चाणक्य नीति दर्पण मूलत: संस्कृत (Sanskrit) में संस्कृत सुभाषितों के रूप में, काव्यात्मक एवं श्लोकों  के रूप में लिखा हुआ ग्रंथ है। इसके रचनाकार आचार्य चाणक्य हैं। उनके ये संस्कृत श्लोक चाणक्य नीति के नाम से संसार भर में प्रसिद्ध हैं। यहां पर यह श्लोक देवनागरी लिपि एवं  रोमन लिपि में भी दिए गए हैं एवं उनके अर्थ हिंदी देवनागरी एवं अंग्रेजी में रोमन लिपि में भी दिये गये हैं। जिससे विदेशों में रहने वाले भारतीय जो देवनागरी से परिचित नहीं हैं सनातन ग्रंथों के ज्ञान से लाभान्वित हो सकें।

अथ त्रयोदशोऽध्यायः ॥ 13 ॥

atha trayōdaśō’dhyāyaḥ ॥ 13 ॥

ग्रन्थ का नाम : चाणक्यनीतिदर्पण,  रचनाकार – आचार्य चाणक्य,   अध्याय – 13   श्लोक-  16-20

अनवस्थितकार्यस्यनजनेनवनेसुखम् ॥ 
जनोदहतिसंसर्गाद्वनं सङ्ग विवर्जनात् ॥ १६ ॥

अर्थ - जिसके कार्य की स्थिरता नहीं रहती वह न जन में और न वन में सुख पाता है। जन उसको संसर्ग से जलाता है और वन संग के त्याग से जलाता है॥ १६ ॥

anavasthitakāryasyanajanēnavanēsukham ॥ 
janōdahatisaṁsargādvanaṁ saṅga vivarjanāt ॥ 16 ॥

Meaning - One who does not have stability in his work finds happiness neither in the world nor in the forest. People burn it with contact and the forest burns with renunciation of company. ।। 16 ॥

यथाखात्वाखनित्रेणभूतलेर्वारिविन्दति ॥ 
तथागुरुगतांविद्यांशुश्रूषुरधिगच्छति ॥ १७ ॥

अर्थ - जैसे खनने के कारण  खनिक उसे खनके  पाताल के जल को पाता है। वैसे ही गुरु गत विद्या को सेवक शिष्य पाता है ॥ १७ ॥

yathākhātvākhanitrēṇabhūtalērvārivindati ॥ 
tathāgurugatāṁvidyāṁśuśrūṣuradhigacchati ॥ 17 ॥

Meaning - As a result of mining, the miner finds the water of the underworld by digging. Similarly, the servant receives the knowledge given by the Guru as his disciple. 17 ॥

कर्मा यत्तफलंपुंसांबुद्धिःकर्मानुसारिणी ॥ 
तथापिसुधिपश्चार्याःसुविचार्यैवकुर्वते ॥१८॥

अर्थ - यद्यपि फल पुरुष के कर्मके आधीन रहता है और बुद्धि भी कर्म के अनुसार ही चलती है तथापि विवेकी महात्मा लोग विचार करके ही अपने काम करते हैं ॥१८॥

karmā yattaphalaṁpuṁsāṁbuddhiḥkarmānusāriṇī ॥ 
tathāpisudhipaścāryāḥsuvicāryaivakurvatē ॥18॥

Meaning - Although the result is dependent on the actions of the man and the intellect also works according to the actions, yet the wise Mahatmas do their work only after thinking. ।।18॥

सन्तोषस्त्रिषुकर्तव्यः स्वदारेभोजनेधने ॥ 
त्रिषुचैवन कर्तव्यो ऽध्ययनेजपदानयोः ॥१९॥

अर्थ - स्त्री, भोजन और धन इन तीन में सन्तोष करना उचित है।  पढना, तप और दान इन तीन में संतोष कभी नहीं करना चाहिये ॥ 19 ॥

santōṣastriṣukartavyaḥ svadārēbhōjanēdhanē ॥ 
triṣucaivana kartavyō ’dhyayanējapadānayōḥ ॥19॥

Meaning: It is appropriate to be satisfied with these three things: woman, food and money. One should never be satisfied with these three - reading, penance and charity. 19 ॥

एकाक्षरप्रदातारंयोगुरुंनाभिवंदते ॥ 
श्वानयोनिशतंभुक्त्वाचाण्डालेष्वभिजायते ॥ 20 ॥

अर्थ - जो एक अक्षर भी देनेवाले गुरु की वन्दना नहीं करता, वह कुत्ते की सौ योनि को भोगकर चांडालों में जन्म लेता है ॥ २० ॥
ēkākṣarapradātāraṁyōguruṁnābhivaṁdatē ॥ 
śvānayōniśataṁbhuktvācāṇḍālēṣvabhijāyatē ॥ 20 ॥
Meaning - One who does not worship the Guru who gives even a single letter, is born among the Chandalas after suffering through the hundred births of a dog. 20 ॥

युगांतेप्रचलेन्मेरुःकल्पांतेसप्तसागराः ॥ 
साधवःप्रतिपन्नार्थान्नचलंतिकदाचन ॥२१॥

अर्थ - युग के अन्त में सुमेरु चलायमान होता है और कल्प के अंत में सातों सागर, परन्तु संतजन स्वीकृत अर्थ से कभी भी विचलित नहीं होते॥ २१ ॥ 

yugāṁtēpracalēnmēruḥkalpāṁtēsaptasāgarāḥ ॥ 
sādhavaḥpratipannārthānnacalaṁtikadācana ॥21॥

Meaning - At the end of the Yuga, Sumeru moves and at the end of the Kalpa, the seven oceans, but the saints never deviate from the accepted meaning. 21 ॥
॥ इति श्रीवृद्धचाणक्ये त्रयोदशोऽध्यायः ॥ १३ ॥
॥ iti śrīvr̥ddhacāṇakyē trayōdaśō’dhyāyaḥ ॥ 13 ॥

चाणक्य की प्रसिद्धि : 

ये संस्कृत श्लोक आचार्य चाणक्य के द्वारा रचित हैं। उनका नाम कौटिल्य एवं विष्णुगुप्त के नाम से भी प्रसिद्ध है। उनकी रचनाएँ Chanakya सूत्र, chanakya niti, chanakya ni pothi, chanakya quotes, chanakya niti in hindi, chanakya quotes in hindi, चाणक्य, चाणक्य नीति,  चाणक्य नीति की 10 बातें,  चाणक्य नीति की बातें, चाणक्य के कड़वे वचन, चाणक्य नीति स्त्री, चाणक्य नीति की 100 बातें,  चाणक्य विचार इन हिंदी, चाणक्य नीति सुविचार, चाणक्य नीति जीवन जीने की, सुविचार चाणक्य के कड़वे वचन, sanskrit shlok, shlok,sanskrit, sanskrit shlok,sanskrit quotes,shlok in sanskrit, sanskrit thought, sanskrit slokas,संस्कृत श्लोक,श्लोक,छोटे संस्कृत श्लोक, आदि के रूप में चर्चित एवं प्रसिद्ध है । 

चाणक्य का कालातीत प्रभाव  :

हजारों वर्षों के उपरांत भी उनमें वही ताजगी और उपयोगिता है। अतः वे आज भी उतने ही प्रासंगिक बने हुए हैं जितने वे तब थे जब वे लिखे गये थे। संस्कृत में रचित होने के कारण उनमें कालांतर के प्रभाव को स्पष्टतः नहीं देखा जाता है क्योंकि संस्कृत भाषा का सर्वश्रेष्ठ व्याकरण उसके अस्तित्व एवं गुणवत्ता के साथ ही उसके प्रभाव कि भी सुरक्षा करता है। ये अत्यंत ज्ञानवर्धक, पठनीय एवं माननीय हैं। ये जीवन‌ के अनेक चौराहों पर हमारा मार्गदर्शन करते हैं जब सब ओर अंधकार छा जाने की प्रतीति होती है।

About Chanakya (चाणक्य के बारे में) :

 चाणक्य का प्रभाव प्राचीन भारत से परे तक फैला हुआ है, क्योंकि शासन कला और शासन पर उनके विचारों का दुनिया भर के विद्वानों और नीति निर्माताओं द्वारा अध्ययन और सम्मान किया जाता है।  राजनीति के प्रति उनका व्यावहारिक दृष्टिकोण और राज्य और उसके नागरिकों के कल्याण पर उनका जोर उन्हें एक कालातीत व्यक्ति बनाता है जिनकी बुद्धि समय और स्थान की सीमाओं से परे है।