाप भोजन करता है वह सहस्रकोटि युगलों स्वर्गलोक में पूजा जाता है॥६॥ 

yētusaṁvatsaraṁ pūrṇanityaṁmaunēnajhuṁjatē ॥ 
yugakōṭisahasam̐tai pūjyaṁtē svargaviṣṭapē ॥ 9 ॥
Meaning: He who eats quietly daily throughout the year is worshiped in the heavenly world by thousands of crores of pairs.


कामक्रोधौतथा लोभंस्वादुशृंगारकौतुके ॥ 
अतिनिद्रातिसेवेचविद्यार्थीह्यष्टवर्जयेत् ॥१०॥

अर्थ - काम, क्रोध, लोभ, मीठी वस्तु, शृंगार, खेल, अति निद्रा और अतिसेवा इन आठों को विद्यार्थी (जिसे विद्या का अर्जन करना हो वे अपना मुख्य ध्येय विद्या का अर्जन करें) छोड़ देवें ॥ १० ॥

kāmakrōdhautathā lōbhaṁsvāduśr̥ṁgārakautukē ॥ 
atinidrātisēvēcavidyārthīhyaṣṭavarjayēt ॥10॥
Meaning - The student should give up these eight things (lust, anger, greed, sweet things, make-up, play, excessive sleep and excessive service) (those who want to acquire knowledge should make the acquisition of knowledge their main aim). 10 ॥

चाणक्य की प्रसिद्धि : 

ये संस्कृत श्लोक आचार्य चाणक्य के द्वारा रचित हैं। उनका नाम कौटिल्य एवं विष्णुगुप्त के नाम से भी प्रसिद्ध है। उनकी रचनाएँ Chanakya सूत्र, chanakya niti, chanakya ni pothi, chanakya quotes, chanakya niti in hindi, chanakya quotes in hindi, चाणक्य, चाणक्य नीति,  चाणक्य नीति की 10 बातें,  चाणक्य नीति की बातें, चाणक्य के कड़वे वचन, चाणक्य नीति स्त्री, चाणक्य नीति की 100 बातें,  चाणक्य विचार इन हिंदी, चाणक्य नीति सुविचार, चाणक्य नीति जीवन जीने की, सुविचार चाणक्य के कड़वे वचन, sanskrit shlok, shlok,sanskrit, sanskrit shlok,sanskrit quotes,shlok in sanskrit, sanskrit thought, sanskrit slokas,संस्कृत श्लोक,श्लोक,छोटे संस्कृत श्लोक, आदि के रूप में चर्चित एवं प्रसिद्ध है । 

चाणक्य का कालातीत प्रभाव  :

हजारों वर्षों के उपरांत भी उनमें वही ताजगी और उपयोगिता है। अतः वे आज भी उतने ही प्रासंगिक बने हुए हैं जितने वे तब थे जब वे लिखे गये थे। संस्कृत में रचित होने के कारण उनमें कालांतर के प्रभाव को स्पष्टतः नहीं देखा जाता है क्योंकि संस्कृत भाषा का सर्वश्रेष्ठ व्याकरण उसके अस्तित्व एवं गुणवत्ता के साथ ही उसके प्रभाव कि भी सुरक्षा करता है। ये अत्यंत ज्ञानवर्धक, पठनीय एवं माननीय हैं। ये जीवन‌ के अनेक चौराहों पर हमारा मार्गदर्शन करते हैं जब सब ओर अंधकार छा जाने की प्रतीति होती है।

About Chanakya (चाणक्य के बारे में) :

 चाणक्य का प्रभाव प्राचीन भारत से परे तक फैला हुआ है, क्योंकि शासन कला और शासन पर उनके विचारों का दुनिया भर के विद्वानों और नीति निर्माताओं द्वारा अध्ययन और सम्मान किया जाता है।  राजनीति के प्रति उनका व्यावहारिक दृष्टिकोण और राज्य और उसके नागरिकों के कल्याण पर उनका जोर उन्हें एक कालातीत व्यक्ति बनाता है जिनकी बुद्धि समय और स्थान की सीमाओं से परे है।

 चाणक्यनीतिदर्पण – 11.1

चाणक्य नीति दर्पण मूलत: संस्कृत (Sanskrit) में संस्कृत सुभाषितों के रूप में, काव्यात्मक एवं श्लोकों  के रूप में लिखा हुआ ग्रंथ है। इसके रचनाकार आचार्य चाणक्य हैं। उनके ये संस्कृत श्लोक चाणक्य नीति के नाम से संसार भर में प्रसिद्ध हैं। यहां पर यह श्लोक देवनागरी लिपि एवं  रोमन लिपि में भी दिए गए हैं एवं उनके अर्थ हिंदी देवनागरी एवं अंग्रेजी में रोमन लिपि में भी दिये गये हैं। जिससे विदेशों में रहने वाले भारतीय जो देवनागरी से परिचित नहीं हैं सनातन ग्रंथों के ज्ञान से लाभान्वित हो सकें।

अथैकादशोऽध्यायः ॥ 11 ॥

athaikādaśō’dhyāyaḥ ॥ 11 ॥



दात्तृत्वंप्रियवक्तृत्वंधीरत्वमुचितज्ञता ॥ 
अभ्यासेननलभ्यन्तेचत्वारःसहजागुणाः।१।

अर्थ - उदारता, प्रिय बोलना, धीरता और उचित का ज्ञान ये अभ्यास से नहीं मिलते, ये चारों स्वभाविक गुण हैं ॥ १ ॥

dāttr̥tvaṁpriyavaktr̥tvaṁdhīratvamucitajñatā ॥ 
abhyāsēnanalabhyantēcatvāraḥsahajāguṇāḥ|1|
Meaning - Generosity, loving speech, patience and knowledge of what is right are not acquired by practice, these four are natural qualities. 1॥

आत्मवर्गपरित्यज्यपरवर्गसमाश्रयेत् ॥ 
स्वयमेवलयंयातियथाराज्यजन्यधर्मतः ॥२॥

अर्थ - जो अपनी मण्डली को छोड परके वर्ग का आश्रय लेता है वह आप ही लय को प्राप्त हो जाता  है जैसे राजाके राज्य अधर्म से ॥ २ ॥

ātmavargaparityajyaparavargasamāśrayēt ॥ 
svayamēvalayaṁyātiyathārājyajanyadharmataḥ ॥2॥
Meaning - One who leaves his own group and takes shelter in a foreign society, automatically attains Laya(Dilution in it), just as a king's kingdom is freed from unrighteousness. 2॥

हस्ती स्थूलतनुः सचांकुशवशःकिंइस्तिमात्रौंऽ कुशोदीपप्रज्वलितेप्रणश्यतितमः किंदीपमात्रं तमः ॥ 
वत्रेणापिहताःपतन्तिगिरयः किंवज्ज मात्रन्नगाः तेजोयस्यविराजते सवलवानूस्थू लेषुकःप्रत्ययः ॥ ३ ॥

अर्थ - हाथी का स्थूल शरीर है वह भी अंकुश के वश रहता है, तो क्या हस्ती के समान अंकुश है? दीप के जलने पर अंधकार आप ही नष्ट हो जाता है, तो क्या अप (प्रकाश) के तुल्य तम है? विजली के मारे पर्वत गिर जाते हैं तो क्या बिजली पर्वत के समान है? जिसमें तेज विराजमान रहता है वह बलवान् गिना जाता है मोटे का कौन विश्वास है ॥ ३ ॥

hastī sthūlatanuḥ sacāṁkuśavaśaḥkiṁistimātrauṁ’ kuśōdīpaprajvalitēpraṇaśyatitamaḥ kiṁdīpamātraṁ tamaḥ ॥ 
vatrēṇāpihatāḥpatantigirayaḥ kiṁvajja mātrannagāḥ tējōyasyavirājatē savalavānūsthū lēṣukaḥpratyayaḥ ॥ 3 ॥

Meaning - An elephant has a thick body and remains under the control of the reins, so does it have the same reins as an elephant? When the lamp is lit, darkness itself gets destroyed, so is Tama equal to Ap (light)? If mountains fall due to lightning, then is lightning like a mountain? The one in whom glory resides is considered strong. What is the faith of the fat man? 3॥

कलौदशसहस्राणिहरिस्त्यजतिमेदिनीम् ॥ 
तदईं जाह्नवीतोयंतदर्द्धंग्रामदेवताः ॥ ४ ॥

अर्थ - कलियुग में दशसहस्त्रवर्ष के बीतने पर विष्णु पृथ्वी को छोड़ देते हैं उसके आधे पर गंगाजी जल को, तिसके आधेके बीतने पर ग्राम देवता ग्रामको ॥ ४ ॥

kalaudaśasahasrāṇiharistyajatimēdinīm ॥ 
tadīṁ jāhnavītōyaṁtadarddhaṁgrāmadēvatāḥ ॥ 4 ॥

Meaning - After the passage of ten thousand years in Kaliyuga, Vishnu leaves the earth, half of it to the water of Ganga, and after the passage of half of the same, the village deity leaves the village. 4॥

गृहासक्तस्यनेोविद्या नोदयामांसभोजनः ! 
द्रव्यलुब्धस्यनोसत्यं स्त्रैणस्यनपवित्रता ॥५॥

अर्थ - गृह में आसक्त पुरुषों को विद्या, मांस के आहारी को दया, द्रव्य लोभी को सत्यता, और व्यभिचारी को पवित्रता, नहीं होती है ॥ ५ ॥

gr̥hāsaktasyanēōvidyā nōdayāmāṁsabhōjanaḥ ! 
dravyalubdhasyanōsatyaṁ straiṇasyanapavitratā ॥5॥

Meaning - Those who are attached to the house do not have knowledge, those who eat meat do not have mercy, those who are greedy for money do not have truthfulness and those who are adulterers do not have purity. ॥ 5 ॥
ग्रन्थ का नाम : चाणक्यनीतिदर्पण,  रचनाकार – आचार्य चाणक्य,   अध्याय – 11   श्लोक-  1-5

चाणक्य की प्रसिद्धि : 

ये संस्कृत श्लोक आचार्य चाणक्य के द्वारा रचित हैं। उनका नाम कौटिल्य एवं विष्णुगुप्त के नाम से भी प्रसिद्ध है। उनकी रचनाएँ Chanakya सूत्र, chanakya niti, chanakya ni pothi, chanakya quotes, chanakya niti in hindi, chanakya quotes in hindi, चाणक्य, चाणक्य नीति,  चाणक्य नीति की 10 बातें,  चाणक्य नीति की बातें, चाणक्य के कड़वे वचन, चाणक्य नीति स्त्री, चाणक्य नीति की 100 बातें,  चाणक्य विचार इन हिंदी, चाणक्य नीति सुविचार, चाणक्य नीति जीवन जीने की, सुविचार चाणक्य के कड़वे वचन, sanskrit shlok, shlok,sanskrit, sanskrit shlok,sanskrit quotes,shlok in sanskrit, sanskrit thought, sanskrit slokas,संस्कृत श्लोक,श्लोक,छोटे संस्कृत श्लोक, आदि के रूप में चर्चित एवं प्रसिद्ध है । 

चाणक्य का कालातीत प्रभाव  :

हजारों वर्षों के उपरांत भी उनमें वही ताजगी और उपयोगिता है। अतः वे आज भी उतने ही प्रासंगिक बने हुए हैं जितने वे तब थे जब वे लिखे गये थे। संस्कृत में रचित होने के कारण उनमें कालांतर के प्रभाव को स्पष्टतः नहीं देखा जाता है क्योंकि संस्कृत भाषा का सर्वश्रेष्ठ व्याकरण उसके अस्तित्व एवं गुणवत्ता के साथ ही उसके प्रभाव कि भी सुरक्षा करता है। ये अत्यंत ज्ञानवर्धक, पठनीय एवं माननीय हैं। ये जीवन‌ के अनेक चौराहों पर हमारा मार्गदर्शन करते हैं जब सब ओर अंधकार छा जाने की प्रतीति होती है।

About Chanakya (चाणक्य के बारे में) :

 चाणक्य का प्रभाव प्राचीन भारत से परे तक फैला हुआ है, क्योंकि शासन कला और शासन पर उनके विचारों का दुनिया भर के विद्वानों और नीति निर्माताओं द्वारा अध्ययन और सम्मान किया जाता है।  राजनीति के प्रति उनका व्यावहारिक दृष्टिकोण और राज्य और उसके नागरिकों के कल्याण पर उनका जोर उन्हें एक कालातीत व्यक्ति बनाता है जिनकी बुद्धि समय और स्थान की सीमाओं से परे है।


 चाणक्यनीतिदर्पण – 10.4

चाणक्य नीति दर्पण मूलत: संस्कृत (Sanskrit) में संस्कृत सुभाषितों के रूप में, काव्यात्मक एवं श्लोकों  के रूप में लिखा हुआ ग्रंथ है। इसके रचनाकार आचार्य चाणक्य हैं। उनके ये संस्कृत श्लोक चाणक्य नीति के नाम से संसार भर में प्रसिद्ध हैं। यहां पर यह श्लोक देवनागरी लिपि एवं  रोमन लिपि में भी दिए गए हैं एवं उनके अर्थ हिंदी देवनागरी एवं अंग्रेजी में रोमन लिपि में भी दिये गये हैं। जिससे विदेशों में रहने वाले भारतीय जो देवनागरी से परिचित नहीं हैं सनातन ग्रंथों के ज्ञान से लाभान्वित हो सकें।

अथ दशमोऽध्यायः ॥ 10 ॥

atha daśamō’dhyāyaḥ ॥ 10 ॥

ग्रन्थ का नाम : चाणक्यनीतिदर्पण,  रचनाकार – आचार्य चाणक्य,   अध्याय – 10   श्लोक-  16-20

चाणक्य की प्रसिद्धि : 

ये संस्कृत श्लोक आचार्य चाणक्य के द्वारा रचित हैं। उनका नाम कौटिल्य एवं विष्णुगुप्त के नाम से भी प्रसिद्ध है। उनकी रचनाएँ Chanakya सूत्र, chanakya niti, chanakya ni pothi, chanakya quotes, chanakya niti in hindi, chanakya quotes in hindi, चाणक्य, चाणक्य नीति,  चाणक्य नीति की 10 बातें,  चाणक्य नीति की बातें, चाणक्य के कड़वे वचन, चाणक्य नीति स्त्री, चाणक्य नीति की 100 बातें,  चाणक्य विचार इन हिंदी, चाणक्य नीति सुविचार, चाणक्य नीति जीवन जीने की, सुविचार चाणक्य के कड़वे वचन, sanskrit shlok, shlok,sanskrit, sanskrit shlok,sanskrit quotes,shlok in sanskrit, sanskrit thought, sanskrit slokas,संस्कृत श्लोक,श्लोक,छोटे संस्कृत श्लोक, आदि के रूप में चर्चित एवं प्रसिद्ध है । 

चाणक्य का कालातीत प्रभाव  :

हजारों वर्षों के उपरांत भी उनमें वही ताजगी और उपयोगिता है। अतः वे आज भी उतने ही प्रासंगिक बने हुए हैं जितने वे तब थे जब वे लिखे गये थे। संस्कृत में रचित होने के कारण उनमें कालांतर के प्रभाव को स्पष्टतः नहीं देखा जाता है क्योंकि संस्कृत भाषा का सर्वश्रेष्ठ व्याकरण उसके अस्तित्व एवं गुणवत्ता के साथ ही उसके प्रभाव कि भी सुरक्षा करता है। ये अत्यंत ज्ञानवर्धक, पठनीय एवं माननीय हैं। ये जीवन‌ के अनेक चौराहों पर हमारा मार्गदर्शन करते हैं जब सब ओर अंधकार छा जाने की प्रतीति होती है।

About Chanakya (चाणक्य के बारे में) :

 चाणक्य का प्रभाव प्राचीन भारत से परे तक फैला हुआ है, क्योंकि शासन कला और शासन पर उनके विचारों का दुनिया भर के विद्वानों और नीति निर्माताओं द्वारा अध्ययन और सम्मान किया जाता है।  राजनीति के प्रति उनका व्यावहारिक दृष्टिकोण और राज्य और उसके नागरिकों के कल्याण पर उनका जोर उन्हें एक कालातीत व्यक्ति बनाता है जिनकी बुद्धि समय और स्थान की सीमाओं से परे है।

 चाणक्यनीतिदर्पण – 10.3

चाणक्य नीति दर्पण मूलत: संस्कृत (Sanskrit) में संस्कृत सुभाषितों के रूप में, काव्यात्मक एवं श्लोकों  के रूप में लिखा हुआ ग्रंथ है। इसके रचनाकार आचार्य चाणक्य हैं। उनके ये संस्कृत श्लोक चाणक्य नीति के नाम से संसार भर में प्रसिद्ध हैं। यहां पर यह श्लोक देवनागरी लिपि एवं  रोमन लिपि में भी दिए गए हैं एवं उनके अर्थ हिंदी देवनागरी एवं अंग्रेजी में रोमन लिपि में भी दिये गये हैं। जिससे विदेशों में रहने वाले भारतीय जो देवनागरी से परिचित नहीं हैं सनातन ग्रंथों के ज्ञान से लाभान्वित हो सकें।

अथ दशमोऽध्यायः ॥ 10 ॥

atha daśamō’dhyāyaḥ ॥ 10 ॥


आप्तद्वेषाद्भवेनमृत्युःपरद्वेषा जनक्षयः ॥ 
राजद्वेषाद्भवेन्नाशोब्रह्मद्वेषात्कुलक्षयः ॥११॥

अर्थ -  बड़ों के द्वेष से मृत्यु होती है शत्रु से विरोध करने से धन का क्षय है, राजा के द्वेष से नाश और ब्राह्मण के द्वेष से कुल का क्षय होता है ॥ ११ ॥

āptadvēṣādbhavēnamr̥tyuḥparadvēṣā janakṣayaḥ ॥ 
rājadvēṣādbhavēnnāśōbrahmadvēṣātkulakṣayaḥ ॥11॥

Meaning - Hatred of elders leads to death, opposition to the enemy leads to loss of wealth, hatred of the king leads to destruction and hatred of a Brahmin leads to loss of the family. 11 ॥

वरंवनेव्याघ्रगजेंद्रसेवितेदुमालयेपत्रफलाबुसे- वनम् ॥ 
तृणेषुशय्याशतजीर्णवल्कलंनबंधु मध्येधनहीनजीवनम् ॥ १२ ॥

अर्थ - वन में बाघ और बड़े-२ हाथियों से सेवित वृक्ष के नीचे उनके पत्ते फल खाना, व जल का पीना, घास पर सोना, सौ टुकड़े किए बकलों को पहिनना ये श्रेष्ठ है; पर बंधुओं के मध्य में धनहीन का जीना श्रेष्ठ नहीं है ॥ १२ ॥

varaṁvanēvyāghragajēṁdrasēvitēdumālayēpatraphalābusē- vanam ॥ 
tr̥ṇēṣuśayyāśatajīrṇavalkalaṁnabaṁdhu madhyēdhanahīnajīvanam ॥ 12 ॥
Meaning - It is best to be under the trees in the forest, served by tigers and big elephants, eat their leaves, fruits, drink water, sleep on the grass, wear buckles cut into a hundred pieces; But it is not best for a moneyless person to live among his brothers. 12 ॥

विप्रोवृक्षस्तस्यमूलंचसंध्यावेदाः शाखाधर्मक र्माणिपत्रम् ॥ 
तस्मान्मूलंयत्नतोरक्षणीयंछिन्ने मूलेनैवशाखानपत्रम् ॥ १३ ॥

अर्थ - ब्राह्मण वृक्ष है, उसकी जड़ संध्या है, वेद शाखा है, और धर्म के कर्म पत्ते हैं, इस कारण प्रयत्न कर के जड़ की रक्षा करनी चाहिये, जड़ कट जाने पर न शाखा रहेगी और न पत्ते ॥ १३ ॥

viprōvr̥kṣastasyamūlaṁcasaṁdhyāvēdāḥ śākhādharmaka rmāṇipatram ॥ 
tasmānmūlaṁyatnatōrakṣaṇīyaṁchinnē mūlēnaivaśākhānapatram ॥ 13 ॥

Meaning - Brahmin is a tree, its root is Sandhya, Veda is the branch, and the deeds of religion are the leaves, hence one should try and protect the root, if the root is cut, neither the branch nor the leaves will remain. 13 ॥

माताचकमलादेवीपितादेवोजनार्दनः ॥ 
बांधवा विष्णुभक्ताश्वस्वदेशोभुवनत्रयम् ।१४।

अर्थ - जिसकी लक्ष्मी माता है और विष्णु भगवान् पिता हैं और विष्णु के भक्त बांधव हैं उसको तीनों लोक स्वदेश ही हैं ॥ १४ ॥

mātācakamalādēvīpitādēvōjanārdanaḥ ॥ 
bāṁdhavā viṣṇubhaktāśvasvadēśōbhuvanatrayam |14|

Meaning - One who has Lakshmi as his mother and Lord Vishnu as his father and has devotees of Vishnu as his relatives, all the three worlds are his homeland. 14 ॥

एकवृक्षसमारूढानानावर्णाविहंगमाः ॥ 
प्रभातेदिक्षुदशसुयांतिका परिवेदना ॥ १५ ॥

अर्थ - नाना प्रकार के पखेरू एक वृक्ष पर बैठते हैं प्रभात समय दशों दिशाओं में चले जाते हैं उसमें क्या वेदना या दुख है ॥ १५ ॥

ēkavr̥kṣasamārūḍhānānāvarṇāvihaṁgamāḥ ॥ 
prabhātēdikṣudaśasuyāṁtikā parivēdanā ॥ 15 ॥
Meaning - Different types of birds sit on a tree in the morning and go in ten directions. What pain or sorrow is there in that? 15.
ग्रन्थ का नाम : चाणक्यनीतिदर्पण,  रचनाकार – आचार्य चाणक्य,   अध्याय – 9   श्लोक-  11-15

चाणक्य की प्रसिद्धि : 

ये संस्कृत श्लोक आचार्य चाणक्य के द्वारा रचित हैं। उनका नाम कौटिल्य एवं विष्णुगुप्त के नाम से भी प्रसिद्ध है। उनकी रचनाएँ Chanakya सूत्र, chanakya niti, chanakya ni pothi, chanakya quotes, chanakya niti in hindi, chanakya quotes in hindi, चाणक्य, चाणक्य नीति,  चाणक्य नीति की 10 बातें,  चाणक्य नीति की बातें, चाणक्य के कड़वे वचन, चाणक्य नीति स्त्री, चाणक्य नीति की 100 बातें,  चाणक्य विचार इन हिंदी, चाणक्य नीति सुविचार, चाणक्य नीति जीवन जीने की, सुविचार चाणक्य के कड़वे वचन, sanskrit shlok, shlok,sanskrit, sanskrit shlok,sanskrit quotes,shlok in sanskrit, sanskrit thought, sanskrit slokas,संस्कृत श्लोक,श्लोक,छोटे संस्कृत श्लोक, आदि के रूप में चर्चित एवं प्रसिद्ध है । 

चाणक्य का कालातीत प्रभाव  :

हजारों वर्षों के उपरांत भी उनमें वही ताजगी और उपयोगिता है। अतः वे आज भी उतने ही प्रासंगिक बने हुए हैं जितने वे तब थे जब वे लिखे गये थे। संस्कृत में रचित होने के कारण उनमें कालांतर के प्रभाव को स्पष्टतः नहीं देखा जाता है क्योंकि संस्कृत भाषा का सर्वश्रेष्ठ व्याकरण उसके अस्तित्व एवं गुणवत्ता के साथ ही उसके प्रभाव कि भी सुरक्षा करता है। ये अत्यंत ज्ञानवर्धक, पठनीय एवं माननीय हैं। ये जीवन‌ के अनेक चौराहों पर हमारा मार्गदर्शन करते हैं जब सब ओर अंधकार छा जाने की प्रतीति होती है।

About Chanakya (चाणक्य के बारे में) :

 चाणक्य का प्रभाव प्राचीन भारत से परे तक फैला हुआ है, क्योंकि शासन कला और शासन पर उनके विचारों का दुनिया भर के विद्वानों और नीति निर्माताओं द्वारा अध्ययन और सम्मान किया जाता है।  राजनीति के प्रति उनका व्यावहारिक दृष्टिकोण और राज्य और उसके नागरिकों के कल्याण पर उनका जोर उन्हें एक कालातीत व्यक्ति बनाता है जिनकी बुद्धि समय और स्थान की सीमाओं से परे है।

 चाणक्यनीतिदर्पण – 10.2

चाणक्य नीति दर्पण मूलत: संस्कृत (Sanskrit) में संस्कृत सुभाषितों के रूप में, काव्यात्मक एवं श्लोकों  के रूप में लिखा हुआ ग्रंथ है। इसके रचनाकार आचार्य चाणक्य हैं। उनके ये संस्कृत श्लोक चाणक्य नीति के नाम से संसार भर में प्रसिद्ध हैं। यहां पर यह श्लोक देवनागरी लिपि एवं  रोमन लिपि में भी दिए गए हैं एवं उनके अर्थ हिंदी देवनागरी एवं अंग्रेजी में रोमन लिपि में भी दिये गये हैं। जिससे विदेशों में रहने वाले भारतीय जो देवनागरी से परिचित नहीं हैं सनातन ग्रंथों के ज्ञान से लाभान्वित हो सकें।

अथ दशमोऽध्यायः ॥ 10 ॥

atha daśamō’dhyāyaḥ ॥ 10 ॥


लुब्धानायाचकःशत्रुर्मूर्खाणाबोधकोरिपुः ॥ 
जारस्त्रीणांपतिःशत्रुश्चौर राणां चंद्रमारिषुः॥६॥
अर्थ - लोभियों को याचक और मूर्ख को समझाने वाला और पुंश्चलीस्त्रियों को पति और चोरों को चन्द्रमा शत्रु है ॥ ६ ॥

lubdhānāyācakaḥśatrurmūrkhāṇābōdhakōripuḥ ॥ 
jārastrīṇāṁpatiḥśatruścaura rāṇāṁ caṁdramāriṣuḥ॥6॥
Meaning - The moon is the enemy of the greedy, the beggar of the foolish, the husband of the unruly women and the enemy of the thieves. 6॥

येषांनविद्यानतपो नदानंनचापिशीलनगुणोंन धर्मः ॥ 
ते मृत्युलोके सुविभार भूत मनष्य रूपेण मृगाश्चरन्ति ॥ ७ ॥

अर्थ - जिन लोगों में न विद्या है, न तप है, न दान  है न शील है न गुण है और न धर्म है वे संसार में पृथ्वी पर भार रूप होकर मनुष्य रूप से मृगवत फिर रहे हैं ॥ ७ ॥

yēṣāṁnavidyānatapō nadānaṁnacāpiśīlanaguṇōṁna dharmaḥ ॥ 
tē mr̥tyulōkē suvibhāra bhūta manaṣya rūpēṇa mr̥gāścaranti ॥ 7 ॥
Meaning - Those people who have neither knowledge, nor penance, nor charity, nor modesty, nor virtues, nor religion, they are wandering in the world like a burden on the earth, dying in human form. 7 ॥

अंतःसारविहीनानामुपदेशोनजायते ॥ 
मलयाचल संसर्गान्नवेणुश्चंदनायते ॥ ८ ॥

अर्थ - गंभीरता विहीन पुरुषों को शिक्षा देना सार्थक नहीं होता, मलयाचलके संग में बांस चन्दन नहीं हो जाता ॥ ८ ॥

aṁtaḥsāravihīnānāmupadēśōnajāyatē ॥ 
malayācala saṁsargānnavēṇuścaṁdanāyatē ॥ 8 ॥
Meaning - It is not meaningful to give education to people without seriousness, bamboo does not become sandalwood in the company of Malayalam. 8॥

यस्यनास्तिस्वयंप्रज्ञाशास्त्रंतस्यकरोतिकिं ॥ 
लोचनाभ्यांविहीनस्यदर्पणंकिंकरिष्यति॥9॥

अर्थ - जिसकी स्वाभाविक बुद्धि नहीं है उसको शास्त्र क्या कर सकता है आंखों से हीन को दर्पण क्या करेगा ॥ 9 ॥

yasyanāstisvayaṁprajñāśāstraṁtasyakarōtikiṁ || 
lōcanābhyāṁvihīnasyadarpaṇaṁkiṁkariṣyati||9||

Meaning - What can the scriptures do to someone who does not have natural intelligence? What can a mirror do to someone who is blind? 9॥

दुर्जनंसज्जनं कर्तुमुपायोन हि भूतले ॥ 
अपानंशतधाधौतं न श्रेष्ठमिन्द्रियंभवेत् ॥१०॥

अर्थ - दुर्जन को सज्जन करने के लिये पृथ्वी तल में कोई उपाय नहीं है मल का त्याग करने वाली इन्द्रिय सौ बार भी धोई जाय तो भी वह श्रेष्ठ इन्द्रिय न होगी ॥ १०॥

durjanaṁsajjanaṁ kartumupāyōna hi bhūtalē ॥ 
apānaṁśatadhādhautaṁ na śrēṣṭhamindriyaṁbhavēt ॥10॥

Meaning - There is no way on earth to make the durjan means persons with evils or bad things within him, to  a noble person. Even if the organ of excretion is washed a hundred times, it will not be the best organ. 10॥
ग्रन्थ का नाम : चाणक्यनीतिदर्पण,  रचनाकार – आचार्य चाणक्य,   अध्याय – 10   श्लोक-  16-20

चाणक्य की प्रसिद्धि : 

ये संस्कृत श्लोक आचार्य चाणक्य के द्वारा रचित हैं। उनका नाम कौटिल्य एवं विष्णुगुप्त के नाम से भी प्रसिद्ध है। उनकी रचनाएँ Chanakya सूत्र, chanakya niti, chanakya ni pothi, chanakya quotes, chanakya niti in hindi, chanakya quotes in hindi, चाणक्य, चाणक्य नीति,  चाणक्य नीति की 10 बातें,  चाणक्य नीति की बातें, चाणक्य के कड़वे वचन, चाणक्य नीति स्त्री, चाणक्य नीति की 100 बातें,  चाणक्य विचार इन हिंदी, चाणक्य नीति सुविचार, चाणक्य नीति जीवन जीने की, सुविचार चाणक्य के कड़वे वचन, sanskrit shlok, shlok,sanskrit, sanskrit shlok,sanskrit quotes,shlok in sanskrit, sanskrit thought, sanskrit slokas,संस्कृत श्लोक,श्लोक,छोटे संस्कृत श्लोक, आदि के रूप में चर्चित एवं प्रसिद्ध है । 

चाणक्य का कालातीत प्रभाव  :

हजारों वर्षों के उपरांत भी उनमें वही ताजगी और उपयोगिता है। अतः वे आज भी उतने ही प्रासंगिक बने हुए हैं जितने वे तब थे जब वे लिखे गये थे। संस्कृत में रचित होने के कारण उनमें कालांतर के प्रभाव को स्पष्टतः नहीं देखा जाता है क्योंकि संस्कृत भाषा का सर्वश्रेष्ठ व्याकरण उसके अस्तित्व एवं गुणवत्ता के साथ ही उसके प्रभाव कि भी सुरक्षा करता है। ये अत्यंत ज्ञानवर्धक, पठनीय एवं माननीय हैं। ये जीवन‌ के अनेक चौराहों पर हमारा मार्गदर्शन करते हैं जब सब ओर अंधकार छा जाने की प्रतीति होती है।

About Chanakya (चाणक्य के बारे में) :

 चाणक्य का प्रभाव प्राचीन भारत से परे तक फैला हुआ है, क्योंकि शासन कला और शासन पर उनके विचारों का दुनिया भर के विद्वानों और नीति निर्माताओं द्वारा अध्ययन और सम्मान किया जाता है।  राजनीति के प्रति उनका व्यावहारिक दृष्टिकोण और राज्य और उसके नागरिकों के कल्याण पर उनका जोर उन्हें एक कालातीत व्यक्ति बनाता है जिनकी बुद्धि समय और स्थान की सीमाओं से परे है।

 चाणक्यनीतिदर्पण – 10.1

चाणक्य नीति दर्पण मूलत: संस्कृत (Sanskrit) में संस्कृत सुभाषितों के रूप में, काव्यात्मक एवं श्लोकों  के रूप में लिखा हुआ ग्रंथ है। इसके रचनाकार आचार्य चाणक्य हैं। उनके ये संस्कृत श्लोक चाणक्य नीति के नाम से संसार भर में प्रसिद्ध हैं। यहां पर यह श्लोक देवनागरी लिपि एवं  रोमन लिपि में भी दिए गए हैं एवं उनके अर्थ हिंदी देवनागरी एवं अंग्रेजी में रोमन लिपि में भी दिये गये हैं। जिससे विदेशों में रहने वाले भारतीय जो देवनागरी से परिचित नहीं हैं सनातन ग्रंथों के ज्ञान से लाभान्वित हो सकें।

नवमोऽध्यायः ॥ 9 ॥

navamō’dhyāyaḥ ॥ 9 ॥

अथ दशमोऽध्यायः ॥ 10 ॥
atha daśamō’dhyāyaḥ ॥ 10 ॥


धनहीनोनहीनश्चधनिकःससुनिश्चयः ॥ 
विद्यारत्नेनहीनोयःसहीनःसर्ववस्तुषु ॥ १ ॥

धनहीन हीन नहीं गिना जाता, निश्चय है कि, वह धनी ही है विद्यारतन से जो हीन है वह सब वस्तुओं में हीन है ॥ १ ॥

dhanahīnōnahīnaścadhanikaḥsasuniścayaḥ ॥ 
vidyāratnēnahīnōyaḥsahīnaḥsarvavastuṣu ॥ 1 ॥

A person without money is not considered inferior, it is certain that he is rich and the one who is inferior to Vidyaratan is inferior in all things. 1॥

दृष्टिपूतंन्यसेत्पादंवस्त्रपूतंपिवेज्जलम् ॥ 
शास्त्रपूतंवदेद्वाक्यंमनःपूतंसमाचरेत् ॥ २ ॥

अर्थ - दृष्टि से शोधकर पांव रखना उचित है, वस्त्र से शुद्ध कर जल पीवे, शास्त्र से शुद्धकर वाक्य बोले और मन से सोच कर कार्य करना चाहिये ॥ २ ॥

dr̥ṣṭipūtaṁnyasētpādaṁvastrapūtaṁpivējjalam ॥ 
śāstrapūtaṁvadēdvākyaṁmanaḥpūtaṁsamācarēt ॥ 2 ॥

Meaning - It is appropriate to set foot after purifying one's vision, one should drink water after purifying one's clothes, one should speak words after purifying oneself from scriptures and one should act after thinking with one's mind. 2॥

सुखार्थीचेत्त्यजेद्विद्यांविद्यार्थीचेत्त्यजेत्सुखं ॥ 
सुखार्थिनःकुतोविद्यासुखंविद्यार्थिनः कुतः।३। 
अर्थ - यदि सुख चाहे तो विद्याको छोड़।  दे, यदि विद्या चाहे तो सुख का त्याग करे सुखार्थीको विद्या कैसे होगी और विद्यार्थीको सुख कैसे होगा।
sukhārthīcēttyajēdvidyāṁvidyārthīcēttyajētsukhaṁ ॥ 
sukhārthinaḥkutōvidyāsukhaṁvidyārthinaḥ kutaḥ|3| 

Meaning: If you want happiness then leave education. If he wants knowledge then he should sacrifice happiness. How will the seeker of happiness get knowledge and how will the student get happiness?

कवयः किंनपश्यंतिकिंन कुर्वैतियोषितः ॥ 
मद्यपाः किंन जल्पंतिकिंनखादंतिवायसाः॥४॥
अर्थ - कवि क्या नहीं देखते, स्त्री क्या नहीं कर सक्ती, मद्यपी क्या नहीं बकते और कौवे क्या नहीं खाते ॥ ४ ॥

kavayaḥ kiṁnapaśyaṁtikiṁna kurvaitiyōṣitaḥ ॥ 
madyapāḥ kiṁna jalpaṁtikiṁnakhādaṁtivāyasāḥ॥4॥
Meaning - What poets do not see, what women cannot do, what drunkards do not speak and what crows do not eat. ॥ 4 ॥

रंकंकरोतिराजानं राजानंरंकमेवच ॥ 
धनिनंनिर्धनंचैवनिर्धनंधनिनंविधिः ॥ ५ ॥
अर्थ - निश्चय है कि विधि रंक को राजा, राजा को रंक घनी को निर्धन और निर्धन को धनी कर देता है ॥ ५ ॥

raṁkaṁkarōtirājānaṁ rājānaṁraṁkamēvaca ॥ 
dhaninaṁnirdhanaṁcaivanirdhanaṁdhaninaṁvidhiḥ ॥ 5 ॥
Meaning - It is certain that law turns a pauper into a king, a king from a pauper into a rich man and a poor man into a rich man. ॥5॥
ग्रन्थ का नाम : चाणक्यनीतिदर्पण,  रचनाकार – आचार्य चाणक्य,   अध्याय – 10   श्लोक-  1-5

चाणक्य की प्रसिद्धि : 

ये संस्कृत श्लोक आचार्य चाणक्य के द्वारा रचित हैं। उनका नाम कौटिल्य एवं विष्णुगुप्त के नाम से भी प्रसिद्ध है। उनकी रचनाएँ Chanakya सूत्र, chanakya niti, chanakya ni pothi, chanakya quotes, chanakya niti in hindi, chanakya quotes in hindi, चाणक्य, चाणक्य नीति,  चाणक्य नीति की 10 बातें,  चाणक्य नीति की बातें, चाणक्य के कड़वे वचन, चाणक्य नीति स्त्री, चाणक्य नीति की 100 बातें,  चाणक्य विचार इन हिंदी, चाणक्य नीति सुविचार, चाणक्य नीति जीवन जीने की, सुविचार चाणक्य के कड़वे वचन, sanskrit shlok, shlok,sanskrit, sanskrit shlok,sanskrit quotes,shlok in sanskrit, sanskrit thought, sanskrit slokas,संस्कृत श्लोक,श्लोक,छोटे संस्कृत श्लोक, आदि के रूप में चर्चित एवं प्रसिद्ध है । 

चाणक्य का कालातीत प्रभाव  :

हजारों वर्षों के उपरांत भी उनमें वही ताजगी और उपयोगिता है। अतः वे आज भी उतने ही प्रासंगिक बने हुए हैं जितने वे तब थे जब वे लिखे गये थे। संस्कृत में रचित होने के कारण उनमें कालांतर के प्रभाव को स्पष्टतः नहीं देखा जाता है क्योंकि संस्कृत भाषा का सर्वश्रेष्ठ व्याकरण उसके अस्तित्व एवं गुणवत्ता के साथ ही उसके प्रभाव कि भी सुरक्षा करता है। ये अत्यंत ज्ञानवर्धक, पठनीय एवं माननीय हैं। ये जीवन‌ के अनेक चौराहों पर हमारा मार्गदर्शन करते हैं जब सब ओर अंधकार छा जाने की प्रतीति होती है।

About Chanakya (चाणक्य के बारे में) :

 चाणक्य का प्रभाव प्राचीन भारत से परे तक फैला हुआ है, क्योंकि शासन कला और शासन पर उनके विचारों का दुनिया भर के विद्वानों और नीति निर्माताओं द्वारा अध्ययन और सम्मान किया जाता है।  राजनीति के प्रति उनका व्यावहारिक दृष्टिकोण और राज्य और उसके नागरिकों के कल्याण पर उनका जोर उन्हें एक कालातीत व्यक्ति बनाता है जिनकी बुद्धि समय और स्थान की सीमाओं से परे है।

 चाणक्यनीतिदर्पण – 9.3

चाणक्य नीति दर्पण मूलत: संस्कृत (Sanskrit) में संस्कृत सुभाषितों के रूप में, काव्यात्मक एवं श्लोकों  के रूप में लिखा हुआ ग्रंथ है। इसके रचनाकार आचार्य चाणक्य हैं। उनके ये संस्कृत श्लोक चाणक्य नीति के नाम से संसार भर में प्रसिद्ध हैं। यहां पर यह श्लोक देवनागरी लिपि एवं  रोमन लिपि में भी दिए गए हैं एवं उनके अर्थ हिंदी देवनागरी एवं अंग्रेजी में रोमन लिपि में भी दिये गये हैं। जिससे विदेशों में रहने वाले भारतीय जो देवनागरी से परिचित नहीं हैं सनातन ग्रंथों के ज्ञान से लाभान्वित हो सकें।

नवमोऽध्यायः ॥ 9 ॥

navamō’dhyāyaḥ ॥ 9 ॥

प्रातर्युतप्रसंगेनमध्याह्नेस्त्रीप्रसंगतः ॥ 
रातौचौरप्रसंगेनकालोगच्छति धीमताम्।११।
अर्थ - प्रात:कालमें जुआड़ियों की कथासे अर्थात् महाभारत में मध्यान्ह में स्त्रीके प्रसंगसे अर्थात् रामायण से, रात्रीमें चोर की वार्ता से अर्थात् भागवतसे, बुद्धिमानों का समय बीतता है ॥ तात्पर्य यह कि, महाभारतके सुनने से यह निश्चय हो जाता है कि, जुआ, कलह और छल का घर है। इस लोक और परलोक में उपकार करने वाले कामों को महाभारत में लिखी हुई रीतियों से करने पर उन कामोंका पूरा फल होता है; इस कारण बुद्धिमान् लोग प्रातःकाल ही में माहाभारतको सुनते हैं, जिससे दिनभर उसी रीती से काम करते जांय, रामायण सुनने से स्पष्ट उदाहरण मिलता है कि, स्त्रीके वश होनेसे अत्यन्त दुःख होता है और परस्त्रीपर दृष्टि देने से पुत्र कलत्र जड़ मूल के साथ पुरुष का नाश हो जाता है; इस हेतु, मध्यान्ह में अच्छे लोग रामायण को सुनते हैं प्रायःरात्रि में लोग इंन्द्रियों के वश हो जाते हैं और इन्द्रियोंका यह स्वभाव है कि, मन को अपने अपने विषयों में लगाकर जीव को विषयों में लगा देती हैं; इसी हेतु से इन्द्रियों को आत्माप्रहारी भी कहते हैं और जो लोग रात को भागवत सुनते हैं वे कृष्ण के चरित्रको स्मरण करके इन्द्रियों के वश नहीं होते। क्योंकि सोलह हजार से अधिक स्त्रियों के रहते भी श्रीकृष्णचन्द्र इन्द्रियों के वश न हुए और इन्द्रियों के संयमकी रीति भी जान जाते हैं।११।

prātaryutaprasaṁgēnamadhyāhnēstrīprasaṁgataḥ ॥ 
rātaucauraprasaṁgēnakālōgacchati dhīmatām|11|

Meaning - In the morning, the wise people spend their time in the story of gamblers, i.e. in the Mahabharata, in the afternoon, in the story of the woman, i.e., in the Ramayana, in the night, in the conversation of the thief, i.e., in the Bhagwat. The meaning is that, after listening to Mahabharata, it becomes clear that gambling is the home of discord and deceit. If the works that are beneficial in this world and the next world are done as per the rituals written in Mahabharata, then those works get full results; For this reason, intelligent people listen to Mahabharata in the morning itself, so that they can work in the same way throughout the day. Listening to Ramayana gives a clear example that being under the influence of a woman causes immense sorrow and looking at another woman leads to the destruction of a man along with his son's evil roots. It happens; For this reason, good people listen to Ramayana in the afternoon. Most of the time in the night people become under the influence of senses and the nature of the senses is that by engaging the mind in their respective subjects, they engage the soul in the subjects; For this reason, the senses are also called soul destroyers and those who listen to Bhagwat at night do not come under the control of the senses by remembering the character of Krishna. Because even in the presence of more than sixteen thousand women, Shri Krishna Chandra did not come under the control of senses and also knows the method of controlling the senses.11.

स्वहस्तग्रथितामालास्वहस्तघृष्टचन्दनम् ॥ 
कुवहस्तलिखितं स्तोत्रंशक्रस्यापिश्रियंहरेत् ।१२।

अर्थ - अपने हाथ से गुथी माला, अपने हाथ से घिसा चंदन, अपने हाथ से लिखा स्तोत्र ये इन्द्रकी लक्ष्मीको भी हर लेते हैं॥ १२ ॥

svahastagrathitāmālāsvahastaghr̥ṣṭacandanam ॥ 
kuvahastalikhitaṁ stōtraṁśakrasyāpiśriyaṁharēt |12|
Meaning - The garland woven with one's own hand, the sandalwood rubbed with one's own hand, the hymn written with one's own hand, these take away even Lakshmi of Indra. 12 ॥

इक्षुदंडास्तिलाःशूद्राःकांताहेमचमेदिनी ॥ 
चंदनंदधितांबूलंमर्दनंगुणवर्धनम् ॥ १३ ॥

अर्थ - ऊष, तिल, शूद्र, कांता, सोना, पृथ्वी, चन्दन, दही और पान इनका मर्दन गुणवर्द्धक है ॥१३॥

ikṣudaṁḍāstilāḥśūdrāḥkāṁtāhēmacamēdinī ॥ 
caṁdanaṁdadhitāṁbūlaṁmardanaṁguṇavardhanam ॥ 13 ॥

Meaning - Ush, sesame, shudra, thorn, gold, earth, sandalwood, curd and betel leaf enhance the qualities of man.13॥

दरिद्रताधीर तयाविराजतेकुवत्रताशुभ्रतयावि राजते। 
कंदन्नताचोष्णतयाविराजते कुरूपता शीलतयाविराजते ॥ १४ ॥

अर्थ - दरिद्रता भी धीरता से शोभती है स्वच्छता से "कुवत्र सुंदर जान पड़ता है। कुअन्न भी उष्णता से मीठा लगता है कुरूपता भी सुशीलता हो तो शोभा देती है॥१४ ॥ 

daridratādhīra tayāvirājatēkuvatratāśubhratayāvi rājatē| 
kaṁdannatācōṣṇatayāvirājatē kurūpatā śīlatayāvirājatē ॥ 14 ॥

Meaning - Poverty also becomes beautiful due to patience. Cleanliness makes the wicked look beautiful. Even good food looks sweet due to warmth. Even ugliness becomes beautiful if there is politeness. ॥14 ॥

इति नवमोऽध्यायः ॥ ९॥
iti navamō’dhyāyaḥ ॥ 9॥

अथ वृद्धचाणक्यस्योत्तरार्द्धम् । 
atha vr̥ddhacāṇakyasyōttarārddham | 
ग्रन्थ का नाम : चाणक्यनीतिदर्पण,  रचनाकार – आचार्य चाणक्य,   अध्याय – 9   श्लोक-  11-14

चाणक्य की प्रसिद्धि : 

ये संस्कृत श्लोक आचार्य चाणक्य के द्वारा रचित हैं। उनका नाम कौटिल्य एवं विष्णुगुप्त के नाम से भी प्रसिद्ध है। उनकी रचनाएँ Chanakya सूत्र, chanakya niti, chanakya ni pothi, chanakya quotes, chanakya niti in hindi, chanakya quotes in hindi, चाणक्य, चाणक्य नीति,  चाणक्य नीति की 10 बातें,  चाणक्य नीति की बातें, चाणक्य के कड़वे वचन, चाणक्य नीति स्त्री, चाणक्य नीति की 100 बातें,  चाणक्य विचार इन हिंदी, चाणक्य नीति सुविचार, चाणक्य नीति जीवन जीने की, सुविचार चाणक्य के कड़वे वचन, sanskrit shlok, shlok,sanskrit, sanskrit shlok,sanskrit quotes,shlok in sanskrit, sanskrit thought, sanskrit slokas,संस्कृत श्लोक,श्लोक,छोटे संस्कृत श्लोक, आदि के रूप में चर्चित एवं प्रसिद्ध है । 

चाणक्य का कालातीत प्रभाव  :

हजारों वर्षों के उपरांत भी उनमें वही ताजगी और उपयोगिता है। अतः वे आज भी उतने ही प्रासंगिक बने हुए हैं जितने वे तब थे जब वे लिखे गये थे। संस्कृत में रचित होने के कारण उनमें कालांतर के प्रभाव को स्पष्टतः नहीं देखा जाता है क्योंकि संस्कृत भाषा का सर्वश्रेष्ठ व्याकरण उसके अस्तित्व एवं गुणवत्ता के साथ ही उसके प्रभाव कि भी सुरक्षा करता है। ये अत्यंत ज्ञानवर्धक, पठनीय एवं माननीय हैं। ये जीवन‌ के अनेक चौराहों पर हमारा मार्गदर्शन करते हैं जब सब ओर अंधकार छा जाने की प्रतीति होती है।

About Chanakya (चाणक्य के बारे में) :

 चाणक्य का प्रभाव प्राचीन भारत से परे तक फैला हुआ है, क्योंकि शासन कला और शासन पर उनके विचारों का दुनिया भर के विद्वानों और नीति निर्माताओं द्वारा अध्ययन और सम्मान किया जाता है।  राजनीति के प्रति उनका व्यावहारिक दृष्टिकोण और राज्य और उसके नागरिकों के कल्याण पर उनका जोर उन्हें एक कालातीत व्यक्ति बनाता है जिनकी बुद्धि समय और स्थान की सीमाओं से परे है।

« Older posts Newer posts »

© 2025 कविता

Theme by Anders NorénUp ↑