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tum prem ho tum preet ho lyrics

tum prem ho tum preet ho lyrics in hindi

तुम प्रेम हो, तुम प्रीत हो।

मेरी बांसुरी का गीत हो.

तुम प्रेम हो, तुम प्रीत हो।

मनमीत हो, राधे, मेरी मनमीत हो.

तुम प्रेम हो, तुम प्रीत हो।

मनमीत हो, राधे, मेरी मनमीत हो.

तुम प्रेम हो, तुम प्रीत हो।

मेरी बांसुरी का गीत हो.

तुम ही हृदय में, प्राण में, कान्हा।

तुम ही हृदय में, प्राण में।

निस-दिन तुम्हीं हो ध्यान में।

तुम ही हृदय में, प्राण में।

निस-दिन तुम्हीं हो ध्यान में।

हर रोम में तुम हो आधारित।

हर रोम में तुम हो आधारित।

तुम श्वास के आह्वान में।

हर रोम में तुम हो आधारित।

हर रोम में तुम हो आधारित।

हर रोम में तुम हो आधारित।

तुम श्वास के आह्वान में।

तुम प्रीत हो, तुम गीत हो।

मनमीत हो, कान्हा, मेरे मनमीत हो।

तुम प्रेम हो, तुम प्रीत हो।

मनमीत हो, राधे, मेरी मनमीत हो.

तुम प्रेम हो, तुम प्रीत हो।

मेरी बांसुरी का गीत हो.

हूं मैं जहां, तुम हो वहां, राधा।

हूं मैं जहां, तुम हो वहां.

तुम बिन नहीं है कुछ यहाँ।

हूं मैं जहां, तुम हो वहां.

तुम बिन नहीं है कुछ यहाँ।

मुझ में धड़कती हो तुम।

मुझ में धड़कती हो तुम।

तुम दूर मुझ से हो कहाँ।

तुम श्वास के आह्वान में।

तुम प्रीत हो, तुम गीत हो।

मनमीत हो, कान्हा, मेरे मनमीत।

तुम प्रेम हो, तुम प्रीत हो।

मनमीत हो, राधे, मेरी मनमीत.

तुम प्रेम हो, तुम प्रीत हो।

मेरी बांसुरी का गीत हो.

हूं मैं जहां, तुम हो वहां, राधा।

हूं मैं जहां, तुम हो वहां.

तुम बिन नहीं है कुछ यहाँ।

हूं मैं जहां, तुम हो वहां.

तुम बिन नहीं है कुछ यहाँ।

मुझ में धड़कती हो तुम।

मुझ में धड़कती हो तुम।

तुम दूर मुझ से हो कहाँ।

तुम प्रेम हो, तुम प्रीत हो।

मनमीत हो, राधे, मेरी मनमीत हो.

तुम प्रेम हो, तुम प्रीत हो।

मनमीत हो, राधे, मेरी मनमीत हो.

तुम प्रेम हो, तुम प्रीत हो।

पावन प्रणय की रीत हो।

राधा-कृष्ण, कृष्ण-राधा.

राधा-कृष्ण (कृष्ण), कृष्ण-राधा (कृष्ण)।

tum prem ho tum preet ho lyrics in english

tum prema ho, tum preet ho

meri baansuri ka geet ho

tum prema ho, tum preet ho

manameet ho, raadhe, meri manameet ho

tum prema ho, tum preet ho

manameet ho, raadhe, meri manameet ho

tum prema ho, tum preet ho

meri baansuri ka geet ho

tum hee hriday mein, praan mein, kanha

tum hee hriday mein, praan mein

nis-din tumheen ho dhyaan mein

tum hee hriday mein, praan mein

nis-din tumheen ho dhyaan mein

har rome mein tum ho based

har rome mein tum ho based

tum shwaas ke aahvaan mein

har rome mein tum ho based

har rome mein tum ho based

har rome mein tum ho based

tum shwaas ke aahvaan mein

tum preet ho, tum geet ho

manameet ho, kanha, mere manameet ho

tum prema ho, tum preet ho

manameet ho, raadhe, meri manameet ho

tum prema ho, tum preet ho

meri baansuri ka geet ho

hoon main jahaan, tum ho vahaan, raadha

hoon main jahaan, tum ho vahaan

tum bin nahin hai kuch yahaan

hoon main jahaan, tum ho vahaan

tum bin nahin hai kuch yahaan

mujh mein dhadkati ho tumheen

mujh mein dhadkati ho tumheen

tum door mujh se ho kahaan

tum shwaas ke aahvaan mein

tum preet ho, tum geet ho

manameet ho, kanha, mere manameet

tum prema ho, tum preet ho

manameet ho, raadhe, meri manameet

tum prema ho, tum preet ho

meri baansuri ka geet ho

hoon main jahaan, tum ho vahaan, raad

hoon main jahaan, tum ho vahaan

tum bin nahin hai kuch yahaan

hoon main jahaan, tum ho vahaan

tum bin nahin hai kuch yahaan

mujh mein dhadkati ho tumheen

mujh mein dhadkati ho tumheen

tum door mujh se ho kahaan

tum prema ho, tum preet ho

manameet ho, raadhe, meri manameet ho

tum prema ho, tum preet ho

manameet ho, raadhe, meri manameet ho

tum prema ho, tum preet ho

paavan pranay kee reet ho

raadha-krshn, krshn-raadha

raadha-krshn (krshn), krshn-raadha (krshn)

Ve Kamleya Lyrics

Ve Kamleya Lyrics In Hindi

वे कमलेया वे कमलेया
वे कमलेया मेरे नादान दिल

वे कमलेया वे कमलेया
वे कमलेया मेरे नादान दिल

दो नैनों के पेचीदा सौ गलियारे
इनमें खो कर तू मिलता है कहाँ
तुझको अम्बर से पिंजरे ज्यादा प्यारे

उड़ जा कहने से
सुनता भी तू है कहाँ
गल सुन ले आ

गल सुन ले आ
वे कमलेया मेरे नादान दिल

वे कमलेया वे कमलेया
वे कमलेया मेरे नादान दिल
नादान दिल

जा करना है तो प्यार कर
ज़िद पूरी फिर इक बार कर
कमलेया वे कमलेया

मनमर्ज़ी कर के देख ले
बदले में सब कुछ हार कर
कमलेया वे कमलेया

तुझपे खुद से ज्यादा
यार की चलती है
इश्क़ है ये तेरा
या तेरी गलती है

अगर सवाब है तो
क्यूँ सज़ा मिलती है

दिल्लगी इक तेरी
आज कल परसों की
नींद ले जाती है
लूट के बरसों की

मान ले कभी तो
बात खुदगर्ज़ों की

जिनपे चल के
मंजिल मिलनी आसान हो
वैसे रस्ते
तू चुनता है कहां हो हो..

कसती है दुनिया
कस ले फ़िक्रे ताने
उंगली पे आखिर गिनता भी
तू है कहाँ

मर्ज़ी तेरी जी भर ले आ
वे कमलेया मेरे नादान दिल
वे कमलेया वे कमलेया
वे कमलेया मेरे नादान दिल

जा करना है तो प्यार कर
ज़िद पूरी फिर इक बार कर
कमलेया वे कमलेया

मनमर्ज़ी कर के देख ले
बदले में सब कुछ हार कर
कमलेया वे कमलेया

जा करना है तो प्यार कर
ज़िद पूरी फिर इक बार कर
कमलेया वे कमलेया

मनमर्ज़ी कर के देख ले
बदले में सब कुछ हार कर
कमलेया वे कमलेया

Ve Kamleya Lyrics In English

Ve Kamleya Ve Kamleya
Ve Kamleya Mere Nadaan Dil
Ve Kamleya Ve Kamleya
Ve Kamleya Mere Nadaan Dil
Do Nainon Ke Pechida Sau Galiyare
Inmein Kho Kar Tu Milta Hai Kahan
Tujhko Ambar Se Pinjre Zyada Pyare
Udd Ja Kehne Se
Sunta Bhi Tu Hai Kahan
Gall Sunn Le Aa
Gall Sunn Le Aa
Ve Kamleya Mere Nadaan Dil
Ve Kamleya Ve Kamleya
Ve Kamleya Mere Nadaan Dil
Nadaan Dil
Ja Karna Hai Toh Pyar Kar
Zid Poori Phir Ik Baar Kar
Kamleya Ve Kamleya
Manmarzi Karke Dekh Le
Badle Mein Sab Kuchh Haar Kar
Kamleya Ve Kamleya
Tujhpe Khud Se Zyada
Yaar Ki Chalti Hai
Ishq Hai Yeh Tera
Ya Teri Ghalti Hai
Agar Sawaab Hai Toh
Kyun Saza Milti Hai
Dillagi Ik Teri
Aaj Kal Parson Ki
Neend Le Jaati Hai
Loot Ke Barson Ki
Maan Le Kabhi Toh
Baat Khudgarzon Ki
Jinpe Chal Ke
Manzil Milni Aasaan Ho
Vaise Raste
Tu Chunta Hai Kahan Ho Ho
Kasti Hai Duniya
Kass Le Fikre Taane
Ungli Pe Aakhir Ginta Bhi
Tu Hai Kahan
Marzi Teri Jee Bhar Le Aa
Ve Kamleya Mere Nadaan Dil
Ve Kamleya Ve Kamleya
Ve Kamleya Mere Nadaan Dil
Ja Karna Hai Toh Pyaar Kar
Zid Poori Phir Ik Baar Kar
Kamleya Ve Kamleya
Manmarzi Karke Dekh Le
Badle Mein Sab Kuchh Haar Kar
Kamleya Ve Kamleya
Ja Karna Hai Toh Pyaar Kar
Zid Poori Phir Ik Baar Kar
Kamleya Ve Kamleya
Manmarzi Karke Dekh Le
Badle Mein Sab Kuchh Haar Kar
Kamleya Ve Kamleya
Written by: Amitabh Bhattacharya

Ve Kamleya Meaning in hindi

वे कमलेया — कमलेया का अर्थ
वे कमलेया रॉकी और रानी की प्रेम कहानी फिल्म के एक गाने का शीर्षक है। ‘कमलेया’ शब्द कमला से आया है, जिसका अर्थ है एक पागल व्यक्ति, और यह शब्द का सम्बोधनात्मक रूप है, यानी, जब आप किसी को पुकारते हैं तो इसका उपयोग किया जाता है। इसलिए जब आप ‘वे कमलेया’ कहते हैं, तो इसका अर्थ है ‘ओ पागल’, और इस प्रकार, ‘वे कमलेया मेरे नादान दिल’ पंक्ति का अर्थ है ‘ओ मेरे पागल, भोले दिल।’


Raghupati Raghav Raja Ram Lyrics

रघुपति राघव राजाराम, पतित पावन सीताराम(Raghupati Raghav Raja Ram)

रघुपति राघव राजाराम, पतित पावन सीताराम(Raghupati Raghav Raja Ram)
रघुपति राघव राजाराम
पतित पावन सीताराम ॥
सुंदर विग्रह मेघश्याम
गंगा तुलसी शालग्राम ॥
रघुपति राघव राजाराम
पतित पावन सीताराम ॥
भद्रगिरीश्वर सीताराम
भगत-जनप्रिय सीताराम ॥
रघुपति राघव राजाराम
पतित पावन सीताराम ॥
जानकीरमणा सीताराम
जयजय राघव सीताराम ॥
रघुपति राघव राजाराम
पतित पावन सीताराम ॥
रघुपति राघव राजाराम
पतित पावन सीताराम ॥

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भए प्रगट कृपाला दीन दयाला-bhaye pragat kripala deendayala

भए प्रगट  कृपाला दीन दयाला

भए प्रगट कृपाला दीनदयाला,
कौसल्या हितकारी ।
हरषित महतारी, मुनि मन हारी,
अद्भुत रूप बिचारी ॥
लोचन अभिरामा, तनु घनस्यामा,
निज आयुध भुजचारी ।
भूषन बनमाला, नयन बिसाला,
सोभासिंधु खरारी ॥
कह दुइ कर जोरी, अस्तुति तोरी,
केहि बिधि करूं अनंता ।
माया गुन ग्यानातीत अमाना,
वेद पुरान भनंता ॥
करुना सुख सागर, सब गुन आगर,
जेहि गावहिं श्रुति संता ।
सो मम हित लागी, जन अनुरागी,
भयउ प्रगट श्रीकंता ॥
ब्रह्मांड निकाया, निर्मित माया,
रोम रोम प्रति बेद कहै ।
मम उर सो बासी, यह उपहासी,
सुनत धीर मति थिर न रहै ॥
उपजा जब ग्याना, प्रभु मुसुकाना,
चरित बहुत बिधि कीन्ह चहै ।
कहि कथा सुहाई, मातु बुझाई,
जेहि प्रकार सुत प्रेम लहै ॥
माता पुनि बोली, सो मति डोली,
तजहु तात यह रूपा ।
कीजै सिसुलीला, अति प्रियसीला,
यह सुख परम अनूपा ॥
सुनि बचन सुजाना, रोदन ठाना,
होइ बालक सुरभूपा ।
यह चरित जे गावहिं, हरिपद पावहिं,
ते न परहिं भवकूपा ॥
भए प्रगट कृपाला, दीनदयाला,
कौसल्या हितकारी ।
हरषित महतारी, मुनि मन हारी,
अद्भुत रूप बिचारी ॥

राम नवमी

ramnavami

रामनवमी का त्यौहार चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी को मनाया जाता है जो अप्रैल-मई में आता है। हिंदू धर्मशास्त्रों के अनुसार इस दिन मर्यादा-पुरूषोत्तम भगवान श्री राम जी का जन्म हुआ था। 

चैत्रे नवम्यां प्राक् पक्षे दिवा पुण्ये पुनर्वसौ ।

उदये गुरुगौरांश्चोः स्वोच्चस्थे ग्रहपञ्चके ॥

मेषं पूषणि सम्प्राप्ते लग्ने कर्कटकाह्वये ।

आविरसीत्सकलया कौसल्यायां परः पुमान् ॥ (निर्णयसिन्धु)

गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस बालकाण्ड में स्वयं लिखा है कि उन्होंने रामचरित मानस की रचना का आरम्भ अयोध्यापुरी में विक्रम सम्वत् १६३१ (१५७४ ईस्वी) के रामनवमी (मंगलवार) को किया था। गोस्वामी जी ने रामचरितमानस में श्रीराम के जन्म का वर्णन कुछ इस प्रकार किया है-

भये प्रगट कृपाला दीनदयाला कौसल्या हितकारी।

हरषित महतारी मुनि मन हारी अद्भुत रूप बिचारी॥

लोचन अभिरामा तनु घनस्यामा निज आयुध भुज चारी।

भूषन वनमाला नयन बिसाला सोभासिन्धु खरारी॥

कह दुइ कर जोरी अस्तुति तोरी केहि बिधि करौं अनंता।

माया गुन ग्यानातीत अमाना वेद पुरान भनंता॥

करुना सुख सागर सब गुन आगर जेहि गावहिं श्रुति संता।

सो मम हित लागी जन अनुरागी भयउ प्रकट श्रीकंता॥

श्रीराम जन्म कथा

हिन्दु धर्म शास्त्रों के अनुसार त्रेतायुग में रावण के अत्याचारों को समाप्त करने तथा धर्म की पुनः स्थापना के लिये भगवान विष्णु ने मृत्यु लोक में श्री राम के रूप में अवतार लिया था। श्रीराम चन्द्र जी का जन्म चैत्र शुक्ल की नवमी  के दिन पुनर्वसु नक्षत्र तथा कर्क लग्न में रानी कौशल्या की कोख से, राजा दशरथ के घर में हुआ था।

सम्पूर्ण भारत में रामनवमी मनायी जाती है। तेलंगण का भद्राचलम मन्दिर उन स्थानों में हैं जहाँ रामनवमी बड़े धूमधाम से मनायी जाती है।

श्रीरामनवमी का त्यौहार पिछले कई हजार सालों से मनाया जा रहा है।

रामायण के अनुसार अयोध्या के राजा दशरथ की तीन पत्नियाँ थीं लेकिन बहुत समय तक कोई भी राजा दशरथ को सन्तान का सुख नहीं दे पायी थीं जिससे राजा दशरथ बहुत परेशान रहते थे। पुत्र प्राप्ति के लिए राजा दशरथ को ऋषि वशिष्ठ ने पुत्रकामेष्टि यज्ञ कराने को विचार दिया। इसके पश्चात् राजा दशरथ ने अपने जमाई, महर्षि ऋष्यश्रृंग से यज्ञ कराया। तत्पश्चात यज्ञकुण्ड से अग्निदेव अपने हाथों में खीर की कटोरी लेकर बाहर निकले। 

यज्ञ समाप्ति के बाद महर्षि ऋष्यश्रृंग ने दशरथ की तीनों पत्नियों को एक-एक कटोरी खीर खाने को दी। खीर खाने के कुछ महीनों बाद ही तीनों रानियाँ गर्भवती हो गयीं। ठीक 9 महीनों बाद राजा दशरथ की सबसे बड़ी रानी कौशल्या ने श्रीराम को जो भगवान विष्णु के सातवें अवतार थे, कैकयी ने श्रीभरत को और सुमित्रा ने जुड़वा बच्चों श्रीलक्ष्मण और श्रीशत्रुघ्न को जन्म दिया। भगवान श्रीराम का जन्म धरती पर दुष्ट प्राणियों को संघार करने के लिए हुआ था।

आदि श्रीराम

कबीर साहेब जी आदि श्रीराम की परिभाषा बताते है की आदि श्रीराम वह अविनाशी परमात्मा है जो सब का सृजनहार व पालनहार है। जिसके एक इशारे पर‌ धरती और आकाश काम करते हैं जिसकी स्तुति में तैंतीस कोटि देवी-देवता नतमस्तक रहते हैं। जो पूर्ण मोक्षदायक व स्वयंभू है।[6]

“एक श्रीराम दशरथ का बेटा, एक श्रीराम घट घट में बैठा, एक श्रीराम का सकल उजियारा, एक श्रीराम जगत से न्यारा”।।

रामनवमी पूजन

राम, सीता, लक्ष्मण एवं हनुमान राम नवमी पूजन में एक घर में रामनवमी के त्यौहार का महत्व हिंदु धर्म सभ्यता में महत्वपूर्ण रहा है। इस पर्व के साथ ही माँ दुर्गा के नवरात्रों का समापन भी होता है। हिन्दू धर्म में रामनवमी के दिन पूजा अर्चना की जाती है। रामनवमी की पूजा में पहले देवताओं पर जल, रोली और लेपन चढ़ाया जाता है, इसके बाद मूर्तियों पर मुट्ठी भरके चावल चढ़ाये जाते हैं। पूजा के बाद आ‍रती की जाती है। कुछ लोग इस दिन व्रत भी रखते है।

रामनवमी का महत्व

यह पर्व भारत में श्रद्धा और आस्था के साथ मनाया जाता है। रामनवमी के दिन ही चैत्र नवरात्र की समाप्ति भी हो जाती है। हिंदु धर्म शास्त्रों के अनुसार इस दिन भगवान श्री राम जी का जन्म हुआ था अत: इस शुभ तिथि को भक्त लोग रामनवमी के रूप में मनाते हैं एवं पवित्र नदियों में स्नान करके पुण्य के भागीदार होते है।

Credit for this Article – (विकिपीडिया)


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Ram aayenge to angana sajaungi lyrics  / (राम आएँगे तो अंगना  सजाऊँगी)

Ram aayenge to angana sajaungi lyrics  / (राम आएँगे तो अंगना  सजाऊँगी)


Ram aayenge to angana sajaungi lyrics In English


बात उस वक्त की हैं जब भगवान् श्री राम का जन्म भी नहीं हुआ था. भील जाति के एक कबीले जिसके राजा(मुखिया) अज थे. अज के घर में एक कन्या का जन्म हुआ जिसका नाम श्रमणा था. श्रमणा, शबरी का ही दूसरा नाम हैं. शबरी की माता का नाम – इन्दुमति था. शबरी की जाति – शबर थी, जो कि भील से सम्बंधित थी|शबरी बचपन में पक्षियों से अलौकिक बातें किया करती थी, जो सभी के लिए आश्चर्य का विषय था|धीरे शबरी बड़ी हुई, लेकिन उसकी कुछ हरकते अज और इंदुमति की समझ से परे थे|

समय रहते शबरी के बारे में उसके माता पिता ने किसी ब्राह्मण से पुछा की वह वैराग्य की बातें करती हैं. ब्राह्मण ने सलाह दी की इसका विवाह करवा दो|राजा अज और भीलरानी इन्दुमति ने शबरी के विवाह के लिए एक बाड़े में पशु पक्षियों को जमा कर दिए, फिर जब इन्दुमति शबरी के बाल बना रही थी तो शबरी ने पुछा कि – माँ हमारे बाड़े में इतने पशु पक्षी क्यों हैं? तब इंदुमती बताती हैं, ये तुम्हारे विवाह की दावत के लिए हैं, तुम्हारे विवाह के दिन इन पशु पक्षियों का विशाल भोज तैयार किया जायेगा|

शबरी (श्रमणा) को यह बात कुछ ठीक नहीं लगी, मेरे विवाह के लिए इतने जीवो का बलिदान नहीं देने दूंगी. अगर विवाह के लिए इतने जीवों की बलि दी जाएगी तो मैं विवाह ही नहीं करुँगी. श्रमणा ने रात्रि में सभी पशु पक्षियों को आज़ाद कर दिया, जब श्रमणा(शबरी) बाड़े के किवाड़ को खोल रही थी तो, उसको किसी ने देख लिया. इस बात से शबरी डर गयी. शबरी वहां से भाग निकली. शबरी भागते भागते ऋषिमुख पर्वत पर पहुँच गयी, जहाँ पर 10,000 ऋषि रहते थे.

इसके बावजूद शबरी छुपते हुए कुछ दिनों तक, जब तक वह पकड़ी नहीं गयी, रोज सवेरे ऋषियों के आश्रम में आने वाले पत्तों को साफ कर देती थी, और हवन के लिए सुखी लकड़ियों का बंदोबस्त भी कर देती, बड़े ही भाव से शबरी सविंधाओ से लकड़ियों को ऋषियों के हवन कुण्ड के पास रख देती थी. कुछ दिनों तक ऋषि समझ नही पाए, कि कौन हैं जो, उनके सारे नित्य के काम निपटा रहे हैं? कही कोई माया तो नहीं हैं. फिर जब ऋषियों ने अगले दिन सवेरे जल्दी शबरी को देखा तो उन्होंने शबरी को पकड लिया.

ऋषियों ने शबरी से उसका परिचय पुछा तो शबरी ने बताया की वह एक भीलनी हैं, एक ऋषि, ऋषि मतंग ने शबरी को अपनी बेटी कहकर उसको एक कुटिया में शरण दी, और सेवा करने को कहा. समय बीतता गया, मतंग ऋषि बूढ़े हो गए. मतंग ऋषि ने घोषणा की – अब मैं अपनी देह छोड़ना चाहता हूँ. तब शबरी ने कहा कि एक पिता को मैं वहां पर छोड़कर आयी, और आज आप भी मुझे छोड़कर जा रहे हैं, अब मेरा कौन ख्याल रखेगा?

मतंग ऋषि ने कहा – बेटी तुम्हारा ख्याल अब राम रखेंगे. शबरी सरलता से कहती हैं – राम कौन हैं? और मैं उन्हें कहाँ ढूढून्गी. बेटी तुम्हे उनको खोजने की जरुरत नहीं हैं. वो स्वयं तुम्हारी कुटिया पर चलकर आयेंगे. शबरी ने मतंग ऋषि के इस वचन को पकड़ लिया कि राम आयेंगे. शबरी रोज भगवान् के लिए फूल बिछा कर रखती, उनके लिए फल तोड़कर लाती, और पूरे दिन भगवान् श्री राम का इंतजार करती. इंतजार करते करते शबरी बूढी हो गई, लेकिन अब तक राम नहीं आये. फिर एक दिन आ ही गया – जब शबरी के वर्षों का इंतज़ार खत्म होने वाला था. शबरी ने फूल बिछा कर रखे थे.

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Ram Aayenge Lyrics

राम आएँगे /Ram Aayenge Lyrics  

आज गली-गली अवध सजाएँगे 

आज पग-पग पलक बिछाएँगे

ओ, आज गली-गली अवध सजाएँगे 

आज पग-पग पलक बिछाएँगे 

आज सूखे हुए पेड़ फल जाएँगे

नैना भीगे-भीगे जाएँ, कैसे ख़ुशी ये छुपाएँ, 

राम आएँगे कुछ समझ ना पाएँ, 

कहाँ फूल बिछाएँ, 

राम आएँगे नैना भीगे-भीगे जाएँ, 

कैसे ख़ुशी ये छुपाएँ, 

राम आएँगे कुछ समझ ना पाएँ, 

कहाँ फूल बिछाएँ, राम आएँगे

सरजू जल-थल, जल-थल रोई, 

जिस दिन राघव हुए पराए ओ, 

बिरहा के सौ पर्बत पिघले, 

हे रघुराई, तब तुम आए ये वही क्षण है निरंजन, 

जिसको दशरथ देख ना पाए

सरजू जल-थल, जल-थल रोई, 

जिस दिन राघव हुए पराए ओ, 

बिरहा के सौ पर्बत पिघले, हे रघुराई, 

तब तुम आए ये वही क्षण है निरंजन, 

जिसको दशरथ देख ना पाए

सात जन्मों के दुख कट जाएँगे 

आज सरजू के तट मुस्काएँगे 

मोर नाचेंगे, पपीहे आज गाएँगे

आज दसों ये दिशाएँ जैसे शगुन मनाएँ, राम आएँगे 

नैना भीगे-भीगे जाएँ, कैसे ख़ुशी ये छुपाएँ, राम आएँगे 

कभी ढोल बजाएँ, कभी द्वार सजाएँ, राम आएँगे 

कुछ समझ ना पाएँ, कहाँ फूल बिछाएँ, राम आएँगे

जाके आसमानों से तारे माँग लाएँगे 

कौशल्या के लल्ला जी, तुम्हीं पे सब लुटाएँगे 

१४ साल जो रोके, वो आँसू अब बहाएँगे 

अवध में राम आएँगे, हमारे राम आएँगे

नील-गगन से साँवले, कोटि सूर्य सा तेज 

नारायण तज आए हैं शेषनाग की सेज 

“राघव, राघव” करते थे युग-युग से दिन-रैन 

नतमस्तक हैं तीन लोक और सुर-नर करें प्रणाम 

एक चंद्रमा, एक सूर्य, एक जगत में राम एक जगत में राम

आज दसों ये दिशाएँ जैसे शगुन मनाएँ, राम आएँगे 

नैना भीगे-भीगे जाएँ, कैसे ख़ुशी ये छुपाएँ, राम आएँगे 

कभी ढोल बजाएँ, कभी द्वार सजाएँ, राम आएँगे 

कुछ समझ न पाएँ, कहाँ दीप जलाएँ, राम आएँगे

Writer(s): Payal Dev, Manoj Muntashir, Vishal Mishra<br>Lyrics powered by www.musixmatch.com

Ram Aayenge (Lyrical) Vishal Mishra,Payal Dev | Manoj Muntashir | Dipika,Sameer | Kashan | Bhushan K

Pehle Bhi Main Lyrics

Pehle Bhi Main Lyrics In Hindi

Pehle Bhi Main Lyrics

[Chorus]

Pehle bhi main tumse mila hoon

Pehli dafa hi milke laga

Tune chhua zakhamo ko mere

Marham-marham dil pe laga

[Pre-Chorus]

Pagal-pagal hain thode

Baadal pagal hain dono

Khulke barse, bheegein, aa zara

[Chorus]

Pehle bhi main tumse mila hoon

Pehli dafa hi milke laga

Tune chhua zakhamo ko mere

Marham-marham dil pe laga

[Instrumental Break]

[Verse 1]

Galat kya, sahi kya, mujhe na pata hai

Tumhe ‘gar pata ho, bataa dena

Main arse se khud se zara lapata hoon

Tumhe ‘gar milu toh bataa dena

Kho na jaana mujhe dekhtedekhte

Pehle Bhi Main Lyrics

Pehle Bhi Main Lyrics

ANIMAL  by Vishal Mishra, Raj Shekhar

℗ 2023 Super Cassettes Industries Private Limited

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  • भए प्रगट कृपाला दीन दयाला-bhaye pragat kripala deendayala
    भए प्रगट  कृपाला दीन दयाला भए प्रगट कृपाला दीनदयाला,कौसल्या हितकारी ।हरषित महतारी, मुनि मन हारी,अद्भुत रूप बिचारी ॥लोचन अभिरामा, तनु घनस्यामा,निज आयुध भुजचारी ।भूषन बनमाला, नयन बिसाला,सोभासिंधु खरारी ॥कह दुइ कर जोरी, अस्तुति तोरी,केहि बिधि करूं अनंता ।माया गुन ग्यानातीत अमाना,वेद पुरान भनंता ॥करुना सुख सागर, सब गुन आगर,जेहि गावहिं श्रुति संता ।सो मम हित… Read more: भए प्रगट कृपाला दीन दयाला-bhaye pragat kripala deendayala

श्री गणेश स्तुति | Shree Ganesh Stuti

https://youtu.be/2GQ7t3b3PIM?si=SWU0-LPYdl-V4RCW

Ganesh Stuti Lyrics in Devanagri (Sanskrit)

नमामि ते गजाननं अनन्त मोद दायकम्
समस्त विघ्न हारकं समस्त अघ विनाशकम्
मुदाकरं सुखाकरं मम प्रिय गणाधिपम्
नमामि ते विनायकं हृद कमल निवासिनम्॥१॥

भुक्ति मुक्ति दायकं समस्त क्लेश वारकम्
बुद्धि बल प्रदायकं समस्त विघ्न हारकम्
धूम्रवर्ण शोभनं एक दन्त मोहनम्
भजामि ते कृपाकरं मम हृदय विहारिणम्॥२॥

गजवदन शोभितं मोदकं सदा प्रियम्
वक्रतुण्ड धारकं कृष्णपिच्छ मोहनम्
विकटरूप धारिणं देववृन्द वन्दितम्
स्मरामि विघ्नहारकं मम बन्ध मोचकम्॥३॥

सुराणां प्रधानं मूषक वाहनम्
रिद्धि सिद्धि संयुतं भालचन्द्र शोभनम्
ज्ञानिनां वरिष्ठं इष्ट फल प्रदायकम्
सदा भावयामि त्वां सगुण रूप धारिणम् ॥४॥

सर्व विघ्न हारकं समस्त विघ्न वर्जितम्
विकट रूप शोभनं मनोज दर्प मर्दनम्
*सगुण रूप मोहनं गुणत्रय अतीतम्
नमामि ते नमामि ते मम प्रिय गणेशम्॥५॥

श्री गणेश स्तुति लिरिक्स (Shree Ganesh Stuti Lyrics in English) – 

namaami te gajaananan anant mod daayakam

samast vighn harakan samast agh vinaashakam

mudaakaran sukhaakaran mam priy ganaadhipam

namaami te vinaayakan hrd kamal nivaasinam.1.

bhukti mukti daayakan samast klesh vaarakam

buddhi bal pradaayakan samast vighn harakam

dhoomavarn shobhanan ek dant mohanam

bhajaami te krpaakaran mam hrday virinam.2.

gajavadan shobhitan modakan sada priyam

vakratund dhaarakan krshnapichchh mohanam

vikataroop dhaarinan devavrnd vanditam

smaraami vighnahaarakan mam bandh mochakam .3.

suraanaan pradhaanan mooshak vaahanam

riddhi siddhi sanyutan bhaalachandr shobhanam

gyaaninaan bujurgan isht phal pradaayakam

sada bhaavayaami tvaan sagun roop dhaarinam 4.

sarv vighn harakan samast vighn varjitam

vikat roop shobhanan manoj darpamaradanam

*sagun roop mohanan gunatray ghatanaam

namaami te namaami te mam priy ganesham.5.

रहीम के दोहे 

रहीमदास का जीवन परिचय 

कवि रहीम, जिन्हें अब्दुल रहीम खान-ए-खाना के नाम से भी जाना जाता है, 16वीं शताब्दी के दौरान मुगल सम्राट अकबर के दरबार में एक प्रमुख कवि और दरबारी थे। उनका जन्म 1556 में लाहौर में हुआ था, जो अब वर्तमान पाकिस्तान है। रहीम के पिता बैरम खान सम्राट अकबर के विश्वस्त सलाहकार थे।

रहीम ने उत्कृष्ट शिक्षा प्राप्त की और फ़ारसी, अरबी और संस्कृत सहित विभिन्न भाषाओं में पारंगत थे। उन्हें साहित्य और दर्शन की गहरी समझ थी, जिसने उनकी कविता को बहुत प्रभावित किया। रहीम विशेष रूप से हिंदी भाषा में अपनी दक्षता के लिए जाने जाते थे।

मुस्लिम होने के बावजूद, रहीम के कार्यों में हिंदू और इस्लामी सांस्कृतिक प्रभावों का संश्लेषण झलकता था। उन्होंने “रहीम” उपनाम से लिखा और अपने दोहों या “दोहों” के लिए प्रसिद्ध हैं जिनमें नैतिक और आध्यात्मिक संदेश थे। उनके दोहे सरल लेकिन गहन थे, वे अक्सर गहरी दार्शनिक अंतर्दृष्टि व्यक्त करने के लिए रोजमर्रा की स्थितियों और रूपकों का उपयोग करते थे।

रहीम की सबसे प्रसिद्ध साहित्यिक कृति “रहीम चालीसा” है, जो चालीस दोहों का एक संग्रह है जो नैतिक और नीतिपरक शिक्षाएँ प्रदान करता है। यह रचना पूरे भारत में लोगों द्वारा व्यापक रूप से पढ़ी और सुनाई जाती है और लोकप्रिय लोककथाओं का हिस्सा बन गई है।

साहित्य में रहीम के योगदान और भाषा के कुशल उपयोग ने उन्हें हिंदू और मुस्लिम दोनों से मान्यता और सम्मान दिलाया। उनका सम्राट अकबर के साथ घनिष्ठ संबंध था और मुगल दरबार में उनका बहुत सम्मान किया जाता था। अकबर की मृत्यु के बाद, रहीम ने सम्राट जहाँगीर के अधीन काम करना जारी रखा।

कवि रहीम का जीवन केवल काव्य और साहित्य पर केन्द्रित नहीं था। वह प्रशासनिक पदों पर भी रहे और अपनी सत्यनिष्ठा तथा निष्पक्षता के लिए जाने जाते थे। अपनी उच्च स्थिति के बावजूद, रहीम विनम्र और दयालु थे, अक्सर गरीबों और वंचितों की मदद करने के लिए अपने प्रभाव का उपयोग करते थे।

एक कवि और दार्शनिक के रूप में कवि रहीम की विरासत आज भी पीढ़ियों को प्रेरित करती है। उनके दोहे और दोहे लोकप्रिय बने हुए हैं और उनके कालातीत ज्ञान के लिए मनाए जाते हैं। रहीम की अपनी कविता के माध्यम से सांस्कृतिक विभाजन को पाटने की क्षमता और उनके गुणों का अवतार उन्हें भारतीय साहित्य और इतिहास में एक महत्वपूर्ण व्यक्ति बनाता है।

जीवन के कुछ तथ्य

रहीम जब 5 वर्ष के थे, उसी समय गुजरात के पाटन नगर में (1561 ई.) इनके पिता की हत्या कर दी गयी । इनका पालन-पोषण स्वयं अकबर की देख-रेख में हुआ।

■ इनकी कार्यक्षमता से प्रभावित होकर अकबर ने 1572 ई. में गुजरात की चढ़ाई के अवसर पर इन्हें पाटन की जागीर प्रदान की। अकबर के शासनकाल में उनकी निरन्तर पदोन्नति होती रही।
■ 1576 ई. में गुजरात विजय के बाद इन्हें गुजरात की सूबेदारी मिली।
■ 1579 ई. में इन्हें ‘मीर अर्जु’ का पद प्रदान किया गया।
■ 1583 ई. में इन्होंने बड़ी योग्यता से गुजरात के उपद्रव का दमन किया।
■ अकबर ने प्रसन्न होकर 1584 ई. में इन्हें ख़ानख़ाना’ की उपाधि और पंचहज़ारी का मनसब प्रदान किया ।|
■ 1589 ई. में इन्हें ‘वकील’ की पदवी से सम्मानित किया गया।
■ 1604 ई. में शहज़ादा दानियाल की मृत्यु और अबुलफ़ज़ल के बाद इन्हें दक्षिण का पूरा अधिकार मिल गया। जहाँगीर के शासन के प्रारम्भिक दिनों में इन्हें पूर्ववत सम्मान मिलता रहा।
■ 1623 ई. में शाहजहाँ के विद्रोही होने पर इन्होंने जहाँगीर के विरुद्ध उनका साथ दिया।
■ 1625 ई. में इन्होंने क्षमा याचना कर ली और पुन: ‘ख़ानख़ाना’ की उपाधि मिली।
■ 1626 ई. में 70 वर्ष की अवस्था में इनकी मृत्यु हो गयी।

रहीम के दोहे हिंदी अर्थ सहित

1.

 रहिमन धागा प्रेम का, मत तोरो चटकाय.
टूटे पे फिर ना जुरे, जुरे गाँठ परी जाय||

अर्थ: रहीम कहते हैं कि प्रेम का नाता नाज़ुक होता है. इसे झटका देकर तोड़ना उचित नहीं होता। यदि यह प्रेम का धागा एक बार टूट जाता है तो फिर इसे मिलाना कठिन होता है और यदि मिल भी जाए तो टूटे हुए धागों के बीच में गाँठ पड़ जाती है।

2.

 दुःख में सुमिरन सब करे, सुख में करे न कोय |
जो सुख में सुमिरन करे, तो दुःख काहे होय ||

अर्थ:  दुःख में सभी लोग भगवान को याद करते हैं. सुख में कोई नहीं करता, अगर सुख में भी याद करते तो दुःख होता ही नही |

3.

 रहिमन देखि बड़ेन को, लघु न दीजिए डारि.
जहां काम आवे सुई, कहा करे तरवारि||

अर्थ: बड़ों को देखकर छोटों को भगा नहीं देना चाहिए। क्योंकि जहां छोटे का काम होता है वहां बड़ा कुछ नहीं कर सकता। जैसे कि सुई के काम को तलवार नहीं कर सकती। 

4. 

रहिमन अंसुवा नयन ढरि, जिय दुःख प्रगट करेइ,
जाहि निकारौ गेह ते, कस न भेद कहि देइ||

अर्थ: रहीम कहते हैं की आंसू नयनों से बहकर मन का दुःख प्रकट कर देते हैं। सत्य ही है कि जिसे घर से निकाला जाएगा वह घर का भेद दूसरों से कह ही देगा.

5. 

जैसी परे सो सहि रहे, कहि रहीम यह देह,
धरती ही पर परत है, सीत घाम औ मेह||

अर्थ: रहीम कहते हैं कि जैसी इस देह पर पड़ती है – सहन करनी चाहिए, क्योंकि इस धरती पर ही सर्दी, गर्मी और वर्षा पड़ती है. अर्थात जैसे धरती शीत, धूप और वर्षा सहन करती है, उसी प्रकार शरीर को सुख-दुःख सहन करना चाहिए|

6. 

बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर,
पंथी को छाया नहीं, फल लागे अति दूर |

अर्थ:  बड़े होने का यह मतलब नहीं हैं की उससे किसी का भला हो। जैसे खजूर का पेड़ तो बहुत बड़ा होता हैं लेकिन उसका फल इतना दूर होता है की तोड़ना मुश्किल का कम है | rahim ke dohe in hindi

7. 

दोनों रहिमन एक से, जों लों बोलत नाहिं।
जान परत हैं काक पिक, रितु बसंत के माहिं||

अर्थ: कौआ और कोयल रंग में एक समान होते हैं। जब तक ये बोलते नहीं तब तक इनकी पहचान नहीं हो पाती। लेकिन जब वसंत ऋतु आती है तो कोयल की मधुर आवाज़ से दोनों का अंतर स्पष्ट हो जाता है|

8. 

समय पाय फल होत है, समय पाय झरी जात।
सदा रहे नहिं एक सी, का रहीम पछितात||

अर्थ: रहीम कहते हैं कि उपयुक्त समय आने पर वृक्ष में फल लगता है। झड़ने का समय आने पर वह झड़ जाता है। सदा किसी की अवस्था एक जैसी नहीं रहती, इसलिए दुःख के समय पछताना व्यर्थ है।

9. 

रूठे सुजन मनाइए, जो रूठे सौ बार,
रहिमन फिरि फिरि पोइए, टूटे मुक्ता हार||

अर्थ: यदि आपका प्रिय सौ बार भी रूठे, तो भी रूठे हुए प्रिय को मनाना चाहिए,क्योंकि यदि मोतियों की माला टूट जाए तो उन मोतियों को बार बार धागे में पिरो लेना चाहिए।

10. 

निज कर क्रिया रहीम कहि सीधी भावी के हाथ
पांसे अपने हाथ में दांव न अपने हाथ||

अर्थ: रहीम कहते हैं कि अपने हाथ में तो केवल कर्म करना ही होता है सिद्धि तो भाग्य से ही मिलती है जैसे चौपड़ खेलते समय पांसे तो अपने हाथ में रहते हैं पर दांव क्या आएगा यह अपने हाथ में नहीं होता।

11. 

बानी ऐसी बोलिये, मन का आपा खोय |
औरन को सीतल करै, आपहु सीतल होय ||

अर्थ:  अपने अंदर के अहंकार को निकालकर ऐसी बात करनी चाहिए जिसे सुनकर दुसरों को और खुद को ख़ुशी हो।

12. 

खीरा सिर ते काटि के, मलियत लौंन लगाय।
रहिमन करुए मुखन को, चाहिए यही सजाय||

अर्थ: खीरे का कडुवापन दूर करने के लिए उसके ऊपरी सिरे को काटने के बाद नमक लगा कर घिसा जाता है। रहीम कहते हैं कि कड़ुवे मुंह वाले के लिए – कटु वचन बोलने वाले के लिए यही सजा ठीक है।

13. 

रहिमन रीति सराहिए, जो घट गुन सम होय
भीति आप पै डारि के, सबै पियावै तोय||

अर्थ: रहीम कहते हैं कि उस व्यवहार की सराहणा की जानी चाहिए जो घड़े और रस्सी के व्यवहार के समान हो घडा और रस्सी स्वयं जोखिम उठा कर दूसरों को जल पिलाते हैं जब घडा कुँए में जाता है तो रस्सी के टूटने और घड़े के टूटने का खतरा तो रहता ही है।  

14. 

संपत्ति भरम गंवाई के हाथ रहत कछु नाहिं
ज्यों रहीम ससि रहत है दिवस अकासहि माहिं||

अर्थ: जिस प्रकार दिन में चन्द्रमा आभाहीन हो जाता है उसी प्रकार जो व्यक्ति किसी व्यसन में फंस कर अपना धन गँवा देता है वह निष्प्रभ हो जाता है।

15. 

माह मास लहि टेसुआ मीन परे थल और
त्यों रहीम जग जानिए, छुटे आपुने ठौर||

अर्थ: माघ मास आने पर  टेसू का वृक्ष और पानी से बाहर पृथ्वी पर आ पड़ी मछली की दशा बदल जाती है। इसी प्रकार संसार में अपने स्थान से छूट जाने पर संसार की अन्य वस्तुओं की दशा भी बदल जाती है. मछली जल से बाहर आकर मर जाती है वैसे ही संसार की अन्य वस्तुओं की भी हालत होती है।  

16. 

रहिमन निज मन की बिथा, मन ही राखो गोय।
सुनी इठलैहैं लोग सब, बांटी न लेंहैं कोय||

अर्थ: रहीम कहते हैं की अपने मन के दुःख को मन के भीतर छिपा कर ही रखना चाहिए। दूसरे का दुःख सुनकर लोग इठला भले ही लें, उसे बाँट कर कम करने वाला कोई नहीं होता।

17. 

वरू रहीम  कानन भल्यो वास करिय फल भोग
बंधू मध्य धनहीन ह्वै, बसिबो उचित न योग||

अर्थ: रहीम कहते हैं कि निर्धन होकर बंधु-बांधवों के बीच रहना उचित नहीं है इससे अच्छा तो यह है कि वन मैं जाकर रहें और फलों का भोजन करें।

18. 

पावस देखि रहीम मन, कोइल साधे मौन।
अब दादुर वक्ता भए, हमको पूछे कौन||

अर्थ:  बारिश के मौसम को देखकर कोयल और रहीम के मन ने मौन साध लिया हैं। अब तो मेंढक ही बोलने वाले हैं तो इनकी सुरीली आवाज को कोई नहीं पूछता, इसका अर्थ:  यह हैं की कुछ अवसर ऐसे आते हैं जब गुणवान को चुप रहना पड़ता हैं। कोई उनका आदर नहीं करता और गुणहीन वाचाल व्यक्तियों का ही बोलबाला हो जाता हैं |

19.

रहिमन विपदा हू भली, जो थोरे दिन होय।
हित अनहित या जगत में, जान परत सब कोय||

अर्थ: रहीम कहते हैं कि यदि विपत्ति कुछ समय की हो तो वह भी ठीक ही है, क्योंकि विपत्ति में ही सबके विषय में जाना जा सकता है कि संसार में कौन हमारा हितैषी है और कौन नहीं। 

20. 

वे रहीम नर धन्य हैं, पर उपकारी अंग।
बांटन वारे को लगे, ज्यों मेंहदी को रंग||

अर्थ: रहीम कहते हैं कि वे लोग धन्य हैं जिनका शरीर सदा सबका उपकार करता है। जिस प्रकार मेंहदी बांटने वाले के अंग पर भी मेंहदी का रंग लग जाता है, उसी प्रकार परोपकारी का शरीर भी सुशोभित रहता है.

21. 

ओछे को सतसंग रहिमन तजहु  ज्यों अंगार ।
तातो जारै अंग सीरै पै कारौ लगै||

अर्थ: ओछे मनुष्य का साथ छोड़ देना चाहिए। हर अवस्था में उससे हानि होती है – जैसे अंगार जब तक गर्म रहता है तब तक शरीर को जलाता है और जब ठंडा कोयला हो जाता है तब भी शरीर को काला ही करता है| 

22. 

वृक्ष कबहूँ नहीं फल भखैं, नदी न संचै नीर
परमारथ के कारने, साधुन धरा सरीर।

अर्थ: वृक्ष कभी अपने फल नहीं खाते, नदी जल को कभी अपने लिए संचित नहीं करती, उसी प्रकार सज्जन परोपकार के लिए देह धारण करते हैं।

23. 

लोहे की न लोहार की, रहिमन कही विचार जा
हनि मारे सीस पै, ताही की तलवार||

अर्थ: रहीम विचार करके कहते हैं कि तलवार न तो लोहे की कही जाएगी न लोहार की, तलवार उस वीर की कही जाएगी जो वीरता से शत्रु के सर पर मार कर उसके प्राणों का अंत कर देता है।  

24. 

तासों ही कछु पाइए, कीजे जाकी आस
रीते सरवर पर गए, कैसे बुझे पियास||

अर्थ: जिससे कुछ पा सकें, उससे ही किसी वस्तु की आशा करना उचित है, क्योंकि पानी से रिक्त तालाब से प्यास बुझाने की आशा करना व्यर्थ है।

25. 

रहिमन नीर पखान, बूड़े पै सीझै नहीं
तैसे मूरख ज्ञान, बूझै पै सूझै नहीं

अर्थ: जिस प्रकार जल में पड़ा होने पर भी पत्थर नरम नहीं होता उसी प्रकार मूर्ख व्यक्ति की अवस्था होती है ज्ञान दिए जाने पर भी उसकी समझ में कुछ नहीं आता।

26. 

साधु सराहै साधुता, जाती जोखिता जान
रहिमन सांचे सूर को बैरी कराइ बखान||

अर्थ: रहीम  कहते हैं कि इस बात को जान लो कि साधु सज्जन की प्रशंसा करता है यति योगी और योग की प्रशंसा करता है पर सच्चे वीर के शौर्य की प्रशंसा उसके शत्रु भी करते हैं।

27. 

राम न जाते हरिन संग से न रावण साथ
जो रहीम भावी कतहूँ होत आपने हाथ

अर्थ: रहीम कहते हैं कि यदि होनहार अपने ही हाथ में होती, यदि जो होना है उस पर हमारा बस होता तो ऐसा क्यों होता कि राम हिरन के पीछे गए और सीता का हरण हुआ। क्योंकि होनी को होना था – उस पर हमारा बस न था न होगा, इसलिए तो राम स्वर्ण मृग के पीछे गए और सीता को रावण हर कर लंका ले गया।

28. 

तरुवर फल नहिं खात है, सरवर पियहि न पान।
कहि रहीम पर काज हित, संपति सँचहि सुजान |

अर्थ: रहीम कहते हैं कि वृक्ष अपने फल स्वयं नहीं खाते हैं और सरोवर भी अपना पानी स्वयं नहीं पीता है। इसी तरह अच्छे और सज्जन व्यक्ति वो हैं जो दूसरों के कार्य के लिए संपत्ति को संचित करते हैं।

29. 

रहिमन ओछे नरन सो, बैर भली न प्रीत |
काटे चाटे स्वान के, दोउ भाँती विपरीत ||

अर्थ:  गिरे हुए लोगों से न तो दोस्ती अच्छी होती हैं, और न तो दुश्मनी। जैसे कुत्ता चाहे काटे या चाटे दोनों ही अच्छा नहीं होता |

30. 

एकहि साधै सब सधैए, सब साधे सब जाय |
रहिमन मूलहि सींचबोए, फूलहि फलहि अघाय ||

अर्थ: एक को साधने से सब सधते हैं। सब को साधने से सभी के जाने की आशंका रहती है – वैसे ही जैसे किसी पौधे के जड़ मात्र को सींचने से फूल और फल सभी को पानी प्राप्त हो जाता है और उन्हें अलग अलग सींचने की जरूरत नहीं होती है।

31. 

मथत-मथत माखन रहे, दही मही बिलगाय |
‘रहिमन’ सोई मीत है, भीर परे ठहराय ||

अर्थ:  सच्चा मित्र वही है, जो विपदा में साथ देता है। वह किस काम का मित्र, जो विपत्ति के समय अलग हो जाता है? मक्खन मथते-मथते रह जाता है, किन्तु मट्ठा दही का साथ छोड़ देता है।

32. 

रहिमन’ वहां न जाइये, जहां कपट को हेत |
हम तो ढारत ढेकुली, सींचत अपनो खेत ||

अर्थ:  ऐसी जगह कभी नहीं जाना चाहिए, जहां छल-कपट से कोई अपना मतलब निकालना चाहे। हम तो बड़ी मेहनत से पानी खींचते हैं कुएं से ढेंकुली द्वारा, और कपटी आदमी बिना मेहनत के ही अपना खेत सींच लेते हैं।

33. 

छिमा बड़न को चाहिये, छोटन को उतपात |
कह रहीम हरी का घट्यौ, जो भृगु मारी लात ||

अर्थ:  उम्र से बड़े लोगों को क्षमा शोभा देती हैं, और छोटों को बदमाशी। मतलब छोटे बदमाशी करे तो कोई बात नहीं बड़ो ने छोटों को इस बात पर क्षमा कर देना चाहिए। अगर छोटे बदमाशी करते हैं तो उनकी मस्ती भी छोटी ही होती हैं। जैसे अगर छोटा सा कीड़ा लात भी मारे तो उससे कोई नुकसान नहीं होता।

34. 

बिगरी बात बने नहीं, लाख करो किन कोय।
रहिमन फाटे दूध को, मथे न माखन होय||

अर्थ: मनुष्य को सोचसमझ कर व्यवहार करना चाहिए, क्योंकि किसी कारणवश यदि बात बिगड़ जाती है तो फिर उसे बनाना कठिन होता है, जैसे यदि एकबार दूध फट गया तो लाख कोशिश करने पर भी उसे मथ कर मक्खन नहीं निकाला जा सकेगा।

35. 

खैर, खून, खाँसी, खुसी, बैर, प्रीति, मदपान.
रहिमन दाबे न दबै, जानत सकल जहान ||

अर्थ:  सारा संसार जानता हैं की खैरियत, खून, खाँसी, ख़ुशी, दुश्मनी, प्रेम और शराब का नशा छुपाने से नहीं छुपता हैं।

36.

आब गई आदर गया, नैनन गया सनेहि।
ये तीनों तब ही गये, जबहि कहा कछु देहि॥

अर्थ: जैसे ही कोई कुछ मांगता है, आंखों का मान, सम्मान और प्यार चला जाता है।मांगने वाले व्यक्ति का अभिमान चला गया, उसकी इज्जत चली गई, और उसकी आँखों से प्यार की भावना चली गई। ये तीनों तब चले गए जब उन्होंने कहा कि यह कुछ देता है, यानी जब भी आप किसी से कुछ मांगते हैं। यानी भिक्षा मांगना अपने आप को अपनी ही नजरों से गिरा देना है, इसलिए कभी भीख मांगने जैसा कोई काम न करें।

37.

जो रहीम ओछो बढै, तौ अति ही इतराय |
प्यादे सों फरजी भयो, टेढ़ों टेढ़ों जाय ||

अर्थ:  लोग जब प्रगति करते हैं तो बहुत इतराते हैं। वैसे ही जैसे शतरंज के खेल में ज्यादा फ़र्जी बन जाता हैं तो वह टेढ़ी चाल चलने लता हैं।

38. 

चाह गई चिंता मिटीमनुआ बेपरवाह |
जिनको कुछ नहीं चाहिए, वे साहन के साह ||

अर्थ:  जिन लोगों को कुछ नहीं चाहिए वों लोग राजाओं के राजा हैं, क्योकी उन्हें ना तो किसी चीज की चाह हैं, ना ही चिन्ता और मन तो पूरा बेपरवाह हैं।

39.

जे गरीब पर हित करैं, हे रहीम बड़ लोग।

कहा सुदामा बापुरो, कृष्ण मिताई जोग॥

अर्थ: रहीम दास जी कहते है जो लोग गरीबों का भला करते हैं वे सबसे बड़े होते हैं। सुदामा कहते हैं, कृष्ण के साथ दोस्ती भी एक आध्यात्मिक अभ्यास है।

40. 

रहिमन पानी राखिये, बिन पानी सब सुन |
पानी गये न ऊबरे, मोटी मानुष चुन ||

अर्थ:  इस दोहे में रहीम ने पानी को तीन अर्थों में प्रयोग किया है, पानी का पहला अर्थ:  मनुष्य के संदर्भ में है जब इसका मतलब विनम्रता से है। रहीम कह रहे हैं की मनुष्य में हमेशा विनम्रता होनी चाहिये | पानी का दूसरा अर्थ:  आभा, तेज या चमक से है जिसके बिना मोटी का कोई मूल्य नहीं | पानी का तीसरा अर्थ:  जल से है जिसे आटे से जोड़कर दर्शाया गया हैं। रहीमदास का ये कहना है की जिस तरह आटे का अस्तित्व पानी के बिना नम्र नहीं हो सकता और मोटी का मूल्य उसकी आभा के बिना नहीं हो सकता है, उसी तरह मनुष्य को भी अपने व्यवहार में हमेशा पानी यानी विनम्रता रखनी चाहिये जिसके बिना उसका मूल्यह्रास होता है।

41. 

जो बड़ेन को लघु कहें, नहीं रहीम घटी जाहिं।
गिरधर मुरलीधर कहें, कछु दुःख मानत नाहिं||

अर्थ: रहीम अपने दोहें में कहते हैं कि बड़े को छोटा कहने से बड़े का बड़प्पन नहीं घटता, क्योंकि गिरिधर (कृष्ण) को मुरलीधर कहने से उनकी महिमा में कमी नहीं होती।  

42. 

मन मोटी अरु दूध रस, इनकी सहज सुभाय |
फट जाये तो न मिले, कोटिन करो उपाय ||

अर्थ:  मन, मोती, फूल, दूध और रस जब तक सहज और सामान्य रहते हैं तो अच्छे लगते हैं लेकिन अगर एक बार वो फट जाएं तो कितने भी उपाय कर लो वो फिर से सहज और सामान्य रूप में नहीं आते।

43. 

रहिमन चुप हो बैठिये, देखि दिनन के फेर |
जब नाइके दिन आइहैं, बनत न लगिहैं देर ||

अर्थ:  इस दोहे में रहीम का अर्थ:  है की किसी भी मनुष्य को ख़राब समय आने पर चिंता नहीं करनी चाहिये क्योंकि अच्छा समय आने में देर नहीं लगती और जब अच्छा समय आता हैं तो सबी काम अपने आप होने लगते हैं।

44. 

जो रहीम उत्तम प्रकृति, का करी सकत कुसंग।
चन्दन विष व्यापे नहीं, लिपटे रहत भुजंग||

अर्थ: रहीम कहते हैं कि जो अच्छे स्वभाव के मनुष्य होते हैं,उनको बुरी संगति भी बिगाड़ नहीं पाती. जहरीले सांप चन्दन के वृक्ष से लिपटे रहने पर भी उस पर कोई जहरीला प्रभाव नहीं डाल पाते।

45. 

रहिमन वे नर मर गये, जे कछु मांगन जाहि |
उतने पाहिले वे मुये, जिन मुख निकसत नाहि ||

अर्थ:  जो इन्सान किसी से कुछ मांगने के लिये जाता हैं वो तो मरे हैं ही परन्तु उससे पहले ही वे लोग मर जाते हैं जिनके मुह से कुछ भी नहीं निकलता हैं।

46. 

रहिमन विपदा ही भली, जो थोरे दिन होय |
हित अनहित या जगत में, जानि परत सब कोय ||

अर्थ:  संकट आना जरुरी होता हैं क्योकी इसी दौरान ये पता चलता है की संसार में कौन हमारा हित और बुरा सोचता हैं।

47. 

जे ग़रीब पर हित करैं, हे रहीम बड़ लोग।

कहा सुदामा बापुरो, कृष्ण मिताई जोग॥

अर्थ:  जो लोग गरिब का हित करते हैं वो बड़े लोग होते हैं। जैसे सुदामा कहते हैं कृष्ण की दोस्ती भी एक साधना है।

48. 

जो रहीम गति दीप की, कुल कपूत गति सोय,
बारे उजियारो लगे, बढे अँधेरो होय ||

अर्थ:  दिये के चरित्र जैसा ही कुपुत्र का भी चरित्र होता हैं. दोनों ही पहले तो उजाला करते हैं पर बढ़ने के साथ अंधेरा होता जाता हैं |

49. 

चाह गई चिंता मिटीमनुआ बेपरवाह |
जिनको कुछ नहीं चाहिये, वे साहन के साह ||

अर्थ:  जिन लोगों को कुछ नहीं चाहिये वों लोग राजाओं के राजा हैं, क्योकी उन्हें ना तो किसी चीज की चाह हैं, ना ही चिन्ता और मन तो पूरा बेपरवाह हैं।

50. 

बड़े काम ओछो करै, तो न बड़ाई होय।
ज्यों रहीम हनुमंत को, गिरिधर कहे न कोय॥

अर्थ:  :- रहीम कहते हैं कि जब ओछे ध्येय के लिए लोग बड़े काम करते हैं तो उनकी बड़ाई नहीं होती है। जब हनुमान जी ने धोलागिरी को उठाया था तो उनका नाम ‘गिरिधर’ नहीं पड़ा क्योंकि उन्होंने पर्वत राज को छति पहुंचाई थी, पर जब श्री कृष्ण ने पर्वत उठाया तो उनका नाम ‘गिरिधर’ पड़ा क्योंकि उन्होंने सर्व जन की रक्षा हेतु पर्वत को उठाया था।

51.

माली आवत देख के, कलियन करे पुकारि।

फूले फूले चुनि लिये, कालि हमारी बारि॥

अर्थ: रहीम दास जी कहते है माली को आते देख कलियाँ कहती हैं कि आज उसने फूल चुन लिए, लेकिन कल हमारी भी बारी आएगी, क्योंकि कल हम भी खिलेंगे और फूल बनेंगे।

52.

देनहार कोउ और है, भेजत सो दिन रैन।

लोग भरम हम पै धरैं, याते नीचे नैन ॥

अर्थ:  रहीमदास जी कहते देने वाला भगवान है जो हमें   दिन-रात दे रहा है। लेकिन लोग समझते हैं कि मैं दे रहा हूं, इसलिए दान देते समय  मेरी आंखें अनजाने में शर्म से नीचे गिर जाती हैं।

53.

जे सुलगे ते बुझि गये बुझे तो सुलगे नाहि
रहिमन दाहे प्रेम के बुझि बुझि के सुलगाहि ||

अर्थ:  :- आग सुलग कर बुझ जाती है और बुझने पर फिर सुलगती नहीं है । प्रेम की अग्नि बुझ जाने के बाद पुनः सुलग जाती है। भक्त इसी आग में सुलगते हैं ।

54. 

धनि रहीम गति मीन की जल बिछुरत जिय जाय
जियत कंज तजि अनत वसि कहा भौरे को भाय ||

अर्थ:  :- यहाँ बताया गया है कि मछली का प्रेम धन्य है जो जल से बिछड़ते हीं मर जाती है। भौरा का प्रेम छलावा है जो एक फूल का रस लेकर तुरंत दूसरे फूल पर जा बसता है। जो केवल अपने स्वार्थ के लिये प्रेम करता है, वह स्वार्थी है।

55.

रहिमन’ गली है सांकरी, दूजो नहिं ठहराहिं।

आपु अहै, तो हरि नहीं, हरि, तो आपुन नाहिं॥

अर्थ:  रहीमदास जी कहते  हैं, हृदय की गली बहुत सकरी होती है इसमें दो लोग नहीं ठहर सकते  है या तो आप इसमें अहंकार को बसा ले या फिर इस्वर को

56.

अब रहीम मुसकिल परी, गाढ़े दोऊ काम।

सांचे से तो जग नहीं, झूठे मिलैं न राम ॥

अर्थ:  रहीमदास जी कहते  हैं, इस दुनिया में बहुत  मुश्किल है अगर आप सत्य का साथ देते है है दुनिया आप से नाराज रहेंगे अगर आप इस दुन्या में झूठ बोलते है तो आपको कभी भगवान नहीं मिलेंगे।

57.

अंजन दियो तो किरकिरी, सुरमा दियो न जाय।

जिन आँखिन सों हरि लख्यो, रहिमन बलि बलि जाय॥

अर्थ:  रहीमदास जी कहते  हैं, इन आँखों में  काजल और सुरमा लगाना व्यर्थ है जो लोग इन आँखों में ईश्वर को बसाते  है वे लोग धन्य होते है

58.

उरग तुरग नारी नृपति, नीच जाति हथियार।

रहिमन इन्हें संभारिए, पलटत लगै न बार ॥

अर्थ:  रहीमदास जी कहते  हैं, संकट में फंसे सांप, सबसे परेशान घोड़े,  पीड़ित महिला, क्रोध की आग में जलने वाले राजा, कुटिल व्यक्ति और तेज धार वाले हथियार से हमेशा दूरी बनाकर रखनी चाहिए। इन्हे पलटे देर नहीं लगती ये आपका अहित भी कर सकते है इनसे आपको सावधान रहना चाहिए।

59.

कहि रहीम संपति सगे, बनत बहुत बहु रीत।

बिपति कसौटी जे कसे, तेई सांचे मीत ॥

अर्थ:  रहीमदास जी कहते  हैं,जिनके पास सम्पति होती है उनके पास मित्र भी आपने आप बहुत बन जाते है लेकिन  सच्चे मित्र तो वे ही हैं जो विपत्ति की कसौटी पर कसे जाने पर खरे उतरते हैं। अर्थात विपत्ति में जो  साथ देता है वही सच्चा मित्र है।

60.

कहु रहीम कैसे निभै, बेर केर को संग।

वे डोलत रस आपने, उनके फाटत अंग ॥

अर्थ:  रहीमदास जी कहते  हैं, दो विपरीत सोच वाले व्यक्तियों की आपस में नहीं बनती हैबेर के पेड़ पर काँटे लगें तो केले का पेड़ कोमल होता है। हवा के झोंके के कारण बेर की शाखाएँ चंचलता से हिलती हैं, तो केले के पेड़ का हर हिस्सा फट जाता है।

61.

रहिमन मनहि लगाईं कै, देखि लेहू किन कोय।

नर को बस करिबो कहा, नारायन बस होय॥

अर्थ:  रहीमदास जी कहते  हैं, अगर आप किसी काम को लगन से करने की कोशिश करेंगे तो आप अवश्य सफल होंगे क्योकि लगन से नारायण को भी बस में भी किया जा सकता है।

62.

गुन ते लेत रहीम जन, सलिल कूप ते काढि।

कूपहु ते कहूँ होत है, मन काहू को बाढी॥

अर्थ:  रहीमदास जी कहते  हैं, जैसे गहरे कुएँ से बाल्टी भरकर पानी निकाला जा सकता है, वैसे ही अच्छे कर्मों से किसी के भी दिल में अपने लिए प्यार पैदा किया जा सकता है

63.

कहु रहीम केतिक रही, केतिक गई बिहाय।

माया ममता मोह परि, अन्त चले पछिताय ॥

अर्थ:  रहीमदास जी कहते  हैं, ज़रा सोचिए कि कितना जीवन बचा है और कितना व्यर्थ गया है क्योंकि माया, प्रेम और मोह संसार के क्षणिक सुख है लेकिन आध्यात्मिक सुख स्थायी सुख है

64.

कहा करौं बैकुंठ लै, कल्प बृच्छ की छाँह।

रहिमन ढाक सुहावनो, जो गल पीतम बाँह॥

अर्थ:  रहीमदास जी कहते  हैं, स्वर्ग का सुख और कल्पवृक्ष की छाया नहीं चाहिए मुझे वह ढाक का पेड़ बहुत पसंद है जहां मैं अपने प्रीतम के गले में हाथ डालकर बैठ सकता हूं।

65.

दादुर, मोर, किसान मन, लग्यौ रहै धन मांहि।
पै रहीम चाकत रटनि, सरवर को कोउ नाहि ॥

कवियों मे चातक पक्षी का विरही के रूप में बड़ा ही मार्मिक और हदयग्राही चित्रण किया है। कवियों की दृष्टि में चातक की पुकार में विरह की सशक्त भावाभिव्यक्ति होती है। इस दोहे में रहीम ने चातक की पुकार को अतुलनीय बताया है।

रहीम कहते हैं, मेढ़क, मोर और किसान का मन बादलों में लगा रहता है। जैसे ही गगन में मेघ छाते हैं, इन सबमें मानो नए प्राण आ जाते हैं। मेघों के प्रति लगन की इनकी तुलना चातक से नहीं की जा सकती। मेघ देखते ही चातक का विरही मन पिया की स्मृति में व्याकुल हो जाता है। उसकी व्याकुलता से सिद्ध हो जाता है कि मेघों में जितना उसका मन लगा होता है, किसी और का नहीं।

66.

धन थोरो इज्जत बड़ी, कह रहीम का बात।
जैसे कुल की कुलवधु, चिथड़न माहि समात ॥

अर्थ:  रहीमदास जी कहते  हैं, इज्जत धन से बड़ी होती है पैसा अगर थोड़ा है, पर इज्जत बड़ी है, तो यह कोइ निन्दनीय बात नहीं । खानदानी घर की स्त्री चिथड़े पहनकर भी अपने मान की रक्षा कर लेती हैं। 

67.

प्रीतम छवि नैनन बसि, पर छवि कहां समाय ।

भरी सराय रहीम लखि, आपु पथिक फिरि जाय ॥

अर्थ:  रहीमदास जी कहते  हैं, आँखों में एक और छवि कैसे बस सकती है  जिसमें प्रिय की सुंदर छवि बसती है।

जिन आँखों में प्रियतम की सुन्दर छबि बस गयी, वहां किसी दूसरी छबि को कैसे ठौर मिल सकता है? भरी हुई सराय को देखकर पथिक स्वयं वहां से लौट जाता है।

68.

बड़े बड़ाई ना करें, बड़ो न बोलें बोल ।

रहिमन हीरा कब कहै, लाख टका है मोल ॥

अर्थ:  रहीम कहते हैं कि जिनमें बड़प्पन होता है, वो अपनी बड़ाई कभी नहीं करते। जैसे हीरा कितना भी अमूल्य क्यों न हो, कभी अपने मुँह से अपनी बड़ाई नहीं करता।

69.

नाद रीझि तन देत मृग, नर धन देत समेत ।

ते रहिमन पसु ते अधिक, रीझेहुं कछु न देत ॥

अर्थ:  रहीमदास जी कहते  हैं, संगीत की ध्वनि से मोहित होकर, हिरण अपने शरीर को शिकारी को सौंप देता है। और मनुष्य धन से अपना जीवन खो देता है। लेकिन वे लोग भी जानवर से मर गए, जो संतुष्ट होने पर भी कुछ नहीं देते।

70.

मान सहित विष खाय के, संभु भए जगदीस ।

बिना मान अमृत पिए, राहु कटायो सीस ॥

अर्थ:  रहीमदास जी कहते  हैं,आदर से जब शिव ने विष निगल लिया तो वे जगदीश कहलाए, लेकिन आदर के अभाव में राहु ने अमृत पीकर उनका सिर काट दिया गया ।

71.

को रहीम पर द्वार पै, जात न जिय सकुचात।

संपति के सब जात हैं, बिपति सबै लै जात ॥

रहीम कहते हैं कि दुनिया में ऐसा कौन-सा व्यक्ति है, जिसे दूसरे के दरवाजे पर जाते समय संकोच या झिझक नहीं होती है, लेकिन संकोच क्या करना, धनवानों के द्वार पर तो सभी जाते हैं। हकीकत तो यह है कि धनवानों के द्वार पर लोग स्वयं नहीं जाते हैं। वह तो विपत्ति है, जो उन्हें वहां लेकर जाती है।

कहने का भाव है-विपत्ति काल में ही कोई व्यक्ति धनवानों के द्वार पर जाता है। धनवान भी इस बात को जानते हैं और दरवाजे पर आए व्यक्ति को भिखारी नहीं बल्कि शरणागत समझते हैं और जो बनता है प्रेमपूर्वक देकर विदा करते हैं।

72.

जो रहीम मन हाथ है, तो मन कहुं किन जाहि।

ज्यों जल में छाया परे, काया भीजत नाहिं ॥

अर्थ:  रहीमदास जी कहते  हैं, जिसके मन पर नियंत्रण है, उसका शरीर कहीं भी नहीं जा सकता, भले ही वह सबसे बड़ी बुराइयों को प्राप्त कर ले। जैसे पानी में परावर्तन से शरीर भीगता नहीं है। यानी मन को साधना से शरीर स्वत: स्वस्थ हो जाता है।

73.

दीन सबन को लखत है, दीनहिं लखै न कोय।

जो रहीम दीनहिं लखत, दीनबन्धु सम होय ॥

अर्थ:  रहीमदास जी कहते  हैं, ग़रीबों की नज़र सब पर पड़ती है, मगर ग़रीब को कोई नहीं देखता। जो प्यार से गरीबों की परवाह करता है, उनकी मदद करता है,वह उनके लिए दीनबंधु भगवान के समान हो जाता है।

74.

दुरदिन परे रहीम कहि, भूलत सब पहिचानि।

सोच नहीं वित हानि को, जो न होय हित हानि ॥

अर्थ:रहीमदास जी कहते  हैं, कि जिंदगी में जब बुरे दिन आते हैं तो हर कोई उसे पहचानना भूल जाता है। उस समय, यदि आप दयालु लोगों से सम्मान और प्यार प्राप्त करना जारी रखते हैं, तो धन खोने का दर्द कम हो जाता है।

75.

रहिमन कबहुं बड़ेन के, नाहिं गरब को लेस ।

भार धरे संसार को, तऊ कहावत सेस ॥

अर्थ:रहीमदास जी कहते  हैं, कि बड़े लोग वही होते है जिनको अहंकार नहीं होता है यह सोचना गलत है कि एक अमीर आदमी बड़ा होता है आदमी बड़ा वह होता है उसे कभी किसी चीज पर गर्व नहीं होता है। सुख-दुख में सबकी सहायता करता है, सबका भला सोचता है, अर्थात् सारे जगत् का भार वहन करता है, वह शेषनाग कहलाने योग्य है।

76.

रहिमन विद्या बुद्धि नहीं, नहीं धरम जस दान ।

भू पर जनम वृथा धरै, पसु बिन पूंछ विषान ॥

रहीमदास जी कहते  हैं, कि जिसके पास बुद्धि नहीं है और जिसे शिक्षा पसंद नहीं है, जिसने धर्म और दान नहीं किया है और इस दुनिया में आकर प्रसिद्धि नहीं पाई है; वह व्यक्ति व्यर्थ और पृथ्वी पर एक बोझ बनकर पैदा हुआ है । एक अनजान व्यक्ति और एक जानवर के बीच सिर्फ पूंछ का अंतर है। यानी यह व्यक्ति बिना पूंछ वाला जानवर है

77.

रहिमन पर उपकार के, करत न यारी बीच ।

मांस दियो शिवि भूप ने, दीन्हो हाड़ दधीच ॥

अर्थ: रहीमदास जी कहते  हैं, कि दान करते समय स्वार्थ, मित्रता आदि के बारे में नहीं सोचना चाहिए। राजा शिव ने अपने शरीर का दान दिया और दधीचि ऋषि ने अपनी हड्डियों का दान किया। इसलिए परोपकार में अपने प्राणों की आहुति देने में संकोच नहीं करना चाहिए।

78.

धन दारा अरु सुतन , सो लग्यो है नित चित ।

नहि रहीम कोऊ लख्यो , गाढे दिन को मित॥

अर्थ: रहीमदास जी कहते  हैं, कि मनुष्य को सदैव अपना मन धन, यौवन और संतान में नहीं लगाना चाहिए। क्योंकि जरूरत पड़ने पर उनमें से कोई भी आपका साथ नहीं देगा! अपना मन भगवान की भक्ति में लगाएं क्योंकि मुश्किल की घड़ी में वही आपका साथ देगा।

79.

मांगे मुकरि न को गयो , केहि न त्यागियो साथ।

मांगत आगे सुख लह्यो , ते रहीम रघुनाथ।।

अर्थ: रहीमदास जी कहते  हैं, कि मनुष्य जो मांगता है वह देने से हर कोई इंकार करता है और कोई उसे नहीं देता। उस व्यक्ति में सेलोग अपना साथ भी छोड़ देते है। उस व्यक्ति से खुश रहना बेहतर है जो पूछता है कि भगवान स्वयं किस पर उदार है।

80.

रहिमन तब लगि ठहरिये, दान मान सम्मान।

घटता मान देखिये जबहि, तुरतहि करिए पयान।।

अर्थ: रहीम दास जी कहते हैं कि मनुष्य को तब तक कहीं पर रहना चाहिए जब तक उसके पास सम्मान और सेवा है। जब आप नोटिस करें कि आपके सम्मान में कमी आ रही है, तो आपको तुरंत वहां से निकल जाना चाहिए।

SAREGAMA MUSICAL rahim ke dohe

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