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गायत्री मंत्र


ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्यः धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्

मंत्र के प्रत्येक शब्द की व्याख्या

गायत्री मंत्र के पहले नौ शब्द प्रभु के गुणों की व्याख्या करते हैं. ॐ = प्रणव

भूर = मनुष्य को प्राण प्रदाण करने वाला

भुवः = दुखों का नाश करने वाला

स्वः = सुख प्रदाण करने वाला

तत = वह, सवितुर = सूर्य की भांति उज्जवल

वरेण्यं = सबसे उत्तम

भर्गो = कर्मों का उद्धार करने वाला

देवस्य = प्रभु

धीमहि = आत्म चिंतन के योग्य (ध्यान)

धियो = बुद्धि, यो = जो, नः = हमारी,

प्रचोदयात् = हमें शक्ति दें (प्रार्थना)

गायत्री मंत्र के फायदे

हिन्दू धर्म में गायत्री मंत्र को विशेष मान्यता प्राप्त है. कई शोधों द्वारा यह भी प्रमाणित किया गया है कि गायत्री मंत्र के जाप से कई फायदे भी होते हैं जैसे : मानसिक शांति, चेहरे पर चमक, खुशी की प्राप्ति, चेहरे में चमक, इन्द्रियां बेहतर होती हैं, गुस्सा कम आता है और बुद्धि तेज होती है.


श्री राम रक्षा स्तोत्रम्

Shri Ram Raksha Stotram


विनियोग:

अस्य श्रीरामरक्षास्त्रोतमन्त्रस्य बुधकौशिक ऋषिः ।

श्री सीतारामचंद्रो देवता ।

अनुष्टुप छंदः। सीता शक्तिः ।

श्रीमान हनुमान कीलकम ।

श्री सीतारामचंद्रप्रीत्यर्थे रामरक्षास्त्रोतजपे विनियोगः ।

अथ ध्यानम्‌:

ध्यायेदाजानुबाहुं धृतशरधनुषं बद्धपदमासनस्थं,

पीतं वासो वसानं नवकमल दल स्पर्धिनेत्रम् प्रसन्नम ।

वामांकारूढ़ सीता मुखकमलमिलल्लोचनम्नी,

रदाभम् नानालंकारदीप्तं दधतमुरुजटामण्डलम् रामचंद्रम ॥


राम रक्षा स्तोत्रम्:

Ramraksha Stotram PDF download


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तुझे देखा तो ये जाना सनम

[Intro: Kumar Sanu]

तुझे देखा तो ये जाना सनम

प्यार होता है दीवाना सनम

तुझे देखा तो ये जाना सनम

[Pre-Chorus]

आ, आ, आ

आ, आ, आ

[Chorus : Kumar Sanu & Lata Mangeshkar]

तुझे देखा तो ये जाना सनम

प्यार होता है दीवाना सनम

तुझे देखा तो ये जाना सनम

प्यार होता है दीवाना सनम

अब यहाँ से कहा जाए हम

तेरी बाहों में मर जाए हम

तुझे देखा तो ये जाना सनम

प्यार होता है दीवाना सनम

अब यहाँ से कहा जाए हम

तेरी बाहों में मर जाए हम

तुझे देखा तो ये जाना सनम

[Post-Chorus]

आ, आ, आ, आ, आ

ला, ल, ला

ला, ल, ला

ला, ल, ला

ला, ला

[Verse 1: Lata Mangeshkar & Kumar Sanu]

आँखें मेरी, सपने तेरे

दिल मेरा, यादें तेरी

हो मेरा है क्या (ला ला)

सब कुछ तेरा (ला ला)

जाँ तेरी, साँसें तेरी

मेरी आँखों में आँसू तेरे आ गए

मुस्कुराने लगे सारे ग़म

[Chorus : Kumar Sanu & Lata Mangeshkar]

तुझे देखा तो ये जाना सनम

प्यार होता है दीवाना सनम

अब यहाँ से कहा जाए हम

तेरी बाहों में मर जाए हम

तुझे देखा तो ये जाना सनम

[Verse 2: Lata Mangeshkar & Kumar Sanu]

आ, आ, आ

ये दिल कहीं लगता नहीं

क्या कहूँ, मैं क्या करूँ

हाँ, तु सामने (ला ला) बैठी रहे (ला ला)

मैं तुझे देखा करूँ

तूने आवाज़ दी, देख मैं आ गई

प्यार से है बड़ी क्या क़सम

[Chorus : Kumar Sanu & Lata Mangeshkar]

तुझे देखा तो ये जाना सनम

प्यार होता है दीवाना सनम

तुझे देखा तो ये जाना सनम

प्यार होता है दीवाना सनम

अब यहाँ से कहा जाएँ हम

तेरी बाहों में मर जाए हम

[Outro: Lata Mangeshkar]

आ, आ, आ

तेरी बाहों में मर जाए हम

आ, आ, आ

Credit : YRF
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Tu Mera Koi Na Hoke Bhi Kuch Lage

Tu Mera Koi Na Hoke Bhi Kuch Lage Lyrics in Hindi

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Tu Mera Koi Na Hoke Bhi Kuch Lage Lyrics in English

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Tu Mera Koi Na Hoke Bhi Kuch Laage
Tu Mera Koi Na Hoke Bhi Kuch Laage
Kiya Re Jo Bhi Tune Kaise Kiya Re
Jiya Ko Mere Baandh Aise Liya Re
Samajh Ke Bhi Na Main Samajh Na Saku
Savero Ka Mere Tu Sooraj Laage
Tu Mera Koi Na Hoke Bhi Kuch Laage
Tu Mera Koi Na Hoke Bhi Kuch Laage
Tu Mera Koi Na Hoke Bhi Kuch Laage
Apna Bana Le Piya
Apna Bana Le Piya
Apna Bana Le Mujhe
Apna Bana Le Piya
Apna Bana Le Piya
Apna Bana Le Piya
Dil Ke Nagar Mein
Sheher Tu Basa Le Piya
Chhune Se Tere Haan Tere Haan Tere
Pheeki Ruton Rang Lage
Chhune Se Tere Haan Tere Haan Tere
Pheeki Ruton Rang Lage
Teri Disha Mein Kyun Chalne Se Mere
Pairon Ko Pankh Lage
Hai Na Mere Kaam Ka Jag Saara
Hai Bas Tere Naam Se Hi Guzaara
Ulajh Ke Main Na Sulajh Saku
Jubaaniyan Teri Jhuthi Bhi Sacchi Laage
Tu Mera Koi Na Hoke Bhi Kuch Laage
Tu Mera Koi Na Hoke Bhi Kuch Laage
Tu Mera Koi Na Hoke Bhi Kuch Laage
Apna Bana Le Piya
Apna Bana Le Piya
Apna Bana Le Mujhe
Apna Bana Le Piya
Apna Bana Le Piya
Apna Bana Le Piya
Dil Ke Nagar Mein
Sheher Tu Basa Le Piya
O.. Sab Kuch Mera Chaahe
Naam Apne Likha Le
Badle Mein Apni Yaari Nibha Le
Jag Ki Hirasat Se Mujhko Chhuda Le
Apna Bana Le
Bas Apna Bana Le
Apna Bana Le
Apna Bana Le


 चाणक्यनीतिदर्पण – 17.4

चाणक्य नीति दर्पण मूलत: संस्कृत (Sanskrit) में संस्कृत सुभाषितों के रूप में, काव्यात्मक एवं श्लोकों  के रूप में लिखा हुआ ग्रंथ है। इसके रचनाकार आचार्य चाणक्य हैं। उनके ये संस्कृत श्लोक चाणक्य नीति के नाम से संसार भर में प्रसिद्ध हैं। यहां पर यह श्लोक देवनागरी लिपि एवं  रोमन लिपि में भी दिए गए हैं एवं उनके अर्थ हिंदी देवनागरी एवं अंग्रेजी में रोमन लिपि में भी दिये गये हैं। जिससे विदेशों में रहने वाले भारतीय जो देवनागरी से परिचित नहीं हैं सनातन ग्रंथों के ज्ञान से लाभान्वित हो सकें।

अथ सप्तदशोऽध्याय प्रारंभः ॥ 17 ॥

atha saptadaśō’dhyāya prāraṁbhaḥ ॥ 17 ॥

ग्रन्थ का नाम : चाणक्यनीतिदर्पण,  रचनाकार – आचार्य चाणक्य,   अध्याय – 17   श्लोक-  16-21
परोपकारांयेषाजा गतिहृदयेसताम् ॥ 
नश्यंतिविपद्रस्तेषासंपदः स्युःपदेपदे ॥ १६ ॥

अर्थ - जिन सज्जनों के हृदय में परोपकार जाग्रत है उनकी विपत्ति नष्ट हो जाती है और पद पद में संपत्ति प्राप्त होती है ॥ १६ ॥

parōpakārāṁyēṣājā gatihr̥dayēsatām ॥ 
naśyaṁtivipadrastēṣāsaṁpadaḥ syuḥpadēpadē ॥ 16 ॥
Meaning - Those gentlemen who have charity in their hearts, their troubles are destroyed and they get wealth at every step. ॥ 16 ॥

आहारनिद्राभयमैथुनानि समानिचैतानिनृणा पशूनाम् ॥ 
ज्ञानंनराणामधिकोविशेषोज्ञानेन हीनाः पशुभिःसमानाः ॥ १७ ॥

अर्थ - भोजन, निद्रा, भय मैथुन ये मनुष्य और पशुओं के समान ही हैं मनुष्यों को केवल ज्ञान अधिक विशेष है ज्ञान से रहित नर पशु के समान है ।॥१७॥

āhāranidrābhayamaithunāni samānicaitāninr̥ṇā paśūnām ॥ 
jñānaṁnarāṇāmadhikōviśēṣōjñānēna hīnāḥ paśubhiḥsamānāḥ ॥ 17 ॥

Meaning - Food, sleep, fear, sex, these are the same as humans and animals, only knowledge is more special for humans, a man without knowledge is like an animal.॥17॥

दानार्थिनोमधुकरायदिकर्णतालै दूरीकृताःक-रिवरेणमदान्धबुड्या ॥ 
तस्यैव गण्डयुगमण्डनहानिरेषाश्रृंगाःपुनर्विकचपद्मवनेवसंति ॥१८॥

अर्थ - यदि मदान्ध गजराज ने गजमद के अर्थी भौंरों को मदांधता से कर्ण के तालों से दूर किया तो यह उसी के दोनों गण्डस्थलकी शोभा कि हानि भई, भौंरे फिर विकसित कमल बन में बसते हैं ॥। ८॥ 
तात्पर्य यह है कि, यदि किसी निर्गुण मदांध राजा व धनी के निकट कोई गुणी जा पडे उस समय सदान्धों को गुणी का आदर न करना मानों अपनी लक्ष्मी की शोभा की हानि करनी है काल निरवधि है और पृथ्वी अनंत है गुणीका आदर कहीं न कहीं किसी समय होगा ही।।
 
dānārthinōmadhukarāyadikarṇatālai dūrīkr̥tāḥka-rivarēṇamadāndhabuḍyā ॥ 
tasyaiva gaṇḍayugamaṇḍanahānirēṣāśrr̥ṁgāḥpunarvikacapadmavanēvasaṁti ॥18॥

Meaning - If the inebriated Gajraj removed the gajmad's meaning bumblebees from Karna's locks out of his inebriation, then it would be a loss of beauty of both his Gandsthals, the bumblebees would then settle in the blossoming lotus. ।।8॥
The meaning is that, if a virtuous person comes near a virtuous king or a rich man, at that time the virtuous people should not respect the virtuous person, it would be like harming the beauty of his Goddess Lakshmi. Time is infinite and the earth is infinite. Respect for the virtuous person is somewhere or the other at some time. It will definitely happen.

वेश्यायमश्चाग्निस्तस्करोबालयाचकौ ॥ 
परदुःखंनजानंतिअष्टमोग्रामकंटकः ॥ १९॥ 
अर्थ - राजा, वेश्या, यम, अग्नि, चोर, बालक, याचक और आठवां ग्रामकंटक अर्थात् ग्रामनिवासियों को पीडा देकर अपना निर्वाह करनेवाला ये दूसरों के दुःख को नहीं जानते हैं ॥ 19 ॥

vēśyāyamaścāgnistaskarōbālayācakau ॥ 
paraduḥkhaṁnajānaṁtiaṣṭamōgrāmakaṁṭakaḥ ॥ 19॥ 

Meaning - The king, the prostitute, Yama, Agni, the thief, the child, the beggar and the eighth village Kantak i.e. the one who earns his living by giving pain to the villagers, they do not know the sorrow of others. ।। 19 ॥

अधःपश्यसि किंवाले पतितंतवकिंसुवि ॥ 
रेरेमूर्खनजानासि गतंतारुण्यमौक्तिकम्॥२०॥

अर्थ - हे बाला ! तू नीचे क्यों देखती है पृथ्वी पर तेरा क्या गिर पडा है तब स्त्रीने कहा अरे मूर्ख तू नहीं जानता कि, मेरा तरुणता रूप मोती चला गया॥२०॥

adhaḥpaśyasi kiṁvālē patitaṁtavakiṁsuvi ॥ 
rērēmūrkhanajānāsi gataṁtāruṇyamauktikam॥20॥

Meaning- Hey girl! Why do you look down, what has fallen on the earth? Then the woman said, O fool, don't you know that the pearl of my youth is gone?

व्यालाश्रया पिविफला पिसकंटकापिवक्रा पिपं किलभवापिदुरासदापि ॥ गन्धेनबन्धुरसिकेत- क्किसर्वजंतोःएकोगुणःखटुनिहंतिसमस्तदोषान् ॥ 17.21 ॥

अर्थ - हे केतकी ! यद्यपि तू सांँपों का घर है, विफल है, तुझमें कांटे भी हैं टेढी है कीचड में तेरी उत्याच है और तू दुःख से मिलती-जुलती है तथापि एक गंध गुण से सब प्राणियों की बन्धु हो रही है। निश्चय है कि, एक भी गुण दोषों का नाश कर देता है ॥ २१ ॥

vyālāśrayā piviphalā pisakaṁṭakāpivakrā pipaṁ kilabhavāpidurāsadāpi ॥ gandhēnabandhurasikēta- kkisarvajaṁtōḥēkōguṇaḥkhaṭunihaṁtisamastadōṣān

Meaning - Hey Ketaki! Although you are the house of snakes, you are unsuccessful, you also have thorns, you are crooked, you are in the mud and you resemble sorrow, yet by one smell quality you are binding all the living beings, it is certain that by destroying even a single quality, gives . ।। 17.21 ॥


इतिश्रीवृद्धचाणक्यनीतिदर्पण सप्तदशोऽध्यायः ॥ १७ ॥
itiśrīvr̥ddhacāṇakyanītidarpaṇa saptadaśō’dhyāyaḥ ॥ 17 ॥

इति श्री चाणक्यनीतिदपर्णःभाषाअर्थ -  सहितो समाप्ता ॥
iti śrī cāṇakyanītidaparṇaḥbhāṣāartha -  sahitō samāptā ॥

चाणक्य की प्रसिद्धि : 

ये संस्कृत श्लोक आचार्य चाणक्य के द्वारा रचित हैं। उनका नाम कौटिल्य एवं विष्णुगुप्त के नाम से भी प्रसिद्ध है। उनकी रचनाएँ Chanakya सूत्र, chanakya niti, chanakya ni pothi, chanakya quotes, chanakya niti in hindi, chanakya quotes in hindi, चाणक्य, चाणक्य नीति,  चाणक्य नीति की 10 बातें,  चाणक्य नीति की बातें, चाणक्य के कड़वे वचन, चाणक्य नीति स्त्री, चाणक्य नीति की 100 बातें,  चाणक्य विचार इन हिंदी, चाणक्य नीति सुविचार, चाणक्य नीति जीवन जीने की, सुविचार चाणक्य के कड़वे वचन, sanskrit shlok, shlok,sanskrit, sanskrit shlok,sanskrit quotes,shlok in sanskrit, sanskrit thought, sanskrit slokas,संस्कृत श्लोक,श्लोक,छोटे संस्कृत श्लोक, आदि के रूप में चर्चित एवं प्रसिद्ध है । 

चाणक्य का कालातीत प्रभाव  :

हजारों वर्षों के उपरांत भी उनमें वही ताजगी और उपयोगिता है। अतः वे आज भी उतने ही प्रासंगिक बने हुए हैं जितने वे तब थे जब वे लिखे गये थे। संस्कृत में रचित होने के कारण उनमें कालांतर के प्रभाव को स्पष्टतः नहीं देखा जाता है क्योंकि संस्कृत भाषा का सर्वश्रेष्ठ व्याकरण उसके अस्तित्व एवं गुणवत्ता के साथ ही उसके प्रभाव कि भी सुरक्षा करता है। ये अत्यंत ज्ञानवर्धक, पठनीय एवं माननीय हैं। ये जीवन‌ के अनेक चौराहों पर हमारा मार्गदर्शन करते हैं जब सब ओर अंधकार छा जाने की प्रतीति होती है।

About Chanakya (चाणक्य के बारे में) :

 चाणक्य का प्रभाव प्राचीन भारत से परे तक फैला हुआ है, क्योंकि शासन कला और शासन पर उनके विचारों का दुनिया भर के विद्वानों और नीति निर्माताओं द्वारा अध्ययन और सम्मान किया जाता है।  राजनीति के प्रति उनका व्यावहारिक दृष्टिकोण और राज्य और उसके नागरिकों के कल्याण पर उनका जोर उन्हें एक कालातीत व्यक्ति बनाता है जिनकी बुद्धि समय और स्थान की सीमाओं से परे है।

 चाणक्यनीतिदर्पण – 17.3

चाणक्य नीति दर्पण मूलत: संस्कृत (Sanskrit) में संस्कृत सुभाषितों के रूप में, काव्यात्मक एवं श्लोकों  के रूप में लिखा हुआ ग्रंथ है। इसके रचनाकार आचार्य चाणक्य हैं। उनके ये संस्कृत श्लोक चाणक्य नीति के नाम से संसार भर में प्रसिद्ध हैं। यहां पर यह श्लोक देवनागरी लिपि एवं  रोमन लिपि में भी दिए गए हैं एवं उनके अर्थ हिंदी देवनागरी एवं अंग्रेजी में रोमन लिपि में भी दिये गये हैं। जिससे विदेशों में रहने वाले भारतीय जो देवनागरी से परिचित नहीं हैं सनातन ग्रंथों के ज्ञान से लाभान्वित हो सकें।

अथ सप्तदशोऽध्याय प्रारंभः ॥ 17 ॥

atha saptadaśō’dhyāya prāraṁbhaḥ ॥ 17 ॥

ग्रन्थ का नाम : चाणक्यनीतिदर्पण,  रचनाकार – आचार्य चाणक्य,   अध्याय – 17   श्लोक-  11-15

पादशेषंपीतशेषं संध्याशेषंतथैवच ॥ 
श्वानमूत्रसमंतोयं पीत्वाचांद्रायणंचरेत् ॥११॥

अर्थ - पांव धोने से जो जल बचता है, और पीने से जो जल बचता है और सन्ध्या करने पर जो अवशिष्ट जल है वह कुत्ते के मूत्र के समान है उसको पी लेने पर चांद्रायण व्रत करना चाहिये ॥11॥

pādaśēṣaṁpītaśēṣaṁ saṁdhyāśēṣaṁtathaivaca ॥ 
śvānamūtrasamaṁtōyaṁ pītvācāṁdrāyaṇaṁcarēt ॥11॥

Meaning - The water that is left after washing the feet, and the water that is left after drinking and the residual water in the evening is like dog's urine, after drinking it one should observe Chandrayaan fast.11॥

दानेन पाणिर्नतुकंकणेनस्नानेनशुद्धिर्नतुचंदनेन ॥ 
मानेनतृप्तिर्नतुभोजनेनज्ञानेन मुक्तिर्न तुमंडनेन ॥ १२ ॥

अर्थ - दान से हाथ शोभता है कंकंण से नहीं, स्नान से शरीर शुद्ध होता है चन्दन से नहीं, सम्मान से तृप्ति होती है भोजन से नहीं, ज्ञान से मुक्ति होती है, छापर तिलकादि भूषण से नहीं ॥ १२ ॥

dānēna pāṇirnatukaṁkaṇēnasnānēnaśuddhirnatucaṁdanēna ॥ 
mānēnatr̥ptirnatubhōjanēnajñānēna muktirna tumaṁḍanēna ॥ 12 ॥

Meaning - Hands are beautified by charity, not by bangles, body is purified by bathing, not by sandalwood, satisfaction is achieved by honour, not by food, liberation is achieved by knowledge, not by printing, tilak, etc. ।। 12 ॥

नापितस्यगृहेक्षौरं पाषाणेगंधलेपनम् ॥ 
आत्मरूपंजलेपश्यन्शक्रस्यापिश्रियंहरेत् ॥ १३ ॥

अर्थ - नाईं के घर पर बाल बनवाने वाले, पत्थर पर से लेकर चन्दन लेपन करने वाला, अपने रूप को पानी में देखने वाला इन्द्रभी हो तो उसकी लक्ष्मी को हर लेते हैं ॥ 13 ॥

nāpitasyagr̥hēkṣauraṁ pāṣāṇēgaṁdhalēpanam ॥ 
ātmarūpaṁjalēpaśyanśakrasyāpiśriyaṁharēt ॥ 13 ॥

Meaning - Even if Indra is the one who gets hair done at the barber's house, who applies sandalwood paste on stones, who sees his form in water, then we take away his Lakshmi. ॥13॥

सद्यःप्रज्ञाहरातुंडी सद्यःप्रज्ञांकरीवचा ॥ 
सद्यःशक्तिहरानारी सद्यःशक्तिकरं पयः॥१४॥

अर्थ - कुंदरू शीघ्र ही बुद्धि हर लेता है और बच (वचा एक वनस्पति औषधि है) झटपट बुद्धि देती है। स्त्री तुरंत ही शक्ति हर लेती है दूध शीघ्र ही बली कर देता है ॥ १४ ॥

sadyaḥprajñāharātuṁḍī sadyaḥprajñāṁkarīvacā ॥ 
sadyaḥśaktiharānārī sadyaḥśaktikaraṁ payaḥ॥14॥

Meaning - Kundru quickly takes away intelligence and Bach (Vacha is a vegetable medicine) gives quick intelligence. The woman immediately takes away her strength and the milk soon sacrifices her. ।। 14 ॥

यदिरामायदिरमा यदितनयोविनंथगुणोपेतः ॥ 
तनयेतनयोत्पत्तिःसुरवर नगरेकिमाधिक्यसं ॥ 15॥ 

अर्थ - यदि कांता है, यदि लक्ष्मी वर्तमान है, यदि पुत्र सुशीलता गुण से युक्त है, और पुत्र के पुत्र की उत्पचि हुई हो, फिर देवलोक में इससे अधिक क्या है ? ॥ १५ ॥

yadirāmāyadiramā yaditanayōvinaṁthaguṇōpētaḥ ॥ 
tanayētanayōtpattiḥsuravara nagarēkimādhikyasaṁ ॥ 15॥ 

Meaning - If there is Kanta, if Lakshmi is present, if the son is blessed with good qualities, and if the son's son has originated, then what is more than this in the world of gods ( The habitats of the heaven or swarga called devta) ? , ।।15.।।

चाणक्य की प्रसिद्धि : 

ये संस्कृत श्लोक आचार्य चाणक्य के द्वारा रचित हैं। उनका नाम कौटिल्य एवं विष्णुगुप्त के नाम से भी प्रसिद्ध है। उनकी रचनाएँ Chanakya सूत्र, chanakya niti, chanakya ni pothi, chanakya quotes, chanakya niti in hindi, chanakya quotes in hindi, चाणक्य, चाणक्य नीति,  चाणक्य नीति की 10 बातें,  चाणक्य नीति की बातें, चाणक्य के कड़वे वचन, चाणक्य नीति स्त्री, चाणक्य नीति की 100 बातें,  चाणक्य विचार इन हिंदी, चाणक्य नीति सुविचार, चाणक्य नीति जीवन जीने की, सुविचार चाणक्य के कड़वे वचन, sanskrit shlok, shlok,sanskrit, sanskrit shlok,sanskrit quotes,shlok in sanskrit, sanskrit thought, sanskrit slokas,संस्कृत श्लोक,श्लोक,छोटे संस्कृत श्लोक, आदि के रूप में चर्चित एवं प्रसिद्ध है । 

चाणक्य का कालातीत प्रभाव  :

हजारों वर्षों के उपरांत भी उनमें वही ताजगी और उपयोगिता है। अतः वे आज भी उतने ही प्रासंगिक बने हुए हैं जितने वे तब थे जब वे लिखे गये थे। संस्कृत में रचित होने के कारण उनमें कालांतर के प्रभाव को स्पष्टतः नहीं देखा जाता है क्योंकि संस्कृत भाषा का सर्वश्रेष्ठ व्याकरण उसके अस्तित्व एवं गुणवत्ता के साथ ही उसके प्रभाव कि भी सुरक्षा करता है। ये अत्यंत ज्ञानवर्धक, पठनीय एवं माननीय हैं। ये जीवन‌ के अनेक चौराहों पर हमारा मार्गदर्शन करते हैं जब सब ओर अंधकार छा जाने की प्रतीति होती है।

About Chanakya (चाणक्य के बारे में) :

 चाणक्य का प्रभाव प्राचीन भारत से परे तक फैला हुआ है, क्योंकि शासन कला और शासन पर उनके विचारों का दुनिया भर के विद्वानों और नीति निर्माताओं द्वारा अध्ययन और सम्मान किया जाता है।  राजनीति के प्रति उनका व्यावहारिक दृष्टिकोण और राज्य और उसके नागरिकों के कल्याण पर उनका जोर उन्हें एक कालातीत व्यक्ति बनाता है जिनकी बुद्धि समय और स्थान की सीमाओं से परे है।

 चाणक्यनीतिदर्पण – 17.2

चाणक्य नीति दर्पण मूलत: संस्कृत (Sanskrit) में संस्कृत सुभाषितों के रूप में, काव्यात्मक एवं श्लोकों  के रूप में लिखा हुआ ग्रंथ है। इसके रचनाकार आचार्य चाणक्य हैं। उनके ये संस्कृत श्लोक चाणक्य नीति के नाम से संसार भर में प्रसिद्ध हैं। यहां पर यह श्लोक देवनागरी लिपि एवं  रोमन लिपि में भी दिए गए हैं एवं उनके अर्थ हिंदी देवनागरी एवं अंग्रेजी में रोमन लिपि में भी दिये गये हैं। जिससे विदेशों में रहने वाले भारतीय जो देवनागरी से परिचित नहीं हैं सनातन ग्रंथों के ज्ञान से लाभान्वित हो सकें।

अथ सप्तदशोऽध्याय प्रारंभः ॥ 17 ॥

atha saptadaśō’dhyāya prāraṁbhaḥ ॥ 17 ॥

ग्रन्थ का नाम : चाणक्यनीतिदर्पण,  रचनाकार – आचार्य चाणक्य,   अध्याय – 17   श्लोक-  6-10
अशक्ततस्तु भवेत्साधुर्ब्रह्मचारीचनिर्धनः ॥ 
व्याधिष्टोदेवभक्तश्ववृद्धानारीपतिव्रता ॥ ६ ॥

अर्थ - शक्तिहीन साधु होता है, निर्धन ब्रह्मचारी, रोगग्रस्त देवता का भक्त होता है और वृद्ध स्त्री पतिव्रता होती है ॥ ६ ॥

aśaktatastu bhavētsādhurbrahmacārīcanirdhanaḥ ॥ 
vyādhiṣṭōdēvabhaktaśvavr̥ddhānārīpativratā ॥ 6 ॥

Meaning: A powerless person is a saint, a poor person is a celibate, a sick person is a devotee of a deity, and an old woman is a chaste woman. ।। 6 ॥

नान्नोदकसमंदानं नतिथिर्द्वादशीसमा ॥ 
नगायत्र्याःपरोमंत्रो नमातुर्दैवतंपरम् ॥ ७ ॥

अर्थ - अन्न जल के समान कोई दान नहीं है, न द्वादशी के समान तिथि, गायत्री से बढ़कर कोई मंत्र नहीं है न माता से बढ़कर कोई देवता है ॥ ७ ॥

nānnōdakasamaṁdānaṁ natithirdvādaśīsamā ॥ 
nagāyatryāḥparōmaṁtrō namāturdaivataṁparam ॥ 7 ॥

Meaning - There is no charity like food and water, no date like Dwadashi, no mantra greater than Gayatri, nor any god greater than Mother. ।। 7 ॥

तक्षकस्यविषंदंते मक्षिकायाविषंशिरेः ॥ 
वृश्चिकस्यविषंपुच्छे सर्वांगे दुर्जनोविषम् ॥८॥

अर्थ - सांप के दांत में विष रहता है, मक्खी के सिर में विष है, बिच्छू की पूंछ में विष है किंतु दुर्जन के सब अंगों में विष ही व्याप्त रहता है ॥ ८ ॥

takṣakasyaviṣaṁdaṁtē makṣikāyāviṣaṁśirēḥ ॥ 
vr̥ścikasyaviṣaṁpucchē sarvāṁgē durjanōviṣam ॥8॥

Meaning - There is poison in the teeth of a snake, there is poison in the head of a fly, there is poison in the tail of a scorpion, but poison is present in all the parts of the wicked. ।।8॥

पत्युराज्ञांविनानारी उपोस्यव्रताचारिणी ॥ 
आयुष्यांहरतेभर्तुःसानारीनरकंव्रजेत् ॥ 9 ॥
अर्थ - पति की आज्ञा बिना उपवास व्रत करने वाली स्त्री स्वामी की आयु को हरती है और वह स्त्री आप नरक में जाती है ॥ 9 ॥

patyurājñāṁvinānārī upōsyavratācāriṇī ॥ 
āyuṣyāṁharatēbhartuḥsānārīnarakaṁvrajēt ॥ 9 ॥

Meaning - A woman who fasts without her husband's permission loses her master's life and that woman herself goes to hell. 9॥.

नदानःशुज्यतेनारी नोपवासशतैरपि ॥ 
नतीर्थसेवयातद्वद्भर्तुः पादोदकैर्यथा ॥ १० ॥

अर्थ - न दान से, न सैंकडों उपवासों से, न तीर्थ के सेवन से स्त्री वैसी शुद्ध होती है, जैसी स्वामी के चरणोदक से ॥ १० ॥
nadānaḥśujyatēnārī nōpavāsaśatairapi ॥ 
natīrthasēvayātadvadbhartuḥ pādōdakairyathā ॥ 10 ॥

Meaning - Neither by charity, nor by hundreds of fasts, nor by going on pilgrimage, a woman becomes as pure as by worshiping the Lord's feet. 10 ॥

चाणक्य की प्रसिद्धि : 

ये संस्कृत श्लोक आचार्य चाणक्य के द्वारा रचित हैं। उनका नाम कौटिल्य एवं विष्णुगुप्त के नाम से भी प्रसिद्ध है। उनकी रचनाएँ Chanakya सूत्र, chanakya niti, chanakya ni pothi, chanakya quotes, chanakya niti in hindi, chanakya quotes in hindi, चाणक्य, चाणक्य नीति,  चाणक्य नीति की 10 बातें,  चाणक्य नीति की बातें, चाणक्य के कड़वे वचन, चाणक्य नीति स्त्री, चाणक्य नीति की 100 बातें,  चाणक्य विचार इन हिंदी, चाणक्य नीति सुविचार, चाणक्य नीति जीवन जीने की, सुविचार चाणक्य के कड़वे वचन, sanskrit shlok, shlok,sanskrit, sanskrit shlok,sanskrit quotes,shlok in sanskrit, sanskrit thought, sanskrit slokas,संस्कृत श्लोक,श्लोक,छोटे संस्कृत श्लोक, आदि के रूप में चर्चित एवं प्रसिद्ध है । 

चाणक्य का कालातीत प्रभाव  :

हजारों वर्षों के उपरांत भी उनमें वही ताजगी और उपयोगिता है। अतः वे आज भी उतने ही प्रासंगिक बने हुए हैं जितने वे तब थे जब वे लिखे गये थे। संस्कृत में रचित होने के कारण उनमें कालांतर के प्रभाव को स्पष्टतः नहीं देखा जाता है क्योंकि संस्कृत भाषा का सर्वश्रेष्ठ व्याकरण उसके अस्तित्व एवं गुणवत्ता के साथ ही उसके प्रभाव कि भी सुरक्षा करता है। ये अत्यंत ज्ञानवर्धक, पठनीय एवं माननीय हैं। ये जीवन‌ के अनेक चौराहों पर हमारा मार्गदर्शन करते हैं जब सब ओर अंधकार छा जाने की प्रतीति होती है।

About Chanakya (चाणक्य के बारे में) :

 चाणक्य का प्रभाव प्राचीन भारत से परे तक फैला हुआ है, क्योंकि शासन कला और शासन पर उनके विचारों का दुनिया भर के विद्वानों और नीति निर्माताओं द्वारा अध्ययन और सम्मान किया जाता है।  राजनीति के प्रति उनका व्यावहारिक दृष्टिकोण और राज्य और उसके नागरिकों के कल्याण पर उनका जोर उन्हें एक कालातीत व्यक्ति बनाता है जिनकी बुद्धि समय और स्थान की सीमाओं से परे है।

चाणक्यनीतिदर्पण – 17.1-नीतिमार्गदर्शक


चाणक्य नीति दर्पण मूलत: संस्कृत (Sanskrit) में संस्कृत सुभाषितों के रूप में, काव्यात्मक एवं श्लोकों  के रूप में लिखा हुआ ग्रंथ है। इसके रचनाकार आचार्य चाणक्य हैं। उनके ये संस्कृत श्लोक चाणक्य नीति के नाम से संसार भर में प्रसिद्ध हैं। यहां पर यह श्लोक देवनागरी लिपि एवं  रोमन लिपि में भी दिए गए हैं एवं उनके अर्थ हिंदी देवनागरी एवं अंग्रेजी में रोमन लिपि में भी दिये गये हैं। जिससे विदेशों में रहने वाले भारतीय जो देवनागरी से परिचित नहीं हैं सनातन ग्रंथों के ज्ञान से लाभान्वित हो सकें।

अथ सप्तदशोऽध्याय प्रारंभः ॥ 17 ॥

atha saptadaśō’dhyāya prāraṁbhaḥ ॥ 17 ॥

ग्रन्थ का नाम : चाणक्यनीतिदर्पण,  रचनाकार – आचार्य चाणक्य,   अध्याय – 17   श्लोक-  1-5
पुस्तकप्रत्ययाधीतं नाधीतंगुरुसन्निधौ ॥ 
सभामध्येनशोभंते जारगर्भाइवस्त्रियः ॥ १ ॥

अर्थ - जिन्होंने  केवल पुस्तक के प्रतित से पढ़ा गुरू के निकट न पढ़ा वे सभा के बीच व्यभिचार से गर्भवाली स्त्रियों के समान नहीं शोभते ॥ १ ॥

pustakapratyayādhītaṁ nādhītaṁgurusannidhau ॥ 
sabhāmadhyēnaśōbhaṁtē jāragarbhāivastriyaḥ ॥ 1 ॥
Meaning - Those who read only from the copy of the book and did not study near the Guru, they do not look as good as women who are pregnant due to adultery in the gathering. 1॥

कृते प्रतिकृतिंकुर्याद्धिंसने प्रतिहिंसनम् ॥ 
तत्रदोषोनपततिदुष्टेदुष्टंसमाचरेत् ॥ २ ॥

अर्थ - उपकार करने पर प्रत्युपकार करना चाहिये और मारने पर मारना चाहिए। इसमें कोई अपराध नहीं होता। क्योंकि, दुष्टता करने पर दुष्टता का आचरण करना ही उचित होता है ॥ २ ॥

kr̥tē pratikr̥tiṁkuryāddhiṁsanē pratihiṁsanam ॥ 
tatradōṣōnapatatiduṣṭēduṣṭaṁsamācarēt ॥ 2 ॥

Meaning - When you do a favor, you should reciprocate and when you kill, you should kill. There is no crime in this. Because, when evil is done, it is appropriate to behave evilly. ।। 2॥
।। चाणक्यनीतिदर्पण।। 
।।17.2।।

यदूरं यद्दूराराध्यं यच्चदूरे व्यवस्थितम् ॥ 
तत्सर्वंतपसा साध्यंतपो हि दुरतिक्रमम् ॥ ३ ॥

अर्थ - जो दूर है जिसकी आराधना नहीं हो सकती और जो दूर वर्तमान है वे सब तप से सिद्ध हो सकते हैं इस कारण सबसे प्रबल तप है ॥ ३ ॥

yadūraṁ yaddūrārādhyaṁ yaccadūrē vyavasthitam ॥ 
tatsarvaṁtapasā sādhyaṁtapō hi duratikramam ॥ 3 ॥

Meaning - Whatever is far away which cannot be worshiped and whatever is present far away can be accomplished through penance, hence penance is the most powerful. ।।3॥

लोभश्वेदगुणेनकिंपिशुनतायद्यस्तिकिंपातकैः
सत्यंचेत्तपसा चकिंशुचिमनोयद्यस्तितीर्थेनकिम् 
सौजन्यंयदिकिंगुणैः सुमहिमायद्यस्तिकिं मंडनैः सद्भिद्यायदिकिंधनैरपयशोयद्यस्तिकिं मृत्युना ॥ ४ ॥

अर्थ - यदि लोभ है तो दूसरे दोष से क्या यदि चुगली है तो और पापों से क्या, यदि मन में सत्यता है तो तपसे क्या । यदि मन स्वच्छ है तो तीर्थ से क्या, यदि सज्जनता है तो दूसरे गुण से क्या, यदि महिमा है तो भूषणों से क्या, यदि अच्छी विद्या है तो धन से क्या, और यदि अपयश है तो मृत्यु से क्या ॥ ४ ॥

lōbhaśvēdaguṇēnakiṁpiśunatāyadyastikiṁpātakaiḥ
satyaṁcēttapasā cakiṁśucimanōyadyastitīrthēnakim 
saujanyaṁyadikiṁguṇaiḥ sumahimāyadyastikiṁ maṁḍanaiḥ sadbhidyāyadikiṁdhanairapayaśōyadyastikiṁ mr̥tyunā ॥ 4 ॥

Meaning - If there is greed then what about other vices, if there is backbiting then what about other sins, if there is truth in the mind then what about penance. If the mind is clean then what about pilgrimage, if there is nobility then what about other qualities, if there is glory then what about jewellery, if there is good knowledge then what about wealth, and if there is infamy then what about death. 4॥

पितारत्नाकरोयस्यलक्ष्मीर्यस्यसहोदरी ॥ 
संखोभिक्षाटनं कुर्यान्नदत्तमुपतिष्ठते ॥ ५ ॥

अर्थ - जिसका पिता रत्नों की खान समुद्र है, लक्ष्मी जिसकी बहिन, ऐसा शंख भीख मांगता है सच है बिना दिये कुछ नहीं मिलता ॥ ५ ॥

pitāratnākarōyasyalakṣmīryasyasahōdarī ॥ 
saṁkhōbhikṣāṭanaṁ kuryānnadattamupatiṣṭhatē ॥ 5 ॥

Meaning - Whose father is the ocean, the mine of gems, whose sister is Lakshmi, such a conch begs, it is true that one does not get anything without giving. ।।5॥

चाणक्य की प्रसिद्धि : 

ये संस्कृत श्लोक आचार्य चाणक्य के द्वारा रचित हैं। उनका नाम कौटिल्य एवं विष्णुगुप्त के नाम से भी प्रसिद्ध है। उनकी रचनाएँ Chanakya सूत्र, chanakya niti, chanakya ni pothi, chanakya quotes, chanakya niti in hindi, chanakya quotes in hindi, चाणक्य, चाणक्य नीति,  चाणक्य नीति की 10 बातें,  चाणक्य नीति की बातें, चाणक्य के कड़वे वचन, चाणक्य नीति स्त्री, चाणक्य नीति की 100 बातें,  चाणक्य विचार इन हिंदी, चाणक्य नीति सुविचार, चाणक्य नीति जीवन जीने की, सुविचार चाणक्य के कड़वे वचन, sanskrit shlok, shlok,sanskrit, sanskrit shlok,sanskrit quotes,shlok in sanskrit, sanskrit thought, sanskrit slokas,संस्कृत श्लोक,श्लोक,छोटे संस्कृत श्लोक, आदि के रूप में चर्चित एवं प्रसिद्ध है । 

चाणक्य का कालातीत प्रभाव  :

हजारों वर्षों के उपरांत भी उनमें वही ताजगी और उपयोगिता है। अतः वे आज भी उतने ही प्रासंगिक बने हुए हैं जितने वे तब थे जब वे लिखे गये थे। संस्कृत में रचित होने के कारण उनमें कालांतर के प्रभाव को स्पष्टतः नहीं देखा जाता है क्योंकि संस्कृत भाषा का सर्वश्रेष्ठ व्याकरण उसके अस्तित्व एवं गुणवत्ता के साथ ही उसके प्रभाव कि भी सुरक्षा करता है। ये अत्यंत ज्ञानवर्धक, पठनीय एवं माननीय हैं। ये जीवन‌ के अनेक चौराहों पर हमारा मार्गदर्शन करते हैं जब सब ओर अंधकार छा जाने की प्रतीति होती है।

About Chanakya (चाणक्य के बारे में) :

 चाणक्य का प्रभाव प्राचीन भारत से परे तक फैला हुआ है, क्योंकि शासन कला और शासन पर उनके विचारों का दुनिया भर के विद्वानों और नीति निर्माताओं द्वारा अध्ययन और सम्मान किया जाता है।  राजनीति के प्रति उनका व्यावहारिक दृष्टिकोण और राज्य और उसके नागरिकों के कल्याण पर उनका जोर उन्हें एक कालातीत व्यक्ति बनाता है जिनकी बुद्धि समय और स्थान की सीमाओं से परे है।

 चाणक्यनीतिदर्पण – 16.4

चाणक्यनीतिदर्पण –चाणक्य नीति दर्पण मूलत: संस्कृत (Sanskrit) में संस्कृत सुभाषितों के रूप में, काव्यात्मक एवं श्लोकों  के रूप में लिखा हुआ ग्रंथ है। इसके रचनाकार आचार्य चाणक्य हैं। उनके ये संस्कृत श्लोक चाणक्य नीति के नाम से संसार भर में प्रसिद्ध हैं। यहां पर यह श्लोक देवनागरी लिपि एवं  रोमन लिपि में भी दिए गए हैं एवं उनके अर्थ हिंदी देवनागरी एवं अंग्रेजी में रोमन लिपि में भी दिये गये हैं। जिससे विदेशों में रहने वाले भारतीय जो देवनागरी से परिचित नहीं हैं सनातन ग्रंथों के ज्ञान से लाभान्वित हो सकें।
चाणक्यनीतिदर्पण –नीतिशास्त्रसूत्र: This title combines the Sanskrit words “नीतिशास्त्र” (ethics) and “सूत्र” (aphorism) to create a title that suggests that the Chanakya Nitidarpana is a collection of aphorisms on ethical conduct.

अथ षोड़शोऽध्यायः ॥ 16 ॥

atha ṣōḍa़śō’dhyāyaḥ ॥ 16 ॥

ग्रन्थ का नाम : चाणक्यनीतिदर्पण,  रचनाकार – आचार्य चाणक्य,   अध्याय – 16   श्लोक-  16-20
वरंप्राणपरित्यागो मानभंगेनजीवनात् ॥ 
प्राणत्यागेक्षणंदुःखं मानभंगेदिनेदिने ॥१६॥

अर्थ - मान भंग पूर्वक जीने से प्राण का त्याग श्रेष्ठ है। प्राण त्याग के समय क्षण भर दुःख होता है मान के नाश होने पर दिन दिन ॥ १६ ॥

varaṁprāṇaparityāgō mānabhaṁgēnajīvanāt ॥ 
prāṇatyāgēkṣaṇaṁduḥkhaṁ mānabhaṁgēdinēdinē ॥16॥

Meaning: Sacrifice of life is better than living a life of dishonor. At the time of sacrificing one's life, one feels sad for a moment and day after day when one's honor is destroyed. 16 ॥

प्रियवाक्यप्रदानेन सर्वेतुष्यंतिजन्तवः ॥ 
तस्मात्तदेववक्तव्यं वचने का दरिद्रता ॥ १७ ॥

अर्थ - मधुर वचन के बोलने से सब जीव संतुष्ट होते हैं, इस कारण उसी का बोलना योग्य है, वचन में दरिद्रता क्या ॥ १७ ॥

priyavākyapradānēna sarvētuṣyaṁtijantavaḥ ॥ 
tasmāttadēvavaktavyaṁ vacanē kā daridratā ॥ 17 ॥

Meaning - All living beings are satisfied by speaking sweet words, that is why it is worth speaking, there is no poverty in words.  ।। 17 ॥

संसारकूटवृक्षस्य द्वेफलेअमृतोपमे ॥ 
सुभाषितंचसुस्वादुसंगतिः सुजनेजने ॥ १८ ॥

अर्थ - संसार रूप कूट वृक्ष के दो ही फल हैं,  रसयुक्त प्रियवचन और सज्जन के साथ संगति ॥ १८॥

saṁsārakūṭavr̥kṣasya dvēphalēamr̥tōpamē ॥ 
subhāṣitaṁcasusvādusaṁgatiḥ sujanējanē ॥ 18 ॥

Meaning - The worldly form of Koota tree has only two fruits, sweet words and company with good people. ।।18॥

बहुजन्मसुचाभ्यस्तंदानमध्ययनंतपः ॥ 
तेनैवाभ्यासयोगेनदेहमीचा क्ष्यस्यतेपुनः॥१९

अर्थ - जो जन्म जन्म दान, पढना, तप, इनका अभ्यास किया जाता है, उस अभ्यास के योग से देह का अभ्यास फिर फिर करता है ॥ १९ ॥

bahujanmasucābhyastaṁdānamadhyayanaṁtapaḥ ॥ 
tēnaivābhyāsayōgēnadēhamīcā kṣyasyatēpunaḥ॥19 ॥

Meaning - The body is practiced again and again due to the practice of charity, study, penance etc. in every birth. 19 ॥

पुस्तकेषुचयाविद्या परहस्तेषुयद्धनम् ॥ 
उत्पन्नेषुचकार्येषु नसा विद्यांनतद्धनम् ॥२०॥
अर्थ - जो विद्या पुस्तकों में रहती है और दूसरों के हाथों में जो धन रहता है, काम पड़ जाने पर न विद्या है न वह धन काम आता  है ॥

pustakēṣucayāvidyā parahastēṣuyaddhanam ॥ 
utpannēṣucakāryēṣu nasā vidyāṁnataddhanam ॥20॥

Meaning - The knowledge that remains in books and the money that remains in the hands of others, when needed, is neither knowledge nor that money is of any use.
इतिवृद्धचाणक्ये पोडशोऽध्यायः ॥ १६ ॥
itivr̥ddhacāṇakyē pōḍaśō’dhyāyaḥ ॥ 16 ॥

चाणक्य की प्रसिद्धि : 

ये संस्कृत श्लोक आचार्य चाणक्य के द्वारा रचित हैं। उनका नाम कौटिल्य एवं विष्णुगुप्त के नाम से भी प्रसिद्ध है। उनकी रचनाएँ Chanakya सूत्र, chanakya niti, chanakya ni pothi, chanakya quotes, chanakya niti in hindi, chanakya quotes in hindi, चाणक्य, चाणक्य नीति,  चाणक्य नीति की 10 बातें,  चाणक्य नीति की बातें, चाणक्य के कड़वे वचन, चाणक्य नीति स्त्री, चाणक्य नीति की 100 बातें,  चाणक्य विचार इन हिंदी, चाणक्य नीति सुविचार, चाणक्य नीति जीवन जीने की, सुविचार चाणक्य के कड़वे वचन, sanskrit shlok, shlok,sanskrit, sanskrit shlok,sanskrit quotes,shlok in sanskrit, sanskrit thought, sanskrit slokas,संस्कृत श्लोक,श्लोक,छोटे संस्कृत श्लोक, आदि के रूप में चर्चित एवं प्रसिद्ध है । 

चाणक्य का कालातीत प्रभाव  :

हजारों वर्षों के उपरांत भी उनमें वही ताजगी और उपयोगिता है। अतः वे आज भी उतने ही प्रासंगिक बने हुए हैं जितने वे तब थे जब वे लिखे गये थे। संस्कृत में रचित होने के कारण उनमें कालांतर के प्रभाव को स्पष्टतः नहीं देखा जाता है क्योंकि संस्कृत भाषा का सर्वश्रेष्ठ व्याकरण उसके अस्तित्व एवं गुणवत्ता के साथ ही उसके प्रभाव कि भी सुरक्षा करता है। ये अत्यंत ज्ञानवर्धक, पठनीय एवं माननीय हैं। ये जीवन‌ के अनेक चौराहों पर हमारा मार्गदर्शन करते हैं जब सब ओर अंधकार छा जाने की प्रतीति होती है।

About Chanakya (चाणक्य के बारे में) :

 चाणक्य का प्रभाव प्राचीन भारत से परे तक फैला हुआ है, क्योंकि शासन कला और शासन पर उनके विचारों का दुनिया भर के विद्वानों और नीति निर्माताओं द्वारा अध्ययन और सम्मान किया जाता है।  राजनीति के प्रति उनका व्यावहारिक दृष्टिकोण और राज्य और उसके नागरिकों के कल्याण पर उनका जोर उन्हें एक कालातीत व्यक्ति बनाता है जिनकी बुद्धि समय और स्थान की सीमाओं से परे है।

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