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चाणक्यनीतिदर्पण – 17.1-नीतिमार्गदर्शक


चाणक्य नीति दर्पण मूलत: संस्कृत (Sanskrit) में संस्कृत सुभाषितों के रूप में, काव्यात्मक एवं श्लोकों  के रूप में लिखा हुआ ग्रंथ है। इसके रचनाकार आचार्य चाणक्य हैं। उनके ये संस्कृत श्लोक चाणक्य नीति के नाम से संसार भर में प्रसिद्ध हैं। यहां पर यह श्लोक देवनागरी लिपि एवं  रोमन लिपि में भी दिए गए हैं एवं उनके अर्थ हिंदी देवनागरी एवं अंग्रेजी में रोमन लिपि में भी दिये गये हैं। जिससे विदेशों में रहने वाले भारतीय जो देवनागरी से परिचित नहीं हैं सनातन ग्रंथों के ज्ञान से लाभान्वित हो सकें।

अथ सप्तदशोऽध्याय प्रारंभः ॥ 17 ॥

atha saptadaśō’dhyāya prāraṁbhaḥ ॥ 17 ॥

ग्रन्थ का नाम : चाणक्यनीतिदर्पण,  रचनाकार – आचार्य चाणक्य,   अध्याय – 17   श्लोक-  1-5
पुस्तकप्रत्ययाधीतं नाधीतंगुरुसन्निधौ ॥ 
सभामध्येनशोभंते जारगर्भाइवस्त्रियः ॥ १ ॥

अर्थ - जिन्होंने  केवल पुस्तक के प्रतित से पढ़ा गुरू के निकट न पढ़ा वे सभा के बीच व्यभिचार से गर्भवाली स्त्रियों के समान नहीं शोभते ॥ १ ॥

pustakapratyayādhītaṁ nādhītaṁgurusannidhau ॥ 
sabhāmadhyēnaśōbhaṁtē jāragarbhāivastriyaḥ ॥ 1 ॥
Meaning - Those who read only from the copy of the book and did not study near the Guru, they do not look as good as women who are pregnant due to adultery in the gathering. 1॥

कृते प्रतिकृतिंकुर्याद्धिंसने प्रतिहिंसनम् ॥ 
तत्रदोषोनपततिदुष्टेदुष्टंसमाचरेत् ॥ २ ॥

अर्थ - उपकार करने पर प्रत्युपकार करना चाहिये और मारने पर मारना चाहिए। इसमें कोई अपराध नहीं होता। क्योंकि, दुष्टता करने पर दुष्टता का आचरण करना ही उचित होता है ॥ २ ॥

kr̥tē pratikr̥tiṁkuryāddhiṁsanē pratihiṁsanam ॥ 
tatradōṣōnapatatiduṣṭēduṣṭaṁsamācarēt ॥ 2 ॥

Meaning - When you do a favor, you should reciprocate and when you kill, you should kill. There is no crime in this. Because, when evil is done, it is appropriate to behave evilly. ।। 2॥
।। चाणक्यनीतिदर्पण।। 
।।17.2।।

यदूरं यद्दूराराध्यं यच्चदूरे व्यवस्थितम् ॥ 
तत्सर्वंतपसा साध्यंतपो हि दुरतिक्रमम् ॥ ३ ॥

अर्थ - जो दूर है जिसकी आराधना नहीं हो सकती और जो दूर वर्तमान है वे सब तप से सिद्ध हो सकते हैं इस कारण सबसे प्रबल तप है ॥ ३ ॥

yadūraṁ yaddūrārādhyaṁ yaccadūrē vyavasthitam ॥ 
tatsarvaṁtapasā sādhyaṁtapō hi duratikramam ॥ 3 ॥

Meaning - Whatever is far away which cannot be worshiped and whatever is present far away can be accomplished through penance, hence penance is the most powerful. ।।3॥

लोभश्वेदगुणेनकिंपिशुनतायद्यस्तिकिंपातकैः
सत्यंचेत्तपसा चकिंशुचिमनोयद्यस्तितीर्थेनकिम् 
सौजन्यंयदिकिंगुणैः सुमहिमायद्यस्तिकिं मंडनैः सद्भिद्यायदिकिंधनैरपयशोयद्यस्तिकिं मृत्युना ॥ ४ ॥

अर्थ - यदि लोभ है तो दूसरे दोष से क्या यदि चुगली है तो और पापों से क्या, यदि मन में सत्यता है तो तपसे क्या । यदि मन स्वच्छ है तो तीर्थ से क्या, यदि सज्जनता है तो दूसरे गुण से क्या, यदि महिमा है तो भूषणों से क्या, यदि अच्छी विद्या है तो धन से क्या, और यदि अपयश है तो मृत्यु से क्या ॥ ४ ॥

lōbhaśvēdaguṇēnakiṁpiśunatāyadyastikiṁpātakaiḥ
satyaṁcēttapasā cakiṁśucimanōyadyastitīrthēnakim 
saujanyaṁyadikiṁguṇaiḥ sumahimāyadyastikiṁ maṁḍanaiḥ sadbhidyāyadikiṁdhanairapayaśōyadyastikiṁ mr̥tyunā ॥ 4 ॥

Meaning - If there is greed then what about other vices, if there is backbiting then what about other sins, if there is truth in the mind then what about penance. If the mind is clean then what about pilgrimage, if there is nobility then what about other qualities, if there is glory then what about jewellery, if there is good knowledge then what about wealth, and if there is infamy then what about death. 4॥

पितारत्नाकरोयस्यलक्ष्मीर्यस्यसहोदरी ॥ 
संखोभिक्षाटनं कुर्यान्नदत्तमुपतिष्ठते ॥ ५ ॥

अर्थ - जिसका पिता रत्नों की खान समुद्र है, लक्ष्मी जिसकी बहिन, ऐसा शंख भीख मांगता है सच है बिना दिये कुछ नहीं मिलता ॥ ५ ॥

pitāratnākarōyasyalakṣmīryasyasahōdarī ॥ 
saṁkhōbhikṣāṭanaṁ kuryānnadattamupatiṣṭhatē ॥ 5 ॥

Meaning - Whose father is the ocean, the mine of gems, whose sister is Lakshmi, such a conch begs, it is true that one does not get anything without giving. ।।5॥

चाणक्य की प्रसिद्धि : 

ये संस्कृत श्लोक आचार्य चाणक्य के द्वारा रचित हैं। उनका नाम कौटिल्य एवं विष्णुगुप्त के नाम से भी प्रसिद्ध है। उनकी रचनाएँ Chanakya सूत्र, chanakya niti, chanakya ni pothi, chanakya quotes, chanakya niti in hindi, chanakya quotes in hindi, चाणक्य, चाणक्य नीति,  चाणक्य नीति की 10 बातें,  चाणक्य नीति की बातें, चाणक्य के कड़वे वचन, चाणक्य नीति स्त्री, चाणक्य नीति की 100 बातें,  चाणक्य विचार इन हिंदी, चाणक्य नीति सुविचार, चाणक्य नीति जीवन जीने की, सुविचार चाणक्य के कड़वे वचन, sanskrit shlok, shlok,sanskrit, sanskrit shlok,sanskrit quotes,shlok in sanskrit, sanskrit thought, sanskrit slokas,संस्कृत श्लोक,श्लोक,छोटे संस्कृत श्लोक, आदि के रूप में चर्चित एवं प्रसिद्ध है । 

चाणक्य का कालातीत प्रभाव  :

हजारों वर्षों के उपरांत भी उनमें वही ताजगी और उपयोगिता है। अतः वे आज भी उतने ही प्रासंगिक बने हुए हैं जितने वे तब थे जब वे लिखे गये थे। संस्कृत में रचित होने के कारण उनमें कालांतर के प्रभाव को स्पष्टतः नहीं देखा जाता है क्योंकि संस्कृत भाषा का सर्वश्रेष्ठ व्याकरण उसके अस्तित्व एवं गुणवत्ता के साथ ही उसके प्रभाव कि भी सुरक्षा करता है। ये अत्यंत ज्ञानवर्धक, पठनीय एवं माननीय हैं। ये जीवन‌ के अनेक चौराहों पर हमारा मार्गदर्शन करते हैं जब सब ओर अंधकार छा जाने की प्रतीति होती है।

About Chanakya (चाणक्य के बारे में) :

 चाणक्य का प्रभाव प्राचीन भारत से परे तक फैला हुआ है, क्योंकि शासन कला और शासन पर उनके विचारों का दुनिया भर के विद्वानों और नीति निर्माताओं द्वारा अध्ययन और सम्मान किया जाता है।  राजनीति के प्रति उनका व्यावहारिक दृष्टिकोण और राज्य और उसके नागरिकों के कल्याण पर उनका जोर उन्हें एक कालातीत व्यक्ति बनाता है जिनकी बुद्धि समय और स्थान की सीमाओं से परे है।

 चाणक्यनीतिदर्पण – 16.4

चाणक्यनीतिदर्पण –चाणक्य नीति दर्पण मूलत: संस्कृत (Sanskrit) में संस्कृत सुभाषितों के रूप में, काव्यात्मक एवं श्लोकों  के रूप में लिखा हुआ ग्रंथ है। इसके रचनाकार आचार्य चाणक्य हैं। उनके ये संस्कृत श्लोक चाणक्य नीति के नाम से संसार भर में प्रसिद्ध हैं। यहां पर यह श्लोक देवनागरी लिपि एवं  रोमन लिपि में भी दिए गए हैं एवं उनके अर्थ हिंदी देवनागरी एवं अंग्रेजी में रोमन लिपि में भी दिये गये हैं। जिससे विदेशों में रहने वाले भारतीय जो देवनागरी से परिचित नहीं हैं सनातन ग्रंथों के ज्ञान से लाभान्वित हो सकें।
चाणक्यनीतिदर्पण –नीतिशास्त्रसूत्र: This title combines the Sanskrit words “नीतिशास्त्र” (ethics) and “सूत्र” (aphorism) to create a title that suggests that the Chanakya Nitidarpana is a collection of aphorisms on ethical conduct.

अथ षोड़शोऽध्यायः ॥ 16 ॥

atha ṣōḍa़śō’dhyāyaḥ ॥ 16 ॥

ग्रन्थ का नाम : चाणक्यनीतिदर्पण,  रचनाकार – आचार्य चाणक्य,   अध्याय – 16   श्लोक-  16-20
वरंप्राणपरित्यागो मानभंगेनजीवनात् ॥ 
प्राणत्यागेक्षणंदुःखं मानभंगेदिनेदिने ॥१६॥

अर्थ - मान भंग पूर्वक जीने से प्राण का त्याग श्रेष्ठ है। प्राण त्याग के समय क्षण भर दुःख होता है मान के नाश होने पर दिन दिन ॥ १६ ॥

varaṁprāṇaparityāgō mānabhaṁgēnajīvanāt ॥ 
prāṇatyāgēkṣaṇaṁduḥkhaṁ mānabhaṁgēdinēdinē ॥16॥

Meaning: Sacrifice of life is better than living a life of dishonor. At the time of sacrificing one's life, one feels sad for a moment and day after day when one's honor is destroyed. 16 ॥

प्रियवाक्यप्रदानेन सर्वेतुष्यंतिजन्तवः ॥ 
तस्मात्तदेववक्तव्यं वचने का दरिद्रता ॥ १७ ॥

अर्थ - मधुर वचन के बोलने से सब जीव संतुष्ट होते हैं, इस कारण उसी का बोलना योग्य है, वचन में दरिद्रता क्या ॥ १७ ॥

priyavākyapradānēna sarvētuṣyaṁtijantavaḥ ॥ 
tasmāttadēvavaktavyaṁ vacanē kā daridratā ॥ 17 ॥

Meaning - All living beings are satisfied by speaking sweet words, that is why it is worth speaking, there is no poverty in words.  ।। 17 ॥

संसारकूटवृक्षस्य द्वेफलेअमृतोपमे ॥ 
सुभाषितंचसुस्वादुसंगतिः सुजनेजने ॥ १८ ॥

अर्थ - संसार रूप कूट वृक्ष के दो ही फल हैं,  रसयुक्त प्रियवचन और सज्जन के साथ संगति ॥ १८॥

saṁsārakūṭavr̥kṣasya dvēphalēamr̥tōpamē ॥ 
subhāṣitaṁcasusvādusaṁgatiḥ sujanējanē ॥ 18 ॥

Meaning - The worldly form of Koota tree has only two fruits, sweet words and company with good people. ।।18॥

बहुजन्मसुचाभ्यस्तंदानमध्ययनंतपः ॥ 
तेनैवाभ्यासयोगेनदेहमीचा क्ष्यस्यतेपुनः॥१९

अर्थ - जो जन्म जन्म दान, पढना, तप, इनका अभ्यास किया जाता है, उस अभ्यास के योग से देह का अभ्यास फिर फिर करता है ॥ १९ ॥

bahujanmasucābhyastaṁdānamadhyayanaṁtapaḥ ॥ 
tēnaivābhyāsayōgēnadēhamīcā kṣyasyatēpunaḥ॥19 ॥

Meaning - The body is practiced again and again due to the practice of charity, study, penance etc. in every birth. 19 ॥

पुस्तकेषुचयाविद्या परहस्तेषुयद्धनम् ॥ 
उत्पन्नेषुचकार्येषु नसा विद्यांनतद्धनम् ॥२०॥
अर्थ - जो विद्या पुस्तकों में रहती है और दूसरों के हाथों में जो धन रहता है, काम पड़ जाने पर न विद्या है न वह धन काम आता  है ॥

pustakēṣucayāvidyā parahastēṣuyaddhanam ॥ 
utpannēṣucakāryēṣu nasā vidyāṁnataddhanam ॥20॥

Meaning - The knowledge that remains in books and the money that remains in the hands of others, when needed, is neither knowledge nor that money is of any use.
इतिवृद्धचाणक्ये पोडशोऽध्यायः ॥ १६ ॥
itivr̥ddhacāṇakyē pōḍaśō’dhyāyaḥ ॥ 16 ॥

चाणक्य की प्रसिद्धि : 

ये संस्कृत श्लोक आचार्य चाणक्य के द्वारा रचित हैं। उनका नाम कौटिल्य एवं विष्णुगुप्त के नाम से भी प्रसिद्ध है। उनकी रचनाएँ Chanakya सूत्र, chanakya niti, chanakya ni pothi, chanakya quotes, chanakya niti in hindi, chanakya quotes in hindi, चाणक्य, चाणक्य नीति,  चाणक्य नीति की 10 बातें,  चाणक्य नीति की बातें, चाणक्य के कड़वे वचन, चाणक्य नीति स्त्री, चाणक्य नीति की 100 बातें,  चाणक्य विचार इन हिंदी, चाणक्य नीति सुविचार, चाणक्य नीति जीवन जीने की, सुविचार चाणक्य के कड़वे वचन, sanskrit shlok, shlok,sanskrit, sanskrit shlok,sanskrit quotes,shlok in sanskrit, sanskrit thought, sanskrit slokas,संस्कृत श्लोक,श्लोक,छोटे संस्कृत श्लोक, आदि के रूप में चर्चित एवं प्रसिद्ध है । 

चाणक्य का कालातीत प्रभाव  :

हजारों वर्षों के उपरांत भी उनमें वही ताजगी और उपयोगिता है। अतः वे आज भी उतने ही प्रासंगिक बने हुए हैं जितने वे तब थे जब वे लिखे गये थे। संस्कृत में रचित होने के कारण उनमें कालांतर के प्रभाव को स्पष्टतः नहीं देखा जाता है क्योंकि संस्कृत भाषा का सर्वश्रेष्ठ व्याकरण उसके अस्तित्व एवं गुणवत्ता के साथ ही उसके प्रभाव कि भी सुरक्षा करता है। ये अत्यंत ज्ञानवर्धक, पठनीय एवं माननीय हैं। ये जीवन‌ के अनेक चौराहों पर हमारा मार्गदर्शन करते हैं जब सब ओर अंधकार छा जाने की प्रतीति होती है।

About Chanakya (चाणक्य के बारे में) :

 चाणक्य का प्रभाव प्राचीन भारत से परे तक फैला हुआ है, क्योंकि शासन कला और शासन पर उनके विचारों का दुनिया भर के विद्वानों और नीति निर्माताओं द्वारा अध्ययन और सम्मान किया जाता है।  राजनीति के प्रति उनका व्यावहारिक दृष्टिकोण और राज्य और उसके नागरिकों के कल्याण पर उनका जोर उन्हें एक कालातीत व्यक्ति बनाता है जिनकी बुद्धि समय और स्थान की सीमाओं से परे है।

 चाणक्यनीतिदर्पण – 16.3

चाणक्यनीतिदर्पण –चाणक्य नीति दर्पण मूलत: संस्कृत (Sanskrit) में संस्कृत सुभाषितों के रूप में, काव्यात्मक एवं श्लोकों  के रूप में लिखा हुआ ग्रंथ है। इसके रचनाकार आचार्य चाणक्य हैं। उनके ये संस्कृत श्लोक चाणक्य नीति के नाम से संसार भर में प्रसिद्ध हैं। यहां पर यह श्लोक देवनागरी लिपि एवं  रोमन लिपि में भी दिए गए हैं एवं उनके अर्थ हिंदी देवनागरी एवं अंग्रेजी में रोमन लिपि में भी दिये गये हैं। जिससे विदेशों में रहने वाले भारतीय जो देवनागरी से परिचित नहीं हैं सनातन ग्रंथों के ज्ञान से लाभान्वित हो सकें।
चाणक्यनीतिदर्पण –नीतिशास्त्रदीप: This title combines the Sanskrit words “नीतिशास्त्र” (ethics) and “दीप” (lamp) to create a title that suggests that the Chanakya Nitidarpana is a lamp that illuminates the path of ethical conduct.

अथ षोड़शोऽध्यायः ॥ 16 ॥

atha ṣōḍa़śō’dhyāyaḥ ॥ 16 ॥

ग्रन्थ का नाम : चाणक्यनीतिदर्पण,  रचनाकार – आचार्य चाणक्य,   अध्याय – 16   श्लोक-  16-20
अतिक्लेशेनयेअर्था धर्मस्यातिक्रमेणतु ॥ 
शत्रूणांप्रणिपातनयेअर्थामाभवंतुमे ॥ ११ ॥
अर्थ - अत्यंत पीडा से, धर्म के त्याग से और वैरियों की प्रणति से जो धन प्राप्ति होती है सो मुझको न हो ॥११॥

atiklēśēnayēarthā dharmasyātikramēṇatu ॥ 
śatrūṇāṁpraṇipātanayēarthāmābhavaṁtumē ॥ 11 ॥

Meaning - I should not get the wealth that comes through extreme pain, sacrifice of religion and the influence of enemies. ॥11॥

किंतयाक्रियतेलक्ष्म्या यावधरिवकेवला ॥ 
यातुवेश्येवसामान्या पथिकैरपिभुज्यते ॥१२॥

अर्थ - उस संपत्ति से लोग क्या कर सकते हैं जो वधू के समान असाधारण है। जो वेश्या के समान सर्व साधारण हो वह पथिकों के भी उपयोग में आ सकती है॥१२॥

kiṁtayākriyatēlakṣmyā yāvadharivakēvalā ॥ 
yātuvēśyēvasāmānyā pathikairapibhujyatē ॥12॥

Meaning – What can people do with the wealth that is as extraordinary as the bride. The one who is as ordinary as a prostitute can be enjoyed even by the pilgrims. ॥12॥

धनेषुजीवितव्येषु स्त्रीषुचाहारकर्मसु ॥ 
अतृप्ताःप्राणिनः सर्वे यातायास्यंतियांतिच। १३।

अर्थ - धन में, जीवन में, स्त्रियों में और भोजन में अतृप्त होकर सब प्राणि गये और जायेंगे ॥ १३ ॥

dhanēṣujīvitavyēṣu strīṣucāhārakarmasu ॥ 
atr̥ptāḥprāṇinaḥ sarvē yātāyāsyaṁtiyāṁtica| 13|

Meaning: All beings have gone and will go, being unsatisfied with money, life, women and food. 13 ॥

क्षीयंतेसर्वदानानि-यज्ञहोमबलिक्रियाः 
नक्षीयतेपात्रदानमभयंसर्वदेहिनाम् ॥ १४ ॥ ॥

अर्थ - सब दान, यज्ञ, होम, बलि ये सब नष्ट हो जाते हैं, सत्पात्र को दान और सब जीवों को अभय दान ये क्षीण नहीं होते ॥ १४ ॥

kṣīyaṁtēsarvadānāni-yajñahōmabalikriyāḥ 
nakṣīyatēpātradānamabhayaṁsarvadēhinām ॥ 14 ॥

Meaning - All donations, Yagya, Homa, Sacrifice, all these get destroyed, donation to the deserving person and donation of fearlessness to all living beings do not diminish. ।। 14 ॥

तृणंलघुतृणात्तूलं तूलादपिचयाचकः ॥ 
वायुनार्किननीतोऽसौ मामयंयाचयिष्यति।१५।

अर्थ - तृण सबसे लघु होता है। तृण से रुई हल्की होती है। रुई से भी याचक, तो उसे वायु क्यों नहीं उडा ले जाती? वह समझती है कि यह मुझसे भी मांँगेगा ॥ १५ ॥

tr̥ṇaṁlaghutr̥ṇāttūlaṁ tūlādapicayācakaḥ ॥ 
vāyunārkinanītō’sau māmayaṁyācayiṣyati. ।।15।।

Meaning: The grass is the smallest. Cotton is lighter than straw. Even if it is better than cotton, why doesn't the wind blow it away? She thinks that he will ask for this from me too. ।।15.।।

चाणक्य की प्रसिद्धि : 

ये संस्कृत श्लोक आचार्य चाणक्य के द्वारा रचित हैं। उनका नाम कौटिल्य एवं विष्णुगुप्त के नाम से भी प्रसिद्ध है। उनकी रचनाएँ Chanakya सूत्र, chanakya niti, chanakya ni pothi, chanakya quotes, chanakya niti in hindi, chanakya quotes in hindi, चाणक्य, चाणक्य नीति,  चाणक्य नीति की 10 बातें,  चाणक्य नीति की बातें, चाणक्य के कड़वे वचन, चाणक्य नीति स्त्री, चाणक्य नीति की 100 बातें,  चाणक्य विचार इन हिंदी, चाणक्य नीति सुविचार, चाणक्य नीति जीवन जीने की, सुविचार चाणक्य के कड़वे वचन, sanskrit shlok, shlok,sanskrit, sanskrit shlok,sanskrit quotes,shlok in sanskrit, sanskrit thought, sanskrit slokas,संस्कृत श्लोक,श्लोक,छोटे संस्कृत श्लोक, आदि के रूप में चर्चित एवं प्रसिद्ध है । 

चाणक्य का कालातीत प्रभाव  :

हजारों वर्षों के उपरांत भी उनमें वही ताजगी और उपयोगिता है। अतः वे आज भी उतने ही प्रासंगिक बने हुए हैं जितने वे तब थे जब वे लिखे गये थे। संस्कृत में रचित होने के कारण उनमें कालांतर के प्रभाव को स्पष्टतः नहीं देखा जाता है क्योंकि संस्कृत भाषा का सर्वश्रेष्ठ व्याकरण उसके अस्तित्व एवं गुणवत्ता के साथ ही उसके प्रभाव कि भी सुरक्षा करता है। ये अत्यंत ज्ञानवर्धक, पठनीय एवं माननीय हैं। ये जीवन‌ के अनेक चौराहों पर हमारा मार्गदर्शन करते हैं जब सब ओर अंधकार छा जाने की प्रतीति होती है।

About Chanakya (चाणक्य के बारे में) :

 चाणक्य का प्रभाव प्राचीन भारत से परे तक फैला हुआ है, क्योंकि शासन कला और शासन पर उनके विचारों का दुनिया भर के विद्वानों और नीति निर्माताओं द्वारा अध्ययन और सम्मान किया जाता है।  राजनीति के प्रति उनका व्यावहारिक दृष्टिकोण और राज्य और उसके नागरिकों के कल्याण पर उनका जोर उन्हें एक कालातीत व्यक्ति बनाता है जिनकी बुद्धि समय और स्थान की सीमाओं से परे है।

 चाणक्यनीतिदर्पण – 16.2

चाणक्यनीतिदर्पण –चाणक्य नीति दर्पण मूलत: संस्कृत (Sanskrit) में संस्कृत सुभाषितों के रूप में, काव्यात्मक एवं श्लोकों  के रूप में लिखा हुआ ग्रंथ है। इसके रचनाकार आचार्य चाणक्य हैं। उनके ये संस्कृत श्लोक चाणक्य नीति के नाम से संसार भर में प्रसिद्ध हैं। यहां पर यह श्लोक देवनागरी लिपि एवं  रोमन लिपि में भी दिए गए हैं एवं उनके अर्थ हिंदी देवनागरी एवं अंग्रेजी में रोमन लिपि में भी दिये गये हैं। जिससे विदेशों में रहने वाले भारतीय जो देवनागरी से परिचित नहीं हैं सनातन ग्रंथों के ज्ञान से लाभान्वित हो सकें।
चाणक्यनीतिदर्पण –नीतिमार्गदर्शक: This title combines the Sanskrit words “नीति” (ethics) and “मार्गदर्शक” (guide) to create a title that suggests that the Chanakya Nitidarpana is a guide to ethical conduct.

अथ षोड़शोऽध्यायः ॥ 16 ॥

atha ṣōḍa़śō’dhyāyaḥ ॥ 16 ॥

ग्रन्थ का नाम : चाणक्यनीतिदर्पण,  रचनाकार – आचार्य चाणक्य,   अध्याय – 16   श्लोक-  6-10
गुणैरुत्तमतां यांतिनोच्चैरासनस
ंस्थिताः ॥ 
प्रसादशिखरस्थोऽपिकाकः किंगरुडायते ॥

प्राणी गुणों से उत्तमत्ता पाता है ऊंचे आसन पर बैठकर नहीं, कोठों के ऊपर के भाग में बैठा कौआ क्या गरुड़ हो जाता है ॥ ६ ॥

guṇairuttamatāṁ yāṁtinōccairāsanasa
ṁsthitāḥ ॥ 
prasādaśikharasthō’pikākaḥ kiṁgaruḍāyatē ॥

A living being does not achieve excellence by virtue of his qualities, but by sitting on a high seat, does a crow sitting on the upper part of a house become an eagle? 6॥

गुणाः सर्वत्रपूज्यंतेन महत्योऽपिसंपदः ॥ 
पूर्णेन्दुःकिंतथावंद्योनिष्कलंकोयथाक्कृशः॥७॥

अर्थ - सब स्थानों में गुण पूजे जाते हैं बड़ी संपति नहीं, पूर्णिमा का पूर्ण भी चंद्रमा क्या वैसा बंदित होता है जैसा बिना कलंक के द्वितीया का दुर्बल भी ॥७॥

guṇāḥ sarvatrapūjyaṁtēna mahatyō’pisaṁpadaḥ ॥ 
pūrṇēnduḥkiṁtathāvaṁdyōniṣkalaṁkōyathākkr̥śaḥ॥7॥
Meaning - Virtues are worshiped everywhere, there is no great wealth, is even the full moon of the full moon as closed as the weak of the second day without any blemish? ॥7॥

परस्तुतगुणोयस्तुनिर्गुणोपिगुणीभवेत् ॥ 
इंद्रो ऽपिलघुतांया तिस्वयंप्रख्यापितैर्गुणैः ॥८॥

अर्थ - जिसके गुणों को दूसरे लोग वर्णन करते हैं वह निर्गुण हो तो भी गुणवान् कहा जाता है, इन्द्र भी यदि अपने गुणों की आप प्रशंसा करे तो उससे लघुता पाता है ॥ ८ ॥
parastutaguṇōyastunirguṇōpiguṇībhavēt ॥ 
iṁdrō ’pilaghutāṁyā tisvayaṁprakhyāpitairguṇaiḥ ॥8॥

Meaning - A person whose qualities are described by others is said to be virtuous even if he has no qualities. Even Indra, if you praise his qualities, is considered inferior to him. 8॥

विवेकिनमनुप्राप्ता गुणाषांतिमनोज्ञताम् ॥ 
सुतरांरत्नमाभातिचामीकरनियोजितम् ॥९॥

अर्थ - विवेकी को पाकर गुण सुंदरता पाते हैं जब रत्न सोने में जड़ा जाता है तब अत्यंत सुंदर दीख पड़ता है॥९॥

vivēkinamanuprāptā guṇāṣāṁtimanōjñatām ॥ 
sutarāṁratnamābhāticāmīkaraniyōjitam ॥9॥

Meaning - By having a wise person, qualities get beauty. When a gem is set in gold then it looks very beautiful.॥9॥

गुणैः सर्वज्ञतुल्योऽपि स्रीदत्येकोनिराश्रयः ॥ 
अनर्घ्यमपिमाणिक्यं हेमाश्रयमपेक्षते ॥१०॥

अर्थ - गुणों से ईश्वर के सदृश भी निरालंब अकेला पुरुष दुख पाता है। अमोल भी माणिक्य सोना के आलंब की अर्थात् उसमें जडे जाने की अपेक्षा करता है ॥ १० ॥

guṇaiḥ sarvajñatulyō’pi srīdatyēkōnirāśrayaḥ ॥ 
anarghyamapimāṇikyaṁ hēmāśrayamapēkṣatē ॥10॥
Meaning: A lonely man, even though he is like God in qualities, suffers sorrow. Amol also expects the support of ruby and gold i.e. to be embedded in it. 10 ॥

चाणक्य की प्रसिद्धि : 

ये संस्कृत श्लोक आचार्य चाणक्य के द्वारा रचित हैं। उनका नाम कौटिल्य एवं विष्णुगुप्त के नाम से भी प्रसिद्ध है। उनकी रचनाएँ Chanakya सूत्र, chanakya niti, chanakya ni pothi, chanakya quotes, chanakya niti in hindi, chanakya quotes in hindi, चाणक्य, चाणक्य नीति,  चाणक्य नीति की 10 बातें,  चाणक्य नीति की बातें, चाणक्य के कड़वे वचन, चाणक्य नीति स्त्री, चाणक्य नीति की 100 बातें,  चाणक्य विचार इन हिंदी, चाणक्य नीति सुविचार, चाणक्य नीति जीवन जीने की, सुविचार चाणक्य के कड़वे वचन, sanskrit shlok, shlok,sanskrit, sanskrit shlok,sanskrit quotes,shlok in sanskrit, sanskrit thought, sanskrit slokas,संस्कृत श्लोक,श्लोक,छोटे संस्कृत श्लोक, आदि के रूप में चर्चित एवं प्रसिद्ध है । 

चाणक्य का कालातीत प्रभाव  :

हजारों वर्षों के उपरांत भी उनमें वही ताजगी और उपयोगिता है। अतः वे आज भी उतने ही प्रासंगिक बने हुए हैं जितने वे तब थे जब वे लिखे गये थे। संस्कृत में रचित होने के कारण उनमें कालांतर के प्रभाव को स्पष्टतः नहीं देखा जाता है क्योंकि संस्कृत भाषा का सर्वश्रेष्ठ व्याकरण उसके अस्तित्व एवं गुणवत्ता के साथ ही उसके प्रभाव कि भी सुरक्षा करता है। ये अत्यंत ज्ञानवर्धक, पठनीय एवं माननीय हैं। ये जीवन‌ के अनेक चौराहों पर हमारा मार्गदर्शन करते हैं जब सब ओर अंधकार छा जाने की प्रतीति होती है।

About Chanakya (चाणक्य के बारे में) :

 चाणक्य का प्रभाव प्राचीन भारत से परे तक फैला हुआ है, क्योंकि शासन कला और शासन पर उनके विचारों का दुनिया भर के विद्वानों और नीति निर्माताओं द्वारा अध्ययन और सम्मान किया जाता है।  राजनीति के प्रति उनका व्यावहारिक दृष्टिकोण और राज्य और उसके नागरिकों के कल्याण पर उनका जोर उन्हें एक कालातीत व्यक्ति बनाता है जिनकी बुद्धि समय और स्थान की सीमाओं से परे है।


 चाणक्यनीतिदर्पण – 16.1

चाणक्यनीतिदर्पण –चाणक्य नीति दर्पण मूलत: संस्कृत (Sanskrit) में संस्कृत सुभाषितों के रूप में, काव्यात्मक एवं श्लोकों  के रूप में लिखा हुआ ग्रंथ है। इसके रचनाकार आचार्य चाणक्य हैं। उनके ये संस्कृत श्लोक चाणक्य नीति के नाम से संसार भर में प्रसिद्ध हैं। यहां पर यह श्लोक देवनागरी लिपि एवं  रोमन लिपि में भी दिए गए हैं एवं उनके अर्थ हिंदी देवनागरी एवं अंग्रेजी में रोमन लिपि में भी दिये गये हैं। जिससे विदेशों में रहने वाले भारतीय जो देवनागरी से परिचित नहीं हैं सनातन ग्रंथों के ज्ञान से लाभान्वित हो सकें।
चाणक्यनीतिदर्पण –कौशल्यप्रकाश: This title combines the Sanskrit words “कौशल्य” (skill) and “प्रकाश” (light) to create a title that suggests that the Chanakya Nitidarpana is a light that illuminates the path to mastery of skills.

अथ षोड़शोऽध्यायः ॥ 16 ॥

atha ṣōḍa़śō’dhyāyaḥ ॥ 16 ॥

ग्रन्थ का नाम : चाणक्यनीतिदर्पण,  रचनाकार – आचार्य चाणक्य,   अध्याय – 16   श्लोक-  1-5
१
'नध्यातंपदमीश्वरस्यविधिवत्संसारविच्छित्तये स्वर्गद्वारकपाटपाटनपटुर्धर्मोऽपिनोपार्जितः॥
नारीपीनपयोधरोरुयुगुलं स्वमेपिनालिंगितं मातुः केवलमेवयौवनवनच्छेदेकुठारावयम् 

अर्थ - संसार से मुक्त होने के लिये विधिवत ईश्वर के 'पद का ध्यान’ 'मुझसे न हुआ’ स्वर्ग द्वार के कपाट के तोडने में समर्थ ‘धर्म' का भी अर्जन 'न' किया। और स्त्री के 'दोनों’ पीन स्तन और जंघाओं को ऑलिंगन स्वप्न में 'भी न किया' मैं माता के युवापन रूपी वृक्ष के केवल काटने ‘मैं’  तुम्हारी उत्पन्न हुआ।॥ १ ॥

1
'nadhyātaṁpadamīśvarasyavidhivatsaṁsāravicchittayē svargadvārakapāṭapāṭanapaṭurdharmō’pinōpārjitaḥ॥
nārīpīnapayōdharōruyugulaṁ svamēpināliṁgitaṁ mātuḥ kēvalamēvayauvanavanacchēdēkuṭhārāvayam.

Meaning - In order to be free from the world, I did not 'meditate' on the word of God properly and did not even acquire 'religion' capable of breaking the doors of heaven. And I didn't even embrace both the breasts and thighs of a woman in my dreams. I was born as a mere cutting of the tree of mother's youth. ।। 1 ।।

जल्पतिसार्द्धमन्येन पश्येत्यन्यंसविश्नमाः ॥ 
'इदये चिंतयंत्यन्यंन स्त्रीणामेकत्तोरतिः ॥ २ ॥

अर्थ - भाषण दूसरे के साथ करती हैं, दूसरे को विलास से देखती है और हृदय में दूसरे ही की चिन्ता करती हैं स्त्रियों की प्रीति एक में नहीं रहती ॥2॥ 

jalpatisārddhamanyēna paśyētyanyaṁsaviśnamāḥ ॥ 
'idayē ciṁtayaṁtyanyaṁna strīṇāmēkattōratiḥ ॥ 2 ॥

Meaning - She talks with others, looks at others with luxury and cares for others only in her heart. Women's love does not remain limited to one person. ॥2॥

योमोहान्मन्यते मूढोर क्तेयंमयिकामिनी ॥ 
सतस्यावशगोमूत्वा नृत्प्रेत्क्रीडाशकुंतवत् ॥३॥
अर्थ - जो मूर्ख अविवेक से समझता है कि, यह कामिनी मेरे ऊपर प्रेम करती है वह उसके वश होकर खेल के पक्षी के समान नाचा करता है ॥३॥

yōmōhānmanyatē mūḍhōra ktēyaṁmayikāminī ॥ 
satasyāvaśagōmūtvā nr̥tprētkrīḍāśakuṁtavat ॥3॥

Meaning - The fool who unwisely thinks that this woman is in love with him, falls under her influence and dances like a bird at play.॥3॥

कोऽर्थान्प्राप्यनगर्वितो विषयिणः कस्यापदो ऽस्तंगताः 
स्त्रीभिः कस्यनखंडितंभु विमनः को नामराजप्रियः ॥ 
कःकालस्पनगोचरत्वमग मत्को ऽर्थीग तो गौरवं 
कोवा दुर्जनदुर्गुणेषुपतितः क्षामेणयातः पथि ॥४॥

अर्थ - धन पाकर गर्वी कौन न हुआ, किस विषयी की विपत्ती नष्ट हुई, पृथ्वी में किस के मन को स्त्रियों ने खण्डित न किया, राजा को प्रिय कौन हुआ, काल के वश कौन नहीं हुआ, किस याचक ने गुरुता पाई, दुष्ट की दुष्टता में पड़कर संसार के पंथ में करालता से कौन गया ॥ ४ ॥

kō’rthānprāpyanagarvitō viṣayiṇaḥ kasyāpadō ’staṁgatāḥ 
strībhiḥ kasyanakhaṁḍitaṁbhu vimanaḥ kō nāmarājapriyaḥ ॥ 
kaḥkālaspanagōcaratvamaga matkō ’rthīga tō gauravaṁ 
kōvā durjanadurguṇēṣupatitaḥ kṣāmēṇayātaḥ pathi ॥4॥

Meaning - Who did not become proud after getting wealth, which subject's calamity was destroyed, whose mind on earth was not broken by women, who was loved by the king, who did not fall under the influence of time, which beggar attained mastery, the wickedness of the wicked. Who has fallen into the world's religion out of greed? 4॥

ननिर्मिता केन नदृष्टपूर्वा नश्रूयते हेममयी कुरंगी ॥ 
तथा पितृष्णा रघुनंदनस्य विनाश काले विपरीतबुद्धिः ॥ ५॥

अर्थ - सोने की मृगी न पहले किसी ने रची, न देखी और न किसी को सुन पड़ती है तैसी रघुनंदन की तृष्णा उस पर हुई। विनाश के समय बुद्धि विपरीत हो जाती है ॥५॥

nanirmitā kēna nadr̥ṣṭapūrvā naśrūyatē hēmamayī kuraṁgī ॥ 
tathā pitr̥ṣṇā raghunaṁdanasya vināśa kālē viparītabuddhiḥ ॥ 5॥

Meaning - A golden deer has never been created before by anyone, nor has it been seen by anyone and no one has even heard of it. Raghunandan's desire was aroused for it. At the time of destruction the intellect becomes opposite.

चाणक्य की प्रसिद्धि : 

ये संस्कृत श्लोक आचार्य चाणक्य के द्वारा रचित हैं। उनका नाम कौटिल्य एवं विष्णुगुप्त के नाम से भी प्रसिद्ध है। उनकी रचनाएँ Chanakya सूत्र, chanakya niti, chanakya ni pothi, chanakya quotes, chanakya niti in hindi, chanakya quotes in hindi, चाणक्य, चाणक्य नीति,  चाणक्य नीति की 10 बातें,  चाणक्य नीति की बातें, चाणक्य के कड़वे वचन, चाणक्य नीति स्त्री, चाणक्य नीति की 100 बातें,  चाणक्य विचार इन हिंदी, चाणक्य नीति सुविचार, चाणक्य नीति जीवन जीने की, सुविचार चाणक्य के कड़वे वचन, sanskrit shlok, shlok,sanskrit, sanskrit shlok,sanskrit quotes,shlok in sanskrit, sanskrit thought, sanskrit slokas,संस्कृत श्लोक,श्लोक,छोटे संस्कृत श्लोक, आदि के रूप में चर्चित एवं प्रसिद्ध है । 

चाणक्य का कालातीत प्रभाव  :

हजारों वर्षों के उपरांत भी उनमें वही ताजगी और उपयोगिता है। अतः वे आज भी उतने ही प्रासंगिक बने हुए हैं जितने वे तब थे जब वे लिखे गये थे। संस्कृत में रचित होने के कारण उनमें कालांतर के प्रभाव को स्पष्टतः नहीं देखा जाता है क्योंकि संस्कृत भाषा का सर्वश्रेष्ठ व्याकरण उसके अस्तित्व एवं गुणवत्ता के साथ ही उसके प्रभाव कि भी सुरक्षा करता है। ये अत्यंत ज्ञानवर्धक, पठनीय एवं माननीय हैं। ये जीवन‌ के अनेक चौराहों पर हमारा मार्गदर्शन करते हैं जब सब ओर अंधकार छा जाने की प्रतीति होती है।

About Chanakya (चाणक्य के बारे में) :

 चाणक्य का प्रभाव प्राचीन भारत से परे तक फैला हुआ है, क्योंकि शासन कला और शासन पर उनके विचारों का दुनिया भर के विद्वानों और नीति निर्माताओं द्वारा अध्ययन और सम्मान किया जाता है।  राजनीति के प्रति उनका व्यावहारिक दृष्टिकोण और राज्य और उसके नागरिकों के कल्याण पर उनका जोर उन्हें एक कालातीत व्यक्ति बनाता है जिनकी बुद्धि समय और स्थान की सीमाओं से परे है।

 चाणक्यनीतिदर्पण – 15.3

चाणक्य नीति दर्पण मूलत: संस्कृत (Sanskrit) में संस्कृत सुभाषितों के रूप में, काव्यात्मक एवं श्लोकों  के रूप में लिखा हुआ ग्रंथ है। इसके रचनाकार आचार्य चाणक्य हैं। उनके ये संस्कृत श्लोक चाणक्य नीति के नाम से संसार भर में प्रसिद्ध हैं। यहां पर यह श्लोक देवनागरी लिपि एवं  रोमन लिपि में भी दिए गए हैं एवं उनके अर्थ हिंदी देवनागरी एवं अंग्रेजी में रोमन लिपि में भी दिये गये हैं। जिससे विदेशों में रहने वाले भारतीय जो देवनागरी से परिचित नहीं हैं सनातन ग्रंथों के ज्ञान से लाभान्वित हो सकें।

कौशल्यप्रकाश: This title combines the Sanskrit words “कौशल्य” (skill) and “प्रकाश” (light) to create a title that suggests that the Chanakya Nitidarpana is a light that illuminates the path to mastery of skills.

नीतिमार्गदर्शक: This title combines the Sanskrit words “नीति” (ethics) and “मार्गदर्शक” (guide) to create a title that suggests that the Chanakya Nitidarpana is a guide to ethical conduct.

अथ पंचदशोऽध्यायः ॥ 15 ॥

atha paṁcadaśō’dhyāyaḥ ॥ 15 ॥

ग्रन्थ का नाम : चाणक्यनीतिदर्पण,  रचनाकार – आचार्य चाणक्य,   अध्याय – 15   श्लोक-  16-20
पीतः क्रुद्धेनतातश्वरणत्तलद्दतोवल्लभोपेनरोषा दावाल्याद्विमवय्यैः स्वबदनविवरेधार्यतंबौरः णीमे॥ गेहंमेछेदयन्तिप्रतिदिवसमुमाकांत पूजानिमित्तं तस्मात्खिन्ना सदा इंद्विजकुलनि लयंनाथयुक्तं त्यज़ामिः ॥ १६ ॥

अर्थ -  जिसने रुष्ट होकर मेरे पिता को पीडाला और जिसने क्रोध करके  पांव से मेरे कन्त (पति) को मारा, जो श्रेष्ठ ब्राह्मण बैठे सदा लड़कपन से लेकर मुखविवर में मेरी वैरिणी को रखते हैं और प्रतिदिन पार्वती के पतिकी पूजा के निमित्त मेरे गृह को काटते हैं हे नाथ ! इससे  खेद पाकर ब्राह्मणों के घर को सदा छोड़े रहती हूंँ। ॥ 16 ॥

pītaḥ kruddhēnatātaśvaraṇattaladdatōvallabhōpēnarōṣā dāvālyādvimavayyaiḥ svabadanavivarēdhāryataṁbauraḥ ṇīmē॥ gēhaṁmēchēdayantipratidivasamumākāṁta pūjānimittaṁ tasmātkhinnā sadā iṁdvijakulani layaṁnāthayuktaṁ tyaja़āmiḥ ॥ 16 ॥

Meaning - The one who tormented my father in anger and the one who in anger hit my Kant (husband) with his foot, the best Brahmin who always keeps my wife in his mouth since childhood and cuts my house every day for the purpose of worshiping Parvati's husband. Hey Nath! Feeling regretful about this, I always leave the houses of Brahmins.॥ 16 ॥

बंधनानिखलुसंतिबहूनिप्रेमरज्जुकृतबन्धन मन्यत् दारुभेदनिपुणोऽपिषडब्रिर्निष्क्रियो भवति पंकजकोशे॥ १७ ॥

अर्थ - बंधन तो बहुत हैं; परंतु प्रीति की रस्सी का बन्धन और ही है। काठ के छेदने में कुशल भी भौंरा कमल के कोश में निर्व्यापार हो जाता है ॥ १७ ॥ 

baṁdhanānikhalusaṁtibahūniprēmarajjukr̥tabandhana manyat dārubhēdanipuṇō’piṣaḍabrirniṣkriyō bhavati paṁkajakōśē॥ 17 ॥

Meaning: There are many bonds; But the rope of love has a different bond. Even a bumblebee skilled in piercing wood becomes useless in the shell of a lotus. 17 ॥

छिन्नोपिचंदनतरुर्नजहातिगंधं वृद्धोऽपिवारणपायाचे नौविदसंखेः ।
पतिर्न जहातिलीलाम् ॥ 
पंत्रार्पितो मधुरतांन जहातिचेक्षुः क्षीणों पिनत्यजितशीलगुणान्कु लीनः ॥ १८ ॥

अर्थ - काटा चन्दन का वृक्ष गन्धको त्याग नहीं देता। बूढ़ा भी गजपति विलास को नहीं छोड़ता, कोल्हू में पेरी  ऊंस(गन्ना) भी मधुरता नहीं छोड़ती।  कुलीन यदि दरिद्र हो तो भी सुशीलता आदि गुणों का त्याग नहीं करता १८॥

chinnōpicaṁdanatarurnajahātigaṁdhaṁ vr̥ddhō’pivāraṇapāyācē nauvidasaṁkhēḥ |
patirna jahātilīlām ॥ 
paṁtrārpitō madhuratāṁna jahāticēkṣuḥ kṣīṇōṁ pinatyajitaśīlaguṇānku līnaḥ ॥ 18 ॥

Meaning: A cut sandalwood tree does not give up its smell. Even an old Gajapati does not give up his luxury, even an ounce of sugarcane crushed in a crusher does not give up its sweetness. Even if a noble person is poor, he does not sacrifice the virtues like politeness etc. ॥ 18 ॥


उर्ज्याकोऽपिमहीधरोलघुतरोदोभ्यां धृतोलीलया। 
तेनत्वंदिविभूतलेच विदितो गोवर्द्धनोद्धारकः ॥ 
त्वांत्रैलोक्यधरं वहामिकुंचपोरग्रेन तद्रण्यतेकिंवा 
केशव भाषणेन बहु नापुण्यैर्यशोलक्ष्यते ॥ 19 ॥

अर्थ - पृथ्वी पर किसी अत्यंत हल्के पर्वतों को अनायास से बाहुओं के ऊपर धारण करने से आप स्वर्ग और पृथ्वी तल में सर्वदा गोवर्द्धन धारी कहलाते हैं तीनों लोकों को धारण करने वाले आपको केवल अपने  अग्रभाग में धारण करती हूँ। यह कुछ भी नहीं गिना जाता है। हे केशव ! बहुत कहने से क्या पुण्यों से यश मिलता है ॥ 19 ॥

urjyākō’pimahīdharōlaghutarōdōbhyāṁ dhr̥tōlīlayā| 
tēnatvaṁdivibhūtalēca viditō gōvarddhanōddhārakaḥ ॥ 
tvāṁtrailōkyadharaṁ vahāmikuṁcapōragrēna tadraṇyatēkiṁvā 
kēśava bhāṣaṇēna bahu nāpuṇyairyaśōlakṣyatē ॥ 19 ॥

Meaning - By spontaneously holding any of the very light mountains on the earth on your arms, you are always called the bearer of Govardhan in heaven and on the earth. I hold you, the bearer of all the three worlds, only on my forearm. It doesn't count as anything. Hey Keshav! By saying a lot of good deeds one gets fame. 19 ॥
इतिं पंचदशोऽध्यायः ॥ 15 ॥
itiṁ paṁcadaśō’dhyāyaḥ ॥ 15 ॥

चाणक्य की प्रसिद्धि : 

ये संस्कृत श्लोक आचार्य चाणक्य के द्वारा रचित हैं। उनका नाम कौटिल्य एवं विष्णुगुप्त के नाम से भी प्रसिद्ध है। उनकी रचनाएँ Chanakya सूत्र, chanakya niti, chanakya ni pothi, chanakya quotes, chanakya niti in hindi, chanakya quotes in hindi, चाणक्य, चाणक्य नीति,  चाणक्य नीति की 10 बातें,  चाणक्य नीति की बातें, चाणक्य के कड़वे वचन, चाणक्य नीति स्त्री, चाणक्य नीति की 100 बातें,  चाणक्य विचार इन हिंदी, चाणक्य नीति सुविचार, चाणक्य नीति जीवन जीने की, सुविचार चाणक्य के कड़वे वचन, sanskrit shlok, shlok,sanskrit, sanskrit shlok,sanskrit quotes,shlok in sanskrit, sanskrit thought, sanskrit slokas,संस्कृत श्लोक,श्लोक,छोटे संस्कृत श्लोक, आदि के रूप में चर्चित एवं प्रसिद्ध है । 

चाणक्य का कालातीत प्रभाव  :

हजारों वर्षों के उपरांत भी उनमें वही ताजगी और उपयोगिता है। अतः वे आज भी उतने ही प्रासंगिक बने हुए हैं जितने वे तब थे जब वे लिखे गये थे। संस्कृत में रचित होने के कारण उनमें कालांतर के प्रभाव को स्पष्टतः नहीं देखा जाता है क्योंकि संस्कृत भाषा का सर्वश्रेष्ठ व्याकरण उसके अस्तित्व एवं गुणवत्ता के साथ ही उसके प्रभाव कि भी सुरक्षा करता है। ये अत्यंत ज्ञानवर्धक, पठनीय एवं माननीय हैं। ये जीवन‌ के अनेक चौराहों पर हमारा मार्गदर्शन करते हैं जब सब ओर अंधकार छा जाने की प्रतीति होती है।

About Chanakya (चाणक्य के बारे में) :

 चाणक्य का प्रभाव प्राचीन भारत से परे तक फैला हुआ है, क्योंकि शासन कला और शासन पर उनके विचारों का दुनिया भर के विद्वानों और नीति निर्माताओं द्वारा अध्ययन और सम्मान किया जाता है।  राजनीति के प्रति उनका व्यावहारिक दृष्टिकोण और राज्य और उसके नागरिकों के कल्याण पर उनका जोर उन्हें एक कालातीत व्यक्ति बनाता है जिनकी बुद्धि समय और स्थान की सीमाओं से परे है।

 चाणक्यनीतिदर्पण – 15.2

चाणक्य नीति दर्पण मूलत: संस्कृत (Sanskrit) में संस्कृत सुभाषितों के रूप में, काव्यात्मक एवं श्लोकों  के रूप में लिखा हुआ ग्रंथ है। इसके रचनाकार आचार्य चाणक्य हैं। उनके ये संस्कृत श्लोक चाणक्य नीति के नाम से संसार भर में प्रसिद्ध हैं। यहां पर यह श्लोक देवनागरी लिपि एवं  रोमन लिपि में भी दिए गए हैं एवं उनके अर्थ हिंदी देवनागरी एवं अंग्रेजी में रोमन लिपि में भी दिये गये हैं। जिससे विदेशों में रहने वाले भारतीय जो देवनागरी से परिचित नहीं हैं सनातन ग्रंथों के ज्ञान से लाभान्वित हो सकें।

अथ पंचदशोऽध्यायः ॥ 15 ॥

atha paṁcadaśō’dhyāyaḥ ॥ 15 ॥

ग्रन्थ का नाम : चाणक्यनीतिदर्पण,  रचनाकार – आचार्य चाणक्य,   अध्याय – 15   श्लोक-  11-15

दुरागतंपथिश्रांतंवृयाच गृहमागतम् ॥ 
अनर्चयित्वा यो घुँक्ते सवैचांडालउच्यते ॥११॥

दूर से आये को, पथ से थके को और निरर्थक (अयआचक वृत्ति से) गृह पर आये को बिना पूछे जो खाता है वह चांडाल ही गिना जाता है ॥ ११ ॥

durāgataṁpathiśrāṁtaṁvr̥yāca gr̥hamāgatam ॥ 
anarcayitvā yō ghum̐ktē savaicāṁḍālucyatē ॥11॥

The one who comes from a distance, tired from the journey and the one who comes to his home with no intention of eating, eats without asking, is considered a Chandal. ।। 11 ॥

पठंतिचतुरो वेदानधर्मशास्त्राण्यनेकशः ॥ 
आत्मानंनैवजानंतिदर्वीपाकरसंयथा ॥ १२॥

अर्थ - चतुर लोग चारों वेद और अनेक धर्मशात्र पढ़ते हैं परन्तु आत्मा को नहीं जानते, जैसे करछी पाक के रस को नहीं जानती ॥ ५२ ॥
paṭhaṁticaturō vēdānadharmaśāstrāṇyanēkaśaḥ ॥ 
ātmānaṁnaivajānaṁtidarvīpākarasaṁyathā ॥ 12॥
Meaning - Clever people read the four Vedas and many dharmaśātra   but do not know the soul, just as a ladle does not know the essence of cooking. 52 ॥


धन्याद्विजमयीनांकाविपरीताभवार्णवे ॥
तरंत्वधोगताः सर्वेउपरिस्थाःपतंत्यधः ॥१३॥ 
अर्थ - यह ब्राह्मणरूप नाव धन्य है संसार रूप संमुद्र में इसकी उल्टी ही रीति है; उसके नीचे रहने वाले सब तरते हैं और ऊपर रहने वाले नीचे गिरते हैं. अर्थात् ब्राह्मण से जो नम्र रहता है. वह तर जाता है और जो नम्र नहीं रहता है वह नरक में गिरता है।१३।

dhanyādvijamayīnāṁkāviparītābhavārṇavē ॥
taraṁtvadhōgatāḥ sarvēuparisthāḥpataṁtyadhaḥ ॥13॥ 

Meaning - This boat in the form of Brahmin is blessed; in the ocean of the world it is the opposite; All those living below it float and those living above them fall. That is, one who remains humble compared to a Brahmin. He gets wet and the one who does not remain humble falls into hell. ।।13.।।

अयममृतनिधानं नायकोऽप्यौषधीनाम् अमृतमयशरीरः कांतियुक्तोऽपिचन्द्रः ॥ 
भवति विगतरश्मिर्मंडलंप्राप्यभानोः परसदननिविष्टः कोलघुत्वंनयाति ॥ १४ ॥
अर्थ - अमृतका घर औषधियों का अधिपति जिसका शरीर अमृतमय और शोभा से युक्त भी चंद्रमा सूर्य के मंडल में जाकर निस्तेज हो जाता है, दूसरे के घर में बैठकर कौन लघुता नहीं पाता ॥ १४ ॥
ayamamr̥tanidhānaṁ nāyakō ’pyauṣadhīnām amr̥ta mayaśarīraḥ kāṁtiyuktō’picandraḥ ॥ 
bhavati vigataraśmirmaṁḍalaṁprāpyabhānōḥ parasadananiviṣṭaḥ kōlaghutvaṁnayāti ॥ 14 ॥

Meaning - The house of nectar, the lord of medicines, whose body is full of nectar and beauty, even when the moon goes into the circle of the sun, it becomes dull, who does not feel inferior by sitting in someone else's house? 14 ॥

अलिरयंनलिनीदलमध्यगः कमलिनी मकरंदम दालसः॥
विधिवशात्परदेशमुपागता कुटजपुष्प रसंबहुमन्यते ॥ १५ ॥

अर्थ -  यह भौंरा जब कमलिनी के पत्तों के मध्य था तब कमलिनी के फूल के रस से आलसी बना रहता था। अब दैववश से पर देश में आकर तोरैया के फूल को बहुत समझता है ॥ १५ ॥

alirayaṁnalinīdalamadhyagaḥ kamalinī makaraṁdama dālasaḥ॥
vidhivaśātparadēśamupāgatā kuṭajapuṣpa rasaṁbahumanyatē ॥ 15 ॥

Meaning - When this bumblebee was among the leaves of Kamalini, he remained lazy with the juice of Kamalini flower. Now, by God's will, after coming to the country, he understands the ridge gourd flower very well. ।। 15.।।

चाणक्य की प्रसिद्धि : 

ये संस्कृत श्लोक आचार्य चाणक्य के द्वारा रचित हैं। उनका नाम कौटिल्य एवं विष्णुगुप्त के नाम से भी प्रसिद्ध है। उनकी रचनाएँ Chanakya सूत्र, chanakya niti, chanakya ni pothi, chanakya quotes, chanakya niti in hindi, chanakya quotes in hindi, चाणक्य, चाणक्य नीति,  चाणक्य नीति की 10 बातें,  चाणक्य नीति की बातें, चाणक्य के कड़वे वचन, चाणक्य नीति स्त्री, चाणक्य नीति की 100 बातें,  चाणक्य विचार इन हिंदी, चाणक्य नीति सुविचार, चाणक्य नीति जीवन जीने की, सुविचार चाणक्य के कड़वे वचन, sanskrit shlok, shlok,sanskrit, sanskrit shlok,sanskrit quotes,shlok in sanskrit, sanskrit thought, sanskrit slokas,संस्कृत श्लोक,श्लोक,छोटे संस्कृत श्लोक, आदि के रूप में चर्चित एवं प्रसिद्ध है । 

चाणक्य का कालातीत प्रभाव  :

हजारों वर्षों के उपरांत भी उनमें वही ताजगी और उपयोगिता है। अतः वे आज भी उतने ही प्रासंगिक बने हुए हैं जितने वे तब थे जब वे लिखे गये थे। संस्कृत में रचित होने के कारण उनमें कालांतर के प्रभाव को स्पष्टतः नहीं देखा जाता है क्योंकि संस्कृत भाषा का सर्वश्रेष्ठ व्याकरण उसके अस्तित्व एवं गुणवत्ता के साथ ही उसके प्रभाव कि भी सुरक्षा करता है। ये अत्यंत ज्ञानवर्धक, पठनीय एवं माननीय हैं। ये जीवन‌ के अनेक चौराहों पर हमारा मार्गदर्शन करते हैं जब सब ओर अंधकार छा जाने की प्रतीति होती है।

About Chanakya (चाणक्य के बारे में) :

 चाणक्य का प्रभाव प्राचीन भारत से परे तक फैला हुआ है, क्योंकि शासन कला और शासन पर उनके विचारों का दुनिया भर के विद्वानों और नीति निर्माताओं द्वारा अध्ययन और सम्मान किया जाता है।  राजनीति के प्रति उनका व्यावहारिक दृष्टिकोण और राज्य और उसके नागरिकों के कल्याण पर उनका जोर उन्हें एक कालातीत व्यक्ति बनाता है जिनकी बुद्धि समय और स्थान की सीमाओं से परे है।

 चाणक्यनीतिदर्पण – 15.1

चाणक्य नीति दर्पण मूलत: संस्कृत (Sanskrit) में संस्कृत सुभाषितों के रूप में, काव्यात्मक एवं श्लोकों  के रूप में लिखा हुआ ग्रंथ है। इसके रचनाकार आचार्य चाणक्य हैं। उनके ये संस्कृत श्लोक चाणक्य नीति के नाम से संसार भर में प्रसिद्ध हैं। यहां पर यह श्लोक देवनागरी लिपि एवं  रोमन लिपि में भी दिए गए हैं एवं उनके अर्थ हिंदी देवनागरी एवं अंग्रेजी में रोमन लिपि में भी दिये गये हैं। जिससे विदेशों में रहने वाले भारतीय जो देवनागरी से परिचित नहीं हैं सनातन ग्रंथों के ज्ञान से लाभान्वित हो सकें।

अथ पंचदशोऽध्यायः ॥ 15 ॥

atha paṁcadaśō’dhyāyaḥ ॥ 15 ॥

ग्रन्थ का नाम : चाणक्यनीतिदर्पण,  रचनाकार – आचार्य चाणक्य,   अध्याय – 15   श्लोक-  1-10
यस्यचित्तंद्रवीभूतंकृपया सर्वजन्तुषु ॥ 
तस्यज्ञानेनमोक्षणकिं जटाभस्मलेपनः ॥१॥

अर्थ - जिसका चित्त सभी प्राणियों पर दया से द्रवित हो जाता है उसको ज्ञान से, मोक्ष से, जटा से और विभूति के लेपन से क्या है ॥ १ ॥
yasyacittaṁdravībhūtaṁkr̥payā sarvajantuṣu ॥ 
tasyajñānēnamōkṣaṇakiṁ jaṭābhasmalēpanaḥ ॥1॥
Meaning - One whose mind is filled with compassion for all living beings, what does he have to do with knowledge, salvation, hair and the coating of Vibhuti. 1॥

एकमेवाक्षरंयस्तुगुरुः शिष्यं प्रबोधयेत् ॥ 
पृथिव्यानास्तितव्यं यद्दत्त्वा चान्नृणोभवेत् ॥२॥

अर्थ - जो गुरु शिष्य को एकभी अक्षर का उपदेश करता है। पृथ्वी में ऐसा द्रव्य नहीं है जिसको देकर शिष्य उससे उऋण हो जाय ॥ २ ॥

ēkamēvākṣaraṁyastuguruḥ śiṣyaṁ prabōdhayēt ॥ 
pr̥thivyānāstitavyaṁ yaddattvā cānnr̥ṇōbhavēt ॥2॥
Meaning - The teacher who teaches a single letter to the disciple. There is no substance on earth which can be given to a disciple by giving it. 2॥

खलानां कण्टकानांच द्विविधैवप्रतिक्रिया ॥ 
उपानन्मुखभंगोबा दूरतोवा विसर्जनम् ॥ ३ ॥

अर्थ - खल और कांटा इनके दो ही प्रकार के उपाय हैं जूते से मुख का तोड़ना या दूर से उन्हें त्याग देना ॥ ३ ॥

khalānāṁ kaṇṭakānāṁca dvividhaivapratikriyā ॥ 
upānanmukhabhaṁgōbā dūratōvā visarjanam ॥ 3 ॥
Meaning - There are only two types of solutions - a mortar and a thorn, breaking the mouth with a shoe or throwing it away from a distance. 3॥

कुचैलिनं दन्तमलोपसृष्टं बहुवाशिनं निष्ठुरभाषिणं च
सूर्योदये चास्तमिते शयानं विमुञ्चति श्रीर्यदि चक्रपाणिः
OR
कुचैलिनंदन्तम लोपधारिणंबह्वा शिनंनिष्टुरभाषिणंच ।। 
सूर्योदयेचास्तमितेशयानंविमुंचति श्रीर्यद्धिचक्रपाणिः ॥ ४ ॥

अर्थ - मलिन(मैले) वस्त्र वाले को, जो दांतों के मल को दूर नहीं करता उसको, बहुत भोजन करने वाले को, कटु भाषी को, सूर्य के उदय और अस्त के समय में सोने वाले को लक्ष्मी छोड़ देती है चाहे वह विष्णु भी हो॥४॥

kucailinaṁdantama lōpadhāriṇaṁbahvā śinaṁniṣṭurabhā ṣiāṁca ॥ 
sūryōdayēcāstamitēśayānaṁvimuṁcati śrīryaddhicakrapāṇiḥ ॥ 4 ॥

Meaning - Lakshmi leaves the one who wears dirty clothes, the one who does not remove the stool from his teeth, the one who eats a lot, the one who speaks harshly, the one who sleeps during the rising and setting of the sun, even if it is Vishnu. ॥4॥

त्यजंतिमित्राणिधनैविहीनंदाराश्वभृत्याश्च सुहज्जनाश्च ॥ 
तचार्थवंतंपुनराश्रयँतेह्यथोहिलोके पुरुषस्यबंधुः ॥ ५ ॥

मित्र, स्त्री, सेवक, और बन्धु ये धनहीन पुरुष को छोड़ देते हैं और वही पुरुष अर्थवान(धनवान) हो जाता है तो फिर उसी का आश्रय करते हैं अर्थात् धन ही लोक में बन्धु है ॥.५.॥
tyajaṁtimitrāṇidhanaivihīnaṁdārāśvabhr̥tyāśca suhajjanāśca ॥ 
tacārthavaṁtaṁpunarāśrayam̐tēhyathōhilōkē puruṣasyabaṁdhuḥ ॥ 5 ॥

Friends, women, servants, and friends leave a man without money and when the same man becomes wealthy, they take refuge in him, that is, money is their friend in this world. ॥.5.॥

अन्यायोपार्जितंद्रव्यंदशवर्षाणितिष्ठंति ॥ 
प्राप्तएकादशेवर्षेसमूलंचविनश्यति ॥ ६ ॥

अर्थ - अनीति या अन्याय से अर्जित धन दस वर्ष पर्यंत ठहरता है। ग्यारहवें वर्ष के प्राप्त होने पर मूलसहित नष्ट हो जाता है ॥ ६ ॥

anyāyōpārjitaṁdravyaṁdaśavarṣāṇitiṣṭhaṁti ॥ 
prāptēkādaśēvarṣēsamūlaṁcavinaśyati ॥ 6 ॥

Meaning - Money earned through injustice or injustice remains for ten years. On attaining the eleventh year, it is destroyed along with its roots. 6॥

अयुक्तस्वामिनोयुक्तंयुक्तंनी चस्यदूषणम् ।। 
अमृतंराहवेमृत्युर्विषंशंकर भूषणम्॥७॥

अर्थ - अयोग्य वस्तु भी सर्मथ को योग्य होती है और योग्य भी दुर्जन को दूषण, अमृत ने राहु को मृत्यु दिया, विष भी शंकर को विभूषण हो गया॥७॥

ayuktasvāminōyuktaṁyuktaṁnī casyadūṣaṇam ॥ 
amr̥taṁrāhavēmr̥tyurviṣaṁśaṁkara bhūṣaṇam॥7॥

Meaning - Even an unworthy thing becomes worthy of the capable and the worthy also becomes a poison for the wicked, nectar gave death to Rahu, poison also became a decoration for Shankar.॥7॥

तद्भोजनंयद्दिजभुक्तशेषं तत्सौहृदंयतुं क्रियतेप रस्मिन् ॥ 
सामाज्ञता पान करोतिपापं दंर्भविना यःक्रियतेसधर्मः ॥ ८ ॥

अर्थ - वही भोजन है जो ब्राह्मण के भोजन से बचा है। वही मित्रता है जो दूसरे में की जाती है। वही बुद्धिमानी है जो पाप नहीं कराती और जो बिना दंभ के किया जाता है वही धर्म है ॥८॥

tadbhōjanaṁyaddijabhuktaśēṣaṁ tatsauhr̥daṁyatuṁ kriyatēpa rasmin ॥ 
sāmājñatā pāna karōtipāpaṁ daṁrbhavinā yaḥkriyatēsadharmaḥ ॥ 8 ॥

Meaning - It is the food which is left over from the Brahmin's meal. That is friendship which is done in others. That wisdom is that which does not cause sin and that which is done without pride(dambha) is religion.

मणिर्तुठतिपादायेकाचः शिरसिधार्यते ॥ 
क्रयविक्रयवेलाया काचःकाचोमणिर्मणिः॥९॥

अर्थ - माणि पांव के आगे लोटती हो, और कांच सिर पर भी रखा हो परन्तु क्रय विक्रय के समय में कांच कांच ही रहता है और मणि मणि ही रहती है ॥ 9 ॥

maṇirtuṭhatipādāyēkācaḥ śirasidhāryatē ॥ 
krayavikrayavēlāyā kācaḥkācōmaṇirmaṇiḥ॥9॥

Meaning - A gem rolls in front of your feet, and a glass is also placed on your head, but at the time of buying and selling, glass remains glass and a gem remains a gem. 9॥

अनंतशास्त्रंबहुलाश्वविद्या अल्पश्वकालोबहु विघ्नताच ॥ 
यत्सारभूतंतदुपासनीयेंहंसोयथा क्षीरमिवांबुमष्यात् ॥ १० ॥

अर्थ - शास्त्र अनंत हैं और विद्या बहुत हैं, काल थोडा है, और विघ्न बहुत हैं. इस कारण जो सार है उसको ले लेना उचित है, जैसे हंस जल के मध्य से दूध को ले लेता है ॥ 10 ॥

anaṁtaśāstraṁbahulāśvavidyā alpaśvakālōbahu vighnatāca ॥ 
yatsārabhūtaṁtadupāsanīyēṁhaṁsōyathā kṣīramivāṁbumaṣyāt ॥ 10 ॥

Meaning: The scriptures are infinite and the knowledge is numerous, time limited, and the obstacles are many. For this reason, it is appropriate to take the essence, just as a swan takes milk from the middle of water. 10 ॥

चाणक्य की प्रसिद्धि : 

ये संस्कृत श्लोक आचार्य चाणक्य के द्वारा रचित हैं। उनका नाम कौटिल्य एवं विष्णुगुप्त के नाम से भी प्रसिद्ध है। उनकी रचनाएँ Chanakya सूत्र, chanakya niti, chanakya ni pothi, chanakya quotes, chanakya niti in hindi, chanakya quotes in hindi, चाणक्य, चाणक्य नीति,  चाणक्य नीति की 10 बातें,  चाणक्य नीति की बातें, चाणक्य के कड़वे वचन, चाणक्य नीति स्त्री, चाणक्य नीति की 100 बातें,  चाणक्य विचार इन हिंदी, चाणक्य नीति सुविचार, चाणक्य नीति जीवन जीने की, सुविचार चाणक्य के कड़वे वचन, sanskrit shlok, shlok,sanskrit, sanskrit shlok,sanskrit quotes,shlok in sanskrit, sanskrit thought, sanskrit slokas,संस्कृत श्लोक,श्लोक,छोटे संस्कृत श्लोक, आदि के रूप में चर्चित एवं प्रसिद्ध है । 

चाणक्य का कालातीत प्रभाव  :

हजारों वर्षों के उपरांत भी उनमें वही ताजगी और उपयोगिता है। अतः वे आज भी उतने ही प्रासंगिक बने हुए हैं जितने वे तब थे जब वे लिखे गये थे। संस्कृत में रचित होने के कारण उनमें कालांतर के प्रभाव को स्पष्टतः नहीं देखा जाता है क्योंकि संस्कृत भाषा का सर्वश्रेष्ठ व्याकरण उसके अस्तित्व एवं गुणवत्ता के साथ ही उसके प्रभाव कि भी सुरक्षा करता है। ये अत्यंत ज्ञानवर्धक, पठनीय एवं माननीय हैं। ये जीवन‌ के अनेक चौराहों पर हमारा मार्गदर्शन करते हैं जब सब ओर अंधकार छा जाने की प्रतीति होती है।

About Chanakya (चाणक्य के बारे में) :

 चाणक्य का प्रभाव प्राचीन भारत से परे तक फैला हुआ है, क्योंकि शासन कला और शासन पर उनके विचारों का दुनिया भर के विद्वानों और नीति निर्माताओं द्वारा अध्ययन और सम्मान किया जाता है।  राजनीति के प्रति उनका व्यावहारिक दृष्टिकोण और राज्य और उसके नागरिकों के कल्याण पर उनका जोर उन्हें एक कालातीत व्यक्ति बनाता है जिनकी बुद्धि समय और स्थान की सीमाओं से परे है।


 चाणक्यनीतिदर्पण – 14.4

चाणक्य नीति दर्पण मूलत: संस्कृत (Sanskrit) में संस्कृत सुभाषितों के रूप में, काव्यात्मक एवं श्लोकों  के रूप में लिखा हुआ ग्रंथ है। इसके रचनाकार आचार्य चाणक्य हैं। उनके ये संस्कृत श्लोक चाणक्य नीति के नाम से संसार भर में प्रसिद्ध हैं। यहां पर यह श्लोक देवनागरी लिपि एवं  रोमन लिपि में भी दिए गए हैं एवं उनके अर्थ हिंदी देवनागरी एवं अंग्रेजी में रोमन लिपि में भी दिये गये हैं। जिससे विदेशों में रहने वाले भारतीय जो देवनागरी से परिचित नहीं हैं सनातन ग्रंथों के ज्ञान से लाभान्वित हो सकें।

अथ चतुर्दशोऽध्यायः ॥ 14 ॥

atha caturdaśō’dhyāyaḥ ॥ 14 ॥

ग्रन्थ का नाम : चाणक्यनीतिदर्पण,  रचनाकार – आचार्य चाणक्य,   अध्याय – 14   श्लोक-  16-20

एकएवपदार्थस्तुत्रिधाभवतिदीक्षितः ॥ 
कुंणपं. कामिनीमांसंयोगिभिः कामिभिः श्वभिः ॥ १६ ॥

अर्थ - एक ही देहरूप वस्तु तीन प्रकार की दिखाई पडती है योगी लोग उसको अधिनिन्दित मृतक रूपस, कामी पुरुष कांता रूप से और कुत्ते मांस रूप से देखते हैं ॥ १६ ॥

ēkēvapadārthastutridhābhavatidīkṣitaḥ ॥ 
kuṁṇapaṁ. kāminīmāṁsaṁyōgibhiḥ kāmibhiḥ śvabhiḥ ॥ 16 ॥

Meaning - The same physical object appears in three types; Yogis see it in the form of a condemned dead, lustful men see it in the form of a thorn and dogs in the form of flesh. 16 ॥

सुसिद्ध मौषधंधर्मगृहाच्छिद्रं चमैथुनम् ॥ 
कुसुक्तकुश्रुतंचैवमतिमान्नप्रकाशयेत् ॥१७॥

अर्थ - सिद्ध औषध, धर्म, अपने घर का दोष, मैथुन, कुअन्नका भोजन और निंदित वचन इन सभी का  प्रकाश करना बुद्धिमान को उचित नहीं है  अर्थात् इन सभी बातों की गोपनीयता की  रक्षा करनी चाहिए॥ १७ ॥ 

susiddha mauṣadhaṁdharmagr̥hācchidraṁ camaithunm ॥ 
kusuktakuśrutaṁcaivamatimānnaprakāśayēt ॥17॥

Meaning - It is not appropriate for a wise person to make public about proven medicines, religion, faults in one's home, sex, eating well and condemning words, that is, the secrecy of all these things should be protected. ।। 17 ॥

तावन्मानेननीयन्तेकोकिलैश्चैववासराः ॥ 
यावत्सर्वजनानन्ददायिनी वाक्प्रवर्तते ॥१८॥
अर्थ - तब तक  कोकिल (कोयल) मौन साधन से दिन बिताती है जब तक वह सब जनों को आनन्द देने वाली वाणी का प्रारंभ न कर दे ॥ १८ ॥

tāvanmānēnanīyantēkōkilaiścaivavāsarāḥ ॥ 
yāvatsarvajanānandadāyinī vākpravartatē ॥18॥

Meaning - The cuckoo spends its days in silence until it starts speaking, giving joy to all. 18 ॥

धर्मधनंचधान्यंचगुरोर्वचनमौषधम् 
सुगृहीतं चर्कर्तव्यमन्यथातुनजीवति ।।१९ ॥
अर्थ - धर्म, धन, धान्य, गुरू का वचन और औषध यदि ये सुगृहीत हों तो इनको भली भांति से करना चाहिये। जो ऐसा नहीं करता वह नहीं जीता ॥१९॥

dharmadhanaṁcadhānyaṁcagurōrvacanamauṣadham 
sugr̥hītaṁ carkartavyamanyathātunajīvati ॥19 ॥

Meaning - If religion, wealth, grain, Guru's word and medicine are well-established then they should be used properly. He who does not do this does not win.

त्यजदुर्जनसंसर्गभजसाधुसमागमम् ॥ 
कुरुपुण्यमहोरात्रंस्मरनित्यमनित्यतः ॥ २० ॥

अर्थ - खल का संग छोड, साधु की संगति का स्वीकार कर, दिनरात पुण्य क्रिया कर और ईश्वरका नित्यस्मरण कर क्योंकि यह संसार अनित्य है ।। 20 ।।

tyajadurjanasaṁsargabhajasādhusamāgamam ॥ 
kurupuṇyamahōrātraṁsmaranityamanityataḥ ॥ 20 ॥

Meaning - Leave the company of evil people, accept the company of a sage, do virtuous activities day and night and remember God daily because this world is impermanent. ।। 20 ।।


इति चतुर्दशोऽध्याय: ॥ 14 ॥
iti caturdaśō’dhyāya: ॥ 14 ॥

चाणक्य की प्रसिद्धि : 

ये संस्कृत श्लोक आचार्य चाणक्य के द्वारा रचित हैं। उनका नाम कौटिल्य एवं विष्णुगुप्त के नाम से भी प्रसिद्ध है। उनकी रचनाएँ Chanakya सूत्र, chanakya niti, chanakya ni pothi, chanakya quotes, chanakya niti in hindi, chanakya quotes in hindi, चाणक्य, चाणक्य नीति,  चाणक्य नीति की 10 बातें,  चाणक्य नीति की बातें, चाणक्य के कड़वे वचन, चाणक्य नीति स्त्री, चाणक्य नीति की 100 बातें,  चाणक्य विचार इन हिंदी, चाणक्य नीति सुविचार, चाणक्य नीति जीवन जीने की, सुविचार चाणक्य के कड़वे वचन, sanskrit shlok, shlok,sanskrit, sanskrit shlok,sanskrit quotes,shlok in sanskrit, sanskrit thought, sanskrit slokas,संस्कृत श्लोक,श्लोक,छोटे संस्कृत श्लोक, आदि के रूप में चर्चित एवं प्रसिद्ध है । 

चाणक्य का कालातीत प्रभाव  :

हजारों वर्षों के उपरांत भी उनमें वही ताजगी और उपयोगिता है। अतः वे आज भी उतने ही प्रासंगिक बने हुए हैं जितने वे तब थे जब वे लिखे गये थे। संस्कृत में रचित होने के कारण उनमें कालांतर के प्रभाव को स्पष्टतः नहीं देखा जाता है क्योंकि संस्कृत भाषा का सर्वश्रेष्ठ व्याकरण उसके अस्तित्व एवं गुणवत्ता के साथ ही उसके प्रभाव कि भी सुरक्षा करता है। ये अत्यंत ज्ञानवर्धक, पठनीय एवं माननीय हैं। ये जीवन‌ के अनेक चौराहों पर हमारा मार्गदर्शन करते हैं जब सब ओर अंधकार छा जाने की प्रतीति होती है।

About Chanakya (चाणक्य के बारे में) :

 चाणक्य का प्रभाव प्राचीन भारत से परे तक फैला हुआ है, क्योंकि शासन कला और शासन पर उनके विचारों का दुनिया भर के विद्वानों और नीति निर्माताओं द्वारा अध्ययन और सम्मान किया जाता है।  राजनीति के प्रति उनका व्यावहारिक दृष्टिकोण और राज्य और उसके नागरिकों के कल्याण पर उनका जोर उन्हें एक कालातीत व्यक्ति बनाता है जिनकी बुद्धि समय और स्थान की सीमाओं से परे है।


 चाणक्यनीतिदर्पण – 14.3

चाणक्य नीति दर्पण मूलत: संस्कृत (Sanskrit) में संस्कृत सुभाषितों के रूप में, काव्यात्मक एवं श्लोकों  के रूप में लिखा हुआ ग्रंथ है। इसके रचनाकार आचार्य चाणक्य हैं। उनके ये संस्कृत श्लोक चाणक्य नीति के नाम से संसार भर में प्रसिद्ध हैं। यहां पर यह श्लोक देवनागरी लिपि एवं  रोमन लिपि में भी दिए गए हैं एवं उनके अर्थ हिंदी देवनागरी एवं अंग्रेजी में रोमन लिपि में भी दिये गये हैं। जिससे विदेशों में रहने वाले भारतीय जो देवनागरी से परिचित नहीं हैं सनातन ग्रंथों के ज्ञान से लाभान्वित हो सकें।

अथ चतुर्दशोऽध्यायः ॥ 14 ॥

atha caturdaśō’dhyāyaḥ ॥ 14 ॥

ग्रन्थ का नाम : चाणक्यनीतिदर्पण,  रचनाकार – आचार्य चाणक्य,   अध्याय – 14   श्लोक-  11-15

अत्यासन्नाविनाशायदूरस्थानफलप्रदाः ॥ 
सेव्यतामध्यभागेनराजा वह्निर्गुरुः स्त्रियः॥११।
अर्थ - अत्यंत निकट रहने पर विनाश के हेतु होते हैं, दूर रहने से फल नहीं देते, इस हेतु राजा, अग्नि, गुरु और स्त्री इनको मध्यम अवस्था से सेवना चाहिये ॥ ११ ॥

atyāsannāvināśāyadūrasthānaphalapradāḥ ॥ 
sēvyatāmadhyabhāgēnarājā vahnirguruḥ striyaḥ॥11।।

Meaning - If kept very close, they lead to destruction, if kept far away do not give results, hence king, fire, guru and woman should consume them in the middle stage. ।। 11 ॥

अग्निरापःस्त्रियोमूर्खःसर्पोराजकुलानिच । ॥ 
नित्यंयत्नेनसेव्यानिसद्यःप्राणहराणिषट्।१२।

अर्थ - आग, जल, स्त्री, मूर्ख, सर्प और राजा के कुल ये सदा सावधानी से सेवन करने योग्य हैं ये छः शीघ्र ही प्राण हरनेवाले कहे गये हैं ॥ १२ ॥

agnirāpaḥstriyōmūrkhaḥsarpōrājakulānica ॥ 
nityaṁyatnēnasēvyānisadyaḥprāṇaharāṇiṣaṭ ।।12।।

Meaning - Fire, water, woman, fool, snake and king's family should always be consumed(behavior with care) with caution. These six are said to lead to quick loss of life. ।। 12 ॥

सजीवतिगुणायस्ययम्यधर्मः सजीवति ॥ 
गुणधर्मविहीनस्यजीवितंनिष्प्रयोजनम् ॥१३॥

अर्थ - वही जीता है जिसके गुण हैं, और वही जीता है जिसका धर्म है, गुण और धर्म से हीन पुरुष का जीना व्यर्थ है ॥ १३ ॥

sajīvatiguṇāyasyayamyadharmaḥ sajīvati ॥ 
guṇadharmavihīnasyajīvitaṁniṣprayōjanam ॥13॥

Meaning - Only he who has qualities lives, and only he lives who has religion, the life of a person who is inferior to qualities and religion is meaningless. 13 ॥

यदीच्छसिवशी कर्तुं जगदे के नकर्मणा ॥ 
पुरापंचदशास्येभ्योगांचरंतींनिवारय ॥ १४ ॥

अर्थ - जो एक ही कर्म से जगत को वश में करना चाहते हो तो  पहले पन्द्रहों के मुख से मन को निवारण करो, तात्पर्य यह है कि, आंख, कान, नाक, जिह्वा, त्वचा ये पांचों ज्ञानेन्द्रिय हैं, मुख, हाथ, पैर, लिंग, गुदा, ये पांच कर्मेन्द्रिय हैं, रूप शब्द रस गन्ध स्पर्श ये पांच ज्ञानेन्द्रियों के विषय हैं इन पन्द्रहों से मन को निवारण करना उचित है ॥ १४ ॥

yadīcchasivaśī kartuṁ jagadē kē nakarmaṇā ॥ 
purāpaṁcadaśāsyēbhyōgāṁcaraṁtīṁnivāraya ॥ 14 ॥

Meaning - If you want to control the world with just one action, then first control the mind through the fifteen mouths, the meaning is that, eye, ear, nose, tongue, skin, these are the five sense organs, mouth, hands, feet, Penis, anus, these are the five organs of action, form, word, taste, smell and touch are the subjects of the five sense organs. It is appropriate to free the mind from these fifteen. 14 ॥

प्रस्तावसदृशं वाक्यंप्रभावसदृशंप्रियम् ॥ 
आत्मशक्तिसमको पंयोजाना तिसपण्डितः॥१५॥ 

अर्थ - प्रसंग के योग्य वाक्य, प्रकृति के सदृश प्रिय और अपनी शक्ति के अनुसार कोप को जो जानता है वही बुद्धिमान् है ॥ १५ ॥

prastāvasadr̥śaṁ vākyaṁprabhāvasadr̥śaṁpriyam ॥ 
ātmaśaktisamakō paṁyōjānā tisapaṇḍitaḥ॥15॥ 

Meaning - A sentence suitable to the context, one who knows love according to nature and anger according to his power, he is wise. ।।15.।।

चाणक्य की प्रसिद्धि : 

ये संस्कृत श्लोक आचार्य चाणक्य के द्वारा रचित हैं। उनका नाम कौटिल्य एवं विष्णुगुप्त के नाम से भी प्रसिद्ध है। उनकी रचनाएँ Chanakya सूत्र, chanakya niti, chanakya ni pothi, chanakya quotes, chanakya niti in hindi, chanakya quotes in hindi, चाणक्य, चाणक्य नीति,  चाणक्य नीति की 10 बातें,  चाणक्य नीति की बातें, चाणक्य के कड़वे वचन, चाणक्य नीति स्त्री, चाणक्य नीति की 100 बातें,  चाणक्य विचार इन हिंदी, चाणक्य नीति सुविचार, चाणक्य नीति जीवन जीने की, सुविचार चाणक्य के कड़वे वचन, sanskrit shlok, shlok,sanskrit, sanskrit shlok,sanskrit quotes,shlok in sanskrit, sanskrit thought, sanskrit slokas,संस्कृत श्लोक,श्लोक,छोटे संस्कृत श्लोक, आदि के रूप में चर्चित एवं प्रसिद्ध है । 

चाणक्य का कालातीत प्रभाव  :

हजारों वर्षों के उपरांत भी उनमें वही ताजगी और उपयोगिता है। अतः वे आज भी उतने ही प्रासंगिक बने हुए हैं जितने वे तब थे जब वे लिखे गये थे। संस्कृत में रचित होने के कारण उनमें कालांतर के प्रभाव को स्पष्टतः नहीं देखा जाता है क्योंकि संस्कृत भाषा का सर्वश्रेष्ठ व्याकरण उसके अस्तित्व एवं गुणवत्ता के साथ ही उसके प्रभाव कि भी सुरक्षा करता है। ये अत्यंत ज्ञानवर्धक, पठनीय एवं माननीय हैं। ये जीवन‌ के अनेक चौराहों पर हमारा मार्गदर्शन करते हैं जब सब ओर अंधकार छा जाने की प्रतीति होती है।

About Chanakya (चाणक्य के बारे में) :

 चाणक्य का प्रभाव प्राचीन भारत से परे तक फैला हुआ है, क्योंकि शासन कला और शासन पर उनके विचारों का दुनिया भर के विद्वानों और नीति निर्माताओं द्वारा अध्ययन और सम्मान किया जाता है।  राजनीति के प्रति उनका व्यावहारिक दृष्टिकोण और राज्य और उसके नागरिकों के कल्याण पर उनका जोर उन्हें एक कालातीत व्यक्ति बनाता है जिनकी बुद्धि समय और स्थान की सीमाओं से परे है।

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