चाणक्य नीति दर्पण मूलत: संस्कृत (Sanskrit) में संस्कृत सुभाषितों के रूप में, काव्यात्मक एवं श्लोकों  के रूप में लिखा हुआ ग्रंथ है। इसके रचनाकार आचार्य चाणक्य हैं। उनके ये संस्कृत श्लोक चाणक्य नीति के नाम से संसार भर में प्रसिद्ध हैं। यहां पर यह श्लोक देवनागरी लिपि एवं  रोमन लिपि में भी दिए गए हैं एवं उनके अर्थ हिंदी देवनागरी एवं अंग्रेजी में रोमन लिपि में भी दिये गये हैं। जिससे विदेशों में रहने वाले भारतीय जो देवनागरी से परिचित नहीं हैं सनातन ग्रंथों के ज्ञान से लाभान्वित हो सकें।

अथ त्रयोदशोऽध्यायः ॥ 13 ॥

atha trayōdaśō’dhyāyaḥ ॥ 13 ॥

ग्रन्थ का नाम : चाणक्यनीतिदर्पण,  रचनाकार – आचार्य चाणक्य,   अध्याय – 13   श्लोक-  11-15

दह्यमानः सुतीवेणनीचाः परयशोऽग्निना । 
आशक्तास्तत्पदं गन्तुंततो निंदांमकुर्वते ॥ ११॥

अर्थ - दुर्जन दूसरे की कीर्ति रूप दुःसह अग्नि से जल-कर उसके पद को नहीं पाते इसलिये उसकी निन्दा करने लगते हैं ॥ ११ ॥

dahyamānaḥ sutīvēṇanīcāḥ parayaśō’gninā | 
āśaktāstatpadaṁ gantuṁtatō niṁdāṁmakurvatē ॥ 11॥
Meaning - The wicked burn the fame of another person with the fire of misery and hence they do not get his position, hence they start criticizing him. 11 ॥

बन्धायविषयासंगोभुक्त्यै निर्विषयंमनः ॥ 
मनएवमनुष्याणां कारणंबन्धमोक्षयोः ॥१२॥

अर्थ - विषय में आसक्त मन बन्ध का हेतु है। विषय से रहित मुक्ति का, मनुष्यों के बन्ध और मोक्ष का कारण मन ही है ॥ १२ ॥
bandhāyaviṣayāsaṁgōbhuktyai nirviṣayaṁmanaḥ ॥ 
manēvamanuṣyāṇāṁ kāraṇaṁbandhamōkṣayōḥ ॥12॥

Meaning: The mind attached to the object is the cause of bondage. The mind is the cause of liberation without objects, the bondage and salvation of human beings. ।। 12 ॥

देहाभिमानेगलितेज्ञानेनपरमात्मनः 
यत्रयत्रमनोयातितत्रतत्रसमाधयः ॥ १३ ॥
अर्थ - परमात्मा के ज्ञान से देह के अभिमान के नाश हो जाने पर जहाँ  जहाँ  मन जाता है वहाँ वहाँ समाधि ही है ॥ १३ ॥

dēhābhimānēgalitējñānēnaparamātmanaḥ 
yatrayatramanōyātitatratatrasamādhayaḥ ॥ 13 ॥

Meaning - When the pride of the body is destroyed by the knowledge of God, wherever the mind goes there is only samadhi. ।। 13 ॥

ईप्सितंमनसः सर्वकस्यसंपद्यतेसुखम् ॥ 
दैवायत्तंयतःसर्वंतस्मात्सन्तोषमाश्रयेत्॥१४॥

अर्थ - मन का अभिलाषित सब सुख किसको मिलता है, जिस कारण सब दैवके वश है इससे संतोष पर भरोसा करना उचित है ॥ १४ ॥

īpsitaṁmanasaḥ sarvakasyasaṁpadyatēsukham ॥ 
daivāyattaṁyataḥsarvaṁtasmātsantōṣamāśrayēt॥14॥

Meaning - Who gets all the happiness desired by the mind, because everything is under the control of God, it is appropriate to rely on satisfaction from it. ।। 14 ॥

यथाधेनुसहस्त्रेषुवत्तो गच्छतिमातरम् ॥ 
तथायच्चकृतं कर्मकर्तारमनुगच्छति ॥ १५ ॥

अर्थ - जैसे सहस्रों धेनु के रहते बछरा माता ही के निकट जाता है; वैसे ही जो कुछ कर्म किया जाता सो कर्ता ही को मिलता है ॥ १५ ॥

yathādhēnusahastrēṣuvattō gacchatimātaram ॥ 
tathāyaccakr̥taṁ karmakartāramanugacchati ॥ 15 ॥

Meaning - Just as a calf goes near its mother in the presence of thousands of cows; Similarly, whatever work is done, only the doer gets it. 15.

चाणक्य की प्रसिद्धि : 

ये संस्कृत श्लोक आचार्य चाणक्य के द्वारा रचित हैं। उनका नाम कौटिल्य एवं विष्णुगुप्त के नाम से भी प्रसिद्ध है। उनकी रचनाएँ Chanakya सूत्र, chanakya niti, chanakya ni pothi, chanakya quotes, chanakya niti in hindi, chanakya quotes in hindi, चाणक्य, चाणक्य नीति,  चाणक्य नीति की 10 बातें,  चाणक्य नीति की बातें, चाणक्य के कड़वे वचन, चाणक्य नीति स्त्री, चाणक्य नीति की 100 बातें,  चाणक्य विचार इन हिंदी, चाणक्य नीति सुविचार, चाणक्य नीति जीवन जीने की, सुविचार चाणक्य के कड़वे वचन, sanskrit shlok, shlok,sanskrit, sanskrit shlok,sanskrit quotes,shlok in sanskrit, sanskrit thought, sanskrit slokas,संस्कृत श्लोक,श्लोक,छोटे संस्कृत श्लोक, आदि के रूप में चर्चित एवं प्रसिद्ध है । 

चाणक्य का कालातीत प्रभाव  :

हजारों वर्षों के उपरांत भी उनमें वही ताजगी और उपयोगिता है। अतः वे आज भी उतने ही प्रासंगिक बने हुए हैं जितने वे तब थे जब वे लिखे गये थे। संस्कृत में रचित होने के कारण उनमें कालांतर के प्रभाव को स्पष्टतः नहीं देखा जाता है क्योंकि संस्कृत भाषा का सर्वश्रेष्ठ व्याकरण उसके अस्तित्व एवं गुणवत्ता के साथ ही उसके प्रभाव कि भी सुरक्षा करता है। ये अत्यंत ज्ञानवर्धक, पठनीय एवं माननीय हैं। ये जीवन‌ के अनेक चौराहों पर हमारा मार्गदर्शन करते हैं जब सब ओर अंधकार छा जाने की प्रतीति होती है।

About Chanakya (चाणक्य के बारे में) :

 चाणक्य का प्रभाव प्राचीन भारत से परे तक फैला हुआ है, क्योंकि शासन कला और शासन पर उनके विचारों का दुनिया भर के विद्वानों और नीति निर्माताओं द्वारा अध्ययन और सम्मान किया जाता है।  राजनीति के प्रति उनका व्यावहारिक दृष्टिकोण और राज्य और उसके नागरिकों के कल्याण पर उनका जोर उन्हें एक कालातीत व्यक्ति बनाता है जिनकी बुद्धि समय और स्थान की सीमाओं से परे है।