Table of Contents

चाणक्य नीति दर्पण मूलत: संस्कृत (Sanskrit) में संस्कृत सुभाषितों के रूप में, काव्यात्मक एवं श्लोकों  के रूप में लिखा हुआ ग्रंथ है। इसके रचनाकार आचार्य चाणक्य हैं। उनके ये संस्कृत श्लोक चाणक्य नीति के नाम से संसार भर में प्रसिद्ध हैं। यहां पर यह श्लोक देवनागरी लिपि एवं  रोमन लिपि में भी दिए गए हैं एवं उनके अर्थ हिंदी देवनागरी एवं अंग्रेजी में रोमन लिपि में भी दिये गये हैं। जिससे विदेशों में रहने वाले भारतीय जो देवनागरी से परिचित नहीं हैं सनातन ग्रंथों के ज्ञान से लाभान्वित हो सकें।

अथ सप्तमोऽध्यायः ॥ 7 ॥

atha saptamō’dhyāyaḥ ॥ 7 ॥

अंर्थनाशंमनस्तापंगृहिणीचरितानिच ॥ 
नीचवाक्यंचापमानंमतिमान्नप्रकाशयेत् ॥१॥

अर्थ - धन का नाश, मन का ताप, गृहणी का चरित्र, नीच का वचन और अपमान इनको बुद्धिमान् प्रकाश न करें । 

aṁrthanāśaṁmanastāpaṁgr̥hiṇīcaritānica ॥ 
nīcavākyaṁcāpamānaṁmatimānnaprakāśayēt ॥1॥

Meaning - Loss of wealth, remorse, low character of the housewife and insults should not enlighten the wise.

धनधान्यप्रयोगेषुविद्यासंग्रहणेषुच ॥ 
आहारेव्यवहारेचत्यक्तलज्जःसुखीभवेत् ॥ २ ॥
अर्थ - अन्न और धनके व्यापार में, विद्या के संग्रह करने में, आहार और व्यवहार में जो पुरुष लज्जा को दूर रखेगा वह सुखी होगा ॥ २ ॥ 

dhanadhānyaprayōgēṣuvidyāsaṁgrahaṇēṣuca ॥ 
āhārēvyavahārēcatyaktalajjaḥsukhībhavēt ॥ 2 ॥

Meaning - The man who keeps away shame in the trade of food and money, in the accumulation of knowledge, in diet and behavior will be happy.  ।।2॥

संतोष:मृततृप्तानांयत्सुखंशातिरेवंच ।। 
नचतद्धनलुब्धानामितश्चेतश्चधांवताम् ॥ ३ ॥

अर्थ - संतोषरूपी अमृत से जो लोग तृप्त होते हैं उनको जो शांतिसुख होता है वह घन के लोभ से जो इधर उधर दौडा करते हैं उनको नहीं होता ॥ ३ ॥

saṁtōṣa:mr̥tatr̥ptānāṁyatsukhaṁśātirēvaṁca ॥ 
nacataddhanalubdhānāmitaścētaścadhāṁvatām ॥ 3 ॥

Meaning - Those who are satisfied with the nectar of satisfaction, the peace and happiness that they get, is not found in those who run here and there due to greed for money.  ‌।। 3॥
संतोषस्त्रिषु कर्तव्यः स्वदारेभोजनेधने ॥ 
त्रिषुचैवनकर्तव्यो ऽध्ययने जपदानयोः ॥ ४ ॥

अर्थ - अपनी स्त्री, भोजन और धन इन तीनों में सन्तोष करना चाहिये, पढ़ना जप और दान इन तीन में सन्तोष कभी नहीं करना चाहिये ॥४॥

saṁtōṣastriṣu kartavyaḥ svadārēbhōjanēdhanē ॥ 
triṣucaivanakartavyō ’dhyayanē japadānayōḥ ॥ 4 ॥
Meaning - You should be satisfied with your wife, food and money, you should never be satisfied with reading, chanting and charity. ॥4॥

विप्रयोर्विप्रवह्लयोश्वदंपत्योःस्वामिभृत्ययोः 
अन्तरेणनगंतव्यंद्दलस्यवृषभस्यच ॥ ५ ॥

अर्थ - दो ब्राह्मण, ब्राह्मण और भग्न, स्त्री पुरुष, स्वामी भृत्य, हल और बैल इनके मध्य होकर नहीं जाना चाहिये ॥ ५ ॥

viprayōrvipravahlayōśvadaṁpatyōḥsvāmibhr̥tyayōḥ 
antarēṇanagaṁtavyaṁddalasyavr̥ṣabhasyaca ॥ 5 ॥

Meaning - One should not pass between two Brahmins, Brahmins and Bhagna, man and woman, master and servant, plow and bull.  ।‌। 5॥
ग्रन्थ का नाम : चाणक्यनीतिदर्पण,  रचनाकार – आचार्य चाणक्य,   अध्याय – 7   श्लोक-  1-5

चाणक्य की प्रसिद्धि : 

ये संस्कृत श्लोक आचार्य चाणक्य के द्वारा रचित हैं। उनका नाम कौटिल्य एवं विष्णुगुप्त के नाम से भी प्रसिद्ध है। उनकी रचनाएँ Chanakya सूत्र, chanakya niti, chanakya ni pothi, chanakya quotes, chanakya niti in hindi, chanakya quotes in hindi, चाणक्य, चाणक्य नीति,  चाणक्य नीति की 10 बातें,  चाणक्य नीति की बातें, चाणक्य के कड़वे वचन, चाणक्य नीति स्त्री, चाणक्य नीति की 100 बातें,  चाणक्य विचार इन हिंदी, चाणक्य नीति सुविचार, चाणक्य नीति जीवन जीने की, सुविचार चाणक्य के कड़वे वचन, sanskrit shlok, shlok,sanskrit, sanskrit shlok,sanskrit quotes,shlok in sanskrit, sanskrit thought, sanskrit slokas,संस्कृत श्लोक,श्लोक,छोटे संस्कृत श्लोक, आदि के रूप में चर्चित एवं प्रसिद्ध है । 

चाणक्य का कालातीत प्रभाव  :

हजारों वर्षों के उपरांत भी उनमें वही ताजगी और उपयोगिता है। अतः वे आज भी उतने ही प्रासंगिक बने हुए हैं जितने वे तब थे जब वे लिखे गये थे। संस्कृत में रचित होने के कारण उनमें कालांतर के प्रभाव को स्पष्टतः नहीं देखा जाता है क्योंकि संस्कृत भाषा का सर्वश्रेष्ठ व्याकरण उसके अस्तित्व एवं गुणवत्ता के साथ ही उसके प्रभाव कि भी सुरक्षा करता है। ये अत्यंत ज्ञानवर्धक, पठनीय एवं माननीय हैं। ये जीवन‌ के अनेक चौराहों पर हमारा मार्गदर्शन करते हैं जब सब ओर अंधकार छा जाने की प्रतीति होती है।

About Chanakya (चाणक्य के बारे में) :

 चाणक्य का प्रभाव प्राचीन भारत से परे तक फैला हुआ है, क्योंकि शासन कला और शासन पर उनके विचारों का दुनिया भर के विद्वानों और नीति निर्माताओं द्वारा अध्ययन और सम्मान किया जाता है।  राजनीति के प्रति उनका व्यावहारिक दृष्टिकोण और राज्य और उसके नागरिकों के कल्याण पर उनका जोर उन्हें एक कालातीत व्यक्ति बनाता है जिनकी बुद्धि समय और स्थान की सीमाओं से परे है।