rahim das ka jivan parichaya

कवि रहीम, साहित्यिक जगत में यह उनका विख्यात नाम है। उन्हें अब्दुल रहीम खान-ए-खाना के नाम से भी जाना जाता है, यह उनका पूरा नाम है। वे 16वीं शताब्दी के दौरान अकबर के दरबार में एक प्रमुख कवि और दरबारी थे। उनका जन्म 1556 में लाहौर में हुआ था, जो अब वर्तमान पाकिस्तान में चला गया है। रहीम के पिता बैरम खान ने ही अकबर कि उसके बचपन में देखभाल कि थी। और वे अकबर के विश्वस्त सलाहकार और संरक्षक रहे थे।
रहीम की शिक्षा
रहीम ने उत्कृष्ट शिक्षा प्राप्त की और फ़ारसी, अरबी और संस्कृत सहित विभिन्न भाषाओं में वे पारंगत थे। उन्हें साहित्य और दर्शन की गहरी समझ थी, जिसने उनकी कविता को बहुत प्रभावित किया। रहीम विशेष रूप से हिंदी भाषा में अपनी दक्षता के लिए जाने जाते थे।
मुस्लिम होने के बावजूद, रहीम के कार्यों में हिंदू और इस्लामी सांस्कृतिक प्रभावों का संश्लेषण झलकता था। उन्होंने “रहीम” उपनाम से लिखा और अपने दोहों या “दोहे” के लिए प्रसिद्ध हैं जिनमें नैतिक और आध्यात्मिक संदेश शामिल थे। उनके दोहे सरल लेकिन गहन थे, वे अक्सर गहरी दार्शनिक अंतर्दृष्टि व्यक्त करने के लिए दैनिक जीवन की परिस्थितियों और रूपकों का उपयोग करते थे।
रहीम चालीसा
रहीम की सबसे प्रसिद्ध साहित्यिक कृति “रहीम चालीसा” है, जो चालीस दोहों का एक संग्रह है जो नैतिक और नीतिपरक शिक्षाएँ प्रदान करती है। यह कृति पूरे भारत में लोगों द्वारा व्यापक रूप से पढ़ी और सुनाई जाती है और लोकप्रिय लोककथाओं का हिस्सा बन गई है।
साहित्य में रहीम के योगदान और भाषा के कुशल उपयोग ने उन्हें हिंदू और मुस्लिम दोनों से मान्यता और सम्मान दिलाया। उनका मुगल दरबार में उनका बहुत सम्मान किया जाता था। अकबर की मृत्यु के बाद, रहीम जहाँगीर के आधीन कार्यरत रहे।
कवि रहीम का जीवन केवल काव्य और साहित्य तक ही सीमित नहीं था। वे प्रशासनिक पदों पर भी रहे और वे अपनी सत्यनिष्ठा और निष्पक्षता के लिए जाने जाते थे। अपने उच्च पद के बावजूद, रहीम विनम्र और दयालु थे, अक्सर गरीबों और वंचितों की मदद करने के लिए अपने प्रभाव का उपयोग करते थे।
एक कवि और दार्शनिक के रूप में कवि रहीम की विरासत पीढ़ियों को प्रेरित करती रहती है। उनके दोहे लोकप्रिय बने हुए हैं और उनके कालातीत ज्ञान के लिए जाने जाते हैं। अपनी कविता के माध्यम से सांस्कृतिक विभाजन को पाटने की रहीम की क्षमता और उनके गुणों का अवतार उन्हें भारतीय साहित्य और इतिहास में एक महत्वपूर्ण व्यक्ति बनाता है।
जब रहीम 5 वर्ष के थे, उसी समय उनके पिता की गुजरात के पाटन शहर में हत्या कर दी गई (1561 ई.)। उनका पालन-पोषण स्वयं अकबर की देखरेख में हुआ था।
उनके जीवन के तथ्य:
उनकी कार्यकुशलता से प्रभावित होकर अकबर ने 1572 ई. में गुजरात पर आक्रमण के अवसर पर उन्हें पाटन की जागीर दे दी। अकबर के शासन काल में उनकी लगातार पदोन्नति होती रही।
■ 1576 ई. में गुजरात विजय के बाद उन्हें गुजरात का सूबेदार बनाया गया।
■ 1579 ई. में उसे ‘मीर आरजू’ का पद दिया गया।
■ 1583 ई. में उन्होंने गुजरात के उपद्रव को बड़ी योग्यता से दबाया।
1584 में अकबर ने प्रसन्न होकर उसे ‘खानखाना’ की उपाधि और पाँच हजार का मनसब दिया।
■ 1589 ई. में उन्हें ‘वकील’ की उपाधि से सम्मानित किया गया।
■ 1604 ई. में शहजादा दानियाल और अबुल फजल की मृत्यु के बाद उसे दक्षिण का पूर्ण अधिकार प्राप्त हो गया। जहाँगीर के शासन के प्रारम्भिक दिनों में भी उन्हें वैसा ही सम्मान मिलता रहा।
■ 1623 ई. में जब शाहजहाँ विद्रोही था, तब उसने जहाँगीर के विरुद्ध उसका साथ दिया।
■ 1625 ई. में उसने माफी मांगी और पुनः ‘खानखाना’ की उपाधि प्राप्त की।
■ 1626 ई. में 70 वर्ष की आयु में उनकी मृत्यु हो गई।