चाणक्य नीति दर्पण मूलत: संस्कृत (Sanskrit) में संस्कृत सुभाषितों के रूप में, काव्यात्मक एवं श्लोकों के रूप में लिखा हुआ ग्रंथ है। इसके रचनाकार आचार्य चाणक्य हैं। उनके ये संस्कृत श्लोक चाणक्य नीति के नाम से संसार भर में प्रसिद्ध हैं। यहां पर यह श्लोक देवनागरी लिपि एवं रोमन लिपि में भी दिए गए हैं एवं उनके अर्थ हिंदी देवनागरी एवं अंग्रेजी में रोमन लिपि में भी दिये गये हैं। जिससे विदेशों में रहने वाले भारतीय जो देवनागरी से परिचित नहीं हैं सनातन ग्रंथों के ज्ञान से लाभान्वित हो सकें।
अथ द्वादशोऽध्यायः ॥ 12 ॥
atha dvādaśō’dhyāyaḥ ॥ 12 ॥
ग्रन्थ का नाम : चाणक्यनीतिदर्पण, रचनाकार – आचार्य चाणक्य, अध्याय – 12 श्लोक- 1-5
सानंदंसदनं सुतास्तुसुधियःकांताप्रियालापि- नी । इच्छापूर्तिधनंस्वयोषितिरतिःस्वाज्ञापराः सेवकाः ॥ आतिथ्यँशिवपूजनंप्रतिदिनं मिष्ठान्न पानंगृहे । साधोः संगमुपासतेचसततंधन्यो गृहस्थाश्रमः ॥ १ ॥ अर्थ - यदि आनंदयुक्त घर मिलने और लडके पंडित (अर्थात जो कुछ जानने योग्य है वह सब सामान्य और उपयोगी ज्ञान से जो युक्त हों ) हों, स्त्री मधुरभाषिणी हो, इच्छा के अनुसार धन हो अपनी ही स्त्री में रति हो, आज्ञापालक सेवक मिले, अतिथिकी सेवा और शिवकी पूजा हो प्रतिदिन गृह में मीठा अन्न और जल मिले सर्वदा साधूके सँग की उपासना, यह गृहस्थाश्रमही धन्य है ॥ १ ॥ sānaṁdaṁsadanaṁ sutāstusudhiyaḥkāṁtāpriyālāpi- nī | icchāpūrtidhanaṁsvayōṣitiratiḥsvājñāparāḥ sēvakāḥ ॥ ātithyam̐śivapūjanaṁpratidinaṁ miṣṭhānna pānaṁgr̥hē | sādhōḥ saṁgamupāsatēcasatataṁdhanyō gr̥hasthāśramaḥ ॥ 1 ॥ Meaning - If one gets a happy home and the boys are Pandits (i.e. those who have general and useful knowledge of all that is worth knowing), the woman is soft-spoken, one gets wealth as per one's wish, one is married to one's own wife, one gets obedient servants, the hospitality is good. There should be service and worship of Lord Shiva, there should be sweet food and water in the house every day, there should always be worship in the company of a saint, this home is blessed. 1॥ भार्तेषुविप्रेषुदयान्वितश्वयच्छ्रइयास्वल्पमुपैतिदानम् ॥ अनंतपारंसमुपैतिराजन्यद्दीयतेतन्न लभेद्विजेभ्यः ॥ २ ॥ अर्थ - जो दयावान् पुरुष आर्त ब्राह्मणों को श्रद्धा से थोड़ा भी दान देता है उस पुरुष को अनन्त होकर वह मिलता है, जो दिया जाता है केवल उतना ही ब्राह्मणों से नहीं मिलता है ॥ २ ॥ bhārtēṣuviprēṣudayānvitaśvayacchriyāsvalpamupaitidānam ॥ anaṁtapāraṁsamupaitirājanyaddīyatētanna labhēdvijēbhyaḥ ॥ 2 ॥ Meaning - The kind man who gives even a little donation to the Brahmins with devotion, gets what he gets infinitely, what is given is not the same amount that is received from the Brahmins. 2॥ दाक्षिण्यंस्वजनेदयापरजने शाठ्यं सदादुर्जने, प्रीतिः साधुजने नयोनृपजनेविद्वजने चार्ज- वम् ॥ सौर्यशत्रुजने क्षमागुरुजनेनारीजने धूर्तता, इत्थंयेपुरुषाः कलासुक्कुशलास्तेष्वेव लोकस्थितिः ॥ ३ ॥ अर्थ - अपने जनों में दाक्षिण्य (अपनेपन से सहायता का भाव), दूसरे जन में दया, दुर्जन में सदा दुष्टता (कठोर आचरण), साधुजन में प्रीति, राजाओं के प्रति नीति का आचरण, विद्वानों से सरलता, शत्रुजन में शूरता, बड़े लोगों के विषय से क्षमा, स्त्री से काम पडने पर धूर्तता, इस प्रकार से जो लोग कला में कुशल होते हैं उन्हीं में लोक की मर्यादा रहती है ॥ ३ ॥ dākṣiṇyaṁsvajanēdayāparajanē śāṭhyaṁ sadādurjanē, prītiḥ sādhujanē nayōnr̥pajanēvidvajanē cārja- vam ॥ sauryaśatrujanē kṣamāgurujanēnārījanē dhūrtatā, itthaṁyēpuruṣāḥ kalāsukkuśalāstēṣvēva lōkasthitiḥ ॥ 3 ॥ Meaning - Dakshinya (feeling of helping oneself through one's belonging) among one's own people, kindness towards others, always wickedness (harsh conduct) among the wicked, love among the saints, ethical behavior towards the kings, simplicity towards the scholars, bravery towards the enemies, respect for the big people. Forgiveness in matters, cunningness in dealing with women, only those who are skilled in this art maintain the dignity of the people. ।।3॥ हस्तौदानविवर्जितौ श्रुतिपुटौसारस्वतद्रोहिणौ नेत्रेसाधुविलोकनेनरहितेपादौनतीर्थंगतौ ॥ अन्यायार्जितवित्तपूर्ण मुदरंवर्गेण तुगंशिगे रेरे जम्बुकमुंच मुंचसइसानीचंसुनिंयंवपुः ॥४॥ अर्थ - हाथ दान रहित है, कान वेदशात्र के विरोधी हैं, नेत्रों ने साधु का दर्शन नहीं किया, पांव ने तीर्थगमन नहीं किया, अन्याय से अर्जित धन से उदर भरा है और गर्वसे शिर ऊंचा हो रहा है। रे रे सियार ऐसे नीच निंद्य शरीर को शीघ्र छोड ॥ ४ ॥ hastaudānavivarjitau śrutipuṭausārasvatadrōhiṇau nētrēsādhuvilōkanēnarahitēpādaunatīrthaṁgatau ॥ anyāyārjitavittapūrṇa mudaraṁvargēṇa tugaṁśigē rērē jambukamuṁca muṁcasisānīcaṁsuniṁyaṁvapuḥ ॥4॥ Meaning - The hands are devoid of charity, the ears are against the Vedas, the eyes have not seen the sage, the feet have not gone on pilgrimage, the stomach is filled with wealth acquired unjustly and the head is held high with pride. Hey jackal, leave such a despicable body quickly. 4॥ येशांश्रीमद्यशोदासुतपदकमले नास्तिभक्ति र्नराणां, येषांमाभीरक़न्याप्रियगुणकथनेनानु रक्तारसंज्ञा ॥ येशांश्रीकृष्णलीलाललितरस कथासादरौनैवकर्णी, धिक्तान् धिकृतान् धिगेतान्कथयति सततं कीर्तनस्थो मृदंगः॥५॥ अर्थ - श्री यशोदा सुत के पदकमल में जिन लोगों की भक्ति नहीं रहती, जिन लोगों की जीभ अहीर की कन्याओं के प्रिय के अर्थात् श्रीकृष्ण के गुणगान में प्रीति नहीं रखती, और श्री कृष्णजी की लीला की ललित - कथा का आदर जिनके कान नहीं करते उन लोगों को धिक् है ऐसा कीर्तन का मृदंग सदा कहता है ॥ ५ ॥ yēśāṁśrīmadyaśōdāsutapadakamalē nāstibhakti rnarāṇāṁ, yēṣāṁmābhīraक़nyāpriyaguṇakathanēnānu raktārasaṁjñā ॥ yēśāṁśrīkr̥ṣṇalīlālalitarasa kathāsādaraunaivakarṇī, dhiktān dhikr̥tān dhigētānkathayati satataṁ kīrtanasthō mr̥daṁgaḥ॥5॥ Meaning - Those people who do not have devotion in the Padkamal of Shri Yashoda Sut, those people whose tongue does not love the praises of the beloved of Ahir's daughters i.e. Shri Krishna, and whose ears do not respect the beautiful story of Shri Krishnaji's Leela. Woe to the people, the Mridang of Kirtan always says this. 5॥
चाणक्य की प्रसिद्धि :
ये संस्कृत श्लोक आचार्य चाणक्य के द्वारा रचित हैं। उनका नाम कौटिल्य एवं विष्णुगुप्त के नाम से भी प्रसिद्ध है। उनकी रचनाएँ Chanakya सूत्र, chanakya niti, chanakya ni pothi, chanakya quotes, chanakya niti in hindi, chanakya quotes in hindi, चाणक्य, चाणक्य नीति, चाणक्य नीति की 10 बातें, चाणक्य नीति की बातें, चाणक्य के कड़वे वचन, चाणक्य नीति स्त्री, चाणक्य नीति की 100 बातें, चाणक्य विचार इन हिंदी, चाणक्य नीति सुविचार, चाणक्य नीति जीवन जीने की, सुविचार चाणक्य के कड़वे वचन, sanskrit shlok, shlok,sanskrit, sanskrit shlok,sanskrit quotes,shlok in sanskrit, sanskrit thought, sanskrit slokas,संस्कृत श्लोक,श्लोक,छोटे संस्कृत श्लोक, आदि के रूप में चर्चित एवं प्रसिद्ध है ।
चाणक्य का कालातीत प्रभाव :
हजारों वर्षों के उपरांत भी उनमें वही ताजगी और उपयोगिता है। अतः वे आज भी उतने ही प्रासंगिक बने हुए हैं जितने वे तब थे जब वे लिखे गये थे। संस्कृत में रचित होने के कारण उनमें कालांतर के प्रभाव को स्पष्टतः नहीं देखा जाता है क्योंकि संस्कृत भाषा का सर्वश्रेष्ठ व्याकरण उसके अस्तित्व एवं गुणवत्ता के साथ ही उसके प्रभाव कि भी सुरक्षा करता है। ये अत्यंत ज्ञानवर्धक, पठनीय एवं माननीय हैं। ये जीवन के अनेक चौराहों पर हमारा मार्गदर्शन करते हैं जब सब ओर अंधकार छा जाने की प्रतीति होती है।
About Chanakya (चाणक्य के बारे में) :
चाणक्य का प्रभाव प्राचीन भारत से परे तक फैला हुआ है, क्योंकि शासन कला और शासन पर उनके विचारों का दुनिया भर के विद्वानों और नीति निर्माताओं द्वारा अध्ययन और सम्मान किया जाता है। राजनीति के प्रति उनका व्यावहारिक दृष्टिकोण और राज्य और उसके नागरिकों के कल्याण पर उनका जोर उन्हें एक कालातीत व्यक्ति बनाता है जिनकी बुद्धि समय और स्थान की सीमाओं से परे है।
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