पं.माखनलाल चतुर्वेदी
कैदी और कोकिला
1
क्या गाती हो?
क्यों रह-रह जाती हो?
कोकिल बोलो तो !
क्या लाती हो?
सन्देशा किसका है?
कोकिल बोलो तो !
2
ऊँची काली दीवारों के घेरे में,
डाकू, चोरों, बटमारों के डेरे में,
जीने को देते नहीं पेट भर खाना,
मरने भी देते नहीं, तड़प रह जाना !
जीवन पर अब दिन-रात कड़ा पहरा है,
शासन है, या तम का प्रभाव गहरा है?
हिमकर निराश कर चला रात भी काली,
इस समय कालिमामयी जगी क्यूँ आली ?
3
क्यों हूक पड़ी?
वेदना-बोझ वाली-सी;
कोकिल बोलो तो !
"क्या लुटा?
मृदुल वैभव की रखवाली सी;
कोकिल बोलो तो।"
4
बन्दी सोते हैं, है घर-घर श्वासों का
दिन के दुख का रोना है निःश्वासों का,
अथवा स्वर है लोहे के दरवाजों का,
बूटों का, या सन्त्री की आवाजों का,
या गिनने वाले करते हाहाकार।
सारी रातें है-एक, दो, तीन, चार-!
मेरे आँसू की भरीं उभय जब प्याली,
बेसुरा ! मधुर क्यों गाने आई आली?
5
क्या हुई बावली?
अर्ध रात्रि को चीखी,
कोकिल बोलो तो !
किस दावानल की
ज्वालाएँ हैं दीखीं?
कोकिल बोलो तो !
6
निज मधुराई को कारागृह पर छाने,
जी के घावों पर तरलामृत बरसाने,
या वायु-विटप-वल्लरी चीर, हठ ठाने
दीवार चीरकर अपना स्वर अजमाने,
या लेने आई इन आँखों का पानी?
नभ के ये दीप बुझाने की है ठानी !
खा अन्धकार करते वे जग रखवाली
क्या उनकी शोभा तुझे न भाई आली?
7
तुम रवि-किरणों से खेल,
जगत् को रोज जगाने वाली,
कोकिल बोलो तो !
क्यों अर्द्ध-रात्रि में विश्व
जगाने आई हो? मतवाली
कोकिल बोलो तो !
8
दूबों के आँसू धोती रवि-किरनों पर,
मोती बिखराती विन्ध्या के झरनों पर,
ऊँचे उठने के व्रतधारी इस वन पर,
ब्रह्माण्ड कँपाती उस उद्दण्ड पवन पर,
तेरे मीठे गीतों का पूरा लेखा
मैंने प्रकाश में लिखा सजीला देखा।
9
तब सर्वनाश करती क्यों हो,
तुम, जाने या बेजाने?
कोकिल बोलो तो !
क्यों तमपत्र पर विवश हुई
लिखने चमकीली तानें?
कोकिल बोलो तो !
10
क्या?-देख न सकती जंजीरों का गहना?
हथकड़ियाँ क्यों? यह ब्रिटिश राज का गहना,
कोल्हू का चर्रक चूँ? - जीवन की तान,
मिट्टी पर अँगुलियों ने लिक्खे गान?
हूँ मोट खींचता लगा पेट पर जूआ,
खाली करता हूँ ब्रिटिश अकड़ का कूआ।
दिन में करुणा क्यों जगे, रुलानेवाली,
इसलिए रात में गजब ढा रही आली?
11
इस शान्त समय में,
अन्धकार को बेध, रो रही क्यों हो?
कोकिल बोलो तो!
चुपचाप, मधुर विद्रोह-बीज
इस भाँति बो रही क्यों हो?
कोकिल बोलो तो!
12
काली तू, रजनी भी काली,
शासन की करनी भी काली
काली लहर कल्पना काली,
मेरी काल कोठरी काली,
टोपी काली कमली काली,
मेरी लौह-श्रृंखला काली,
पहरे की हुंकृति की व्याली,
तिस पर है गाली, ऐ आली!
13
इस काले संकट-सागर पर
मरने को, मदमाती !
कोकिल बोलो तो !
अपने चमकीले गीतों को
क्योंकर हो तैराती !
कोकिल बोलो तो !
14
तेरे 'माँगे हुए' न बैना,
री, तू नहीं बन्दिनी मैना,
न तू स्वर्ण-पिंजड़े की पाली,
तुझे न दाख खिलाये आली!
तोता नहीं; नहीं तू तूती,
तू स्वतन्त्र, बलि की गति कूती
तब तू रण का ही प्रसाद है,
तेरा स्वर बस शंखनाद है।
15
दीवारों के उस पार !
या कि इस पार दे रही गूँजें?
हृदय टटोलो तो !
त्याग शुक्लता,
तुझ काली को, आर्य-भारती पूजे,
कोकिल बोलो तो !
16
तुझे मिली हरियाली डाली,
मुझे नसीब कोठरी काली !
तेरा नभ भर में संचार
मेरा दस फुट का संसार !
तेरे गीत कहावें वाह,
रोना भी है मुझे गुनाह !
देख विषमता तेरी मेरी,
बजा रही तिस पर रण-भेरी!
17
इस हुंकृति पर, अपनी कृति से
और कहो क्या कर दूँ?
कोकिल बोलो तो !
मोहन के व्रत पर,
प्राणों का आसव किसमें भर दूँ !
कोकिल बोलो तो !
18
फिर कुहू ! ------अरे क्या बन्द न होगा गाना ?
इस अंधकार में मधुराई दफनाना?
नभ सीख चुका है कमजोरों को खाना,
क्यों बना रही अपने को उसका दाना?
फिर भी करुणा-गाहक बन्दी सोते हैं,
स्वप्नों में स्मृतियों की श्वासें धोते हैं!
इन लौह-सीखचों की कठोर पाशों में
क्या भर देगी? बोलो निद्रित लाशों में?
19
क्या? घुस जायेगा रुदन तुम्हारा निःश्वासों के द्वारा, कोकिल बोलो तो ! और सवेरे हो जायेगा उलट-पुलट जग सारा, कोकिल बोलो तो !
प्रसंग और संदर्भ-
प्रस्तुत कविता ‘कैदी और कोकिला’ प्रसिद्ध राष्ट्रवादी कवि माखन लाल चतुर्वेदी के कविता-संग्रह ‘हिमकिरीटिनी’ से ली गयी है। कवि ने इस कविता की रचना उस समय की थी जब देश पराधीनता की बेड़ियों में जकड़ा हुआ था। कवि को स्वयं भी आजादी के आंदोलनों में जेल जाना पड़ा था। इसलिए कहा जा सकता है कि यह कविता कवि ने स्वयं के जेल अनुभव से प्रेरित होकर लिखी है। जेल में प्रताड़ना और दुर्व्यवहार का चित्रण करके जनता के सामने प्रस्तुत करना और कोयल के माध्यम से लोगों में आजादी की चेतना पैदा करना इस कविता का उद्देश्य प्रतीत होता है।
कविता का वाचक स्वतंत्रता सेनानी है। गोरी हुकूमत ने उसे कैद कर दिया है। रात का समय है, चारों तरफ अंधेरा है और खामोशी छायी हुई है। ऐसे में कोयल का बोलना सुन कर कैदी अर्थात स्वतंत्रता सेनानी के मन में प्रश्न उठता है कि आखिर इतनी रात में कोयल के बोलने का क्या कारण हो सकता है? क्या वह कोई शुभ या अशुभ सूचना लाई है? इस प्रश्न का उत्तर पाने के लिए वह कोयल से इतनी रात में गाने का कारण पूछने लगता है। कविता अपने आप में, कोयल से पूछी गयी, एक प्रश्न माला है। वास्तव में कोयल काव्य-प्रतीक है, जिसे माध्यम बनाकर कवि नें देशवासियों के मन में राष्ट्रीयता की भावना को जगाने का सार्थक प्रयास किया है।
विशेष-
यह कविता राष्ट्रप्रेम की भावना से प्रेरित हो कर लिखी गयी है। कोयल का इस कविता में बड़े ही सुंदर ढंग से मानवीकरण हुआ है। रूपक और उपमा अलंकार के प्रयोग से काव्य सौंदर्य बहुत आकर्षक बन गया है। इस कविता से हमें आजादी के आंदोलन के समय देश के युवाओं में प्रवाहित देश प्रेम और त्याग बलिदान की भावना का अनुमान होता है।
कठिन शब्द
कोकिल-कोयल, रह-रह जाना-कुछ कहने की इच्छा के साथ रूक जाना, बटमार-लुटेरे, प्रभाव असर, तम-अंधेरा, हिमकर-चंद्रमा, कालिमा मई-काली अंधेरी, आली-सखी, वेदना कष्ट, दर्द, हूक-दर्द भरी टीस, मृदुल कोमल, मीठा, वैभव-समृद्धि, ऐश्वर्य, बावली-पगली, दावानल जंगल की आग, ज्वालायें-लपटें, दीखीं-दिखाई दीं, चर्रक चर्रक चर्र चर्र की आवाज, तान-मधुर आवाज, गान-गीत, अकड़ ऐंठ, सख्ती, मोट-कुएं से पानी खींचने का चरसा, गजबढ़ाना-उपद्रव या आतंक, करूणा-दया, बेधना-काटना, छेद करना, विद्रोह-बीज-विरोध की शुरूआत, रजनी-रात, करनी-क्रिया कलाप, व्यवहार, कल्पना-विचार, शैली, भावना, सोच, कालकोठरी-जेल की कोठरी जिसमें गम्भीर अपराधी बंदी बनाये जाते हैं, कमली कम्बल, लौह श्रृंखला-लोहे की जंजीर, हुंकृति हुंकार, व्याली-सांपिन, संकट-सागर-संकटों या दुखों का समुद्र, कभी न खत्म होने वाला दुख, मदमाती- मस्ती से भरी हुई, नशे में चूर, तैराती यादों में लाती, नसीब-भाग्य, तकदीर, गुनाह-पाप, विषमता – अंतर, भेद, रणभेरी-युद्ध के समय बजाया जानेवाला नगाड़ा, कृति-रचना, व्रत-संकल्प, आसव-मदिरा, नभ-भर-पूरा आकाश, वाह कहावें-प्रशंसा पावें
व्याख्या-
1. कविता के पहले बंद में कैदी के माध्यम से कवि कोयल से पूछता है-हे कोयल ! तुम क्या गा रही हो? गाते-गाते कभी चुप हो जाती हो! आखिर बात क्या है? क्या कोई संदेश लेकर आई हो? कुछ बोलती क्यों नहीं! अगर कोई संदेश लेकर आई हो तो बताओ ! बोलते-बोलते चुप क्यों हो जाती हो? और यह भी तो बताओ कि यह संदेश तुम्हें कहां से मिला है? कुछ तो बोलो!
2. दूसरे बंद में कवि जेल की यातनाओं के वर्णन के बहाने अंग्रेजों के अत्याचार को सबके सामने प्रस्तुत किया गया है। कवि अर्थात बंदी कहता है कि जेल की दीवारें काली और ऊंची हैं। इसके घेरे में तरह तरह के चोर बटमार, लुटेरे, डाकू रहते हैं। यहां पेट भर भोजन के लिए तरस जाना पडता है। हालत यह है कि न जीने दिया जाता है न मरने। तड़प कर रह जाना पडता है। यहाँ आजादी नाम की चीज ही नहीं है। हर समय कड़े पहरे में जीवन बिताना पडता है। पता नहीं यह कैसा शासन है कि सब तरफ उत्पीड़न का अंधकार ही अंधकार है। चंद्रमा भी कहीं चला गया है। धरती से आसमान तक सब जगह निराशा का अंधकार छाया हुआ है। उम्मीद की कहीं कोई रोशनी नहीं है और रात भी भयानक रूप से काली है। कैदी के माध्यम से कवि पूछता है कि हे कोयल ! इस कालिमाम रात में तू क्यों जाग रही हो? तुम्हारे जागने का प्रयोजन क्या है?
3. कविता के तीसरे बंद में कोयल के स्वर में बहुत गहरी वेदना है। इस वेदना में पराधीन भारत की वेदना की तरफ संकेत किया गया है। जेल में बंद स्वतंत्रता सेनानी को लगता है कि कोयल ने अंग्रेज सरकार द्वारा किये जाने वाले अत्याचार को देख लिया है। इसीलिए उसके कंठ से वेदना का स्वर सुनाई पड़ रहा है। कोयल की कुहुक दर्दीली हूक में बदल गयी है। कैदी को लगता है कि कोयल अपनी वेदना सुनाना चाहती है। इसलिए पूछता है, तुम्हें किस बात की चिंता है? किस वेदना के बोझ से कराह रही हो? कुछ बोल क्यों नहीं रही हो? कैदी सोचता है कि कोयल शायद उसके दर्द को समझ रही है, इसलिए उसके मुख से वेदना का स्वर फूट रहा है। वह कोयल से पूछना चाहता है कि मेरी आजादी की तरह क्या तुम्हारा भी कुछ लुट गया है? तुम्हारी मीठी आवाज, जिसके वैभव की तुम स्वामिनी हो, लगता है किसी दुख के कारण कहीं गुम हो गयी है। तुम्हारी बोली में मिठास नहीं है। ऐसा कौन सा दुःख का पहाड़ तुम पर टूट पड़ा है? मुझे भी तो बताओ !
4. इस बंद में जेल के भीतर रात के वातावरण का वर्णन किया गया है। बंदी कोयल से कहता है, इस रात में यहां तुम क्या सुनने आई हो? ये जो तुम्हें घर्र-धर्र की आवाजें सुनाई दे रही हैं, सो रहे बंदियों की स्वांसो की आवाजें हैं। रात में यहां तुम्हें तरह-तरह की आवाजें सुनाई देंगी यातनाओं के दर्द से रो रहे कैदियों की सिसकियों की आवाजें, जेल के भारी भरकम लोहे के फाटक के खुलने बंद होने की आवाजें, सिपाहियों के बूटों की आवाजें, संत्रियों की आवाजें, कैदियों की गिनती के समय एक दो तीन चार की आवाजें। हे कोयल ! जेल की भयावनी रात में, जब हमारे दोनों नेत्रों की प्याली आंसुओं से भरी हुई है, तुम असमय अपना मधुर गाना सुनाने क्यों चली आई हो। दुख की इस मानसिकता में तुम्हारा यह मधुर गान बिल्कुल बेसुरा लग रहा है।
5. पांचवे बंद में सेनानी कैदी को इतनी रात में कोयल का चीखना बड़ा अजीब लग रहा है, इसलिए वह कोयल से पूछता है कि क्या तुम बावली हो गयी हो जो आधी रात को इस तरह चीख रही हो? आखिर तुम्हें हुआ क्या है? आधी रात के सन्नाटे में क्यों चीख रही हो? तुम्हारा इस तरह आधी रात में चीखना मुझे आशंकित कर रहा है। कहीं तुमने जंगल में लगी आग तो नहीं देख लिया है? हे कोयल ! कुछ तो बोलो!! यहां कवि ने जंगल की आग के बहाने कहना चाहा है कि कोयल ने अंग्रेजी हुकूमत के अत्याचारों से जनता में मची चीख पुकार देख लिया है।
6. कैदी कोयल से पूछता है कि हे कोयल ! कहीं ऐसा तो नहीं कि कारागार की भयावहता से क्लांत सेनानी कैदियों के घायल हृदय की पीड़ा को अपने मधुर गीत के अमृत से शांत करने आई हो? या अपने गीत से पेड़ों और हवाओं और जेल की ऊंची दीवारों, की बाधाओं को चीर कर तुम अपनी ताकत आजमाना चाहती हो? यहां कवि संकेतों में कोयल के माध्यम से कहना चाहता है कि जेल की दीवारें भी साहसी सेनानियों के लिए अभेद्य नहीं हैं। गुलामी जितनी भी कड़ी हो, जैसे कोयल अपने हठ से जेल की अलंघ्य दीवारों और पेड़ों की बाधाओं को पार कर अपनी आवाज से जेल को गुंजायमान कर सकती है, वैसे ही गुलामी की कठोर बेड़ियां भी तोड़ी जा सकती हैं। आगे कैदी पूछता है कि कहीं ऐसा तो नहीं कि हमारी आंखों में भरे आंसू अर्थात हमारी पीड़ाओं का शमन करने के लिए, तुमने जेल के ऊंचे टावरों पर जलते हुए गुलामी के दीपों को बुझाने का प्रण कर लिया है? कोयल ! ये दीप तो अंधकार को नष्ट करने के लिए लगाये गये हैं ताकि जेल (अंग्रेज सरकार) की रखवाली किया जा सके ! तुम्हें क्या नभ के इन जलते हुए दीपों (अंग्रेजी सरकार के बने रहने) की शोभा अच्छी नहीं लगती है? अर्थात क्या तुम अंग्रेजो का राज मिटाना चाहती हो?
7. यहाँ कैदी कोयल से कहता है कि हे कोयल ! तुम्हें लोग इसलिए प्यार करते हैं कि तुम रोज प्रातःकाल सूरज की किरणों के साथ ही अपनी मीठी धुन से सारे संसार को जगाती हो। लेकिन आज इस काली अंधेरी रात में क्यों जगा रही हो? क्या तुम सचमुच ही मतवाली हो गयी हो? बोलो! बताओ !
8. इस बंद का काव्य सौंदर्य बड़ा ही मोहक है। इसमें छायावादी बिम्बों और उपमाओं का सघन प्रयोग दिखता है। कवि इस बंद में प्रकाश की किरणों पर कोयल के गीतों को चमकते हुए देखता है। कहता है-हे कोयल ! मैंने, पृथ्वी पर उगी हरी-हरी दूबों पर पड़ी ओस की बूंदों को सुखाती, विन्ध्या के झरनों पर मोती बिखेरती, गगन ऊँचे-ऊँचे पेड़ों वाले वनों और पूरे ब्रहमाण्ड को झकझोर देने वाली हवाओं पर अठखेलियां करती प्रातः कालीन किरणों पर तुम्हारे गीतों को थिरकते हुए देखा है।
9. कैदी के माध्यम से कवि कहता है कि हे कोयल ! मीठे गान सुना कर संसार का मन प्रसन्न करना तुम्हारा स्वभाव है। मुश्किल समयों में भी तुम अपना स्वभाव नहीं छोड़ती। फिर ऐसा क्यों है कि तुम इस काली रात में, जेल की दीवारों के भीतर जल रहे दीप को बुझाना चाहती हो? इसका सर्वनाश करना चाहती हो? अंधकार के पत्तों पर अपनी चमकीली तानें लिखने की तुम्हारी विवशता का क्या कारण है? अर्थात गुलामी के अंधकार को क्यों मिटाना चाहती हो?
10. कैदी कोयल से पूछता है- क्या हमें इन जंजीरों में जकड़े देखना तुम्हें सह नहीं लग रहा? फिर स्वयं ही कोयल को समझाते हुए कहता है कि अरे! ये हथकड़ियां नहीं हैं, ये तो हम सेनानियों को ब्रिटिश राज का दिया आभूषण है। हम सेनानियों को गुलाम देश में यही शोभा देता है। और कोल्हूं का यह चर्रक चूं? यह तो अब हमारे जीवन की लय बन चुका है-प्रेरणा का संगीत। यातनाओं के कोल्हूं में पिसते रहना ही हम सेनानियों के जीवन का यथार्थ है। पत्थर तोड़ते-तोड़ते हमारी उंगलियां उन्हीं पत्थरों पर भारत माता की आजादी का गाना लिखने लगती है। हम पेट पर ‘मोट’ का जुआं बांध कर ब्रिटिश राज की अकड़ के कुंए को खाली कर रहे हैं। अर्थात इतनी यातनायें सहकर हम ब्रिटिश राज की अकड़ ढीली कर रहे हैं। हमारे अंदर यातनाओं को सहने का गजब का धैर्य है। हम नहीं चाहते कि हमारी यातना देख लोगों के भीतर करूणा का संचार हो, लोगों की आंख में आंसू आये। परन्तु इतनी रात में तुम्हारी वेदना भरी चीख से मेरा मन विदीर्ण हो रहा है।
11. इन पंक्तियों में कवि कोयल को संबोधित करते हुए कहता है कि वातावरण में सन्नाटा पसरा है, चारों ओर अंधकार फैला हुआ है। तुम्हारी रूलाई इस अंधकार को बेध रही है। मगर यह तो बताओ कि तुम रो क्यों रही हो? ब्रिटिश शासन के विरुद्ध विद्रोह का मधुर-बीज क्यों बो रही हों? क्या तुम भी स्वतंत्रता सेनानियों की तरह देशभक्ति का व्रिदोह-बीज बोना चाहती हो?
12. इस बंद में जेल में सेनानियों के साथ हो रहे उत्पीड़न का वर्णन है। कवि कोयल से कह रहा है कि देखो! तू भी काली है और ये दुखों की रात भी काली है। हम जिस कोठरी में रहते हैं, वह भी काली है और आस-पास चलने वाली हवा के साथ-साथ यहाँ से मुक्ति पाने की हमारी कल्पना काली है। अंग्रेजी सरकार की करतूतें काली है। जेल की दीवारें काली हैं। इन दीवारों के भीतर की हवा काली है, मेरी ये टोपी काली है और जो कम्बल मैं ओढ़ता हूँ वह भी काला है। जिन जंजीरों में मुझे बांधा गया है, वह भी काली है। दिन-रात कठोर यातनायें सहने के अलावा पहरेदारों की गाली भी सुनना पड़ता है। यह डांट और गाली किसी काले सांप की तरह हमें डंसने को दौड़ती हैं।
13. यहां कवि कोयल को संबोधित करते हुए कहता हैं ऐसा क्यों है कि यहां अपार संकट सामने खड़ा है और तुम मरने को उद्यत दिखाई देती हो ! तुम तो स्वतंत्र हो, फिर आधी रात में जेल रूपी संकट के सागर पर आशा और उत्साह से भरपूर अपने चमकीले गीतों को क्यों तैरा रही हो? अर्थात जेल के इस उदास सन्नाटे में स्वतंत्रता की भावना जागृत करने वाले मदमस्त करने वाले गीत क्यूँ गाए जा रही हो? कारागार के समीप घूम-फिरकर ओज-तेज का संचार क्यों कर रही हो? हे कोयल ! कुछ तो बोलो।
14. कवि कहता है कि हे कोयल ! तू मैना जैसी बंदिनी नहीं है, तुम्हारा पालन किसी सोने के पिंजरे में नहीं हुआ है, कोई तुझे कुछ खिलाता भी नहीं है, तूम न तो तोता हो न तूती, तुम हर तरह से आजाद हो, एक सेनानी की तरह तुम्हारा जीवन भी युद्ध भूमि के समान है- सब तरफ संघर्षो से घिरा हुआ। तुम्हारी बोली किसी शंखनाद से कम नहीं है। कोकिला और सेनानी की तुलना करके कवि ने दोनों को समतुल्य बना दिया है।
15. इस बंद में कैदी कोयल से पूछता है कि तुम कहां से आवाज दे रही हो! जेल की दीवारों के उस पार से या भीतर से? अपना हृदय टटोल कर बताओं कि वास्तव में तुम हो कहां (अर्थात तुम किसे जाग्रत करना चाहती हो, सेनानियों को या अंग्रेजों को)। तुमकाली जरूर हो लेकिन तुम्हारा त्याग बहुत धवल है। काली होने के बावजूद आर्यों के इस देश में तुम पूजनीय हो। हे कोयल ! कुछ बोलती क्यों नहीं ?
16. इस पद में हर तरह से आजाद कोयल एवं बेड़ियों में जकड़े कैदी की मनःस्थिति की तुलना बड़े ही मार्मिक ढंग से की गयी है। कोयल को संबोधित करते हुए कवि कहता कि हे कोयल ! तुम पूरी तरह आजाद हो, तुम्हें हरी भरी डालियों पर बसेरा बनाने की छूट है, पूरा आसमान तुम्हारा है, जहां, जब चाहो जा सकती हो। तुम्हारे गीतों पर लोग खुश होकर तालियां बजाते हैं। वाह-वाह ! करते हैं। इधर हम कैदियों का रोना कराहना सुनने के लिए कोई तैयार ही नहीं है। तुम कहीं पर भी विचरण कर सकती हो और मनचाहे गीत गा सकती हो। लेकिन हमें, हमेशा अंधकार से भरी, 10 फुट की छोटी सी कोठरी में रहना पड़ता है। अपनी इच्छानुसार कुछ भी नहीं कर सकना यहां असंभव है। हमारे और तुम्हारे जीवन में जमीन आसमान का फर्क है, तुम्हें आजादी ही आजादी है, जब कि मेरे भाग्य में अंधकार से भरी रात है। समझ में नहीं आता कि युद्ध का यह राग क्यों गाये जा रही हो? इस रहस्यमय ढंग से तुम्हारे गाने का आशय क्या है? मुझे बताओ कोयल !
17. कवि कोयल की पुकार पर कुछ भी करने को तैयार है। कोयल से कहता है, हे कोयल ! बताओ अपनी कृति से और क्या कर दूं। मोहन यहां मोहनदास करमचंद गांधी के लिए प्रयोग किया गया है। मोहन के व्रत पर प्राणों का आसव से कवि का अभिप्राय यह है कि कोयल यदि कहे तो वह गांधी जी के संकल्पों को पूरा करने के लिए अपने प्राणों को न्यौछावर भी कर सकता हूं। देशवासियों के दिलों में गुलामी के खिलाफ लड़ने का मंत्र फूँक सकता हूं।
18. कोयल को लगातार गाते देख कैदी पूछता है, हे कोयल ! तुम्हारा यह गाना बंद भी होगा या हर समय गाती ही रहोगी? क्या तुमने अपनी आवाज की मधुरता को गुलामी के अंधकार में दफन कर देने की ठान ली है? अर्थात क्या तुम अंग्रेजों की गुलामी के सामने झुकने को तैयार नहीं हो? क्या तुम्हें पता नहीं कि यह अत्याचारी आकाश कमजोरों को निगल जाता है? आखिर क्यों अपने आप को उसका निवाला बनाने पर आमादा हो? अर्थात आजादी की लड़ाई का जोखिम क्यों उठाना चाहती हो? जेल के जिन बंदियों में तुम करूणा जगाना चाहती हो, वे अभी जेल की कठोर बंदिशों के बीच अपनी स्मृतियों के साथ सो रहे हैं। क्या तुम नींद में अचेत पड़े लोगों को आजादी का संदेश दे पाओगी?
19. अंतिम बंद में कैदी कोयल से पूछता है कि क्या तुम्हें यकीन है कि इन सोये हुए कैदियों की सांसों के रास्ते तुम्हारा रूदन इनकी आत्मा तक पहुंच जायेगा? बताओ कोयल ! और यह भी बताओ कि क्या सुबह जब कैदी नींद से जागेंगे तो सब कुछ उलट-पुलट हो जायेगा? क्या गुलामी का राज उखाड़ कर नष्ट हो जायेगा? बोलो कोयल !
काव्य सौष्ठव-
कविता की संबोधन वाचक और प्रश्न वाचक शैली आत्मीयता की भावना जगाती है।
कोयल को माध्यम बनाकर लिखी गई इस कविता में अन्योक्ति अलंकार का बड़ा सुंदर प्रयोग किया गया है। इससे कविता का सौंदर्य बहुत बढ़ गया है।
लय और छंद की झंकार अलग से अपना ध्यान आकर्षित करती है। संस्कृतनिष्ठ और तत्सम शब्दों का प्रयोग खूब हुआ है किन्तु भाषा में लालित्य का प्रवाह तनिक भी कम नहीं हुआ है।
काव्य-भाषा सांकेतिक है। कहीं-कहीं काव्यालंकारों का बड़ा मनोहारी प्रयोग हुआ है।
कवि ने भावानुकूल तत्सम शब्दों वाली खड़ी बोली का प्रयोग किया है।
पुष्प का मानवीकरण बहुत सुंदर ढंग से किया गया है।
विशेष-
देश प्रेम और स्वाधीनता की चेतना जगाना इस कविता का प्रमुख उद्देश्य है। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए कवि ने काव्य सौंदर्य को कहीं हल्का नहीं होने दिया है। यह कविता अपनी सघन प्रतीकात्मकता, सांकेतिकता, आलंकारिकता और शब्द योजना की दृष्टि से भी बहुत महत्वपूर्ण है। इसका उदात्त भाव इसे अलग से श्रेष्ठ बनाता है।
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बोध प्रश्न-1
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर संक्षेप में दें।
1. ‘पुष्प की अभिलाषा’ में कवि क्या संदेश देना चाहता है?
2. ‘पुष्प की अभिलाषा’ में पुष्प माली से क्या कहता है?
3. ‘कैदी और कोकिला’ का सारांश लिखिये।
4. ‘कैदी और कोकिला’ कविता के आधार पर पराधीन भारत की जेलों में स्वतंत्रता संग्राम के सेनानियों को दी जाने वाली यातनाओं का वर्णन कीजिए।
5. ‘कैदी और कोकिला’ में हथकड़ियों को गहना क्यों कहा गया है?
बोध प्रश्न-2
वस्तुनिष्ठ प्रश्न
i. ‘पुष्प की अभिलाषा’ शीर्षक कविता, किस पुस्तक से ली गयी है?
क) हिम किरीटिनी
ख) हिम तरंगिनी
ii. पुष्प किस पथ पर बिखेरा जाना चाहता है?
ग) समर्पण
घ) वेणु ले गूंजे धरा
क) राज पथ पर
ख) बाजार के पथ पर
ग) शहीद पथ पर
घ) जिस पथ से मातृभूमि पर शीश चढ़ाने के लिए वीर सैनिक जाते हैं।
iii. पुष्प अपनी अभिलाषा किसके सामने प्रकट कर रहा है?
क) कवि के सामने
ख) सुर बाला के सामने
ग) सैनिक के सामने
घ) माली के सामने
iv. ‘पुष्प की अभिलाषा’ कविता की मूल भावना क्या है?
क) भगवद् भक्ति की भावना
ग) अंग्रेजों पर शासन की भावना
ख) देश भक्ति की भावना
घ) युद्ध की भावना
v. पुष्प की अभिलाषा कविता के माध्यम से किसकी अभिलाषा व्यक्त हुई है?
क) कवि की अभिलाषा
घ) देश प्रेमी की अभिलाषा
ख) सम्राट की अभिलाषा
ग) सुंदरी की अभिलाषा
vi. ‘कैदी और कोकिला किस संग्रह में संकलित है?
क) ‘हिमकिरीटिनी’
घ) समय के पांव
ख) बिजुरी काजल आंज रही
vii. ‘कैदी और कोकिला’ में जंजीरों को क्या कहा गया है?
क) उत्पीड़न का औजार
ख) गहना
ग) गुलामी का प्रतीक
घ) कुछ नहीं
viii. कैदी और कोयल में क्या समानता है?
क) दोनों गायक हैं
ख) दोनों कैदी हैं
ग) दोनो स्वतंत्रता से प्रेरित हैं
घ) दोनों घायल हैं
ix. कवि ने किस शासन की तुलना तम के प्रभाव से की है?
क) मुगल शासन की
ख) रूसी शासन की
ग) भारतीय शासन की
घ) ब्रिटिश शासन की
पराधीन भारत में कैदियों के साथ कैसा व्यवहार किया जाता था? X
क) अमानवीय
ख) सामान्य
ग) राजसी
घ) सम्माननीय
xi. कैदी ने देश की आजादी के लिए किसके विरूद्ध संघर्ष किया?
क) अंग्रेजी शासन
ख) कांग्रेस शासन
ग) मुगल शासन
घ) स्थानीय शासन xii. हथकड़ियों को कविता में क्या कहा गया है?
क) गहना
ख) बेड़ी
ग) बंधन
घ) पराधीनता
xiii. कोयल किस समय चीख रही थी?
क) दोपहर में
ख) आधी रात में
ग) कभी नहीं
घ) सूरज निकलने पर
xiv. कैदी की कोठरी कितने फुट की थी?
क) 10 फुट
ख) 5 फुट
ग) 3 मीटर
घ) 10 गज
xv. ‘कैदी और कोयल’ में कवि ने अंग्रेजी शासन की तुलना किस रंग से की है?
क) काला
ख) नीला
ग) सफेद
घ) हरा
16.3 उपयोगी पुस्तकें
माखन लाल चतुर्वेदीः एक अध्ययन, लेखक श्री नर्मदा प्रसाद खरे।
16.4 बोध प्रश्नों के उत्तर
बोध प्रश्न – 1
1. ‘पुष्प की अभिलाषा’ कविता ब्रिटिश शासन की गुलामी से आजादी के लिए देश के नौजवानों में देश प्रेम की भावना जगाने के लिए लिखी गयी थी। इस कविता में कवि ने देश के प्रति समर्पित होने का संदेश दिया है। पुष्प के माध्यम से कवि ने प्रेरणा दी है कि हमें अपने देश के लिए त्याग बलिदान करने में पीछे नहीं रहना चाहिए।
2. भारत देश के स्वतंत्रता सेनानी अंग्रेजों से आजादी के लिए लड़ाई कर रहे थे। यह कविता जनता में देशप्रेम की भावना पैदा करने के लिए लिखी गयी थी। इस कविता में माली से फूल कहता है, हे माली! सुनो! मैं नहीं चाहता कि मुझे किसी सुंदर स्त्री के आभूषण में गूंथा जाय जिससे कि युवती का आकर्षण बढ़ जाय। मुझे किसी सुंदरी के गले का आभूषण बनने की इच्छा बिल्कुल ही नहीं है। मैं किसी युवती के श्रृंगार का उपकरण नहीं बनना चाहता। किसी प्रेमी की माला में गुंथ कर उसकी प्रेमिका को ललचाने की भी मुझे कोई इच्छा नहीं है। हे माली! तुम मुझे किसी सम्राट के शव पर डाले जाने से बचाना। हमें इस तरह का सम्मान पाने की भूख बिल्कुल नहीं है। किसी देवता के सिर पर चढ़ने का सौभाग्य प्राप्त करने की भी मुझे कोई चाह नहीं है। देशप्रेम के सामने ये सब बहुत तुच्छ इच्छायें हैं। हमारी अभिलाषा तो मातृभूमि को आजाद कराने के लिए शीश कटाने को तैयार वीरों के चरण चूमना चाहते हैं। अतः तुम हमें उस रास्ते पर बिखेर देना जिस रास्ते से देशप्रेमी सैनिक मातृभूमि की रक्षा के लिए शीश कटाने जा रहे होते हैं।
3. कैदी और कोकिला कविता में कवि ने अंग्रेजी शासन द्वारा किये गये अत्याचारों व जेल में कैदियों को दी जाने वाली यातनाओं तथा अपने दुख और असंतोष का वर्णन किया है। कविता का सारांश यह है कि कवि आजादी के आंदोलन में जेल चला गया है। जेल में उसपर बहुत अत्याचार किया जाता है। उसे उम्मीद नहीं है कि ब्रिटिश शासन कभी खत्म होगा। रात में नींद नहीं आ रही है। आधी रात किसी कोयल के कूकने की आवाज सुनकर वह चौंक जाता है। उसे कोयल का इतनी रात में कूकना बड़ा रहस्यमय लगता है। कविता में वह कोयल को संबोधित करके पूछता है, कि तू इतनी रात को क्या कहना चाह रही है? मैं जेल में हूं तू स्वतंत्र है, मुझे रोना भी गुनाह है, तू इस अंधेरी रात में चीख-चीख कर क्यों बावली हो रही है? ऐसा लगता है तू मेरे दुख से दुखी होकर इतनी रात में करूणा भरे स्वर में बोल रही हो और अंग्रेजों के अत्याचार का मुकाबला करने के लिए प्रेरित कना चाह रही हो। कवि ने स्वतंत्रता सेनानियों व भारतीय जनता के देश पर न्यौछावर हो जाने की प्रेरणा देने के लिए इस कविता की रचना की है।
4. पराधीन भारत में स्वतंत्रता सेनानियों को जेलों में तरह तरह से अमानवीय यातनायें दी जाती थीं। कविता में इस यातना का वर्णन करते हुए कवि ने कहा है कि ब्रिटिश राज में राजनैतिक कैदियों के साथ चोर डाकुओं जैसा व्यवहार किया जाता था। हथकड़ियों में जकड़ कर उन्हें चोरों डाकुओं के साथ अंधेरी काल कोठरी में रखा जाता था। पेट भर भोजन नहीं दिया जाता था। कोल्हू में उन्हें जोत कर पानी निकलवाया जाता था। जेलर सिपाहियों की निगरानी में रखा जाता था और तरह-तरह से अपमानित किया जाता था।
5. गहना आभूषण को कहते हैं। गहना का हमारे जीवन में महत्व इसलिए है क्योंकि वह धारण करने वाले व्यक्ति के सौंदर्य को बढ़ा देता है। अंग्रेजों से लोहा लेने वाले वीरों को जब जेल भेजा जाता था तो समाज में उनकी प्रतिष्ठा बढ जाती थी। बेडी और हथकड़ी में जकड़ा हुआ सेनानी गर्व का अनुभव करता था क्योंकि उसके अंदर मातृभूमि के लिए हर कष्ट सहन करने का जज्बा होता था। जेल क्रांतिकारियों का प्रिय आवास होता था तथा पावों में बेडियां और हथकडियां पहन कर गहना पहने होने जैसा संतोष होता था। इसलिए कैदी ने कोकिला से कहा कि बेड़ियां और हथकड़ियां तो क्रांतिकारियों का गहना है।
बोध प्रश्न-2
वस्तुनिष्ठ प्रश्न
i ख
. घ
iii. घ
iv. ख
v. घ
vi. क
vii. ख
viii. ग
ix. घ
x. क
xi. क
xii. क
xiii. ख
xiv. क
XV. क