चाणक्य नीति दर्पण मूलत: संस्कृत (Sanskrit) में संस्कृत सुभाषितों के रूप में, काव्यात्मक एवं श्लोकों  के रूप में लिखा हुआ ग्रंथ है। इसके रचनाकार आचार्य चाणक्य हैं। उनके ये संस्कृत श्लोक चाणक्य नीति के नाम से संसार भर में प्रसिद्ध हैं। यहां पर यह श्लोक देवनागरी लिपि एवं  रोमन लिपि में भी दिए गए हैं एवं उनके अर्थ हिंदी देवनागरी एवं अंग्रेजी में रोमन लिपि में भी दिये गये हैं। जिससे विदेशों में रहने वाले भारतीय जो देवनागरी से परिचित नहीं हैं सनातन ग्रंथों के ज्ञान से लाभान्वित हो सकें।

अथ द्वादशोऽध्यायः ॥ 12 ॥

atha dvādaśō’dhyāyaḥ ॥ 12 ॥

ग्रन्थ का नाम : चाणक्यनीतिदर्पण,  रचनाकार – आचार्य चाणक्य,   अध्याय – 11   श्लोक-  6-10
पत्रनैवयदा करीर विटपेदोषोवसंतस्याकंनोलू 
कोप्यवलोकतेयदिदिवा सूर्यस्यकिं दूषणं ॥ 
वर्षानैवपत्तंत्तुचातकमुखेमेघस्य किं दूषणं, 
यत्पूर्वं विधिनाललाटलिखितंतन्मार्जितुं कःक्षमः ।६।

अर्थ - यदि करील के वृक्ष में पत्ते नहीं होते तो बसंत का क्या दोष है? यदि उलूक दिन में नहीं देखता तो सूर्य का क्या दोष है? वर्षा चातक के मुख में नहीं पडती इसमें मेघ का क्या अपराध है? पहले ही ब्रह्मा ने जो कुछ ललाट में लिख रखा है उसे मिटाने को कौन समर्थ है? ॥ ६ ॥

patranaivayadā karīra viṭapēdōṣōvasaṁtasyākaṁnōlū 
kōpyavalōkatēyadidivā sūryasyakiṁ dūṣaṇaṁ ॥ 
varṣānaivapattaṁttucātakamukhēmēghasya kiṁ dūṣaṇaṁ, 
yatpūrvaṁ vidhinālalāṭalikhitaṁtanmārjituṁ kaḥkṣamaḥ |6|
Meaning - If the Karil tree does not have leaves then what is the fault of spring? If the owl does not see during the day then what is the fault of the sun? What is the fault of the cloud in that the rain does not fall on Chatak's face? Who is capable of erasing whatever Brahma has already written on his forehead? ॥ 6॥


सत्संगाद्भवतिहिसाधुताखलानां साधूनांनहि- खलसंगतःखलात्वम्॥
आमोदंकुसुमभवंमृदेव धत्तेमृनंधनहिकुसुमानिधारयन्ति ॥ ७ ॥

अर्थ - निश्चय है कि, अच्छे के संग से दुर्जनों में साधुता आ जाती है परन्तु साधुओं में दुष्टों कि संगति से असाधुता नहीं आती। फूलों की सुगंध को मिट्टी ले लेती है पर मिट्टी की गंधको फूल कभी धारण नहीं करते॥७॥

satsaṁgādbhavatihisādhutākhalānāṁ sādhūnāṁnahi- khalasaṁgataḥkhalātvam॥
āmōdaṁkusumabhavaṁmr̥dēva dhattēmr̥naṁdhanahikusumānidhārayanti ॥ 7 ॥

Meaning - It is certain that the company of the good brings saintliness among the wicked, but the company of the wicked does not bring saintliness among the saints. Soil absorbs the fragrance of flowers but flowers never retain the smell of soil.7॥

साधूनांदर्शनं पुण्यंतीर्थभूताहिसाधवः ॥ 
कालेनफलतेतीर्थसद्यः साधुसमागमः ॥ ८॥

अर्थ - साधुओं का दर्शन ही पुण्य है इस कारण कि, साधु तीर्थरूप है। समय से तीर्थ फल देता है, साधुओं का संग शीघ्र ही काम कर देता है (तुरंत फलदाई है)॥ ८ ॥

sādhūnāṁdarśanaṁ puṇyaṁtīrthabhūtāhisādhavaḥ || 
kālēnaphalatētīrthasadyaḥ sādhusamāgamaḥ || 8||

Meaning - Seeing the sages is a virtue because the sage is a form of pilgrimage. Pilgrimage gives results in time, company of sages gives results soon (it is fruitful immediately). 8॥

विप्रास्मिन्नगरे महान्कथयकस्तालब्रुमाणां गणः । कोदातारजकोददातिवसनंप्रातर्ग्रही- 'त्वानिशि ॥ 
कोदक्षःपरवित्तंदारहरणेसर्वोपि 
दक्षोजनःकस्माज्जीवसिहेसखेविषकृमिन्याये नजीवाम्यहम् ॥ ९ ॥
अर्थ - हे विप्र! इस नगर में कौन बडा है ? ताड़ के पेड़ों का समुदाय, दाता कौन है ? धोबी प्रातःकाल वस्त्र लेता है रात्रि में दे देता है, चतुर कौन है? दूसरे के धन और स्त्री के हरण में सब ही कुशल हैं, तो ऐसे नगर में आप कैसे जीते हो? हे मित्र! विष का कीडा विष ही में जीता है वैसे ही मैं भी जीता हूं ॥ ९ ॥

viprāsminnagarē mahānkathayakastālabrumāṇāṁ gaṇaḥ | 
kōdātārajakōdadātivasanaṁprātargrahī- 'tvāniśi ॥ 
kōdakṣaḥparavittaṁdāraharaṇēsarvōpi 
dakṣōjanaḥkasmājjīvasihēsakhēviṣakr̥minyāyē najīvāmyaham ॥ 9 ॥

Meaning: O Vipra! Who is bigger in this city? Community of palm trees, who is the donor? The washerman takes the clothes in the morning and gives them away at night, who is the clever one? Everyone is skilled in kidnapping other people's wealth and women, so how do you survive in such a city? Hey friend! The poison worm lives in poison, in the same way I also live. ।।9॥

नविप्रपादोदककर्दमानिनवेदशास्त्रध्वनिगर्जि तानि ॥ 
स्वाहास्वधाकारविवर्जितानिश्मशान तुल्यानिगृहाणितानि ॥ १० ॥

अर्थ - जिन घरों में ब्राह्मण के पावों के जल से कीचड़ न भया हो (अर्थात जहाँ  विद्वानों का सम्मान न होता हो) और न वेदशास्त्र के शब्दों की गर्जना होती हो, और जो गृह स्वाहा स्वधा से रहित हो उनको स्मशान के समान समझना चाहिये ॥ १० ॥

naviprapādōdakakardamāninavēdaśāstradhvanigarji tāni ॥ 
svāhāsvadhākāravivarjitāniśmaśāna tulyānigr̥hāṇitāni ॥ 10 ॥
Meaning - The houses where there is no fear of mud from the feet of a Brahmin (i.e. where scholars are not respected) nor where the words of the Vedas are resounding, and which are devoid of Swaha Swadha, should be considered like a cremation ground. 10 ॥

चाणक्य की प्रसिद्धि : 

ये संस्कृत श्लोक आचार्य चाणक्य के द्वारा रचित हैं। उनका नाम कौटिल्य एवं विष्णुगुप्त के नाम से भी प्रसिद्ध है। उनकी रचनाएँ Chanakya सूत्र, chanakya niti, chanakya ni pothi, chanakya quotes, chanakya niti in hindi, chanakya quotes in hindi, चाणक्य, चाणक्य नीति,  चाणक्य नीति की 10 बातें,  चाणक्य नीति की बातें, चाणक्य के कड़वे वचन, चाणक्य नीति स्त्री, चाणक्य नीति की 100 बातें,  चाणक्य विचार इन हिंदी, चाणक्य नीति सुविचार, चाणक्य नीति जीवन जीने की, सुविचार चाणक्य के कड़वे वचन, sanskrit shlok, shlok,sanskrit, sanskrit shlok,sanskrit quotes,shlok in sanskrit, sanskrit thought, sanskrit slokas,संस्कृत श्लोक,श्लोक,छोटे संस्कृत श्लोक, आदि के रूप में चर्चित एवं प्रसिद्ध है । 

चाणक्य का कालातीत प्रभाव  :

हजारों वर्षों के उपरांत भी उनमें वही ताजगी और उपयोगिता है। अतः वे आज भी उतने ही प्रासंगिक बने हुए हैं जितने वे तब थे जब वे लिखे गये थे। संस्कृत में रचित होने के कारण उनमें कालांतर के प्रभाव को स्पष्टतः नहीं देखा जाता है क्योंकि संस्कृत भाषा का सर्वश्रेष्ठ व्याकरण उसके अस्तित्व एवं गुणवत्ता के साथ ही उसके प्रभाव कि भी सुरक्षा करता है। ये अत्यंत ज्ञानवर्धक, पठनीय एवं माननीय हैं। ये जीवन‌ के अनेक चौराहों पर हमारा मार्गदर्शन करते हैं जब सब ओर अंधकार छा जाने की प्रतीति होती है।

About Chanakya (चाणक्य के बारे में) :

 चाणक्य का प्रभाव प्राचीन भारत से परे तक फैला हुआ है, क्योंकि शासन कला और शासन पर उनके विचारों का दुनिया भर के विद्वानों और नीति निर्माताओं द्वारा अध्ययन और सम्मान किया जाता है।  राजनीति के प्रति उनका व्यावहारिक दृष्टिकोण और राज्य और उसके नागरिकों के कल्याण पर उनका जोर उन्हें एक कालातीत व्यक्ति बनाता है जिनकी बुद्धि समय और स्थान की सीमाओं से परे है।