चाणक्य नीति दर्पण मूलत: संस्कृत (Sanskrit) में संस्कृत सुभाषितों के रूप में, काव्यात्मक एवं श्लोकों के रूप में लिखा हुआ ग्रंथ है। इसके रचनाकार आचार्य चाणक्य हैं। उनके ये संस्कृत श्लोक चाणक्य नीति के नाम से संसार भर में प्रसिद्ध हैं। यहां पर यह श्लोक देवनागरी लिपि एवं रोमन लिपि में भी दिए गए हैं एवं उनके अर्थ हिंदी देवनागरी एवं अंग्रेजी में रोमन लिपि में भी दिये गये हैं। जिससे विदेशों में रहने वाले भारतीय जो देवनागरी से परिचित नहीं हैं सनातन ग्रंथों के ज्ञान से लाभान्वित हो सकें।
अथ तृतीयोऽध्यायः ॥ 3 ॥
atha tr̥tīyō’dhyāyaḥ ॥ 3 ॥
कस्यदोषः कुलेनास्तिव्याधिनाकेनपीडिताः॥ व्यसनंकेनन प्राप्तं कस्य सौख्यंनिरन्तरम् ॥१॥ अर्थ - किस के कुल में दोष नहीं है, व्याधि ने किसे पीडित नहीं किया, किसको दुःख नहीं मिला, किसको सदा सुख ही प्राप्त हुआ है (अर्थात् कोई भी न तो सदा सुखी रहा है और न ही किसी का भी कुल निर्दोष है।)॥ 1 ॥ kasyadōṣaḥ kulēnāstivyādhinākēnapīḍitāḥ॥ vyasanaṁkēnana prāptaṁ kasya saukhyaṁnirantaram ॥1॥ आचार: कुलमाख्यातिदेशमाख्यातिभाषणम्॥ संभ्रमःस्नेहमाख्यातिवपुराख्यातिभोजनम्॥२॥ अर्थ - आचार कुल को बतलाता है, बोली देश को जताती है, आदर प्रीति का प्रकाश करता है, शरीर भोजन को जताता है ॥ २ ॥ ācāra: kulamākhyātidēśamākhyātibhāṣaṇam॥ saṁbhramaḥsnēhamākhyātivapurākhyātibhōjanam॥2॥ Meaning - Conduct reflects the clan, speech reflects the country, respect reflects love, body reflects food. ॥ 2॥ सुकुलेयोजयेत्कन्यापुत्रं विद्या सुयोजयेत् ॥ व्यसनेयोजयेच्छत्रु मिष्टंधर्मेण योजयेत् ॥ ३ ॥ अर्थ - कन्या को श्रेष्ठ कुल वाले को देना चाहिये, पुत्र को विद्या में लगाना चाहिये। शत्रु को दुःख पहुँचाना उचित है, और मित्र को धर्म का उपदेश करना चाहिये ॥ ३ ॥ sukulēyōjayētkanyāputraṁ vidyā suyōjayēt ॥ vyasanēyōjayēcchatru miṣṭaṁdharmēṇa yōjayēt ॥ 3 ॥ Meaning - The daughter should be given to someone from a good family, the son should be engaged in education, it is appropriate to hurt the enemy and one should preach religion to the friend. 3॥ दुर्जनस्यचसर्पस्यवरं सर्पोनदुर्जनः ॥ सर्वोदंशतिकालेतुदुर्जनस्तुपदेपदे ॥ ४ ॥ अर्थ - दुर्जन और सर्प में से सर्प अच्छा है दुर्जन नहीं। क्योंकि सर्प काल आने पर ही काटता है दुर्जन तो पग पग पर कष्ट देता है॥ ४ ॥ durjanasyacasarpasyavaraṁ sarpōnadurjanaḥ ॥ sarvōdaṁśatikālētudurjanastupadēpadē ॥ 4 ॥ Meaning - Between the wicked and the snake, the snake is better, not the wicked, because the snake bites when the time comes and the wicked hurts at every step. ॥ 4 ॥ एतदर्थंकुलीनानांनृपाः कुर्वतिसंग्रहम् ॥ आदिमध्यावसानेषुनत्यजन्तिचतेनृपम् ॥५॥ अर्थ - राजा लोग कुलीनों का संग्रह इस निमित्त करते हैं कि, वे आदि अर्थात् उन्नति, मध्य अर्थात् साधारण और अंत अर्थात् विपत्ति में राजाको नहीं छोड़ते ॥ ५ ॥ ētadarthaṁkulīnānāṁnr̥pāḥ kurvatisaṁgraham ॥ ādimadhyāvasānēṣunatyajanticatēnr̥pam ॥5॥ Meaning - Kings collect noble people so that they do not leave the king in the beginning i.e. progress, middle i.e. ordinary and at the end i.e. calamity. 5॥
ग्रन्थ का नाम : चाणक्यनीतिदर्पण, रचनाकार – आचार्य चाणक्य, द्वितीय अध्याय – श्लोक-
चाणक्य की प्रसिद्धि :
ये संस्कृत श्लोक आचार्य चाणक्य के द्वारा रचित हैं। उनका नाम कौटिल्य एवं विष्णुगुप्त के नाम से भी प्रसिद्ध है। उनकी रचनाएँ Chanakya सूत्र, chanakya niti, chanakya ni pothi, chanakya quotes, chanakya niti in hindi, chanakya quotes in hindi, चाणक्य, चाणक्य नीति, चाणक्य नीति की 10 बातें, चाणक्य नीति की बातें, चाणक्य के कड़वे वचन, चाणक्य नीति स्त्री, चाणक्य नीति की 100 बातें, चाणक्य विचार इन हिंदी, चाणक्य नीति सुविचार, चाणक्य नीति जीवन जीने की, सुविचार चाणक्य के कड़वे वचन, sanskrit shlok, shlok,sanskrit, sanskrit shlok,sanskrit quotes,shlok in sanskrit, sanskrit thought, sanskrit slokas,संस्कृत श्लोक,श्लोक,छोटे संस्कृत श्लोक, आदि के रूप में चर्चित एवं प्रसिद्ध है ।
चाणक्य का कालातीत प्रभाव :
हजारों वर्षों के उपरांत भी उनमें वही ताजगी और उपयोगिता है। अतः वे आज भी उतने ही प्रासंगिक बने हुए हैं जितने वे तब थे जब वे लिखे गये थे। संस्कृत में रचित होने के कारण उनमें कालांतर के प्रभाव को स्पष्टतः नहीं देखा जाता है क्योंकि संस्कृत भाषा का सर्वश्रेष्ठ व्याकरण उसके अस्तित्व एवं गुणवत्ता के साथ ही उसके प्रभाव कि भी सुरक्षा करता है। ये अत्यंत ज्ञानवर्धक, पठनीय एवं माननीय हैं। ये जीवन के अनेक चौराहों पर हमारा मार्गदर्शन करते हैं जब सब ओर अंधकार छा जाने की प्रतीति होती है।
About Chanakya (चाणक्य के बारे में) :
चाणक्य का प्रभाव प्राचीन भारत से परे तक फैला हुआ है, क्योंकि शासन कला और शासन पर उनके विचारों का दुनिया भर के विद्वानों और नीति निर्माताओं द्वारा अध्ययन और सम्मान किया जाता है। राजनीति के प्रति उनका व्यावहारिक दृष्टिकोण और राज्य और उसके नागरिकों के कल्याण पर उनका जोर उन्हें एक कालातीत व्यक्ति बनाता है जिनकी बुद्धि समय और स्थान की सीमाओं से परे है।
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