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 चाणक्यनीतिदर्पण – 14.2

चाणक्य नीति दर्पण मूलत: संस्कृत (Sanskrit) में संस्कृत सुभाषितों के रूप में, काव्यात्मक एवं श्लोकों  के रूप में लिखा हुआ ग्रंथ है। इसके रचनाकार आचार्य चाणक्य हैं। उनके ये संस्कृत श्लोक चाणक्य नीति के नाम से संसार भर में प्रसिद्ध हैं। यहां पर यह श्लोक देवनागरी लिपि एवं  रोमन लिपि में भी दिए गए हैं एवं उनके अर्थ हिंदी देवनागरी एवं अंग्रेजी में रोमन लिपि में भी दिये गये हैं। जिससे विदेशों में रहने वाले भारतीय जो देवनागरी से परिचित नहीं हैं सनातन ग्रंथों के ज्ञान से लाभान्वित हो सकें।

अथ चतुर्दशोऽध्यायः ॥ 14 ॥

atha caturdaśō’dhyāyaḥ ॥ 14 ॥

ग्रन्थ का नाम : चाणक्यनीतिदर्पण,  रचनाकार – आचार्य चाणक्य,   अध्याय – 14   श्लोक-  6-10

धर्माख्यानेश्मशानेचरोगिणायामतिर्भवेत् ॥ 
सासर्वदैव तिष्ठेच्चेत्कोनमुच्येतबंधनात् ॥ ६ ॥

अर्थ - धर्म विषयक कथा के, श्मशान यात्रा के समय पर और रोगियों को जो बुद्धि उत्पन्न होती है वह यदि सदा रहती तो कौन बन्धन से मुक्त न होता ॥ ६ ॥

dharmākhyānēśmaśānēcarōgiṇāyāmatirbhavēt ॥ 
sāsarvadaiva tiṣṭhēccētkōnamucyētabaṁdhanāt ॥ 6 ॥

Meaning - If the intelligence that arises from stories related to religion, at the time of a visit to the cremation ground and to the sick, remained there forever, then who would not be free from bondage? 6॥

उत्पन्न पश्चात्तापस्य बुद्धिर्भवतियादृशी ॥ 
तादृशी यदिपूर्वस्यात्कस्यनस्यान्महोदयः॥७॥
अर्थ - निंदित कर्म करने के पश्चात् पछताने वाले पुरुष को जैसी बुद्धि उत्पन्न होती है वैसी बुद्धि यदि पहले होती तो किसको बड़ी समृद्धि न होती ॥ ७॥

utpanna paścāttāpasya buddhirbhavatiyādr̥śī ॥ 
tādr̥śī yadipūrvasyātkasyanasyānmahōdayaḥ॥7॥

Meaning - If one had had the kind of intelligence that a man who repents after committing a condemnable act develops, then who would not have achieved great prosperity? 7॥

दाने तपसिशौर्येवा विज्ञानेविनयेनये ॥ 
विस्मयोनहिकर्तव्यो बहुरत्नावसुंधरा ॥ ८ ॥

अर्थ - दान में, तप में शूरता में, विज्ञता में, सुशीलता में, और नीति में विस्मय नहीं करना चाहिये। इस कारण कि पृथ्वी में, बहुत रत्न हैं ॥ ८ ॥

dānē tapasiśauryēvā vijñānēvinayēnayē ॥ 
vismayōnahikartavyō bahuratnāvasuṁdharā ॥ 8 ॥

Meaning - One should not be surprised at charity, penance, bravery, knowledge, politeness and policy. This is because there are many gems in the earth. 8॥

दूरस्थोऽपिनदूरस्थोयोयस्यमनसिस्थितः ॥ 
पौयस्यहृदयेनोस्तिसमीपस्थोऽपिदूरतः ॥ ९॥

अर्थ - जो जिसके हृदय में रहता है वह दूर भी हो तो भी वह दूर नहीं, जो जिसके मन में नहीं है वह समीप भी हो तो भी वह दूर है ॥9॥

dūrasthō’pinadūrasthōyōyasyamanasisthitaḥ ॥ 
pauyasyahr̥dayēnōstisamīpasthō’pidūrataḥ ॥ 9॥

Meaning - Even if the one who lives in his heart is far away, he is not far away, even if the one who is not in his mind is close, he is still far away.

यस्माच्चाप्रियमिच्छेत्तुतस्यनुयात्सदाप्रियम् ॥ 
व्याधोमृगवर्धगंर्तुगीतंगायतिसुस्वरम् ॥१०॥

अर्थ - जिससे प्रिय की वाञ्छा हो उससे सदा प्रिय बोलना उचित है, व्याध मृग के वध के निमित्त मधुर स्वर से गीत गाता है ॥ १० ॥

yasmāccāpriyamicchēttutasyanuyātsadāpriyam ॥ 
vyādhōmr̥gavardhagaṁrtugītaṁgāyatisusvaram ॥10॥

Meaning - It is appropriate to always speak 'Dear' to the person to whom one desires the beloved, the hunter sings a song in a sweet voice for the purpose of killing the deer. 10 ॥

चाणक्य की प्रसिद्धि : 

ये संस्कृत श्लोक आचार्य चाणक्य के द्वारा रचित हैं। उनका नाम कौटिल्य एवं विष्णुगुप्त के नाम से भी प्रसिद्ध है। उनकी रचनाएँ Chanakya सूत्र, chanakya niti, chanakya ni pothi, chanakya quotes, chanakya niti in hindi, chanakya quotes in hindi, चाणक्य, चाणक्य नीति,  चाणक्य नीति की 10 बातें,  चाणक्य नीति की बातें, चाणक्य के कड़वे वचन, चाणक्य नीति स्त्री, चाणक्य नीति की 100 बातें,  चाणक्य विचार इन हिंदी, चाणक्य नीति सुविचार, चाणक्य नीति जीवन जीने की, सुविचार चाणक्य के कड़वे वचन, sanskrit shlok, shlok,sanskrit, sanskrit shlok,sanskrit quotes,shlok in sanskrit, sanskrit thought, sanskrit slokas,संस्कृत श्लोक,श्लोक,छोटे संस्कृत श्लोक, आदि के रूप में चर्चित एवं प्रसिद्ध है । 

चाणक्य का कालातीत प्रभाव  :

हजारों वर्षों के उपरांत भी उनमें वही ताजगी और उपयोगिता है। अतः वे आज भी उतने ही प्रासंगिक बने हुए हैं जितने वे तब थे जब वे लिखे गये थे। संस्कृत में रचित होने के कारण उनमें कालांतर के प्रभाव को स्पष्टतः नहीं देखा जाता है क्योंकि संस्कृत भाषा का सर्वश्रेष्ठ व्याकरण उसके अस्तित्व एवं गुणवत्ता के साथ ही उसके प्रभाव कि भी सुरक्षा करता है। ये अत्यंत ज्ञानवर्धक, पठनीय एवं माननीय हैं। ये जीवन‌ के अनेक चौराहों पर हमारा मार्गदर्शन करते हैं जब सब ओर अंधकार छा जाने की प्रतीति होती है।

About Chanakya (चाणक्य के बारे में) :

 चाणक्य का प्रभाव प्राचीन भारत से परे तक फैला हुआ है, क्योंकि शासन कला और शासन पर उनके विचारों का दुनिया भर के विद्वानों और नीति निर्माताओं द्वारा अध्ययन और सम्मान किया जाता है।  राजनीति के प्रति उनका व्यावहारिक दृष्टिकोण और राज्य और उसके नागरिकों के कल्याण पर उनका जोर उन्हें एक कालातीत व्यक्ति बनाता है जिनकी बुद्धि समय और स्थान की सीमाओं से परे है।

 चाणक्यनीतिदर्पण – 14.1

चाणक्य नीति दर्पण मूलत: संस्कृत (Sanskrit) में संस्कृत सुभाषितों के रूप में, काव्यात्मक एवं श्लोकों  के रूप में लिखा हुआ ग्रंथ है। इसके रचनाकार आचार्य चाणक्य हैं। उनके ये संस्कृत श्लोक चाणक्य नीति के नाम से संसार भर में प्रसिद्ध हैं। यहां पर यह श्लोक देवनागरी लिपि एवं  रोमन लिपि में भी दिए गए हैं एवं उनके अर्थ हिंदी देवनागरी एवं अंग्रेजी में रोमन लिपि में भी दिये गये हैं। जिससे विदेशों में रहने वाले भारतीय जो देवनागरी से परिचित नहीं हैं सनातन ग्रंथों के ज्ञान से लाभान्वित हो सकें।

अथ चतुर्दशोऽध्यायः ॥ 14 ॥

atha caturdaśō’dhyāyaḥ ॥ 14 ॥

ग्रन्थ का नाम : चाणक्यनीतिदर्पण,  रचनाकार – आचार्य चाणक्य,   अध्याय – 14   श्लोक-  1-5


पृथिव्यात्रीणिरत्नानिजलमन्नंसुभाषितम् ॥ 
मूढ़ै:पाषाणखंडेषुरत्नसंज्ञाभिधीयते ॥ १ ॥

अर्थ - पृथ्वी में जल, अन्न और प्रिय वचन ये तीन ही रत्न हैं। मूढ़ों ने पाषाण के टुकड़ों को  में रत्न की गिनती की है ॥ १ ॥

pr̥thivyātrīṇiratnānijalamannaṁsubhāṣitam ॥ 
mūḍaiḥpāṣāṇakhaṁḍēpuratnasaṁkhyāvidhīyatē ॥ 1 ॥

Meaning - Water, food and loving words are the only three gems on earth. Fools have counted pieces of stone as gems. ।। 1 ।।

आत्मापराधवृक्षस्यफलान्येतानिदेहिनाम् ॥ 
दारिद्र्यरोगदुःखानिबंधनव्यसनानिच ॥ २ ॥

अर्थ - जीवों को अपने अपराध रूप वृक्ष लगाने के दरिद्रता, रोग, दुःख, बंधन और विपत्ति ये फल प्राप्त होते हैं ॥2॥ 

ātmāparādhavr̥kṣasyaphalānyētānidēhinām ॥ 
dāridryarōgaduḥkhānibaṁdhanavyasanānica ॥ 2 ॥

Meaning - The living beings get the fruits of poverty, disease, sorrow, bondage and calamity due to their sins by planting trees. ॥2॥

पुनर्वित्तंपुनर्मित्रंपुनर्भार्यापुनर्मही ॥ 
एतत्सर्वपुनर्लभ्यंनशरीरंपुनः पुनः ॥ ३ ॥
अर्थ - धन, मित्र, स्त्री और पृथ्वी ये फिर मिलते हैं, परन्तु मनुष्य शरीर फिर फिर नहीं मिलता ॥ ३ ॥
punarvittaṁpunarmitraṁpunarbhāryāpunarmahī ॥ 
ētatsarvapunarlabhyaṁnaśarīraṁpunaḥ punaḥ ॥ 3 ॥

Meaning - Wealth, friends, women and earth are found again, but the human body is not found again. ।।3॥

बहूनाचैवसत्त्वानासमवायोरिपुंजयः ॥ 
वर्षांधाराधरोमेघस्तृणैरपिनिवार्यते ॥ ४ ॥

अर्थ - निश्चय है कि बहुत जनों का समुदाय शत्रु को जीत लेता है। तृण समूह भी वृष्टि की धारा के धरने वाले मेघ का निवारण करता है ॥ ४ ॥

bahūnācaivasattvānāsamavāyōripuṁjayaḥ ॥ 
varṣāṁdhārādharōmēghastr̥ṇairapinivāryatē ॥ 4 ॥

Meaning - It is certain that a community of many people conquers the enemy. The grass group also prevents clouds that hold back the rain stream. ।।4॥

जलेतैलंखलेगुह्यंपात्रेदानंमनागपि ॥ 
प्राज्ञेशास्त्रंस्वयंयातिविस्तारं बस्तुशक्तितः॥५॥

अर्थ - जल में तेल, दुर्जन में गुप्तवार्ता, सुपात्र में दान और बुद्धिमान में शास्त्र ये थोडे भी हों तो भी वस्तु की शक्ति से अपने अपने आपसे, विस्तार को प्राप्त हो जाते है ॥ ५ ॥

jalētailaṁkhalēguhyaṁpātrēdānaṁmanāgapi ॥ 
prājñēśāstraṁsvayaṁyātivistāraṁ bastuśaktitaḥ॥5॥

Meaning: Oil in water, secret talk in a wicked person, charity in a worthy person and scriptures in a wise person, even if they are few in number, they get expanded on their own by the power of things. ।।5॥

चाणक्य की प्रसिद्धि : 

ये संस्कृत श्लोक आचार्य चाणक्य के द्वारा रचित हैं। उनका नाम कौटिल्य एवं विष्णुगुप्त के नाम से भी प्रसिद्ध है। उनकी रचनाएँ Chanakya सूत्र, chanakya niti, chanakya ni pothi, chanakya quotes, chanakya niti in hindi, chanakya quotes in hindi, चाणक्य, चाणक्य नीति,  चाणक्य नीति की 10 बातें,  चाणक्य नीति की बातें, चाणक्य के कड़वे वचन, चाणक्य नीति स्त्री, चाणक्य नीति की 100 बातें,  चाणक्य विचार इन हिंदी, चाणक्य नीति सुविचार, चाणक्य नीति जीवन जीने की, सुविचार चाणक्य के कड़वे वचन, sanskrit shlok, shlok,sanskrit, sanskrit shlok,sanskrit quotes,shlok in sanskrit, sanskrit thought, sanskrit slokas,संस्कृत श्लोक,श्लोक,छोटे संस्कृत श्लोक, आदि के रूप में चर्चित एवं प्रसिद्ध है । 

चाणक्य का कालातीत प्रभाव  :

हजारों वर्षों के उपरांत भी उनमें वही ताजगी और उपयोगिता है। अतः वे आज भी उतने ही प्रासंगिक बने हुए हैं जितने वे तब थे जब वे लिखे गये थे। संस्कृत में रचित होने के कारण उनमें कालांतर के प्रभाव को स्पष्टतः नहीं देखा जाता है क्योंकि संस्कृत भाषा का सर्वश्रेष्ठ व्याकरण उसके अस्तित्व एवं गुणवत्ता के साथ ही उसके प्रभाव कि भी सुरक्षा करता है। ये अत्यंत ज्ञानवर्धक, पठनीय एवं माननीय हैं। ये जीवन‌ के अनेक चौराहों पर हमारा मार्गदर्शन करते हैं जब सब ओर अंधकार छा जाने की प्रतीति होती है।

About Chanakya (चाणक्य के बारे में) :

 चाणक्य का प्रभाव प्राचीन भारत से परे तक फैला हुआ है, क्योंकि शासन कला और शासन पर उनके विचारों का दुनिया भर के विद्वानों और नीति निर्माताओं द्वारा अध्ययन और सम्मान किया जाता है।  राजनीति के प्रति उनका व्यावहारिक दृष्टिकोण और राज्य और उसके नागरिकों के कल्याण पर उनका जोर उन्हें एक कालातीत व्यक्ति बनाता है जिनकी बुद्धि समय और स्थान की सीमाओं से परे है।

 चाणक्यनीतिदर्पण – 13.4

चाणक्य नीति दर्पण मूलत: संस्कृत (Sanskrit) में संस्कृत सुभाषितों के रूप में, काव्यात्मक एवं श्लोकों  के रूप में लिखा हुआ ग्रंथ है। इसके रचनाकार आचार्य चाणक्य हैं। उनके ये संस्कृत श्लोक चाणक्य नीति के नाम से संसार भर में प्रसिद्ध हैं। यहां पर यह श्लोक देवनागरी लिपि एवं  रोमन लिपि में भी दिए गए हैं एवं उनके अर्थ हिंदी देवनागरी एवं अंग्रेजी में रोमन लिपि में भी दिये गये हैं। जिससे विदेशों में रहने वाले भारतीय जो देवनागरी से परिचित नहीं हैं सनातन ग्रंथों के ज्ञान से लाभान्वित हो सकें।

अथ त्रयोदशोऽध्यायः ॥ 13 ॥

atha trayōdaśō’dhyāyaḥ ॥ 13 ॥

ग्रन्थ का नाम : चाणक्यनीतिदर्पण,  रचनाकार – आचार्य चाणक्य,   अध्याय – 13   श्लोक-  16-20

अनवस्थितकार्यस्यनजनेनवनेसुखम् ॥ 
जनोदहतिसंसर्गाद्वनं सङ्ग विवर्जनात् ॥ १६ ॥

अर्थ - जिसके कार्य की स्थिरता नहीं रहती वह न जन में और न वन में सुख पाता है। जन उसको संसर्ग से जलाता है और वन संग के त्याग से जलाता है॥ १६ ॥

anavasthitakāryasyanajanēnavanēsukham ॥ 
janōdahatisaṁsargādvanaṁ saṅga vivarjanāt ॥ 16 ॥

Meaning - One who does not have stability in his work finds happiness neither in the world nor in the forest. People burn it with contact and the forest burns with renunciation of company. ।। 16 ॥

यथाखात्वाखनित्रेणभूतलेर्वारिविन्दति ॥ 
तथागुरुगतांविद्यांशुश्रूषुरधिगच्छति ॥ १७ ॥

अर्थ - जैसे खनने के कारण  खनिक उसे खनके  पाताल के जल को पाता है। वैसे ही गुरु गत विद्या को सेवक शिष्य पाता है ॥ १७ ॥

yathākhātvākhanitrēṇabhūtalērvārivindati ॥ 
tathāgurugatāṁvidyāṁśuśrūṣuradhigacchati ॥ 17 ॥

Meaning - As a result of mining, the miner finds the water of the underworld by digging. Similarly, the servant receives the knowledge given by the Guru as his disciple. 17 ॥

कर्मा यत्तफलंपुंसांबुद्धिःकर्मानुसारिणी ॥ 
तथापिसुधिपश्चार्याःसुविचार्यैवकुर्वते ॥१८॥

अर्थ - यद्यपि फल पुरुष के कर्मके आधीन रहता है और बुद्धि भी कर्म के अनुसार ही चलती है तथापि विवेकी महात्मा लोग विचार करके ही अपने काम करते हैं ॥१८॥

karmā yattaphalaṁpuṁsāṁbuddhiḥkarmānusāriṇī ॥ 
tathāpisudhipaścāryāḥsuvicāryaivakurvatē ॥18॥

Meaning - Although the result is dependent on the actions of the man and the intellect also works according to the actions, yet the wise Mahatmas do their work only after thinking. ।।18॥

सन्तोषस्त्रिषुकर्तव्यः स्वदारेभोजनेधने ॥ 
त्रिषुचैवन कर्तव्यो ऽध्ययनेजपदानयोः ॥१९॥

अर्थ - स्त्री, भोजन और धन इन तीन में सन्तोष करना उचित है।  पढना, तप और दान इन तीन में संतोष कभी नहीं करना चाहिये ॥ 19 ॥

santōṣastriṣukartavyaḥ svadārēbhōjanēdhanē ॥ 
triṣucaivana kartavyō ’dhyayanējapadānayōḥ ॥19॥

Meaning: It is appropriate to be satisfied with these three things: woman, food and money. One should never be satisfied with these three - reading, penance and charity. 19 ॥

एकाक्षरप्रदातारंयोगुरुंनाभिवंदते ॥ 
श्वानयोनिशतंभुक्त्वाचाण्डालेष्वभिजायते ॥ 20 ॥

अर्थ - जो एक अक्षर भी देनेवाले गुरु की वन्दना नहीं करता, वह कुत्ते की सौ योनि को भोगकर चांडालों में जन्म लेता है ॥ २० ॥
ēkākṣarapradātāraṁyōguruṁnābhivaṁdatē ॥ 
śvānayōniśataṁbhuktvācāṇḍālēṣvabhijāyatē ॥ 20 ॥
Meaning - One who does not worship the Guru who gives even a single letter, is born among the Chandalas after suffering through the hundred births of a dog. 20 ॥

युगांतेप्रचलेन्मेरुःकल्पांतेसप्तसागराः ॥ 
साधवःप्रतिपन्नार्थान्नचलंतिकदाचन ॥२१॥

अर्थ - युग के अन्त में सुमेरु चलायमान होता है और कल्प के अंत में सातों सागर, परन्तु संतजन स्वीकृत अर्थ से कभी भी विचलित नहीं होते॥ २१ ॥ 

yugāṁtēpracalēnmēruḥkalpāṁtēsaptasāgarāḥ ॥ 
sādhavaḥpratipannārthānnacalaṁtikadācana ॥21॥

Meaning - At the end of the Yuga, Sumeru moves and at the end of the Kalpa, the seven oceans, but the saints never deviate from the accepted meaning. 21 ॥
॥ इति श्रीवृद्धचाणक्ये त्रयोदशोऽध्यायः ॥ १३ ॥
॥ iti śrīvr̥ddhacāṇakyē trayōdaśō’dhyāyaḥ ॥ 13 ॥

चाणक्य की प्रसिद्धि : 

ये संस्कृत श्लोक आचार्य चाणक्य के द्वारा रचित हैं। उनका नाम कौटिल्य एवं विष्णुगुप्त के नाम से भी प्रसिद्ध है। उनकी रचनाएँ Chanakya सूत्र, chanakya niti, chanakya ni pothi, chanakya quotes, chanakya niti in hindi, chanakya quotes in hindi, चाणक्य, चाणक्य नीति,  चाणक्य नीति की 10 बातें,  चाणक्य नीति की बातें, चाणक्य के कड़वे वचन, चाणक्य नीति स्त्री, चाणक्य नीति की 100 बातें,  चाणक्य विचार इन हिंदी, चाणक्य नीति सुविचार, चाणक्य नीति जीवन जीने की, सुविचार चाणक्य के कड़वे वचन, sanskrit shlok, shlok,sanskrit, sanskrit shlok,sanskrit quotes,shlok in sanskrit, sanskrit thought, sanskrit slokas,संस्कृत श्लोक,श्लोक,छोटे संस्कृत श्लोक, आदि के रूप में चर्चित एवं प्रसिद्ध है । 

चाणक्य का कालातीत प्रभाव  :

हजारों वर्षों के उपरांत भी उनमें वही ताजगी और उपयोगिता है। अतः वे आज भी उतने ही प्रासंगिक बने हुए हैं जितने वे तब थे जब वे लिखे गये थे। संस्कृत में रचित होने के कारण उनमें कालांतर के प्रभाव को स्पष्टतः नहीं देखा जाता है क्योंकि संस्कृत भाषा का सर्वश्रेष्ठ व्याकरण उसके अस्तित्व एवं गुणवत्ता के साथ ही उसके प्रभाव कि भी सुरक्षा करता है। ये अत्यंत ज्ञानवर्धक, पठनीय एवं माननीय हैं। ये जीवन‌ के अनेक चौराहों पर हमारा मार्गदर्शन करते हैं जब सब ओर अंधकार छा जाने की प्रतीति होती है।

About Chanakya (चाणक्य के बारे में) :

 चाणक्य का प्रभाव प्राचीन भारत से परे तक फैला हुआ है, क्योंकि शासन कला और शासन पर उनके विचारों का दुनिया भर के विद्वानों और नीति निर्माताओं द्वारा अध्ययन और सम्मान किया जाता है।  राजनीति के प्रति उनका व्यावहारिक दृष्टिकोण और राज्य और उसके नागरिकों के कल्याण पर उनका जोर उन्हें एक कालातीत व्यक्ति बनाता है जिनकी बुद्धि समय और स्थान की सीमाओं से परे है।


 चाणक्यनीतिदर्पण – 13.3

चाणक्य नीति दर्पण मूलत: संस्कृत (Sanskrit) में संस्कृत सुभाषितों के रूप में, काव्यात्मक एवं श्लोकों  के रूप में लिखा हुआ ग्रंथ है। इसके रचनाकार आचार्य चाणक्य हैं। उनके ये संस्कृत श्लोक चाणक्य नीति के नाम से संसार भर में प्रसिद्ध हैं। यहां पर यह श्लोक देवनागरी लिपि एवं  रोमन लिपि में भी दिए गए हैं एवं उनके अर्थ हिंदी देवनागरी एवं अंग्रेजी में रोमन लिपि में भी दिये गये हैं। जिससे विदेशों में रहने वाले भारतीय जो देवनागरी से परिचित नहीं हैं सनातन ग्रंथों के ज्ञान से लाभान्वित हो सकें।

अथ त्रयोदशोऽध्यायः ॥ 13 ॥

atha trayōdaśō’dhyāyaḥ ॥ 13 ॥

ग्रन्थ का नाम : चाणक्यनीतिदर्पण,  रचनाकार – आचार्य चाणक्य,   अध्याय – 13   श्लोक-  11-15

दह्यमानः सुतीवेणनीचाः परयशोऽग्निना । 
आशक्तास्तत्पदं गन्तुंततो निंदांमकुर्वते ॥ ११॥

अर्थ - दुर्जन दूसरे की कीर्ति रूप दुःसह अग्नि से जल-कर उसके पद को नहीं पाते इसलिये उसकी निन्दा करने लगते हैं ॥ ११ ॥

dahyamānaḥ sutīvēṇanīcāḥ parayaśō’gninā | 
āśaktāstatpadaṁ gantuṁtatō niṁdāṁmakurvatē ॥ 11॥
Meaning - The wicked burn the fame of another person with the fire of misery and hence they do not get his position, hence they start criticizing him. 11 ॥

बन्धायविषयासंगोभुक्त्यै निर्विषयंमनः ॥ 
मनएवमनुष्याणां कारणंबन्धमोक्षयोः ॥१२॥

अर्थ - विषय में आसक्त मन बन्ध का हेतु है। विषय से रहित मुक्ति का, मनुष्यों के बन्ध और मोक्ष का कारण मन ही है ॥ १२ ॥
bandhāyaviṣayāsaṁgōbhuktyai nirviṣayaṁmanaḥ ॥ 
manēvamanuṣyāṇāṁ kāraṇaṁbandhamōkṣayōḥ ॥12॥

Meaning: The mind attached to the object is the cause of bondage. The mind is the cause of liberation without objects, the bondage and salvation of human beings. ।। 12 ॥

देहाभिमानेगलितेज्ञानेनपरमात्मनः 
यत्रयत्रमनोयातितत्रतत्रसमाधयः ॥ १३ ॥
अर्थ - परमात्मा के ज्ञान से देह के अभिमान के नाश हो जाने पर जहाँ  जहाँ  मन जाता है वहाँ वहाँ समाधि ही है ॥ १३ ॥

dēhābhimānēgalitējñānēnaparamātmanaḥ 
yatrayatramanōyātitatratatrasamādhayaḥ ॥ 13 ॥

Meaning - When the pride of the body is destroyed by the knowledge of God, wherever the mind goes there is only samadhi. ।। 13 ॥

ईप्सितंमनसः सर्वकस्यसंपद्यतेसुखम् ॥ 
दैवायत्तंयतःसर्वंतस्मात्सन्तोषमाश्रयेत्॥१४॥

अर्थ - मन का अभिलाषित सब सुख किसको मिलता है, जिस कारण सब दैवके वश है इससे संतोष पर भरोसा करना उचित है ॥ १४ ॥

īpsitaṁmanasaḥ sarvakasyasaṁpadyatēsukham ॥ 
daivāyattaṁyataḥsarvaṁtasmātsantōṣamāśrayēt॥14॥

Meaning - Who gets all the happiness desired by the mind, because everything is under the control of God, it is appropriate to rely on satisfaction from it. ।। 14 ॥

यथाधेनुसहस्त्रेषुवत्तो गच्छतिमातरम् ॥ 
तथायच्चकृतं कर्मकर्तारमनुगच्छति ॥ १५ ॥

अर्थ - जैसे सहस्रों धेनु के रहते बछरा माता ही के निकट जाता है; वैसे ही जो कुछ कर्म किया जाता सो कर्ता ही को मिलता है ॥ १५ ॥

yathādhēnusahastrēṣuvattō gacchatimātaram ॥ 
tathāyaccakr̥taṁ karmakartāramanugacchati ॥ 15 ॥

Meaning - Just as a calf goes near its mother in the presence of thousands of cows; Similarly, whatever work is done, only the doer gets it. 15.

चाणक्य की प्रसिद्धि : 

ये संस्कृत श्लोक आचार्य चाणक्य के द्वारा रचित हैं। उनका नाम कौटिल्य एवं विष्णुगुप्त के नाम से भी प्रसिद्ध है। उनकी रचनाएँ Chanakya सूत्र, chanakya niti, chanakya ni pothi, chanakya quotes, chanakya niti in hindi, chanakya quotes in hindi, चाणक्य, चाणक्य नीति,  चाणक्य नीति की 10 बातें,  चाणक्य नीति की बातें, चाणक्य के कड़वे वचन, चाणक्य नीति स्त्री, चाणक्य नीति की 100 बातें,  चाणक्य विचार इन हिंदी, चाणक्य नीति सुविचार, चाणक्य नीति जीवन जीने की, सुविचार चाणक्य के कड़वे वचन, sanskrit shlok, shlok,sanskrit, sanskrit shlok,sanskrit quotes,shlok in sanskrit, sanskrit thought, sanskrit slokas,संस्कृत श्लोक,श्लोक,छोटे संस्कृत श्लोक, आदि के रूप में चर्चित एवं प्रसिद्ध है । 

चाणक्य का कालातीत प्रभाव  :

हजारों वर्षों के उपरांत भी उनमें वही ताजगी और उपयोगिता है। अतः वे आज भी उतने ही प्रासंगिक बने हुए हैं जितने वे तब थे जब वे लिखे गये थे। संस्कृत में रचित होने के कारण उनमें कालांतर के प्रभाव को स्पष्टतः नहीं देखा जाता है क्योंकि संस्कृत भाषा का सर्वश्रेष्ठ व्याकरण उसके अस्तित्व एवं गुणवत्ता के साथ ही उसके प्रभाव कि भी सुरक्षा करता है। ये अत्यंत ज्ञानवर्धक, पठनीय एवं माननीय हैं। ये जीवन‌ के अनेक चौराहों पर हमारा मार्गदर्शन करते हैं जब सब ओर अंधकार छा जाने की प्रतीति होती है।

About Chanakya (चाणक्य के बारे में) :

 चाणक्य का प्रभाव प्राचीन भारत से परे तक फैला हुआ है, क्योंकि शासन कला और शासन पर उनके विचारों का दुनिया भर के विद्वानों और नीति निर्माताओं द्वारा अध्ययन और सम्मान किया जाता है।  राजनीति के प्रति उनका व्यावहारिक दृष्टिकोण और राज्य और उसके नागरिकों के कल्याण पर उनका जोर उन्हें एक कालातीत व्यक्ति बनाता है जिनकी बुद्धि समय और स्थान की सीमाओं से परे है।

 चाणक्यनीतिदर्पण – 13.2

चाणक्य नीति दर्पण मूलत: संस्कृत (Sanskrit) में संस्कृत सुभाषितों के रूप में, काव्यात्मक एवं श्लोकों  के रूप में लिखा हुआ ग्रंथ है। इसके रचनाकार आचार्य चाणक्य हैं। उनके ये संस्कृत श्लोक चाणक्य नीति के नाम से संसार भर में प्रसिद्ध हैं। यहां पर यह श्लोक देवनागरी लिपि एवं  रोमन लिपि में भी दिए गए हैं एवं उनके अर्थ हिंदी देवनागरी एवं अंग्रेजी में रोमन लिपि में भी दिये गये हैं। जिससे विदेशों में रहने वाले भारतीय जो देवनागरी से परिचित नहीं हैं सनातन ग्रंथों के ज्ञान से लाभान्वित हो सकें।

अथ त्रयोदशोऽध्यायः ॥ 13 ॥

atha trayōdaśō’dhyāyaḥ ॥ 13 ॥

ग्रन्थ का नाम : चाणक्यनीतिदर्पण,  रचनाकार – आचार्य चाणक्य,   अध्याय – 13   श्लोक-  6-10
यस्यस्नेहो भयंतस्यस्नेहोदुःखस्यभाजनं ॥ 
स्नेहमूलानिदुखानितानित्यक्त्वावसेत्सुखम्॥ 6 ॥

अर्थ - जिसको किसी में प्रीति रहती है उसी को भय होता है। स्नेह ही दुःख का भाजन है, और सब दुःख का कारण स्नेह (आसक्ति) ही है। इस कारण उसे छोड़कर सुखी होना उचित है ॥ ६ ॥

yasyasnēhō bhayaṁtasyasnēhōduḥkhasyabhājanaṁ ॥ 
snēhamūlānidukhānitānityaktvāvasētsukham॥ 6 ॥

Meaning - The one who has love for someone has fear. Affection is the food of sorrow, and the cause of all sorrow is affection (attachment). For this reason it is better to leave him and be happy. ।। 6॥

अनागतविधाताचप्रत्युत्पन्नमतिस्तथा ॥ 
द्वावेतौसुखमेधेतेयद्भविष्योविनश्यति ॥ ७ ॥
अर्थ - आने वाले दुःख के पहले से उपाय करने वाला और जिसकी बुद्धि में विपत्ति आ जाने पर शीघ्र ही उपाय भी आ जाता है, ये दोनों सुख से बढ़ते हैं। और जो सोचता है कि, भाग्यवश से जो होने-वाला है सो अवश्य होगा, तो वह निश्चय ही विनाश को प्राप्त हो जाता है ॥७॥

anāgatavidhātācapratyutpannamatistathā ॥ 
dvāvētausukhamēdhētēyadbhaviṣyōvinaśyati ॥ 7 ॥

Meaning - The one who foresees the coming sorrow and the one who quickly comes to the solution when a calamity comes to his mind, both of them grow in happiness. And one who thinks that whatever is going to happen due to luck will definitely happen, then he definitely gets destroyed. ।।7॥

राज्ञिधर्मिणिधर्मिष्टाःपापेपापाःसमेसमाः ॥ 
राजानमनुवर्तन्तेयथाराजातथाप्रजाः ॥ ८ ॥
अर्थ - यदि धर्मात्मा राजा हो तो प्रजा भी धर्मनिष्ठ होती है। यदि पापी हो तो पापी होती है। सब प्रजा राजा के अनुसार चलती है। जैसा राजा वैसी प्रजा भी होती है ॥ ८ ॥

rājñidharmiṇidharmiṣṭāḥpāpēpāpāḥsamēsamāḥ ॥ 
rājānamanuvartantēyathārājātathāprajāḥ ॥ 8 ॥
Meaning - If there is a righteous king then the people or citizens also become religious. If she is a sinner, she is a sinner. All the citizens obey the king. Like the king, so are the citizens. 8॥

जीवन्तंमृतन्मन्येदेहिनंधर्मबाजतम् ॥ 
मृतेोधर्मैणसंयुक्तोदीर्घजीवीन संशयः ॥ ९ ॥
अर्थ - धर्म रहित जीते को मृतक के समान समझता हूंँ। निश्चय है कि, धर्मयुक्त मरा भी पुरुष चिरंजीवी ही है।9। 

jīvantaṁmr̥tanmanyēdēhinaṁdharmabājatam ॥ 
mr̥tēōdharmaiṇasaṁyuktōdīrghajīvīna saṁśayaḥ ॥ 9 ॥
Meaning - I consider the living without religion as the dead. It is certain that even a righteous man who dies is still alive.  ।। 9.।।

धर्मार्थकाममोक्षाणांयस्यकोऽपिनविद्यते ॥
अजागलस्तन स्पेवतस्यजन्मनिरर्थकम् ॥ १० ॥
अर्थ - धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष इनमें से जिसको एक भी नहीं रहता, बकरी के गल के स्तन के समान उसका जन्म निरर्थक है ॥ १० ॥

dharmārthakāmamōkṣāṇāṁyasyakō’pinavidyatē ॥
ajāgalastana spēvatasyajanmanirarthakam ॥ 10 ॥

Meaning - The one who does not have any one of these, Dharma, Artha, Kama, Moksha, his birth is as meaningless as the breast of a goat's neck. 10 ॥

चाणक्य की प्रसिद्धि : 

ये संस्कृत श्लोक आचार्य चाणक्य के द्वारा रचित हैं। उनका नाम कौटिल्य एवं विष्णुगुप्त के नाम से भी प्रसिद्ध है। उनकी रचनाएँ Chanakya सूत्र, chanakya niti, chanakya ni pothi, chanakya quotes, chanakya niti in hindi, chanakya quotes in hindi, चाणक्य, चाणक्य नीति,  चाणक्य नीति की 10 बातें,  चाणक्य नीति की बातें, चाणक्य के कड़वे वचन, चाणक्य नीति स्त्री, चाणक्य नीति की 100 बातें,  चाणक्य विचार इन हिंदी, चाणक्य नीति सुविचार, चाणक्य नीति जीवन जीने की, सुविचार चाणक्य के कड़वे वचन, sanskrit shlok, shlok,sanskrit, sanskrit shlok,sanskrit quotes,shlok in sanskrit, sanskrit thought, sanskrit slokas,संस्कृत श्लोक,श्लोक,छोटे संस्कृत श्लोक, आदि के रूप में चर्चित एवं प्रसिद्ध है । 

चाणक्य का कालातीत प्रभाव  :

हजारों वर्षों के उपरांत भी उनमें वही ताजगी और उपयोगिता है। अतः वे आज भी उतने ही प्रासंगिक बने हुए हैं जितने वे तब थे जब वे लिखे गये थे। संस्कृत में रचित होने के कारण उनमें कालांतर के प्रभाव को स्पष्टतः नहीं देखा जाता है क्योंकि संस्कृत भाषा का सर्वश्रेष्ठ व्याकरण उसके अस्तित्व एवं गुणवत्ता के साथ ही उसके प्रभाव कि भी सुरक्षा करता है। ये अत्यंत ज्ञानवर्धक, पठनीय एवं माननीय हैं। ये जीवन‌ के अनेक चौराहों पर हमारा मार्गदर्शन करते हैं जब सब ओर अंधकार छा जाने की प्रतीति होती है।

About Chanakya (चाणक्य के बारे में) :

 चाणक्य का प्रभाव प्राचीन भारत से परे तक फैला हुआ है, क्योंकि शासन कला और शासन पर उनके विचारों का दुनिया भर के विद्वानों और नीति निर्माताओं द्वारा अध्ययन और सम्मान किया जाता है।  राजनीति के प्रति उनका व्यावहारिक दृष्टिकोण और राज्य और उसके नागरिकों के कल्याण पर उनका जोर उन्हें एक कालातीत व्यक्ति बनाता है जिनकी बुद्धि समय और स्थान की सीमाओं से परे है।

 चाणक्यनीतिदर्पण – 13.1

चाणक्य नीति दर्पण मूलत: संस्कृत (Sanskrit) में संस्कृत सुभाषितों के रूप में, काव्यात्मक एवं श्लोकों  के रूप में लिखा हुआ ग्रंथ है। इसके रचनाकार आचार्य चाणक्य हैं। उनके ये संस्कृत श्लोक चाणक्य नीति के नाम से संसार भर में प्रसिद्ध हैं। यहां पर यह श्लोक देवनागरी लिपि एवं  रोमन लिपि में भी दिए गए हैं एवं उनके अर्थ हिंदी देवनागरी एवं अंग्रेजी में रोमन लिपि में भी दिये गये हैं। जिससे विदेशों में रहने वाले भारतीय जो देवनागरी से परिचित नहीं हैं सनातन ग्रंथों के ज्ञान से लाभान्वित हो सकें।

अथ त्रयोदशोऽध्यायः ॥ 13 ॥

atha trayōdaśō’dhyāyaḥ ॥ 13 ॥

ग्रन्थ का नाम : चाणक्यनीतिदर्पण,  रचनाकार – आचार्य चाणक्य,   अध्याय – 13   श्लोक-  1-5

मुहूर्तमपिजीवच्चनरःशुक्लेनकर्मणा ॥ 
'नकल्पमपिकष्टेन लोकद्वयविरोधिना ॥ १ ॥

अर्थ - उत्तम कर्म से मनुष्यों को मुहर्त भर का जीना भी श्रेष्ठ है दोनों लोकों के विरोधी दुष्टकर्म से कल्प भर का भी जीना उत्तम नहीं है ॥ १ ॥

muhūrtamapijīvaccanaraḥśuklēnakarmaṇā ॥ 
'nakalpamapikaṣṭēna lōkadvayavirōdhinā ॥ 1 ॥

Meaning - It is better for humans to live even for a moment by doing good deeds; it is not better to live even for a Kalpa by doing bad deeds opposing the two worlds.  1॥

गतेशोकोनकर्तव्योभविष्यंनैवचिंतयेत् ॥ 
वर्तमानेनकालेनप्रवर्तन्तेविचक्षणाः ॥ २ ॥

अर्थ -  गई वस्तु का शोक और भावी की चिंता नहीं करनी चाहिये, कुशल लोग वर्तमान काल के अनुरोध से प्रवृत होते हैं ॥ २ ॥

gatēśōkōnakartavyōbhaviṣyaṁnaivaciṁtayēt ॥ 
vartamānēnakālēnapravartantēvicakṣaṇāḥ ॥ 2 ॥

Meaning - One should not mourn for the past and worry about the future, skilled people are inclined towards the demands of the present.  2॥

स्वभावेनहितुष्यंतिदेवाःसत्पुरुषाः पिता ॥ 
ज्ञातयःस्नान पानाभ्यांवाक्यदानेनपंडिताः॥३॥

अर्थ - निश्चय यह है कि, देवता, सत्पुरुष और पिता ये प्रकृति से संतुष्ट होते हैं पर बन्धु, स्नान और पान से और पण्डित प्रिय वचन से संतुष्ट होते हैं ॥ ३ ॥

svabhāvēnahituṣyaṁtidēvāḥsatpuruṣāḥ pitā ॥ 
jñātayaḥsnāna pānābhyāṁvākyadānēnapaṁḍitāḥ॥3॥

Meaning - It is certain that gods( The habitats of the heaven or swarga called devta), good men and fathers are satisfied with nature, but brothers are satisfied with bathing and drinking water and scholars are satisfied with their beloved words.  3॥

आयुःकर्मचवित्तंचाविद्यानिधनमेवच ॥ 
पंचेतानिचसृज्यंते गर्भस्थस्यैवदेहिनः ॥ ४ ॥

अर्थ - आयुर्दाय, कर्म, विद्या धन और मरण ये पांच जब जीव गर्भ में रहता है उसी समय सिरजे जाते हैं ॥ ४ ॥

āyuḥkarmacavittaṁcāvidyānidhanamēvaca ॥ 
paṁcētānicasr̥jyaṁtē garbhasthasyaivadēhinaḥ ॥ 4 ॥

Meaning - Aayu, Karma, Knowledge, Wealth and Death, these five are created when the living being is in the womb. ।। 4॥

अहोवतविचित्राणिचरितानिमहात्मनाम् ।। 
लक्ष्मीतृणायमन्यन्तेतद्गारेणन मंत्तिच ॥ ५ ॥ 
अर्थ - आश्चर्य है, कि, महात्माओं के विचित्र चरित्र हैं।  लक्ष्मी को तृण समान मानते हैं। यदि मिल जाती है तो उसके भार से नम्र हो जाते हैं ॥ 5 ॥

ahōvatavicitrāṇicaritānimahātmanām ॥ 
lakṣmītr̥ṇāyamanyantētadgārēṇana maṁttica ॥ 5 ॥

Meaning - It is surprising that the Mahatmas have strange characters. Lakshmi is considered equal to grass. If we get it, we become humbled by its weight. 5॥

चाणक्य की प्रसिद्धि : 

ये संस्कृत श्लोक आचार्य चाणक्य के द्वारा रचित हैं। उनका नाम कौटिल्य एवं विष्णुगुप्त के नाम से भी प्रसिद्ध है। उनकी रचनाएँ Chanakya सूत्र, chanakya niti, chanakya ni pothi, chanakya quotes, chanakya niti in hindi, chanakya quotes in hindi, चाणक्य, चाणक्य नीति,  चाणक्य नीति की 10 बातें,  चाणक्य नीति की बातें, चाणक्य के कड़वे वचन, चाणक्य नीति स्त्री, चाणक्य नीति की 100 बातें,  चाणक्य विचार इन हिंदी, चाणक्य नीति सुविचार, चाणक्य नीति जीवन जीने की, सुविचार चाणक्य के कड़वे वचन, sanskrit shlok, shlok,sanskrit, sanskrit shlok,sanskrit quotes,shlok in sanskrit, sanskrit thought, sanskrit slokas,संस्कृत श्लोक,श्लोक,छोटे संस्कृत श्लोक, आदि के रूप में चर्चित एवं प्रसिद्ध है । 

चाणक्य का कालातीत प्रभाव  :

हजारों वर्षों के उपरांत भी उनमें वही ताजगी और उपयोगिता है। अतः वे आज भी उतने ही प्रासंगिक बने हुए हैं जितने वे तब थे जब वे लिखे गये थे। संस्कृत में रचित होने के कारण उनमें कालांतर के प्रभाव को स्पष्टतः नहीं देखा जाता है क्योंकि संस्कृत भाषा का सर्वश्रेष्ठ व्याकरण उसके अस्तित्व एवं गुणवत्ता के साथ ही उसके प्रभाव कि भी सुरक्षा करता है। ये अत्यंत ज्ञानवर्धक, पठनीय एवं माननीय हैं। ये जीवन‌ के अनेक चौराहों पर हमारा मार्गदर्शन करते हैं जब सब ओर अंधकार छा जाने की प्रतीति होती है।

About Chanakya (चाणक्य के बारे में) :

 चाणक्य का प्रभाव प्राचीन भारत से परे तक फैला हुआ है, क्योंकि शासन कला और शासन पर उनके विचारों का दुनिया भर के विद्वानों और नीति निर्माताओं द्वारा अध्ययन और सम्मान किया जाता है।  राजनीति के प्रति उनका व्यावहारिक दृष्टिकोण और राज्य और उसके नागरिकों के कल्याण पर उनका जोर उन्हें एक कालातीत व्यक्ति बनाता है जिनकी बुद्धि समय और स्थान की सीमाओं से परे है।

 चाणक्यनीतिदर्पण – 12.5

चाणक्य नीति दर्पण मूलत: संस्कृत (Sanskrit) में संस्कृत सुभाषितों के रूप में, काव्यात्मक एवं श्लोकों  के रूप में लिखा हुआ ग्रंथ है। इसके रचनाकार आचार्य चाणक्य हैं। उनके ये संस्कृत श्लोक चाणक्य नीति के नाम से संसार भर में प्रसिद्ध हैं। यहां पर यह श्लोक देवनागरी लिपि एवं  रोमन लिपि में भी दिए गए हैं एवं उनके अर्थ हिंदी देवनागरी एवं अंग्रेजी में रोमन लिपि में भी दिये गये हैं। जिससे विदेशों में रहने वाले भारतीय जो देवनागरी से परिचित नहीं हैं सनातन ग्रंथों के ज्ञान से लाभान्वित हो सकें।

अथ द्वादशोऽध्यायः ॥ 12 ॥

atha dvādaśō’dhyāyaḥ ॥ 12 ॥

ग्रन्थ का नाम : चाणक्यनीतिदर्पण,  रचनाकार – आचार्य चाणक्य,   अध्याय – 12   श्लोक-  21-23
 


धनधान्यप्रयोगेषुविद्या संग्रहणेतथा ॥ 
आहारेव्यवहारेचत्यक्तलज्जःसुखीभवेत्॥२१॥
( अध्यायः १३ । ६९)

अर्थ - धन धान्य के व्यवहार करने में, वैसे ही विद्या के पढने-पढाने में, आहार में और राजा की सभा में किसी के साथ विवाद करने में जो लज्जा को छोडे रहेगा वह सुखी होगा ॥ २१ ॥

dhanadhānyaprayōgēṣuvidyā saṁgrahaṇētathā ॥ 
āhārēvyavahārēcatyaktalajjaḥsukhībhavēt॥21॥
( adhyāyaḥ 13 | 69)

Meaning - One who leaves aside shyness in dealing with wealth, in teaching and learning, in eating and in disputing with anyone in the king's court will be happy. 21 ॥

जलबिंदु निपातेनक्रमशःपूर्यतेघटः ॥ 
महेतुःसर्वविद्यानां धर्मस्यचधनस्यच ॥ २२ ॥

अर्थ - क्रम-क्रम से जल के एक एक बूंद के गिरने से घड़ा भर जाता है। यही सभी विद्याओं, धर्म और धन का भी कारण है ॥ 22 ॥

jalabiṁdu nipātēnakramaśaḥpūryatēghaṭaḥ ॥ 
mahētuḥsarvavidyānāṁ dharmasyacadhanasyaca ॥ 22 ॥

Meaning - The pitcher gets filled with each drop of water falling sequentially. This is the reason for all knowledge, religion and wealth. 22॥
वयसः परिणामेऽपि यः खलः खल एव सः ।
सम्पक्वमपि माधुर्यं नोपयातीन्द्रवारुणम् ॥ 23 ॥

अर्थ - वय के परिणाम पर भी  जो खल रहता है सो खल ही बना रहता है अत्यन्त पकी भी कड़वी लौकी मीठी नहीं होती ॥ २३ ॥

vayasaḥ pariṇāmē’pi yaḥ khalaḥ khala ēva saḥ |
sampakvamapi mādhuryaṁ nōpayātīndravāruṇam ॥ 23 ॥
Meaning - Even after aging, the sour gourd remains sour, even the very ripe bitter gourd is not sweet. 23॥
इतिवृद्धचाणक्ये द्वादशोऽध्यायः  ॥12॥
itivr̥ddhacāṇakyē dvādaśō’dhyāyaḥ  ॥12॥

चाणक्य की प्रसिद्धि : 

ये संस्कृत श्लोक आचार्य चाणक्य के द्वारा रचित हैं। उनका नाम कौटिल्य एवं विष्णुगुप्त के नाम से भी प्रसिद्ध है। उनकी रचनाएँ Chanakya सूत्र, chanakya niti, chanakya ni pothi, chanakya quotes, chanakya niti in hindi, chanakya quotes in hindi, चाणक्य, चाणक्य नीति,  चाणक्य नीति की 10 बातें,  चाणक्य नीति की बातें, चाणक्य के कड़वे वचन, चाणक्य नीति स्त्री, चाणक्य नीति की 100 बातें,  चाणक्य विचार इन हिंदी, चाणक्य नीति सुविचार, चाणक्य नीति जीवन जीने की, सुविचार चाणक्य के कड़वे वचन, sanskrit shlok, shlok,sanskrit, sanskrit shlok,sanskrit quotes,shlok in sanskrit, sanskrit thought, sanskrit slokas,संस्कृत श्लोक,श्लोक,छोटे संस्कृत श्लोक, आदि के रूप में चर्चित एवं प्रसिद्ध है । 

चाणक्य का कालातीत प्रभाव  :

हजारों वर्षों के उपरांत भी उनमें वही ताजगी और उपयोगिता है। अतः वे आज भी उतने ही प्रासंगिक बने हुए हैं जितने वे तब थे जब वे लिखे गये थे। संस्कृत में रचित होने के कारण उनमें कालांतर के प्रभाव को स्पष्टतः नहीं देखा जाता है क्योंकि संस्कृत भाषा का सर्वश्रेष्ठ व्याकरण उसके अस्तित्व एवं गुणवत्ता के साथ ही उसके प्रभाव कि भी सुरक्षा करता है। ये अत्यंत ज्ञानवर्धक, पठनीय एवं माननीय हैं। ये जीवन‌ के अनेक चौराहों पर हमारा मार्गदर्शन करते हैं जब सब ओर अंधकार छा जाने की प्रतीति होती है।

About Chanakya (चाणक्य के बारे में) :

 चाणक्य का प्रभाव प्राचीन भारत से परे तक फैला हुआ है, क्योंकि शासन कला और शासन पर उनके विचारों का दुनिया भर के विद्वानों और नीति निर्माताओं द्वारा अध्ययन और सम्मान किया जाता है।  राजनीति के प्रति उनका व्यावहारिक दृष्टिकोण और राज्य और उसके नागरिकों के कल्याण पर उनका जोर उन्हें एक कालातीत व्यक्ति बनाता है जिनकी बुद्धि समय और स्थान की सीमाओं से परे है।

 चाणक्यनीतिदर्पण – 12.4

चाणक्य नीति दर्पण मूलत: संस्कृत (Sanskrit) में संस्कृत सुभाषितों के रूप में, काव्यात्मक एवं श्लोकों  के रूप में लिखा हुआ ग्रंथ है। इसके रचनाकार आचार्य चाणक्य हैं। उनके ये संस्कृत श्लोक चाणक्य नीति के नाम से संसार भर में प्रसिद्ध हैं। यहां पर यह श्लोक देवनागरी लिपि एवं  रोमन लिपि में भी दिए गए हैं एवं उनके अर्थ हिंदी देवनागरी एवं अंग्रेजी में रोमन लिपि में भी दिये गये हैं। जिससे विदेशों में रहने वाले भारतीय जो देवनागरी से परिचित नहीं हैं सनातन ग्रंथों के ज्ञान से लाभान्वित हो सकें।

अथ द्वादशोऽध्यायः ॥ 12 ॥

atha dvādaśō’dhyāyaḥ ॥ 12 ॥

ग्रन्थ का नाम : चाणक्यनीतिदर्पण,  रचनाकार – आचार्य चाणक्य,   अध्याय – 11   श्लोक-  16-20

काष्ठंकल्पतरुःसुमेरुरचलश्चिंतामणिः प्रस्थरः सूर्यस्तीव्रकरः शशीक्षयकरःक्षारोहिवारांनि- धिः कामोनष्टतनुर्बलिर्दितिसुतोनित्यंपशुः कामगौः नैतांस्तेतुलयामिभोरघुपतेकस्योपमा दीयते ॥ १६ ॥

अर्थ - कल्पवृक्ष काठ है, सुमेरु अचल है, चिंतामणि पत्थर है, सूर्य की किरण अत्यंत ऊष्ण है चन्द्रमा की किरण क्षीण हो जाती है। समुद्र समुद्र खारा है काम का शरीर नहीं है बल्कि अर्थात्  दैत्य है कामधेनु सदा पशु ही है इस कारण आप के साथ इनकी तुलना नहीं दे सकते हे रघुपति ? फिर आपको किस की उपमा दी जाय ॥१६॥

kāṣṭhaṁkalpataruḥsumēruracalaściṁtāmaṇiḥ prastharaḥ sūryastīvrakaraḥ śaśīkṣayakaraḥkṣārōhivārāṁni- dhiḥ kāmōnaṣṭatanurbalirditisutōnityaṁpaśuḥ kāmagauḥ naitāṁstētulayāmibhōraghupatēkasyōpamā dīyatē ॥ 16 ॥
Meaning - Kalpavriksha is wood, Sumeru is immovable, Chintamani is stone, the sun's ray is extremely hot, the moon's ray becomes weak. The ocean is salty, it is not a body of lust, but it is a demon, Kamadhenu is always an animal, that is why we cannot compare them with you, O Raghupati? Then whose likeness should you be given?16॥

विद्यामित्रंप्रवासेचभार्यामित्रंगृहेषुच ॥ 
व्याधिस्थस्यौषधैमित्रंधर्मोमित्रंमृतस्यच। १७॥ 

अर्थ - प्रवास, में विद्या हित करती है, घर में स्त्री मित्र है, रोगग्रस्त पुरुष का हित औषधि होती है, और धर्म मरे का उपकार करता है ॥ १७ ॥

vidyāmitraṁpravāsēcabhāryāmitraṁgr̥hēṣuca ॥ 
vyādhisthasyauṣadhaimitraṁdharmōmitraṁmr̥tasyaca| 17॥ 
Meaning - Knowledge is beneficial in a journey, a woman is a friend in the home, medicine is beneficial to a sick man, and religion helps the dead. ।। 17 ॥

विनयं राजपुत्रेभ्यःपंडितेभ्यःसुभाषितंम् अनृतंद्यूतकारेभ्यःस्त्रीभ्यःशिक्षेतकैतवम्।१८।

अर्थ - सुशीलता राजा के लडकों से, प्रिय वचन पंडितों से असत्य जुआरियों से और छल स्त्रियों से सीखना चाहिये ॥ १८ ॥
 
vinayaṁ rājaputrēbhyaḥpaṁḍitēbhyaḥsubhāṣitaṁm anr̥taṁdyūtakārēbhyaḥstrībhyaḥśikṣētakaitavam|18|
Meaning - Goodness should be learned from the king's sons, loving words from wise men, falsehood from gamblers and deceitful women. ।। 18 ॥

अनालोक्यव्ययंकर्ताअनाथःकलहप्रियः ॥ 
आतुरःसर्वक्षेत्रेषुनरःशीघ्रंविनश्यति ।। १९ ॥

अर्थ - बिना बिचारे व्यय करने वाला, सहायक के न रहने पर भी कलह में प्रीति रखनेवाला और सब जाति की स्त्रियों में भोग के लिये व्याकुल होने वाला पुरुष शीघ्र ही नाश को प्राप्त होता है ॥ १६ ॥

anālōkyavyayaṁkartāanāthaḥkalahapriyaḥ ॥ 
āturaḥsarvakṣētrēṣunaraḥśīghraṁvinaśyati ॥ 19 ॥

Meaning - A man who spends without waste, who is fond of discord even when there is no helper, and who is desperate for pleasure from women of all castes, soon comes to destruction. 19 ॥

नाहारंचिंतयेत्प्राज्ञोधर्ममेकंहिचिंतयेत् ॥ 
आहारोहिमनुष्याणांजन्मनासहजायते ॥२०॥

अर्थ - पंडित को आहार की चिंता नहीं करनी चाहिये। एक धर्म को निश्चय से सोचना चाहिये, इस हेतु कि, आहार मनुष्यों को जन्म के साथ ही उत्पन्न होता है॥२०।।

nāhāraṁciṁtayētprājñōdharmamēkaṁhiciṁtayēt ॥ 
āhārōhimanuṣyāṇāṁjanmanāsahajāyatē ॥20॥

Meaning – A Pandit should not worry about diet. A religion should be thought of with determination, because food is given to humans at birth. ।।20.।।

चाणक्य की प्रसिद्धि : 

ये संस्कृत श्लोक आचार्य चाणक्य के द्वारा रचित हैं। उनका नाम कौटिल्य एवं विष्णुगुप्त के नाम से भी प्रसिद्ध है। उनकी रचनाएँ Chanakya सूत्र, chanakya niti, chanakya ni pothi, chanakya quotes, chanakya niti in hindi, chanakya quotes in hindi, चाणक्य, चाणक्य नीति,  चाणक्य नीति की 10 बातें,  चाणक्य नीति की बातें, चाणक्य के कड़वे वचन, चाणक्य नीति स्त्री, चाणक्य नीति की 100 बातें,  चाणक्य विचार इन हिंदी, चाणक्य नीति सुविचार, चाणक्य नीति जीवन जीने की, सुविचार चाणक्य के कड़वे वचन, sanskrit shlok, shlok,sanskrit, sanskrit shlok,sanskrit quotes,shlok in sanskrit, sanskrit thought, sanskrit slokas,संस्कृत श्लोक,श्लोक,छोटे संस्कृत श्लोक, आदि के रूप में चर्चित एवं प्रसिद्ध है । 

चाणक्य का कालातीत प्रभाव  :

हजारों वर्षों के उपरांत भी उनमें वही ताजगी और उपयोगिता है। अतः वे आज भी उतने ही प्रासंगिक बने हुए हैं जितने वे तब थे जब वे लिखे गये थे। संस्कृत में रचित होने के कारण उनमें कालांतर के प्रभाव को स्पष्टतः नहीं देखा जाता है क्योंकि संस्कृत भाषा का सर्वश्रेष्ठ व्याकरण उसके अस्तित्व एवं गुणवत्ता के साथ ही उसके प्रभाव कि भी सुरक्षा करता है। ये अत्यंत ज्ञानवर्धक, पठनीय एवं माननीय हैं। ये जीवन‌ के अनेक चौराहों पर हमारा मार्गदर्शन करते हैं जब सब ओर अंधकार छा जाने की प्रतीति होती है।

About Chanakya (चाणक्य के बारे में) :

 चाणक्य का प्रभाव प्राचीन भारत से परे तक फैला हुआ है, क्योंकि शासन कला और शासन पर उनके विचारों का दुनिया भर के विद्वानों और नीति निर्माताओं द्वारा अध्ययन और सम्मान किया जाता है।  राजनीति के प्रति उनका व्यावहारिक दृष्टिकोण और राज्य और उसके नागरिकों के कल्याण पर उनका जोर उन्हें एक कालातीत व्यक्ति बनाता है जिनकी बुद्धि समय और स्थान की सीमाओं से परे है।

 चाणक्यनीतिदर्पण – 12.3


चाणक्य नीति दर्पण मूलत: संस्कृत (Sanskrit) में संस्कृत सुभाषितों के रूप में, काव्यात्मक एवं श्लोकों  के रूप में लिखा हुआ ग्रंथ है। इसके रचनाकार आचार्य चाणक्य हैं। उनके ये संस्कृत श्लोक चाणक्य नीति के नाम से संसार भर में प्रसिद्ध हैं। यहां पर यह श्लोक देवनागरी लिपि एवं  रोमन लिपि में भी दिए गए हैं एवं उनके अर्थ हिंदी देवनागरी एवं अंग्रेजी में रोमन लिपि में भी दिये गये हैं। जिससे विदेशों में रहने वाले भारतीय जो देवनागरी से परिचित नहीं हैं सनातन ग्रंथों के ज्ञान से लाभान्वित हो सकें।

अथ द्वादशोऽध्यायः ॥ 12 ॥

atha dvādaśō’dhyāyaḥ ॥ 12 ॥

ग्रन्थ का नाम : चाणक्यनीतिदर्पण,  रचनाकार – आचार्य चाणक्य,   अध्याय – 12   श्लोक-  11-15
सत्यंमातापिताज्ञानं धर्मोनातादय़ासखा ॥ 
शांतिः पत्नीक्षमापुत्रः षडेतेममबांधवाः ॥११॥ 

अर्थ - सत्य मेरी माता है, और ज्ञान पिता, धर्म मेरा भाई है, और, दया मित्र, शांति मेरी स्त्री है, और क्षमा पुत्र, ये ही छः मेरे बन्धु हैं ॥ किसी संसारी पुरुष ने ज्ञानी को देखकर चकित हो पूछा कि, संसार में माता, पिता, भाई, मित्र, स्त्री, पुत्र, ये जितना ही अच्छे से अच्छे हों उतना ही संसार से आनंद होता है तुझको परम आनंद में "पूर्ण देखता हूंँ तो तुझको भी कहीं न कहीं कोई न कोई उनमें से होगा; ज्ञानी ने समझा कि, जिस दशाको देखकर यह चकित है वह दशा क्या सांसारिक कुटुम्बों से हो सकती है। इस कारण जिनसे मुझे परम आनंद होता है उन्हीं को इससे कहूंँ कदाचित् यह भी इनको स्वीकार करे ॥ ११ ॥

satyaṁmātāpitājñānaṁ dharmōnātādaya़āsakhā ॥ 
śāṁtiḥ patnīkṣamāputraḥ ṣaḍētēmamabāṁdhavāḥ ॥11॥ 
Meaning - Truth is my mother, knowledge is my father, religion is my brother, kindness is my friend, peace is my wife, and forgiveness is my son, these six are my friends. A worldly man was astonished to see the wise man and asked, "The better your mother, father, brother, friend, wife, son are in the world, the more happiness you experience in the world. When I see you complete, I feel complete." Somewhere too, there must be some one among them; the wise man thought that the condition which he is surprised to see, can he be in this condition of the worldly family. Therefore, let me tell this only to those who give me immense pleasure, perhaps they too will accept them. ॥ 11 ॥

अनित्यानिशरीराणिविभवोनैवशाश्वतः ॥ 
नित्यंसन्निहितो मृत्युः कर्तव्योधर्मसंग्रहः॥१२॥

अर्थ - शरीर अनित्य है, विभव भी सदा नहीं रहता, मृत्यु सदा निकट ही रहती है; इस कारण धर्म का संग्रह करना चाहिये ॥ १२ ॥
anityāniśarīrāṇivibhavōnaivaśāśvataḥ ॥ 
nityaṁsannihitō mr̥tyuḥ kartavyōdharmasaṁgrahaḥ॥12॥
Meaning - The body is impermanent, the power also does not last forever, death is always near; For this reason, religion should be collected. 12 ॥

निमंत्रणोत्सवाविमा गावोनवतृणोत्सवाः ॥ 
पत्युत्साहयुताभार्याअहंकृष्णरणोत्सवः॥१३॥

अर्थ - निमंत्रण ब्राह्मणों का उत्सव है, और नवीन घास गायों का उत्सव है, पति के उत्साह से स्त्रियों को उत्साह होता है, किन्तु हे कृष्ण! मेरा उत्सव है युद्ध॥१३॥

nimaṁtraṇōtsavāvimā gāvōnavatr̥ṇōtsavāḥ ॥ 
patyutsāhayutābhāryāahaṁkr̥ṣṇaraṇōtsavaḥ॥13॥

Meaning - Invitation is a festival of Brahmins, and new grass is a festival of cows, women get excited by the enthusiasm of their husbands, but O Krishna! My celebration is war॥13॥

मातृवत्परदारांश्वपरद्रव्याणिलोष्टवत् ॥ 
आत्मवत्सर्वभूतानियःपश्यतिसपश्यति ॥१४॥
or
मातृवत्परदारेषु परद्रव्याणि लोष्ठवत् ।
आत्मवत्सर्वभूतानि यः पश्यति स पंडितः ।।१४।।
अर्थ — जो मनुष्य परायी स्त्री को माता के समान समझता है, पराया धन मिट्टी के ढेले के समान मानता है और अपनी ही तरह सब प्राणियों के सुख-दुःख का अनुभव करता है, वही पण्डित है।
mātr̥vatparadārāṁśvaparadravyāṇilōṣṭavat ॥ 
ātmavatsarvabhūtāniyaḥpaśyatisapaśyati ॥14॥
or
mātr̥vatparadārēṣu paradravyāṇi lōṣṭhavat |
ātmavatsarvabhūtāni yaḥ paśyati sa paṁḍitaḥ ॥14॥
Meaning – The person who considers another's woman like a mother, considers someone else's wealth like a lump of clay and experiences the happiness and sorrow of all living beings like his own, is a wise man.

धर्मे तत्परता मुखे मधुरता दाने समुत्साहता
मित्रेऽवंचकता गुरौ विनयता चित्तेऽतिगम्भीरता ।
आचारे शुचिता गुणे रसिकता शास्त्रेषु विज्ञातृता
रूपे सुन्दरता शिवे भजनता त्वय्यस्तिभी राघवः ।।१५।।
अर्थ - धर्म में तत्परता, मुख में मधुरता, दान में उत्साहता मित्र के विषय में निशच्छलता, गुरू से नम्रता, अंतःकरण में गंभीरता, आचार में पवितत्रा गुणों में रसिकता, शास्त्रों में विशेष ज्ञान, रूप में सुन्दरता और शिवकी भक्ति, (गुरु वसिष्ठ जी रामजी से कहते हैं) हे राघव! ये सभी गुण तुम्ही मे हैं ॥ १५ ॥

dharmē tatparatā mukhē madhuratā dānē samutsāhatā
mitrē’vaṁcakatā gurau vinayatā cittē’tigambhīratā |
ācārē śucitā guṇē rasikatā śāstrēṣu vijñātr̥tā
rūpē sundaratā śivē bhajanatā tvayyastibhī rāghavaḥ ॥15॥

Meaning - Willingness in religion, sweetness of mouth, enthusiasm in charity, sincerity towards friends, humility towards Guru, seriousness in heart, interest in sacred qualities in conduct, special knowledge in scriptures, beauty in form and devotion to Shiva, (Guru Vashishtha Ji) Says to Ramji) Hey Raghav! All these qualities are in you. 15.

चाणक्य की प्रसिद्धि : 

ये संस्कृत श्लोक आचार्य चाणक्य के द्वारा रचित हैं। उनका नाम कौटिल्य एवं विष्णुगुप्त के नाम से भी प्रसिद्ध है। उनकी रचनाएँ Chanakya सूत्र, chanakya niti, chanakya ni pothi, chanakya quotes, chanakya niti in hindi, chanakya quotes in hindi, चाणक्य, चाणक्य नीति,  चाणक्य नीति की 10 बातें,  चाणक्य नीति की बातें, चाणक्य के कड़वे वचन, चाणक्य नीति स्त्री, चाणक्य नीति की 100 बातें,  चाणक्य विचार इन हिंदी, चाणक्य नीति सुविचार, चाणक्य नीति जीवन जीने की, सुविचार चाणक्य के कड़वे वचन, sanskrit shlok, shlok,sanskrit, sanskrit shlok,sanskrit quotes,shlok in sanskrit, sanskrit thought, sanskrit slokas,संस्कृत श्लोक,श्लोक,छोटे संस्कृत श्लोक, आदि के रूप में चर्चित एवं प्रसिद्ध है । 

चाणक्य का कालातीत प्रभाव  :

हजारों वर्षों के उपरांत भी उनमें वही ताजगी और उपयोगिता है। अतः वे आज भी उतने ही प्रासंगिक बने हुए हैं जितने वे तब थे जब वे लिखे गये थे। संस्कृत में रचित होने के कारण उनमें कालांतर के प्रभाव को स्पष्टतः नहीं देखा जाता है क्योंकि संस्कृत भाषा का सर्वश्रेष्ठ व्याकरण उसके अस्तित्व एवं गुणवत्ता के साथ ही उसके प्रभाव कि भी सुरक्षा करता है। ये अत्यंत ज्ञानवर्धक, पठनीय एवं माननीय हैं। ये जीवन‌ के अनेक चौराहों पर हमारा मार्गदर्शन करते हैं जब सब ओर अंधकार छा जाने की प्रतीति होती है।

About Chanakya (चाणक्य के बारे में) :

 चाणक्य का प्रभाव प्राचीन भारत से परे तक फैला हुआ है, क्योंकि शासन कला और शासन पर उनके विचारों का दुनिया भर के विद्वानों और नीति निर्माताओं द्वारा अध्ययन और सम्मान किया जाता है।  राजनीति के प्रति उनका व्यावहारिक दृष्टिकोण और राज्य और उसके नागरिकों के कल्याण पर उनका जोर उन्हें एक कालातीत व्यक्ति बनाता है जिनकी बुद्धि समय और स्थान की सीमाओं से परे है।

 चाणक्यनीतिदर्पण – 12.2

चाणक्य नीति दर्पण मूलत: संस्कृत (Sanskrit) में संस्कृत सुभाषितों के रूप में, काव्यात्मक एवं श्लोकों  के रूप में लिखा हुआ ग्रंथ है। इसके रचनाकार आचार्य चाणक्य हैं। उनके ये संस्कृत श्लोक चाणक्य नीति के नाम से संसार भर में प्रसिद्ध हैं। यहां पर यह श्लोक देवनागरी लिपि एवं  रोमन लिपि में भी दिए गए हैं एवं उनके अर्थ हिंदी देवनागरी एवं अंग्रेजी में रोमन लिपि में भी दिये गये हैं। जिससे विदेशों में रहने वाले भारतीय जो देवनागरी से परिचित नहीं हैं सनातन ग्रंथों के ज्ञान से लाभान्वित हो सकें।

अथ द्वादशोऽध्यायः ॥ 12 ॥

atha dvādaśō’dhyāyaḥ ॥ 12 ॥

ग्रन्थ का नाम : चाणक्यनीतिदर्पण,  रचनाकार – आचार्य चाणक्य,   अध्याय – 11   श्लोक-  6-10
पत्रनैवयदा करीर विटपेदोषोवसंतस्याकंनोलू 
कोप्यवलोकतेयदिदिवा सूर्यस्यकिं दूषणं ॥ 
वर्षानैवपत्तंत्तुचातकमुखेमेघस्य किं दूषणं, 
यत्पूर्वं विधिनाललाटलिखितंतन्मार्जितुं कःक्षमः ।६।

अर्थ - यदि करील के वृक्ष में पत्ते नहीं होते तो बसंत का क्या दोष है? यदि उलूक दिन में नहीं देखता तो सूर्य का क्या दोष है? वर्षा चातक के मुख में नहीं पडती इसमें मेघ का क्या अपराध है? पहले ही ब्रह्मा ने जो कुछ ललाट में लिख रखा है उसे मिटाने को कौन समर्थ है? ॥ ६ ॥

patranaivayadā karīra viṭapēdōṣōvasaṁtasyākaṁnōlū 
kōpyavalōkatēyadidivā sūryasyakiṁ dūṣaṇaṁ ॥ 
varṣānaivapattaṁttucātakamukhēmēghasya kiṁ dūṣaṇaṁ, 
yatpūrvaṁ vidhinālalāṭalikhitaṁtanmārjituṁ kaḥkṣamaḥ |6|
Meaning - If the Karil tree does not have leaves then what is the fault of spring? If the owl does not see during the day then what is the fault of the sun? What is the fault of the cloud in that the rain does not fall on Chatak's face? Who is capable of erasing whatever Brahma has already written on his forehead? ॥ 6॥


सत्संगाद्भवतिहिसाधुताखलानां साधूनांनहि- खलसंगतःखलात्वम्॥
आमोदंकुसुमभवंमृदेव धत्तेमृनंधनहिकुसुमानिधारयन्ति ॥ ७ ॥

अर्थ - निश्चय है कि, अच्छे के संग से दुर्जनों में साधुता आ जाती है परन्तु साधुओं में दुष्टों कि संगति से असाधुता नहीं आती। फूलों की सुगंध को मिट्टी ले लेती है पर मिट्टी की गंधको फूल कभी धारण नहीं करते॥७॥

satsaṁgādbhavatihisādhutākhalānāṁ sādhūnāṁnahi- khalasaṁgataḥkhalātvam॥
āmōdaṁkusumabhavaṁmr̥dēva dhattēmr̥naṁdhanahikusumānidhārayanti ॥ 7 ॥

Meaning - It is certain that the company of the good brings saintliness among the wicked, but the company of the wicked does not bring saintliness among the saints. Soil absorbs the fragrance of flowers but flowers never retain the smell of soil.7॥

साधूनांदर्शनं पुण्यंतीर्थभूताहिसाधवः ॥ 
कालेनफलतेतीर्थसद्यः साधुसमागमः ॥ ८॥

अर्थ - साधुओं का दर्शन ही पुण्य है इस कारण कि, साधु तीर्थरूप है। समय से तीर्थ फल देता है, साधुओं का संग शीघ्र ही काम कर देता है (तुरंत फलदाई है)॥ ८ ॥

sādhūnāṁdarśanaṁ puṇyaṁtīrthabhūtāhisādhavaḥ || 
kālēnaphalatētīrthasadyaḥ sādhusamāgamaḥ || 8||

Meaning - Seeing the sages is a virtue because the sage is a form of pilgrimage. Pilgrimage gives results in time, company of sages gives results soon (it is fruitful immediately). 8॥

विप्रास्मिन्नगरे महान्कथयकस्तालब्रुमाणां गणः । कोदातारजकोददातिवसनंप्रातर्ग्रही- 'त्वानिशि ॥ 
कोदक्षःपरवित्तंदारहरणेसर्वोपि 
दक्षोजनःकस्माज्जीवसिहेसखेविषकृमिन्याये नजीवाम्यहम् ॥ ९ ॥
अर्थ - हे विप्र! इस नगर में कौन बडा है ? ताड़ के पेड़ों का समुदाय, दाता कौन है ? धोबी प्रातःकाल वस्त्र लेता है रात्रि में दे देता है, चतुर कौन है? दूसरे के धन और स्त्री के हरण में सब ही कुशल हैं, तो ऐसे नगर में आप कैसे जीते हो? हे मित्र! विष का कीडा विष ही में जीता है वैसे ही मैं भी जीता हूं ॥ ९ ॥

viprāsminnagarē mahānkathayakastālabrumāṇāṁ gaṇaḥ | 
kōdātārajakōdadātivasanaṁprātargrahī- 'tvāniśi ॥ 
kōdakṣaḥparavittaṁdāraharaṇēsarvōpi 
dakṣōjanaḥkasmājjīvasihēsakhēviṣakr̥minyāyē najīvāmyaham ॥ 9 ॥

Meaning: O Vipra! Who is bigger in this city? Community of palm trees, who is the donor? The washerman takes the clothes in the morning and gives them away at night, who is the clever one? Everyone is skilled in kidnapping other people's wealth and women, so how do you survive in such a city? Hey friend! The poison worm lives in poison, in the same way I also live. ।।9॥

नविप्रपादोदककर्दमानिनवेदशास्त्रध्वनिगर्जि तानि ॥ 
स्वाहास्वधाकारविवर्जितानिश्मशान तुल्यानिगृहाणितानि ॥ १० ॥

अर्थ - जिन घरों में ब्राह्मण के पावों के जल से कीचड़ न भया हो (अर्थात जहाँ  विद्वानों का सम्मान न होता हो) और न वेदशास्त्र के शब्दों की गर्जना होती हो, और जो गृह स्वाहा स्वधा से रहित हो उनको स्मशान के समान समझना चाहिये ॥ १० ॥

naviprapādōdakakardamāninavēdaśāstradhvanigarji tāni ॥ 
svāhāsvadhākāravivarjitāniśmaśāna tulyānigr̥hāṇitāni ॥ 10 ॥
Meaning - The houses where there is no fear of mud from the feet of a Brahmin (i.e. where scholars are not respected) nor where the words of the Vedas are resounding, and which are devoid of Swaha Swadha, should be considered like a cremation ground. 10 ॥

चाणक्य की प्रसिद्धि : 

ये संस्कृत श्लोक आचार्य चाणक्य के द्वारा रचित हैं। उनका नाम कौटिल्य एवं विष्णुगुप्त के नाम से भी प्रसिद्ध है। उनकी रचनाएँ Chanakya सूत्र, chanakya niti, chanakya ni pothi, chanakya quotes, chanakya niti in hindi, chanakya quotes in hindi, चाणक्य, चाणक्य नीति,  चाणक्य नीति की 10 बातें,  चाणक्य नीति की बातें, चाणक्य के कड़वे वचन, चाणक्य नीति स्त्री, चाणक्य नीति की 100 बातें,  चाणक्य विचार इन हिंदी, चाणक्य नीति सुविचार, चाणक्य नीति जीवन जीने की, सुविचार चाणक्य के कड़वे वचन, sanskrit shlok, shlok,sanskrit, sanskrit shlok,sanskrit quotes,shlok in sanskrit, sanskrit thought, sanskrit slokas,संस्कृत श्लोक,श्लोक,छोटे संस्कृत श्लोक, आदि के रूप में चर्चित एवं प्रसिद्ध है । 

चाणक्य का कालातीत प्रभाव  :

हजारों वर्षों के उपरांत भी उनमें वही ताजगी और उपयोगिता है। अतः वे आज भी उतने ही प्रासंगिक बने हुए हैं जितने वे तब थे जब वे लिखे गये थे। संस्कृत में रचित होने के कारण उनमें कालांतर के प्रभाव को स्पष्टतः नहीं देखा जाता है क्योंकि संस्कृत भाषा का सर्वश्रेष्ठ व्याकरण उसके अस्तित्व एवं गुणवत्ता के साथ ही उसके प्रभाव कि भी सुरक्षा करता है। ये अत्यंत ज्ञानवर्धक, पठनीय एवं माननीय हैं। ये जीवन‌ के अनेक चौराहों पर हमारा मार्गदर्शन करते हैं जब सब ओर अंधकार छा जाने की प्रतीति होती है।

About Chanakya (चाणक्य के बारे में) :

 चाणक्य का प्रभाव प्राचीन भारत से परे तक फैला हुआ है, क्योंकि शासन कला और शासन पर उनके विचारों का दुनिया भर के विद्वानों और नीति निर्माताओं द्वारा अध्ययन और सम्मान किया जाता है।  राजनीति के प्रति उनका व्यावहारिक दृष्टिकोण और राज्य और उसके नागरिकों के कल्याण पर उनका जोर उन्हें एक कालातीत व्यक्ति बनाता है जिनकी बुद्धि समय और स्थान की सीमाओं से परे है।

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