चाणक्य नीति दर्पण मूलत: संस्कृत (Sanskrit) में संस्कृत सुभाषितों के रूप में, काव्यात्मक एवं श्लोकों  के रूप में लिखा हुआ ग्रंथ है। इसके रचनाकार आचार्य चाणक्य हैं। उनके ये संस्कृत श्लोक चाणक्य नीति के नाम से संसार भर में प्रसिद्ध हैं। यहां पर यह श्लोक देवनागरी लिपि एवं  रोमन लिपि में भी दिए गए हैं एवं उनके अर्थ हिंदी देवनागरी एवं अंग्रेजी में रोमन लिपि में भी दिये गये हैं। जिससे विदेशों में रहने वाले भारतीय जो देवनागरी से परिचित नहीं हैं सनातन ग्रंथों के ज्ञान से लाभान्वित हो सकें।

अथ पंचदशोऽध्यायः ॥ 15 ॥

atha paṁcadaśō’dhyāyaḥ ॥ 15 ॥

ग्रन्थ का नाम : चाणक्यनीतिदर्पण,  रचनाकार – आचार्य चाणक्य,   अध्याय – 15   श्लोक-  1-10
यस्यचित्तंद्रवीभूतंकृपया सर्वजन्तुषु ॥ 
तस्यज्ञानेनमोक्षणकिं जटाभस्मलेपनः ॥१॥

अर्थ - जिसका चित्त सभी प्राणियों पर दया से द्रवित हो जाता है उसको ज्ञान से, मोक्ष से, जटा से और विभूति के लेपन से क्या है ॥ १ ॥
yasyacittaṁdravībhūtaṁkr̥payā sarvajantuṣu ॥ 
tasyajñānēnamōkṣaṇakiṁ jaṭābhasmalēpanaḥ ॥1॥
Meaning - One whose mind is filled with compassion for all living beings, what does he have to do with knowledge, salvation, hair and the coating of Vibhuti. 1॥

एकमेवाक्षरंयस्तुगुरुः शिष्यं प्रबोधयेत् ॥ 
पृथिव्यानास्तितव्यं यद्दत्त्वा चान्नृणोभवेत् ॥२॥

अर्थ - जो गुरु शिष्य को एकभी अक्षर का उपदेश करता है। पृथ्वी में ऐसा द्रव्य नहीं है जिसको देकर शिष्य उससे उऋण हो जाय ॥ २ ॥

ēkamēvākṣaraṁyastuguruḥ śiṣyaṁ prabōdhayēt ॥ 
pr̥thivyānāstitavyaṁ yaddattvā cānnr̥ṇōbhavēt ॥2॥
Meaning - The teacher who teaches a single letter to the disciple. There is no substance on earth which can be given to a disciple by giving it. 2॥

खलानां कण्टकानांच द्विविधैवप्रतिक्रिया ॥ 
उपानन्मुखभंगोबा दूरतोवा विसर्जनम् ॥ ३ ॥

अर्थ - खल और कांटा इनके दो ही प्रकार के उपाय हैं जूते से मुख का तोड़ना या दूर से उन्हें त्याग देना ॥ ३ ॥

khalānāṁ kaṇṭakānāṁca dvividhaivapratikriyā ॥ 
upānanmukhabhaṁgōbā dūratōvā visarjanam ॥ 3 ॥
Meaning - There are only two types of solutions - a mortar and a thorn, breaking the mouth with a shoe or throwing it away from a distance. 3॥

कुचैलिनं दन्तमलोपसृष्टं बहुवाशिनं निष्ठुरभाषिणं च
सूर्योदये चास्तमिते शयानं विमुञ्चति श्रीर्यदि चक्रपाणिः
OR
कुचैलिनंदन्तम लोपधारिणंबह्वा शिनंनिष्टुरभाषिणंच ।। 
सूर्योदयेचास्तमितेशयानंविमुंचति श्रीर्यद्धिचक्रपाणिः ॥ ४ ॥

अर्थ - मलिन(मैले) वस्त्र वाले को, जो दांतों के मल को दूर नहीं करता उसको, बहुत भोजन करने वाले को, कटु भाषी को, सूर्य के उदय और अस्त के समय में सोने वाले को लक्ष्मी छोड़ देती है चाहे वह विष्णु भी हो॥४॥

kucailinaṁdantama lōpadhāriṇaṁbahvā śinaṁniṣṭurabhā ṣiāṁca ॥ 
sūryōdayēcāstamitēśayānaṁvimuṁcati śrīryaddhicakrapāṇiḥ ॥ 4 ॥

Meaning - Lakshmi leaves the one who wears dirty clothes, the one who does not remove the stool from his teeth, the one who eats a lot, the one who speaks harshly, the one who sleeps during the rising and setting of the sun, even if it is Vishnu. ॥4॥

त्यजंतिमित्राणिधनैविहीनंदाराश्वभृत्याश्च सुहज्जनाश्च ॥ 
तचार्थवंतंपुनराश्रयँतेह्यथोहिलोके पुरुषस्यबंधुः ॥ ५ ॥

मित्र, स्त्री, सेवक, और बन्धु ये धनहीन पुरुष को छोड़ देते हैं और वही पुरुष अर्थवान(धनवान) हो जाता है तो फिर उसी का आश्रय करते हैं अर्थात् धन ही लोक में बन्धु है ॥.५.॥
tyajaṁtimitrāṇidhanaivihīnaṁdārāśvabhr̥tyāśca suhajjanāśca ॥ 
tacārthavaṁtaṁpunarāśrayam̐tēhyathōhilōkē puruṣasyabaṁdhuḥ ॥ 5 ॥

Friends, women, servants, and friends leave a man without money and when the same man becomes wealthy, they take refuge in him, that is, money is their friend in this world. ॥.5.॥

अन्यायोपार्जितंद्रव्यंदशवर्षाणितिष्ठंति ॥ 
प्राप्तएकादशेवर्षेसमूलंचविनश्यति ॥ ६ ॥

अर्थ - अनीति या अन्याय से अर्जित धन दस वर्ष पर्यंत ठहरता है। ग्यारहवें वर्ष के प्राप्त होने पर मूलसहित नष्ट हो जाता है ॥ ६ ॥

anyāyōpārjitaṁdravyaṁdaśavarṣāṇitiṣṭhaṁti ॥ 
prāptēkādaśēvarṣēsamūlaṁcavinaśyati ॥ 6 ॥

Meaning - Money earned through injustice or injustice remains for ten years. On attaining the eleventh year, it is destroyed along with its roots. 6॥

अयुक्तस्वामिनोयुक्तंयुक्तंनी चस्यदूषणम् ।। 
अमृतंराहवेमृत्युर्विषंशंकर भूषणम्॥७॥

अर्थ - अयोग्य वस्तु भी सर्मथ को योग्य होती है और योग्य भी दुर्जन को दूषण, अमृत ने राहु को मृत्यु दिया, विष भी शंकर को विभूषण हो गया॥७॥

ayuktasvāminōyuktaṁyuktaṁnī casyadūṣaṇam ॥ 
amr̥taṁrāhavēmr̥tyurviṣaṁśaṁkara bhūṣaṇam॥7॥

Meaning - Even an unworthy thing becomes worthy of the capable and the worthy also becomes a poison for the wicked, nectar gave death to Rahu, poison also became a decoration for Shankar.॥7॥

तद्भोजनंयद्दिजभुक्तशेषं तत्सौहृदंयतुं क्रियतेप रस्मिन् ॥ 
सामाज्ञता पान करोतिपापं दंर्भविना यःक्रियतेसधर्मः ॥ ८ ॥

अर्थ - वही भोजन है जो ब्राह्मण के भोजन से बचा है। वही मित्रता है जो दूसरे में की जाती है। वही बुद्धिमानी है जो पाप नहीं कराती और जो बिना दंभ के किया जाता है वही धर्म है ॥८॥

tadbhōjanaṁyaddijabhuktaśēṣaṁ tatsauhr̥daṁyatuṁ kriyatēpa rasmin ॥ 
sāmājñatā pāna karōtipāpaṁ daṁrbhavinā yaḥkriyatēsadharmaḥ ॥ 8 ॥

Meaning - It is the food which is left over from the Brahmin's meal. That is friendship which is done in others. That wisdom is that which does not cause sin and that which is done without pride(dambha) is religion.

मणिर्तुठतिपादायेकाचः शिरसिधार्यते ॥ 
क्रयविक्रयवेलाया काचःकाचोमणिर्मणिः॥९॥

अर्थ - माणि पांव के आगे लोटती हो, और कांच सिर पर भी रखा हो परन्तु क्रय विक्रय के समय में कांच कांच ही रहता है और मणि मणि ही रहती है ॥ 9 ॥

maṇirtuṭhatipādāyēkācaḥ śirasidhāryatē ॥ 
krayavikrayavēlāyā kācaḥkācōmaṇirmaṇiḥ॥9॥

Meaning - A gem rolls in front of your feet, and a glass is also placed on your head, but at the time of buying and selling, glass remains glass and a gem remains a gem. 9॥

अनंतशास्त्रंबहुलाश्वविद्या अल्पश्वकालोबहु विघ्नताच ॥ 
यत्सारभूतंतदुपासनीयेंहंसोयथा क्षीरमिवांबुमष्यात् ॥ १० ॥

अर्थ - शास्त्र अनंत हैं और विद्या बहुत हैं, काल थोडा है, और विघ्न बहुत हैं. इस कारण जो सार है उसको ले लेना उचित है, जैसे हंस जल के मध्य से दूध को ले लेता है ॥ 10 ॥

anaṁtaśāstraṁbahulāśvavidyā alpaśvakālōbahu vighnatāca ॥ 
yatsārabhūtaṁtadupāsanīyēṁhaṁsōyathā kṣīramivāṁbumaṣyāt ॥ 10 ॥

Meaning: The scriptures are infinite and the knowledge is numerous, time limited, and the obstacles are many. For this reason, it is appropriate to take the essence, just as a swan takes milk from the middle of water. 10 ॥

चाणक्य की प्रसिद्धि : 

ये संस्कृत श्लोक आचार्य चाणक्य के द्वारा रचित हैं। उनका नाम कौटिल्य एवं विष्णुगुप्त के नाम से भी प्रसिद्ध है। उनकी रचनाएँ Chanakya सूत्र, chanakya niti, chanakya ni pothi, chanakya quotes, chanakya niti in hindi, chanakya quotes in hindi, चाणक्य, चाणक्य नीति,  चाणक्य नीति की 10 बातें,  चाणक्य नीति की बातें, चाणक्य के कड़वे वचन, चाणक्य नीति स्त्री, चाणक्य नीति की 100 बातें,  चाणक्य विचार इन हिंदी, चाणक्य नीति सुविचार, चाणक्य नीति जीवन जीने की, सुविचार चाणक्य के कड़वे वचन, sanskrit shlok, shlok,sanskrit, sanskrit shlok,sanskrit quotes,shlok in sanskrit, sanskrit thought, sanskrit slokas,संस्कृत श्लोक,श्लोक,छोटे संस्कृत श्लोक, आदि के रूप में चर्चित एवं प्रसिद्ध है । 

चाणक्य का कालातीत प्रभाव  :

हजारों वर्षों के उपरांत भी उनमें वही ताजगी और उपयोगिता है। अतः वे आज भी उतने ही प्रासंगिक बने हुए हैं जितने वे तब थे जब वे लिखे गये थे। संस्कृत में रचित होने के कारण उनमें कालांतर के प्रभाव को स्पष्टतः नहीं देखा जाता है क्योंकि संस्कृत भाषा का सर्वश्रेष्ठ व्याकरण उसके अस्तित्व एवं गुणवत्ता के साथ ही उसके प्रभाव कि भी सुरक्षा करता है। ये अत्यंत ज्ञानवर्धक, पठनीय एवं माननीय हैं। ये जीवन‌ के अनेक चौराहों पर हमारा मार्गदर्शन करते हैं जब सब ओर अंधकार छा जाने की प्रतीति होती है।

About Chanakya (चाणक्य के बारे में) :

 चाणक्य का प्रभाव प्राचीन भारत से परे तक फैला हुआ है, क्योंकि शासन कला और शासन पर उनके विचारों का दुनिया भर के विद्वानों और नीति निर्माताओं द्वारा अध्ययन और सम्मान किया जाता है।  राजनीति के प्रति उनका व्यावहारिक दृष्टिकोण और राज्य और उसके नागरिकों के कल्याण पर उनका जोर उन्हें एक कालातीत व्यक्ति बनाता है जिनकी बुद्धि समय और स्थान की सीमाओं से परे है।