सार्थशिवताण्डवस्तोत्रम्

शिव तांडव स्तोत्रम् – Shiv Tandav Stotram

सार्थशिवताण्डवस्तोत्रम्
॥ श्रीगणेशाय नमः ॥

जटाटवीगलज्जलप्रवाहपावितस्थले
गलेऽवलम्ब्य लम्बितां भुजङ्गतुङ्गमालिकाम् ।
डमड्डमड्डमड्डमन्निनादवड्डमर्वयं
चकार चण्डताण्डवं तनोतु नः शिवः शिवम् ॥१॥

जटाकटाहसम्भ्रमभ्रमन्निलिम्पनिर्झरी
विलोलवीचिवल्लरीविराजमानमूर्धनि ।
धगद्धगद्धगज्ज्वलल्ललाटपट्टपावके
किशोरचन्द्रशेखरे रतिः प्रतिक्षणं मम ॥२॥

धराधरेन्द्रनंदिनीविलासबन्धुबन्धुर
स्फुरद्दिगन्तसन्ततिप्रमोदमानमानसे ।
कृपाकटाक्षधोरणीनिरुद्धदुर्धरापदि
क्वचिद्दिगम्बरे(क्वचिच्चिदम्बरे) मनो विनोदमेतु वस्तुनि ॥३॥

जटाभुजङ्गपिङ्गलस्फुरत्फणामणिप्रभा
कदम्बकुङ्कुमद्रवप्रलिप्तदिग्वधूमुखे ।
मदान्धसिन्धुरस्फुरत्त्वगुत्तरीयमेदुरे
मनो विनोदमद्भुतं बिभर्तु भूतभर्तरि ॥४॥

सहस्रलोचनप्रभृत्यशेषलेखशेखर
प्रसूनधूलिधोरणी विधूसराङ्घ्रिपीठभूः ।
भुजङ्गराजमालया निबद्धजाटजूटक
श्रियै चिराय जायतां चकोरबन्धुशेखरः ॥५॥

ललाटचत्वरज्वलद्धनञ्जयस्फुलिङ्गभा
निपीतपञ्चसायकं नमन्निलिम्पनायकम् ।
सुधामयूखलेखया विराजमानशेखरं
महाकपालिसम्पदेशिरोजटालमस्तु नः ॥६॥

करालभालपट्टिकाधगद्धगद्धगज्ज्वल
द्धनञ्जयाहुतीकृतप्रचण्डपञ्चसायके ।
धराधरेन्द्रनन्दिनीकुचाग्रचित्रपत्रक
प्रकल्पनैकशिल्पिनि त्रिलोचने रतिर्मम ॥७॥

नवीनमेघमण्डली निरुद्धदुर्धरस्फुरत्
कुहूनिशीथिनीतमः प्रबन्धबद्धकन्धरः ।
निलिम्पनिर्झरीधरस्तनोतु कृत्तिसिन्धुरः
कलानिधानबन्धुरः श्रियं जगद्धुरंधरः ॥८॥

प्रफुल्लनीलपङ्कजप्रपञ्चकालिमप्रभा
वलम्बिकण्ठकन्दलीरुचिप्रबद्धकन्धरम् ।
स्मरच्छिदं पुरच्छिदं भवच्छिदं मखच्छिदं
गजच्छिदांधकच्छिदं तमन्तकच्छिदं भजे ॥९॥

अगर्व सर्वमङ्गलाकलाकदम्बमञ्जरी
रसप्रवाहमाधुरी विजृम्भणामधुव्रतम् ।
स्मरान्तकं पुरान्तकं भवान्तकं मखान्तकं
गजान्तकान्धकान्तकं तमन्तकान्तकं भजे ॥१०॥

जयत्वदभ्रविभ्रमभ्रमद्भुजङ्गमश्वस
द्विनिर्गमत्क्रमस्फुरत्करालभालहव्यवाट् ।
धिमिद्धिमिद्धिमिध्वनन्मृदङ्गतुङ्गमङ्गल
ध्वनिक्रमप्रवर्तित प्रचण्डताण्डवः शिवः ॥११॥

दृषद्विचित्रतल्पयोर्भुजङ्गमौक्तिकस्रजोर्
गरिष्ठरत्नलोष्ठयोः सुहृद्विपक्षपक्षयोः ।
तृणारविन्दचक्षुषोः प्रजामहीमहेन्द्रयोः
समं प्रव्रितिक: कदा सदाशिवं भजाम्यहम ॥१२॥

कदा निलिम्पनिर्झरीनिकुञ्जकोटरे वसन्
विमुक्तदुर्मतिः सदा शिरः स्थमञ्जलिं वहन् ।
विमुक्तलोललोचनो ललामभाललग्नकः
शिवेति मंत्रमुच्चरन् कदा सुखी भवाम्यहम् ॥१३॥

निलिम्प नाथनागरी कदम्ब मौलमल्लिका-
निगुम्फनिर्भक्षरन्म धूष्णिकामनोहरः ।
तनोतु नो मनोमुदं विनोदिनींमहनिशं
परिश्रय परं पदं तदङ्गजत्विषां चयः ॥१४॥

प्रचण्ड वाडवानल प्रभाशुभप्रचारणी
महाष्टसिद्धिकामिनी जनावहूत जल्पना ।
विमुक्त वाम लोचनो विवाहकालिकध्वनिः
शिवेति मन्त्रभूषगो जगज्जयाय जायताम् ॥१५॥

इमं हि नित्यमेवमुक्तमुत्तमोत्तमं स्तवं
पठन्स्मरन्ब्रुवन्नरो विशुद्धिमेतिसंततम् ।
हरे गुरौ सुभक्तिमाशु याति नान्यथा गतिं
विमोहनं हि देहिनां सुशङ्करस्य चिंतनम् ॥१६॥

पूजावसानसमये दशवक्त्रगीतं
यः शम्भुपूजनपरं पठति प्रदोषे ।
तस्य स्थिरां रथगजेन्द्रतुरङ्गयुक्तां
लक्ष्मीं सदैव सुमुखिं प्रददाति शम्भुः ॥१७॥

इति श्रीरावण कृतम्

शिव ताण्डव स्तोत्रम्स म्पूर्णम्

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शिव तांडव स्तोत्रम् (Shiva Tandav Stotram) अर्थ हिंदी में:

शिव तांडव स्तोत्र – Hindi Lyrics and Meaning

जटा टवी गलज्जलप्रवाह पावितस्थले गलेऽव लम्ब्यलम्बितां भुजंगतुंग मालिकाम्‌।
डमड्डमड्डमड्डमन्निनाद वड्डमर्वयं चकारचण्डताण्डवं तनोतु नः शिव: शिवम्‌ ॥१॥

उनके बालों से बहने वाले जल से उनका कंठ पवित्र है,
और उनके गले में सांप है जो हार की तरह लटका है,
और डमरू से डमट् डमट् डमट् की ध्वनि निकल रही है,
भगवान शिव शुभ तांडव नृत्य कर रहे हैं, वे हम सबको संपन्नता प्रदान करें।

 जटाकटा हसंभ्रम भ्रमन्निलिंपनिर्झरी विलोलवीचिवल्लरी विराजमानमूर्धनि।
धगद्धगद्धगज्ज्वल ल्ललाटपट्टपावके किशोरचंद्रशेखरे रतिः प्रतिक्षणं मम: ॥२॥

मेरी शिव में गहरी रुचि है,
जिनका सिर अलौकिक गंगा नदी की बहती लहरों की धाराओं से सुशोभित है,
जो उनकी बालों की उलझी जटाओं की गहराई में उमड़ रही हैं?
जिनके मस्तक की सतह पर चमकदार अग्नि प्रज्वलित है,
और जो अपने सिर पर अर्ध-चंद्र का आभूषण पहने हैं।

 धराधरेंद्रनंदिनी विलासबन्धुबन्धुर स्फुरद्दिगंतसंतति प्रमोद मानमानसे।
कृपाकटाक्षधोरणी निरुद्धदुर्धरापदि क्वचिद्विगम्बरे मनोविनोदमेतु वस्तुनि ॥३॥

मेरा मन भगवान शिव में अपनी खुशी खोजे,
अद्भुत ब्रह्माण्ड के सारे प्राणी जिनके मन में मौजूद हैं,
जिनकी अर्धांगिनी पर्वतराज की पुत्री पार्वती हैं,
जो अपनी करुणा दृष्टि से असाधारण आपदा को नियंत्रित करते हैं, जो सर्वत्र व्याप्त है,
और जो दिव्य लोकों को अपनी पोशाक की तरह धारण करते हैं।

 जटाभुजंगपिंगल स्फुरत्फणामणिप्रभा कदंबकुंकुमद्रव प्रलिप्तदिग्व धूमुखे।
मदांधसिंधु रस्फुरत्वगुत्तरीयमेदुरे मनोविनोदद्भुतं बिंभर्तुभूत भर्तरि ॥४॥

मुझे भगवान शिव में अनोखा सुख मिले, जो सारे जीवन के रक्षक हैं,
उनके रेंगते हुए सांप का फन लाल-भूरा है और मणि चमक रही है,
ये दिशाओं की देवियों के सुंदर चेहरों पर विभिन्न रंग बिखेर रहा है,
जो विशाल मदमस्त हाथी की खाल से बने जगमगाते दुशाले से ढंका है।

 सहस्रलोचन प्रभृत्यशेषलेखशेखर प्रसूनधूलिधोरणी विधूसरां घ्रिपीठभूः।
भुजंगराजमालया निबद्धजाटजूटकः श्रियैचिरायजायतां चकोरबंधुशेखरः ॥५॥

भगवान शिव हमें संपन्नता दें,
जिनका मुकुट चंद्रमा है,
जिनके बाल लाल नाग के हार से बंधे हैं,
जिनका पायदान फूलों की धूल के बहने से गहरे रंग का हो गया है,
जो इंद्र, विष्णु और अन्य देवताओं के सिर से गिरती है।

 ललाटचत्वरज्वल द्धनंजयस्फुलिंगभा निपीतपंच सायकंनम न्निलिंपनायकम्‌।
सुधामयूखलेखया विराजमानशेखरं महाकपालिसंपदे शिरोजटालमस्तुनः ॥६॥

शिव के बालों की उलझी जटाओं से हम सिद्धि की दौलत प्राप्त करें,
जिन्होंने कामदेव को अपने मस्तक पर जलने वाली अग्नि की चिनगारी से नष्ट किया था,
जो सारे देवलोकों के स्वामियों द्वारा आदरणीय हैं,
जो अर्ध-चंद्र से सुशोभित हैं।

करालभालपट्टिका धगद्धगद्धगज्ज्वल द्धनंजया धरीकृतप्रचंड पंचसायके।
धराधरेंद्रनंदिनी कुचाग्रचित्रपत्र कप्रकल्पनैकशिल्पिनी त्रिलोचनेरतिर्मम ॥७॥

मेरी रुचि भगवान शिव में है, जिनके तीन नेत्र हैं,
जिन्होंने शक्तिशाली कामदेव को अग्नि को अर्पित कर दिया,
उनके भीषण मस्तक की सतह डगद् डगद्… की घ्वनि से जलती है,
वे ही एकमात्र कलाकार है जो पर्वतराज की पुत्री पार्वती के स्तन की नोक पर,
सजावटी रेखाएं खींचने में निपुण हैं।

 नवीनमेघमंडली निरुद्धदुर्धरस्फुर त्कुहुनिशीथनीतमः प्रबद्धबद्धकन्धरः।
निलिम्पनिर्झरीधरस्तनोतु कृत्तिसिंधुरः कलानिधानबंधुरः श्रियं जगंद्धुरंधरः ॥८॥

भगवान शिव हमें संपन्नता दें,
वे ही पूरे संसार का भार उठाते हैं,
जिनकी शोभा चंद्रमा है,
जिनके पास अलौकिक गंगा नदी है,
जिनकी गर्दन गला बादलों की पर्तों से ढंकी अमावस्या की अर्धरात्रि की तरह काली है।

 प्रफुल्लनीलपंकज प्रपंचकालिमप्रभा विडंबि कंठकंध रारुचि प्रबंधकंधरम्‌।
स्मरच्छिदं पुरच्छिंद भवच्छिदं मखच्छिदं गजच्छिदांधकच्छिदं तमंतकच्छिदं भजे ॥९॥

मैं भगवान शिव की प्रार्थना करता हूं, जिनका कंठ मंदिरों की चमक से बंधा है,
पूरे खिले नीले कमल के फूलों की गरिमा से लटकता हुआ,
जो ब्रह्माण्ड की कालिमा सा दिखता है।
जो कामदेव को मारने वाले हैं, जिन्होंने त्रिपुर का अंत किया,
जिन्होंने सांसारिक जीवन के बंधनों को नष्ट किया, जिन्होंने बलि का अंत किया,
जिन्होंने अंधक दैत्य का विनाश किया, जो हाथियों को मारने वाले हैं,
और जिन्होंने मृत्यु के देवता यम को पराजित किया।

 अखर्वसर्वमंगला कलाकदम्बमंजरी रसप्रवाह माधुरी विजृंभणा मधुव्रतम्‌।
स्मरांतकं पुरातकं भावंतकं मखांतकं गजांतकांधकांतकं तमंतकांतकं भजे ॥१०॥

मैं भगवान शिव की प्रार्थना करता हूं, जिनके चारों ओर मधुमक्खियां उड़ती रहती हैं
शुभ कदंब के फूलों के सुंदर गुच्छे से आने वाली शहद की मधुर सुगंध के कारण,
जो कामदेव को मारने वाले हैं, जिन्होंने त्रिपुर का अंत किया,
जिन्होंने सांसारिक जीवन के बंधनों को नष्ट किया, जिन्होंने बलि का अंत किया,
जिन्होंने अंधक दैत्य का विनाश किया, जो हाथियों को मारने वाले हैं,
और जिन्होंने मृत्यु के देवता यम को पराजित किया।

 जयत्वदभ्रविभ्रम भ्रमद्भुजंगमस्फुरद्ध गद्धगद्विनिर्गमत्कराल भाल हव्यवाट्।
धिमिद्धिमिद्धि मिध्वनन्मृदंग तुंगमंगलध्वनिक्रमप्रवर्तित: प्रचण्ड ताण्डवः शिवः ॥११॥

शिव, जिनका तांडव नृत्य नगाड़े की ढिमिड ढिमिड
तेज आवाज श्रंखला के साथ लय में है,
जिनके महान मस्तक पर अग्नि है, वो अग्नि फैल रही है नाग की सांस के कारण,
गरिमामय आकाश में गोल-गोल घूमती हुई।

 दृषद्विचित्रतल्पयो र्भुजंगमौक्तिकमस्र जोर्गरिष्ठरत्नलोष्ठयोः सुहृद्विपक्षपक्षयोः।
तृणारविंदचक्षुषोः प्रजामहीमहेन्द्रयोः समं प्रवर्तयन्मनः कदा सदाशिवं भजे ॥१२॥

मैं भगवान सदाशिव की पूजा कब कर सकूंगा, शाश्वत शुभ देवता,
जो रखते हैं सम्राटों और लोगों के प्रति समभाव दृष्टि,
घास के तिनके और कमल के प्रति, मित्रों और शत्रुओं के प्रति,
सर्वाधिक मूल्यवान रत्न और धूल के ढेर के प्रति,
सांप और हार के प्रति और विश्व में विभिन्न रूपों के प्रति?

 कदा निलिंपनिर्झरी निकुंजकोटरे वसन्‌ विमुक्तदुर्मतिः सदा शिरःस्थमंजलिं वहन्‌।
विमुक्तलोललोचनो ललामभाललग्नकः शिवेति मंत्रमुच्चरन्‌ कदा सुखी भवाम्यहम्‌ ॥१३॥

मैं कब प्रसन्न हो सकता हूं, अलौकिक नदी गंगा के निकट गुफा में रहते हुए,
अपने हाथों को हर समय बांधकर अपने सिर पर रखे हुए,
अपने दूषित विचारों को धोकर दूर करके, शिव मंत्र को बोलते हुए,
महान मस्तक और जीवंत नेत्रों वाले भगवान को समर्पित?

 इमं हि नित्यमेव मुक्तमुक्तमोत्तम स्तवं पठन्स्मरन्‌ ब्रुवन्नरो विशुद्धमेति संततम्‌।
हरे गुरौ सुभक्तिमाशु याति नान्यथागतिं विमोहनं हि देहिनां सुशंकरस्य चिंतनम् ॥१६॥

इस स्तोत्र को, जो भी पढ़ता है, याद करता है और सुनाता है,
वह सदैव के लिए पवित्र हो जाता है और महान गुरु शिव की भक्ति पाता है।
इस भक्ति के लिए कोई दूसरा मार्ग या उपाय नहीं है।
बस शिव का विचार ही भ्रम को दूर कर देता है।

Audio Link Shanker Mahadewan: Shiv Tandav Stotram by Shankar Mahadevan & Shailesh Dani @JioSaavn

Shiv Tandav Strotam by Ravana – (English Lyrics)Meaning


Jatatavigalajjala pravahapavitasthale
Galeavalambya lambitam bhujangatungamalikam
Damad damad damaddama ninadavadamarvayam
Chakara chandtandavam tanotu nah shivah shivam

With his neck consecrated by the flow of water that flows from his hair,
And on his neck a snake, which is hung like a garland,
And the Damaru drum that emits the sound “Damat Damat Damat Damat”,
Lord Shiva did the auspicious dance of Tandava. May he give prosperity to all of us.

Jata kata hasambhrama bhramanilimpanirjhari
Vilolavichivalarai virajamanamurdhani
Dhagadhagadhagajjva lalalata pattapavake
Kishora chandrashekhare ratih pratikshanam mama

I have a deep interest in Shiva
Whose head is glorified by the rows of moving waves of the celestial Ganga river,
Which stir in the deep well of his hair in tangled locks.
Who has the brilliant fire burning on the surface of his forehead,
And who has the crescent moon as a jewel on his head.

Dharadharendrana ndinivilasabandhubandhura
Sphuradigantasantati pramodamanamanase
Krupakatakshadhorani nirudhadurdharapadi
Kvachidigambare manovinodametuvastuni

May my mind seek happiness in Lord Shiva,
In whose mind all the living beings of the glorious universe exist,
Who is the companion of Parvati (daughter of the mountain king),
Who controls unsurpassed adversity with his compassionate gaze, Which is all-pervading
And who wears the Heavens as his raiment.

Jata bhujan gapingala sphuratphanamaniprabha
Kadambakunkuma dravapralipta digvadhumukhe
Madandha sindhu rasphuratvagutariyamedure
Mano vinodamadbhutam bibhartu bhutabhartari

May I find wonderful pleasure in Lord Shiva, who is the advocate of all life,
With his creeping snake with its reddish brown hood and the shine of its gem on it
Spreading variegated colors on the beautiful faces of the Goddesses of the Directions,
Which is covered by a shimmering shawl made from the skin of a huge, inebriated elephant.

Sahasra lochana prabhritya sheshalekhashekhara
Prasuna dhulidhorani vidhusaranghripithabhuh
Bhujangaraja malaya nibaddhajatajutaka
Shriyai chiraya jayatam chakora bandhushekharah

May Lord Shiva give us prosperity,
Who has the Moon as a crown,
Whose hair is bound by the red snake-garland,
Whose footrest is darkened by the flow of dust from flowers
Which fall from the heads of all the gods – Indra, Vishnu and others.

Lalata chatvarajvaladhanajnjayasphulingabha
nipitapajnchasayakam namannilimpanayakam
Sudha mayukha lekhaya virajamanashekharam
Maha kapali sampade shirojatalamastunah

May we obtain the riches of the Siddhis from the tangled strands Shiva’s hair,
Who devoured the God of Love with the sparks of the fire that burns on his forehead,
Which is revered by all the heavenly leaders,
Which is beautiful with a crescent moon.

Karala bhala pattikadhagaddhagaddhagajjvala
Ddhanajnjaya hutikruta prachandapajnchasayake
Dharadharendra nandini kuchagrachitrapatraka
Prakalpanaikashilpini trilochane ratirmama

My interest is in Lord Shiva, who has three eyes,
Who offered the powerful God of Love to fire.
The terrible surface of his forehead burns with the sound “Dhagad, Dhagad …”
He is the only artist expert in tracing decorative lines
on the tips of the breasts of Parvati, the daughter of the mountain king.

navina megha mandali niruddhadurdharasphurat
Kuhu nishithinitamah prabandhabaddhakandharah
nilimpanirjhari dharastanotu krutti sindhurah
Kalanidhanabandhurah shriyam jagaddhurandharah

May Lord Shiva give us prosperity,
The one who bears the weight of this universe,
Who is enchanting with the moon,
Who has the celestial river Ganga
Whose neck is dark as midnight on a new moon night, covered in layers of clouds.

Praphulla nila pankaja prapajnchakalimchatha
Vdambi kanthakandali raruchi prabaddhakandharam
Smarachchidam purachchhidam bhavachchidam makhachchidam
Gajachchidandhakachidam tamamtakachchidam bhaje

I pray to Lord Shiva, whose neck is bound with the brightness of the temples
hanging with the glory of fully bloomed blue lotus flowers,
Which look like the blackness of the universe.
Who is the slayer of Manmatha, who destroyed the Tripura,
Who destroyed the bonds of worldly life, who destroyed the sacrifice,
Who destroyed the demon Andhaka, who is the destroyer of the elephants,
And who has overwhelmed the God of death, Yama.

Akharvagarvasarvamangala kalakadambamajnjari
Rasapravaha madhuri vijrumbhana madhuvratam
Smarantakam purantakam bhavantakam makhantakam
Gajantakandhakantakam tamantakantakam bhaje

I pray to Lord Siva, who has bees flying all around because of the sweet
Scent of honey coming from the beautiful bouquet of auspicious Kadamba flowers,
Who is the slayer of Manmatha, who destroyed the Tripura,
Who destroyed the bonds of worldly life, who destroyed the sacrifice,
Who destroyed the demon Andhaka, who is the destroyer of the elephants,
And who has overwhelmed the God of death, Yama.

Jayatvadabhravibhrama bhramadbhujangamasafur
Dhigdhigdhi nirgamatkarala bhaal havyavat
Dhimiddhimiddhimidhva nanmrudangatungamangala
Dhvanikramapravartita prachanda tandavah shivah

Shiva, whose dance of Tandava is in tune with the series of loud
sounds of drum making the sound “Dhimid Dhimid”,
Who has fire on his great forehead, the fire that is spreading out because of the
breath of the snake, wandering in whirling motions in the glorious sky.

Drushadvichitratalpayor bhujanga mauktikasrajor
Garishtharatnaloshthayoh suhrudvipakshapakshayoh
Trushnaravindachakshushoh prajamahimahendrayoh
Sama pravartayanmanah kada sadashivam bhaje

When will I be able to worship Lord Sadashiva, the eternally auspicious God,
With equanimous vision towards people or emperors,
Towards a blade of grass and a lotus, towards friends and enemies,
Towards the most precious gem and a lump of dirt,
Toward a snake or a garland and towards the varied forms of the world?

Kada nilimpanirjhari nikujnjakotare vasanh
Vimuktadurmatih sada shirah sthamajnjalim vahanh
Vimuktalolalochano lalamabhalalagnakah
Shiveti mantramuchcharan sada sukhi bhavamyaham

When I can be happy, living in a cave near the celestial river Ganga,
Bringing my hands clasped on my head all the time,
With my impure thoughts washed away, uttering the mantra of Shiva,
Devoted to the God with a glorious forehead and with vibrant eyes?

Imam hi nityameva muktamuttamottamam stavam
Pathansmaran bruvannaro vishuddhimeti santatam
Hare gurau subhaktimashu yati nanyatha gatim
Vimohanam hi dehinam sushankarasya chintanam

Anyone who reads, remembers and recites this stotra as stated here
Is purified forever and obtains devotion in the great Guru Shiva.
For this devotion, there is no other way or refuge.
Just the mere thought of Shiva removes the delusion.

शिव महिम्न स्तोत्र कथा:

एक बार की बात है, एक युवक था जिसका नाम वसुगुप्त था। वह बहुत ही आदर्शवान और धार्मिक जीवन जीने वाला था। वह शिव भक्त था और रोज़ाना शिव मंदिर जाकर पूजा करता था।

एक दिन वसुगुप्त ने विचार किया कि क्या वह शिव के लिए कुछ विशेष कर सकता है। उसने अपने गुरु से पूछा और गुरु ने उसे शिव महिम्न स्तोत्र के बारे में बताया। यह स्तोत्र शिव की महिमा और शक्ति का वर्णन करता है। गुरु ने वसुगुप्त से कहा कि वह इस स्तोत्र का पाठ करें और शिव की कृपा प्राप्त करें।

वसुगुप्त ने गुरु के कहे अनुसार रोज़ाना शिव महिम्न स्तोत्र का पाठ करना शुरू किया। वह इसे पूरे मन और श्रद्धा से पढ़ता था। धीरे-धीरे, वह अपने जीवन में शिव की प्रत्यक्षता को महसूस करने लगा।

जब वसुगुप्त शिव मंदिर जाता था, तो उसे ऐसा लगता था कि शिव मंदिर में वहीं विराजमान हैं और उसकी समस्त आराधनाएं शिव खुद कर रहे हैं। उसे अनु

भव होता था कि उसके आस-पास एक दिव्यता की वातावरण होती है और शिव की कृपा सदैव उसके साथ रहती है।

धीरे-धीरे वसुगुप्त की जीवन में सभी कठिनाइयां और संकट समाप्त हो गए। उसे सब प्रकार की सफलताएं प्राप्त होने लगीं और उसका आत्मविश्वास बढ़ गया। शिव महिम्न स्तोत्र के प्रतिदिनी पाठ से वह अपने जीवन को समृद्धि, शांति और सुख के साथ भर दिया।

इस कथा से हमें यह सीख मिलती है कि शिव महिम्न स्तोत्र के नियमित पाठ से हम अपने जीवन में शिव की कृपा और आशीर्वाद को प्राप्त कर सकते हैं। यह स्तोत्र हमें अंतरंग शांति, मन की स्थिरता और आत्मिक उन्नति प्रदान करता है। इसलिए, हमें नियमित रूप से शिव महिम्न स्तोत्र का पाठ करना चाहिए और शिव की अनन्य भक्ति के माध्यम से उसकी कृपा को प्राप्त करना चाहिए।

वसुगुप्त की इस स्तुति और शिव के प्रति उसका अटूट भक्तिभाव, उसे अपरिमित आनंद और आत्मतृप्ति की प्राप्ति करवाता था। उसके मन में शिव के प्रति गहरी आस्था और भक्ति की ज्योति प्रकट होती थी।

यह कथा हमें यह बताती है कि शिव की महिमा, शक्ति और सामर्थ्य को महसूस करने के लिए हमें उनकी भक्ति को सच्ची और पक्की करनी चाहिए। शिव महिम्न स्तोत्र के माध्यम से हम अपने आप को शिव के अद्भुत गुणों और दिव्यताओं के प्रति संवेदनशील बना सकते हैं। इसके द्वारा हम शिव के प्रति अपार श्रद्धा और समर्पण विकसित कर सकते हैं और उनके आदेशों का पालन करके उनकी कृपा प्राप्त कर सकते हैं।

इस प्रकार, वसुगुप्त ने शिव महिम्न स्तोत्र की मदद से अपने जीवन को प्रकाशमय और सुखमय बना लिया। वह अपने समस्त कर्तव्यों को ध्यान से निभाता था और समाज के लिए नेक कार्यों में लगा रहता था। उसकी आत्मा में शांति, प्रेम, त्याग और उदारता की प्रवृत्ति हो गई। वह सभी को ध्यान और

 सहानुभूति से देखने लगा और उनकी सेवा करने का अवसर प्राप्त होता था।

इस रूप में, शिव महिम्न स्तोत्र ने वसुगुप्त की जीवन में बदलाव लाया और उसे अपने आप को अद्वितीय शिव से जुड़े हुए महसूस कराया। यह स्तोत्र हमें शिव की महानता, करुणा और अनंत शक्ति का अनुभव कराता है और हमें आदर्श जीवन जीने की प्रेरणा देता है। इसलिए, हमें नियमित रूप से शिव महिम्न स्तोत्र का पाठ करना चाहिए और अपने जीवन को शिव के दिव्य आदर्शों के अनुरूप बनाना चाहिए।

  • भज गोविन्दं  (BHAJ GOVINDAM)

    भज गोविन्दं  (BHAJ GOVINDAM)

    आदि गुरु श्री शंकराचार्य विरचित  Adi Shankara’s Bhaja Govindam Bhaj Govindam In Sanskrit Verse Only भज गोविन्दं भज गोविन्दं भजमूढमते । संप्राप्ते सन्निहिते काले नहि नहि रक्षति डुकृञ्करणे ॥ १ ॥ मूढ जहीहि धनागमतृष्णां कुरु सद्बुद्धिं मनसि वितृष्णाम् । यल्लभसे निजकर्मोपात्तं वित्तं तेन विनोदय चित्तम् ॥ २ ॥ नारीस्तनभर नाभीदेशं दृष्ट्वा मागामोहावेशम् । एतन्मांसावसादि विकारं…


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