चाणक्य नीति दर्पण मूलत: संस्कृत (Sanskrit) में संस्कृत सुभाषितों के रूप में, काव्यात्मक एवं श्लोकों के रूप में लिखा हुआ ग्रंथ है। इसके रचनाकार आचार्य चाणक्य हैं। उनके ये संस्कृत श्लोक चाणक्य नीति के नाम से संसार भर में प्रसिद्ध हैं। यहां पर यह श्लोक देवनागरी लिपि एवं रोमन लिपि में भी दिए गए हैं एवं उनके अर्थ हिंदी देवनागरी एवं अंग्रेजी में रोमन लिपि में भी दिये गये हैं। जिससे विदेशों में रहने वाले भारतीय जो देवनागरी से परिचित नहीं हैं सनातन ग्रंथों के ज्ञान से लाभान्वित हो सकें।
अथ द्वादशोऽध्यायः ॥ 12 ॥
atha dvādaśō’dhyāyaḥ ॥ 12 ॥
ग्रन्थ का नाम : चाणक्यनीतिदर्पण, रचनाकार – आचार्य चाणक्य, अध्याय – 12 श्लोक- 11-15
सत्यंमातापिताज्ञानं धर्मोनातादय़ासखा ॥ शांतिः पत्नीक्षमापुत्रः षडेतेममबांधवाः ॥११॥ अर्थ - सत्य मेरी माता है, और ज्ञान पिता, धर्म मेरा भाई है, और, दया मित्र, शांति मेरी स्त्री है, और क्षमा पुत्र, ये ही छः मेरे बन्धु हैं ॥ किसी संसारी पुरुष ने ज्ञानी को देखकर चकित हो पूछा कि, संसार में माता, पिता, भाई, मित्र, स्त्री, पुत्र, ये जितना ही अच्छे से अच्छे हों उतना ही संसार से आनंद होता है तुझको परम आनंद में "पूर्ण देखता हूंँ तो तुझको भी कहीं न कहीं कोई न कोई उनमें से होगा; ज्ञानी ने समझा कि, जिस दशाको देखकर यह चकित है वह दशा क्या सांसारिक कुटुम्बों से हो सकती है। इस कारण जिनसे मुझे परम आनंद होता है उन्हीं को इससे कहूंँ कदाचित् यह भी इनको स्वीकार करे ॥ ११ ॥ satyaṁmātāpitājñānaṁ dharmōnātādaya़āsakhā ॥ śāṁtiḥ patnīkṣamāputraḥ ṣaḍētēmamabāṁdhavāḥ ॥11॥ Meaning - Truth is my mother, knowledge is my father, religion is my brother, kindness is my friend, peace is my wife, and forgiveness is my son, these six are my friends. A worldly man was astonished to see the wise man and asked, "The better your mother, father, brother, friend, wife, son are in the world, the more happiness you experience in the world. When I see you complete, I feel complete." Somewhere too, there must be some one among them; the wise man thought that the condition which he is surprised to see, can he be in this condition of the worldly family. Therefore, let me tell this only to those who give me immense pleasure, perhaps they too will accept them. ॥ 11 ॥ अनित्यानिशरीराणिविभवोनैवशाश्वतः ॥ नित्यंसन्निहितो मृत्युः कर्तव्योधर्मसंग्रहः॥१२॥ अर्थ - शरीर अनित्य है, विभव भी सदा नहीं रहता, मृत्यु सदा निकट ही रहती है; इस कारण धर्म का संग्रह करना चाहिये ॥ १२ ॥ anityāniśarīrāṇivibhavōnaivaśāśvataḥ ॥ nityaṁsannihitō mr̥tyuḥ kartavyōdharmasaṁgrahaḥ॥12॥ Meaning - The body is impermanent, the power also does not last forever, death is always near; For this reason, religion should be collected. 12 ॥ निमंत्रणोत्सवाविमा गावोनवतृणोत्सवाः ॥ पत्युत्साहयुताभार्याअहंकृष्णरणोत्सवः॥१३॥ अर्थ - निमंत्रण ब्राह्मणों का उत्सव है, और नवीन घास गायों का उत्सव है, पति के उत्साह से स्त्रियों को उत्साह होता है, किन्तु हे कृष्ण! मेरा उत्सव है युद्ध॥१३॥ nimaṁtraṇōtsavāvimā gāvōnavatr̥ṇōtsavāḥ ॥ patyutsāhayutābhāryāahaṁkr̥ṣṇaraṇōtsavaḥ॥13॥ Meaning - Invitation is a festival of Brahmins, and new grass is a festival of cows, women get excited by the enthusiasm of their husbands, but O Krishna! My celebration is war॥13॥ मातृवत्परदारांश्वपरद्रव्याणिलोष्टवत् ॥ आत्मवत्सर्वभूतानियःपश्यतिसपश्यति ॥१४॥ or मातृवत्परदारेषु परद्रव्याणि लोष्ठवत् । आत्मवत्सर्वभूतानि यः पश्यति स पंडितः ।।१४।। अर्थ — जो मनुष्य परायी स्त्री को माता के समान समझता है, पराया धन मिट्टी के ढेले के समान मानता है और अपनी ही तरह सब प्राणियों के सुख-दुःख का अनुभव करता है, वही पण्डित है। mātr̥vatparadārāṁśvaparadravyāṇilōṣṭavat ॥ ātmavatsarvabhūtāniyaḥpaśyatisapaśyati ॥14॥ or mātr̥vatparadārēṣu paradravyāṇi lōṣṭhavat | ātmavatsarvabhūtāni yaḥ paśyati sa paṁḍitaḥ ॥14॥ Meaning – The person who considers another's woman like a mother, considers someone else's wealth like a lump of clay and experiences the happiness and sorrow of all living beings like his own, is a wise man. धर्मे तत्परता मुखे मधुरता दाने समुत्साहता मित्रेऽवंचकता गुरौ विनयता चित्तेऽतिगम्भीरता । आचारे शुचिता गुणे रसिकता शास्त्रेषु विज्ञातृता रूपे सुन्दरता शिवे भजनता त्वय्यस्तिभी राघवः ।।१५।। अर्थ - धर्म में तत्परता, मुख में मधुरता, दान में उत्साहता मित्र के विषय में निशच्छलता, गुरू से नम्रता, अंतःकरण में गंभीरता, आचार में पवितत्रा गुणों में रसिकता, शास्त्रों में विशेष ज्ञान, रूप में सुन्दरता और शिवकी भक्ति, (गुरु वसिष्ठ जी रामजी से कहते हैं) हे राघव! ये सभी गुण तुम्ही मे हैं ॥ १५ ॥ dharmē tatparatā mukhē madhuratā dānē samutsāhatā mitrē’vaṁcakatā gurau vinayatā cittē’tigambhīratā | ācārē śucitā guṇē rasikatā śāstrēṣu vijñātr̥tā rūpē sundaratā śivē bhajanatā tvayyastibhī rāghavaḥ ॥15॥ Meaning - Willingness in religion, sweetness of mouth, enthusiasm in charity, sincerity towards friends, humility towards Guru, seriousness in heart, interest in sacred qualities in conduct, special knowledge in scriptures, beauty in form and devotion to Shiva, (Guru Vashishtha Ji) Says to Ramji) Hey Raghav! All these qualities are in you. 15.
चाणक्य की प्रसिद्धि :
ये संस्कृत श्लोक आचार्य चाणक्य के द्वारा रचित हैं। उनका नाम कौटिल्य एवं विष्णुगुप्त के नाम से भी प्रसिद्ध है। उनकी रचनाएँ Chanakya सूत्र, chanakya niti, chanakya ni pothi, chanakya quotes, chanakya niti in hindi, chanakya quotes in hindi, चाणक्य, चाणक्य नीति, चाणक्य नीति की 10 बातें, चाणक्य नीति की बातें, चाणक्य के कड़वे वचन, चाणक्य नीति स्त्री, चाणक्य नीति की 100 बातें, चाणक्य विचार इन हिंदी, चाणक्य नीति सुविचार, चाणक्य नीति जीवन जीने की, सुविचार चाणक्य के कड़वे वचन, sanskrit shlok, shlok,sanskrit, sanskrit shlok,sanskrit quotes,shlok in sanskrit, sanskrit thought, sanskrit slokas,संस्कृत श्लोक,श्लोक,छोटे संस्कृत श्लोक, आदि के रूप में चर्चित एवं प्रसिद्ध है ।
चाणक्य का कालातीत प्रभाव :
हजारों वर्षों के उपरांत भी उनमें वही ताजगी और उपयोगिता है। अतः वे आज भी उतने ही प्रासंगिक बने हुए हैं जितने वे तब थे जब वे लिखे गये थे। संस्कृत में रचित होने के कारण उनमें कालांतर के प्रभाव को स्पष्टतः नहीं देखा जाता है क्योंकि संस्कृत भाषा का सर्वश्रेष्ठ व्याकरण उसके अस्तित्व एवं गुणवत्ता के साथ ही उसके प्रभाव कि भी सुरक्षा करता है। ये अत्यंत ज्ञानवर्धक, पठनीय एवं माननीय हैं। ये जीवन के अनेक चौराहों पर हमारा मार्गदर्शन करते हैं जब सब ओर अंधकार छा जाने की प्रतीति होती है।
About Chanakya (चाणक्य के बारे में) :
चाणक्य का प्रभाव प्राचीन भारत से परे तक फैला हुआ है, क्योंकि शासन कला और शासन पर उनके विचारों का दुनिया भर के विद्वानों और नीति निर्माताओं द्वारा अध्ययन और सम्मान किया जाता है। राजनीति के प्रति उनका व्यावहारिक दृष्टिकोण और राज्य और उसके नागरिकों के कल्याण पर उनका जोर उन्हें एक कालातीत व्यक्ति बनाता है जिनकी बुद्धि समय और स्थान की सीमाओं से परे है।
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