Ram aayenge to angana sajaungi lyrics / (राम आएँगे तो अंगना सजाऊँगी)
मेरी झोपड़ी के भाग,आज जाग जाएँगे, राम आएँगे, राम आएँगे आएँगे,राम आएँगे, मेरी झोपडी के भाग,आज जाग जाएँगे, राम आएँगे ॥
राम आएँगे तो,अंगना सजाऊँगी, दीप जलाके,दिवाली मनाऊँगी, मेरे जन्मो के सारे,पाप मिट जाएँगे, राम आएँगे, मेरी झोपडी के भाग,आज जाग जाएँगे, राम आएँगे ॥
राम झूलेंगे तो,पालना झुलाऊँगी, मीठे मीठे मैं,भजन सुनाऊँगी, मेरी जिंदगी के,सारे दुःख मिट जाएँगे, राम आएँगे, मेरी झोपडी के भाग,आज जाग जाएँगे, राम आएँगे ॥मेरा जनम सफल,हो जाएगा, तन झूमेगा और,मन गीत गाएगा, राम सुन्दर मेरी,किस्मत चमकाएंगे, राम आएँगे, मेरी झोपडी के भाग,आज जाग जाएँगे, राम आएँगे ॥
Ram aayenge to angana sajaungi lyrics In English
[Intro] Meri jhopdi ke bhaag aaj khul jayenge, Ram ayenge Meri jhopdi ke bhaag aaj khul jayenge, Ram ayenge Ram ayenge-ayenge, Ram ayenge Ram ayenge-ayenge, Ram ayenge
[Chorus] Meri jhopdi ke bhaag aaj khul jayenge, Ram ayenge Meri jhopdi ke bhaag aaj khul jayenge, Ram ayenge [Instrumental-break] [Verse 1] Ram aayenge toh angana sajaungi Deep jala ke Diwali main manaungi Ram aayenge toh angana sajaungi Deep jala ke Diwali main manaungi [Chorus] Mеre janmon ke saare paap mitt jayеnge, Ram ayenge Meri jhopdi ke bhaag aaj khul jayenge, Ram ayenge [Verse 2] Ram jhulenge toh paalna jhulaungi Meethe-meethe main Bhajan sunaungi Ram jhulenge toh paalna jhulaungi Meethe-meethe main Bhajan sunaungi [Chorus] Meri zindagi ke saare dukh mitt jayenge, Ram ayenge Meri jhopdi ke bhaag aaj khul jayenge, Ram ayenge [Verse 3] Main toh ruchi-ruchi Bhog lagaungi Maakhan-mishri main Ram ko khilaungi Main toh ruchi-ruchi Bhog lagaungi Maakhan-mishri main Ram ko khilaungi [Chorus] Pyari-Pyari Radhe, Pyare shyam sang aayenge, Ram ayenge Ram ayenge-ayenge, Ram ayenge Ram ayenge-ayenge, Ram ayenge [Outro] Meri jhopdi ke bhaag aaj khul jayenge, Ram ayenge Meri jhopdi ke bhaag aaj khul jayenge, Ram ayenge
माता शबरी की कथा(शबरी कौन हैं ?)
बात उस वक्त की हैं जब भगवान् श्री राम का जन्म भी नहीं हुआ था. भील जाति के एक कबीले जिसके राजा(मुखिया) अज थे. अज के घर में एक कन्या का जन्म हुआ जिसका नाम श्रमणा था. श्रमणा, शबरी का ही दूसरा नाम हैं. शबरी की माता का नाम – इन्दुमति था. शबरी की जाति – शबर थी, जो कि भील से सम्बंधित थी|शबरी बचपन में पक्षियों से अलौकिक बातें किया करती थी, जो सभी के लिए आश्चर्य का विषय था|धीरे शबरी बड़ी हुई, लेकिन उसकी कुछ हरकते अज और इंदुमति की समझ से परे थे|
समय रहते शबरी के बारे में उसके माता पिता ने किसी ब्राह्मण से पुछा की वह वैराग्य की बातें करती हैं. ब्राह्मण ने सलाह दी की इसका विवाह करवा दो|राजा अज और भीलरानी इन्दुमति ने शबरी के विवाह के लिए एक बाड़े में पशु पक्षियों को जमा कर दिए, फिर जब इन्दुमति शबरी के बाल बना रही थी तो शबरी ने पुछा कि – माँ हमारे बाड़े में इतने पशु पक्षी क्यों हैं? तब इंदुमती बताती हैं, ये तुम्हारे विवाह की दावत के लिए हैं, तुम्हारे विवाह के दिन इन पशु पक्षियों का विशाल भोज तैयार किया जायेगा|
शबरी (श्रमणा) को यह बात कुछ ठीक नहीं लगी, मेरे विवाह के लिए इतने जीवो का बलिदान नहीं देने दूंगी. अगर विवाह के लिए इतने जीवों की बलि दी जाएगी तो मैं विवाह ही नहीं करुँगी. श्रमणा ने रात्रि में सभी पशु पक्षियों को आज़ाद कर दिया, जब श्रमणा(शबरी) बाड़े के किवाड़ को खोल रही थी तो, उसको किसी ने देख लिया. इस बात से शबरी डर गयी. शबरी वहां से भाग निकली. शबरी भागते भागते ऋषिमुख पर्वत पर पहुँच गयी, जहाँ पर 10,000 ऋषि रहते थे.
इसके बावजूद शबरी छुपते हुए कुछ दिनों तक, जब तक वह पकड़ी नहीं गयी, रोज सवेरे ऋषियों के आश्रम में आने वाले पत्तों को साफ कर देती थी, और हवन के लिए सुखी लकड़ियों का बंदोबस्त भी कर देती, बड़े ही भाव से शबरी सविंधाओ से लकड़ियों को ऋषियों के हवन कुण्ड के पास रख देती थी. कुछ दिनों तक ऋषि समझ नही पाए, कि कौन हैं जो, उनके सारे नित्य के काम निपटा रहे हैं? कही कोई माया तो नहीं हैं. फिर जब ऋषियों ने अगले दिन सवेरे जल्दी शबरी को देखा तो उन्होंने शबरी को पकड लिया.
ऋषियों ने शबरी से उसका परिचय पुछा तो शबरी ने बताया की वह एक भीलनी हैं, एक ऋषि, ऋषि मतंग ने शबरी को अपनी बेटी कहकर उसको एक कुटिया में शरण दी, और सेवा करने को कहा. समय बीतता गया, मतंग ऋषि बूढ़े हो गए. मतंग ऋषि ने घोषणा की – अब मैं अपनी देह छोड़ना चाहता हूँ. तब शबरी ने कहा कि एक पिता को मैं वहां पर छोड़कर आयी, और आज आप भी मुझे छोड़कर जा रहे हैं, अब मेरा कौन ख्याल रखेगा?
मतंग ऋषि ने कहा – बेटी तुम्हारा ख्याल अब राम रखेंगे. शबरी सरलता से कहती हैं – राम कौन हैं? और मैं उन्हें कहाँ ढूढून्गी. बेटी तुम्हे उनको खोजने की जरुरत नहीं हैं. वो स्वयं तुम्हारी कुटिया पर चलकर आयेंगे. शबरी ने मतंग ऋषि के इस वचन को पकड़ लिया कि राम आयेंगे. शबरी रोज भगवान् के लिए फूल बिछा कर रखती, उनके लिए फल तोड़कर लाती, और पूरे दिन भगवान् श्री राम का इंतजार करती. इंतजार करते करते शबरी बूढी हो गई, लेकिन अब तक राम नहीं आये. फिर एक दिन आ ही गया – जब शबरी के वर्षों का इंतज़ार खत्म होने वाला था. शबरी ने फूल बिछा कर रखे थे.
हिंदी दिवस पर कविता(hindi Diwas Par Kavita) 14 सितंबर को ‘हिन्दी दिवस’ मनाया जाता है। संवैधानिक रूप से हिंदी को राजभाषा का दर्जा प्राप्त है किंतु सरकारों ने उसे उसका प्रथम स्थान न देकर अन्यत्र धकेल दिया यह दुखदाई है। हिंदी को राजभाषा के रूप में देखना और हिंदी दिवस के रूप में उसका सम्मान… Read more: हिंदी दिवस पर कविता(hindi Diwas Par Kavita)
पं.माखनलाल चतुर्वेदी कैदी और कोकिला 1क्या गाती हो?क्यों रह-रह जाती हो? कोकिल बोलो तो ! क्या लाती हो? सन्देशा किसका है? कोकिल बोलो तो ! 2ऊँची काली दीवारों के घेरे में, डाकू, चोरों, बटमारों के डेरे में, जीने को देते नहीं पेट भर खाना, मरने भी देते नहीं, तड़प रह जाना ! जीवन पर अब दिन-रात कड़ा पहरा है, शासन है, या तम का… Read more: कैदी और कोकिला/
पुष्प की अभिलाषा पुष्प की अभिलाषा /पं.माखनलाल चतुर्वेदी चाह नहीं, मैं सुरबाला के गहनों में गूँथा जाऊँ।चाह नहीं, प्रेमी-माला में बिंध प्यारी को ललचाऊँ॥चाह नहीं, सम्राटों के शव पर, हे हरि, डाला जाऊँ।चाह नहीं, देवों के सिर पर चढूँ, भाग्य पर इठलाऊँ॥मुझे तोड़ लेना वनमाली!उस पथ में देना तुम फेंक॥मातृ-भूमि पर शीश चढ़ाने।जिस पथ जावें… Read more: Pushp Ki Abhilasha
joke in hindi -जोक (Joke) का मतलब है हंसी-मजाक, चुटकुला या विनोदपूर्ण बात। यह एक ऐसी कहानी या वाक्य होता है जिसे सुनकर लोग हंसते हैं। जोक्स का इस्तेमाल मनोरंजन के लिए किया जाता है और हंसी-खुशी का माहौल बनाने में मदद करते हैं।
कवि रहीम, जिन्हें अब्दुल रहीम खान-ए-खाना के नाम से भी जाना जाता है, 16वीं शताब्दी के दौरान मुगल सम्राट अकबर के दरबार में एक प्रमुख कवि और दरबारी थे। उनका जन्म 1556 में लाहौर में हुआ था, जो अब वर्तमान पाकिस्तान है। रहीम के पिता बैरम खान सम्राट अकबर के विश्वस्त सलाहकार थे।
रहीम ने उत्कृष्ट शिक्षा प्राप्त की और फ़ारसी, अरबी और संस्कृत सहित विभिन्न भाषाओं में पारंगत थे। उन्हें साहित्य और दर्शन की गहरी समझ थी, जिसने उनकी कविता को बहुत प्रभावित किया। रहीम विशेष रूप से हिंदी भाषा में अपनी दक्षता के लिए जाने जाते थे।
मुस्लिम होने के बावजूद, रहीम के कार्यों में हिंदू और इस्लामी सांस्कृतिक प्रभावों का संश्लेषण झलकता था। उन्होंने “रहीम” उपनाम से लिखा और अपने दोहों या “दोहों” के लिए प्रसिद्ध हैं जिनमें नैतिक और आध्यात्मिक संदेश थे। उनके दोहे सरल लेकिन गहन थे, वे अक्सर गहरी दार्शनिक अंतर्दृष्टि व्यक्त करने के लिए रोजमर्रा की स्थितियों और रूपकों का उपयोग करते थे।
रहीम की सबसे प्रसिद्ध साहित्यिक कृति “रहीम चालीसा” है, जो चालीस दोहों का एक संग्रह है जो नैतिक और नीतिपरक शिक्षाएँ प्रदान करता है। यह रचना पूरे भारत में लोगों द्वारा व्यापक रूप से पढ़ी और सुनाई जाती है और लोकप्रिय लोककथाओं का हिस्सा बन गई है।
साहित्य में रहीम के योगदान और भाषा के कुशल उपयोग ने उन्हें हिंदू और मुस्लिम दोनों से मान्यता और सम्मान दिलाया। उनका सम्राट अकबर के साथ घनिष्ठ संबंध था और मुगल दरबार में उनका बहुत सम्मान किया जाता था। अकबर की मृत्यु के बाद, रहीम ने सम्राट जहाँगीर के अधीन काम करना जारी रखा।
कवि रहीम का जीवन केवल काव्य और साहित्य पर केन्द्रित नहीं था। वह प्रशासनिक पदों पर भी रहे और अपनी सत्यनिष्ठा तथा निष्पक्षता के लिए जाने जाते थे। अपनी उच्च स्थिति के बावजूद, रहीम विनम्र और दयालु थे, अक्सर गरीबों और वंचितों की मदद करने के लिए अपने प्रभाव का उपयोग करते थे।
एक कवि और दार्शनिक के रूप में कवि रहीम की विरासत आज भी पीढ़ियों को प्रेरित करती है। उनके दोहे और दोहे लोकप्रिय बने हुए हैं और उनके कालातीत ज्ञान के लिए मनाए जाते हैं। रहीम की अपनी कविता के माध्यम से सांस्कृतिक विभाजन को पाटने की क्षमता और उनके गुणों का अवतार उन्हें भारतीय साहित्य और इतिहास में एक महत्वपूर्ण व्यक्ति बनाता है।
जीवन के कुछ तथ्य
रहीम जब 5 वर्ष के थे, उसी समय गुजरात के पाटन नगर में (1561 ई.) इनके पिता की हत्या कर दी गयी । इनका पालन-पोषण स्वयं अकबर की देख-रेख में हुआ।
■ इनकी कार्यक्षमता से प्रभावित होकर अकबर ने 1572 ई. में गुजरात की चढ़ाई के अवसर पर इन्हें पाटन की जागीर प्रदान की। अकबर के शासनकाल में उनकी निरन्तर पदोन्नति होती रही। ■ 1576 ई. में गुजरात विजय के बाद इन्हें गुजरात की सूबेदारी मिली। ■ 1579 ई. में इन्हें ‘मीर अर्जु’ का पद प्रदान किया गया। ■ 1583 ई. में इन्होंने बड़ी योग्यता से गुजरात के उपद्रव का दमन किया। ■ अकबर ने प्रसन्न होकर 1584 ई. में इन्हें ख़ानख़ाना’ की उपाधि और पंचहज़ारी का मनसब प्रदान किया ।| ■ 1589 ई. में इन्हें ‘वकील’ की पदवी से सम्मानित किया गया। ■ 1604 ई. में शहज़ादा दानियाल की मृत्यु और अबुलफ़ज़ल के बाद इन्हें दक्षिण का पूरा अधिकार मिल गया। जहाँगीर के शासन के प्रारम्भिक दिनों में इन्हें पूर्ववत सम्मान मिलता रहा। ■ 1623 ई. में शाहजहाँ के विद्रोही होने पर इन्होंने जहाँगीर के विरुद्ध उनका साथ दिया। ■ 1625 ई. में इन्होंने क्षमा याचना कर ली और पुन: ‘ख़ानख़ाना’ की उपाधि मिली। ■ 1626 ई. में 70 वर्ष की अवस्था में इनकी मृत्यु हो गयी।
रहीम के दोहे हिंदी अर्थ सहित
1.
रहिमन धागा प्रेम का, मत तोरो चटकाय. टूटे पे फिर ना जुरे, जुरे गाँठ परी जाय||
अर्थ: रहीम कहते हैं कि प्रेम का नाता नाज़ुक होता है. इसे झटका देकर तोड़ना उचित नहीं होता। यदि यह प्रेम का धागा एक बार टूट जाता है तो फिर इसे मिलाना कठिन होता है और यदि मिल भी जाए तो टूटे हुए धागों के बीच में गाँठ पड़ जाती है।
2.
दुःख में सुमिरन सब करे, सुख में करे न कोय | जो सुख में सुमिरन करे, तो दुःख काहे होय ||
अर्थ: दुःख में सभी लोग भगवान को याद करते हैं. सुख में कोई नहीं करता, अगर सुख में भी याद करते तो दुःख होता ही नही |
3.
रहिमन देखि बड़ेन को, लघु न दीजिए डारि. जहां काम आवे सुई, कहा करे तरवारि||
अर्थ: बड़ों को देखकर छोटों को भगा नहीं देना चाहिए। क्योंकि जहां छोटे का काम होता है वहां बड़ा कुछ नहीं कर सकता। जैसे कि सुई के काम को तलवार नहीं कर सकती।
अर्थ: रहीम कहते हैं की आंसू नयनों से बहकर मन का दुःख प्रकट कर देते हैं। सत्य ही है कि जिसे घर से निकाला जाएगा वह घर का भेद दूसरों से कह ही देगा.
5.
जैसी परे सो सहि रहे, कहि रहीम यह देह, धरती ही पर परत है, सीत घाम औ मेह||
अर्थ: रहीम कहते हैं कि जैसी इस देह पर पड़ती है – सहन करनी चाहिए, क्योंकि इस धरती पर ही सर्दी, गर्मी और वर्षा पड़ती है. अर्थात जैसे धरती शीत, धूप और वर्षा सहन करती है, उसी प्रकार शरीर को सुख-दुःख सहन करना चाहिए|
6.
बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर, पंथी को छाया नहीं, फल लागे अति दूर |
अर्थ: बड़े होने का यह मतलब नहीं हैं की उससे किसी का भला हो। जैसे खजूर का पेड़ तो बहुत बड़ा होता हैं लेकिन उसका फल इतना दूर होता है की तोड़ना मुश्किल का कम है | rahim ke dohe in hindi
7.
दोनों रहिमन एक से, जों लों बोलत नाहिं। जान परत हैं काक पिक, रितु बसंत के माहिं||
अर्थ: कौआ और कोयल रंग में एक समान होते हैं। जब तक ये बोलते नहीं तब तक इनकी पहचान नहीं हो पाती। लेकिन जब वसंत ऋतु आती है तो कोयल की मधुर आवाज़ से दोनों का अंतर स्पष्ट हो जाता है|
8.
समय पाय फल होत है, समय पाय झरी जात। सदा रहे नहिं एक सी, का रहीम पछितात||
अर्थ: रहीम कहते हैं कि उपयुक्त समय आने पर वृक्ष में फल लगता है। झड़ने का समय आने पर वह झड़ जाता है। सदा किसी की अवस्था एक जैसी नहीं रहती, इसलिए दुःख के समय पछताना व्यर्थ है।
अर्थ: यदि आपका प्रिय सौ बार भी रूठे, तो भी रूठे हुए प्रिय को मनाना चाहिए,क्योंकि यदि मोतियों की माला टूट जाए तो उन मोतियों को बार बार धागे में पिरो लेना चाहिए।
10.
निज कर क्रिया रहीम कहि सीधी भावी के हाथ पांसे अपने हाथ में दांव न अपने हाथ||
अर्थ: रहीम कहते हैं कि अपने हाथ में तो केवल कर्म करना ही होता है सिद्धि तो भाग्य से ही मिलती है जैसे चौपड़ खेलते समय पांसे तो अपने हाथ में रहते हैं पर दांव क्या आएगा यह अपने हाथ में नहीं होता।
11.
बानी ऐसी बोलिये, मन का आपा खोय | औरन को सीतल करै, आपहु सीतल होय ||
अर्थ: अपने अंदर के अहंकार को निकालकर ऐसी बात करनी चाहिए जिसे सुनकर दुसरों को और खुद को ख़ुशी हो।
12.
खीरा सिर ते काटि के, मलियत लौंन लगाय। रहिमन करुए मुखन को, चाहिए यही सजाय||
अर्थ: खीरे का कडुवापन दूर करने के लिए उसके ऊपरी सिरे को काटने के बाद नमक लगा कर घिसा जाता है। रहीम कहते हैं कि कड़ुवे मुंह वाले के लिए – कटु वचन बोलने वाले के लिए यही सजा ठीक है।
13.
रहिमन रीति सराहिए, जो घट गुन सम होय भीति आप पै डारि के, सबै पियावै तोय||
अर्थ: रहीम कहते हैं कि उस व्यवहार की सराहणा की जानी चाहिए जो घड़े और रस्सी के व्यवहार के समान हो घडा और रस्सी स्वयं जोखिम उठा कर दूसरों को जल पिलाते हैं जब घडा कुँए में जाता है तो रस्सी के टूटने और घड़े के टूटने का खतरा तो रहता ही है।
14.
संपत्ति भरम गंवाई के हाथ रहत कछु नाहिं ज्यों रहीम ससि रहत है दिवस अकासहि माहिं||
अर्थ: जिस प्रकार दिन में चन्द्रमा आभाहीन हो जाता है उसी प्रकार जो व्यक्ति किसी व्यसन में फंस कर अपना धन गँवा देता है वह निष्प्रभ हो जाता है।
अर्थ: माघ मास आने पर टेसू का वृक्ष और पानी से बाहर पृथ्वी पर आ पड़ी मछली की दशा बदल जाती है। इसी प्रकार संसार में अपने स्थान से छूट जाने पर संसार की अन्य वस्तुओं की दशा भी बदल जाती है. मछली जल से बाहर आकर मर जाती है वैसे ही संसार की अन्य वस्तुओं की भी हालत होती है।
16.
रहिमन निज मन की बिथा, मन ही राखो गोय। सुनी इठलैहैं लोग सब, बांटी न लेंहैं कोय||
अर्थ: रहीम कहते हैं की अपने मन के दुःख को मन के भीतर छिपा कर ही रखना चाहिए। दूसरे का दुःख सुनकर लोग इठला भले ही लें, उसे बाँट कर कम करने वाला कोई नहीं होता।
17.
वरू रहीम कानन भल्यो वास करिय फल भोग बंधू मध्य धनहीन ह्वै, बसिबो उचित न योग||
अर्थ: रहीम कहते हैं कि निर्धन होकर बंधु-बांधवों के बीच रहना उचित नहीं है इससे अच्छा तो यह है कि वन मैं जाकर रहें और फलों का भोजन करें।
18.
पावस देखि रहीम मन, कोइल साधे मौन। अब दादुर वक्ता भए, हमको पूछे कौन||
अर्थ: बारिश के मौसम को देखकर कोयल और रहीम के मन ने मौन साध लिया हैं। अब तो मेंढक ही बोलने वाले हैं तो इनकी सुरीली आवाज को कोई नहीं पूछता, इसका अर्थ: यह हैं की कुछ अवसर ऐसे आते हैं जब गुणवान को चुप रहना पड़ता हैं। कोई उनका आदर नहीं करता और गुणहीन वाचाल व्यक्तियों का ही बोलबाला हो जाता हैं |
19.
रहिमन विपदा हू भली, जो थोरे दिन होय। हित अनहित या जगत में, जान परत सब कोय||
अर्थ: रहीम कहते हैं कि यदि विपत्ति कुछ समय की हो तो वह भी ठीक ही है, क्योंकि विपत्ति में ही सबके विषय में जाना जा सकता है कि संसार में कौन हमारा हितैषी है और कौन नहीं।
20.
वे रहीम नर धन्य हैं, पर उपकारी अंग। बांटन वारे को लगे, ज्यों मेंहदी को रंग||
अर्थ: रहीम कहते हैं कि वे लोग धन्य हैं जिनका शरीर सदा सबका उपकार करता है। जिस प्रकार मेंहदी बांटने वाले के अंग पर भी मेंहदी का रंग लग जाता है, उसी प्रकार परोपकारी का शरीर भी सुशोभित रहता है.
21.
ओछे को सतसंग रहिमन तजहु ज्यों अंगार । तातो जारै अंग सीरै पै कारौ लगै||
अर्थ: ओछे मनुष्य का साथ छोड़ देना चाहिए। हर अवस्था में उससे हानि होती है – जैसे अंगार जब तक गर्म रहता है तब तक शरीर को जलाता है और जब ठंडा कोयला हो जाता है तब भी शरीर को काला ही करता है|
22.
वृक्ष कबहूँ नहीं फल भखैं, नदी न संचै नीर परमारथ के कारने, साधुन धरा सरीर।
अर्थ: वृक्ष कभी अपने फल नहीं खाते, नदी जल को कभी अपने लिए संचित नहीं करती, उसी प्रकार सज्जन परोपकार के लिए देह धारण करते हैं।
23.
लोहे की न लोहार की, रहिमन कही विचार जा हनि मारे सीस पै, ताही की तलवार||
अर्थ: रहीम विचार करके कहते हैं कि तलवार न तो लोहे की कही जाएगी न लोहार की, तलवार उस वीर की कही जाएगी जो वीरता से शत्रु के सर पर मार कर उसके प्राणों का अंत कर देता है।
24.
तासों ही कछु पाइए, कीजे जाकी आस रीते सरवर पर गए, कैसे बुझे पियास||
अर्थ: जिससे कुछ पा सकें, उससे ही किसी वस्तु की आशा करना उचित है, क्योंकि पानी से रिक्त तालाब से प्यास बुझाने की आशा करना व्यर्थ है।
25.
रहिमन नीर पखान, बूड़े पै सीझै नहीं तैसे मूरख ज्ञान, बूझै पै सूझै नहीं
अर्थ: जिस प्रकार जल में पड़ा होने पर भी पत्थर नरम नहीं होता उसी प्रकार मूर्ख व्यक्ति की अवस्था होती है ज्ञान दिए जाने पर भी उसकी समझ में कुछ नहीं आता।
26.
साधु सराहै साधुता, जाती जोखिता जान रहिमन सांचे सूर को बैरी कराइ बखान||
अर्थ: रहीम कहते हैं कि इस बात को जान लो कि साधु सज्जन की प्रशंसा करता है यति योगी और योग की प्रशंसा करता है पर सच्चे वीर के शौर्य की प्रशंसा उसके शत्रु भी करते हैं।
27.
राम न जाते हरिन संग से न रावण साथ जो रहीम भावी कतहूँ होत आपने हाथ
अर्थ: रहीम कहते हैं कि यदि होनहार अपने ही हाथ में होती, यदि जो होना है उस पर हमारा बस होता तो ऐसा क्यों होता कि राम हिरन के पीछे गए और सीता का हरण हुआ। क्योंकि होनी को होना था – उस पर हमारा बस न था न होगा, इसलिए तो राम स्वर्ण मृग के पीछे गए और सीता को रावण हर कर लंका ले गया।
28.
तरुवर फल नहिं खात है, सरवर पियहि न पान। कहि रहीम पर काज हित, संपति सँचहि सुजान |
अर्थ: रहीम कहते हैं कि वृक्ष अपने फल स्वयं नहीं खाते हैं और सरोवर भी अपना पानी स्वयं नहीं पीता है। इसी तरह अच्छे और सज्जन व्यक्ति वो हैं जो दूसरों के कार्य के लिए संपत्ति को संचित करते हैं।
अर्थ: एक को साधने से सब सधते हैं। सब को साधने से सभी के जाने की आशंका रहती है – वैसे ही जैसे किसी पौधे के जड़ मात्र को सींचने से फूल और फल सभी को पानी प्राप्त हो जाता है और उन्हें अलग अलग सींचने की जरूरत नहीं होती है।
अर्थ: सच्चा मित्र वही है, जो विपदा में साथ देता है। वह किस काम का मित्र, जो विपत्ति के समय अलग हो जाता है? मक्खन मथते-मथते रह जाता है, किन्तु मट्ठा दही का साथ छोड़ देता है।
32.
रहिमन’ वहां न जाइये, जहां कपट को हेत | हम तो ढारत ढेकुली, सींचत अपनो खेत ||
अर्थ: ऐसी जगह कभी नहीं जाना चाहिए, जहां छल-कपट से कोई अपना मतलब निकालना चाहे। हम तो बड़ी मेहनत से पानी खींचते हैं कुएं से ढेंकुली द्वारा, और कपटी आदमी बिना मेहनत के ही अपना खेत सींच लेते हैं।
33.
छिमा बड़न को चाहिये, छोटन को उतपात | कह रहीम हरी का घट्यौ, जो भृगु मारी लात ||
अर्थ: उम्र से बड़े लोगों को क्षमा शोभा देती हैं, और छोटों को बदमाशी। मतलब छोटे बदमाशी करे तो कोई बात नहीं बड़ो ने छोटों को इस बात पर क्षमा कर देना चाहिए। अगर छोटे बदमाशी करते हैं तो उनकी मस्ती भी छोटी ही होती हैं। जैसे अगर छोटा सा कीड़ा लात भी मारे तो उससे कोई नुकसान नहीं होता।
34.
बिगरी बात बने नहीं, लाख करो किन कोय। रहिमन फाटे दूध को, मथे न माखन होय||
अर्थ: मनुष्य को सोचसमझ कर व्यवहार करना चाहिए, क्योंकि किसी कारणवश यदि बात बिगड़ जाती है तो फिर उसे बनाना कठिन होता है, जैसे यदि एकबार दूध फट गया तो लाख कोशिश करने पर भी उसे मथ कर मक्खन नहीं निकाला जा सकेगा।
अर्थ: सारा संसार जानता हैं की खैरियत, खून, खाँसी, ख़ुशी, दुश्मनी, प्रेम और शराब का नशा छुपाने से नहीं छुपता हैं।
36.
आब गई आदर गया, नैनन गया सनेहि। ये तीनों तब ही गये, जबहि कहा कछु देहि॥
अर्थ: जैसे ही कोई कुछ मांगता है, आंखों का मान, सम्मान और प्यार चला जाता है।मांगने वाले व्यक्ति का अभिमान चला गया, उसकी इज्जत चली गई, और उसकी आँखों से प्यार की भावना चली गई। ये तीनों तब चले गए जब उन्होंने कहा कि यह कुछ देता है, यानी जब भी आप किसी से कुछ मांगते हैं। यानी भिक्षा मांगना अपने आप को अपनी ही नजरों से गिरा देना है, इसलिए कभी भीख मांगने जैसा कोई काम न करें।
37.
जो रहीम ओछो बढै, तौ अति ही इतराय | प्यादे सों फरजी भयो, टेढ़ों टेढ़ों जाय ||
अर्थ: लोग जब प्रगति करते हैं तो बहुत इतराते हैं। वैसे ही जैसे शतरंज के खेल में ज्यादा फ़र्जी बन जाता हैं तो वह टेढ़ी चाल चलने लता हैं।
38.
चाह गई चिंता मिटीमनुआ बेपरवाह | जिनको कुछ नहीं चाहिए, वे साहन के साह ||
अर्थ: जिन लोगों को कुछ नहीं चाहिए वों लोग राजाओं के राजा हैं, क्योकी उन्हें ना तो किसी चीज की चाह हैं, ना ही चिन्ता और मन तो पूरा बेपरवाह हैं।
39.
जे गरीब पर हित करैं, हे रहीम बड़ लोग।
कहा सुदामा बापुरो, कृष्ण मिताई जोग॥
अर्थ: रहीम दास जी कहते है जो लोग गरीबों का भला करते हैं वे सबसे बड़े होते हैं। सुदामा कहते हैं, कृष्ण के साथ दोस्ती भी एक आध्यात्मिक अभ्यास है।
40.
रहिमन पानी राखिये, बिन पानी सब सुन | पानी गये न ऊबरे, मोटी मानुष चुन ||
अर्थ: इस दोहे में रहीम ने पानी को तीन अर्थों में प्रयोग किया है, पानी का पहला अर्थ: मनुष्य के संदर्भ में है जब इसका मतलब विनम्रता से है। रहीम कह रहे हैं की मनुष्य में हमेशा विनम्रता होनी चाहिये | पानी का दूसरा अर्थ: आभा, तेज या चमक से है जिसके बिना मोटी का कोई मूल्य नहीं | पानी का तीसरा अर्थ: जल से है जिसे आटे से जोड़कर दर्शाया गया हैं। रहीमदास का ये कहना है की जिस तरह आटे का अस्तित्व पानी के बिना नम्र नहीं हो सकता और मोटी का मूल्य उसकी आभा के बिना नहीं हो सकता है, उसी तरह मनुष्य को भी अपने व्यवहार में हमेशा पानी यानी विनम्रता रखनी चाहिये जिसके बिना उसका मूल्यह्रास होता है।
41.
जो बड़ेन को लघु कहें, नहीं रहीम घटी जाहिं। गिरधर मुरलीधर कहें, कछु दुःख मानत नाहिं||
अर्थ: रहीम अपने दोहें में कहते हैं कि बड़े को छोटा कहने से बड़े का बड़प्पन नहीं घटता, क्योंकि गिरिधर (कृष्ण) को मुरलीधर कहने से उनकी महिमा में कमी नहीं होती।
42.
मन मोटी अरु दूध रस, इनकी सहज सुभाय | फट जाये तो न मिले, कोटिन करो उपाय ||
अर्थ: मन, मोती, फूल, दूध और रस जब तक सहज और सामान्य रहते हैं तो अच्छे लगते हैं लेकिन अगर एक बार वो फट जाएं तो कितने भी उपाय कर लो वो फिर से सहज और सामान्य रूप में नहीं आते।
43.
रहिमन चुप हो बैठिये, देखि दिनन के फेर | जब नाइके दिन आइहैं, बनत न लगिहैं देर ||
अर्थ: इस दोहे में रहीम का अर्थ: है की किसी भी मनुष्य को ख़राब समय आने पर चिंता नहीं करनी चाहिये क्योंकि अच्छा समय आने में देर नहीं लगती और जब अच्छा समय आता हैं तो सबी काम अपने आप होने लगते हैं।
44.
जो रहीम उत्तम प्रकृति, का करी सकत कुसंग। चन्दन विष व्यापे नहीं, लिपटे रहत भुजंग||
अर्थ: रहीम कहते हैं कि जो अच्छे स्वभाव के मनुष्य होते हैं,उनको बुरी संगति भी बिगाड़ नहीं पाती. जहरीले सांप चन्दन के वृक्ष से लिपटे रहने पर भी उस पर कोई जहरीला प्रभाव नहीं डाल पाते।
45.
रहिमन वे नर मर गये, जे कछु मांगन जाहि | उतने पाहिले वे मुये, जिन मुख निकसत नाहि ||
अर्थ: जो इन्सान किसी से कुछ मांगने के लिये जाता हैं वो तो मरे हैं ही परन्तु उससे पहले ही वे लोग मर जाते हैं जिनके मुह से कुछ भी नहीं निकलता हैं।
46.
रहिमन विपदा ही भली, जो थोरे दिन होय | हित अनहित या जगत में, जानि परत सब कोय ||
अर्थ: संकट आना जरुरी होता हैं क्योकी इसी दौरान ये पता चलता है की संसार में कौन हमारा हित और बुरा सोचता हैं।
47.
जे ग़रीब पर हित करैं, हे रहीम बड़ लोग।
कहा सुदामा बापुरो, कृष्ण मिताई जोग॥
अर्थ: जो लोग गरिब का हित करते हैं वो बड़े लोग होते हैं। जैसे सुदामा कहते हैं कृष्ण की दोस्ती भी एक साधना है।
48.
जो रहीम गति दीप की, कुल कपूत गति सोय, बारे उजियारो लगे, बढे अँधेरो होय ||
अर्थ: दिये के चरित्र जैसा ही कुपुत्र का भी चरित्र होता हैं. दोनों ही पहले तो उजाला करते हैं पर बढ़ने के साथ अंधेरा होता जाता हैं |
49.
चाह गई चिंता मिटीमनुआ बेपरवाह | जिनको कुछ नहीं चाहिये, वे साहन के साह ||
अर्थ: जिन लोगों को कुछ नहीं चाहिये वों लोग राजाओं के राजा हैं, क्योकी उन्हें ना तो किसी चीज की चाह हैं, ना ही चिन्ता और मन तो पूरा बेपरवाह हैं।
50.
बड़े काम ओछो करै, तो न बड़ाई होय। ज्यों रहीम हनुमंत को, गिरिधर कहे न कोय॥
अर्थ: :- रहीम कहते हैं कि जब ओछे ध्येय के लिए लोग बड़े काम करते हैं तो उनकी बड़ाई नहीं होती है। जब हनुमान जी ने धोलागिरी को उठाया था तो उनका नाम ‘गिरिधर’ नहीं पड़ा क्योंकि उन्होंने पर्वत राज को छति पहुंचाई थी, पर जब श्री कृष्ण ने पर्वत उठाया तो उनका नाम ‘गिरिधर’ पड़ा क्योंकि उन्होंने सर्व जन की रक्षा हेतु पर्वत को उठाया था।
51.
माली आवत देख के, कलियन करे पुकारि।
फूले फूले चुनि लिये, कालि हमारी बारि॥
अर्थ: रहीम दास जी कहते है माली को आते देख कलियाँ कहती हैं कि आज उसने फूल चुन लिए, लेकिन कल हमारी भी बारी आएगी, क्योंकि कल हम भी खिलेंगे और फूल बनेंगे।
52.
देनहार कोउ और है, भेजत सो दिन रैन।
लोग भरम हम पै धरैं, याते नीचे नैन ॥
अर्थ: रहीमदास जी कहते देने वाला भगवान है जो हमें दिन-रात दे रहा है। लेकिन लोग समझते हैं कि मैं दे रहा हूं, इसलिए दान देते समय मेरी आंखें अनजाने में शर्म से नीचे गिर जाती हैं।
53.
जे सुलगे ते बुझि गये बुझे तो सुलगे नाहि रहिमन दाहे प्रेम के बुझि बुझि के सुलगाहि ||
अर्थ: :- आग सुलग कर बुझ जाती है और बुझने पर फिर सुलगती नहीं है । प्रेम की अग्नि बुझ जाने के बाद पुनः सुलग जाती है। भक्त इसी आग में सुलगते हैं ।
54.
धनि रहीम गति मीन की जल बिछुरत जिय जाय जियत कंज तजि अनत वसि कहा भौरे को भाय ||
अर्थ: :- यहाँ बताया गया है कि मछली का प्रेम धन्य है जो जल से बिछड़ते हीं मर जाती है। भौरा का प्रेम छलावा है जो एक फूल का रस लेकर तुरंत दूसरे फूल पर जा बसता है। जो केवल अपने स्वार्थ के लिये प्रेम करता है, वह स्वार्थी है।
55.
रहिमन’ गली है सांकरी, दूजो नहिं ठहराहिं।
आपु अहै, तो हरि नहीं, हरि, तो आपुन नाहिं॥
अर्थ: रहीमदास जी कहते हैं, हृदय की गली बहुत सकरी होती है इसमें दो लोग नहीं ठहर सकते है या तो आप इसमें अहंकार को बसा ले या फिर इस्वर को
56.
अब रहीम मुसकिल परी, गाढ़े दोऊ काम।
सांचे से तो जग नहीं, झूठे मिलैं न राम ॥
अर्थ: रहीमदास जी कहते हैं, इस दुनिया में बहुत मुश्किल है अगर आप सत्य का साथ देते है है दुनिया आप से नाराज रहेंगे अगर आप इस दुन्या में झूठ बोलते है तो आपको कभी भगवान नहीं मिलेंगे।
57.
अंजन दियो तो किरकिरी, सुरमा दियो न जाय।
जिन आँखिन सों हरि लख्यो, रहिमन बलि बलि जाय॥
अर्थ: रहीमदास जी कहते हैं, इन आँखों में काजल और सुरमा लगाना व्यर्थ है जो लोग इन आँखों में ईश्वर को बसाते है वे लोग धन्य होते है
58.
उरग तुरग नारी नृपति, नीच जाति हथियार।
रहिमन इन्हें संभारिए, पलटत लगै न बार ॥
अर्थ: रहीमदास जी कहते हैं, संकट में फंसे सांप, सबसे परेशान घोड़े, पीड़ित महिला, क्रोध की आग में जलने वाले राजा, कुटिल व्यक्ति और तेज धार वाले हथियार से हमेशा दूरी बनाकर रखनी चाहिए। इन्हे पलटे देर नहीं लगती ये आपका अहित भी कर सकते है इनसे आपको सावधान रहना चाहिए।
59.
कहि रहीम संपति सगे, बनत बहुत बहु रीत।
बिपति कसौटी जे कसे, तेई सांचे मीत ॥
अर्थ: रहीमदास जी कहते हैं,जिनके पास सम्पति होती है उनके पास मित्र भी आपने आप बहुत बन जाते है लेकिन सच्चे मित्र तो वे ही हैं जो विपत्ति की कसौटी पर कसे जाने पर खरे उतरते हैं। अर्थात विपत्ति में जो साथ देता है वही सच्चा मित्र है।
60.
कहु रहीम कैसे निभै, बेर केर को संग।
वे डोलत रस आपने, उनके फाटत अंग ॥
अर्थ: रहीमदास जी कहते हैं, दो विपरीत सोच वाले व्यक्तियों की आपस में नहीं बनती हैबेर के पेड़ पर काँटे लगें तो केले का पेड़ कोमल होता है। हवा के झोंके के कारण बेर की शाखाएँ चंचलता से हिलती हैं, तो केले के पेड़ का हर हिस्सा फट जाता है।
61.
रहिमन मनहि लगाईं कै, देखि लेहू किन कोय।
नर को बस करिबो कहा, नारायन बस होय॥
अर्थ: रहीमदास जी कहते हैं, अगर आप किसी काम को लगन से करने की कोशिश करेंगे तो आप अवश्य सफल होंगे क्योकि लगन से नारायण को भी बस में भी किया जा सकता है।
62.
गुन ते लेत रहीम जन, सलिल कूप ते काढि।
कूपहु ते कहूँ होत है, मन काहू को बाढी॥
अर्थ: रहीमदास जी कहते हैं, जैसे गहरे कुएँ से बाल्टी भरकर पानी निकाला जा सकता है, वैसे ही अच्छे कर्मों से किसी के भी दिल में अपने लिए प्यार पैदा किया जा सकता है
63.
कहु रहीम केतिक रही, केतिक गई बिहाय।
माया ममता मोह परि, अन्त चले पछिताय ॥
अर्थ: रहीमदास जी कहते हैं, ज़रा सोचिए कि कितना जीवन बचा है और कितना व्यर्थ गया है क्योंकि माया, प्रेम और मोह संसार के क्षणिक सुख है लेकिन आध्यात्मिक सुख स्थायी सुख है
64.
कहा करौं बैकुंठ लै, कल्प बृच्छ की छाँह।
रहिमन ढाक सुहावनो, जो गल पीतम बाँह॥
अर्थ: रहीमदास जी कहते हैं, स्वर्ग का सुख और कल्पवृक्ष की छाया नहीं चाहिए मुझे वह ढाक का पेड़ बहुत पसंद है जहां मैं अपने प्रीतम के गले में हाथ डालकर बैठ सकता हूं।
65.
दादुर, मोर, किसान मन, लग्यौ रहै धन मांहि। पै रहीम चाकत रटनि, सरवर को कोउ नाहि ॥
कवियों मे चातक पक्षी का विरही के रूप में बड़ा ही मार्मिक और हदयग्राही चित्रण किया है। कवियों की दृष्टि में चातक की पुकार में विरह की सशक्त भावाभिव्यक्ति होती है। इस दोहे में रहीम ने चातक की पुकार को अतुलनीय बताया है।
रहीम कहते हैं, मेढ़क, मोर और किसान का मन बादलों में लगा रहता है। जैसे ही गगन में मेघ छाते हैं, इन सबमें मानो नए प्राण आ जाते हैं। मेघों के प्रति लगन की इनकी तुलना चातक से नहीं की जा सकती। मेघ देखते ही चातक का विरही मन पिया की स्मृति में व्याकुल हो जाता है। उसकी व्याकुलता से सिद्ध हो जाता है कि मेघों में जितना उसका मन लगा होता है, किसी और का नहीं।
66.
धन थोरो इज्जत बड़ी, कह रहीम का बात। जैसे कुल की कुलवधु, चिथड़न माहि समात ॥
अर्थ: रहीमदास जी कहते हैं, इज्जत धन से बड़ी होती है पैसा अगर थोड़ा है, पर इज्जत बड़ी है, तो यह कोइ निन्दनीय बात नहीं । खानदानी घर की स्त्री चिथड़े पहनकर भी अपने मान की रक्षा कर लेती हैं।
67.
प्रीतम छवि नैनन बसि, पर छवि कहां समाय ।
भरी सराय रहीम लखि, आपु पथिक फिरि जाय ॥
अर्थ: रहीमदास जी कहते हैं, आँखों में एक और छवि कैसे बस सकती है जिसमें प्रिय की सुंदर छवि बसती है।
जिन आँखों में प्रियतम की सुन्दर छबि बस गयी, वहां किसी दूसरी छबि को कैसे ठौर मिल सकता है? भरी हुई सराय को देखकर पथिक स्वयं वहां से लौट जाता है।
68.
बड़े बड़ाई ना करें, बड़ो न बोलें बोल ।
रहिमन हीरा कब कहै, लाख टका है मोल ॥
अर्थ: रहीम कहते हैं कि जिनमें बड़प्पन होता है, वो अपनी बड़ाई कभी नहीं करते। जैसे हीरा कितना भी अमूल्य क्यों न हो, कभी अपने मुँह से अपनी बड़ाई नहीं करता।
69.
नाद रीझि तन देत मृग, नर धन देत समेत ।
ते रहिमन पसु ते अधिक, रीझेहुं कछु न देत ॥
अर्थ: रहीमदास जी कहते हैं, संगीत की ध्वनि से मोहित होकर, हिरण अपने शरीर को शिकारी को सौंप देता है। और मनुष्य धन से अपना जीवन खो देता है। लेकिन वे लोग भी जानवर से मर गए, जो संतुष्ट होने पर भी कुछ नहीं देते।
70.
मान सहित विष खाय के, संभु भए जगदीस ।
बिना मान अमृत पिए, राहु कटायो सीस ॥
अर्थ: रहीमदास जी कहते हैं,आदर से जब शिव ने विष निगल लिया तो वे जगदीश कहलाए, लेकिन आदर के अभाव में राहु ने अमृत पीकर उनका सिर काट दिया गया ।
71.
को रहीम पर द्वार पै, जात न जिय सकुचात।
संपति के सब जात हैं, बिपति सबै लै जात ॥
रहीम कहते हैं कि दुनिया में ऐसा कौन-सा व्यक्ति है, जिसे दूसरे के दरवाजे पर जाते समय संकोच या झिझक नहीं होती है, लेकिन संकोच क्या करना, धनवानों के द्वार पर तो सभी जाते हैं। हकीकत तो यह है कि धनवानों के द्वार पर लोग स्वयं नहीं जाते हैं। वह तो विपत्ति है, जो उन्हें वहां लेकर जाती है।
कहने का भाव है-विपत्ति काल में ही कोई व्यक्ति धनवानों के द्वार पर जाता है। धनवान भी इस बात को जानते हैं और दरवाजे पर आए व्यक्ति को भिखारी नहीं बल्कि शरणागत समझते हैं और जो बनता है प्रेमपूर्वक देकर विदा करते हैं।
72.
जो रहीम मन हाथ है, तो मन कहुं किन जाहि।
ज्यों जल में छाया परे, काया भीजत नाहिं ॥
अर्थ: रहीमदास जी कहते हैं, जिसके मन पर नियंत्रण है, उसका शरीर कहीं भी नहीं जा सकता, भले ही वह सबसे बड़ी बुराइयों को प्राप्त कर ले। जैसे पानी में परावर्तन से शरीर भीगता नहीं है। यानी मन को साधना से शरीर स्वत: स्वस्थ हो जाता है।
73.
दीन सबन को लखत है, दीनहिं लखै न कोय।
जो रहीम दीनहिं लखत, दीनबन्धु सम होय ॥
अर्थ: रहीमदास जी कहते हैं, ग़रीबों की नज़र सब पर पड़ती है, मगर ग़रीब को कोई नहीं देखता। जो प्यार से गरीबों की परवाह करता है, उनकी मदद करता है,वह उनके लिए दीनबंधु भगवान के समान हो जाता है।
74.
दुरदिन परे रहीम कहि, भूलत सब पहिचानि।
सोच नहीं वित हानि को, जो न होय हित हानि ॥
अर्थ:रहीमदास जी कहते हैं, कि जिंदगी में जब बुरे दिन आते हैं तो हर कोई उसे पहचानना भूल जाता है। उस समय, यदि आप दयालु लोगों से सम्मान और प्यार प्राप्त करना जारी रखते हैं, तो धन खोने का दर्द कम हो जाता है।
75.
रहिमन कबहुं बड़ेन के, नाहिं गरब को लेस ।
भार धरे संसार को, तऊ कहावत सेस ॥
अर्थ:रहीमदास जी कहते हैं, कि बड़े लोग वही होते है जिनको अहंकार नहीं होता है यह सोचना गलत है कि एक अमीर आदमी बड़ा होता है आदमी बड़ा वह होता है उसे कभी किसी चीज पर गर्व नहीं होता है। सुख-दुख में सबकी सहायता करता है, सबका भला सोचता है, अर्थात् सारे जगत् का भार वहन करता है, वह शेषनाग कहलाने योग्य है।
76.
रहिमन विद्या बुद्धि नहीं, नहीं धरम जस दान ।
भू पर जनम वृथा धरै, पसु बिन पूंछ विषान ॥
रहीमदास जी कहते हैं, कि जिसके पास बुद्धि नहीं है और जिसे शिक्षा पसंद नहीं है, जिसने धर्म और दान नहीं किया है और इस दुनिया में आकर प्रसिद्धि नहीं पाई है; वह व्यक्ति व्यर्थ और पृथ्वी पर एक बोझ बनकर पैदा हुआ है । एक अनजान व्यक्ति और एक जानवर के बीच सिर्फ पूंछ का अंतर है। यानी यह व्यक्ति बिना पूंछ वाला जानवर है
77.
रहिमन पर उपकार के, करत न यारी बीच ।
मांस दियो शिवि भूप ने, दीन्हो हाड़ दधीच ॥
अर्थ: रहीमदास जी कहते हैं, कि दान करते समय स्वार्थ, मित्रता आदि के बारे में नहीं सोचना चाहिए। राजा शिव ने अपने शरीर का दान दिया और दधीचि ऋषि ने अपनी हड्डियों का दान किया। इसलिए परोपकार में अपने प्राणों की आहुति देने में संकोच नहीं करना चाहिए।
78.
धन दारा अरु सुतन , सो लग्यो है नित चित ।
नहि रहीम कोऊ लख्यो , गाढे दिन को मित॥
अर्थ: रहीमदास जी कहते हैं, कि मनुष्य को सदैव अपना मन धन, यौवन और संतान में नहीं लगाना चाहिए। क्योंकि जरूरत पड़ने पर उनमें से कोई भी आपका साथ नहीं देगा! अपना मन भगवान की भक्ति में लगाएं क्योंकि मुश्किल की घड़ी में वही आपका साथ देगा।
79.
मांगे मुकरि न को गयो , केहि न त्यागियो साथ।
मांगत आगे सुख लह्यो , ते रहीम रघुनाथ।।
अर्थ: रहीमदास जी कहते हैं, कि मनुष्य जो मांगता है वह देने से हर कोई इंकार करता है और कोई उसे नहीं देता। उस व्यक्ति में सेलोग अपना साथ भी छोड़ देते है। उस व्यक्ति से खुश रहना बेहतर है जो पूछता है कि भगवान स्वयं किस पर उदार है।
80.
रहिमन तब लगि ठहरिये, दान मान सम्मान।
घटता मान देखिये जबहि, तुरतहि करिए पयान।।
अर्थ: रहीम दास जी कहते हैं कि मनुष्य को तब तक कहीं पर रहना चाहिए जब तक उसके पास सम्मान और सेवा है। जब आप नोटिस करें कि आपके सम्मान में कमी आ रही है, तो आपको तुरंत वहां से निकल जाना चाहिए।
चाणक्य नीति दर्पण मूलत: संस्कृत (Sanskrit) में संस्कृत सुभाषितों के रूप में, काव्यात्मक एवं श्लोकों के रूप में लिखा हुआ ग्रंथ है। इसके रचनाकार आचार्य चाणक्य हैं। उनके ये संस्कृत श्लोक चाणक्य नीति के नाम से संसार भर में प्रसिद्ध हैं। यहां पर यह श्लोक देवनागरी लिपि एवं रोमन लिपि में भी दिए गए हैं एवं उनके अर्थ हिंदी देवनागरी एवं अंग्रेजी में रोमन लिपि में भी दिये गये हैं। जिससे विदेशों में रहने वाले भारतीय जो देवनागरी से परिचित नहीं हैं सनातन ग्रंथों के ज्ञान से लाभान्वित हो सकें।
अथ चतुर्थोऽध्यायः ॥ 4 ॥
atha caturthō’dhyāyaḥ ॥ 4 ॥
त्यजेत्धर्मंदयाहीनाविद्याहीनं गुरुंत्यजेत् ॥
त्यजेत्क्रोधमुखीं भार्यांनिस्नेहान्बांधवात्यजेत्।। १६।।
अर्थ - दयारहित धर्म को छोड़ देना चाहिये, विद्या विहीन गुरु का त्याग उचित है, जिसके मुंँह से क्रोध प्रगट होता हो, ऐसी भार्या को अलग करना चाहिये और बिना प्रीति बांँधवों का त्याग विहित है ॥ १६ ॥
tyajēḍarmaṁdayāhīnāvadyāhīnaṁ guruṁtyajēt ॥
tyajētkrōdhamukhīṁ bhāryāṁnisnēhānbāṁdhavātyajētū 16
Meaning - Religion without mercy should be abandoned, it is appropriate to sacrifice a Guru without knowledge, whose mouth shows anger, such a wife should be separated and it is prescribed to sacrifice those without loving ties.
।। 16 ॥
अध्वा जरा मनुष्याणां वाजिनांबन्धनं जरा ।
अमैथुनं जरा स्त्रीणां वस्त्राणाम् आतपो जरा ।।
अर्थ - मनुष्यों के लिए पैदल न चलना, घोड़ों को बाँधकर रखना, स्त्रियों के लिए असम्भोग (मैथुन न करना) और वस्त्रों के लिए धूप जरा (बुढापा) लाने का कारण होता है।
abhyājarāmanuṣyāṇāṁ vājināṁbandhanaṁjarā ॥
amathunaṁ jarāstrīṇāṁ vastrāṇāmātapōjarā ॥17॥
Meaning - For humans, not walking on foot, keeping horses tied, for women it causes asambhog (not having sex) and for clothes, sunlight causes aging.
।।17।।
कःकालःकानिमित्राणिकोदेशः कौव्ययागमौ
कस्याहं का चमेशक्तिरितिचिंत्यंमुहुर्मुहुः॥१८॥
अर्थ - किस काल में क्या करना चाहिये, मित्र कौन है, देश कौन है, लाभ व्यय क्या है, किसका मैं हूंँ, मुझमें क्या शक्ति है इन सबका बार-बार विचार करना योग्य है ॥ १८ ॥
kaḥkālaḥkānimitrāṇikōdēśaḥ kauvyayāgamau
kasyāhaṁ kā camēśaktiriticiṁtyaṁmuhurmuhuḥ॥18॥
Meaning - What should be done at what time, who is the friend, who is the country, what is the profit and expenditure, whose am I, what power do I have, it is worth thinking about all these again and again. ।।18 ॥
अग्निर्देवोद्विजातीनां मुनीनांहृदिदैवतम् ॥
प्रतिमास्वल्पबुद्दीनां सर्वत्रसमदर्शिनां ॥ १९ ॥
अर्थ - ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, (द्विजों का) उनका देवता आग्नि है। मुनियों के हृदय में देवता रहता है। अल्पबुद्धियों के लिये मूर्ति में और समदर्शियों के लिये सभी स्थानों में देवता है ॥१९॥
agnirdēvōdvijātīnāṁ munīnāṁhr̥didaivatam ॥
pratimāsvalpabuddīnāṁ sarvatrasamadarśināṁ ॥ 19 ॥
Meaning - Brahmins, Kshatriyas, Vaishyas, (dwijas) their god is Agni. God resides in the hearts of sages. For the less intelligent, there are gods( The habitats of the heaven or swarga called devta) in idols and for the wise, there are gods( The habitats of the heaven or swarga called devta) everywhere. ।।१९।।
इति चतुर्थोऽध्यायः ॥ 4 ॥
iti caturthō’dhyāyaḥ ॥ 4 ॥
ग्रन्थ का नाम : चाणक्यनीतिदर्पण, रचनाकार – आचार्य चाणक्य, अध्याय – 4 श्लोक- 16-19
चाणक्य की प्रसिद्धि :
ये संस्कृत श्लोक आचार्य चाणक्य के द्वारा रचित हैं। उनका नाम कौटिल्य एवं विष्णुगुप्त के नाम से भी प्रसिद्ध है। उनकी रचनाएँ Chanakya सूत्र, chanakya niti, chanakya ni pothi, chanakya quotes, chanakya niti in hindi, chanakya quotes in hindi, चाणक्य, चाणक्य नीति, चाणक्य नीति की 10 बातें, चाणक्य नीति की बातें, चाणक्य के कड़वे वचन, चाणक्य नीति स्त्री, चाणक्य नीति की 100 बातें, चाणक्य विचार इन हिंदी, चाणक्य नीति सुविचार, चाणक्य नीति जीवन जीने की, सुविचार चाणक्य के कड़वे वचन, sanskrit shlok, shlok,sanskrit, sanskrit shlok,sanskrit quotes,shlok in sanskrit, sanskrit thought, sanskrit slokas,संस्कृत श्लोक,श्लोक,छोटे संस्कृत श्लोक, आदि के रूप में चर्चित एवं प्रसिद्ध है ।
चाणक्य का कालातीत प्रभाव :
हजारों वर्षों के उपरांत भी उनमें वही ताजगी और उपयोगिता है। अतः वे आज भी उतने ही प्रासंगिक बने हुए हैं जितने वे तब थे जब वे लिखे गये थे। संस्कृत में रचित होने के कारण उनमें कालांतर के प्रभाव को स्पष्टतः नहीं देखा जाता है क्योंकि संस्कृत भाषा का सर्वश्रेष्ठ व्याकरण उसके अस्तित्व एवं गुणवत्ता के साथ ही उसके प्रभाव कि भी सुरक्षा करता है। ये अत्यंत ज्ञानवर्धक, पठनीय एवं माननीय हैं। ये जीवन के अनेक चौराहों पर हमारा मार्गदर्शन करते हैं जब सब ओर अंधकार छा जाने की प्रतीति होती है।
About Chanakya (चाणक्य के बारे में) :
चाणक्य का प्रभाव प्राचीन भारत से परे तक फैला हुआ है, क्योंकि शासन कला और शासन पर उनके विचारों का दुनिया भर के विद्वानों और नीति निर्माताओं द्वारा अध्ययन और सम्मान किया जाता है। राजनीति के प्रति उनका व्यावहारिक दृष्टिकोण और राज्य और उसके नागरिकों के कल्याण पर उनका जोर उन्हें एक कालातीत व्यक्ति बनाता है जिनकी बुद्धि समय और स्थान की सीमाओं से परे है।
पुष्प की अभिलाषा पुष्प की अभिलाषा /पं.माखनलाल चतुर्वेदी चाह नहीं, मैं सुरबाला के गहनों में गूँथा जाऊँ।चाह नहीं, प्रेमी-माला में बिंध प्यारी… Read more: Pushp Ki Abhilasha
आदि गुरु श्री शंकराचार्य विरचित Adi Shankara’s Bhaja Govindam Bhaj Govindam In Sanskrit Verse Only भज गोविन्दं भज गोविन्दं भजमूढमते । संप्राप्ते… Read more: भज गोविन्दं (BHAJ GOVINDAM)
गाना / Title: ऐ वतन – Ae watan Mere Watan (Raazi) चित्रपट / Film: राज़ी-(Raazi) संगीतकार / Music Director: शंकर-एहसान-लॉय-(Shankar-Ehsaan-Loy) गीतकार / yricist: गुलजार-(Gulzar) गायक / Singer(s): अरिजित सिंग-(Arijit Singh), सुनिधी चौहान-(Sunidhi Chauhan)
Ae watan, watan mere Aabaad rahe tu Ae watan, watan mere Aabaad rahe tu (Ae watan, watan mere Aabaad rahe tu)
Main jahan rahun Jahan me yaad rahey tu (Main jahan rahun Jahan me yaad rahey tu)
Ae watan, mere watan (Ae watan, mere watan)
Tu hi meri manzil Pehchan tujhi se (Tu hi meri manzil Pehchan tujhi se)
Pahunchu main jahan bhi Meri buniyad rahey tu (Pahunchu main jahan bhi Meri buniyad rahey tu)
Ae watan, watan mere Aabaad rahe tu Main jahan rahun Jahaan me yaad rahe tu Ae watan, mere watan (Ae watan, mere watan)
Tujpe koyi gam ki aanch aane nahi doon (Tujpe koyi gam ki aanch aane nahin doon)
Kurbaan meri jan tujpe shaad rahey tu (Kurbaan meri jan tujpe shaad rahey tu)
Ae watan, watan mere Aabaad rahey tu Main jahan rahun Jahaan me yaad rahey tu Ae watan, ae watan, mere watan Ae watan, mere watan Aabaad rahey tu.. Aabaad rahey tu..
ऐ वतन गाने के बारे में ऐ वतन एल्बम के ऐ वतन गाने के बोलों को साथ-साथ गाएँ। ऐ वतन एल्बम के ऐ वतन गाने को मशहूर गायिका मीनाक्षी पंचाल ने आवाज़ दी है। ऐ वतन एल्बम के ऐ वतन गाने के बोल गुलज़ार ने लिखे हैं। Gaana.com पर ऐ वतन एल्बम के ऐ वतन MP3 गाने को हाई-क्वालिटी में डाउनलोड करें और सुनें।
हिंदी दिवस पर कविता(hindi Diwas Par Kavita) 14 सितंबर को ‘हिन्दी दिवस’ मनाया जाता है। संवैधानिक रूप से हिंदी को राजभाषा का दर्जा प्राप्त है किंतु सरकारों ने उसे उसका प्रथम स्थान न देकर अन्यत्र धकेल दिया यह दुखदाई है। हिंदी को राजभाषा के रूप में देखना और हिंदी दिवस के रूप में उसका सम्मान… Read more: हिंदी दिवस पर कविता(hindi Diwas Par Kavita)
पं.माखनलाल चतुर्वेदी कैदी और कोकिला 1क्या गाती हो?क्यों रह-रह जाती हो? कोकिल बोलो तो ! क्या लाती हो? सन्देशा किसका है? कोकिल बोलो तो ! 2ऊँची काली दीवारों के घेरे में, डाकू, चोरों, बटमारों के डेरे में, जीने को देते नहीं पेट भर खाना, मरने भी देते नहीं, तड़प रह जाना ! जीवन पर अब दिन-रात कड़ा पहरा है, शासन है, या तम का… Read more: कैदी और कोकिला/
पुष्प की अभिलाषा पुष्प की अभिलाषा /पं.माखनलाल चतुर्वेदी चाह नहीं, मैं सुरबाला के गहनों में गूँथा जाऊँ।चाह नहीं, प्रेमी-माला में बिंध प्यारी को ललचाऊँ॥चाह नहीं, सम्राटों के शव पर, हे हरि, डाला जाऊँ।चाह नहीं, देवों के सिर पर चढूँ, भाग्य पर इठलाऊँ॥मुझे तोड़ लेना वनमाली!उस पथ में देना तुम फेंक॥मातृ-भूमि पर शीश चढ़ाने।जिस पथ जावें… Read more: Pushp Ki Abhilasha
joke in hindi -जोक (Joke) का मतलब है हंसी-मजाक, चुटकुला या विनोदपूर्ण बात। यह एक ऐसी कहानी या वाक्य होता है जिसे सुनकर लोग हंसते हैं। जोक्स का इस्तेमाल मनोरंजन के लिए किया जाता है और हंसी-खुशी का माहौल बनाने में मदद करते हैं।
ऐ, मेरे वतन के लोगों, तुम ख़ूब लगा लो नारा ये शुभ दिन है हम सब का, लहरा लो तिरंगा प्यारा पर मत भूलो सीमा पर वीरों ने हैं प्राण गँवाए कुछ याद उन्हें भी कर लो, कुछ याद उन्हें भी कर लो जो लौट के घर ना आए, जो लौट के घर ना आए
ऐ, मेरे वतन के लोगों, ज़रा आँख में भर लो पानी जो शहीद हुए हैं उनकी ज़रा याद करो क़ुर्बानी ऐ, मेरे वतन के लोगों, ज़रा आँख में भर लो पानी जो शहीद हुए हैं उनकी ज़रा याद करो क़ुर्बानी
जब घायल हुआ हिमालय, ख़तरे में पड़ी आज़ादी जब तक थी साँस, लड़े वो... जब तक थी साँस, लड़े वो, फिर अपनी लाश बिछा दी
संगीन पे धर कर माथा सो गए अमर बलिदानी जो शहीद हुए हैं उनकी ज़रा याद करो क़ुर्बानी
जब देश में थी दीवाली, वो खेल रहे थे होली जब हम बैठे थे घरों में... जब हम बैठे थे घरों में वो झेल रहे थे गोली
थे धन्य जवान वो अपने, थी धन्य वो उनकी जवानी जो शहीद हुए हैं उनकी ज़रा याद करो क़ुर्बानी
कोई सिख, कोई जाट, मराठा कोई सिख, कोई जाट, मराठा कोई गुरखा, कोई मद्रासी, कोई गुरखा, कोई मद्रासी सरहद पर मरने वाला... सरहद पर मरने वाला हर वीर था भारतवासी
जो ख़ून गिरा पर्वत पर वो ख़ून था हिंदुस्तानी जो शहीद हुए हैं उनकी ज़रा याद करो क़ुर्बानी
थी ख़ून से लथपथ काया फिर भी बंदूक उठा के दस-दस को एक ने मारा फिर गिर गए होश गँवा के जब अंत समय आया तो... जब अंत समय आया तो कह गए कि अब मरते हैं जब अंत समय आया तो कह गए कि अब मरते हैं ख़ुश रहना देश के प्यारों, ख़ुश रहना देश के प्यारों अब हम तो सफ़र करते हैं, अब हम तो सफ़र करते हैं
क्या लोग थे वो दीवाने, क्या लोग थे वो अभिमानी जो शहीद हुए हैं उनकी ज़रा याद करो क़ुर्बानी तुम भूल ना जाओ उनको इसिलिए कही ये कहानी जो शहीद हुए हैं उनकी ज़रा याद करो क़ुर्बानी
जय हिंद, जय हिंद की सेना जय हिंद, जय हिंद की सेना जय हिंद, जय हिंद, जय हिंद
Ae Mere Watan Ke Logon with Lyrics
Ae Mere Watan Ke Logon with Lyrics
Ae Mere Watan Ke Logon with Lyrics
Ae Mere Watan Ke Logon with Lyrics
ऐ मेरे वतन के लोगो एक हिन्दी देशभक्ति गीत है जिसे कवि प्रदीप ने लिखा था और जिसे सी॰ रामचंद्र ने संगीत दिया था। ये गीत १९६२ के चीनी आक्रमण के शहीद हुए भारतीयसैनिकों को समर्पित था।
हिंदी दिवस पर कविता(hindi Diwas Par Kavita) 14 सितंबर को ‘हिन्दी दिवस’ मनाया जाता है। संवैधानिक रूप से हिंदी को राजभाषा का दर्जा प्राप्त है किंतु सरकारों ने उसे उसका प्रथम स्थान न देकर अन्यत्र धकेल दिया यह दुखदाई है। हिंदी को राजभाषा के रूप में देखना और हिंदी दिवस के रूप में उसका सम्मान… Read more: हिंदी दिवस पर कविता(hindi Diwas Par Kavita)
पं.माखनलाल चतुर्वेदी कैदी और कोकिला 1क्या गाती हो?क्यों रह-रह जाती हो? कोकिल बोलो तो ! क्या लाती हो? सन्देशा किसका है? कोकिल बोलो तो ! 2ऊँची काली दीवारों के घेरे में, डाकू, चोरों, बटमारों के डेरे में, जीने को देते नहीं पेट भर खाना, मरने भी देते नहीं, तड़प रह जाना ! जीवन पर अब दिन-रात कड़ा पहरा है, शासन है, या तम का… Read more: कैदी और कोकिला/
पुष्प की अभिलाषा पुष्प की अभिलाषा /पं.माखनलाल चतुर्वेदी चाह नहीं, मैं सुरबाला के गहनों में गूँथा जाऊँ।चाह नहीं, प्रेमी-माला में बिंध प्यारी को ललचाऊँ॥चाह नहीं, सम्राटों के शव पर, हे हरि, डाला जाऊँ।चाह नहीं, देवों के सिर पर चढूँ, भाग्य पर इठलाऊँ॥मुझे तोड़ लेना वनमाली!उस पथ में देना तुम फेंक॥मातृ-भूमि पर शीश चढ़ाने।जिस पथ जावें… Read more: Pushp Ki Abhilasha
joke in hindi -जोक (Joke) का मतलब है हंसी-मजाक, चुटकुला या विनोदपूर्ण बात। यह एक ऐसी कहानी या वाक्य होता है जिसे सुनकर लोग हंसते हैं। जोक्स का इस्तेमाल मनोरंजन के लिए किया जाता है और हंसी-खुशी का माहौल बनाने में मदद करते हैं।
मेरे देश की धरती सोना उगले, उगले हीरे मोती मेरे देश की धरती ...
बैलों के गले में जब घुंघरू जीवन का राग सुनाते हैं ग़म कोस दूर हो जाता है खुशियों के कंवल मुस्काते हैं सुनके रहट की आवाज़ें यूँ लगे कहीं शहनाई बजे आते ही मस्त बहारों के दुल्हन की तरह हर खेत सजे, मेरे देश ...
जब चलते हैं इस धरती पे हल ममता अंगड़ाइयाँ लेती है क्यूँ ना पूजे इस माटी को जो जीवन का सुख देती है इस धरती पे जिसने जनम लिया, उसने ही पाया प्यार तेरा यहाँ अपना पराया कोई नहीं, है सब पे है माँ उपकार तेरा, मेरे देश ...
ये बाग़ है गौतम नानक का खिलते हैं चमन के फूल यहाँ गांधी, सुभाष, टैगोर, तिलक, ऐसे हैं अमन के फूल यहाँ रंग हरा हरी सिंह नलवे से रंग लाल है लाल बहादुर से रंग बना बसंती भगत सिंह रंग अमन का वीर जवाहर से, मेरे देश ...
Mere Desh Ki Dharti lyrics in Englsh
Lyrics
Mere desh ki dharti O mere desh ki dharti sona ugle Ugle heere moti, mere desh ki dharti Mere desh ki dharti Mere desh ki dharti sona ugle Ugle heere moti, mere desh ki dharti Mere desh ki dharti
Bailon ke gale mein jab ghungharu Jeevan ka raag sunaate hain Jeevan ka raag sunaate hain Gham koson door ho jata hai Khushiyon ke kanval muskaate hain Khushiyon ke kanval muskaate hain Sun ke rehat ki aawaazein Sun ke rahat ki aawaazein Yun lage kahin shehnaai baje Yun lage kahin shehnaai baje Aate hi mast baharon ke Dulhan ki tarah har khet saje Dulhan ki tarah har khet saje
O mere desh ki dharti O mere desh ki dharti sona ugle Ugle heere moti, o mere desh ki dharti Mere desh ki dharti
Jab chalte hain is dharati pe hal Mamta angdaaiyaan leti hai Mamta angdaaiyaan leti hai Kyun na pooje is maati ko Jo jeevan ka sukh deti hai Jo jeevan ka sukh deti hai Is dharti pe jisne janam liya Is dharti pe jisne janam liya Usne hi paya pyaar tera Usne hi paya pyaar tera Yahan apna paraya koi nahin Yahan apna paraya koi nahin Hai sab pe hai Maa upkaar tera Hai sab pe hai Maa upkaar tera
Mere desh ki dharti O mere desh ki dharti sona ugle Ugle heere moti, mere desh ki dharti Mere desh ki dharti
Yeh baag hai Gautam Nanak ka Khilte hain aman ke phool yahan Khilte hain aman ke phool yahan Gaandhi, Subhash Gaandhi, Subhash, Tagore, Tilak Aise hain chaman ke phool yahan Aise hain chaman ke phool yahan Rang hara hari Singh Nalve se.. Rang laal hai Lal Bahadur se Rang bana basanti Bhagat Singh Rang bana basanti Bhagat Singh Rang aman ka veer Jawahar se Rang aman ka veer Jawahar se
Mere desh ki dharti O mere desh ki dharti sona ugle Ugle heere moti, mere desh ki dharti Mere desh ki dharti
Mere desh ki dharti sona ugle Ugle heere moti, mere desh ki dharti Mere desh ki dharti Mere desh ki dharti Mere desh ki dharti Mere desh ki dharti Mere desh ki dharti
गाना / Title: मेरे देश की धरती, सोना उगले उगले हीरे मोती – mere desh kii dharatii, sonaa ugale ugale hiire motii
चित्रपट / Film: उपकार-(Upkaar)
संगीतकार / Music Director: कल्याणजी – आनंदजी-(Kalyanji-Anandji)
गीतकार / Lyricist: गुलशन बावरा-(Gulshan Bawra) गायक / Singer(s): chorus, महेन्द्र कपूर-(Mahendra Kapoor) राग / Raag: Bhairavi
[Chorus: Arijit Singh] ओ, सजनी रे कैसे कटें दिन-रात? कैसे हो तुझ से बात? तेरी याद सतावे रे
[Chorus: Arijit SIngh] ओ, सजनी रे कैसे कटें दिन-रात? कैसे मिले तेरा साथ? तेरी याद, तेरी याद सतावे रे
[Instrumental Break]
[Verse 1: Arijit Sing] कैसे घनेरे बदरा घिरें तेरी कमी की बारिश लिए? सैलाब जो मेरे सीने में है कोई बताए, ये कैसे थमे तेरे बिना अब कैसे जिएँ?
[Chorus: Arijit Singh] ओ, सजनी रे कैसे कटें दिन-रात? कैसे हो तुझ से बात? तेरी याद सतावे रे
[Instrumental Break]
[Chorus: Arijit Singh] ओ, सजनी रे कैसे कटें दिन-रात? कैसे हो तुझ से बात? तेरी याद, तेरी याद सतावे रे
[Outro: Arijit Singh] ओ, सजनी रे
“सजनी” अरिजीत सिंह और राम संपत का एक गाना है, जिसे आमिर खान प्रोडक्शंस द्वारा निर्मित फिल्म “लापता लेडीज़” में दिखाया गया है। इस ट्रैक में दिल को छू लेने वाले बोलों को मधुर संगीत के साथ मिलाया गया है, जो प्यार और लालसा के विषयों को दर्शाता है। 2024 में रिलीज़ होने वाले इस गाने में अरिजीत की दिल को छू लेने वाली आवाज़ और संपत की बेहतरीन रचना है, जो फिल्म की भावनात्मक गहराई में योगदान देती है।
O sajni re LYRICS IN ENGLISH
Sajni Lyrics Lyrics SAJNI O sajni re Kaise kate din raat Kaise ho tujhse baat Teri yaad satave re O sajni re Kaise kate din raat Kaise mile tera saath Teri yaad… Teri yaad satave re Antra Kaise ghanere badra ghire Teri kami ki barish liye Sailaab jo mere seene me hai Koi bataye ye kaise thame Tere bina ab kaise jiye O sajni re Kaise kate din raat Kaise ho tujhse baat Teri yaad satave re O sajni re Kaise kate din raat Kaise ho tujhse baat Teri yaad… Teri yaad satave re O sajni re
हिंदी दिवस पर कविता(hindi Diwas Par Kavita) 14 सितंबर को ‘हिन्दी दिवस’ मनाया जाता है। संवैधानिक रूप से हिंदी को राजभाषा का दर्जा प्राप्त है किंतु सरकारों ने उसे उसका प्रथम स्थान न देकर अन्यत्र धकेल दिया यह दुखदाई है। हिंदी को राजभाषा के रूप में देखना और हिंदी दिवस के रूप में उसका सम्मान… Read more: हिंदी दिवस पर कविता(hindi Diwas Par Kavita)
पं.माखनलाल चतुर्वेदी कैदी और कोकिला 1क्या गाती हो?क्यों रह-रह जाती हो? कोकिल बोलो तो ! क्या लाती हो? सन्देशा किसका है? कोकिल बोलो तो ! 2ऊँची काली दीवारों के घेरे में, डाकू, चोरों, बटमारों के डेरे में, जीने को देते नहीं पेट भर खाना, मरने भी देते नहीं, तड़प रह जाना ! जीवन पर अब दिन-रात कड़ा पहरा है, शासन है, या तम का… Read more: कैदी और कोकिला/
पुष्प की अभिलाषा पुष्प की अभिलाषा /पं.माखनलाल चतुर्वेदी चाह नहीं, मैं सुरबाला के गहनों में गूँथा जाऊँ।चाह नहीं, प्रेमी-माला में बिंध प्यारी को ललचाऊँ॥चाह नहीं, सम्राटों के शव पर, हे हरि, डाला जाऊँ।चाह नहीं, देवों के सिर पर चढूँ, भाग्य पर इठलाऊँ॥मुझे तोड़ लेना वनमाली!उस पथ में देना तुम फेंक॥मातृ-भूमि पर शीश चढ़ाने।जिस पथ जावें… Read more: Pushp Ki Abhilasha
joke in hindi -जोक (Joke) का मतलब है हंसी-मजाक, चुटकुला या विनोदपूर्ण बात। यह एक ऐसी कहानी या वाक्य होता है जिसे सुनकर लोग हंसते हैं। जोक्स का इस्तेमाल मनोरंजन के लिए किया जाता है और हंसी-खुशी का माहौल बनाने में मदद करते हैं।