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 चाणक्यनीतिदर्पण – 13.4

चाणक्य नीति दर्पण मूलत: संस्कृत (Sanskrit) में संस्कृत सुभाषितों के रूप में, काव्यात्मक एवं श्लोकों  के रूप में लिखा हुआ ग्रंथ है। इसके रचनाकार आचार्य चाणक्य हैं। उनके ये संस्कृत श्लोक चाणक्य नीति के नाम से संसार भर में प्रसिद्ध हैं। यहां पर यह श्लोक देवनागरी लिपि एवं  रोमन लिपि में भी दिए गए हैं एवं उनके अर्थ हिंदी देवनागरी एवं अंग्रेजी में रोमन लिपि में भी दिये गये हैं। जिससे विदेशों में रहने वाले भारतीय जो देवनागरी से परिचित नहीं हैं सनातन ग्रंथों के ज्ञान से लाभान्वित हो सकें।

अथ त्रयोदशोऽध्यायः ॥ 13 ॥

atha trayōdaśō’dhyāyaḥ ॥ 13 ॥

ग्रन्थ का नाम : चाणक्यनीतिदर्पण,  रचनाकार – आचार्य चाणक्य,   अध्याय – 13   श्लोक-  16-20

अनवस्थितकार्यस्यनजनेनवनेसुखम् ॥ 
जनोदहतिसंसर्गाद्वनं सङ्ग विवर्जनात् ॥ १६ ॥

अर्थ - जिसके कार्य की स्थिरता नहीं रहती वह न जन में और न वन में सुख पाता है। जन उसको संसर्ग से जलाता है और वन संग के त्याग से जलाता है॥ १६ ॥

anavasthitakāryasyanajanēnavanēsukham ॥ 
janōdahatisaṁsargādvanaṁ saṅga vivarjanāt ॥ 16 ॥

Meaning - One who does not have stability in his work finds happiness neither in the world nor in the forest. People burn it with contact and the forest burns with renunciation of company. ।। 16 ॥

यथाखात्वाखनित्रेणभूतलेर्वारिविन्दति ॥ 
तथागुरुगतांविद्यांशुश्रूषुरधिगच्छति ॥ १७ ॥

अर्थ - जैसे खनने के कारण  खनिक उसे खनके  पाताल के जल को पाता है। वैसे ही गुरु गत विद्या को सेवक शिष्य पाता है ॥ १७ ॥

yathākhātvākhanitrēṇabhūtalērvārivindati ॥ 
tathāgurugatāṁvidyāṁśuśrūṣuradhigacchati ॥ 17 ॥

Meaning - As a result of mining, the miner finds the water of the underworld by digging. Similarly, the servant receives the knowledge given by the Guru as his disciple. 17 ॥

कर्मा यत्तफलंपुंसांबुद्धिःकर्मानुसारिणी ॥ 
तथापिसुधिपश्चार्याःसुविचार्यैवकुर्वते ॥१८॥

अर्थ - यद्यपि फल पुरुष के कर्मके आधीन रहता है और बुद्धि भी कर्म के अनुसार ही चलती है तथापि विवेकी महात्मा लोग विचार करके ही अपने काम करते हैं ॥१८॥

karmā yattaphalaṁpuṁsāṁbuddhiḥkarmānusāriṇī ॥ 
tathāpisudhipaścāryāḥsuvicāryaivakurvatē ॥18॥

Meaning - Although the result is dependent on the actions of the man and the intellect also works according to the actions, yet the wise Mahatmas do their work only after thinking. ।।18॥

सन्तोषस्त्रिषुकर्तव्यः स्वदारेभोजनेधने ॥ 
त्रिषुचैवन कर्तव्यो ऽध्ययनेजपदानयोः ॥१९॥

अर्थ - स्त्री, भोजन और धन इन तीन में सन्तोष करना उचित है।  पढना, तप और दान इन तीन में संतोष कभी नहीं करना चाहिये ॥ 19 ॥

santōṣastriṣukartavyaḥ svadārēbhōjanēdhanē ॥ 
triṣucaivana kartavyō ’dhyayanējapadānayōḥ ॥19॥

Meaning: It is appropriate to be satisfied with these three things: woman, food and money. One should never be satisfied with these three - reading, penance and charity. 19 ॥

एकाक्षरप्रदातारंयोगुरुंनाभिवंदते ॥ 
श्वानयोनिशतंभुक्त्वाचाण्डालेष्वभिजायते ॥ 20 ॥

अर्थ - जो एक अक्षर भी देनेवाले गुरु की वन्दना नहीं करता, वह कुत्ते की सौ योनि को भोगकर चांडालों में जन्म लेता है ॥ २० ॥
ēkākṣarapradātāraṁyōguruṁnābhivaṁdatē ॥ 
śvānayōniśataṁbhuktvācāṇḍālēṣvabhijāyatē ॥ 20 ॥
Meaning - One who does not worship the Guru who gives even a single letter, is born among the Chandalas after suffering through the hundred births of a dog. 20 ॥

युगांतेप्रचलेन्मेरुःकल्पांतेसप्तसागराः ॥ 
साधवःप्रतिपन्नार्थान्नचलंतिकदाचन ॥२१॥

अर्थ - युग के अन्त में सुमेरु चलायमान होता है और कल्प के अंत में सातों सागर, परन्तु संतजन स्वीकृत अर्थ से कभी भी विचलित नहीं होते॥ २१ ॥ 

yugāṁtēpracalēnmēruḥkalpāṁtēsaptasāgarāḥ ॥ 
sādhavaḥpratipannārthānnacalaṁtikadācana ॥21॥

Meaning - At the end of the Yuga, Sumeru moves and at the end of the Kalpa, the seven oceans, but the saints never deviate from the accepted meaning. 21 ॥
॥ इति श्रीवृद्धचाणक्ये त्रयोदशोऽध्यायः ॥ १३ ॥
॥ iti śrīvr̥ddhacāṇakyē trayōdaśō’dhyāyaḥ ॥ 13 ॥

चाणक्य की प्रसिद्धि : 

ये संस्कृत श्लोक आचार्य चाणक्य के द्वारा रचित हैं। उनका नाम कौटिल्य एवं विष्णुगुप्त के नाम से भी प्रसिद्ध है। उनकी रचनाएँ Chanakya सूत्र, chanakya niti, chanakya ni pothi, chanakya quotes, chanakya niti in hindi, chanakya quotes in hindi, चाणक्य, चाणक्य नीति,  चाणक्य नीति की 10 बातें,  चाणक्य नीति की बातें, चाणक्य के कड़वे वचन, चाणक्य नीति स्त्री, चाणक्य नीति की 100 बातें,  चाणक्य विचार इन हिंदी, चाणक्य नीति सुविचार, चाणक्य नीति जीवन जीने की, सुविचार चाणक्य के कड़वे वचन, sanskrit shlok, shlok,sanskrit, sanskrit shlok,sanskrit quotes,shlok in sanskrit, sanskrit thought, sanskrit slokas,संस्कृत श्लोक,श्लोक,छोटे संस्कृत श्लोक, आदि के रूप में चर्चित एवं प्रसिद्ध है । 

चाणक्य का कालातीत प्रभाव  :

हजारों वर्षों के उपरांत भी उनमें वही ताजगी और उपयोगिता है। अतः वे आज भी उतने ही प्रासंगिक बने हुए हैं जितने वे तब थे जब वे लिखे गये थे। संस्कृत में रचित होने के कारण उनमें कालांतर के प्रभाव को स्पष्टतः नहीं देखा जाता है क्योंकि संस्कृत भाषा का सर्वश्रेष्ठ व्याकरण उसके अस्तित्व एवं गुणवत्ता के साथ ही उसके प्रभाव कि भी सुरक्षा करता है। ये अत्यंत ज्ञानवर्धक, पठनीय एवं माननीय हैं। ये जीवन‌ के अनेक चौराहों पर हमारा मार्गदर्शन करते हैं जब सब ओर अंधकार छा जाने की प्रतीति होती है।

About Chanakya (चाणक्य के बारे में) :

 चाणक्य का प्रभाव प्राचीन भारत से परे तक फैला हुआ है, क्योंकि शासन कला और शासन पर उनके विचारों का दुनिया भर के विद्वानों और नीति निर्माताओं द्वारा अध्ययन और सम्मान किया जाता है।  राजनीति के प्रति उनका व्यावहारिक दृष्टिकोण और राज्य और उसके नागरिकों के कल्याण पर उनका जोर उन्हें एक कालातीत व्यक्ति बनाता है जिनकी बुद्धि समय और स्थान की सीमाओं से परे है।


 चाणक्यनीतिदर्पण – 13.3

चाणक्य नीति दर्पण मूलत: संस्कृत (Sanskrit) में संस्कृत सुभाषितों के रूप में, काव्यात्मक एवं श्लोकों  के रूप में लिखा हुआ ग्रंथ है। इसके रचनाकार आचार्य चाणक्य हैं। उनके ये संस्कृत श्लोक चाणक्य नीति के नाम से संसार भर में प्रसिद्ध हैं। यहां पर यह श्लोक देवनागरी लिपि एवं  रोमन लिपि में भी दिए गए हैं एवं उनके अर्थ हिंदी देवनागरी एवं अंग्रेजी में रोमन लिपि में भी दिये गये हैं। जिससे विदेशों में रहने वाले भारतीय जो देवनागरी से परिचित नहीं हैं सनातन ग्रंथों के ज्ञान से लाभान्वित हो सकें।

अथ त्रयोदशोऽध्यायः ॥ 13 ॥

atha trayōdaśō’dhyāyaḥ ॥ 13 ॥

ग्रन्थ का नाम : चाणक्यनीतिदर्पण,  रचनाकार – आचार्य चाणक्य,   अध्याय – 13   श्लोक-  11-15

दह्यमानः सुतीवेणनीचाः परयशोऽग्निना । 
आशक्तास्तत्पदं गन्तुंततो निंदांमकुर्वते ॥ ११॥

अर्थ - दुर्जन दूसरे की कीर्ति रूप दुःसह अग्नि से जल-कर उसके पद को नहीं पाते इसलिये उसकी निन्दा करने लगते हैं ॥ ११ ॥

dahyamānaḥ sutīvēṇanīcāḥ parayaśō’gninā | 
āśaktāstatpadaṁ gantuṁtatō niṁdāṁmakurvatē ॥ 11॥
Meaning - The wicked burn the fame of another person with the fire of misery and hence they do not get his position, hence they start criticizing him. 11 ॥

बन्धायविषयासंगोभुक्त्यै निर्विषयंमनः ॥ 
मनएवमनुष्याणां कारणंबन्धमोक्षयोः ॥१२॥

अर्थ - विषय में आसक्त मन बन्ध का हेतु है। विषय से रहित मुक्ति का, मनुष्यों के बन्ध और मोक्ष का कारण मन ही है ॥ १२ ॥
bandhāyaviṣayāsaṁgōbhuktyai nirviṣayaṁmanaḥ ॥ 
manēvamanuṣyāṇāṁ kāraṇaṁbandhamōkṣayōḥ ॥12॥

Meaning: The mind attached to the object is the cause of bondage. The mind is the cause of liberation without objects, the bondage and salvation of human beings. ।। 12 ॥

देहाभिमानेगलितेज्ञानेनपरमात्मनः 
यत्रयत्रमनोयातितत्रतत्रसमाधयः ॥ १३ ॥
अर्थ - परमात्मा के ज्ञान से देह के अभिमान के नाश हो जाने पर जहाँ  जहाँ  मन जाता है वहाँ वहाँ समाधि ही है ॥ १३ ॥

dēhābhimānēgalitējñānēnaparamātmanaḥ 
yatrayatramanōyātitatratatrasamādhayaḥ ॥ 13 ॥

Meaning - When the pride of the body is destroyed by the knowledge of God, wherever the mind goes there is only samadhi. ।। 13 ॥

ईप्सितंमनसः सर्वकस्यसंपद्यतेसुखम् ॥ 
दैवायत्तंयतःसर्वंतस्मात्सन्तोषमाश्रयेत्॥१४॥

अर्थ - मन का अभिलाषित सब सुख किसको मिलता है, जिस कारण सब दैवके वश है इससे संतोष पर भरोसा करना उचित है ॥ १४ ॥

īpsitaṁmanasaḥ sarvakasyasaṁpadyatēsukham ॥ 
daivāyattaṁyataḥsarvaṁtasmātsantōṣamāśrayēt॥14॥

Meaning - Who gets all the happiness desired by the mind, because everything is under the control of God, it is appropriate to rely on satisfaction from it. ।। 14 ॥

यथाधेनुसहस्त्रेषुवत्तो गच्छतिमातरम् ॥ 
तथायच्चकृतं कर्मकर्तारमनुगच्छति ॥ १५ ॥

अर्थ - जैसे सहस्रों धेनु के रहते बछरा माता ही के निकट जाता है; वैसे ही जो कुछ कर्म किया जाता सो कर्ता ही को मिलता है ॥ १५ ॥

yathādhēnusahastrēṣuvattō gacchatimātaram ॥ 
tathāyaccakr̥taṁ karmakartāramanugacchati ॥ 15 ॥

Meaning - Just as a calf goes near its mother in the presence of thousands of cows; Similarly, whatever work is done, only the doer gets it. 15.

चाणक्य की प्रसिद्धि : 

ये संस्कृत श्लोक आचार्य चाणक्य के द्वारा रचित हैं। उनका नाम कौटिल्य एवं विष्णुगुप्त के नाम से भी प्रसिद्ध है। उनकी रचनाएँ Chanakya सूत्र, chanakya niti, chanakya ni pothi, chanakya quotes, chanakya niti in hindi, chanakya quotes in hindi, चाणक्य, चाणक्य नीति,  चाणक्य नीति की 10 बातें,  चाणक्य नीति की बातें, चाणक्य के कड़वे वचन, चाणक्य नीति स्त्री, चाणक्य नीति की 100 बातें,  चाणक्य विचार इन हिंदी, चाणक्य नीति सुविचार, चाणक्य नीति जीवन जीने की, सुविचार चाणक्य के कड़वे वचन, sanskrit shlok, shlok,sanskrit, sanskrit shlok,sanskrit quotes,shlok in sanskrit, sanskrit thought, sanskrit slokas,संस्कृत श्लोक,श्लोक,छोटे संस्कृत श्लोक, आदि के रूप में चर्चित एवं प्रसिद्ध है । 

चाणक्य का कालातीत प्रभाव  :

हजारों वर्षों के उपरांत भी उनमें वही ताजगी और उपयोगिता है। अतः वे आज भी उतने ही प्रासंगिक बने हुए हैं जितने वे तब थे जब वे लिखे गये थे। संस्कृत में रचित होने के कारण उनमें कालांतर के प्रभाव को स्पष्टतः नहीं देखा जाता है क्योंकि संस्कृत भाषा का सर्वश्रेष्ठ व्याकरण उसके अस्तित्व एवं गुणवत्ता के साथ ही उसके प्रभाव कि भी सुरक्षा करता है। ये अत्यंत ज्ञानवर्धक, पठनीय एवं माननीय हैं। ये जीवन‌ के अनेक चौराहों पर हमारा मार्गदर्शन करते हैं जब सब ओर अंधकार छा जाने की प्रतीति होती है।

About Chanakya (चाणक्य के बारे में) :

 चाणक्य का प्रभाव प्राचीन भारत से परे तक फैला हुआ है, क्योंकि शासन कला और शासन पर उनके विचारों का दुनिया भर के विद्वानों और नीति निर्माताओं द्वारा अध्ययन और सम्मान किया जाता है।  राजनीति के प्रति उनका व्यावहारिक दृष्टिकोण और राज्य और उसके नागरिकों के कल्याण पर उनका जोर उन्हें एक कालातीत व्यक्ति बनाता है जिनकी बुद्धि समय और स्थान की सीमाओं से परे है।

 चाणक्यनीतिदर्पण – 13.2

चाणक्य नीति दर्पण मूलत: संस्कृत (Sanskrit) में संस्कृत सुभाषितों के रूप में, काव्यात्मक एवं श्लोकों  के रूप में लिखा हुआ ग्रंथ है। इसके रचनाकार आचार्य चाणक्य हैं। उनके ये संस्कृत श्लोक चाणक्य नीति के नाम से संसार भर में प्रसिद्ध हैं। यहां पर यह श्लोक देवनागरी लिपि एवं  रोमन लिपि में भी दिए गए हैं एवं उनके अर्थ हिंदी देवनागरी एवं अंग्रेजी में रोमन लिपि में भी दिये गये हैं। जिससे विदेशों में रहने वाले भारतीय जो देवनागरी से परिचित नहीं हैं सनातन ग्रंथों के ज्ञान से लाभान्वित हो सकें।

अथ त्रयोदशोऽध्यायः ॥ 13 ॥

atha trayōdaśō’dhyāyaḥ ॥ 13 ॥

ग्रन्थ का नाम : चाणक्यनीतिदर्पण,  रचनाकार – आचार्य चाणक्य,   अध्याय – 13   श्लोक-  6-10
यस्यस्नेहो भयंतस्यस्नेहोदुःखस्यभाजनं ॥ 
स्नेहमूलानिदुखानितानित्यक्त्वावसेत्सुखम्॥ 6 ॥

अर्थ - जिसको किसी में प्रीति रहती है उसी को भय होता है। स्नेह ही दुःख का भाजन है, और सब दुःख का कारण स्नेह (आसक्ति) ही है। इस कारण उसे छोड़कर सुखी होना उचित है ॥ ६ ॥

yasyasnēhō bhayaṁtasyasnēhōduḥkhasyabhājanaṁ ॥ 
snēhamūlānidukhānitānityaktvāvasētsukham॥ 6 ॥

Meaning - The one who has love for someone has fear. Affection is the food of sorrow, and the cause of all sorrow is affection (attachment). For this reason it is better to leave him and be happy. ।। 6॥

अनागतविधाताचप्रत्युत्पन्नमतिस्तथा ॥ 
द्वावेतौसुखमेधेतेयद्भविष्योविनश्यति ॥ ७ ॥
अर्थ - आने वाले दुःख के पहले से उपाय करने वाला और जिसकी बुद्धि में विपत्ति आ जाने पर शीघ्र ही उपाय भी आ जाता है, ये दोनों सुख से बढ़ते हैं। और जो सोचता है कि, भाग्यवश से जो होने-वाला है सो अवश्य होगा, तो वह निश्चय ही विनाश को प्राप्त हो जाता है ॥७॥

anāgatavidhātācapratyutpannamatistathā ॥ 
dvāvētausukhamēdhētēyadbhaviṣyōvinaśyati ॥ 7 ॥

Meaning - The one who foresees the coming sorrow and the one who quickly comes to the solution when a calamity comes to his mind, both of them grow in happiness. And one who thinks that whatever is going to happen due to luck will definitely happen, then he definitely gets destroyed. ।।7॥

राज्ञिधर्मिणिधर्मिष्टाःपापेपापाःसमेसमाः ॥ 
राजानमनुवर्तन्तेयथाराजातथाप्रजाः ॥ ८ ॥
अर्थ - यदि धर्मात्मा राजा हो तो प्रजा भी धर्मनिष्ठ होती है। यदि पापी हो तो पापी होती है। सब प्रजा राजा के अनुसार चलती है। जैसा राजा वैसी प्रजा भी होती है ॥ ८ ॥

rājñidharmiṇidharmiṣṭāḥpāpēpāpāḥsamēsamāḥ ॥ 
rājānamanuvartantēyathārājātathāprajāḥ ॥ 8 ॥
Meaning - If there is a righteous king then the people or citizens also become religious. If she is a sinner, she is a sinner. All the citizens obey the king. Like the king, so are the citizens. 8॥

जीवन्तंमृतन्मन्येदेहिनंधर्मबाजतम् ॥ 
मृतेोधर्मैणसंयुक्तोदीर्घजीवीन संशयः ॥ ९ ॥
अर्थ - धर्म रहित जीते को मृतक के समान समझता हूंँ। निश्चय है कि, धर्मयुक्त मरा भी पुरुष चिरंजीवी ही है।9। 

jīvantaṁmr̥tanmanyēdēhinaṁdharmabājatam ॥ 
mr̥tēōdharmaiṇasaṁyuktōdīrghajīvīna saṁśayaḥ ॥ 9 ॥
Meaning - I consider the living without religion as the dead. It is certain that even a righteous man who dies is still alive.  ।। 9.।।

धर्मार्थकाममोक्षाणांयस्यकोऽपिनविद्यते ॥
अजागलस्तन स्पेवतस्यजन्मनिरर्थकम् ॥ १० ॥
अर्थ - धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष इनमें से जिसको एक भी नहीं रहता, बकरी के गल के स्तन के समान उसका जन्म निरर्थक है ॥ १० ॥

dharmārthakāmamōkṣāṇāṁyasyakō’pinavidyatē ॥
ajāgalastana spēvatasyajanmanirarthakam ॥ 10 ॥

Meaning - The one who does not have any one of these, Dharma, Artha, Kama, Moksha, his birth is as meaningless as the breast of a goat's neck. 10 ॥

चाणक्य की प्रसिद्धि : 

ये संस्कृत श्लोक आचार्य चाणक्य के द्वारा रचित हैं। उनका नाम कौटिल्य एवं विष्णुगुप्त के नाम से भी प्रसिद्ध है। उनकी रचनाएँ Chanakya सूत्र, chanakya niti, chanakya ni pothi, chanakya quotes, chanakya niti in hindi, chanakya quotes in hindi, चाणक्य, चाणक्य नीति,  चाणक्य नीति की 10 बातें,  चाणक्य नीति की बातें, चाणक्य के कड़वे वचन, चाणक्य नीति स्त्री, चाणक्य नीति की 100 बातें,  चाणक्य विचार इन हिंदी, चाणक्य नीति सुविचार, चाणक्य नीति जीवन जीने की, सुविचार चाणक्य के कड़वे वचन, sanskrit shlok, shlok,sanskrit, sanskrit shlok,sanskrit quotes,shlok in sanskrit, sanskrit thought, sanskrit slokas,संस्कृत श्लोक,श्लोक,छोटे संस्कृत श्लोक, आदि के रूप में चर्चित एवं प्रसिद्ध है । 

चाणक्य का कालातीत प्रभाव  :

हजारों वर्षों के उपरांत भी उनमें वही ताजगी और उपयोगिता है। अतः वे आज भी उतने ही प्रासंगिक बने हुए हैं जितने वे तब थे जब वे लिखे गये थे। संस्कृत में रचित होने के कारण उनमें कालांतर के प्रभाव को स्पष्टतः नहीं देखा जाता है क्योंकि संस्कृत भाषा का सर्वश्रेष्ठ व्याकरण उसके अस्तित्व एवं गुणवत्ता के साथ ही उसके प्रभाव कि भी सुरक्षा करता है। ये अत्यंत ज्ञानवर्धक, पठनीय एवं माननीय हैं। ये जीवन‌ के अनेक चौराहों पर हमारा मार्गदर्शन करते हैं जब सब ओर अंधकार छा जाने की प्रतीति होती है।

About Chanakya (चाणक्य के बारे में) :

 चाणक्य का प्रभाव प्राचीन भारत से परे तक फैला हुआ है, क्योंकि शासन कला और शासन पर उनके विचारों का दुनिया भर के विद्वानों और नीति निर्माताओं द्वारा अध्ययन और सम्मान किया जाता है।  राजनीति के प्रति उनका व्यावहारिक दृष्टिकोण और राज्य और उसके नागरिकों के कल्याण पर उनका जोर उन्हें एक कालातीत व्यक्ति बनाता है जिनकी बुद्धि समय और स्थान की सीमाओं से परे है।

 चाणक्यनीतिदर्पण – 13.1

चाणक्य नीति दर्पण मूलत: संस्कृत (Sanskrit) में संस्कृत सुभाषितों के रूप में, काव्यात्मक एवं श्लोकों  के रूप में लिखा हुआ ग्रंथ है। इसके रचनाकार आचार्य चाणक्य हैं। उनके ये संस्कृत श्लोक चाणक्य नीति के नाम से संसार भर में प्रसिद्ध हैं। यहां पर यह श्लोक देवनागरी लिपि एवं  रोमन लिपि में भी दिए गए हैं एवं उनके अर्थ हिंदी देवनागरी एवं अंग्रेजी में रोमन लिपि में भी दिये गये हैं। जिससे विदेशों में रहने वाले भारतीय जो देवनागरी से परिचित नहीं हैं सनातन ग्रंथों के ज्ञान से लाभान्वित हो सकें।

अथ त्रयोदशोऽध्यायः ॥ 13 ॥

atha trayōdaśō’dhyāyaḥ ॥ 13 ॥

ग्रन्थ का नाम : चाणक्यनीतिदर्पण,  रचनाकार – आचार्य चाणक्य,   अध्याय – 13   श्लोक-  1-5

मुहूर्तमपिजीवच्चनरःशुक्लेनकर्मणा ॥ 
'नकल्पमपिकष्टेन लोकद्वयविरोधिना ॥ १ ॥

अर्थ - उत्तम कर्म से मनुष्यों को मुहर्त भर का जीना भी श्रेष्ठ है दोनों लोकों के विरोधी दुष्टकर्म से कल्प भर का भी जीना उत्तम नहीं है ॥ १ ॥

muhūrtamapijīvaccanaraḥśuklēnakarmaṇā ॥ 
'nakalpamapikaṣṭēna lōkadvayavirōdhinā ॥ 1 ॥

Meaning - It is better for humans to live even for a moment by doing good deeds; it is not better to live even for a Kalpa by doing bad deeds opposing the two worlds.  1॥

गतेशोकोनकर्तव्योभविष्यंनैवचिंतयेत् ॥ 
वर्तमानेनकालेनप्रवर्तन्तेविचक्षणाः ॥ २ ॥

अर्थ -  गई वस्तु का शोक और भावी की चिंता नहीं करनी चाहिये, कुशल लोग वर्तमान काल के अनुरोध से प्रवृत होते हैं ॥ २ ॥

gatēśōkōnakartavyōbhaviṣyaṁnaivaciṁtayēt ॥ 
vartamānēnakālēnapravartantēvicakṣaṇāḥ ॥ 2 ॥

Meaning - One should not mourn for the past and worry about the future, skilled people are inclined towards the demands of the present.  2॥

स्वभावेनहितुष्यंतिदेवाःसत्पुरुषाः पिता ॥ 
ज्ञातयःस्नान पानाभ्यांवाक्यदानेनपंडिताः॥३॥

अर्थ - निश्चय यह है कि, देवता, सत्पुरुष और पिता ये प्रकृति से संतुष्ट होते हैं पर बन्धु, स्नान और पान से और पण्डित प्रिय वचन से संतुष्ट होते हैं ॥ ३ ॥

svabhāvēnahituṣyaṁtidēvāḥsatpuruṣāḥ pitā ॥ 
jñātayaḥsnāna pānābhyāṁvākyadānēnapaṁḍitāḥ॥3॥

Meaning - It is certain that gods( The habitats of the heaven or swarga called devta), good men and fathers are satisfied with nature, but brothers are satisfied with bathing and drinking water and scholars are satisfied with their beloved words.  3॥

आयुःकर्मचवित्तंचाविद्यानिधनमेवच ॥ 
पंचेतानिचसृज्यंते गर्भस्थस्यैवदेहिनः ॥ ४ ॥

अर्थ - आयुर्दाय, कर्म, विद्या धन और मरण ये पांच जब जीव गर्भ में रहता है उसी समय सिरजे जाते हैं ॥ ४ ॥

āyuḥkarmacavittaṁcāvidyānidhanamēvaca ॥ 
paṁcētānicasr̥jyaṁtē garbhasthasyaivadēhinaḥ ॥ 4 ॥

Meaning - Aayu, Karma, Knowledge, Wealth and Death, these five are created when the living being is in the womb. ।। 4॥

अहोवतविचित्राणिचरितानिमहात्मनाम् ।। 
लक्ष्मीतृणायमन्यन्तेतद्गारेणन मंत्तिच ॥ ५ ॥ 
अर्थ - आश्चर्य है, कि, महात्माओं के विचित्र चरित्र हैं।  लक्ष्मी को तृण समान मानते हैं। यदि मिल जाती है तो उसके भार से नम्र हो जाते हैं ॥ 5 ॥

ahōvatavicitrāṇicaritānimahātmanām ॥ 
lakṣmītr̥ṇāyamanyantētadgārēṇana maṁttica ॥ 5 ॥

Meaning - It is surprising that the Mahatmas have strange characters. Lakshmi is considered equal to grass. If we get it, we become humbled by its weight. 5॥

चाणक्य की प्रसिद्धि : 

ये संस्कृत श्लोक आचार्य चाणक्य के द्वारा रचित हैं। उनका नाम कौटिल्य एवं विष्णुगुप्त के नाम से भी प्रसिद्ध है। उनकी रचनाएँ Chanakya सूत्र, chanakya niti, chanakya ni pothi, chanakya quotes, chanakya niti in hindi, chanakya quotes in hindi, चाणक्य, चाणक्य नीति,  चाणक्य नीति की 10 बातें,  चाणक्य नीति की बातें, चाणक्य के कड़वे वचन, चाणक्य नीति स्त्री, चाणक्य नीति की 100 बातें,  चाणक्य विचार इन हिंदी, चाणक्य नीति सुविचार, चाणक्य नीति जीवन जीने की, सुविचार चाणक्य के कड़वे वचन, sanskrit shlok, shlok,sanskrit, sanskrit shlok,sanskrit quotes,shlok in sanskrit, sanskrit thought, sanskrit slokas,संस्कृत श्लोक,श्लोक,छोटे संस्कृत श्लोक, आदि के रूप में चर्चित एवं प्रसिद्ध है । 

चाणक्य का कालातीत प्रभाव  :

हजारों वर्षों के उपरांत भी उनमें वही ताजगी और उपयोगिता है। अतः वे आज भी उतने ही प्रासंगिक बने हुए हैं जितने वे तब थे जब वे लिखे गये थे। संस्कृत में रचित होने के कारण उनमें कालांतर के प्रभाव को स्पष्टतः नहीं देखा जाता है क्योंकि संस्कृत भाषा का सर्वश्रेष्ठ व्याकरण उसके अस्तित्व एवं गुणवत्ता के साथ ही उसके प्रभाव कि भी सुरक्षा करता है। ये अत्यंत ज्ञानवर्धक, पठनीय एवं माननीय हैं। ये जीवन‌ के अनेक चौराहों पर हमारा मार्गदर्शन करते हैं जब सब ओर अंधकार छा जाने की प्रतीति होती है।

About Chanakya (चाणक्य के बारे में) :

 चाणक्य का प्रभाव प्राचीन भारत से परे तक फैला हुआ है, क्योंकि शासन कला और शासन पर उनके विचारों का दुनिया भर के विद्वानों और नीति निर्माताओं द्वारा अध्ययन और सम्मान किया जाता है।  राजनीति के प्रति उनका व्यावहारिक दृष्टिकोण और राज्य और उसके नागरिकों के कल्याण पर उनका जोर उन्हें एक कालातीत व्यक्ति बनाता है जिनकी बुद्धि समय और स्थान की सीमाओं से परे है।

 चाणक्यनीतिदर्पण – 12.5

चाणक्य नीति दर्पण मूलत: संस्कृत (Sanskrit) में संस्कृत सुभाषितों के रूप में, काव्यात्मक एवं श्लोकों  के रूप में लिखा हुआ ग्रंथ है। इसके रचनाकार आचार्य चाणक्य हैं। उनके ये संस्कृत श्लोक चाणक्य नीति के नाम से संसार भर में प्रसिद्ध हैं। यहां पर यह श्लोक देवनागरी लिपि एवं  रोमन लिपि में भी दिए गए हैं एवं उनके अर्थ हिंदी देवनागरी एवं अंग्रेजी में रोमन लिपि में भी दिये गये हैं। जिससे विदेशों में रहने वाले भारतीय जो देवनागरी से परिचित नहीं हैं सनातन ग्रंथों के ज्ञान से लाभान्वित हो सकें।

अथ द्वादशोऽध्यायः ॥ 12 ॥

atha dvādaśō’dhyāyaḥ ॥ 12 ॥

ग्रन्थ का नाम : चाणक्यनीतिदर्पण,  रचनाकार – आचार्य चाणक्य,   अध्याय – 12   श्लोक-  21-23
 


धनधान्यप्रयोगेषुविद्या संग्रहणेतथा ॥ 
आहारेव्यवहारेचत्यक्तलज्जःसुखीभवेत्॥२१॥
( अध्यायः १३ । ६९)

अर्थ - धन धान्य के व्यवहार करने में, वैसे ही विद्या के पढने-पढाने में, आहार में और राजा की सभा में किसी के साथ विवाद करने में जो लज्जा को छोडे रहेगा वह सुखी होगा ॥ २१ ॥

dhanadhānyaprayōgēṣuvidyā saṁgrahaṇētathā ॥ 
āhārēvyavahārēcatyaktalajjaḥsukhībhavēt॥21॥
( adhyāyaḥ 13 | 69)

Meaning - One who leaves aside shyness in dealing with wealth, in teaching and learning, in eating and in disputing with anyone in the king's court will be happy. 21 ॥

जलबिंदु निपातेनक्रमशःपूर्यतेघटः ॥ 
महेतुःसर्वविद्यानां धर्मस्यचधनस्यच ॥ २२ ॥

अर्थ - क्रम-क्रम से जल के एक एक बूंद के गिरने से घड़ा भर जाता है। यही सभी विद्याओं, धर्म और धन का भी कारण है ॥ 22 ॥

jalabiṁdu nipātēnakramaśaḥpūryatēghaṭaḥ ॥ 
mahētuḥsarvavidyānāṁ dharmasyacadhanasyaca ॥ 22 ॥

Meaning - The pitcher gets filled with each drop of water falling sequentially. This is the reason for all knowledge, religion and wealth. 22॥
वयसः परिणामेऽपि यः खलः खल एव सः ।
सम्पक्वमपि माधुर्यं नोपयातीन्द्रवारुणम् ॥ 23 ॥

अर्थ - वय के परिणाम पर भी  जो खल रहता है सो खल ही बना रहता है अत्यन्त पकी भी कड़वी लौकी मीठी नहीं होती ॥ २३ ॥

vayasaḥ pariṇāmē’pi yaḥ khalaḥ khala ēva saḥ |
sampakvamapi mādhuryaṁ nōpayātīndravāruṇam ॥ 23 ॥
Meaning - Even after aging, the sour gourd remains sour, even the very ripe bitter gourd is not sweet. 23॥
इतिवृद्धचाणक्ये द्वादशोऽध्यायः  ॥12॥
itivr̥ddhacāṇakyē dvādaśō’dhyāyaḥ  ॥12॥

चाणक्य की प्रसिद्धि : 

ये संस्कृत श्लोक आचार्य चाणक्य के द्वारा रचित हैं। उनका नाम कौटिल्य एवं विष्णुगुप्त के नाम से भी प्रसिद्ध है। उनकी रचनाएँ Chanakya सूत्र, chanakya niti, chanakya ni pothi, chanakya quotes, chanakya niti in hindi, chanakya quotes in hindi, चाणक्य, चाणक्य नीति,  चाणक्य नीति की 10 बातें,  चाणक्य नीति की बातें, चाणक्य के कड़वे वचन, चाणक्य नीति स्त्री, चाणक्य नीति की 100 बातें,  चाणक्य विचार इन हिंदी, चाणक्य नीति सुविचार, चाणक्य नीति जीवन जीने की, सुविचार चाणक्य के कड़वे वचन, sanskrit shlok, shlok,sanskrit, sanskrit shlok,sanskrit quotes,shlok in sanskrit, sanskrit thought, sanskrit slokas,संस्कृत श्लोक,श्लोक,छोटे संस्कृत श्लोक, आदि के रूप में चर्चित एवं प्रसिद्ध है । 

चाणक्य का कालातीत प्रभाव  :

हजारों वर्षों के उपरांत भी उनमें वही ताजगी और उपयोगिता है। अतः वे आज भी उतने ही प्रासंगिक बने हुए हैं जितने वे तब थे जब वे लिखे गये थे। संस्कृत में रचित होने के कारण उनमें कालांतर के प्रभाव को स्पष्टतः नहीं देखा जाता है क्योंकि संस्कृत भाषा का सर्वश्रेष्ठ व्याकरण उसके अस्तित्व एवं गुणवत्ता के साथ ही उसके प्रभाव कि भी सुरक्षा करता है। ये अत्यंत ज्ञानवर्धक, पठनीय एवं माननीय हैं। ये जीवन‌ के अनेक चौराहों पर हमारा मार्गदर्शन करते हैं जब सब ओर अंधकार छा जाने की प्रतीति होती है।

About Chanakya (चाणक्य के बारे में) :

 चाणक्य का प्रभाव प्राचीन भारत से परे तक फैला हुआ है, क्योंकि शासन कला और शासन पर उनके विचारों का दुनिया भर के विद्वानों और नीति निर्माताओं द्वारा अध्ययन और सम्मान किया जाता है।  राजनीति के प्रति उनका व्यावहारिक दृष्टिकोण और राज्य और उसके नागरिकों के कल्याण पर उनका जोर उन्हें एक कालातीत व्यक्ति बनाता है जिनकी बुद्धि समय और स्थान की सीमाओं से परे है।

 चाणक्यनीतिदर्पण – 12.4

चाणक्य नीति दर्पण मूलत: संस्कृत (Sanskrit) में संस्कृत सुभाषितों के रूप में, काव्यात्मक एवं श्लोकों  के रूप में लिखा हुआ ग्रंथ है। इसके रचनाकार आचार्य चाणक्य हैं। उनके ये संस्कृत श्लोक चाणक्य नीति के नाम से संसार भर में प्रसिद्ध हैं। यहां पर यह श्लोक देवनागरी लिपि एवं  रोमन लिपि में भी दिए गए हैं एवं उनके अर्थ हिंदी देवनागरी एवं अंग्रेजी में रोमन लिपि में भी दिये गये हैं। जिससे विदेशों में रहने वाले भारतीय जो देवनागरी से परिचित नहीं हैं सनातन ग्रंथों के ज्ञान से लाभान्वित हो सकें।

अथ द्वादशोऽध्यायः ॥ 12 ॥

atha dvādaśō’dhyāyaḥ ॥ 12 ॥

ग्रन्थ का नाम : चाणक्यनीतिदर्पण,  रचनाकार – आचार्य चाणक्य,   अध्याय – 11   श्लोक-  16-20

काष्ठंकल्पतरुःसुमेरुरचलश्चिंतामणिः प्रस्थरः सूर्यस्तीव्रकरः शशीक्षयकरःक्षारोहिवारांनि- धिः कामोनष्टतनुर्बलिर्दितिसुतोनित्यंपशुः कामगौः नैतांस्तेतुलयामिभोरघुपतेकस्योपमा दीयते ॥ १६ ॥

अर्थ - कल्पवृक्ष काठ है, सुमेरु अचल है, चिंतामणि पत्थर है, सूर्य की किरण अत्यंत ऊष्ण है चन्द्रमा की किरण क्षीण हो जाती है। समुद्र समुद्र खारा है काम का शरीर नहीं है बल्कि अर्थात्  दैत्य है कामधेनु सदा पशु ही है इस कारण आप के साथ इनकी तुलना नहीं दे सकते हे रघुपति ? फिर आपको किस की उपमा दी जाय ॥१६॥

kāṣṭhaṁkalpataruḥsumēruracalaściṁtāmaṇiḥ prastharaḥ sūryastīvrakaraḥ śaśīkṣayakaraḥkṣārōhivārāṁni- dhiḥ kāmōnaṣṭatanurbalirditisutōnityaṁpaśuḥ kāmagauḥ naitāṁstētulayāmibhōraghupatēkasyōpamā dīyatē ॥ 16 ॥
Meaning - Kalpavriksha is wood, Sumeru is immovable, Chintamani is stone, the sun's ray is extremely hot, the moon's ray becomes weak. The ocean is salty, it is not a body of lust, but it is a demon, Kamadhenu is always an animal, that is why we cannot compare them with you, O Raghupati? Then whose likeness should you be given?16॥

विद्यामित्रंप्रवासेचभार्यामित्रंगृहेषुच ॥ 
व्याधिस्थस्यौषधैमित्रंधर्मोमित्रंमृतस्यच। १७॥ 

अर्थ - प्रवास, में विद्या हित करती है, घर में स्त्री मित्र है, रोगग्रस्त पुरुष का हित औषधि होती है, और धर्म मरे का उपकार करता है ॥ १७ ॥

vidyāmitraṁpravāsēcabhāryāmitraṁgr̥hēṣuca ॥ 
vyādhisthasyauṣadhaimitraṁdharmōmitraṁmr̥tasyaca| 17॥ 
Meaning - Knowledge is beneficial in a journey, a woman is a friend in the home, medicine is beneficial to a sick man, and religion helps the dead. ।। 17 ॥

विनयं राजपुत्रेभ्यःपंडितेभ्यःसुभाषितंम् अनृतंद्यूतकारेभ्यःस्त्रीभ्यःशिक्षेतकैतवम्।१८।

अर्थ - सुशीलता राजा के लडकों से, प्रिय वचन पंडितों से असत्य जुआरियों से और छल स्त्रियों से सीखना चाहिये ॥ १८ ॥
 
vinayaṁ rājaputrēbhyaḥpaṁḍitēbhyaḥsubhāṣitaṁm anr̥taṁdyūtakārēbhyaḥstrībhyaḥśikṣētakaitavam|18|
Meaning - Goodness should be learned from the king's sons, loving words from wise men, falsehood from gamblers and deceitful women. ।। 18 ॥

अनालोक्यव्ययंकर्ताअनाथःकलहप्रियः ॥ 
आतुरःसर्वक्षेत्रेषुनरःशीघ्रंविनश्यति ।। १९ ॥

अर्थ - बिना बिचारे व्यय करने वाला, सहायक के न रहने पर भी कलह में प्रीति रखनेवाला और सब जाति की स्त्रियों में भोग के लिये व्याकुल होने वाला पुरुष शीघ्र ही नाश को प्राप्त होता है ॥ १६ ॥

anālōkyavyayaṁkartāanāthaḥkalahapriyaḥ ॥ 
āturaḥsarvakṣētrēṣunaraḥśīghraṁvinaśyati ॥ 19 ॥

Meaning - A man who spends without waste, who is fond of discord even when there is no helper, and who is desperate for pleasure from women of all castes, soon comes to destruction. 19 ॥

नाहारंचिंतयेत्प्राज्ञोधर्ममेकंहिचिंतयेत् ॥ 
आहारोहिमनुष्याणांजन्मनासहजायते ॥२०॥

अर्थ - पंडित को आहार की चिंता नहीं करनी चाहिये। एक धर्म को निश्चय से सोचना चाहिये, इस हेतु कि, आहार मनुष्यों को जन्म के साथ ही उत्पन्न होता है॥२०।।

nāhāraṁciṁtayētprājñōdharmamēkaṁhiciṁtayēt ॥ 
āhārōhimanuṣyāṇāṁjanmanāsahajāyatē ॥20॥

Meaning – A Pandit should not worry about diet. A religion should be thought of with determination, because food is given to humans at birth. ।।20.।।

चाणक्य की प्रसिद्धि : 

ये संस्कृत श्लोक आचार्य चाणक्य के द्वारा रचित हैं। उनका नाम कौटिल्य एवं विष्णुगुप्त के नाम से भी प्रसिद्ध है। उनकी रचनाएँ Chanakya सूत्र, chanakya niti, chanakya ni pothi, chanakya quotes, chanakya niti in hindi, chanakya quotes in hindi, चाणक्य, चाणक्य नीति,  चाणक्य नीति की 10 बातें,  चाणक्य नीति की बातें, चाणक्य के कड़वे वचन, चाणक्य नीति स्त्री, चाणक्य नीति की 100 बातें,  चाणक्य विचार इन हिंदी, चाणक्य नीति सुविचार, चाणक्य नीति जीवन जीने की, सुविचार चाणक्य के कड़वे वचन, sanskrit shlok, shlok,sanskrit, sanskrit shlok,sanskrit quotes,shlok in sanskrit, sanskrit thought, sanskrit slokas,संस्कृत श्लोक,श्लोक,छोटे संस्कृत श्लोक, आदि के रूप में चर्चित एवं प्रसिद्ध है । 

चाणक्य का कालातीत प्रभाव  :

हजारों वर्षों के उपरांत भी उनमें वही ताजगी और उपयोगिता है। अतः वे आज भी उतने ही प्रासंगिक बने हुए हैं जितने वे तब थे जब वे लिखे गये थे। संस्कृत में रचित होने के कारण उनमें कालांतर के प्रभाव को स्पष्टतः नहीं देखा जाता है क्योंकि संस्कृत भाषा का सर्वश्रेष्ठ व्याकरण उसके अस्तित्व एवं गुणवत्ता के साथ ही उसके प्रभाव कि भी सुरक्षा करता है। ये अत्यंत ज्ञानवर्धक, पठनीय एवं माननीय हैं। ये जीवन‌ के अनेक चौराहों पर हमारा मार्गदर्शन करते हैं जब सब ओर अंधकार छा जाने की प्रतीति होती है।

About Chanakya (चाणक्य के बारे में) :

 चाणक्य का प्रभाव प्राचीन भारत से परे तक फैला हुआ है, क्योंकि शासन कला और शासन पर उनके विचारों का दुनिया भर के विद्वानों और नीति निर्माताओं द्वारा अध्ययन और सम्मान किया जाता है।  राजनीति के प्रति उनका व्यावहारिक दृष्टिकोण और राज्य और उसके नागरिकों के कल्याण पर उनका जोर उन्हें एक कालातीत व्यक्ति बनाता है जिनकी बुद्धि समय और स्थान की सीमाओं से परे है।

 चाणक्यनीतिदर्पण – 12.3


चाणक्य नीति दर्पण मूलत: संस्कृत (Sanskrit) में संस्कृत सुभाषितों के रूप में, काव्यात्मक एवं श्लोकों  के रूप में लिखा हुआ ग्रंथ है। इसके रचनाकार आचार्य चाणक्य हैं। उनके ये संस्कृत श्लोक चाणक्य नीति के नाम से संसार भर में प्रसिद्ध हैं। यहां पर यह श्लोक देवनागरी लिपि एवं  रोमन लिपि में भी दिए गए हैं एवं उनके अर्थ हिंदी देवनागरी एवं अंग्रेजी में रोमन लिपि में भी दिये गये हैं। जिससे विदेशों में रहने वाले भारतीय जो देवनागरी से परिचित नहीं हैं सनातन ग्रंथों के ज्ञान से लाभान्वित हो सकें।

अथ द्वादशोऽध्यायः ॥ 12 ॥

atha dvādaśō’dhyāyaḥ ॥ 12 ॥

ग्रन्थ का नाम : चाणक्यनीतिदर्पण,  रचनाकार – आचार्य चाणक्य,   अध्याय – 12   श्लोक-  11-15
सत्यंमातापिताज्ञानं धर्मोनातादय़ासखा ॥ 
शांतिः पत्नीक्षमापुत्रः षडेतेममबांधवाः ॥११॥ 

अर्थ - सत्य मेरी माता है, और ज्ञान पिता, धर्म मेरा भाई है, और, दया मित्र, शांति मेरी स्त्री है, और क्षमा पुत्र, ये ही छः मेरे बन्धु हैं ॥ किसी संसारी पुरुष ने ज्ञानी को देखकर चकित हो पूछा कि, संसार में माता, पिता, भाई, मित्र, स्त्री, पुत्र, ये जितना ही अच्छे से अच्छे हों उतना ही संसार से आनंद होता है तुझको परम आनंद में "पूर्ण देखता हूंँ तो तुझको भी कहीं न कहीं कोई न कोई उनमें से होगा; ज्ञानी ने समझा कि, जिस दशाको देखकर यह चकित है वह दशा क्या सांसारिक कुटुम्बों से हो सकती है। इस कारण जिनसे मुझे परम आनंद होता है उन्हीं को इससे कहूंँ कदाचित् यह भी इनको स्वीकार करे ॥ ११ ॥

satyaṁmātāpitājñānaṁ dharmōnātādaya़āsakhā ॥ 
śāṁtiḥ patnīkṣamāputraḥ ṣaḍētēmamabāṁdhavāḥ ॥11॥ 
Meaning - Truth is my mother, knowledge is my father, religion is my brother, kindness is my friend, peace is my wife, and forgiveness is my son, these six are my friends. A worldly man was astonished to see the wise man and asked, "The better your mother, father, brother, friend, wife, son are in the world, the more happiness you experience in the world. When I see you complete, I feel complete." Somewhere too, there must be some one among them; the wise man thought that the condition which he is surprised to see, can he be in this condition of the worldly family. Therefore, let me tell this only to those who give me immense pleasure, perhaps they too will accept them. ॥ 11 ॥

अनित्यानिशरीराणिविभवोनैवशाश्वतः ॥ 
नित्यंसन्निहितो मृत्युः कर्तव्योधर्मसंग्रहः॥१२॥

अर्थ - शरीर अनित्य है, विभव भी सदा नहीं रहता, मृत्यु सदा निकट ही रहती है; इस कारण धर्म का संग्रह करना चाहिये ॥ १२ ॥
anityāniśarīrāṇivibhavōnaivaśāśvataḥ ॥ 
nityaṁsannihitō mr̥tyuḥ kartavyōdharmasaṁgrahaḥ॥12॥
Meaning - The body is impermanent, the power also does not last forever, death is always near; For this reason, religion should be collected. 12 ॥

निमंत्रणोत्सवाविमा गावोनवतृणोत्सवाः ॥ 
पत्युत्साहयुताभार्याअहंकृष्णरणोत्सवः॥१३॥

अर्थ - निमंत्रण ब्राह्मणों का उत्सव है, और नवीन घास गायों का उत्सव है, पति के उत्साह से स्त्रियों को उत्साह होता है, किन्तु हे कृष्ण! मेरा उत्सव है युद्ध॥१३॥

nimaṁtraṇōtsavāvimā gāvōnavatr̥ṇōtsavāḥ ॥ 
patyutsāhayutābhāryāahaṁkr̥ṣṇaraṇōtsavaḥ॥13॥

Meaning - Invitation is a festival of Brahmins, and new grass is a festival of cows, women get excited by the enthusiasm of their husbands, but O Krishna! My celebration is war॥13॥

मातृवत्परदारांश्वपरद्रव्याणिलोष्टवत् ॥ 
आत्मवत्सर्वभूतानियःपश्यतिसपश्यति ॥१४॥
or
मातृवत्परदारेषु परद्रव्याणि लोष्ठवत् ।
आत्मवत्सर्वभूतानि यः पश्यति स पंडितः ।।१४।।
अर्थ — जो मनुष्य परायी स्त्री को माता के समान समझता है, पराया धन मिट्टी के ढेले के समान मानता है और अपनी ही तरह सब प्राणियों के सुख-दुःख का अनुभव करता है, वही पण्डित है।
mātr̥vatparadārāṁśvaparadravyāṇilōṣṭavat ॥ 
ātmavatsarvabhūtāniyaḥpaśyatisapaśyati ॥14॥
or
mātr̥vatparadārēṣu paradravyāṇi lōṣṭhavat |
ātmavatsarvabhūtāni yaḥ paśyati sa paṁḍitaḥ ॥14॥
Meaning – The person who considers another's woman like a mother, considers someone else's wealth like a lump of clay and experiences the happiness and sorrow of all living beings like his own, is a wise man.

धर्मे तत्परता मुखे मधुरता दाने समुत्साहता
मित्रेऽवंचकता गुरौ विनयता चित्तेऽतिगम्भीरता ।
आचारे शुचिता गुणे रसिकता शास्त्रेषु विज्ञातृता
रूपे सुन्दरता शिवे भजनता त्वय्यस्तिभी राघवः ।।१५।।
अर्थ - धर्म में तत्परता, मुख में मधुरता, दान में उत्साहता मित्र के विषय में निशच्छलता, गुरू से नम्रता, अंतःकरण में गंभीरता, आचार में पवितत्रा गुणों में रसिकता, शास्त्रों में विशेष ज्ञान, रूप में सुन्दरता और शिवकी भक्ति, (गुरु वसिष्ठ जी रामजी से कहते हैं) हे राघव! ये सभी गुण तुम्ही मे हैं ॥ १५ ॥

dharmē tatparatā mukhē madhuratā dānē samutsāhatā
mitrē’vaṁcakatā gurau vinayatā cittē’tigambhīratā |
ācārē śucitā guṇē rasikatā śāstrēṣu vijñātr̥tā
rūpē sundaratā śivē bhajanatā tvayyastibhī rāghavaḥ ॥15॥

Meaning - Willingness in religion, sweetness of mouth, enthusiasm in charity, sincerity towards friends, humility towards Guru, seriousness in heart, interest in sacred qualities in conduct, special knowledge in scriptures, beauty in form and devotion to Shiva, (Guru Vashishtha Ji) Says to Ramji) Hey Raghav! All these qualities are in you. 15.

चाणक्य की प्रसिद्धि : 

ये संस्कृत श्लोक आचार्य चाणक्य के द्वारा रचित हैं। उनका नाम कौटिल्य एवं विष्णुगुप्त के नाम से भी प्रसिद्ध है। उनकी रचनाएँ Chanakya सूत्र, chanakya niti, chanakya ni pothi, chanakya quotes, chanakya niti in hindi, chanakya quotes in hindi, चाणक्य, चाणक्य नीति,  चाणक्य नीति की 10 बातें,  चाणक्य नीति की बातें, चाणक्य के कड़वे वचन, चाणक्य नीति स्त्री, चाणक्य नीति की 100 बातें,  चाणक्य विचार इन हिंदी, चाणक्य नीति सुविचार, चाणक्य नीति जीवन जीने की, सुविचार चाणक्य के कड़वे वचन, sanskrit shlok, shlok,sanskrit, sanskrit shlok,sanskrit quotes,shlok in sanskrit, sanskrit thought, sanskrit slokas,संस्कृत श्लोक,श्लोक,छोटे संस्कृत श्लोक, आदि के रूप में चर्चित एवं प्रसिद्ध है । 

चाणक्य का कालातीत प्रभाव  :

हजारों वर्षों के उपरांत भी उनमें वही ताजगी और उपयोगिता है। अतः वे आज भी उतने ही प्रासंगिक बने हुए हैं जितने वे तब थे जब वे लिखे गये थे। संस्कृत में रचित होने के कारण उनमें कालांतर के प्रभाव को स्पष्टतः नहीं देखा जाता है क्योंकि संस्कृत भाषा का सर्वश्रेष्ठ व्याकरण उसके अस्तित्व एवं गुणवत्ता के साथ ही उसके प्रभाव कि भी सुरक्षा करता है। ये अत्यंत ज्ञानवर्धक, पठनीय एवं माननीय हैं। ये जीवन‌ के अनेक चौराहों पर हमारा मार्गदर्शन करते हैं जब सब ओर अंधकार छा जाने की प्रतीति होती है।

About Chanakya (चाणक्य के बारे में) :

 चाणक्य का प्रभाव प्राचीन भारत से परे तक फैला हुआ है, क्योंकि शासन कला और शासन पर उनके विचारों का दुनिया भर के विद्वानों और नीति निर्माताओं द्वारा अध्ययन और सम्मान किया जाता है।  राजनीति के प्रति उनका व्यावहारिक दृष्टिकोण और राज्य और उसके नागरिकों के कल्याण पर उनका जोर उन्हें एक कालातीत व्यक्ति बनाता है जिनकी बुद्धि समय और स्थान की सीमाओं से परे है।

 चाणक्यनीतिदर्पण – 12.2

चाणक्य नीति दर्पण मूलत: संस्कृत (Sanskrit) में संस्कृत सुभाषितों के रूप में, काव्यात्मक एवं श्लोकों  के रूप में लिखा हुआ ग्रंथ है। इसके रचनाकार आचार्य चाणक्य हैं। उनके ये संस्कृत श्लोक चाणक्य नीति के नाम से संसार भर में प्रसिद्ध हैं। यहां पर यह श्लोक देवनागरी लिपि एवं  रोमन लिपि में भी दिए गए हैं एवं उनके अर्थ हिंदी देवनागरी एवं अंग्रेजी में रोमन लिपि में भी दिये गये हैं। जिससे विदेशों में रहने वाले भारतीय जो देवनागरी से परिचित नहीं हैं सनातन ग्रंथों के ज्ञान से लाभान्वित हो सकें।

अथ द्वादशोऽध्यायः ॥ 12 ॥

atha dvādaśō’dhyāyaḥ ॥ 12 ॥

ग्रन्थ का नाम : चाणक्यनीतिदर्पण,  रचनाकार – आचार्य चाणक्य,   अध्याय – 11   श्लोक-  6-10
पत्रनैवयदा करीर विटपेदोषोवसंतस्याकंनोलू 
कोप्यवलोकतेयदिदिवा सूर्यस्यकिं दूषणं ॥ 
वर्षानैवपत्तंत्तुचातकमुखेमेघस्य किं दूषणं, 
यत्पूर्वं विधिनाललाटलिखितंतन्मार्जितुं कःक्षमः ।६।

अर्थ - यदि करील के वृक्ष में पत्ते नहीं होते तो बसंत का क्या दोष है? यदि उलूक दिन में नहीं देखता तो सूर्य का क्या दोष है? वर्षा चातक के मुख में नहीं पडती इसमें मेघ का क्या अपराध है? पहले ही ब्रह्मा ने जो कुछ ललाट में लिख रखा है उसे मिटाने को कौन समर्थ है? ॥ ६ ॥

patranaivayadā karīra viṭapēdōṣōvasaṁtasyākaṁnōlū 
kōpyavalōkatēyadidivā sūryasyakiṁ dūṣaṇaṁ ॥ 
varṣānaivapattaṁttucātakamukhēmēghasya kiṁ dūṣaṇaṁ, 
yatpūrvaṁ vidhinālalāṭalikhitaṁtanmārjituṁ kaḥkṣamaḥ |6|
Meaning - If the Karil tree does not have leaves then what is the fault of spring? If the owl does not see during the day then what is the fault of the sun? What is the fault of the cloud in that the rain does not fall on Chatak's face? Who is capable of erasing whatever Brahma has already written on his forehead? ॥ 6॥


सत्संगाद्भवतिहिसाधुताखलानां साधूनांनहि- खलसंगतःखलात्वम्॥
आमोदंकुसुमभवंमृदेव धत्तेमृनंधनहिकुसुमानिधारयन्ति ॥ ७ ॥

अर्थ - निश्चय है कि, अच्छे के संग से दुर्जनों में साधुता आ जाती है परन्तु साधुओं में दुष्टों कि संगति से असाधुता नहीं आती। फूलों की सुगंध को मिट्टी ले लेती है पर मिट्टी की गंधको फूल कभी धारण नहीं करते॥७॥

satsaṁgādbhavatihisādhutākhalānāṁ sādhūnāṁnahi- khalasaṁgataḥkhalātvam॥
āmōdaṁkusumabhavaṁmr̥dēva dhattēmr̥naṁdhanahikusumānidhārayanti ॥ 7 ॥

Meaning - It is certain that the company of the good brings saintliness among the wicked, but the company of the wicked does not bring saintliness among the saints. Soil absorbs the fragrance of flowers but flowers never retain the smell of soil.7॥

साधूनांदर्शनं पुण्यंतीर्थभूताहिसाधवः ॥ 
कालेनफलतेतीर्थसद्यः साधुसमागमः ॥ ८॥

अर्थ - साधुओं का दर्शन ही पुण्य है इस कारण कि, साधु तीर्थरूप है। समय से तीर्थ फल देता है, साधुओं का संग शीघ्र ही काम कर देता है (तुरंत फलदाई है)॥ ८ ॥

sādhūnāṁdarśanaṁ puṇyaṁtīrthabhūtāhisādhavaḥ || 
kālēnaphalatētīrthasadyaḥ sādhusamāgamaḥ || 8||

Meaning - Seeing the sages is a virtue because the sage is a form of pilgrimage. Pilgrimage gives results in time, company of sages gives results soon (it is fruitful immediately). 8॥

विप्रास्मिन्नगरे महान्कथयकस्तालब्रुमाणां गणः । कोदातारजकोददातिवसनंप्रातर्ग्रही- 'त्वानिशि ॥ 
कोदक्षःपरवित्तंदारहरणेसर्वोपि 
दक्षोजनःकस्माज्जीवसिहेसखेविषकृमिन्याये नजीवाम्यहम् ॥ ९ ॥
अर्थ - हे विप्र! इस नगर में कौन बडा है ? ताड़ के पेड़ों का समुदाय, दाता कौन है ? धोबी प्रातःकाल वस्त्र लेता है रात्रि में दे देता है, चतुर कौन है? दूसरे के धन और स्त्री के हरण में सब ही कुशल हैं, तो ऐसे नगर में आप कैसे जीते हो? हे मित्र! विष का कीडा विष ही में जीता है वैसे ही मैं भी जीता हूं ॥ ९ ॥

viprāsminnagarē mahānkathayakastālabrumāṇāṁ gaṇaḥ | 
kōdātārajakōdadātivasanaṁprātargrahī- 'tvāniśi ॥ 
kōdakṣaḥparavittaṁdāraharaṇēsarvōpi 
dakṣōjanaḥkasmājjīvasihēsakhēviṣakr̥minyāyē najīvāmyaham ॥ 9 ॥

Meaning: O Vipra! Who is bigger in this city? Community of palm trees, who is the donor? The washerman takes the clothes in the morning and gives them away at night, who is the clever one? Everyone is skilled in kidnapping other people's wealth and women, so how do you survive in such a city? Hey friend! The poison worm lives in poison, in the same way I also live. ।।9॥

नविप्रपादोदककर्दमानिनवेदशास्त्रध्वनिगर्जि तानि ॥ 
स्वाहास्वधाकारविवर्जितानिश्मशान तुल्यानिगृहाणितानि ॥ १० ॥

अर्थ - जिन घरों में ब्राह्मण के पावों के जल से कीचड़ न भया हो (अर्थात जहाँ  विद्वानों का सम्मान न होता हो) और न वेदशास्त्र के शब्दों की गर्जना होती हो, और जो गृह स्वाहा स्वधा से रहित हो उनको स्मशान के समान समझना चाहिये ॥ १० ॥

naviprapādōdakakardamāninavēdaśāstradhvanigarji tāni ॥ 
svāhāsvadhākāravivarjitāniśmaśāna tulyānigr̥hāṇitāni ॥ 10 ॥
Meaning - The houses where there is no fear of mud from the feet of a Brahmin (i.e. where scholars are not respected) nor where the words of the Vedas are resounding, and which are devoid of Swaha Swadha, should be considered like a cremation ground. 10 ॥

चाणक्य की प्रसिद्धि : 

ये संस्कृत श्लोक आचार्य चाणक्य के द्वारा रचित हैं। उनका नाम कौटिल्य एवं विष्णुगुप्त के नाम से भी प्रसिद्ध है। उनकी रचनाएँ Chanakya सूत्र, chanakya niti, chanakya ni pothi, chanakya quotes, chanakya niti in hindi, chanakya quotes in hindi, चाणक्य, चाणक्य नीति,  चाणक्य नीति की 10 बातें,  चाणक्य नीति की बातें, चाणक्य के कड़वे वचन, चाणक्य नीति स्त्री, चाणक्य नीति की 100 बातें,  चाणक्य विचार इन हिंदी, चाणक्य नीति सुविचार, चाणक्य नीति जीवन जीने की, सुविचार चाणक्य के कड़वे वचन, sanskrit shlok, shlok,sanskrit, sanskrit shlok,sanskrit quotes,shlok in sanskrit, sanskrit thought, sanskrit slokas,संस्कृत श्लोक,श्लोक,छोटे संस्कृत श्लोक, आदि के रूप में चर्चित एवं प्रसिद्ध है । 

चाणक्य का कालातीत प्रभाव  :

हजारों वर्षों के उपरांत भी उनमें वही ताजगी और उपयोगिता है। अतः वे आज भी उतने ही प्रासंगिक बने हुए हैं जितने वे तब थे जब वे लिखे गये थे। संस्कृत में रचित होने के कारण उनमें कालांतर के प्रभाव को स्पष्टतः नहीं देखा जाता है क्योंकि संस्कृत भाषा का सर्वश्रेष्ठ व्याकरण उसके अस्तित्व एवं गुणवत्ता के साथ ही उसके प्रभाव कि भी सुरक्षा करता है। ये अत्यंत ज्ञानवर्धक, पठनीय एवं माननीय हैं। ये जीवन‌ के अनेक चौराहों पर हमारा मार्गदर्शन करते हैं जब सब ओर अंधकार छा जाने की प्रतीति होती है।

About Chanakya (चाणक्य के बारे में) :

 चाणक्य का प्रभाव प्राचीन भारत से परे तक फैला हुआ है, क्योंकि शासन कला और शासन पर उनके विचारों का दुनिया भर के विद्वानों और नीति निर्माताओं द्वारा अध्ययन और सम्मान किया जाता है।  राजनीति के प्रति उनका व्यावहारिक दृष्टिकोण और राज्य और उसके नागरिकों के कल्याण पर उनका जोर उन्हें एक कालातीत व्यक्ति बनाता है जिनकी बुद्धि समय और स्थान की सीमाओं से परे है।

 चाणक्यनीतिदर्पण – 12.1

चाणक्य नीति दर्पण मूलत: संस्कृत (Sanskrit) में संस्कृत सुभाषितों के रूप में, काव्यात्मक एवं श्लोकों  के रूप में लिखा हुआ ग्रंथ है। इसके रचनाकार आचार्य चाणक्य हैं। उनके ये संस्कृत श्लोक चाणक्य नीति के नाम से संसार भर में प्रसिद्ध हैं। यहां पर यह श्लोक देवनागरी लिपि एवं  रोमन लिपि में भी दिए गए हैं एवं उनके अर्थ हिंदी देवनागरी एवं अंग्रेजी में रोमन लिपि में भी दिये गये हैं। जिससे विदेशों में रहने वाले भारतीय जो देवनागरी से परिचित नहीं हैं सनातन ग्रंथों के ज्ञान से लाभान्वित हो सकें।

अथ द्वादशोऽध्यायः ॥ 12 ॥

atha dvādaśō’dhyāyaḥ ॥ 12 ॥

ग्रन्थ का नाम : चाणक्यनीतिदर्पण,  रचनाकार – आचार्य चाणक्य,   अध्याय – 12   श्लोक-  1-5
सानंदंसदनं सुतास्तुसुधियःकांताप्रियालापि- नी । इच्छापूर्तिधनंस्वयोषितिरतिःस्वाज्ञापराः सेवकाः ॥ 
आतिथ्यँशिवपूजनंप्रतिदिनं मिष्ठान्न पानंगृहे । 
साधोः संगमुपासतेचसततंधन्यो गृहस्थाश्रमः ॥ १ ॥

अर्थ - यदि आनंदयुक्त घर मिलने और लडके पंडित (अर्थात जो कुछ जानने योग्य है वह सब सामान्य और उपयोगी ज्ञान से जो युक्त हों ) हों, स्त्री मधुरभाषिणी हो, इच्छा के अनुसार धन हो अपनी ही स्त्री में रति हो, आज्ञापालक सेवक मिले, अतिथिकी सेवा और शिवकी पूजा हो प्रतिदिन गृह में मीठा अन्न और जल मिले सर्वदा साधूके सँग की उपासना, यह गृहस्थाश्रमही धन्य है ॥ १ ॥

sānaṁdaṁsadanaṁ sutāstusudhiyaḥkāṁtāpriyālāpi- nī | 
icchāpūrtidhanaṁsvayōṣitiratiḥsvājñāparāḥ sēvakāḥ ॥ 
ātithyam̐śivapūjanaṁpratidinaṁ miṣṭhānna pānaṁgr̥hē | 
sādhōḥ saṁgamupāsatēcasatataṁdhanyō gr̥hasthāśramaḥ ॥ 1 ॥
Meaning - If one gets a happy home and the boys are Pandits (i.e. those who have general and useful knowledge of all that is worth knowing), the woman is soft-spoken, one gets wealth as per one's wish, one is married to one's own wife, one gets obedient servants, the hospitality is good. There should be service and worship of Lord Shiva, there should be sweet food and water in the house every day, there should always be worship in the company of a saint, this home is blessed. 1॥

भार्तेषुविप्रेषुदयान्वितश्वयच्छ्रइयास्वल्पमुपैतिदानम् ॥ 
अनंतपारंसमुपैतिराजन्यद्दीयतेतन्न लभेद्विजेभ्यः ॥ २ ॥

अर्थ - जो दयावान् पुरुष आर्त ब्राह्मणों को श्रद्धा से थोड़ा भी दान देता है उस पुरुष को अनन्त होकर वह मिलता है, जो दिया जाता है केवल उतना ही ब्राह्मणों से नहीं मिलता है ॥ २ ॥

bhārtēṣuviprēṣudayānvitaśvayacchriyāsvalpamupaitidānam ॥ 
anaṁtapāraṁsamupaitirājanyaddīyatētanna labhēdvijēbhyaḥ ॥ 2 ॥

Meaning - The kind man who gives even a little donation to the Brahmins with devotion, gets what he gets infinitely, what is given is not the same amount that is received from the Brahmins. 2॥

दाक्षिण्यंस्वजनेदयापरजने शाठ्यं सदादुर्जने, 
प्रीतिः साधुजने नयोनृपजनेविद्वजने चार्ज- वम् ॥ 
सौर्यशत्रुजने क्षमागुरुजनेनारीजने धूर्तता, 
इत्थंयेपुरुषाः कलासुक्कुशलास्तेष्वेव लोकस्थितिः ॥ ३ ॥

अर्थ - अपने जनों में दाक्षिण्य (अपनेपन से सहायता का भाव), दूसरे जन में दया, दुर्जन में सदा दुष्टता (कठोर आचरण), साधुजन में प्रीति, राजाओं के प्रति नीति का आचरण, विद्वानों से सरलता, शत्रुजन में शूरता, बड़े लोगों के विषय से क्षमा, स्त्री से काम पडने पर धूर्तता, इस प्रकार से जो लोग कला में कुशल होते हैं उन्हीं में लोक की मर्यादा रहती है ॥ ३ ॥

dākṣiṇyaṁsvajanēdayāparajanē śāṭhyaṁ sadādurjanē, 
prītiḥ sādhujanē nayōnr̥pajanēvidvajanē cārja- vam ॥ 
sauryaśatrujanē kṣamāgurujanēnārījanē dhūrtatā, 
itthaṁyēpuruṣāḥ kalāsukkuśalāstēṣvēva lōkasthitiḥ ॥ 3 ॥

Meaning - Dakshinya (feeling of helping oneself through one's belonging) among one's own people, kindness towards others, always wickedness (harsh conduct) among the wicked, love among the saints, ethical behavior towards the kings, simplicity towards the scholars, bravery towards the enemies, respect for the big people. Forgiveness in matters, cunningness in dealing with women, only those who are skilled in this art maintain the dignity of the people. ।।3॥

हस्तौदानविवर्जितौ श्रुतिपुटौसारस्वतद्रोहिणौ नेत्रेसाधुविलोकनेनरहितेपादौनतीर्थंगतौ ॥ 
अन्यायार्जितवित्तपूर्ण मुदरंवर्गेण तुगंशिगे 
रेरे जम्बुकमुंच मुंचसइसानीचंसुनिंयंवपुः ॥४॥
अर्थ - हाथ दान रहित है, कान वेदशात्र के विरोधी हैं, नेत्रों ने साधु का दर्शन नहीं किया, पांव ने तीर्थगमन नहीं किया, अन्याय से अर्जित धन से उदर भरा है और गर्वसे शिर ऊंचा हो रहा है। रे रे सियार ऐसे नीच निंद्य शरीर को शीघ्र छोड ॥ ४ ॥

hastaudānavivarjitau śrutipuṭausārasvatadrōhiṇau nētrēsādhuvilōkanēnarahitēpādaunatīrthaṁgatau ॥ 
anyāyārjitavittapūrṇa mudaraṁvargēṇa tugaṁśigē 
rērē jambukamuṁca muṁcasisānīcaṁsuniṁyaṁvapuḥ ॥4॥

Meaning - The hands are devoid of charity, the ears are against the Vedas, the eyes have not seen the sage, the feet have not gone on pilgrimage, the stomach is filled with wealth acquired unjustly and the head is held high with pride. Hey jackal, leave such a despicable body quickly. 4॥

येशांश्रीमद्यशोदासुतपदकमले नास्तिभक्ति र्नराणां, येषांमाभीरक़न्याप्रियगुणकथनेनानु रक्तारसंज्ञा ॥ 
येशांश्रीकृष्णलीलाललितरस कथासादरौनैवकर्णी, 
धिक्तान् धिकृतान् धिगेतान्कथयति सततं कीर्तनस्थो मृदंगः॥५॥

अर्थ - श्री यशोदा सुत के पदकमल में जिन लोगों की भक्ति नहीं रहती, जिन लोगों की जीभ अहीर की कन्याओं के  प्रिय के अर्थात् श्रीकृष्ण के गुणगान में प्रीति नहीं रखती, और श्री कृष्णजी की लीला की ललित - कथा का आदर जिनके कान नहीं करते उन लोगों को धिक् है ऐसा कीर्तन का मृदंग सदा कहता है ॥ ५ ॥

yēśāṁśrīmadyaśōdāsutapadakamalē nāstibhakti rnarāṇāṁ, 
yēṣāṁmābhīraक़nyāpriyaguṇakathanēnānu raktārasaṁjñā ॥ 
yēśāṁśrīkr̥ṣṇalīlālalitarasa kathāsādaraunaivakarṇī,
dhiktān dhikr̥tān dhigētānkathayati satataṁ kīrtanasthō mr̥daṁgaḥ॥5॥

Meaning - Those people who do not have devotion in the Padkamal of Shri Yashoda Sut, those people whose tongue does not love the praises of the beloved of Ahir's daughters i.e. Shri Krishna, and whose ears do not respect the beautiful story of Shri Krishnaji's Leela. Woe to the people, the Mridang of Kirtan always says this. 5॥

चाणक्य की प्रसिद्धि : 

ये संस्कृत श्लोक आचार्य चाणक्य के द्वारा रचित हैं। उनका नाम कौटिल्य एवं विष्णुगुप्त के नाम से भी प्रसिद्ध है। उनकी रचनाएँ Chanakya सूत्र, chanakya niti, chanakya ni pothi, chanakya quotes, chanakya niti in hindi, chanakya quotes in hindi, चाणक्य, चाणक्य नीति,  चाणक्य नीति की 10 बातें,  चाणक्य नीति की बातें, चाणक्य के कड़वे वचन, चाणक्य नीति स्त्री, चाणक्य नीति की 100 बातें,  चाणक्य विचार इन हिंदी, चाणक्य नीति सुविचार, चाणक्य नीति जीवन जीने की, सुविचार चाणक्य के कड़वे वचन, sanskrit shlok, shlok,sanskrit, sanskrit shlok,sanskrit quotes,shlok in sanskrit, sanskrit thought, sanskrit slokas,संस्कृत श्लोक,श्लोक,छोटे संस्कृत श्लोक, आदि के रूप में चर्चित एवं प्रसिद्ध है । 

चाणक्य का कालातीत प्रभाव  :

हजारों वर्षों के उपरांत भी उनमें वही ताजगी और उपयोगिता है। अतः वे आज भी उतने ही प्रासंगिक बने हुए हैं जितने वे तब थे जब वे लिखे गये थे। संस्कृत में रचित होने के कारण उनमें कालांतर के प्रभाव को स्पष्टतः नहीं देखा जाता है क्योंकि संस्कृत भाषा का सर्वश्रेष्ठ व्याकरण उसके अस्तित्व एवं गुणवत्ता के साथ ही उसके प्रभाव कि भी सुरक्षा करता है। ये अत्यंत ज्ञानवर्धक, पठनीय एवं माननीय हैं। ये जीवन‌ के अनेक चौराहों पर हमारा मार्गदर्शन करते हैं जब सब ओर अंधकार छा जाने की प्रतीति होती है।

About Chanakya (चाणक्य के बारे में) :

 चाणक्य का प्रभाव प्राचीन भारत से परे तक फैला हुआ है, क्योंकि शासन कला और शासन पर उनके विचारों का दुनिया भर के विद्वानों और नीति निर्माताओं द्वारा अध्ययन और सम्मान किया जाता है।  राजनीति के प्रति उनका व्यावहारिक दृष्टिकोण और राज्य और उसके नागरिकों के कल्याण पर उनका जोर उन्हें एक कालातीत व्यक्ति बनाता है जिनकी बुद्धि समय और स्थान की सीमाओं से परे है।

 चाणक्यनीतिदर्पण – 11.4

चाणक्य नीति दर्पण मूलत: संस्कृत (Sanskrit) में संस्कृत सुभाषितों के रूप में, काव्यात्मक एवं श्लोकों  के रूप में लिखा हुआ ग्रंथ है। इसके रचनाकार आचार्य चाणक्य हैं। उनके ये संस्कृत श्लोक चाणक्य नीति के नाम से संसार भर में प्रसिद्ध हैं। यहां पर यह श्लोक देवनागरी लिपि एवं  रोमन लिपि में भी दिए गए हैं एवं उनके अर्थ हिंदी देवनागरी एवं अंग्रेजी में रोमन लिपि में भी दिये गये हैं। जिससे विदेशों में रहने वाले भारतीय जो देवनागरी से परिचित नहीं हैं सनातन ग्रंथों के ज्ञान से लाभान्वित हो सकें।

अथैकादशोऽध्यायः ॥ 11 ॥

athaikādaśō’dhyāyaḥ ॥ 11 ॥

ग्रन्थ का नाम : चाणक्यनीतिदर्पण,  रचनाकार – आचार्य चाणक्य,   अध्याय – 11   श्लोक-  16-18

वापीकूपतडागानामारामसुरवेश्मनाम् ॥ 
उच्छेदनेनिराशंक:सविप्रोम्लेच्छउच्यते ।१६।

अर्थ - बावड़ी, कुंआ, तालाब, वाटिका, देवालय, इसके उच्छेद करने में जो निडर हो वह ब्राह्मण म्लेच्छ कहा जाता है ॥ १६ ॥

vāpīkūpataḍāgānāmārāmasuravēśmanām ॥ 
ucchēdanēnirāśaṁka:saviprōmlēcchucyatē |16|
Meaning - One who is fearless in cleaning a stepwell, well, pond, garden, temple, etc. is called a Brahmin Mlechchha(too much sinner). 16 ॥

देवद्रव्यंगुरुद्रव्यंपरदाराभिमर्शनम् ॥ 
निर्वाहः सर्वभूतेषुविप्रश्चांडालउच्यते ॥ १७॥

अर्थ - देवता का द्रव्य और गुरू का द्रव्य जो हरता है और परस्त्री से संग करता है और सब प्राणियों में निर्वाह कर लेता है वह विप्र चांडाल कहलाता है।॥१७॥ 

dēvadravyaṁgurudravyaṁparadārābhimarśanam ॥ 
nirvāhaḥ sarvabhūtēṣuvipraścāṁḍālucyatē ॥ 17॥
Meaning - The substance of the deity and the substance of the Guru who loses and has intercourse with another woman and subsists in all living beings is called Vipra Chandal.॥17॥

देयंभोज्यधनंधनं सुकृतिभिनोसंचयस्तस्यवै । श्रीकर्णस्बवलेश्वविक्चमपतेरद्यापिकीर्तिःस्थि ता ॥ 
अस्माकं मधुदानभोगरहितंनष्टंचिरात्सं चितं । निर्वाणादितिनैजपादयुगलंघर्षंत्यहोम क्षिकाः ॥ १८ ॥

अर्थ - सुकृतियों (सत्कर्म में रत) को चाहिये कि, भोगयोग्य धन को और द्रव्य को देवें कभी न संचें।  कर्ण, बलि, विक्रमादित्य इन राजाओं की कीर्ति इस समय पर्यन्त वर्तमान है, दान भोग से रहित बहुत दिन से संचित हमारे लोगों का मधु नष्ट हो गया।  निश्चय है कि, मधु मखियाँ मधु के नाश होने के कारण दोनों पैरों को घिसा करती हैं ॥ १८ ॥
dēyaṁbhōjyadhanaṁdhanaṁ sukr̥tibhinōsaṁcayastasyavai | śrīkarṇasbavalēśvavikcamapatēradyāpikīrtiḥsthi tā ॥ 
asmākaṁ madhudānabhōgarahitaṁnaṣṭaṁcirātsaṁ citaṁ | nirvāṇāditinaijapādayugalaṁgharṣaṁtyahōma kṣikāḥ ॥ 18 ॥
Meaning - Those doing good deeds (engaged in good deeds) should give away the money that can be enjoyed and never hoard it. The fame of these kings Karna, Bali, Vikramaditya is still present, the honey of our people accumulated for many days without charity and enjoyment has been destroyed. It is certain that honey bees wear out both their legs due to loss of honey. 18 ॥
॥ इति वृद्धचाणक्ये एकादशोऽध्याय ॥11॥
॥ iti vr̥ddhacāṇakyē ēkādaśō’dhyāya ॥11॥

चाणक्य की प्रसिद्धि : 

ये संस्कृत श्लोक आचार्य चाणक्य के द्वारा रचित हैं। उनका नाम कौटिल्य एवं विष्णुगुप्त के नाम से भी प्रसिद्ध है। उनकी रचनाएँ Chanakya सूत्र, chanakya niti, chanakya ni pothi, chanakya quotes, chanakya niti in hindi, chanakya quotes in hindi, चाणक्य, चाणक्य नीति,  चाणक्य नीति की 10 बातें,  चाणक्य नीति की बातें, चाणक्य के कड़वे वचन, चाणक्य नीति स्त्री, चाणक्य नीति की 100 बातें,  चाणक्य विचार इन हिंदी, चाणक्य नीति सुविचार, चाणक्य नीति जीवन जीने की, सुविचार चाणक्य के कड़वे वचन, sanskrit shlok, shlok,sanskrit, sanskrit shlok,sanskrit quotes,shlok in sanskrit, sanskrit thought, sanskrit slokas,संस्कृत श्लोक,श्लोक,छोटे संस्कृत श्लोक, आदि के रूप में चर्चित एवं प्रसिद्ध है । 

चाणक्य का कालातीत प्रभाव  :

हजारों वर्षों के उपरांत भी उनमें वही ताजगी और उपयोगिता है। अतः वे आज भी उतने ही प्रासंगिक बने हुए हैं जितने वे तब थे जब वे लिखे गये थे। संस्कृत में रचित होने के कारण उनमें कालांतर के प्रभाव को स्पष्टतः नहीं देखा जाता है क्योंकि संस्कृत भाषा का सर्वश्रेष्ठ व्याकरण उसके अस्तित्व एवं गुणवत्ता के साथ ही उसके प्रभाव कि भी सुरक्षा करता है। ये अत्यंत ज्ञानवर्धक, पठनीय एवं माननीय हैं। ये जीवन‌ के अनेक चौराहों पर हमारा मार्गदर्शन करते हैं जब सब ओर अंधकार छा जाने की प्रतीति होती है।

About Chanakya (चाणक्य के बारे में) :

 चाणक्य का प्रभाव प्राचीन भारत से परे तक फैला हुआ है, क्योंकि शासन कला और शासन पर उनके विचारों का दुनिया भर के विद्वानों और नीति निर्माताओं द्वारा अध्ययन और सम्मान किया जाता है।  राजनीति के प्रति उनका व्यावहारिक दृष्टिकोण और राज्य और उसके नागरिकों के कल्याण पर उनका जोर उन्हें एक कालातीत व्यक्ति बनाता है जिनकी बुद्धि समय और स्थान की सीमाओं से परे है।

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