चाणक्य नीति दर्पण मूलत: संस्कृत (Sanskrit) में संस्कृत सुभाषितों के रूप में, काव्यात्मक एवं श्लोकों के रूप में लिखा हुआ ग्रंथ है। इसके रचनाकार आचार्य चाणक्य हैं। उनके ये संस्कृत श्लोक चाणक्य नीति के नाम से संसार भर में प्रसिद्ध हैं। यहां पर यह श्लोक देवनागरी लिपि एवं रोमन लिपि में भी दिए गए हैं एवं उनके अर्थ हिंदी देवनागरी एवं अंग्रेजी में रोमन लिपि में भी दिये गये हैं। जिससे विदेशों में रहने वाले भारतीय जो देवनागरी से परिचित नहीं हैं सनातन ग्रंथों के ज्ञान से लाभान्वित हो सकें।
अथ चतुर्दशोऽध्यायः ॥ 14 ॥
atha caturdaśō’dhyāyaḥ ॥ 14 ॥
ग्रन्थ का नाम : चाणक्यनीतिदर्पण, रचनाकार – आचार्य चाणक्य, अध्याय – 14 श्लोक- 11-15
अत्यासन्नाविनाशायदूरस्थानफलप्रदाः ॥ सेव्यतामध्यभागेनराजा वह्निर्गुरुः स्त्रियः॥११। अर्थ - अत्यंत निकट रहने पर विनाश के हेतु होते हैं, दूर रहने से फल नहीं देते, इस हेतु राजा, अग्नि, गुरु और स्त्री इनको मध्यम अवस्था से सेवना चाहिये ॥ ११ ॥ atyāsannāvināśāyadūrasthānaphalapradāḥ ॥ sēvyatāmadhyabhāgēnarājā vahnirguruḥ striyaḥ॥11।। Meaning - If kept very close, they lead to destruction, if kept far away do not give results, hence king, fire, guru and woman should consume them in the middle stage. ।। 11 ॥ अग्निरापःस्त्रियोमूर्खःसर्पोराजकुलानिच । ॥ नित्यंयत्नेनसेव्यानिसद्यःप्राणहराणिषट्।१२। अर्थ - आग, जल, स्त्री, मूर्ख, सर्प और राजा के कुल ये सदा सावधानी से सेवन करने योग्य हैं ये छः शीघ्र ही प्राण हरनेवाले कहे गये हैं ॥ १२ ॥ agnirāpaḥstriyōmūrkhaḥsarpōrājakulānica ॥ nityaṁyatnēnasēvyānisadyaḥprāṇaharāṇiṣaṭ ।।12।। Meaning - Fire, water, woman, fool, snake and king's family should always be consumed(behavior with care) with caution. These six are said to lead to quick loss of life. ।। 12 ॥ सजीवतिगुणायस्ययम्यधर्मः सजीवति ॥ गुणधर्मविहीनस्यजीवितंनिष्प्रयोजनम् ॥१३॥ अर्थ - वही जीता है जिसके गुण हैं, और वही जीता है जिसका धर्म है, गुण और धर्म से हीन पुरुष का जीना व्यर्थ है ॥ १३ ॥ sajīvatiguṇāyasyayamyadharmaḥ sajīvati ॥ guṇadharmavihīnasyajīvitaṁniṣprayōjanam ॥13॥ Meaning - Only he who has qualities lives, and only he lives who has religion, the life of a person who is inferior to qualities and religion is meaningless. 13 ॥ यदीच्छसिवशी कर्तुं जगदे के नकर्मणा ॥ पुरापंचदशास्येभ्योगांचरंतींनिवारय ॥ १४ ॥ अर्थ - जो एक ही कर्म से जगत को वश में करना चाहते हो तो पहले पन्द्रहों के मुख से मन को निवारण करो, तात्पर्य यह है कि, आंख, कान, नाक, जिह्वा, त्वचा ये पांचों ज्ञानेन्द्रिय हैं, मुख, हाथ, पैर, लिंग, गुदा, ये पांच कर्मेन्द्रिय हैं, रूप शब्द रस गन्ध स्पर्श ये पांच ज्ञानेन्द्रियों के विषय हैं इन पन्द्रहों से मन को निवारण करना उचित है ॥ १४ ॥ yadīcchasivaśī kartuṁ jagadē kē nakarmaṇā ॥ purāpaṁcadaśāsyēbhyōgāṁcaraṁtīṁnivāraya ॥ 14 ॥ Meaning - If you want to control the world with just one action, then first control the mind through the fifteen mouths, the meaning is that, eye, ear, nose, tongue, skin, these are the five sense organs, mouth, hands, feet, Penis, anus, these are the five organs of action, form, word, taste, smell and touch are the subjects of the five sense organs. It is appropriate to free the mind from these fifteen. 14 ॥ प्रस्तावसदृशं वाक्यंप्रभावसदृशंप्रियम् ॥ आत्मशक्तिसमको पंयोजाना तिसपण्डितः॥१५॥ अर्थ - प्रसंग के योग्य वाक्य, प्रकृति के सदृश प्रिय और अपनी शक्ति के अनुसार कोप को जो जानता है वही बुद्धिमान् है ॥ १५ ॥ prastāvasadr̥śaṁ vākyaṁprabhāvasadr̥śaṁpriyam ॥ ātmaśaktisamakō paṁyōjānā tisapaṇḍitaḥ॥15॥ Meaning - A sentence suitable to the context, one who knows love according to nature and anger according to his power, he is wise. ।।15.।।
चाणक्य की प्रसिद्धि :
ये संस्कृत श्लोक आचार्य चाणक्य के द्वारा रचित हैं। उनका नाम कौटिल्य एवं विष्णुगुप्त के नाम से भी प्रसिद्ध है। उनकी रचनाएँ Chanakya सूत्र, chanakya niti, chanakya ni pothi, chanakya quotes, chanakya niti in hindi, chanakya quotes in hindi, चाणक्य, चाणक्य नीति, चाणक्य नीति की 10 बातें, चाणक्य नीति की बातें, चाणक्य के कड़वे वचन, चाणक्य नीति स्त्री, चाणक्य नीति की 100 बातें, चाणक्य विचार इन हिंदी, चाणक्य नीति सुविचार, चाणक्य नीति जीवन जीने की, सुविचार चाणक्य के कड़वे वचन, sanskrit shlok, shlok,sanskrit, sanskrit shlok,sanskrit quotes,shlok in sanskrit, sanskrit thought, sanskrit slokas,संस्कृत श्लोक,श्लोक,छोटे संस्कृत श्लोक, आदि के रूप में चर्चित एवं प्रसिद्ध है ।
चाणक्य का कालातीत प्रभाव :
हजारों वर्षों के उपरांत भी उनमें वही ताजगी और उपयोगिता है। अतः वे आज भी उतने ही प्रासंगिक बने हुए हैं जितने वे तब थे जब वे लिखे गये थे। संस्कृत में रचित होने के कारण उनमें कालांतर के प्रभाव को स्पष्टतः नहीं देखा जाता है क्योंकि संस्कृत भाषा का सर्वश्रेष्ठ व्याकरण उसके अस्तित्व एवं गुणवत्ता के साथ ही उसके प्रभाव कि भी सुरक्षा करता है। ये अत्यंत ज्ञानवर्धक, पठनीय एवं माननीय हैं। ये जीवन के अनेक चौराहों पर हमारा मार्गदर्शन करते हैं जब सब ओर अंधकार छा जाने की प्रतीति होती है।
About Chanakya (चाणक्य के बारे में) :
चाणक्य का प्रभाव प्राचीन भारत से परे तक फैला हुआ है, क्योंकि शासन कला और शासन पर उनके विचारों का दुनिया भर के विद्वानों और नीति निर्माताओं द्वारा अध्ययन और सम्मान किया जाता है। राजनीति के प्रति उनका व्यावहारिक दृष्टिकोण और राज्य और उसके नागरिकों के कल्याण पर उनका जोर उन्हें एक कालातीत व्यक्ति बनाता है जिनकी बुद्धि समय और स्थान की सीमाओं से परे है।