चाणक्य नीति दर्पण मूलत: संस्कृत (Sanskrit) में संस्कृत सुभाषितों के रूप में, काव्यात्मक एवं श्लोकों  के रूप में लिखा हुआ ग्रंथ है। इसके रचनाकार आचार्य चाणक्य हैं। उनके ये संस्कृत श्लोक चाणक्य नीति के नाम से संसार भर में प्रसिद्ध हैं। यहां पर यह श्लोक देवनागरी लिपि एवं  रोमन लिपि में भी दिए गए हैं एवं उनके अर्थ हिंदी देवनागरी एवं अंग्रेजी में रोमन लिपि में भी दिये गये हैं। जिससे विदेशों में रहने वाले भारतीय जो देवनागरी से परिचित नहीं हैं सनातन ग्रंथों के ज्ञान से लाभान्वित हो सकें।

अथैकादशोऽध्यायः ॥ 11 ॥

athaikādaśō’dhyāyaḥ ॥ 11 ॥

ग्रन्थ का नाम : चाणक्यनीतिदर्पण,  रचनाकार – आचार्य चाणक्य,   अध्याय – 11   श्लोक-  16-18

वापीकूपतडागानामारामसुरवेश्मनाम् ॥ 
उच्छेदनेनिराशंक:सविप्रोम्लेच्छउच्यते ।१६।

अर्थ - बावड़ी, कुंआ, तालाब, वाटिका, देवालय, इसके उच्छेद करने में जो निडर हो वह ब्राह्मण म्लेच्छ कहा जाता है ॥ १६ ॥

vāpīkūpataḍāgānāmārāmasuravēśmanām ॥ 
ucchēdanēnirāśaṁka:saviprōmlēcchucyatē |16|
Meaning - One who is fearless in cleaning a stepwell, well, pond, garden, temple, etc. is called a Brahmin Mlechchha(too much sinner). 16 ॥

देवद्रव्यंगुरुद्रव्यंपरदाराभिमर्शनम् ॥ 
निर्वाहः सर्वभूतेषुविप्रश्चांडालउच्यते ॥ १७॥

अर्थ - देवता का द्रव्य और गुरू का द्रव्य जो हरता है और परस्त्री से संग करता है और सब प्राणियों में निर्वाह कर लेता है वह विप्र चांडाल कहलाता है।॥१७॥ 

dēvadravyaṁgurudravyaṁparadārābhimarśanam ॥ 
nirvāhaḥ sarvabhūtēṣuvipraścāṁḍālucyatē ॥ 17॥
Meaning - The substance of the deity and the substance of the Guru who loses and has intercourse with another woman and subsists in all living beings is called Vipra Chandal.॥17॥

देयंभोज्यधनंधनं सुकृतिभिनोसंचयस्तस्यवै । श्रीकर्णस्बवलेश्वविक्चमपतेरद्यापिकीर्तिःस्थि ता ॥ 
अस्माकं मधुदानभोगरहितंनष्टंचिरात्सं चितं । निर्वाणादितिनैजपादयुगलंघर्षंत्यहोम क्षिकाः ॥ १८ ॥

अर्थ - सुकृतियों (सत्कर्म में रत) को चाहिये कि, भोगयोग्य धन को और द्रव्य को देवें कभी न संचें।  कर्ण, बलि, विक्रमादित्य इन राजाओं की कीर्ति इस समय पर्यन्त वर्तमान है, दान भोग से रहित बहुत दिन से संचित हमारे लोगों का मधु नष्ट हो गया।  निश्चय है कि, मधु मखियाँ मधु के नाश होने के कारण दोनों पैरों को घिसा करती हैं ॥ १८ ॥
dēyaṁbhōjyadhanaṁdhanaṁ sukr̥tibhinōsaṁcayastasyavai | śrīkarṇasbavalēśvavikcamapatēradyāpikīrtiḥsthi tā ॥ 
asmākaṁ madhudānabhōgarahitaṁnaṣṭaṁcirātsaṁ citaṁ | nirvāṇāditinaijapādayugalaṁgharṣaṁtyahōma kṣikāḥ ॥ 18 ॥
Meaning - Those doing good deeds (engaged in good deeds) should give away the money that can be enjoyed and never hoard it. The fame of these kings Karna, Bali, Vikramaditya is still present, the honey of our people accumulated for many days without charity and enjoyment has been destroyed. It is certain that honey bees wear out both their legs due to loss of honey. 18 ॥
॥ इति वृद्धचाणक्ये एकादशोऽध्याय ॥11॥
॥ iti vr̥ddhacāṇakyē ēkādaśō’dhyāya ॥11॥

चाणक्य की प्रसिद्धि : 

ये संस्कृत श्लोक आचार्य चाणक्य के द्वारा रचित हैं। उनका नाम कौटिल्य एवं विष्णुगुप्त के नाम से भी प्रसिद्ध है। उनकी रचनाएँ Chanakya सूत्र, chanakya niti, chanakya ni pothi, chanakya quotes, chanakya niti in hindi, chanakya quotes in hindi, चाणक्य, चाणक्य नीति,  चाणक्य नीति की 10 बातें,  चाणक्य नीति की बातें, चाणक्य के कड़वे वचन, चाणक्य नीति स्त्री, चाणक्य नीति की 100 बातें,  चाणक्य विचार इन हिंदी, चाणक्य नीति सुविचार, चाणक्य नीति जीवन जीने की, सुविचार चाणक्य के कड़वे वचन, sanskrit shlok, shlok,sanskrit, sanskrit shlok,sanskrit quotes,shlok in sanskrit, sanskrit thought, sanskrit slokas,संस्कृत श्लोक,श्लोक,छोटे संस्कृत श्लोक, आदि के रूप में चर्चित एवं प्रसिद्ध है । 

चाणक्य का कालातीत प्रभाव  :

हजारों वर्षों के उपरांत भी उनमें वही ताजगी और उपयोगिता है। अतः वे आज भी उतने ही प्रासंगिक बने हुए हैं जितने वे तब थे जब वे लिखे गये थे। संस्कृत में रचित होने के कारण उनमें कालांतर के प्रभाव को स्पष्टतः नहीं देखा जाता है क्योंकि संस्कृत भाषा का सर्वश्रेष्ठ व्याकरण उसके अस्तित्व एवं गुणवत्ता के साथ ही उसके प्रभाव कि भी सुरक्षा करता है। ये अत्यंत ज्ञानवर्धक, पठनीय एवं माननीय हैं। ये जीवन‌ के अनेक चौराहों पर हमारा मार्गदर्शन करते हैं जब सब ओर अंधकार छा जाने की प्रतीति होती है।

About Chanakya (चाणक्य के बारे में) :

 चाणक्य का प्रभाव प्राचीन भारत से परे तक फैला हुआ है, क्योंकि शासन कला और शासन पर उनके विचारों का दुनिया भर के विद्वानों और नीति निर्माताओं द्वारा अध्ययन और सम्मान किया जाता है।  राजनीति के प्रति उनका व्यावहारिक दृष्टिकोण और राज्य और उसके नागरिकों के कल्याण पर उनका जोर उन्हें एक कालातीत व्यक्ति बनाता है जिनकी बुद्धि समय और स्थान की सीमाओं से परे है।