चाणक्य नीति दर्पण मूलत: संस्कृत (Sanskrit) में संस्कृत सुभाषितों के रूप में, काव्यात्मक एवं श्लोकों के रूप में लिखा हुआ ग्रंथ है। इसके रचनाकार आचार्य चाणक्य हैं। उनके ये संस्कृत श्लोक चाणक्य नीति के नाम से संसार भर में प्रसिद्ध हैं। यहां पर यह श्लोक देवनागरी लिपि एवं रोमन लिपि में भी दिए गए हैं एवं उनके अर्थ हिंदी देवनागरी एवं अंग्रेजी में रोमन लिपि में भी दिये गये हैं। जिससे विदेशों में रहने वाले भारतीय जो देवनागरी से परिचित नहीं हैं सनातन ग्रंथों के ज्ञान से लाभान्वित हो सकें।
नवमोऽध्यायः ॥ 9 ॥
navamō’dhyāyaḥ ॥ 9 ॥
विद्यार्थीसेवकःपान्थःक्षुधार्तोभयकातरः ॥ भाण्डारीप्रतिहारीचसप्तसुप्तान्प्रबोधयेत् ॥ ६ ॥ अर्थ - विद्यार्थी, सेवक, पथिक, भूख से पीडित, भय से कातर, भांडारी और द्वारपाल ये सात यदि सोते हों तो जगा देना चाहिये ॥ ६ ॥ vidyārthīsēvakaḥpānthaḥkṣudhārtōbhayakātaraḥ ॥ bhāṇḍārīpratihārīcasaptasuptānprabōdhayēt ॥ 6 ॥ Meaning: If a student, a servant, a traveler, someone suffering from hunger, one fearful of fear, a steward and a gatekeeper, these seven are sleeping, they should be woken up. 6॥ अहिंनृपंचशार्दूलंचवृद्धंचबालकंतथा ॥ परश्वानंचमूर्खचसप्तसुप्तान्नबोधयेत् ॥ ७ ॥ अर्थ - सांप, राजा, व्याघ्र, बररै, वैसे ही बालक, दूसरे का कुत्ता और मूर्ख ये सात सोते हों तो नहीं जगाना चाहिये ॥ ७ ॥ ahiṁnr̥paṁcaśārdūlaṁcavr̥ddhaṁcabālakaṁtathā ॥ paraśvānaṁcamūrkhacasaptasuptānnabōdhayēt ॥ 7 ॥ Meaning: If a snake, a king, a tiger, a crow, a similar child, someone else's dog and a fool, these seven are asleep, then one should not wake them up. 7 ॥ अर्थाधीताश्वयैर्वेदास्तशूद्रान्नभोजिनः ॥ तेद्विजाः किं करिष्यति निर्विष इवपन्नगाः॥८॥ अर्थ - जिन्होंने धनके अर्थ वेदको पढा, वैसे ही जो शूद्र का अन्न भोजन करते हैं वे ब्राह्मण विषहीन सर्प के समान क्या कर सक्ते हैं ॥ ८ ॥. arthādhītāśvayairvēdāstaśūdrānnabhōjinaḥ ॥ tēdvijāḥ kiṁ kariṣyati nirviṣa ivapannagāḥ॥8॥ Meaning - Those who have studied the Vedas on the meaning of wealth, similarly, those who eat the food of a Shudra, what can a Brahmin do like a non-venomous snake? 8 ll. यस्मिन्रुष्टेभयं नास्तितुष्टेनैवर्धनागमः ॥ नियद्दोऽनुग्रहोनास्तिसरुष्टः किं करिष्यति । ९॥ अर्थ - जिसके क्रुद्ध होने पर न भय है, प्रसन्न होने पर न धन का लाभ, न दंड वा अनुग्रह हो सका है वह रुष्ट होकर क्या करेगा ॥ 9 ॥ yasminruṣṭēbhayaṁ nāstituṣṭēnaivardhanāgamaḥ ॥ niyaddō’nugrahōnāstisaruṣṭaḥ kiṁ kariṣyati | 9॥ Meaning - What will he do when he gets angry, who has no fear when he is angry, who has neither financial gain, nor punishment or grace when he is happy? 9॥ निर्विषेणापिसर्पणकर्तव्यामद्दतीफणा विषमस्तुनचाप्यस्तुघटाटोपोभयंकरः ॥१०॥ अर्थ - विषहीन भी सांप को अपनी फण बढाना चाहिये. इस कारण कि, विष हो वा न हो आडंबर भयजनक होता है ॥ १० ॥ nirviṣēṇāpisarpaṇakartavyāmaddatīphaṇā viṣamastunacāpyastughaṭāṭōpōbhayaṁkaraḥ ॥10॥ Meaning: Even a non-venomous snake should increase its hood. This is because, whether there is poison or not, ostentation is terrifying. 10 ॥
ग्रन्थ का नाम : चाणक्यनीतिदर्पण, रचनाकार – आचार्य चाणक्य, अध्याय – 9 श्लोक- 6-10
चाणक्य की प्रसिद्धि :
ये संस्कृत श्लोक आचार्य चाणक्य के द्वारा रचित हैं। उनका नाम कौटिल्य एवं विष्णुगुप्त के नाम से भी प्रसिद्ध है। उनकी रचनाएँ Chanakya सूत्र, chanakya niti, chanakya ni pothi, chanakya quotes, chanakya niti in hindi, chanakya quotes in hindi, चाणक्य, चाणक्य नीति, चाणक्य नीति की 10 बातें, चाणक्य नीति की बातें, चाणक्य के कड़वे वचन, चाणक्य नीति स्त्री, चाणक्य नीति की 100 बातें, चाणक्य विचार इन हिंदी, चाणक्य नीति सुविचार, चाणक्य नीति जीवन जीने की, सुविचार चाणक्य के कड़वे वचन, sanskrit shlok, shlok,sanskrit, sanskrit shlok,sanskrit quotes,shlok in sanskrit, sanskrit thought, sanskrit slokas,संस्कृत श्लोक,श्लोक,छोटे संस्कृत श्लोक, आदि के रूप में चर्चित एवं प्रसिद्ध है ।
चाणक्य का कालातीत प्रभाव :
हजारों वर्षों के उपरांत भी उनमें वही ताजगी और उपयोगिता है। अतः वे आज भी उतने ही प्रासंगिक बने हुए हैं जितने वे तब थे जब वे लिखे गये थे। संस्कृत में रचित होने के कारण उनमें कालांतर के प्रभाव को स्पष्टतः नहीं देखा जाता है क्योंकि संस्कृत भाषा का सर्वश्रेष्ठ व्याकरण उसके अस्तित्व एवं गुणवत्ता के साथ ही उसके प्रभाव कि भी सुरक्षा करता है। ये अत्यंत ज्ञानवर्धक, पठनीय एवं माननीय हैं। ये जीवन के अनेक चौराहों पर हमारा मार्गदर्शन करते हैं जब सब ओर अंधकार छा जाने की प्रतीति होती है।
About Chanakya (चाणक्य के बारे में) :
चाणक्य का प्रभाव प्राचीन भारत से परे तक फैला हुआ है, क्योंकि शासन कला और शासन पर उनके विचारों का दुनिया भर के विद्वानों और नीति निर्माताओं द्वारा अध्ययन और सम्मान किया जाता है। राजनीति के प्रति उनका व्यावहारिक दृष्टिकोण और राज्य और उसके नागरिकों के कल्याण पर उनका जोर उन्हें एक कालातीत व्यक्ति बनाता है जिनकी बुद्धि समय और स्थान की सीमाओं से परे है।
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